करन और काशवी की शादी को 6 महीने भी नहीं हुए हैं कि दोनों का रिश्ता टूटने की कगार पर है. काशवी और उस की सास में रोज किसी न किसी बात पर कलह होती है. काशवी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती है कि करन के पेरैंट्स के साथ उस का रिश्ता अच्छा रहे और घर में सब मिलजुल कर रहें, लेकिन उस की लाख कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं हो पा रहा. करन अपनी वाइफ और पेरैंट्स के बीच सैंडविच बना हुआ है. अब स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि काशवी और करन ने अलग रहने का फैसला किया है. शादी के शुरुआती दिनों में अधिकतर परिवारों की यही कहानी होती है.
पेरैंट्स भी खुश और बच्चे भी खुश
आजकल विवाह के बाद कपल्स का लड़के के पैरैंट्स के घर को छोड़ अलग से रहना आम बात होती जा रही है. अगर लड़केलड़की दोनों जौब करते हैं और पेरैंट्स शारीरिक व आर्थिक रूप से स्वस्थ और संपन्न हैं तो अलग रहने में ही भलाई है.
इस का एक फायदा यह भी है कि वह घर जो दोनों ने अपनी कमाई से खरीदा है दोनों का बराबर होगा और एकदूसरे को कोई इमोशनल ब्लैकमेल नहीं कर सकता कि यह मेरा घर है.
समय तेजी से बदल रहा है, अब भारतीय युवा भी पारिवारिक रजामंदी से अपने पेरैंट्स से अलग रहने लगे हैं. पेरैंट्स को भी अब बच्चों को अपने से अलग रहने में कोई समस्या नहीं दिखाई देती क्योंकि साथ रह कर रोज की किचकिच से थोड़ा दूर रह कर प्यार बना रहना उन्हें सही फैसला लगता है. शहरों में पढ़ेलिखे परिवारों में जहां बच्चे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं, अपना अलग घर बसाने लगे हैं या फिर पेरैंट्स खुद अपने बच्चों को अपनी ही सोसाइटी या आसपास ही अलग घर दिला देते हैं, ताकि बच्चे और वे भी बिना किसी मनमुटाव के अपनी मनमरजी से रह सकें और दूर रह कर भी आपसी प्यार बना रहे.