लोकसभा 2024 की चुनावी वैतरणी पार करने के लिए सभी दल एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं, मगर जीत का सेहरा किस के सिर बंधेगा, यह बड़ेबड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं भांप पा रहे. दलितों और मुसलमानों को साधने की कोशिश तो सब की है लेकिन उन के मुद्दे सिरे से गायब हैं. तीन तलाक को खत्म कर के भाजपा नीत मोदी सरकार मुसलिम औरतों की नजर में हीरो बनी थी, लेकिन अब चुनाव के वक्त तीन तलाक खारिज करने का गुणगान कर के वह मुसलिम पुरुषों को भी नाराज नहीं कर सकती. औरतें वोट डालने जाएं या न जाएं, अधिकांश मुसलिम परिवारों में यह बात पुरुष ही तय करते हैं. यही वजह है कि भाजपा की चुनावी रैलियों में तीन तलाक किसी नेता के भाषण का हिस्सा नहीं है.

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उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव मुसलमानों के दिल में जगह बनाने लिए पिछले दिनों दिवंगत हुए बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी के घर तक जा पहुंचे. उन की मौत का गम मनाया. उस के बाद मुसलिम वोट साधने के लिए लखनऊ के कई नवाबी खानदानों से भी मुलाकातें कीं, ईद की सेवइयां चखीं, लेकिन इन कवायदों का आम मुसलिम पर कितना असर होगा, वह जो बिरयानी का ठेला लगाता है, या साइकिल का पंचर जोड़ता है, या सब्जी बेचता है अथवा काश्तकारी करता है, इस का अंदाजा अखिलेश खुद नहीं लगा पाए.

असल माने में तो मत देने वाला यही तबका है. नवाबी खानदानों से तो एकाध कोई मतदान करने बूथ तक जाए तो जाए. अब कांग्रेस की बात करें तो वह अगर मुसलमानों के लिए कोई बात करती है तो भाजपाई नेता सीधे गांधी परिवार पर हमलावर हो उठते हैं और उसे मुसलमान बताने लगते हैं. इसलिए कांग्रेस भी मुसलमानों और उन के मुद्दों को ले कर मुखर नहीं है.

एक तरफ राजनीतिक दल पसोपेश में हैं कि मुसलमान किस के कितने करीब हैं, दूसरी तरफ मुसलमान अपने मत को ले कर खामोशी ओढ़े हुए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलिम बहुल इलाकों में भी खामोशी पसरी हुई है. इस खामोशी में किस की जीत छिपी है, यह मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा.

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसा शिक्षा पर रोक लगाने की कोशिश की थी और राज्यभर के सभी 16,000 मदरसों के लाइसैंस रद्द कर दिए थे. मामला हाईकोर्ट होता हुआ सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड औफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख मदरसा छात्रों पर असर पड़ेगा और छात्रों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करने का निर्देश देना उचित नहीं है.

मदरसे बंद करने के योगी सरकार की कोशिश पर सरकार में मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने सफाई पेश की. उन्होंने कहा कि सरकार चाहती थी कि मुसलिम बच्चों को भी उसी तरह सरकारी स्कूलों में हिंदी, इंग्लिश, साइंस, भूगोल, इतिहास, कंप्यूटर आदि की शिक्षा मिले जैसी हिंदू और अन्य धर्मों के बच्चों को मिलती है. बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए मदरसा शिक्षा को हतोत्साहित किया जा रहा था. बेहतर शिक्षा मुसलिम नौजवानों को मिले, इस के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में योगी सरकार हमेशा सकारात्मक काम करती रही है. मगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करेगी.

सरकार की एकतरफा कार्यवाही

वहीं इस मामले में मुसलिम धर्मगुरुओं और नेताओं की कई प्रतिक्रियाएं आईं. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. मुसलमानों के कई बड़े रहनुमाओं ने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया कि उस ने मदरसा शिक्षा को बरकरार रखा. केंद्रीय स्कूल के शिक्षक मोहम्मद अकील कहते हैं, “मदरसों में अति गरीब मुसलिम परिवारों के बच्चे पढ़ने जाते हैं. मुसलिम यतीमखानों के बच्चे भी वहां पढ़ते हैं. वहां उन को दोपहर का भोजन मिल जाता है. किताबें और कपड़े मिल जाते हैं. अधिकांश बच्चों के परिवार इतने पिछड़े, गरीब और अशिक्षित हैं कि वे अपने बच्चों को दीनी तालीम और एक वक्त की रोटी के नाम पर मसजिद-मदरसों में तो भेज देंगे मगर किसी सरकारी स्कूल में नहीं भेजेंगे. वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने को तैयार हों, इस के लिए पहले सरकार इन परिवारों की काउंसलिंग करे, इन के जीवनस्तर को सुधारे, उन में शिक्षा की आवश्यकता की समझ पैदा करे, फिर उन के बच्चों को मदरसा जाने से रोके और सरकारी स्कूल में दाखिला दे. ऐसे ही एक आदेश पर मदरसे बंद कर देने से आप इन बच्चों के मुंह से एक वक्त की रोटी भी छीने ले रहे हैं. सरकार का यह कदम बहुत ही अनुचित है. उस को पहले हिंदुओं के गुरुकुल बंद करने चाहिए, फिर मदरसों की ओर देखना चाहिए.”

भाजपा सरकार की मदरसा नीति पर भी मुसलिम तबका बंटा हुआ है. हो सकता है सरकार की मंशा मुसलिम बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की हो मगर अधिकांश इस कदम को मुसलमानों पर हमले के तौर पर ही देख रहे हैं. ऐसे में भाजपा से मुसलमान इस वजह से भी छिटक गया है.

बीते रमजान के आखिरी पखवाड़े में हिंदुओं का नवरात्र भी आरंभ हो गया था. उन के भी व्रत थे, लिहाजा सरकार ने मीटमछली की दुकानें बंद करवा दीं. यहां तक कि ठेलों पर बिरयानी बेचने वालों को भी घर बिठा दिया गया. ईद के दिन 90 फीसदी मीट की दुकानें बंद थीं. कई मुसलिम घरों में बिना नौनवेज के ईद मनी. मुसलमान ने कोई शिकायत नहीं की मगर कांग्रेस के समय को जरूर याद किया. ऐसा अनेकों बार हुआ होगा जब ईद और नवरात्र इकट्ठे पड़े लेकिन कांग्रेस के वक्त ईद के रोज मीट की दुकानें बंद नहीं हुईं.

पश्चिम बंगाल में सालोंसाल मछली बिकती है फिर चाहे नवरात्र हों या दीवाली क्योंकि वहां के हिंदुओं का मुख्य भोजन मछली है. आखिर जिस का जैसा खानपान है, वह तो वही खाएगा, उस पर रोकटोक करने वाली सरकार कौन होती है? मगर भाजपा सरकार मुसलमानों के खानपान पर पाबंदी लगाने में उस्ताद है. हलाल और झटके के मामले में भी उस ने मुसलमानों को परेशान किया. ऐसे में मुसलमान का मत भाजपा को कैसे मिल सकता है. यह मत एकजुट भी नहीं है, निसंदेह दूसरी कई पार्टियों के मध्य बंटा हुआ है.

कम होते मुसलिम प्रतिनिधि

पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां से सब से ज्यादा मुसलिम प्रतिनिधि संसद पहुंचते रहे हैं, उस मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र में चरणों के मतदान के बाद भी खामोशी है. साल 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद हुए ध्रुवीकरण के माहौल में 2014 के चुनाव में इस इलाके से एक भी मुसलिम प्रतिनिधि नहीं चुना गया.

साल 2019 में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिल कर चुनाव लड़ा तो 5 मुसलमान सांसद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों से जीत कर संसद पहुंचे थे. सहारनपुर से हाजी फजलुर रहमान, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, संभल से डा. शफीकुर्रहमान बर्क, मुरादाबाद से एस टी हसन और रामपुर से आजम खान ने जीत दर्ज की थी. लेकिन 2024 का चुनाव आतेआते राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ गठबंधन में है, राष्ट्रीय लोकदल अब भाजपा के साथ है और बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नए बदले समीकरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मुसलमान सांसद फिर से चुन कर संसद पहुंच पाएंगे? यह सवाल और गंभीर तब हो जाता है जब कई मुसलिम बहुल सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुसलिम उम्मीदवार आमनेसामने हैं. सहारनपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद हैं तो बहुजन समाज पार्टी ने माजिद अली को टिकट दिया है. वहीं, अमरोहा में मौजूदा सांसद दानिश अली इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं और बसपा ने मुजाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है.

संभल में दिवंगत सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया है तो बसपा ने यहां सौलत अली को उम्मीदवार बनाया है. मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी ने मौजूदा सांसद एस टी हसन का टिकट काट कर रुचि वीरा को उम्मीदवार बनाया है जबकि यहां बसपा ने इरफान सैफी को टिकट दिया है. रामपुर में आजम खान जेल में हैं. समाजवादी पार्टी ने यहां मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दिया है जबकि बसपा से जीशान ख़ां मैदान में हैं. कई सीटों पर मुसलमान उम्मीदवारों के आमनेसामने होने की वजह से यह सवाल उठा है कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक बार फिर मुसलिम प्रतिनिधि चुन कर संसद पहुंच सकेंगे?

संसद में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में ऐसा माहौल बनाया गया है कि जहां कोई मुसलमान प्रत्याशी होता है वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की साजिश की जाती है. यह बड़ा सवाल है कि देश की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है. भाजपा नारा देती है कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ लेकिन असल में इस का मतलब है- ‘विपक्ष मुक्त भारत’ और ‘मुसलिम मुक्त’ विधायिका. मुसलमान भाजपा की सोच से वाकिफ है. वह खामोश है मगर उस की ख़ामोशी का यह मतलब नहीं कि सरकार बनाने या बिगाड़ने में उस की भूमिका नहीं होगी.

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