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बच्चों की जिद कहीं भारी न पड़ जाए, जानें क्या है रास्ता

कहते हैं कि बाल हट से बड़ा कोई हट नहीं होता. नन्हामुन्ना बच्चा अगर कोई जिद कर ले तो उसे समझाना अच्छेअच्छे उस्ताद के लिए भारी पड़ जाता है. ऐसे में आवश्यकता पड़ती है समझदारी की, होशियारी की और अनुभव की. अगर थोड़ी भी गलती हुई तो बाल हट को ले कर कुछ ऐसे घटनाक्रम सामने आ जाते हैं जो परिवार और समाज के लिए कलंक का टीका बन जाते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं.

ऐसे अनेक घटनाक्रम हमारे आसपास अकसर घटित होते रहते हैं जिन्हें हम देखते हैं और कई दफा अनदेखा कर देते हैं जो बाद में नासूर बन जाते हैं.

ऐसे ही घटनाक्रमों में से कुछ हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं-

पहली घटना – छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक किशोर अपनी मां से यह जिद करने लगा कि फलां खिलौने ले कर दीजिए. मां ने अनदेखी कर दी तो बच्चे ने घर में आग लगा दी. मुश्किल से परिवारजनों की जान बच पाई.

दूसरी घटना – छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 10 वर्ष के एक बालक ने पिता से वाहन मांगा, कहा खरीद कर दीजिए. जब पिता ने नहीं खरीदा तो बालक ने घर में रखा हुआ डिटौल पी लिया. बालक को बहुत मुश्किल से बचाया जा सका.

आप को हम अब बताते हैं हाल ही में मध्य प्रदेश की संस्कारधानी के जाने वाले जबलपुर का घटनाक्रम- जबलपुर में एक छात्रा रंजना (बदला नाम) की मौत का मामला सामने आया है. रंजना 5वीं क्लास में पढ़ती थी. परिजनों के मुताबिक, वह घूमने जाना चाहती थी लेकिन उस की मां ने जाने के लिए मना कर दिया था. इस बात से गुस्से में आ कर रंजना फांसी के फंदे से लटक गई. फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है और जो जानकारियां सामने आ रही हैं वे चिंताजनक हैं.

दरअसल, घटना जबलपुर के धनवंतरी नगर थाना इलाके के जसूजा सिटी की है. रंजना की उम्र सिर्फ 10 साल थी. वह 5वीं क्लास में पढ़ रही थी. छात्रा अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. एक दिन रंजना ने अपनी मां से भेड़ाघाट घूमने के लिए मनुहार की थी लेकिन मां ने उसे मना कर दिया था.

रंजना की मां उसे पढ़ाई और होमवर्क करने के लिए समझाने लगी. पुलिस ने बताया, वह घूमने की जिद पर अड़ी हुई थी लेकिन मां इस के लिए राजी नहीं हुई. इस बात से गुस्साई रंजना घर के ऊपर वाले कमरे में चली गई. वहां जा कर उस ने दरवाजे पर लगे परदे का फंदा बना कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली.

जांच अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया, मृतक छात्रा रंजना धनवंतरी नगर के जसूजा सिटी में रहने वाले भलावी परिवार की इकलौती बेटी थी. वह लिटिल वर्ल्ड स्कूल में कक्षा 5वीं की छात्रा थी. पुलिस ने पोस्टमार्टम करा कर शव को परिजन को सौंप दिया है. पुलिस ने बताया कि, वह मां से भेड़ाघाट घुमाने को ले कर जाने के लिए बोल रही थी. मां ने मना कर दिया. जिद करने पर मां ने डांट लगा दी. इस के बाद बच्ची ने खुदकुशी कर ली.

कुछ देर बाद जब मां ने ऊपर कमरे में जा कर देखा तो वहां का मंजर देख उस के होश उड़ गए. मां ने देखा कि बेटी फांसी के फंदे से लटकी है, जिसे देख मां चीखनेचिल्लाने लगी. महिला की चीखपुकार सुन कर वहां लोग आ पहुंचे. लोगों ने पुलिस को कौल कर मामले की जानकारी दी.

परिवारवालों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. छोटी सी गलती और इतना बड़ा खमियाजा परिवार को भुगतना पड़ा. रंजना की मां ने अगर समझदारी से काम लिया होता तो शायद यह घटना घटित न होती.

शिक्षाविद और प्राचार्य डाक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक अगर ऐसे हालात हैं कि बच्चे जिद्दी हैं तो मांबाप को बड़े ही मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को समझाना चाहिए. सब से पहले तो बच्चों के मनोभाव को समझना और पढ़ना मांबाप के लिए आवश्यक है.

डाक्टर जी आर पंजवानी के मुताबिक, समाज में ऐसी घटनाएं अकसर घट जाती हैं. इस के लिए मांबाप, परिजनों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. मगर, परिजनों को यह समझना होगा कि किस बच्चे का क्या स्वभाव है. अगर बच्चा उद्दंड, जिद्दी है तो उसे बड़े ही प्यार से स्नेह से समझाना जरूरी होता है. यह उम्र ऐसी होती है जब बच्चा कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है. मांबाप का कर्तव्य है कि वे बच्चों के स्वभाव को समझें.

औरों से अलग होती है पुलिस वालों के बच्चों की जिंदगी

निर्देशक रमेश सिप्पी की 1982 में आई फिल्म ‘शक्ति’ इसलिए हिट हुई थी कि उस में बौलीवुड के 2 दिग्गज ऐक्टर दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन पहली बार एकसाथ नजर आए थे लेकिन क्राइम और ऐक्शन प्रधान इस फिल्म की कहानी एक ऐसे आला पुलिस अफसर और उस के बेटे पर केंद्रित थी जो निहायत ही उसूल वाला, सख्त और अनुशासनप्रिय है. और इतना है कि अपने इकलौते बेटे को अपराधियों के चंगुल से छुड़ाने वह अपनी ईमानदारी से समझौता नहीं करता.

नन्हा बेटा जिंदगीभर इस हादसे को नहीं भुला पाता और यह मान कर चलता है कि पिता अगर चाहता तो अपराधियों की गिरफ्त से उसे छुड़ा सकता था. ऐसे में उस की जान अपराधियों के ही एक साथी ने बचाई थी. कहानी कुछ ऐसे आगे बढ़ती है कि बड़ा हो कर बेटा इंट्रोवर्ट होता जाता है और फिर स्मगलरों के साथ ही मिल कर गैरकानूनी काम करने लगता है और आखिर में पिता के ही हाथों मारा जाता है.

जरूरी नहीं कि यह या ऐसी ही कोई दूसरी फिल्मी कहानी हर पुलिस वाले की जिंदगी पर लागू होती हुई हो. लेकिन इतना जरूर तय है कि पुलिस वालों के बच्चे आमतौर पर आम बच्चों से कुछ या ज्यादा अलग हट कर ही होते हैं. वे बहुत अच्छे भी हो सकते हैं और बहुत बुरे भी. यह बात उन की पेरैंटिंग पर निर्भर करती है.

उम्मीद यह की जाती है कि कानून के रखवालों की संतानें जुर्म का रास्ता अख्तियार नहीं करेंगी लेकिन जब किसी पुलिस वाले की संतान ही कानून अपने हाथ में लेती है तो कठघरे में पूरा पुलिस महकमा खड़ा नजर आता है.

ऐसा ही एक हादसा भोपाल में 25 मई की देररात हुआ. जहांगीराबाद स्थित पुलिस आवासीय परिसर में कुछ पुलिसकर्मियों के बिगड़ैल बेटों ने कोई दर्जनभर खड़ी कारों के कांच तोड़ दिए और कारों में रखे कागजात व नकदी लूट ली. गुस्साए लड़कों ने दूसरी जगह भी ऐसा ही किया. क्यों किया, पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि चूंकि आवासीय परिसर के ही लोग उन के देररात आने पर एतराज जताते हैं, इसलिए उन्हें सबक सिखाने की गरज से यह हंगामा बरपाया गया, जिस में कुछ बाहरी लड़कों ने भी इन का साथ दिया. एफआईआर दर्ज हुई और मामला मीडिया में आया तो हर किसी ने यही कहा कि जब पुलिस वालों की औलादें ही ऐसा जुर्म करेंगी तो औरों का क्या दोष. ये पुलिस वालों के लड़के होते ही उद्दंड और बिगड़ैल हैं जिन्हें कानून और पुलिस का डर नहीं रहता. जब अपने ही बच्चों को कानून की इज्जत और लिहाज करना इन के मांबाप इन्हें नहीं सिखा पाए तो मुजरिमों को क्या सुधारेंगे और सबक सिखाएंगे.

तो क्या सभी पुलिस वालों के बच्चे ऐसे ही उपद्रवी और कानून तोड़ने वाले होते हैं. इस सवाल का जवाब न में निकलता है क्योंकि इस उपद्रव की रात कई पुलिस वालों के बच्चे अपनी पढ़ाई भी कर रहे थे. अभी ये बच्चे ‘शक्ति’ फिल्म के पोर्टेबल अमिताभ बच्चन जैसे हैं, जिन्हें वक्त रहते सबक और नसीहत नहीं मिले तो ये बड़े कारनामों को भी अंजाम देने से चूकेंगे नहीं और इस का भी दोष अपने पुलिसकर्मी पिता पर मढ़ते तरहतरह की दलीलें भी देंगे. लेकिन राह भटक चले इन नौजवानों को समझाए कौन कि यह गलत है?

जब पुलिस वाला पिता ही नहीं सिखा सका तो कोई और क्या खाक इन्हें जिंदगी की ऊंचनीच और भविष्य के बारे में बताएगा कि पुलिस वाले की संतान हो, इसलिए पुलिस से नहीं डरते. लेकिन हर बार बाप का रुतबा और रसूख काम नहीं आएगा. एकाध बार तो बाप अपने अफसरों के सामने रोधो कर, माफी मांग कर तुम्हें बचा लेगा लेकिन अगली या हर बार ऐसा नहीं होगा.

अगर पहली बार में ही तुम्हें थाने में कैद कर आम अपराधियों सरीखी तुम्हारी कंबलकुटाई की जाए तो तुम दोबारा ऐसी जुर्रत नहीं करोगे. पुलिस वाला भले ही हो लेकिन तुम्हारे पिता के सीने में भी बाप का दिल धड़कता है जो तुम्हें थाने की उन यातनाओं और रातभर किस्तों में की जाने वाली मारपिटाई से बचा लेगा जिन से एक बार गुजर कर 90-95 फीसदी लोग दोबारा गुंडागर्दी करने से डरते हैं और जो नहीं डरते वे ‘शक्ति’ फिल्म के अमिताभ बच्चन जैसे पेशेवर मुजरिम बन जाते हैं जिन का हश्र पुलिस की गोली या फिर जेल ही होती है.

पुलिस वालों के बच्चे कैसे और बच्चों से अलग होते हैं, इस बाबत भोपाल के ही कोई दर्जनभर पुलिसकर्मियों और उन के बच्चों से बातचीत की गई तो जो बातें उभर कर सामने आईं उन से से यह साबित होता है कि जब पुलिस वालों की ही जिंदगी आम लोगों सरीखी आम या सामान्य नहीं होती तो उस का कुछ असर तो बच्चों पर पड़ेगा लेकिन वह हमेशा नकारात्मक हो, यह कतई जरूरी नहीं.

एक कौंस्टेबल ने बताया कि वह थाना इंचार्ज इंस्पैक्टर साहब के बच्चे की ड्यूटी करता है. 15 साल के इस बच्चे को अकेला बाहर नहीं जाने दिया जाता क्योंकि उसे उन अपराधियों से खतरा हो सकता है जो साहब पर किसी बात से खार खाए बैठे हों. यह बच्चा आजादी से दूसरे बच्चों के साथ खेलकूद नहीं सकता. कोचिंग जब भी जाता है तो बाहर मेरी ड्यूटी रहती है. एक तरह से मैं साहब के इकलौते बच्चे का बौडीगार्ड हूं जो पूरे वक्त साए की तरह उस के साथ रहता है. इस पर कभीकभी वह बच्चा झल्ला उठता है और मुझे मेरे नाम से पुकार कर कहता है कि तू पीछा छोड़ यार मेरा. इस बच्चे को पैसों की कोई कमी नहीं है. वह जिस चीज पर हाथ रख देता है वह उसे दिलाई जाती है, साहब उस की कीमत नहीं देखते. उन के पास बेटे को देने वक्त कम है जबकि पैसा ज्यादा है और वह भी कैसे आता है, यह आप को बताने की जरूरत नहीं.

जाहिर इस बच्चे का मानसिक विकास अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह नहीं हो रहा है जो उसे स्वाभाविक तौर पर कुंठित बना रहा है. यह बच्चा सुबह जब स्कूल जा रहा होता है तो टाटा करने पापा नहीं होते जो अकसर आधी रात को घर आते हैं यानी और बच्चों की तरह वह रात को पापा के गले से लिपट कर उन से गुडनाइट भी नहीं कर पाता. मम्मी जितना हो सकता है उस का उतना ध्यान रखती हैं लेकिन अधिकांश समय वे मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं या पड़ोसिनों से गपें लड़ा रही होती हैं.

वह बताता है, कभीकभी मम्मीपापा में मुझे ले कर कलह होती है तो दोनों एकदूसरे को दोष देते रहते हैं. मम्मी कहती हैं तुम्हारे पास टाइम नहीं तो मैं क्या करूं, जितना हो सकता है ध्यान रखती हूं. लेकिन बच्चे को बाप का भी प्यार मां की बराबरी से चाहिए रहता है. इस पर पापा रटारटाया जवाब यही देते हैं कि तो मैं क्या करूं, पुलिस की नौकरी होती ही ऐसी है कि जिस में खुद के लिए भी वक्त नहीं रहता. सो, तुम लोगों को कहां से दूं. इस कलह से कोई हल नहीं निकलता लेकिन बच्चे के दिमाग पर जरूर बुरा असर पड़ता है.

वक्त की कमी पैसों से पूरी नहीं हो सकती. यह बात शायद कुछ पुलिस वालों को समझ आती. इसलिए वे अपने स्तर पर कोई न कोई इंतजाम कर लेते हैं, मसलन छोटी जगह ट्रांसफर करा लेना और सालदोसाल में लंबी छुट्टी ले कर बीवीबच्चों के साथ घूमने निकल जाना. इस दौरान वे बड़े होते बच्चे को अपनी नौकरी की व्यस्तता और दुश्वारियों के बारे में सलीके से समझा पाने में सफल होते हैं.

एक और सबइंस्पैक्टर की मानें तो एक पुलिस वाले की और भी दिक्कतें होती हैं जिन का असर बच्चों पर पड़ता है. मसलन, बारबार ट्रांसफर होना और जहां पुलिस विभाग के आवास न हों वहां किराए का मकान आसानी से नहीं मिलता. हर मकान वाला यह मान बैठता है कि यह पुलिस वाला है, क्या पता नियमित किराया देगा या नहीं और अगर नहीं दिया तो मैं इस का क्या बिगाड़ लूंगा.

अलावा इस के, रातबिरात देर से आएगा और इस के यहां जो मिलनेजुलने वाले आएंगे भी, इस के ही जैसे लोग होंगे, जिन के कोई नियमधरम नहीं होते. पीता होगा तो और दिक्कतें खड़ी करेगा, इसलिए कौन कुछ पैसों के लिए झंझट मोल ले. इस सबइंस्पैक्टर के मुताबिक, नई जगह जब हम जौइन करने जाते हैं तो अकेला देख मकानमालिक दूर से ही हाथ इन बहानों के साथ जोड़ लेता है कि अभी मकान रिनोवेट कराना है या फिर कुछ दिनों बाद भतीजा पढ़ने के लिए आने वाला है या कि बयाना ले कर मकान का सौदा कर दिया है, कभी भी रजिस्ट्री करना पड़ सकती है. एक साल पहले मैं सागर से भोपाल आया था तो 6 महीने होटल में रुकना पड़ा था, बाद में जैसेतैसे साथ वालों के सहयोग से मकान मिला.

एक लेडी सबइंस्पैक्टर ने तो और भी दिलचस्प बात बताई कि “पुलिस वालों की लड़कियों और लड़कों का रिश्ता आसानी से तय नहीं होता क्योंकि सामने वाले की नजर में पुलिस वालों के बच्चों की इमेज अच्छी नहीं होती. और तो और, पुलिस वालों की लड़कियों को तो बौयफ्रैंड भी मुश्किल से मिलते हैं. हंसते हुए यह मिलनसार सबइंस्पैक्टर खुद का उदाहरण देते हुए बताती है कि मेरे पापा भी पुलिस में थे, इसलिए लड़के मुझे प्रपोज करने से डरते थे कि कहीं ऐसा न हो कि किसी चौराहे पर अपने डीएसपी पापा से ठुकाई लगवा दे. इस युवती के साथ अब नई परेशानी परफैक्ट मैच का न मिलना है. नौकरी या बिजनैस में जमे हुए लड़के और उन के परिवार वाले पुलिस वाली बहू के नाम से ही ऐसे बिदकते हैं मानो वह कोई हौआ हो.”

फिर कुछ गंभीर हो कर वह बताती है, “दरअसल हम पुलिसवालियों का कैरेक्टर शक की निगाह में रहता है कि यह तो रातरातभर गैरमर्दों के साथ ड्यूटी करती है, क्या पता क्याक्या करती होगी. पुलिसवालियां आम औरत नहीं होतीं, वे बेलगाम होती हैं. वे घर नहीं चला पातीं वगैरहवगैरह. वैसे भी, पुलिस महकमा तो पहले से ही बदनाम है. मेरे साथ की 2 सबइंस्पैक्टरों को बेमन से ऐसे लोगों से शादी करनी पड़ी जिन के पति तकरीबन निठल्ले हैं. एक का हमेशा घाटे में चलने वाला छोटा सा बिजनैस है जिस के लोन की किस्तें अब सहेली भरती है तो दूसरा वकील है जिसे कभी अर्जी लिखने का भी काम मिल जाए तो वह खुद को कपिल सिब्बल समझने लगता है.”

बातचीत के आखिर में वह कहती है, “लगता है मुझे भी ऐसे ही किसी लल्लूपंजू से शादी करनी पड़ेगी क्योंकि खुद पुलिसवाले भी पुलिसवाली से शादी नहीं करना चाहते. पुलिस की जिंदगी की दुश्वारियां और कुछ वास्तविकताएं वे रोजरोज देखते हैं.”

जब खुद पुलिस वाले समाज का हिस्सा होते हुए भी एक निर्वासित सी जिंदगी जीने को मजबूर हों तो उन के बच्चे तो अलग होंगे ही. भोपाल के एक ब्रैंडेड स्कूल की टीचर की मानें तो यह सच है कि पुलिस वालों के बच्चे जिद्दी होते हैं लेकिन दूसरे बच्चों से कम प्रतिभाशाली और कम मेहनती नहीं होते. एक उम्र के बाद उन का गिल्ट या कौम्प्लेक्स कुछ भी कह लें दूर हो जाता है लेकिन जिंदगी के सुनहरे 15-16 साल तो उन्हें मुश्किलों में गुजारने पड़ते हैं.

आईपीएस अफसरों के बच्चों के साथ यह दिक्कत नहीं है. उलटे, दूसरे बच्चे उन से दोस्ती करने को बेताब रहते हैं लेकिन उस से नीचे के पद वालों के बच्चों को कुछ दिक्कतें होती हैं जिन्हें अच्छे दोस्त और अच्छा माहौल मिल जाए तो कोई खास मुश्किल पेश नहीं आती. पति अगर पुलिस में है तो पत्नी की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह पिता की भी भूमिका में भी रहे और अपनी सामाजिक जिंदगी और हैसियत से बच्चे को परिचित कराती रहे जिस से उस के मन में कोई शंका या गठान न रहे.

एकतरफा प्यार के परिणाम हो सकते हैं बुरे, आप भी जानें One Sided Love के साइड इफेक्ट्स

एकतरफा प्यार में सिरफिरे आशिकों की दास्तां आएदिन सुनने/पढ़ने को मिलती रहती हैं. किसी ने प्रेमिका को गोली से उड़ा दिया तो किसी ने जला दिया. कोई उस के घरवालों के साथ खून की होली खेल कर लौटा तो किसी ने खुद ही आत्महत्या कर ली. इस एकतरफा प्यार की गिरफ्त में आ कर सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां और यहां तक कि किन्नर भी गलत कदम उठा लेती हैं.

नवंबर 2023 में मुंबई में एकतरफा प्यार में पागल हो कर अलवीना ने फांसी लगा ली. उस ने अपने प्रेमी को दूसरी लड़की के साथ देख लिया था. इसी वजह से उस का दिल टूटा तो उस ने यह कदम उठा लिया. दरअसल अलवीना एक लड़के से प्यार करती थी लेकिन कुछ दिनों पहले उस ने अपने प्रेमी को किसी दूसरी लड़की के साथ देखा था. इस के बाद अलवीना ने अपने प्रेमी से कई बार मिलने के लिए कहा था. लेकिन वह उस से नहीं मिला. अलवीना अपने बौयफ्रैंड के इस रवैये से काफी परेशान थी. अलवीना इंस्टाग्राम पर काफी मशहूर थी. उस ने आत्महत्या करने से पहले एक वीडियो भी बनाया.

“एकतरफा प्यार की ताकत ही कुछ और होती है. औरों के रिश्तों की तरह यह 2 लोगों में नहीं बंटता, सिर्फ मेरा हक है इस पर” ‘ए दिल है मुश्किल’ फिल्म का यह डायलौग सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन इस में कितनी तकलीफ है, यह एकतरफा प्यार में पड़ा व्यक्ति ही समझ सकता है. दरअसल किसी के प्रति आकर्षण होना जितना सहज है, किसी का आप के प्यार को अस्वीकार कर देना भी उतना ही सामान्य है. मगर एकतरफा प्यार करने वाले के लिए यह दर्द सहना बहुत कठिन हो जाता है.

क्या है एकतरफा प्यार

एकतरफा प्यार एक तरह का प्यार ही होता है लेकिन सिर्फ एक तरफ से. इस का मतलब यह है कि या तो आप किसी ऐसे व्यक्ति से प्यार करते हैं जो आप से प्यार नहीं करता या आप किसी व्यक्ति से प्यार करते हैं मगर कभी बताया नहीं या फिर ऐसा व्यक्ति अब आप की पहुंच से बाहर है और उस ने मूवऔन कर लिया है. एकतरफा प्यार तब भी हो सकता है जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो जाते हैं जो किसी और के साथ रिलेशनशिप में है. यह ब्रेकअप के बाद भी हो सकता है और यह तब भी हो सकता है जब आप अपने रिलेशन में खुश हों लेकिन आप का पार्टनर आप को छोड़ना चाहता हो. इस प्यार में दर्द और अकेलापन ज्यादा महसूस होता है.

एकतरफा प्यार पर एक अध्ययन में पाया गया कि इस प्रकार के रिश्ते ‘वास्तविक’ पारस्परिक प्यार की तुलना में भावनात्मक रूप से कम तीव्र होते हैं. शायद यही कारण है कि एकतरफा प्यार भी 2 लोगों द्वारा साझा किए गए प्यार की तुलना में चारगुना अधिक आम पाया जाता है. एकतरफा प्रेम सामान्य प्रेम की तुलना में जनून, त्याग, निर्भरता, प्रतिबद्धता और व्यावहारिक प्रेम में कम तीव्र होता है.

एकतरफा प्यार की बुनियाद

जब हम किसी के साथ ज्यादा समय गुजारते हैं या किसी के बेहद करीब होते हैं तो धीरेधीरे एक आकर्षण बंधन में बंध जाते हैं. लेकिन यह आकर्षण अगर जनूनभरे प्रेम का रूप ले ले तो समझ लीजिए कि संभल जाने का समय आ गया है. इस एकतरफा प्यार की शुरुआत थोड़ी सी जानपहचान या दोस्ती से शुरू हो सकती है. हम किसी के साथ थोड़ा समय गुजारते हैं तो सामने वाले की कुछ बातें हमारे विचारों से मिलतीजुलती लगती हैं और हम उस आकर्षण को प्यार समझ बैठते हैं. या फिर हम ने अपने होने वाले लाइफ पार्टनर को ले कर जैसे ख्वाब बुने होते हैं वैसी झलक सामने वाले में दिखाई देने लगे तो हम उसे प्रेम का नाम दे बैठते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में यह समझना जरूरी है कि अगर ऐसा खिंचाव सामने वाला भी आप के प्रति महसूस कर रहा है तो ही इसे प्यार का नाम दें और उसे ले कर सपने देखें. वरना उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर भूल जाना ही अच्छा है.

मैंटल हैल्थ के लिए अच्छा नहीं है एकतरफा प्यार

वन साइडेड लव आप की मैंटल हैल्थ को प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह आप को कोई खुशी नहीं देता बल्कि आप केवल इस से दुखी ही होते हैं. एकतरफा प्यार में केवल आप उसे पाने की चाहत करते रहते हैं और उस के बारे में सोचते रहते हैं जिस से आप अंदर से डिस्टर्ब्ड हो जाते हैं. यानी, आप का दिल किसी ऐसे व्यक्ति की वजह से टूटता है जिसे आप ने डेट नहीं किया है या जिस के साथ आप रिलेशनशिप में नहीं रहे हैं. उस से रिश्ते के टूटने का दर्द लगभग वैसा ही होता है जैसा 2 प्यार करने वालों के बीच ब्रेकअप के बाद होता है.

इस क्रश से मूवऔन करने के लिए एक क्लोजर की जरूरत होती है. वास्तव में कोई भी ऐसा रिश्ता, जिस में अकेले आप ही एफर्ट कर रहे हैं, आप के लिए बोझ बन जाता है. इसलिए जरूरी है कि इस तरह के रिश्ते से तुरंत बाहर आया जाए. अगर आप भी वन साइडेड लव की स्थिति में फंस चुके हैं और इस से बाहर आना चाहते हैं तो कुछ बातों का खयाल रखें;

अपनी भावनाओं को स्वीकार करें

एकतरफा प्यार से बाहर निकलने का पहला कदम अपनी भावनाओं को स्वीकार करना है. चाहे आप गुस्से, आक्रोश, शर्मिंदगी या दिल टूटने से जूझ रहे हों, जो भी स्थिति हो, उसे नौर्मल मान कर स्वीकार करें.

संपर्क में रहें मगर रिश्ते प्रगाढ़ करने की कोशिश न करें

जब आप किसी को पसंद करते हैं तो आप उन से बात करना चाहते हैं और उन्हें अपनी भावनाओं के बारे में बताना चाहते हैं. अगर आप ऐसे व्यक्ति को अपनी भावनाएं बताएंगे जो आप से प्यार नहीं करता तो वह आप को नहीं समझेगा और इस से आप और ज्यादा दुखी हो सकते हैं. इसलिए जिस से आप एकतरफा प्यार करते हैं उस से दोस्ती रख सकते हैं, रिश्ता बनाने की कोशिश न करें.

खुद से प्यार करें

प्यार अपनी जगह है लेकिन आप को अपने बारे में सोचना बहुत जरूरी है. आप सब से पहले खुद से प्यार करें. उस के बाद ही आप उस काबिल बन सकते हैं कि आप किसी और से प्यार करें. एकतरफा रिश्ते से बाहर निकलने के लिए आप को खुद के लिए कुछ अच्छा करना चाहिए जो आप के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करे. खुद को व्यस्त रखने से आप को तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है. आप जिस के साथ एकतरफा प्यार में हैं, शायद वह आप को डिजर्व न करता हो और उस से कोई बेहतर आप का इंतजार कर रहा हो. इसलिए आप को अपनी वैल्यू को हमेशा महत्त्व देना चाहिए. खुद को व्यस्त रखने और मनपसंद काम में इन्वौल्व रहने से आप को तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है. उन चीजों को करने के लिए समय निकालें जो आप को पसंद हैं, जैसे ड्राइंग, गाना या खाना बनाना.

एकतरफा प्यार न बन जाए दर्द का सबब

मुहब्बत एक ऐसी शै है जो किसी को भी अपनी रौ में बहा कर ले जाती है. जाति, धर्म, रंगरूप से परे प्यार ने खुद को कभी किसी परिभाषा का मुहताज नहीं रखा. ऐसे में अगर प्रेम का दीया किसी एक के ही दिल में जले तो स्थिति सोचनीय हो जाती है. लेकिन इस एकतरफा प्यार का दूसरा विकल्प क्या है? किसी के प्रति प्रेम एवं आकर्षण सहज ही मन में प्रस्फुटित हो जाते हैं क्योंकि ये मानवीय भावनाएं हैं. इसे एकदम से रोक पाना मुमकिन नहीं. लेकिन इस दर्द में डूब कर खुद को या सामने वाले को नुकसान पहुंचाने से बहुत अच्छा है कि खुद को इस आकर्षण से बचा कर जीवन को नई दिशा दें. यही समझदारीभरा कदम होगा.

पागलपन की हद तक न पहुंचने दें एकतरफा प्यार को

हमारे आसपास के समाज का तानाबाना बहुत ज्यादा संकुचित मानसिकता वाला है. समाज में इस प्यार को कभी अहमियत नहीं दी गई. सामने वाला अगर किसी के साथ इन्वौल्व है या शादीशुदा है तब एकतरफा प्यार समाज की नजरों में कोई माने नहीं रखता और यदि कोई फिर भी रिश्ता बनाए रखना चाहे तो यह समाज की नजरों में गलत है. ऐसे में प्रेम की एकतरफा कहानियों ने समाज में कई वीभत्स घटनाओं को अंजाम दिया है. आएदिन इसी एकतरफा प्यार की वजह से बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसी घटनाएं देखने को मिलती हैं. ऐसे में इस सोच को भी समझना होगा कि यदि आप किसी के प्रति खिंचाव महसूस कर भी रहे हैं तो पागलपन की हद को पार न करें.

उस व्यक्ति के बारे में कल्पना करना बंद करें

आप को ऐसी कल्पनाएं करना बिलकुल बंद कर देना चाहिए जिस में आप का क्रश शामिल हो. उन की तसवीरों को भी दूर रखें और उस व्यक्ति के साथ रहने की सभी संभावनाओं के बारे में सोचना बंद कर दें. भले ही शुरुआत में आप को ऐसा करने में परेशानी हो लेकिन आगे चल कर यह आप के लिए ही अच्छा साबित होगा.

Women Health Tips: पीरियड्स का न आना ओवरी कैंसर का संकेत तो नहीं

लेखक- डा. बी बी दास

ओवरी कैंसर और पीरियड्स न आने के बीच की कड़ी के बारे में जानकारी, लक्षण और उस से जुड़े जोखिम के बारे में जानिए और यह भी जानें कि ऐसे मामले में डाक्टर के पास कब जाएं…

महिलाओं में 2 अंडाशय होते हैं. गर्भाशय के दोनों तरफ एकएक अंडाशय होता है. अंडाशय महिलाओं की प्रजनन प्रणाली का हिस्सा हैं और एस्ट्रोजन और प्रोजैस्टेरौन सहित हार्मोंस के उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं.

महिलाओं के अंडाशय पर ट्यूमर या अल्सर विकसित हो सकते हैं. आमतौर पर ये सौम्य होते हैं. इस का मतलब यह है कि इन में कैंसर नहीं है. ये अंडाशय के अंदर या ऊपर रहते हैं. बहुत कम मामलों में ओवरी के ट्यूमर्स में कैंसर पाया जाता है.

ओवरी कैंसर के लक्षणों को समझने से किसी महिला के कैंसरग्रस्त होने की पहचान जल्दी हो सकती है. कई महिलाओं में ओवरी कैंसर के शुरुआती चरणों में लक्षण दिखाई नहीं देते. इस के अलावा ओवरी कैंसर के लक्षण इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसी स्थितियों से मिलते हैं. लक्षण अस्पष्ट और बहुत कम हो सकते हैं जिससे निदान में देरी होने के कारण नतीजा खराब हो सकता है. यदि निम्न लक्षण महीने में 12 से ज्यादा बार होते हैं तो अपने डाक्टर या स्त्रीरोग विशेषज्ञ से संपर्क करें :

उदर या पेड़ू का दर्द, पेट फूलना, खाने में कठिनाई, भोजन करने पर पेट जल्दी भरा महसूस होना, मूत्र संबंधी आदतों में बदलाव, जल्दीजल्दी मूत्र आना, यौन संबंध के समय दर्द, पेट खराब रहना, अत्यंत थकावट, कब्ज, पेट की सूजन, वजन कम होना आदि.

जोखिम के दूसरे कारण : ओवरी कैंसर के जोखिम को बढ़ाने वाले कारण एक नहीं, बल्कि कई हैं. मसलन, उम्र का बढ़ना, 35 वर्ष की उम्र के बाद बच्चे होना, गर्भधारण के बाद बच्चा न होना, ज्यादा वजन या मोटा होना, परिवार में ओवरी कैंसर, स्तन कैंसर या कोलोरैक्टल कैंसर का इतिहास होना, रजोनिवृत्ति के बाद हार्मोन थेरैपी लेना, फैमिली कैंसर सिंड्रोम हो और इनविट्रो फर्टिलाइजेशन जैसे उपचार लेना आदि.

जल्दी निदान महत्त्वपूर्ण क्यों : शुरुआती निदान से ओवरी कैंसर को सही तरह से समझा जा सकता है. शुरुआती चरण में ओवरी कैंसर का इलाज कराने वाली लगभग 94 प्रतिशत महिलाएं इलाज के बाद 5 साल से अधिक समय तक जीवित रहती हैं. लेकिन ओवरी के केवल 20 प्रतिशत कैंसर का ही प्रारंभिक चरण में पता चलता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कई लक्षण अस्पष्ट होते हैं और अक्सर उन्हें अनदेखा किया जाता है या किसी दूसरी वजह के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है.

अगर डाक्टर को लगता है कि ओवरी का कैंसर हो सकता है तो वह एक या कई जांचें करवाने के लिए आप से कह सकता है, जैसे अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, सीटी स्कैन या एक्सरे जैसे इमेजिंग परीक्षण लेप्रोस्कोपी या कोलोनोस्कोपी, जिस में कैंसर के लक्षणों की जांच के लिए शरीर में पतली ट्यूब से एक कैमरा और लाइट भेजी जाती है. बायोप्सी, जिस में अंडाशय का एक नमूना लेना और उस का विश्लेषण करना शामिल है. स्वास्थ्य की सभी जांचें करने और अन्य स्थितियों से बचने के लिए खून की जांच जरूरी होती है.

स्क्रीनिंग : स्क्रीनिंग टैस्ट में उन लोगों में बीमारी का पता लगा सकते हैं जिन में लक्षण दिखाई नहीं देता है. ओवरी के कैंसर का पता लगाने वाले 2 परीक्षण ट्रांसवैजिनल अल्ट्रासाउंड यानी टीवीयूएस और सीए-125 खून की जांच होती है. सीए-125 खून की जांच में ओवरी कैंसर की कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन का पता लगाया जाता है.

हालांकि ये परीक्षण लक्षणों के विकसित होने से पहले ट्यूमर का पता लगा सकते हैं लेकिन ओवरी कैंसर वाली महिलाओं की मृत्युदर को कम करने में ये कामयाब साबित नहीं हुए हैं. नतीजतन, औसत जोखिम वाली महिलाओं को सामान्यतौर पर इन जांचों को करवाने के लिए नहीं कहा जाता. डाक्टर बढ़े हुए जोखिम वाली महिलाओं के लिए स्क्रीनिंग की सलाह दे सकते हैं. ओवरी कैंसर से पीडि़त लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं को जल्दी निदान मिल जाता है. अकसर, इस तरह के कैंसर में प्रारंभिक चरण में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है.

लक्षणों को इग्नोर न करें : कई महिलाएं तब तक लक्षणों पर ध्यान नहीं देतीं जब तक कि कैंसर एडवांस अवस्था में नहीं आ जाता. लेकिन शुरुआती लक्षणों की जानकारी होने पर कैंसर का पता लगाने में मदद मिल सकती है. यदि आप अपने कैंसर के खतरे को ले कर चिंतित हैं या अप्रत्याशित रूप से पीरियड्स नहीं आ रही है, तो अपने डाक्टर से जरूर मिलें.

(लेखक फोर्टिस ला फेमे हौस्पिटल, दिल्ली में सीनियर कंसल्टैंट और स्त्रीरोग लेप्रोस्कोपिक सर्जन हैं)

ससुराल में मेरी मां के चलते क्लेश हो रहे हैं, अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 25 वर्षीया शादीशुदा महिला हूं. ससुराल और मायका आसपास ही है. इस वजह से मेरी मां और अन्य रिश्तेदार अकसर ससुराल आतेजाते रहते हैं. पति को कोई आपत्ति नहीं है पर मेरी सास को यह पसंद नहीं. वे कहती हैं कि तुम अपनी मां से बात करो कि वे कभीकभी मिलने आया करें. हालांकि ससुराल में मेरे मायके के लोगों का पूरा ध्यान रखा जाता है, मानसम्मान में कमी नहीं है मगर सास का मानना है कि रिश्तेदारी में दूरी रखने से संबंध में नयापन रहता है. इस वजह से घर में क्लेश भी होता है पर मैं अपनी मां से कहूं तो क्या व कैसे कहूं? एक बेटी होने के नाते मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहती. कृपया सलाह दें, क्या करूं ?

जवाब

अधिकाश मामलों में देखा गया है कि जब बेटी का ससुराल मायके के नजदीक होता है तब उस के मायके के रिश्तेदारों का बराबर ससुराल में आनाजाना होता है और वे अकसर पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी करते हैं. इस से बेटी का बसाबसाया घर उजड़ जाता है.

आप की सास का कहना सही है. रिश्ते दिल से निभाएं पर उन में उचित दूरी जरूरी है. इस से रिश्ता लंबा चलता है और संबंधों में गरमाहट भी बनी रहती है.

भले ही हरेक सुखदुख में एकदूसरे का साथ निभाएं पर रिश्तों में दूरियां जरूर रखें. इस से सभी के दिलों में प्रेम व रिश्तों की मिठास बनी रहती है.

आप अपनी मां से इस बारे में खुल कर बात करें. वे आप की मां हैं और यह कभी नहीं चाहेंगी कि इस वजह से बेटी के घर में क्लेश हो. हां, एक बेटी होने का दायित्व उठाने में आप को पीछे नहीं रहना है. इसलिए एक निश्चित तिथि या छुट्टी के दिन आप खुद ही मायके जा कर मां का हालचाल लेती रहें. आप उन से फोन पर भी नियमित संपर्क में रहें, मायके वालों के सुखदुख में शामिल रहें. यकीनन, इस से घर में क्लेश खत्म हो जाएगा और रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.

प्यारा डाकू: नौकरानी ने कैसे दिलाई मां की याद

‘‘हूं, तो आ गई भागवंती. कितनी बार कहा कि थोड़ा जल्दी आया कर, पर तू सुने तब न. खैर, चल जल्दीजल्दी सफाई कर ले, मु?ो भी बाहर जाना है,’’ कह कर मैं आश्वस्त हो कर फैले हुए कपड़े समेटने लगी, पर भागवंती बुत बनी खड़ी रही. उसे देख कर मैं बोली, ‘‘क्या बात है, खड़ी क्यों है?’’

‘‘बीबीजी…’’

‘‘हांहां, बोल, क्या बात है?’’

‘‘बीबीजी, मेरी लड़की…’’ कह कर वह फिर चुप हो गई.

‘‘लड़की, क्या हुआ तुम्हारी लड़की को?’’ मैं ने थोड़ा घबरा कर पूछा.

‘‘कल होली है न, बीबीजी. वह आज शाम दामाद के साथ आ रही है.’’

‘‘ओह,’’ मैं ने आह भरी, ‘‘बड़ी पागल है तू. इस में घबराने की क्या बात है? तू ने तो मु?ो डरा ही दिया था. जा, अब जल्दी काम कर.’’

‘‘बीबीजी, कुछ रुपए मिल जाते तो…’’

‘‘रुपए? लेकिन अभी तो महीने के

7 दिन ही गुजरे हैं,’’ फिर कुछ सोच कर मैं बोली, ‘‘कितने रुपए चाहिए?’’

‘‘300 रुपए, बीबीजी,’’ वह बहुत धीमी आवाज में बोली और याचनाभरी नजरों से मु?ो घूरने लगी.

मैं असमंजस में पड़ गई कि इसे इतने रुपए कहां से दूं. सोचा, मना कर दूं, पर उस की याचनामिश्रित, आशापरक नजरों ने मु?ो ऐसा करने से रोक दिया.

मैं कोठी वाली बीबीजी थी, पर मेरा हाल भी रेशमी परदे वाले उस घर की तरह ही था जिस के अंदर गरीबी अपने पूरे साजशृंगार के साथ दुलहन बनी बैठी थी. हां, इतना जरूर है कि दो जून भरपेट खाने को रोटी इज्जत के साथ मिल जाती है. ससुरजी मरने से पहले कोठी बना मेरे नाम कर गए और मैं कोठी वाली बीबीजी बन बैठी.

मैं ने भागवंती की ओर देखा, वह अभी तक टकटकी लगाए खड़ी थी. अचानक मु?ो कुछ याद आया और मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ उसे रुपयों के लिए स्वीकृति दे दी. अपने सांवले, ?ार्रियों वाले चेहरे पर लुढ़क आए आंसू उस ने ?ाट से अपने आंचल से पोंछे और आश्वस्त हो कर दोगुने जोश में काम में जुट गई. बीचबीच में बड़बड़ा रही थी, ‘आप बहुत दयालु हैं, मेरी तो यही दुआएं हैं कि आप के एक का लाखों बने.’

मैं चुपचाप पलंग पर लेट गई और आंखें बंद कर 20 बरस पुरानी यादों में खो गई.

तब मैं बहुत छोटी थी. बड़ी दीदी शादी के बाद पहली बार ससुराल से होली के अवसर पर आ रही थीं. 2 दिनों पहले ही पिताजी के औफिस में चिट्ठी आई थी और उन्होंने एक क्षण भी जाया न कर के अग्रिम वेतन व साइकिल के लिए अर्जी दे दी थी. काफी दौड़धूप व सिफारिश के बाद दूसरे ही दिन अग्रिम वेतन व साइकिल प्राप्त कर वे औफिस से जल्दी घर आ गए थे.

उस दिन मांपिताजी दोनों ही खुश थे. मां ने शाम को सामान की लंबी लिस्ट पिताजी के सुपुर्द कर उन की साइकिल पर बड़ेबड़े 2 ?ाले करीने से टांग दिए. पिताजी के जाने के बाद मां छोटी दीदी को सम?ाने लगीं, ‘कल गुडि़या आ रही है, सीमू. घर चमका दे.’

‘‘हां, अलमारी के पेपर भी बदल देना वरना जीजाजी कहेंगे, कितनी गंदी है मेरी साली,’ मेरे भाई ने मुंह थोड़ा टेढ़ा कर के नाटकीय अंदाज में कहा, तो सभी हंस पड़े. फिर मां ने उस का कान पकड़ कर कहा, ‘चल यहां से, बहुत बोलता है. देख, कहीं जाले तो नहीं हैं. ठीक से साफ कर दे,’ इतना कह कर मां रसोई में जा कर व्यस्त हो गईं.

रात काफी देर तक हम लोग दीदी की बातें करते सो गए पर मांपिताजी जाने कितनी देर तक खुसुरफुसुर करते रहे. मां ने सवेरे सब को जल्दी उठा दिया. सब लोग नहाधो कर तैयार हो गए. महरी अपनी साड़ी समेटे हंसती हुई आंगन धो रही थी और मां न जाने उसे क्याक्या निर्देश देती जा रही थीं. हम सब की निगाहें द्वार पर टिकी थीं. क्योंकि ट्रेन आ जाने की सूचना पिताजी से मिल गई थी. एकाएक एक तिपहिया स्कूटर घर के पास आ कर रुक गया.

दीदी स्कूटर से उतरीं. वे पहले से बहुत सुंदर लग रही थीं. मु?ो देख कर वे मुसकराईं, फिर ?ाक कर मेरे गाल थपथपाते हुए बोलीं, ‘क्यों, मु?ो पहचान नहीं रही है क्या?’ फिर वे मेरा हाथ पकड़ कर अंदर आ गईं. अंदर आ कर मांपिताजी ने उन्हें कलेजे से लगाया. उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. हम सब दीदी को घेर कर बैठ गए. सारा दिन धमाचौकड़ी होती रही. घर खुशियों से भर गया था. घर में अच्छेअच्छे पकवानों की महक चारों ओर फैल रही थी. उस होली में बहुत मजा आया था. एकएक कर के कभी समूह में पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों का आनाजाना और होली का हुड़दंग, मैं आज तक नहीं भूल पाई.

अगले दिन दीदी को जाना था. मां और पिताजी परेशान से लग रहे थे. आंगन के एक कोने में मां ने पिताजी को बुला कर कुछ कहा तो उन्होंने जल्दी से सिर हिला दिया, जैसे उन की समस्या का समाधान हो गया हो. मैं तब छोटी थी तो क्या, पर सबकुछ देख रही थी, लेकिन सम?ा में कुछ नहीं आया.

मां ने छोटी दीदी को रसोई में बुलाया और उन के कानों से सोने की छोटीछोटी बालियां पिताजी के हाथ पर रख दीं. वे तत्काल बाहर चले गए और फिर कुछ घंटों बाद फलों की टोकरी एवं मिठाई के डब्बे ले कर रिकशे से उतरे. दीदी ने हमें प्यार किया. रुपए दिए और मां के गले लग कर रो पड़ीं, फिर पिताजी ने उन्हें आशीष दे कर विदा किया.

बड़ी दीदी इतने सामान से लदी हाथ हिलाते हुए विदा हो गईं और छोटी दीदी बारबार अपनी उंगलियां अपने सूने कानों पर फेरती हुई आंसू पोंछती अंदर आ गईं. मां ने उन्हें प्यार से देखा और स्नेहभरे स्वर में कहा, ‘नई ला दूंगी, सीमू.’

हैसियत से ज्यादा दे देने के बाद भी कुछ और देने की चाह लिए मां काफी शांत हो गई थीं. पड़ोसी देर तक बाहर ही पिताजी के साथ खड़े रहे और दीदी की अच्छी शादी और अच्छी विदाई का गुणगान करते जा रहे थे. पिताजी के चेहरे पर संतोष का भाव प्रदीप्त होता जा रहा था.

‘‘काम हो गया, बीबीजी,’’ कहते हुए भागवंती ने तंद्रा तोड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और राखी पर मिले 500 में से 300 रुपए उस के हाथ पर रख दिए. उस की आंखों की चमक ठीक मां की आंखों की चमक की तरह ही थी. मैं मुसकराई कि आज फिर ममता की छांव में सबकुछ लूट कर ले जाने वाला प्यारा डाकू आने वाला है, जिस के स्वागत में खुशी से ?ामती जाती हुई भागवंती को मैं खिड़की से देर तक निहारती रही. तभी किसी ने मेरा आंचल खींचा और जब मैं ने पलट कर देखा तो मेरी 5 वर्षीय बिटिया पल्लू पकड़े मुसकरा रही थी. मैं ने उसे प्यार से हवा में उछाला और ‘प्यारा डाकू’ कहते हुए सीने से लगा लिया.

ऋतु मंजरी

चोरों के उसूल : शादी के बाद रवि की जिंदगी में क्यूं आया भूचाल?

रामनाथ को बंगलौर आए मुश्किल से एक दिन हुआ था. अभी 3 दिन का काम बाकी था. एक कंपनी में काम के सिलसिले में बातचीत चल रही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन दिल्ली से आया था. उस की पत्नी रोते हुए बोल रही थी, ‘‘रवि की तबीयत बहुत खराब हो गई है. उसे अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड में दाखिल किया है. आप के बिना मैं अपने को बेसहारा महसूस कर रही हूं. आप जितना जल्दी हो सके वापस आ जाइए.’’

उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. वह एकदम से उठ खड़ा हुआ. अपनी मजबूरी बता कर उस ने कंपनी के अफसर से रुखसत ली. होटल से अपना सामान समेटा और सीधा रेलवे स्टेशन पहुंच गया. टिकट काउंटर पर उस ने अपनी परेशानी बताई, पर काउंटर क्लर्क बोला, ‘‘अगले 3 हफ्ते तक आरक्षण मुमकिन नहीं है. मुझे बहुत अफसोस है कि मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता.’’

रामनाथ ने टिकट लिया और बिना आरक्षण वाले डब्बे की ओर दौड़ पड़ा.

गाड़ी छूटने में ज्यादा समय नहीं था. वहां डब्बे में भीड़ देख कर वह घबरा गया. पांव रखने तक की जगह नहीं थी. वह आरक्षित डब्बे की ओर दौड़ा. मुश्किल से डब्बे में चढ़ा ही था कि गाड़ी चल पड़ी. उस का दुख उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. कोई भी उस की पीड़ा को पढ़ सकता था.

एक सहयात्री ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘भाई साहब, आप बड़े दुखी लग रहे हैं, क्या बात है?’’ पूरी बात सुनने पर वह बोला, ‘‘आप फिक्र न करें. आप मेरे साथ बैठें. इतनी दूर का सफर आप खड़े हो कर कैसे करेंगे.’’ रामनाथ को थोड़ा सहारा मिला.

वह एक बड़ी कंपनी का मामूली सेल्समैन था. हवाई जहाज से सफर करने की उस की शक्ति नहीं थी. जब वह दिल्ली से बंगलौर के लिए चला था तो रवि की तबीयत खराब जरूर थी पर इतनी गंभीर नहीं थी, वरना वह बंगलौर न आता.

शादी के 15 साल बाद रवि उन की जिंदगी में खुशियां बिखेरने आया था. रहरह कर उस का मासूम चेहरा उस की आंखों के सामने आ रहा था. वह जल्द से जल्द अपने बेटे के पास पहुंच जाना चाहता था. गाड़ी तेजी से दौड़ी जा रही थी, लेकिन रामनाथ को वह रेंगती लग रही थी.

यह उस की खुशकिस्मत थी कि कृष्णकांत जैसा भला सहयात्री उसे मिल गया. उस ने उसे कुछ खाने को दिया. दुख की घड़ी में भूख भी नहीं लगती. उस ने पानी के दो घूंट पी लिए. उसे कुछ राहत मिली.

कृष्णकांत बोला, ‘‘भाई साहब, आप अपना मन आसपास के वातावरण से जोडि़ए. कुछ बातचीत कीजिए, वरना यह सफर काटे न कटेगा. ज्यादा चिंता न करें. दिल्ली में आप के भाईबंधु और पत्नी आप के बेटे का पूरा ध्यान रख रहे होंगे. हम आप के साथ हैं. आप का बेटा जरूर ठीक हो जाएगा,’’ सांत्वना के इन दो शब्दों ने उस के दुखी मन पर मरहम का काम किया.

तभी टिकट चेकर आ गया. इस से पहले कि वह रामनाथ से टिकट के बारे में पूछता, कृष्णकांत उसे एक ओर ले गया और उसे पूरी बात बताई तथा रामनाथ की सहायता करने के लिए प्रार्थना की. टिकट चेकर बड़ा घाघ था. उस ने बड़ी सख्ती से मना कर दिया और रामनाथ को अगले स्टेशन पर आरक्षित डब्बे से उतरने की ताकीद कर दी.

कृष्णकांत ने रामनाथ को आराम से बैठने के लिए कहा. उस ने टिकट चेकर के कान में कुछ फुसफुसा कर कहा. उस के चेहरे पर रौनक छा गई. उस ने सिर हिला कर हामी भरी और आगे बढ़ गया. कृष्णकांत ने राहत की सांस ली.

टिकट चेकर से हुई पूरी बात उस ने रामनाथ को बताई और बोला, ‘‘सिर्फ बैठ कर सफर तय करना होता तो कोई समस्या नहीं होती. इस दौरान 2 रातें भी आएंगी. अगर आप सोएंगे नहीं और ठीक से आराम नहीं करेंगे तो आप की तबीयत भी खराब हो सकती है. मैं ने टिकट चेकर से बात कर ली है. वह आप को बर्थ दे देगा. आप को थोड़े पैसे देने पड़ेंगे. आप को कोई एतराज तो नहीं है न?’’

अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें. रामनाथ बोला, ‘‘भाई साहब, आप जैसा सज्जन व्यक्ति बहुत कम लोगों को मिलता है. आप मेरी इतनी मदद न करते तो न जाने मेरा सफर कितना तकलीफदेह होता. मेरे लिए आप जितना कर रहे हैं, मैं स्वयं यह शायद ही कर पाता.’’

कई यात्री अपने मित्रों के साथ बातचीत करने में मशगूल थे तो कई अपने परिवार के सदस्यों के साथ खिलखिला रहे थे. कुछ खानेपीने में लगे थे. रामनाथ यह सब देखसुन रहा था, पर उस का पूरा ध्यान अपने पुत्र और पत्नी पर ही टिका था. बीमार बेटे और पत्नी का व्यथापूर्ण चेहरा रहरह कर उस की आंखों के सामने लहरा रहा था.

दुख भी इनसान को थका देता है. बैठेबैठे उसे नींद ने आ घेरा. उसे लगा जैसे वह रवि और अपनी पत्नी के साथ सफर कर रहा था. तीनों कितने खुश लग रहे थे. रवि अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त था. अपने पुत्र और पत्नी के सान्निध्य से उस के चेहरे पर खुशी के भाव आ रहे थे. किसी बच्चे के रोनेचिल्लाने से उस की नींद टूट गई और उस ने स्वयं को वास्तविकता के धरातल पर पड़ा पाया. गाड़ी किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी.

उस ने मोबाइल पर अपनी पत्नी से संपर्क साधा और रवि का हालचाल पूछा. वह बोली, ‘‘डाक्टर रवि के इलाज में लगे हैं. वह अब होश में है और बारबार आप को पूछ रहा है. उसे ग्लूकोज चढ़ा रहे हैं.घर के सभी बड़े यहीं पर हैं. डाक्टर कहते हैं कि अब स्थिति काबू में है. बस, आप जल्दी से आ जाइए, तभी मुझे सुकून मिलेगा.’’

रामनाथ को अपनी पत्नी से बातचीत कर के कुछ ढाढ़स बंधा. उस ने कृष्णकांत को अपने पुत्र की स्थिति के बारे में बताया. वह बोला, ‘‘मैं कहता था न कि आप का पुत्र जरूर ठीक हो जाएगा. अब आप का दुख कुछ कम हुआ होगा. आप अपनी पत्नी से बातचीत करते रहिए. चिंता न करें. सब ठीक होगा.’’

तभी टिकट चेकर रामनाथ के पास आया. वह उसे एक ओर ले गया और बोला, ‘‘मैं ने आप के लिए बर्थ का इंतजाम कर दिया है. आप को मुझे 100 रुपए देने होंगे. मेरे साथ आइए. मैं जो भी बोलूं आप चुपचाप सुनते रहिए. आप कुछ भी बोलिएगा नहीं.’’

रामनाथ उस के पीछे चल पड़ा.

एक बर्थ के पास पहुंच कर टिकट चेकर रुक गया. वहां एक युवक बर्थ पर लेटा आराम कर रहा था. रामनाथ को संबोधित करते और उस युवक को सुनाते हुए वह बोला, ‘‘गाड़ी में चढ़ने के बाद अपनी बर्थ पर बैठना चाहिए. अपने यार दोस्तों की बर्थ पर बैठ कर गप्पें मारने से होगा यह कि आप की बर्थ किसी और को भी दी जा सकती है. आइंदा खयाल रखिए.’’

फिर टिकट चेकर उस युवक से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि आप को यह बर्थ खाली करनी होगी. जिस के नाम पर यह बर्थ आरक्षित थी वह आ गया है. आप चिंता न करें. मैं आप को दूसरी बर्थ दिला दूंगा,’’ उस ने अपनी जेब से 50 रुपए का नोट निकाला और उसे थमा दिया.

रामनाथ ने अपना सामान बर्थ पर रखा. रात का समय हो चला था. सभी अपना बिस्तर लगा रहे थे. उस ने भी अपना बिस्तर लगाया और लेट गया. उस ने सुन रखा था कि चोरों के भी अपने उसूल होते हैं. एक बार किसी को जबान दे दी तो उस की मानमर्यादा का पालन करते हैं. यह टिकट चेकर किस श्रेणी में आता था वह अनुमान नहीं लगा पाया. कहीं कोई उस से ज्यादा पैसे देने वाला आ गया तो… इसी उधेड़बुन में उसे कब नींद ने आ घेरा उसे पता हीं नहीं चला.

उम्रकैद की सजा पलट कर हाईकोर्ट ने बाबा राम रहीम को बरी किया

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को डेरा मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या के मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पैशल सीबीआई अदालत के फैसले को पलट कर 28 मई की सुबह बरी कर दिया. राम रहीम के साथ 4 अन्य दोषियों को भी हाईकोर्ट ने रंजीत सिंह की हत्या मामले से बरी कर दिया है.

हाईकोर्ट का यह फैसला उस वक़्त आया है जब देश में लोकसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है. लोकसभा चुनाव के 7वें और अंतिम चरण में बिहार, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की शेष सीटों पर चुनाव होगा.

पंजाब की 13 सीटों के लिए 328 उम्मीदवार अपना दावा ठोंक रहे हैं. पंजाब की जिन 13 सीटों पर आखिरी चरण में वोट डाले जाएंगे उन में गुरदासपुर, अमृतसर, खडूर साहिब, जालंधर, होशियारपुर, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, संगरूर और पटियाला शामिल हैं. इन में से अधिकांश जगहों पर डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम का खासा प्रभाव है, जिस का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है.

गौरतलब है कि 2021 में पंचकूला में स्पैशल सीबीआई अदालत ने राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को हत्या जैसी संगीन आपराधिक घटना को अंजाम देने के 19 साल बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 10 जुलाई, 2002 को डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की कुरुक्षेत्र के खानपुर कोलियां में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. स्पैशल सीबीआई अदालत ने इस में गुरमीत राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को दोषी पाया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 28 मई, 2024 की सुबह जब कोर्ट बैठी तो चंद मिनटों में ही जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की बैंच ने स्पैशल सीबीआई अदालत का फैसला पलट कर सब को बरी कर दिया.

सिरसा डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल था, जिस को पुलिस रफादफा करने में जुटी थी. पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत सिंह के बेटे जगसीर सिंह ने जनवरी 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी. उस के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था और अक्तूबर 2021 में डेरा प्रमुख राम रहीम के साथ उस के 4 सहयोगियों को दोषी करार दिया गया था. शुरुआत में इस मामले में राम रहीम का नाम नहीं था, लेकिन 2006 में राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयान पर डेरा प्रमुख को आरोपियों में शामिल किया गया.

22 साल पहले रणजीत सिंह की हत्या एक शक की वजह से की गई थी. दरअसल एक गुमनाम साध्वी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उस ने राम रहीम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और उस की जांच करवाने की मांग की थी. इस चिट्ठी को मीडिया में भी सर्कुलेट किया गया.

राम रहीम को शक था कि सिरसा के डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह ने ही साध्वी के यौन शोषण की गुमनाम चिट्ठी अपनी बहन से लिखवाई थी. इस पत्र में कहा गया था कि कैसे डेरा प्रमुख महिलाओं से यौन शोषण करते हैं. गुमनाम पत्र को सार्वजनिक करने में रणजीत सिंह की संदिग्ध भूमिका मानते हुए राम रहीम ने उस को तुरंत डेरा से हटा दिया था.

उस गुमनाम चिट्ठी को सिरसा के ही एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपने सांध्यकालीन समाचारपत्र ‘पूरा सच’ में छाप दिया था. स्थानीय मीडिया में मामला उछलने के बाद 10 जुलाई, 2002 को रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई और 3 माह बाद 24 अक्तूबर, 2002 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति पर भी हमला कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया. घायल अवस्था में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को दिल्ली ला कर अपोलो अस्पताल में भरती किया गया मगर 21 नवंबर, 2002 को अपोलो अस्पताल में रामचंद्र की मौत हो गई.

घटना की लंबी सीबीआई जांच चली और 19 साल बाद 18 अक्टूबर, 2021 को पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और 4 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. मामले में आरोपी बनाए गए राम रहीम के समर्थक अवतार सिंह, कृष्ण लाल, जसबीर सिंह और सबदिल सिंह को भी उम्रकैद की सजा मिली. सुनवाई के दौरान अवतार सिंह की मौत हो गई. सीबीआई जज ने बाकी सभी को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए राम रहीम पर 31 लाख रुपए, सबदिल पर 1.50 लाख रुपए, जसबीर और कृष्ण पर 1.25-1.25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था.

सजा सुनाते वक्त पंचकूला की सीबीआई अदालत ने कहा था कि इस तथ्य पर कोई संदेह नहीं है कि गुमनाम पत्र के प्रसार से गुरमीत राम रहीम काफी व्यथित था. उस पर डेरा की साध्वियों के यौन शोषण के गंभीर आरोप थे और उस के भक्तों की बीच उस की छवि को नुकसान पहुंचा था.

सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद हरियाणा से ले कर पंजाब तक राम रहीम के समर्थकों ने जिस अंदाज में हिंसा का नंगा नाच किया था और सरकारी संपत्तियों को तोड़ाफोड़ा, उस से कई सवाल खड़े हुए थे. सवाल यह कि क्या कोई आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायियों को तांडव मचाने की सीख देता है? क्या गुरमीत राम रहीम और उन के समर्थक विशुद्ध तौर पर गुंडे हैं? डेरा समर्थकों के उत्पात से एक बात साफ हो गई थी कि इहलोक से ज्यादा परलोक सुधारने की राह बताने वाला गुरमीत राम रहीम न केवल संत के चोले में गुंडा है, बल्कि समर्थकों के रूप में उस ने अनेक गुंडों, अपराधियों को प्रश्रय दे रखा है.

यह जानना भी दिलचस्प है कि आखिर वह कौन अधिकारी था जिस की अथक खोजबीन और जांच के बाद रौकस्टार बाबा राम रहीम सलाखों के पीछे गया था. राम रहीम के खिलाफ जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के डीआईजी मुलिंजा नारायणन को 2007 में सौंपी गई थी. मुलिंजा नारायणन पर डेरा के समर्थकों के साथसाथ वरिष्ठ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों की तरफ से केस को बंद करने का जबरदस्त दबाव था. लेकिन तमाम अवरोधों के बावजूद नारायणन ने जांच पूरी की और चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की.

उल्लेखनीय है कि गुरमीत राम रहीम के खिलाफ 2002 में एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन 5 वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. 5 वर्षों तक जब यह केस ऐसे ही लटका रहा तो पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले को सीबीआई के हवाले करने का आदेश दिया.

जिस दिन यह केस डीआईजी मुलिंजा नारायणन के पास पहुंचा, उसी दिन उन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन के कमरे में आ कर कहा कि यह केस आप को बंद करने के लिए दिया जा रहा है. इस पर नारायणन ने उन से कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर मामला उन के हवाले है, लिहाजा, वे जांच पूरी करेंगे. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से साफतौर पर कह दिया कि वे जांच को बंद नहीं करेंगे और किसी का बेजा आदेश भी नहीं मानेंगे.

रणजीत सिंह की हत्या की तह में जाने के लिए जरूरी था उस गुमनाम पत्र को लिखने वाली महिला की तलाश करना. यौन शोषण के मामले में यह पहला ऐसा मामला था जिस में पीड़िता सामने नहीं आई थी, उस के पत्र के आधार पर एक मुश्किल जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही थी.

पीड़ित के बारे में जानकारी हासिल कर पाना बेहद ही मुश्किल था. लगातार कोशिश के बाद चिट्ठी के बारे में यह जानकारी मिली कि वह पंजाब के होशियारपुर से लिखी गई थी. लेकिन चिट्ठी के पीछे कौन शख्स था, इस की जानकारी नहीं मिल रही थी. बहुत ही कठिनाई के बाद डीआईजी एम नारायणन पीड़ित तक पहुंच पाए. जब ऐसी कठिन हालात में पीड़ित तक पहुंचने में कामयाबी मिली तो पीड़ित और उस के परिवार को समझाना उन के लिए बहुत मुश्किल साबित हुआ. लेकिन लगातार कोशिश के बाद वे पीड़ित और उस के परिवार को मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में कामयाब हो गए. जांच आगे बढ़ी और धीरेधीरे सारी परतें उधड़ती चली गईं.

जब 19 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आया तब खुशी जताते हुए अवकाशप्राप्त डीआइजी मुलिंजा नारायणन ने कहा था कि वे बहुत खुश हैं कि उन के द्वारा की गई जांच अंतिम फैसले पर पहुंची. लेकिन अब हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई के फैसले को पलट कर राम रहीम को रिहा करने की खबर ने उन्हें निश्चित तौर पर व्यथित किया होगा. उन के द्वारा की गई तफ्तीश और सबूतों व गवाहों को जुटाने के अथक श्रम पर इस फैसले ने पानी फेर दिया है.

हालांकि, मामले में हाईकोर्ट की तरफ से सजा रद्द करने के बाद भी डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह अभी जेल में ही रहेगा क्योंकि उस के खिलाफ अन्य संगीन मामले भी दर्ज हैं जिन की सजा वह भुगत रहा है. 2 साध्वियों के यौन शोषण मामले में उसे 20 साल और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में भी उसे उम्रकैद की सजा हुई है, जिसे वह काट रहा है.

राम रहीम को 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला की सीबीआई की विशेष अदालत ने इन मामलों में दोषी करार दिया था. रेप और छत्रपति हत्याकांड पर अदालत के फैसले को भी राम रहीम ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है, फिलहाल रणजीत सिंह हत्या के केस में मिली बड़ी राहत के बाद अगर उस ने अपने प्रभाव से भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया तो हो सकता है बाकी के संगीन मामलों में भी उस को बाइज्जत बरी कर दिया जाए. फिलहाल तो राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है.

टाइम मैनेजमेंट से करें अकेलेपन का मुकाबला

45 साल के राधेश्याम मां, पत्नी और 12 साल की बेटी के साथ आराम से जीवन गुजरबसर कर रहे थे. उन की 65 साल की मां भी थी. किसी तरह की कोई दिक्कत न थी. उन का अपना छोटा सा कपड़े बेचने का काम था. उस से परिवार के गुजरबसर लायक कमाई हो रही थी. इस बीच एक दिन दुर्घटना में उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. इस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी. कुछ माह तो गुजर गए.

इस के बाद राधेश्याम ने दुकान के साथ ही साथ अपने घर और बेटी को खुद संभालना शुरू किया. पहले यह काम पत्नी कर लेती थी. पत्नी के पास अपनी स्कूटी थी. कई बार अगर राधेश्याम को जरूरी काम होता था तो पत्नी दुकान भी संभाल लेती थी. दुकान पर काम करने वाले 3 नौकर थे. राधेश्याम शहर के साप्ताहिक बाजारों में ठेले पर दुकान लगाने के लिए 2 नौकर भेजता था. एक नौकर के साथ वह अपनी दुकान संभाल लेता था.

पत्नी के बाद उस ने अपनी दुकान पर एक नौकर की संख्या बढ़ा दी. दुकान पर सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया. दुकान से वह कुछ समय निकालने लगा. इस समय को उस ने अपने घर और बेटी को देना शुरू किया. मां की मदद करने लगा. जो राधेश्याम घर का एक भी काम नहीं करता था, केवल दुकान देखता था, आज घर में सफाई और रखरखाव तक करने लगा था. मां उसे मना भी करती, फिर भी वह काम करता. पहले वह खुद अपने कपड़े और सामान बिखेर दिया करता था.
दुकान के कागजात इधरउधर रखता था. इस के बाद जरूरत पड़ने पर पत्नी से मांगता था और चीखपुकार मचाता था. बेटी को कहना पड़ता था कि बाजार, पार्क और सिनेमा दिखा दो. वह बहाना बना देता था. अब वह बिना कहे मां और बेटी को ले जाता था. पत्नी की स्कूटी का हमेशा खयाल रखता था. उस को कभीकभी चला भी लेता था. बेटी के साथ उस का स्वभाव एकदम बदल गया था. गुस्सा खत्म हो गया था. घर में उस ने मदद के लिए 2 नौकर रख लिए. घर को देख कोई नहीं कह सकता था कि इस घर में मालकिन नहीं है. खुद भी पूरी तरह से फिट और स्मार्ट दिखता था.

जिंदगी के 2 पहिए होते हैं पतिपत्नी

32 साल के किशोर की शादी स्वाति के साथ हुई थी. उन के 5 साल का बेटा था. किशोर और स्वाति ने प्रेमविवाह किया था. वह गांव से दूर शहर में रहता था. कुछ दिनों से स्वाति झगड़ा करने लगी थी. कई बार उस ने पुलिस से किशोर की झूठी शिकायत भी की थी. पुलिस ने एक बार उस को 24 घंटे के लिए थाने में बिठा कर रखा था. जब किशोर ने लिखित में माफी मांगी तो पुलिस ने छोड़ दिया. इस तरह के झगड़े के बीच एक दिन स्वाति ने कहा कि वह तलाक लेना चाहती है. किशोर भी रोजरोज के झगड़े से तंग आ गया था. उस ने तलाक की सहमति दे दी.

यहां समस्या फंसी कि 5 साल का बेटा कहां रहेगा? स्वाति ने कहा, बेटा वह नहीं रखेगी क्योंकि उस के पास कोई कमाई का जरिया नहीं है. वह किशोर से कोई गुजारा भत्ता नहीं लेना चाहती. किशोर ने बेटे को अपने पास रख लिया. किशोर ने घर में एक आदमी और एक औरत नौकर रखा. जब औफिस जाता था, बेटे को डे-केयर स्कूल में छोड़ देता था. जिस दिन बेटे की स्कूल से छुट्टी होती थी, वह औफिस के काम को ‘वर्क फ्रौम होम’ करता था. वह अपने साथ बेटे को भी घर के कामकाज व गार्डन को संभालने में लगा लेता था. अकसर बापबेटे साथ होते थे. किशोर का मानना था कि पतिपत्नी एक गाड़ी के दो पहिए जैसे होते हैं. एक पहिया खराब हो जाए तो दूसरे पहिए को जीवन और परिवार की गाड़ी अपने बल पर खींचनी चाहिए.

अकेलेपन में ‘टाइम मैनेजमेंट’ करें

आज के दौर में कम उम्र के पतिपत्नी भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं. ऐेसे में पति किस तरह से खुद का अकेलापन दूर करे और अपनी लाइफ स्टाइल भी कैसे बनाए, यह समझने की जरूरत है. यह अकेलापन 2 कारणों से हो रहा है, एक में जीवनसाथी की असमय मृत्यु हो जाती है, दूसरे में शादी के बाद तलाक के कारण अकेलापन होता है. यह बात सही है कि पत्नी के बिना अकेलापन बहुत महसूस होता है. ऐसे में अगर बेचारा बन कर रहेंगे तो जीवन और कठिन हो जाएगा. तो पहले यह सोच लें कि आप को ‘बेचारा’ बन कर नहीं रहना है. ऐसा न लगे कि पत्नी नहीं है तो ‘देवदास’ की तरह से उदास रहने लगे हैं.
अपने समय का मैनेजमेंट करें. पत्नी रहती है तो आदमी बिंदास जीवन जीता है. उसे घरपरिवार की चिंता नहीं रहती. कैसी भी पत्नी हो, ज्यादातर पति का साथ देती हैं. ऐसे में पत्नी की कमी रहती है. उस कमी को पूरा करने के लिए घर की देखभाल खुद करें. जरूरत हो तो घरेलू नौकर रख लें. कोशिश करें कि महिला नौकर कम रखें. अगर रखें तो उन के काम वाली जगहों पर सीसीटीवी लगा कर रखें. अपना रहनसहन और खानापीना ठीक से करें. अपनी पर्सनल केयर खुद करें. मन को खुश रखने वाले काम करें.

औफिस और बिजनैस से समय निकाल कर ऐक्सरसाइज करें. मनपंसद खाएं और जरूरत हो तो बना कर खाएं. खाली समय में दोस्तों के साथ बैठें. अगर संयुक्त परिवार है या परिवार में मां या बहन हैं तो भी उन पर बहुत निर्भर न रहें. अगर घर भी नहीं है तो भाई और भाभी के साथ रहने की जगह पर बहनबहनोई के साथ रहना ज्यादा अच्छा होगा. बहन को भाई बोझ नहीं लगता पर कई बार भाभी को देवर बोझ लगने लगता है.
अगर अकेले हैं, अपना घर नहीं है, सक्षम हैं, तो अपार्टमेंट में अपना फ्लैट ले लें. अगर खरीदने के पैसे नहीं हैं तो किराए पर ले लें. अपार्टमेंट में रहना सुरक्षित और आरामदायक होता है. बहुत सारे काम मेंटिनैंस के हिस्से आ जाते हैं. घूमनेटहलने की जगहें ज्यादा होती है. जिम और पूल भी होते हैं. कई बार यहां रिटायरमैंट के बाद भी रहने वाले मिल जाते हैं जिस से एक ग्रुप भी मिल जाता है.

हौबी बना लें

अच्छी सी हौबी अकेलापन दूर करने का सब से बड़ा साधन होती है. इस में समाज की सेवा करने वाले काम भी कर सकते हैं. उस में बहुत लोगों से मिलना हो जाता है. जिस से अकेलापन दूर हो जाता है. राजनीति में भी समय लगा सकते हैं. यहां पर थोड़ा सा पावर मिलने लगता है. तो आप का समय कट सकता है. इन सब कामों के साथ अपना ध्यान जरूर रखें. आप हिट तभी होंगे जब फिट रहेंगे. अकेलेपन का शिकार हो कर बीमार होने से अच्छा है कि अपनी पंसद के काम कर के खुश रहें. दूसरों को इस बात का एहसास न होने दें कि आप अकेलेपन का शिकार हैं.
अकेलेपन को दूर करने के लिए नशे और गलत संगत में न पड़ें. कई बार इस का दुरुपयोग लोग कर लेते हैं. अगर आप के पास संपत्ति और जायदाद है तो यह परेशानी कभी भी गले पड़ सकती है. ऐसे में इस तरह के लोगों से दूर रहें. कई आपराधिक गिरोह ऐेसे हैं जो बूढ़े और अकेले रह रहे लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए महिलाओं, घरेलू नौकरों, आप के घर आनेजाने वाले, जैसे धोबी, माली, और दूसरे नौकर को तैयार करते हैं. इस के बाद आप को अपना शिकार बना लेते हैं.

समझदारी से रखें नौकर और रिश्तेदार

कई लोग अकेलेपन में घर के खाली पड़े कमरों में किराएदार रख लेते हैं. किराएदार रखते समय यह देखें कि वह परिवारवाला हो. अकेले आदमी या लड़की को किराए पर मत रखें. किराएदार रखने से पहले उस की छानबीन कर लें, जिस से आगे धोखा न हो सके. आप जिस को भी अपने साथ रखें, होशियारी के साथ रखें. भले ही वह नौकर, किराएदार या रिश्तेदार ही क्यों न हो? अपने घर नियमित आनेजाने वाले लोगों से भी सचेत रहें.
आज के समय में टैक्नोलौजी ने जीवन को सरल बना दिया है. होम अपलाइंसैस आप के साथी जैसा ही काम करते हैं. इन में वाशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर, डिशवाशर, रोटीमेकर, इडलीमेकर, सैंडबिचमेकर, कपड़ा प्रैस करने की मशीन बहुतकुछ हैं जिन का प्रयोग आदमी भी आसनी से कर के मेहनत और समय बचा सकते हैं, स्मार्ट दिख सकते हैं, आत्मनिर्भर और स्मार्ट रह सकते हैं. अकेलेपन को दूर करने के लिए कई बार लोग दूसरी शादी करने का प्लान कर लेते हैं. यह फैसला लेते समय बहुत सावधान रहें. सही रिश्ता मिलने पर ही शादी करें.

तांत्रिकों के चक्कर में फंस कर अपनों का खून

इस 21 मई को मुजफ्फरनगर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई. अपने ऊपर आए कथित साए से छुटकारा पाने के लिए सगी चाची ने अपनी मां के साथ मिल कर एक महीने के अंदर अपने देवर के 2 बच्चों की हत्या कर दी. दोनों हत्यारिन महिलाओं ने एक तांत्रिक के कहने पर इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था.

दरअसल 7 साल के बच्चे केशव के मर्डर केस में मृतक की चाची अंकिता और उस की मां रीना को दोषी पाया गया. चाची ने तांत्रिक के कहने पर एक नहीं बल्कि दो बच्चों की बलि देने का जुर्म कबूल किया. उस ने तांत्रिक भगत रामगोपाल व अपनी मां रीना के कहने पर घर में नीचे अकेला देख कर केशव को दूसरे कमरे में ले जा कर पुराने दुपट्टा से गला दबा कर उसे मार दिया था. इस के बाद एक कागज के टुकड़े पर लाल रंग से लिख कर छत पर डाल दिया जिस से घर वालों को लगे कि यह किसी ऊपरी साए का काम है. एक माह पहले केशव के छोटे भाई 4 वर्षीय अंकित उर्फ लक्की की भी उसी ने गला दबा कर हत्या की थी, जबकि घरवालों को लगा था कि वह बीमारी से मरा है.

जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से तंत्रमंत्र का कुछ सामान और एक कागज में कुछ लिखा नजर आया था. पुलिस ने लिखावट का मिलान किया तो मृतक की चाची से लिखावट का मिलान हुआ. उस के बाद कड़ाई से पुलिस ने पूछताछ की तो महिला ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इस खौफनाक हत्याकांड में चाची और उस की मां को जेल भेज दिया.

अंधविश्वास के चक्कर में हत्यारिन बनी मां

हाल ही में (25 जनवरी, 2024 ) हरिद्वार में हर की पौड़ी पर तंत्रमंत्र के चक्कर में फंस कर एक मां ने ही 7 साल के बेटे को डुबो कर मार डाला. दरअसल एक तांत्रिक ने कहा था कि हरिद्वार में गंगा की धार में बच्चे को डुबकी लगवाने से उस का ब्लड कैंसर ठीक हो जाएगा. मां ने तांत्रिक की बात सुनी और अपने बीमार बच्चे को हरिद्वार में गंगा की डुबकी लगाने लगी जिस से सांस घुटने से बच्चे की मौत हो गई. जब बच्चे को पानी से निकाला गया तो वह मर चुका था. सामने बच्चे का शव पड़ा था और महिला जोरजोर से पागलों की तरह हंस रही थी. बच्चे की मौत की खबर से अफरातफरी मच गई. उस के मातापिता समेत 3 लोगों को हिरासत में ले लिया गया.

तांत्रिक बाबा के चक्कर में युवक ने मासूम के साथ की दरिंदगी

03 अक्टूबर, 2023 को पंजाब में एक 4 वर्षीय बच्चे की हत्या करने का मामला सामने आया था. मृतक बच्चे की पहचान रवि राज के रूप में हुई. बच्चे की मां ने पुलिस को बताया कि उस के 3 बच्चे हैं जोकि बैड पर सो रहे थे और वे दोनों पतिपत्नी फर्श पर सो रहे थे. रात में करीब 2 बजे जब उस की आंख खुली तो उस ने देखा, उस का बेटा रवि बिस्तर पर नहीं है और वहां पर एक मोबाइल फोन गिरा था.

उन्होंने बच्चे को ढूंढने की कोशिश की. इतने में वहां पुलिस आ गई और बताया कि कुछ दूरी पर एक बच्चे का शव पड़ा हुआ है. उन्होंने जब जा कर देखा तो शव उन के बेटे का ही था जिस की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले. इस जांच के दौरान सामने आया कि पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति उन के बच्चे को ले कर जा रहा था. बच्चे की हत्या तांत्रिक के कहने पर देवीदेवताओं की पूजा और बलि चढ़ाने के लिए की गई थी. आरोपी की पहचान अरविंदर कुमार (23) के रूप में हुई. पुलिस द्वारा बच्चे के खून से लथपथ कपड़े व हत्या में इस्तेमाल चाकू को भी जब्त कर लिया गया.

रायगढ़ में काला जादू के शक में बेटे ने की पिता की हत्या

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक नाबालिग लड़के ने तांत्रिक के कहने में आ कर अपने ही पिता की हत्या कर दी. तांत्रिक ने पिता पर जादूटोना करने का शक जताया था. इसी शक में बेटे ने अपने साथियों के साथ मिल कर पिता को मार डाला और लाश में पत्थर बांध कर नदी में फेंक दिया. यह मामला 1 अगस्त, 2022 को सामने आया. आरोपी ने हत्या के पीछे वजह बताते हुए कहा कि उस की पत्नी का भाई इस हत्याकांड में शामिल था. घर में सब लोगों की तबीयत खराब होती थी. इसलिए वह एक तांत्रिक के पास गया और तांत्रिक ने उस को खत्म करने के लिए कहा.

ये सारी घटनाएं एक ही हकीकत की तरफ इशारा करती हैं. हकीकत यह है कि तंत्रमंत्र के छलावे में आ कर इंसान अपना ही बड़ा नुकसान कर बैठता है. तांत्रिक और बाबा अपनी बातों के जाल में लोगों को ऐसे फंसा लेते हैं कि इंसान का दिमाग कुंठित हो जाता है. उस के सोचनेसमझने की शक्ति चली जाती है और वह अपनों के खून से ही अपने हाथ रंग लेता है. सच तो यह है कि अंधविश्वास एक ऐसा जाल है जिस में इंसान फंसता ही चला जाता है और उस की शुरुआत कहीं न कहीं किसी बाबा, तांत्रिक या आस्था के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वालों से होती है.

इसलिए आप भी अपनी परेशानी से छुटकारा पाने के लिए किसी तांत्रिक के संपर्क में हैं तो जरा सावधान हो जाइए. तांत्रिकों ने अंधविश्वास का ऐसा भ्रम फैला रखा है जिस में भोलेभाले, परेशान लोग आसानी से फंस रहे हैं. परेशान लोगों की पीड़ा खत्म करने के लिए तंत्रमंत्र के माध्यम से लोगों को चूना लगाया जा रहा है. कभी इलाज के नाम पर तांत्रिक किसी की अस्मत लूट रहे हैं तो कभी लाखों रुपए की ठगी कर लेते हैं और कभी किसी की हत्या कराई जाती है. लोगों को इस जंजाल की जानकारी तब होती है जब तांत्रिक उन से करतूतें करवा कर किनारा कर लेता है.

औनलाइन जाल में भी फंसाते हैं बाबा और तांत्रिक

आजकल औनलाइन का जमाना है और तांत्रिक बाबा इस तकनीक का भी इस्तेमाल कर लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसा रहे हैं. इस के एवज में वे उन से मोटी रकम वसूल करते हैं. राजधानी दिल्ली की अगर बात करें तो यहां 2-3 हजार से ज्यादा बाबा या तांत्रिक अपने धंधे को स्वतंत्र रूप से संचालित कर रहे हैं. ये बाबा काला जादू और चमत्कारी शक्तियों की मदद से लोगों को उन का खोया हुआ प्यार, नौकरी ढूंढने में मदद, बीमारियों से नजात और घर खरीदने में मदद के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं. इन बाबाओं के नाम भी उन के काम से ही मिलताजुलता होता है, जैसे बाबाजी, वशीकरण गुरुजी, बंगाली बाबा, तांत्रिक बाबा खान बंगाली आदि.

इन्होंने अपने बिजनैस को औनलाइन भी फैला रखा है. बाकायदा उन की अपनी वैबसाइट है, फोन नंबर है जिस के जरिए वे लोगों को उन की परेशानियों से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं और लोगों से पैसे ऐंठते हैं. ये लोग यूट्यूब के जरिए भी पैसे कमा रहे हैं. अपने यूट्यूब चैनल में ये खोया हुआ प्यार वापस मिलना, दुश्मनों से छुटकारा, जमीन में गड़ा हुआ धन का पाना, सौतन से छुटकारा, जमीनी विवाद सुलझाना, मनचाहा प्यार पाना संबंधी वीडियो डालते रहते हैं और लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसाते रहते हैं.

कुछ यूट्यूब चैनल तो ऐसे भी हैं जिन के पास लाखों की संख्या में सब्सक्राइबर्स (ग्राहक) हैं. काला जादू और वशीकरण के नाम पर ये बाबा ‘निराश’ लोगों को इस कदर बेवकूफ बनाते हैं कि वे तुरंत ही उन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ जाते हैं और बाबा को अपना सबकुछ न्योछावर कर देते हैं. ये सिर्फ झोलाछाप बाबा और तांत्रिक नहीं हैं जो प्यार और वैवाहिक समस्याओं के जादुई समाधान प्रदान करते हैं बल्कि कई पढ़ेलिखे और इंग्लिश बोलने वाले ज्योतिषी भी हैं जो इस तरह का दावा करते हैं.

जागरूकता जरूरी

हमारे देश की सब से बड़ी विडंबना यह है कि यहां अंधविश्वासों और अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. लोग बहुत जल्द छलावों में फंसते हैं. जिंदगी में थोड़ी सी उथलपुथल हुई नहीं कि चल दिए तांत्रिकबाबा के पास. यही बाबा मौके का फायदा उठाते हैं और आस्था के नाम पर डरा कर, तंत्रमंत्र का जाल बना कर लोगों को अपनी गिरफ्त में कर लेते हैं और उन से मोटी रकम वसूल करते हैं.

इस तरह का जाल फैलाने वाले बाबाओं पर लगाम लगाने की जरूरत है और इस के लिए सब से जरूरी है लोगों का जागरूक होना. जब तक हम नहीं चाहेंगे, कोई हमारे दिमाग से नहीं खेल सकेगा. बस, हमें अपना दिमाग खुला रखना है. जिंदगी में जैसा भी समय आए, सोचसमझ कर फैसले लेने हैं और तांत्रिकों के रूप में मंडराने वाले लुटेरों से सावधान रहना है.

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