भारतीय समाज में जाति प्रथा सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन में बहुत गहराईर् से जुड़ी हुई है. इस व्यवस्था के खिलाफ कोई भी कार्य पाप और भगवान का अपमान माना जाता है. वास्तविकता में यह कोई भगवान का दिया गुण नहीं है, जिस का अनुकरण किया जाए.
आजादी के 70 साल बाद भी हमारे देश में जाति और छुआछूत की भावना कितनी गहरी है, इस का अंदाजा हाल ही में घटी पुणे की एक घटना से लगा सकते हैं, जहां एक महिला वैज्ञानिक ने अपने घर में खाना बनाने वाली महिला पर जाति छिपा कर काम लेने और धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.
पुणे के शिवाजी नगर में रहने वाली डा. मेधा विनायक खोले का आरोप था कि खाना बनाने वाली महिला निर्मला 1 साल से खुद को ब्राह्मण और सुहागिन बता कर काम कर रही थी जो कि झूठ था.
इस से उन के पितरों और देवताओं का अपमान हुआ. वैसे तो इस देश में जाति के आधार पर अन्याय और शोषण की घटनाएं आम बात हैं, लेकिन यह मामला हमारी उस गलतफहमी को दूर करता है जहां हम सोच रहे थे कि केवल अशिक्षित और मानसिक रूप से पिछड़े लोग ही इन धार्मिक और सामाजिक कुप्रथाओं का पालन कर रहे हैं, जबकि पुणे जैसे विकासशील शहरों में कुछ शिक्षित और संपन्न लोग उन से भी 2 कदम आगे हैं.
रोजगार की कमी एक समस्या
इस मामले में एक महिला के ऊपर झूठ बोल कर काम लेने का आरोप इसलिए लगा, क्योंकि वह छोटी जाति की है. लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि आखिर क्यों एक घरेलू कामकाज में कुशल महिला को इस तरह झूठ बोलने की जरूरत पड़ी?