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आरबीआई ने एसबीआई के बाद एयरटेल पर लगाया जुर्माना, यह है मामला

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एसबीआई पर जुर्माना लगाने के बाद अब एयरटेल पेमेंट बैंक पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. आरबीआई ने यह जुर्माना बैंकिंग औपरेशंस से जुड़े दिशा-निर्देश और अपने ग्राहक को जानो (KYC) नियमों का उल्लंघन करने के लिए लगाया है.

आरबीआई ने एयरटेल पर पर यह जुर्माना बैंक के दस्तावेजों की जांच करने के बाद लगाया है. जांच में केंद्रीय बैंक ने पाया कि ग्राहकों की ओर से बिना किसी स्पष्ट रजामंदी के लोगों के खाते खोले गए. आरबीआई की तरफ से एक बयान में कहा गया कि भारतीय रिजर्व बैंक ने 7 मार्च 2018 को एयरटेल पेमेंट बैंक लिमिटेड पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.

बिना रजामंदी के ही खाते खोले

एयरटेल पेमेंट बैंक पर यह जुर्माना केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए केवाईसी नियमों और भुगतान बैंक परिचालन के दिशा-निर्देशों की अवहेलना करने के लिए लगाया गया है. ग्राहकों की शिकायत थी कि उनकी बिना रजामंदी के एयरटेल पेमेंट्स बैंक ने खाते खोले. इसे लेकर मीडिया में भी खबरें थीं, जिस पर रिजर्व बैंक ने 20 से 22 नवंबर 2017 को बैंक का पर्यवेक्षण दौरा किया.

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जनवरी 2017 में शुरू किया था परिचालन

रिपोर्ट के मुताबिक बैंक के दस्तावेजों में पाया गया कि उसने केवाईसी नियमों और भुगतान बैंक परिचालन के दिशानिर्देशों की अवहेलना की है. इसके बाद रिजर्व बैंक ने 15 जनवरी को कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया और बैंक के उत्तर का आकलन करने के बाद उस पर यह मौद्रिक जुर्माना लगाने का निर्णय किया. एयरटेल पेमेंट्स बैंक ने पिछले साल जनवरी में अपना परिचालन शुरू किया था. आपको बता दें कि पिछले दिनों नोटबंदी से जुड़े निर्देशों का पालन नहीं करने पर आरबीआई ने एसबीआई पर 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.

गौरतलब है कि पिछले दिनों एयरटेल पर ग्राहकों ने आरोप लगाया था कि मोबाइल नंबर का आधार वेरिफिकेशन के दौरान कंपनी ने ग्राहकों के एयरटेल पेमेंट्स बैंक में खुद ही अकाउंट ओपन कर दिया. यह मामला तब सामने आया जब एलपीजी सब्सिडी का अमाउंट उनकी ओर से निर्धारित बैंकों के सेविंग अकाउंट की जगह एयरटेल पेमेंट्स में जमा होने लगा. वहीं, ज्यादातर ग्राहकों ने ऐसे पेमेंट ट्रांसफर होने की शिकायत की और कहा कि एयरटेल पेमेंट्स बैंक अकाउंट के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

मुहम्मद शमी ही नहीं इन खिलाड़ियों पर भी लगे हैं संगीन आरोप

खेल और ग्लैमर एक दूसरे के पूरक हैं. मुहम्मद शमी और उनकी पत्नी से जुड़ा मामला इसी फेहरिस्त की अगली कड़ी है. इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर माइक गेटिंग्स से लेकर भारतीय स्पिनर अमित मिश्रा तक महिलाओं के साथ रिश्तों को लेकर फंस चुके हैं.

अमित मिश्रा पर लगे थे गंभीर आरोप

भारतीय क्रिकेटर अमित मिश्रा पर 2015 में उनकी महिला मित्र ने गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें बेंगलुरु पुलिस के समक्ष पेश होने पर मजबूर कर दिया था. तब उनकी दोस्त बताई जा रही महिला ने मिश्रा पर मारपीट और गाली गलौज का आरोप लगाया था.

बैड बौय शेन वौर्न

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औस्ट्रेलिया के दिग्गज स्पिनर शेन वौर्न कई महिलाओं के साथ अपनी रिश्तों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं. 2006 में ब्रिटेन की एक नर्स ने उन पर उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए. इसके अलावा इंग्लिश काउंटी क्रिकेट खेलने गए वौर्न पर दो महिलाओं से साथ रंगरलियां मनाने के आरोप भी लगे. वर्षो साथ रहने के बाद उन्होंने ब्रिटेन की स्टार मौडल लिज हर्ले के साथ अपने रिश्ते को खत्म किया.

रंगरलियां मनाते पकड़े गए अफरीदी

पाकिस्तान के धाकड़ बल्लेबाज शाहिद अफरीदी और उनके दो साथी खिलाड़ियों को 2000 चैंपियंस ट्रौफी से पहले कराची के एक होटल के कमरे में कई लड़कियों के साथ देखा गया था. इसके बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इन खिलाड़ियों के आइसीसी चैंपियंस ट्रौफी में खेलने पर रोक लगा दी थी.

रऊफ पर लगा यौन शोषण का आरोप

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पाकिस्तान के अंपायर असद रऊफ पर भारतीय मूल की एक मौडल लीना कपूर ने यौन शोषण का आरोप लगाकर खलबली मचा दी थी. लीना ने आरोप लगाए थे कि रऊफ ने उनसे शादी का झांसा देकर यौन शोषण किया और शादी से मुकर गए. तब लीना और रऊफ की कई आपत्तिजनक फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थीं.

कार्तिक का अलगाव

भारतीय क्रिकेटर दिनेश कार्तिक और उनकी पत्नी निकिता की शादीशुदा जिंदगी खत्म हो चुकी है. निकिता ने बाद में कार्तिक के दोस्त और टीम इंडिया के ओपनर मुरली विजय के साथ शादी कर ली.

सरदार सिंह पर भी लगे गंभीर आरोप

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क्रिकेट सितारों के अलावा भारतीय हौकी टीम के मौजूदा कप्तान सरदार सिंह पर दो साल पहले एक ब्रिटिश मूल की महिला ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे. इंग्लिश महिला हौकी खिलाड़ी ने खुद को सरदार की मंगेतर होने का दावा किया था और सरदार पर शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने की बात कही थी.

इस खास वजह से शिल्पा को बीबीसी कहकर बुलाते हैं राज कुंद्रा

बौलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी पिछले कुछ समय से फिल्मों से दूर छोटे पर्दे पर नजर आ रही हैं. वह इन दिनों सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के डांस रिएलिटी शो सुपर डांसर चैप्टर 2 में जज की भूमिका में दिखाई दे रही हैं. इस शो में उनके साथ डांस कोरियोग्राफर गीता और निर्देशक अनुराग बासु जज की भूमिका में नजर आते हैं.

पिछले दिनों शो में कंटेस्टेंट की परफौर्मेंस के दौरान शिल्पा शेट्टी ने खुद से जुड़ा एक खुलासा किया. उन्होंने बताया कि उनके पति राज कुंद्रा उन्हें किस निक नेम से पुकारते हैं. शिल्पा ने बताया कि राज उन्हें अक्सर बीबीसी कह कर बुलाते हैं. उनका यह खुलासा सुन वहां बैठीं गीता और अुनराग काफी चौंक गए.

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दरअसल शो के कंटेस्टेंट आकाश थापा और विवेक ने ‘कल हो ना हो’ गाने पर परफौर्म किया. इस परफौर्मेंस में दोनों ने लोगों के बीच बढ़ती टैक्नोलौजी और सोशल मीडिया के बढ़ते ट्रेंड को दिखाने की कोशिश की थी.

इस परफौर्मेंस को देखने के बाद शिल्पा ने खुद इस बात का खुलासा किया कि उनके पति राज कुंद्रा उन्हें बीबीसी कहकर बुलाते हैं. इसकी वजह है कि उन्हें लगता है कि शिल्पा टैक्नोलौजी के मामले में काफी बैकवर्ड हैं. इस बात का जिक्र करते हुए शिल्पा ने कहा कि उन्हें अक्सर लगत है कि मैं टैक्नोलौजी को सही से इस्तेमाल नहीं करना जानती हूं. इसी वजह से वह मुझे बीबीसी कह कर बुलाते हैं.

शिल्पा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव नजर आती हैं. वह अक्सर अपनी तस्वीरों और वीडियो को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर करती रहती हैं लेकिन इसके बावजूद राज कुंद्रा को लगता है कि वह इस मामले में काफी पीछे हैं. शिल्पा ने बताया कि राज ने उन्हें मजाक में निक नेम बीबीसी दे दिया था. इसका मतलब है बौर्न बिफोर कंम्प्यूटर. हालांकि शिल्पा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव नजर आती हैं. वह इस शो के दौरान अक्सर अपने लुक और फिजीक की वजह से चर्चा में रहती हैं.

इन तरीकों की मदद से बढ़ाएं अपने फोन का स्टोरेज

क्या आप अपने फोन में लो स्पेस की नोटिफिकेशन देख-देख कर परेशान हो चुके हैं? क्या आपके स्मार्टफोन का स्टोरेज जल्दी फुल हो जाता है, तो आपको हमारी ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए. दरअसल जैसे ही लो स्टोरेज की समस्या आती है, आपका फोन स्लो काम करने लगता है. लो स्टोरेज के कारण न तो आप किसी चीज को डाउनलोड कर पाएंगे बल्कि आपको फोन भी धीरे काम करने लगेगा.

लो स्टोरेज के चलते फोन गर्म होने की भी शिकायतें मिलती रहती हैं. ऐसे में सवाल ये हैं कि लो स्टोरज की परेशानी से कैसे बचा जाए, या तो ज्यादा स्टोरेज का फोन खरीदा जाए, जिसके लिए आपको अपनी जेब ढिली करनी पड़ेगी या फिर आप इन तरीकों का इस्तेमाल करें और अपने स्मार्टफोन की स्टोरेज को बिना किसी खर्च के बढ़ाएं. तो जानतें हैं वो कौन से तरीके हैं जिनकी मदद से आप लो स्टोरेज की परेशानी से निजाद पा सकेंगे.

फोटो को बैकअप करने के बाद डिलीट करें- अक्सर हमारे फोन में मेमोरी की समस्या फोन में पड़े फोटोज की वजह से होती है. कई बार तो हमारे फोन में ऐसे फोटोज सेव होते हैं जिनकी हमे जरूरत भी नहीं होती. ऐसे में उन फोटोज को फोन से डिलीट करें जिनकी आपको जरूरत नहीं है. इसके अलावा अपने फोन में पड़े फोटोज को क्लाउड सर्वर पर सेव करने के बाद उन्हें फोन से डिलीट कर दें. ऐसा करने पर आपको फोटो के खो जाने का भी डर नहीं रहेगा इसके अवाला आपके फोन की स्टोरेज भी बढ़ जाएगी.

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मीडिया मैसेजस को डिलीट करें- हम कई ऐसे ऐप इस्तेमाल करते हैं जिनमें मीडिया मैसेज की सुविधा होती है, उधाहरण के रूप में व्हाट्सऐप में मीडिया मैसेज रिसीव और भेजने की सुविधा रहती है. ऐसे में अगर आप अपने गैलेरी में व्हाट्सऐप फोटो या वीडियो को डिलीट भी करते हैं तो वो आपके फोन में सेव रहता है. इसलिए ऐप की सेटिंग्स में जा कर स्टोरेज औप्शन में जाएं और मीडिया मैसेजस को डिलीट करें.

ऐप को डिलीट कर बचाएं स्पेस- हमारे फोन में कई ऐप्स ऐसे पड़े होते हैं जिनकी हमें जरूरत नहीं होती है, इन ऐप्स को तुरंत डिलीट कर दें, इससे आपके फोन की स्पेस बढ़ेगी. इसके अलावा भारी स्पेस की खपत करने वाले ऐप्स से भी बचें, खास कर उन गेमिंग ऐप्स से जो 1 जीबी तक की स्पेस ले लेते हैं.

Cache मेमोरी को डिलीट करें- जैसे ही आपको अपने फोन में लो स्पेस का नोटिफिकेशन दिखे, सबसे पहले अपने फोन में सेव ऐप्स की कैश मेमोरी को डिलीट करें. कैश मेमोरी को डिलीट करने से आपका कोई भी डाटा डिलीट नहीं होगा. कैश मेमोरी को आप अपने फोन की सेटिंग्स में जाकर डिलीट कर सकते हैं.

वीडियो देखने के बाद डिलीट करें- सस्ते 4जी प्री पेड प्लान्स के बाद भारत में औन लाइन वीडियो देखने का चलन तेजी से बढ़ा है. इसलिए अगर आप किसी वीडियो को देखना चाहते हैं तो उसे डाउनलोड करने के बजाए औन लाइन देखें. अगर वीडियो दूसरे जगह उपलब्ध हो तो बेहतर रहेगा कि फोन में उसे देखने के बाद डिलीट कर दें.

वाई-फाई का पासवर्ड भूल गए हैं? ऐसे करें रिकवर

क्या आप अपना वाई-फाई पासवर्ड भूल गए हैं और पासवर्ड याद नहीं आने के कारण वायरलेस राउटर को रीसेट करना मजबूरी बन गई है? अगर आप भी ऐसी परिस्थिति में फंस चुके हैं, तो इन टिप्स के जरिए वाई-फाई का पासवर्ड रिकवर किया जा सकता है.

नीचे दिए सुझावों के जरिए आप तभी वाई-फाई पासवर्ड रिकवर कर सकते हैं, जब आपका एक डिवाइस उस नेटवर्क से कनेक्टेड हो. अगर आप अपने वाई-फाई नेटवर्क का पासवर्ड भूल गए हैं तो इन सुझावों का इस्तेमाल करें.

विंडोज

ऐसे तो आपको इंटरनेट पर कई ऐप्स मिलेंगे, जो दावा करते हैं कि उनकी मदद से आप वाई-फाई पासवर्ड रिकवर कर सकते हैं, पर विंडोज कंप्यूटर के लिए किसी ऐप की जरूरत नहीं पड़ती. अगर आपके पास पीसी का एडमिनिस्ट्रेटर एक्सेस ना हो, तो भी इन सुझावों का पालन करके वाई-फाई पासवर्ड जान सकते हैं. एक बात ध्यान रखें कि यह तरीका तभी काम करेगा जब सिक्योरिटी, पर्सनल पर सेट किया हुआ हो. अगर आप किसी एंटरप्राइज नेटवर्क से कनेक्टेड हैं, या फिर औफिस वाई-फाई का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप पासवर्ड नहीं जान पाएंगे.

-वाई-फाई नेटवर्क से कनेक्टेड कंप्यूटर लें. फिर Start > Control Panel > Network and Sharing Centre मे जाएं. विंडोज 8 कंप्यूटर पर आप विंडोज key + C टैप कर सकते हैं, इसके बाद सर्च पर क्लिक करें और Network and Sharing Center खोजें.

-लेफ्ट साइडबार में चेंज एडप्टर सेटिंग्स पर क्लिक करें.

-आप जिस वाई-फाई नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं उस पर राइट-क्लिक करें. फिर स्टेटस पर क्लिक करें.

-वायरलेस प्रौपर्टीज पर क्लिक करें.

-सिक्योरिटी टैब पर क्लिक करें.

अब आप वाई-फाई नेटवर्क का नाम और छिपा हुआ पासवर्ड देख पाएंगे. शो कैरेक्टर्स पर चेक करने से आपका सेव किया हुआ पासवर्ड दिखने लगेगा.

पासवर्ड ढूंढने का एक और तरीका है.

कंप्यूटर पर थर्ड-पार्टी ऐप इंस्टौल कर उसके इस्तेमाल से ऐसा संभव है. इसके लिए आगे दिए गए सुझावों का पालन करें:

WiFi Password Revealer को डाउनलोड करके इंस्टौल करें. इंस्टौलर आपको Skype और AVG TuneUp इंस्टौल करने का सुझाव देगा, हम यहीं कहेंगे कि इंस्टौलेशन के दौरान आप इसे अनचेक कर लें.

इंस्टौलेशन खत्म हो जाने के बाद इस प्रोग्राम को रन करें. अब आप सभी वाई-फाई नेटवर्क को देख पाएंगे और उनके पासवार्ड भी.

मेक

आप मेक पर सेव किए हुए वाई-फाई पासवर्ड को Keychain Access ऐप के जरिए ढूंढ सकते हैं. इसके लिए Applications/Utilities में जाएं. Keychain Access खोलें. बायीं तरफ टौप में Keychains के अंदर लिस्टेड System keychain में जाएं.

दायीं तरफ टौप कौर्नर में बने सर्च बौक्स में नेटवर्क (SSID) का नाम टाइप करके वाई-फाई नेटवर्क को खोजें, जिसका पासवर्ड जानने की कोशिश कर रहे हैं. या फिर आप मैनुअली भी लिस्ट में इसे खोज सकते हैं.

सर्च रिजल्ट आने के बाद नेटवर्क के नाम पर डबल क्लिक करें. इसके बाद शो पासवर्ड का औप्शन क्लिक कर दें.

जब पूछा जाए तो आप यूजर अकाउंट पासवर्ड बता दें और इसके बाद आप सेव किया हुआ पासवर्ड देख सकेंगे.

अगर सारे उपाय काम ना करें

अगर कोई भी उपाय काम नहीं करता तो आपको राउटर रीसेट करना पड़ सकता है. ऐसा तब तक नहीं करें जब तक आप किसी भी डिवाइस को नेटवर्क से कनेक्ट नहीं कर पा रहे हों. राउटर को रीसेट करना आखिरी उपाय है, क्योंकि इसके बाद आपको इंटरनेट कनेक्शन रीस्टोर करने के लिए पूरे नेटवर्क को फिर से सेटअप करना होगा. अगर आपको इसके बारे में नहीं पता तो हमारा सुझाव होगा कि आप अपने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से संपर्क करें.

हर राउटर में एक रीसेट स्विच होता है. कुछ राउटर्स में एक बेहद ही छोटा सा बटन होता है, तो कुछ में ये बटन एक छोटे से छेद (इसे पेपर क्लिप के जरिए दबाया जा सकता है) में छिपा होता है. राउटर को रीसेट करने के लिए इस स्विच को कुछ देर तक दबाए रखना पड़ता है. राउटर पर बने हुए फ्लैशिंग लाइट्स से आपको पता चल जाएगा कि यह रीसेट हो गया.

यह हो जाने के बाद आप राउटर के फिर से स्टार्ट होने का इंतजार करें और इसके बाद नेटवर्क को सेटअप करें.

शहरों में अब धीरे धीरे संडे ब्रंच का बढ़ रहा है चलन

रविवार छुट्टी का दिन होता है. देर तक सोना सबको पसंद होता है. ऐसे में सुबह लंच का समय खत्म हो जाता है. पति पत्नी दोनों यही चाहते हैं कि रविवार की छुट्टी मौज मस्ती में गुजरे. रोज की तरह सुबह उठ कर ब्रेकफास्ट लंच और डिनर बनाने जैसा काम न करना पडे. पैरेंटस के साथ ही साथ बच्चें भी छुट्टी के इस दिन को बहुत इंज्वाय करना चाहते हैं. वह चाहते है कि पैरेंटस केवल उनके साथ ही न रहे बल्कि घर से बाहर घूमने, खाने और मौज करने में शामिल रहे. ऐसे में अब संडे ब्रंच का कल्चर बढ रहा है.

होटल फेयर फील्ड के चीफ शेफ प्रशांत उत्तम राव सूर्यवंशी कहते हैं ‘इसमें सुबह का ब्रेक फास्ट हल्का कर लिया जाता है. इसके बाद दोपहर का लंच हैवी हो जाता है.’

होटल फेयर फील्ड के डायरेक्टर सेल्स विक्रम सिंह कहते हैं ‘जब घर से बाहर लंच करने का विकल्प परिवार के पास होता है तो बच्चे अपनी पंसद का खाना पसंद करते हैं और बाकी लोग अपनी पसंद का. ऐसे में सबकी पंसद के चक्कर में बिल बढ़ जाता है और बहुत सारे व्यंजन का स्वाद रह जाता है. हमने अपने होटल में ‘परफेक्ट संडे ब्रंच’ की नई शुरूआत की है. जिसमें हम चाय से लेकर चाट, स्वीट, पास्ता, चाइनीज, साउथ इंडियन और नार्मल खाने के साथ मुगलई डिश तक गेस्ट के लिये रखते हैं. पूरी तरह से यह बुफे होता है. एक नार्मल चार्ज देकर गेस्ट अपने पंसद के हर खाने का स्वाद ले सकता है. खाने के स्वाद के साथ एक बेहतर माहौल देने का काम किया जाता है. जिससे गेस्ट पूरी तरह से खुश होकर जाये.’

होटल रेनेंसा की अस्सिटेंट मैनेजर मार्केटिंग एंड कम्यूनिकेशन फातिमा अब्बास कहती हैं ‘बुफे सिस्टम में खाने की बरबादी नहीं होती. जिससे कम पैसे में बहुत सारी डिश का स्वाद तो लिया ही जा सकता है. खाना खराब नहीं होता. हर होटल की सामाजिक जिम्मेदारी होती है कि वह खाने की बरबादी को रोकने के उपाय करे, जिससे खाना भी खराब न हो और ग्राहक की जेब भी ज्यादा ढीली न हो.’

असल में होटल में खाने में प्लेट सिस्टम में खाना बहुत बरबाद होता है और मंहगा भी पड़ता है. ग्राहक को चुनी हुई डिश ही खाने को मिलती है. विक्रम सिंह कहते हैं ‘खाने में हर तरह की डिश के साथ हाईजीन और डाइट का पूरा ख्याल रखा जाता है. ग्राहक को यह पूरी आजादी है कि वह आराम से अपने मनपंसद खाने का स्वाद ले सके. किसी भी तरह से वह अपने को असुविधा में अनुभव न करे.’

व्हाट्सऐप व फेसबुक के जरिए जुड़ें रिश्तेदारों से

न्यू टैक्नोलौजी और न्यू गैजेट्स का इस्तेमाल करना किशोरों का शौक ही नहीं जरूरत भी है, लेकिन इस का इस्तेमाल अगर वे कुछ ऐसे करें जिस से उन के मातापिता को भी फायदा हो और वे अपने रिश्तेदारों से भी जुड़ सकें तो कैसा रहेगा? जी हां, बच्चों को बड़ा करने और उन की जिम्मेदारियों में मातापिता कुछ ऐसे व्यस्त हो जाते हैं कि अपने रिश्तेदारों से मिलने व उन से बतियाने का उन्हें समय ही नहीं मिल पाता और धीरेधीरे सब रिश्तेदार एकदूसरे से दूर होते जाते हैं. बस, कभीकभार शादीब्याह में ही एकदूसरे से मिलना हो पाता है, जिस का मलाल उन्हें हमेशा रहता है. कुछ के पेरैंट्स तो स्मार्टफोन और नई टैक्नोलौजी को यूज करते हैं लेकिन बहुत से किशोरों के पेरैंट्स ऐसे होंगे जो इन चीजों से दूर हैं, तो क्यों न उन के लिए रिश्तेदारों से जुड़ने का जरिया आप बन जाएं? फेसबुक और व्हाट्सऐप के जरिए आप उन्हें एकदूसरे के करीब ला सकते हैं. जानिए कैसे :

व्हाट्सऐप पर फैमिली ग्रुप बनाएं

वैसे तो आप के व्हाट्सऐप पर दोस्तों के कई ग्रुप होंगे, लेकिन अब दोस्तों से हट कर कुछ और ग्रुप भी बनाएं जो रिश्तेदारों के हों. जैसे कि अपने पापा की तरफ और मम्मी की तरफ के रिश्तेदारों के 2 ग्रुप बनाएं और उन को एक अच्छा सा नाम दें. मम्मी की तरफ के ग्रुप को ननिहाल ग्रुप और पापा की तरफ के ग्रुप को अगर वह बड़ा है तो सुपर बिग फैमिली व स्वीट फैमिली जैसे नाम भी दे सकते हैं. आप के द्वारा दिया गया यह नाम ही रिश्तेदारों को इस ग्रुप से जुड़ने के लिए मजबूर करेगा.

ग्रुप में सब को ऐड करें

ग्रुप एडमिन होने के नाते आप को ही यह तय करना है कि ग्रुप में किनकिन लोगों को ऐड करना है, लेकिन ऐसा करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखिएगा कि यह आप की पर्सनल पसंद और नापसंद पर निर्भर न करे कि आप किसे ग्रुप में ऐड कर रहे हैं. जिन लोगों को आप पसंद नहीं करते उन्हें भी ग्रुप में ऐड करना होगा. इस के लिए पहले एक लिस्ट बनाएं और उन के फोन नंबर्स के साथ उन्हें ग्रुप में ऐड करें. इस से सभी रिश्तेदार एकसाथ एक ही ग्रुप में माला में पिरोए दानों की तरह जुड़ जाएंगे.

बर्थडे विश करने का प्रचलन शुरू करें

वैसे तो आजकल एकदूसरे का बर्थडे याद रखना मुश्किल काम है, लेकिन अगर ग्रुप में कोई एक मैंबर बर्थडे विश करने का मैसेज डाल दे तो बाकी सारे गु्रप मैंबर्स भी बर्थडे विश करने लगते हैं. इस से जिस का जन्मदिन है उसे अच्छा लगता है कि चलो आज सभी ने उसे विश कर के उस के दिन को स्पैशल बनाया. साथ ही सभी रिश्तेदार प्रत्यक्ष रूप में न सही परोक्ष रूप में एकदूसरे के बर्थडे में शामिल हो जाते हैं. उन में से कुछ तो ऐसे जरूर होंगे जो सोचेंगे कि चलो, आज बर्थडे के बहाने फोन भी कर लेते हैं और इसी के साथ एकदूसरे से बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है.

फोटो शेयर करें

कोई त्योहार हो, बर्थडे या फिर कहीं घूमने जाने के फोटो हों, सभी लोग अपने और अपने परिवार के फोटो फेसबुक और व्हाट्सऐप पर भेजते रहें. इस से पास न हो कर भी एकदूसरे को देख कर पास होने का एहसास होता है. टीनएजर तो अपने दोस्तों के लाइक्स पर ही खुश हो जाते हैं, लेकिन मम्मीपापा के लिए यह बहुत बड़ी बात है कि उन के फोटो को उन के अपने सगे भाईबहन दूर होते हुए भी देख रहे हैं. सभी उन पर लाइक्स और कमैंट्स देते हैं तो भी अच्छा लगता है कि चलो हमारे फोटो को देखने वाला, उन्हें सराहने वाला कोई तो है. इस चक्कर में हम अगली बार कहीं जाते हैं तो और भी ज्यादा फोटो लेते हैं, क्योंकि उन पर लाइक्स जो बटोरने होते हैं.

फेसबुक पर अकाउंट बनाएं

आप तो फेसबुक पर घंटों बतियाते ही हैं तो क्यों न इस वीकऐंड पर आप कुछ ऐसा करें, जिस से आप के साथ आप के पेरैंट्स भी फेसबुक पर घंटों बतिया सकें. ऐसा करने पर उन्हें आप का फेसबुक पर लगे रहना भी बुरा नहीं लगेगा और वे थोड़ा बिजी भी हो जाएंगे. इसलिए अपने पेरैंट्स का फेसबुक पर अकाउंट बनाएं.

फेसबुक फ्रैंडली बनाएं

जनाब सिर्फ अकाउंट बनाने से कुछ नहीं होगा बल्कि उन्हें उसे यूज करना भी सिखाएं. फेसबुक के फायदेनुकसान, उस की सिक्योरिटी आदि सबकुछ ढंग से समझा दें, ताकि वे भी बिंदास फेसबुक यूज कर सकें. साथ ही अपने सभी रिश्तेदारों को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजें और अपने मम्मीपापा के अकाउंट में उन्हें ऐड करें ताकि उन का अपना एक ग्रुप बन जाए और इसी बहाने वे सभी रिश्तेदारों के टच में रहें. यह एकदूसरे से जुड़े रहने का बेहतरीन टूल है, खासकर दूसरे देशों में रहने वाले रिश्तेदारों से बातचीत करने के लिए. सिर्फ यही नहीं बल्कि आप अपनी मम्मी के पुराने स्कूलकालेज के दोस्तों को भी फेसबुक के जरिए ढूंढ़ने में मदद करें. इस से वे बहुत खुश होंगे.

चैटिंग करना भी अच्छा औप्शन

हर समय किसी को फोन नहीं किया जा सकता, लेकिन चैटिंग के जरिए दिन में कई बार एकदूसरे का हाल पूछ सकते हैं और एकदूसरे से लगातार संपर्क में बने रह सकते हैं. अगर मां को अंगरेजी में कुछ समस्या है तो उन्हें हिंदी में टाइप करने में मदद करें ताकि वे बेझिझक अपने मन की बात अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से कर सकें.

कुछ बातों का ध्यान भी रखें

यहां इस ग्रुप में बहुत सारी महिलाएं भी होंगी और कई बार छोटीछोटी बातें बहस का रूप भी ले सकती हैं. ऐसे में यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस स्थिति को कैसे संभालते हैं. आप ग्रुप एडमिन हैं तो ग्र्रुप को संभालने की जिम्मेदारी आप के ही कंधों पर है. ग्रुप में किसी विषय पर कोई चर्चा चल रही हो तो गुट न बनने दें, इस से रिश्तों पर असर पड़ेगा, क्योंकि यहां कोई गैर नहीं, सब अपने ही हैं.अपने रिश्तेदारोंकी छिपी प्रतिभा को भी ग्रुप में गेम्स के जरिए बाहर लाएं. इस से सभी लोगों में आत्मीयता बढ़ेगी. वे एकदूसरे के हुनर को जानेंगे, पहचानेंगे और उस की कद्र भी करेंगे. इस से सभी को एकदूसरे के करीब आने में मदद मिलेगी.  कभीकभी ग्रुप में सभी रिश्तेदारों को कहें कि वे खुद अपना लिखा हुआ भेजें. फिर चाहे वह शेरोशायरी हो या फिर कोई कविता, कोई पहेली या फिर आप की कोई रैसिपी हो. इस से सभी रिश्तेदार एकदूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिता पाएंगे. फिर चाहे वह वक्त फोन पर ही क्यों न बीते. इस में फायदा सिर्फ मातापिता का ही नहीं है बल्कि इस के जरिए आप भी अपने सभी कजिंस को जान सकेंगे, जिन से पहले आप सिर्फ कभीकभार फंक्शन वगैरा में ही मिलते थे और बातचीत करने में उतना फ्रैंक नहीं हो पाते थे, लेकिन अब तो रोज ही अपने रिश्तेदारों के टच में रहेंगे. फंक्शन में जाने और मस्ती करने का ऐक्साइटमैंट ही अलग होगा.

सास बहू का रिश्ता, मीठा मीठा प्यारा प्यारा

एक लड़की की शादी होती है तो उसे पति के साथ मिलती है एक सास. सास व बहू के बीच पुत्र/पति अहम कड़ी होती है. मानने को तो पति और सास दोनों का एक ही लक्ष्य होता है- उस की खुशी, उस की सेहत, उस की प्रगति अर्थात दोनों उस का भला चाहती हैं. किंतु फिर भी सदियों से सासबहू का रिश्ता कड़वाहट भरा माना जाता है. मन में ललिता पवार और शशिकला के फिल्मी वैम्प किरदारों जैसी आकृतियां उभरने लगती हैं.

यदि दामाद, बेटी के पीछे लगा रहे तो बेहतर. लेकिन यदि बेटा, बहू की बात सुनता रहे तो नालायक. नहीं जनाब, सभी सासें ‘सौ दिन सास के’ फिल्म की खड़ूस सास जैसी नहीं होतीं. कुछ ऐसी भी होती हैं जिन्हें पा कर बहुएं मायके का रास्ता भूल जाती हैं. ‘मम्मी’ शब्द का जिक्र आते ही बहुओं को अपनी सास याद आती हैं, अपनी मां नहीं. कैसे बनता है रिश्ता ऐसा? अपनेआप? जी नहीं, अपनेआप नहीं, बल्कि ऐसा दोनों की समझ के तहत होता है. समझदार हैं वे सासबहू जो इस अनमोल रिश्ते की कीमत और गरिमा को पहचानती हैं और देर होने से पहले ही सही कदम उठा लेती हैं.

हर रिश्ता बनाने में समय, धैर्य और परिश्रम लगता है. हथेली पर सरसों नहीं उगती. इसलिए रिश्तों को समय दें और विश्वास बनाए रखें. रिश्ता मजबूत बनेगा. सास और बहू दोनों ही भिन्न परिवेश से आती हैं तो एकदूसरे को समझने का प्रयास करें. कोशिश करें की पहले आप दूसरे की भावनाएं समझें और बाद में मुंह खोलें. याद रखें शब्दबाण एक बार कमान से निकल गए तो उन की वापसी असंभव है, साथ ही, उन के द्वारा दिए घाव भरना भी बहुत मुश्किल. शब्द रिश्तों को पत्थर सा मजबूत भी बना सकते हैं और कांच सा तोड़ भी सकते हैं. सोचसमझ कर शब्दों का प्रयोग करें. यदि चुप्पी से काम चल सके तो चुप रहें.

ऐनी चैपमैन, अमेरिकी संगीतकार तथा लोकप्रिय वक्ता, जो स्वयं बहू रहीं और अब सास बन चुकी हैं, ने कई पुस्तकें लिखीं, जैसे ‘द मदर इन ला डांस,’ ‘ओवरकमिंग नैगेटिव इमोशंस,’ ‘10 वेज टू प्रिपेयर यौर डौटर फौर लाइफ’ आदि. वे सासबहू के रिश्ते को सुनहरा बनाने के लिए ये नियम बताती हैं :

–  सास को बहू की तुलना अपनी बेटी से नहीं करनी चाहिए और बहू को सास की तुलना अपनी मां से नहीं करनी चाहिए.

–  सास को चाहिए कि शादी के बाद बेटे को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दे ताकि न केवल बेटेबहू का शादीशुदा जीवन सुखमय हो बल्कि सासबहू का रिश्ता भी सुदृढ़ बने.

–  बहू को अपने सैरसपाटे हेतु अपनी गृहस्थी या बच्चों की जिम्मेदारी सास पर न छोड़ने का निश्चय करना होगा.

–  यदि सास या बहू कुछ हठीले स्वभाव की हैं तो दोनों को चाहिए कि वे परस्पर नम्रता बनाए रखें लेकिन साथ ही थोड़ी दूरी भी रखें.

बहू नईनवेली है तो सास भी नवविवाहिता के लिए बहूरानी की भूमिका नई है, जिसे वह अनुभव से सीखेगी और इस के लिए उसे पर्याप्त समयाविधि मिलनी चाहिए. वहीं, सास के लिए भी उन का रोल नूतन है. एक अन्य स्त्री का अपनी गृहस्थी में प्रवेश, अपने बेटे के जीवन में स्वयं से अधिक उपस्थिति आदि के लिए स्वयं को ढाल रही हैं और इस के लिए उन्हें भी समय मिलना चाहिए.

बाटें अनुभव, आएं पास

बहुएं सास की इज्जत करें. उन्हें बुजुर्ग होने के साथ अनुभवी भी मानें. अपनी सास से उन के बचपन की मजेदार बातें सुनें, उन के शादी के बाद के किस्से, बच्चों को पालते समय संबंधित अनुभव आदि. जब एक सास अपनी बीती हुई जिंदगी के अनुभव अपनी नई बहू से बांटेगी तो उस के मन में बहू के प्रति लगाव बढ़ना स्वाभाविक है जिस से उन दोनों का रिश्ता और सुदृढ़ हो जाएगा.

सुझाव लेने में झिझक कैसी

हो सकता है कि आप अपनी सास के हर सुझाव से इत्तफाक न रखती हों, फिर भी उन के अनुभव को देखते हुए उन से सुझाव लेने में कोई हर्ज नहीं है. इस से आप को भिन्न प्रकार के विचार मिलेंगे. लेकिन कभी भी उन के दिए सुझावों को व्यक्तिगत लेते हुए उन पर बहस न करें. सुझाव को मानना आप की इच्छा पर निर्भर करता है, पसंद आए तो मानें वरना सास को अपनी सोच से अवगत करा दें.

घर दूर, फिर भी दिल पास

एक ही घर में रहते हुए दिलों का करीब आना समझ आता है. किंतु आज के परिवेश में जहां नौकरी और प्रगति के कारण बेटाबहू अलग शहर में गृहस्थी बसाते हैं, उस स्थिति में सासबहू का रिश्ता मधुर होने के साथ सुदृढ़ कैसे बने? दोनों एकदूसरे को कैसे समझें, जानें और मजबूत रिश्ता बनाएं? यह सबकुछ संभव है.

आइए, मिलते हैं कुछ ऐसी सासबहू जोडि़यों से जो शादी के बाद अलग शहरों में रहते हुए भी एकदूसरे की भावनाओं को न केवल पहचानती हैं बल्कि परिवार की डोर एक ने दूसरे के हाथों में बखूबी सौंपी है :

देवकी और पल्लवी : डैल कंपनी की सीनियर एडवाइजर, पल्लवी भारद्वाज. दिल्ली की पैदाइश, वहीं पलीबढ़ी, शिक्षा प्राप्त की. उस की शादी हुई केरल के आनंद रामकृष्णन से. विवाहोपरांत दोनों बेंगलुरु में रहने लगे जहां दोनों की नौकरियां थीं. सासससुर फलों व मसालों का अपना बगीचा संभालते हुए अपने गांव त्रिचूर में रहते हैं. भाषा, संस्कृति, खानपान सभी का फर्क था. किंतु पल्लवी ने अपने पति के साथ हर दूसरे माह अपनी ससुराल त्रिचूर जाने का क्रम अपना लिया. दोनों सासबहू हंस कर गले मिलतीं पर बातचीत कैसे हो? पल्लवी को मलयालम नहीं आती थी और देवकी को हिंदी या अंगरेजी. परंतु शादी के 8 वर्षों बाद आज भी दोनों में मधुर रिश्ता है. कैसे?

केरल में मिलने आए बेटाबहू के लिए जब देवकी खाना बनाती थीं तब पल्लवी उन के साथ रसोई में खड़ी रहती थी. वे इशारे से कहतीं कि जाओ अखबार पढ़ लो, टीवी देख लो पर पल्लवी मुसकरा कर उन्हें बताती कि उसे यहीं अच्छा लग रहा है. देवकी को उन्हें अपने हाथ का खाना खिलाना अच्छा लगता तो पल्लवी परोसने में मदद करती. अकेले में भले ही पल्लवी ताली या बिछुए नहीं पहनती पर जब सास से मिलने जाती तो उन की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन की संस्कृति के जेवर पहन लेती. ऐसे ही जब देवकी उन के घर आतीं, तो पल्लवी पहले से ही उन की पसंद का खयाल रखते हुए राशन मंगवा रखती. वे जो चाहे, जैसे चाहे, पकाएं. धीरेधीरे अब देवकी ने पल्लवी को अपनी संस्कृति का भोजन बनाना सिखा दिया है. जब भी दोनों मिलती हैं, एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताती हैं. भाषा की दीवार होते हुए भी दोनों ने एकदूसरे से न केवल तालमेल बिठा लिया बल्कि आज दोनों एकदूसरे की बात और भावना अच्छी तरह समझती हैं.

समय पर हर काम निबटाने की शौकीन देवकी कहती हैं कि यह उन्होंने अपनी बहू से सीखा कि बच्चे के साथ खेलने का सुख प्राप्त करने के लिए यदि कोई काम थोड़ा टालना भी पड़े तो कोई हर्ज नहीं. मसलन, कपड़े बाद में धुल सकते हैं, या सफाई थोड़ी देर में की जा सकती है. पल्लवी से उन्होंने प्राथमिकता देना सीखा. उन दोनों का रिश्ता जबरदस्ती की बातचीत से ऊपर, संगसाथ की खुशी में है.

बेटा होने के बाद दादी बनी देवकी ने अपने पोते अर्नव को खूब लाड़प्यार दिया. भोजन की जगह चौकलेट खिलाई जो उस के पिता को कतई पसंद नहीं आया मगर पल्लवी ने समझाया कि दादी का लाड़ है, और कुछ दिनों की बात है. रोजाना हम बच्चे को अनुशासनपूर्वक पालते हैं. जब दादी से मिलेगा, तब उन्हें अपनी मरजी का लाड़ देने दें. इसी में उन की संतुष्टि है.

पल्लवी कहती हैं कि आखिर सास भी मां है. और फिर ‘मूल से अधिक सूद प्यारा होता है’ यह कहावत सब ने सुनी है. यदि दादी अपने पोतेपोतियों को थोड़ा बिगाड़ना चाहें, उन्हें देररात तक खेलने दें या पौष्टिक भोजन की जगह उन की पसंद का जंक फूड खिलाएं तो उन्हें ऐसा करने दें. उन की भावनाओं को समझें और उन की कद्र करें.

सरोज, मोना व सुनयना : जयपुर के विद्यास्थली महिला टीचर ट्रेनिंग कालेज की उपप्राध्यापिका डा. सरोज शर्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र विभाष का विवाह मोना से करवाया. सासबहू में ऐसी घुटी कि उन की शादी के 7 वर्षोंपरांत सरोज के छोटे बेटे की शादी मोना की छोटी बहन सुनयना से स्वत: दोनों परिवारों ने करवाई. आज मोना मुंबई में रहती है और सुनयना हैदराबाद में. मोना और सुनयना बताती हैं कि सरोज सास के रूप में मां से भी अधिक सरल स्वभाव की हैं. जब चाहे सो कर उठो, जो जो चाहे

कपड़े पहनो, अपनी मरजी का पकाओ, मम्मी कभी नहीं टोकतीं. उन का स्वभाव इतना सहज है कि जब एक दुर्घटना के कारण उन का औपरेशन हुआ, और बहुओं ने आग्रह किया कि अब वे साड़ी के बजाय टीशर्टलोअर पहनें तो वे आसानी से मान गईं.

सरोज कहती हैं, ‘‘हम जबजब मिलते हैं, मैं अपनी दोनों बहुओं के साथ रसोई में बराबर भागीदारी निभाती हूं, और कुछ देर उन के साथ उन के कमरे में बैठ कर दिनभर की बातें भी करती हूं. लेकिन बेटों के घर लौटते ही मैं अपने कमरे में आ जाती हूं. आखिर पतिपत्नी को भी तो आपसी समय मिलना चाहिए.’’ मोना की शादी के 25 सालों बाद भी तीनों परिवार हर दीवाली साथ मिल कर मनाते हैं- कभी जयपुर, कभी मुंबई तो कभी हैदराबाद में.

सरोज बताती हैं कि दोनों बहुओं को उन की अलमारी से उन की साडि़यां और जेवर पहनने की पूरी छूट है. और बहुएं बताती हैं कि उन की सास उन के पीहर वालों को बराबर की इज्जत देती हैं. चूंकि दोनों परिवार जयपुर में रहते हैं, सरोज हर त्योहार में दोनों बहुओं के मातापिता को भी न्योतती हैं.

सरोज को शुरू से ही काम करने का शौक रहा. अब जब बेटे उन्हें काम करने से मना करते हैं तो उन की उदासी देख बहुएं टोकती हैं, ‘‘मम्मी को काम करना अच्छा लगता है तो क्यों उन्हें अपने मन का नहीं करने देते?’’ ऐसे ही यदि कभी बेटे अपनी पत्नी से कोई शिकायती लहजे में बात करते हैं तो सरोज उन्हें फौरन टोक देती हैं, ‘‘कुछ खास चाहिए तो खुद कर लिया करो. ये कोई मशीन नहीं है, इंसान है.’’

फातिमा और फातिमा : चेन्नई की फातिमा शादी कर के एक भरेपूरे परिवार की सब से छोटी बहू बनी. इत्तफाक से उस की सास का नाम भी फातिमा ही है जो काफी बुजुर्ग हैं और चलनेफिरने में उन्हें बहुत दिक्कत रही है. लेकिन बहू ने जल्दी ही परेशानी का कारण भांप लिया.

सास अशिक्षित होने कारण और कुछ मुसलिम समाज की रिवायतों के चलते घर से बाहर कदम नहीं निकालती थीं. चलनेफिरने की कमी के कारण उन के पैरों की शक्ति क्षीण होती गई. बहू ने उन के लिए व्हीलचेयर का इंतजाम किया और नियमित रूप से उन्हें घुमाने ले जाती रही. आज उन के पैरों में इतनी जान है कि वे अपने रोजमर्रा के काम स्वयं कर सकती हैं.

शादी के एक माह बाद से ही बहू फातिमा अपने पति के कारोबार के चलते दिल्ली में रही. पीछे से सास का ध्यान रखने हेतु बहू ने एक नर्स का भी इंतजाम किया. सास मिलने आती रहती हैं और बहू भी उन से मिलने जाती रहती है. जब भी दोनों साथ होती हैं, सास फातिमा ने बहू फातिमा को बुरका पहने को कभी बाध्य नहीं किया. बल्कि बहू को साड़ी पहनना कुछ खास नहीं भाता जान कर, सास ने उसे सलवारकमीज और यहां तक कि लंबे स्कर्ट पहनने की भी इजाजत दी.

बहू हर ईद पर सास के नए जोड़े सिलवाती है. सास फातिमा को बहू फातिमा पर इतना विश्वास है कि किसी भी चीज की आवश्यकता पड़ने पर वे पूरे परिवार में से केवल फातिमा को ही बताना उचित समझती हैं. कई बार बहू को याद कर के रो भी देती हैं, ऐसा अन्य रिश्तेदार बताते हैं.

बहू फातिमा कहती है, ‘‘हमारे यहां सास को ‘मामी’ कह कर पुकारा जाता है लेकिन मैं ने हमेशा उन्हें ‘मम्मा’ ही कहा. शुरू में मुझे खाना पकाना नहीं आता था. हमारे यहां के रिवाज के हिसाब से पहला खाना, जो मुझे अकेले पकाना था, वह भी मैं ने उन्हीं की देखरेख में पकाया. उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया, कभी भी मेरे खाने में कोई नुक्स नहीं निकाला, बल्कि हमेशा प्रशंसा ही की. उन से सीखतेसीखते मुझे खाना बनाना आ गया. वे पास बैठी सब्जी काट कर दे दिया करतीं और बताती जातीं कि कैसे पकाऊं.’’ सास को टीवी धारावाहिकों में नागिन जैसे कार्यक्रम पसंद आते हैं तो बहू उन्हें फोन पर बताती रहती है कि कब कौन सा हिंदी धारावाहिक तमिल में डब हो कर आएगा ताकि वे देख कर आनंद उठा सकें.

साधना और मेधा : नईनई शादी के बाद जब मेधा अपने मायके जबलपुर आई तो मां ने बिंदी, मांग व बिछिया न देख फौरन टोका, ‘‘कौन कहेगा तेरी नई शादी हुई है? तेरी सास कुछ कहती नहीं?’’ लेकिन यह जानते ही कि उसे बिंदी, मांग व बिछिया में रुचि नहीं है, मेधा की सास साधना ने उस से कहा, ‘‘वैसे रहो जैसे अपने मायके में रहती थी. जो इच्छा करे, वह ड्रैस पहनो. बस, जब किसी रिश्तेदार के घर जाओ तब मांग भर लेना.’’

साधना अपने पति की नौकरी के कारण छत्तीसगढ़ में रहती हैं. मेधा रोज दफ्तर से लौट कर साधना से फोन पर अपने पति की पसंदीदा डिश पूछ लेती है. पति का दिल जीतने में उस की सास उस की बहुत मदद करती हैं.

मेधा हंसती है, ‘‘अकसर मांएं बेटों को बहुओं से बांटने में चिढ़ती हैं किंतु मेरी सास तो खुद ही मुझे मेरे पति की कमजोर नस बताती रहती हैं.’’ यहां तक कि पहले दिन से साधना ने परिवार की हर बात में मेधा की राय ली है. उसे कभी यह नहीं लगने दिया कि वह इस परिवार में नई सदस्य है.

मेधा की रिश्ते की एक बड़ी सास काफी तेजतर्रार हैं. लेकिन साधना की मेधा को सीख, कोई मेहमान कुछ ही दिनों के लिए हमारे घर आता है, उस की कोई बात बुरी भी लगे तब भी उसे उलटा जवाब नहीं देना, ने मेधा को सभी की दृष्टि में सम्मान दिलाया. रिश्तेदारी में नईनवेली बहू को सैटल करना उन्हें भलीभांति आता है.

इन दिनों टीवी के एक धारावाहिक की बात करते हुए साधना प्रसन्न हो कर कहती हैं कि उन की बहू तो रजनीकांत है. स्कूटर वह चला लेती है, कार वह चला लेती है, 15 लोगों का खाना वह बना लेती है. परस्पर प्रेम और सौहार्द्र के कारण अलग शहरों में रहते हुए भी सासबहू दोनों में बहुत अच्छी निभती है.

तो देखा आप ने, इन रीयल लाइफ उदाहरणों ने दिखा दिया कि भिन्न शहरों में रहते हुए भी आपसी समझदारी और थोड़े धैर्य के साथ चलने से, सासबहू का रिश्ता मीठा, मजबूत और मधुर हो सकता है. बस, आवश्यकता है तो साफ मन और सच्ची नीयत की.

सास को बताएं सारी बातें

कोशिश करें कि सास को आप की गृहस्थी की आवश्यक बातों का ज्ञान हो, जैसे आप कोई नई गाड़ी खरीद रही हैं या किसी और मकान में शिफ्ट हो रही हैं. बच्चों की तसवीरें भी उन्हें भेजती रहें. आजकल तो अधिकतर दादियां व्हाट्सऐप पर भी हैं और फेसबुक पर भी. बच्चों के स्कूल में हो रही फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता, या आप की रिहाइश के प्रांगण में मन रहे राष्ट्रीय उत्सवों में बच्चों की भागीदारी की फोटो उन्हें अवश्य पोस्ट करें. नन्हें देशभक्त या नन्हीं परियां देख कर दादी का हृदय अभिभूत हो जाएगा.

सबसे बड़ा सवाल : मृत्यु का अधिकार किस के पास?

कभी गपशप करते वक्त जिस इंसान का हम जिक्र कर रहे होते हैं वही इंसान अचानक वहां आ जाता है तो हम अनजाने में बोल जाते हैं कि तुम सौ साल जिओगे. कुछ लोग एहसान जता कर हंसतेहंसते उस बात को स्वीकार करते हैं, तो कुछ अरे बाप रे 100 साल जीना? वह बुढ़ापा और दूसरों के एहसानों पर जीना… ‘नहीं चाहिए’ कह कर अपना विरोध व्यक्त करते हैं. हालांकि हम कितने साल जीने वाले हैं, किसी को भी मालून नहीं होता है. यह सत्य  है कि जन्म लेने वाले हर जीव को मरना होता ही है.

इंसान के जन्म के वक्त खुशियां लुटाई जाती हैं लेकिन मृत्यु होते ही शोक व्यक्त किया जाता है. आज भी हर इंसान के मन में मृत्यु के संबंध में एक अनामिक आकर्षण है. वैसे, प्रकृति की शृंखला यानी जन्म, वृद्धि, पुनरुद्धार और मृत्यु, ये सभी चीजें क्रमानुसार होती हैं. लेकिन इंसान ने प्रगति के नशे में इस शृंखला को छेदते हुए जन्म लेने की प्राकृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर दिया है जबकि मृत्यु को ले कर सख्त कानून बना रखा है. और बाकी चीजों को देख इंसान का एक कदम इस बारे में थोड़ा पीछे पड़ा है. यह एक सच है.

सालोंसाल की चर्चाएं, वादविवाद और कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार केंद्र सरकार ने इच्छामरण के बिल का प्रारूप तैयार किया है. डाक्टरी जांच लेनी है या रुकवानी है, इस का अधिकार पेशेंट को मिलने वाला है. इस बिल को ‘टर्मिनली इल पेशेंट बिल’ कहा जाता है. यह कानून विचाराधीन स्थिति में है. फिर भी ‘इच्छामरण’ या ‘दयामरण’ का कानून कभी अरुणा शानबाग के कारण या कभी सुप्रीम कोर्ट के कारण हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है.

अरुणा शानबाग इस दुनिया से विदा ले चुकी है. 40 साल से भी ज्यादा समय मरणासन्न अवस्था में दर्द सहने वाली अरुणा शानबाग की पीसफुली मृत्यु के लिए ‘अरुणा स्टोरी’ की लेखिका, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता पिंकी विराणी ने दयामरण की अर्जी दाखिल की थी. हालांकि अरुणा की परिचारिकों ने उस की आखिर समय तक शुश्रूषा की थी. उन्हें उस के दयामरण को ले कर बहुत ही दुख हुआ था. वह अरुणा से भावनात्मकरूप से जुड़ी थी. वास्तव में उस वक्त अरुणा ‘इच्छामरण’ या ‘दयामरण’ मांगने की स्थिति में ही नहीं थी.

इस बाबत डा. रवी बापट अपनी ‘पोस्टमार्टम’ किताब में कहते हैं, ‘पेशेंट के दर्द की वजह से डाक्टर और पेशेंट एकदूसरे के साथ जुड़ जाते हैं. पेशेंट का विश्वास ही चिकित्सा पेशे की नींव है. पेशेंट को बचाने के लिए आखिर तक प्रयास करने की शपथ सभी डाक्टर्स को सब से पहले दी जाती है. इसलिए डाक्टर जीवनदान भी देता है और मरणदान भी देगा, इन चीजों का डा. बापट खुल कर विरोध करते हैं. उन्हें पेशेंट की इच्छाशक्ति पर विश्वास है और पेशेंट की इसी इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने कई लोगों को जीवनदान भी दिया है.

कानून सभी के लिए है लेकिन वह भावनाओं के दम पर चले, उन्हें बिलकुल भी मंजूर नहीं है. इसलिए डाक्टर सवाल करते हैं किसी को कितना जीना चाहिए, यह तय करने वाले हम कौन होते हैं?

लेकिन सभी डाक्टर, डा. बापट की तरह नहीं होते. आज डाक्टरी पेशा पूरी तरह से प्रोफैशनल हो चुका है. इस बारे में आरती नारिंगेकर का अनुभव बहुत ही दिल दहलाने वाला है. आरती की मां की डायबिटीज की बीमारी का इलाज मुंबई के एक मशहूर अस्पताल में चल रहा था. अचानक उस की मां कोमा में चली गई और वहां के जानकार डाक्टर ने उन्हें तुरंत औपरेशन करने की या फिर पैसों की दिक्कत हो तो जैसी स्थिति में थी, उसी में रखने की सलाह दी. फिर भी आरती ने उन से एक डाक्टर होने के नाते सही सलाह देने की गुजारिश की. डाक्टर ने ‘पेशेंट को आखिर वक्त तक बचाने की कोशिश करना मेरा काम है’ कह कर औपरेशन करवाने पर जोर दिया. हालांकि डाक्टर को अच्छी तरह से मालूम था कि औपरेशन कर के भी पेशेंट बचने वाला नहीं है, लेकिन औपरेशन से इलाज का बिल लाखों रुपए आ जाएगा और उन की फीस भी बढ़ने वाली है, वह उन्हें अच्छी तरह से मालूम था.

आरती ने औपरेशन के लिए ‘हां’ कर दी. लेकिन औपरेशन के बाद आरती की मां की तबीयत और भी खराब हो गई. वह हमेशा के लिए कोमा में चली गई. नाक में डाली गई ट्यूब से उन्हें लिक्विड खाना देना पड़ता था. उस वक्त मरणासन्न अवस्था में रहने के बजाय उन की शांतिपूर्ण मृत्यु के लिए घर के सभी सदस्य मना रहे थे.

सम्मानजनक जीवन

वास्तव में दर्द के साथ, मृत्यु से लड़ने वाले अपने प्रियजन को इस असहाय स्थिति में देखना बहुत दुखदायी होता है. दरअसल, बैड पर मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ इंसान अकेले नहीं भुगत रहा होता है, उस के साथ उस का समूचा परिवार भी उस के दर्द से छटपटाता है. उसी समय आरती के मन में कुछ आया और उस ने कहा, ‘‘जैसे सम्मान के साथ जीना महत्त्वपूर्ण है वैसे ही सम्मान के साथ मृत्यु भी महत्त्वपूर्ण है.’’

दुनिया के कई देशों में मरने का हक की प्रथा है. नीदरलैंड एक ऐसा देश है जहां दयामरण कानूनी है. सब से पहले यह बिल नीदरलैंड ने ही पास किया है. स्विट्जरलैंड, व अमेरिका के कुछ राज्यों में भी यह कानून चलता है.

लेकिन भारत जैसे देश में कानून का दुरुपयोग ज्यादा होता है. पहले के जमाने में संयुक्त परिवार में बीमार व्यक्ति की अच्छी तरह से शुश्रूषा की जाती थी. लेकिन आज एकल होते परिवारों में मरणासन्न अवस्था में जीने वाले पेशेंट को शुश्रूषा करते रहना किसी के संभव नहीं है.

जिंदगी को मोड़ देने वाली घटनाएं कभी कह कर नहीं घटतीं. कई लोगों को किसी भी अवस्था में जिंदगी सिर्फ जीनी होती है. इस के लिए वे दिन में 30 से 40 गोलियां भी खा कर जीते रहते हैं. ऐसे लोगों की इच्छाशक्ति का क्या? इसलिए दुसाध्य बीमारी या मरणासन्न अवस्था में पेशेंट को जहां का तहां रखना है या उस को मुक्त करना है, इस पर हर इंसान का स्वयं का विचार होता है. उस वक्त वह इंसान क्या सोचता है, इस पर उस का जवाब निर्धारित होता है. इसलिए जान लेना या जीव को मुक्ति देना, यह हर एक की विचारधारा या उस घटना को लोग किस दृष्टिकोण से देखते हैं, उस पर निर्भर करता है.                        –

इच्छामृत्यु कानून के अलगअलग रूप

1937 : स्विट्जरलैंड में डाक्टरी मदद से आत्महत्या को मंजूरी है.

1955 : आस्ट्रेलिया के उत्तरी राज्य में इच्छामृत्यु बिल को मंजूरी दी गई.

1994 : अमेरिका के ओरेगौन, वाशिंगटन व मोंटाना राज्य में इच्छामृत्यु को मंजूरी मिली.

2002 : नीदरलैंड में इच्छामृत्यु को विशेष दशा में वैधानिक करार दिया गया.

2002 : बैल्जियम ने इच्छा- मृत्यु को मान्यता दी.

नशे के अड्डे हुक्का बार, कहीं आपके बच्चे भी इसके शिकार तो नहीं

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर को जब पता चला कि 2 महीने से उन के बेटे की ट्यूशन फीस नहीं गई है, तो वे चौंक गए. इस की वजह यह थी कि वे बेटे को समय पर ही फीस दे दिया करते थे. ट्यूटर ने उन्हें यह भी बताया कि उन का बेटा अकसर ट्यूशन पढ़ने नहीं आता है, तो वे समझ गए कि कोई गड़बड़ जरूर है. उन्होंने इस बारे में बेटे से पूछने के बजाय उस की निगरानी शुरू कर दी. दरअसल, वे बेटे की उस हकीकत से रूबरू होना चाहते थे, जो उन से छिपाई जा रही थी. बहुत जल्द ही यह साफ हो गया कि बेटा दोस्तों के साथ घूमता है. बेटे की हरकतों पर उन का शक गहरा गया. एक दिन जब वह घर से निकला, तो उन्होंने उस की तलाश शुरू कर दी. जब वह ट्यूशन सैंटर पर नहीं मिला, तो वे आरडीसी में बने एक साइबर कैफे व हुक्का बार में पहुंच गए.

वहां के नजारे ने उन्हें चौंका दिया. कंप्यूटर तो वहां नाममात्र के ही लगे थे, पर हकीकत में तो बालिग और नाबालिग लड़कों की हुक्का महफिल सज रही थी. उन का बेटा भी वहां मौजूद था. वहां लड़कों को शराब व बीयर भी परोसी जा रही थी. उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दी, तो वहां रेड हो गई. इस के साथ ही हुक्का बार की इस हकीकत ने पुलिस के भी होश उड़ा दिए. दरअसल, उस पौश इलाके में काफी दिनों से हुक्का बार की आड़ में छात्रों को नशा परोसने का काम धड़ल्ले से चल रहा था. सुबह के साढ़े 6 बजे से ले कर रात के 10 बजे तक यह बार खुलता था. छात्र कभी स्कूल, तो कभी ट्यूशन के बहाने वहां पहुंच जाते थे. आलम यह था कि छात्रों की वहां भीड़ लगी रहती थी. इस धंधे ने संचालकों को जल्द ही अमीर भी बना दिया था. वे रोजाना 5 हजार से 15 हजार रुपए कमाते थे. उस रिटायर्ड पुलिस अफसर का बेटा भी ट्यूशन की फीस वहां उड़ा रहा था. उस के जैसे दर्जनों छात्र इस लत का शिकार हो रहे थे.

पुलिस ने नशीली चीजों को जब्त करने के साथ ही उस के संचालक अनुराग सिन्हा और वहां पर काम कर रहे दूसरे मुलाजिमों रवि, शिवम व दीपक को गिरफ्तार कर लिया. यह वाकिआ 21 जुलाई, 2016 का है. गाजियाबाद की यह हकीकत चौंकाने वाली जरूर है, लेकिन एकलौती कतई नहीं. नौजवानों के बीच फैशन बन रहे हुक्का बार छोटेबडे़ शहरों में नशे के नए अड्डों के रूप में कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे हैं, जो नकली चमकदमक के बीच जगमग लाइटों की रोशनी में नौजवान जिंदगी के कीमती वक्त को यों ही धुएं में उड़ा रहे हैं. मेरठ सिटी पुलिस ने भी शिकायत की बिना पर आबू लेन बाजार इलाके में एक हुक्का बार का भंडाफोड़ किया. पुलिस ने उस के मालिक तुषार व दूसरे लोगों को हिरासत में ले लिया. उस में छात्रों को हर तरह का नशा मुहैया कराया जा रहा था.

पुलिस को यहां ड्रग्स और शराब के साथ कई तरह के नशे का दूसरा सामान मिला. पुलिस को नशे का मैन्यू कार्ड भी मिला. हुक्का मैन्यू में 30 तरह के फ्लैवरों का जिक्र था, जिन की कीमत सौ रुपए से ले कर 6 सौ रुपए तक होती थी. पिछले दिनों राजस्थान की अजमेर पुलिस ने भी ऐसे हुक्का बार का भंडाफोड़ किया था, जो आलीशान जगह पर बनाया गया था. पुलिस ने इस के संचालकों समेत 16 लड़कों को हिरासत में ले लिया. उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून पुलिस ने भी छापामारी में हुक्का बार के नाम पर होने वाले नशे का खेल उजागर किया था. कुछ ही सालों में हुक्का पीना नौजवानों के बीच फैशन बनना शुरू हुआ, तो कुछ ने इसे भुनाना शुरू कर दिया. बात सिर्फ फैशन तक ही नहीं सिमटी रही, उस से भी काफी आगे निकल गई.

हुक्का बार अब नशे के नए अड्डे बन गए हैं, जो किशोर बच्चों को अपनी तरफ खींचने लगे हैं. इस के लिए कोई अलग से लाइसैंस नहीं होता, बल्कि ये हर्बल हुक्का बार, कैफे, रैस्टोरैंट, लौज और होटल की आड़ में चलाए जाते हैं. हुक्का पीना कोई अपराध नहीं है. उसे परोसा जा सकता है. लेकिन उस की आड़ में नशा परोसना अपराध है. यह बात अलग है कि कई जगहों पर हुक्का बार उन के संचालकों के अलावा ड्रग माफिया की कमाई का भी बड़ा जरीया बन गए हैं. नशे के सौदागरों के निशाने पर नई उम्र के छात्र होते हैं. यही  वजह है कि वे उन्हें अपने यहां बैठने की आजादी देते हैं. 25 जुलाई, 2016 को देहरादून शहर की पुलिस ने निरंजनपुर में बने एक ब्लैक हैड हुक्का बार में रेड की, तो चौंक गई. वहां पुलिस को15 लड़के लड़कियां नशा करते मिले थे. इन में 2 नाबालिग थे. नशा बांटने वाले बार संचालकों को जेल भेज दिया गया.

कई बार खुद को बड़ा दिखाने की ललक और धुएं के छल्ले उड़ाने की चाहत हुक्का बार तक ले जाती है. दोस्तों को देख कर भी नौजवान इस तरफ खिंच जाते हैं. हुक्का बार में अलगअलग फ्लैवर के हुक्के का स्वाद चखाया जाता है. ऐसी जगहों पर कई तरह के कश होते हैं, जिन्हें हुक्के के पाइप के जरीए मुंह से खींच कर धुआं निकाला जाता है.

इस के एक दर्जन से ज्यादा फ्लैवर टिकिया के रूप में होते हैं, जिन्हें चिलम के बीच रखा जाता है. जैसा फ्लैवर वैसी कीमत. इन में रोज, औरेंज, मिंट, कीवी, पान, स्ट्रौबेरी, स्वीट-16 वगैरह फ्लैवर होते हैं. इन्हीं में तंबाकू व कैमिकल के जरीए नशा मिलाया जाता है. मसलन, हुक्का फ्लैवर सौ रुपए से ले कर 5-6 सौ रुपए तक होते हैं. इन में अगर चरस या गांजा मिलाया जाता है, तो कीमत बढ़ा दी जाती है. नशे के धंधेबाज नशे के सुरूर के किस्से सुना कर भी नौजवानों पर असर डालते हैं. होंठों की गोलाइयों से छल्ले निकालते नौजवानों के फोटो दीवारों पर टांगते हैं. ऐसी जगहों पर चरस, स्मैक, गांजा, शराब, बीयर सबकुछ परोसा जाता है. इस के लिए कीमत थोड़ा ज्यादा चुकानी पड़ती है. ऐसा भी नहीं है कि पुलिस को अपने इलाके में चलने वाले ऐसे नशे के अड्डों की भनक नहीं होती, बल्कि उस की भी गुपचुप रजामंदी होती है. इस के बदले हुक्का संचालक इलाकाई पुलिस को खुश करने के हथकंडे अपनाते हैं. हुक्का बार में कुछ कश मशहूर होते हैं, जिन में ब्रेन फ्रैशर, सिल्वर फोक व ब्रेन फ्रीजर पान का कश भी है. इस कश को लेने वाले का कुछ पलों के लिए दिमाग सुन्न हो जाता है. मिश्री के दानों के समान बार्बी ट्यूरेट ड्रग महंगी और मशहूर है. इस को सिल्वर पेपर पर रख कर नीचे माचिस जला कर सूंघा जाता है या फिर सीधे किसी चीज के साथ खा लिया जाता है.

डाक्टरों की राय में ऐसे ड्रग कब जानलेवा साबित हो जाएं, इस बारे में कोई नहीं जानता. इस का असर सीधे दिमाग पर होता है, जिस से बेहोशी के साथसाथ मौत भी हो सकती है. धुएं के छल्ले उड़ाने वालों में लड़के ही नहीं, लड़कियां भी शामिल होती हैं. देखादेखी व खुद को नए जमाने का हिस्सा बनाने के लिए वे नशे के अड्डों पर पहुंच जाती हैं. नशा बरबादी का दूसरा नाम है. छात्र नासमझी में धीरेधीरे नशे के आदी हो कर जिंदगी को बरबादी की तरफ ले जाते हैं. हुक्का बार संचालकों की इस में मोटी कमाई होती है. कंप्यूटर व साइबर कैफे की आड़ में भी लोग हुक्का बार चलाते हैं. इन लोगों का मकसद नौजवान पीढ़ी को नशे की लत लगाना होता है. वे इस फार्मूले के कायल होते हैं कि नौजवान जितने ज्यादा नशे के आदी होंगे, उन का उतना ही मुनाफा होगा. कई बार संचालक मोटी फीस वसूल कर बड़ी पार्टियां भी कराते हैं, जिन में कोकीन जैसा खतरनाक नशा भी परोसा जाता है. करोड़ों रुपए की नशे की खेप ऐसी जगहों पर खपा दी जाती हैं. पढ़नेलिखने की उम्र में जिस तरह हुक्का बार की आड़ में छात्रों को नशे की लत लगाई जा रही है, चिंताजनक है. नौजवानों को भी समझना चाहिए कि फैशन या शौक में किया गया कोई भी नशा उन्हें उस का आदी बनाने के साथसाथ उन के भविष्य को भी अंधेरे से भर सकता है.

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