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130 फीट ऊंची पहाड़ी पर अकेला रहता है ये शख्स

दुनिया में  ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिसके बारे में जानकर हम हैरान हो जाते हैं. जैसा हम सोच भी नहीं सकते वैसी हैरान करने वाली चीजें होती है. आज आपको एक ऐसी ही हैरतअंगेज करने वाली जगह के बारे में बताते हैं.जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे.

जौर्जिया में एक ऐसा जगह है, जहां 130 उंची फीट पहाड़ी स्थित है. आपको बता दें, इस 130 उंची फीट पहाड़ी  पर एक शख्स  घर बनाकर रहता है. हैरान करने वाली बात ये है कि ये शख्स इस घर में बिल्कुल अकेला रहता है. इस शख्स का नाम है मेक्जिम. यह करीब 25 सालों से इस पहाड़ी पर अकेला रहता है.

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यह शख्स सप्ताह में सिर्फ दो बार ही नीचे उतरता है. यहां 131 फीट की सीढ़ियां बनाई गई हैं, जहां से लोग चढ़ और उतर सकते हैं. इस पहाड़ी पर चढ़ने में करीब 20 मिनट का समय लगता है. इस पहाड़ी को ‘कात्स्खी पिलर’ के नाम से जाना जाता है.  अगर मेक्जिम को  किसी समान की जरूरत पड़ती है तो उनके चाहनेवाले  उन तक पहुंचा देते हैं.

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दिल्ली में बांग्ला थियेटर को जिंदा रखे हैं तोरित दा

दिल्ली के चितरंजन पार्क में एक घर के बेसमेंट में बने छोटे से स्टूडियो में एक जबरदस्त चीख लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. चंद मिनटों में वह चीख रविन्द्रनाथ टैगोर के मधुर गीत में बदल जाती है. मधुर स्वर लहरी धीरे-धीरे सिसकियों में और सिसकियां अचानक उन्मुक्त हंसी में तब्दील हो जाती है. रोशनी के एक वृहद गोले के भीतर मंच पर महाभारत काल की स्त्री के विभिन्न रूपों, मनोभावों, छटपटाहटों, पीड़ा और भय को आज के सन्दर्भ में प्रकट करते हुए बंगाली नायिका कौशिकी देब एक ऊंचे सीढ़ीनुमा स्थान पर आकर बैठती है. चारों ओर रोशनी उग आती है.

लेखक-डायरेक्टर तोरित मित्रा और उनकी नाट्य संस्था ‘संन्सप्तक’ से जुड़ने की कहानी अपनी सुमधुर आवाज में सुनाते हुए नायिका कौशिकी देब की आंखें अचानक छलक पड़ती हैं. यह तोरित दा के प्रति नायिका की श्रद्धा और आत्मीयता का परिचय है. नाट्य मंच के नजदीक ही कुर्सियों पर बैठे कोई दर्शक मंत्रमुग्ध से हैं.

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अभी वह कौशिकी देब द्वारा अभिनीत नाटक की गहराइयों में डूब-उतरा ही रहे हैं कि अचानक इस मंच पर मां-बहन की गालियां बकती सिर पर सूखी घास और लकड़ियों का गट्ठर उठाये एक लड़की प्रवेश करती है. हिन्दी-हरियाणवी मिश्रित गंवार भाषा में वह अपनी बड़ी बहन के मासूम प्यार और बाप की मजबूरियों का बखान करती है. देखते ही देखते देश और समाज का नंगा सच उघड़ कर सामने आने लगता है और लोगों को शर्मिन्दा करने लगता है. खाप के कहर से खुद अपने बेटी का कत्ल करने वाले अपने मजबूर बाप की कहानी कहती सिमरन कभी आंसुओं के समन्दर में डूब जाती है तो कभी गुस्से से थर-थर कांपती खाप के दबंगों को मां-बहन की गालियों से नवाजने लगती है. दर्शक उसके आंसुओं के साथ गहरे दुख में उतर जाता है, तो उसके गुस्से के साथ आक्रोशित होने लगता है. नाटक ‘जन्मांतर’ के रूप में तोरित दा की कलम से निकली कहानी दर्शकों की रूह थर्रा देती है. नेपाल की मिट्टी में पैदा हुई और दिल्ली में पली-बढ़ी अदाकारा सिमरन जिस खूबी से आधे घंटे तक हरियाणवी टोन में गांव की छोरी का किरदार अदा करती है, उसे देखकर इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वह पहली बार एकल नाटक के मंच पर उतरी हैं. यह कमाल है तोरित दा के नाट्य मंच ‘संन्सप्तक’ और उनकी नाट्य शिक्षा का.

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चार अगस्त से लेकर उन्तीस सितम्बर तक चितरंजन पार्क के इस छोटे से स्टूडियो में चले नाट्य महोत्सव के अन्तर्गत तोरित मित्र द्वारा लिखित अनेकों नाटकों का मंचन हुआ. यह तमाम नाटक कई भाषाओं में खेले गये. जानेमाने अदाकारों के साथ कई अदाकार तो बिल्कुल पहली बार मंच पर उतरे, लेकिन उनके सधे हुए नाट्य कौशल को देखकर दर्शक हतप्रभ रह गये. अपने कलाकारों में यह कौशल और आत्मविश्वास जगाने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह हैं सिर्फ और सिर्फ तोरित मित्रा, जिन्हें ‘संन्सप्तक’ से जुड़ा हर लेखक, नाटककार, निर्माता, निर्देशक, कलाकार, कवि, गायक, चित्रकार प्यार से ‘तोरित दा’ कहकर पुकारता है.

हैरानी की बात है कि बंगाली नाटककार व निर्देशक के रूप में विश्व विख्यात तोरित मित्रा ने अपने करियर की शुरुआत एक चित्रकार के रूप में की थी, लेकिन जल्दी ही रंगमंच के साथ हुए जुड़ाव ने उनके कैनवास को व्यापक बना दिया. 6 सितम्बर 1956 में दिल्ली में जन्मे तोरित मित्रा ने जब 1979 में दिल्ली कौलेज औफ आर्ट्स नई दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, तब उन्हें गुमान भी नहीं था कि एक दिन वह अपनी पूरी रचनात्मक ऊर्जा नाट्य कला को समर्पित कर देंगे. एक पेशेवर चित्रकार के रूप में तोरित दा काफी समय तक अपने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित करने में ही व्यस्त रहे. उनके तमाम चित्र काले और सफेद रंग में डूबे एक प्रयोगात्मक टुकड़े थे. यह चित्र समाज की निराशा और दुख को व्यक्त करते थे. इन चित्रों में चमकीले रंगों का कोई स्थान नहीं था. यह चित्र समाज की काली और नंगी सच्चाइयों को सामने रखते थे. तोरित दा के चित्रों को समीक्षकों ने बहुत सराहा. वर्ष 1988 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने उन्हें आल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी गोल्डन जुबली अवार्ड से भी सम्मानित किया. एक चित्रकार के रूप में तोरित दा का भविष्य काफी उज्ज्वल था, लेकिन वे समाजिक-आर्थिक धुंधलेपन को प्रमुखता से उजागर करने के लिए किसी अन्य सशक्त माध्यम की तलाश में थे और यह माध्यम उन्हें मिला नाटकों के रूप में. शुरुआत में तो उन्होंने बंगाली थिएटर समूहों में सेट डिजाइनर और अभिनेता के रूप में काम किया, लेकिन उसी बीच उनकी लेखनी से ऐसे-ऐसे नाटक निकले, जो पढ़ने और देखने वालों के भीतर एक सिहरन सी पैदा कर देते थे. मात्र 21 वर्ष की आयु में तोरित मित्रा दिल्ली के थिएटर क्षेत्र में पुरस्कार प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के नाटककार और निर्देशक बन गये. तोरित दा दिल्ली में शहरी बंगाली थियेटर समूहों की प्रथाओं से नाखुश और असंतुष्ट थे. वह बंगाली नाटकों में नया दृष्टिकोण, नई भाषा और नया निर्देशन चाहते थे. इसी सोच के तहत 1992 में उन्होंने अपनी नाट्य संस्था ‘संन्सप्तक’ का गठन किया. आज संन्सप्तक बंगाली रंगमंच के लिए महत्वपूर्ण मंच बन चुका है.

बीते 27 सालों में यह नाट्य समूह तोरित मित्रा द्वारा लिखित 60 बहुभाषीय नाटकों की कम से कम 800 अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रस्तुतियां दे चुका है. मंच प्रस्तुतियों के अलावा, तोरित मित्रा एवं संस्था की अध्यक्ष और रंगकर्मी रूमा बोस के नेतृत्व में, संन्सप्तक ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय नाट्य उत्सवों में भागीदारी भी की है, साथ ही वसुंधरा, पंचमवैदिक, एलिगेंस ऑफ इब्सन, एम्प्टीस्पेस, स्वयं वदन्ति, लिगेसी, लव एंड बियॉन्ड बॉंडेज जैसे नाट्य उत्सव, संगोष्ठी, कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है. बांगला भाषा में प्रगतिशील विकास को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में एकमात्र समकालीन लेखक और निर्देशक होने का सम्मान आज तोरित मित्रा के नाम है.

अब तक 300 से ज्यादा प्रोडक्शंस का निर्माण करने वाले तोरित दा को बंगला और हिन्दी में द्विभाषी थिएटर करने का दुर्लभ गौरव प्राप्त है. उनके मूल बांग्ला नाटकों के हिन्दी संस्करणों के लिए हिन्दी दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है. उनके द्वारा लिखित नाटक ‘हरी-भरी ख्वाहिश’, ‘गर्भ’, ‘ना हन्यन्ते’ और ‘जवल-ए-अजीम’ के संकलन को हिन्दी विद्वान ज्योतिष जोशी ने मुक्तधारा सभागार में जारी किया था. उनकी कुछ प्रस्तुतियों को भारत रंग मोहत्सव और भारतेन्दु नाट्य उत्सव जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में भी दिखाया जा चुका है.

 ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’: परिवार नियोजन पर आधारित है ये शो

अपने एडुटेनमेंट अप्रोच को ध्यन में रखते हुए, पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया ने अपने लोकप्रिय टीवी शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ के जरिए लोगों के लिए परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक जैसे कठिन और वर्जित विषयों पर बातचीत करने के लिए एक नई शब्दावली पेश की है. “मस्त पिटारा” दंपत्ति के लिए उपलब्ध गर्भ निरोधकों के बास्केट को दर्शाता है. यह परिवार नियोजन के उन संदेशों को बदल देता है, जो अक्सर शर्मिंदगी का कारण बनते है. ये दंपत्ति के बीच एक प्रेमपूर्ण संबंध के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है.

‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ में मस्त पिटारा विशेष रूप से गर्भनिरोधक के अस्थायी तरीकों पर जोर देती है, जिसमें ओरल गर्भनिरोधक गोलियां, इंजेक्शन, कंडोम और अंतर्गर्भाशयी उपकरण शामिल हैं. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में, परिवार नियोजन का बोझ महिलाओं पर पड़ता है, जिसमें आधुनिक गर्भनिरोधक तरीकों का 75% से अधिक उपयोग होता है. दंपत्ति के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों को लोकप्रिय बनाकर, मस्त पिटारा यह बताता है कि कैसे वे गर्भ निरोधक का इस्तेमाल कर आनन्द उठा सकते है.

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पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा कहती हैं, “एक ऐसे समाज के लिए जो सेक्स और गर्भनिरोधक को वर्जित विषय मानता है,  मस्त पिटारा लोगों परिवार नियोजन के बारे में बातचीत में शामिल होने का एक साधन है. ऐसे वर्जित विषय पर न चाहते हुए भी लोगों को तब शर्मिंदा होना पड़ता है, जब वे सेवा प्रदाताओं से स्वास्थ्य संबंधी उचित जानकारी लेना चाहते है.”

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शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की एक पहल है जो परिवार नियोजन और महिलाओं के सशक्तीकरण के मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार को बदलने के लिए है. टेलीविजन कार्यक्रम के अलावा, इस शो में एक इंटरएक्टिव वायस रिस्पांस सिस्टम, सामुदायिक रेडियो, डिजिटल मीडिया और औन-ग्राउंड आउटरीच विस्तार भी शामिल हैं.

‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ एक युवा डौक्टर डा. स्नेहा माथुर की प्रेरक यात्रा के आसपास घूमती है, जो मुंबई में अपने आकर्षक कैरियर को छोड़ कर अपने गांव में काम करने का फैसला करती है. यह शो राष्ट्रीय प्रसारक के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है, जिसे 13 भारतीय भाषाओं में कई रिपीट टेलीकास्ट और किया गया. इसे देश के 216 औल इंडिया रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित किया गया. शो के तीसरे सीजन का निर्माण आरईसी फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के समर्थन से किया गया है.

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पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया एक राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है, जो लैंगिक संवेदनशील जनसंख्या, स्वास्थ्य और विकास रणनीतियों और नीतियों के प्रभावी निर्माण और कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है और इसकी वकालत करता है. पी. एफ. आई महिलाओं और पुरुषों को सशक्त बनाने के साथ ही जनसंख्या के मुद्दों को संबोधित करता है, ताकि वे अपने स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सूचित निर्णय लेने में सक्षम हों सके.

‘नच बलिये 9’: इस शो में दोबारा हिस्सा लेंगी उर्वशी ढोलकिया

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला रियलटी शो ‘नच बलिये 9’ से कंटेंस्टेंट उर्वशी ढोलकिया और अनुज सचदेवा बाहर हो गए थे. इस शो से निकलते ही ‘नच बलिए 9’ के मेकर्स पर  उन्होंने गंभीर आरोप भी लगाया था.

उस दौरान उर्वशी का गुस्सा सातवे आसमान पर था. उर्वशी ने दोबारा शो में आने से ही इनकार कर दिया था. लेकिन अब लगता है कि उर्वशी का गुस्सा शांत हो गया है. क्योंकि उर्वशी ढोलकिया अब ‘नच बलिए 9’ में वाइल्ड कार्ड एंट्री लेने जा रही हैं. वैसे भी जब उर्वशी इस शो से बाहर हुईं तभी खबर आने लगी थी कि  मेकर्स इस एक्स जोड़ी को शो में वापस बुला सकते हैं.

खबरों के अनुसार वाइल्ड कार्ड एंट्री प्रोमो के लिए उर्वशी ढोलकिया और अनुज सचदेवा एक दो दिन में शूटिंग करने जा रहे हैं. तो वहीं अगले हफ्ते यह एक्स जोड़ी शो में वापसी कर सकती हैं. ऐसे में उर्वशी के फैंस तो उनका डांस का जलवा देखकर काफी उत्साहित हो जाएंगे.

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इनके अलावा एक और जोड़ी नच बलिए 9 में लौट रही है. मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह भी ‘नच बलिए 9’ में दोबारा एंट्री ले सकते हैं. दर्शकों को इनकी केमिस्ट्री काफी पसंद है. फिलहाल ये  शो काफी चर्चा में बना हुआ है क्योंकि इस बार की थीम ‘एक्स कपल’ जो  काफी दिलचस्प है. इस शो में एक्स कपल के साथ जोड़ियां परफौर्म कर रही हैं.

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700 साल पुराना है ये पेड़

मानव जीवन की रक्षा के लिए जो पेड़ सालों से औक्‍सीजन देते रहे हैं. इसमें से ऐसा ही बरगद का एक पेड़ जो  है 700 साल पुराना है, जो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पेड़ है. यूं तो बरगद के पेड़ आमतौर पर कई सौ सालों तक जीते हैं, लेकिन तेलंगाना के महाबूबनगर जिले के पिल्ललमारी इलाके में मौजूद ये पेड़ करीब 700 सालों से इंसानों को औक्‍सीजन और छांव देता आ रहा है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक यह पेड़ इतना अधिक पुराना है कि इसे भारत ही नहीं पूरी दुनिया में दूसरे सबसे उम्रदराज पेड़ का खिताब मिला हुआ है. इस इलाके में रहने वाले लोगों की कई पीढि़यां इस बरगद की छांव में अपनी जिदंगी के कुछ यादगार पल बिता चुकी हैं, तभी तो इस पेड़ के उनका दिली जुड़ाव भी है.

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दीमक के  कारण इस बरगद की जड़ों से लेकर, शाखाएं और तने तक जगह जगह से खोखले हो चुके हैं. उसके चलते पेड़ पल-पल टूट रहा है. कई सौ साल पुराने इस पेड़ की ऐसी हालत न सिर्फ वहां रहने वाले लोगों को परेशान कर रही है, बल्कि पर्यावरण से जुड़े लोग भी पेड़ की हालत देखकर दुखी हैं. इलाकाई लोगों को जब इस विशालकाय बरगद की ऐसी दयनीय हालत का एहसास हुआ तो उन्‍होंने इस पेड़ को बचाने के लिए एक मुहिम सी चला दी है. जिसमें कई विशेषज्ञ भी शामिल हो चुके हैं.

फिलहाल इस पेड़ की जिंदगी बचाए रखने के लिए लोग पूरी तरह से इसके इलाज में जुटे हैं. हालात यह है कि पेड़ में लगी दीमक को खत्‍म करने के लिए सैकड़ों की संख्‍या में सलाइन ड्रिप से पेड़ के तने, शाखाओं और जड़ों में नमकीन पानी इंजेक्‍ट किया जा रहा है. उम्‍मीद की जा रही है कि ऐसा करने से यह बुजुर्ग पेड़ दीमक से मुक्‍त होकर धीरे धीरे स्‍वस्‍थ हो जाएगा.

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ऐसे बनाएं चिकन पकोड़े

अगर आप नौनवेज की शौकीन हैं तो आप शाम के नाश्ते में  चिकन पकोड़े जरूर बनाएं. ये खाने में काफी टेस्टी है और इसकी रेसिपी भी बहुत आसान है. तो आइए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री:

हल्दी- 1/4 टीस्पून,

नींबू का रस- 1 टीस्पून,

करी पत्ता- 5-6,

बेसन- 80 ग्राम,

चावल का आटा- 1 टेबलस्पून,

बोनलेस चिकन- 400 ग्राम,

लाल मिर्च- 2 टीस्पून,

धनिया पाऊडर- 1 टीस्पून,

अदरक-लहसुन पेस्ट- 1/2 टीस्पून,

नमक- 1 टीस्पून,

गरम मसाला- 1 टीस्पून,

सौंफ- 1 टीस्पून,

पानी- 70 मि.ली.,

तेल- तलने के लिए

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बनाने की विधि:

चिकन पकौड़ा बनाने के लिए एक कटोरी में 400 ग्राम बोनलेस चिकन ले लें.

अब इसमें दो चम्मच लाल मिर्च, एक चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट, आधा चम्मच नमक, एक चम्मच गरम मसाला, एक चम्मच जीरा व आधा चम्मच हल्दी डालकर अच्छे से मिक्स करें.

अब इसमें आधा चम्मच नींबू का रस डालकर 15 से 20 मिनट तक ढक कर रख दें. जिससे ये अच्छे से मैरीनेट हो जाए.

अब एक दूसरे कटोरे में 80 ग्राम बेसन, एक चम्मच चावल का आटा व 70 मिलीलीटर पानी डालकर पेस्ट बना लें.

अब एक पैन में औयल गर्म करके चिकन को बेसन के पेस्ट में लपेटकर डीप गोल्डन ब्राउन फ्राई करें.

अब इसे प्लेट में निकाल कर चटनी व टमाटो सौस के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

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चेहरे की झुर्रियों से राहत पाने के लिए अपनाएं ये 4 टिप्स

चेहरे की झुर्रियां आ जाने से आप अक्सर  परेशान होने लगते हैं और इससे राहत पाने के लिए आप कई   उपाय करते हैं. तरह तरह के क्रीम, लोशन आदि का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आपको कुछ खास फायदा नहीं होता  हैं.  झुर्रियों से राहत पाने के लिए घरेलू उपाय अपना सकते हैं. तो आइए जानते है  झुर्रियों से राहत पाने के लिए आप क्या करें.

नींबू और मलाई

नींबू और मलाई को आपस में मिलाकर चेहरे की झुर्रियों का हटाया जा सकता है. मलाई में मौजूद लैक्टिक एसिड चेहरे में निखार लाता है. नींबू के रस और मलाई को अच्छी तरह से मिलाकर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाकर छोड़ दें. चेहरे पर पेस्ट के सूख जाने के बाद चेहरा धो लें.

नींबू और गुलाब जल

नींबू और गुलाब जल का मिश्रण चेहरे पर आईं झुर्रियों को सही करने में बहुत सहायक होता है. आप नींबू और गुलाब जल के मिश्रण को रात में सोने से चेहरे पर लगाएं और कुछ देर हाथों से मसाज करें. सुबह उठने पर चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

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नींबू और चीनी

नींबू और चीनी की मदद से आप चेहरे की झुर्रियों को हटा सकते हैं. इसके लिए नींबू के रस को चीनी के साथ मिलाएं और इस पेस्ट को चेहरे पर लगाकर स्क्रब करें. कुछ देर के बाद चेहरे को हल्के गर्म पानी से चेहरा धो लें.

नींबू और औलिव औयल

चेहरे की झुर्रियां हटाने के लिए नींबू के रस को औलिव औयल में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद चेहरा धो लें. यह पेस्ट लगाने के बाद चेहरे से झुर्रियां हटाने में सहायक है. औलिव औयल से स्किन में कसावट आती है.

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4 टिप्स: कमर दर्द से ऐसे पाएं राहत

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं.

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और लंबे समय तक औफिस में बैठने से कमर दर्द की परेशानी होती है. पर अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है, आप एक्सरसाइजेज करते रहते हैं तो आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.  पर जिस तरह की लोगों की जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है, सबके लिए एक्सरसाइज कर पाना मुश्किल होता है. लोगों के पास उतना वक्त नहीं होता.  ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं जिसमें बिना पसीना बहाए, सिर्फ घर में बैठ कर आप कमर दर्द को दूर सर सकते हैं.

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  1. कुर्सी पर बैठ कर एक हाथ ऊपर की ओर ले जाएं और दूसरे हाथ की ओर झुकें. कम से कम 20 सेकेंड तक इस पोजिशन में रहें और दूसरे हाथ से भी ऐसा ही करें.

2. अपने हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ें और उसे ऊपर की ओर खीचें. इससे आपकी कमर में खिंचाव होगा. इस पोजिशन में 15 से 20 सेकेंड तक रहें और इसे 4 से 5 बार तक करें.

3. अपनी ऐड़ी को जमीन पर रख लें. उसे बिल्कुल सीधा रखें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर खींचे. इस दौरान अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें. इसे करीब 30 सेकेंड्स तक 5 से 6 बार करें.

4. कुर्सी पर बैठ कर अपने हाथों को अपनी जांघ के नीचे दबा लें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं. इससे आपकी कमर में खिचाव होगा. इसे 3 से 5 बार तक करें.

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मोह का जाल : भाग 1

‘‘तनु बेटा, जा कर तैयार हो जा. वे लोग आते ही होंगे,’’ मां ने प्यारभरी आवाज में मनुहार करते हुए कहा. ‘‘मां, मैं कितनी बार कह चुकी हूं कि मैं विवाह नहीं करूंगी. मुझे पसंद नहीं है यह देखने व दिखाने की औपचारिकता. मां, मान भी लो कि यह रिश्ता हो गया, तो क्या मैं सुखी वैवाहिक जीवन बिता पाऊंगी? जब भी उन्हें पता चलेगा कि मैं एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हूं तो क्या वे मुझे…’’ मैं आवेश में कांपती आवाज में बोली.

‘‘बेटा, तू ने मन में भ्रम पाल लिया है कि तुझे गंभीर बीमारी है. प्रदूषण के कारण आज हर 10 में से एक व्यक्ति इस बीमारी से पीडि़त है. दमा रोग आज असाध्य नहीं है. उचित खानपान, रहनसहन व उचित दवाइयों के प्रयोग से रोग पर काबू पाया जा सकता है. अनेक कुशल व सफल व्यक्ति भी इस रोग से ग्रस्त पाए गए हैं. ज्यादा तनाव, क्रोध इस रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं. हमारे खानदान में तो यह रोग किसी को नहीं है, फिर तू क्यों हीनभावना से ग्रस्त है?’’ मां ने समझाते हुए कहा.

‘‘तुम इस बीमारी के विषय में उन लोगों को बता क्यों नहीं देतीं,’’ मैं ने सहज होने का प्रयत्न करते हुए कहा.

‘‘तू नहीं जानती है, बेटी, तेरे डैडी ने 1-2 जगह इस बात का जिक्र किया था, किंतु बीमारी का सुन कर लड़के वालों ने कोई न कोई बहाना बना कर चलती बात को बीच में ही रोक दिया,’’ असहाय मुद्रा में मां बोलीं.

‘‘लेकिन मां, यह तो धोखा होगा उन के साथ.’’

‘‘बेटा, जीवन में कभीकभी कुछ समझौते करने पड़ते हैं, जिन्हें करने का हम प्रयास कर रहे हैं.’’ लंबी सांस से ले कर मां फिर बोलीं, ‘‘इतनी बड़ी जिंदगी किस के सहारे काटेगी? जब तक हम लोग हैं तब तक तो ठीक है, भाई कब तक सहारा देेंगे? अपने लिए नहीं तो मेरे और अपने डैडी की खातिर हमारे साथ सहयोग कर बेटा. जा, जा कर तैयार हो जा,’’ मां ने डबडबाई आंखों से कहा.

कुछ कहने के लिए मैं ने मुंह खोला किंतु मां की आंखों में आंसू देख कर होंठों से निकलते शब्द होंठों पर ही चिपक गए. अनिच्छा से मैं तैयार हुई. मन कह रहा था कि किसी को धोखा देना अपराध है. मन की बात मन में ही रह गई. भाई रंजन ने आ कर बताया कि वे लोग आ गए हैं. मां और डैडी स्वागत के लिए दौड़े. 2 घंटे कैसे बीते, पता ही नहीं चला. मनुज अत्यंत आकर्षक, हंसमुख व मिलनसार लगा. लग ही नहीं रहा था कि हम पहली बार मिल रहे हैं. पहली बार मन में किसी को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत हुई.

वे लोग चले गए, किंतु मेरे मन में उथलपुथल मच गई. क्या वे मुझे स्वीकार करेंगे? यदि स्वीकार कर भी लिया तो कच्ची डोर से बंधा बंधन कब तक ठहर पाएगा?

2 दिनों बाद फोन पर रिश्ते को स्वीकार करने की सूचना मिली तो बिना त्योहार के ही घर में त्योहार जैसी खुशियां छा गईं. डैडी बोले, ‘‘मैं जानता था रिश्ता यहीं तय होगा. कितना भला व सुशील लड़का है मनुज.’’

किंतु मैं खुश नहीं थी. जनमजनम के इस रिश्ते में पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है, सो, पता प्राप्त कर चुपके से एक पत्र मनुज के नाम लिख कर डाल दिया. धड़कते दिल से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी.

एक हफ्ता बीता, 2 हफ्ते बीते, यहां तक तीसरा भी बीत गया. उस के पत्र का कोई उत्तर नहीं आया. मनुज का विशाल व्यक्तित्व खोखला लगने लगा था. स्वप्न धराशायी होने लगे थे कि एक दिन कालेज से लौटी तो दरवाजे की कुंडी में 3-4 पत्रों के साथ एक गुलाबी लिफाफा था. उस का भविष्य इसी लिफाफे में कैद था. जीवन में खुशियां आने वाली हैं या अंधेरा, एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निर्णय कर देगा. पत्र खोल कर पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.

‘प्यारी तनु,मां आज किटी पार्टी में गई थीं. सो, बैग से चाबी निकाल कर ताला खोला. कड़कड़ाती ठंड में भी माथे पर पसीने  कीबूंदें झलक आई थीं. स्वयं को संयत करते हुए पत्र खोला. लिखा था :

तुम्हें जीवनसाथी के रूप में प्राप्त  कर मेरा जीवन धन्य हो जाएगा. तुम बिलकुल वैसी ही हो जैसी मैं ने कल्पना की थी.’

मन में अचानक अनेक प्रकार के फूल खिल उठे, सावन के बिना ही जीवन में बहार आ गई. चारों ओर सतरंगी रंग छितर कर तनमन को रंगीन बनाने लगे. मैं ने भी उन के पत्र का उत्तर दे दिया था.

2 महीने के अंदर ही वैदिक मंत्रों के मध्य अग्नि को साक्षी मान कर मेरा मनुज से विवाह हो गया. दुखसुख में जीवनभर साथ निभाने के कसमेवादों के साथ जीवन के अंतहीन पथ पर चल पड़ी. विदाई के समय मां का रोरो कर बुरा हाल था. चलते समय मनुज से बोली थीं, ‘‘बेटा, नाजुक सी छुईमुई कली है मेरी बेटी, कोई गलती हो जाए तो छोटा समझ कर माफ कर देना.’’

मेरी आंखें रो रही थीं किंतु मन नवीन आकांक्षाओं के साथ नए पथ पर छलांग मारने को आतुर था. कानपुर से फैजाबाद आते समय मनुज ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया था तथा धीरेधीरे सहला रहे थे, और मैं चाह कर भी नजरों से नजरें मिलाने में असमर्थ थी. कैसा है यह बंधन… अनजान सफर में अनजान राही के साथ अचानक तनमन का एकाकार हो जाना, प्रेम और अपनत्व नहीं, तो और क्या है.

ससुराल में खूब स्वागत हुआ. सास सौतेली थीं, किंतु उन का स्वभाव अत्यंत मोहक व मृदु लगा. कुछ ने कहा कि कमाऊ बेटा है इसीलिए उस की बहू का इतना सत्कार कर रही हैं. यह सुन कर सौम्य स्वभाव, मृदुभाषिणी सास के चेहरे पर दुख की लकीरें अवश्य आईं, किंतु क्षण भर पश्चात ही निर्विकार मूर्ति के सदृश प्रत्येक आएगए व्यक्ति की देखभाल में जुट जातीं.

ननद स्नेहा भी दिनभर भाभीभाभी कहते हुए आगेपीछे ही घूमती. कभी नाश्ते के लिए आग्रह करती तो कभी खाने के लिए. प्रत्येक आनेजाने वाले से भी परिचय करवाती. मनुज भी किसी न किसी काम के बहाने कमरे में ही ज्यादा वक्त गुजारते. मित्र कहते, ‘‘वह तो गया काम से. अभी से यह हाल है तो आगे क्या होगा?’’ मन चाहने लगा था, काश, वक्त ठहर जाए, और इसी तरह हंसीखुशी से सदा मेरा आंचल भरा रहे.

पूरे हफ्ते घूमनाफिरना लगा रहा. 2 दिनों बाद ऊटी जाने का कार्यक्रम था. देर रात्रि मनुज के अभिन्न मित्र के घर से हम खाना खा कर आए. पता नहीं ठंड लग गई या खानेपीने की अनियमितता के कारण सुबह उठी तो सांस बेहद फूलने लगी.

‘‘क्या बात है? तुम्हारी सांस कैसे फूलने लगी? क्या पहले भी ऐसा होता था?’’ मुझे तकलीफ में देख कर हैरानपरेशान मनुज ने पूछा.

‘‘मैं ने अपनी बीमारी के बारे में आप को पत्र लिखा था,’’ प्रश्न का समाधान करते हुए मैं ने कहा.

‘‘पत्र, कौन सा पत्र? तुम्हारे पत्र में बीमारी के बारे में तो जिक्र ही नहीं था.’’

लगा, पृथ्वी घूम रही है. क्या इन को मेरा पत्र नहीं मिला? मैं तो इन का पत्र प्राप्त कर यही समझती रही कि मेरी कमी के साथ ही इन्होंने मुझे स्वीकारा है. तनाव व चिंता के कारण घबराहट होने लगी थी. पर्स खोल कर दवा ली, लेकिन जानती थी रोग की तीव्रता 2-3 दिन के बाद ही कम होगी. दवा के रूप में प्रयुक्त होने वाला इनहेलर शरम व झिझक के कारण नहीं लाई थी. यदि किसी ने देख लिया और पूछ बैठा तो क्या उत्तर दूंगी.

बीमारी को ले कर इन्होंने घर सिर पर उठा लिया. इन का रौद्ररूप देख कर मैं दहल गई थी. आखिर गलती हमारी ओर से हुई थी. बीमारी को छिपाना ही भयंकर सिद्ध हुआ था. मेरा लिखा पत्र डाक एवं तार विभाग की गड़बड़ी के कारण इन तक नहीं पहुंच पाया था.

‘‘बेटा, आजकल के समय में कोई भी रोग असाध्य नहीं है. हम बहू का इलाज करवाएंगे. तुम क्यों चिंता करते हो?’’ मनुज को समझाते हुए सासससुर बोले.

‘‘पिताजी, मैं इस के साथ नहीं रह सकता. मैं ने एक सर्वगुणसंपन्न व स्वस्थ जीवनसाथी की तलाश की थी न कि रोगी की. क्या मैं इस की लाश को जीवनभर ढोता रहूंगा? अभी यह हाल है तो आगे क्या होगा?’’ कड़कती मुद्रा में ये बोले.

‘‘पापा, भैया ठीक ही तो कह रहे हैं,’’ स्नेहा, मेरी ननद ने भाई का समर्थन करते हुए कहा.

‘‘तुम चुप रहो. अभी छोटी हो, शादीविवाह कोई बच्चों का खेल नहीं है जो तोड़ दिया जाए,’’ पितासमान ससुरजी ने स्नेहा को डांटते हुए कहा.

‘‘मैं कल ही अपने काम पर लौट रहा हूं.’’ कुछ कहने को आतुर अपने पिता को चुप कराते हुए, मनुज घर से चले गए.

मनुज की बातों से व्याकुल सास मेरे पास आईं. मेरी आंखों से बहते आंसुओं को अपने आंचल से पोंछते हुए बोलीं, ‘‘बेटी घबरा मत, सब ठीक हो जाएगा. बेवकूफ लड़का है, इतना भी नहीं समझता कि बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है. इस की वजह से विवाह जैसे पवित्र संबंध को तोड़ा नहीं जा सकता. हां, इतना अवश्य है कि राजेंद्र भाईसाहब को बीमारी के संबंध में छिपाना नहीं चाहिए था.’’

‘‘मांजी, मम्मीपापा ने छिपाया अवश्य था, किंतु मैं ने इन्हें सबकुछ सचसच लिख दिया था. इन का पत्र प्राप्त कर मैं समझी थी कि इन्होंने मेरी बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया है, वरना मैं विवाह ही नहीं करती,’’ कहतेकहते आंचल में मुंह छिपा कर मैं रो पड़ी थी.

डाक्टर भी आ गए थे. रोग की तीव्रता को देख कर इंजैक्शन दिया तथा दवा भी लिखी. रोग की तीव्रता कम होने लगी थी, किंतु इन के जाने की बात सुन कर मन अजीब सा हो गया था. सारी शरम छोड़ कर सासूजी से कहा, ‘‘मम्मी, क्या ये एक बार, सिर्फ एक बार मुझ से बात नहीं कर सकते?’’

सासुमां ने मनुज से आग्रह भी किया, किंतु कोई भी परिणाम न निकला. जाते समय मैं भी सब के साथ बाहर आई. इन्होंने मां और पिताजी के पैर छुए, बहन को प्यार किया और मेरी ओर उपेक्षित दृष्टि डाल कर चले गए. सासुमां ने दिलासा देते हुए मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैं विह्वल स्वर में बोल उठी, ‘‘मां, मेरा क्या होगा?’’

इन्तकाम : भाग 8

संजीव निकहत से शादी के सपने अपनी आंखों में संजोए अपने शहर लौट आया. वह जल्द से जल्द अपने वकील से मिल कर मोनिका से तलाक के बारे में डिस्कस करना चाहता था. अपने शहर पहुंच कर जब संजीव मोनिका के बाप की दी हुई कोठी की जगह अपने पुराने बंगले में अपनी मां रजनीदेवी के पास पहुंचा तो उसको जो नयी बात पता चली, उसने उसकी सारी परेशानी बैठे-बिठाये ही हल कर दी. दरअसल टीवी चैनलों और अखबारों के जरिए उसके और निक्की खान के रोमान्स के चर्चे पहले ही मोनिका और उसके पिता सेठ राजनारायण तक पहुंच चुके थे. सेठ राजनारायण ने इस बात को लेकर संजीव के मां-बाप को काफी खरी-खोटी सुनायी थी और उनसे सारे सम्बन्ध खत्म कर लिये थे. मोनिका का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था. वह तो अब संजीव की शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी. यहां तक कि उसने खुद अपने वकील से मिलकर तलाक के कागजात तैयार करवा कर उसके घर भिजवा दिये थे, जिन पर सिर्फ संजीव को हस्ताक्षर भर करने थे. सेठ राजनारायण ने संजीव को अपने तमाम कारोबार और कोठी से बेदखल कर दिया था. यह सारी बातें संजीव की मां रजनीदेवी संजीव को फोन पर बताना चाहती थीं, मगर संजीव ने तो मुम्बई जाते ही अपना फोन नम्बर ही बदल दिया था. अखबारों के जरिए रजनीदेवी को पता चला था कि वह निक्की खान के साथ रह रहा है तो उन्होंने निक्की खान के बंगले पर भी कई बार फोन किया, लेकिन किसी ने उनकी बात संजीव से नहीं करवायी.

रजनीदेवी बदहवास सी अपने बेटे को यह तमाम बातें सुना रही थीं, मगर संजीव मोनिका के भेजे तलाक के पेपर्स में ही घुसा हुआ था. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सफलता इस तरह यहां खुद बाहें फैलाए उसका इंतजार कर रही थी. सेठ राजनारायण और मोनिक ने तो उसकी सारी परेशानियां हल कर दी थीं. वह बेहद खुश था. अब उसका रास्ता पूरी तरह साफ था. निकहत से शादी करने में अब कोई अड़चन ही शेष न थी.

संजीव अपने तलाक की डिक्री लेकर मुम्बई वापस लौटा तो उसके हर्ष की कोई सीमा न थी. प्रसन्नता के अतिरेक में उसने निकहत को अपनी बाहों में उठा लिया.

‘निकहत…’ वह खुशी से झूमता हुआ बोला, ‘ये देखो…’ उसने अटैची में से तलाक की डिक्री निकाल कर उसके सामने रख दी, ‘अब हमारी राह में कोई रुकावट नहीं है निकहत… अब हम एक हो सकते हैं… जो तुम चाहती थीं, वही हुआ… निकहत… निकहत…’ वह मारे खुशी के बदहवास हुआ जा रहा था.

‘हां संजीव, जो मैं चाहती थी वही हुआ…’ निकहत के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान आ गयी.

‘निकहत, अब हम जल्दी ही शादी कर लेंगे…’ वह व्यग्रता से बोला.

निकहत कुछ न बोली, वह बस एकटक उसका चेहरा देखती रही. संजीव के चेहरे में उसे एक लालची भेड़िया नजर आ रहा था… जो लालच का लार चुआती अपनी लाल-लाल जीभ लपलपाता हुआ उसे खा जाना चाहता था… निकहत के मुंह में एक कड़वाहट सी भर गयी.

‘तुम चुप क्यों हो निकहत…?’ वह उसे खामोश देखकर हैरानी से बोला, ‘क्या तुम खुश नहीं हो…?’

‘आज से ज्यादा खुशी तो मुझे कभी हासिल नहीं हुई, संजीव…’ निकहत की वाणी में व्यंग्य स्पष्ट था, मगर संजीव इस व्यंग्य को समझ नहीं पाया. वह तो खुशी के अथाह समन्दर में गोते लगा रहा था.

‘जी तो चाहता है मैं आज ही तुमसे शादी कर लूं निकहत…’ वह खुशी के अतिरेक में निकहत को अपनी बांहों में भर लेने को उतावला हो उठा, लेकिन निकहत उसकी बात सुनकर चार कदम पीछे हट गयी…

‘शादी…?’ कैसी बात कर रहे हो संजीव…? शादी-ब्याह तो बराबर वालों में होता है…’ उसके शब्दों में कठोरता आ गयी.

‘निकहत…?’ संजीव ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा.

‘हां संजीव, तुम्हीं ने तो कहा था कि इस मामले में परिवार, बिरादरी और स्टेटस हर चीज का ख्याल रखना पड़ता है, फिर तुम्हीं बताओ हमारी शादी भला कैसे हो सकती है? आखिर हमारे मुकाबले में तुम्हारा क्या स्टेटस है…?’

निकहत का एक-एक शब्द संजीव पर बम की भांति गिरा. वह समझ नहीं पा रहा था कि निकहत को आखिर हुआ क्या है?

‘निकहत… मैं तुमसे प्यार करता हूं…’ वह गिड़गिड़ाया.

‘प्यार…? ये शब्द तुम्हारी जुबान से अच्छा नहीं लगता संजीव… तुम और तुम्हारा प्यार तो मेरे लिए उसी दिन मर गया था, जब तुमने मेरे प्यार की कीमत दौलत से चुकानी चाही थी, वह भी उधार की दौलत से… और आज तो मैंने तुम्हारी लाश पर सिर्फ अपने इन्तक़ाम का कफ़न डाला है… संजीव आज जाकर मेरे दिल की धधकती हुई ज्वाला शान्त हुई है…’ निकहत के चेहरे से संजीव के लिए गहरी नफरत टपक रही थी.

संजीव का चेहरा क्रोध से लाल हो गया, ‘मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ूंगा नागिन…’ वह फुंफकारता हुआ उसकी ओर झपटा.

‘खबरदार… तुम खुद यहां से जिन्दा बचकर नहीं जा पाओगो, अपने पीछे देखो…’ निकहत चीखी.

वह पीछे की ओर पलटा तो दो हथियारबंद गार्डों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया.

‘कमीनी…’ उसके मुंह से निकहत के लिए गालियों की बौछार निकलने लगी… वह गार्ड की पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश करता हुआ चीखा, ‘आखिर तूने अपना त्रियाचरित दिखा ही दिया…’

‘त्रियाचरित का ये खेल मैंने तुम्हीं से सीखा है संजीव…’ निकहत  ने शान्ति से जवाब दिया, ‘याद रखो औरत अगर बदला लेने पर आ जाए तो इस दुनिया की तो क्या, खुदा की ताकत भी उसे रोक नहीं सकती है. मुझे खुशी है कि आज मैंने अपने सबसे बड़े दुश्मन से अपना इन्तक़ाम ले लिया…’

‘गार्ड… इसके हाथ-पैर बांध दो…’ उसने अपने सुरक्षागार्डों को आज्ञा दी और खुद फोन पर कोई नम्बर डायल करने लगी.

अगली सुबह मीडिया चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज और समाचार पत्रों की मुख्य खबर थी –

‘मशहूर पौप सिंगर निक्की खान को कत्ल करने की कोशिश में संजीव गोयल हथियार सहित गिरफ्तार.’

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