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दुकान और औरत

रमेश ने झगड़ालू और दबंग पत्नी से आपसी कलह के चलते दुखी जिंदगी देने वाला तलाक रूपी जहर पी लिया था. अगर चंद्रमणि उस की मां की सेवा करने की आदत बना लेती, तो वह उस का हर सितम हंसतेहंसते सह लेता, मगर अब उस से अपनी मां की बेइज्जती सहन नहीं होती थी.

ऐसी पत्नी का क्या करना, जो अपना ज्यादातर समय टैलीविजन देखने या मोबाइल फोन पर अपने घर वालों या सखीसहेलियों के साथ गुजारे और घर के सारे काम रमेश की बूढ़ी मां को करने पड़ें? बारबार समझाने पर भी चंद्रमणि नहीं मानी, उलटे रमेश पर गुर्राते हुए मां का ही कुसूर निकालने लगती, तो उस ने यह कठोर फैसला ले लिया.

चंद्रमणि तलाक पाने के लिए अदालत में तो खड़ी हो गई, मगर उस ने अपनी गलतियों पर गौर करना भी मुनासिब नहीं समझा. इस तरह रमेश ने तकरीबन 6 लाख रुपए गंवा कर अकेलापन भोगने के लिए तलाक रूपी शाप झेल लिया. ऐसा नहीं था कि चंद्रमणि से तलाक ले कर रमेश सुखी था. खूबसूरत सांचे में ढली गदराए बदन वाली चंद्रमणि उसे अब भी तनहा रातों में बहुत याद आती थी, लेकिन मां के सामने वह अपना दर्द कभी जाहिर नहीं करता था. लिहाजा, उस ने अपना मन अपनी दुकानदारी में पूरी तरह लगा लिया. रमेश मन लगा कर अपने जनरल स्टोर में 16-16 घंटे काम करने लगा… काम खूब चलने लगा. रुपया बरस रहा था. अब वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान खोलना चाहता था.

रविवार का दिन था. रमेश अपने कमरे में बैठा कुछ हिसाबकिताब लगा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा. फोन उठाते ही किसी अजनबी औरत की बेहद मीठी आवाज सुनाई दी. रमेश का मन रोमांटिक सा हो गया. उस ने पूछा, तो दूसरी तरफ से घबराई झिझकती आवाज में बताया गया कि उस औरत की 5 साला बेटी से गलती हो गई. माफी मांगी गई. ‘‘अरेअरे, इस में गलती की कोई बात नहीं. बच्चे तो शरारती होते ही हैं. बड़ी प्यारी बच्ची है आप की. इस के पापा घर में ही हैं क्या?’’ रमेश ने पूछा, तो दूसरी तरफ खामोशी छा गई.

रमेश ने फिर पूछा, तो उस औरत ने बताया कि उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया है.

‘‘ऐसा क्यों किया? यह तो आप ने गलत कदम उठाया. घर उजाड़ने में समय नहीं लगता, पर बसाने में जमाने लग जाते हैं. आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

‘‘आप को अपनी गलती सुधारनी चाहिए और अपने पति के घर लौट जाना चाहिए,’’ रमेश ने बिना मांगे ही उस औरत को उपदेश दे दिया.

औरत ने दुखी मन से बताया, ‘ऐसा करना बहुत जरूरी हो गया था. अगर मैं ऐसा न करती, तो वह जालिम हम मांबेटी को मार ही डालता.’

‘‘देखो, घर में छोटेमोटे मनमुटाव होते रहते हैं. मिलबैठ कर समझौता कर लेना चाहिए. एक बार घर की गाड़ी पटरी से उतर गई, तो बहुत मुश्किल हो जाता है.

‘‘तुम्हारा अपने घर लौट जाना बेहद जरूरी है. लौट आओ वापस. बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा,’’ रमेश ने रास्ते से भटकी हुई उस औरत को समझाने की भरपूर कोशिश की, पर उस का यह उपदेश सुन कर वह औरत मानो गरज उठी, ‘जो आदमी अपराध कर के बारबार जेल जाता रहता है. जब वह जेल से बाहर आता है, तो मेहनतमजदूरी के कमाए रुपए छीन कर फिर नशे में अपराध कर के जेल चला जाता है, तो हम उस राक्षस के पास मरने के लिए रहतीं?

‘अगर तुम अब यही उपदेश देते हो, तो तुम ही हम मांबेटी को उस जालिम के पास छोड़ आओ. हम तैयार हैं,’ उस परेशान औरत ने अपना दर्द बता कर रमेश को लाजवाब कर दिया. यह सुन कर रमेश को सदमा सा लगा. वह सोच रहा था कि जवान औरत अपनी मासूम बेटी के साथ अकेले बेरोजगारी की हालत में अपनी जिंदगी कैसे बिताएगी? यकीनन, ऐसे मजबूर इनसान की जरूर मदद करनी चाहिए. वैसे भी रमेश को औरतों के सामान वाले जनरल स्टोर पर किसी औरत को रखना था, तभी तो वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान कर पाएगा. अगर यह मीठा बोलने वाली औरत ऐसे ही दुकान पर ग्राहकों से मीठीमीठी बातें करेगी, तो दुकान जरूर चल सकती है.

रमेश ने उस से पूछा, ‘‘क्या आप पढ़ीलिखी हैं?’’

‘क्या मतलब?’ उस औरत ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मुझे अपने जनरल स्टोर पर, जिस में लेडीज सामान ही बेचा जाता है, सेल्स गर्ल की जरूरत है. अगर आप चाहें, तो मैं आप को नौकरी दे सकता हूं. इस तरह आप के खर्चेपानी की समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘क्या आप मुझे 10 हजार रुपए महीना तनख्वाह दे सकते हैं?’ उस औरत ने चहकते हुए पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अगर आप मेरी दुकान पर 12 घंटे काम करेंगी, तो मैं आप को 10 हजार रुपए से ज्यादा भी दे सकता हूं. यह तो तुम्हारे काम पर निर्भर करता है कि तुम आने वाले ग्राहकों को कितना प्रभावित करती हो.’’

‘काम तो मैं आप के कहे मुताबिक ही करूंगी. बस, मुझे मेरी बेटी की परेशानी रहेगी. अगर मेरी बेटी के रहने की समस्या का हल हो जाए, तो मैं आप की दुकान पर 15 घंटे भी काम कर सकती हूं. बेटी को संभालने वाला कोई तो हो,’ वह औरत बोली.

‘‘मैं आप की बेटी को सुबह स्कूल छोड़ आऊंगा. छुट्टी के बाद उसे मैं अपनी मां के पास छोड़ आया करूंगा. इस तरह आप की समस्या का हल भी निकल आएगा और घर में मेरी मां का दिल भी लगा रहेगा. आप की बेटी भी महफूज रहेगी,’’ रमेश ने बताया.

वह औरत खुशी के मारे चहक उठी, ‘फिर बताओ, मैं तुम्हारे पास कब आऊं? अपनी दुकान का पता बताओ. मैं अभी आ कर तुम से मिलती हूं. तुम मुझे नौकरी दे रहे हो, मैं तनमन से तुम्हारे काम आऊंगी. गुलाम बन कर रहूंगी, तुम्हारी हर बात मानूंगी.’

रमेश के मन में विचार आया कि अगर वह औरत अपने काम के प्रति ईमानदार रहेगी, तो वह उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होने देगा. उस की मासूम बेटी को वह अपने खर्चे पर ही पढ़ाएगा.

तभी रमेश के मन में यह भी खयाल आया कि वह पहले उस के घर जा कर उसे देख तो ले. उस की आवाज ही सुनी है, उसे कभी देखा नहीं. उस के बारे में जानना जरूरी है. लाखों रुपए का माल है दुकान में. उस के हवाले करना कहां तक ठीक है?

रमेश ने उस औरत को फोन किया और बोला, ‘‘पहले आप अपने घर का पता बताएं? आप का घर देख कर ही मैं कोई उचित फैसला कर पाऊंगा.’’

वह औरत कुछ कह पाती, इस से पहले ही रमेश को उस के घर से मर्दों की आवाजें सुनाई दीं.

वह औरत लहजा बदल कर बोली, ‘अभी तो मेरे 2 भाई घर पर आए हुए हैं. तुम कल शाम को आ जाओ.

‘मैं तनमन से आप की दुकान में मेहनत करूंगी और आप की सेवा भी करूंगी. आप की उम्र कितनी है?’ उस औरत ने पूछा.

‘‘मेरी उम्र तो यही बस 40 साल के करीब होगी. अभी मैं भी अकेला ही हूं. पत्नी से आपसी मनमुटाव के चलते मेरा तलाक हो गया है,’’ रमेश ने भी अपना दुख जाहिर कर दिया.

यह सुन कर तो वह औरत खुशी के मारे चहक उठी थी, ‘अरे वाह, तब तो मजा आ जाएगा, साथसाथ काम करने में. मेरी उम्र भी 30 साल है. मैं भी अकेली, तुम भी अकेले. हम एकदूसरे की परेशानियों को दिल से समझ सकेंगे,’ इतना कह कर उस औरत ने शहद घुली आवाज में अपने घर का पता बताया.

उस औरत ने अपने घर का जो पता बताया था, वह कालोनी तो रमेश के घर से आधा किलोमीटर दूर थी. उस ने अपनी मां से औरत के साथ हुई सारी बातें बताईं.

मां ने सलाह दी कि अगर वह औरत ईमानदार और मेहनती है, तो उसे अभी उस के घर जा कर उस के भाइयों के सामने बात पक्की करनी चाहिए.

रमेश को अपनी मां की बात सही लगी. उस ने फोन किया, तो उस औरत का फोन बंद मिला.

रमेश ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और चल दिया उस के घर की तरफ. मगर घर का गेट बंद था. गली भी आगे से बंद थी. वहां खास चहलपहल भी नहीं थी. मकान भी मामूली सा था.

गली में एक बूढ़ा आदमी नजर आया, तो रमेश ने अदब से उस औरत का नाम ले कर उस के घर का पता पूछा. बूढ़े ने नफरत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए सामने मामूली से मकान की तरफ इशारा किया.

रमेश को उस बूढ़े के बरताव पर गुस्सा आया, मगर उस की तरफ ध्यान न देते हुए बंद गेट तो नहीं खटखटाया, मगर गली की तरफ बना कमरा, जिस का दरवाजा गली की तरफ नजर आ रहा था, उसी को थपथपा कर कड़कती आवाज में उस औरत को आवाज लगाई.

थोड़ी देर में दरवाजा खुला, तो एक हट्टीकट्टी बदमाश सी नजर आने वाली औरत रमेश को देखते ही गरज उठी, ‘‘क्यों रे, हल्ला क्यों मचा रहा है? ज्यादा सुलग रहा है… फोन कर के आता. देख नहीं रहा कि हम आराम कर रहे हैं.

‘‘अगर हमारे चौधरीजी को गुस्सा आ गया, तो तेरा रामराम सत्य हो जाएगा. अब तू निकल ले यहां से, वरना अपने पैरों पर चल कर जा नहीं सकेगा. अगली बार फोन कर के आना. चल भाग यहां से,’’ उस औरत ने अपने पास खड़े 2 बदमाशों की तरफ देखते हुए रमेश को ऐसे धमकाया, जैसे वह वहां की नामचीन हस्ती हो.

‘‘अपनी आकौत में रह, गंदगी में मुंह मारने वाली औरत. मैं यहां बिना बुलाए नहीं आया हूं. मेरा नाम रमेश है.

‘‘अगर मैं कल शाम को यहां आता, तो तुम्हारी इस दुकानदारी का मुझे कैसे पता चलता. कहो तो अभी पुलिस को फोन कर के बताऊं कि यहां क्या गोरखधंधा चल रहा है,’’ रमेश ने धमकी दी.

रमेश समझ गया था कि उस औरत ने अपनी सैक्स की दुकान खूब चला रखी है. वह तो उस की दुकान का बेड़ा गर्क कर के रख देगी. उस ने मन ही मन अपनी मां का एहसान माना, जिन की सलाह मान कर वह आज ही यहां आ गया था.

उस औरत के पास खड़े उन बदमाशों में से एक ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘अबे, तू हमें पुलिस के हवाले करेगा? हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’ पर रमेश दिलेर था. उस ने लड़खड़ाते उस शराबी पर 3-4 थप्पड़ जमा दिए. वह धड़ाम से जमीन चाटता हुआ नजर आया. यह देख कर वह औरत, जिस का नाम चंपाबाई था, ने जूतेचप्पलों से पिटाई करते हुए कमरे से उन दोनों आशिकों को भगा दिया.

चंपाबाई हाथ जोड़ कर रमेश के सामने गिड़गिड़ा उठी, ‘‘रमेशजी, मैं अकेली औरत समाज के इन बदमाशों का मुकाबला करने में लाचार हूं. मैं आप की शरण में आना चाहती हूं. मुझ दुखियारी को तुम अभी अपने साथ ले चलो. मैं जिंदगीभर तुम्हारी हर बात मानूंगी.’’ चंपाबाई बड़ी खतरनाक किस्म की नौटंकीबाज औरत नजर आ रही थी. अगर आज रमेश आंखों देखी मक्खी निगल लेता, तो यह उस की गलती होती. वह बिना कोई जवाब दिए अपनी राह पकड़ घर की तरफ चल दिया.

हर दिन नया मर्द देखने वाली चंपाबाई अपना दुखड़ा रोते हुए बारबार उसे बुला रही थी, पर रमेश समझ गया था कि ऐसी औरतों की जिस्म की दुकान हो या जनरल स्टोर, वे हर जगह बेड़ा गर्क ही करती हैं.

मोबाइल पर फिल्म

ऐसे टुकुरटुकुर क्या देख रहा है?’’ अपना दुपट्टा संभालते हुए धन्नो ने जैसे ही पूछा, तो एक पल के लिए सूरज सकपका गया.

‘‘तुझे देख रहा हूं. सच में क्या मस्त लग रही है तू,’’ तुरंत संभलते हुए सूरज ने जवाब दिया. धन्नो के बदन से उस की नजरें हट ही नहीं रही थीं.

‘‘चल हट, मुझे जाने दे. न खुद काम करता है और न ही मुझे काम करने देता है…’’ मुंह बनाते हुए धन्नो वहां से निकल गई.

सूरज अब भी उसे देख रहा था. वह धन्नो के पूरे बदन का मुआयना कर चुका था.

‘‘एक बार यह मिल जाए, तो मजा आ जाए…’’ सूरज के मुंह से निकला.

सूरज की अकसर धन्नो से टक्कर हो ही जाती थी. कभी रास्ते में, तो कभी खेतखलिहान में. दोनों में बातें भी होतीं. लेकिन सूरज की नीयत एक ही रहती… बस एक बार धन्नो राजी हो जाए, फिर तो…

धन्नो को पाने के लिए सूरज हर तरह के हथकंडे अपनाने को तैयार था.

‘‘तू कुछ कामधंधा क्यों नहीं करता?’’ एक दोपहर धन्नो ने सूरज से पूछा.

‘‘बस, तू हां कर दे. तेरे साथ घर बसाने की सोच रहा हूं,’’ सूरज ने बात छेड़ी, तो धन्नो मचल उठी.

‘‘तू सच कह रहा है,’’ धन्नो ने खुशी में उछलते हुए सूरज के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

सूरज को तो जैसे करंट मार गया. वह भी मौका खोना नहीं चाहता था. उस ने झट से उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सच धन्नो, मैं तुम्हें अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. तू तो जानती है कि मेरा बाप सरपंच है. नौकरी चाहूं, तो आज ही मिल जाएगी.’’

सूरज ने भरोसा दिया, तो धन्नो पूछ बैठी, ‘‘तो नौकरी क्यों नहीं करते? फिर मेरे मामा से मेरा हाथ मांग लेना. कोई मना नहीं करेगा.’’

सूरज ने हां में सिर हिलाया. धन्नो उस के इतना करीब थी कि वह अपनी सुधबुध खोने लगा.

‘‘यहां कोई नहीं है. आराम से लेट कर बातें करते हैं,’’ सूरज ने इधरउधर देखते हुए कहा.

‘‘मैं सब जानती हूं. तुम्हारे दिमाग का क्या भरोसा, कुछ गड़बड़ कर बैठे तो…’’ धन्नो ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘ब्याह से पहले यह सब ठीक नहीं… मरद जात का क्या भरोसा?’’ इतना कहते हुए वह तीर की मानिंद निकल गई. जातेजाते उस ने सूरज के हाथ को कस कर दबा दिया था. सूरज इसे इशारा समझने लगा.

‘‘फिर निकल गई…’’ सूरज को गुस्सा आ गया. उसे पूरा भरोसा था कि आज उस की मुराद पूरी होगी. लेकिन धन्नो उसे गच्चा दे कर निकल गई. अब तो सूरज के दिलोदिमाग पर धन्नो का नशा बोलने लगा. कभी उस का कसा हुआ बदन, तो कभी उस की हंसी उसे पागल किए जा रही थी. वैसे तो वह सपने में कई बार धन्नो को पा चुका था, लेकिन हकीकत में उस की यह हसरत अभी बाकी थी. सरपंच मोहन सिंह का बेटा होने के चलते सूरज के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. सो, उस ने एक कीमती मोबाइल फोन खरीदा और उस में खूब ब्लू फिल्में भरवा दीं. उन्हें देखदेख कर धन्नो के साथ वैसे ही करने के ख्वाब देखने लगा.

‘‘अरे, तू इतने दिन कहां था?’’ धन्नो ने पूछा. उस दिन हैंडपंप के पास पानी भरते समय दोनों की मुलाकात हो गई.

‘‘मैं नौकरी ढूंढ़ रहा था. अब नौकरी मिल गई है. अगले हफ्ते से ड्यूटी पर जाना है,’’ सूरज ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘अब तो ब्याह के लिए हां कर दे.’’

‘‘वाह… वाह,’’ नौकरी की बात सुनते ही धन्नो उस से लिपट गई. सूरज की भावनाएं उफान मारने लगीं. उस ने तुरंत उसे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘हां कर दे. और कितना तरसाएगी,’’ सूरज ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘तू गले में माला डाल दे… मांग भर दे, फिर जो चाहे करना.’’

सूरज उसे मनाने की जीतोड़ कोशिश करने लगा.

‘‘अरे वाह, इतना बड़ा मोबाइल फोन,’’ मोबाइल फोन पर नजर पड़ते ही धन्नो के मुंह से निकला, ‘‘क्या इस में सिनेमा है? गानेवाने हैं?’’

‘‘बहुत सिनेमा हैं. तू देखेगी, तो चल उस झोंपड़े में चलते हैं. जितना सिनेमा देखना है, देख लेना,’’ सूरज धन्नो के मांसल बदन को देखते हुए बोला, तो वह उस के काले मन के इरादे नहीं भांप सकी.

धन्नो राजी हो गई. सूरज ने पहले तो उसे कुछ हिंदी फिल्मों के गाने दिखाए, फिर अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए ब्लू फिल्में दिखाने लगा.

‘‘ये कितनी गंदी फिल्में हैं. मुझे नहीं देखनी,’’ धन्नो मुंह फेरते हुए बोली.

‘‘अरे सुन तो… अब अपने मरद से क्या शरमाना? मैं तुम से शादी करूंगा, तो ये सब तो करना ही होगा न, नहीं तो हमारे बच्चे कैसे होंगे?’’ उसे अपनी बाजुओं में भरते हुए सूरज बोला.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन शादी करोगे न? नहीं तो मामा मेरी चमड़ी उतार देगा,’’ नरम पड़ते हुए धन्नो बोली.

‘‘मैं कसम खाता हूं. अब जल्दी से घरवाली की तरह बन जा और चुपचाप सबकुछ उतार कर लेट जा,’’ इतना कहते हुए सूरज अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. उस के भरोसे में बंधी धन्नो विरोध न कर सकी.

‘‘तू सच में बहुत मस्त है…’’ आधा घंटे बाद सूरज बोला, ‘‘किसी को कुछ मत बताना. ले, यह दवा खा ले. कोई शक नहीं करेगा.’’

‘‘लेकिन, मेरे मामा से कब बात करोगे?’’ धन्नो ने पूछा, तो सूरज की आंखें गुस्से से लाल हो गईं.

‘‘देख, मजा मत खराब कर. मुझे एक बार चाहिए था. अब यह सब भूल जा. तेरा रास्ता अलग, मेरा अलग,’’ जातेजाते सूरज ने कहा, तो धन्नो पर जैसे बिजली टूट गई.

अब धन्नो गुमसुम सी रहने लगी. किसी बात में उस का मन ही नहीं लगता.

‘‘अरे, तेरे कपड़े पर ये खून के दाग कैसे?’’ एक दिन मामी ने पूछा, तो धन्नो को जैसे सांप सूंघ गया. ‘‘पिछले हफ्ते ही तेरा मासिक हुआ था, फिर…’’

धन्नो फूटफूट कर रोने लगी. सारी बातें सुन कर मामी का चेहरा सफेद पड़ गया. बात सरपंच मोहन सिंह के पास पहुंची. पंचायत बैठी. मोहन सिंह के कड़क तेवर को सभी जानते थे. उस के लिए किसी को उठवाना कोई बड़ी बात नहीं थी.

‘‘तो तुम्हारा कहना है कि सूरज ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?’’ सरपंच के आदमी ने धन्नो से पूछा.

‘‘नहीं, सूरज ने कहा था कि वह मुझ से ब्याह करेगा, इसलिए पहले…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था…’’ सूरज ने बीच में टोका, ‘‘यह झूठ बोल रही है.’’

‘‘मैं भी तुम से शादी करूंगा, तो क्या तू मेरे साथ भी सोएगी,’’ एक मोटे से आदमी ने चुटकी ली.

‘‘तू है ही धंधेवाली…’’ भीड़ से एक आवाज आई.

‘‘चुप करो,’’ मोहन सिंह अपनी कुरसी से उठा, तो वहां खामोशी छा गई. वह सीधा धन्नो के पास पहुंचा.

‘‘ऐ छोकरी, क्या सच में मेरे सूरज ने तुझ से घर बसाने का वादा किया था?’’ उस ने धन्नो से जानना चाहा. मोहन सिंह के सामने अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती थी, लेकिन न जाने क्यों धन्नो न तो डरी और न ही उस की जबान लड़खड़ाई.

‘‘हां, उस ने मुझे घरवाली बनाने की कसम खाई थी, तभी तो मैं राजी…’’ यह सुनते ही सरपंच का सिर झुक गया. भीड़ अब भी शांत थी.

‘‘बापू, तू इस की बातों में न आ…’’ सूरज धन्नो को मारने के लिए दौड़ा.

‘‘चुप रह. शर्म नहीं आती अपनी घरवाली के बारे में ऐसी बातें करते हुए. खबरदार, अब धन्नो के बारे में कोई एक शब्द कहा तो… यह हमारे घर की बहू है. अब सभी जाओ. अगले लगन में हम सूरज और धन्नो का ब्याह रचाएंगे.’’

धन्नो मोहन सिंह के पैरों पर गिर पड़ी. उस के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘बापू, तुम ने मुझे बचा लिया.’’

दुकानदार और ग्राहक के बीच के अपनेपन को निगलती स्क्रीन

सोशल मीडिया पर आए दिन कोई न कोई यह शिकायत करते मिल ही जाता है कि फेसबुक पर तो उसके सैकड़ोंहजारों फ्रेंड्स थे लेकिन जब हार्टअटैक के चलते अस्पताल में भर्ती हुआ तो मिजाजपुर्सी के लिए दो दोस्त भी नहीं आए. एक किसी के मरने की खबर व्हाट्सएप पर चलती है तो उसे RIP बोल कर श्रद्धांजलि देने वालों की होड़ लग जाती है. लेकिन जब उस की शव यात्रा निकलती है तो बमुश्किल 20 – 25 लोग ही नजर आते हैं .

इस फर्जी अपनेपन ने हमें कितना अकेला, चालाक और असंवेदनशील बना दिया है इसे नापने का कोई पैमाना ही नही . इस के नुकसान सभी समझ रहे हैं कि हम भीड़भाड़ वाले शहरों में अकेले पड़ते जा रहे हैं लेकिन सामाजिक शिष्टाचार निभाने का मौका या वक्त आता है तो हम खुद अपने आप में सिकुड़ जाते हैं . हम अप ने मोबाइल की स्क्रीन में ठीक पिंजरे के तोते की तरह कैद हो कर रह गये हैं जो पिंजरे के अंदर से टे टे तो बहुत करता रहता है पर पिंजरे की कैद को ही उस ने अपना सुख मान लिया है .

हम क्यों तोते के मानिंद एक छोटी सी स्क्रीन में कैद हो कर रह गए हैं इस का ठीकठाक जवाब शायद ही कोई दे पाए . इसे समझने के कई दूसरे तरीके भी हैं मसलन हम आप में से कब से किसी ने पड़ोसी से अचार ,दूध , शकर , चाय पत्ती या दही जमाने जरा सा जामन नही माँगा और न ही हमारे दरवाजे पर कोई कभी इस तरह के आइटम मांगने आया. ज्यादा नही कोई 20 – 25 साल पहले तक ये नज़ारे आम थे और यह भी कि बेटे से यह कहना कि देख पड़ोस बाले शर्मा जी के यहां कटहल की सब्जी बनी हो तो एक कटोरी लेते आना . और हाँ उन्हें कटोरे में खीर देते आना शर्मा जी को बहुत पसंद है तेरी माँ के हाथ की बनी खीर .

ऐसी कई बातें और यादें हैं जो रोमांचित करती हैं जिन्हें याद कर मन कसैला भी हो उठता है . – लेकिन इस कसैलेपन को दूर करने या उस से छुटकारा पाने की कोई कोशिश कोई कर रहा है ऐसा लगता नहीं . इसका यह मतलब नहीं कि अपनेआप में जीने के आदी हो गए हम आप बहुत सुकून से हैं . उलटे हम सामाजिक और मानसिक असुरक्षा से घिरते जा रहे हैं जिसके चलते जीने का सही लुत्फ भी नहीं उठा पा रहे .

अब दही , अचार , शकर , दूध या पत्ती मांगने कोई पड़ोसी के घर नहीं जाता क्योंकि इसमें हेठी लगती है शर्म भी आती है .यह मांगना या एक्सचेंज करना मजबूत रिश्तों और पड़ोस की निशानी था जिसे औनलाइन शापिंग और मार्केट कब निगल गया हमे पता ही नहीं चला . कोई छोटीमोटी चीज चाहिए तो ब्लिंकिट जैसी दर्जनों में से किसी औनलाइन शौपिंग वाले को मैसेज करिए उस का बन्दा 15 मिनट में सामान लेकर हाजिर हो जायेगा लेकिन वह पैमेंट लेकर छू हो जायेगा .

आप के पास बैठकर बतियाएगा नहीं और आप अप ने ड्राइंग लिविंग या बेडरूम में आकर फिर वह पिंजरा रुपी स्क्रीन खोल कर बकबास का हिस्सा बन जाएंगे . इस से भी जी भर जायेगा तो कुछ मिनिट टीवी देख लेंगे और इस से भी बोर हो जायेंगे तो फिर पिंजरे में घुस जायेंगे जहाँ कई तोते पहले से ही टें टें कर रहे होंगे . कोई राजनीति की , कोई धर्म की कोई फिल्मों या खेल की तो कोई हिन्दू मुस्लिम कर रहा होगा .

यह कचरा आपके दिमाग में घूरे की हद तक इकट्ठा हो चुका है जिसकी बदबू और भार से आपका जीना मुहाल हो चुका है . यह दरअसल में एक तरह का नशा है जिसकी लत कुछ इस कदर पड़ चुकी है कि कुछ देर भी इसकी खुराक न मिले तो बैचेनी होने लगती है . पहले ऐसा नहीं था . न आप घर में अकेले थे , न मोहल्ले पड़ोस में , न समाज और रिश्तेदारी में और न ही कार्यस्थल पर अकेले थे आपके साथ कुछ लोग थे जो अच्छा बुरा सुख दुःख साझा करते थे . तमाम सामयिक मुद्दों पर बहस करते थे . साथ में चाय पीते थे गपशप और हंसी मजाक भी करते थे जिससे स्ट्रेस बनते नहीं थे बल्कि दूर होते थे.

इस स्क्रीन ने हर रिश्ते पर फर्क डाला है और ऐसा डाला है कि बेहद अन्तरंग रिश्ते भी कभी कभी औपचारिक लगने लगते हैं . लेकिन एक बड़ा फर्क दुकानदार और ग्राहक के रिश्ते पर भी पड़ा है . खुदरा दुकानदार कभी परिवार का सदस्य नही तो सदस्य जैसा ही हुआ करता था. जिससे नगद उधार दोनों तरह का लेनदेन चला करता था . आप उसके लिए ग्राहक और वो आपके लिए सिर्फ दुकानदार ही नही हुआ करता था . बल्कि एक मजबूत बांडिंग दोनों के बीच हुआ करती थी जो अब टूट कर बिखर गई है .

ये रिश्ता बड़ा अजीब था . घंटों मोलभाव करना , नाप तौल पर यकीन होते भी शक जताना , अपने सुख दुःख को दुकानदार से शेयर करना और जरूरत पड़ने पर उससे पैसे भी उधार ले लेना भी इसमें शामिल था या असे जरूरत पड़ने पर दे देने में सोचा विचारी नहीं करना पड़ती थी . घर परिवार के हर फंक्शन में उसकी अनिवार्य हाजिरी बगैरह की कीमत अब समझ आती है जब आपका दुकानदार आपके पास ही नहीं .वह दूर कहीं बहुमंजिला ईमारत के अपने एसी आफिस में बैठा बिक्री के नये नये तरीके इजाद करने में लगा रहता है .

किसी भी कसबे या शहर का खुदरा दुकानदार भी दुखी और परेशान है लेकिन महज इसलिए नही कि उसे आन लाइन शापिंग के बढ़ते चलन से घाटा हो रहा है . बल्कि इसलिए भी कि बहुत कुछ खोया उसने भी है . उसने भी वही सब कुछ खोया है जो आपने खो दिया है लेकिन वह भी इस नये सिस्टम के आगे लाचार है और अपने बेटे को दुकान पर नही बैठाल रहा . यह वही दुकानदार है जो ग्राहक की बेटी की शादी में बारातियों की खातिरदारी में लगा रहता था .

आधी रात को भी दुकान खोलकर सामान देता था और ग्राहक को आश्वस्त करता था कि किसी बात की चिंता मत करना . ऐसी कई बातें और यादें उन लोगों के जेहन में जिन्दा हैं जो 50 – 60 वसंत देख चुके हैं लेकिन उनके बच्चे इससे वंचित हैं क्योंकि उनका दुकानदार कौन है उन्हें मालूम ही नही अब चौक बजरिया या बड़े बाजार के दुकानदार ने भी अपने बेटे को बीटेक या मेनेजमेंट के कोर्स के लिए बेंगुलुरु , पुणे , मुंबई या दिल्ली जैसे किसी बड़े शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया है . क्योंकि उसे दुकानदारी में कोई भविष्य नजर नही आ रहा . अब बड़ी तादाद में खुदरा दुकाने बंद हो रही हैं और नई न के बराबर खुल रही हैं.

संस्कृति और धर्म की दुहाई देकर रोने बालों को इस खत्म होते सामाजिक रिश्ते से कोई वास्ता नही . वे कभी सडक पर आकर हाय हाय नहीं करते कि पीढ़ियों से हम जहाँ से किराने और मनिहारी का सामान ले रहे थे वह भी इस कड़ी का अहम हिस्सा था इनकी नजर में तो दुकानदार भी किसानो की तरह शूद्र है . वह दुधिया जो रोज सुबह शाम दूध देने आया करता था वह अब डेरी या सहकारी संस्था का मेम्बर बन कट चुका है दूध में पानी मिला है या लीटर भर में कम है यह शिकायत जो हास परिहास का बड़ा जरिया थी छीन चुकी है एक वस्त्र विक्रेता हुआ करता था जिसकी दुकान से दीवाली जैसे त्यौहार पर घर भर के कपडे आया करते थे .

एक सुनार था जिसकी मझोली दुकान से शादी के गहने बनते थे और पैसा बच जाने पर छिटपुट सोना चांदी भी उससे ख़रीदा जाता था . इतना ही नही इमरजेंसी में पैसो की जरूरत पड़ने पर गहने गिरवी रख ब्याज पर ही सही पैसा देने का काम भी वह करता था .अब सब कुछ आन लाइन उपलब्ध है ज्वेलरी भी डेरी प्रोडक्ट भी और पानी की बोतल भी .

गुजरे कल की ऐसी बहुत सी बाते और यादे जाने कहाँ लुप्त हो गई हैं पहले बढ़ते शहरीकरण को इसका दोष दिया गया फिर टीवी को और अब मोबाइल को दिया जाता है .जो सच भी है क्योंकि स्मार्ट फोन केवल बातचीत करने का जरिया भर नहीं रह गया है बल्कि इसके भीतर बैठे तरह तरह के एप्स पौराणिक काल के दानवो के मानिंद हो चले हैं जिनसे कोई बच नहीं पा रहा . इस टेक्नालाजी से सहूलियतें बिलाशक मिली हैं लेकिन वे अब सोने की जंजीरों सरीखी साबित हो रही हैं .

बाजार तेजी से बेरौनक हो रहे हैं क्योंकि ग्राहक घर से बाहर निकलकर दुकान तक जाने की जहमत नहीं उठा रहा . किस तेजी से लोग आन लाइन शापिंग के आदी हो रहे हैं आंकड़ों से परे हमारी आपकी रोजमर्रा की जिन्दगी इसी बेहतर गवाह है कि भूख लगने पर स्वीगी या जुमेटों के जरिये खाना या स्नेक्स मंगा लेना आसान लगता है . बजाय इसके कि किसी नजदीकी रेस्ट्रोरेन्ट या खोमचे बाले कजे पास टहलते घूमते चले जाएँ. यह ठीक है कि नई पीढ़ी के पास वक्त का टोटा है और पैसों की पिछली पीढ़ी जैसी कमी नहीं है लेकिन इसका यह मतलब तो नही कि हम अपनी उड़ान को पिंजरे में कैद कर लें और छटपटाते रहें .

नरेंद्र मोदी के स्वयं भू राज्यपाल

केंद्र सरकार के कहने पर राष्ट्रपति द्वारा कुछ राज्यों में राज्यपाल नियुक्त किए गए हैं. कैसी विडंबना है कि इन सभी पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं संघ की छाप है. जबकि संविधान में भावना यह थी कि राज्यपाल केंद्र और राज्य के बीच सेतु का काम करेंगे, समन्वय का काम करेंगे. मगर अब हो रहा है कि केंद्र का, उस से भी बढ़ कर केंद्र में बैठी सत्ता की विचारधारा की लाठी ले कर राज्यपाल राज्य की सरकार को हांकने का प्रयास रहे हैं.

यह देश और संवैधानिक संस्थाओं के लिए विचारणीय पहलू है कि अचानक “राज्यपाल” नामक संस्था में यह निम्न स्तरीय बदलाव क्यों और किस कारण आया है कि वह केंद्र द्वारा भेजे जाने के बाद संविधान के नियमों को दरकिनार करते हुए स्वयंभू बन गए हैं और सबसे मजेदार बात है कि जहांजहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है वहां राज्यपाल कुछ इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं जैसे वे ही सत्ता के प्रमुख हैं.जबकि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुने हुए जनप्रतिनिधि विधायकों के नेता मुख्यमंत्री के रूप में मौजूद है.

लंबे समय से यह विवाद की स्थिति बनी हुई है और इस का सीधा सा कारण यह है कि राज्यपाल नामक इन चेहरों को केंद्र का संरक्षण मिला हुआ है. इसलिए चाहे पश्चिम बंगाल हो या दक्षिण के कुछ राज्य जहांजहां भाजपा सत्ता में नहीं है दूसरे दलों की सरकार है वह राज्यपाल से संघर्ष करते हुए दिखाई दे रही है. अब मामला पहुंच गया है देश की सबसे बड़े न्यायालय में. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दो राज्यों पश्चिम बंगाल व केरल के राज्यपालों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांग लिया है.दरअसल क्या यह सोचने और चिंतन की बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और दोनों राज्यपालों के सचिवों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
देश के सबसे बड़े न्यायालय में यह मामला पहुंच गया, इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार गृह मंत्रालय हाथ पैर हाथ बंधे बैठा हुआ है अन्यथा ऐसा कदापि नहीं होता.

राज्यपाल बनाम हास्यपाल

याचिकाओं में कई विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखने, मंजूरी न देने या उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखने के राज्यपालों के फैसलों को चुनौती दी गई है. दरअसल इस तरह की कार्रवाई करके राज्यपाल अप ने पद की गरिमा कम कर रहे हैं और हंसी के पात्र बन रहे हैं. इधर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केरल की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि वे विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दे रहे हैं. जबकि पश्चिम बंगाल की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और जयदीप गुप्ता ने बताया कि जब भी मामला सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध होता है, राज्यपाल के कार्यालय की ओर से विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है.

मार्च में केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के कार्यालय की ओर से 4 विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित रखने और बाद में उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखने की कार्रवाई के खिलाफ अपील की थी. इससे पहले तमिलनाडु सरकार ने भी विधानसभा द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों में देरी के लिए राज्य सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की ओर से वकील संजय बसु ने जून में एक बयान जारी कर कहा था कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है.

संविधान में प्रावधान है कि राज्यपाल किसी विधेयक को अगर वह जायज नहीं समझता तो सरकार के पास वापस पुनर्विचार हेतु भेज सकता है और अगर सरकार पुनः उसे विधेयक को भेजती है तो उसे हस्ताक्षर करने होंगे मगर अब हो रहा है कि निश्चित कल तक राज्यपाल विधेयकों को अपने पास रख रहे हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भेज देते हैं. कुल मिला कर के मंशा यह है कि विपक्ष की सरकार परेशान हलकान हो और किसी तरह सत्ता से हट जाए ऐसा कुछ राज्यों में देखा गया है जिनमें प्रमुख है राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस की सरकार थी और राज्यपाल चुनी हुई सरकारों के साथ छत्तीसी संबंध बना कर मुख्यमंत्री को हलाकान कर रखा था. मगर जैसे ही भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनी इन प्रदेशों में राज्यपाल से अब किसी विवाद की शुरुआत तक सुनाई नहीं देती है. इससे स्पष्ट हो जाता है कि राज्यपाल अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं और अब जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है तो माना जा रहा है कोई रास्ता निकल आएगा.

फिर फिर विचारों के राज्यपाल

गुलाब चंद्र कटारिया को पंजाब का राज्यपाल और चंडीगढ़ का प्रशासक बनाया गया है , संतोष कुमार गंगवार को झारखंड का और विष्णुदेव वर्मा को तेलंगाना का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है.हरिभाऊ किशन राव बागड़े को राजस्थान, रमन डेका को छत्तीसगढ़ और सी.एच. विजय शंकर को मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया है.इसके अलावा के. कैलाशनाथ को पुडुचेरी का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है. इनमें सबसे ज्यादा चर्चित नाम है गुलाबचंद कटारिया का जो राजस्थान से हैं और एक समय में शिक्षा मंत्री के रूप में आर एस एस की विचारधारा को स्कूल पाठ्यक्रम में लाकर देश भर में चर्चित हुए थे.

झारखंड के नव नियुक्त राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार पहले चुनाव कांग्रेस से लड़े और जीते और उसके बाद लगातार भाजपा से चुनाव बरेली लोकसभा से लड़ते रहे और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में रहे, राज्यपाल नियुक्त होने के बाद उन्होंने कहा मैं मोदी का आभारी हूं अभिभूत हूं. पाठकों को बताएं कि छत्तीसगढ़ जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है मुख्यमंत्री विष्णु देव साय हैं यहां रामेन डेंका को राज्यपाल बनाया है जिनका इतिहास ही भाजपा से जुड़ा हुआ है वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं दो बार भाजपा के सांसद रह चुके हैं असम राज्य के भाजपा के पार्टी सदर बन चुके हैं और मोदी के प्रिय चेहरों में एक है इसीलिए अभी लोकसभा अध्यक्षों के पैनल में भी उन्हें रखा गया था , प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना की केंद्रीय सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे हैं. इस तरह आप हर एक नव नियुक्त राज्यपाल भारतीय जनता पार्टी और उसकी विचारधारा से जुड़ा हुआ पाएंगे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी लोकसभा जैसे हालात

2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा का सत्र 29 जुलाई को सुबह 11 बजे शुरू हुआ. विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सबसेे पहले कहा कि मुख्यमंत्री अपने 4 मंत्रिमंडल के सहयोगियों का परिचय सदन में कराना चाहते है. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों ओमप्रकाश राजभर, अनिल कुमार, दारा सिंह चैहान और सुनील शर्मा का परिचय सदन से कराया. इनको लोकसभा चुनाव से पहले मंत्री बनाया गया था. मंत्री के रूप इस सरकार में यह इनका पहला सत्र था.

इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने नेता प्रतिपक्ष बने माता प्रसाद पाण्डेय का स्वागत किया. वह पहली बार समाजवादी पार्टी की तरफ से नेता प्रतिपक्ष बने है. इसके पहले अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष थे. लोकसभा चुनाव में वह कन्नौज के सांसद बने तो उन्होने करहल विधानसभा सीट छोडी और नेता प्रतिपक्ष का पद भी छोड दिया. माता प्रसाद पाण्डेय को समाजवादी पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष बनाया.

नेता प्रतिपक्ष के परिचय के बाद बिजली कटौती, भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था, किसानों के मुददे पर समाजवादी पार्टी के विधायकों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. लोकसभा की ही तरह से विधानसभा में हंगामा शुरू हो गया. विधायक वेल में आ गये. विधानसभा अध्यक्ष के बार बार कहने के बाद भी यह जारी रहा. ऐसा लग रहा था कि अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष नहीं है तो विपक्षी विधायक कमजोर पड जायेगे. लेकिन सदन में आज का विरोध देखकर यह नहीं लगा कि अखिलेश यादव के सदन में न होने से कोई फर्क पडा है.

विपक्ष के दबाव में दिखी सरकार:

उत्तर प्रदेश में विधानसभा का मानसून सत्र की शुरूआत हंगामेदार रही. लोकसभा चुनाव के बाद यह विधानसभा का पहला सत्र है. लोकसभा चुनाव परिणामों का असर देखने को मिला. भाजपा विधायकों का चेहरा गिरा हुआ मनोबल साफ दिख रहा था. 33 सांसद ही जिता पाने का मलाल तो दिख रहा था. विधायकों और नेताओं के बीच घमासान का असर सदन में भी दिख रहा था. भाजपा की लौबीबाजी सदन में भी दिख रही थी. इसके उलट समाजवादी पार्टी के विधायकों के चहरों पर 37 सीटे जीतने का उत्साह साफ दिख रहा था. कांग्रेस के साथ बेहतर तालमेल सदन में भी दिख रहा था. कांग्रेस भी 6 सांसद जिताने की खुशी का इजहार कर रही थी.

नेता प्रतिपक्ष के रूप में माता प्रसाद पाण्डेय ने पहले ही दिन सरकार के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के विभाग को लेकर घेरा. माता प्रसाद पांडेय ने सवाल किया कि ‘जब आप मेडिकल कॉलेज बना रहे थे तब उसमें प्रावधान था कि आप 500 1000 बेड का अस्पताल अलग बनाएंगे. लेकिन ऐसा न कर के आपने उसे जिला अस्पताल से संबद्ध कर दिया. उसी को आधार बना कर आपने मेडिकल कॉलेज बना दिया. अब जो जिला अस्पताल मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कर दिया तो क्या यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वहां निःशुल्क दवाएं मिलेंगी.

निःशुल्क सेवाएं मिलेंगी क्योंकि ऐसा हो नहीं रहा है.’

समाजवादी पार्टी के विधायक जाहिद बेग अपनी शर्ट पर एनसीआरबी की रिपोर्ट छपवाकर यूपी विधानसभा पहुंचे. जाहिद बेग ने कहा कि यूपी सीएम को सदन चलाना नहीं आता. इसलिए मैं ये सब लेकर यहां आया हूं. ये मेरी रिपोर्ट नहीं है. ये एनसीआरबी की रिपोर्ट है. हत्या, बलात्कार, महिलाओं के खिलाफ अपराध, दलितों पर अत्याचार, पेपर लीक, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में यूपी नंबर वन पर है.

बिजली के मुद्दे पर विपक्ष ने हंगामा किया. विधायकों ने वेल में पहुंचकर प्रदर्शन किया. यह हंगामा तब रूका जब विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष की इस मुद्दे पर नोटिस स्वीकार कर ली गई है. इस पर चर्चा होगी. नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि इस समय प्रदेश में बहुत गंभीर समस्याएं आ गईं हैं. बाढ़, कानून, विद्युत और भ्रष्टाचार भी है. माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि ‘मैं विधानसभा में इस सरकार द्वारा उपेक्षित वंचित लोगों के मुद्दों को उठाने की पूरी कोशिश करूंगा. हम सभी मुद्दे उठाएंगे चाहे वो बिजली का मामला हो, कानून व्यवस्था का मामला हो या फिर शासन का. यह 5 दिन का सत्र है. अब हमने अनुरोध किया था कि सत्र को 5 दिन और बढ़ा दिया जाए. अब सरकार तय करे कि यह कितने दिन का होगा. हम इसे आगे भी जारी रखने की कोशिश करेंगे ताकि सभी समस्याओं पर चर्चा हो सके.’

कायम दिखा सरकार और संगठन का सवाल:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विपक्षी दलों से कहूंगा कि ‘प्रदेश और जनता से जुड़ी हर समस्या का समाधान के लिए सरकार प्रतिबद्ध है.’ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य विधानसभा के मानसून सत्र से पहले विधायक दल की बैठक की. सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव मौर्य एकदूसरे से बातचीत करने से बचते नजर आए. दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से योगी की बातचीत हुई. इससे साफ दिखा कि संगठन और सरकार के बीच की गाडी अभी पटरी से उतरी दिख रही है.

लोकसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा के दौरान भाजपा में सरकार और संगठन में आपसी मतभेद खुल कर बाहर आये. हाई कमान और आरएसएस नेताओं के तमाम प्रयासों के बाद भी विरोध खत्म नहीं हुआ है. विरोध में खडी सेनाओं के लिये युद्व विराम की घोषणा के बाद भी सेनाएं बैरक मे वापस नहीं गई है. जिससे यह अंदाजा लग रहा है कि भाजपा के लिये उत्तर प्रदेश के लिये 10 उपचुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव सरल नहीं है. 2027 में अगर भाजपा को उत्तर प्रदेश में विपक्ष ने घेर लिया तो 2029 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का डिब्बा गुल हो जायेगा.

अखिलेश ने फिर बेहतर समीकरण बनायें:

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में इंडिया ब्लौक की जीत में अखिलेश यादव की चुनावी गणित सबसे प्रमुख रहा है. जैसे जैसे चुनाव आगे बढ रहा था वह अपने उम्मीदवार रणनीतिक तौर पर बदल रहे थे. उस समय इसको अखिलेश की नासमझी कहा जा रहा था. चुनाव परिणामों ने बताया कि यह उनकी चुनावी रणनीति थी. नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में भी अखिलेश यादव ने सबको चांैका दिया है. 80 साल के माता प्रसाद पाण्डेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर उनका संदेश साफ है कि पार्टी में समाजवाद अभी जिंदा है. एक तरफ उनका पीडीए यानि पिछडा, दलित और अल्पसंख्यक है तो दूसरी तरफ ब्राहमण सहित दूसरी अगडी जातियां भी उनके निशाने पर है.

मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे माता प्रसाद पांडेय 7 बार के विधायक हैं. वह समाजवादी विचाराधारा से आते है. इससे पहले मुलायम और अखिलेश यादव सरकार में विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं. सिद्धार्थनगर की इटवा विधानसभा सीट से विधायक हैं. पार्टी में इनकी गिनती बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती है.

माता प्रसाद पांडेय के नाम के ऐलान से पहले शिवपाल यादव, इंद्रजीत सहरोज और तूफानी सरोज के नाम चर्चा थी. लखनऊ में विधायकों के साथ करीब 3 घंटे चली बैठक के बाद अखिलेश यादव ने ब्राह्मण दांव चलते हुए माता प्रसाद पांडेय को विधायक दल का नेता चुना. माता प्रसाद पाण्डेय को नेता प्रतिपक्ष बनाने का फैसला अखिलेश यादव का था. माता प्रसाद पाण्डेय किसी दूसरे दल से आये हुये नहीं है. अगडी जाति का बडा चेहरा है इसका प्रभाव आगे की राजनीति पर भी पडेगा. इससे अखिलेश यादव ने यह भी दिखा दिया कि उनकी तैयारी 2027 को लेकर है. इंडिया ब्लौक मजबूती से नये समीकरण बनाते हुये चुनाव लडेगा.

माता प्रसाद पांडेय ने अपना पहला चुनाव साल 1980 में जनता पार्टी से लड़ा था और पहली बार विधानसभा में जगह बनाई. इसके बाद साल 1985 के चुनाव में इन्होंने लोकदल से जीत हासिल की थी. फिर 1989 के चुनाव में जनता दल से विजय हासिल की. इसके बाद 2002 के चुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में इन्होंने चुनाव लड़ा और एक बार फिर सदन में पहुंचे. 2007 और 2012 में ये फिर से सपा से ही विधानसभा पहुंचे.

2017 के विधानसभा चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था. साल 2022 में अखिलेश यादव ने इन पर एक बार फिर से भरोसा जताया और चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया. इस बार माता प्रसाद अखिलेश के उम्मीदों पर खरा उतरे और जीत हासिल कर सातवीं बार विधानसभा पहुंचे. 1991 में स्वास्थ्य मंत्री तथा 2003 में श्रम और रोजगार मंत्री बने रहे.

माता प्रसाद पांडेय का जन्म 31 दिसंबर 1942 को सिद्धार्थनगर में हुआ है. छात्र जीवन से ही इनका झुकाव राजनीति की ओर था. समाज के गरीब और वंचित लोगों के उत्थान के लिए ये कई राजनीतिक आंदोलन में भी शामिल रहे. मुलायम सिंह के जमाने से राजनीति करते आ रहे माता प्रसाद की गिनती पार्टी के कद्दावर नेताओं में होती है. 2022 के चुनाव में सिद्धार्थनगर और उसके आसपास के जिलों की कुछ सीटों पर टिकट वितरण में भी अहम भूमिका निभाई थी.

उत्तर प्रदेश विधानसभा मानसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष सत्ता पर भारी दिखा. लोकसभा की तर्ज पर समझे तो यह साफ हो गया है कि विपक्ष अब सत्ता पक्ष की मनमानी बुलडोजर नीति को चलने नही देगा. इस बात को फर्क नही पडेगा कि सपा नेता अखिलेश यादव सदन में नहीं है. उनके न करने के बाद भी पार्टी का मनोबल बढा हुआ है, और सत्ता पक्ष आपसी युद्व में अटका हुआ है.

अपने लिवर की परेशानी को हल्के में ना लें

रुखसाना अमीन को 40 की उम्र में गर्भाशय का ट्यूमर हुआ था, जिस को हटाने के लिए डाक्टर ने उन का औपरेशन किया.औपरेशन के बाद रुखसाना अमीन को 2 यूनिट खून चढ़ाया गया. उस औपरेशन को हुए 20 साल हो गए. मगर इन 20 सालों में रुखसाना अमीन पेट संबंधी बीमारियों से घिरी रहीं. उन्हें खाना हजम नहीं होता, सीने में जलन रहती है, कई बार तो उल्टी हो जाती है. पेट भी फूलाफूला महसूस होता है.लंबे समय तक वे इन लक्षणों को गैस का लक्षण मान कर इग्नोर करती रहीं. इस बीच वे शुगर की मरीज भी हो गयीं. एक दिन उन को खून की कई उल्टियां हुईं. घरवालों ने समझा उन को टीबी हो गया है. उन के कई टैस्ट हुए और बाद में पता चला कि वे हेपेटाइटिस की गंभीर मरीज हैं.

रुखसाना अमीन हमेशा पति से कहती थी कि औपरेशन के बाद जो खून चढ़ा वह ठीक नहीं था. बाद में डाक्टर ने भी हेपेटाइटिस सी की यही वजह बताई कि यह खराब और संक्रमित खून की वजह से है. यह संक्रमण कई सालों का है जिसने 75 फ़ीसदी लिवर डैमेज कर दिया है. आज रुखसाना अमीन सिर्फ 25 फीसद लिवर के साथ अपनी जी रही हैं. उन का लगातार इलाज चल रहा है. शरीर में खून नहीं बनता तो हर 3 महीने पर उन को खून चढ़ाना पड़ता है. खाना आज भी ठीक से हजम नहीं होता है. शरीर सूख कर कांटा हो गया है क्योंकि लिवर फंक्शन बहुत खराब है.

प्रमोद सिंह की उम्र मात्र 36 वर्ष थी जब वह लिवर सिरोसिस की बीमारी के कारण चल बसा. पीछे रह गयी उस की जवान बीवी और 2 साल का बेटा. प्रमोद सिंह को शराब पीने की लत थी. एक अखबार में काम करता था. अकसर पार्टियां होती थीं या प्रैस क्लब में यारदोस्त देररात बैठते थे तो फ्री की शराब खूब मिलती थी. हालत यह हो गई कि उस की सुबह शराब से होती और रात शराब पर खत्म होती. कई बार पेट में पानी भर गया. अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. डाक्टर नीडल डाल कर पानी निकाल देते और शराब ना पीने की हिदायत के साथ डिस्चार्ज कर देते. मगर प्रमोद शराब नहीं छोड़ पाया और अंत में शराब ने उस को लील लिया. मौत के समय प्रमोद का पेट फूल कर कुप्पा हो गया था. यह डैमेज सूजन लिवर की थी.

लिवर हमारे शरीर का वह हिस्सा है जो 70 फीसदी तक खराब होने पर भी काम करता है. यही वजह है कि इसमें कोई रोग लग जाने पर उस के लक्षण जल्दी पता नहीं चलते. ज्यादातर लोगों को लिवर के खराब होने का पता तब चलता है जब वह आधे से ज्यादा बेकार हो चुका होता है. इसलिए लिवर की सेहत को लेकर हमें हमेशा बहुत सतर्क रहना चाहिए, खासतौर पर 40 की उम्र के बाद.

लिवर की बीमारी यानी हेपेटाइटिस का इन्फैक्शन पूरी दुनिया में एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रहा है. इस से होने वाली मौतों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक प्रत्येक साल इस बीमारी से 13 लाख लोगों की मौत हो रही है. इसका मतलब है कि प्रत्येक 30 सैकंड में हेपेटाइटिस से एक व्यक्ति की मौत हो रही है. बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक में हेपेटाइटिस के अनेक प्रकार देखे जा रहे हैं. इसलिए लिवर की किसी भी तकलीफ को हलके में नहीं लेना चाहिए.

हेपेटाइटिस का अर्थ है लिवर में सूजन या इन्फ्लेमेशन, लिवर में सूजन वायरस ए, बी, सी या ई की वजह से आ सकती है. यह बीमारी अधिकतर वायरल इंफेक्शन की वजह से होती है. आजकल इस का सबसे बड़ा कारण शराब है. यदि शुरू में ही ध्यान न दिया गया तो लिवर कैंसर, लिवर फेलियर और लिवर से संबंधित दूसरी कई बीमारियां हो सकती हैं. हेपेटाइटिस कई प्रकार का होता है और अकसर जानलेवा होता है. वैसे तो हेपेटाइटिस वायरस के 5 स्ट्रेन होते हैं. जिन का नाम ए से ले कर ई तक है. पर इन में से सबसे ज्यादा खतरनाक बी और सी हैं.

डब्ल्यूएचओ के अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में 25.4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से ग्रसित हैं और 5 करोड़ लोगों को हेपेटाइटिस सी बीमारी है. डब्ल्यूएचओ का कहना है हर साल इन बीमारियों के 20 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आते हैं. इस बीमारी से 6.5 करोड़ लोग अफ़्रीका में प्रभावित हैं. पश्चिमी पैसिफिक क्षेत्र में 9.7 करोड़ लोग इस बीमारी से लंबे समय से संक्रमित हैं. इसमें चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. दक्षिणपूर्व एशिया क्षेत्र में, जिसमें भारत, थाईलैंड और इंडोनेशिया शामिल हैं, 6.1 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हेपेटाइटिस ई हर साल दुनिया में 2 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है और इस से साल 2015 में 44 हज़ार लोगों की मौत हुई थी.

हेपेटाइटिस कैसे फैलता है?

हेपेटाइटिस ए ज़्यादातर मल या गन्दगी से दूषित भोजन या पानी पीने से या किसी संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से होता है. यह कम और मध्यम आय वाले देशों में सामान्य है, जहां स्वच्छता की स्थिति बहुत ख़राब है. इस के लक्षण जल्द ही ख़त्म हो जाते हैं और क़रीब सभी इस से ठीक हो जाते हैं. हालांकि इस से लिवर फेल होने का खतरा होता है.

हेपेटाइटिस ए दूषित भोजन या पानी वाले जगहों पर महामारी के रूप में फैलता है, जैसे साल 1998 में चीन के शंघाई में इस वायरस से 3 लाख लोग संक्रमित हुए थे. उस के बाद से चीन ने लोगों को हेपेटाइटिस ए के लिए टीका देना शुरू कर दिया.

हेपेटाइटिस बी वायरस संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से फैलता है. हेपेटाइटिस सी और डी भी संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से फ़ैलता है. केवल हेपेटाइटिस बी वाले लोग ही हेपेटाइटिस डी से संक्रमित हो सकते हैं. ऐसा करीब 5 फ़ीसदी लोगों के साथ होता है जो बहुत पहले से हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हैं, और यह उन्हें विशेष रूप से ज़्यादा संक्रमित करता है. हेपेटाइटिस ई दूषित पानी पीने और खाना खाने से होता है. यह दक्षिण और पूर्वी एशिया में बहुत ही सामान्य बात है और ये खास कर गर्भवती महिला के लिए काफ़ी हानिकारक हो सकता है.

ये बीमारी इन कारणों से फैल सकती है –

– जन्म के दौरान मां से बच्चे में
– एक बच्चे से दूसरे बच्चे के संपर्क में आने से
– दूषित सुइयों और सिरिंजों से गोदने, छेदने या संक्रमित खून और शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से
– दूषित खून चढाने से

हेपेटाइटिस के क्या लक्षण होते हैं?

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हेपेटाइटिस के लक्षणों में बुखार, कमजोरी, भूख की कमी, दस्त, उल्टी, पेट में दर्द, गहरे रंग का पेशाब आना और पीला मल के साथ पीलिया रोग के लक्षण जिस में त्वचा और आंखों के सफेद भाग का पीला होना शामिल है.

हालांकि हेपेटाइटिस से ग्रसित कई लोगों को बहुत हलके लक्षण होते है, वहीं कई लोगों में लक्षण नहीं भी दिखते. डब्ल्यूएचओ के साल 2022 के आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया में 13 फीसदी क्रोनिक हेपेटाइटिस बी के मरीजों और 36 फीसदी हेपेटाइटिस सी के ग्रसित लोगों के बारे में पता चला है. सबसे खतरनाक बात ये है कि वह लोग बिना जाने के संक्रमण को आगे फैला सकते हैं अन्य लोगों के सम्पर्क में रहते हैं. वे साथ उठते-बैठते, खातेपीते और सैक्स करते हैं. इसलिए डब्ल्यूएचओ और डॉक्टर लोगों से ज़्यादा से ज़्यादा जांच कराने का आग्रह करते हैं.

हाल ही में सब्जियों, दालों, अनाज आदि में कीटनाशकों की अत्यधिक मात्रा भी इस रोग की जनक मानी जा रही है. सब्जियों जैसे तोरी, घीया, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी आदि को जल्दी से जल्दी बड़ा करने और मोटा करने के लिए किसान इंजेक्शन का प्रयोग कर रहे हैं. जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत हानिकारक है. इस के अलावा सरसों आदि के तेल में मिलाया जाने वाले बिलोये के तेल को भी लिवर संबंधी बीमारियों को पैदा करने का कारण पाया गया है. आज हम जितने भी पिसे मसाले अपने खाने में इस्तेमाल करते हैं, सभी में मिलावट है. हाल ही में हुई जांच में पाया गया है कि एमडीएच जैसी नामी कंपनी के अलावा 16 अन्य कंपनियों के मसाले खाने योग्य नहीं हैं. इनमें बड़ी मात्रा में पेप्टिसाइड्स मिले हैं. जो सीधे हमारे लिवर को खराब करते हैं.

अपने लिवर को बचाये रखने के लिए उसके स्वास्थ्य की जांच समय समय पर करवाते रहना बहुत जरूरी है. ये जांच एलएफटी यानी लिवर फंक्शन टेस्ट के रूप में जानी जाती है. इसे अवश्य करवाएं. संदेह होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. लिवर का इलाज जितनी जल्दी शुरू हो मरीज के अच्छा होने की संभावना उतनी अधिक होती है.

“The UP Files” : योगी आदित्यनाथ की बायोपिक के नाम पर घटिया फिल्म

रेटिंगः एक स्टार
निर्माताः कुलदीप उमरावसिंह ओस्तवाल
लेखकः स्टैनिश गिल
निर्देशकः नीरज सहाय
कलाकारः मनोज जोशी, मंजरी फड़नीस, मिलिंद गुनाजी, अली असगर, शाहबाज़ खान, अमन वर्मा, विनीत शर्मा, अवतार गिल, अशोक समर्थ, अनिल जॉर्ज, वैभव माथुर
अवधिः दो घंटे दो मिनट

सिनेमा का काम आम लोगों का मनोरंजन करने के साथ ही उन्हें शिक्षा देना भी होता है. सिनेमा का काम सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को उठाना भी होता है. मगर 2014 के बाद हिंदी सिनेमा की दिशा बदल सी गयी है.अब तो सरकार व राजनेताओं को खुश करने के लिए,उन का महिमा मंडन करने वाली फिल्में बनने लगी हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दो फिल्में और दो वैब सीरीज बन चुकी हैं,जिन्हें दर्शक सिरे से नकार चुके हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुरू रहे और महाराष्ट्र में ठाणे जिले के कद्दावर शिवसेना नेता स्व.आनंद दिघे पर मराठी में ‘धर्मवीर’ आयी और इस फिल्म के तीन माह बाद ही एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए थे.

अब उस का सीक्वेल ‘धर्मवीर 2’ बनी है, जिस का हाल ही में भव्य ट्रेलर लौंच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ही किया. इस के अलावा कई नेताओं पर फिल्में बन चुकी हैं.अब 26 जुलाई को निर्माता कुलदीप उमराव सिंह ओस्तवाल तथा निर्देशक नीरज सहाय की सच्ची घटनाओं पर आधारित राजनीतिक फिल्म ‘‘द यू पी फाइल्स’’ प्रदर्शित हुई है, जो कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बायोपिक फिल्म है. फिल्म में उन चुनौतियों का चित्रण है, जिन का सामना मुख्यमंत्री बनने के बाद अभय सिंह को राज्य पर शासन करने और अपने दृष्टिकोण को लागू करने के प्रयासों के दौरान करना पड़ता है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है, जब महाराज अभय सिंह (मनोज जोशी) अपने आश्रम में गायों को चारा खिला रहे हैं, तभी दिल्ली से उन के पास फोन आता है कि उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है और अब उन्हे इसे गुंडा राज्य हटा कर राज्य में एक सुशासन मॉडल स्थापित करना है. मुख्यमंत्री बनते ही अभय सिंह को याद आता है कि पिछली सरकार के वक्त किस तरह डीजीपी (शाहबाज खान ) ने उन की बात नही मानी थी और उन पर किस तरह जानलेवा हमला करवाया गया था. मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले वह डीजीपी को नौकरी से निकाल कर सूर्यवंशी को नया डीजीपी बनाते हैं.इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह महिलाओं के कल्याण की दिशा में काम करते हुए, उन के धर्म की परवाह किए बिना मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के बाद भी सुरक्षा देने के कानून, भूमाफिया, अपराधियों और भ्रष्ट नौकरशाहों से मुकाबला करते हुए राज्य में कौमन सिविल कोड भी लागू करते हैं.

मुख्यमंत्री अपराधियों को दंडित करने से लेकर बलात्कार पीड़ितों को सशक्त बनाने, भ्रष्ट नौकरशाहों को ग्रामीण क्षेत्रों में भेज कर रोजगार सृजन के लिए गांव के विद्युतीकरण को प्राथमिकता देने, किसानों की कर्ज माफी करने के साथ ‘किसान बांड’ के नाम पर जनता से पैसे वसूलने जैसे अद्वितीय उपायों को लागू करते हैं. वह किसी भी धर्म, जाति या वर्ग की परवाह किए बिना बारबार ‘‘एक देश, एक कानून’ की भी वकालत करते हैं. अप ने संवादों में बार बार संविधान से टस या मस न होेने की बात करते हैं.सड़क पर नमाज पढ़ने या आरती करने पर पाबंदी लगाते हैं. भ्रष्ट विरोधी नेताओं के घर, औफिस व फैक्टरी पर बुल्डोजर भी चलवाते हैं.

समीक्षाः

निर्देशक नीरज सहाय अपनी इस फिल्म के माध्यम से उत्तर प्रदेश की छवि को फिर से परिभाषित करने का प्रयास करते हैं. इसके लिए वह राज्य की गुंडागर्दी, अराजकता, गरीबी, खराब सड़क आदि का उल्लेख करते हैं. फिर वह यह बताते हैं कि नए मुख्यमंत्री अभय सिंह किस तरह अराजकता, गुंडागर्दी आदि को खत्म करने के लिए कानून से परे जाकर भी काम करते हैं. लेकिन निर्देशक व लेखक को तथ्यों की कोई जानकारी नहीं है. कहानी भी भटकी हुई है.कहानी के अनुसार दृश्यों में कहीं कोई तारतम्य नहीं है.फिल्म में गाने जबरन ठूंसे हुए हैं.एक गंभीर दृश्य चल रहा होता है कि अचानक गाना शुरू हो जाता है.

दर्शक की समझ में नहीं आता कि यह क्या हो गया. उस गाने का औचित्य भी नहीं दिखाया गया. जब निर्देशक का ध्यान किसी एक इंसान यानी कि योगी जी का महिमा मंडन करना हो, तो वह कहानी कैसे सोचेंगें. मजेदार बात यह है कि फिल्म की शुरूआत में ‘डिस्क्लेमर’ दिया गया है कि यह फिल्म देश के एक काल्पनिक प्रदेश की कहानी है. लेकिन फिल्म में हर जगह उत्तर प्रदेश सरकार के बोर्ड लगे हैं. यहां तक तक कि जब भी मुख्यमंत्री के दृश्य आते हैं, तो उनके पीछे भी उत्तर प्रदेश सरकार ही लिखा नजर आता है.

आखिर यह क्या है? इस पर सैंसर बोर्ड की भी नजर नही गयी… उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमेज एक ‘फायरब्रांड’ धाकड़, निडर, ताकतवर नेता की है,मगर फिल्म में उनकी यह ईमेज कहीं नहीं उभरती.सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर कभी भी कोई भी मुख्यमंत्री के औफिस या घर में पहुंच जाता है. सिर्फ दूसरी पार्टी के नेता ही नही बल्कि आम मुस्लिम महिलाओं के लिए तो कोई रोकटोक नही है.अजीब से दृश्य हैं. निर्देशक के तौर पर नीरज सहाय बुरी तरह से मात खा गए हैं. लेखक स्टैनिस गिल भी मात खा गए. मुख्यमंत्री अभय सिंह कई जगह अति क्लिस्ट हिंदी बोलते हैं, तो कहीं बहुत ही साधारण संवाद बोलते हैं,जो कि गलत है. यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना महिमा मंडन करने के मकसद से इस फिल्म को बनवाया है,तो वह इस फिल्म को देखकर अपना माथा पीट लेंगे.

किसी का महिमा मंडन करने के लिए भी एक सशक्त और सुयोग्य कहानी की जरूरत होती है. हर समय पर विचारविमर्श होता है. पर फिल्म में किसी भी मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं होती. केवल कार्रवाई होती है .मुख्यमंत्री का अपना दृष्टिकोण और वह स्वयं हर समाधान की वकालत करते हैं, इस से इंसान व सरकार का प्रभाव अति कमजोर हो जाता है.

लेखक स्टैनिश गिल की पटकथा नब्बे के दशक के बौलीवुड की याद दिलाते हुए असंबद्ध और असूत्रबद्ध तरीके से प्रस्तुत की गई है. घिसेपिटे चरित्रों और कहानी के ट्रैकों की भरमार है.एक तरफ आप सुजाता मेनन को निडर व अति बहादुर पुलिस अफसर बताते हैं, तो वहीं जिस तरह से बाहुबली नेताओं के साथ मुठभेड़ और उसमें सुजाता मेनन के शहीद होने को दिखाया गया है,यह पूरा दृश्य लेखक व निर्देशक की नासमझी का ही परिचायक है. फिल्म में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं को लेकर सवाल जरुर उठाया गया है.

फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसने व ठीक करने की जरुरत थी. पर एडीटर अप ने काम को सही ढंग से अंजाम नही दे पाए.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो मुख्यमंत्री अभय सिंह के किरदार में मनोज जोशी ने षानदार अभिनय किया है.उन्होने योगी आदित्यनाथ के पहनावे के साथ ही चाल ढाल व बोलने के लहजे को भी पकडने का सही प्रयास किया है.मुख्यमंत्री के सचिव उमाष्ंाकर किरदार में अली असगर अपनी छाप छोड़ जाते हैं.उनकी ईमेज हास्य कलाकार की है,मगर इस फिल्म में धीर गंभीर सचिव के किरदार को जिस तरह से आत्मसात कर उन्होने निभाया है,उसके लिए उनकी प्रषंसा की जानी चाहिए.बाहुबली नेता अब्दुल के किरदार में अनिल जॉर्ज अपनी छाप छोड़ जाते हैं.निडर पुलिस इंस्पेक्टर सुजाता मेनन के किरदार में मंजरी फड़नीस भी प्रभावित करती हैं.पर स्टंट के सीन उनके वष के नहीं है.

मुझे अपनी टीचर बेहद सेक्सी लगती है और मैं उनके साथ संबंध बनाना चाहता हूं.

सवाल –

मैं 11th क्लास का स्टूडेंट हूं और मेरे स्कूल में एक इंग्लिश टीचर ने अभी एक महीने पहले ही ज्वाइन किया है. वे टीचर हमारी क्लास को भी इंग्लिश सिखाती है. जब से मैंने उन्हें देखा है तब से वे मेरे दिल और दिमाग में बस चुकी हैं. मुझे वे बेहद ही सेक्सी लगती हैं और यहां तक की जब वे साड़ी पहने स्कूल में एंट्री करती है तब मैं उन्हें देखने के लिए सबसे पहने गेट पर खड़ा हो जाता हूं. उनका फिगर बहुत कमाल का है. उनकी साड़ी का ब्लाउज़ भी बहुत फिटिंग का होता है जिससे की मेरी नज़र हमेशा वहीं रहती है. मेरा उन्हें देख पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता और तो और उन्हें देखने के लिए मैं अपनी बाकी की क्लास भी बंक कर लेता हूं. मेरा उनके साथ संबंध बनाने का बहुत मन करता है लेकिन मुझे डर भी लगता है कि वे मेरी कंप्लेंट प्रिंसिपल से कर देंगी तो मेरे घरवालों तक यह बात पहुंच जाएगी. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब –

इस उम्र में किसी भी लड़की के प्रति एट्रैक्शन होना बहुत कौमन है. इसमें कोई गलत बात नहीं है कि आप किसी लड़की के प्रति एट्रैक्शन फील कर रहे हैं पर आपको इस बात का खयाल रखना चाहिए कि जिसकी आप बात कर रहे हैं वे आपकी टीचर है. आपकी उम्र में इस तरह के खयाल आना कोई बड़ी बात नहीं है. ऐसे में आपको ध्यान रखना चाहिए कि अपकी यह फीलिंग्स आपको बहुत बड़ी मुसीबत में डाल सकती है.

अगर आप यही सब सोचते रहे तो कहीं ऐसा ना हो कि आपकी मेंटल हेल्थ डिस्टर्ब होने लगे और आप इसके चलते अपनी पढ़ाई का नुकसान कर बैठें. अगर आपको उनके प्रति ज्यादा ही एट्रैक्शन है तो आप इसके बारे में ज्यादा सोचना बंद कर दें और ज्यादातर टाइम अपने फ्रेंड्स के साथ बिताएं पर बिना अपनी टीचर के बारे में सोचे.

अगर फिर भी आपको लगता है कि आप उनके बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रहे तो ऐसे में आपको अपना ध्यान कहीं और लगाना चाहिए जिससे कि आप उनके बारे में ना सोचें. अगर आपने उनसे कुछ ऐसी बात की जिसे उन्होनें बुरा मान कर आपकी कंप्लेंट कर दी तो अपकी पूरे स्कूल में इंसल्ट हो सकती है.

इसमें आपकी कोई गलती नहीं है. आपकी उम्र के कई लड़कों को अपनी टीचर के प्रति एट्रैक्शन होता है पर हमें ऐसा कुछ भी करने से बचना चाहिए जो कि हमें किसी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है.

जुल्म की सजा

हमारे भारत देश को अंगरेजों की गुलामी से छुटकारा मिले हुए भले ही 65 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, पर आज भी न जाने कितने ऐसे गांव हैं, जो आजादी के सुख से अनजान हैं. ऐसा ही एक गांव है पिरथीपुर.

उत्तर प्रदेश के बदायूं, शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिलों की सीमाओं को छूता, रामगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ गांव पिरथीपुर यों तो बदायूं जिले का अंग है, पर जिले तक इस की पहुंच उतनी ही मुश्किल है, जितनी मुश्किल शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिला हैडक्वार्टर तक की है.

कभी इस गांव की दक्षिण दिशा में बहने वाली रामगंगा ने जब साल 1917 में कटान किया और नदी की धार पिरथीपुर के उत्तर जा पहुंची, तो पिरथीपुर बदायूं जिले से पूरी तरह कट गया. गांव के लोगों द्वारा नदी पार करने के लिए गांव के पूरब और पश्चिम में 10-10 कोस तक कोई पुल नहीं था, इसलिए उन की दुनिया पिरथीपुर और आसपास के गांवों तक ही सिमटी थी, जिस में 3 किलोमीटर पर एक प्राइमरी स्कूल, 5 किलोमीटर पर एक पुलिस चौकी और हफ्ते में 2 दिन लगने वाला बाजार था.

सड़क, बिजली और अस्पताल पिरथीपुर वालों के लिए दूसरी दुनिया के शब्द थे. सरकारी अमला भी इस गांव में सालों तक नहीं आता था.

देश और प्रदेश में चाहे जिस राजनीतिक पार्टी की सरकार हो, पर पिरथीपुर में तो समरथ सिंह का ही राज चलता था. आम चुनाव के दिनों में राजनीतिक पार्टियों के जो नुमाइंदे पिरथीपुर गांव तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते थे, वे भी समरथ सिंह को ही अपनी पार्टी का झंडा दे कर और वोट दिलाने की अपील कर के लौट जाते थे, क्योंकि वे जानते थे कि पूरे गांव के वोट उसी को मिलेंगे, जिस की ओर ठाकुर समरथ सिंह इशारा कर देंगे.

पिरथीपुर गांव की ज्यादातर जमीन रेतीली और कम उपजाऊ थी. समरथ सिंह ने उपजाऊ जमीनें चकबंदी में अपने नाम करवा ली थीं. जो कम उपजाऊ जमीन दूसरे गांव वालों के नाम थी, उस का भी ज्यादातर भाग समरथ सिंह के पास गिरवी रखा था.

समरथ सिंह के पास साहूकारी का लाइसैंस था और गांव का कोई बाशिंदा ऐसा नहीं था, जिस ने सारे कागजात पर अपने दस्तखत कर के या अंगूठा लगा कर समरथ सिंह के हवाले न कर दिया हो. इस तरह सभी गांव वालों की गरदनें समरथ सिंह के मजबूत हाथों में थीं.

पिरथीपुर गांव में समरथ सिंह से आंख मिला कर बात करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. पासपड़ोस के ज्यादातर लोग भी समरथ सिंह के ही कर्जदार थे.

समरथ सिंह की पहुंच शासन तक थी. क्षेत्र के विधायक और सांसद से ले कर उपजिलाधिकारी तक पहुंच रखने वाले समरथ सिंह के खिलाफ जाने की हिम्मत पुलिस वाले भी नहीं करते थे.

समरथ सिंह के 3 बेटे थे. तीनों बेटों की शादी कर के उन्हें 10-10 एकड़ जमीन और रहने लायक अलग मकान दे कर समरथ सिंह ने उन्हें अपने राजपाट से दूर कर दिया था. उन की अपनी कोठी में पत्नी सीता देवी और बेटी गरिमा रहते थे.

गरिमा समरथ सिंह की आखिरी औलाद थी. वह अपने पिता की बहुत दुलारी थी. पूरे पिरथीपुर में ठाकुर समरथ सिंह से कोई बेखौफ था, तो वह गरिमा ही थी.

सीता देवी को समरथ सिंह ने उन के बैडरूम से ले कर रसोईघर तक सिमटा दिया था. घर में उन का दखल भी रसोई और बेटी तक ही था. इस के आगे की बात करना तो दूर, सोचना भी उन के लिए बैन था.

कोठी के पश्चिमी भाग के एक कमरे में समरथ सिंह सोते थे और उसी कमरे में वे जमींदारी, साहूकारी, नेतागीरी व दादागीरी के काम चलाते थे. वहां जाने की इजाजत सीता देवी को भी नहीं थी.

समरथ सरकार के नाम से पूरे पिरथीपुर में मशहूर समरथ सिंह की कोठी में बाहरी लोगों का आनाजाना पश्चिमी दरवाजे से ही होता था. इस दरवाजे से बरामदे में होते हुए उन के दफ्तर और बैडरूम तक पहुंचा जा सकता था.

कोठी के पश्चिमी भाग में दखल देना परिवार वालों के लिए ही नहीं, बल्कि नौकरचाकरों के लिए भी मना था.

अपने पिता की दुलारी गरिमा बचपन से ही कोठी के उस भाग में दौड़तीखेलती रही थी, इसलिए बहुत टोकाटाकी के बाद भी वह कभीकभार उधर चली ही जाती थी.

गांव की हर नई बहू को ‘समरथ सरकार’ से आशीर्वाद लेने जाने की प्रथा थी. कोठी के इसी पश्चिमी हिस्से में समरथ सिंह जितने दिन चाहते, उसे आशीर्वाद देते थे और जब उन का जी भर जाता था, तो उपहार के तौर पर गहने दे कर उसे पश्चिमी दरवाजे से निकाल कर उस के घर पहुंचा दिया जाता था.

आतेजाते हुए कभी गांव की किसी बहूबेटी पर समरथ सिंह की नजर पड़ जाती, तो उसे भी कोठी देखने का न्योता भिजवा देते, जिसे पा कर उसे कोठी में हर हाल में आना ही होता था.

समरथ सिंह की इमेज भले ही कठोर और बेरहम रहनुमा की थी, पर वे दयालु भी कम नहीं थे. खुशीखुशी आशीर्वाद लेने वालों पर उन की कृपा बरसती थी. अनेक औरतें जबतब उन का आशीर्वाद लेने के लिए कोठी का पश्चिमी दरवाजा खटखटाती रहती थीं, ताकि उन के

पति को फसल उपजाने के लिए अच्छी जमीन मिल सके, दवा व इलाज और शादीब्याह के खर्च वगैरह को पूरा करने हेतु नकद रुपए मिल सकें.

लेकिन बात न मानने से समरथ सिंह को सख्त चिढ़ थी. राधे ने अपनी बहू को आशीर्वाद लेने के लिए कोठी पर भेजने से मना कर दिया था. उस की बहू को समरथ के आदमी रात के अंधेरे में घर से उठा ले गए और तीसरे दिन उस की लाश कुएं में तैरती मिली थी.

अपनी नईनवेली पत्नी की लाश देख कर राधे का बेटा सुनील अपना आपा खो बैठा और पूरे गांव के सामने समरथ सिंह पर हत्या का आरोप लगाते हुए गालियां बकने लगा.

2 घंटे के अंदर पुलिस उसे गांव से उठा ले गई और पत्नी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. बाद में ठाकुर के आदमियों की गवाही पर उसे उम्रकैद की सजा हो गई.

राधे की पत्नी अपने एकलौते बेटे की यह हालत बरदाश्त न कर सकी और पागल हो गई. इस घटना से घबरा कर कई इज्जतदार परिवार पिरथीपुर गांव से भाग गए.

समरथ सिंह ने भी बचेखुचे लोगों से साफसाफ कह दिया कि पिरथीपुर में समरथ सिंह की मरजी ही चलेगी. जिसे उन की मरजी के मुताबिक जीने में एतराज हो, वह गांव छोड़ कर चला जाए. इसी में उस की भलाई है.

समरथ सिंह की बेटी गरिमा जब थोड़ी बड़ी हुई, तो समरथ सिंह ने उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. अब वह दिनरात घर में ही रहती थी.

गरमी के मौसम में एक दिन दोपहर में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह लेटेलेटे ऊब गई, तो अपने कमरे से बाहर निकल कर छत पर चली गई और टहलने लगी.

अचानक उसे कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर कुछ आहट सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा, तो दंग रह गई. समरथ सिंह का खास लठैत भरोसे एक औरत को ले कर आया था. कुछ देर बाद कोठी का पश्चिमी दरवाजा बंद हो गया और भरोसे दरवाजे के पास ही चारपाई डाल कर कोठी के बाहर सो गया.

गरिमा छत से उतर कर दबे पैर कोठी के बैन इलाके में चली गई. अपने पिता के बैडरूम की खिड़की के बंद दरवाजे के बीच से उस ने कमरे के अंदर झांका, तो दंग रह गई. उस के पिता नशे में धुत्त एक लड़की के कपड़े उतार रहे थे. वह लड़की सिसकते हुए कपड़े उतारे जाने का विरोध कर रही थी.

जबरन उस के सारे कपड़े उतार कर उन्होंने उस लड़की को किसी बच्चे की तरह अपनी बांहों में उठा कर चूमना शुरू कर दिया. फिर वे पलंग की ओर बढ़े और उसे पलंग पर लिटा कर किसी राक्षस की तरह उछल कर उस पर सवार हो गए.

गरिमा सांस रोके यह सब देखती रही और पिता का शरीर ढीला पड़ते ही दबे पैर वहां से निकल कर अपने कमरे में आ गई. उसे यह देख कर बहुत अच्छा लगा और बेचैनी भी महसूस हुई.

अब गरिमा दिनभर सोती और रात को अपने पिता की करतूत देखने के लिए बेचैन रहती. अपने पिता की रासलीला देखदेख कर गरिमा भी काम की आग से भभक उठती थी.

एक दिन समरथ सिंह भरोसे को ले कर किसी काम से जिला हैडक्वार्टर गए हुए थे. दोपहर एकडेढ़ बजे उन का कारिंदा भूरे, जिस की उम्र तकरीबन 20 साल होगी, हलबैल ले कर आया.

बैलों को बांध कर वह पशुशाला के बाहर लगे नल पर नहाने लगा, तभी गरिमा की निगाह उस पर पड़ गई. वह देर तक उस की गठीली देह देखती रही.

जब भूरे कपड़े पहन कर अपने घर जाने लगा, तो गरिमा ने उसे बुलाया. भूरे कोठरी के दरवाजे पर आया, तो गरिमा ने उसे अपने साथ आने को कहा.

गरिमा को पता था कि उस की मां भोजन कर के आराम करने के लिए अपने कमरे में जा चुकी है.

गरिमा भूरे को ले कर कोठी के पश्चिमी दरवाजे की ओर बढ़ी, तो भूरे ठिठक कर खड़ा हो गया. गरिमा ने लपक कर उस का गरीबान पकड़ लिया और घसीटते हुए अपने पिता के कमरे की ओर ले जाने लगी.

भूरे कसाई के पीछेपीछे बूचड़खाने की ओर जाती हुई गाय के समान ही गरिमा के पीछेपीछे चल पड़ा.

पिता के कमरे में पहुंच कर गरिमा ने दरवाजा बंद कर लिया और भूरे को कपड़े उतारने का आदेश दिया. भूरे उस का आदेश सुन कर हैरान रह गया.

उसे चुप खड़ा देख कर गरिमा ने खूंटी पर टंगा हंटर उतार लिया और दांत पीसते हुए कहा, ‘‘अगर अपना भला चाहते हो, तो जैसा मैं कह रही हूं, वैसा ही चुपचाप करते जाओ.’’

भूरे ने अपने कपड़े उतार दिए, तो गरिमा ने अपने पिता की ही तरह उसे चूमनाचाटना शुरू कर दिया. फिर पलंग पर ढकेल कर अपने पिता की तरह उस पर सवार हो गई.

भूरे कहां तक खुद पर काबू रखता? वह गरिमा पर उसी तरह टूट पड़ा, जिस तरह समरथ सिंह अपने शिकार पर टूटते थे.

गरिमा ने कोठी के पश्चिमी दरवाजे से भूरे को इस हिदायत के साथ बाहर निकाल दिया कि कल फिर इसी समय कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर आ जाए. साथ ही, यह धमकी भी दी कि अगर वह समय पर नहीं आया, तो उस की शिकायत समरथ सिंह तक पहुंच जाएगी कि उस ने उन की बेटी के साथ जबरदस्ती की है.

भूरे के लिए एक ओर कुआं था, तो दूसरी ओर खाई. उस ने सोचा कि अगर वह गरिमा के कहे मुताबिक दोपहर में कोठी के अंदर गया, तो वह फिर अगले दिन आने को कहेगी और एक न एक दिन यह राज समरथ सिंह पर खुल जाएगा और तब उस की जान पर बन आएगी. मगर वह गरिमा का आदेश नहीं मानेगा, तो वह भूखी शेरनी उसे सजा दिलाने के लिए उस पर झूठा आरोप लगाएगी और उस दशा में भी उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.

मजबूरन भूरे न चाहते हुए भी अगले दिन तय समय पर कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर हाजिर हो गया, जहां गरिमा उस का इंतजार करती मिली.

अब यह खेल रोज खेला जाने लगा. 6 महीने बीततेबीतते गरिमा पेट से हो गई. भूरे को जिस दिन इस बात का पता चला. वह रात में ही अपना पूरा परिवार ले कर पिरथीपुर से गायब हो गया.

गरिमा 3-4 महीने से ज्यादा यह राज छिपाए न रख सकी और शक होने पर जब सीता देवी ने उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो उस ने अपनी मां के सामने पेट से होना मान लिया. फिर भी उस ने भूरे का नाम नहीं लिया.

सीता देवी ने नौकरानी से समरथ सिंह को बुलवाया और उन्हें गरिमा के पेट से होने की जानकारी दी, तो वे पागल हो उठे और सीता देवी को ही पीटने लगे. जब वे उन्हें पीटपीट कर थक गए, तो गरिमा को आवाज दी.

2-3 बार आवाज देने पर गरिमा डरते हुए समरथ सिंह के सामने आई. उन्होंने रिवाल्वर निकाल कर गरिमा को गोली मार दी.

कुछ देर तक समरथ सिंह बेटी की लाश के पास बैठे रहे, फिर सीता देवी से पानी मांग कर पिया. तभी फायर की आवाज सुन कर उन के तीनों बेटे और लठैत भरोसे दौड़े हुए आए.

समरथ सिंह ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया, फिर जेब से रुपए निकाल कर बड़े बेटे को देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से जल्दी कफन का इंतजाम करो और 2 लोगों को लकड़ी ले कर नदी किनारे भेजो. खुद भी वहीं पहुंचो.’’

समरथ सिंह के बेटे पिता की बात सुन कर आंसू पोंछते हुए भरोसे के साथ बाहर निकल गए.

एक घंटे के अंदर लाश ले कर वे लोग नदी किनारे पहुंचे. चिता के ऊपर बेटी को लिटा कर समरथ सिंह जैसे ही आग लगाने के लिए बढ़े, तभी वहां पुलिस आ गई और दारोगा ने उन्हें चिता में आग लगाने से रोक दिया.

यह सुनते ही समरथ सिंह गुस्से से आगबबूला हो गए और तकरीबन चीखते हुए बोले, ‘‘तुम अपनी हद से आगे बढ़ रहे हो दारोगा.’’

‘‘नहीं, मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं. राधे ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि आप ने अपनी बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी है, इसलिए पोस्टमार्टम कराए बिना लाश को जलाया नहीं जा सकता.’’

समरथ सिंह ने दारोगा के पीछे खड़े राधे को जलती आंखों से देखा. वे कुछ देर गंभीर चिंता में खड़े रहे, फिर रिवाल्वर से अपने सिर में गोली मार ली.

इस घटना को देख कर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए, तभी पगली दौड़ती हुई आई और दम तोड़ रहे समरथ सिंह के पास घुटनों के बल बैठ कर ताली बजाते हुए बोली, ‘‘देखो ठाकुर, तेरे जुल्मों की सजा तेरे साथ तेरी औलाद को भी भोगनी पड़ी. खुद ही जला कर अपनी सोने की लंका राख कर ली.’’

जैसेजैसे समरथ सिंह की सांस धीमी पड़ रही थी, वहां मौजूद लोगों में गुलामी से छुटकारा पाने का एहसास तेज होता जा रहा था.

– डा. गोपाल कृष्ण शर्मा 

नई जिंदगी की शुरुआत

फूलमनी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बुतरू के स्टाइल पर फिदा हो गई. प्यार के झांसे में आ कर एक दिन बिना सोचेसमझे वह अपना घर छोड़ उस के साथ शहर भाग आई. शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंडि़या बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंडि़या पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.

फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगलबगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई  है…’’

फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती. एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’

सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता. शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता. फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.

साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी. सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से साझा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे. एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.

मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’ सुखराम थोड़ा झेंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह समझती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’ ‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’

झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था. दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब झगड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.

सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’

किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोंपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था. सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’ दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’

‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया. सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.

अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया. अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’

साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनीपाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’ ‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडं़ू? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’

‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’

‘‘बोलो…’’

‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक

बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के

मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’

बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.

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