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Short HIndi Story : कठपुतली बन गई सुखिया

Short HIndi Story : सुरेंद्र सुखिया की जवानी पर फिदा था. उस के भरे उभारों, मांसल जिस्म और तीखे नैननक्श को देख कर दूसरे लोगों की तरह ही कई बार सुरेंद्र की नीयत भी बिगड़ गई थी. पिछले दिनों सुखिया के पति की ट्रक की टक्कर से मौत हो गई थी. जमींदार के बिगड़े बेटे सुरेंद्र के लिए तो यह सोने पे सुहागा हो गया था, इसलिए कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.

इस बीच सुखिया लोगों के घर बरतन मांज कर कुछ पैसे कमा लेती थी. एक वकील ने उस से मिल कर उस के पति के बीमे के पैसे के लिए उसे तैयार किया और केस लगा दिया था.

एक दिन सुरेंद्र ने सुखिया से कहा, ‘‘तू कोर्टकचहरी के चक्कर में कहां पड़ी है. जितना तुझे बीमा से मिलेगा, उस से दोगुना मैं तुझे देता हूं. बस, तू एक बार राजी हो जा.’’

सुखिया उस की बात को अनसुना कर देती. सुखिया की गरीबी और जवानी का हर कोई फायदा उठाना चाहता था, इसलिए एक दिन वकील ने कहा, ‘‘सुखिया, तेरा केस लड़तेलड़ते मैं थक गया हूं. अब एक दिन घर आ जा, तो थकान मिट जाए.’’

सुखिया एक दिन कचहरी आ रही थी, तभी उस का केस देखने वाला जज सामने टकरा गया और बोला, ‘‘सुखिया, तेरा केस तो एक ही बार में खत्म कर दूंगा और पैसा भी बहुत दिलवा दूंगा. बस, तू मुझ से मिलने आ जा.’’

लेकिन सुखिया किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती. बस, अपने चेहरे पर दिलफेंक मुसकराहट ला देती. आखिरकार जज साहब ने 2 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला ले लिया. जज और वकील की मिलीभगत थी, इसलिए और्डर की कौपी वकील ने ले ली और हिसाब पूरा करने के बाद उसे सुखिया को देने के लिए राजी हो गया.

कचहरी में चैक बनाने वाले बाबू ने जब सुखिया को देखा, तो उस का भी ईमान डोल गया. वह सुखिया को चैक देने के बहाने बुलाने लगा और सामने बैठा कर उस के उभारों पर नजर गड़ाए रखता.

एक दिन बाबू ने कहा, ‘‘तेरी फाइल और चैक के ऊपर सभी के दस्तखत होंगे, तभी मिलेगा.’’ सुखिया ने परेशान हो कर कहा, ‘‘बाबू, कुछ पैसा चाहिए तो ले लो, क्यों रोजरोज परेशान करते हो?’’

इस पर बाबू उसे अपनी बातों में बहला लेता था. एक दिन जब सुखिया आई, तब बाबू ने कहा, ‘‘मैं फाइल और चैक तैयार रखूंगा. तुम आ जाना, फिर वहीं सब के दस्तखत करा कर चैक दे देंगे.’’ सुखिया इस के लिए तैयार हो गई.

यह खबर जब दारोगा को मिली, तो वह भी इस में शामिल हो गया. इस से यह डर भी खत्म हो गया कि अगर सुखिया ने कहीं शिकायत वगैरह की, तो कुछ नहीं होगा. बाबू की पत्नी मायके गई थी, इसलिए सुखिया को उसी के कमरे में बुलाया.

सुखिया ने वहां पहुंच कर परेशान होते हुए कहा, ‘‘अब तो चैक पर दस्तखत कर के दे दो, क्यों इतना परेशान कर रहे हो?’’ कचहरी के बाबू ने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘सुखिया, ऐसी भी क्या जल्दी है, थोड़ा रुको तो.’’

इधर सुखिया कसमसाती रही, उधर फाइलचैक पर दस्तखत होते रहे.

Online Hindi Story : निसंतान मां की जुड़वां बेटियां

Online Hindi Story : बनारस के पक्का महल इलाके के इस घर में टिया और रिया के रोने की आवाजें सुनसुन कर आसपास के लोगों को भी चैन नहीं आ रहा था. यह समय भी तो ऐसा ही था. महामारी ने लोगों को मजबूर कर दिया था. वे चाह कर भी इन 8 साल की जुड़वां बहनों को गले लगा कर चुप नहीं करवा पा रहे थे. कोरोना देखते ही देखते इन बच्चियों का सबकुछ छीन ले गया था. दादादादी रामशरण और सुमन और टिया व रिया के मम्मीपापा सब एकएक कर के कोरोना के शिकार होते गए थे. अब ये बच्चियां हर तरफ से अकेली थीं. कोई नहीं था जो इन के सिर पर हाथ रखता. पड़ोसी सावधानी बरतते हुए किसी तरह खाने के लिए कुछ दे जाते. शाम होतेहोते बच्चियां डर कर ऐसे रोतीं कि सुनने वालों के दिल दहलते.

इन घरों की बनावट किसी बंद किले से कम न थी. घर का मुख्य दरवाजा बंद होते ही बाहर की दुनिया जैसे कट जाती. बस, घर में काम करने वाली दया कोरोना के माहौल की परवा न करते हुए इन बच्चियों के पास ही रुक गई थी. सो, दोनों को घर में एक इंसान तो दिख रहा था. इस गली में सभी घर बाहर से एकदम बंद से दिखते.

यह भी बहुत पुराना बना मकान था. सब से नीचे ग्राउंडफ्लोर पर दया के लिए एक छोटा सा कमरा और वाशरूम था. दया यहां सालों से थीं. पुराने सामान से भरा एक स्टोर था. घर का बड़ा सा दरवाजा बंद ही रहता. उसे खोलने के लिए एक बड़ी सी चेन कुछ इस तरह से बंधी रहती कि उसे खींच कर ऊपर से भी दरवाजा खोला जा सके. पहले ऊपर से देख लिया जाता कि कौन है, फिर दरवाजा खोला जाता. सुरक्षा की दृष्टि से तो घर पूरी तरह सेफ था पर अकेला घर अब अजीब से सन्नाटे में घिरा रहता. बच्चियों को तो क्या कहा जाए, खुद दया का दिल इस सन्नाटे पर हौलता सा रहता.

पहली मंजिल पर रामशरण और सुमन का बड़ा सा बैडरूम था जिस में सब सुविधाएं थीं. दूसरी मंजिल पर एक बैडरूम संजय और मधु का था और एक कमरा बच्चियों का था. किचन पहली मंजिल पर ही था. जहां टिया और रिया सारे दिन ऊपरनीचे दौड़ा करतीं थीं वहां अब पूरा दिन, बस, दया के आगेपीछे रोतींसिसकतींघूमतीं और फिर थक कर अपने कमरे में जा कर चुपचाप लेटी रहतीं.

अपने अंतिम दिनों में जब मधु को एहसास हुआ कि वे भी नहीं बचेंगीं तो उन्होंने लखनऊ में रहने वाले अपने भाई अनिल को फोन कर के कहा था, ‘अनिल, बड़ी मुश्किल से तुम से बात कर रही हूं. सुनो, हमारे बाद टिया और रिया का ध्यान रखोगे न? उन के बारे में सोचसोच कर किसी पल चैन नहीं आ रहा है, मेरी बच्चियां…’ यह कहतेकहते मधु फूटफूट कर रो पड़ी थीं. अनिल ने कहा था, ‘दीदी, आप बस ठीक हो जाओ, सब ठीक होगा, चिंता न करो, मैं हूं न. सब संभाल लूंगा.’

टिया व रिया का परिवार एक बार जो हौस्पिटल गया, लौटा ही नहीं था. कुछ पड़ोसियों ने अनिल को फोन किया. सब परेशान थे कि इन बच्चियों का होगा क्या. सभी उन की दूरदूर से देखभाल कर रहे थे, पर कितने दिन. अनिल कुछ दिन बाद ही बनारस आया. बच्चियों की हालत देख कर हैरान रह गया. एकदम फूल सी खिली रहने वाली बच्चियां मुरझा सी गई थीं. उस से लिपटलिपट कर दोनों खूब रोईं, “मामा, अब मत जाना कहीं, हमारे साथ ही रहना.”

दया ही खाना बना कर दोनों को खिलाती, जो हो सकता, उन के लिए करती. पर उस की भी एक सीमा थी न. अनिल के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, “भैया जी, बच्चियों का क्या होगा? आप इन्हें अपने साथ ले जाएंगे? मैं भी कब तक यहां रहूंगी?”

“क्यों, क्यों नहीं रह सकती? देखता हूं कि दीदी की अलमारी में कुछ पैसे रखे हों तो कुछ ले लो, और रहो बच्चियों के साथ, तुम्हारा कौन सा घरपरिवार है.”

अनिल ने टिया को पुचकारा, “बेटा, मम्मी की अलमारी की चाबी है न?”

“मामा, दया मौसी के ही पास है.”

अनिल ने दया की तरफ घूर कर देखा तो उस ने कहा, “जिस दिन संजय भैया नहीं रहे, उसी दिन मधु दीदी को शायद अपने जाने की आशंका भी हो गई थी. उन्होंने मुझे चाबी रेखा दीदी के यहां जा कर देने के लिए कहा था पर मैं बच्चियों को छोड़ कर निकल ही नहीं पाई. फिर वे आती भी हैं तो मैं ही भूल जाती हूं चाबी उन्हें देना.”

“कौन रेखा?”

“संजय भैया के साथ उन के औफिस में काम करती हैं. इसी गली में आगे जा कर रहती हैं. इस समय बच्चियों के पास, बस, वही आतीजाती हैं.”

“लाओ, चाबी मुझे दो.”

दया उसे चाबी देना तो नहीं चाह रही थी पर मजबूर थी, दे दी. अनिल ने मधु की अलमारी खोली, उस में रखे रुपयों में से कुछ दया को देते हुए कहा, “ये रख लो, बच्चों की देखभाल तुम्हें करनी है.”

“पर मैं कब तक करूंगी? आप इन्हें अपने साथ ले जाते, तो अच्छा होता.”

“नहीं, मैं नहीं ले जा पाऊंगा.”

टिया और रिया यह सुन कर रोने लगीं. अनिल ने मधु की अलमारी से काफीकुछ निकाल कर अपने बैग में रखते हुए कहा, “मैं जल्दी ही वापस आऊंगा, अभी मुझे जाना होगा.”

बच्चियां रोती रह गईं. उन के मामा को उन से कोई स्नेह न था. झूठे दिलासे दे कर वह चला गया. रेखा एक उदार महिला थीं, संजय के औफिस में ही काम करती थीं. संजय और मधु उन्हें घर का सदस्य ही मानते थे. मधु से उन की अच्छी दोस्ती थी. अगले दिन रेखा टिया और रिया से मिलने आईं, तो उन के लिए काफी चीजें बना कर लाईं थीं. दोनों को उन्होंने अपने सीने से लगा लिया और रोने लगीं. बड़ा नरम दिल था उन का. दोनों के बारे में सोचसोच कर उन्हें चैन न आता, क्या होगा इन का? दया स्थायी रूप से तो इन के साथ नहीं रह पाएगी, यह वे जानती थीं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. दया ने अनिल के बारे में बताया तो रेखा हैरान रह गईं. अलमारी खोल कर देखा तो नाम की धनराशि छोड़ अनिल सब ले गया था. उन का मन वितृष्णा से भर गया. इस स्थिति में भी जो इंसान बेईमानी से काम ले, लूटपाट कर जाए, वह इंसान है भी क्या? रात को वे टिया और रिया के सोने के बाद ही घर गईं.

दया को इस बार रेखा बहुतकुछ समझा कर गईं. यह समय किसी पर भी विश्वास करने का नहीं था. बच्चियों के भविष्य की चिंता करते हुए उन्होंने उसी महल्ले में रहने वाले वकील जयदेव को अगले दिन ही फोन किया और बहुत देर तक उन से इस बारे में बातें करती रहीं.

2 दिनों बाद ही जौनपुर में रहने वाली, टिया रिया की बूआ, नीना आ कर रोनेकलपने लगीं, “हाय, अभागिन बच्चियां, सब चला गएन, हमार अम्मा, बाबूजी, भैया, भौजी सब चला गएन, इंकर का होये…” सीने पर दोहत्थड़ मारमार कर रोने का ऐसा नाटक किया कि बच्चियां डर कर ही रोने लगीं. दया ने कहा, “दीदी, अपने को संभालो, बच्चियां परेशान हो रही हैं.”

नहाधो कर खूब डट कर खाने के बाद नीना आराम से गहरी नींद सो गई, तो दया ने रेखा को उन के आने के बारे में बता दिया. रेखा ने जो सोचा था, उस की तैयारी करने लगीं. नीना सो कर उठी, तो पहली मंजिल पर स्थित रामशरण और सुमन के कमरे में जाने लगी जो उन की मृत्यु के बाद अकसर बंद ही रहता था. दया उस के पीछेपीछे जाने लगी तो नीना ने रुखाई से कहा, “तू आपन काम करा, हमरे पीछे काहे आवत आहा? अपने अम्माबाबूजी के कमरा मा का हम दुई मिनट बैठियू नाही सकित?”

दया बाहर चली गई पर उस ने खिड़की की झिर्री से देखा, नीना जल्दीजल्दी दिवंगत मातापिता की अलमारी खंगाल रही है. दया ने जल्दी से रेखा को फोन किया. रेखा ने जयदेव को फोन कर के बात की और थोड़ी ही देर में बच्चियों के पास पहुंच गईं. नीना अभी तक अपने मातापिता की एकएक चीज खंगालने में लगी हुई थी. दया ने जा कर उन्हें बताया, “दीदी, रेखा दीदी आईं हैं.”

नीना पहले भी आनेजाने पर रेखा से मिल चुकी थी. आतेजाते उन से जितनी भी बातें हुई थीं, रेखा से मन ही मन थोड़ा दूरी सी ही रखी थी. रेखा को देख कर जोरजोर से रोने लगी, “हाय, हम अनाथ हो गए, सब चला गएन.” रेखा ने मन ही मन इस नाटक की सराहना की और कहा, “जो हो गया, लौटाया नहीं जा सकता. अब तो बच्चियों के भविष्य की चिंता करनी है.”

जयदेव भी आ गए थे. रेखा ने जयदेव की सलाह पर अपने 2 अच्छे पड़ोसियों को पूरी बात बता कर आने के लिए कह दिया था. वे भी समय से पहुंच गए थे. दया सब के लिए चाय बनाने चली गई. रेखा ने कहा, “दीदी, आप बच्चियों को अपने साथ ले जाएंगी? आजकल तो औनलाइन क्लासेस चल रही हैं, कैसे कर पाएंगी टिया और रिया अपनी पढ़ाई. अभी भी सब छूट रहा है दोनों का. मैं ने इन की टीचर से बात तो की है पर इन्हें एक परिवार चाहिए. दया सबकुछ तो नहीं कर पाएगी न.”

“न, न, बड़ी मुश्किल अहै हमरे साथे, हम बहुत बीमार रहित हा, हम इनकर देखभाल न कय पाउब.”

रेखा ने एक नजर उन के हृष्टपुष्ट शरीर पर डाली और पूछ लिया, “दीदी, क्या हुआ आप को? संजय और मधु ने तो मुझे कभी बताया नहीं कि आप की तबीयत खराब रहती है.‘’

कुछ हुआ हो तो नीना बताती, बात बदल दी, “अउर सोचा कुछ, बच्चियन कहां रहिएं, यहां भी दया के साथ ही रह लें तो बुराई का अहै? धीरेधीरे सब सीख ही लैइहें, थोड़ी बड़ी होतीं तो हम अपने साथ ले जाती पर अभी तो इन्हें बहुत देखभाल की जरूरत है जो हम तो न कर पाउब, मधु के मायके वालों से पूछ लो.”

रेखा ने अनिल को फोन मिला लिया और वीडियोकौल पर उस से इस बारे में बात की. उस ने किसी भी तरह की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया जो जयदेव ने रिकौर्ड भी कर लिया. अब नीना थोड़ी उलझी, पूछा, “ई कौन है?”

“जयदेव जी हैं, वकील हैं, संजय के पडोसी भी हैं और इस मामले मैं बच्चियों के लिए क्या बेहतर होगा, यही बात करने हम अभी आए हैं.”

जयदेव ने गंभीर स्वर में कहना शुरू किया, “हमें पहले सारे सामान की सूची बनानी है जिस से बच्चियों का हक कोई मार न ले जाए. जो भी सामान घर में है, बच्चियों का हक है उस पर, आप लोगों में से कोई भी बच्चियों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है तो मैं इस समय टिया और रिया से ही पूछ लेता हूं कि वे किस के साथ रहना चाहती हैं,” कह कर उन्होंने दया से कहा, “बच्चियों को बुला दो, दया बहन.”

बच्चियां सीधे आते ही आदतन रेखा से सट कर बैठ गईं. जयदेव ने पूछा, “बेटा, आप ही बताओ कि आप किस के साथ रहना चाहती हो? अकेले तो नहीं रह पाओगी न, बेटा.”

टिया और रिया ने एकदूसरे का मुंह देखा, झुक कर एकदूसरे के कान में कुछ कहा और रेखा से चिपट गईं, एक साथ बोलीं, “रेखा आंटी के साथ रहना है.”

रेखा ने भावविभोर हो कर दोनों को सीने से चिपटा लिया, आंसू बह निकले, “मेरी बच्चियां, हां, मेरे साथ रहेंगीं.”

नीना के चेहरे पर बला टलने वाले भाव आए और झेंपती हुई वह मुसकरा दी. पड़ोसी रोहित और सुधा ने भी उठ कर बच्चियों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ”हां, रेखा आंटी के साथ रहना और हम भी हैं ही, तुम हमारा ही परिवार हो अब, बेटे.”

बच्चियां बहुत दिन बाद मुसकराई थीं. दया ने अपनी आंखें पोंछीं. जयदेव ने कहा, ”कानूनी प्रक्रिया तो मैं संभाल ही लूंगा, अब कोई चिंता नहीं. पहले जरा आज ही हम सारे सामान की एक एक लिस्ट बना लें,’’ फिर नीना की तरफ देखते हुए पूछ लिया, ”अभी आप ने किसी की अलमारी से कुछ लिया तो नहीं है न?”

”न, न, मैं तो अपने मांपिताजी की एकएक चीज उन की याद में देख रही थी. काफी सामान संभाल कर रखा है अम्मा ने. पता नहीं कितना सोनाचांदी रखा है अम्मा ने. कबहूं बताउबै नाही किहिन,’’ लालच से भरा स्वर सब को दुखी कर गया. यह समय ऐसा था कि सिर्फ बच्चियों के बारे में सोचा जाना चाहिए था पर बच्चियों के मामा और बूआ को घर में रखे रुपए पैसे और कीमती सामान में ज्यादा रुचि है. यह बात सब का दिल दुखा गई थी. वहीं, रेखा की निस्वार्थ दोस्ती और स्नेह से भरे दिल पर सब को गर्व हो आया.

जयदेव ने वहीँ बैठेबैठे अपना काम शुरू किया और रोहित व सुधा रेखा और दया के साथ मिल कर अब एकएक सामान एक फाइल में नोट करते जा रहे थे. बच्चियां दया से पूछ रही थीं, ”मौसी, यहां अब आप अकेली रहोगी?”

”नहीं, मैं भी गांव जाऊंगी, वहां मेरा घर है. जब भी तुम कहोगी, वापस आ जाऊंगी और बीचबीच में तुम से मिलने आती भी रहूंगी.”

”मौसी, अब रात को अकेला भी नहीं सोना पड़ेगा न हमें?”

”हां, मेरी बच्चियो, अब कोई डर की बात नहीं. हिम्मत रखना,” कह कर दया ने उन के सिर पर प्यारभरा हाथ रखा और दुखी, मासूम से चेहरे चूम लिए. टिया और रिया रेखा के पीछेपीछे घूम रही थीं. जीवनभर नन्हे हाथों के स्पर्श को तरसा मन जैसे नजरों ही नजरों में उन पर स्नेह लुटा रहा था. रेखा निसंतान थीं. पति की मृत्यु कुछ साल पहले हो गई थी. आज बच्चियों को अपने साथसाथ चलते देख, उन के मुसकराते चेहरे देख दिल को ऐसी ठंडक सी मिली थी जिसे वे किसी को भी समझा नहीं सकती थीं.

Romantic Story : क्या था रवि और सीमा का नायाब तरीका?

Romantic Story : जिस सुंदर, स्मार्ट महिला को मैं रहरह कर देखे जा रहा था, वह अचानक अपनी कुरसी से उठ कर मेरी तरफ मुसकराती हुई बढ़ी तो एअरकंडीशंड बैंकेट हौल में भी मुझे गरमी लगने लगी थी.

मेरे दोस्त विवेक के छोटे भाई की शादी की रिसैप्शन पार्टी में तब तक ज्यादा लोग नहीं पहुंचे थे. उस महिला का यों अचानक उठ कर मेरे पास आना सभी की नजरों में जरूर आया होगा.

‘‘मैं सीमा हूं, मिस्टर रवि,’’ मेरे नजदीक आ कर उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय दिया. मैं उस के सम्मान में उठ खड़ा हुआ. फिर कुछ हैरान होते हुए पूछा, ‘‘आप मुझे जानती हैं?’’ ‘‘मेरी एक सहेली के पति आप की फैक्टरी में काम करते हैं. उन्होंने ही एक बार क्लब में आप के बारे में बताया था.’’

‘‘आप बैठिए, प्लीज.’’

‘‘आप की गरदन को अकड़ने से बचाने के लिए यह नेक काम तो मुझे करना ही पड़ेगा,’’ उस ने शिकायती नजरों से मेरी तरफ देखा पर साथ ही बड़े दिलकश अंदाज में मुसकराई भी.

‘‘आई एम सौरी, पर कोई आप को बारबार देखने से खुद को रोक भी तो नहीं सकता है, सीमाजी. मुझे नहीं लगता कि आज रात आप से ज्यादा सुंदर कोई महिला इस पार्टी में आएगी,’’ उस की मुसकराने की अदा ही कुछ ऐसी थी कि उस ने मुझे उस की तारीफ करने का हौसला दे दिया.

‘‘कुछ सैकंड की मुलाकात के बाद ही ऐसी झूठी तारीफ… बहुत कुशल शिकारी जान पड़ते हो, रवि साहब,’’ उस का तिरछी नजर से देखना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा गया.

‘‘नहीं, मैं ने तो आज तक किसी चिडि़या का भी शिकार नहीं किया है.’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इतने भोले लगते तो नहीं हो. क्या आप की शादी हो गई है?’’

‘‘हां, कुछ महीने पहले ही हुई है और तुम्हारे पूछने से पहले ही बता देता हूं कि मैं अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट व खुश हूं.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस, रियली.’’

‘‘जिस को घर का खाना भर पेट मिलता हो, उस की आंखों में फिर भूख क्यों?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांकते हुए पूछा.

‘‘कभीकभी दूसरे की थाली में रखा खाना ज्यादा स्वादिष्ठ प्रतीत हो तो इनसान की लार टपक सकती है,’’ मैं ने भी बिना शरमाए कहा.

‘‘इनसान को खराब आदतें नहीं डालनी चाहिए. कल को अपने घर का खाना अच्छा लगना बंद हो गया तो बहुत परेशानी में फंस जाओगे, रवि साहब.’’

‘‘बंदा संतुलन बना कर चलेगा, तुम फिक्र मत करो. बोलो, इजाजत है?’’

‘‘किस बात की?’’ उस ने माथे पर बल डाल लिए.

‘‘सामने आई थाली में सजे स्वादिष्ठ भोजन को जी भर कर देखने की? मुंह में पानी लाने वाली महक का आनंद लेने की?’’

‘‘जिस हिसाब से तुम्हारा लालच बढ़ रहा है, उस हिसाब से तो तुम जल्द ही खाना चखने की जिद जरूर करने लगोगे,’’ उस ने पहले अजीब सा मुंह बनाया और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘क्या तुम वैसा करने की इजाजत नहीं दोगी?’’ उस की देखादेखी मैं भी उस के साथ खुल कर फ्लर्ट करने लगा.

‘‘दे सकती हूं पर…’’ वह ठोड़ी पर उंगली रख कर सोचने का अभिनय करने लगी.

‘‘पर क्या?’’

‘‘चिडि़या को जाल में फंसाने का तुम्हारा स्टाइल मुझे जंच नहीं रहा है. मन पर भूख बहुत ज्यादा हावी हो जाए तो इनसान बढि़या भोजन का भी मजा नहीं ले पाता है.’’

‘‘तो मुझे सिखाओ न कि लजीज भोजन का आनंद कैसे लिया जाता है?’’ मैं ने अपनी आवाज को नशीला बनाने के साथसाथ अपना हाथ भी उस के हाथ पर रख दिया.

‘‘मेरे स्टूडैंट बनोगे?’’ उस की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी.

‘‘बड़ी खुशी से, टीचर.’’

‘‘तो पहले एक छोटा सा इम्तिहान दो, जनाब. इसी वक्त कुछ ऐसा करो, जो मेरे दिल को गुदगुदा जाए.’’

‘‘आप बहुत आकर्षक और सैक्सी हैं,’’ मैं ने अपनी आवाज को रोमांटिक बना कर उस की तारीफ की.

‘‘कुछ कहना नहीं, बल्कि कुछ करना है, बुद्धू.’’

‘‘तुम्हें चूम लूं?’’ मैं ने शरारती अंदाज में पूछा.

‘‘मुझे बदनाम कराओगे? मेरा तमाशा बनाओगे?’’ वह नाराज हो उठी.

‘‘नहीं, सौरी.’’

‘‘जल्दी से कुछ सोचो, नहीं तो फेल कर दूंगी,’’ वह बड़ी अदा से बोली.

उस के दिल को गुदगुदाने के लिए मुझे एक ही काम सूझा. मैं ने अपना पैन  जेब से निकाल कर गिरा दिया और फिर उसे उठाने के बहाने झुक कर उस का हाथ चूम लिया.

‘‘मैं पास हुआ या फेल, टीचर?’’ सीधा होने के बाद जब मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो शर्म से उस के गोरे गाल गुलाबी हो उठे.

‘‘पास, और अब बोलो क्या इनाम चाहिए?’’ उस ने शोख अदा से पूछा.

‘‘अब इसी वक्त तुम कुछ ऐसा करो जिस से मेरा दिल गुदगुदा जाए.’’

‘‘मेरे लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है,’’ कह वह मेरा हाथ थाम डांस फ्लोर की तरफ चल पड़ी.

उस रूपसी के साथ चलते हुए मेरा मन खुश हो गया. उधर लोग हमें हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे.

डांस फ्लोर पर कुछ युवक और बच्चे डीजे के तेज संगीत पर नाच रहे थे. सीमा ने बेहिचक डांस करना शुरू कर दिया. मेरा ध्यान नाचने में कम और उसे नाचते हुए देखने में ज्यादा था. क्या मस्त हो कर नाच रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उस के अंगअंग में बिजली भर गई हो. आंखें यों अधखुली सी थीं मानो कोई सुंदर सपना देखते हुए किसी और दुनिया में पहुंच गई हों.

करीब आधा घंटा नाचने के बाद हम वापस अपनी जगह आ बैठे. मैं खुद जा कर 2 कोल्डड्रिंक ले आया.

‘‘थैंक यू, रवि पर मेरा दिल कुछ और पीने को कह रहा है,’’ उस ने मुसकराते हुए कोल्डड्रिंक लेने से इनकार कर दिया.

‘‘फिर क्या लोगी?’’

‘‘ताजा, ठंडी हवा की मिठास के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘बड़ा नेक खयाल है. मैं ने कुछ दिन पहले ही घर में नया एसी. लगवाया है. वहीं चलें?’’

‘‘बच्चे, इस टीचर की एक सीख तो इसी वक्त गांठ बांध लो. जिस का दिल जीतना चाहते हो, उस के पहले अच्छे दोस्त बनो. उस के शौक, उस की इच्छाओं व खुशियों को जानो और उन्हें पूरा कराने में दिल से दिलचस्पी लो. अपने फायदे व मन की इच्छापूर्ति के लिए किसी करीबी इनसान का वस्तु की तरह से उपयोग करना गलत भी है और मूर्खतापूर्ण भी,’’ सीमा ने सख्त लहजे में मुझे समझाया तो मैं ने अपना चेहरा लटकाने का बड़ा शानदार अभिनय किया.

‘‘अब नौटंकी मत करो,’’ वह एकदम हंस पड़ी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर उठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी कार में ठंडी हवा का आनंद लेने हम कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘वाह, तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे लौंग ड्राइव पर जाना बहुत पसंद है?’’ मैं ने बहुत खुश हो कर पूछा.

‘‘अरे, मुझे तो दूल्हादुलहन को सगुन भी देना है. तुम यहीं रुको, मैं अभी आया,’’ कह कर मैं स्टेज की तरफ चलने को हुआ तो उस ने मेरा बाजू थाम कर मुझे रोक लिया. बोली, ‘‘अभी चलो, खाना खाने को तो लौटना ही है. सगुन तब दे देना,’’ और फिर मुझे खींचती सी दरवाजे की तरफ ले चली.

‘‘और अगर नहीं लौट पाए तो?’’ मैं ने उस के हाथ को अर्थपूर्ण अंदाज में कस कर दबाते हुए पूछा तो वह शरमा उठी.

कुछ देर बाद मेरी कार हाईवे पर दौड़ रही थी. सीमा ने मुझे एसी. नहीं चलाने

दिया. कार के शीशे नीचे उतार कर ठंडी हवा के झोंकों को अपने चेहरे व केशों से खेलने दे रही थी. वह आंखें बंद कर न जाने कौन सी आनंद की दुनिया में पहुंच गई थी.

कुछ देर बाद हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई पर उस ने फिर भी खिड़की का शीशा बंद नहीं किया. आंखें बंद किए अचानक गुनगुनाने लगी.

गाते वक्त उस के शांत चेहरे की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना असंभव था. उस का मूड न बदले, इसलिए मैं ने बहुत देर तक एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला.

गाना खत्म कर के भी उस ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. अचानक उस का हाथ मेरी तरफ बढ़ा और वह मेरा बाजू पकड़ कर मेरे नजदीक खिसक आई.

‘‘भूख लग रही हो तो लौट चलें?’’

मैं ने बहुत धीमी आवाज में उस की इच्छा जाननी चाही.

‘‘तुम्हें लग रही है भूख?’’ बिना आंखें खोले वह मुसकरा पड़ी.

‘‘अब हम जो करेंगे, वह तुम्हारी मरजी से करेंगे.’’

‘‘तुम तो बड़े काबिल शिष्य साबित हो रहे हो, रवि साहब.’’

‘‘थैंक यू, टीचर. बोलो, कहां चलें?’’

‘‘जहां तुम्हारी मरजी हो,’’ वह मेरे और करीब खिसक आई.

‘‘तब खाना खाने चलते हैं. यह चुनाव तुम करो कि शादी का खाना खाना है या हाईवे के किसी ढाबे का.’’

‘‘अब भीड़ में जाने का मन नहीं है.’’

‘‘तब किसी अच्छे से ढाबे पर रुकते…’’

‘‘बच्चे, एक नया सबक और सीखो. लोहा तेज गरम हो रहा हो, तो उस पर चोट करने का मौका चूकना मूर्खता होती है,’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा तो मेरी रगरग में खून तेज रफ्तार से दौड़ने लगा.

‘‘बिलकुल होगी, टीचर. अरे, गोली मारो ढाबे को,’’ मैं ने मौका मिलते ही कार को वापस जाने के लिए मोड़ लिया.

अपने घर का ताला खोल कर मैं जब तक ड्राइंगरूम में नहीं पहुंच गया, तब तक सीमा ने न मेरा हाथ छोड़ा और न ही एक शब्द मुंह से निकाला. जब भी मैं ने उस की तरफ देखा, हर बार उस की नशीली आंखों व मादक मुसकान को देख कर सांस लेना भी भूल जाता था.

मैं ने ड्राइंगरूम से ले कर शयनकक्ष तक का रास्ता उसे गोद में उठा कर पूरा किया. फिर बोला, ‘‘तुम दुनिया की सब से सुंदर स्त्री हो, सीमा. तुम्हारे गुलाबी होंठ…’’

‘‘अब डायलौग बोलने का नहीं, बल्कि ऐक्शन का समय है, मेरे प्यारे शिष्य,’’ सीमा ने मेरे होंठ अपने होंठों से सील कर मुझे खामोश कर दिया.

फिर जो ऐक्शन हमारे बीच शुरू हुआ, वह घंटों बाद ही रुका होगा, क्योंकि मेरी टीचर ने स्वादिष्ठ खाने को किसी भुक्खड़ की तरह खाने की इजाजत मुझे बिलकुल नहीं दी थी.

अगले दिन रविवार की सुबह जब दूध वाले ने घंटी बजाई, तब मेरी नींद मुश्किल से टूटी.

‘‘आप लेटे रहो. मैं दूध ले लेती हूं,’’ सीमा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पलंग से नहीं उठने दिया.

‘‘नहीं, तुम यहां से हिलना भी मत, टीचर, क्योंकि यह शिष्य कल रात के सबक को 1 बार फिर से दोहराना चाहता है,’’ मैं ने उस के होंठों पर चुंबन अंकित किया और दूध लेने को उठ खड़ा हुआ.

आजकल मैं अपनी जीवनसंगिनी सीमा की समझदारी की मन ही मन खूब दाद देता हूं. मैं फैक्टरी के कामों में बहुत व्यस्त रहता हूं और वह अपनी जौब की जिम्मेदारियां निभाने में. हमें साथसाथ बिताने को ज्यादा वक्त नहीं मिलता था और इस कारण हम दोनों बहुत टैंशन में व कुंठित हो कर जीने लगे थे.

‘‘हम साथ बिताने के वक्त को बढ़ा नहीं सकते हैं तो उस की क्वालिटी बहुत अच्छी कर लेते हैं,’’ सीमा के इस सुझाव पर खूब सोचविचार करने के बाद हम दोनों ने पिछली रात से यह ‘टीचर’ वाला खेल खेलना शुरू किया है.

कल रात हम रिसैप्शन में पहले अजनबियों की तरह से मिले और फिर फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. कल उसे टीचर बनना था और मुझे शिष्य. कल मैं उस के हिसाब से चला और मेरे होंठों पर एकाएक उभरी मुसकराहट इस बात का सुबूत थी कि मैं ने उस शिष्य बन कर बड़ा लुत्फ उठाया, खूब मौजमस्ती की.

अगली छुट्टी वाले दिन या अन्य उचित अवसर पर मैं टीचर बनूंगा और सीमा मेरी शिष्या होगी. उस अवसर को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए मेरे मन ने अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है. हमें विश्वास है कि साथसाथ बिताने के लिए कम वक्त मिलने के बावजूद इस खेल के कारण हमारा विवाहित जीवन कभी नीरसता व ऊब का शिकार नहीं बनेगा.

Love Story : इश्क के चक्कर में

Love Story : मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस से कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. झगड़ालू मैं ने उसे नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब इस बात की सब को जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा थी या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

हड़बड़ा कर दाऊद ने कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

Emotional Hindi Story : इसी को कहते हैं जीना

Emotional Hindi Story : ‘‘नेहा, क्या तुम ने कभी यह सोचा है कि तुम अकेली क्यों हो? हर इनसान तुम से दूर क्यों भागता है?’’नेहा चुपचाप मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘किसी भी रिश्ते को निभाने में तुम्हारा कितना योगदान होता है, क्या तुम ने कभी महसूस किया है? जहां कहीं भी तुम्हारी दोस्ती होती है वहां तुम्हारा समावेश उतना ही होता है जितना तुम पसंद करती हो. कोई तुम्हारे काम आता है तो उसे तुम अपना अधिकार ही मान कर चलने लगती हो. जिन से तुम दोस्ती करती हो उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार इस्तेमाल करती हो और काम हो जाने के बाद धन्यवाद बोलना भी जरूरी नहीं समझती हो…लोग तुम्हारे काम आएं पर तुम किसी के काम आओ यह तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि तुम्हें लोगों से ज्यादा मिलनाजुलना पसंद नहीं है. जो तुम्हारे काम आते हैं उन से तुम हफ्तों नहीं मिलतीं तो सिर्फ इसलिए कि स्कूल के बाद तुम्हें अपने घर को साफ करवाना जरूरी होता है.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारे घर में कितने लोग हैं जो रोज इतनी साफसफाई करवाती हो. साफ घर हर रोज इस तरह साफ करती हो मानो दीवाली आने वाली हो. आता कौन है तुम्हारे घर पर? न तुम्हारे मांबाप आते हैं न सासससुर…पति न जाने किस के साथ कहां चला गया, तुम खुद भी नहीं जानतीं.’’

आंखें और भी फैल गईं नेहा की.

‘‘जरा सोचो, नेहा, तुम कब किसी के काम आती हो. कब तुम अपने कीमती समय में से समय निकाल कर किसी का सुखदुख पूछती हो…कितना बनावटी आचरण है तुम्हारा. मुंह पर जिस की तारीफ करती हो पीठ पीछे उसी की बुराई करने लगती हो. क्या तुम्हें प्रकृति से डर नहीं लगता? सोने से पहले क्या कभी यह सोचती हो कि आज रात अगर तुम मर जाओ तो क्या तुम कोई कर्ज साथ नहीं ले जाओगी?’’

‘‘किस का कर्ज है मेरे सिर पर? मुझे तो किसी का कोई रुपयापैसा नहीं देना है.’’

‘‘रुपएपैसे के आगे भी कुछ होता है, जो कर्ज की श्रेणी में आता है.

‘‘रुपएपैसे के एहसान को तो इनसान पैसे से चुका सकता है मगर उन लोगोें का बदला कैसे चुकाया जा सकता है जहां  लगाव, हमदर्दी और अपनत्व का कर्ज हो. जिस ने मुसीबत में तुम्हें सहारा दिया उस का कभी हालचाल भी नहीं पूछती हो तुम.’’

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘इस का मतलब तुम पर किस के एहसान का कर्ज है यह भी तुम्हें याद नहीं.’’

मैं नेहा का मित्र हूं और हमारी मित्रता का कोई भी भविष्य मुझे अब नजर नहीं आ रहा. मित्रता तो एक तरह का निवेश है. प्यार दो तो प्यार मिलेगा. आज तुम किसी के काम आओ तो कल कोई तुम्हारे काम आएगा. नेहा तो सूखी रेत है जिस पर चाहो तो मन भर पानी बरसा दो वह फिर भी गीली नहीं हो सकती.

अफसोस हो रहा है मुझे खुद पर और नेहा पर भी. खुद पर इसलिए कि मैं  नेहा का मित्र हूं और नेहा पर इसलिए कि क्या उसे कोई किनारा मिल पाएगा कभी? क्या वह रिश्ता निभाना सीख पाएगी कभी?

नेहा से मेरी जानपहचान शर्माजी के घर हुई थी. शर्माजी हमारे विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं और बड़े सज्जन पुरुष हैं. शर्माजी की पत्नी ललिताजी भी बड़ी मिलनसार और ममतामयी महिला हैं. मैं कुछ फाइलें उन्हें दिखाने उन के घर गया था, क्योंकि वह कुछ दिन से बीमार चल रहे थे.

हम दोनों के सामने चाय रख कर ललिताजी जल्दी से निकल गई थीं. टिफिन था उन के हाथ में.

‘‘भाभीजी बच्चों को टिफिन देने गई हैं क्या?’’

‘‘अरे, बच्चे कहां हैं यहां हमारे,’’ शर्माजी बोले, ‘‘दोनों बेटे अपनीअपनी नौकरी पर बाहर हैं. यहां तो हम बुड्ढाबुढि़या ही हैं. तुम्हें क्या हमारी उम्र इतनी छोटी लग रही है कि हमारे बच्चे स्कूल जाते होंगे.

‘‘मेरी पत्नी समाज सेवा में भी विश्वास करती है. यहां 2 घर छोड़ कर कोई बीमार है…उसी को खाना देने गई है. अकेली लड़की है. बीमार है, बस, उसी की देखभाल करती रहती है. क्या करे बेचारी? अपने बच्चे तो दूर हैं न. उन की ममता उसी पर लुटा कर खुश हो लेती है.’’

तब पहली बार नेहा के बारे में जाना था. स्कूल में टीचर है और पति कुछ समय पहले कहीं चला गया था. शादी को 2-3 साल हो चुके हैं. कोई बच्चा नहीं है. अकेली रहती है, इसलिए ललिताजी उस से दोस्ती कर के उस की मदद करती रहती हैं और समय का सदुपयोग भी.

अभी हम फाइलें देख ही रहे थे कि ललिताजी वापस चली आईं और अपने साथ नेहा को भी लेती आई थीं.

‘‘बहुत तेज बुखार है इसे. मैं साथ ही ले आई हूं. बारबार उधर भी तो नहीं न जाया जाता.’’

ललिताजी नेहा को दूसरे कमरे में सुला आई थीं और अब शर्माजी को समझा रही थीं,  ‘‘देखिए न, अकेली बच्ची वहां पड़ी रहती तो कौन देखता इसे. बेचारी के मांबाप भी दूर हैं न…’’

‘‘दूर कहां हैं…हम हैं न उस के मांबाप…हर शहर में हमारी कम से कम एक औलाद तो है ही ऐसी जिसे तुम ने गोद ले रखा है. इस शहर में नहीं थी सो वह कमी भी दूर हो गई.’’

‘‘नाराज क्यों हो रहे हैं…जैसे ही बुखार उतर जाएगा वह चली जाएगी. आप भी तो बीमार हैं न…आप का खानापीना भी देखना है. 2-2 जगह मैं कै से देखूं.’’

मैं ने भी उसी पल उन्हें ध्यान से देखा था. बहुत ममतामयी लगी थीं वह मुझे. बहुत प्यारी भी थीं.

लगभग 4 घंटे उस दिन मैं शर्माजी के घर पर रहा था और उन 4 घंटों में शर्मा दंपती का चरित्र पूरी तरह मेरे सामने चला आया था. बहुत प्यारी सी जोड़ी है उन की.  ललिताजी तो ऐसी ममतामयी कि मानो पल भर में किसी की भी मदद करने को तैयार. शर्माजी पत्नी की इस आदत पर ज्यादातर खुश ही रहते.

मेरे साथ भी मां जैसा नाता बांध लिया था ललिताजी ने. सचमुच कुछ लोग इतने सीधेसरल होते हैं कि बरबस प्यार आने लगता है उन पर.

‘‘देखो बेटा, मनुष्य को सदा इस  भावना के साथ जीना चाहिए कि मेरा नाम कहीं लेने वालों की श्रेणी में तो नहीं आ रहा.’’

‘‘मांजी, मैं समझा नहीं.’’

‘‘मतलब यह कि मुझे किसी का कुछ देना तो नहीं है न, कोई ऐसा तो नहीं जिस का कर्ज मेरे सिर पर है, रात को जब बिस्तर पर लेटो तब यह जरूर याद कर लिया करो. किसी से कुछ लेने की आस कभी मत करो. जब भी हाथ उठें देने के लिए उठें.’’

मंत्रमुग्ध सा देखता रहता मैं  ललिताजी को. जब भी उन से मिलता था कुछ नया ही सीखता था. और उस से भी ज्यादा मैं यह सीखने लगा था कि नेहा के करीब कैसे पहुंचा जाए. नेहा अपना कोई न कोई काम लिए ललिताजी के पास आ जाती और मैं उस के लिए कुछ सोचने लगता.

‘‘बहुत अच्छी लड़की है, पढ़ीलिखी है, मेरा जी चाहता है उस का घर पुन: बस जाए.’’

‘‘मांजी, उस का पति वापस आ गया तो. ऐसी कोई तलाक जैसी प्रक्रिया तो नहीं गुजरी न दोनों में. पुन: शादी के बारे में कैसे सोचा जा सकता है.’’

शर्माजी के घर से शुरू हुई हमारी जानपहचान उन के घर के बाहर भी जारी रही और धीरेधीरे हम अच्छे दोस्त बन गए.

ललिताजी से मिलना कम हो गया और हर शाम मैं और नेहा साथसाथ रहने लगे. मार्च का महीना था जिस वजह से आयकर रिटर्न का काम भी नेहा ने मुझे सौंप दिया. कभी नया राशन कार्ड बनाना होता और कभी पैन कार्ड का चक्कर. उस के घर की किस्तें भी हर महीने मेरे जिम्मे पड़ने लगीं. 2-3 महीने में नेहा के सारे काम हो गए. कभीकभी मुझे लगता, मैं तो उस का नौकर ही बन गया हूं.

कुछ दिन और बीते. एक दिन पता चला कि ललिताजी को भारी रक्तस्राव की वजह से आधी रात को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. शर्माजी छुट्टी पर चले गए. उन के  बच्चे दूर थे इसलिए उन्हें परेशान न कर वह पतिपत्नी सारी तकलीफ खुद ही झेल रहे थे.

मेरा परिवार भी दूर था सो कार्यालय के बाद मैं भी अस्पताल चला आता था, उन के पास.

नेहा अस्पताल में नहीं दिखी तो सोचा, हो सकता है वह ललिताजी का घर संभाल रही हो. ललिताजी का आपरेशन हो गया. मैं छुट्टी ले कर उन के आसपास ही रहा. नेहा कहीं नजर नहीं आई. एक दिन शर्माजी से पूछा तो वह हंस पड़े और बताने लगे :

‘‘जब से तुम उस के काम कर रहे हो तब से वह मुझ से या ललिता से मिली कब है, हमें तो अपनी सूरत भी दिखाए उसे महीना बीत गया है. बड़ी रूखी सी है वह लड़की.’’

मुझ में काटो तो खून नहीं. क्या सचमुच नेहा अब इन दोनों से मिलती- जुलती नहीं. हैरानी के साथसाथ अफसोस भी होने लगा था मुझे.

ललिताजी अभी बेहोशी में थीं और शर्माजी उन का हाथ पकड़े बैठे थे.

‘‘ललिता का तो स्वभाव ही है. कोई एक कदम इस की तरफ बढ़ाए तो यह 10 कदम आगे बढ़ कर उस का साथ देती है. हम नएनए इस शहर में आए थे. यह लड़की एक शाम फोन करने आई थी. उस का फोन काम नहीं कर रहा था… गलती तो ललिता की ही थी… किसी की भी तरफ बहुत जल्दी झुक जाती है.’’

स्तब्ध था मैं. अगर मुझ से भी नहीं मिलती तो किस से मिलती है आजकल?

4 दिन और बीत गए. मैं आफिस के बाद हर शाम अस्पताल चला जाता. मुझे देखते ही ललिताजी का चेहरा खिल जाता. एक बार तो ठिठोली भी की उन्होंने.

‘‘बेचारा बच्चा फंस गया हम बूढ़ों के चक्कर में.’’

‘‘आप मेरी मां जैसी हैं. घर पर होता और मां बीमार होतीं तो क्या उन के पास नहीं जाता मैं?’’

‘‘नेहा से कब मिलते हो तुम? हर शाम तो यहां चले आते हो?’’

‘‘वह मिलती ही नहीं.’’

‘‘कोई काम नहीं होगा न. काम पड़ेगा तो दौड़ी चली आएगी,’’ ललिताजी ने ही उत्तर दिया.

शर्माजी कुछ समय के लिए घर गए तब ललिताजी ने इशारे से पास बुलाया और कहने लगीं, ‘‘मुझे माफ कर देना बेटा, मेरी वजह से ही तुम नेहा के करीब आए. वह अच्छी लड़की है लेकिन बेहद स्वार्थी है. मोहममता जरा भी नहीं है उस में. हम इनसान हैं बेटा, सामाजिक जीव हैं हम… अकेले नहीं जी सकते. एकदूसरे की मदद करनी पड़ती है हमें. शायद यही वजह है, नेहा अकेली है. किसी की पीड़ा से उसे कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘वह आप से मिलने एक बार भी नहीं आई?’’

‘‘उसे पता ही नहीं होगा. पता होता तो शायद आती…और पता वह कभी लेती ही नहीं. जरूरत ही नहीं समझती वह. तुम मिलना चाहो तो जाओ उस के घर, इच्छा होगी तो बात करेगी वरना नहीं करेगी… दोस्ती तक ही रखना तुम अपना रिश्ता, उस से आगे मत जाना. इस तरह के लोग रिश्तों में बंधने लायक नहीं होते, क्योंकि रिश्ते तो बहुत कुछ मांगते हैं न. प्यार भी, स्नेह भी, अपनापन भी और ये सब उस के पास हैं ही नहीं.’’

शर्माजी आए तो ललिताजी चुप हो गईं. शायद उन के सामने वह अपने स्नेह, अपने ममत्व को ठगा जाना स्वीकार नहीं करना चाहती थीं या अपनी पीड़ा दर्शाना नहीं चाहती थीं.

3-4 दिन और बीत गए. ललिताजी घर आ चुकी थीं. नेहा एक बार भी उन से मिलने नहीं आई. लगभग 3 दिन बाद वह लंच में मुझ से मिलने मेरे आफिस चली आई. बड़े प्यार से मिली.

‘‘कहां रहीं तुम इतने दिन? मेरी याद नहीं आई तुम्हें?’’ जरा सा गिला किया था मैं ने.

‘‘जरा व्यस्त थी मैं. घर की सफाई करवा रही थी.’’

‘‘10 दिन से तुम्हारे घर की सफाई ही चल रही है. ऐसी कौन सी सफाई है भई.’’

मन में सोच रहा था कि देखते हैं आज कौन सा काम पड़ गया है इसे, जो जबान में मिठास घुल रही है.

‘‘क्या लोगी खाने में, क्या मंगवाऊं?’’

खाने का आर्डर दिया मैं ने. इस से पहले भी जब हम मिलते थे खाना मैं ही मंगवाता था. अपनी पसंद का खाना मंगवा लिया नेहा ने. खाने के दौरान कभी मेरी कमीज की तारीफ करती तो कभी मेरी.

‘‘शर्माजी और ललिताजी कैसी हैं? शर्माजी छुट्टी पर हैं न, कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘पता नहीं, मैं ने बहुत दिन से उन्हें देखा नहीं.’’

‘‘अरे भई, तुम इस देश की प्रधानमंत्री हो क्या जो इतना काम रहता है तुम्हें. 2 घर छोड़ कर तो रहते हैं वह…और तुम्हारा इतना खयाल भी रखते हैं. 10 दिन से वह तुम से मिले नहीं.’’

‘‘मेरे पास इतना समय नहीं होता. 2 बजे तो स्कूल से आती हूं. 4 बजे बच्चे ट्यूशन पढ़ने आ जाते हैं. 7 बजे तक उस में व्यस्त रहती हूं. इस बीच काम वाली बाई भी आ जाती है…’’

‘‘किसी का हालचाल पूछने के लिए आखिर कितना समय चाहिए नेहा. एक फोन काल या 4-5 मिनट में जा कर भी इनसान वापस आ जाता है. उन के और तुम्हारे घर में आखिर दूरी ही कितनी है.’’

‘‘मुझे बेकार इधरउधर जाना अच्छा नहीं लगता और फिर ललिताजी तो हर पल खाली रहती हैं. उन के साथ बैठ कर गपशप लगाने का समय नहीं होता मेरे पास.’’

नेहा बड़ी तल्खी में जवाब दे रही थी. खाना समाप्त हुआ और वह अपने मुद्दे पर आ गई. अपने पर्स से राशन कार्ड और पैन कार्ड निकाल उस ने मेरे सामने रख दिए.

‘‘यह देखो, इन दोनों में मेरी जन्मतिथि सही नहीं लिखी है. 7 की जगह पर 1 लिखी गई है. जरा इसे ठीक करवा दो.’’

हंस पड़ा मैं. इतनी हंसी आई मुझे कि स्वयं पर काबू पाना ही मुश्किल सा हो गया. किसी तरह संभला मैं.

‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम्हारा काम हो गया और अब कभी किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी. मत भूलो नेहा कि जब तक इनसान जिंदा है उसे किसी न किसी की जरूरत पड़ती है. जिंदा ही क्यों उसे तो मरने के बाद भी 4 आदमी चाहिए, जो उठा कर श्मशान तक ले जाएं. राशन कार्ड और पैन कार्ड जब तक नहीं बना था तुम्हारा मुझ से मिलना चलता रहा. 10 दिन से तुम मिलीं नहीं, क्योंकि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी. आज तुम्हें पता चला इन में तुम्हारी जन्मतिथि सही नहीं तो मेरी याद आ गई …फार्म तुम ने भरा था न, जन्मतिथि तुम ने भरी थी…उस में मैं क्या कर सकता हूं.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ अवाक्  तो रहना ही था नेहा को.

‘‘अंधे को अंधा कैसे कहूं…उसे बुरा लग सकता है न.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब साफ है…’’

उसी शाम ललिताजी से मिलने गया. उन्हें हलका बुखार था. शर्माजी भी थकेथके से लग रहे थे. वह बाजार जाने वाले थे, दवाइयां और फल लाने. जिद कर के मैं ही चला गया बाजार. वापस आया और आतेआते खाना भी लेता आया. ललिताजी के लिए तो रोज उबला खाना बनता था जिसे शर्माजी बनाते भी थे और खाते भी थे. उस दिन मेरे साथ उन्होंने तीखा खाना खाया तो लगा बरसों के भूखे हों.

‘‘मैं कहती थी न अपने लिए अलग बनाया करें. उबला खाना खाया तो जाता नहीं, उस पर भूखे रह कर कमजोर भी हो गए हैं.’’

ललिताजी ने पहली बार भेद खोला. दूसरे दिन से मैं रोज ही अपना और शर्माजी का खाना पैक करा कर ले जाने लगा. नेहा की हिम्मत अब भी नहीं हुई कि वह एक बार हम से आ कर मिल जाती. हिम्मत कर के मैं ने सारी आपबीती उन्हें सुना दी. दोनों मेरी कथा सुनने के बाद चुप थे. कुछ देर बाद शर्माजी कहने लगे, ‘‘सोचा था, प्यारी सी बच्ची का साथ रहेगा तो अच्छा लगेगा. उसे हमारा सहारा रहेगा हमें उस का.’’

‘‘सहारा दिया है न हमें प्रकृति ने. बच्ची का सहारा तो सिर्फ हम ही थे… बदले में सहारा देने वाला मिला है हमें… यह बच्चा मिला है न.’’

ललिताजी की आंखें नम थीं, मेरी बांह थपथपा रही थीं वह. मेरा मन भी परिवार के साथ रहने को होता था पर घर दूर था. मुझे भी तो परिवार मिल गया था परदेस में. कौन किस का सहारा था, मैं समझ नहीं पा रहा था. दोनों मुझे मेरे मातापिता जैसे ही लग रहे थे. वे मुझे सहारा मान रहे थे और मैं उन्हें अपना सहारा मान रहा था, क्योंकि शाम होते ही मन होता भाग कर दोनों के पास चला जाऊं.

क्या कहूं मैं? अपनाअपना तरीका है जीने का. कुदरत ने लाखों, करोड़ों जीव बनाए हैं, जो आपस में कभी मिलते हैं और कभी नहीं भी मिलते. नेहा का जीने का अपना तरीका है जिस में वह भी किसी तरह जी ही लेगी. बस, इतना मान सकते हैं हम तीनों कि हम जैसे लोग नेहा जैसों के लिए नहीं बने, सो कैसा अफसोस? सोच सकते हैं कि हमारा चुनाव ही गलत था. कल फिर समय आएगा…कल फिर से कुछ नया तलाश करेंगे, यही तो जीवन है, इसी को तो कहते हैं जीना.

Delhi Election : ‘प्रियंका गांधी के गाल जैसी दिल्‍ली की सड़क’ वाले बयान पर भड़की अलका लांबा 

Delhi Election : कांग्रेस की राष्‍ट्रीय महिला अध्‍यक्ष अलका लांबा विधानसभा चुनाव में दिल्‍ली की सीएम आतिशी मारलेना के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरी हैं. स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स से देश की राजनीत‍ि में कदम रखने वाली अलका लांबा शुरुआत में कांग्रेस से जुड़ी थी लेकिन अन्‍ना आंदोलन के समय अरविंद केजरीवाल के अभियान के साथ आ खड़ी हुई. आम आदमी पार्टी की प्रत्‍याशी बन कर चांदनी चौक विधान सभा सीट से जीत भी हासिल की लेकिन बाद में उन्‍होंने खुद को पार्टी से अलग कर लिया और दोबारा कांग्रेस में शामिल हुई.
पेश है दिल्‍ली विधानसभा चुनाव, स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स, अरविंद केजरीवाल, महिलाओं को 2.5 हजार रुपए देने,  शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्‍ता और भाजपा के हथकंडों पर अलका लांबा से की गई बातचीत

Q : शीला दीक्षित ने दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार चलाई. काफी विकास भी हुआ, लेकिन फिर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. अभी वनवास जारी रहेगा या इस बार कुछ बड़ी उम्मीद बनी है?

A : अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित पर  धोखा, झूठ, फरेब और भ्रष्‍टाचार के कई इल्‍जाम लगाए, उनको बदनाम किया. हालांकि अदालत में भ्रष्‍टाचार के आरोप साबित नहीं हो पाए. अब वही केजरीवाल शराब घोटाले में फंस कर जेल जाते हैं, बेल पर बाहर आते हैं यहां तक कि उनकी कुर्सी चली जाती है. अगर नैतिकता हो, तो उनको दिल्‍ली से माफी मांगनी चाहिए. इन पर भ्रष्‍टाचार के गंभीर मामले चल रहे हैं इसलिए चुनाव मैदान से हट जाना चाहिए,  जब तक क्‍लीन चिट नहीं मिले.

Q : देश की राजधानी दिल्ली में महिला सम्मान की बातें हो रही है. महिला सम्मान राशि देने का वादा किया जा रहा है.  पार्टियों में इसकी होड़ लगी है. एक महिला होने के नाते ऐसी योजना पर आपके क्या विचार हैं?

A : कई सालों से महंगाई थी, राहत नहीं थी, दस साल में ‘आप’ की सरकार ने 10 रुपया नहीं दिया. अब चुनाव हार रहे हैं तो सम्‍मान राशि दे रहे हैं. केजरीवाल जी ने पंजाब में भगत सिंह की कसम खाकर महिलाओं को हजार रुपए देने की घोषणा की थी, जो आज तक उन्‍हें नहीं मिला. आम आदमी पार्टी धोखा है यह बात जब राहुल गांधी ने कहीं तो केजरीवाल जी ने कहा कि वे उन्‍हें गाली दे रहे हैं. हमने कर्नाटक में 2 हजार देने का वादा किया था, तो दो हजार दे रहे हैं. दिल्‍ली में ‘प्‍यारी दीदी योजना’ के तहत कांग्रेस की ओर से महिलाओं को 2500 रुपया देने को कह रहे हैं, कर्नाटक की तर्ज पर महंगाई का मुकाबला करने के लिए हर महीने की पहली तारीख को यह राशि दिल्‍ली की महिलाओं को दी जाएगी.

Q: हाल ही में रमेश बिधूड़ी का एक बयान आया जिसमें प्रियंका गांधी को लेकर टिप्पणी की गई. इस तरह के बयानों का क्या प्रभाव देखती हैं आप?

A : रमेश बिधूड़ी की नजर विकास की बातों से ज्‍यादा बहनबेटियों की गालों पर है. तभी उनके मुंह से यह निकल जाता है कि वे सत्‍ता में आएंगे तो कालकाजी की सड़कें प्रियंका गांधी के गालों जैसी बन जाएगी. उनकी बातों से कालकाजी की महिलाओं में गुस्‍सा है वे चाहती हैं कि बीजेपी और रमेश बिधूड़ी माफी मांगे. प्रियंका गांधी भी किसी की मां, बहन और बेटी है और उसके लिए आप जनप्रतिनिधि होकर सड़क पर ऐसी भाषा कैसे बोल सकते हैं. जनप्रतिनिधि के रूप में आपके पास मांबहन बेटियां जाएगी तब क्‍या होगा? हरियाणा के बीजेपी अध्‍यक्ष पर अभी गैंगरेप का आरोप लगा है, एफआईआर हुई है. कुलदीप सिंह सेंगर, प्रज्‍जवल रवन्‍ना, बृजभूषण शरण के उदाहरण सामने हैं. इससे महिलाओं को लेकर बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे को समझा जा सकता है. 

Q : कालकाजी सीट पर आपकी लड़ाई किससे है.  

A :  मेरी लड़ाई विकास के मुद्दों पर दिल्‍ली की सीएम आतिशी मा‍रलेना से है. मैं चकित हूं केजरीवाल जी बारबार खुद को दिल्‍ली का बेटा बोल रहे हैं, क्‍या उन्‍हें आति‍शी मारलेना दिल्‍ली की बेटी नहीं हैं.

Q : दिल्‍ली के पुरुष भी कह रहे हैं कि महिलाओं की तरह उन्‍हें भी फ्री बस सेवा होनी चाहिए.  

A :  मुझे लगता है कि सबको रोजगार मांगना चाहिए. सरकारी नौकरी के 30 लाख पक्‍के पद खाली पड़े हैं, उसे भरना है.  हम नई नौकरियां पैदा नहीं कर पा रहे हैं, सरकार इसकी दोषी है. दिल्‍ली में कांग्रेस ने ‘युवा उड़ान योजना’ के तहत शिक्षित बेरोजगार युवाओं को एक साल तक हर महीने 8500 रुपया देने का वादा किया है, जो दिल्‍ली में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद दिया जाएगा लेकिन यह स्‍थायी सौल्‍यूशन नहीं है. कांग्रेस चाहती है सबके पास सरकारी पक्‍की नौकरी हो, परीक्षाओं के पेपर लीक न हो, समय पर रिजल्‍ट आए और नियुक्तियां हो.

Q : आप महिला कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. क्या स्थिति बन रही है आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी को देश में किस स्थिति में देखती हैं?

A :  महिला कांग्रेस के अध्‍यक्ष पर आए मुझे एक साल हुए हैं. इस बीच मैंने देश के 28 राज्‍यों 8 केंद्र शासित राज्‍यों के दौरे किए, इस दौरान लोकसभा चुनाव के साथ ही 5 राज्‍यों में चुनाव भी हुए. राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो न्‍याय यात्रा में भी रही. इस दौरान 4 लाख महिलाएं औनलाइन हमारी सदस्‍य बन चुकी हैं. हमारा लक्ष्‍य इन महिलाओं को राजनीति की मुख्‍यधारा में लेकर आना है इनमें से टौप 50 महिलाओं को  first women leadership training programme के  तहत दिल्‍ली में प्रशिक्षित किया गया. इन्‍हें संगठन में पद और जिम्‍मेदारी देंगे.  कांग्रेस चाहती है कि 33 प्रतिशत आरक्षण के लागू होने के बाद ये महिलाएं आने वाले दिनों में विधायक और सांसद बनें. हमारा लक्ष्‍य 10 लाख महिलाओं को सदस्‍य बनाना है. 

Q : आप छात्र राजनीति में थीं. दिल्ली विश्वविद्यालय में नेता रहीं. आज की तारीख में छात्र राजनीति को किस तरह से देखती हैं और क्या कहना चाहेंगी?

A :  हमारे समय में दिल्‍ली में छात्र राजनीति का जोश होता था, स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स का वह जलवा आज नजर नहीं आता है. राजनीति में आने के इच्‍छुक युवाओं के लिए यह एक फाउंडेशन की तरह होता था. मुझे छात्र राजनीति में काफी कुछ सीखने को मिला. आज सत्‍ता का हस्‍तक्षेप हो चुका है, आज दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में अलग विचारधारा के लोगों की जगह खत्‍म कर दी गई. दिल्‍ली विवि की वोटिंग होती है और रिजल्‍ट रोक दिए जाते हैं और अदालत को बीच में आना पड़ता है.

Q : क्‍या वुमन लीडर को नीचा दिखाने का सबसे अच्‍छा तरीका उसका चरित्र हनन करना है? 

A :  बिलकुल, केवल राजनीति में ही नहीं बाकी क्षेत्रों में भी वुमन लीडर्स के साथ ऐसा होता है. महिलाओं के कैरेक्‍टर, परिवार, चालचरित्र पर सीधे हमले होते हैं. आज डिजिटल साधनों की मदद से झूठ को फैलाना आसान हो गया है. अगर सचाई बताने में देर होती है, तो झूठ फैलने का नुकसान भी होता है.  सत्‍ता में बैठे लोग हमसे ज्‍यादा ताकतवर हैं लेकिन हम हार नहीं मानते हैं.

अलका लांबा इमोशनल है लेकिन भावुक होकर आंसू नहीं दिखाने में विश्‍वास नहीं करती है. मैं भावुक नहीं हो सकती क्‍योंकि महिला कांग्रेस की अध्‍यक्ष होने की वजह से बहुतों के आंसू पोंछने की जिम्‍मेदारी है.

Q : बात आम आदमी पार्टी की हो रही है तो आप भी जुड़ी थीं. अन्‍ना आंदोलन के समय से आप उनके साथ थीं, फिर आपने दोबारा घर वापसी की और कांग्रेस का हाथ थामा  क्या कुछ अनुभव रहे इस दौरान?

A :  अन्‍ना आंदोलन के समय मुझे लगा कि एक मौका इन्‍हें मिलना चाहिए. मैं पांच साल उस पार्टी से विधायक भी रही और तब मुझे अहसास हुआ कि रामलीला मैदान में खड़ा हुआ आंदोलन एक झूठ था. धीरे धीरे मैंने इन्‍हें सत्‍ता के लिए समझौता करते देखा.  उन दिनों कागजों का पुलिंदा लेकर जो भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए गए, उनमें से कितने भ्रष्‍टाचार के आरोप साबित हो पाए. बंगला और गाड़ी नहीं लेने की बात करने वाला और खुद को आम आदमी बताने वाला व्‍यक्ति  टैक्‍स दाताओं के 33 करोड़ रुपए अपने बंगले पर फूंक देता है, शराब नीत‍ि के तहत 2000 हजार करोड़ का सीधा नुकसान सरकारी खजाने को होता है. जिस जनलोकपाल और लोकायुक्‍त के लिए आंदाेलन किया गया था, आज वो कहां है? 

Q : क्‍या ‘आप’ बीजेपी की B टीम है? 

A :  मैं तथ्‍यों पर कह रही हूं कि ‘आप’ बीजेपी की बी टीम है. इसके सबूत है. पंजाब से हमें किसने बाहर किया, ‘आप’ ने.   दिल्‍ली में भाजपा नहीं आ रही थी यहां भी उसने अपनी B टीम को सामने रखा. भाजपा को कहीं भी आम आदमी पार्टी ने नहीं हराया, भाजपा की आड़ में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्‍ता ली. पंजाब में हम अकेले लड़े, तो 13 में से 7 सीटें हमने जीतीं. अडानी पर कभी अरविंद केजरीवाल को बोलते हुए नहीं देखा गया.

Q : क्‍या अब आम आदमी पार्टी भी धर्म की राजनीति करने लगी है? 

 A : आज ये भाजपा की भाषा बोल रहे हैं, धर्म की राजनीति कर रहे हैं, देश की गिरती हुई इकोनौमी को ठीक करने के लिए और गिरते हुए रुपए को ऊपर लाने के लिए नोट में गणेश और लक्ष्‍मी की फोटो लगाने की बात कर रहे हैं, बार बार हनुमान मंदिर जा रहे हैं, इमामों,  पंडितों और पंथियों को खुश करने के लिए तनख्‍वाह रखने की बात की जा रही है. ये सब इसी के उदाहरण हैं.

 

Smoking : हड्डियों को गलाती तंबाकू

Smoking : हड्डियों को गलाती तंबाकू की लत भारत ही नहीं दुनियाभर में तंबाकू का भारी मात्रा में सेवन चिंता का विषय बनता जा रहा है, वह भी तब जब इस से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां सब के सामने हैं. तंबाकू चबाना हो अथवा धूम्रपान करना, व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. इस से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान करने से शरीर की हड्डियों के विकास और उस की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा धमनियों के कमजोर होने, कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने, हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा हो सकता है. तंबाकू सेवन से कैंसर और फेफड़ों की बीमारी जैसी जानलेवा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. दुनियाभर में तंबाकू उत्पादों की निर्माता कंपनियां अपने व्यापार को बढ़ाने तथा आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से युवाओं को उन की लत की गिरफ्त में लाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. आज विश्व में 13 से 15 वर्षीय आयु वर्ग के लगभग 37 मिलियन युवा किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं.

‘सोसाइटी फौर रिसर्च औन निकोटिन एंड टोबैको जर्नल’ 2024 के अनुसार भारत में लगभग 23 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिन में 11 करोड़ लोग खैनी, 5 करोड़ लोग गुटखा, तथा 7 करोड़ लोग तंबाकू मिश्रित सुपारी का सेवन करते हैं. भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख लोग तंबाकू के कारण कैंसरग्रस्त हो कर जान गंवाते हैं. हमारे देश में 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में मुख के कैंसर या हार्टअटैक के पीछे मुख्यतया तंबाकू और धूम्रपान का हाथ होता है. धूम्रपान के दौरान तंबाकू का धुआं नाक की कोमल झिल्ली में जलन पैदा करते हुए फेफड़ों में पहुंच कर उन के कोमल वायु कोषों को क्षतिग्रस्त करता है. धूम्रपान के माध्यम से शरीर में कार्बन मोनोऔक्साइड, निकोटिन, बेंजीन तथा कई अन्य विषाक्त पदार्थ शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर, हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बनते हैं. दुनियाभर में तंबाकू कई रूप में प्रयोग किया जाता है. खैनी, सुरती के रूप में चबाना, बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के रूप में धूम्रपान करना या फिर बड़ीबड़ी चालाक फैक्ट्रियों में निर्मित सुगंधित पान मसाला के रूप में. तंबाकू में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एक भी गुण नहीं. विश्व के लगभग सभी देशों में तंबाकू सेवन का नशा असामयिक मौतों को खुलेआम बुलावा देता है. अनपढ़ व्यक्ति अज्ञानतावश इस की गिरफ्त में आए तो बात कुछ हद तक समझ में आती है, परंतु पढ़ेलिखे, यहां तक कि उच्च शिक्षा प्राप्त नामीगिरामी पेशेवर लोगों में इस के सेवन की लत लगना और उस के कारण कैंसर, हृदय रोग, ब्लड प्रैशर, पैरालिसिस जैसी तरहतरह की अनेक स्वास्थ्य समस्याओं की गिरफ्त में आ कर अकाल मृत्यु को दावत देना किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. तंबाकू से शरीर तक निकोटिन का सफर तंबाकू धूम्रपान के माध्यम से निकोटिन संचरण प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न अंगों में बड़ी तेजी से पहुंच जाता है.

धूम्रपान के बाद प्रथम कुछ मिनटों में ही रक्त में निकोटिन का स्तर बड़ी तेजी से बढ़ जाता है. निकोटिन एक कमजोर बेस होने के नाते मुख की मेंबरेंस (कलाओं) में इस का बहुत कम अवशोषण हो पाता है. हालांकि पाइप, सिगार, चिलम अथवा डार्क तंबाकू से निकलने वाला धुआं अधिक क्षारीय होने के कारण निकोटिन की कुछ मात्रा मुंह के माध्यम से अवशोषित हो जाती है. तंबाकू का धूम्रपान करने की तुलना में तंबाकू चबाने अथवा सूंघने पर मुख के माध्यम से निकोटिन का अवशोषण मंद होता है. शरीर में निकोटिन का फैलाव और उस का निष्कासन सिगरेट का कश लेने के 10 से 20 सैकंड के भीतर निकोटिन मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. सिगरेट के धुएं में घुला निकोटिन सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर, धमनी रक्त वाहिका के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर व्यक्ति के व्यवहार में बड़ी तेजी से बदलाव पैदा करता है. निकोटिन शरीर के अन्य ऊतकों में भी व्यापक रूप से पहुंच जाता है. शरीर से निकोटिन का बाहर निकलना यकृत के चयापचय यानी लिवर मेटाबोलिज्म के द्वारा होता है. मेटाबौलिज्म की दर अलगअलग व्यक्तियों में भिन्न होती है. अर्थात अलगअलग व्यक्तियों द्वारा समान मात्रा में निकोटिन का सेवन करने से उन के रक्त में निकोटिन का स्तर भिन्न हो सकता है. औसतन एक सिगरेट के धूम्रपान से रक्त परिवहन में एक मिलीग्राम निकोटिन अवशोषित हो जाता है, हालांकि इस की सीमा 0.5 से 3.0 मिलीग्राम के बीच में हो सकती है. रक्त में पहुंची निकोटिन की आधी मात्रा 2 से 3 घंटे के भीतर निष्कासित हो जाती है. इस का तात्पर्य यह भी है कि तंबाकू के एक बार सेवन के पश्चात शरीर में 8 से 12 घंटे तक निकोटिन की मौजूदगी बनी रहती है. बारबार धूम्रपान करने से शरीर में निकोटिन की मात्रा एकत्रित होती रहती है. इस प्रकार सिगरेट धूम्रपान के व्यसनी लोगों का मस्तिष्क और शरीर निकोटिन से निरंतर प्रभावित होता रहता है. नियमित धू्म्रपानकर्ताओं की तुलना में यदाकदा धूम्रपान करने वालों के लिए इस आदत को त्यागना आसान होता है. कुछ सिगरेट निर्माता कंपनियां अपने ब्रैंड में निकोटिन की उपस्थिति कम मात्रा में होने का दावा करती हैं और कुछ लोग तथाकथित कम निकोटिन युक्त सिगरेट पीना शुरू भी कर देते हैं पर उस से अपेक्षित परिणामों की संभावना बहुत कम रहती है. अल्प निकोटिन युक्त सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की धारणा होती है कि दैनिक धूम्रपान की संख्या बढ़ने पर भी उन के शरीर में निकोटिन का अवशोषण कम मात्रा में होगा. परंतु इस के चलते अधिकांश धूम्रपानकर्ता सामान्य सिगरेट की तुलना में अल्प निकोटिन ब्रैंड की सिगरेट के धूम्रपान की संख्या बढ़ा देते हैं, जिस से शरीर में निकोटिन का अवशोषण अधिक मात्रा में हो कर उन के व्यवहार को सीधे प्रभावित करता है.

एक अध्ययन में प्रतिदिन असीमित संख्या (औसतन 37 सिगरेट प्रतिदिन) और प्रतिदिन 5 सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तुलना करने पर कम धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के शरीर में तंबाकू की विषाक्तता में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीने वाला व्यक्ति निकोटिन की लत का शिकार माना जाता है. तंबाकू, खैनी चबाना व सूंघना भी एक लत दुनिया में लगभग सभी आयु वर्ग के बड़ी संख्या में लोग, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र के वयस्क और किशोर तंबाकू चबाने अथवा सूंघने की लत के शिकार हैं. जहां एक सिगरेट के धूम्रपान से शरीर में एक मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, वहीं एक ग्राम तंबाकू चबाने अथवा सूंघने से शरीर में 5 से 30 मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, जो धूम्रपान की तुलना में बहुत अधिक है. एक अन्य अध्ययन में एक ग्राम तंबाकू के चबाने और सूंघने से शरीर में क्रमश: 4.5 मिलिग्राम और 3.6 मिलिग्राम निकोटिन की मात्रा का अवशोषण पाया गया है. नियमित धूम्रपानकर्ताओं और धुआंरहित तंबाकू सेवन करने वाले व्यक्तियों के रक्त में निकोटिन का स्तर पूरे दिनभर एक समान बना रहता है. तंबाकू की लत और स्वास्थ्य आमतौर पर तंबाकू सेवन की शुरुआत किशोरावस्था के आगमन यानी 8 से 12 वर्ष की आयु में प्रायोगिक तौर पर की जाती है. अधिकांश बच्चे अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों की संगत में आने अथवा आकर्षक विज्ञापनों में उन के आदर्श स्वरूप व्यक्तियों द्वारा धूम्रपान करते दिखाई देने के प्रभाव में धूम्रपान करने अथवा तंबाकू सेवन करने की शुरुआत करते हैं. आमतौर पर प्रतिदिन 2 से 3 सिगरेट पीने का प्रयोग करने वाले किशोरों को इस की लत लग जाने की संभावना अधिक होती है. तंबाकू का कंकाल पर प्रभाव हड्डियों से निर्मित ढांचा, जिसे कंकाल कहा जाता है, हमारे शरीर को खड़ा रखने, शारीरिक वृद्धि तथा हमारे चलने को सुगम बनाता है. मानव कंकाल विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित एक गतिशील एवं जीवित ऊतक होता है. हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में इन कोशिकाओं की संतुलित गतिविधियां महत्त्वपूर्ण होती हैं. तंबाकू के धूम्रपान के दौरान निकलने वाला निकोटिन इस नाजुक संतुलन को अव्यस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

निकोटिन का पहला प्रभाव हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार औस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता को घटाना है. औस्टियोब्लास्ट हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं होती हैं, जिन का मुख्य काम नई हड्डी कोशिकाओं का निर्माण करना, हड्डियों को मजबूती प्रदान करना, नई हड्डी के ऊतकों को बनाना, हड्डियों के विकास के दौरान नई हड्डियों का निर्माण करना होता है. निकोटिन के प्रभाव में हड्डियों के संरक्षण और उन की टूटफूट में सुधार लाने की औस्टियोब्लास्ट की जटिल प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होती है. उसी के साथ हड्डियों की ओस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. इस के अंतर्गत कोशिकाएं हड्डी के ऊतकों को नष्ट कर अस्थिपुंज को क्षतिग्रस्त करती हैं. निकोटिन के कारण पैराथाइरौ?एड हार्मोन का स्राव बाधित होने पर हड्डियों पर पड़ने वाला हानिकारक प्रभाव और गंभीर हो जाता है. यह हार्मोन शरीर में कैल्शियम के स्तरों पर नियंत्रण रखता है. इस बाधा के कारण अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनरल डैंसिटी में गिरावट आ सकती है, जो औस्टियोपोरोसिस यानी अस्थिसुषिरता का कारण बनती है. हम जानते हैं कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए विटामिन डी एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व होता है. निकोटिन विटामिन डी के साथ क्रिया करते हुए शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को घटाने के लिए भी जिम्मेदार होता है. हार्मोन पर बुरा असर धूम्रपान का असर गोनैडोट्रौपिन रिलीजिंग हार्मोन पर भी पड़ता है. यह हार्मोन शरीर में सैक्स हार्मोन के उत्पादन पर नियंत्रण रखता है. साथ ही किशोरवय आयु और शुरुआती वयस्ककाल के दौरान हड्डियों को संपूर्णता प्रदान करने में भी इस हार्मोन की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है.

निकोटिन के प्रभाव में इस हार्मोन के असंतुलित होने से हड्डियों में खनिज बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिस कारण भविष्य में औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. हमारे इर्दगिर्द कई चेन स्मोकर्स मिल जाते हैं जो दिनभर में दोचार सिगरेट व बीड़ी नहीं बल्कि उन के कई पैकेट का धूम्रपान करते हैं. ऐसे धूम्रपानकर्ताओं में सूजन, शोथ करने वाली यानी इन्फ्लैमेटरी क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिस के परिणामस्वरूप हड्डी की कोशिका प्रभावित हो कर अस्थि निर्माण और उस के टूटने के बीच का संतुलन बाधित हो जाता है, जिस से हड्डियां तेजी से कमजोर होने लगती हैं. दुष्प्रभाव घातक धूम्रपान का असर केवल धूम्रपानकर्ता की हड्डियों की मजबूती पर ही नहीं पड़ता. गर्भावस्था के दौरान महिला द्वारा धूम्रपान करने से अजन्मे नवजात के कंकाल का विकास प्रभावित हो सकता है. अर्थात इस के दुष्प्रभावों का दंश पीढि़यों तक भुगतना पड़ सकता है. धूम्रपानकर्ताओं के लिए हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए धूम्रपान का त्याग करना लाभकारी होता है. शोध परिणामों से पता चलता है कि धूम्रपान त्याग करने से अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनिरल डैंसिटी में आंशिक सुधार हो सकता है. उन के लिए धूम्रपान की आदत छुड़ाने की दिशा में उठाए गए कदम, प्रदान की गई सहायता तथा प्रेरक गतिविधियां उन की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए एक संभावित प्रयास हो सकता है. एक स्वस्थ कंकाल के लिए धूम्रपान का त्याग करने के अलावा नियमित व्यायाम करने, कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर आहार का सेवन करने, अल्कोहल का सेवन न करने जैसे जीवनशैली में बदलाव लाना धूम्रपान के कारण हड्डियों के कमजोर होने के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है. हड्डियों को स्वस्थ रखने की जंग केवल कमरे में परामर्श दे कर नहीं जीती जा सकती. इस के लिए धूम्रपान छोड़ने को सुगम बनाने की नीतियां विकसित करने, धूम्रपान की लत का शिकार हुए व्यक्तियों के लिए एक सहायक परिवेश का निर्माण करने जैसे बदलाव लाने की जरूरत है. युवा धूम्रपानकर्ताओं को जागरूक करना उन की आदत को बदलने के लिए एक सशक्त प्रेरक हो सकता है. धूम्रपानकर्ता को धूम्रपान करने से रोकने के लिए सामुदायिक स्तर पर प्रेरित करना उन की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों दोनों पर अनुकूल प्रभाव डाल सकता है. धूम्रपान और हड्डियों की मजबूती के बीच संबंधों को ज्ञात करना महज एक अकादमिक जिज्ञासा नहीं है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक व आर्थिक स्थितियों पर भी इस का अत्यंत प्रभाव पड़ता है. बाल्यकाल में धूम्रपान की शुरुआत करने वाले व्यक्तियों में हड्डियां टूटने तथा टूटी हड्डियों के ठीक होने में अधिक समय लगने का खतरा अधिक होता है. ये स्थितियां व्यक्ति के दैनिक कार्यकलापों को सीधे प्रभावित करने के साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली पर अनावश्यक आर्थिक बो?ा भी डालती हैं. निकोटिन का प्रभाव निकोटिन अणु (मौलिक्यूल) की रचना शरीर में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एसिटिलकोलीन नामक एक रसायन के रूप में होती है. यह एसिटिलकोलीन मस्तिष्क की एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरौन) से दूसरी तंत्रिका कोशिका तक सूचना का संचार करता है. एसिटिलकोलीन में मौजूद रिसेप्टर कोलीनर्जिक रिसेप्टर्स कहलाते हैं. निकोटिन मस्तिष्क तथा शरीर के अन्य अंगों में मौजूद कुछ कोलीनर्जिक रिसेप्टरों के साथ क्रिया करता है. इन रिसेप्टरों के सक्रिय होने पर निकोटिन शरीर में अन्य न्यूरोट्रांसमीटर्स और हार्मोंस के स्राव को बढ़ा देता है, जिन में एसिटिलकोलीन, नौरएपीनेफ्रीन, डोपामिन, वेसोप्रेसिन और बीटाएंडोरफिन सम्मिलित हैं. शरीर में डोपामिन, नौरएपीनेफ्रीन और सेरोटोनिन का स्राव बढ़ने पर आनंद की अनुभूति होती है, साथ ही भूख नहीं लगने की स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है. एसिटिलकोलीन का स्राव बढ़ने की स्थिति में कार्य क्षमता और स्मरण शक्ति बेहतर होने में सहायक होती है. इसी प्रकार बीटाएंडोरफिन का स्राव बढ़ने से चिंता और तनाव में गिरावट की अनुभूति होती है.

नियमित धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के शरीर में ये बदलाव उन में लत लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. निकोटिन की उपस्थिति में मस्तिष्क का सामान्य रूप से कार्य करना उस की लत लगने का ही परिणाम है. ऐसे व्यक्ति धूम्रपान बंद करने की स्थिति में शरीर में निकोटिन न मिलने से मस्तिष्क का कार्य बाधित हो जाता है, जो उपर्युक्त अनेक विद्ड्रौल सिंप्टम्स (लक्षणों) के उभरने का कारण बनता है. तंबाकू सेवन से बचाव संभव पेरैंट्स को अपने किशोरवय बच्चों की गतिविधियों और उन में होने वाले व्यावहारिक परिवर्तनों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. वरना किशोरवय आयु में प्रायोगिक तौर पर धूम्रपान अथवा तंबाकू सेवन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति को भविष्य में इस की लत का शिकार होने से बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. बच्चों को तंबाकू सेवन से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूक बना कर भावी पीढ़ी को तंबाकू की लत से बचाया जा सकता है. अच्छी शिक्षा व्यवस्था के साथसाथ मातापिता द्वारा बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना उन्हें तंबाकू की लत से बचाने में कारगर हो सकता है. तंबाकू निर्माता कंपनियों और लोकप्रिय अभिनेताओं, खिलाडि़यों के लिए तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों से बचना भी काफी हद तक सहायक हो सकता है. स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों और अधिकारियों द्वारा विशेष तौर पर स्कूलकालेजों में तंबाकू और तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए. द्य नशे की गिरफ्त में क्यों आते हैं लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी नशे की लत लगना व्यक्ति और समाज को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की हद तक उस के व्यवहार में परिवर्तन आना होता है. बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के धूम्रपान की लत लगने पर व्यक्ति के शरीर में निकोटीन का जमाव हो जाता है, जिस के कारण शरीर में निम्नलिखित बदलाव आ जाते हैं: द्य शरीर के अलगअलग अंगों के कार्यों पर नियंत्रण रखने वाले मस्तिष्क के अलगअलग भागों (लोब्स) के बीच पारस्परिक तालमेल (सिंक्रनाइजेशन) का टूटना. द्य कैटेकोलामाइंस, वेसोप्रेसिन, ग्रोथ हार्मोन, कोर्टिसोल, प्रोलैक्टिन और बीटाएंडोर्फिन के स्तरों का बढ़ना. द्य मेटाबोलिक रेट का बढ़ना. द्य लाइपोलाइसिस, फ्री फैटी एसिड्स का स्तर बढ़ना. द्य हृदय गति बढ़ना, त्वचा और कोरोनरी धमनियों का सिकुड़ना, रक्तदाब बढ़ना (उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रैशर की स्थिति). द्य स्केलेटल मसल्स (कंकाली पेशियों) का शिथिल होना. धूम्रपान के आदी व्यक्ति में अचानक निकोटीन की मात्रा बंद करने पर विद्ड्रौल सिंप्टम्स के रूप में निम्नलिखित विशेष लक्षण उभर सकते हैं : द्य घबराहट, चिंता व तनाव, द्य अधिक भोजन करना. द्य अधैर्य होना, चिड़चिड़ापन व गुस्सा आना. द्य एकाग्रता में कठिनाई. द्य भूख अधिक लगना. द्य अवसाद, लड़खड़ा कर चलना. द्य शरीर में कमजोरी और थकान. द्य चक्कर आना, पेट संबंधी समस्या, सिरदर्द, पसीना आना, नींद नहीं आना. द्य धड़कन तेज होना, शरीर में ?ाटका लगना. द्य सिगरेट व बीड़ी पीने की तीव्र इच्छा होना. स्वास्थ्य द्य डा. कृष्णा नंद पांडेय हड्डियों को गलाती तंबाकू की लत भारत ही नहीं दुनियाभर में तंबाकू का भारी मात्रा में सेवन चिंता का विषय बनता जा रहा है, वह भी तब जब इस से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां सब के सामने हैं. तंबाकू चबाना हो अथवा धूम्रपान करना, व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. इस से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

धूम्रपान करने से शरीर की हड्डियों के विकास और उस की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा धमनियों के कमजोर होने, कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने, हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा हो सकता है. तंबाकू सेवन से कैंसर और फेफड़ों की बीमारी जैसी जानलेवा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. दुनियाभर में तंबाकू उत्पादों की निर्माता कंपनियां अपने व्यापार को बढ़ाने तथा आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से युवाओं को उन की लत की गिरफ्त में लाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. आज विश्व में 13 से 15 वर्षीय आयु वर्ग के लगभग 37 मिलियन युवा किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं. ‘सोसाइटी फौर रिसर्च औन निकोटिन एंड टोबैको जर्नल’ 2024 के अनुसार भारत में लगभग 23 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिन में 11 करोड़ लोग खैनी, 5 करोड़ लोग गुटखा, तथा 7 करोड़ लोग तंबाकू मिश्रित सुपारी का सेवन करते हैं. भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख लोग तंबाकू के कारण कैंसरग्रस्त हो कर जान गंवाते हैं. हमारे देश में 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में मुख के कैंसर या हार्टअटैक के पीछे मुख्यतया तंबाकू और धूम्रपान का हाथ होता है. धूम्रपान के दौरान तंबाकू का धुआं नाक की कोमल ?िल्ली में जलन पैदा करते हुए फेफड़ों में पहुंच कर उन के कोमल वायु कोषों को क्षतिग्रस्त करता है. धूम्रपान के माध्यम से शरीर में कार्बन मोनोऔक्साइड, निकोटिन, बेंजीन तथा कई अन्य विषाक्त पदार्थ शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर, हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बनते हैं. दुनियाभर में तंबाकू कई रूप में प्रयोग किया जाता है. खैनी, सुरती के रूप में चबाना, बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के रूप में धूम्रपान करना या फिर बड़ीबड़ी चालाक फैक्ट्रियों में निर्मित सुगंधित पान मसाला के रूप में. तंबाकू में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एक भी गुण नहीं. विश्व के लगभग सभी देशों में तंबाकू सेवन का नशा असामयिक मौतों को खुलेआम बुलावा देता है. अनपढ़ व्यक्ति अज्ञानतावश इस की गिरफ्त में आए तो बात कुछ हद तक सम?ा में आती है, परंतु पढ़ेलिखे, यहां तक कि उच्च शिक्षा प्राप्त नामीगिरामी पेशेवर लोगों में इस के सेवन की लत लगना और उस के कारण कैंसर, हृदय रोग, ब्लड प्रैशर, पैरालिसिस जैसी तरहतरह की अनेक स्वास्थ्य समस्याओं की गिरफ्त में आ कर अकाल मृत्यु को दावत देना किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. तंबाकू से शरीर तक निकोटिन का सफर तंबाकू धूम्रपान के माध्यम से निकोटिन संचरण प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न अंगों में बड़ी तेजी से पहुंच जाता है.

धूम्रपान के बाद प्रथम कुछ मिनटों में ही रक्त में निकोटिन का स्तर बड़ी तेजी से बढ़ जाता है. निकोटिन एक कमजोर बेस होने के नाते मुख की मेंबरेंस (कलाओं) में इस का बहुत कम अवशोषण हो पाता है. हालांकि पाइप, सिगार, चिलम अथवा डार्क तंबाकू से निकलने वाला धुआं अधिक क्षारीय होने के कारण निकोटिन की कुछ मात्रा मुंह के माध्यम से अवशोषित हो जाती है. तंबाकू का धूम्रपान करने की तुलना में तंबाकू चबाने अथवा सूंघने पर मुख के माध्यम से निकोटिन का अवशोषण मंद होता है. शरीर में निकोटिन का फैलाव और उस का निष्कासन सिगरेट का कश लेने के 10 से 20 सैकंड के भीतर निकोटिन मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. सिगरेट के धुएं में घुला निकोटिन सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर, धमनी रक्त वाहिका के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर व्यक्ति के व्यवहार में बड़ी तेजी से बदलाव पैदा करता है. निकोटिन शरीर के अन्य ऊतकों में भी व्यापक रूप से पहुंच जाता है. शरीर से निकोटिन का बाहर निकलना यकृत के चयापचय यानी लिवर मेटाबोलिज्म के द्वारा होता है. मेटाबौलिज्म की दर अलगअलग व्यक्तियों में भिन्न होती है. अर्थात अलगअलग व्यक्तियों द्वारा समान मात्रा में निकोटिन का सेवन करने से उन के रक्त में निकोटिन का स्तर भिन्न हो सकता है. औसतन एक सिगरेट के धूम्रपान से रक्त परिवहन में एक मिलीग्राम निकोटिन अवशोषित हो जाता है, हालांकि इस की सीमा 0.5 से 3.0 मिलीग्राम के बीच में हो सकती है. रक्त में पहुंची निकोटिन की आधी मात्रा 2 से 3 घंटे के भीतर निष्कासित हो जाती है. इस का तात्पर्य यह भी है कि तंबाकू के एक बार सेवन के पश्चात शरीर में 8 से 12 घंटे तक निकोटिन की मौजूदगी बनी रहती है. बारबार धूम्रपान करने से शरीर में निकोटिन की मात्रा एकत्रित होती रहती है. इस प्रकार सिगरेट धूम्रपान के व्यसनी लोगों का मस्तिष्क और शरीर निकोटिन से निरंतर प्रभावित होता रहता है. नियमित धू्म्रपानकर्ताओं की तुलना में यदाकदा धूम्रपान करने वालों के लिए इस आदत को त्यागना आसान होता है.

कुछ सिगरेट निर्माता कंपनियां अपने ब्रैंड में निकोटिन की उपस्थिति कम मात्रा में होने का दावा करती हैं और कुछ लोग तथाकथित कम निकोटिन युक्त सिगरेट पीना शुरू भी कर देते हैं पर उस से अपेक्षित परिणामों की संभावना बहुत कम रहती है. अल्प निकोटिन युक्त सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की धारणा होती है कि दैनिक धूम्रपान की संख्या बढ़ने पर भी उन के शरीर में निकोटिन का अवशोषण कम मात्रा में होगा. परंतु इस के चलते अधिकांश धूम्रपानकर्ता सामान्य सिगरेट की तुलना में अल्प निकोटिन ब्रैंड की सिगरेट के धूम्रपान की संख्या बढ़ा देते हैं, जिस से शरीर में निकोटिन का अवशोषण अधिक मात्रा में हो कर उन के व्यवहार को सीधे प्रभावित करता है. एक अध्ययन में प्रतिदिन असीमित संख्या (औसतन 37 सिगरेट प्रतिदिन) और प्रतिदिन 5 सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तुलना करने पर कम धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के शरीर में तंबाकू की विषाक्तता में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीने वाला व्यक्ति निकोटिन की लत का शिकार माना जाता है. तंबाकू, खैनी चबाना व सूंघना भी एक लत दुनिया में लगभग सभी आयु वर्ग के बड़ी संख्या में लोग, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र के वयस्क और किशोर तंबाकू चबाने अथवा सूंघने की लत के शिकार हैं. जहां एक सिगरेट के धूम्रपान से शरीर में एक मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, वहीं एक ग्राम तंबाकू चबाने अथवा सूंघने से शरीर में 5 से 30 मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, जो धूम्रपान की तुलना में बहुत अधिक है. एक अन्य अध्ययन में एक ग्राम तंबाकू के चबाने और सूंघने से शरीर में क्रमश: 4.5 मिलिग्राम और 3.6 मिलिग्राम निकोटिन की मात्रा का अवशोषण पाया गया है.

नियमित धूम्रपानकर्ताओं और धुआंरहित तंबाकू सेवन करने वाले व्यक्तियों के रक्त में निकोटिन का स्तर पूरे दिनभर एक समान बना रहता है. तंबाकू की लत और स्वास्थ्य आमतौर पर तंबाकू सेवन की शुरुआत किशोरावस्था के आगमन यानी 8 से 12 वर्ष की आयु में प्रायोगिक तौर पर की जाती है. अधिकांश बच्चे अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों की संगत में आने अथवा आकर्षक विज्ञापनों में उन के आदर्श स्वरूप व्यक्तियों द्वारा धूम्रपान करते दिखाई देने के प्रभाव में धूम्रपान करने अथवा तंबाकू सेवन करने की शुरुआत करते हैं. आमतौर पर प्रतिदिन 2 से 3 सिगरेट पीने का प्रयोग करने वाले किशोरों को इस की लत लग जाने की संभावना अधिक होती है. तंबाकू का कंकाल पर प्रभाव हड्डियों से निर्मित ढांचा, जिसे कंकाल कहा जाता है, हमारे शरीर को खड़ा रखने, शारीरिक वृद्धि तथा हमारे चलने को सुगम बनाता है. मानव कंकाल विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित एक गतिशील एवं जीवित ऊतक होता है. हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में इन कोशिकाओं की संतुलित गतिविधियां महत्त्वपूर्ण होती हैं. तंबाकू के धूम्रपान के दौरान निकलने वाला निकोटिन इस नाजुक संतुलन को अव्यस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. निकोटिन का पहला प्रभाव हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार औस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता को घटाना है. औस्टियोब्लास्ट हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं होती हैं, जिन का मुख्य काम नई हड्डी कोशिकाओं का निर्माण करना, हड्डियों को मजबूती प्रदान करना, नई हड्डी के ऊतकों को बनाना, हड्डियों के विकास के दौरान नई हड्डियों का निर्माण करना होता है. निकोटिन के प्रभाव में हड्डियों के संरक्षण और उन की टूटफूट में सुधार लाने की औस्टियोब्लास्ट की जटिल प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होती है. उसी के साथ हड्डियों की ओस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. इस के अंतर्गत कोशिकाएं हड्डी के ऊतकों को नष्ट कर अस्थिपुंज को क्षतिग्रस्त करती हैं.

निकोटिन के कारण पैराथाइरौ?एड हार्मोन का स्राव बाधित होने पर हड्डियों पर पड़ने वाला हानिकारक प्रभाव और गंभीर हो जाता है. यह हार्मोन शरीर में कैल्शियम के स्तरों पर नियंत्रण रखता है. इस बाधा के कारण अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनरल डैंसिटी में गिरावट आ सकती है, जो औस्टियोपोरोसिस यानी अस्थिसुषिरता का कारण बनती है. हम जानते हैं कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए विटामिन डी एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व होता है. निकोटिन विटामिन डी के साथ क्रिया करते हुए शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को घटाने के लिए भी जिम्मेदार होता है. हार्मोन पर बुरा असर धूम्रपान का असर गोनैडोट्रौपिन रिलीजिंग हार्मोन पर भी पड़ता है. यह हार्मोन शरीर में सैक्स हार्मोन के उत्पादन पर नियंत्रण रखता है. साथ ही किशोरवय आयु और शुरुआती वयस्ककाल के दौरान हड्डियों को संपूर्णता प्रदान करने में भी इस हार्मोन की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. निकोटिन के प्रभाव में इस हार्मोन के असंतुलित होने से हड्डियों में खनिज बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिस कारण भविष्य में औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. हमारे इर्दगिर्द कई चेन स्मोकर्स मिल जाते हैं जो दिनभर में दोचार सिगरेट व बीड़ी नहीं बल्कि उन के कई पैकेट का धूम्रपान करते हैं. ऐसे धूम्रपानकर्ताओं में सूजन, शोथ करने वाली यानी इन्फ्लैमेटरी क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिस के परिणामस्वरूप हड्डी की कोशिका प्रभावित हो कर अस्थि निर्माण और उस के टूटने के बीच का संतुलन बाधित हो जाता है, जिस से हड्डियां तेजी से कमजोर होने लगती हैं. दुष्प्रभाव घातक धूम्रपान का असर केवल धूम्रपानकर्ता की हड्डियों की मजबूती पर ही नहीं पड़ता. गर्भावस्था के दौरान महिला द्वारा धूम्रपान करने से अजन्मे नवजात के कंकाल का विकास प्रभावित हो सकता है. अर्थात इस के दुष्प्रभावों का दंश पीढि़यों तक भुगतना पड़ सकता है. धूम्रपानकर्ताओं के लिए हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए धूम्रपान का त्याग करना लाभकारी होता है. शोध परिणामों से पता चलता है कि धूम्रपान त्याग करने से अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनिरल डैंसिटी में आंशिक सुधार हो सकता है. उन के लिए धूम्रपान की आदत छुड़ाने की दिशा में उठाए गए कदम, प्रदान की गई सहायता तथा प्रेरक गतिविधियां उन की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए एक संभावित प्रयास हो सकता है.

एक स्वस्थ कंकाल के लिए धूम्रपान का त्याग करने के अलावा नियमित व्यायाम करने, कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर आहार का सेवन करने, अल्कोहल का सेवन न करने जैसे जीवनशैली में बदलाव लाना धूम्रपान के कारण हड्डियों के कमजोर होने के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है. हड्डियों को स्वस्थ रखने की जंग केवल कमरे में परामर्श दे कर नहीं जीती जा सकती. इस के लिए धूम्रपान छोड़ने को सुगम बनाने की नीतियां विकसित करने, धूम्रपान की लत का शिकार हुए व्यक्तियों के लिए एक सहायक परिवेश का निर्माण करने जैसे बदलाव लाने की जरूरत है. युवा धूम्रपानकर्ताओं को जागरूक करना उन की आदत को बदलने के लिए एक सशक्त प्रेरक हो सकता है. धूम्रपानकर्ता को धूम्रपान करने से रोकने के लिए सामुदायिक स्तर पर प्रेरित करना उन की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों दोनों पर अनुकूल प्रभाव डाल सकता है. धूम्रपान और हड्डियों की मजबूती के बीच संबंधों को ज्ञात करना महज एक अकादमिक जिज्ञासा नहीं है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक व आर्थिक स्थितियों पर भी इस का अत्यंत प्रभाव पड़ता है. बाल्यकाल में धूम्रपान की शुरुआत करने वाले व्यक्तियों में हड्डियां टूटने तथा टूटी हड्डियों के ठीक होने में अधिक समय लगने का खतरा अधिक होता है. ये स्थितियां व्यक्ति के दैनिक कार्यकलापों को सीधे प्रभावित करने के साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली पर अनावश्यक आर्थिक बो?ा भी डालती हैं. निकोटिन का प्रभाव निकोटिन अणु (मौलिक्यूल) की रचना शरीर में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एसिटिलकोलीन नामक एक रसायन के रूप में होती है. यह एसिटिलकोलीन मस्तिष्क की एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरौन) से दूसरी तंत्रिका कोशिका तक सूचना का संचार करता है. एसिटिलकोलीन में मौजूद रिसेप्टर कोलीनर्जिक रिसेप्टर्स कहलाते हैं. निकोटिन मस्तिष्क तथा शरीर के अन्य अंगों में मौजूद कुछ कोलीनर्जिक रिसेप्टरों के साथ क्रिया करता है. इन रिसेप्टरों के सक्रिय होने पर निकोटिन शरीर में अन्य न्यूरोट्रांसमीटर्स और हार्मोंस के स्राव को बढ़ा देता है, जिन में एसिटिलकोलीन, नौरएपीनेफ्रीन, डोपामिन, वेसोप्रेसिन और बीटाएंडोरफिन सम्मिलित हैं. शरीर में डोपामिन, नौरएपीनेफ्रीन और सेरोटोनिन का स्राव बढ़ने पर आनंद की अनुभूति होती है, साथ ही भूख नहीं लगने की स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है. एसिटिलकोलीन का स्राव बढ़ने की स्थिति में कार्य क्षमता और स्मरण शक्ति बेहतर होने में सहायक होती है. इसी प्रकार बीटाएंडोरफिन का स्राव बढ़ने से चिंता और तनाव में गिरावट की अनुभूति होती है. नियमित धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के शरीर में ये बदलाव उन में लत लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.

निकोटिन की उपस्थिति में मस्तिष्क का सामान्य रूप से कार्य करना उस की लत लगने का ही परिणाम है. ऐसे व्यक्ति धूम्रपान बंद करने की स्थिति में शरीर में निकोटिन न मिलने से मस्तिष्क का कार्य बाधित हो जाता है, जो उपर्युक्त अनेक विद्ड्रौल सिंप्टम्स (लक्षणों) के उभरने का कारण बनता है. तंबाकू सेवन से बचाव संभव पेरैंट्स को अपने किशोरवय बच्चों की गतिविधियों और उन में होने वाले व्यावहारिक परिवर्तनों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. वरना किशोरवय आयु में प्रायोगिक तौर पर धूम्रपान अथवा तंबाकू सेवन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति को भविष्य में इस की लत का शिकार होने से बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. बच्चों को तंबाकू सेवन से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूक बना कर भावी पीढ़ी को तंबाकू की लत से बचाया जा सकता है. अच्छी शिक्षा व्यवस्था के साथसाथ मातापिता द्वारा बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना उन्हें तंबाकू की लत से बचाने में कारगर हो सकता है. तंबाकू निर्माता कंपनियों और लोकप्रिय अभिनेताओं, खिलाडि़यों के लिए तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों से बचना भी काफी हद तक सहायक हो सकता है. स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों और अधिकारियों द्वारा विशेष तौर पर स्कूलकालेजों में तंबाकू और तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए. द्य नशे की गिरफ्त में क्यों आते हैं लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी नशे की लत लगना व्यक्ति और समाज को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की हद तक उस के व्यवहार में परिवर्तन आना होता है. बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के धूम्रपान की लत लगने पर व्यक्ति के शरीर में निकोटीन का जमाव हो जाता है, जिस के कारण शरीर में निम्नलिखित बदलाव आ जाते हैं:

शरीर के अलगअलग अंगों के कार्यों पर नियंत्रण रखने वाले मस्तिष्क के अलगअलग भागों (लोब्स) के बीच पारस्परिक तालमेल (सिंक्रनाइजेशन) का टूटना.

कैटेकोलामाइंस, वेसोप्रेसिन, ग्रोथ हार्मोन, कोर्टिसोल, प्रोलैक्टिन और बीटाएंडोर्फिन के स्तरों का बढ़ना.

मेटाबोलिक रेट का बढ़ना.

लाइपोलाइसिस, फ्री फैटी एसिड्स का स्तर बढ़ना.

हृदय गति बढ़ना, त्वचा और कोरोनरी धमनियों का सिकुड़ना, रक्तदाब बढ़ना (उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रैशर की स्थिति).

स्केलेटल मसल्स (कंकाली पेशियों) का शिथिल होना.

धूम्रपान के आदी व्यक्ति में अचानक निकोटीन की मात्रा बंद करने पर विद्ड्रौल सिंप्टम्स के रूप में निम्नलिखित विशेष लक्षण उभर सकते हैं :

घबराहट, चिंता व तनाव, अधिक भोजन करना.

अधैर्य होना, चिड़चिड़ापन व गुस्सा आना. द्य एकाग्रता में कठिनाई.

भूख अधिक लगना.

अवसाद, लड़खड़ा कर चलना.

शरीर में कमजोरी और थकान.

चक्कर आना, पेट संबंधी समस्या, सिरदर्द, पसीना आना, नींद नहीं आना.

धड़कन तेज होना, शरीर में झटका लगना.

सिगरेट व बीड़ी पीने की तीव्र इच्छा होना.

लेखक : डा. कृष्णा नंद पांडेय

Rap Song : लड़की, सैक्स, पैसा, वौयलैंस, रैप गानों में सिर्फ तूतू मैंमैं

Rap Song : आज हर गलीमहल्ले, स्कूलकालेजों में युवा रैप गाते हुए सुनाई देते हैं. रैप गानों का बड़ा प्रशंसक वर्ग है, खासकर इसे युवा खूब पसंद करते हैं. लेकिन जिस तरह के रैप गाने बनाए जा रहे हैं क्या वे सुनने लायक हैं भी?

माना जाता है कि रैप की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी जब अफ्रीकी लोगों को बंधुआ मजदूरी के लिए अमेरिका लाया जाता था. अपनी तकलीफ और गुस्से का इजहार करने के लिए ये लोग यह गाते थे. आगे चल कर यह अमेरिकीअफ्रीकी समुदाय के बीच एक लोकप्रिय आर्ट फौर्म बन गया और धीमेधीमे इस ने म्यूजिक इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई. रैप कहें तो एक बेसुरे को आवाज देने का जरिया, जिस में धुनों, सुरों व तालों का कोई लेनादेना नहीं. शुरुआती समय में रैप मनोरंजन से कहीं ज्यादा सामाजिक समस्याओं के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने का जरिया था.
दूसरे शब्दों में कहें तो रैपिंग की शुरुआत अफ्रीकीनअमेरिकी अल्पसंख्यकों पर अन्याय के विरोध के रूप में हुई थी. उन के रैप आम लोगों को जिंदगी के पाठ पढ़ाते थे. लेकिन अमेरिका समेत दुनियाभर में रैप गानों की थीम में गिरावट बड़ी तेजी से हुई. भारत में भी ये बहुत छिछले तक तक जा पहुंचे हैं, जैसे कि हनी सिंह, बादशाह, रफ्तार, लिलगोलू, एमिवे, किंग ये सब वे नाम हैं जिन्होंने इस विधा की मिट्टी पलीद कर दी है.
इन के गानों में सिर्फ सैक्स, गलियां, नशा, वौयलैंस, ऐयाशी, महिलाओं के लिए अश्लीलता ही भरी पड़ी है. ये अपने गानों में सिर्फ अपनी ‘मैं’ की बात करते हैं और अपनी निजी खुन्नस या किसी भी अनुभव को गाने के रूप में पेश कर देते हैं.
सवाल यह है कि इन की ‘मैंमैं’ से युवाओं का क्या लेनादेना? युवा ऐसे गाने सुन कर क्या सीख लेंगे? सीखना तो दूर, इन के गाने युवाओं को भ्रष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
ये अपने गानों में आपसी लड़ाई के किस्से जाहिर करते हैं. सालों पुराने झगड़ों को गानों में घसीटते रहते हैं और आर्ट की जगह सस्ते विवादों का सहारा ले कर गाना हिट कराते हैं. क्या यह दुकान चलाने का जरिया नहीं?

उलजलूल गाने

इस समय कुछ नामचीन रैपर्स का इस इंडस्ट्री में बोलबाला है. मगर इन के गाने सुनें तो ऊलजलूल हैं. विजुअल्स में बड़ी कार, बड़ा घर, बैकग्राउंड में लड़कियां होती हैं. पैसों का दिखावा करते हैं. इन के लिरिक्स सुनने लायक नहीं होते.
इन के लगभग सभी गानों में गलीगलौच चल रही होती है. वौयलैंस को ग्लोरिफाई किया जाता है. बड़ीबड़ी बंदूकें ले कर घूमते हैं. यो हनी सिंह का ‘बोनिता’ वाला गाना भी ऐसा ही है.
इस में वे कहते हैं- ‘सब से करीब मेरे तू ही है बनिता. औन स्पौट करती है मर्डर ये. जब वे करती सफाई निकलता आशिकों का मलबा. आजा बरसा दू तेरे हुस्न की बारिश.’
यानी, लड़की के इतने आशिक हैं कि घर की सफाई में उन का मलबा निकलता है. वाकई आप किसी के हुस्न की बारिश कर सकते हैं, हम ने तो नहीं देखी कभी ऐसी बारिश. इसी तरह हनी सिंह ने ‘मिलेनियल’ गाना बनाया है जिस में सिर्फ अमीरी का बखान है. हैरानी यह कि यह गाना वे सुन रहे हैं जो घोर गरीबी में जी रहे हैं.
ऐसा ही एक रैपर निशायर है, उस के बोल कुछ इस तरह हैं, ‘भाड़ में गई तू तेरा वो प्यार. तेरे लिए ली मैं ने किस्तों पे कार. सब ने कहा तू फेक है जब तू रहता है फोन पे वो बातें करें अननोन से. वो सगी नहीं बेटा किसी की. उस की नशीले आंखों ने घर हैं उजाड़े. तूने दिखा ही दी अपनी औकात प्रौमिस है मेरा, तू बरबाद होगी.’
यहां ऐसा लगता है जैसे सिंगर अपने ताजाताजा हुए ब्रेकअप की भड़ास निकाल रहा है. उस से युवा क्या सीख रहे हैं. वो बदला लेने की बात करता है, लड़की को बरबाद करने की बात करता है. क्या ऐसा करना और कहना सही है. यंग एज में जाने कितने ब्रेकअप होते हैं, लोग अपने ब्रेकअप को इस गाने से जोड़ कर देखेंगे और क्या इस सिंगर वाली फीलिंग खुद में ला कर नफरत करना ही सीखेंगे?
रैप सिंगर जो जो हिंद का एक गाना है (लड़की हरामी). इस में अश्लीलता की सारी हदें पार हो गई हैं.
इस गाने को सुन कर शर्म से आंख न झुक जाए तो कहना. यह गाना पूरी तरह सैक्स पर आधारित है. ‘लड़का कहता है मेरी जेब में है रौकेट, फ्लौवर उस का स्ट्रौबैरी हो या वनीला, फर्क नहीं पड़ता, मुझ को चरम सुख देदे…’ इस के आगे ऐसी बातें हैं जो कही नहीं जा सकतीं. अंत में वह कहता है- वो बंदी हरामी थी.
इस गाने में अश्लीलता का वह मंजर दिखाया है जिसे आप सिर्फ अकेले में ही सुन सकते हैं. सवाल यह कि वह गाना ही क्या जिस पर आप थिरक न सकें, जिसे सुनने के लिए बंद कमरे की जरूरत पड़े.
वन ‘बोटल डाउन’ में हनी सिंह कहते हैं- ‘मैं सोता हूं, दिन में पार्टी करूं या रात में. संडे हो या मंडे मैं तो डेली पीता हूं, सब को पता है मैं दारू पे ही तो जीता हूं.’
इस गाने में हनी युवाओं को बता रहा है कि आप को पढ़नेलिखने की कोई जरूरत नहीं है. आप दिन में सोएं और रात को इन के गानों पर नाचनाच कर पार्टी करें. रोज दारू पीने की सलाह भी ये देते हैं. क्या ऐसे नशेड़ियों को आईडियालाइज करना ठीक है? ये सिखा क्या रहे हैं युवाओं को? लड़कियों को चरित्रहीन और खुद बेचारा दिखाने के अलावा इन के गानों में क्या है? फिर ये अपने गानों में जम कर पार्टी करने और नशे करने की बातें करते हैं. अरे भाई, ऐसी हरकतें रहेंगी तो लडकियां छोड़ेंगी ही न.
रैपर बादशाह अपने ‘सनक’ गाने में कहता है, ‘प्यार इतना ज्यादा दिया कि वो रोने लगी, मानसिक संतुलन अपना खोने लगी, पहले गंदा किया फिर खुद ही धोने लगी. एक रात में ही लव उसे होने लगी.’
मतलब क्या लिरिक्स हैं? मानसिक संतुलन तो रैपर का हिला हुआ है. वास्तव में इस अलबम को सनक नाम दे कर सही ही किया है. कोई सनकी व्यक्ति ही ऐसा गाना लिख सकता है. कह रहा है कि अगर लड़की को ज्यादा प्यार दो तो वह अपना मानसिक संतुलन खो देगी. हाऊ रबिश.
रैप सिंगर मोनू का गाना दो कदम आगे है, ‘समस्तीपुर रोसड़ा में रहते हैं जान, बोले तो बीआर 33 है शान. चलचल बेटा तुझे घुमा दूं मैं बस्ती.’
मतलब, इस में रैपर कहना क्या चाह रहा है? लाखों इसे देख चुके हैं, कहीं का कुनबा कहीं का रोड़ा-
‘चले जब तू लटकलटक
लौंडो के दिल पटकपटक
सांसें जाएं अटकअटक
आता माझी सटकसटक
बम तेरा गोते खाये
कमर पे तेरी बटरफ्लाई
बौडी तेरी मक्खन जैसी
खाने में तू बस मटर खाए.’
भोजपुरी गाने तो योंही बदनाम हैं. असल गंद तो इन रैपर्स ने फैलाया हुआ है. वे बेचारे तो ड्योडी और पेटीकोट तक ही सीमित हैं, ये तो लड़कियों के ऐसेऐसे प्राइवेट पार्ट्स को इंग्लिश में बोल जाते हैं जैसे रेशमी जुल्फें और शरबती आंखों की ही बात हो, बस. दिक्कत यह है कि आर्टिस्टिक फ्रीडम के नाम पर ये किसी का भी गाना चुराने से परहेज नहीं करते.

बात सिर्फ रैप सौंग की नहीं

दिक्कत यह है कि इन रैपर्स के छोटेछोटे पोडकास्ट सोशल मीडिया पर काफी वायरल रहते हैं, जिन में ये एकदूसरे को कुछनकुछ बोल रहे होते हैं. ये रील्स बहुत वायरल होती हैं. यंगस्टर इसे खूब देखते हैं और काफी पसंद करते हैं.
यह बात इन्हें भी पता है कि जिस देश की जनता के पास जेसीबी की खुदाई देखने का समय हो वहां इन नौटंकियों के लिए तो समय होगा ही. इसलिए ये एकदूसरे पर कीचड़ भी उछालते हैं क्योंकि इन्हें पता है यहां से इन्हें पब्लिसिटी मिलेगी. जैसे हाल में एक पोडकास्ट में हनी सिंह ने अपनी बहुत सारे रैप सिंगर के साथ लड़ाई को जगजाहिर किया और उस पर काफी बातें कीं. उस ने बादशाह को अपना क्लाइंट बताया. इस के बाद बादशाह ने इस का जवाब दिया.
ये लोग ऐसा ही करते हैं. एक ने कुछ कहा तो दूसरा वैसे ही किसी पोडकास्ट में आ कर उस बात का जवाब देता है. इन लोगों की ऐसी बातें युवा खूब पसंद करते हैं.

वायरल का गेम

जनवरी 2025 में रैपर ओजी 2 लो ने इंटरनैट पर तहलका मचा दिया जब उस का एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में वह गलती से अपने पैर में गोली मार लेता है. इस पर वह कहता है, ‘हर बार जब हम एकसाथ मिलते हैं तो इतिहास बनाते हैं. सो, मुझे लगता है कि हम ने अभी इतिहास बनाया है.’
जैसे ही वीडियो औनलाइन वायरल हुआ, लोगों ने रैपर की खूब आलोचना की. और उसे ऐतिहासिक पल नहीं बल्कि उस की लापरवाही बताया. ये लोग कई बार वायरल होने के लिए भी ऐसा करते हैं ताकि लोग इन्हें देखें और सुनें.
मशहूर होने के लिए ये घटिया गाने तक बनाते हैं. सिंगर और रैपर हनी सिंह को 10 साल पुराने विवादित गाने के मामले में राहत मिली. दरअसल कुछ साल पहले ‘मैं हूं बलात्कारी’ गाने को ले कर बवाल हुआ था. ये लोग इस तरह के विवादों में भी फंसते रहते हैं.

आपसी लड़ाई का दिखावा

यह पूरी दुनिया का ट्रैंड है. आप को मशहूर होना है तो विवाद छेड़ो. केंड्रिक लैमर और ड्रेक के बीच रैप विवाद ऐसा ही है. हिपहौप की दुनिया में यह एक बड़ा विवाद रहा है. इस विवाद में दोनों रैपर्स ने एकदूसरे पर कई गाने जारी किए. इस विवाद में ड्रेक ने लैमर पर पीडोफीलिया का आरोप लगाया था. वहीं, लैमर ने ड्रेक पर ‘गुप्त बेटी’ रखने का आरोप लगाया था.
ड्रेक ने लैमर के छोटे कद पर हमला करते हुए कई नासमझी भरे शब्द कहे थे. इस तरह के विवाद होना इन रैप सिंगर्स के बीच आम बात है. कई बार ये विवाद सच में ही हो जाते हैं और कई बार मिलीभगत से होते हैं ताकि इन के गाने को पौपुलैरिटी मिल सके और लोग विवाद के चलते इन के गानों को बारबार सुनें और गाना हिट हो जाए.
ये इसी चलते बस तूतूमैंमैं करते हैं, पीछे सब सैट होता है. ये लोग अपने रैप गानों में आपस में एकदूसरे के बारे में बोलते हैं, लिखते हैं. अपने को बड़ा बताते हैं, दूसरे को छोटा.
ऐसा ही विवाद हनी सिंह और बादशाह के बीच है, लेकिन यह विवाद से ज्यादा पीआर स्ट्रेटेजी जान पड़ती है. इन की आपस में क्रैडिट लेने की होड़ है, पब्लिकली खूब हल्ला मचाते हैं लेकिन कानूनन कुछ और बोलते हैं. ऐसा है तो मुकदमा करें.
इन सब का पैटर्न है, खेमेबंदी या पूछबंदी. खेमेबंदी में अलगअलग रैपर्स के खेमे बंटे हैं और एकदूसरे को गरियाते हैं, पूछबंदी में किसी का गाना रिलीज हो रहा होता है तो कुछ समय के लिए विवाद खड़े करता है. जैसे, हनी सिंह के गाने आएंगे तो वो बादशाह को सुनाएगा, बादशाह अपने गाने के समय जवाब देगा. रफ़्तार अपनी रिलीज के समय किसी को सुनाएगा. बस, यही चलता रहता है. ऐसे लगता है जैसे देश में राज्यों के चुनाव आ रहे हों, जहां चुनाव होने हैं वहां विवाद होने हैं.
इन की ये लड़ाइयां बहुत छोटीछोटी हैं जिन को ये बड़ा बना कर पेश करते हैं. इन के ये 10-15 साल पुराने झगडे हैं जिन्हें ये अभी तक भुना रहे हैं क्योंकि यूथ इन्हें देख रहा है. अंदर से इन का मार्केट बना रहे, यही सब का मकसद है.
सोशल मीडिया पर इन के फैन पेज हैं जो पीआर हैंडल करती हैं, वहां ये आपस में ट्रोल करते हैं. सो, इस तरह के लोगों को सपोर्ट करना अपना समय बरबाद करने जैसा है. दरअसल, इन का कोई झगड़ा है ही नहीं, सिर्फ इंगेजमैंट मिलती रहे, इसलिए बखेड़ा है.
यूथ को भी समझना चाहिए जिन रैपरों को वे सपोर्ट करते हैं उन की हकीकत है क्या. वे किस तरह के गाने बनाते हैं, क्या इस से उन के जीवन में कोई पौजिटिव चेंज आ रहा है? वे इन को सुन का किस तरह की सोच अपने दिमाग में भर रहे हैं.

शोध से खुलासा

शोध प्रमुख और यूटीहैल्थ्स स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ के संकाय सहयोगी किमबर्ले जोनसन बेकर का कहना है, ‘रैप संगीत आप के उस विश्वास को बढ़ाता है कि आप के साथी क्या कर रहे हैं. यह हमें समझाता है कि कुछ चीजें करना ठीक है, जैसे शराब पीना या सैक्स करना. यह आप को यह सोच देता है कि हर कोई यही कर रहा है.’
जोनसन बेकर कहते हैं कि जितना आप इसे सुनते हैं, उतना आप इस पर यकीन करते हैं. सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, जो टीनएजर रोजाना 3 घंटे या उस से ज्यादा समय तक रैप गाने सुनते हैं, उन की सोच में बदलाव आते हैं.
सिर्फ यही नहीं, जितने भी रैप गाने होते हैं वे लगभग एक ही बीट या धुन पर बने रहते हैं. शब्द कुछ भी डाल दीजिए, कुछ भी फर्क नहीं पड़ता. सोचिए, इन का गाया एक भी रैप पूरा याद नहीं होता जबकि अर्थपूर्ण पुराने गाने आज भी कितने सारे याद रहते हैं.
लेकिन युवा रैप गाने बहुत पसंद करते हैं. लेकिन हमारे देश में रैप एक और कानफोड़ू, उत्तेजक संगीत के रूप में ज्यादा है, जिस में विलासिता, शराब, लड़कियां, गाड़ियां और बेतुकी पंक्तियां हैं.
रैप गानों का भविष्य कितना उज्ज्वल है, इस बारे में कहा जा सकता है कि ये गाने सिर्फ डिस्कोथिक में बजने के लिए बनाए जा रहे हैं, जहां लोग तेज बीट पर डांस कर सकें. गाने के बोल क्या हैं, यह कोई माने नहीं रखता.
नौर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में की गई एक स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि प्रचलित रैप सौंग डिप्रैशन और खुदकुशी की वजह बनते जा रहे हैं. साथ ही, ये एक मानसिक बीमारी का भी रूप लेते जा रहे हैं.
कैरोलिना की रिसर्च यह बताती है कि रैप आर्टिस्टों के जरिए ही ये मैंटल हैल्थ की समस्या बढ़ रही है. नौजवान जिस तरह के रैप गाने आजकल सुन रहे हैं उस से उन के दिमाग पर सीधा असर पड़ रहा है. 18 से 25 साल के नौजवानों में यह समस्या सब से ज्यादा देखी जा रही है. वे स्ट्रैस की वजह से सुसाइड तक कर लेते हैं. क्रेसोविक कहते हैं कि 125 रैप सौंग्स गानेवाले कलाकारों की औसत आयु भी 28 साल तक की ही है.
शोधकर्ताओं ने जाना कि अमेरिका के 25 सब से ज्यादा पौपुलर रैप सौंग को 1998, 2003, 2008, 2013 और 2018 में बनाया गया. इन में से लीड रैप आर्टिस्ट जो कि काले लोग थे और जिन के एकतिहाई गानों में एंग्जाइटी, 22 फीसदी में डिप्रैशन और 6 फीसदी में सुसाइड वाली चीजें थीं.
हालांकि भारत में इस तरह के रैप सौंग अभी नहीं बं रहे लेकिन यह भी कम दिक्कत वाली बात नहीं कि है रैपर्स यूथ को बेहद घटिया स्तर के रैप परोस रहे हैं.

Majority and Minority : बहुमत और अल्पसंख्यक

Majority and Minority : जो कुछ भारत का भगवा गैंग पिछले 30-40 सालों से देश में मुसलिमों और उन की मसजिदों, मजारों, मदरसों, वक्फों के साथ कर रहा है वैसा ही अब बंगलादेश में होने लगा है जहां अभी भी 13-14 फीसदी हिंदू हैं और अब तक चैन से जी रहे थे. 1971 से पहले कराची और इसलामाबाद से चलने वाली संयुक्त पाकिस्तानों की सरकारों और 1971 में भारत की इंदिरा गांधी की सहायता से बनी बंगलादेश सरकार से कोई खास परेशानी बंगलादेशी हिंदुओं को नहीं हुई.

काफी समय से भारत में हिंदूमुसलिम-हिंदूमुसलिम हो रहा है, सो, बंगलादेश में इस की गूंज उठनी ही थी. शेख हसीना ने लोकतंत्र को जमीन में गाड़ कर तानाशाही सरकार कुछ भारत भरोसे, कुछ आर्मी के सहारे 2009 से 2024 तक चला लिया लेकिन जब उन्होंने कट्टर मुसलिमों को रजाकार कहना शुरू किया तो भारत के भगवाओं की तरह वहां के रजाकारों ने न केवल उन्हें ढाका से निकाल फेंका, बल्कि अब वे पश्चिमी पाकिस्तानियों और भारत के भगवाइयों की तरह हिंदूमुसलिम भी करने लगे हैं.

धर्म के नाम पर राजनीति करना हमेशा खतरनाक होता है पर शासकों को यह हमेशा सहज और सरल लगता है क्योंकि धर्म के एजेंट गांवगांव, महल्लेमहल्ले में फैले होते हैं. जिस के साथ धर्म के दुकानदार होते हैं उस की सरकार लंबी चलती है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान में यही हो रहा है और अब तो दुनिया के सब से समर्थ शक्तिशाली लोकतंत्र अमेरिका में भी यही हुआ है कि चर्च के समर्थन पर डोनाल्ड ड्रंप सत्ता में हैं.

बंगलादेश के हिंदुओं पर हो रहे हमलों को नहीं रोका गया तो स्थिति पूरे महाद्वीप में गड़बड़ा सकती है. भारत आज पाकिस्तान और बंगलादेश से बहुत मजबूत स्थिति में है पर जैसे यूक्रेन ने अपने से चारगुनी बड़ी आबादी वाले रूस की नाक में दम कर रखा है, पाकिस्तान और बंगलादेश मिल कर, अगर वे कभी मिल गए तो, भारत के कई राज्यों में स्थिति को काफी डांवांडोल कर सकते हैं.

इस समस्या का हल सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र के पास है जिस में व्यक्ति के आर्थिक और शारीरिक सुखों की गारंटी पहले होती है. भारत आज लोकतंत्र की दुहाई नहीं दे सकता कि करोड़ों अगर एक तरफ हों तो भी एक अकेला उन के विरुद्ध तर्क और अधिकारों की बात पर खड़ा रह सकता है. जब बात सिर्फ बहुमत की हो और भारत में बहुमत हिंदू यह समझो कि उन का हक है कि वे अल्पसंख्यकों को क्या दें और क्या उन से छीनें तो दूसरे देशों में भी ऐसा ही होगा और तब नई दिल्ली सरकार की हर आवाज बेमतलब हो जाएगी.

बंगलादेश के हिंदू आज डरेसहमे हैं तो उस की वजह केवल और केवल भारत के हिंदू गैंग हैं जो रातदिन सोशल मीडिया पर हिंदूहिंदू करते रहते हैं.

Supreme Court, संसद और संविधान

Supreme Court को संविधान में जो अधिकार मिले हैं वे मूलतया यह देखने को मिले हैं कि संविधान का सरकारें ढंग से पालन करती हैं, संविधान के दायरे के अंदर ही कानून बनाती हैं और जनता को ऐसे कानून या प्रशासनिक निर्णय नहीं सहने पड़ते जो संवैधानिक कानूनों या खुद संविधान के खिलाफ हों.

उम्मीद यह थी कि वोटों से चुन कर आई सरकारें जनता की तकलीफों को समझेगी और सुप्रीम कोर्ट से पहले जनता की सुनेंगी, सुप्रीम कोर्ट को दिखावटी संस्था बना देंगी. हुआ उलटा. आज सुप्रीम कोर्ट सब की सुन रही है, देरसवेर सही, और दोनों पक्षों की सुन कर फैसले देती है.

आम जनता संसद और विधानसभाओं से निकले कानूनों व सरकारी अट्टालिकाओं से लाउडस्पीकरों के जरिए थोपे फैसलों और फरमानों से ज्यादा खुश है. सुप्रीम कोर्ट सब की सुन कर फैसले देती है, जबकि सरकार बंद कमरों में फैसले करती है.

आजकल तो सरकारों ने मंत्रिमंडलों तक की सुनना बंद कर दिया है. सरकारों ने बाबुओं की फौज जमा कर ली जो अपने निजी हितों के अनुसार फैसले लेते हैं, जनता की न तो उन तक पहुंच है, न वे सुनते हैं. उन के कान केवल अंबानियों और अडानियों जैसों के लिए खुलते हैं जहां से उन को जमीनजायदादें, बच्चों के लिए विदेशी दौरे, विदेशों में सैटल होने की सुविधाएं मिल रही हैं.

इस बाबूडम को केवल सुप्रीम कोर्ट हड़का पाती है. नेताओं को तो मालूम भी नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट में क्या चल रहा है, कौन से सवाल पूछे जा रहे हैं, कौन से जवाब दिए जा रहे हैं. यह काम बाबुओं की फौज करती है, वही सुप्रीम कोर्ट में पेश होती है, वही अपने वकीलों को अपना पक्ष सुनाती है.

जो बहस जनता और भाजपा के बीच विधानसभाओं, राज्यसभा, लोकसभा में होनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के कक्षों में होती है. सुप्रीम कोर्ट के जज चाहे चुन कर आए जनप्रतिनिधि न हों, पर वे जनता के ज्यादा करीब हैं क्योंकि वे किसी फैसले से न तो अपनी जेब भर सकते और न उन्हें नोटों भरे टैंपों की जरूरत होती है.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक फैसले में कहा है कि वह अब कानूनों का औडिट भी करेगी कि जो कानून बने वे संवैधानिक ढंग से ठीक थे या नहीं, उन का संवैधानिक लाभ आम जनता को मिला या नहीं और कानून की बारीकियों की आड़ में जनता से कानूनी व संवैधानिक हक छीने तो नहीं गए.

संसद और विधानसभाएं तो लगता है कि सिर्फ नारेबाजी के लिए हैं. अफसोस यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस मौलिक व आवश्यक जिम्मेदारी को फरसे से जैसे काटकाट कर गंगा में बहा सा दिया जो पौराणिक गौहत्या से भी ज्यादा जघन्य पाप है.

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