पुराने समय से लोग कुंडली ही मिलाते आए हैं शादी के लिए. लेकिन कुंडली से ज्यादा जरूरी है विचार मिलना और वैचारिक स्तर पर दोनों (लड़का लड़की) में ट्यूनिंग होना, तभी शादियां सफल हो सकती हैं. रही बात रुपएपैसे की, आर्थिक संपन्नता की, तो मेरा विचार है, पैसा सबकुछ नहीं होता है, बहुतकुछ हो सकता है लेकिन सबकुछ नहीं. रुपयों का पहाड़ हो घर में और रिश्तों में धोखा हो, मनमरजी हो, कपट हो तो ऐसे रिश्ते सिर्फ ढोए जा सकते हैं, निभाए नहीं. हमारे देश की कानून व्यवस्था लचर है, तलाक लेना भी चाहें तो बरसोंबरस लग जाते हैं.
आसानी से तलाक नहीं मिलता. जरूरत है कानून व्यवस्था भी सुधारी जाए. जहां रिश्ते बोझ बनने लगे वहां तलाक आसानी से मिले.
साथियो, कोई पति, पत्नी नहीं चाहते रिश्तों को खत्म करना लेकिन जब रिश्तों में दम घुटने लगे, व्यक्ति सांस भी न ले पाए तो तलाक बेहतर होगा.
चूंकि तलाक की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और लंबी होती है, इसलिए वर्तमान पीढ़ी ने 'लिवइन’ का जो रास्ता चुना है उस का मैं समर्थन करती हूं. लेकिन सोचसमझकर इस रिश्ते को चुनें, जिस से कि आप सुरक्षित रह सकें और जीवन अच्छे से बिता सकें. धन्यवाद. और मंजरी मंच से नीचे उतर गई.
तालियों का शोर, वाओ.
डिबेट कंपीटिशन में मंजरी विजेता घोषित कर दी गई. कालेज के डिबेट कंपीटिशन का विषय था, ‘लिवइन रिलेशनशिप समाज व संस्कृति के लिए घातक है.’ इस के पक्ष में मंजरी का भाषण था.
विपक्ष में जिसे विजेता घोषित किया गया था वह था मानस, जिस ने संस्कृति और समाज पर लिवइन के नुकसान बताए थे. इस से हमारे समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. समाज में स्वच्छंदता का वातावरण होगा, बच्चे अपनी संस्कृति को भूलेंगे, समाज का पतन होगा.