दुनिया के हर समाज व वर्ग में चाहे वह विकसित हो या पिछड़ा, समान या आंशिक रूप से अंधविश्वास प्रचलित है. अंधविश्वास कई प्रकार के होते हैं, जिन में कुछ जातिगत, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक होते हैं और कुछ तो विश्वव्यापी होते हैं, जिन की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उखाड़ना आसान नहीं है. धर्म के नाम पर महिलाओं के  लिए विशेष रिवाज और परंपराएं बनाई गई हैं, जो उन्हें पुरुषों से अलग व सामाजिक अधिकारों से दूर रखती हैं.

लगभग हर धर्म में माहवारी के समय महिलाओं को अपवित्र माना जाता है. परंपराओं की आड़ में उन के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और धर्म के नाम पर पीछे धकेला जाता है. माहवारी के समय रसोईघर व धार्मिक स्थान पर जाने की मनाही, घर की किसी चीज को हाथ नहीं लगाना, दिन में सोने, नहाने से ले कर पहनने, खानेपीने तक पर पाबंदी आदि पीढ़ी दर पीढ़ी मजबूत होती गई. यहां तक कि आज भी परिवर्तन सतही ही है.

कहते हैं आज के विज्ञान युग में समय के  साथ बहुत कुछ बदल रहा है. ऐसे में जो कई सौ सालों में नहीं हुआ वह मात्र पिछले 20-30 सालों में हुआ है. काफी खुलापन आया है. महिलाएं अपने अधिकारों एवं आत्मसम्मान के प्रति सचेत हो रही हैं और कई धार्मिक व सामाजिक रूढि़वादी मान्यताएं तोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. लेकिन 21वीं सदी में भी समाज में बहुत से ऐसे रीतिरिवाज, आडंबर हैं, जिन्हें आज की महिलाएं जारी रखे हुए हैं, जिन के आधार पर उन के पूर्वज उन्हें अपवित्र बताते आए हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...