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8 टिप्स: नेल पालिश को ऐसे सूखने से बचाएं

कई बार ऐसा होता है कि हमने बड़े मन से नेलपालिश के 4-5 शेड्स खरीद लिए हैं. हमारे पास कई पुराने शेड्स भी रखे हुए हैं, लेकिन यह तो संभव नहीं है कि हर रंग की नेल पालिश को रोज-रोज लगाया जा सके. मसलन बड़े ही शौक से लाई गई हमारी नेल पालिश रखे रखे सूखने लगती है. अगर आप भी अपनी नेलपालिश के सूखने से परेशान हैं तो यहां पर कुछ आसान तरीके दिये हुए हैं जिनसे आप जमी हुई या सूखती हुई नेलपालिश को बचा सकती हैं.

– हमेशा अच्छी क्‍वालिटी की नेलपालिश ही खरीदें. कम कीमत वाली नेलपालिश जल्‍दी सूखती है और इसे थिनर से भी सही नहीं किया जा सकता.

– नेलपालिश को खोलते वक्‍त कभी भी तेजी से शेक नहीं करना चाहिये बल्कि उसे अपनी दोनों हथेलियों में रख कर 20 मिनट के लिये मलना चाहिये, इससे वह अच्‍छी तरह से घुल जाएगी और सही से लगेगी.

– हमेशा नेलपालिश की शीशी को कस कर बंद करें जिससे वह सूखेगी नहीं.

– एक बार नेलपालिश प्रयोग करने के बाद उसके ढक्‍कन के लिड पर पिट्रोलियम जैली लगा दें, जिससे उसमें बाहर कि हवा नहीं घुसेगी और दुबारा नेलपालिश आसानी से खुल भी जाएगी.

– नेल पालिश को हमेशा फ्रिज में रखें क्‍योंकि इससे नेलपालिश जल्‍दी सूखती नहीं है.

– नेल पालिश को कभी गर्म जगह पर ना रखें. इसे हमेशा ठंडी जगह पर सूरज की रौशनी से दूर रखें. जिससे यह कई दिनों के लिये चले.

– अपनी नेलपालिश की शीशी को एकदम सीधी खड़ी रखें नहीं तो उल्‍टी या गिरा कर रखने से वह फैल जाएगी और आसानी से सूख जाएगी.

– अगर नेलपालिश सूख गई हो या फिर अलग होने लग गई हो तो उसमें नेलपालिश थिनर डाल दें. ऐसा करने से वह पतली हो जाएगी और लंबे समय तक चलेगी भी.

घर पर बनायें स्वादिष्ट ‘चिकन काठी रोल’

सामग्री :

– 1/4 कप टमाटर (कटा हुआ)
– एक चुटकी हल्दी पाउडर
– स्वादानुसार नमक
– लाल मिर्च स्वादानुसार
– 1 प्याज पतले स्लाइस में कटा हुआ
– 1 शिमला पतले स्लाइस में कटा हुआ
– 150 ग्राम चिकन टिक्का
– 2 चम्मच प्याज ( टुकड़ों में कटा हुआ )
– 2 चम्मच धनियापत्ती
– 2 चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट
– 1 हरी मिर्च, टुकड़ों में कटी हुई
– 4 चम्मच तेल
– 2 रुमाली रोटी
– 2 अंडे का सफेद भाग
– 2 चम्मच धनियापत्ती ( बारीक कटा हुआ )
– 3 चम्मच तेल

विधि : 

– मद्धम आंच पर एक पैन में तेल गर्म कर लें उसके बाद एक बर्तन में अंडे के सफेद भाग और घनियापत्ती मिलाकर अच्छे से फेंट लें.

– अब तैयार मिश्रण को पैन में डाल कर उपर रूमाली रोटी रखकर दोनों तरफ सेंक लें.

भरने की सामग्री

– चिकन को छोटे टुकड़ों में काट लें.

– मद्धम आंच पर तेल गर्म करें.

– तेल गर्म होते ही इसमें प्याज, अदरक-लहसुन का पेस्ट, टमाटर, हल्दी, लाल मिर्च पाउडर और हरी मिर्च डालें.

– अब इसमें चिकन, प्याज और शिमला मिर्च डालें कर तेज आंच पर 4-5 मिनट तक पकाने के बाद इसमें धनिया डालें.

– मिश्रण को रुमाली रोटी के बीच में बराबर मात्रा में रखकर रोल करें और फिर पुदीने की चटनी और सलाद के साथ सर्व करें.

केसरी : इतिहास के अध्याय का सजीव चित्रण

फिल्म रिव्यू: केसरी

डायरेक्टर:  अनुराग सिंह

कलाकार: अक्षय कुमार, परिणीति चोपड़ा, एडवर्ड सोनेनब्लिक, मीर सरवाakshay

रेटिंग : चार स्टार

12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी किले को बचाने के लिए हवलदार ईश्वर सिंह के नेतृत्व में 21 सिख सैनिको ने दस हजार अफगान सैनिकों के साथ युद्ध किया था. उस वीरता की कहानी को बयां करने वाली फिल्म है ‘‘केसरी’’. आत्मसम्मान और गौरव के लिए लड़ी गई इस लड़ाई ने ऐसी छाप छोड़ी थी कि सदियो बाद भी इस युद्ध को याद किया जाता है. ब्रिटेन में तो हर साल 12 सितंबर को ‘सारागढ़ी दिन’ मनाया जाता है.

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क्या है कहानी…

फिल्म ‘‘केसरी’’ की कहानी की शुरू होती है गुलिस्तान किले पर तैनात हवलदार ईश्वर सिंह (अक्षय कुमार) से, जो कि अपने ब्रिटिश मेजर के आदेश का उल्लंघन करते हुए अफगान सरगना मसूद खान के हाथों एक अफगानी विवाहित महिला का कत्ल होने से बचाता है. तब अंग्रेज मेजर, ईश्वर सिंह को सजा के तौर पर गुलिस्तान किले से हटाकर सारागढ़ी किले पर भिजवा देता है, जहां पर कभी कोई हमला नहीं होता. इस दौरान अंग्रेज मेजर ईश्वर सिंह से कहता है- ‘‘तुम हिंदुस्तानी कायर हो, इसीलिए हमारे गुलाम हो.’ ’सारागढ़ी पहुंचने पर ईश्वर सिंह पाता है कि वहां मौजूद सैनिकों में अनुशासन की कमी है. तो सबसे पहले ईश्वर सिंह उन 21 सिपाहियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाचा है. इसके बाद उनके अंदर बहादुरी का जज्बा भरता है. जब ईश्वर सिंह अकेला होता है, तो वह ख्यालों में अपनी पत्नी जीवनी कौर (परिणीति चोपड़ा) से बातें करता है. दूसरे सिपाही भी अपने-अपने परिवार से जुड़े लोगों को याद करते हैं.

उधर अफगान सरगना मसूद खान इस बात से गुस्से में है कि जब वह एक विवाहित महिला को सजा दे रहा था, तो उसके काम में ईश्वर सिंह द्वारा रोड़ा डाला गया. इसलिए अब वह अफगानी पठानों के साथ गठजोड़ कर सारागढ़ी, गुलिस्तान और कोर्ट किले पर कब्जा करने की योजना बनाता है और सबसे पहले सारागढ़ी पर किले पर हमला करता है. अंग्रेज हुकूमत सारागढ़ी तक फौज नहीं भेज सकती,  इसलिए वह उन 21 सिख जवानों से वहां से भागने की बात कहती है, पर ईश्वर सिंह को अंग्रेज मेजर की बात याद आती है और वह नौकरी, पैसा और अंग्रेज हुकूमत के लिए लड़ने की बजाय अपने गौरव के लिए शहीद होने का निर्णय लेता है. उसके इस निर्णय के साथ सभी 21 सिपाही खड़े नजर आते हैं. अफगान सरगना का अनुमान है कि वह आधे घंटे के अंदर 21 सिख सैनिकों को मौत के घाट उतारकर सारागढ़ी पर कब्जा कर लेने के बाद गुलिस्तान व दूसरे किले पर शाम तक कब्जा कर लेंगे. लेकिन ईश्वर सिंह व अन्य सिपाही, अफगान सैनिकों से जमकर लोहा लेते हुए शाम छह बजे तक उन्हे सारागढ़ी किले के अंदर घुस ने नहीं देते.अफगान पठान कहता है कि वह तो बाजी हार चुके हैं.

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डायरेक्शन और स्टोरी…

पंजाबी फिल्मों के चर्चित फिल्मकार अनुराग सिंह ने 2007 में ‘रकीब’ नामक हिंदी फिल्म निर्देशित की थी, उसके बाद वह पंजाबी फिल्मों में व्यस्त हो गए और पंजाबी में ‘यार अनमुले’, ‘जट्ट एंड ज्यूलिएट’, ‘जट्ट एंड जूलियट 2’, ‘डिस्को सिंह’, ‘पंजाब 1984’ और ‘सुपर सिंह’ जैसी हिट फिल्में दी. अब वह ‘‘केसरी’’ से फिर से बौलीवुड की तरफ मुड़े हैं. बतौर निर्दशक ‘‘केसरी’’ उनकी बेहतरीन फिल्म कही जाएगी. मगर कमजेर पटकथा के चलते फिल्म बेवजह लंबी हो गई है. लेखक व निर्देशक के तौर पर अनुराग सिंह ने इंटरवल तक महज किरदारों को स्थापित करने में लगा दिया. इतना ही नही इंटरवल तक तो फिल्म बेहद धीमी गति से ही आगे बढ़ती है और इंटरवल तक लगता है कि अनुराग सिंह इस फिल्म पर से अपनी पकड़ खो चुके हैं. इंटरवल से पहले के हिस्से को एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. पटकथा के स्तर पर भी काफी काम करने की जरुरत थी. मगर इंटरवल के बाद अनुराग सिंह फिल्म को संभालने में कामयाब रहते हैं.

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फिल्म ‘केसरी’ के निर्माण से अक्षय कुमार भी जुड़े हुए हैं, इसके बावजूद लेखक व निर्देशक अनुराग सिंह ने इंटरवल के बाद फिल्म के सभी 21 किरदारों के साथ पूरा न्याय किया, फिल्म सिर्फ ईश्वर सिंह तक सीमित नहीं रहती .इसके लिए अनुराग सिंह बधाई के पात्र हैं.

शानदार है क्लाइमैक्स…

अनुराग सिंह ने जिस तरह से जेहाद के लिए लड़ रहे 19 वर्षीय अफगानी और अपने गौरव के लिए लड़ रहे 19 वर्षीय सिंह के किरदार को तुलनात्मक ढंग से पेश किया है, वह बहुत कुछ कह जाता है. जी हां! फिल्म में एक सीन है जहां ईश्वर सिंह, अफगानी बालक को बच्चा कहकर मौत के घाट उतारने की बजाय बख्श देते हैं, मगर कुछ देर बाद वही अफगानी बालक ईश्वर सिंह के पेट में तलवार भोंक देता है. जबकि सिख सिपाही गुरमुख सिंह की चीखें सुनने के लिए अफगानी किले की मिनार में आग लगा देता है, तब भी रोने या बिलखने की बजाय वो आग में लिपटा होने के बावजूद हंसते हुए कई अफगानियां को मौत के घाट उतारता है. इसी वजह से फिल्म का क्लाईमेक्स गहरी छाप छोड़ जाता है.

युद्ध के सीन काफी बेहतर बन पड़े हैं. इन सीन्स को देखते हुए दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. निर्दशक ने अक्षय कुमार की एक्शन इमेज को बेहतर तरीके से भुनाया है. लेकिन हिंसा के सीन काफी हैं. कैमरामैन अंशुल चौबे ने 1897 के काल को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी है.

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कलाकारों का अभिनय…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो ईश्वर सिंह के किरदार में अक्षय कुमार ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है. युद्ध के सीन्स हों या इंसानियत की बात कहनी हो, हर भावना को वह परदे पर बेहतर तरीके से उकेरने में सफल रहे हैं. एक छोटे से किरदार में परिणीति चोपड़ा अपना प्रभाव छोड़ने में अफसल रहती हैं.

दो घंटे तीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘केसरी’’ का निर्माण अरूणा भाटिया व सुनीर क्षेत्रपाल ने करण जौहर की ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के साथ मिलकर किया है. अगर आप अक्षय कुमार के फैन है और देशभक्ति फिल्मे देखना पसंद करते हैं तो ये फिल्म जरूर देखें.

चुनावी लड़ाई से दूर मायावती

चुनाव लड़ना हर नेता का सपना होता है. किसी भी पार्टी का बडा नेता ही क्यों ना हो लोकसभा या विधनसभा तक जाने के लिये वह जनता के बीच चुनकर जाना पसंद करता है. जिन नेताओं के कंधे पर अपनी पार्टी को खडा करने का बोझ होता है वह भी चुनाव लड़ कर ही सांसद विधयक बनता है. बहुजन समाजपार्टी की नेता मायावती उन नेताओं में है जो विधनसभा या लोकसभा से कम और विधन परिषद और राज्य सभा के जरीये सदन में पहुंचने को ज्यादा पसंद करती है.

गिनती के 2 चुनाव मायावती ने खुद लड़े है. 1996 के बाद मायावती ने कोई चुनाव नहीं लड़ा. मायावती उत्तर प्रदेश में 4 बार मुख्यमंत्री रही हैं. इनमें से केवल एक बार 2007 से 2012 तक ही 5 साल मुख्यमंत्री रहीं और बाकी 3 बार वह भाजपा के सयोग से मुख्यमंत्री बनी और बिना कार्यकाल पूरा किये ही सत्ता से बाहर हो गई थीं. मायावती की खास बात यह भी है कि जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटती हैं तो राज्य के विधनसभा में विधयक या सदस्य विधन परिषद के रूप में नहीं जाती. वह उत्तर प्रदेश की राजनीति को छोडकर दिल्ली चली जाती हैं. वहां भी वह राज्यसभा की ही सदस्य बनती हैं.

जमीनी राजनीति से दूर मायावती:

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बना. उम्मीद यह कि जा रही थी कि पार्टी में प्राण फूंकने के लिये चुनाव मैदान में उतरेगी. यहां फिर से मायावती ने खुद को चुनाव के मैदान से दूर कर लिया. मायावती ने कहा कि ‘चुनाव संचालन के लिये ही वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रही है. उनका मकसद भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है.

मायावती का यह तर्क जनता के गले नहीं उतर रहा है. क्योकि भाजपा और कांग्रेस के नेता चुनाव लड रहे है. असल में मायावती ने कभी सडक पर उतर कर विपक्ष की राजनीति नहीं की. जब भी वह विपक्ष में रहती है दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो जाती है.

ज्यादातर मुददों पर वह केवल प्रेस नोट देकर या प्रेस कौफ्रेंस करके अपना विरोध प्रकट करती है. यही वजह है कि वह चुनावी राजनीति से दूर होती है. राजनीतिक सक्रियता में वह कभी महिलाओं के करीब नहीं रही. महिला नेता होने के बाद भी बसपा में महिला नेताओं की कभी सक्रिय भागीदारी नहीं रही. अगर बात दलित महिलाओं की बात करे तो 4 बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी दलित महिलाओं के लिये कोई खास योजना नहीं चलाई. ऐसे में साफ लगता है कि मायावती को दलित महिलाओं की बेबसी की कोई जानकारी नहीं है. 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही. इस दौरान भी महिलाओं के लिये काम नहीं किया. महिलाओं की नहीं दलित संगठन की भी उपेक्षा मायावती राज में होती रही.

संघर्ष से दूर रही मायावती

जब मायावती सत्ता से बाहर रहीं तो विपक्षी नेता के रूप में कभी संघर्ष करते नहीं दिखी. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद सहारनपुर में दलित-सवर्णो के बीच दंगा हुआ दलितों को उम्मीद थी कि मायावती उनके बचाव में सहानपुर आकर उनकी आवाज उठायेगी. इसी तरह से महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में दलित आन्दोलन में भी मायावती कि सक्रिय भागीदारी नहीं दिखी. ऐसे में दलित वर्ग को यह लगता है कि जब भी वह मुसीबत में होते है मायावती कभी उनका साथ नहीं देती है. सहारनपुर में मायावती से अध्कि युवा समाजसेवी चन्द्रशेखर रावण ने अपनी साख बना ली. पश्चिम उत्तर प्रदेश में चन्द्रशेखर रावण युवा नेता के रूप में उभर रहा है. मायावती को चन्द्रशेखर का उभरना भी पसंद नहीं है. वह हर मंच पर चन्द्रशेखर का विरोध करती है. जबकि चन्द्रशेखर मायावती की हमेशा तरीफ करता है. मेरठ के अस्पताल में भर्ती चन्द्रशेखर से मिलने कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी गई तो मायावती को सबसे ज्यादा परेशानी हुई.

बसपा में महिलाओं की उपेक्षा:

1990 से अपने लंबे कार्यकाल के बाद वह दलित महिलाओं का अपने ही घरो में होने वाले उत्पीडन को लेकर कोई समाधन नहीं पेश कर सकी. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिये जिन नेताओं के नामों की लिस्ट बनी उसमें एक भी प्रचारक महिला नेता नहीं है. इससे साफ है कि महिला नेता होने के नाते उनको महिलाओं से कोई लगाव नहीं है. अपना जमीनी आधर खोने की वजह से ही मायावती को 2014 के लोकसभा और 2017 के विधनसभा चुनाव में हार का सामना करना पडा. इन चुनावों में मायावती की बसपा सुरक्षित सीटों पर भी चुनाव हार गई. मायावती की राज्यसभा सदस्यता भी इसी दौरान खत्म हो गई. बसपा के चुनावों में इतने वोट कम हो गये कि बसपा को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का दर्जा भी संकट में पड गया.

मायावती की गिरती साख का ही नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में बसपा को अपने सबसे पुराने विरोधी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर मजबूर होना पडा. सपा के साथ चुनावी गठबंधन के बाद भी मायावती अखिलेश यादव और सपा के साथ बराबरी का संबंध नहीं रख रही है. मायावती ने खुद को अपर हैंड साबित करने के लिये सपा से 1 सीट ज्यादा ली. सपा-बसपा के गंठबंधन में बसपा की 38 सीटों के मुकाबले सपा को 37 सीटे दी गई. गंठबंधन के ज्यादातर पैफसले मायावती खुद ले रही है. ऐसे में जिस बराबरी से सपा बसपा को चुनाव लड़ना चाहिये वह नहीं दिख रहा है. मायावती खुद चुनाव नहीं लड़ने की बात कह कर एक बार फर से साबित किया कि वह लोकसभा और विधनसभा के बजाय राज्यसभा और विधान परिषद के जरीये ही सदन में जाना पसंद करती है.

औरतों के हाथ कुछ नहीं

अप्रैल मई में होने वाले चुनावों में औरतों की भूमिका मुख्य रहेगी, क्योंकि अब की बार बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन का औरतों पर सीधा असर होगा. 2014 के चुनाव से पहले मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार था जो अखबारों की सुर्खियां तो बनता था पर आम जनजीवन पर उस का असर न था. अब नरेंद्र मोदी इस चुनाव को भारत पाकिस्तान मुद्दे का बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि हरेक को डराया जा सके कि पाकिस्तान को खत्म करना भारत के लिए आवश्यक है. जो इसे मुद्दा नहीं मानेगा, वह देशद्रोही होगा.

इस झूठी देशभक्ति और देश प्रेम के पीछे असल में औरतों को मानसिक व सामाजिक गुलाम रखने वाली धार्मिक परंपराओं को न केवल बनाए रखना है, बल्कि उन्हें मजबूत भी करना है. पिछले 5 सालों में देश में आर्थिक मामलों से ज्यादा धार्मिक या धर्म या फिर धर्म की दी गई जाति से जुड़े मामले छाए रहे हैं.

गौरक्षा सीधा धार्मिक मामला है. पौराणिक ग्रंथों में गायों की महिमा गाई गई है. असल में यह एक ऐसा धन था जिसे किसी भी गृहस्थ से पंडे बड़ी आसानी से बिना सिर पर उठाए दान में ले जा सकते थे.आज गायों के नाम पर जम कर राजनीति की जा रही है, चाहे इस की वजह से शहर गंदे हो रहे हों, घर सुरक्षित न रहें, किसानों की फसलें नष्ट हो रही हों.

इस की कीमत औरतों को ही देनी होती है. एक तरफ वे इस वजह से महंगी होती चीजों को झेलती हैं तो दूसरी ओर उन्हें पट्टी पढ़ा कर गौसेवा या संतसेवा में लगा दिया जाता है. इन 5 सालों में कुंभों, नर्मदा यात्राओं, तीर्थों, मूर्तियों, मंदिरों की बातें ज्यादा हुईं. वास्तविक उद्धार के नाम पर कुछ सड़कों, पुलों का उद्घाटन हुआ जिन पर काम वर्षों पहले शुरू हो चुका था.

भारत तरक्की कर रहा है, इस में संदेह नहीं है पर यह आम आदमी की मेहनत का नतीजा है, इस मेहनत का बड़ा हिस्सा सरकार संतसेवा, गौसेवा, तीर्थसेवा या सेनासेवा में लगा देगी तो घरवाली के हाथ क्या आएगा?

आज रिहायशी मकानों की भारी कमी है, जबकि उन के दाम नहीं बढ़ रहे हैं. ऐसा इसलिए है कि लोगों के पास पैसा बच ही नहीं रहा. बदलते लाइफस्टाइल के बाद घरवाली इतना पैसा नहीं बचा पाती कि युवा होने के 10-15 साल में अपना खुद का घर खरीद सके. उसे किराए के दड़बों में अपनी स्टाइलिश जिंदगी जीनी पड़ रही है. औरतों को चुनावों में जीत के लिए लड़ाई में झोंक दिया गया तो यह एक और मार होगी.

पुराने राजा अपनी जनता से टैक्स वसूलने के लिए अकसर उन्हें साम्राज्य बनाने के लिए बलिदान के लिए उकसाते थे, लोगों को सेना में भरती कराते थे, ज्यादा काम करा कर टैक्स वसूलते थे और ज्यादा बंधनों में बांधते थे. आज भी कितने ही देशों में इस इतिहास को दोहराया जा रहा है.

औरतों को जो आजादी चाहिए वह शांति लाने वाली और कम जबरदस्ती करने वाली सरकार से मिल सकती है धर्मयुद्ध की ललकार लगाने वालों से नहीं. धर्म है तभी तो धंधा है औरतों की गुरुओं पर अपार श्रद्धा होती है और वे खुद को, पतियों को, बच्चों को ही नहीं सहेलियों को भी गुरुओं के चरणों के लिए उकसाती रहती हैं.

रजनीश, आसाराम, रामरहीम, रामपाल, निर्मल बाबा जैसों की पोल खुलने के बाद भी वे इन गुरुओं और स्वामियों की अंधभक्ति में लगी रहती हैं. अब औरतों की क्या कहें जब अरबों खरबों का व्यवसाय सफलतापूर्वक चलाने वाला रैनबैक्सी कंपनी का शिवेंद्र सिंह भी इसी तरह के गुरुकुल का सहसंचालक बन बैठा है और उसे धंधे की तरह चला रहा है, जहां सफेद कपड़े पहने हजारों भक्तिनें दिखती हैं.

शिवेंद्र की शिकायत और किसी ने नहीं उस के भाई और पार्टनर मानवेंद्र सिंह ने ही की है. पुलिस से अपनी शिकायत में मानवेंद्र सिंह ने कहा है कि राधा स्वामी सत्संग के मुख्य गुरु गुरिंद्र सिंह ढिल्लों और उस की वकील फरीदा चोपड़ा ने उसे जान से मारने की धमकी दी है. भाइयों की कंपनियों में बेईमानी के आरोप मानवेंद्र सिंह ने खुल कर लगाए हैं. पैसों को इधर से उधर करने का आरोप भी लगाया गया है.

राधा स्वामी सत्संग के संपर्क में आने के बावजूद शिवेंद्र सिंह शराफत का पुतला नहीं बना है. उस की कंपनियों को एक जापानी कंपनी को धोखे से बेचने पर 3,500 करोड़ का हरजाना देना भी अदालत ने मंजूर किया हुआ है. नकली दस्तखत तक करने के आरोप लगाए गए हैं.

सारे स्वामियों के आश्रम, डेरे, केंद्र इस तरह के आरोपों से घिरे हैं. इन स्वामियों का रोजाना औरतों को बलात्कार करना तो आम होता ही है, ये भक्तों का पैसा भी खा जाते हैं, सरकारी जमीन पर कब्जा कर लेते हैं, विरोधी को मार डालते हैं, विद्रोही कर्मचारियों को लापता तक कर देते हैं. फिर भी इन्हें भक्तिनों की कभी कमी नहीं होती.

आमतौर पर इन आश्रमों में भीड़ औरतों की ही होती है जो घरों की घुटन से निकलने के लिए गुरुओं की शरणों में आती हैं पर दूसरे चक्रव्यूहों में फंस जाती हैं. इन आश्रमों में नाचगाना, बढि़या खाना, पड़ोसिनों की बुराइयों के अवसर भी मिलते हैं. बहुतों को गुरुओं से या उन के चेलों से यौन सुख भी जम कर मिलता है. आश्रम में जा रही हैं, इसलिए घरों में आपत्तियां भी नहीं उठाई जातीं. भक्तिनें अपने घर का कीमती सामान तो आश्रमों में चढ़ा ही आती हैं, अपनी अबोध बेटियों को भी सेवा में दे आती हैं.

केरल का एक मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था जहां एक 16 साल की लड़की को उस की मां खुद स्वामी को परोस आई थी कि इस से उस को पुण्य मिलेगा. शिवेंद्र सिंह और मानवेंद्र सिंह का विवाद जिस में राधा स्वामी सत्संग पूरी तरह फंसा है साफ करता है कि इस तरह के गुरुओं के गोरखधंधों को पनपने देना समाज के लिए सब से ज्यादा हानिकारक है.

अफसोस यह है कि इक्कादुक्का नेताओं को छोड़ कर ज्यादातर नेता भी इन गुरुओं के चरणों में नाक रगड़ते हैं, शिवेंद्र, मानवेंद्र सिंह और लाखों भक्तिनों की तरह. आप भी क्या ऐसी ही भक्तिन तो नहीं?

भरोसा करें तो किस पर

वृद्धों की देखभाल करने में अब ब्लैकमेल और सैक्स हैरसमैंट से भी बेटों को जूझना पड़ सकता है. हालांकि, मुंबई का एक मामला जिस में 68 वर्षीय पिता के लिए रखी नर्स ने पिता की मालिश करते हुए वीडियो बनवा लिया और फिर उस वीडियो के सहारे 25 करोड़ रुपए की मांग कर डाली. भले अकेला ऐसा मामला सामने आया हो पर ऐसे और मामले नहीं होते होंगे, ऐसा नहीं हो सकता.

वृद्धों के लिए रखे गए नौकर अकसर शिकायत करते हैं कि वृद्ध उन से मारपीट करते हैं. यह कह कर वे नौकरी छोड़ने की धमकी दे कर बेटेबेटियों से पैसा भी वसूलते हैं. कुछ नौकरनौकरानियां धीरेधीरे शातिर बन कर पैसा वसूलने के बीसियों तरीके सीख लेते हैं. कामकाजी बेटेबेटियां वृद्ध मातापिता की जिद को पहचानते हैं, क्योंकि इस उम्र तक आते आते वृद्धों के मन में शंका भरने लगती है कि कहीं कोई उन्हें छोड़ न दे, किसी कागज पर दस्तखत न करा ले, कुछ लूट न ले. वे कभी उस नौकर या नौकरानी पर भरोसा करते हैं जो 24 घंटे उन के साथ होता है तो कभी 24 घंटे उस पर शक करते रहते हैं.

वीडियो बना कर ब्लैकमेल करना बहुत आसान है और अच्छे घरों के बेटेबेटियों के पास न तो माता पिता से पूछताछ करने की हिम्मत होती है और न ही वे बदनामी सहना चाहते हैं. वे पुलिस में चले जाएं तो भी खतरा बना रहता है कि घर के हर राज को जानने वाला नौकर या नौकरानी न जाने क्या क्या गुल खिलाए.

इस समस्या का आसान हल नहीं है. दुनियाभर में युवा बेटे बेटियों की गिनती घट रही है और वृद्धों की बढ़ रही है. अब तो यह बोझ पोतेपोतियों पर पड़ने लगा है. जब तक वृद्ध वास्तव में असहाय होते हैं तब तक पोते पोतियां युवा हो चुके होते हैं और उन्हें भी इन नौकर नौकरानियों से जूझना पड़ता है.

हमारे समाज ने पहले तो व्यवस्था कर रखी थी कि वानप्रस्थ आश्रम ले लो यानी किसी जंगल में जा कर मर जाओ पर आज का सभ्य, तार्किक, संवेदनशील व उत्तरदायी समाज उसे पूरी तरह नकारता है. वृद्धों को झेलना पड़ेगा, यह ट्रेनिंग तो अब बाकायदा दी जानी चाहिए. इस के कोर्स बनने चाहिए. यह समस्या विकराल बन रही है, यह न भूलें.

भाई भाई के संबंध अदालत और धर्म से नहीं, परिवार से सुलझते हैं

अक्सर कहा जाता है कि भाई पर मुसीबत पडऩे पर सब से पहले भाई ही आगे खड़ा होता है. छोटे भाई अनिल द्वारा कर्ज का पैसा न चुकाने पर जेल जाने से बचाने के लिए बड़े भाई मुकेश अंबानी के आगे आने पर यह बात फिर कही जा रही है. करीब एक दशक से चल रहे अंबानी भाइयों के झगड़े के बीच संबंधों में सुधार की यह एक अच्छी खबर है.

असल में अनिल अंबानी की कंपनी आरकौम को स्वीडिश कंपनी एरिक्सन को 459 करोड़ रुपए चुकाने थे. मामला सुप्रीम कोर्ट में था. कोर्ट ने अनिल को 19 मार्च तक का समय दिया था या फिर जेल भेजने की चेतावनी दी थी. एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल को अवमानना का दोषी माना था और जेल भेजने की चेतावनी दी थी.

एरिक्सन के पैसे चुकाने के बाद अनिल ने बड़े भाई मुकेश और भाभी नीता अंबानी का आभार व्यक्त किया.

एरिक्सन का भुगतान करने के बाद आरकौम ने जियो के साथ स्पैक्ट्रम, फाइबर और टावर आदि बेचने की डील खत्म करने की भी घोषणा की. एनसीएलटी में मुकेश अंबानी की कंपनी जियो आरकौम के एसेट के लिए बोली लगाती है तो यह उसे ये एसेट सस्ते में मिल सकते हैं.

इधर आरकौम ने नैशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल[एनसीएलटी] में दिवालिया याचिका लगाई है. यहां अब उसे पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. आरकौम पर 11 बैंकों का 48,000 करोड़ रुपए का कर्ज भी है.

पिता धीरूभाई की 2002 में मृत्यु हो गई थी पर वह कोई वसीयत नहीं छोड़ गए. अंबानी भाइयों के बीच विवाद बढने लगा तो वे अलगअलग हो गए पर दोनों के बीच आपसी खटास कम नहीं हुई. पावर का बिजनेस अनिल के पास और प्राकृतिक गैस का मुकेश के पास था. मुकेश पावर प्लांट के लिए गैस की कीमत बढाना चाहते थे. अनिल भाई मुकेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए पर कोर्ट ने मई 2010 में मुकेश के पक्ष में फैसला दे दिया.

यह अनिल के लिए नुकसानदेह था. दोनों भाइयों के बीच यह समझौता भी हुआ था कि मुकेश कुछ समय तक टेलीकौम बिजनेस में नहीं आएंगे. 2010 में यह करार खत्म हुआ तो मुकेश ने 2016 में जियो लांच किया. यह बात अनिल के लिए बुरी थी क्योंकि जियो ने सर्विसेज के जो रेट तय किए उस से दूसरी सभी टैलीकोम कंपनियों का मुनाफा घटने लगा था.

बहरहाल मुकेश अंबानी द्वारा छोटे भाई का कर्ज चुका कर जेल जाने से बचा लेने की मिसाल परिवारों के झगड़ों के बीच ठंडी हवा के झोंके की तरह है. अनिल अंबानी अगर जेल भेज दिए जाते तो  यह स्थिति सब से पहले भारत के सब से अमीर, विश्व के शीर्ष 11 व्यक्तियों में दौलतमंद माने जाने वाले मुकेश अंबानी के लिए ही मुश्किल भरी होती. थूथू उन की भी होती. तरहतरह की बातें होतीं. दुनिया भर में उद्योग जगत और समाज में गलत संदेश जाता इसलिए मुकेश का भाई को बचाना जरूरी था. लोकलाज ही सही मुसीबत के वक्त परिवार सब से पहले काम आया.

अंबानी परिवार बहुत धार्मिक रहा है. वह बारबार नाथद्वारा जाता रहता है. खूब दानदक्षिणा देता है. अंबानी परिवार मोरारी बापू को अपना धार्मिक गुरु मानता है. भाइयों के विवाद में उन्होंने भी सुलह कराने की कोशिश की थी पर बात नहीं बनी.

कहने को धर्म प्रेम, शांति की सीख देता आया है पर अनिल को जेल जाने से बचाने के लिए धर्म आगे नहीं आया, उन की मां आगे आईं. कहा जा रहा है कि मां कोकिलाबेन ने मुकेश को पैसे देने के लिए मनाया.

लोग प्रेम, शांति, सुखसमृद्घि के लिए धर्म की शरण में जाते हैं पर धर्म ने भाइयों को लडऩे की सीख दी. सुलह की नहीं. जमीन प्रोपर्टी के लड़ रहे भाई कहते सुने जा सकते हैं कि संपत्ति के लिए तो कौरवपांडव भाइयों में भी झगड़ा हुआ था. अक्सर भाइयों की लड़ाई के रामायण, महाभारत के उदाहरण दिए जाते हैं.

रावण और विभीषण, बालि और सुग्रीव, कौरव और पांडवों जैसे भाइयों की लड़ाई के उदाहरण भरे हुए हैं. धर्म के ये किस्से तो भाइयों के रिश्तों में आग लगाने वाले हैं, बुझाते नहीं हैं. धर्म भाइयों के झगड़े की प्रेरणा है. यही वजह है कि समाज में जहां देखो भाईभाई के जर, जोरू और जमीन को ले कर सड़कों, अदालतों में आम हो रहे हैं.

हर दूसरेतीसरे परिवार में भाइयों के बीच मनमुटाव, कलह चलती है. धार्मिक गुरुओं, प्रवचकों की बढती फौज के बावजूद पारिवारिक झगड़े कम नहीं हो रहे. आए दिन औद्योगिक परिवारों की लड़ाई अदालतों के माध्यम से सामने आती रहती है. इन दिनों फोर्सिट हैल्थकेयर और रेलिगेयर इंटरप्राइजेज के प्रमोटर भाइयों मलविंदर मोहन सिंह और शिविंदर मोहन सिंह का मामला भी सुर्खियों में हैं.

दोनों भाइयों ने धोखाधड़ी और मारपीट का मामला दर्ज कराया था पर यहां भी दोनों भाइयों की मां और परिवार बीच में आया. उन के कहने, समझाने पर शिकायत वापस ली गई थी. बड़े भाई मलविंदर का कहना था कि शिविंदर प्रियस रियल एस्टेट कंपनी की बोर्ड मीटिंग में दखल देने को  कोशिश करते थे. प्रियस ने गुरिंदर सिंह ढिल्लन की कंपनियों और उन के परिवार को 2000 करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा था. ढिल्लन राधा स्वामी संत्संग ब्यास का आध्यात्मिक  गुरु हैं और मलविंदर, शिविंदर का परिवार उन का अनुयायी है.

शिविंदर ने पिछले साल सितंबर में बड़े भाई मलविंदर पर फोर्टिस का पैसा डुबोने का आरोप लगाते हुए नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी पर बाद में मां और परिवार के सदस्यों ने मिलबैठ कर विवाद सुलझाने की सलाह दी थी. इस के बाद शिङ्क्षवदर ने याचिका वापस ले ली थी. भाइयों ने आपस मे मारपीट का मामला भी पुलिस में दर्ज कराया था.

फरवरी 2018 में दोनों भाई फोर्टिस से अलग हो गए थे. पिछले साल नवंबर में मलेशिया की कंपनी आईएचएच हैल्थकेयर ने 4000 करोड़ रुपए में फोर्टिस में 31.1 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली थी.

दोनों भाइयों ने 1996 में फोर्टिस हैल्थकेयर की शुरुआत की थी. फिलहाल देश के 45 शहरों में यह अपनी सेवाएं दे रही हैं. दुबई, मारिशस और श्रीलंका में भी इस का नेटवर्क है. 2016 में दोनों भाइयों ने फोब्र्स की 100 सब से अमीर भारतीयों की लिस्ट में 92 नंबर पर जगह बनाई थी. उस वक्त दोनों की संपत्ति 8,864 करोड़ रुपए थी.

कुछ समय पहले एस्टेट करोबारी और लिकर ङ्क्षकग कहे जाने वाले पौंटी चड्ïढा को उन के ही भाई ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी थी.

इस तरह आए दिन भाइयों के झगड़े सामने आते हैं. भाइयों के बीच झगड़े का असर केवल परिवार, समाज पर ही नहीं, देश पर भी पड़ता है. अगर भाई किसी बड़े व्यवसाय के संचालक हों. औद्योगिक, कौरपोरेट घरानों की आपसी कलह से उत्पादकता प्रभावित होती है. देश के राजस्व को नुकसान होता है. काम करने वाले कर्मचारियों पर असर पड़ता है. वह खुद तो गहरे तौर पर प्रभावित होते ही हैं. इस से बहुत बड़ा आर्थिक और सामाजिक नुकसान होता है.

भाइयों के झगड़ों के मामले अदालतों द्वारा तय करने के अलावा समाज के पास ऐसा कोई प्रभावी कारगर व्यवस्था नहीं है जहां सुलह कराई जा सके. उद्योग व्यापार संगठनों के पास भी ऐसा कोई सिस्टम नहीं है. हालांकि पारिवारिक रिश्तेदार बीचबचाव के लिए आगे आते तो हैं पर वहां सुलह की गारंटी नहीं होती. कोई कारगर तरीका नहीं है. हालांकि अंबानी परिवार अपने धार्मिक गुरु मोरारी बापू के पास भी गए पर कोई समाधान न निकल पाया. हां, गुरुजी ने मोटी दक्षिणा जरूर ऐंठ ली होगी.

बातबात में धर्म के किस्सों की मिसालें देने वाले समाज को धर्म के बर्बाद करने वाले किस्सों की बजाय भाइयों के बीच प्रेम स्थापित करने वाली मिसालें सामने रखनी चाहिए. यह व्यवस्था समाज को बनानी होगी. समाज को एक ऐसा ढांचा बनाना चाहिए जहां पारिवारिक एकता, प्रेम, शांति कायम रह सके.

कानून भाइयों के बीच संपत्ति का बंटवारा तो करा सकता है पर रिश्तों को जोडऩे का काम भाइयों को खुद, परिवार और समाज को ही करना होगा. मां से बड़ा मध्यस्थ तो कोई नहीं हो सकता. आपसी प्रेम को परिवार ही लौटा ही सकता है.

गोभी तहरी : भांग की चटनी के साथ

भांग चटनी

सामग्रीः

– 50 ग्राम भांग (बीज)

– 1 मध्यम बड़ा नींबू

– 2 मध्यम लाल मिर्च

– 10 ग्राम सूखी मेथी की पत्तियां

– नमक स्वादानुसार

बनाने की विधिः

– सुगंध आने तक सूखे गर्म पैन में भांग के बीज भूनें.

– पेस्ट बनाने के लिए भांग के बीजों को लाल मिर्च और थोड़े तिल के तेल के साथ पीस लें.

– मेथी के पत्ते (सूखी कसूरी मेथी) डालें.

– नींबू का रस डालें और स्वादानुसार नमक डालें.

– मुख्य भोजन के साथ मसालेदार ट्विस्ट के लिए परोसें (भांग बहुत कम चढ़ेगी).

गोभी तहरी के लिएः

सामग्रीः

– 2 चम्मच तेल

– 2 तेज पता

– 1 स्टिक दालचीनी

– 4 लौंग

– 2 आलू, छीलकर टुकड़ों में काट लें.

– 10 टुकड़े फूलगोभी, फूल के मोटे-मोटे टुकड़े.

– 5 कप बासमती चावल

– 1/2 टीस्पून सूखा अदरक पाउडर

– 2 चुटकी हींग

– 3/4 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

– 1/2 टी स्पून नमक

– 2 कप पानी

– 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर

बनाने की विधि :

– कुकर में 3 मिनट के लिए तेल गरम करें। इसमें तेजपता, दालचीनी और लौंग मिलाएं.

– कुछ सेंकड के लिए चम्मच से चलाएं.

– इसमें आलू और गोभी डालकर लगभग 2 मिनट तक भूनें.

– पानी और गरम मसाला पाउडर को छोड़कर बाकी सभी चीजों को मिलाएं.

– लगभग 3 मिनट तक भूनें और पानी डालें और हिलाएं.

– कुकर का ढक्कन लगा कर बंद कर दें। तेज आंच पर पूरा दबाव दें.

– आंच को कम करें और 3 मिनट तक भाप में पकने दें.

– कुकर को आंच से हटा लें.

– 10 मिनट के लिए सामान्य तापमान पर ठंडा होने दें और कुकर खोलें.

– घी लगे सांचे में तहरी रखें। इस पर गरम मसाला पाउडर छिड़कें.

– रायते और लहसुन-भांग की चटनी के साथ गरमागरम परोसें.

पनीर मसाला बनाने की आसान रेसिपी

सामग्री

– पनीर के टुकड़े (1 कप)

– 1 टेबल स्पून तेल

– 1 कप बारीक कटे हुए टमाटर

– 1 कप फ्रेश क्रीम

– नमक स्वादानुसार

– 1 कप कटे हुए प्याज़

– 1 टी स्पून खसखस

– 1 टेबलस्पून ताज़ा कसा हुआ नारीयल

– दालचीनी के टुकड़े

– 2 लौंग

– 3 कालीमिर्च

– 2 सूखी कश्मीरी लाल मिर्च , तोड़ी हुई

– 1 टेबलस्पून खड़ा धनिया

– 1 टीस्पून ज़ीरा

– 4 लहसुन की कलियां

बनाने की विधि

– कढ़ाई में तेल गरम करें औप तैयार पेस्ट डालकर बीच-बीच में हिलाते हुए मध्यम आंच पर 2 मिनट   तक पकाएं.

– कटे हुए टमाटर डालकर मध्यम आंच पर १ से २ मिनट तक पकाएं.

– क्रीम में 1 कप पानी और नमक डालकर अच्छी तरह मिलायें और बीच-बीच में हिलाते हुए मध्यम   आंच पर 5 से 7 मिनट तक पकाएं.

– पनीर डालकर हलके हाथों मिलायें और ये भी मध्यम आंच पर 1 से 2 मिनट तक पकाएं.

हमें नमक की तलब क्यों लगती है

हाल ही में पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन औफ इंडिया द्वारा किये गए एक अध्ययन के मुताबिक वयस्क भारतीयों में ज्यादा नमक खाने की आदत है, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मात्रा से ज्यादा है. अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली और हरियाणा में नमक का सेवन प्रतिदिन 9.5 ग्राम और आंध्र प्रदेश में
प्रतिदिन 10.4 ग्राम किया जाता है. जब कि प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में अधिक से अधिक 5 ग्राम नमक का ही सेवन करना चाहिए. यानी  एक व्यक्ति लगभग दोगुना मात्रा में नमक का सेवन करता है  .

नमक ऐसा तत्व है जो शरीर को स्वस्थ और सक्रिय रखने के लिए आवश्यक है. यह खून  साफ करने और जीवाणुओं को मार कर बीमारियों से बचाने में भी मददगार है. नमकीन चीजें खाने का शौक सब को होता है. समस्या तब आती है जब हम जरूरत से ज्यादा मात्रा में नमक खाने लगते हैं. एक स्वस्थ वयस्क को 1 दिन में 2,300 मिलीग्राम से ज्यादा नमक नहीं लेना चाहिए.

ज्यादा नमक खाने की इच्छा के पीछे निम्न कारण हो सकते हैं ;

अधिक व्यायाम या परिश्रम

पसीने के साथ हमारे शरीर से सोडियम की भी काफी मात्रा निकल जाती है. ऐसे में हमें अधिक नमक खाने की जरूरत पड़ती है ताकि शरीर के सामान्य सीरम स्तर को संतुलित रखा जा सके. ज्यादा व्यायाम, लंबी दूरी दौड़ना या फिर मेहनत के दूसरे काम करने के बाद हमें ज्यादा नमक की तलब लग सकती है क्यों
कि इस से इलेक्ट्रोसाइट्स मुख्यतः ( पोटेशियम और सोडियम) का असंतुलन पैदा होता है. आप ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक घर पर भी तैयार कर सकते हैं. लेमन ,लाइम जूस, जिंजर ,जरा सी साल्ट और एक चम्मच हनी का मिश्रण आप को इस समस्या से निजात दिला सकता है.

डीहाइड्रेशन

दस्त, उल्टी, अत्यधिक पसीना आना, पानी की कमी के कारण डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है ऐसे में शरीर से पानी के साथ सोडियम भी निकल जाता है. ऐसे में शरीर को एक्टिव रखने के लिए आप को अधिक नमक खाने की इच्छा हो सकती है ताकि नमक के जरिये शरीर को सोडियम की पर्याप्त मात्रा मिल जाए.

प्रेगनेंसी 

प्रेगनेंसी की स्थिति में भी कई दफा महिलाएं अधिक नमक खाने की इच्छा जाहिर करती है. ऐसा प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली वोमिटिंग या नोजिया आदि के कारण होता है. यही नहीं प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम या पीएमएस के समय भी अधिक नमक की तलब पैदा हो सकती है.

अधिक तनाव 

आप ने ध्यान दिया होगा जब आप के पास औफिस में बहुत काम होता है तो आप इस तनाव और बोरियत से बचने के लिए बीचबीच में फ्रेंचफ्राइज, साल्टी पोटैटो चिप्स और दूसरी नमकीन के पैकेट्स खाली करते रहते हैं. यह एक सामान्य प्रक्रिया है . अधिक मानसिक तनाव और दबाव के बीच आप को अधिक नमकीन चीजें खाने की इच्छा होने लगती है.

नींद की कमी 

2013 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक नींद की कमी होने पर भी इंसान अधिक नमक वाले जंकफूड्स लेना पसंद करते हैं. सामान्यतया एक वयस्क व्यक्ति को रात में कम से कम 7 से 9 घंटे की गहरी नींद जरूर लेनी चाहिए .

अच्छा महसूस करना 

नमक दिमाग के खुशी वाले हिस्से को सक्रिय करता है और डोपामाइन नामक हार्मोन अधिक मात्रा में रिलीज करने में मददगार होता है जिस से आप नमक खा कर अधिक खुशी महसूस करते हैं.

अधिक नमक खाने की आदत 

कई दफा जब हमें लंबे समय तक अधिक नमक लेते रहते हैं तो फिर शरीर को अधिक नमक खाने की आदत पड़ जाती है. ऐसी स्थिति में सामान्य भोजन जिस में नमक की मात्रा बिल्कुल सही है , आदतवश हमें उस में स्वाद नहीं आता और हम ऊपर से नमक लेने को मजबूर हो जाते हैं.

बीमारी भी हो सकती है वजह 

कुछ मेडिकल कंडीशन ऐसे होते हैं जिन की वजह से हमें अधिक नमक खाने की तलब लगती है. उदाहरण के लिए एडिशन ऐसी ही एक बीमारी है. इसे एड्रेनल इंसफिशिएंसी भी कहते हैं.हमारे शरीर में एड्रिनल हार्मोन, नमक और पानी की उचित मात्रा को संतुलित व नियंत्रित करने का कार्य करता है, और एड्रिनल हार्मोन की हमारे शरीर में कमी होने पर यह एडिशन रोग होता है. इस के तहत शरीर पर्याप्त हार्मोन उत्पन्न नहीं कर रहा होता. इस कंडीशन में थकान, मसल्स /जौइंट पेन, हेयर लौस, लो ब्लड शुगर, हाइपरपिगमेंटेशन आदि की शिकायत हो सकती है.

इस आदत से कैसे बचे 

नमक में सोडियम और क्लोराइड शामिल है. नमक में मौजूद सोडियम आप के दिल के लिए बुरा हो सकता है. जरुरत से ज्यादा नमक खाने की आदत डायबिटीज ,किडनी प्रौब्लम्स ,हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज वगैरह की वजह बन सकता है. इसलिए बेहतर होगा कि आप यदि नमक की अधिक मात्रा ले रहे हैं तो उस पर ले रहे हैं तो उस पर अंकुश लगाए.

अक्सर अधिक नमक लेना हमारी आदत में शुमार हो जाता है. बेहतर होगा कि आप हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर आदि अधिक मात्रा में खाए जिन मे नेचुरल सोडियम कंटेंट ज्यादा मात्रा में होता है और जो नुकसान नहीं पहुंचाता. खाने में आप नमक के बजाय हर्ब्स और स्पाइस की मात्रा बढ़ा सकते हैं. भले
ही ऐसा करना शुरू में कठिन लगे लेकिन धीरेधीरे आदत पड़ जाती है. जहां भी संभव हो, सफेद नमक की जगह काले नमक का प्रयोग करें. डाइनिंग टेबल पर साल्ट शेकर न रखें.खाने में ऊपर से नमक लेना बंद कर दें. सलाद में नमक न डालें. प्रोसेस्ड और फ्रोजन फूड से सावधान रहें, क्यों कि इन में नमक बहुत
अधिक होता है. कई मीठे खाद्य पदार्थों में भी छिपा हुआ नमक होता है.

इन 5 केसर फेस पैक से पाएं गुलाबी निखार

खूबसूरत और दमकती त्वचा पाने के लिए केसर बेहद ही गुणकारी सामग्री है. इसका फेस पैक लगाने से त्‍वचा पर गुलाबी रंग का निखार आ जाता है. तो फिर देर किस बात की आइये जानते हैं केसर के कुछ उपयोगी फेस पैक जिसे आप बड़े आराम से घर पर ही बना सकती हैं.

  1. केसर और चंदन पाउडर

यह पैक औयली स्‍किन वालों के लिये बहुत ही अच्‍छा है. इसके अलावा यह सन टैन, एक्‍ने और पिंपल से भी लड़ता है. इसमें थोडा़ सा दूध मिलाइये और 5 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें. चाहें तो इसमे शहद भी मिला सकती हैं.

2. केसर और दूध

आप इस फेस पैक को हर रोज या फिर हफ्ते में दो बार लगा सकती हैं. इससे आपका चेहरा गुलाब की तरह चमकने लगेगा.

3. केसर और पपीता

पपीता में विटामिन और एंटीऔक्‍सीडेंट पाए जाते हैं जो स्‍किन के लिये बहुत ही अच्‍छे होते हैं. एक कटोरे में पका पपीता, दूध, शहद और केसर मिलाइये. इसको चेहरे पर 10-15 मिनट के लिये लगाइये और बाद में ठंडे पानी से धो लीजिये.

4. केसर, शहद और बादाम

रोतभर बादाम को पानी में भिगोइये और बाद में पेस्‍ट बना लीजिये. केसर को गुनगुने पानी में भिगोइये और बाद में उसमें शहद और नींबू का रस मिलाइये. इस पैक को चेहरे और गर्दन पर लगाइये, जिससे झुर्रियां, एक्‍ने और दाग दूर हों.

5. केसर, दूध और तेल

इस फेस पैक से चेहरे का रंग हल्‍का पड़ता है. एक कटोरे में केसर, दूध, रोज वॉटर और औलिव औयल या नारियल का तेल मिलाइये. इस स्‍क्रब जैसे फेस पैक से आपकी स्‍किन गोरी बनेगी और ग्‍लो करेगी.

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