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Valentine’s Day 2024 : इजहार- सीमा के लिए किसने भेजा था गुलदस्ता ?

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

Valentine’s Day 2024 : कुछ कहना था तुम से – 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद ?

वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

वैदेही ने मेल खोल पढ़ा. सौरव ने केवल 2 लाइनें लिखी थीं, ‘‘आई एम कमिंग टू सिंगापुर टुमारो, प्लीज कम ऐंड सी मी… विल अपडेट यू द टाइम. गिव मी योर नंबर विल कौल यू.’’

यह पढ़ बेचैन थी. सोच रही थी कि नंबर दे या नहीं. क्या इतने सालों बाद मिलना ठीक रहेगा? इन 10 सालों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं… कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की. फिर क्यों वापस आया है? सवाल तो कई थे पर जवाब एक भी नहीं था.

जाने क्या सोच कर अपना नंबर लिख भेजा. फिर आराम से कुरसी पर बैठ कर सौरव से हुई पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी…

10 साल पहले ‘फोरम द शौपिंग मौल’ के सामने और्चर्ड रोड पर एक ऐक्सीडैंट में वैदेही सड़क पर पड़ी थी. कोई कार से टक्कर मार गया था. ट्रैफिक जाम हो गया था. कोई मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था. किसी सिंगापोरियन ने हैल्पलाइन में फोन कर सूचना दे दी थी कि फलां रोड पर ऐक्सीडैंट हो गया है, ऐंबुलैंस नीडेड.

वैदेही के पैरों से खून तेजी से बह रहा था. वह रोड पर हैल्प… हैल्प चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. उसी ट्रैफिक जाम में सौरव भी फंसा था. न जाने क्या सोच वह मदद के लिए आगे आया और फिर वैदेही को अपनी ब्रैंड न्यू स्पोर्ट्स कार में हौस्पिटल ले गया.

वैदेही हलकी बेहोशी में थी. सौरव का उसे अपनी गोद में उठा कर कार तक ले जाना ही याद था. उस के बाद तो वह पूरी बेहोश हो गई थी. पर आज भी उस की वह लैमन यलो टीशर्ट उसे अच्छी तरह याद थी. वैदेही की मदद करने के ऐवज में उसे कितने ही चक्कर पुलिस के काटने पड़े थे. विदेश के अपने पचड़े हैं. कोई किसी

की मदद नहीं करता खासकर प्रवासियों की. फिर भी एक भारतीय होने का फर्ज निभाया था. यही बात तो दिल को छू गई थी उस की. कुछ अजीब और पागल सा था. जब जो उस के मन में आता था कर लिया करता था. 4 घंटे बाद जब वैदेही होश में आई थी तब भी वह उस के सिरहाने ही बैठा था. ऐक्सीडैंट में वैदेही की एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था, मोबाइल भी टूट गया था. सौरव उस के होश में आने का इंतजार कर रहा था ताकि उस से किसी अपने का नंबर ले इन्फौर्म कर सके.

होश में आने पर वैदेही ने ही उसे अच्छी तरह पहली बार देखा था. देखने में कुछ खास तो नहीं था पर फिर भी कुछ तो अलग बात थी.

कुछ सवाल करती उस से पहले ही उस ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप होश में आ गईं वरना तो आप के साथ मुझे भी हौस्पिटल में रात काटनी पड़ती. खैर, आई एम सौरव.’’

सौरव के तेवर देख वैदेही ने उसे थैंक्यू नहीं कहा.

वैदेही से उस ने परिवार के किसी मैंबर का नंबर मांगा. मां का फोन नंबर देने पर सौरव ने अपने फोन से उन का नंबर मिला कर उन्हें वैदेही के विषय में सारी जानकारी दे दी. फिर हौस्पिटल से चला गया. न बाय बोला न कुछ. अत: वैदेही ने मन ही मन उस का नाम खड़ूस रख दिया.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने वैदेही का नंबर लिया था न ही वैदेही ने उस का. उस के जाते ही वैदेही की मां और बाबा हौस्पिटल आ पहुंचे थे. वैदेही ने मां और बाबा को ऐक्सीडैंट का सारा ब्योरा दिया और बताया कैसे सौरव ने उस की मदद की.

2 दिन हौस्पिटल में ही बीते थे.

ऐसी तो पहली मुलाकात थी वैदेही और सौरव की. कितनी अजीब सी… वैदेही सोचसोच मुसकरा रही थी. सोच तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. सौरव के ईमेल ने वैदेही के पुराने सारे मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

ऐक्सीडैंट के बाद पंद्रह दिन का बैडरेस्ट लेने को कहा गया

था. नईनई नौकरी भी जौइन की थी तब वैदेही ने. घर पहुंच वैदेही ने सोचा औफिस में इन्फौर्म कर दे. मोबाइल खोज रही थी तभी याद आया मोबाइल तो हौस्पिटल में सौरव के हाथ में था और शायद अफरातफरी में उस ने उसे लौटाया नहीं था. पर इन्फौर्म तो कर ही सकता था. उफ, सारे कौंटैक्ट नंबर्स भी गए. वैदेही चिल्ला उठी थी. तब अचानक याद आया कि उस ने अपने फोन से मां को फोन किया था. मां के मोबाइल में कौल्स चैक की तो नंबर मिल गया.

तुरंत नंबर मिला अपना इंट्रोडक्शन देते हुए उस ने सौरव से मोबाइल लौटाने का आग्रह किया. तब सौरव ने तपाक से कहा, ‘‘फ्री में नहीं लौटाऊंगा. खाना खिलाना होगा… कल शाम तुम्हारे घर आऊंगा… एड्रैस बताओ.’’

वैदेही के तो होश ही उड़ गए. मन में सोचने लगी कैसा अजीब प्राणी है यह. पर मोबाइल तो चाहिए ही था. अत: एड्रैस दे दिया.

अगले दिन शाम को महाराज हाजिर भी हो गए थे. सारे घर वालों को सैल्फ इंट्रोडक्शन भी दे दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. वैदेही ये सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था. मां, बाबा और वैदेही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. थकते भी क्यों उस का स्वभाव, हावभाव सब कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. वैदेही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह सिंगापुर में अकेला रहता था. एक कार डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर था. तभी आए दिन उसे नई कार का टैस्ट ड्राइव करने का मौका मिलता रहता था. जिस दिन उस ने वैदेही की मदद की थी उस दिन भी न्यू स्पोर्ट्स कार की टैस्ट ड्राइव पर था. उस के मातापिता इंडिया में रहते थे.

इस दौरान अच्छी दोस्ती हो गई थी. रोज आनाजाना होने लगा था. वैदेही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने वैदेही के दिल में खास जगह बना ली. उस के साथ जब होती थी तो लगता था ये पल यहीं थम जाएं. वैदेही को भी यह एहसास हो चला था कि सौरव के दिल में भी उस के लिए खास फीलिंग्स हैं. मगर अभी तक उस ने वैदेही से अपनी फीलिंग्स कही नहीं थीं.

15 दिन बाद वैदेही ने औफिस जौइन कर लिया. सौरव और वैदेही का औफिस और्चर्ड रोड पर ही था. सौरव अकसर वैदेही को औफिस से घर छोड़ने आता था. फ्रैक्चर होने की वजह से

6 महीने केयर करनी ही थी. वैदेही को उस का लिफ्ट देना अच्छा लगता था.

आज भी वैदेही को याद है सौरव ने उसे

2 महीने के बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी प्रेमिका को गुलदस्ता या चौकलेट अथवा रिंग के साथ प्रपोज करते हैं, पर उस ने वैदेही के हाथों में एक कार का छोटा सा मौडल रखते हुए कहा कि क्या तुम अपनी पूरी जिंदगी का सफर मेरे साथ तय करना चाहोगी? कितना पागलपन और दीवानगी थी उस की बातों में. वैदेही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते सौरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और वैदेही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते हुए दोनों की सांसें एक हो चली थीं. वैदेही का दिल जोर से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह सौरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी.

कुछ देर तो वैदेही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने वैदेही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो वैदेही ने कहा था कि अगले दिन ‘गार्डन बाय द वे’ में मिलेंगे. वहीं वह अपना जवाब उसे देगी.

उस रात वैदेही एक पल भी नहीं सोई थी. कई विषयों पर सोच रही थी जैसे कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो उठा था. तब वैदेही मात्र 22 साल की ही तो थी और इतनी जल्दी शादी भी नहीं करना चाहती थी. सौरव भी केवल 25 वर्ष का था. पर वैदेही उसे यह बताना भी चाहती थी कि उस से बेइंतहा मुहब्बत हो गई है और जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है. बस कुछ समय चाहिए था उसे. पर यह बात वैदेही के मन में ही रह गई थी. कभी इसे बोल नहीं पाई.

अगले दिन वैदेही ठीक शाम 5 बजे ‘गार्डन बाय द वे’ में पहुंच गई. वहां पहुंच कर उस ने सौरव को फोन मिलाया तो फोन औफ आ रहा था. उस का इंतजार करने वह वहीं बैठ गई. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया तब भी फोन औफ ही आ रहा था. वैदेही परेशान हो उठी. पर फिर सोचा कहीं औफिस में कोई जरूरी मीटिंग में न फंस गया हो. वहीं उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते रात के 8 बजे गए, पर वह नहीं आया और उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला.

2 साल तक वैदेही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक बार भी फोन नहीं किया. 2 साल बाद मांबाबा की मरजी से आदित्य से वैदेही की शादी हो गई. आदित्य औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता सिंगापुर में उस के साथ ही रहते थे.

शादी के बाद कितने साल लगे थे वैदेही को सौरव को भूलने में पर पूरी तरह भूल नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर उसे सौरव की याद आ ही जाती थी. आज अचानक क्यों आया है और क्या चाहता है?

वैदेही की सोच की कड़ी को अचानक फोन की घंटी ने तोड़ा. एक अनजान नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. वैदेही को लग रहा था हो न हो सौरव का ही होगा. एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए हैलो कहा तो दूसरी ओर सौरव ही था. उस ने अपनी भारी आवाज में ‘हैलो इज दैट वैदेही?’ इतने सालों के बाद भी सौरव की आवाज वैदेही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत कर रही थी.

स्वयं को संभालते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘यस दिस इज वैदेही,’’ न पहचानने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘मे आई नो हू इज टौकिंग?’’

सौरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘यार, तुम मुझे कैसे भूल सकती हो? मैं सौरव…’’

‘‘ओह,’’ वैदेही ने कहा.

‘‘क्या कल तुम मुझ से मरीना वे सैंड्स होटल के रूफ टौप रैस्टोरैंट पर मिलने आ सकती  हो? शाम 5 बजे.’’

कुछ सोचते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘हां, तुम से मिलना तो है ही. कल शाम को आ जाऊंगी,’’ कह फोन काट दिया.

अगर ज्यादा बात करती तो उस का रोष सौरव को फोन पर ही सहना पड़ता. वैदेही के दिमाग में कितनी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल था. यह सौरव के लिए उस का प्यार था या नफरत? मिलने का उत्साह था या असमंजसता? एक मिलाजुला भावों का मिश्रण जिस की तीव्रता सिर्फ वैदेही ही महसूस कर सकती थी.

अगले दिन सौरव से मिलने जाने के लिए जब वैदेही तैयार हो रही थी, तभी आदित्य कमरे में आया. वैदेही से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘सौरव सिंगापुर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है,’’ कह वैदेही चुप हो गई. फिर कुछ सोच आदित्य से पूछा, ‘‘जाऊं या नहीं?’’

आदित्य ने जवाब में कहा, ‘‘हां, जाओ. मिल आओ. डिनर पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह वह कमरे से चला गया.

आदित्य ने सौरव के विषय में काफी कुछ सुन रखा था. वह यह जानता था कि सौरव को वैदेही के परिवार वाले बहुत पसंद करते थे… कैसे उस ने वैदेही की मदद की थी. आदित्य खुले विचारों वाला इनसान था.

हलके जामुनी रंग की ड्रैस में वैदेही बहुत खूबसूरत लग रही थी. बालों को

ब्लो ड्राई कर बिलकुल सीधा किया था. सौरव को वैदेही के सीधे बाल बहुत पसंद थे. वैदेही हूबहू वैसे ही तैयार हुई जैसे सौरव को पसंद थी. वैदेही यह समझने में असमर्थ थी कि आखिर वह सौरव की पसंद से क्यों तैयार हुई थी? कभीकभी यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों आ जाता है. वैदेही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. स्वयं को रोकना चाहती थी पर कदम थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

वैदेही ठीक 5 बजे मरीना बाय सैंड्स के रूफ टौप रैस्टोरैंट में पहुंची. सौरव वहां पहले से इंतजार कर रहा था. वैदेही को देखते ही वह चेयर से खड़ा हो वैदेही की तरफ बढ़ा और उसे गले लगते हुए बोला, ‘‘सो नाइस टू सी यू आफ्टर ए डिकेड. यू आर लुकिंग गौर्जियस.’’

वैदेही अब भी गहरी सोच में डूबी थी. फिर एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स फार द कौंप्लीमैंट. आई एम सरप्राइज टु सी यू ऐक्चुअली.’’

सौरव भांप गया था वैदेही के कहने का तात्पर्य. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया? मैं जानता हूं तुम से वादा कर के मैं आ न सका. तुम नहीं जानतीं मेरे साथ क्या हुआ था?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते… माफ कैसे करूं तुम्हें? आज मैं जानना चाहती हूं क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

सौरव ने कहा, ‘‘तुम्हें याद ही होगा, तुम ने मुझे पार्क में मिलने के लिए बुलाया था. उसी दिन हमारी कंपनी के बौस को पुलिस पकड़ ले गई थी, स्मगलिंग के सिलसिले में. टौप लैवल मैनेजर को भी रिमांड में रखा गया था. हमारे फोन, अकाउंट सब सीज कर दिए गए थे. हालांकि 3 दिन लगातार पूछताछ के बाद, महीनों तक हमें जेल में बंद कर दिया था. 2 साल तक केस चलता रहा. जब तक केस चला बेगुनाहों को भी जेल की रोटियां तोड़नी पड़ीं. आखिर जो लोग बेगुनाह थे उन्हें तुरंत डिपोर्ट कर दिया गया और जिन्हें डिपोर्ट किया गया था उन में मैं भी था. पुलिस की रिमांड में वे दिन कैसे बीते क्या बताऊं तुम्हें…

‘‘आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है. किस मुंह से तुम्हारे सामने आता? इसलिए जब मैं इंडिया (मुंबई) पहुंचा तो न मेरे पास कोई मोबाइल था और न ही कौंटैक्ट नंबर्स. मुंबई पहुंचने पर पता चला मां बहुत सीरियस हैं और हौस्पिटलाइज हैं. मेरा मोबाइल औफ होने की वजह से मुझ तक खबर पहुंचाना मुश्किल था. ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला और तो और मां ने मेरी शादी भी तय कर रखी थी. उन्हें उस वक्त कैसे बताता कि मैं अपनी जिंदगी सिंगापुर ही छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था.

‘‘और फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थीं न… आज बता दो क्या कहना चाहती थीं.’’

वैदेही को यह जान कर इस बात की तसल्ली हुई कि सौरव ने उसे धोखा नहीं दिया. कुदरत ने हमारे रास्ते तय करने थे. फिर बोली, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती उन बातों का अब कोई औचित्य नहीं,’’ वैदेही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला कर लिया था.

थोड़ी चुप्पी के बाद एक मुसकराहट के साथ वैदेही ने कहा, ‘‘लैट्स और्डर सम कौफी.’’

Valentine’s Day 2024 : तीन शब्द – राखी से वो तीन शब्द कहने की हिम्मत क्या जुटा पाया परम ?

परम आज फिर से कैंटीन की खिड़की के पास बैठा यूनिवर्सिटी कैंपस को निहार रहा था. कैंटीन की गहमागहमी के बीच वह बिलकुल अकेला था. यों तो वह निर्विकार नजर आ रहा था पर उस के मस्तिष्क में विगत घटनाक्रम चलचित्र की तरह आजा रहे थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के नौर्थ कैंपस की चहलपहल कैंपस वातावरण में नया उत्साह पैदा कर रही थी. हवा में हलकी ठंडक से शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी. दोस्तों के संग कैंटीन के बाहर खड़े हो कर आनेजाने वाले छात्रों को देख कर परम सोचने लगा कि टाइमपास का इस से अच्छा तरीका और क्या हो सकता है.

संकोची स्वभाव के परम ने जब पहली बार उसे देखा था तो एक अजीब सी झुरझुरी उस के शरीर में दौड़ गई थी. राखी, हां, यही नाम था उस का. वह भी तो उसी क्लास की छात्रा थी, जिस में परम पढ़ता था.

क्लास में कभी जब चाहेअनचाहे दोनों की निगाहें मिलतीं तो परम बेचैन हो उठता और चाहता कि वह उस के सामने खड़ा हो कर बस, उसे ही निहारता रहे.

कई बार परम ने राखी के समक्ष खुद की भावनाएं व्यक्त करने का प्रयास किया पर उस का संकोची स्वभाव आड़े आ जाता था. एक दिन संकोच को ताक पर रख कर उस ने उस का नाम मालूम होने पर भी अनजान बनते हुए पूछ लिया था, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

हलकी मुसकराहट के साथ उस ने उत्तर दिया था, ‘‘राखी.’’

मात्र नाम जानने से ही परम को ऐसा लगा कि जैसे उस ने पूरा जीवन जी लिया. वह जड़वत उस एक शब्द को प्रतिध्वनित होते हुए महसूस कर रहा था.

कुछ समय बाद कालेज की ओर से छात्रों का समूह शैक्षणिक भ्रमण पर शिमला जा रहा था. परम के मित्र संदीप और चंदर ने कई बार परम को भी चलने के लिए कहा पर वह मना करता रहा, लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि राखी भी जा रही है, एकाएक उस ने भी हामी भर दी.

बस की यात्रा के दौरान हंसीमजाक के दौर के बीच उसे राखी से बात करने का मौका मिल ही गया. सादगी की प्रतिमूर्ति राखी भी उस की बातों में दिलचस्पी लेती नजर आई तो उस का हौसला और बढ़ गया. चीड़ और देवदार के पेड़ों से आती खुशबू ने मानो उस के मन को भांप लिया था और पूरे मंजर को खुशनुमा बना दिया था.

‘‘आप बहुत कम बोलती हैं?’’

‘‘जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ और फिर बातों का सिलसिला आरंभ हो गया.

परम ने महसूस किया कि राखी भी उस के नजदीक आने का प्रयास कर रही थी. ज्यादातर दोस्त अपनेअपने चाहने वालों में मस्त थे. अनजाने में परम ने राखी के हाथ को हलके से क्या छू लिया उसे ऐसा लगा कि जैसे उस ने सारा जहां पा लिया हो.

लौटते समय दोनों एकसाथ बैठे. औपचारिक वार्त्तालाप खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बहुत कुछ कहना चाहते थे, पर जबान साथ नहीं दे रही थी. गंभीर खामोशी के बीच अनवरत एकदूसरे को निहारते हुए परम और राखी चुप रहने के बाद भी आंखों से मानो सबकुछ कह रहे थे. इस खामोशी की आवाज दोनों के दिलों में गहरे तक उतरती जा रही थी.

शिमला से वापस लौटने के बाद कैंपस में वे अब साथसाथ नजर आने लगे. कैंटीन, लाइबे्ररी व कैंपस के पार्क उन की उपस्थिति के गवाह थे. बिना आवाज का यह सफर एक निष्कर्षहीन सफर था. उन दोनों के मध्य खामोशी ही उन की आवाज बन गई थी. खामोश रह कर सबकुछ कह देने का उन का अंदाज निराला था.

वे शांत बहती नदी की तरह ही थे. उन के दिल के हाल से प्रकृति भी खासी परिचित होती जा रही थी. पेड़, पत्ते, नदी, फूलों पर मंडराती तितलियां, सब ने ही तो उन के बारे में बातें करना शुरू कर दिया था.

कालेज कैंपस में उन के भविष्य को ले कर चर्चाएं आम होती जा रही थीं और वे स्वयं खयालों में डूबे एकदूसरे के पूरक बनते जा रहे थे.

शब्दों के बिना की अभिव्यक्ति यों तो सशक्त होती है पर कुछ भाव तो शब्दों के बिना व्यक्त हो ही नहीं सकते. कितना कठिन होता है केवल ‘3 शब्द’, ‘आई लव यू’ कहना.

यों तो वे खामोश रह कर भी हर पल यही दोहराते थे, पर उन दोनों के मध्य ये 3 शब्द तो थे, पर उन में आवाज नहीं थी. शायद वे दोनों किसी खास पल, खास माहौल का इंतजार कर रहे थे, जब इन शब्दों को मूर्त रूप दिया जा सके.

छुट्टियों के एक लंबे अंतराल के बाद इन 3 शब्दों के अभाव ने 5 शब्दों का प्रादुर्भाव कर दिया, ये 5 शब्द थे, ‘राखी की शादी हो गई.’ और फिर राखी लौट कर नहीं आई.

कैंटीन में बैठे हुए विगत को निहारते हुए परम ने खुद के हाथ का दूसरे हाथ से स्पर्श किया, जिस ने पहली बार राखी के हाथों का स्पर्श किया था, गहरे विषाद ने उस के अंतर्मन को झकझोर दिया. आखिर एक लंबे अरसे के बाद वह इस स्थान पर अकेला बैठा था. आज उस के साथ राखी नहीं थी.

एकांत में बैठा परम बारबार उन 3 शब्दों का उच्चारण कर रहा था, पर उसे सुनने वाला कोई नहीं था. अगर उस ने समय पर हिम्मत दिखाई होती तो चाहे जो होता, आज उसे गिला तो नहीं होता. वह कोने में यों अकेला तो न बैठा होता.

अधपकी रोटियां: भाग 3- शकुन ने उन रोटियों को खाने से क्यों इनकार कर दिया?

फुटपाथ पर चलतेचलते वह सोचने लगा कि क्या सचमुच यह शकुन उस की वही शकुंतला थी, जिस ने उसे एक नमस्कार ही से मोहित कर डाला था, अपने मांबाप के ड्राइंगरूम में बैठेबैठे. वह शकुंतला और यह शकुन, दोनों में आधी शताब्दी का अंतर. कहां वह शर्मीली, कोमल, छुईमुई सी, उस की हर बात में हां में हां मिलाने वाली कमसिन बाला, और कहां यह चेहरे से ही सख्त दिखने वाली अधेड़, जो उसे सही आदमी बनाने पर तुली थी. वह, जिसे उस की अपनी मां भी सीधे रास्ते पर न ला पाई थी.
इन दोनों के अलावा उस की एक और शकुन थी, वह शकुन जिसे समय की गति नहीं छू  पाई थी. सुंदर की नजर में उस की चाल और रूपरंग वैसे के वैसे ही थे. उस के भरेभरे होंठों की लाली कायम थी. उस के रंगे केश अभी भी यौवन की चमक की याद दिलाते. फोन पर जब वह उस से बात करती तो उस के स्वर संतरे की खट्टीमीठी मिठास लिए होते. केवल उस का फिल्मी हीरोइन मुमताज जैसा तीखा, छोटी सी नाक इस बात का संकेत देता कि वह उन में से नहीं, जिन से कोई हीलहुज्जत करे और आसानी से बच निकले.

समय का चक्र भी कितना अजीब है, सुंदर को लगा. जब कोई आगे की सोचता है तो एक घंटा भी पहाड़ जैसा दिखता है, और जब पीछे मुड़ कर देखता है तो दसों साल पलक झपकते ही बीत गए प्रतीत होते हैं. वह पुरानी यादों में खो गया. शकुंतला से उस की शादी, पहले बेटी आरणा का जन्म और फिर बेटे अरुणजय का उम्र का वह कठिन दौर, जब ग्रहस्थी चलाने के लिए उन दोनों को छोटेबड़े समझौते करने पड़े. फिर देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए और उन्होंने दुनिया में अपनीअपनी जगह बना ली. बेटी आरणा की शादी एक वकील से हुई. वह आजकल स्वयं अपने स्टार्टअप में व्यस्त है. अरुणजय जेएनयू में फिलोसौफी पढ़ा रहा है और बीवीबच्चों के साथ वहीं रहता है…
सुंदर ने मार्केट के कोने में खड़े फ्रूट वाले से 4 केले खरीदे और वापस घर की ओर चल पड़ा. यादों के चक्रव्यूह ने उसे फिर से घेर लिया.

उन का छोटा सा घर हमेशा आवाजों से भरा रहता. भाईबहन की आएदिन छोटीछोटी बात पर लड़ाई, उस की बीमार मां की शिकायत कि किसी भी दवादारू से उन्हें आराम नहीं मिल रहा, शकुन का अकेले में फुसफुसाना कि स्कूल में अध्यापक कैसे एकदूसरे से लड़तेझगड़ते रहते हैं, आरणा और अरुणजय के दोस्तों का हुड़दंग मचाना, उस का बच्चों को डांटना और शकुन की शिकायत कि बाप होने पर भी न तो वह अच्छा मेजबान बन सका है और न ही उस ने सीखा है कि बच्चों से कैसा व्यवहार किया जाए. बीते जीवन और वर्तमान के स्वर उस के कानों में पतझड़ में गिरते पत्तों से तैर रहे थे. एक बार खुद अपनी आवाज उस के कानों में पड़ी तो उसे आभास हुआ कि वह ऊंचे स्वर में अपनेआप से ही बातें कर रहा है.

बैल बजाने पर शकुन ने तुरंत ही दरवाजा खोला, जैसे उस की राह देख रही हो. सुंदर ने थैले से केले निकाल कर डाइनिंग टेबल पर रख दिए. फिर उस ने थैले को लपेट कर किचन के ड्रायर में डाल दिया. शकुन उसे खड़ीखड़ी देखती रही. “तुम पनीर और मटर नहीं लाए?” उस ने पूछा.

“सौरी, मैं भूल गया,”  सुंदर को अपनी भूल पर खीज हो रही थी.“तुम खाना नहीं भूलते. टीवी में अपने चैनल नहीं भूलते. पर जब मैं छोटा सा काम भी कहूं तो तुम भूल जाते हो. कल तुम कहोगे कि मैं तुम्हें भी भूल गया. अपने नाखून देखे हैं? एक एकजैसे पौकेट नाइफ हों. तुम वह शख्स हो, जो सिर्फ अपने लिए जीता है. किसी दूसरे से तुम्हें कोई मतलब नहीं. पिछले महीने मेरा भाई मिलने आया था. तुम तब तक अपने कमरे से बाहर न निकले, जब तक वह बेचारा वापस न जाने लगा.

आरणा कहती है कि पापा कभीकभी अजीब सा व्यवहार करते हैं. मैं कहती हूं कि कभीकभी नहीं, तुम्हारी हर हरकत अजीब सी होती है. तुम्हारे दिमाग में फर्क आ गया है. जा कर किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ.”

“बहुत हो चुका,” सुंदर ने तल्खी से कहा, “मैं ने अपनी भूल मान ली और तुम हो कि मुझे पागल ठहरा रही हो. मटर और पनीर का क्या है, मैं फिर जा कर ले आता हूं. 5 मिनट की तो बात है.”

“रहने दो, रहने दो. फ्रिज में आलूगोभी की सब्जी पड़ी है. रात के लिए काफी है. यह मेरे करम हैं कि दासी बन कर तुम्हारी सेवा करूं. वह तो मैं करती रहंूगी, जब तक मुझ में जान है. अब तुम अपने कमरे में जाओ. मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती. जाओ और जा कर टीवी देखो.”

जैसे ही सुंदर जाने के लिए मुड़ा, शकुन ने झुंझला कर केलों का गुच्छा उस के पीछे फेंका. केले सुंदर को तो नहीं लगे, पर फर्श पर फच की आवाज से गिर कर पिचक गए. “ये भी लेते जाओ. मुझे नहीं चाहिए. मैं भजनमंडली के कीर्तन में जा रही हूं. लौटने में 8 बज जाएंगे,” शकुन ने कहा और अपने कमरे में जा कर भड़ाक से दरवाजा बंद कर दिया. वह शायद बाहर जाने के लिए तैयार होने गई थी. खिन्न मन से सुंदर भी अपने कमरे में चला आया.

वह आरामकुरसी पर बैठा कुछ ऐसा करने की सोच रहा था कि शकुन की नजरों में अपना खोया सम्मान पा सके. माना कि वह स्वभाव से सख्त थी, किंतु अपनेआप को भी कहां बख्शती थी. सुबह 7 बजे उन दोनों की चाय बनाने से ले कर रात के साढ़े 9 बजे तक कुछ न कुछ करने में जुटी रहती. रात के साढ़े 9 बजे 1-2 घंटे के लिए वह टीवी पर अपने मनपसंद सीरियल देख कर सो जाती. सुंदर के लिए उस ने बस 2-3 काम रख छोड़े थे. मदर डेयरी से दूध लाना, मशीन से धुले कपड़ों को तार पर सूखने के लिए टांगना और कभीकभार बाजार से थोड़ाबहुत खरीद लाना. हां, गृहस्वामी होने के नाते उस से अपेक्षित था कि माह की शुरुआत में वह इतनी राशि का प्रबंध करे, जिस से अगले महीने तक घर चल सके. इस कर्तव्य को वह अपनी पेंशन से बखूबी निभाता. शकुन अपनी पेंशन से शादीब्याह अथवा यात्रा के खर्च पूरा करती.

वैसे, सुंदर को भी चाह थी कि वह शकुन का हाथ बंटाए, घर में उपयोगी सिद्ध हो. चाय वह अच्छी बना लेता था. शकुन को भी उस के हाथों से बनी चाय पसंद थी. चावल बनाना तो उस के लिए चाय बनाने से भी आसान था. वह दालें भी बना लेता था, यद्यपि तड़का लगाने में उस से उन्नीसइक्कीस हो जाती थी. सब्जीभाजी अभी तक उस ने नहीं बनाई थी. जब वह कुछ बनाने के लिए रसोई में आता, तो शकुन मुदित हो कर उसे देखती रहती.

“खाना बनाना सीख लो, तुम्हारे काम आएगा,” वह उसे लाड़ जता कर कहती.शकुन से प्रोत्साहन पा कर सुंदर ने पाककला में अगला कदम उठाने की ठान ली थी, और वह था रोटी बनाना. उस ने शुरुआत शुरू से की. आटा गूंधने की समस्या विकट थी. वह इसे साधने में एक बार नहीं, कईं बार असफल रहा. कभी आटे में पानी ज्यादा और कभी उस की दसों उंगलियां चिपचिपे आटे से सनी हुईं.

शकुन उसे आटेपानी की सही मात्रा के गुर देती रहती. पर जब जबानी बातों पर अमल करने की बात आती, तो सुंदर से कहीं न कहीं चूक हो जाती. आखिर वह शुभ दिन आ ही गया, जब सुंदर ने शकुन को सचमुच आटा गूंध कर दिखाया. अब वह रोटियां सेंकने के लिए मानसिक रूप से तैयार था. तब उसे पता चला कि आटा गूंधने से ले कर रोटी सेंकने तक का सफर और भी कठिन है. आटे के पेड़े को चकले पर बेलतेबेलते उसे मिनटों लग जाते, फिर भी वह उसे गोल आकार न दे पाता. बहुत बार तो आटा चकले अथवा तवे से चिपक जाता. यहां तक तो उसे मंजूर था, लेकिन जब शकुन उस की जली हुई बेढंगी रोटियों का उपहास करती, तो वह जलभुन कर रह जाता. फिर उस ने निश्चय कर लिया कि अगर रोटियां सेंकनी ही हैं तो तब जब शकुन घर में न हो. शकुन की अनुपस्थिति में सुंदर ने अपना प्रयास जारी रखा. आज के दिन सफलता उस के हाथ लग गई थी.

8 बजने में 10 मिनट थे, जब दरवाजे की घंटी बजी. शकुन लौट आई थी. सुंदर ने ऐसा मुंह बनाया, जैसे वह अब भी उस की लताड़ से आहत था. फर्श पर पिचके हुए केले वैसे के वैसे ही पड़े थे. उन पर नजर डालते शकुन ने सुंदर पर चुटकी ली, “लगता है, तुम्हारी आंखें भी जवाब दे रही हैं.” सुंदर अपने कारनामे पर आश्वस्त था. उस ने तमक कर कहा, “मुझे परवाह नहीं.”

शकुन उस से उलझने के मूड में नहीं थी. उस ने फर्श से केले उठाए और कूड़ेदान में डाल दिए. सुंदर शकुन को किचन में ले जाना चाहता था.
“चाय पियोगी?” उस ने पूछा. “ये चाय पीने का टाइम नहीं है,” शकुन ने टका सा जवाब दिया. फिर वह अपने कमरे में कपड़े बदलने के लिए चली गई.
8 बजे के न्यूज बुलैटिन का समय हो रहा था. सुंदर भी अपने कमरे में आ कर टीवी देखने लगा.

अभी 5 मिनट भी न हुए थे कि उसे शकुन की आवाज सुनाई दी, “सुनो,” ये उस के लिए आज का दूसरा समन था. शकुन रसोइ में अपनी परिचित मुद्रा में खड़ी थी. उस के हाथों में रोटियां थीं, वही रोटियां, जिन पर वह गर्वित था.

“ये रोटियां तुम्हीं ने सेंकी हैं?” शकुन ने ऐसे लहजे में पूछा, जैसे वह सुंदर को किसी अपराध के लिए दोषी ठहरा रही हो.

“हां, मैं ने, फिर…?” आज सुंदर उस की धौंस में आने वाला नहीं था.

“क्यों? किस लिए?”

“खाने के लिए. मेरा मतलब है, हम दोनों के खाने के लिए.”

“तुम ने बनाई हैं, तुम ही खाना. मुझे रहने दो. इन रोटियों को तो जानवर भी न खाएं.”

सुंदर का आत्मविश्वास डगमगा रहा था. उस ने बदले हुए स्वर में पूछा, “क्यों, इन में क्या खराबी है? सिंकीसिंकाई तो हैं. मैं ने एकएक को स्टोव पर गुब्बारे की तरह फुलाया है.”

“क्या तुम ने रोटियों को दूसरी ओर से सेंका? चारों की चारों कच्ची हैं. खुद देख लो.”

सुंदर ने रोटियों पर एक नजर डाली. वे अधपकी रह गई थीं.

क्यों घर से भाग कर पछताती नहीं ये लड़कियां

लड़कियों, खासतौर से नाबालिगों, का घर से भागना हमेशा से ही बड़ी परेशानी रही है. लड़कियां आखिर क्यों घर से भागने पर मजबूर हो जाती हैं. इस के पीछे जो वजहें जिम्मेदार मानी जाती रहीं हैं उन में खास हैं गरीबी, अशिक्षा, घरेलू कलह, घर में बुनियादी सहूलियतों का न होना, घर में प्यार की जगह नफरत और अनदेखी किया जाने और रातोंरात हेमा मालिनी व माधुरी दीक्षित बन जाने की उन की अपनी ख्वाहिश. लेकिन अब यह पूरा सच नहीं रहा है, कुछ बदलाव इस में आ रहे हैं.

इंडियन इंस्टिट्यूट औफ मैनेजमैंट यानी आईआईएम इंदौर की एक ताजी रिपोर्ट की मानें तो आजकल घर से भागने वाली अधिकतर लड़कियां बाहरी चकाचौंध की गिरफ्त में आ कर नहीं भाग रही हैं और न ही उन के सिर पर अब फिल्म ऐक्ट्रैस बनने का भूत सवार रहता है. हां, यह जरूर है कि उन के घर से भागने की अहम वजहें घर में होने वाली रोकटोक, झगड़े और दीगर परेशानियां हैं. ज्यादातर लड़कियां अब अपना कैरियर बनाने के लिए भाग जाती हैं क्योंकि घर पर रहते हुए उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता है.

इस रिपोर्ट, जिस में 5 साल के आंकड़े शामिल हैं, के मुताबिक गुमशुदगी वाले बच्चों में 13 से 17 साल की लड़कियां ज्यादा होती हैं. आईआईएम इंदौर ने पुलिस के सहयोग से उन इलाकों में जांचपड़ताल यानी रिसर्च की जहां से बच्चे ज्यादा गायब होते हैं. ये वे इलाके हैं जहां शहरी लोग भी रहते हैं और स्लम यानी कि झुग्गियां भी हैं.

हैरानी वाली एक बात यह उजागर हुई कि गुम होने वाले बच्चों में 75 फीसदी लड़कियां होती हैं. रिसर्च के दौरान 75 ऐसे मामलों पर काम किया गया तो यह खुलासा भी हुआ कि कम उम्र की लड़कियां जिन लड़कों के साथ भागीं उन में अधिकतर की उम्र 18 से 23 साल है और वे लड़कियों के जानपहचान वाले पड़ोसी या रिश्तेदार हैं.

आईआईएम की टीम ने जब इन लड़केलड़कियों से बात की तो दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि कोई 50 फीसदी लड़कियां वापस घर नहीं लौटना चाहतीं और घर से भागने के अपने फैसले को भी वे गलत नहीं मानतीं. जाहिर है, उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है और वे अपनी मौजूदा जिंदगी और हालात से खुश हैं.

स्लम इलाकों की तंग जिंदगी कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही. जहां लड़कियों के हिस्से में डांटफटकार और शोषण ही आते हैं. जैसे ही इन लड़कियों को यह एहसास होता है कि भेदभाव करने वाले मांबाप उन्हें बोझ समझते हैं तो वे बगावत करने पर उतारू हो आती हैं. एक बेहतर कल की उम्मीद उन्हें बाहर दिखती है तो ये उम्र में अपने से थोड़े बड़े लड़के का हाथ थाम घुटनभरी जिंदगी से नजात पाने को घर छोड़ जाती हैं.

इन लड़कियों को यह भी समझ आ जाता है कि उन के भाग जाने से कोई पहाड़ मांबाप पर नहीं टूट पड़ना है. हां, इस बात का अफसोस जरूर उन्हें होगा कि मुफ्त की नौकरानी हाथ से छूट गई जो नल से पानी भर कर लाती थी, खाना बनाती थी, झाड़ूबुहारी करती थी, कपड़े भी धोती थी और इस से ज्यादा अहम यह कि गुस्सा उतारने के काम भी आती थी जिसे कभी भी डांटापीटा जा सकता था.

शायद बाहर कुछ अच्छा हो या मिल जाए, यह आस लिए वे गुलामीभरी जिंदगी को ठोकर मार भाग जाती हैं. यह भी वे सोच चुकी होती हैं कि भाग कर भी अगर यही नरक मिला तो उसे भी भुगत लेंगे. लेकिन एक उम्मीद तो है कि शायद तनहाई में देखे गए वे सपने पूरे हो जाएं कि मेरा भी अपना अलग एक वजूद है, सांस लेने को खुली हवा है और प्यार करने वाला जानू साथ है जो मेरे लिए मेरी ही तरह अपना घरद्वार छोड़ने को तैयार है.

जरूरी नहीं कि ऐसा हो ही. कई बार उन का पाला एक और बड़े नर्क से भी पड़ता है जिस की दुश्वारियों को इन लड़कियों ने फिल्मों और वीडियोज में देखा होता है. फिर भी वे रिस्क उठाती हैं क्योंकि उन्हें फौरी तौर पर घुटनभरी जिंदगी से छुटकारा चाहिए रहता है. आईएमएम इंदौर की रिसर्च बताती है कि आधी लड़कियों के सपने पूरे हो जाते हैं. बची आधियों में जरूरी नहीं कि उन के हिस्से में बदतर जिंदगी ही आती होगी. हां, उन में से कुछ जरूर गलत हाथों में पड़ कर एक ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं जिस में रोजरोज मरना पड़ता है. ये वे लड़कियां होती हैं जो ट्रैफिकिंग यानी तस्करी का शिकार हो जाती हैं.

इन की चिंता कितनों को है और इन की बाबत क्याकुछ किया जाता है, इस का कोई रिकौर्ड किसी के पास नहीं. अलबत्ता कई खबरें जरूर आएदिन मीडिया की सुर्खियां बनती हैं कि देहव्यापार के दलदल में फंसी इतनी या उतनी लड़कियों को छुड़ाया गया. इस के बाद क्या होता है, यह कोई नहीं जानता. घरवापसी के इन के रास्ते बंद हो चुके होते हैं, लिहाजा, ये यहां से वहां भटकती रहती हैं. चंद लड़कियों को कोई एनजीओ सहारा और रोजगार दे देता है पर तब तक इन लड़कियों के सपने और हालात से लड़ने की हिम्मत दोनों पूरी तरह टूट चुके होते हैं.

और जिन के सपने पूरे हो जाते हैं उन्हें मानो दोनों जहां मिल जाते हैं. जाहिर है, ये लड़कियां प्लान बना कर और सोचसमझ कर घर छोड़ती हैं. उन के सपने भी बहुत छोटे होते हैं कि बस एक घरगृहस्थी हो, साथ रहते प्यार करने वाला और खयाल रखने वाला पार्टनर हो. पैसा तो ये छोटेबड़े काम कर कमा ही लेती हैं. कम पढ़ीलिखी ये लड़कियां अपने भले को ले कर चौकन्नी भी रहती हैं. दुनियादारी तो वे अपने घर और बस्ती में बहुत कम उम्र में सीख चुकी होती हैं.

यह ठीक है कि कुछ भी कर लिया जाए, बच्चों का घर से भागना पूरी तरह खत्म या बंद नहीं हो सकता लेकिन इसे कम किया जा सकता है. इस के लिए जरूरी है कि बच्चों के साथसाथ मांबाप की भी काउंसलिंग हो जिस के तहत उन्हें यह बताया जाए कि लड़कियां कोई बोझ नहीं होतीं बल्कि मौका मिले तो कई मामलों में लड़कों को भी मात दे देती हैं. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि उन्हें पढ़ाया जाए, उन के साथ भेदभाव और मारपीट न की जाए, उन में कोई हुनर है तो उसे निखारा जाए और उन्हें भी लड़कों के बराबर सहूलियतें व आजादी दी जाए.

Valentine’s Day 2024 : अगर आपका पार्टनर भी है इमोशनल, तो इस तरह निभाएं साथ

मेघा की नईनई शादी हुई थी. एक दिन जब वह औफिस से घर आई, तो देखा उस का पति रजत सोफे पर बैठा फूटफूट कर रो रहा है. मेघा की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. वह परेशान हो गई कि उस का पति ऐसे क्यों रो रहा है. मेघा के कई बार पूछने पर रजत ने बताया, ‘‘मैं ने तुम्हें फोन किया था, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. बस बिजी हूं का मैसेज भेज दिया.’’

मेघा हैरान हो गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे. जिस समय रजत का फोन आया उस समय वह बौस के साथ मीटिंग में थी. उस समय तो मेघा ने रजत को सौरी कह कर किसी तरह मामला दफादफा कर दिया. लेकिन जब यह रोजरोज की बात बन गई, तो उस के लिए रजत के साथ रहना मुश्किल हो गया.

इस बाबत जब मेघा ने अपनी सास से बात की, तो वे बोलीं, ‘‘रजत बचपन से ही बहुत ज्यादा भावुक है. छोटीछोटी बातों का बुरा मान जाता है.’’

रजत की तरह बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं, जो बेहद भावुक होते हैं. उन के साथ जिंदगी बिताना कांटों पर चलने के समान होता है. कब कौन सी बात उन्हें चुभ जाए पता ही नहीं चलता. पतिपत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है. संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए प्यार के साथसाथ एकदूसरे की भावनाओं को समझने और अपने साथी पर भरोसा बनाए रखने की भी जरूरत होती है. सच तो यह है कि पतिपत्नी का रिश्ता तभी खूबसूरत बनता है, जब आप अपने साथी को पूरी स्पेस देते हैं. मशहूर लेखक खलील जिब्रान का कहना है कि रिश्तों की खूबसूरती तभी बनी रहती है, जब उस में पासपास रहने के बावजूद थोड़ी सी दूरी भी बनी रहे. आज रिश्तों की सहजता के लिए दोनों के बीच स्पेस बेहद जरूरी है.

आमतौर पर तो पतिपत्नी एकदूसरे को पूरा समय देते हैं, लेकिन कभीकभार स्थिति उलट हो जाती है. अगर आप का जीवनसाथी बेहद इमोशनल है, तो उस की यही डिमांड रहती है कि हर समय आप उस के आसपास ही घूमती रहें. आप की प्राइवेसी उस की भावनाओं के आहत होने का सबब बन जाती है. बहुत ज्यादा भावुक पति के साथ जीवन बिताना सच में बेहद मुश्किल होता है. आप समझ नहीं पाती हैं कि आप की कौन सी बात आप के पति को बुरी लग रही है.

इस संबंध में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डाक्टर तृप्ति सखूजा का कहना है कि बेहद संवेदनशील या यों कहें भावुक व्यक्ति के साथ निर्वाह करने में दिक्कत होती है. अगर दूसरा साथी समझदार न हो, तो कई बार संबंध टूटने के कगार पर भी पहुंच जाते हैं. अगर आप के पति जरूरत से ज्यादा इमोशनल हैं, तो आप को उन के साथ बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. उन की भावनाओं का खयाल रख कर ही आप उन्हें अपने प्यार का एहसास दिला सकती हैं. पति की भावनाओं को ठीक तरह से समझ न पाने के कारण संबंधों में दूरी आने लगती है. कारण यह है कि इमोशनल व्यक्ति की सब से बड़ी कमी यह होती है कि अगर आप उस से कोई सही बात भी कहेंगी, तो उसे ऐसा महसूस होगा कि आप उस की अवहेलना कर रही हैं. वह अपने संबंधों को ले कर हमेशा असुरक्षित रहता है, इसलिए उस के साथ रहने के लिए छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखना होगा ताकि आप उस के साथ अपने संबंधों को मजबूती दे सकें.

बात को तरजीह दें

आप के पति भावुक हैं, तो यह बेहद जरूरी है कि आप उन की कही सारी बातों को ध्यानपूर्वक सुनें. इस से आप को पता चलेगा कि उन के मन में क्या चल रहा है. पति की बातों को सुन कर आप यह निर्णय ले पाएंगी कि उन के साथ आप को कैसा व्यवहार करना है. जब भी आप के पास फुरसत हो, उन के साथ बैठ कर बातचीत करें. बात करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जब वे कुछ कहें, तो आप बीच में टोकें नहीं. उन की बात को सुन कर आप को इस बात का एहसास हो जाएगा कि वे परेशान क्यों हैं.

सच जानने की कोशिश करें

अगर आप के पति हर समय भावुक बातें करते हैं और यह चाहते हैं कि आप हर समय उन के आसपास ही रहें, तो उन के पास बैठ कर उन के इस तरह के व्यवहार का कारण पूछें. अगर वे कोई तार्किक जवाब न दे पाएं, तो आप उन्हें प्यार से समझाएं कि आप उन के साथ हर समय हैं. जब भी उन्हें कोई दिक्कत होगी, तो वे आप को अपने करीब पाएंगे. आप के आश्वासन से आप के पति के मन में आप के साथ अपने रिश्ते को ले कर सुरक्षा का भाव आएगा. यकीन मानिए आप के प्रयास से धीरेधीरे उन की अनावश्यक भावुकता कम होने लगेगी.

उन के करीब आएं

आप पति के जितना ज्यादा करीब जाएंगी, आप को उन के व्यवहार के बारे में उतना ही ज्यादा पता चलेगा. आप की नजदीकी से आप के पति को इस बात का एहसास होगा कि आप उन्हें प्यार करती हैं. जब वे आप के प्यार को महसूस करेंगे, तो उन की भावनात्मक असुरक्षा कम होगी. ऐसे में वे अपने मन की सारी बातें आप के साथ शेयर करेंगे. उस समय आप उन की भावुकता का कारण जान कर उन्हें उस से छुटकारा दिला सकती हैं. आप उन्हें हर समय इस बात का एहसास  दिलाती रहें कि अच्छीबुरी हर स्थिति में आप उन के साथ हैं.

कारण जानने की कोशिश

आप के पति इतने ज्यादा इमोशनल क्यों हैं, इस के पीछे का कारण जानने की कोशिश करें. इस के लिए आप परिवार के सदस्यों मसलन, अपनी सासूमां और ननद की सहायता ले सकती हैं. कोई भी पुरुष विवाह पूर्व अपनी मां और बहन के सब से ज्यादा करीब होता है. अगर उन की यह भावुकता किसी लड़की के कारण है, जो उन्हें छोड़ कर चली गई है, तो आप उन्हें समझाएं कि उन के साथ जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, लेकिन अब उन के जीवन में कुछ भी बुरा नहीं होगा. आप उन के साथ हमेशा रहेंगी. आजीवन उन्हें प्यार करेंगी.

स्थिति का धैर्यपूर्वक सामना करें

आप के पति भावुक हैं, तो उन के साथ अपने संबंधों को पटरी पर लाने के लिए आप को उत्तेजना नहीं धैर्य की जरूरत है. भले ही उन की बातों से आप को गुस्सा आता हो. उन्हें पलट कर जवाब देने की बजाय उन की बातों को ध्यानपूर्वक सुन कर उन्हें सांत्वना दें.

पति को प्यार का एहसास कराएं

भावुक पति को मानसिक तौर पर संतुष्ट और सुरक्षित रखने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि आप उन्हें बहुत प्यार करती हैं. उन की पसंदनापसंद आप के लिए बहुत माने रखती है. इस के लिए आप उन्हें समयसमय पर उपहार दें या फिर उन की पसंद का काम कर के उन्हें इस बात का एहसास दिला सकती हैं कि आप को उन की परवाह है और आप उन की भावनाओं का खयाल रखती हैं.

क्या बिना तलाक लिए भी लिवइन में रह सकते हैं ?

सवाल 

मैं यह जानना चाहता हूं कि शादीशुदा होते हुए भी एक पुरुष लिवइन रिलेशनशिप में बिना तलाक लिए रह सकता हैपत्नी उस पर कोई कानूनी कार्यवाही कर सकती है क्या?

जवाब

जहां तक कानून की बात है तो पति व पत्नी के रहते हुए भी कोई पार्टनर किसी और साथी के साथ लिवइन रिलेशनशिप में बिना तलाक हुए रह सकता है. नए दौर में स्वतंत्रता से जीवन जीने का अधिकार के कानून का यह फैसला है पर अगर कोई अपनी पत्नी या पति को छोड़ कर लिवइन में रहने चला ही गया है तो उस के साथ फिर रिश्ते किस बात के. किसी गैर के साथ रहना अब गुनाह की श्रेणी में नहीं है पर उस के साथ रहने का कोई मतलब बनता नहीं है. इसलिए तलाक लिया जाना कानूनी कार्यवाही हो सकती है ताकि आप भी चैन से रहें और दूसरा भी.

आप भी अपनी समस्या भेजें

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दांतों को स्वस्थ रखने के लिए बच्चों को जरूर बताएं ये बातें, कभी नहीं लगेगा कीड़ा

Tips to keep Teeth Healthy : माता-पिता होना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि आपको बहुत जिम्मेदार होना होता है और अपने बच्चे के स्वास्थ्य का ख्याल रखना होता है. बच्चे के स्वास्थ्य का ख्याल रखना मुश्किल है पर उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.बच्चों की संपूर्ण स्वास्थ्य की देखभाल के साथ यह आवश्यक है कि मुंह के स्वास्थ्य काख्याल रखने पर भी ध्यान दिया जाए. हर किसी को चाहिए कि वह बच्चों के दांतों के स्वास्थ्य और हाईजीन (साफ-सफाई) की महत्ता जाने. आप भी अपने बच्चे के मुंह का अच्छा स्वास्थ्य और हाईजीन सुनिश्चित कर सकते हैं. पेश हैं कुछ महत्वपूर्ण चीजें जो आपको जानना चाहिए. जो बता रहे हैं क्लिनिकऐप्प के सीईओ,श्री सत्काम दिव्य.

बच्चे अच्छा और बुरा नहीं जानते हैं. वे किसी भी चीज को मुंह में रख सकते हैं. कई अन्य कारणों से आपके बच्चे के दांतों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. बहुत सारे लोग बच्चों के मामले में स्वास्थ्यकर उपायों को नजरअंदाज कर देते हैं. वे समझते हैं कि पहली बार आए दांत तो गिरने ही हैं. लेकिन दांतों का ख्याल रखने से संबंधित ऐसी महत्वपूर्ण बातों को नजरअंदाज करने से दांतों ख़राब होंगे और दांतों में प्लेक और मसूड़ों की बीमारियां होंगी. कम उम्र में ही दांत खराब होने का असर यह होगा कि बाद में आने वाले दांत भी खराब या प्रभावित होंगे और भविष्य में दांतों की ढेरों समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

बच्चों में पाई जाने वाली दांतों की आम समस्याएं

बच्चों में पाई जाने वाली दांतों की सबसे आम समस्या डेंटल कैरीज (dental caries) की है जो दांतों की संरचना को क्षतिग्रस्त कर देता है. अगर आप चाहते हैं कि बच्चे के दांतों का क्षरण न हो और वह वह मसूड़े की बीमारियों से बचा रहे तो आपको अपने बच्चे के लिए स्वास्थ्यकर व्यवहारों का चुनाव करने की जरूरत है.

प्लेक : प्लेक एक सफेद परत है जो दांतों पर जमा हो जाती है. खाद्य पदार्थों और लार व बैक्टीरिया के मिलने से बनने वाली यह परत दांतों पर जमा हो जाती है. जब यह लंबे समय तक जमा रहती है तो इसका रंग पीला हो जाता है और धीरे-धीरे दांतों का क्षरण शुरू हो जाता है.

दांतों का क्षरण: खाने की चीजें जब दांतों में फंसी रह जाती हैं तो इनपर बैक्टीरिया का हमला होता है. इससे खाद्य पदार्थ टूट जाते हैं. इसका नतीजा यह होता है कि दांतों में छोटे सुराख और कैविटी बन जाती हैं.

मसूड़ों की बीमारी : प्लेक लंबे समय तक बना रहे और उसे एक्सपोजर मिले तो जो संक्रमण होता है उससे मसूड़ों में सूजन होता है और यह दांतों की शक्ति को उल्टे ढंग से प्रभावित करता है. यानी सूजन जितना ज्यादा दांत उतने कमजोर.

सांसों में बदबू : दांतों में फंसे खाद्य पदार्थ, प्लेक, बैक्टीरिया के बढ़ने और मसूड़ों के संक्रमण से सांसों में बदबू आती है जो कई बार बहुत ज्यादा होती है और बर्दाश्त के काबिल नहीं होती है. मुंह से आती बदबू आपके बच्चे को मानसिक रूप से भी प्रभावित करेगी. अगर ऐसी चीजें बचपन में न हों तो आप भी खतरे को नजरअंदाज कर सकते हैं. सुनिश्चित कीजिए कि अपने बच्चे के लिए स्वस्थ्य व्यवहार की शुरुआत करें ताकि आपके बच्चे के मुंह की देखभाल की जा सके.

स्वस्थ आदते बचपन से अपनाएं

दांतों को स्वस्थ और स्वास्थ्यकर बनाए रखने के लिए निम्नलिखित आदतों को प्रोत्साहित करें मुंह के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्यकर आदतों की शुरुआत बचपन से ही कीजिए बचपन से ही बच्चों के दांतों और मसूड़ों को साफ करने के लिए साफ कपड़े का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. एक बार जब बच्चे के दांत दिखने लगें तो अनुशंसित औषधि वाले घोल का उपयोग कीजिए और मुंह के अंदर के हिस्से को साफ कर दीजिए क्योंकि ब्रश का उपयोग नहीं किया जा सकता है. मसूड़ों और दांतों को हल्के से पोंछिए और उस परत को साफ कीजिए जो मुंह के अंदर बन जाती है और कोमल तथा चिपचिपा होता है. यह मसूड़ों को प्रभावित करने के मुख्य कारणों में एक है.

सही टुथब्रश का चुनाव कीजिए

एक बार जब ऊपर-नीचे दांत दिखने लगें तो आपको वाश क्लॉथ की जगह टुथ ब्रश का उपयोग शुरू करने की जरूरत है. बच्चों के मसूड़े बहुत कोमल होते हैं और ऐसे में किसी भी टुथब्रश का उपयोग करना ठीक नहीं है. आप अपने टुथ ब्रश का भी उपयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि उसके शूक सख्त होते हैं और बच्चे के कोमल मसूड़ों के लिए तकलीफदेह होंगे. यही नहीं, बड़ा ब्रश छोटे बच्चे के लिए ठीक नहीं रहेगा. आपको छोटा ब्रश लेना होगा जिसके शूक कोमल हों और दांतों व मसूड़ों को सरलता से साफ करें. शुरुआती चरण में आपको अपने बच्चे को सिखाना होगा कि वह टुथब्रश का उपयोग कैसे करे जिससे उसे घाव-जख्म नहीं हो. एक बार सर्वश्रेष्ठ तरीका बता दिया जाए तो आप अपने बच्चे को खुद दांत साफ करने दे सकते हैं. लेकिन उस पर नजर रखेंगे. अपने बच्चे को रोज दो बार ब्रश करने की जरूरत बताइए. अपने बच्चे को अपनी पसंद का टुथब्रश चुनने दीजिए पर सुनिश्चित कीजिए कि वह सुरक्षित होगा कि नहीं.

सही टुथपेस्ट चुनिए

बाजार में भिन्न ब्रांड के कई तरह के टूथब्रश उपलब्ध हैं. पर ये सभी उत्पाद आपके बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं. उत्पाद की पसंद इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें किन चीजों का उपयोग किया गया है. मसाला फ्लेवर वाले या अत्यधिक मीठे टुथब्रश का उपयोग नहीं करें. सर्वश्रेष्ठ सुझाव के लिए आप दांतों के किसी डॉक्टर से संपर्क करें. साथ ही सुनिश्चित कीजिए कि टुथपेस्ट की मात्रा सही हो. तीन साल की आयु के बाद आप ज्यादा टुथपेस्ट का उपयोग करने दे सकते हैं. बच्चे को बताइए कि टुथपेस्ट निगलते नहीं हैं.

ब्रश करने की तकनीक

दांतों की स्थिति अच्छी बनाए रखने के लिए हरेक बच्चे को ब्रश करने की सबसे अच्छी तकनीक सीखना चाहिए. इसके लिए प्रत्येक दांत को अच्छी तरह साफ किया जाना चाहिए. ऊपर से नीचे और अंदर-बाहर सब. सर्वश्रेष्ठ तकनीक से फंसे हुए खाद्य पदार्थ को निकालने में मदद मिलेगी. जब आपका बच्चा ब्रश कर रहा हो तो उसे कुछ महीने तक देखिए और आवश्यक जानकारी दीजिए. बड़ा होकर वह इसे जारी रखेगा/रखेगी.

ज्यादा चीनी खाने से रोकिए

दांतों का स्वास्थ्य बनाए रखने में आहार में चीनी की मात्रा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. बच्चों को कैंडीज, मिठाइयां, चॉकलेट और कई अन्य मीठे खाद्य पदार्थ पसंद होते हैं. इससे उनके दांतों को काफी नुकसान हो सकता है क्योंकि मीठी चीजें दांतों में फंस जाती हैं जिससे बैक्टीरिया और प्लेक को मौका मिलता है. सुनिश्चित कीजिए कि जब कभी वे मीठा खाएं, अच्छी तरह मुंह साफ करें.

हर महीने दांतों की जांच

अपने बच्चे को हर महीने दांतों के डॉक्टर के पास ले जाइए. बच्चों के दंत चिकित्सक कुछ जांच करेंगे और दांतों की स्थिति अच्छी बनाए रखने के सर्वश्रेष्ठ उपाय सुझाएंगे. अगर आवश्यक हुआ तो बेहतर देखभाल के लिए दांतों के डॉक्टर उपचार बताएंगे.

मुंह को अच्छी तरह साफ करना

मुंह को अच्छी तरह साफ करना सर्वश्रेष्ठ व्यवहार है. आप दवा मिले हुए किसी घोल का उपयोग कर सकते हैं जिससेकुल्ला करने पर बैक्टीरिया मर जाते हैं और ताजगी बनी रहती है.

बच्चों को दांतों से सख्त चीजें काटने न दें

बच्चों को सख्त चीजें दांत से न काटने दें क्योंकि उनके दांत इतने मजबूत नहीं होते हैं कि इसके लिए आवश्यक दबाव झेल सकें. इससे दांत टूट सकता है या फिर एनामेल क्षतिग्रस्त हो सकता जिससे संवेदनशीलता बढ़ेगी.

दांतों की साफ-सफाई अच्छी हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों को दांतों के डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. साल में दो बार डेनटिस्ट के पास जाना जरूरी है. बच्चे की आदतों तथा डेंटल हाईजीन का ख्याल रखते हुए डेंटिस्ट तकनीक और उत्पादों की सिफारिश कर सकता है. इस बार राष्ट्रीय बाल दंत स्वास्थ्य माह में मुंह के स्वस्थ हाईजीन के लिए प्रतिबद्धता दिखाइए.

पुनर्विवाह : क्या पत्नी की मौत के बाद आकाश ने दूसरी शादी की ?

जब से पूजा दिल्ली की इस नई कालोनी में रहने आई थी उस का ध्यान बरबस ही सामने वाले घर की ओर चला जाता था, जो उस की रसोई की खिड़की से साफ नजर आता था. एक अजीब सा आकर्षण था इस घर में. चहलपहल के साथसाथ वीरानगी और मुसकराहट के साथसाथ उदासी का एहसास भी होता था उसे देख कर. एक 30-35 वर्ष का पुरुष अकसर अंदरबाहर आताजाता नजर आता था. कभीकभी एक बुजुर्ग दंपती भी दिखाई देते थे और एक 5-6 वर्ष का बालक भी.

उस घर में पूजा की उत्सुकता तब और भी बढ़ गई जब उस ने एक दिन वहां एक युवती को भी देखा. उसे देख कर उसे ऐसा लगा कि वह यदाकदा ही बाहर निकलती है. उस का सुंदर मासूम चेहरा और गरमी के मौसम में भी सिर पर स्कार्फ उस की जिज्ञासा को और बढ़ा गया.

जब पूजा की उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गई तो एक दिन उस ने अपने दूध वाले से पूछ ही लिया, ‘‘भैया, तुम सामने वाले घर में भी दूध देते हो न. बताओ कौनकौन हैं उस घर में.’’

यह सुनते ही दूध वाले की आंखों में आंसू और आवाज में करुणा भर गई. भर्राए स्वर में बोला, ‘‘दीदी, मैं 20 सालों से इस घर में दूध दे रहा हूं पर ऐसा कभी नहीं देखा. यह साल तो जैसे इन पर कयामत बन कर ही टूट पड़ा है. कभी दुश्मन के साथ भी ऐसा अन्याय न हो,’’ और फिर फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘भैया अपनेआप को संभालो,’’ अब पूजा को पड़ोसियों से ज्यादा अपने दूध वाले की चिंता होने लगी थी. पर मन अभी भी यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर क्या हुआ है उस घर में.

शायद दूध वाला भी अपने मन का बोझ हलका करने के लिए बेचैन था.

अत: कहने लगा, ‘‘क्या बताऊं दीदी, छोटी सी गुडि़या थी सलोनी बेबी जब मैं ने इस घर में दूध देना शुरू किया था. देखते ही देखते वह सयानी हो गई और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. सलोनी बेबी ऐसी थी कि सब को देखते ही पसंद आ जाए पर वर भी उस के जोड़ का होना चाहिए था न.

‘‘एक दिन आकाश बाबू उन के घर आए. उन्होंने सलोनी के मातापिता से कहा कि शायद सलोनी ने अभी आप को बताया नहीं है… मैं और सलोनी एकदूसरे को चाहते हैं और अब विवाह करना चाहते हैं,’’ और फिर अपना पूरा परिचय दिया.

‘‘आकाश बाबू इंजीनियर थे व मांबाप की इकलौती औलाद. सलोनी के मातापिता को एक नजर में ही भा गए. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे मातापिता को यह रिश्ता मंजूर है?

‘‘यह सुन कर आकाश बाबू कुछ उदास हो गए फिर बोले कि मेरे मातापिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. 2 वर्ष पूर्व एक कार ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई थी.

‘‘यह सुन कर सलोनी के मातापिता बोले कि हमें यह रिश्ता मंजूर है पर इस शर्त पर कि विवाहोपरांत भी तुम सलोनी को ले कर यहां आतेजाते रहोगे. सलोनी हमारी इकलौती संतान है. तुम्हारे यहां आनेजाने से हमें अकेलापन महसूस नहीं होगा और हमारे जीवन में बेटे की कमी भी पूरी हो जाएगी.

‘‘आकाश बाबू राजी हो गए. फिर क्या था धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया और फिर साल भर में गोद भी भर गई.’’

‘‘यह सब तो अच्छा ही है. इस में रोने की क्या बात है?’’ पूजा ने कहा.

दूध वाले ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘एक दिन जब मैं दूध देने गया तो घर में सलोनी बिटिया, आकाश बाबू और शौर्य यानी सलोनी बिटिया का बेटा भी था. तब मैं ने कहा कि बिटिया कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखाई दीं. मेरी तो आंखें ही तरस जाती हैं तुम्हें देखने के लिए. पर मैं बड़ा हैरान हुआ कि जो सलोनी मुझे काकाकाका कहते नहीं थकती थी वह मेरी बात सुन कर मुंह फेर कर अंदर चली गई. मैं ने सोचा बेटियां ससुराल जा कर पराई हो जाती हैं और कभीकभी उन के तेवर भी बदल जाते हैं. अब वह कहां एक दूध वाले से बात करेगी और फिर मैं वहां से चला आया. पर अगले ही दिन मुझे मालूम पड़ा कि मुझ से न मिलने की वजह कुछ और ही थी. सलोनी बिटिया नहीं चाहती थी कि सदा उस का खिलखिलाता चेहरा देखने वाला काका उस का उदास व मायूस चेहरा देखे.

‘‘दरअसल, सलोनी बिटिया इस बार वहां मिलने नहीं, बल्कि अपना इलाज करवाने आई थी. कुछ दिन पहले ही पता चला था कि उसे तीसरी और अंतिम स्टेज का ब्लड कैंसर है. इसलिए डाक्टर ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जाने को कहा था. यहां इस बीमारी का इलाज नहीं था.

‘‘सलोनी को अच्छे से अच्छे डाक्टरों को दिखाया गया, पर कोई फायदा नहीं हुआ. ब्लड कैंसर की वजह से सलोनी बिटिया की हालत दिनोंदिन बिगड़ती चली गई. बारबार कीमोथेरैपी करवाने से उस के लंबे, काले, रेशमी बाल भी उड़ गए. इसी वजह से वह हर वक्त स्कार्फ बांधे रखती. कितनी बार खून बदलवाया गया. पर सब व्यर्थ. आकाश बाबू बहुत चाहते हैं सलोनी बिटिया को. हमेशा उसी के सिरहाने बैठे रहते हैं… तनमनधन सब कुछ वार दिया आकाश बाबू ने सलोनी बिटिया के लिए.’’

शाम को जब विवेक औफिस से आए तो पूजा ने उन्हें सारी बात बताई, ‘‘इस

दुखद कहानी में एक सुखद बात यह है कि आकाश बाबू बहुत अच्छे पति हैं. ऐसी हालत में सलोनी की पूरीपूरी सेवा कर रहे हैं. शायद इसीलिए विवाह संस्कार जैसी परंपराओं का इतना महत्त्व दिया जाता है और यह आधुनिक पीढ़ी है कि विवाह करना ही नहीं चाहती. लिव इन रिलेशनशिप की नई विचारधारा ने विवाह जैसे पवित्र बंधन की धज्जियां उड़ा दी हैं.’’

फिर, ‘मैं भी किन बातों में उलझ गई. विवेक को भूख लगी होगी. वे थकेहारे औफिस से आए हैं. उन की देखभाल करना मेरा भी तो कर्तव्य है,’ यह सोच कर पूजा रसोई की ओर चल दी. रसोई से फिर सामने वाला मकान नजर आया.

आज वहां काफी हलचल थी. लगता था घर की हर चीज अपनी जगह से मिलना चाहती है. घर में कई लोग इधरउधर चक्कर लगा रहे थे. बाहर ऐंबुलैंस खड़ी थी. पूजा सहम गई कि कहीं सलोनी को कुछ…

पूजा का शक ठीक था. उस दिन सलोनी की तबीयत अचानक खराब हो गई और उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. हालांकि उन से अधिक परिचय नहीं था, फिर भी पूजा और विवेक अगले दिन उस से मिलने अस्पताल गए. वहां आकाश की हालत ठीक उस परिंदे जैसी थी, जिसे पता था कि उस के पंख अभी कटने वाले ही हैं, क्योंकि डाक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि सलोनी अपने जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही है. फिर वही हुआ. अगले दिन सलोनी इस संसार से विदा हो गई.

इस घटना को घटे करीब 2 महीने हो गए थे पर जब भी उस घर पर नजर पड़ती पूजा की आंखों के आगे सलोनी का मासूम चेहरा घूम जाता और साथ ही आकाश का बेबस चेहरा. मानवजीवन पर असाध्य रोगों की निर्ममता का जीताजागता उदाहरण और पति फर्ज की साक्षात मूर्ति आकाश.

दोपहर के 2 बजे थे. घर का सारा काम निबटा कर मैं लेटने ही जा रही थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दरवाजे पर एक महिला थी. शायद सामने वाले घर में आई थी, क्योंकि पूजा ने इन दिनों कई बार उसे वहां देखा था. उस का अनुमान सही था.

‘‘मैं आप को न्योता देने आई हूं.’’

‘‘कुछ खास है क्या?’’

‘‘हां, कल शादी है न. आप जरूर आइएगा.’’

इस से पहले कि पूजा कुछ और पूछती, वह महिला चली गई. शायद वह बहुत जल्दी में थी.

वह तो चली गई पर जातेजाते पूजा की नींद उड़ा गई. सारी दोपहरी वह यही सोचती रही कि आखिर किस की शादी हो रही है वहां, क्योंकि उस की नजर में तो उस घर में अभी कोई शादी लायक नहीं था.

शाम को जब विवेक आए तो उन के घर में पैर रखते ही पूजा ने उन्हें यह सूचना दी जिस ने दोपहर से उस के मन में खलबली मचा रखी थी. उसे लगा कि यह समाचार सुन कर विवेक भी हैरान हो जाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. वे वैसे ही शांत रहे जैसे पहले थे.

बोले, ‘‘ठीक है, चली जाना… हम पड़ोसी हैं.’’

‘‘पर शादी किस की है, आप को यह जानने की उत्सुकता नहीं है क्या?’’ पूजा ने तनिक भौंहें सिकोड़ कर पूछा, क्योंकि उसे लगा कि विवेक उस की बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं.

‘‘और किस की? आकाश की. अब शौर्य की तो करने से रहे इतनी छोटी उम्र में. आकाश के घर वाले चाहते हैं कि यह शीघ्र ही हो जाए, क्योंकि आकाश को इसी माह विदेश जाना है. दुलहन सलोनी की चचेरी बहन है.’’

यह सुन कर पूजा के पैरों तले की जमीन खिसक गई. जिस आकाश को उस ने आदर्श पति का ताज दे कर सिरआंखों पर बैठा रखा था. वह अब उस से छिनता नजर आ रहा था. उस ने सोचा कि पत्नी को मरे अभी 2 महीने भी नहीं हुए और दूसरा विवाह? तो क्या वह प्यार, सेवाभाव, मायूसी सब दिखावा था? क्या एक स्त्री का पुरुषजीवन में महत्त्व जितने दिन वह साथ रहे उतना ही है? क्या मरने के बाद उस का कोई वजूद नहीं? मुझे कुछ हो जाए तो क्या विवेक भी ऐसा ही करेंगे? इन विचारों ने पूजा को अंदर तक हिला दिया और वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई. उसे सारा कमरा घूमता नजर आ रहा था.

जब विवेक वहां आए तो पूजा को इस हालत में देख घबरा गए और फिर उस का सिर गोद में रख कर बोले, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या ऊटपटांग सोचसोच कर अपना दिमाग खराब किए रखती हो? तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?’’

विवेक की इस बात पर सदा गौरवान्वित महसूस करने वाली पूजा आज बिफर पड़ी, ‘‘ले आना तुम भी आकाश की तरह दूसरी पत्नी. पुरुष जाति होती ही ऐसी है. पुरुषों की एक मृगमरीचिका है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. आकाश यह शादी अपने सासससुर के कहने पर ही कर रहा है. उन्होंने ही उसे पुनर्विवाह के लिए विवश किया है, क्योंकि वे आकाश को अपने बेटे की तरह चाहने लगे हैं. वे नहीं चाहते कि आकाश जिंदगी भर यों ही मायूस रहे. वे चाहते हैं कि आकाश का घर दोबारा बस जाए और आकाश की पत्नी के रूप में उन्हें अपनी सलोनी वापस मिल जाए. इस तरह शौर्य को भी मां का प्यार मिल जाएगा.

‘‘पूजा, जीवन सिर्फ भावनाओं और यादों का खेल नहीं है. यह हकीकत है और इस के लिए हमें कई बार अपनी भावनाओं का दमन करना पड़ता है. सिर्फ ख्वाबों और यादों के सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती. जिंदगी बहुत लंबी होती है.

‘‘आकाश दूसरी शादी कर रहा है इस का अर्थ यह नहीं कि वह सलोनी से प्यार नहीं करता था. सलोनी उस का पहला प्यार था और रहेगी, परंतु यह भी तो सत्य है कि सलोनी अब दोबारा नहीं आ सकती. दूसरी शादी कर के भी वह उस की यादों को जिंदा रख सकता है. शायद यह सलोनी के लिए सब से बड़ी श्रद्धांजलि होगी.

‘‘यह दूसरी शादी इस बात का सुबूत है कि स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के 2 पहिए हैं और यह गाड़ी खींचने के लिए एकदूसरे की जरूरत पड़ती है और यह काम अभी हो जाए तो इस में हरज ही क्या है?’’

विवेक की बातों ने पूजा के दिमाग से भावनाओं का परदा हटा कर वास्तविकता की तसवीर दिखा दी थी. अब उसे आकाश के पुनर्विवाह में कोई बुराई नजर नहीं आ रही थी और न ही विवेक के प्यार पर अब कोई शक की गुंजाइश थी.

विवेक के लिए खाना लगा कर पूजा अलमारी खोल कर बैठ गई और फिर स्वभावानुसार विवेक का सिर खाने लगी, ‘‘कल कौन सी साड़ी पहनूं? पहली बार उन के घर जाऊंगी. अच्छा इंप्रैशन पड़ना चाहिए.’’

विवेक ने भी सदा की तरह मुसकराते हुए कहा, ‘‘कोई भी पहन लो. तुम पर तो हर साड़ी खिलती है. तुम हो ही इतनी सुंदर.’’

पूजा विवेक की प्यार भरी बातें सुन कर गर्वित हो उठी.

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