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कैसे रुकें किशोर अपराध, माता पिता को इन बातों पर करना होगा अमल

बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं? बाल अपराध क्यों जन्म लेते हैं? मनुष्य के अंदर हिंसक और अपराधी भाव क्यों जन्म लेते हैं? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण करना होगा. इस के 2 मुख्य कारण हैं- स्वभावगत और परिवेशगत. इन 2 कारणों के कई उप कारण भी हो सकते हैं, परंतु अगर हम उपरोक्त दोनों कारणों को समग्र रूप से समझ लें, तो उप कारण अपनेआप ही स्पष्ट हो जाते हैं.

पहला: स्वभावगत कारण के मुख्य लक्षण होते हैं- बालक का उग्र और क्रोधी स्वभाव, जिद्दी और हठी होना, किसी चीज को प्राप्त करने के लिए अनुचित हठ, छोटीछोटी बातों पर हंगामा खड़ा करना, बातबात पर हिंसक आचरण आदि. ये लक्षण जब सीमा पार कर जाते हैं, तो अपराध का रूप धारण कर लेते हैं.

दूसरा: परिवेशगत कारण बहुत स्पष्ट होते हैं- अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, कुसंगति, आलस, लालच, अतिमहत्त्वाकांक्षा, कामचोरी, बिना श्रम के बहुत कुछ प्राप्त करने की चाह आदि.

अपराधी कोई भी हो, उस के आपराधिक लक्षण समयसमय पर परिलक्षित होते रहते हैं, परंतु परिवार और समाज उन्हें समय पर पहचान नहीं पाता या पहचान कर भी अनजान बना रहता है. जैसेकि मातापिता अत्यधिक लाड़प्यार में अपने बेटे की बुराइयों को उपेक्षित करते रहते हैं और बाद में बच्चों की बुराइयां उन्हें बड़े अपराध की तरफ आकृष्ट करती हैं. मातापिता को सुध तब आती है, जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है.

स्मार्ट फोन और इंटरनैट की सुविधा के कारण आज बच्चे सैक्स के प्रति विशेषरूप से आकृष्ट हो रहे हैं. जो बच्चे किसी कारणवश सैक्स से वंचित रहते हैं, वे कुंठित हो जाते हैं. आज बलात्कार के ज्यादातर मामलों में आरोपी और पीडि़त दोनों ही कमउम्र के यानी नाबालिग होते हैं.

सैक्स के प्रति आकर्षण

बालमन में जिज्ञासाएं बहुत होती हैं. पहले वैज्ञानिक उपकरणों के अभाव और सामाजिक मूल्यों और मान्यताओं के कारण किशोर उम्र के बच्चे अपनी जिज्ञासाओं को दबा कर रखते थे. अगर उन की जिज्ञासाएं उफान मारती भी थीं, तो भी पारिवारिक और सामाजिक अनुशासन के कारण वे अपराध की ओर आकृष्ट नहीं होते थे. मगर आज परिदृश्य बदल गया है.

फिल्मों में नायकनायिका का खुला और सैक्स से भरपूर अभिनय बच्चों के मन में सैक्स की भावनाओं को भड़काता है. इस के अतिरिक्त इंटरनैट की दुनिया में हर प्रकार का यौन साहित्य और फिल्में उपलब्ध हैं.

सुविधाभोगी बच्चों को ही नहीं, स्मार्ट फोन की वजह से यह आज हर आम और खास बच्चे की पहुंच के अंदर है. इंटरनैट की आभासी दुनिया बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां प्यार नहीं सैक्स की उन्मुक्त और सुगंधित बयार है, वासना का खुला खेल है. बालमन को यह दुनिया बहुत लुभाती है.

बच्चों में सैक्स के प्रति आकर्षण उन्हें प्यार और सैक्स के लिए लड़कियों की तरफ आकर्षित करता है. जिन्हें यह सुख आसानी से प्राप्त हो जाता है, वे अपराध से दूर रहते हैं, परंतु जिन बच्चों को सैक्स का सुख नहीं मिलता वे नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर के उन के साथ सामूहिक बलात्कार और पकड़े जाने के भय से उन की हत्या तक कर डालते हैं.

चौंकाती हैं घटनाएं

इस संदर्भ में 2 घटनाओं का उल्लेख करना अच्छा रहेगा. पिछले दिनों दिल्ली के 4 किशोरों और एक वयस्क व्यक्ति ने जन्मदिन मनाने के बहाने पड़ोस की एक 23 वर्षीय लड़की को एक घर में आमंत्रित किया और फिर रात में उसे बंधक बना कर उस के साथ सामूहिक बलात्कार किया. केवल एक नाबालिग लड़का ही उस लड़की को जानता था. उसी ने लड़की को अपने घर बुलाया था. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लड़की बिना किशी शंका के उस लड़के के घर गई थी, जबकि उन किशोरों और व्यक्ति ने घटना को पूर्व योजना के तहत अंजाम दिया था. अत: हम यह नहीं कह सकते कि किशोरों की सोच नाबालिग थी. ये सारे अपराधी साधारण परिवारों के हैं.

दूसरा मामला एक छोटी बच्ची के अपहरण का है. इस की जांच मैं ने ही की थी. 2000 में मैं सीबीआई, मुंबई की विशेष शाखा में बतौर डीएसपी तैनात था. अप्रैल, 2000 में मुझे एक अपहरण का मामला जांच के लिए दिया गया. यह मामला गांधीनगर गुजरात का था.

17 साल का आरोपी अपने मामा के साथ वैन से स्कूली बच्चों को छोड़ने और लाने का काम करता था. उस की वैन में एक साढ़े तीन साल की बच्ची भी स्कूल आतीजाती थी. उसी बच्ची का उस ने अपहरण किया था. हालांकि 15 दिन के अंदर ही बच्ची को बरामद कर आरोपी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था, परंतु ज्वलंत प्रश्न यह था कि एक नाबालिग (कानून की भाषा में) आरोपी की साढ़े तीन साल की अबोध बच्ची के अपहरण के पीछे मंशा क्या थी?

विवेचना के दौरान आरोपी की पारिवारिक स्थिति, उस के आचरण, स्वभाव आदि के बारे में जो जानकारी इकट्ठी की गई उस के अनुसार वह अत्यंत गरीब घर का लड़का था. स्कूल में फेल होने के बाद आवारागर्दी करने लगा था. उस की हरकतों से तंग आ कर उस के पिता ने उस के मामा के साथ काम पर लगा दिया था कि व्यस्त रहेगा.

आरोपी की व्यक्तिगत जिंदगी, उस के मनोविज्ञान और आचरण को समझने के लिए उस के मित्रों से बात की गई तो आरोपी के बारे में निम्न मुख्य बातें पता चलीं:

  • उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं थी.-
  • वह अकसर बच्ची के बारे में बात करता था.
  • कई मौकों पर उस ने बच्ची की मां की सुंदरता के बारे में भी बात की थी.
  • वह अकसर किसी लड़की को भगा कर ले जाने की बात करता था.

आरोपी के मामा की मारुति वैन में आनेजाने वाली 2-3 बड़ी लड़कियों से भी बात की गई. उन से पता चला कि वैन में आतेजाते आरोपी अकसर बच्ची को अपनी गोद में बैठा लेता था. उस के गालों में चुटकी काटता था और उसे चूम भी लेता था. अन्य बच्चों के साथ वह ऐसा नहीं करता था. जब कभी उस की मां सड़क तक बच्ची को लेने नहीं आ पाती थी, तो वह बच्ची को उस के घर तक छोड़ने भी जाता था.

आरोपी ने स्वयं स्वीकार किया कि वह बच्ची की मां पर मोहित था, परंतु वह उस की पहुंच से दूर थी. अत: उस ने सोचा कि बच्ची एक दिन बड़ी हो कर अपनी मां जैसी सुंदर होगी और वह उस के साथ शादी कर लेगा.

एक बाल अपराध के कच्चे मन के मनोविज्ञान को समझने के लिए यह बहुत अच्छा उदाहरण है.

कुछ बाल अपराधी केवल इसलिए अपराध कर बैठते हैं, क्योंकि उन्हें किसी की बात नागवार गुजरती है या उन्हें वह काम करना पसंद नहीं होता, जिस के लिए उन के ऊपर दबाव डाला जाता है. गुरुग्राम के प्राइवेट स्कूल में छात्र की हत्या के मामले में किशोर छात्र को परीक्षा स्थगित करवानी थी और इस के लिए वह कई दिनों से योजना बना रहा था. योजना का स्वरूप उस के मन में स्पष्ट नहीं था. परीक्षा टलवाने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार था.

संयोग से उस दिन 7 वर्षीय बालक उसे टौयलट में अकेला मिल गया और उस ने उस की हत्या कर दी. वहीं नोएडा में किशोर द्वारा हत्या के मामले में किशोर छात्र को प्रतिदिन पढ़ने के लिए मां की डांट खानी पड़ती थी. यह बात उसे पसंद नहीं थी. देखने में यह बात बहुत छोटी लगती है. प्रत्येक परिवार में बच्चे पढ़ाई के लिए अपने मांबाप से डांट और मार खाते हैं, परंतु कोई किशोर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे देगा, यह सोच से परे है.

यहां उस लड़के के मनोविज्ञान को समझना होगा. वह संपन्न परिवार से था. बचपन से ही उसे हर प्रकार का सुख मिला था और संभवतया कहीं न कहीं उस के मन में यह रहा होगा कि पढ़ाई जैसे कठिन कार्य के लिए वह मां की डांटडपट क्यों सुनता रहे.

ऐसे रोकें किशोर अपराध

किसी भी अपराध को न तो समाज रोक सकता है न कानून उसे कम कर सकता है. प्रत्येक अपराध के पीछे अपराधी की मानसिकता, उस का स्वभावगत आचरण और परिवेशगत परिस्थितियां काम करती हैं. कुछ अपराध आवेगपूर्ण परिस्थितियों के कारण भी जन्म लेते हैं. ऐसे अपराधों के लिए अपराधी न तो कोई योजना बनाता है, न सोचता है. यह आवेग और विवेकपूर्ण आचरण से घटित हो जाते हैं.

परंतु जैसाकि मान्यता है कि हर तूफान के पहले एक अविश्वसनीय शांति होती है. उसी प्रकार हर अपराध की एक आहट होती है, जिसे सुन कर या पहचान कर हम टाल सकते हैं.

आज आवश्यकता है कि हम अपने बच्चों को सुविधाभोगी दुनिया से दूर भले न करें, परंतु सचेत अवश्य करें.

बच्चों के शौक को पूरा करने के लिए उन्हें ऐसी सुविधाएं न दें, जो जानेअनजाने उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दें.

कुछ मांबाप अतिसंपन्न होते हैं और वे अपने नाबालिग बच्चों के हाथ में मोटरसाइकिल या महंगी कार की चाबी थमा देते हैं. ऐसे में बच्चा अगर सड़क दुर्घटना का शिकार होता है, तो इस के लिए पूर्णरूप से अभिभावक को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. इस तरह का संशोधन हाल में ही यातायात अधिनियम में किया गया है कि दुर्घटना होने पर नाबालिग के साथसाथ उस के पिता पर भी मुकदमा चलाया जा सके.

ध्यान रखें, मातापिता की सावधानी और समझदारी ही बच्चों को अपराध की दुनिया की तरफ ले जाने से रोक सकती है.

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कब खत्म होगा जाति भेदभाव, यह घटना आप के विचारों को झकझोर देगी

भारतीय समाज में जाति प्रथा सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन में बहुत गहराईर् से जुड़ी हुई है. इस व्यवस्था के खिलाफ कोई भी कार्य पाप और भगवान का अपमान माना जाता है. वास्तविकता में यह कोई भगवान का दिया गुण नहीं है, जिस का अनुकरण किया जाए.

आजादी के 70 साल बाद भी हमारे देश में जाति और छुआछूत की भावना कितनी गहरी है, इस का अंदाजा हाल ही में घटी पुणे की एक घटना से लगा सकते हैं, जहां एक महिला वैज्ञानिक ने अपने घर में खाना बनाने वाली महिला पर जाति छिपा कर काम लेने और धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

पुणे के शिवाजी नगर में रहने वाली डा. मेधा विनायक खोले का आरोप था कि खाना बनाने वाली महिला निर्मला 1 साल से खुद को ब्राह्मण और सुहागिन बता कर काम कर रही थी जो कि झूठ था.

इस से उन के पितरों और देवताओं का अपमान हुआ. वैसे तो इस देश में जाति के आधार पर अन्याय और शोषण की घटनाएं आम बात हैं, लेकिन यह मामला हमारी उस गलतफहमी को दूर करता है जहां हम सोच रहे थे कि केवल अशिक्षित और मानसिक रूप से पिछड़े लोग ही इन धार्मिक और सामाजिक कुप्रथाओं का पालन कर रहे हैं, जबकि पुणे जैसे विकासशील शहरों में कुछ शिक्षित और संपन्न लोग उन से भी 2 कदम आगे हैं.

रोजगार की कमी एक समस्या

इस मामले में एक महिला के ऊपर झूठ बोल कर काम लेने का आरोप इसलिए लगा, क्योंकि वह छोटी जाति की है. लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि आखिर क्यों एक घरेलू कामकाज में कुशल महिला को इस तरह झूठ बोलने की जरूरत पड़ी?

देश में बेरोजगारी का जो माहौल है उस से साधारण जन काफी परेशान हैं. सरकारी एवं गैरसरकारी औफिसों में ही नहीं, बल्कि घरेलू रोजगारों में भी तेजी से गिरावट आई है. तथाकथित ऊंची जातियों द्वारा अपने घरों में छोटी जाति के लोगों को नौकरी देने से ले कर वेतन देने तक आनाकानी, भेदभाव और उन का शोषण किया जाता रहा है, जो आज भी जारी है.

रूढ़िवादी मानसिकता बदलने की जरूरत

आज समाज के कुछ लोग ऊपरी तौर पर इस तरह के सामाजिक मानदंडों को छोड़ने का दिखावा जरूर कर रहे हैं. नेता, मंत्रीगण राजनीतिक लाभ के लिए दलितों के घर भोजन और साथ बैठने का दिखावा करते हैं, लेकिन उन के सामाजिक और धार्मिक विश्वासों में आज भी जातिवाद अच्छी तरह से स्थापित है.

इस सामाजिक मानसिकता का उन्मूलन करने में सब से बड़ी समस्या इस के लिए आम सामाजिक स्वीकृति है. जब तक यह खत्म नहीं होगा, इस समस्या से नजात पाना नामुमकिन है, क्योंकि कानून केवल शोषण से सुरक्षा प्रदान कर सकता है और शिक्षा निचली जातियों को उन के अधिकारों की जानकारी दे सकती है, लेकिन ऊंची जाति वालों के व्यवहार में बदलाव नहीं ला सकती है.

संकीर्ण मानसिकता का द्योतक

21वीं सदी में भी भारतीय समाज में जाति प्रथा अच्छी तरह से स्थापित और पवित्र नियम के रूप में इसलिए जारी है, क्योंकि यह एक विशेष वर्ग के अहंकार से जुड़ी हुई है. हजारों वर्षों से बनी यह वह मानसिकता है, जिस से ऊंची जातियां स्वयं को श्रेष्ठ साबित करती आई हैं.

आज भी ऊंची जातियां अपने घरों और बच्चों में छोटी जातियों के प्रति भेदभाव की भावना और जातिवाद के जहर को संस्कार के रूप में घोलने का हरसंभव प्रयास करती हैं. उन्हें निचली जातियों से श्रेष्ठ समझने की सीख देती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी होता आया है. समाजशास्त्री प्रो. हरी नारके के अनुसार हमारा समाज विकासशील और प्राचीन मानसिकता के बीच फंस कर रह गया है. यह मानसिकता पूरी तरह से अहंकार और अंधश्रद्धा से जुड़ी है.

आजादी के बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद 13, 14, 15, 16 के अनुसार जाति के आधार पर लगाया गया कोई भी आरोप गंभीर और दंडनीय है, लेकिन इन नियमों को दरकिनार कर राष्ट्र और समाज की उपेक्षा करते हुए केवल जातिगत कल्याण के लिए सोचने की खतरनाक प्रवृत्ति न केवल साधारण जन, बल्कि देश के शिक्षित और बुद्धिजीवी जनों में भी व्याप्त है.

देश के शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी का मानना है कि संविधान में जाति के आधार पर किसी भी काम को मान्यता नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि गांवों में ये सब आज भी जारी है. लेकिन पुणे जैसे प्रगतिशील शहर में ऐसे मामले का होना इस बात सुबूत है कि जाति का अहं किस हद तक लोगों के मन में भरा है.

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माहवारी : धर्म का पहरा क्यों, वास्तव में यह सैल्फ चौइस है या बेवकूफी

दुनिया के हर समाज व वर्ग में चाहे वह विकसित हो या पिछड़ा, समान या आंशिक रूप से अंधविश्वास प्रचलित है. अंधविश्वास कई प्रकार के होते हैं, जिन में कुछ जातिगत, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक होते हैं और कुछ तो विश्वव्यापी होते हैं, जिन की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उखाड़ना आसान नहीं है. धर्म के नाम पर महिलाओं के  लिए विशेष रिवाज और परंपराएं बनाई गई हैं, जो उन्हें पुरुषों से अलग व सामाजिक अधिकारों से दूर रखती हैं.

लगभग हर धर्म में माहवारी के समय महिलाओं को अपवित्र माना जाता है. परंपराओं की आड़ में उन के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और धर्म के नाम पर पीछे धकेला जाता है. माहवारी के समय रसोईघर व धार्मिक स्थान पर जाने की मनाही, घर की किसी चीज को हाथ नहीं लगाना, दिन में सोने, नहाने से ले कर पहनने, खानेपीने तक पर पाबंदी आदि पीढ़ी दर पीढ़ी मजबूत होती गई. यहां तक कि आज भी परिवर्तन सतही ही है.

कहते हैं आज के विज्ञान युग में समय के  साथ बहुत कुछ बदल रहा है. ऐसे में जो कई सौ सालों में नहीं हुआ वह मात्र पिछले 20-30 सालों में हुआ है. काफी खुलापन आया है. महिलाएं अपने अधिकारों एवं आत्मसम्मान के प्रति सचेत हो रही हैं और कई धार्मिक व सामाजिक रूढि़वादी मान्यताएं तोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. लेकिन 21वीं सदी में भी समाज में बहुत से ऐसे रीतिरिवाज, आडंबर हैं, जिन्हें आज की महिलाएं जारी रखे हुए हैं, जिन के आधार पर उन के पूर्वज उन्हें अपवित्र बताते आए हैं.

वास्तव में यह सैल्फ चौइस है या बेवकूफी, आइए, जानते हैं ऐसी ही कुछ स्वतंत्र विचारधारा की महिलाओं से:

नियम को धर्म की चादर से लपेट दिया गया: पत्रकार व लेखिका रेनू शर्मा कहती हैं, ‘‘हमारे पूर्वजों ने महिलाओं के लिए जो भी कायदेकानून बनाए वे उन के हित में ही थे. माहवारी के समय का नियम महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनाया गया था, जिस से उन दिनों की कमरतोड़ मेहनत से आराम मिल सके. यह बिलकुल उचित एवं वैज्ञानिक आधार पर था, क्योंकि माहवारी के दौरान महिलाओं में कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक उतारचढ़ाव आते हैं. यह सारे नियम उस समय की मांग थी जिसे धर्म की चादर से लपेट दिया गया अन्यथा माहवारी के समय महिला अपवित्र होती है, पूजापाठ नहीं कर सकती है, किसी धार्मिक स्थल पर नहीं जा सकती आदि अंधविश्वास है.

‘‘मैं इस में विश्वास नहीं करती, परंतु सदियों से जो चला आ रहा है उसे सुधरने में वक्त लगेगा. हमें क्या करना है, कहां जाना है यह हमारा व्यक्तिगत मामला है न कि धार्मिक अंधविश्वास.’’

हालांकि रेनू शर्मा का पूर्वजों के फैसले को सही कहना गलत है. उस समय भी ये नियम न स्वास्थ्य और न ही सुरक्षा के लिए बने थे. ये नियम तो पंडों और पुजारियों ने बनाए थे वरना औरतें जब तक अकेली थीं, बिना परिवार के थीं, बच्चे भी पालती थीं, खाना भी जुटाती थीं और माहवारी से भी निबटती थीं.

टूट रही हैं रुढ़िवादी परंपराएं: बिजनैस वूमन शीतल विखनकर का कहना है, ‘‘इस मामले में हम ने सभी रुढ़िवादी परंपराएं तोड़ दी हैं, केवल मंदिर में जाने और पूजापाठ करने के अलावा. यह किसी धर्म से प्रभावित न हो कर हमारी व्यक्तिगत राय है. मैं या मेरे परिवार में कोई भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करता है. माहवारी के समय भी यदि कोई जाना चाहता है तो जा सकता है. शुभअशुभ या अपवित्रता जैसा कुछ भी नहीं होता है. ये सब धार्मिक कुरीतियां हैं, जिन्हें आज की पीढ़ी धीरेधीरे समझ रही है.

वैसे मंदिर में जाना माहवारी के दौरान क्यों गलत है जब बाकी शारीरिक क्रियाएं वैसे ही होती रहती हैं, मंदिरों में न जाना सिर्फ एक अंधविश्वाश है, जिस के सहारे औरतों के साथसाथ आदमियों को भी गुलाम बनाया गया है. यदि माहवारी खराब है, तो मूत्र त्यागना भी गलत है पर हर मंदिर में शौचालय बने होते हैं.

हमारा जीवन कर्मों और मन की स्वच्छता पर निर्भर करता है: डा. अनुपमा वर्मा कहती हैं, ‘‘मैं पेशे से डाक्टर हूं और साइंस में यकीन करती हूं. मेरे परिवार में हमेशा खुलापन रहा है. मेरा मानना है कि माहवारी के दौरान पूजापाठ करना, मंदिर जाना अशुभ नहीं होता है. महिला अपनी सुविधानुसार कुछ भी करने को स्वतंत्र है. धर्म और माहवारी का कोई संबंध नहीं है. यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. हमारे पूर्वजों ने सोचसमझ कर और हमारे हित में बहुत सारे अच्छे नियम बनाए थे, लेकिन कुछ धार्मिक कट्टरता से ग्रस्त लोगों ने इन्हें धर्म से जोड़ कर महिलाओं के शोषण का जरीया बना दिया. हमारा जीवन हमारे कर्मों और मन की स्वच्छता पर निर्भर करता है ना कि समाज में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को मानने से.’’ यह विचार भी आधा वैज्ञानिक और आधा अंधविश्वास भरा है.

वैज्ञानिक आधार पर ही नियम बनाए गए थे: समाजसेविका निशा सुमन जैन का कहना है, ‘‘मैं किसी भी रुढ़िवादी विचारधारा को नहीं मानती हूं और न ही अंधविश्वास को बढ़ावा देती हूं. यदि मैं माहवारी के दौरान मंदिर नहीं जाती हूं तो यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है न कि शगुनअपशुन का डर. हमारे पूर्वजों ने महिलाओं के हित में वैज्ञानिक आधार पर ही नियम बनाए थे और सख्ती बरतने के लिए धर्म का प्रयोग किया अन्यथा माहवारी से धर्म का कोई संबंध नहीं है. इस से जुड़े नियम उस समय और परिस्थिति के अनुकूल थे, जिन की आज आवश्यकता नहीं है. फिर भी इन्हें माना जा रहा है, तो यह बिलकुल अंधश्रद्धा है. मेरे हिसाब से यदि हम खुद को स्वस्थ और स्वच्छ समझ रहे हैं जो पूजापाठ के साथ हर काम कर सकते हैं.’’

आज की महिलाएं सहीगलत का फैसला स्वयं ले सकती हैं: सेवानिवृत शिक्षिका शोभा पांडेय का कहना है, ‘‘मैं धर्म के नाम पर किसी भी परंपरा को नहीं मानती हूं. मैं ने अपने जीवन में ऐसे कई रीतिरिवाज और परंपराएं तोड़ी हैं. मैं पिताजी की मौत पर श्मशाम भी गई थे. किसी ने ऐतराज नहीं किया था. इतना ही नहीं, महिलाओं के प्रमुख त्योहार वट सावित्री की पूजा और करवाचौथ का व्रत रखना छोड़ दिया है. इस में मेरे पति और परिवार को कोई आपत्ति नहीं है.

‘‘मेरा मानना है कि माहवारी से संबंधित कोई भी रिवाज या परंपरा महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर बनाई गई थी जिसे धर्म से जोड़ कर अशुद्ध, अपवित्र की संज्ञा दे कर महिलाओं का शोषण किया गया. आज हम स्वतंत्र हैं. सहीगलत में फर्क स्वयं कर सकते हैं. किसी धर्म या समाज से प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है.’’

अनहोनी का डर

ये सभी विचार समाज की उन सभी महिलाओं के हैं, जो शिक्षित, स्वतंत्र व खुले विचारों की हैं, जो कहती हैं कि अंधश्रद्धा में विश्वास नहीं करती हैं. रुढ़िवादी परंपराओं को मानने को व्यक्तिगत विचार मानती हैं, लेकिन जब बात धर्म की आती है, तो उलझ सी जाती हैं और धार्मिक कुतर्कों पर तर्क देते हुए स्वयं को अंधविश्वासी साबित कर देती हैं.

एक तरफ कहती हैं कि वे अंधश्रद्धा में विश्वास नहीं करती हैं और दूसरी तरफ वे सभी परंपराओं को मानती भी हैं, जिन की उत्पत्ति धर्म से हुई है. वे मानती हैं यह गलत है, नहीं होना चाहिए. प्रकृति का नियम है, माहवारी के दौरान भी धार्मिक स्थलों पर जा सकती हैं, पूजापाठ कर सकती हैं.

मगर जब उन से पूछो कि क्या वे जाती हैं तो जवाब मिलता है नहीं. कहती हैं कि यह अंधश्रद्धा नहीं बल्कि हमारा व्यक्तिगत निर्णय है. लेकिन वास्तविकता यह है कि इस व्यक्तिगत निर्णय या सैल्फ चौइस के पीछे हमारे मन में व्याप्त किसी अनहोनी का डर है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है.

बदलनी होगी सोच

सत्य यह है कि जो बदलाव हम देख रहे हैं वे केवल हमारे रहनसहन, पहननेओढ़ने तक ही सीमित है. मानसिकता तो आज भी वही है जिसे बदलना इस से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. यह कोई धर्म संबंधित विवादास्पद मुद्दा नहीं है, बल्कि हमारी सोच का है, हमारी मानसिकता का है, जो हमें विचलित कर के पीछे की ओर ले जाता है, जो कहता है कि समस्या आप हैं और यह बात हमारे मस्तिष्क में बैठ चुकी है. आसानी से तो नहीं हुआ होगा यह, जरूर कई प्रयोग हुए होंगे.

महिला ही पुरुषत्व को आगे बढ़ाती है

लगभग उसी तरह जैसे 1920 में वोल्फगांग कोहलर द्वारा किए गए प्रसिद्ध सोशल ऐक्सपैरिमैंट- ‘फाइव मंकीज ऐंड अ लैडर्स’ नामक स्टोरी में किया गया है, जिस में वैज्ञानिकों ने एक पिंजरे में 5 बंदर, सीढ़ी के शीर्ष पर रखे कुछ केलों के साथ बंद कर दिए. जब भी कोई एक बंदर सीढ़ी पर चढ़ता बाकी बंदरों को ठंडे पानी से भिगो दिया जाता था.

ऐसे में जब कोई एक चढ़ता तो उसे बाकी बंदर पीटने लगते. धीरेधीरे उन में एक दहशत बैठ गई. अब कुछ भी हो जाए कोई चढ़ने का प्रयास नहीं करता. फिर वैज्ञानिक इन की जगह एक के बाद एक नए बंदर लाते और जो भी चढ़ने का प्रयास करता, उस की वैसे ही पिटाई होती. अब ठंडा पानी डालने की जरूरत नहीं, लेकिन जो भी चढ़ता उस की पिटाई होगी. क्यों हो रही है, किसी को नहीं पता. इसलिए हो रहा है, क्योंकि ऐसे ही होता आ रहा है. यह मानव व्यवहार और मानसिकता को समझने का एक बेहतरीन उदाहरण है.

वैसे बंदर और मनुष्य में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. ऐसा कई बार बिना कोई कारण बताए हम से कहा जाता है कि ऐसा नहीं करना है, ऐसा करोगे तो वैसे हो जाएगा इत्यादि और हम बंदरों की तरह ही बिना जानेसमझे जैसा होता आया है, उसी को सच मान लेते हैं. वैसे ही करते आ रहे है, क्योंकि यही आसान है. असल में महिला ही पुरुषत्व को आगे बढ़ाती है और ऐसे रूढि़वादी विचारों को प्रवाह देती आई है.

परंपराओं के नाम पर शोषण

कितना अजीब है कि वैज्ञानिक युग में भी तथ्यों को नए सिरे से समझने के बजाय हम विज्ञान को भी इन रूढि़यों के अज्ञान का सहायक बना रहे हैं, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जो भी मान्यताएं और विश्वास आज विज्ञान द्वारा समर्थित नहीं हैं, उन के मूल स्रोतों को समझा जाए और उन के ऊपर से अंधविश्वास का परदा हटाया जाए.

समाज में धर्म के नाम पर सदियों से महिलाओं के लिए पुरुषों से अलग कायदेकानून बनाए गए हैं. रीतिरिवाज व परंपराओं के नाम पर हमेशा उन का शोषण हुआ या फिर उन के विकास को रोका गया, जिस के लिए सीमाएं निर्धारित की गईं और नियंत्रण में रखने के अनेक हथकंडे अपनाए गए. नतीजतन महिलाएं नियंत्रित ही नहीं, बल्कि इन आधारहीन रिवाजों की आदी भी हो गईं.

स्पष्ट है कि धर्म कभी महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान नहीं दे सकता है. यदि महिलाओं को समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है, तो अपने अधिकारों व आत्मसम्मान को धर्म से ऊपर समझना होगा. यह सदियों से जकड़ी हमारी मानसिकता का परिणाम है, जिसे अब बदलने की आवश्यकता है. बहस की जगह तर्क और अंधविश्वास की जगह आत्मचिंतन करने की जरूरत है और यह बहुत आसान है.

आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म नहीं

पिछले दिनों मुंबई के एक एनजीओ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इसी से संबंधित सवाल पूछे जाने पर दक्षिण एशिया की प्रसिद्ध सामाजिक व नारीवादी कार्यकर्ता, लेखक, कवियित्री कमला भसीन कहती हैं, ‘‘महिलाएं माहवारी के समय अपवित्र होती हैं, धार्मिक स्थल पर नहीं जा सकती हैं इत्यादि कुप्रथाएं पितृसत्ता और पुरुषत्व बनाए रखने के लिए रची गई साजिश है. ये सब महिलाओं का घोर विरोधी शास्त्र मनुस्मृति की देन है. ये सब महिलाओं पर बड़ी ही चालाकी से थोपे गए हैं, उन के मन में भय पैदा किया गया है, जिस से उन का मनोबल टूटने के साथसाथ मानसिकता भी उसी तरह की हो गई.

‘‘विडंबना ऐसी रही कि इस मुद्दे पर कभी किसी ने विरोध नहीं किया. समय के साथ वह मानसिकता दृढ़ होती गई और इन आडंबरयुक्त धर्म व परंपराओं को बढ़ाने में महिलाओं का सब से ज्यादा हाथ है. यह कोई 50-100 साल का नहीं, बल्कि हजारों सालों का दोष है, जो इतनी आसानी से नहीं जाएगा. हमें यह समझना होगा कि यदि भगवान है तो हर जगह है अन्यथा कहीं नहीं है. अंधानुकरण करने के बजाय सवाल पूछें, तर्कवितर्क करें, जबजब मौका मिले विरोध करें और हमेशा याद रखें आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म या समाज नहीं है.’’

दरअसल, मंदिरमसजिद जाना ही अंधविश्वास है और एक अंधविश्वास दूसरे अंधविश्वासों को जन्म देता है.

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फेसबुक के इस नये फीचर से स्लो इंटरनेट में भी होगी वीडियो चैट

अगर आप स्लो नेट के चलते वीडियो चैट नहीं कर पा रहे हैं तो आपके लिए फेसबुक एक नया फीचर लेकर आया है, जिससे आपको स्लो नेट के दौरान वीडियो चैट में आने वाली समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा. आपको बता दें कि फेसबुक ने मैसेंजर लाइट में वीडियो चैट की सुविधा शुरू कर दी है, जो एंड्रायड के लिए मैसेंजर का हल्का संस्करण है. इसे पुराने डिवाइस या धीमा इंटरनेट कनेक्शन रखनेवाले लोगों के लिए शुरू किया गया है.

फेसबुक मैसेंजर ऐप के साइज और डाटा की खपत के चलते कई यूजर्स इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे. दरअसल, फेसबुक मैसेंजर ऐप का साइज भी ज्यादा है और ये ज्यादा डेटा की खपत करता है, ऐसे में वो यूजर्स जिनके फोन में कम रैम है और जो ज्यादा डेटा खपत से बचना चाहते हैं उनके लिए फेसबुक ने लाइट मैसेंजर ऐप को लौन्च किया था. इस ऐप में अभी तक वीडियो कौलिंग फीचर नहीं था. कंपनी की तरफ से इस ऐप में वीडियो कौलिंग फीचर जोड़ दिया गया है, जिसके बाद अब सस्ते स्मार्टफोन और कम डेटा का इस्तेमाल करने वाले यूजर इस सुविधा का आसानी से फायदा उठा सकेंगे.

फेसबुक ने अपने एक बयान में कहा, “अब मैसेंजर लाइट इस्तेमाल करनेवाले भी वीडियो कौल का आनंद ले सकते हैं, जो कि फेसबुक के मुख्य मैसेंजर ऐप पर उपलब्ध है.” फेसबुक के मुताबिक औडियो कौल के दौरान वीडियो कौल को भी सक्रिय किया जा सकता है. कंपनी ने कहा मैसेंजिंग अनुभव में रोजाना की बातचीत में वीडियो कौल को शामिल करना एक अपेक्षित और जरूरी हिस्सा है. जो लोग प्रमुख मैसेंजर ऐप का इस्तेमाल करते हैं, उनमें वीडियो कौल काफी लोकप्रिय है. साल 2017 में मैसेंजर पर कुल 17 अरब वीडियो चैट किए गए, जो कि एक साल पहले के मुकाबले दो गुना है.

बता दें कि फेसबुक ने मैसेंजर ऐप का ‘लाइट’ वर्जन जुलाई 2017 में लौन्च किया था और अब इसमें स्लो इंटरनेट में वीडियो चैट करने की सुविधा दी जा रही है. मैसेंजर लाइट का साइज केवल 10MB है, जिससे इसे तेजी से डाउनलोड कर इंस्टौल किया जा सकता है और तेजी से शुरू किया जा सकता है. इसमें मैसेंजर में दी जानेवाली सभी प्रमुख सेवाएं शामिल की गई हैं. इससे मैसेंजर लाइट और मैसेंजर दोनों पर टेक्ट्स, फोटोज, लिंक्स भेजा जा सकता है और औडियो/वीडियो कौल की जा सकता है.

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फोन चलाना अब होगा आसान, जानें ये शौर्टकट्स

क्या आपको पता है कि आपके फोन में कई ऐसे फीचर्स हैं जिन्हें एक्टिवेट करने के बाद आपका फोन अपने आप कई सारे काम करने लगेगा. मौजूदा समय में स्मार्टफोन काफी स्मार्ट हो गए हैं, वो आपके लोकेशन और आपकी आदतों को भी ट्रैक करते हैं. ऐसे में अपने फोन की सेटिंग्स में जाकर आप कई सारे काम बिना फोन को हाथ लगाए ही कर सकते हैं. चलिये डालते हैं इन फीचर्स पर एक नजर.

इन जगहों पर अनलौक हो जाएगा फोन

अगर आप अपने फोन को चुनींदा जगहों पर अनलौक रखना चाहते हैं तो आपको अपने फोन में बस एक सेटिंग करनी होगा. अपने फोन की Settings में जाएं, यहां Security And Location औप्शन में जाकर स्मार्टलौक पर टैप करें. यहां Trusted Places की सेटिंग में आप उन जगहों की लोकेशन डाल दें, जहां आप चाहतें हैं कि आपका फोन औटोमेटिक अनलौक हो जाए. इसके बाद उन जगहों पर आपका फोन अपने आप अनलौक रहेगा.

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साइलेंट मोड में चला जाएगा फोन

अगर आप चाहते हैं कि आपका फोन चुनिंदा जगहों पर खुद ब खुद साइलेंट मोड में चला जाए, तो आपको बस एक काम करना होगा. अपने फोन की Settings में जाएं, Sound Settings में जाएं और Do Not Disturb सेटिंग्स को एक्टिवेट करें. ये फीचर गूगल मैप्स और गूगल कैलेंडर की मदद से काम करता है. अगर आप आईफोन का इस्तेमाल करते हैं तो औटोमेटिक साइलेंट मोड के लिए Settings में जाएं, इसके बाद Do Not Disturb पर टैप करें और फिर Scheduled toggle switch पर जाएं.

आपका फोन करेगा रिप्लाई

जब आप गाड़ी चला रहे होते हैं तब आपका स्मार्टफोन डिटेक्ट कर लेता है कि आप ड्राइविंग कर रहे हैं. ऐसे में आप अपने फोन की उन सेटिंग्स को एक्टिवेट कर सकते हैं, जिसके बाद फोन आने पर आपका डिवाइस अपने आप रिप्लाई करना शुरू कर देगा. अगर आप आईफोन का इस्तेमाल करते हैं तो Do Not Disturb सेटिंग में जाकर औप्शन को एक्टिवेट कर सकते हैं, वहीं अगर आप एंड्रौयड यूजर हैं तो आपको गूगल प्ले स्टोर से Android Auto डाउनलोड करना होगा और फिर सेटिंग में जाकर Auto-launch औन करना होगा.

आपका फोन करेगा आपकी फोटो को बैकअप

अगर आप चाहते हैं कि आपका फोन आपके सभी फोटोज को औटोमेटिक बैकअप करे तो आपको गूगल फोटोज की सेटिंग्स में जाना होगा. Google Photos में जाकर बैकअप एक्टिवेट कर दें. आपका डिवाइस फोन में पड़े फोटोज को गूगल क्लाउड पर स्टोर कर लेगा. ध्यान दे की गूगल क्लाउड पर आपको 15 जीबी की ही स्टोरेज फ्री में मिलती है, इसके बाद आपको पैसे खर्च करने होंगे.

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निरंतर विवादों में घिरते जा रहे हैं नवाजुद्दीन सिद्दिकी

बहुत पुरानी कहावत है कि सफलता को पचाना हर किसी के बस की बात नहीं होती है. 14-16 सालों के लंबे संघर्ष के बाद जैसे ही नवाजुद्दीन सिद्दिकी को सफलता मिली, वैसे ही वह लगातार विवादों में घिरने लगें. सूत्रों की मानें तो सफलता के नशे में चूर नवाजुद्दीन सिद्दकी ने अपने इर्द गिर्द पीआर मैनेजर और बिजनेस मैनेजर की एक लंबी चौड़ी फौज खड़ी कर ली है. रातों रात सबसे बड़े महान और सबसे अमीर कलाकार बनने की होड़ के लिए वह ऐसे कदम उठाते जा रहे हैं कि उनका पारिवारिक जीवन भी तहस नहस हो रहा है. इतना ही नहीं अब वह पत्रकारों से मिलने की बजाय सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी सफाई पेश करने में ही समय बिताने लगे हैं. लगभग 2 वर्ष पहले उनके भाई की पत्नी ने उन पर व उनके भाई पर कई तरह के आरोप लगाए थे. उसके बाद कुछ माह पहले अपनी आत्मकथा को लेकर नावाजुद्दीन सिद्दकी इस तरह विवादों में आए कि अंततः उन्हें अपनी आत्मकथा की किताब को बाजार में ना लाने का ऐलान ट्वीटर पर करना पड़ा. अब तो वह सोशल मीडिया पर पत्रकारों को गलत ठहराने का काम करने लगे हैं.

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पिछले चार पांच दिनों से नवाजुद्दीन सिद्दिकी नए विवादों में घिरे हुए हैं. वास्तव में मुंबई से सटे ठाणे जिले की पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जो कि गलत तरीके से दूसरे लोगों के फोन रिकौर्डस उपलब्ध करा रहे थे. इस गिरोह के ग्यारह लोगों के साथ साथ प्रायवेट डिटेक्टिव रजनी पंडित की गिरफ्तारी के बाद ठाणे पुलिस ने नवाजुद्दीन सिद्दीकी को अपनी पत्नी अंजली उर्फ आलिया सिद्दकी की जासूसी के आरोप में पूछताछ के लिए सम्मन भेजा, पर अब तक नवाजुद्दीन सिद्दकी पुलिस के समक्ष हाजिर नहीं हुए. मजेदार बात यह है कि नवाजुद्दीन सिद्दकी ने पुलिस के पास खुद जाने की बजाय अपनी पत्नी को भेज कर कहलवाया कि उनके व उनकी पत्नी के बीच सब कुछ सही चल रहा है.

उसके बाद जब पत्रकारों ने नवाजुद्दीन सिद्दकी से बात करनी चाही, तो नवाजुद्दीन सिद्दकी ने कहा कि, ‘यह कुछ पत्रकारों की मनगढंत कहानी है. मुझे पुलिस की तरफ से कोई बुलावा नहीं आया. उसके बाद सुबह सुबह नवाजुद्दीन सिद्दकी ने ट्वीटर पर अपनी सफाई पेश करते हुए लिखा -‘‘कल शाम मैं घर पर अपनी बेटी की उसके स्कूल प्रोजेक्ट हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर जनरेटर की तैयारी करवाता रहा और आज सुबह जब मैं उसे लेकर स्कूल पहुंचा, तो वहां मीडिया मुझसे बेवजह के आरोप को लेकर सवाल कर रही थी. डिस्गस्ट..’’

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ट्वीटर पर नवाजुद्दीन के इस ट्वीट के बाद लोगों ने यकीन कर लिया कि नवाजुद्दीन सच बोल रहे होंगे. लेकिन जब एक अंग्रेजी वेबसाइट ने पुलिस इंस्पेक्टर नितिन ठाकरे से बात की, तो नवाजुद्दीन का सारा झूठ सामने आ गया.

पुलिस इंस्पेक्टर नितिन ठाकरे ने कहा- ‘‘नवाजुद्दीन सिद्दकी और उनकी पत्नी के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. हमने नवाज को पूछताछ के लिए बुलाया था, पर वह आए नहीं. उन्होंने अपने किसी प्रतिनिधि को भेज कर कहलवाया कि पति पत्नी के बीच समझौता हो गया है. वास्तव में सीडीआर (कौमपेक्ट डिस्क रिकौर्डेबल) सही अधिकारी के मार्फत आप ले सकते हैं. लेकिन उसके लिए आपको एक उच्च अधिकारी से इजाजत लेनी होती है. हमारी जानकारी के अनुसार यह अकाउंट हमारे विभाग के एक कौंस्टेबल के हाथ में था. उसने गलत तरीके से पैसे लेकर श्रीमती सिद्दकी के फोन की सारी कौल डिटेल नवाजुद्दीन को उपयुक्त करायी. हमने उस कांस्टेबल के अलावा मशहूर प्राइवेट डिटेक्टिव रजनी पंडित को भी गिरफ्तार किया है. एअरटेल हो या वोडाफोन सभी मोबाइल कंपनियों को किसी भी इंसान की पूरी कौल डिटेल देना अनिवार्य है, बशर्ते इसकी मांग सक्षम अधिकारी द्वारा की जाए.’’

पुलिस इंस्पेक्टर नितिन ठाकरे की बातों से साफ जाहिर होता है कि नवाजुद्दीन कितना झूठ बोल रहे हैं? अफसोस की बात यह है कि सोशल मीडिया पर अपनी सफाई देते समय नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपनी बेटी को भी इस विवाद का हिस्सा बना लिया, जो कि गलत है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. बौलीवुड से जुड़े सूत्र कहते हैं- ‘‘पति पत्नी के झगडे़ और पुलिस के मामले में नाबालिग बेटी को एक समझदार पिता दूर ही रखता है ना कि उसे ढाल बनाकर उपयोग करता है.’’

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मजेदार बात यह है कि पुलिस इंस्पेक्टर नितिन ठाकरे दावा करते है कि नवाजुद्दीन के वकील रिजवान सिद्दकी ने कबूल किया है कि नवाजुद्दीन ने उनके माध्यम से अपनी पत्नी के फोन की सारी जानकारी लेकर अपनी पत्नी की जासूसी करायी. लेकिन खुद नवाजुद्दीन सिद्दकी पुलिस की जांच में सहयोग नहीं दे रहे हैं. पुलिस ने उन्हें पुनः सम्मन भेजा है और उन्हें आना भी पड़ेगा.

नितिन ठाकरे ने कहा है-‘‘ फिलहाल हम उनकी पत्नी से कोई पूछताछ नहीं कर रहे हैं, पर जरूरत पड़ी, तो हम उन्हें भी पूछताछ के लिए बुला सकते हैं. फिलहाल इस पूरे मसले में हम 11 लोगों की गिरफ्तारी कर चुके हैं. जांच चल रही है. नवाजुद्दीन से अभी तक पूछताछ नहीं हो पायी है. आगे क्या होगा? क्या पता? पर क्राइम ब्रांच ने जिन 11 लोगों को गिरफ्तार किया है, वह लोगों से 30000 से 50000 रूपए लेकर गैर कानूनी तरीके से लोगों के फोन कौल की जानकारी दे रहे थे.

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इधर नवाजुद्दीन सिद्दिकी पुलिस के पास नहीं पहुंचे. लेकिन उनकी पत्नी अंजली उर्फ आलिया सिद्दिकी ने फेसबुक पर अपनी बात कहते हुए नवाजुद्दीन सिद्दकी को बचाने की कोशिश की. अंजली ने फेसबुक पर लिखा है- ‘‘दो दिन से मीडिया में जो खबरें चल रही हैं, उससे मैं खुद हैरान हूं. पिछले कुछ समय से मेरे व नवाज को लेकर कई तरह की खबरें आती रही हैं. जिसमें तलाक से लेकर साथ में न रहने की खबरे रही हैं…लेकिन कल से जो खबरें आ रही हैं, वह मेरे व नवाज दोनों के लिए धक्कादाक है…मेरा व नवाज का रिश्ता 15 साल पुराना है. नवाज को शिकार बनाया गया है, क्योंकि वह एक सेलीब्रिटी हैं….हम दोनों का धर्म अलग है. मैं हिंदू ब्राह्मण परिवार से हूं और वह मुसलमान हैं, पर नवाज ने मुझे कभी भी अलग धर्म के होने का अहसास नहीं दिया ना ही अपने धर्म को मुझ पर थोपा. वह जितना अपने धर्म को मानते हैं उसकी इज्जत करते हैं उतना ही मेरे धर्म को भी मानते हैं और उसकी इज्जत करते हैं’’

फेसबुक पर अपनी बातें लिखते समय आलिया उर्फ अंजली सिद्दिकी यह भूल गयीं कि मीडिया या पुलिस बेवजह किसी सेलीब्रिटी के पीछे नहीं पड़ती. बौलीवुड का एक तबका अपने पति को बचाने के लिए आलिया द्वारा अपनाए गए इस तरीके को बहुत ही घटिया मान रहा है.

सबसे बड़ी बात यह है कि इस सारे विवाद पर अंजली सिद्दिकी को फेसबुक पर जाकर यह सब बकवास करने की जरूरत क्यों पड़ी? भले ही यह बातें अंजली सिद्दिकी के फेसबुक एकाउंट में लिखी गयी हों, पर सवाल उठने लगे हैं कि उन पर दबाव डालकर ऐसा करवाया गया. इतना ही नहीं सबसे बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि नवाजुद्दीन सिद्दिकी पाक साफ हैं, तो वह पुलिस जांच में सहयोग देने की बजाय भाग क्यों रहे हैं और अपनी सफाई को सोशल मीडिया पर क्यों दे रहे हैं.

बहरहाल, नवाजुद्दीन सिद्दकी लगातार विवादों में फंसते जा रहे हैं. इसकी परिणति क्या होगी, यह तो पुलिस जांच के बाद ही पता चलेगा.

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जूनियर खिलाड़ी से शाहिद अफरीदी को मांगनी पड़ी माफी, जानें क्यों

पाकिस्तान सुपरलीग में धूम मचाने वाले आल राउंडर शाहिद अफरीदी का पाला विवादों में पड़ गया है. जूनियर खिलाड़ी के साथ गलत व्यवहार पर उन्हें माफी मांगनी पड़ी है. यह घटना कराची किंग्स और मुल्तान सुल्तान्स के बीच शनिवार(10 मार्च) को हुए मुकाबले के दौरान हुई.

जब 19 वर्षीय सैफ बादर ने शाहिद अफरीदी की गेंद पर गगनभेदी छक्का जड़ दिया. इसके अगले ही गेंद पर अपने अनुभव का पुरजोर इस्तेमाल करते हुए अफरीदी ने सैफ बदर को पवेलियन का रास्ता दिखा दिया. हालांकि बाद में जो कुछ हुआ वह चौंकाने वाला था. इसके बाद अफरीदी ने बल्लेबाज को बाहर की तरफ जाने का इशारा कर दिया. अफरीदी का यह व्यवहार देखकर लोग हैरान रह गए और उनके अंगुली दिखाने पर प्रतिक्रिया जताने लगे.

शाहिद अफरीदी की कप्तानी और गेंदबाजी की बदौलत कराची ने मुल्तान सुल्तान्स पर 63 रनों से जीत दर्ज की. कराची ने 125 रनों पर ही मुल्तान सुल्तान्स को समेट दिया. बहरहाल, जब पाकिस्तान सुपर लीग ने अपने औफिशियल ट्विटर हैंडल से सैफ बदर के विकेट का वीडियो जारी किया तो बल्लेबाज सैफ बदर ने उसे रिट्वीट करते हुए लिखा-स्टिल लव यू शाहिद भाई.

इस ट्वीट पर शाहिद का दिल पिघल गया और वे माफी मांगने को मजबूर हो गए. बाद में शाहिद अफरीदी ने माफी मांगते हुए कहा कि वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रह सके, जिससे खेल के दौरान रुखा व्यवहार किया.

शाहिद अफरीदी ने अंग्रेजी में ट्वीट किया, जिसका अर्थ था-मैं खेल के दौरान किए व्यवहार के लिए खेद प्रकट करता हूं, मैं हमेशा युवा खिलाड़ियों को सपोर्ट करता हूं, गुड लक. बता दें कि 38 वर्ष की उम्र में अफरीदी पाकिस्तान सुपरलीग में घातक गेंदबाजी से तहलका मचा रहे हैं. टूर्नामेंट के 22वें मुकाबले में उनकी कप्तान में कराची किंग ने मुल्तान सुल्तान्स पर शानदार जीत दर्ज की. इस जीत में अफरीदी की धारदार गेंदबाजी का अहम योगदान रहा. उन्होंने मुल्तान टीम के किरोन पोलार्ड, शोएब मलिक और सैफ बदर के विकेट चटकाए. किरोन पोलार्ड का विकेट जिस घातक गेंद पर लिया, उसका काफी चर्चा है.

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आईआईटी बौम्बे के पराग अग्रवाल बने ट्विटर के नये चीफ टेक्नीकल औफिसर

आईटी सेक्टर में भारत की कामयाबियों में एक नया चैप्टर जुड़ गया है. माइक्रोब्लौगिंग साइट ट्विटर ने पराग अग्रवाल को अपना नया चीफ टेक्नीकल औफिसर (सीटीओ) नियुक्त किया है. उन्हें 2016 में कंपनी छोड़ने वाले एडम मेसिंगर के बदले यह जिम्मेदारी दी गई है. पराग ने आईआईटी बौम्बे से इंजीनियरिंग की है. इसके बाद उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की है.

वैसे तो पराग छह महीने से इस पोस्ट पर काम कर रहे थे. लेकिन, ट्विटर ने उनके नाम का औफिशियल एलान अब किया है. ट्विटर की वेबसाइट के मुताबिक, सीटीओ के रूप में पराग कंपनी की तकनीकी रणनीति का नेतृत्व करेंगे. उनके जिम्मे मशीन लर्निंग, ट्विटर के ग्राहक एवं राजस्व उत्पाद और इंफ्रास्ट्रक्चर टीम की देखरेख होगी. बता दें कि ट्विटर ने इस हफ्ते घोषणा की थी कि वह अपने प्लैटफौर्म पर ‘सामूहिक स्वास्थ्य, खुलापन और सार्वजनिक बातचीत में शिष्टाचार बढ़ाने’ के मकसद से समाज विज्ञान का एक निदेशक नियुक्त करना चाहता है.

कब आए ट्विटर में?

– पराग ने साल 2011 में टि्वटर ज्वाइन किया था. उस वक्त वो एड इंजीनियर थे. यहां उन्होंने बेहतरीन परफौर्म किया. ट्विटर में आने से पहले उन्होंने बड़े पैमाने पर डाटा मैनेजमेंट का काम किया है.

ट्विटर में नई शुरुआत

– पराग एडम मेसिंगर की जगह लेंगे जो 2016 में पांच साल काम करने के बाद इस कंपनी को छोड़ गए थे.

– खास बात ये है कि मेसिंगर के ट्विटर छोड़ने के आस-पास ही जौश मैक्फरलैंड (वाइस प्रेसिडेंट-प्रोडक्ट) भी कंपनी छोड़कर ग्रेलौक पार्टनर्स में चले गए थे.

– इसके पहले सीओओ एडन बेन ने भी कंपनी छोड़ी दी थी और उनकी जगह एंटनी नोटो ने ली थी. ट्विटर की 2016 में उस वक्त भी मुश्किलें बढ़ीं थीं जब उसके डायरेक्टर औफ मीडिया पार्टनरशिप्स और न्यूज सेक्शन के चीफ एडम शार्प कंपनी छोड़ गए थे.

– मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिलहाल ट्विटर के लिए ग्रोथ एक बड़ा मुद्दा है. अमेरिका में इसके यूजर्स कम होते जा रहे हैं.

बड़ी कंपनियों में काम करने का अनुभव

– ट्विटर में आने से पहले पराग माइक्रोसौफ्ट रिसर्च, याहू रिसर्च और एटीएंडटी लैब्स में भी काम कर चुके हैं. ट्विटर में पराग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर यूजर्स के ट्वीट्स बढ़ाने का काम किया.

– बता दें कि ट्विटर इसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से खुद के गलत इस्तेमाल को भी रोकता है. नए रोल में पराग कंज्यूमर और रेवेन्यू प्रौडक्ट पर भी काम करेंगे.

– ट्विटर जल्द ही एक बार फिर से यूजर्स के लिए वेरिफिकेशन के लिए आवेदन लेना शुरू कर सकता है. कंपनी के सीईओ जैक डार्सी ने पेरिस्कोप के लाइवस्ट्रीम में कहा है कि कंपनी लोगों के लिए वेरिफिकेशन दिलाने के लिए काम कर रही है.

शमी की पत्नी का आरोप भारतीय टीम के साथ घूमते हैं दलाल, मुहैया कराते हैं लड़कियां

भारतीय टीम के खिलाड़ी मुहम्मद शमी की बीवी हसीन जहां ने फेसबुक के जरिये अपने शौहर पर कई संगीन आरोप लगाये थे. आरोप लगाने के 48 घंटे बाद उन्होंने एक और विस्फोटक बयान देकर इस बार सीधे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) को हैरत में डाल दिया है. हसीन जहां ने अपने एक बयान मे कहा, टीम इंडिया के साथ दलाल घूमते हैं, जो खिलाडि़यों को वेश्या उपलब्ध कराते हैं.

हसीन ने एक निजी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, बीसीसीआइ खिलाडि़यों को अपनी जिम्मेदारी पर विदेश ले जाता है. उन्हें फाइव स्टार होटलों में ठहराता है लेकिन उसी होटल में दलाल घूमते हैं, जो खिलाडि़यों को लड़कियां मुहैया कराते हैं. ये एक रात की बात नहीं है, हर रोज ऐसा होता है. कुलदीप नामक एक व्यक्ति मेरे पति को लड़कियां उपलब्ध कराता था. इतनी उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में लड़कियां खिलाडि़यों के कमरे में रात भर रहती हैं. यह कैसे हो रहा है, बीसीसीआइ को इसकी जांच करनी चाहिए.’

फेसबुक पोस्ट गंदगी फैलाने या मनोरंजन के लिए नही

हसीन ने आगे कहा, मेरे मायके का बैंकग्राउंड कमजोर है. वे लड़ाई करने की हालत में नहीं है. शमी इस बात को बखूबी जानते हैं. ऐसे में मैं अकेली महिला क्या कर सकती थी इसलिए जब चारों तरफ से मजबूर हो गई तो फेसबुक का सहारा लिया. मैंने फेसबुक पर जो पोस्ट किया है, वह गंदगी फैलाने या मनोरंजन के लिए नही किया है. अपने हक के लिए किया है. मैंने जो भी कहा है, उसे साबित करके शमी को सजा दिलाकर रहूंगी. उनसे सुलह का कोई सवाल ही नहीं है.

फेसबुक अकाउंट ब्लौक किए गए

उन्होंने कहा कि मेरे खुलासे के बाद मेरे फेसबुक अकाउंट को ब्लौक कर दिया गया था. बुधवार को जब मैंने लालबाजार पुलिस मुख्यालय जाकर इसकी शिकायत की तो उसे दोबारा खोल दिया गया लेकिन मेरे सारे पोस्ट डिलीट कर दिए गए हैं. इसके पीछे शमी का हाथ हो सकता है क्योंकि वे प्रभावशाली व्यक्ति हैं.

फिक्सिंग की ओर इशारा

हसीन ने शमी पर पाकिस्तान की एक युवती से संदिग्ध संबंध होने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘शमी का एक पाकिस्तानी युवती से संबंध हैं. वे उनसे रुपये लेने दुबई जाते थे. ये रुपये कराची से दुबई पहुंचते थे. बीसीसीआइ और पुलिस को इस बात की जांच करनी चाहिए कि वह युवती कौन है और वह शमी को रुपये क्यों देती थी? सिर्फ रुपये देती थी या और भी कोई बात थी? शमी जब भी विदेशी दौरे से घर लौटते थे तो उनके सारे बैग में ताले लगे होते थे इसलिए वे क्या गुल खिला रहे हैं, इसका पता करना मेरे लिए मुश्किल होता था.’

अश्लील चैट के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन के बारें में बात करते हुए जहां ने कहा, ‘मोबाइल भले उनका न हो लेकिन शमी इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि उन्होंने उस मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया. फोन मित्र, प्रायोजक अथवा कंपनी कोई भी उपहार में दे ही सकता है लेकिन बड़ी बात ये है कि उसका इस्तेमाल कौन कर रहा है. फोन शमी की बीएमडब्ल्यू कार की ड्राइविंग सीट के कारपेट के नीचे लेग पैड पर कैसे था? मैंने जब इस बारे में शमी से पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम शक करोगी, इसलिए कार में रखा. अश्लील चैटिंग के बारे में शमी ने कहा कि वह मुहम्मद भाई ने की थी, जो अमेरिका में रहते हैं लेकिन चैटिंग की जगह, समय और परिस्थिति मुहम्मद भाई से मेल नही खाते.’

शमी एक नंबर के झूठे

हसीन ने कहा कि शमी एक नंबर के झूठे, मक्कार और धोखेबाज हैं. मेरे पास इस बात के सारे सबूत है कि उन्होंने मेरे साथ धोखेबाजी की है और मुझे प्रताड़ित किया है. जब मुझे उनकी करतूत के सबूत मिले तो मैंने उनसे अपनी भूल कबूल कर मुझसे माफी मांगने को कहा और बोला कि मुझसे वादा करें कि दोबारा ऐसा नहीं करेंगे. इस पर उन्होंने मुझे धमकियां देनी शुरू कर दीं. उन्होंने कहा कि ज्यादा ड्रामा मत करो. मुझे अपनी जिंदगी जीने दो.

हसीन ने दर्ज कराई लिखित शिकायत

कथित तौर पर कई लड़कियों से विवाहेत्तर संबंध के आरोप में घिरे शमी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. उनकी बीवी हसीन ने अपने अधिवक्ता जाकिर हुसैन के साथ लालबाजार पुलिस मुख्यालय जाकर कोलकाता पुलिस के संयुक्त आयुक्त (अपराध) प्रवीण त्रिपाठी को लिखित शिकायती पत्र सौंपा है. हसीन ने संयुक्त पुलिस आयुक्त से मिलकर शमी पर विवाहेत्तर संबंध को लेकर अपनी बीवी को मारने-पीटने, मानसिक तौर पर प्रताडि़त करने, धमकियां देने और धोखेबाजी की लिखित शिकायत की है. पुलिस की ओर से मामले में जांच व उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है.

शमी ने कहा, किसी भी जांच को तैयार

पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक शमी व उनके ससुर अहमद हसन की फोन पर वार्ता हुई थी. दोनों के बीच हुई लगभग आधे घंटे की वार्ता में सकारात्मक संकेत मिले थे. माना जा रहा था कि दोनों परिवारों के लोग बैठकर आपसी सहमति से मामले को जल्द ही खत्म कर लेंगे. लेकिन शाम को वह दिल्ली से घर लौट आए. इससे ऐसा लग रहा है कि सुलह के प्रयासों को झटका लगा है.

वापस लौटने के बाद उन्होंने कहा कि हसीन का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है. इसके चलते वह फिक्सिंग का आरोप लगा रही हैं. बीसीसीआइ फिक्सिंग के आरोप की जांच करा सकती है. मैं जांच के लिए तैयार हूं. उन्होंने कहा कि हसीन के साथ मिलकर कोई शख्स मेरा करियर खराब करने की साजिश कर रहा है.

‘बागी 2’ का दूसरा गाना रिलीज, दिखी टाइगर और दिशा की शानदार कैमिस्ट्री

टाइगर श्रौफ और दिशा पटानी इनदिनों अपनी आनेवाली फिल्‍म ‘बागी 2’ को लेकर चर्चाओं में बने हुए हैं. फिल्‍म का दूसरा गाना रिलीज हो गया है. गाने का टाइटल है ‘ओ साथी’. टाइगर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट कर इस गाने को रिलीज किया है. टाइगर ने ट्वीट करते हुए लिखा ‘कौलेज का प्यार हमेशा ही खास होता है. रौनी और नेहा की प्रेम कहानी देखिए… यह रहा ‘ओ साथी’.

फिल्म के पहले गाने ‘मुंडया’ में टाइगर और दिशा के डांस ने दर्शकों का दिल जीत लिया था, अब दूसरे गाने ‘ओ साथी’ में भी दोनों की जबरदस्त रोमांटिक केमिस्ट्री नजर आ रही है. गाने में टाइगर दिशा को अपने लिए मनाते नजर आ रहे हैं. गाने के एक सीन में टाइगर, दिशा को अपने कंधों पर बिठाकर उन्‍हें कसरत करवा रहे हैं. टाइगर अपने डांस के लिए जाने जाते हैं जिसकी हल्‍की झलक इस गाने में भी देखने को मिल रही है.

कोरियोग्राफर राहुल शेट्टी का कहना है कि टाइगर श्रौफ बेहतरीन डांसर हैं, वह कोरियाग्राफर को हल्के में नहीं लेते. टाइगर हमेशा कोरियोग्राफर के मुताबिक काम करते हैं. आप उनसे कुछ भी करा सकते हैं. वह आपका अनुसरण करेंगे और आपका काम अधिक बेहतर बना देंगे. टाइगर के साथ ‘बीट पे बूटी’ पर काम कर चुके शेट्टी ने इस साल उनकी आगामी फिल्म ‘बागी 2’ के गीत ‘मुंडिया’ में साथ काम किया है.

‘बागी 2’ में जबरदस्‍त एक्‍शन सीक्‍वेंस है और फिल्‍म में टाइगर का फिजिक भी हौट टौपिक बना हुआ है. टाइगर और दिशा की खूबसूरत कैमेस्‍ट्री को इसकी यूएसपी बताया जा रहा है. बता दें कि फिल्म ‘बागी-2’ पहली फिल्म ‘बागी’ का सीक्वल है. ‘बागी 2’ में मनोज वाजपेयी पुलिस अफसर के किरदार में हैं वहीं रणदीप हुड्डा निगेटिव रोल में नजर आयेंगे. प्रतीक बब्‍बर भी काफी दिनों बाद पर बड़े पर्दे पर नजर आनेवाले हैं. वे भी निगेटिव किरदार में होंगे. फिल्‍म में ‘तनु वेड्स मनु’ में पप्‍पी का किरदार निभाने वाले दीपक डोबरियाल भी मुख्‍य भूमिका में हैं. इससे पहले फिल्म ‘बागी’ में टाइगर के साथ लीड रोल में श्रद्धा कपूर थीं. ‘बागी 2’ 30 मार्च को रिलीज होगी. फिल्‍म का साजिद नाडियावाला प्रोड्यूस कर रहे हैं, जबकि अहम खान इसके डायरेक्‍टर हैं.

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