कनछेदी लाल को 'बजट' का बड़ा इंतजार था.दो-तीन दिनों  से कन छेदीलाल की कसमसाहट बढ़ गई थी. कभी इधर होता, कभी उधर होता, कभी आंखें बंद कर सोच में डूब जाता, कभी आंखें गोल गोल घुमाने लगता.उसकी दयनीय हालत देखकर श्रीमतीजी से रहा नहीं गया, वह बोल पड़ी -"स्वामी  ! क्या बात है किसका इंतजार है जो तुम्हारी स्थिति  बद से कुछ बदतर दिखाई दे रही है."

कनछेदी लाल सयंत होकर बोले-" हमारी सरकार बजट ला रही है, बस... बजट की कल्पना करके मैं इस हालात को प्राप्त कर रहा हूं."

श्रीमती जी ने कहा- "आप भी न ! दुनिया के अजीब प्राणी हो आपको बजट से क्या लेना और क्या देना. बजट तो हर साल आता है और कुछ न कुछ बोझ डाल कर चला जाता है. समझदार आदमी को इस बजट के सोच में नहीं पड़ना चाहिए."

कनछेदी लाल ने पत्नी की ओर देखा फिर  मुस्कुराते हुए कहा-" मगर अब के हालात बिल्कुल नए हैं. हमारे प्रधानमंत्री अभी फुल पावर में है,देखना बजट ऐसा गुल खिलाएगा कि तुम खुशी से उछल चल पड़ोगी ...."

श्रीमती कनछेदीलाल की बातें सुनकर गंभीर मुद्रा में आ गई-"स्वामी! क्या आप सही कह रहे हैं."

कनछेदी लाल- "मैं इसलिए तो सोच में डूबा हुआ हूं. मैं सोच रहा हूं एक तरफ तो हमारी सरकार तीन दशक होते-होते अब जाकर मजबूत सरकार बन कर आई है. तो हमें बजट में लाभ ही लाभ देगी, सच कहूं, फिर सोचता हूं कहीं ऐसा नहीं हुआ तो ! कहीं फिर  दुबले पर दो आषाण वाली कहावत तो सिद्ध नहीं हो जाएगी ."

श्रीमती जी ने गहरी सांस लेकर कहा- "तो ऐसा कहो न, यानी मैं सही थी, इसलिए आप के हालात ऐसे हो चले हैं."

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