इस में कोई शक नहीं कि मैट्रो ट्रेन हम सभी की जिंदगी को आसान बनाने में अतुलनीय योगदान दे रही है.  छात्रों का स्कूलकालेज आनाजाना, नौकरीपेशा लोगों का अपनेअपने दफ्तरों में आनाजाना बहुत ही आसान हो गया है. अकसर स्कूलकालेज व दफ्तरों में जाने वाले यात्रियों को समय से पहुंचने की जल्दी में बहुत भीड़ हो जाती है. भीड़ तो ठीक है मगर आजकल मोबाइल का चलतेचलते उपयोग करने का फैशन सा हो गया है. हरकोई मोबाइल में इतना व्यस्त रहता है कि उसे आसपास की गतिविधियों से कोई मतलब ही नहीं रहता, फिर चाहे कोई धक्का दे कर ही क्यों न निकल जाए.
मैट्रो के अंदर सीढ़ियों पर चढ़तेउतरते हर वक्त मोबाइल पर ही नजरें गड़ी रहती हैं जैसे इन्होंने मोबाइल बंद किया तो भूचाल आ जाएगा, धरती फट जाएगी, आसमान गिर जाएगा.  मैं भी एक दिन मैट्रो में सफर करने के इरादे से टोकन ले कर, सुरक्षा जांच कराते हुए प्लेटफौर्म पर जा पहुंचा. प्लेटफौर्म पर यात्रियों का झुंड देख कर एक बार तो मैं बुरी तरह घबरा उठा. लंबीलंबी पंक्तियों में खड़े हो कर मैट्रो आने का इंतजार करती भीड़ में मैं भी शामिल हो गया. कुछ ही देर में मैट्रो प्लेटफौर्म पर आ गई. लोगों को अंदर घुस कर सीट पाने की ऐसी  विकट लालसा मैं ने पहली बार देखी. मैट्रो से उतरने वाले यात्रियों को भी धकियाते हुए भीड़ अंदर वापस ले गई. कुछ लोग बड़बड़ाने लगे कि कैसे जाहिल लोग हैं, मैट्रो में भी सफर करना नहीं आता. पहले लोगों को उतरने देना चाहिए.
जैसेतैसे मैं भी पंक्ति में शामिल होने में सफल रहा. भीड़ स्टेशन दर स्टेशन बढ़ती ही जा रही थी.  लोग उतरते कम और चढ़ते ज्यादा रहे. मैट्रो में पैर तक रखने की जगह नहीं बची थी और यात्रियों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी.
एक स्टेशन पर मैट्रो रुकी तो भीड़ का ऐसा रैला आया जैसे सुनामी में अथाह पानी सबकुछ तहसनहस कर के आगे बढ़ता जाता है. मैट्रो के गेट तक बंद नहीं हो पा रहे थे. बारबार उद्घोषणा हो रही थी कि कृपया गेट खाली कर दें व मैट्रो को चलने दें, मगर एक बार जो मैट्रो में आ जाए वह एक कदम बाहर नहीं रखना चाह रहा था बल्कि अपने कदमों को अंदर की ओर ले जाने की कोशिश में न जाने कितने लोगों के जूतों को रौंदते हुए अंदर बढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहा था. खैर, मैट्रो की सुरक्षा सेवा के कर्मचारियों ने कुछ लोगों को बाहर निकाल कर मैट्रो को चलवाया. मगर मैं उन लोगों को सैल्यूट करना चाहता हूं जो इतनी भीड़ में भी कंधों पर बोरे जैसा भारी बैग लिए और हाथों में मोबाइल को पकड़ कर अपना मनपसंद संगीत या फिल्म देखने की हिम्मत रखे हुए खुद को गिरने से संभाले हुए लेकिन दूसरे यात्रियों पर गिरतेपड़ते खड़े थे.
यात्रियों में आपस में गरमागरमी, कहासुनी का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था. पंक्तियों में खड़े लोग कभी बैठे हुए यात्रियों के ऊपर गिरते तो कभी वापस पीछे खड़े लोगों पर. इतनी भीड़ में एक शख्स पिट्ठू बैग कमर पर टिकाए हुए मोबाइल में गेम खेलने में मस्त भीड़ से बेखबर खड़ा था. जाहिर है, जब मोबाइल पर कुछ देखते हैं तो आंखों व मोबाइल के बीच में कुछ दूरी बनानी होती है जिस से आसानी से मोबाइल की स्क्रीन पर कुछ देखा जा सके, तो वह शख्स भी यही कर रहा था. किसी ने थोड़ा उसे धकियाया तो वह बैठे हुए यात्रियों के ऊपर झुक गया और गिरने से पहले ही उस के सामने बैठे यात्री ने वापस धक्का उसे दिया तो वह पीछे खड़े यात्री पर जा गिरा। वह चिल्लाया कि अरे भाई, जरा पीछे देख कर गिरो. तभी दूसरे यात्री ने कहा कि भाई, अपना मोबाइल बंद कर लो और खुद भी ठीक से खड़ा हो कर दूसरों को भी खड़ा रहने दो.
मगर वह ढीठ चिल्लाया कि आप को क्या प्रौब्लम है? मैं आप के ऊपर तो गिरा नहीं हूं न... उस की इस बात पर और कई यात्रियों को गुस्सा आया और कहा कि भाई, इतनी भीड़ है और तुम एक तो बैग कंधों पर टिकाए हुए हो जिस से पहले ही दूसरे लोगों को परेशानी हो रही है और उस पर मोबाइल पर गेम खेल कर अपने सहयात्रियों को तंग किए जा रहे हो और हम समझा रहे हैं तो उलटा लोगों को धमका रहे हो.
अपने खिलाफ काफी लोगों को बोलते देख कर वह थोड़ा सा सहमा मगर मोबाइल बंद नहीं किय. तभी किसी ने शरारत की और भीड़ को धक्का दे कर हंगामा बढ़ा दिया. खुद को संभालतेसंभालते लोगों ने अपने गुस्से को चरम सीमा तक बढ़ा दिया और एकदूसरे को असभ्य तरीके से बोलतेबोलते खुद को संभालने लगे. तभी उस यात्री को, जिस की वजह से यह सब हंगामा हुआ था नीचे झुक कर कुछ ढूंढ़ते हुए देखने लगा. वह बड़ी बेचैनी से घबराया हुआ सा बोले जा रहा था कि मेरा मोबाइल नीचे गिर गया है. तभी किसी ने चुटकी ली कि जब समझा रहे थे तो अकड़ दिखा रहा था अब मिल गया न मजा. इस पर वह बौखला कर बदतमीजी पर उतर आया.
अन्य यात्रियों ने कहा कि अरे, इस की इतनी बदतमीजियां क्यों सुन रहे हो. इसे उतारो अगले स्टेशन पर और सबक सिखाओ. इस बार भीड़ के भयंकर गुस्से व परिणाम को भांपते हुए वह थोड़ा नरम पड़ा और चुप हो कर अपने मोबाइल को ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. लेकिन भीड़ अपना मन उस की मालिश करने का बना चुकी थी. मगर उस की किस्मत अच्छी थी कि अगला स्टेशन आ गया. स्टेशन आते ही वह फिर से अपने मोबाइल ढूंढ़ने की कोशिश करने का बहाना बनाते हुए राकेट की गति से ट्रेन से बाहर निकल कर पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया. इस तरह से एक अंतहीन, दुखद एवं कष्टकारी जैसे दिखने वाली यात्रा का सुखद अंत होने पर सभी यात्रियों ने चैन की सुखद सांस ली. मैट्रो का पहली यात्रा मेरे लिए एक यादगार बन गई और एक सबक दे गई कि चलते हुए या सफर करते हुए मोबाइल का उपयोग कभी भी कहीं भी दुर्घटना का शिकार बना सकता है.

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