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लोकसभा चुनाव:- “बेहाल कर रही चुनावी ड्यूटी”

लोकसभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया बेहद लंबी है. लगभग 2 महीने तक चुनाव का कामकाज चल रहा है. बहुत सारे सरकारी विभागों में कामकाज ठप्प है. सरकारी कर्मचारी चुनावी ड्यूटी पर है. यहा तक की पुलिस विभाग में भी बहुत सारे केस पेडिंग है. पुलिस चुनावी ड्यूटी में लगी है. सबसे खराब हालत पोलिंग बूथ पर ड्यूटी देने वाले कर्मचारियों की होती है. इनको अपने घर से दूर गांव-गांव ऐसी जगहों पर जाना होता है जहां रहने खाने तक की कोई व्यवस्था नहीं होती है. किसी जानपहचान वाले के घर रूकना या फिर मतदान स्थल पर रात गुजारनी पड़ती है.इस दौरान वह अपने घर परिवार के संपर्क से भी दूर रहते है. ड्यूटी के समय उनको अपने फोन तक के प्रयोग की अनुमति नही होती है. सबसे अधिक परेशानी शिक्षा विभाग में काम करने वाली शिक्षिकाओं की है. इनमें से तमाम के छोटे बच्चे है. एकल परिवार में रहने के कारण वह बच्चों को छोड़ नहीं सकती और ड्यूटी के समय साथ भी नहीं रख सकती.

सांसत में छोटे भाजपा नेता

इनकी ड्यूटी जब गांव देहात के एरिया में लग जाती है तो उसको संभालना मुश्किल हो जाता है. मतदान वाले दिन की ड्यूटी ज्यादा कठिन होती है. सुबह 5 बजे मतदान स्थल पर पहुंचना पड़ता है. इसके लिये रात भर का सफर करना पड़ता है. मतदान खत्म होने के बाद भी उनको छुटटी तब मिलती है जब मतपेटी जमा हो जाती है और सारे कागजात का मिलान हो जाता है. बहुत सारे मतदान स्थल गांव के सरकारी स्कूलों में होते है. जहां आज भी महिलाओं के लिये साफ सुथरे शौचालय नहीं है. स्कूल में एक ही शौचालय होता भी है तो उसका प्रयोग करने वालों की संख्या बढ जाती है. शौचालय को साफ करने वाले नहीं होते है.

लोकसभा चुनाव 2019 : लड़ाई अब सेंचुरी और डबल सेंचुरी की है

इसके अलावा रात रूकने की व्यवस्था गांव में नहीं होती. गरमी और मच्छरों से भरी रात किसी कैदखाने से कम नहीं होती है. चुनावी ड्यूटी से बचने के लिये कर्मचारी बहुत तरह से कोशिश करते है. इसके बाद भी उनको चुनावी ड्यूटी में जाना ही पडता है. लोकसभा चुनाव में 7 चरण पूरे 2 माह के कार्यक्रम से बनाये गये है. ऐसे में मतगणना के बाद ही चुनावी छुट्टी से मुक्ति मिलती है. इस दौरान तमाम कर्मचारी बीमार हो जाते है. गर्मी में चुनाव होने के कारण परेशानी और भी अधिक होती है. चुनाव दर चुनाव यह परेशानियां बढती जा रही है. इसके अलावा महिला कर्मचारियों को चुनाव के दिन मतदान स्थल पर तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पडता है. कई बार यहां पर लड़ाई झगड़ा, गाली गलौच भी होता है. ऐसे में उनको यह सब भी सहना पडता है. नाम ना छापने की शर्त पर कई महिला कर्मचारियों ने बताया कि मतदान वाले दिन वह लोग पानी कम पीते है. जिससे उनको कम से कम शौचालय का प्रयोग करना पड़े. इससे शाम तक कई की तबीयत खराब हो गई. अपने 5 माह के बच्चे को छोड़ कर मतदान स्थल पर ड्यूटी दे रही महिला टीचर ने बताया कि चुनावी ड्यूटी किसी प्रताड़ना से कम नहीं होती है. सरकार किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं करती. अधिकारी कोई बात सुनते नहीं. ज्यादा कहों तो निजी दुश्मनी मानकर प्रताड़ित करते है. कई बार तो साथी पुरूष कर्मचारी इन हालातों से मजा लेते है. चुनाव सुधार की बात करते समय ऐसी चुनावी ड्यूटी को भी सरल करने पर विचार करना चाहिये.

Edited By – Neelesh Singh Sisodia

हक न मांगें बेटियां!

पूरी दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा महिलाओं का है. कुल काम का दो तिहाई हिस्सा महिलाएं ही करती हैं. मगर आय का केवल दसवां भाग उनके हिस्से आता है, तो सम्पत्ति का सौवां भाग उनके हिस्से में पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र संघ का तथ्यों पर आधारित यह कथन दुनियाभर में महिलाओं के साथ हो रही आर्थिक हिंसा का एक आईना है. दफ्तर हो या घर, महिलाओं को आर्थिक भेदभाव का सामना करना ही पड़ता है. कानून बनाकर कई कानूनी अधिकार महिलाओं को दिये गये हैं, मगर समाज में भी इन्हें मंजूरी मिले, महिलाओं में भी हक पाने का साहस जागे, इसके लिए प्रशासनिक और सरकारी स्तर पर बड़ी मुहिम चलायी जानी जरूरी है, वरना उन्हें उनका हक कभी भी हासिल नहीं होगा.

भारत में औरत का मायका हो या ससुराल, जब प्रापर्टी बंटवारे की बात आती है तो पुरुषों को ही प्रापर्टी में हिस्सा मिलता है. कानून कितने ही बना लो, मगर सामाजिक मान्यताओं का क्या करेंगे? पिता की सम्पत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर हक मिलने की बातें कानून की किताबों में तो जरूर दर्ज हो गयी हैं, मगर समाज इस पर अमल करने को आज भी तैयार नहीं है. हक मांगने पर न सिर्फ बेटियों की मुसीबतें बढ़ जाती हैं, बल्कि उन्हें घर, परिवार और समाज में बदनामी, उपेक्षा और हिंसा का सामना भी करना पड़ता है. कई बार तो हक मांगना उनकी जान पर भारी पड़ जाता है.

औरतें ‘बेवफा’ होने के लिए मजबूर क्यों हो जाती हैं?

लखनऊ के बंथरा थाने में पड़ने वाले रतौली खटोला गांव में सम्पत्ति के लिए एक भाई ने अपनी दो सगी बहनों की हत्या करवा दी. 20 साल की रेखा और 18 साल की सविता का दोष केवल इतना ही था कि वे दोनों पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा चाहती थीं, ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सकें. सम्पत्ति में बहनों की दावेदारी भाई को नागवार गुजरी. उसको डर था कि पिता बहनों की बातों में आकर सम्पत्ति का आधा हिस्सा उन्हें दे देंगे. लिहाजा जमीन-जायदाद बचाने के लिए उसने बहनों को ही मौत के घाट उतार दिया. यह घटना बीते वर्ष दिसम्बर माह की है, जब रात दो बजे चार लोग घर में घुसे और सीधे लड़कियों के कमरे में पहुंच गये. मां उषा भी अपनी बेटियों के कमरे में सोई थी. हत्यारों ने पहले बड़ी बहन और फिर छोटी बहन की धारदार हथियार से हत्या कर दी. मां ने किसी तरह वहां से भाग कर अपनी जान बचायी. पुलिस जांच के बाद हालांकि साजिशकर्ता भाई संतोष और सुपारी लेने वाले दोनों हत्यारे पुलिस की गिरफ्त में आ गये, मगर अपने हक के लिए आवाज उठाने वाली दोनों बहनें अब कभी वापिस नहीं आएंगी.

यह दोहरी हत्या भारतीय समाज में व्याप्त पितृसत्ता और पुरुषवादी सोच को उजागर करता है. यह जड़ जमा चुकी धारणाओं को चुनौती देने का मामला है. हिन्दू उत्तराधिकार कानून में चौदह साल पहले बदलाव हो चुका है. मगर पितृसत्तात्मक सोच उसे पचा ही नहीं पा रही है. इसीलिए कोई लड़की जब अपने मायके में सम्पत्ति का अधिकार मांगती है, बराबरी का हक मांगती है, तो उस पर घर वाले, आस पड़ोस के लोग दबाव बनाते हैं. आमतौर पर हमारे समाज में बेटे को ही पिता का उत्तराधिकारी माना जाता है. हिन्दू परिवारों में बेटे को ही घर का कर्ताधर्ता कहा जाता है. आज से चौदह साल पहले तक पैतृक सम्पत्ति में बेटी को बेटे जैसा दर्जा हासिल नहीं था, लेकिन साल 2005 के संशोधन के बाद कानून ये कहता है कि बेटा और बेटी को पिता की सम्पत्ति में बराबरी का हक है. मगर यह हक बेटी हासिल नहीं कर पा रही है. अपना हक छोड़ने के लिए कभी उसे भावनात्मक रूप से मजबूर कर दिया, कभी हिंसा और उत्पीड़न के जरिये उसे डराया जाता है. मायके से सम्बन्ध खराब होने और रिश्तेदारों में छवि बिगड़ने के डर से हिन्दू उत्तराधिकार कानून बनने के डेढ़ दशक बाद भी ज्यादातर लड़कियां पैतृक सम्पत्ति में अपना हक पाने से महरूम हैं.

मेरी कोई जाति भी नहीं

यह कानून एक तरफ जहां महिलाओं को मजबूत आर्थिक आधार देता है, वहीं दूसरी तरफ गहरी भावनात्मक टूटन का भी कारण बन रहा है. आज भी घर का बेटा अपने पिता की पैतृक सम्पत्ति पर सिर्फ अपना हक समझता है. ऐसे में यदि बहन पैतृक सम्पत्ति में अपना बराबर का हक लेने की बात करती है, तो भाई इस बात से आहत होकर उससे अपने सम्बन्ध खत्म कर लेता है. अक्सर ही लड़कियों के सामने भाइयों के साथ सम्बन्ध या पैतृक सम्पत्ति में से किसी एक चीज को चुनने का मुश्किल विकल्प रहता है. इस कड़े विकल्प के कारण ही अक्सर बहुत सी बहनें अपने आर्थिक हकों को छोड़ देती हैं, क्योंकि वे खुद परिवार को तोड़ने का ठीकरा अपने सर पर नहीं फोड़ना चाहतीं.

अश्लील नाटक नहीं , नजरिया है

समाजशास्त्रियों का मानना है कि बहनें बचपन से ही भाइयों के प्रति प्रेम में अपने छोटे-छोटे हकों को छोड़ती रहती हैं. इसी कारण भाई बड़े होने पर इस बात के लिए तैयार नहीं हो पाते कि सम्पत्ति में उन्हें अपनी बहनों को बराबर का हिस्सा देना है. यह भी अजीब ही है, कि पैतृक सम्पत्ति या मायके के साथ सम्बन्ध में से कोई एक चीज चुनने का विकल्प अक्सर भाई ही अपनी बहनों के सामने रखते हैं. उसके बावजूद सम्बन्ध तोड़ने के अपराधबोध में बहनें ही रहती हैं भाई नहीं! जो बहनें पैतृक सम्पत्ति में अपने हक को लेकर अड़ी रहती हैं, वे कहीं न कहीं भाई-भाभी से सम्बन्ध खराब होने के गहरे अपराधबोध में भी रहती हैं. लेकिन सवाल यह है कि जो सम्बन्ध सिर्फ अपना आर्थिक हित छोड़ने भर से बना हुआ रहे, आखिर वह कितना गहरा और सच्चा है?

इसी कड़ी में कल आगे पढ़िए- आखिर क्यों लड़कियों को विद्रोही मान ली जाती है?

रिश्ता

रोहन अपनी मां मीनाक्षी के एकाकी जीवन से चिंतित था तो अलका को अपने पापा अशोकजी का अकेलापन बर्दाश्त नहीं हो रहा था. अत:

अशोकजी शाम को अपने घर की छत पर टहल रहे थे. एक मोटरसाइकिल सवार गेट के सामने आ कर रुका, जिस का चेहरा हैलमेट में ढका हुआ था.

उस ने पहले अपनी जैकट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर लैटर बौक्स में डाला, फिर सिर उठा कर अशोकजी की ओर देखा और हाथ हिलाने के बाद चला गया.

उस लिफाफे में अशोकजी को एक पत्र मिला जिस में लिखा था, ‘सर, आप के डर के कारण आप की बेटी अलका मुझ से रिश्ता नहीं जोड़ रही है. उस की तरह मैं भी 2 महीने बाद नौकरी करने अमेरिका जा रहा हूं. वहां मेरा सहारा पा कर वह सुरक्षित रहेगी.

लिटिल चैंप का घमासान

‘मेरी आप से प्रार्थना है कि आप अलका से बात कर उस का भय दूर करें. आप ने हमारे रिश्ते को स्वीकार करने में अड़चनें डालीं तो जो होगा उस के जिम्मेदार सिर्फ आप ही होंगे.

‘मैं अलका का सहपाठी हूं. अपना फोन नंबर मैं ने नीचे लिख दिया है. आप जब चाहेंगे मैं मिलने आ जाऊंगा. आप के आशीर्वाद का इच्छुक-रोहन.’

पत्र पढ़ कर अशोकजी बौखला गए. उन के लिए रोहन नाम पूरी तरह से अपरिचित था. उन की इकलौती संतान अलका ने कभी किसी रोहन की चर्चा नहीं छेड़ी थी.

पत्र में जो धमकी का भाव मौजूद था उस ने अशोकजी को चिंतित कर दिया. अलका का मोबाइल नंबर मिलाने के बजाय उन्होंने अपने हमउम्र मित्र सोमनाथ का नंबर मिलाया.

अशोकजी के फौरन बुलावे पर सोमनाथ 15 मिनट के अंदर उन के पास पहुंच गए. रोहन का पत्र पढ़ने के बाद उन्होंने चिंतित स्वर में टिप्पणी की, ‘‘यह तो इश्क का मामला लगता है मेरे भाई. अलका बेटी ने कभी इस रोहन के बारे में तुम से कुछ नहीं कहा?’’

‘‘एक शब्द भी नहीं,’’ अशोकजी भड़क उठे, ‘‘मुझे लगता है कि यह मजनू की औलाद मेरी बेटी को जरूर तंग कर रहा है. अलका ने इस के प्यार को ठुकराया होगा तो इस कमीने ने यह धमकी भरी चिट्ठी भेजी है.’’

‘‘दोस्त, यह भी तो हो सकता है कि अलका भी उसे चाहती…’’

सोमनाथ की बात को बीच में काटते हुए अशोकजी बोले, ‘‘अगर ऐसा होता तो मेरी बेटी जरूर मुझ से खुल कर सारी बात कहती. तू तो जानता ही है कि तेरी भाभी की मृत्यु के बाद अपनी बेटी से अच्छे संबंध बनाने के लिए मैं ने अपने स्वभाव को बहुत बदला है. वह मुझ से हर तरह की बात कर लेती है, तो इस महत्त्वपूर्ण बात को क्यों छिपाएगी?’’

‘‘अब क्या करेगा?’’

‘‘तू सलाह दे.’’

‘‘इस रोहन के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी. अगर यह गलत किस्म का युवक निकला तो इस का दिमाग ठिकाने लगाने को पुलिस की मदद मैं दिलवाऊंगा.’’

सोमनाथ से हौसला पा कर अशोकजी की आंखों में चिंता के भाव कुछ कम हुए थे.

रोहन के बारे में जानकारी प्राप्त करने की जिम्मेदारी अशोकजी ने अपने भतीजे साहिल को सौंपी. उस की रिपोर्ट मिलने  तक उन्होंने अलका से इस बारे में कोई बात न करने का निर्णय किया था.

‘‘अंकल, रोहन सड़क छाप मजनू नहीं बल्कि बहुत काबिल युवक है,’’ साहिल ने 2 दिन बाद अशोकजी को बताया, ‘‘अलका दी और रोहन कक्षा के सब से होशियार विद्यार्थियों में हैं. तभी दोनों को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिली है. पहले इन दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी पर करीब 2 सप्ताह से आपस में बोलचाल बंद है, रोहन के घर का पता इस कागज पर लिखा है.’’

पिंजरे वाली मुनिया

साहिल ने एक कागज का टुकड़ा अशोकजी को पकड़ा दिया था.

‘‘तुम ने मालूम किया कि रोहन के घर में और कौनकौन हैं?’’

‘‘बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और वह मुंबई में रहती है. रोहन अपनी विधवा मां के साथ रहता है. उस के पिता की सड़क दुर्घटना में जब मृत्यु हुई थी तब वह सिर्फ 10 साल का था.’’

‘‘और किसी महत्त्वपूर्ण बात की जानकारी मिली?’’ अशोकजी ने साहिल से पूछा.

‘‘नहीं, चाचाजी, मैं ने जिस से भी पूछताछ की है, उस ने रोहन की तारीफ ही की है. हमारी जातबिरादरी का न सही पर लड़का अच्छा है. मेरी राय में अगर रिश्ते की बात उठे तो आप हां कहने में बिलकुल मत झिझकना,’’ अपनी राय बता कर साहिल चला गया था.

उस शाम अशोकजी ने जब अलका से इस विषय पर बातचीत आरंभ की तो सोमनाथ भी वहां मौजूद थे.

सारी बात सुन कर अलका ने साफ शब्दों में अपना मत उन दोनों के सामने जाहिर कर दिया, ‘‘पापा, रोहन से मैं प्यार नहीं करती. फिर ऐसी कोई बात होती तो मैं आप को जरूर बताती.’’

‘‘बेटी, क्या तुम किसी और से प्यार करती हो?’’ सोमनाथजी ने सचाई जानने का मौका गंवाना उचित नहीं समझा था.

‘‘नहीं, अंकल, अभी तो अपना अच्छा कैरियर बनाना मैं  बेहद महत्त्वपूर्ण मानती हूं.’’

‘‘यह रोहन तुम्हें तंग करता है क्या?’’ अशोकजी की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘मुझे जैसे ही इस बात का एहसास हुआ कि वह मुझ से अलग तरह का रिश्ता बनाना चाहता है, तो मैं ने उस से बोलचाल बंद ही कर दी. उस ने मेरा इशारा न समझ आप को पत्र भेजा, इस बात से मैं हैरान भी हूं और परेशान भी.’’

‘‘तू बिलकुल परेशान मत हो, अलका. कल ही मैं उस से बात करता हूं. उस ने तुझे परेशान किया तो गोली मार दूंगा उस को,’’ अशोकजी का चेहरा गुस्से से भभक उठा.

उसे किस ने मारा

‘‘यार, गुस्सा मत कर…नहीं तो तेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा,’’ सोमनाथ ने अशोकजी को समझाया पर वह रोहन को ठीक करने की धमकियां देते ही रहे.

‘‘पापा,’’ अचानक अलका जोर से चिल्ला पड़ी, ‘‘आप शांत क्यों नहीं हो रहे हैं. एक बार हाई ब्लड पे्रशर के कारण नर्सिंग होम में रह आने के बाद भी आप की समझ में नहीं आ रहा है? आप फिर से अस्पताल जाने पर क्यों तुले हैं?’’

अपनी बेटी की डांट सुन कर अशोकजी चुप तो जरूर हो गए पर रोहन के प्रति उन के दिल का गुस्सा जरा भी कम नहीं हुआ था.

रोहन ने उस रात सोने से पहले अपनी मां मीनाक्षी को शर्मीली सी मुसकान होंठों पर ला कर जानकारी दी, ‘‘कल लंच पर मैं ने अलका और उस के पापा को बुलाया है. उन की अच्छी खातिरदारी करने की जिम्मेदारी आप की है.’’

‘‘यह अलका कौन है?’’ खुशी के मारे मीनाक्षी एकदम से उत्तेजित हो उठीं.

‘‘मेरे साथ पढ़ती है, मां.’’

‘‘प्यार करतेहो तुम दोनों एकदूसरे से?’’

रोहन ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘उस के पापा को तुम ने मना लिया तो रिश्ता पक्का समझो. वह गुस्सैल स्वभाव के हैं और अलका उन से डरती है.’’

‘‘अपने बेटे की खुशी की खातिर मैं उन्हें मनाऊंगी शादी के लिए. तू फिक्र न कर, मुझे अलका के बारे में बता,’’ मीनाक्षी की प्रसन्नता ने उन की नींद को कहीं दूर भगा दिया था.

अशोकजी ने फोन कर के रोहन को अपने घर बुलाया था, पर उस ने सुबह व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें व अलका को दोपहर के समय अपने घर आने को राजी कर लिया था.

‘‘बेटी, किसी के घर में बैठ कर उसे डांटनाडपटना जरा कठिन हो जाता है, पर वह लफंगा आसानी से सीधे रास्ते पर नहीं आया तो आज उस की खैर नहीं,’’ अशोकजी ने अपनी इस धमकी को एक बार फिर दोहरा दिया.

लौटते हुए

‘‘पापा, अपने गुस्से को जरा काबू में रखना, खासकर रोहन की मम्मी को कुछ उलटासीधा मत कह देना, क्योंकि रोहन उन्हें पूजता है. अपनी मां की हलकी सी बेइज्जती भी उस से बर्दाश्त नहीं होगी,’’ अलका बोली.

‘‘मैं पागल नहीं हूं जो बिना बात किसी से उलझूंगा. रोहन तुम्हारा नाम अपने दिल से निकालने का वादा कर ले, तो बात खत्म. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो मुझे सख्ती बरतनी ही पडे़गी,’’ अशोकजी ने अपनी बेटी की सलाह को पूरी तरह मानने से इनकार कर दिया.

‘‘पापा, समझदारी से काम लोगे तो इस मामले को निबटाना आसान हो जाएगा. हमें रोहन की मां को अपने पक्ष में करना है. बस, एक बार उन्होंने समझ लिया कि यह रिश्ता नहीं हो सकता तो रोहन को सीधे रास्ते पर लाने के लिए उन का एक आदेश ही काफी होगा.’’

‘‘मैं समझ गया.’’

‘‘गुड और गुस्से को काबू में रखना है.’’

‘‘ओके,’’ अपनी बेटी का गाल प्यार से थपथपा कर अशोकजी ने घंटी का बटन दबा दिया था.

मीनाक्षी ने मेहमानों की आवभगत के लिए पड़ोस में रहने वाली गायत्री को भी बुला लिया था.

वह अपनी भावी बहू व समधी की खातिर में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. इतने अपनेपन से मीनाक्षी ने अशोकजी व अलका का स्वागत किया कि तनाव, शिकायतों व नाराजगी का माहौल पनपने ही नहीं पाया.

रोहन बाजार से मिठाई लेने चला गया था. वह कुछ ज्यादा ही देर से लौटा और तब तक मीनाक्षी ने मेज पर खाना लगा दिया था.

खाना इतना स्वादिष्ठ बना था कि अशोकजी ने सारी चिंता व परेशानी भुला कर भरपेट भोजन किया. मीनाक्षी के आग्रह के कारण शायद वह जरूरत से ज्यादा ही खा गए थे.

भोजन कर लेने के बाद ही मुद्दे की बात शुरू हो पाई. गायत्री आराम करने के लिए अपने घर चली गई थी.

‘‘मीनाक्षीजी, हम कुछ जरूरी बातें रोहन और आप से करने आए हैं,’’ अशोकजी ने बातचीत आरंभ की.

‘‘भाई साहब, मैं तो इतना कह सकती हूं कि अलका को सिरआंखों पर बिठा कर  रखूंगी मैं,’’ मीनाक्षी ने अलका को बडे़ प्यार से निहारते हुए जवाब दिया.

‘‘आंटी, मैं रोहन से प्यार नहीं करती हूं, इसलिए आप कोई गलतफहमी न पालें,’’ अलका ने कोमल लहजे में अपने दिल की बात उन से कह दी.

‘‘मुझे रोहन ने सब बता दिया है, अलका. अपने पापा से डर कर तुम अपनी इच्छा को मारो मत. मुझे विश्वास है कि भाई साहब आज इस रिश्ते के लिए ‘हां’ कर देंगे,’’ अपनी बात समाप्त कर मीनाक्षी ने प्रार्थना करने वाले अंदाज में अशोकजी के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘आप बात को समझ नहीं रही हैं, मीनाक्षीजी. मेरी बेटी आप के बेटे से शादी करना ही नहीं चाहती है, तो फिर  मेरी ‘हां’ या ‘ना’ का सवाल ही पैदा नहीं होता,’’ अशोकजी चिढ़ उठे.

‘‘पापा, डोंट बिकम एंग्री,’’ अलका ने अपने पिता को शांत रहने की बात याद दिलाई.

‘‘अंकल, आप इस रिश्ते  के लिए ‘हां’ कह दीजिए. अलका को राजी करना फिर मेरी जिम्मेदारी है,’’ रोहन ने विनती की.

‘‘कैसी बेहूदा बात कर रहे हो तुम भी,’’ अशोकजी को अपना गुस्सा काबू में रखने में काफी कठिनाई हो रही थी, ‘‘जब अलका की दिलचस्पी नहीं है तो मैं कैसे और क्यों ‘हां’ कर दूं?’’

‘‘वह तो आप से डरती है, अंकल.’’

‘‘शटअप.’’

‘‘पापा, प्लीज,’’ अलका ने फिर अशोकजी को शांत रहने की याद दिलाई.

‘‘लेकिन यह इनसान हमारी बात समझ क्यों नहीं रहा है?’’

‘‘अलका के दिल की इच्छा मैं अच्छी तरह से जानता हूं, अंकल.’’

‘‘तो क्या वह झूठमूठ इस वक्त ‘ना’ कह रही है?’’

‘‘जी हां, मुझे आप के घर से रिश्ता जोड़ना है और वैसा हो कर रहेगा, अंकल.’’

‘‘मैं तुम्हें जेल भिजवा दूंगा, मिस्टर रोहन,’’ अशोकजी ने धमकी दी.

स्लीपिंग पार्टनर

‘‘भाई साहब, ऐसी अशुभ बातें मत कहिए. आप की बेटी इस घर में बहुत सुखी रहेगी, इस की गारंटी मैं देती हूं,’’ मीनाक्षी की आंखों में आंसू छलक आए तो अशोकजी चुप रह कर रोहन को क्रोधित नजरों से घूरने लगे.

‘‘पापा, आप इन्हें समझाइए और मैं रोहन को बाहर ले जा कर समझाती हूं,’’ अलका झटके से खड़ी हुई और बिना  जवाब का इंतजार किए दरवाजे की तरफ चल पड़ी.

रोहन उस के पीछेपीछे घर से बाहर चला गया. मीनाक्षी और अशोकजी के बीच कुछ देर खामोशी छाई रही. सामने बैठी स्त्री की आंखों में छलक आए आंसुओं के चलते अशोकजी की समझ में  नहीं आ रहा था कि वह उस के मन को चोट  पहुंचाने वाली चर्चा को कैसे शुरू करें.

लेकिन एक बार उन के बीच बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों को वक्त का एहसास ही नहीं रहा. अपनेअपने खट्टेमीठे अनुभवों को एकदूसरे के साथ उन्होंने बांटना जो शुरू किया तो 2 घंटे का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला.

‘‘मीनाक्षीजी, आप के पास सोने का दिल है. मेरी बेटी आप के घर की बहू बन कर आती तो यह मैं उस का सौभाग्य मानता. मुझे पूरा विश्वास है कि वह इस घर में बेहद खुश व सुखी रहेगी. लेकिन अफसोस यह है कि अलका खुद इस रिश्ते में दिलचस्पी नहीं रखती है. मैं उसे राजी करने की कोशिश करूंगा, अगर वह नहीं मानी तो आप रोहन को समझा देना कि वह अलका को तंग न करे,’’ अशोकजी ने भावुक लहजे में मीनाक्षी से प्रार्थना की.

‘‘आप जैसे नेकदिल इनसान को जिस काम से दुख पहुंचे या आप की बेटी परेशान हो, वैसा कोई कार्य मैं अपने बेटे को नहीं करने दूंगी,’’ मीनाक्षी के इस वादे ने अशोकजी के दिल को बहुत राहत पहुंचाई.

अलका और रोहन के वापस लौटने पर इन दोनों ने उलटे सुर में बोलते हुए अपनीअपनी इच्छाएं जाहिर कीं तो उन दोनों को बहुत ही आश्चर्य हुआ.

‘‘अलका, तुम अगर रोहन को अच्छा मित्र बताती हो तो कल को अच्छा जीवनसाथी भी उस में पा लोगी. मीनाक्षीजी के घर में तुम बहुत सुखी और सुरक्षित रहोगी, इस का विश्वास है मुझे. मैं दबाव नहीं डाल रहा हूूं पर अगर तुम ने यह रिश्ता मंजूर कर लिया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा,’’ अपनी इच्छा बता कर अशोकजी ने बेटी का माथा चूम लिया.

‘‘रोहन, अलका खुशीखुशी ‘हां’ कहे तो ठीक है, नहीं तो तुम इसे किसी भी तरह परेशान कभी मत करना. भाई साहब का ब्लड प्रेशर ऊंचा रहता है. तुम्हारी वजह से इन की तबीयत खराब हो, यह मैं कभी नहीं चाहूंगी,’’ मीनाक्षी ने बड़े भावुक अंदाज में रोहन से अपने मन की इच्छा बताई.

‘‘पापा, क्या आप चाहते हैं कि मैं रोहन से शादी कर लूं?’’ अलका ने हैरान स्वर में पूछा.

‘‘हां, बेटी.’’

‘‘आप की सोच में बदलाव आंटी के कारण आया है न?’’

‘‘हां, यह तुम्हारा बहुत खयाल रखेंगी, इन के पास सोने का दिल है.’’

‘‘गुड,’’ अलका की आंखों में अजीब सी चमक उभरी.

रोहन ने अपनी मां से पूछा, ‘‘मेरी इच्छा को नजरअंदाज कर अब जो आप कह रही हैं, उस के पीछे कारण क्या है, मां?’’

‘‘मैं इन को दुखी और चिंतित नहीं देखना चाहती हूं,’’ मीनाक्षी ने अशोकजी की तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया.

‘‘आप की नजरों में यह कैसे इनसान हैं?’’

‘‘बडे़ नेक…बडे़ अच्छे.’’

‘‘गुड, वेरी गुड,’’ ऐसा जवाब दे कर रोहन ने अर्थपूर्ण नजरों से मां की तरफ देखा और बोला, ‘‘इन बदली परिस्थितियों को देखते  हुए हमें सोचविचार के लिए एक बार फिर बाहर चलना चाहिए.’’

‘‘चलो,’’ अलका फौरन उठ कर दरवाजे की तरफ चल पड़ी.

‘‘कहां जा रहे हो दोनों?’’ मीनाक्षी और अशोकजी ने चौंक कर साथसाथ सवाल किए.

‘‘करीब आधे घंटे में आ कर बताते हैं,’’ रोहन ने जवाब दिया और अलका का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया.

कुछ पलों की खामोशी के बाद अशोकजी ने टिप्पणी की, ‘‘इन दोनों का व्यवहार मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

‘‘अगर दोनों बच्चे शादी के लिए तैयार हो गए तो मजा आ जाएगा,’’ मीनाक्षी की आंखों में आशा के दीप जगमगा उठे.

अलका और रोहन करीब 45 मिनट के बाद जब लौटे तो सोमनाथ और गायत्री उन के साथ थे. इन चारों की आंखों में छाए खुशी व उत्तेजना के भावों को पढ़ कर मीनाक्षी और अशोकजी उलझन में पड़ गए.

‘‘आप दोनों का उचित मार्गदर्शन करने व हौसला बढ़ाने के लिए ही हम इन्हें साथ लाए हैं,’’ रोहन ने रहस्यमयी अंदाज में मुसकराते हुए मीनाक्षी व अशोकजी की आंखों में झलक रहे सवाल का जवाब दिया.

सोमनाथ अपने दोस्त की बगल में उस का हाथ पकड़ कर बैठ गए. गायत्री अपनी सहेली के पीछे उस के कंधों पर हाथ रख कर खड़ी हो गई.

रोहन ने बातचीत शुरू की, ‘‘अलका के पापा का दिल न दुखे इस के लिए मां ने मेरी इच्छा को नजरअंदाज कर मुझ से यह वादा मांगा है कि मैं अलका को कभी तंग नहीं करूंगा. लेकिन मैं अभी भी इस घर से रिश्ता जोड़ना चाहता हूूं.’’

मीनाक्षी या अशोकजी के कुछ बोलने से पहले ही अलका ने कहा, ‘‘मैं रोहन से प्रेम नहीं करती पर फिर भी दिल से चाहती हूं कि हमारे बीच मजबूत रिश्ता कायम हो.’’

क्यों बनाता है गुनहगार मुझे

‘‘तुम शादी से मना करोगी तो ऐसा कैसे संभव होगा?’’ अशोकजी ने उलझन भरे लहजे में पूछा.

‘‘एक तरीका है, पापा.’’

‘‘कौन सा तरीका?’’

‘‘वह मैं बताता हूं,’’ सोमनाथजी ने खुलासा करना शुरू किया, ‘‘मुझे बताया गया है कि ़तुम मीनाक्षीजी से इतने प्रभावित हो कि अलका से इस घर की बहू बनने की इच्छा जाहिर की है तुम ने.’’

‘‘मीनाक्षीजी बहुत अच्छी और सहृदय महिला हैं और अलका…’’

‘‘मीनाक्षीजी, आप की मेरे दोस्त के बारे में क्या राय बनी है?’’ सोमनाथ ने अपने दोस्त को टोक कर चुप किया और मीनाक्षी से सवाल पूछा.

‘‘इन का दिल बहुत भावुक है और मैं नहीं चाहती कि इन का स्वास्थ्य रोहन की किसी हरकत के कारण बिगड़े. तभी मैं ने अपने बेटे से कहा कि अलका अगर शादी के लिए मना करती है तो…’’

‘‘यानी कि आप दोनों एकदूसरे को अच्छा इनसान मानते हैं और यही बात आधार बनेगी दोनों परिवारों के बीच मजबूत रिश्ता कायम करने में.’’

‘‘मतलब यह कि जीवनसाथी अलका और मैं नहीं बल्कि आप दोनों बनो,’’ रोहन ने साफ शब्दों में सारी बात कह दी.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ अशोकजी चौंक पड़े.

‘‘यह क्या कह रहा है तू?’’ मीनाक्षी घबरा उठीं.

‘‘रोहन और मेरी यही इच्छा रही है,’’ अलका बोली, ‘‘आंटी और पापा को मिलाने के लिए हमें कुछ नाटक करना पड़ा. हम दोनों ही विदेश जाने के इच्छुक हैं. मेरे पापा की देखभाल की जिम्मेदारी आप संभालिए, प्लीज.’’

‘‘अंकल, विदेश में मैं अलका का खयाल रखूंगा और आप यहां मां का सहारा बन कर हमें चिंता से मुक्ति दिलाइए.’’

‘‘लेकिन…’’ अशोकजी की समझ में नहीं आया कि आगे क्या कहें और मीनाक्षी भी आगे एक शब्द नहीं बोल पाईं.

‘‘प्लीज, अंकल,’’ रोहन ने अशोकजी से विनती की.

‘‘आंटी, प्लीज, मुझे वह खुशी भरा अवसर दीजिए कि मैं आप को ‘मम्मी’ बुला सकूं,’’ अलका ने मीनाक्षी के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर विनती की.

‘‘हां कह दे मेरे यार,’’ सोमनाथ ने अपने दोस्त पर दबाव डाला, ‘‘अपनी अकेलेपन की पीड़ा तू ने कई बार मेरे साथ बांटी है. अच्छे जीवनसाथी के प्रेम व सहारे की जरूरत तो उम्र के इसी मुकाम पर ज्यादा महसूस होती है जहां तुम हो. इस रिश्ते को हां कह कर बच्चों को चिंतामुक्त कर इन्हें पंख फैला कर ऊंचे आकाश में उड़ने को स्वतंत्र कर मेरे भाई.’’

गायत्री ने अपनी सहेली को समझाया, ‘‘मीनू, हम स्त्रियों को जिंदगी के हर मोड़ पर पुरुष का सहारा किसी न किसी रूप में लेना ही पड़ता है. बेटा विदेश चला जाएगा तो तू कितनी अकेली पड़ जाएगी, जरा सोच. तुझे ये पसंद हों तो फौरन हां कह दे. मुझे इन्हें ‘जीजाजी’ बुला कर खुशी होगी.’’

‘‘चुप कर,’’ मीनाक्षी के गाल शर्म से गुलाबी हो गए तो सब को उन का जवाब मालूम पड़ गया.

अशोकजी पक्के निर्णय पर पहुंचने की चमक आंखों में ला कर बोले, ‘‘मैं इस पल अपने दिल में जो खुशी व गुदगुदी महसूस कर रहा हूं, सिर्फ उसी के आधार पर मैं इस रिश्ते के लिए हां कह रहा हूं.’’

‘‘थैंक यू, अंकल,’’ रोहन ने हाथ जोड़ कर उन्हें धन्यवाद दिया.

‘‘थैंक यू, मेरी नई मम्मी,’’ अलका, मीनाक्षी के गले से लग गई.

सोमनाथ और गायत्री ने तालियां बजा कर इस रिश्ते के मंगलमय होने की प्रार्थना मन ही मन की.

‘‘मेरी छोटी बहना, बधाई हो. हमारी योजना इतनी जल्दी और इस अंदाज में सफल होगी, मैं ने सोचा भी न था,’’ रोहन ने शरारती अंदाज में अलका की चोटी खींची तो मीनाक्षी और अशोकजी एकदूसरे की तरफ देख बडे़ प्रसन्न व संतोषपूर्ण ढंग से मुस्कुराए.

शुभचिंतक

शक वह कीड़ा है जो दांपत्य जीवन की दीवारों को खोखला कर देता है. ऐसा ही शक का कीड़ा सविता के दिमाग में कुलबुलाने लगा था. पति की बेवफाई से दुखी सविता तो कुछ समझने को तैयार नहीं थी.

राकेश से झगड़ कर सविता महीने भर से मायके में रह रही थी. उन के बीच सुलह कराने के लिए रेणु और संजीव ने उन दोनों को अपने घर बुलाया.

यह मुलाकात करीब 2 घंटे चली पर नतीजा कुछ न निकला.

गुरु की शिक्षा

‘‘अब साक्षी के साथ मेरा कोई संबंध नहीं है,’’ राकेश बोला, ‘‘अतीत के उस प्रेम को भुलाने के बाद ही मैं ने सविता से शादी की है. अब वह मेरी सिर्फ सहकर्मी है. उसे और मुझे ले कर सविता का शक बेबुनियाद है. हमारे विवाहित जीवन की सुरक्षा व सुखशांति के लिए यह नासमझी जबरदस्त खतरा पैदा कर रही है.’’

अपने पक्ष में ऐसी दलीलें दे कर राकेश बारबार सविता पर गुस्से से बरस पड़ता था.

‘‘मैं नहीं चाहती हूं कि ये दोनों एकदूसरे के सामने रहें,’’ फुफकारती हुई सविता बोली, ‘‘इन्हें किसी दूसरी जगह नौकरी करनी होगी. इन की उस के साथ ही नौकरी करने की जिद हमारी गृहस्थी के लिए खतरा पैदा कर रही है.’’

‘‘तुम्हारे बेबुनियाद शक को दूर करने के लिए मैं अपनी लगीलगाई यह अच्छी नौकरी कभी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे, मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी.’’

दोनों की ऐसी जिद के चलते समझौता होना असंभव था. नाराज हो कर राकेश वापस चला गया.

‘‘हमारा तलाक होता हो तो हो जाए पर राकेश की जिंदगी में दूसरी औरत की मौजूदगी मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’’ सविता ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुनाया तो उस की सहेली रेणु का दिल कांप उठा था.

रेणु के पति संजीव ने सविता के पास जा कर उस का कंधा पकड़ हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘सविता, मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं. राकेश की नौकरी न छोड़ने की जिद यही साबित कर रही है कि दाल में कुछ काला है. तुम अभी सख्ती से काम लोगी तो कई भावी परेशानियों से बच जाओगी.’’

परिंदा

राकेश की इस सलाह को सुन कर सविता और रेणु दोनों ही चौंक पड़ीं. वह बिलकुल नए सुर में बोला था. अभी तक वह सविता को राकेश के पास लौट जाने की ही सलाह दिया करता था.

‘‘मैं अभी भी कहती हूं कि राकेश पर विश्वास कर के सविता को वापस उस के पास लौट जाना चाहिए. उसे उलटी सलाह दे कर आप बिलकुल गलत शह दे रहे हैं,’’  रेणु की आवाज में नाराजगी के भाव उभरे.

‘‘मेरी सलाह बिलकुल ठीक है. राकेश को अपनी पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. यह यहां रहती रही तो जल्दी ही उस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’

संजीव को अपने पक्ष में बोलते देख सविता की आवाज में नई जान पड़ गई, ‘‘रेणु, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो. कम से कम तुम्हें तो मेरी मनोदशा को समझ कर मेरा पक्ष लेना चाहिए. मुझे तो आज संजीव अपना ज्यादा बड़ा शुभचिंतक नजर आ रहा है.’’

‘‘लेकिन यह समझदारी की बात नहीं कर रहे हैं,’’ रेणु ने नाराजगी भरे अंदाज में उन दोनों को घूरा.

‘‘मेरा बताया रास्ता समझदारी भरा है या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा रेणु. फिलहाल लंच कराओ क्योंकि भूख के मारे अब पेट का बुरा हाल हो रहा है,’’ संजीव ने प्यार से अपनी पत्नी रेणु का गाल थपथपाया, पर वह बिलकुल भी नहीं मुसकराई और नाराजगी दर्शाती रसोई की तरफ बढ़ गई.

रिश्ता

आगामी दिनों में संजीव का सविता के प्रति व्यवहार पूरी तरह से बदल गया. इस बदलाव को देख रेणु हैरान भी होती और परेशान भी.

‘‘सविता, तुम जैसी सुंदर, स्मार्ट और आत्मनिर्भर युवती को अपमान भरी जिंदगी बिलकुल नहीं जीनी चाहिए…

‘‘तुम राकेश से हर मामले में इक्कीस हो, फिर तुम क्यों झुको और दबाव में आ कर गलत तरह का समझौता करो?

‘‘तुम जैसी गुणवान रूपसी को जीवनसंगिनी के रूप में पा कर राकेश को अपने भाग्य पर गर्व करना चाहिए. तुम्हें उस के हाथों किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं सहना है,’’ संजीव के मुंह से निकले ऐसे वाक्य सविता का मनोबल भी बढ़ाते और उस के मन की पीड़ा भी कम करते.

अगर रेणु सविता को बिना शर्त वापस लौटने की बात समझाने की कोशिश करती तो वह फौरन नाराज हो जाती.

धीरेधीरे सविता और संजीव एक हो गए और रेणु अलगथलग पड़ती चली गई. राकेश की चर्चा छिड़ती तो उस के शब्दों पर दोनों ही ध्यान नहीं देते. सविता संजीव को अपना सच्चा हितैषी बताती. अब रेणु के साथ अकसर उस का झगड़ा ही होता रहता था.

सविता के सामने ही संजीव अपनी पत्नी रेणु से कहता, ‘‘यह बेचारी कितनी दुखी और परेशान चल रही है. इस कठिन समय में इस का साथ हमें  देना ही होगा.

‘‘अपने दुखदर्द के दायरे से निकल कर जब यह कुछ खुश और शांत रहने लगेगी तब हम जो भी इसे समझाएंगे, वह इस के दिमाग में ज्यादा अच्छे ढंग

से घुसेगा. अभी हमें इस का मजबूत सहारा बनना है, न कि सब से बड़ा आलोचक.’’

संजीव, सविता का सब से बड़ा प्रशंसक बन गया. उस के हर कार्य की तारीफ करते उस की जबान न थकती. उसे खुश करने को वह उस के सुर में सुर मिला कर बोलता. उस के लतीफे  सुन सविता हंसतेहंसते दोहरी हो जाती. अपने रंगरूप की तारीफ सुन उस के गाल गुलाबी हो उठते.

‘‘तुम कहीं सविता पर लाइन तो नहीं मार रहे हो?’’ एक रात अपने शयनकक्ष में रेणु ने पति संजीव से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘इस सवाल के पीछे क्या ईर्ष्या व असुरक्षा का भाव छिपा है, रेणु?’’ संजीव उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया.

‘‘अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है न?’’

‘‘जिस दिन मैं अपनी आंखों से कुछ गलत देख लूंगी उस दिन तुम दोनों की खैर नहीं,’’ रेणु ने नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरीं.

संजीव ने हंसते हुए उसे छाती से लगाया और कहा, ‘‘पति की जिंदगी में दूसरी औरत के आने की कल्पना ऐसा सचमुच हो जाने की सचाई की तुलना में कहीं ज्यादा भय और चिंता को जन्म देती है डार्लिंग. मैं सविता का शुभचिंतक हूं, प्रेमी नहीं. तुम उलटीसीधी बातें न सोचा करो.’’

बेइज्जती पाने की होड़ : आखिर ये भी एक कला है

उस वक्त संजीव की बांहों के घेरे में कैद हो कर रेणु अपनी सारी चिंताएं भूल गई पर सविता व अपने पति की बढ़ती निकटता के कारण अगले दिन सुबह से वह फिर तनाव का शिकार हो गई थी.

संजीव का साथ सविता को बहुत भाने लगा था. वह लगभग रोज शाम को उन के घर चली आती या फिर संजीव आफिस से लौटते समय उस के घर रुक जाता. सविता के मातापिता व भैयाभाभी उसे भरपूर आदरसम्मान देते थे. उन सभी को लगता कि संजीव से प्रभावित सविता उस के समझाने से जल्दी ही राकेश के पास लौट जाएगी.

सविता ने एक शाम ड्राइंगरूम में सामने बैठे संजीव से कहा, ‘‘यू आर माई बेस्ट फ्रेंड. तुम्हारा सहारा न होता तो मैं तनाव के मारे पागल ही हो जाती. थैंक यू वेरी मच.’’

‘‘दोस्तों के बीच ऐसे ‘थैंक यू’ कानों को चुभते हैं, सविता. हमारी दोस्ती मेरे जीवन में भी खुशियों की महक भर रही है. तुम्हारे शानदार व्यक्तित्व से मैं भी बहुत प्रभावित हूं,’’ संजीव की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘तुम दिल के बहुत अच्छे हो, संजीव.’’

‘‘और तुम बहुत सुंदर हो, सविता.’’

संजीव ने उस की प्रशंसा आंखों में गहराई से झांकते हुए की थी. उस की भावुक आवाज सविता के बदन में अजीब सी सरसराहट दौड़ा गई. वह संजीव की आंखों से आंखें न मिला सकी और लजाते से अंदाज में उस ने अपनी नजरें झुका लीं.

संजीव अचानक उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘मेरे होते हुए तुम किसी बात की चिंता न करना. मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं. कल रविवार को नाश्ता हमारे साथ करना, बाय.’’

आगे जो हुआ वह सविता के लिए अप्रत्याशित था. संजीव ने बड़े भावुक अंदाज में उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया था. संजीव की इस हरकत ने सविता की सोचनेसमझने की शक्ति हर ली. उस ने नजरें उठाईं तो संजीव की आंखों में उसे अपने लिए प्रेम के गहरे भाव नजर आए.

संजीव को सविता अपना अच्छा दोस्त और सब से बड़ा शुभचिंतक मानती थी. उस दोस्त ने अब प्रेमी बनने की दिशा में पहला कदम उस का हाथ चूम कर उठाया था.

संजीव की आंखों में देखते हुए सविता पहले शर्माए से अंदाज में मुसकराई और फिर अपनी नजरें झुका लीं. उस ने संजीव को अपना प्रेमी बनने की इजाजत इस मुसकान के रूप में दे दी थी.

बिना और कुछ कहे संजीव अपने घर चला गया था. उस रात सविता ढंग से सो नहीं पाई थी. सारी रात मन में संजीव व राकेश को ले कर उथलपुथल चलती रही थी. सुबह तक वह न राकेश के पास लौटने का निर्णय ले सकी और न ही संजीव से निकटता कम करने का.

मन में घबराहट व उत्तेजना के मिलेजुले भाव लिए वह अगले दिन सुबह संजीव और रेणु के घर पहुंच गई. मौका मिलते ही वह संजीव से खुल कर ढेर सारी बातें करने की इच्छुक थी. नएनए बने

प्रेम संबंध को निभाने के लिए बड़ी गोपनीयता व सतर्कता की जरूरत को वह रेखांकित करने के लिए आतुर थी.

‘‘रेणु नाराज हो कर मायके चली गई है,’’ घर में प्रवेश करते ही संजीव के मुंह से यह सुन कर सविता जोर से चौंक पड़ी थी.

‘‘क्यों नाराज हुई रेणु?’’ सविता ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘कल शाम तुम्हारा हाथ चूमने की खबर उस तक पहुंच गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ घबराहट के मारे सविता का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘शायद तुम्हारी भाभी ने कुछ देखा और रेणु को खबर कर दी.’’

‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ, संजीव. मैं रेणु का सामना कैसे करूंगी? वह मेरी बहुत अच्छी सहेली है,’’ सविता तड़प उठी.

सविता को सोफे पर बिठाने के बाद उस की बगल में बैठते हुए संजीव ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘कल शाम जो घटा वह गलत था. मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए था.’’

‘‘दोस्ती को कलंकित कर दिया मैं ने,’’ सविता की आंखों से आंसू बहने लगे.

एक गहरी सांस छोड़ कर संजीव बोला, ‘‘रेणु से मैं बहुत प्यार करता हूं. फिर भी न जाने कैसे तुम ने मेरे दिल में जगह बना ली है…तुम से भी प्यार करने लगा हूं मैं…रेणु बहुत गुस्से में थी. मुझे समझ नहीं आ रहा है, अब क्या होगा?’’

वहां आकाश और है : आकाश और मानसी के बीच कौन सा रिश्ता था

‘‘हम से बड़ी भूल हो गई है,’’ सविता सुबक उठी.

‘‘ठीक कह रही हो तुम. तुम्हारे दुखदर्द को बांटतेबांटते मैं भावुक हो उठता था. तुम्हारा अकेलापन दूर करने की कोशिश मैं शुभचिंतक बन कर रहा था और अंतत: प्रेमी बन बैठा.’’

‘‘कुसूरवार मैं भी बराबर की हूं, संजीव. जो पे्रम अपने पति से मिलना चाहिए था, उसे अपने दोस्त से पाने की इच्छा ने मुझे गुमराह किया.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, सविता,’’ संजीव सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘तुम अगर राकेश के साथ होतीं…उस के साथ प्रसन्न व सुखी होतीं, तो हमारे बीच अच्छी दोस्ती की सीमा कभी न टूटती. तुम्हारा अकेलापन, राकेश से बनी अनबन और मेरी सहानुभूति व तुम्हारा सहारा बनने की कोशिशें हमारे बीच अवैध प्रेम संबंध को जन्म देने का कारण बन गए. अब क्या होगा?’’

‘‘मुझे राकेश के पास लौट जाना चाहिए…अपनी सहेली के दिल पर लगे जख्म को भरने का यही एक रास्ता है, बाद में कभी मैं उस से माफी मांग लूंगी,’’ सविता ने कांपते स्वर में समस्या का हल सामने रखा.

‘‘तुम्हारा लौटना ही ठीक रहेगा, सविता, फिर मेरे दिमाग में एक और बात भी उठ रही है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि तुम राकेश से दूर हो कर अगर मेरी सहानुभूति व ध्यान पा कर गुमराह हो सकती हो, तो आजकल राकेश भी तुम से दूर व अकेला रह रहा है. उस लड़की साक्षी के साथ उस का आज संबंध नहीं भी है, तो कल को वह ऐसी ही सहानुभूति व अपनापन तुम्हारे पति से जता कर उस के दिल में अवैध प्रेम संबंध का बीज क्या आसानी से नहीं बो सकेगी?’’

संजीव की अर्थपूर्ण नजरें सविता के दिल की गहराइयों तक उतर गईं. देखते ही देखते आंसुओं के बजाय उस की आंखों में तनाव व चिंता के भाव उभर आए.

‘‘यू आर वेरी राइट, संजीव,’’ सविता अचानक उत्तेजित सी नजर आने लगी, ‘‘राकेश से अलग रह कर मैं सचमुच भारी भूल कर रही हूं. खुद भी मुसीबत का शिकार बनी हूं और उधर राकेश को किसी साक्षी की तरफ धकेलने का इंतजाम भी नासमझी में खुद कर रही हूं. आई मस्ट गो बैक.’’

‘‘हां, तुम आज ही राकेश के पास लौट जाओ. मैं भी रेणु को मना कर वापस लाता हूं.’’

‘‘रेणु मुझे माफ कर देगी न?’’

‘‘जब मैं कहूंगा कि आज तुम ने मुझे यहां आ कर खूब डांटा, तो वह निश्चित ही तुम्हें कुसूरवार नहीं मानेगी. तुम दोनों की दोस्ती बनाए रखने को…एकदूसरे की इज्जत आंखों में बनाए रखने को मैं सारा कुसूर अपने ऊपर ले लूंगा.’’

‘‘थैंक यू, संजीव. मैं सामान पैक करने जाती हूं,’’ सविता झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ संजीव भावुक हो उठा.

‘‘तुम बहुत अच्छे दोस्त…बहुत अच्छे इनसान हो.’’

‘‘तुम भी, अपना और राकेश का ध्यान रखना. गुडबाय.’’

सविता ने हाथ हिला कर ‘गुडबाय’ कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

उस के जाने के बाद दरवाजा बंद कर के संजीव ड्राइंगरूम में लौटा तो मुसकराती रेणु ने उस का स्वागत किया. वह अंदर वाले कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आ गई थी.

अंतर्भास: आखिर क्या चाहती थी कुमुद

‘‘तुम ने तो कमाल कर दिया. सविता तो राकेश के पास आज ही वापस जा रही है,’’ रेणु बहुत प्रसन्न नजर आ रही थी.

‘‘मुझे खुशी है कि मेरी योजना सफल रही. सविता को यह बात समझ में आ गई है कि जीवनसाथी से, उस की जिंदगी में दूसरी औरत की उपस्थिति के भय के कारण दूर रहना मूर्खतापूर्ण भी है और खतरनाक भी.’’

‘‘मैं फोन कर के राकेश को पूरे घटनाक्रम की सूचना दे देता हूं,’’ संजीव मुसकराता हुआ फोन की तरफ बढ़ा.

‘‘आप ने अपनी योजना की जानकारी मुझे आज सुबह से पहले क्यों नहीं दी?’’

‘‘तब तुम्हारी प्रतिक्रियाओं में बनावटीपन आ जाता, डार्ल्ंिग.’’

‘‘योजना समाप्त हुई, तो अब सविता को भुला तो दोगे न?’’

‘‘तुम अकेला छोड़ कर नहीं जाओगी तो उस का प्रेम मुझे कभी याद नहीं आएगा जानेमन,’’ उसे छेड़ कर संजीव जोर से हंसा तो रेणु ने पहले जीभ निकाल कर उसे चिढ़ाया और फिर उस की छाती से जा लगी.

सेटर्सः विषय के साथ न्याय करने में विफल

रेटिंग: ढाई  स्टार

अवधिः 2 घंटे 5 मिनट

निर्माताः नरेंद्र हीरावत और विकास मनी

निर्देशकः अश्विनी चौधरी

पटकथा: विकास मनी और अश्विनी चौधरी

कलाकारःपवन मल्होत्रा, आफताब शिवदसानी, श्रेयष तलपड़े, सोनाली सेहगल, इशिता दत्ता, विजय राज व अन्य.

कैमरामैन: संतोष थुंडियाली

शिक्षा व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहे पेपर लीक कराने व नकल कराने वाले गिरोह और इनकी कार्यशैली को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. कुछ माह पहले इमरान हाशमी की फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ भी इसी विषय पर बनी थी. अब उसी घिसे पिटे विषय पर अश्वनी चैधरी फिल्म ‘‘सेटर्स’’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने दिखाया है कि इस गिरोह की मदद अपराधियों को सजा देने वाले जज से लेकर पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी भी अपने बेट या बेटी को व्यावसायिक परीक्षा में पास कराने के लिए लेते रहते हैं. ऐसे में वह इस गिरोह पर अंकुश कैसे लगाएंगे. फिल्म में विस्तार से इस गिरोह की कार्यप्रणाली का चित्रण किया गया है. इस फिल्म की एक ही खासियत है कि इस फिल्म में मोबाइल व ब्लू टूथ की हाई टेक/नई तकनीक का उपयोग यह गिरोह किस तरह करता है, उसका भी चित्रण है.

ब्लैंकः सिर्फ सनी देओल के फैंस ही खुश होंगे

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में वाराणसी में रह रहे दबंग व बाहुबली भइयाजी (पवन मल्होत्रा) और उनके लिए काम करने वाले अपूर्वा चैधरी(श्रेयष तलपड़े) के इर्द गिर्द घूमती है. यह दोनों अपने गुर्गों (जीशान कादरी,विजय राज,मनु रिषि,नीरज सूद) के साथ मिलकर व्यावसायिक परीक्षाओं के पेपर व उनके जवाब परीक्षर्थियों को उंचे दाम पर मुहैया कराकर शिक्षा तंत्र में दीमक लगाने का काम कर रहे हैं. पर यह कहानी मुंबई, वाराणसी, लखनउ, दिल्ली व जयपुर तक जाती है. कहानी शुरू होती है मुंबई से जहां रेलवे भर्ती की परीक्षा के प्रश्नपत्र और उनके जवाब मुहैया कराने के लिए प्रति परीक्षार्थी दस लाख रूपए के हिसाब से पचास लोगों में बेचते हैं. एक लड़की अपूर्वा उर्फ अप्पू से यह कहकर प्रश्नपत्र व उनके जवाब लेने से इंकार कर देती है कि वह अपने पिता का घर गिरवी नही रखेगी और उसने जो पढ़ा है, उसी आधार पर वह परीक्षा देगी. इससे प्रभावित होकर अप्पू उस लड़की को मुफ्त में ही प्रशनपत्र व उनके जवाब दे देता है. परीक्षा खत्म होते ही सारा पैसा इकट्ठा कर वह अपने साथियों के साथ वाराणसी पहुंचकर धन व हिसाब भईयाजी को सौप देता है. उधर वाराणसी के डीआई जी दिल्ली के दबाव में एटीएस के एस पी आदित्य (आफताब शिवदासानी) को जिम्मेदारी देते हैं कि प्रश्नपत्र लीक कराने वाले यानी कि सेटर्स के गिरोह का भंडाफोड़कर उन्हे जेल के अंदर भेजे. आदित्य घर जाकर अपनी पत्नी से बात करता है, तो पता चलता है कि आदित्य, उनकी  पत्नी ऐश्वर्या व अपूर्वा चैधरी कभी गहरे दोस्त हुआ करते थे. आदित्य व अपूर्वा ने एक साथ पुलिस विभाग की नौकरी पाने के लिए परीक्षा दी थी, आदित्य सफल हुए थे और अपूर्वा असफल. इतना ही नही आदित्य को पता है कि अपूर्वा पेपर सेटर्स है. अब आदित्य अपनी टीम गठित करता है. वह अपनी टीम में ईशा (सोनाली सहगल), जमील अंसारी (जमील खान)व दिव्यांकर (अनिल मोंगे) को जोड़ता है. इधर आदित्य अपनी टीम के साथ मिलकर शिक्षा जगत के इस घपले को उजागर करने के साथ ही सबूतों के साथ भईया जी व अपूर्वा को गिरफ्तार करने की योजना बनाकर काम शुरू करते हैं. उधर बैंकिग की परीक्षा होनी है. इस बार फिर अपूर्वा ने 49 लोगों से पैसे लिए हैं. बैंक में प्रोबीशनरी आफिसर की परीक्षा भईयाजी की बेटी प्रेरणा (ईशा दत्ता) भी दे रही है. पर वह अपूर्वा से कहकर स्वयं परीक्षा देकर अपनी पढ़ाई के आधार पर पास होना चाहती है. अपूर्वा उसकी यह हसरत पूरी कर देता है. जिसके बाद प्रेरणा, अपूर्वा से प्यार करने लगती है. मगर आदित्य के चंगुल में अपूर्वा के तीन साथी पकड़े जाते हैं. पुलिस तीनों की जमकर पिटाई करती है, मगर तीनों सच नहीं कबूलते. उधर अपूर्वा के बार बार कहने के बावजूद भईया जी, मंत्री जी की मदद से इन तीनों को छुड़ाने से इंकार करते हुए भइयाजी एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया अतुल दुबे(अतुल तिवारी) से मिलकर उस पार्टी का नेता बनकर दिल्ली जाने की तैयारी कर लेते है.पर अपूर्वा जज से मिलकर अपने तीनों साथियों को जमानत पर रिहा कराने में सफल हो जाता है. यहीं से भइयाजी और अपूर्वा के रास्ते अलग हो जाते हैं. अब इंजीनियरिंग की परीक्षा होनी है, जिसके पेपर जयपुर में छप रहे हैं. भइयाजी ने अपने आदमी को पेपर हासिल करने के लिए लगा रखा है, जबकि अपूर्वा खुद लगा हुआ है, जीत अपूर्वा की होती है. उसके बाद मेडिकल की परीक्षा होनी है. इस बार हर परीक्षार्थी से अपूर्वा पचास लाख रूपए लेता है. आदित्य की टीम और अपूर्वा के बीच चूहे बिल्ली का खेल जारी रहता है. भइयाजी खुद आगे बढ़कर अपूर्वा के संबंध में आदित्य को जानकारी देते हैं, फिर भी आदित्य को असफलता हासिल होती है. एक दिन भइयाजी की बेटी प्रेरणा, अपूर्वा के पास आकर कह देती हैं कि वह उसी से शादी करेगी. अंततः मेडिकल की परीक्षा खत्म होते ही अपूर्वा, प्रेरणा व निजाम (विजय राज) के साथ नेपाल चला जाता है. आदित्य कुछ नही कर पाते.

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निर्देशनः

‘‘लाडो’’ और ‘‘धूप’’ जैसी कम बजट की बेहतरीन फिल्मों के निर्देशित कर चुके अश्विनी चौधरी ‘सेटर्स’ में उत्कृष्ट कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद बुरी तरह से मात खा गए हैं. पटकथा के स्तर पर भी वह मात खा गए. अश्विनी  चौधरी ने शिक्षा जगत में हो रहे घोटालों पर बात करने की बजाय अपना सारा ध्यान अपराधी के पीछे भागती पुलिस यानी कि चूहे बिल्ली के खेल के माध्यम से फिल्म को रोमांचकारी बनाए रखने पर ही दिया. हमारे देश में शिक्षा जगत व शिक्षा तंत्र के लिए नासूर बन चुके व्यापम सहित कई घोटाले हुए हैं. मगर फिल्मकार इस तरह के घोटालो व सेटर्स के चलते युवा पीढ़ी शिक्षा तंत्र को  किस तरह का नुकसान हो रहा है, इस नुकसान के क्या परिणाम हो रहे हैं, उस पर कोइ बात नहीं करती. यह फिल्म महज एक चोर को पकड़ने के लिए भागती पुलिस की रोमांचक गाथा बनकर रह जाती है. पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है कि फिल्मकार का यह दावा खोखला है कि उन्होंने इस विषय पर गहन शेधकार्य किया है. यह कहानी महज पुलिस विभाग के जांच अधिकारी की डायरी का पन्ना मात्र है. लेखक व निर्देशक ने रिसर्च और लेखन में थोड़ी सी मेहनत की होती,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. लेखक ने कुछ चरित्र बहुत बेतरीन तरीके से लिखे हैं.

कैमरामैन बधाई के पात्र

फिल्म के कैमरामैन संतोष थुंडियाली बधाई के पात्र हैं. वह अपने कैमरे की मदद से मुंबई, दिल्ली,जयपुर व वाराणसी की गलियों, वाराणसी में गंगा नदी के घाटों के साथ ही यहां के रहन सहन आदि की बारीकियों सुंदरता के साथ परदे पर उकेरने में सफल रहे हैं.

इस गाने की वजह से करण जौहर की नई स्टूडेंट बनीं तारा सुतारिया

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो भइयाजी के किरदार में पवन मल्होत्रा के अभिनय की तारीफ की जाएगी. कुछ वर्षों से कौमिक फिल्मों के पर्याय बन चुके श्रेयष तलपड़े ने अपूर्वा के अलग अंदाज व मिजाज के किरदार को बाखूबी निभाया हैं. उन्होंने भाषा पर काम कर किरदार को जीवंत बनाया है. श्रेयष ने जिस सहजता के साथ अपूर्वा के किरदार को निभाया है, उससे उनके अंदर की अभिनय क्षमता का अहसास होता है. और सवाल उठता है कि अब तक उन्हें इस तरह के किरदार फिल्मकार देने से क्यों डरते रहे हैं? आफताब शिवदासानी भी लंबे समय बाद कुछ बेहतर परफार्म करते आए. इशिता दत्ता व सोनाली सहगल के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. अन्य कलाकार अपने अपने किरदारों में ठीक ठाक रहे.

आलू और कमल ककड़ी की सब्जी

आलू की सब्जी तो आपने कई बार खाई होगी लेकिन इस रेसिपी में आलू और कमल ककड़ी को एक साथ मिलाकर बनाया जाता है. बहुत सारे मसालें डालकर बनाई गई इस सब्जी को आप चावल या रोटी के साथ सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

आलू  (6-7 छिला हुआ)

देसी घी (1/2 टेबल स्पून)

हरी मिर्च (3)

दालचीनी पाउडर (2 टी स्पून)

ग्रीन सैलेड विद फेटा

कमल ककड़ी (4-5)

हरा धनिया (टुकड़ों में कटा हुआ)

लहसुन की कलियां  (बारीक कटा हुआ)

बेसन (2 टेबल स्पून)

आमचूर पाउडर (1 टी स्पून)

बड़ी इलाइची पाउडर (1 टी स्पून)

चीज चिकन कबाब रेसिपी

कालीमिर्च पाउडर (1 टी स्पून)

नमक (स्वादानुसार)

पानी

बनाने की वि​धि

आलुओं को बहुत ही पतले साइज में काट लें.

इन्हें थोड़ी देर के लिए पानी में भिगो दें और इसके बाद इन्हें नमक वाले पानी में उबालकर छान लें और एक तरफ रख दें.

वहीं कमल ककड़ी को छीलकर तिरछा काट लें और कुछ देर के लिए पानी में डालकर एक तरफ रख दें। इसे नमक वाले पानी में उबालकर छान लें.

एक पैन में घी गर्म करें और इसमें लहसुन डालें और एक बार लहसुन ब्राउन हो जाए तो इसमें हरी मिर्च और बेसन डालकर भून लें.

तंदूरी फ्रूट चाट रेसिपी

इसके बाद इसमें नमक, हरा धनिया, आमचूर पाउडर, दालचीनी पाउडर, बड़ी इलाइची पाउडर, हरी इलाइची का पाउडर और काली मिर्च का पाउडर डालें.

इसमें आलू और कमल ककड़ी डालें और इसे हरा धनिया डालकर गार्निश करें और गर्मागर्म सर्व करें.

अचारी बैंगन रेसिपी

अचारी बैंगन बहुत ही स्वादिष्ट रेसिपी है. छोटे बैंगन को लम्बाई में काट कर इन्हें डीप फ्राई करने के बाद इसमें टैंगी मसाला भर कर भूना जाता है. इस बैंगन की डिश को आप लंच में परांठे के साथ सर्व कर सकती हैं.

मसाले के लिए:

साबुत धनिया (ड्राई रोस्ट 2 टेबल स्पून)

सौंफ (ड्राई रोस्ट 1 टेबल स्पून)

जीरा (ड्राई रोस्ट 1 टी स्पून)

मेथी दाना (1 1/2 टी स्पून)

सरसों के दाने (2 टी स्पून सफेद)

कलौंजी (1/2 टी स्पून)

अजवाइन (1 टी स्पून)

आमचूर (4 टी स्पून)

हल्दी पाउडर (1/4 टी स्पून)

लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)

बैंगन को भूनने के लिए:

सरसों का तेल (5 टेबल स्पून)

तेजपत्ता (2)

लौंग (3-4)

1 टी स्पून हींग (2 बड़े चम्मच पानी में भीगी हुई)

स्वादानुसार (नमक)

ग्रीन सैलेड विद फेटा

बनाने की वि​धि

बैंगन को लम्बाई में काट लें मगर इसे डंठल से अलग न करें.

इसे हल्का सा दबाकर इसके अंदर नमक और हल्दी लगाएं और इसे डीप फ्राई करें.

एक पैन में साबुत धनिया, सौंफ और जीरा को ड्राई रोस्ट करें.

इनको अन्य मसाले डालकर पीस लें.

3.मसाले के साथ बैंगन को डीप फ्राई कर लें और इन्हें एक तरफ रख दें.

एक कड़ाही में सरसों का तेल गर्म करें, इसमें तेजपत्ता, लौंग और हींग का पाउडर डालें.

इसके बाद स्टफड बैंगन डालकर भूनें.

अपने स्वादानुसार नमक डाल दें, इसे भूनें और गर्मागर्म सर्व करें.

चीज चिकन कबाब रेसिपी

दमकती त्वचा पाने के लिए अपनाएं ये 5 टिप्स

त्वचा को भी सांस लेते रहने के लिए उसे नियमित रूप से साफ करना बेहद जरूरी है. अगर आप त्वचा की साफ-सफाई को नजरअंदाज करती हैं तो आपकी परेशानियां बढ़ेंगी और आपकी त्वचा अपनी चमक खो देगी. तो आइए बताते हैं, आप कैसे इन होममेड टिप्स को अपनाकर अपनी त्वचा का आसानी से ख्याल रख सकती हैं.

टमाटर

टमाटर को स्किन पर रब करने से अच्छा और आसान कुछ नहीं हो सकता. यह सिर्फ न आपकी स्किन साफ करेगा बल्कि आपके रोम छिद्र को खोलने, स्किन को लचीला बनाने और टाइट करने में मदद करेगा.

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दही

औयली से लेकर कौम्बिनेशन स्किन के लिए दही बेस्ट औप्शन है. दो छोटे चम्मच दही से डेली दिन के आखिर में मसाज करें और पानी से धो लें. यह आपकी त्वचा को साफ रखेगा. साथ ही, खराब होने से भी बचाएगा.

मुल्तानी मिट्टी

अगर आपकी त्वचा औयली है, तो आप मुल्तानी मिट्टी से बने पेस्ट को आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं, जो कि नैचुरल क्ले है, जो काफी लंबे समय से स्किन को साफ करने में इस्तेमाल की जाती है.

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पपीता

ओटमील और थोड़े दूध में मैश किया पपीता मिलाकर स्किन पर रब करें. चेहरे और गर्दन पर लगाने के बाद अच्छे से धो लें. यह सिर्फ आपकी स्किन को साफ नहीं करेगा बल्कि टैन मिटाने, दाग-धब्बे दूर करने में भी सहायक है.

 बेसन

बेसन को हर तरह की त्वचा को साफ करने के लिए बेहतर औप्शन माना जाता है. इसे दही के साथ मिलाकर स्किन पर मसाज़ कर सकते हैं. यह औयली और कौम्बिनेशन स्किन के लिए अच्छा होता है.

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मेरी कोई जाति भी नहीं

नास्तिकता की ओर बढ़ रही है दुनिया

मैं नास्तिक क्यों हूं…

काल्पनिक ईश्वर में विश्वास नहीं करता बौद्ध धर्म

तमिलनाडु में वेल्लोर के तिरूपत्तूर की निवासी 35 साल की एक वकील एम.ए.स्नेहा ने अपने धर्म के साथ जाति का भी जिक्र कभी नहीं किया. उनके जन्म और स्कूल के सर्टिफिकेट्स में भी जाति और धर्म के कौलम खाली हैं. स्नेहा को हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने एक सर्टिफिकेट जारी किया है, जो कहता है कि इनकी कोई जाति या धर्म नहीं है. इन्हें भारत का पहला ऐसा नागरिक माना जा सकता है, जिन्हें अधिकारिक तौर पर अनुमति मिली है. यह सर्टिफिकेट पाने के लिए स्नेहा को नौ साल लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी है. उन्होंने वर्ष 2010 में ‘नो कास्ट, नो रिलिजन’ के लिए आवेदन किया था और 5 फरवरी 2019 को कई मुश्किलें पार करने के बाद उन्हें यह सर्टिफिकेट मिला है. अब स्नेहा पहली ऐसी शख्स हैं जिनके पास यह प्रमाणपत्र है. स्नेहा खुद ही नहीं, बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से ही अपने आवेदन पत्रों में जाति और धर्म का कौलम खाली छोड़ते थे. स्नेहा खुद ही नहीं, बल्कि अपनी तीन बेटियों के फौर्म में भी जाति और धर्म के कौखाली छोड़ती हैं.

सामाजिक परिवर्तन की दिशा में स्नेहा का यह कदम बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. खुद साउथ एक्टर कमल हसन ने स्नेहा और उनके प्रमाणपत्र की फोटो ट्विटर पर शेयर की. स्नेहा नास्तिक हैं और उनका कहना है कि जब जाति और धर्म के मानने वालों के लिए प्रमाणपत्र होते हैं तो हम जैसे नास्तिक लोगों के लिए क्यों नहीं? स्नेहा को बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी, जो उन्हें हासिल हो चुकी है. स्नेहा के इस कदम की हर जगह तारीफ हो रही है.

नास्तिक घोषित करवाने कोर्ट पहुंचे

हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट में राजीव उपाध्याय नाम के एक 35 वर्षीय आटोरिक्शा चालक ने खुद को नास्तिक का दर्जा दिये जाने के सम्बन्ध में याचिका दायर की हैं. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि राज्य किसी व्यक्ति को नास्तिक का दर्जा क्यों नहीं दे सकता है? दरअसल अब तक एंटी कनवर्जन लौ के मुताबिक, एक धर्म से दूसरे धर्म में जाने की इजाजत तो है, मगर नास्तिक होने की नहीं है. उपाध्याय ने पहले अहमदाबाद के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से उनके धर्म को एंटी कनवर्जन लॉ के तहत हिन्दू से बदल कर नास्तिक करने का आवेदन किया था, मगर कलेक्टर ने उनसे कहा कि – ‘कोई भी नागरिक अपनी इच्छा से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन कर सकता है, लेकिन कानून में एक धर्म से नास्तिक हो जाने का कोई प्रावधान नहीं है.’ इसके बाद उपाध्याय ने हाईकोर्ट का रुख किया. उनकी याचिका पर सुनवाई फिलहाल जारी है. अगर फैसला उनके हित में होता है तो यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा.

एक समस्या भी 

धर्म का जिक्र न करने वाले या नास्तिक लोगों की संख्या हालांकि बढ़ रही है, लेकिन कानूनी मामलों में उनकी पहचान विवादों के दायरे में है क्योंकि नास्तिक लोगों का कोई पर्सनल लौ नहीं है. ऐसे में कानूनी मामलों में उनके जन्म के आधार पर धर्म तय किया जाता है. साल 2012 में श्रीरंग बलवंत खंबेटे नाम के वकील ने ठाणे की सेशन कोर्ट में खुद को गैर धर्मिक घोषित करने की मांग की थी. कोर्ट ने कहा कि उन्हें अपना धर्म त्यागने की अनुमति है. उन्हें ‘गैर-धार्मिक’ की श्रेणी दी जा सकती है, मगर इसमें यह भी खतरा है कि इससे उनके परिवार के सदस्यों के लिए स्थिति जटिल हो सकती है, उनकी सम्पत्ति और संस्कारों को लेकर कानूनी पेंच आ सकते हैं.

अब जाने दो उसे 

रिश्ते बेजान सामान की तरह नहीं होते जिन्हें पुराना होने पर घर से निकाल दिया जाए. वे तो ऐसी अमूल्य पूंजी हैं जिन्हें दिल रूपी घर में सहेजा जाता है.

मुझे नाकारा और बेकार पड़ी चीजों से चिढ़ होती है. जो हमारे किसी काम नहीं आता फिर भी हम उसे इस उम्मीद पर संभाले रहते हैं कि एक दिन शायद वह काम आए. और जिस दिन उस के इस्तेमाल का दिन आता है, पता चलता है कि उस से भी कहीं अच्छा सामान हमारे पास है. बेकार पड़ा सामान सिर्फ जगह घेरता है, दिमाग पर बोझ बनता है बस.

अलमारी साफ करते हुए बड़बड़ा रहा था सोम, ‘यह देखो पुराना ट्रांजिस्टर, यह रुकी हुई घड़ी. बिखरा सामान और उस पर कांच का भी टूट कर बिखर जाना…’ विचित्र सा माहौल बनता जा रहा था. सोम के मन में क्या है, यह मैं समझ नहीं पा रहा था.

मैं सोम से क्या कहूं, जो मेरे बारबार पूछने पर भी नहीं बता रहा कि आखिर वजह क्या है.

‘‘क्या रुक गया है तुम्हारा, जरा मुझे समझाओ न?’’

सोम जवाब न दे कर सामान को पैर से एक तरफ धकेल परे करने लगा.

‘‘इस सामान में किताबें भी हैं, पैर क्यों लगा रहे हो.’’

सोम एक तरफ जा बैठा. मुझे ऐसा भी लगा कि उसे शर्म आ रही है. संस्कारों और ऊंचे विचारों का धनी है सोम, जो व्यवहार वह कर रहा है उसे उस के व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं माना जा सकता क्योंकि वह ऐसा है ही नहीं.

‘‘कल किस से मिल कर आया है, जो ऐसी अनापशनाप बातें कर रहा है?’’

सोम ने जो बताया उसे सुन कर मुझे धक्का भी लगा और बुरा भी. किसी तांत्रिक से मिल कर आया था सोम और उसी ने समझाया था कि घर का सारा खड़ा सामान घर के बाहर फेंक दो.

‘‘खड़े सामान से तुम्हारा क्या मतलब है?’’

‘‘खड़े सामान से हमारा मतलब वह सामान है जो चल नहीं रहा, बेकार पड़ा सामान, जो हमारे काम में नहीं आ रहा वह सामान…’’

‘‘तब तो सारा घर ही खाली करने वाला होगा. घर का सारा सामान एकसाथ तो काम नहीं न आ जाता, कोई सामान आज काम आ रहा है तो कोई कल. किताबों को पैरों से धकेल कर बाहर फेंक रहे हो. ट्रांजिस्टर में सैल डालोगे तो बजेगा ही… क्या तुम ने पूरी तरह समझा कि वह तांत्रिक किस सामान की बात कर रहा था?’’

‘‘हमारे घर का वास्तु भी ठीक नहीं है,’’ सोम बोला, ‘‘घर का नकशा भी गलत है. यही विकार हैं जिन की वजह से मुझे नौकरी नहीं मिल रही, मेरा जीवन ठहर गया है भाई.’’

सोम ने असहाय नजरों से मुझे देखा. विचित्र सी बेचैनी थी सोम के चेहरे पर.

‘‘अब क्या घर को तोड़ कर फिर से बनाना होगा? नौकरी तो पहले से नहीं है… लाखों का जुगाड़ कहां से होगा? किस घरतोड़ू तांत्रिक से मिल कर आए हो, जिस ने यह समझा दिया कि घर भी तोड़ दो और घर का सारा सामान भी बाहर फेंक दो.’’

हंसी आने लगी थी मुझे.

मां और बाबूजी कुछ दिन से घर पर नहीं हैं. सोम उन का ज्यादा लाड़ला है. शायद उदास हो गया हो, इसलिए बारबार जीवन ठहर जाने का गिला कर रहा है. मैं क्या करूं, समझ नहीं पा रहा था.

‘‘तुम्हें नीलू से मिले कितने दिन हो गए हैं? जरा फोन करना उसे, बुलाना तो, अभी तुम्हारा जीवन चलने लगेगा,’’ इतना कह मैं ने मोबाइल उठा कर सोम की तरफ उछाल दिया.

‘‘वह भी यहां नहीं है, अपनी बूआ के घर गई है.’’

मुझे सोम का बुझा सा स्वर लगा. कहीं यही कारण तो नहीं है सोम की उदासी का. क्या हो गया है मेरे भाई को? क्या करूं जो इसे लगे कि जीवन चलने लगा है.

सुबहसुबह मैं छत पर टहलने गया. बरसाती में सामान के ढेर पर नजर पड़ी. सहसा मेरी समझ में आ गया कि खड़ा सामान किसे कहते हैं. भाग कर नीचे गया और सोम को बुला लाया.

‘‘यह देख, हमारे बचपन की साइकिलें, जिन्हें जंग लगी है, कभी किसी काम में नहीं आने वालीं, सड़े हुए लोहे के पलंग और स्टूल, पुराना गैस का चूल्हा, यह पुराना टीवी, पुराना टूटा टेपरिकार्डर और यह साइकिल में हवा भरने वाला पंप…इसे कहते हैं खड़ा सामान, जो न आज काम आएगा न कल. छत का इतना सुंदर कोना हम ने बरबाद कर रखा है.’’

आंखें फैल गईं सोम की. मां और बाबूजी घर पर नहीं थे सो बिना रोकटोक हम ने घर का सारा कबाड़ बेच दिया. सामान उठा तो छत का वह कोना खाली हो गया जिसे हम साफसुथरा कर अपने लिए छोटी सी आरामगाह बना सकते थे.

नीचे रसोई में भी हम ने पूरी खोज- खबर ली. ऊपर वाली शैल्फ पर जला हुआ पुराना गीजर पड़ा था. बिजली का कितना सामान जमा पड़ा था, जिस का उपयोग अब कभी होने वाला नहीं था. पुरानी ट्यूबें, पुराने हीटर, पुरानी इस्तरी.

हम ने हर जगह से खड़ा सामान निकाला तो 4 दिन में घर का नकशा बदल गया. छत को साफ कर गंदी पड़ी दीवारों पर सोम ने आसमानी पेंट पोत दिया. प्लास्टिक की 4 कुरसियां ला कर रखीं, बीच में गोल मेज सजा दी. छत से सुंदर छोटा सा फानूस लटका दिया. जो खुला भाग किसी की नजर में आ सके वहां परदा लगा दिया, जिसे जरूरत पड़ने पर समेटा भी जा सके और फैलाया भी.

‘‘एक हवादार कमरे का काम दे रहा है यह कोना. गरमी के मौसम में जब उमस बढ़ने लगेगी तो यहां कितना आराम मिला करेगा न,’’ उमंग से भर कर सोम ने कहा, ‘‘और बरसात में जब बारिश देखने का मन हो तो चुपचाप इसी कुरसी पर पसर जाओ…छत की छत, कमरे का कमरा…’’

सोम की बातों को बीच में काटते हुए मैं बोल पड़ा, ‘‘और जब नीलू साथ होगी तब और भी मजा आएगा. उस से पकौड़े बनवा कर खाने का मजा ही कुछ और होगा.’’

मैं ने नीलू का नाम लिया इस पर सोम ने गरदन हिला दी.

‘‘सच कह रहे हो भाई, नीचे जा कर देखो, रसोई भी हलकीफुलकी हो गई है… देख लेना, जब मां आएंगी तब उन्हें भी खुलाखुला लगेगा…और अगर मां ने कबाड़ के बारे में पूछा तो क्या कहेंगे?’’

‘‘उस सामान में ऐसा तो कोई सामान नहीं था जिस से मां का काम रुकेगा. कुछ काम का होता तब तो मां को याद आएगा न?’’

मेरे शब्दों ने सोम को जरा सा आश्वासन क्या दिया कि वह चहक कर बोला, ‘‘भाई क्यों न रसोई के पुराने बरतन भी बदल लें. वही प्लेटें, वही गिलास, देखदेख कर मन भर गया है. मेहमान आएं तो एक ही रंग के बरतन मां ढूंढ़ती रह जाती हैं.’’

सोम की उदासी 2 दिन से कहीं खो सी गई थी. सारे पुराने बरतन थैले में डाल हम बरतनों की दुकान पर ले गए. बेच कर, थोड़े से रुपए मिले. उस में और रुपए डाल कर एक ही डिजाइन की कटोरियां, डोंगे और प्लेटें ला कर रसोई में सजा दीं.

हैरान थे हम दोनों भाई कि जितने रुपए हम एक पिक्चर देखने में फूंक देते हैं उस से बस, दोगुने ही रुपए लगे थे और रसोई चमचमा उठी थी.

शाम कालिज से वापस आया तो खटखट की आवाज से पूरा घर गूंज रहा था. लपक कर पीछे बरामदे में गया. लकड़ी का बुरादा उड़उड़ कर इधरउधर फैल गया था. सोम का खाली दिमाग लकड़ी के बेकार पड़े टुकड़ों में उलझा पड़ा था. मुझे देख लापरवाही से बोला, ‘‘भाई, कुछ खिला दे. सुबह से भूखा हूं.’’

‘‘अरे, 5 घंटे कालिज में माथापच्ची कर के मैं आया हूं और पानी तक पूछना तो दूर खाना भी मुझ से ही मांग रहा है, बेशर्म.’’

‘‘भाई, शर्मबेशर्म तो तुम जानो, मुझे तो बस, यह कर लेने दो, बाबूजी का फोन आया है कि सुबह 10 बजे चल पड़ेंगे दोनों. शाम 4 बजे तक सारी कायापलट न हुई तो हमारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’

अपनी मस्ती में था सोम. लकड़ी के छोटेछोटे रैक बना रहा था. उम्मीद थी, रात तक पेंट आदि कर के तैयार कर देगा.

लकड़ी के एक टुकड़े पर आरी चलाते हुए सोम बोला, ‘‘भाई, मांबाप ने इंजीनियर बनाया है. नौकरी तो मिली नहीं. ऐसे में मिस्त्री बन जाना भी क्या बुरा है… कुछ तो कर रहा हूं न, नहीं तो खाली दिमाग शैतान का घर.’’

मुझे उस पल सोम पर बहुत प्यार आया. सोम को नीलू से गहरा जुड़ाव है, बातबेबात वह नीलू को भी याद कर लेता.

नीलू बाबूजी के स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है, जो अपने चाचा के पास रहती है. उस की मां नहीं थीं, जिस वजह से वह अनाथ बच्ची पूरी तरह चाचीचाचा पर आश्रित है. बी.ए. पास कर चुकी है, अब आगे बी.एड. करना चाहती है. पर जानता हूं ऐसा होगा नहीं, उसे कौन बी.एड. कराएगा. चाचा का अपना परिवार है. 4 जमातें पढ़ा दीं अनाथ बच्ची को, यही क्या कम है. बहुत प्यारी बच्ची है नीलू. सोम बहुत पसंद करता है उसे. क्या बुरा है अगर वह हमारे ही घर आ जाए. बचपन से देखता आ रहा हूं उसे. वह आती है तो घर में ठंडी हवा चलने लगती है.

‘‘कड़क चाय और डबलरोटी खाखा कर मेरा तो पेट ही जल गया है,’’ सोम बोला, ‘‘इस बार सोच रहा हूं कि मां से कहूंगा, कोई पक्का इंतजाम कर के घर जाएं. तुम्हारी शादी हो जाए तो कम से कम डबल रोटी से तो बच जाएंगे.’’

सोम बड़बड़ाता जा रहा था और खातेखाते सभी रैक गहरे नीले रंग में रंगता भी जा रहा था.

‘‘यह देखो, यह नीले रंग के छोटेछोटे रैक अचार की डब्बियां, नमक, मिर्च और मसाले रखने के काम आएंगे. पता है न नीला रंग कितना ठंडा होता है, सासबहू दोनों का पारा नीचा रहेगा तो घर में शांति भी रहेगी.’’

सोम मुझे साफसाफ अपने मनोभाव समझा रहा था. क्या करूं मैं? कितनी जगह आवेदन दिया है, बीसियों जगह साक्षात्कार भी दे रखा है. सोचता हूं जैसे ही सोम को नौकरी मिल जाएगी, नीलू को बस, 5 कपड़ों में ले आएंगे. एक बार नीलू आ जाए तो वास्तव में हमारा जीवन चलने लगेगा. मांबाबूजी को भी नीलू बहुत पसंद है.

दूसरी शाम तक हमारा घर काफी हलकाफुलका हो गया था. रसोई तो बिलकुल नई लग रही थी. मांबाबूजी आए तो हम गौर से उन का चेहरा पढ़ते रहे. सफर की थकावट थी सो उस रात तो हम दोनों ने नमकीन चावल बना कर दही के साथ परोस दिए. मां रसोई में गईं ही नहीं, जो कोई विस्फोट होता. सुबह मां का स्वर घर में गूंजा, ‘‘अरे, यह क्या, नए बरतन?’’

‘‘अरे, आओ न मां, ऊपर चलो, देखो, हम ने तुम्हारे आराम के लिए कितनी सुंदर जगह बनाई है.’’

आधे घंटे में ही हमारी हफ्ते भर की मेहनत मां ने देख ली. पहले जरा सी नाराज हुईं फिर हंस दीं.

‘‘चलो, कबाड़ से जान छूटी. पुराना सामान किसी काम भी तो नहीं आता था. अच्छा, अब अपनी मेहनत का इनाम भी ले लो. तुम दोनों के लिए मैं लड़कियां देख आई हूं. बरसात से पहले सोचती हूं तुम दोनों की शादी हो जाए.’’

‘‘दोनों के लिए, क्या मतलब? क्या थोक में शादी करने वाली हो?’’ सोम ने झट से बात काट दी. कम से कम नौकरी तो मिल जाए मां, क्या बेकार लड़का ब्याह देंगी आप?’’

चौंक उठा मैं. जानता हूं, सोम नीलू से कितना जुड़ा है. मां इस सत्य पर आंख क्यों मूंदे हैं. क्या उन की नजरों से बेटे का मोह छिपा है? क्या मां की अनुभवी आंखों ने सोम की नजरों को नहीं पढ़ा?

‘‘मेरी छोड़ो, तुम भाई की शादी करो. कहीं जाती हो तो खाने की समस्या हो जाती है. कम से कम वह तो होगी न जो खाना बना कर खिलाएगी. डबलरोटी खाखा कर मेरा पेट दुखने लगता है. और सवाल रहा लड़की का, तो वह मैं पसंद कर चुका हूं…मुझे भी पसंद है और भाई को भी. हमें और कुछ नहीं चाहिए. बस, जाएंगे और हाथ पकड़ कर ले आएंगे.’’

अवाक् रह गया मैं. मेरे लिए किसे पसंद कर रखा है सोम ने? ऐसी कौन है जिसे मैं भी पसंद करता हूं. दूरदूर तक नजर दौड़ा आया मैं, कहीं कोई नजर नहीं आई. स्वभाव से संकोची हूं मैं, सोम की तरह इतना बेबाक कभी नहीं रहा जो झट से मन की बात कह दूं. क्षण भर को तो मेरे लिए जैसे सारा संसार ही मानो गौण हो गया. सोम ने जो नाम लिया उसे सुन कर ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही निकाल ली हो.

‘‘नीलू भाई को बहुत चाहती है मां. उस से अच्छी लड़की हमारे लिए कोई हो ही नहीं सकती…अनाथ बच्ची को अपना बना लो, मां. बस, तुम्हारी ही बन कर जीएगी वह. हमारे घर को नीलू ही चाहिए.’’

आंखें खुली रह गई थीं मां की और मेरी भी. हमारे घर का वह कोना जिसे हम ने इतनी मेहनत से सुंदर, आकर्षक बनाया वहां नीलू को मैं ने किस रूप में सोचा था? मैं ने तो उसे सोम के लिए सोचा था न.

नीलू को इतना भी अनाथ मत समझना…मैं हूं उस का. मेरा उस का खून का रिश्ता नहीं, फिर भी ऐसा कुछ है जो मुझे उस से बांधता है. वह मेरे भाई से प्रेम करती है, जिस नाते एक सम्मानजनक डोर से वह मुझे भी बांधती है.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला? मुझे तो कभी पता नहीं चला.’’

‘‘बस, चल गया था पता एक दिन…और उसी दिन मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर यह जिम्मेदारी ले ली थी कि उसे इस घर में जरूर लाऊंगा.’’

‘‘कभी अपने मुंह से कुछ कहा था उस से तुम दोनों ने?’’ बारीबारी से मां ने हम दोनों का मुंह देखा.

मैं सकते में था और सोम निशब्द.

‘‘नीलू का ब्याह तो हो भी गया,’’ रो पड़ी थीं मां हमें सुनातेसुनाते, ‘‘उस की बूआ ने कोई रिश्ता देख रखा था. 4 दिन हो गए. सादे से समारोह में वह अपने ससुराल चली गई.’’

हजारों धमाके जैसे एकसाथ मेरे कानों में बजे और खो गए. पीछे रह गई विचित्र सी सांयसांय, जिस में मेरा क्याक्या खो गया समझ नहीं पा रहा हूं. पहली बार पता चला कोई मुझ से प्रेम करती थी और खो भी गई. मैं तो उसे सोम के लिए इस घर में लाने का सपना देखता रहा था, एक तरह से मेरा वह सपना भी कहीं खो गया.

‘‘अरे, अगर कुछ पता चल ही गया था तो कभी मुझ से कहा क्यों नहीं तुम ने,’’ मां बोलीं, ‘‘सोम, तुम ने मुझे कभी बताया क्यों नहीं था. पगले, वह गरीब क्या करती? कैसे अपनी जबान खोलती?’’

प्रकृति को कोई कैसे अपनी मुट्ठी में ले सकता है भला? वक्त को कोई कैसे बांध सकता है? रेत की तरह सब सरक गया हाथ से और हम वक्त का ही इंतजार करते रह गए.

सोम अपना सिर दोनों हाथों से छिपा चीखचीख कर रोने लगा. बाबूजी भी तब तक ऊपर चले आए. सारी कथा सुन, सिर पीट कर रह गए.

वह रात और उस के बाद की बहुत सी रातें ऐसी बीतीं हमारे घर में, जब कोई एक पल को भी सो नहीं पाया. मांबाबूजी अपने अनुभव को कोसते कि क्यों वे नीलू के मन को समझ नहीं पाए. मैं भी अपने ही मापदंड दोहरादोहरा कर देखता, आखिर मैं ने सोम को क्यों और किसकिस कोण से सही नहीं नापा. सब उलटा हो गया, जिसे अब कभी सीधा नहीं किया जा सकता था.

सोम एक सुबह उठा और सहसा कहने लगा, ‘‘भाई, खड़े सामान की तरह क्यों न अब खड़े भावों को भी मन से निकाल दें. जिस तरह नया सामान ला कर पुराने को विदा किया था उसी तरह पुराने मोह का रूप बदल क्यों न नए मोह को पाल लिया जाए. नीलू मेरे मन से जाती नहीं, भाभी मान जिस पर ममता लुटाता रहा, क्यों न उसे बहन मान नाता जोड़ लूं…मैं उस से मिलने उस के ससुराल जाना चाहता हूं.’’

‘‘अब क्यों उसे पीछे देखने को मजबूर करते हो सोम, जाने दो उसे…जो बीत गई सो बात गई. पता नहीं अब तक कितनी मेहनत की होगी उस ने खुद को नई परिस्थिति में ढालने के लिए. कैसेकैसे भंवर आए होंगे, जिन से स्वयं को उबारा होगा. अपने मन की शांति के लिए उसे तो अशांत मत करो. अब जाने दो उसे.’’

मन भर आया था मेरा. अगर नीलू मुझ से प्रेम करती थी तो क्या यह मेरा भी कर्तव्य नहीं बन जाता कि उस के सुख की चाह करूं. वह सब कभी न होने दूं. जो उस के सुख में बाधा डाले.

रो पड़ा सोम मेरे कंधे से लग कर. खुशनसीब है सोम, जो रो तो सकता है. मैं किस के पास जा कर रोऊं और कैसे बताऊं किसी को कि मैं ने क्या नहीं पाया, ऐसा क्या था जो बिना पाए ही खो दिया.

‘‘सिर्फ एक बार उस से मिलना चाहता हूं भाई,’’ रुंधा स्वर था सोम का.

‘‘नहीं सोम, अब जाने दो उसे.

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