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हनक : पुराने दिनों को याद करके सुमन क्यों उदास हो जाती थी ?

सुमन ने करीम से कहा, “अरे देखो तो रिसेप्शन के सामने वाले सोफे पर चेटियार साहब बैठे हुए हैं क्या?’’ करीम की नजदीक की नजर कमजोर थी और उस का चश्मा बाइफोकल नहीं था, इसलिए उस ने चश्मा निकाल कर सोफे की तरफ ध्यान से देखने के बाद कहा, ‘‘हां यार, चेटियार सर ही हैं, लेकिन उन के चेहरे पर न तो घमंड दिख रहा है और न ही पुरानी ठसक, बल्कि हार और उदासी साफसाफ दिखाई दे रही है.”
सुमन और करीम दोनों चेटियार सर के साथ लंबे समय तक काम कर चुके थे. इसलिए, दोनों उन के चेहरे के हर भाव को पढ़ सकते थे. सुमन भी करीम की बातों से सहमत लग रहा था.

करीम ने सुमन से कहा, “क्या मिला जाए, चेटियार सर से.” सुमन ने कहा, “एकदम नहीं, ऐसे मक्कार, धूर्त, चालबाज और कमीने आदमी से मिलने के लिए कह रहे हो, जो बातबात पर हमें गालियां देता था, हर वक्त नीचा दिखाने की कोशिश करता था, तुम्हें तो याद ही होगा, हम ने इन की वजह से विभाग बदलवाने की कितनी कोशिश की थी, लेकिन अपने उद्देश्य को पाने में हम सफल नहीं हो सके थे.सभी ने हमें सांत्वना दी थी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की, सभी चेटियार सर से डरते थे.”

एक सांस में पूरा वाक्य बोलने के कारण सुमन का गला सूख गया, तो उस ने थूक से गले को तर करने के बाद पुनः कहा, “चेटियार सर के सामने से अभीअभी गुजरने वाले कई लोगों को मैं जानता हूं, जिन्होंने उन के साथ काम किया था, लेकिन उन के कमीनेपन की वजह से वे उन की अनदेखी कर रहे हैं.”

ऐसा नहीं था कि चेटियार सर अपने पुराने सहकर्मियों को नहीं देख रहे थे, लेकिन लगता है कि उन के मन में भी डर हावी था, क्योंकि अब वे बैंक के चेयरमैन नहीं थे और वे अपनी काली करतूतों से भी वाकिफ थे, इसलिए कहीं न कहीं उन के मन में भी इस बात का डर था कि कहीं कोई उन की बेइज्जती न कर दे.

सुमन ने फिर से कहा, “खुदगर्ज इनसानों की औकात कुरसी से उतरने के बाद कुत्ते से भी बदतर हो जाती है, इस सच को भोगते हुए मैं ने कई लोगों को देखा है. हो सकता है, चेटियार सर भी अब इस दौर से गुजर रहे हों, क्योंकि वे तो कमीनों के बाप थे.”

करीम ने प्रयुत्तर में कहा, “चेटियार सर को ही क्यों गालियां रहे हो? आजकल हमारे बैंक में अधिकांश शीर्ष प्रबंधक, अपने मातहतों से कहां सीधे मुंह बात करते हैं, सभी गालीगलौज और डंडे के बलबूते अपना काम करवाना चाहते हैं, ताकि बिना प्रतिरोध के उन के मातहत गलत काम करने से मना नहीं करें, जबकि प्यार से भी काम करवाया जा सकता है, लेकिन भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबे अधिकांश शीर्ष कार्यपालक काम करवाने के लिए गुंडों व बदमाशों की तरह आतंक और खौफ का रास्ता अख्तियार करते हैं, ताकि वे नीचे वालों को मार कर या उन की जिंदगी को तबाह कर के पैसे और प्रमोशन पाते रहें.”

सुमन ने कहा, “ठीक ही कह रहे हो तुम, लेकिन कुरसी की हनक में वे भूल जाते हैं, उन की कुरसी स्थायी नहीं है, एक दिन उस का जाना तय है, जब सेवानिवृत्त होंगे, फिर क्या करेंगे, ये सोचने की कोई कोशिश नहीं करता है, ऐसे ही लोगों का बुढ़ापा खराब होता है, क्योंकि उन के पुराने व्यवहार व स्वभाव के कारण सेवानिवृत्ति के बाद हर कोई उन्हें दुत्कारता है, कहींकहीं लतिया भी दिए जाते हैं ऐसे लोग.”

करीम ने कहा, “सहमत हूं, मैं ने सुना है कि चेटियार सर की माली हालत आजकल बहुत ज्यादा खराब है, मुझे लगता है कि ये आज यहां दवाएं लेने के लिए आए हैं, मैडिकल डिपार्टमैंट पेंशनरों को फ्री में दवा मुहैया कराता है, साथ ही, डाक्टरों का कंसल्टेशन भी यहां फ्री मिल जाता है, तुम भी जानते हो, बैंकर को पेंशन, राज्य या केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तुलना में बहुत ही कम मिलती है, इस कारण इन का गुजारा बमुश्किल हो पा रहा है, बेटा बेरोजगार है, बेटी का भी तलाक हो गया है, कभी मर्सिडीज पर घूमते थे, आज रिकशे पर जाने के लिए मजबूर हैं, कभीकभी इन के पास रिकशे के भी पैसे नहीं होते हैं. सुना है, अब ये अपनी गलतियों के लिए रोज अफसोस जताते हैं, ईश्वर से माफी मांगते हैं.”

सुमन ने कहा, “लेकिन, क्या ईश्वर को ऐसे पापियों को माफ करना चाहिए?”

“नहीं, एकदम नहीं,” करीम ने कहा.

सुमन ने फिर कहा, “पता नहीं क्यों, आज अधिकांश इनसान जानवर बनना पसंद कर रहे हैं. ऐसे लोगों को अपने कुकर्मों पर कभी पछतावा नहीं होता है, लेकिन जैसे ही पैसे और पावर उन के हाथों से रेत की मानिंद फिसलने लगते हैं, वैसे ही, वे सीधेसादे और ईमानदार बन जाते हैं और यह भी अपेक्षा करने लगते हैं कि सभी लोग उन्हें माफ कर देंगे और इज्जत से नवाजेंगे.”

करीम ने कहा, “लेकिन, ऐसे लोगों के पाप का घड़ा इतना ज्यादा भर चुका होता है और इतनी बद्दुआ मिल चुकी हुई होती है कि बाद में किया गया कोई भी अच्छा काम उन के कुकर्मों की भरपाई नहीं कर पाता है.”

थोड़ी देर में रिसेप्शन पर भीड़ कम हुई, तो चेटियार सर ने रिसेप्शनिस्ट से एंट्री पास बनाने के लिए कहा. बातचीत के दौरान बड़े विनीत लग रहे थे वे. यह देख कर सुमन ने कहा, “सचमुच, बड़े से बड़े हिटलर भी समय के सामने विवश हो जाते हैं, लेकिन क्या विनीत या निरीह बनने से ऐसे लोगों की सजा पूरी हो जाती है, कतई नहीं. ऐसे लोगों को फांसी की सजा भी दी जाए तो कम है, क्योंकि ऐसे लोग हमारे समाज में बिना खून बहाए रोज कत्ल कर रहे हैं.”

Article 370 : पूरा का पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और रहेगा

यह चुनावी वर्ष है. वर्तमान सरकार आम चुनावों में 400 से अधिक सीटें जीतने के दावे के साथ हर तरह का प्रोपगंडा करने से पीछे नहीं है. इसी चुनावी वर्ष में तथाकथित प्रोपगंडा फिल्मों की भी बाढ़ आई हुई है. ऐसी ही फिल्मों में से एक है ‘‘आर्टिकल 370.’ 23 फरवरी को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 370’ का निर्माण आदित्य धर ने किया है, जो अतीत में ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ का निर्देशन कर शोहरत बटोर चुके हैं. इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया था. देश के प्रधानमंत्री व तत्कालीन रक्षामंत्री ने भी इस फिल्म की प्रशंसा में कसीदे पढ़े थे. पर इस बार वे सिर्फ निर्माता हैं और निर्देशक आदित्य सुभाष जांभले हैं.

फिल्म में यामी गौतम के साथ प्रिया मणि, अरुण गोविल, वैभव तत्ववादी, स्कंद ठाकुर, अश्विनी कौल, किरण करमरकर, दिव्या सेठ शाह, राज जुत्सी, सुमित कौल, राज अर्जुन, असित गोपीनाथ रेडिज, अश्विनी कुमार और इरावती हर्षे मायादेव भी हैं. फिल्म के निर्माण में आदित्य धर के साथ ही मुकेश अंबानी की कंपनी जियो स्टूडियो भी जुड़ी हुई है.

ट्रेलर लौंच से पहले नेवल ब्रास बैंड ने गाया राष्ट्गीत

यह पहली बार हुआ जब किसी फिल्म के ट्रेलर लौंच के अवसर पर नेवल ब्रास बैंड ने राष्ट्गीत गा कर देशभक्ति का माहौल पैदा किया. उस के बाद फिल्म का ट्रेलर लौंच किया गया था. ट्रेलर में कहा गया कि यह फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है. तो वहीं फिल्मकार का दावा है कि उन की यह फिल्म उन घटनाओं पर आधारित है जिन के कारण जम्मूकश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया गया था. अब सच क्या है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

क्या संकेत देता है फिल्म का ट्रेलर ?

फिल्म का ट्रेलर यह स्पष्ट संकेत देता है कि यह फिल्म विवेक रंजन अग्निहेत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के ही ढर्रे पर बनी है, जिसे सरकार ने बौक्सऔफिस पर जबरदस्त सफलता दिला दी थी. ट्रेलर से यह फिल्म जोरदार हिंसक व अतिउग्र संवादों से युक्त नजर आती है. फिल्म के ट्रेलर में साफ कहा गया है- ‘पूरा का पूरा कश्मीर भारत देश का हिसा था, है और रहेगा’. इतना ही नहीं, 2 मिनट और 40 सैकंड के ट्रेलर में खुफिया अधिकारी को जम्मूकश्मीर की विशेष स्थिति के चलते भारतीय सेना के सामने आने वाली चुनौतियों व राजनीतिक तबाही के बीच फंसा हुआ दिखाया गया है.

इस राजनीतिक फिल्म को आम चुनाव से दोतीन माह पहले प्रदर्शित करने से भी काफीकुछ समझा जा सकता है. फिल्म एक गहन कथा का वादा करती है, जो भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जम्मूकश्मीर की विशेष स्थिति से प्रेरित है. इस कदम ने जम्मूकश्मीर को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.

ट्रेलर में खुफिया अधिकारी बनी यामी गौतम का चरित्र कहता है- ‘आतंकवाद कश्मीर में एक व्यवसाय है. इस का स्वतंत्रता से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन इस का सबकुछ पैसे से है. अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य की विशेष स्थिति को रद्द करना भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण है.’

आदित्य धर इसे प्रोपगंडा फिल्म नहीं मानते

फिल्म ‘आर्टिकल 370’ को प्रोपगंडा फिल्म कहे जाने पर एतराज जताते हुए फिल्म के निर्माता आदित्य धर ने कहा- ‘‘मैं ऐसा नही मनता. मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री को चुनाव जीतने या वोट बटोरने के लिए हमारी फिल्म की जरूरत है. जहां तक फिल्म के प्रदर्शन के समय का सवाल है, तो यह निर्णय हम ने फिल्म एक्जीबीटरों संग बातचीत कर एक साल पहले ही लिया था. मेरा मानना है कि देश को जानने की जरूरत है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मिशन को कैसे अंजाम दिया गया. इस मिशन को गुप्त तरीके से अंजाम दिया गया था और मिशन का सब से महत्त्वपूर्ण लक्ष्य यह था कि किसी निर्दोष का खून न बहे और यही इसे एक महान ओपस औपरेशन बनाता है. इसलिए बहुत सारी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है.’’

आदित्य धर आगे कहते हैं, ‘‘हम ने महीनों तक शोध किया. इस मिशन में बहुत सारा ड्रामा शामिल है जो 2014 में शुरू हुआ और आखिरकार 2019 में समाप्त हुआ. प्रोटोकौल में मदद के लिए सैट पर हमारे कानूनी सलाहकार थे ताकि हम वास्तविक कहानी से भटक न जाएं. सभी संवेदनशील विवरणों को 2 घंटे के सिनेमाई अनुभव में संकलित करने के लिए हमें कदम दर कदम आगे बढ़ना था, जो एक बड़ी चुनौती थी.
जी हां, ‘आर्टिकल 370‘ एक ऐक्शन प्रधान राजनीतिक ड्रामा है जो अनुच्छेद को निरस्त करने और कश्मीर की स्थिति के प्रामाणिक चित्रण के इर्दगिर्द घूमती है.

खुफिया अधिकारी बनी यामी गौतम

यामी गौतम ने फिल्म में एक खुफिया अधिकारी की भूमिका निभाई है, जो व्यक्तिगत नुकसान से गुजर रही है. फिर उसे फ्री हैंड दे कर एक खास मिशन का नेतृत्व करने के लिए कश्मीर में तैनात किया जाता है.

निर्देशक ने दावा कि इस में सबकुछ सच बयां किया गया है. वे कहते हैं, ‘‘फिल्म में सभी घटनाएं प्रामाणिक हैं और यथार्थवादी रूप से चित्रित की गई हैं, जो कि फिल्म के लिए हम सभी का एक लक्ष्य था और हम इसे हासिल करने में सक्षम थे.‘‘

फिल्म के ट्रेलर लौंच के बाद अभिनेता अक्षय कुमार ने एक्स पर लिखा- “कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा. पूरा देश जोश से भरा हुआ लग रहा है. शुभकामनाएं, जय हिंद.’

तो वहीं एक अन्य शख्स ने एक्स पर लिखा- ‘अविश्वसनीय कहानी जो भारतीय इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय को प्रतिध्वनित करती है. यह एक सिनेमाई जीत है जो सभी की सराहना की पात्र है.’

बिहार में बहुमत मामला: क्यों खास होता है विधानसभा अध्यक्ष ?

Nand Kishore Yadav : गठबंधन सरकारों को चलाने की बात हो या दलबदल की या फिर कमजोर बहुमत की, इन हालात में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका ख़ास हो जाती है. बिहार में जब जदयू नेता नीतीश कुमार को 9वीं बार बहुमत साबित करने का समय आया तो सब से पहले विधानसभा के पहले वाले अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को हटाने का प्रस्ताव पेश हुआ. पुराने विधानसभा अध्यक्ष राजद के समर्थक माने जाते थे. उन की जगह पर नए विधानसभा अध्यक्ष के रूप मे नंद किशोर यादव को चुना गया. इस के बाद नीतीश कुमार का बहुमत साबित होना पक्का हो गया था. नंद किशोर यादव 7 बार के विधायक है. मंत्री रहे हैं. वे आरएसएस के करीबी भी हैं.

अगर राजद के 3 विधायक विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान करते तो विशवास मत में पड़े वोटों की संख्या 122 हो जाती. वैसी स्थिति में राजग के 5 विधायकों के अलावा राजद पक्ष के 2-3 विधायक पाला बदल लेते तो सरकार बहुमत हासिल नहीं कर सकती थी. राजद के 3 विधायकों- चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रहलाद यादव के पाला बदलते ही राजग के आधा दर्जन नाराज चल रहे विधायक नरम पड़ गए. उन को लगा कि अब उन के बिना भी सरकार बन जाएगी इन विधायकों ने सदन का रुख कर लिया. जदयू के एक विधायक दिलीप राय इस के बाद भी मतदान में शमिल नहीं हुए.

राजग यानी एनडीए का विधानसभा अध्यक्ष बनते ही जदयू के नाराज विधायकों को यह पता चल गया कि अब वे जदयू को तोड़ नहीं पाएंगे. ऐसे में पार्टी के साथ रहने में ही भलाई है. जब इस तरह का बहुमत साबित करना होता है तब विधानसभा अध्यक्ष की अहमियत बढ़ जाती है. इसीलिए बहुमत साबित करने वाला दल अपनी पसंद का विधानसभा अध्यक्ष चाहता है. उत्तर प्रदेश में जब मायावती यानी बसपा-भाजपा की गठबंधन वाली सरकार बनती थी तब भाजपा केशरी नाथ त्रिपाठी को ही विधानसभा अध्यक्ष बनाती थी. वे दलबदल कानून के सब से बड़े जानकार और वकील थे. वे पार्टी को संकट से निकालने का काम करते थे. ऐसे उदाहरण देशभर में भरे पड़े हैं.

महाराष्ट्र में शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसला सुनाते हुए विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट को सही ठहराया. उस के बाद उद्धव ठाकरे ने स्पीकर पर तंज कसा और कहा कि आज लोकतंत्र की हत्या हुई है. महाराष्ट्र में असली शिवसेना कौन है, इसे ले कर पिछले डेढ़ साल से चल रही दावेदारी की लड़ाई में एक बड़ा मोड़ तब सामने आया जब महाराष्ट्र के विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने सुप्रीम कोर्ट की बारबार की फटकार के बाद दी गई मोहलत के आखिरी दिन यानी 10 जनवरी को अपना फैसला सुनाया.

स्पीकर राहुल नार्वेकर ने चुनाव आयोग का हवाला देते हुए एकनाथ शिंदे गुट को राहत दी है. नार्वेकर ने अपने फैसले में कहा कि असली शिवसेना शिंदे गुट ही है और उद्धव ठाकरे गुट ने नियमों को ताक पर रख कर विधायकों को सस्पैंड किया था.

स्पीकर के फैसले पर पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम जनता को साथ ले कर लड़ेंगे और जनता के बीच जाएंगे. स्पीकर का आज जो आदेश आया है, वह लोकतंत्र की हत्या है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी अपमान है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि राज्यपाल ने अपने पद का दुरुपयोग किया है और गलत किया है. अब हम इस लड़ाई को आगे भी लड़ेंगे और हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. सुप्रीम कोर्ट जनता और शिवसेना को पूरा न्याय दिए बिना नहीं रुकेगा.

शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाते हुए बीजेपी पर षडयंत्र करने का आरोप लगाया. शिवसेना के पास यही विकल्प भी बचा क्योंकि इस से पहले चुनाव आयोग भी शिंदे गुट के पक्ष में ही फैसला सुना चुका था.

न्याय मिलना सरल नहीं :

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले से शिवसेना संतुष्ट नहीं है. इस के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है. संवैधानिक संस्थाओं को इसलिए बनाया गया था कि वे ज्यादा प्रभावी फैसला कर सकती हैं. हाल के कुछ सालों में संवैधानिक संस्थाओं ने ऐसे फैसले दिए जो विवादित रहे हैं. महाराष्ट्र के इस मसले में चुनाव आयोग और विधानसभा स्पीकर दोनों के फैसलों से शिवसेना उद्धव गुट संतुष्ट नहीं रहा. यह पहली बार नहीं है कि विधानसभा स्पीकर के फैसले पर सवाल उठे हों. जब भी राजनीतिक दलों में दलबदल या तोड़फोड़ होती है, विधानसभा स्पीकर का फैसला मान्य होता है.

लोकसभा और राज्यसभा से लेकर विधानसभाओं तक एकजैसा ही दस्तूर चल निकला है. लोकसभा में अभी 142 सांसदों को निलंबित किया गया. वहां भी सवाल खड़े हो रहे हैं. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ काफी चर्चा में रहे हैं. अब सदन में सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन रखना सरल नहीं रह गया है. फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल हो गया है. संवैधानिक संस्थाओं के फैसले जिस तरह से विवादों में आ रहे हैं उस से न्याय में देरी होगी और अब यह फैसले सरल नहीं होंगे.

क्यों खास है विधानसभा स्पीकर :

विधानसभा के अध्यक्ष किसी भी राज्य में राजनीतिक उठापटक को देखते हुए साल 1985 में पास किए गए दलबदल कानून का सहारा ले सकते हैं. इस कानून के तहत सदन के अध्यक्ष कई हालात में फैसला ले सकता है, जैसे अगर कोई विधायक खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है, कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है, कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता है, कोई विधायक विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है आदि. संविधान की 10वीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत विधानसभा अध्यक्ष फैसला ले सकता है.

बदलबदल कानून के तहत विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आखिरी हुआ करता था. 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने 10वीं सूची के 7वें पैराग्राफ को अवैध करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है.

विधानसभा स्पीकर को ले कर होते थे समझौते :

सरकार चलाने में विधानसभा स्पीकर की भूमिका बहुत प्रभावी होती है. ऐसे में गठबंधन की सरकार चलाने में दल यह चाहते थे कि स्पीकर उन का हो. उत्तर प्रदेश में 1995 से 2004 तक गठबंधन की सरकारों का दौर चल रहा था. बसपा और भाजपा का गठबंधन होता था. जिस में यह तय होता था कि पहले 6 माह बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री रहेंगी, उस के बाद भाजपा नेता कल्याण सिंह मुख्यमंत्री होंगे. मायावती पहले मुख्यमंत्री बनीं. जब कल्याण सिंह का नंबर आया तो उन्होंने विधानसभा भंग करने का फैसला किया. उधर, भाजपा ने मायावती के पैतरे का जवाब देने के लिए बहुजन समाज पार्टी में दलबदल करा दिया. यहां पर विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका खास हो जाती थी.

भाजपा ने उस दौर में केशरीनाथ त्रिपाठी को अपना विधानसभा स्पीकर बनवाया था. केशरीनाथ त्रिपाठी अच्छे वकील थे. उन के फैसले ऐेसे होने लगे जिन का लाभ भाजपा को मिलता था. वे जो फैसला देते थे उस की काट कोर्ट में भी नहीं हो पाती थी. इस के बाद यह परिपाटी शुरू हो गई कि गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री एक गुट का होता था तो विधानसभा स्पीकर दूसरे गुट का. इस से यह पता चलता है कि गठबंधन सरकारों में विधानसभा स्पीकर का महत्त्व कितना और क्यों होता है.

साल 2011 में कर्नाटक में भी इसी तरह का मामला सामने आया था. तब कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी के 11 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी. जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा, तो विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने के पक्ष में फैसला आया. लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं करने का फैसला सुनाया.

साल 1992 में एक विधायक की सदस्यता रद्द किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट और मणिपुर के विधानसभा अध्यक्ष एच बोडोबाबू के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. कई बार ऐसे मौके आए जब विधानसभा अध्यक्षों की भूमिका और उन के अधिकारों को ले कर अदालतों में बहसें हुई हैं. संविधान ने जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को अधिकार दिए थे, अब ये उस तरह से फैसले नहीं कर रहे.

इस वजह से इन संस्थाओं के भरोसे पर सवाल उठने लगे हैं. न्याय कठिन हो गया है. हर व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट से ही राहत की उम्मीद करने लगा है. वहां तक पहंचना सरल नहीं रह गया है. खर्च वाला काम है. संवैधानिक संस्थाओं के फैसले लोगों को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं.

Valentine’s Day 2024 : वैलेंटाइन डे पर पढ़ें Top 10 Love Stories, जो आपको प्यार करने पर कर देंगी मजबूर

Top 10 Love Stories in Hindi : ‘प्रेम’ ये एक सुखद एहसास है, जिसे हर एक व्यक्ति जीना चाहता हैं. प्यार में हर चीज अच्छी लगती है. साथ ही दिल और दिमाग खुश रहता है. इसके अलावा जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है, तो उसे अपने पार्टनर की हर एक खूबी व बुराई अच्छी लगती है.

कई लोगों को तो प्यार का इतना जुनून चढ़ जाता है कि वो अपने पार्टनर के प्रेम के खातिर कुछ भी कर गुजर जाने को तैयार हो जाते हैं. ऐसी ही प्यार और रिश्ते से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां हम आपके लिए लेकर आए हैं. अगर आपको भी कहानिया पढ़ने का शौक, तो पढ़ें सरिता की Top 10 Romantic Story in Hindi.

Top 10 Love Stories in Hindi : टॉप 10 प्रेम कहानियां हिंदी में

1. Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी

Valentines Day

सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है. अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.

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2. Valentine’s Day 2024 : इजहार- सीमा के लिए किसने भेजा था गुलदस्ता ?

Valentines Day 2024

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’ ‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा. ‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’ ‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’ ‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’ ‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’ ‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

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3. Valentine’s Day 2024 : कुछ कहना था तुम से – 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद ?

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वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

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4. Valentine’s Day 2024 : तीन शब्द – राखी से वो तीन शब्द कहने की हिम्मत क्या जुटा पाया परम ?

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परम आज फिर से कैंटीन की खिड़की के पास बैठा यूनिवर्सिटी कैंपस को निहार रहा था. कैंटीन की गहमागहमी के बीच वह बिलकुल अकेला था. यों तो वह निर्विकार नजर आ रहा था पर उस के मस्तिष्क में विगत घटनाक्रम चलचित्र की तरह आजा रहे थे.

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5. Valentine’s Day 2024 : रूह का स्पंदन – दीक्षा के जीवन की क्या थी हकीकत ?

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शादी के लिए सुदेश और दीक्षा एक रेस्टोरेंट में मिले. दोनों को ही उम्मीद नहीं थी कि वे एकदूसरे की कसौटी पर खरे उतरेंगे. तब तो बिलकुल भी नहीं, जब दीक्षा ने अपने जीवन की हकीकत बताई. लेकिन सुदेश ने जब 5 मिनट दीक्षा का हाथ अपने हाथों में थामा तो नतीजा पल भर में सामने आ गया. आखिर ऐसा…

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6. Valentine’s Day 2024 : साथ साथ – उस दिन कौन सी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ ?

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आपरेशन थियेटर के दरवाजे पर लालबत्ती अब भी जल रही थी और रुखसाना बेगम की नजर लगातार उस पर टिकी थी. पलकें मानो झपकना ही भूल गई थीं, लग रहा था जैसे उसी लालबत्ती की चमक पर उस की जिंदगी रुकी है.

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7. Valentine’s Day 2024 : ऐ दिल संभल जा : रीमा को किस बात की चिंता हो रही थी ?

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रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन  की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

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8. Valentine’s Day 2024 : सायोनारा – उस दिन क्या हुआ था अंजू और देव के बीच ?

रोमांटिक स्टोरी

उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

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9. Valentine’s Day 2024 : सच्चा प्यार – क्या शेखर की कोई गलत मंशा थी ?

वैलेंटाइन डे स्पेशल स्टोरी

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

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10. Valentine’s Day 2024 : तुम्हारा जवाब नहीं – क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला पाया ?

वैलेंटाइन डे स्पेशल स्टोरी हिंदी में

अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’ ‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.

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सहने से नहीं जवाब देने से बनेगी बात

7 फरवरी को पटना के एक एसएचओ सुदामा सिंह पर रेप करने और अश्लील वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने का आरोप लगा है. पीड़ित महिला दारोगा ने थाने में केस दर्ज करा कर बताया कि उस की न्यूड वीडियो बना कर थानेदार उसे ब्लैकमेल करता था.

पीड़ित महिला दरोगा ने आरोप लगाया कि थानेदार सुदामा सिंह उसे प्रताड़ित करता रहता था. अपने आवास पर आने के लिए दबाव बनाता था और धमकी देता था कि उस के कहने के अनुसार काम करो वरना काम में लापरवाही के आरोप में सस्पैंड करवा दूंगा. पीड़ित महिला दरोगा नौकरी बचाने के डर से एक दिन उस के आवास पर चली गई. वहां पर थानेदार ने उस को कौफी पीने को दिया जिस में बेहोशी की दवा मिला दी. जब महिला दरोगा को होश आया तो वह थानेदार के घर पर न्यूड हालत में थी. थानेदार ने अश्लील वीडियो बना लिया और ब्लैकमेल कर शारीरिक संबंध बनाता रहा. इस दौरान वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का गर्भपात भी करवा दिया.

5 फरवरी को शाहजहांपुर में एक युवक ने दहेज के लिए हद पार कर दी. उस ने अपनी पत्नी के अश्लील फोटो और वीडियो वायरल कर दिए. विवाहिता को जब इस का पता चला तो उसे गहरा सदमा लगा. उस की शिकायत पर थाना पुलिस ने सुनवाई नहीं की. बाद में सीओ के आदेश पर 5 आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है.

3 जून, 2023 को लुधियाना में रहने वाली मीनाक्षी (37) ने अपने ससुराल वालों से तंग आ कर जहरीला पदार्थ निगल लिया. इलाज के दौरान उस की मौत हो गई. मीनाक्षी की शादी करीब 5 साल पहले आरोपी बिट्टू वर्मा के साथ हुई थी. आरोपी नशा करने का आदी था और नशे की हालत में मीनाक्षी के साथ मारपीट करता था. इसी से तंग आ कर उस ने खुद को ही खत्म कर लिया.

कुछ महीने पहले पहले देशभर के मीडिया में एक खबर छपी कि यूपी के आगरा में रहने वाली एक 19 साल की लड़की ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस के चचेरे भाई ने घर में ही बाथरूम में नहाते हुए उस का न्यूड वीडियो बना लिया. फिर वीडियो दिखा कर उसे ब्लैकमेल करने लगा. गैरवाजिब डिमांड की और न मानने पर उस वीडियो को इंटरनैट पर डाल देने व वायरल कर देने की धमकी दी.

जाहिर है, छिप कर न्यूड वीडियो लड़के ने बनाया था. ब्लैकमेल लड़का कर रहा था. वीडियो वायरल करने की धमकी लड़का दे रहा था. और इन सब के जवाब में अपनी जिंदगी खत्म कर ली लड़की ने. उस ने अपने घरवालों को सच नहीं बताया. वह पुलिस के पास भी नहीं गई. खुद बचने या लड़के को दंडित करने का प्रयास भी नहीं किया और किसी से मदद भी नहीं मांगी. वह सिर्फ शर्मिंदा हुई और डरी. वह शर्मिंदा हुई वीडियो में दिख रहे अपने नग्न शरीर पर, अपने बदनाम हो जाने के खयाल पर और इन सारी शर्मिंदगियों से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता उसे समझ में आया कि अपनी जिंदगी खत्म कर लो. उस ने यह नहीं सोचा कि अपराधी यानी दोषी लड़के को ही खत्म कर दो या ऐसी कोई सजा दो कि वह किसी और के साथ ऐसा करने के लायक न रहे.

ऐसा ही कुछ अमेरिका के फ्लोरिडा में हुआ. एक स्टौकर ने एक लड़की के न्यूड फोटो इंटरनैट पर वायरल कर दिए. सुबह जब वह सो कर उठी तो देखा कि पूरा सोशल मीडिया उस की नग्न तसवीरों से भरा पड़ा है. उस दिन नई कंपनी में उस की जौइनिंग थी. लड़की पुलिस के पास गई. मगर काफी सारा समय गुजर गया. पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. स्टौकर मजे से घूमता रहा. फिर टैक्नोलौजी की मदद से उस लड़की और उस की जुड़वां बहन ने मिल कर उस स्टौकर को खोज निकाला.

इंटरनैट पर अपनी न्यूड फोटोज देख कर सदमा तो इस लड़की को भी लगा था, दुख भी हुआ था और थोड़ा डर, थोड़ी शर्मिंदगी भी, लेकिन उस ने मरने का रास्ता नहीं चुना. उस ने लड़ने और स्टौकर को सबक सिखाने का रास्ता चुना.

दरअसल नंगा है यह पूरा का पूरा समाज जो लड़कों को ऐसा करने को प्रोत्साहित करता है और लड़कियां फांसी लगा कर या जहर खा कर अपनी जान देती हैं. अश्लील वीडियो बनाने और उसे इंटरनैट पर डालने वाले लड़के सीना चौड़ा कर के घूमते रहते हैं जबकि लड़कियां शर्म से जान दे देती हैं. समाज लड़कियों को सिखाता है कि इज्जत बचा कर रखो लेकिन लड़कों को कोई नहीं सिखाता कि लड़की की इज्जत वे कैसे करें.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी. इस के अनुसार हर दिन 61 और हर 25 मिनट में एक आत्महत्या हुई है. देश में 2020 में हुईं कुल 153,052 आत्महत्याओं में से गृहिणियों की संख्या 14.6 प्रतिशत है और आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है.

यह स्थिति केवल पिछले साल की नहीं है. हर साल कमोबेश यही हालत रही है. रिपोर्ट में इन आत्महत्याओं के लिए ‘पारिवारिक समस्याओं’ या ‘शादी से जुड़े मसलों’ को जिम्मेदार बताया गया है. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस का एक प्रमुख कारण बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा है.

हाल ही में हुए एक सरकारी सर्वे में 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया था कि उन के साथ पतियों ने घरेलू हिंसा की है. ऐसे घरों में महिलाओं का दम घुटता है. महिलाएं बहुत सहनशील होती हैं लेकिन सहने की भी एक सीमा होती है.

दुनिया की कुछ महिलाएं हैं जिन्होंने अपने पति को रूह कंपा देने वाली मौत दी है. जितना उन्हें पति ने सताया उतना ही पति को टौर्चर कर उन्होंने हिसाब बराबर किया.

वर्ष 2000 में कैथरीन ने अपने एक्स हसबैंड जौन चार्ल्स थौमस प्राइस पर कसाई वाले चाकू से 37 बार हमला किया. इस के बाद उस की बौडी से स्किन खरोंच कर अपने लाउंज रूम में लगे मीट हुक में टांग दिया. उस ने मरे हुए हसबैंड के सिर को कुकर में पकाया और सब्जी के साथ बच्चों को परोस दिया. जब वह ऐसा कर रही थी तभी पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया था.

इसी तरह दिसंबर 2008 में आस्ट्रेलिया में रहने वाली रजनी नारायण ने अपने सोते हुए हसबैंड के प्राइवेट पार्ट में पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. अचानक हुए इस अटैक से उस का पति सतीश नारायण घबरा गया और पास रखी स्पिरिट की बोतल अपने ऊपर उड़ेल ली. इस से आग भड़क गई और वह बुरी तरह झुलस गया. हादसे के 20 दिनों के बाद उस की मौत हो गई.

ऐसा ही कुछ लंदन में रहने वाली भारतीय मूल की किरण अहलूवालिया ने किया. 1989 में किरणजीत अहलूवालिया ने अपने पति दीपक के ऊपर कास्टिक सोडा और पैट्रोल का मिक्सचर डाल कर आग लगा दी. किरण का आरोप था कि दीपक उस को काफी टौर्चर करता था. उस के साथ मारपीट करना और हर दिन रेप करना दीपक के लिए आम बात थी. 10 साल तक किरण ने सब बरदाश्त किया. लेकिन फिर सोते हुए दीपक को जिंदा जला दिया. इस हमले के बाद दीपक की मौत हो गई.

दरअसल किरण अहलूवालिया की 1979 में 24 साल की उम्र में अरेंज मैरिज हुई. वह अपने पति दीपक के परिवार के साथ ब्रिटेन में रहने आई तो वह बहुत कम इंग्लिश बोलती थी. दीपक ने उस के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया. वह किरण को धक्का देता, बालों को खींचता, मारता और उस के पैरों पर भारी तवे गिरा देता. उस के साथ गुलामों जैसा व्यवहार करता. पसंद की चीजें न खाने देता. वह उस से इतना डरती थी कि कुछ न कहती. वह रात में सोने से भी बहुत डरती थी क्योंकि दीपक उस से यह कह कर अकसर दुष्कर्म करता रहता कि यह उस का अधिकार है. उसे अपने परिवार से कोई मदद नहीं मिली.

इसी दौरान किरण अहलूवालिया के 2 बेटे हुए जो अकसर हिंसा के गवाह बने. एक रात जब वह दीपक के लिए खाना बनाने के बाद सोने चली गई तो उस ने उसे जगाया और पैसे की मांग की. जब किरण ने इनकार कर दिया तो उस ने किरण की एड़ियां मरोड़ कर तोड़ने की कोशिश की. फिर एक गरम लोहा उठाया और बालों को पकड़ते हुए गरम लोहे को उस के चेहरे पर रख दिया. किरण दर्द से चीख उठी. थोड़ी देर बाद दीपक चैन से सोने चला गया और किरण के मन में दर्द व गुस्से का लावा फूट पड़ा जो उस ने 10 साल से अपने अंदर दबा रखा था.

वह पैट्रोल की एक कैन ले कर उस के पास आई और पति के पैरों पर छिड़क कर आग लगा दी. वह पति को दिखाना चाहती थी कि कितना दर्द होता है. कई बार उस ने भागने की कोशिश भी की थी लेकिन वह उसे पकड़ लेता था और जोर से पीटता भी था. इसलिए किरण ने उस के पैर जलाने का फैसला किया ताकि वह पीछे न भाग सके.

घटना के 5 दिनों बाद दीपक की मृत्यु हो गई और अहलूवालिया पर हत्या का आरोप लगाया गया. उस ने खुद को बेकुसूर बताया लेकिन उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जेल में उस की मुलाकात एक अंगरेज दोस्त से होती है जो उस के साथ सहानुभूति दिखाता है. धीरेधीरे यह मामला एक एनजीओ के सामने आता है जो उस की रिहाई की मांग करता है. यह बात साबित की गई कि जब उस ने अपने पति की हत्या की तो वह गंभीर अवसाद में थी. बाद में हालात पर विचार करते हुए उसे रिहा कर दिया गया.

सच तो यह है कि अत्याचार करने वाले से ज्यादा दोषी अत्याचार सहने वाला होता है. महिलाओं के साथ भी ऐसी ही स्थिति है. इसे बदलना किसी और के नहीं, बल्कि खुद महिलाओं के हाथ में है. हमारी फिल्मों में भी कभीकभी इस विषय को उठाया गया है. ऐसी कुछ फिल्में हैं जिन में महिलाओं ने अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई और लड़ाई लड़ी.

किरण के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘प्रोवोक्ड’ बनाई गई थी. एक एब्यूसिव रिलेशनशिप का अंजाम क्या हो सकता है और चुप्पी रखने का नतीजा क्या होता है, यह सब फिल्म ‘प्रोवोक्ड’ में बखूबी दिखाया गया था. 2006 में रिलीज हुई यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित थी. इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन लीड रोल में थीं. ऐश्वर्या ने ऐसी महिला का किरदार निभाया जिस का पति उसे क्रूरता के साथ टौर्चर करता है और आखिर में वह उस की जान ले लेती है.

तापसी पन्नू स्टारर फिल्म ‘थप्पड़’ में भी दिखाया गया कि घरेलू हिंसा और मारपीट के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है. 2020 में रिलीज हुई इस फिल्म में एक ऐसी महिला की कहानी दिखाई गई जो पति द्वारा हाथ उठाए जाने पर उस के खिलाफ ऐक्शन लेती है और रिश्ता तोड़ लेती है. फिल्म में तापसी पन्नू ने अमृता नाम की एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो एक परफैक्ट पत्नी, बहू और बेटी है. वह कमाल की डांसर भी है और चाहती तो उस में कैरियर भी बना सकती थी. लेकिन घरपरिवार के आगे अमृता खुद को कुरबान कर देती है. वह पति की खुशी में ही खुश होना सीख लेती है. लेकिन जब उस का पति सरेआम उसे जोर का थप्पड़ मारता है तो अमृता की आंखें खुल जाती हैं. जहां उस के परिवार वाले और रिश्तेदार थप्पड़ को भूल कर आगे बढ़ने की सलाह देते हैं वहीं अमृता पति के खिलाफ जाने का फैसला करती है. अमृता किसी भी तरह की घरेलू हिंसा और एब्यूसिव रिलेशनशिप के खिलाफ है और इसलिए उसे एक थप्पड़ से भी आपत्ति होती है.

इसी अवधारणा पर कुछ समय पहले एक वैब सीरीज बनाई गई थी- ‘क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स’. यह वैब सीरीज घरेलू हिंसा का वह भयावह पक्ष दिखाता है कि घरेलू हिंसा क्या हो सकती है और अगर महिला की परिस्थितियों और मानसिक स्थिति पर विचार नहीं किया गया तो उस के साथ कितना घोर अन्याय हो सकता है.

इस वैब सीरीज की कहानी एक ऐसी महिला के इर्दगिर्द घूमती है जो एक रात अपने ‘परफैक्ट’ पति का मर्डर कर देती है और अपना अपराध भी कुबूल कर लेती है. पहली नजर में यह एक सीधासाधा मामला प्रतीत होता है लेकिन जब बचाव पक्ष के वकील केस की तह तक जाते हैं तो असली कहानी सामने आती है. आरोपी महिला के साथ निरंतर यौन और मानसिक शोषण का मामला सामने आता है. इस में महिला की दुविधा, घुटन और दर्द को महसूस किया जा सकता है जो स्थिति की शिकार होने के बावजूद लगातार आंतरिक अपराधबोध से लड़ रही है.

अत्याचार सहना है गलत

चाहे पतिपत्नी हो या फिर गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड, हर रिश्ता आपसी प्यार, विश्वास और इज्जत पर टिका होता है. जब किसी रिश्ते में ये तीनों ही चीजें खत्म हो जाएं तो उसे खत्म कर देना ही बेहतर है क्योंकि ये तीनों चीजें खत्म होते ही रिश्ते में तकरार के साथसाथ मारपीट व गालीगलौज शुरू हो जाती है और रिश्ता जहरीला हो जाता है. बहुत सी महिलाएं घरेलू हिंसा, एब्यूसिव रिलेशनशिप और मारपीट की शिकार होती हैं. जहां कुछ महिलाएं इस के खिलाफ आवाज उठा लेती हैं तो वहीं बहुत सी महिलाएं समाज व परिवार के डर से चुप रह कर जुल्म सहती रहती हैं. अंत में नतीजा भयावह आता है.

औरतें कमजोर नहीं

औरतें कमजोर कैसे हैं? अगर ताकत की बात की जाए तो शारीरिक रूप से औरतें कहीं ज्यादा ताकतवर और मजबूत होती हैं. वे एक बच्चे को अपने पेट में बड़ा करती हैं, 9 महीने तक उसे ले कर हर जगह घूमती हैं और फिर उसे जन्म देती हैं. पुरुष क्या करते हैं? स्त्री तो मन से भी बहुत मजबूत होती है. अगर वह चाहे तो दोचार लड़कों को यों ही पटक दे. मगर वह ऐसा करती नहीं क्योंकि समाज में उसे यह सिखाया जाता है कि वह कमजोर है. उसे पुरुषों, खासकर अपने पति, की पूजा करनी चाहिए. पति परमेश्वर है. उसे अपशब्द नहीं बोलना है. उस का विरोध नहीं करना है. वह जो कहे वैसा करना है.

इसी वजह से वह पति के आगे कुछ बोलती नहीं. पति मारपीट सकता है. हिंसा कर सकता है. मगर सोचने वाली बात है कि अगर कोई स्त्री किसी पुरुष की पत्नी है और साथ रहती है तो क्या उस के पास ऐसे मौकों की कमी है जब वह पुरुष को उस के किए की सजा दे सके या उसे मजा चखा सके. अगर किसी पुरुष या पति ने सालों से परेशान कर रखा है तो ऐसे में क्या पत्नी के पास इतना मौका नहीं कि वह सोए हुए पति का सिर फोड़ दे या उस के खाने में कुछ डाल दे.

जो स्त्री जिंदगीभर प्रताड़ना सहती है उसे पता होना चाहिए कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब वह पति द्वारा खत्म कर दी जाएगी. पति उसे जान से मार सकता है तो क्या स्त्री के पास यह हक नहीं कि वह ऐसे पति की जान ले कर अपना पीछा छुड़ाए और अपनी जान बचाए. यह एक तरह से सैल्फ डिफैंस ही है क्योंकि अगर वह पति की जान नहीं लेगी तो उस की खुद की जान जाएगी.

स्त्रियां खुद ही स्त्रियों की दुश्मन भी होती हैं. एक सास अपने बेटे को पत्नी के खिलाफ भड़काती है. खुद भी उस के साथ नाइंसाफी ही करती है. गालीगलौज करती है और उसे प्रताड़ित करती है. सास को समझना चाहिए कि कल को जब वह बूढ़ी और कमजोर होगी तब उसे बहू के आसरे ही रहना है. अगर वह बहू के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेगी तो कल को उस के साथ भी बुरा ही होगा.

इसी तरह पुरुष सोचते हैं कि स्त्री को दबा कर रखो, मारपीट करो. लेकिन पुरुष को यह समझना होगा कि अगर कोई उस की देखभाल और उस का खयाल रख सकता है तो वह उस की पत्नी ही है. कभी वह बीमार पड़ा या उस के साथ कुछ गलत हुआ, वह अपंग हो गया तो हर स्थिति में स्त्री ही उस का साथ देगी. अगर वह स्त्री के साथ खराब व्यवहार कर रहा है तो इस का नतीजा भी उसे खुद ही भोगना होगा. स्त्री समाज का गठन करती है. परिवार को बनाती है. स्त्री को नीचा या कमजोर समझना समाज की सब से बड़ी भूल है.

Valentine’s Day 2024 : अगर आपको भी लेना है अपने पार्टनर का ‘लव टेस्ट’, तो अपनाएं ये 7 प्वाइंट्स

अनूप को अक्सर घर काटने को दौड़ता..पत्नी  पराई पराई सी लगती.मन करता,घर से कहीं बाहर निकल जाए और सड़कों पर तब तक घूमता रहे,जब तक थक कर टूट न जाए.  फिर घर लौटकर गहरी नींद सो जाए,ताकि उसकी पत्नी की ऊँचा बोलने की आवाज़  उसे सुनाई ही   न दे. उसे लगता उसकी अपनी पत्नी  ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है,जिसने सुख शांति छीन ली है.

असल में रिश्तों की मजबूती की नींव प्यार, विश्वास, सम्मान और आत्मसमर्पण से मजबूत होती है. इनमें से किसी भी एक भावना की कमी आपके रिश्ते की इमारत को कमजोर और जर्जर बना सकती है. कई बार रिश्तों में आई परेशानियों को हम अनदेखा या नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ऐसा करना आपकी सबसे बड़ी गलती हो सकती है. क्योंकि रिश्ता दो लोगों के साथ चलने से ही खूबसूरत बनता है. अगर आपको भी अपने रिश्ते में ये 7 बातें नजर आ रही हैं तो मान लीजिए कि आपके रिश्ते में कुछ गड़बड़ है.

अपनी पसंद थोपने की कोशिश

रिश्ते में एक दूसरे के फैसलों का सम्मान करना जरूरी होता है. अगर आपका साथी अक्सर अपनी पसंद आप पर थोपने की कोशिश करता है या फिर आपके निर्णयों को प्रभावित करने का प्रयास करता है तो यह खतरे की घंटी जैसा है.

इमोशनल सपोर्ट का अभाव

दो लोगों के रिश्ते में सबसे जरूरी है इमोशन यानी भावनाएं. अगर आपका साथी आपकी भावनाओं को न ही समझता है और न ही उनका सम्मान करता है तो आपको अपने रिश्ते पर फिर से गौर करने की जरूरत है. क्योंकि जब बार-बार ऐसा व्यवहार होता है तो रिश्ते में भावनाएं खत्म हो जाती हैं और दूरियां खुद-ब-खुद आने लगती हैं.

एक दूसरे पर विश्वास जरूरी

विश्वास आपके रिश्ते की नींव है. जिस रिश्ते में साथी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते, उसमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है. एक दूसरे पर शक करना आपके रिश्ते को कमजोर बना देता है. ऐसा रिश्ता समझौते के जैसा हो जाता है. इसलिए एक दूसरे पर विश्वास करना जरूरी है.

बातचीत से निकलेगा हल

पार्टनर्स के बीच की बातचीत रिश्ते को मजबूत और पारदर्शी बनाती है. दो लोगों के बीच संवाद किसी पुल का काम करता है. यह आपको आपस में जोड़ता है. जब यह पुल टूटता है या कमजोर होता है तो रिश्तों में दूरी आने लगती है. एक दूसरे की भावनाएं साझा नहीं हो पातीं और रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है. इसलिए अपनी मन की बातें एक दूसरे से जरूर करें.

सम्मान के बिना, सब बेईमानी

सम्मान आपके रिश्ते को न सिर्फ मजबूती देता है, बल्कि यह पार्टनर की नजरों में आपका महत्व भी बढ़ा देता है. सम्मान के बिना प्यार की बातें  बेईमानी हैं. जब आप अपने साथी का सम्मान करते हैं तो एक तरह से उसे यह भी बताते हैं कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं. इसकी कमी रिश्ते के खोखलेपन दिखाता है.

अतीत में उलझे रहना 

‘मैं तुम्हारे अतीत को जानता हूं, इसलिए बोल रहा हूं’,‘आपने पहले भी ऐसा किया था’, ‘कहीं आप पहले की तरह तो नहीं कर रहे’, अक्सर पार्टनर्स रिश्तों में ऐसी बातें करते हैं. लेकिन अतीत में उलझे रहने से आपका आज का रिश्ता कमजोर हो सकता है. अगर आपका पार्टनर अक्सर आपको आपके अतीत को लेकर टोकता है या आपके अतीत के अनुसार आपको जज करता है तो रिश्ते में जुड़ाव की कमी हो सकती है.

आलोचना है असहनीय

अपने पार्टनर की बात-बात पर आलोचना करना, दूसरों को उसकी कमी बताना, आपको भले ही मजाक लगे, लेकिन यह आपके साथी को अंदर से तोड़ देता है. यह न सिर्फ उन्हें मानसिक रूप से परेशान करता है, बल्कि उनके काॅन्फिडेंस को भी तार-तार कर देता है. ऐसी आलोचनाएं आपके रिश्ते के लिए आत्मघाती साबित हो सकती हैं.

परीक्षा से पहले सोना क्यों है जरूरी, जानें एक्सपर्ट से

Sleeping Before Exam Benefits : बोर्ड के एग्जाम नजदीक है ऐसे में “बच्चों को एग्जाम की चिंता और नींद का गहरा संबंध होता है क्योंकि एग्जाम में अच्छे नंबर के दबाव में सोने के पैटर्न पर बड़ा असर हो सकता है.

डॉ. श्रद्धा मलिक – मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एथेना बिहेवियरल हेल्थ की सीईओ का कहना है कि एग्जाम से जुड़ी गहरी चिंता और मानसिक दबाव के कारण टेंशन हॉर्मोन्स जैसे कॉर्टिसोल के स्तर में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे सामान्य सोने-जागने की चक्र को बिगाड़ा जा सकता है. सोने की गुणवत्ता रेसिंग थॉट्स, बेचैनी, और प्रत्याशीता चिंता के कारण प्रभावित हो सकती है? बहुत अधिक एग्जाम की चिंता से कम और लंबे समय तक सोने में डिस्टर्बेंस हो सकता है.

केस स्टडीज ने दिखाया है कि हाई लेबल (उच्च स्तर) के एग्जाम से जुड़े तनाव में होने वाले छात्रों को अक्सर सोने में कठिनाई, बार-बार जागना से सोने की समस्या हो सकती है. यह न केवल उनके तत्कालीन प्रदर्शन को प्रभावित करता है बल्कि बढ़ते हुए तनाव और कमजोर एकेडेमिक रिजल्ट (अकादमिक परिणामों) के चक्र में योगदान कर सकता है.

स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक (तनाव प्रबंधन तकनीकों) को लागू करना, एक सुहावने सोने का माहौल बनाना, और संतुलित जीवनशैली को बनाए रखना, परीक्षा की चिंता के सोने पर प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे चुनौतीपूर्ण अकादमिक दौरों में समग्र कल्याण को बढ़ावा मिल सकता है.

जबकि अधिकांश छात्रों की सोने की कमी से शिकायत है, विद्यार्थियों में हाई स्कूल के छात्रों को अधिक असुविधा महसूस होती है. इसके पीछे के संभावित कारण क्या हो सकते हैं? जानते है.

उच्च स्कूल के छात्र सोने की कमी के कई कारणों से बढ़ी हुई असुविधा महसूस कर सकते हैं. पहली बात तो, उच्च स्कूल में शैक्षणिक दबाव बढ़ता है, जिसमें कठिन पाठ्यक्रम, परीक्षाएँ, और कॉलेज की तैयारी उनके तनाव को और बढ़ा सकते हैं. इसके अलावा, अतिरिक्त गतिविधियों, पार्ट-टाइम नौकरियों, और सामाजिक वचनों के कारण उनका समय पर्याप्त आराम के लिए सीमित हो जाता है. इसके अलावा, किशोरावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन सोने के पैटर्न को विघटित कर सकते हैं.

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज का उपयोग – 

उच्च स्कूल के छात्रों के बीच इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज का उपयोग बढ़ता जा रहा है, खासकर सोने से पहले, जो उनके सोने की गुणवत्ता को नकारात्मक प्रभावित कर सकता है. अनियमित सोने की अनुसूचित गतिविधियाँ, स्कूल की शुरुआत के समय, और सामान्यत: व्यस्त जीवनशैली इस समस्या को बढ़ा सकती हैं. इस समस्या को कम करने के लिए स्वस्थ नींद की आदतें प्रोत्साहित करके, स्कूल की अनुसूचितियों को समायोजित करके, और एक समर्थनसूचक वातावरण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.

परीक्षा के दौरान नींद की कमी का बच्चों पर असर –

परीक्षा के दौरान नींद की कमी बच्चों के मानसिक क्षमताओं पर काफी बड़ा प्रभाव डाल सकती है. शारीरिक रूप से, नींद की कमी थकान, कमजोर इम्यून सिस्टम, और बढ़ी हुई रोग प्रतिरोधशक्ति की ओर बढ़ सकती है. मानसिक रूप से, यह ध्यान, स्मृति, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है. परीक्षा की अवधि में नींद की चरम कमी अधिकतम तनाव और चिंता के स्तरों में वृद्धि कर सकती है, जिससे दबावों का समृद्धि के दिशा में बढ़ सकता है, जो स्थायी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे अवसाद की ओर जाने की संभावना है.
शारीरिक रूप से, अधूरी नींद से सिरदर्द, चक्कर, और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता में कमी हो सकती है. मानसिक रूप से बच्चे जानकारी रखने में कठिनाई, समस्याएँ हल करने की क्षमता में कमी, और बढ़ा हुआ चिढ़चिढ़ापन महसूस कर सकते हैं. दीर्घकालिक नींद की कमी एक बच्चे की भावनात्मक सहनशीलता को प्रभावित कर सकती है.

उदाहरण के लिए, परीक्षा के लिए रात भर जागकर पढ़ाई करने वाला छात्र मानसिक थकान और उच्च तनाव के कारण परीक्षा के दौरान ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस कर सकता है, जिससे उसके अकादमिक प्रदर्शन में कमी हो सकती है.

बच्चों के लिए डोज़ :

1. एक स्टडी शेड्यूल बनाएं: सभी विषयों को धीरे-धीरे कवर करने के लिए एक वास्तविक और व्यवस्थित स्टडी रूटीन बनाएं.
2. स्वस्थ आहार और पर्याप्त नींद: ध्यान और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए संतुलित आहार और पर्याप्त नींद सुनिश्चित करें.
3. नियमित ब्रेक्स: पढ़ाई के सत्रों के दौरान बर्नआउट से बचने और ध्यान बनाए रखने के लिए छोटे-छोटे रेस्ट लेछोटी छुटियाँ शामिल करें.
4. हाइड्रेटेड रहें: जागरूकता को समर्थन करने और चेतावनी बनाए रखने के लिए हाइड्रेटेड रहें.
5. विषयों को प्राथमिकता दें: कमजोर विषयों पर ध्यान केंद्रित करें, लेकिन स्ट्रांग विषयों को भी दोहराएं.
6. पिछले पेपर्स के साथ अभ्यास करें: बेहतर तैयारी के लिए पिछले पेपर्स को हल करके परीक्षा के स्वरूप से परिचित हो जाएं.
7. सकारात्मक रहें: सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें, अपनी क्षमताओं में विश्वास करें, और आत्मसंदेह से बचें.

बच्चों के लिए डोन्ट्स :

1. क्रैमिंग से बचें: अंतिम क्षण की क्रैमिंग से दूर रहें; यह अप्रभावी और तनावपूर्ण होता है.
2. ध्यान को सीमित करें: पढ़ाई के समय इलेक्ट्रॉनिक विघटन, जैसे कि सोशल मीडिया या अत्यधिक टीवी, को कम से कम रखें.
3. टालमटोल से बचें: तनाव से बचने के लिए पहले से ही में ही तैयारी शुरू करें.

मेरे पति रात को मेरे साथ बुरा बुर्ताव करते हैं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 38 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति रात को बिस्तर पर बहुत ज्यादा जंगली हो जाते हैं. वे मुझे सैक्स खिलौना समझ कर खेलते हैं और सैक्स को मजा नहीं, बल्कि सजा बना देते हैं. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं ?

जवाब

इस में कोई शक नहीं कि इस तरह का सैक्स, जैसा कि आप के पति करते हैं, बेहद तकलीफदेह और दहशतजदा हो जाता है. उस में मजा ढूंढ़ना सोने के हिरन को ढूंढ़ने जैसी बात होती है.

आप अपने पति को प्यार से समझाएं कि वह बिस्तर में जानवरों की तरह नहीं, बल्कि आदमियों की तरह पेश आए. उसे अपनी परेशानी बताएं कि इस तरह का सैक्स कोई मजा नहीं देता. इस पर भी वह बाज न आए, तो किसी माहिर डाक्टर से मशवरा लें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

अगर आप भी कर रहे हैं सेरोगेसी का प्लान, तो पहले जानें ये नियम

आज विज्ञान लगातार नएनए आविष्कार कर रहा है. कुछ सालों पहले जो हमारी कल्पना से परे था आज के इस दौर में वो सब विज्ञान की बदौलत मुमकिन हो रहा है. यह कुछ लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है तो कुछ इस का नाजायज फायदा उठा रहे हैं.

सेरोगेसी भी एक ऐसी ही खोज है जिस के जरिए आज बांझ महिला भी मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है. आजकल कम उम्र में ही महिलाओं को गंभीर बीमारियां- ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स कैंसर या बच्चेदानी में खराबी जैसी कई परेशानियां हो जाती है. कई बार वे ऐसी बीमारियों से तो उभर जाती हैं लेकिन उन की मां बनने की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है.

आमतौर पर सेरोगेसी को किराए की कोख के नाम से भी जाना जाता है. जो लोग  मातापिता बनने के सुख से वंचित रह जाते हैं वे इस के जरिए संतानप्राप्ति का सुख पा सकते हैं. इस प्रक्रिया में महिला किसी अन्य कपल के बच्चे को अपने कोख में पालती है और उसे जन्म देती है. इसी प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे को सेरोगेट बेबी कहते हैं और जन्म देने वाली महिला को सरोगेट मां कहा जाता है.

ट्रेडिशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर ही बायोलौजिकल मदर होती है. इस में पिता का स्पर्म और सेरोगेट मदर के एग को मिलाया जाता है. फिर, डाक्टर कृत्रिम तरीके से इसे सेरोगेट महिला के गर्भाशय में डाल देते हैं. इस से जन्मे बच्चे का बायोलौजिकल रिश्ता पिता से होता है लेकिन यदि स्पर्म डोनर का प्रयोग किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता.

जेस्टेशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर का एग इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए बच्चे से उस का बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता. इस में संतान चाहने वाले पुरुष और महिला के स्पर्म व एग को टैस्ट-ट्यूब तरीके से मिला कर भ्रूण तैयार किया जाता है और उसे कृत्रिम तरीके से सेरोगेट मदर के गर्भाशय में डाला जाता है. इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का संबंध कपल से होता है. अब आते हैं इस की नियमावली पर.

सेरोगेसी मातृत्व सुख पाने के लिए वरदान है लेकिन समाज के कुछ वर्गों को यह रास नहीं आया तो कुछ लोगों ने इस का गलत फायदा भी उठाया. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए कि दंपती ने बच्चे को अपनाया नहीं या सेरोगेट मां ने ही बच्चे को देने से इनकार कर दिया. वहीं, कुछ कपल्स बौडी खराब होने से बचने के लिए सेरोगेसी का सहारा लेने लगे. पहले से बच्चे होने के बाद भी सेरोगेसी से बच्चे किए.

इन वजहों से सख्ती करने का फैसला हुआ और कैबिनेट ने सेरोगेसी पर 2022  में कानून बना दिया जिस के चलते दिल्ली में सेरोगेसी के लिए उपराज्यपाल औफिस ने सभी 11 जिलों में मैडिकल बोर्ड बनाने की मंजूरी दे दी है. कानून के बनने से जरूरतमंद कपल्स को अब काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस के लिए 5 तरह के प्रमाण की जरूरत है. सेरोगेसी का सहारा लेने वाले कपल के पास प्रमाण होना चाहिए कि वे मातापिता नहीं बन सकते.

मातापिता बनने कि चाह रखने वाली महिला की उम्र 50 से कम और पुरुष की उम्र 55 से कम होनी चाहिए. पहले से जीवित बच्चा नहीं हो या जीवित बच्चा किसी गंभीर जानलेवा बीमारी से पीड़ित हो तभी यह सर्टिफिकेट मिलेगा. यदि पहले से कोई बच्चा अडौप्ट किया हुआ है तो वह कपल सेरोगेसी का सहारा नहीं ले सकता.

वहीं, सरोगेट बनने वाली महिला फिजिकली फिट हो, उम्र 25 से 35 के बीच हो, पति भी इस के लिए तैयार हो और पहले नौर्मल डिलीवरी हुई हो और 3 बार से ज्यादा मां न बनी हो. सेरोगेट बनने वाली महिला का हौस्पिटल का खर्च, मैडिसिन, फूड, ट्रैवल आदि का खर्च कपल्स को ही उठाना पड़ेगा और किसी प्रकार का लेनदेन अमान्य है.

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