गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया है. गुजरात के इतिहास में लोकसभा चुनावों में पहली बार ऐसा हुआ है. सूरत लोकसभा सीट पर 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. भाजपा के मुकेश दलाल, बसपा के प्यारेलाल और कांग्रेस के नीलेश कुंभाणी के अलावा 7 प्रत्याशी निर्दलीय थे. इन में सुरेश पडसाला नीलेश कुंभाणी के डमी प्रत्याशी थे. सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी के प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों को ले कर विवाद था. चुनाव आयोग ने जब प्रस्तावक बुलाने को कहा तो प्रस्तावक गुम हो गए. उस के बाद चुनाव आयोग ने सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी के नामांकनपत्र रद्द कर दिए.

कांग्रेस के प्रत्याषी सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी का नामांकन रद होने के बाद बसपा के प्यारेलाल सहित दूसरे निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपने नामांकन वापस ले लिए. इस के बाद बचे मुकेश दलाल को चुनाव आयोग ने विजयी घोषित कर दिया. निर्दलीय उम्मीदवार बड़ी संख्या में चुनाव लड़ते हैं, इस के बाद भी चुनाव जीत नहीं पाते हैं. उस की वजहें हैं, चुनावों में पार्टीतंत्र का हावी होना, चुनावीखर्च बडा होना, निर्दलीय प्रत्याशी को चुनावचिन्ह देर से आंवटित करना आदि. जनता प्रत्याशी की जगह पार्टी का चुनावचिन्ह को देख कर वोट देती है. ऐसे में काबिल से काबिल प्रत्याशी भी चुनाव नहीं जीत पाता. यह लोकतंत्र के लिए घातक तो होता ही है, संविधान की भावना का भी हनन है जिस में उस ने निर्दलीय को बराबर का हक दिया है.

घटती जा रही निर्दलीय सांसदों की संख्या:

देश में पहली बार लोकसभा चुनाव 1952 में हुए थे. पहले आम चुनाव में कुल 37 निर्दलीय सांसद चुन कर लोकसभा पहुंचे थे. 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ कर 42 हो गई. 1962 के तीसरे लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या में कमी आई. इस चुनाव में कुल 20 निर्दलीय प्रत्याशी ही सांसद बने. 1967 के चौथे लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या 35 हो गई. 1971 के लोकसभा चुनाव एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या घट कर सिर्फ 14 हो गई.

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