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लिंग के आकार से जुडे 3 मिथक

सैक्स हमारे लाइफ का ऐसा रूटीन है जिसे हम हर दिन बेहतर बनाना चाहते हैं. सैक्स से जुड़े ऐसे कई मिथ्स हैं जिसे ले कर कपल्स के बीच तनाव बना रहता है और इसे सुधारने के लिए वे कुछ ऐसे उपाए करने लगते हैं जिस से उन को और भी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

तो आइए, जानते हैं सैक्स से जुड़ी कुछ खास बातें जिसे पढ़ कर आप की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी :

साइज (Size)

कई पुरुष इस बात से परेशान रहते हैं कि क्या उन के लिंग का साइज सही है और वे अपने पार्टनर को संतुष्ट कर पा रहे हैं? क्योंकि ऐसा देखा गया है कि कई कपल्स एकदूसरे से सैक्स की बातें करने में शरमाते हैं और अंदर ही अंदर इस बात से परेशान रहते हैं कि कहीं उन में किसी बात की कोई कमी तो नहीं है.

पुरुषों को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि वे अपनी पत्नी को अच्छी तरह संतुष्ट कर पाएं ताकी उन की पत्नी अपनी सैक्स डिजायर पूरा करने के लिए किसी और के साथ संबंध न बना ले.

जरूरी नहीं है कि अगर आप के लिंग का साइज छोटा है तो आप अपने पार्टनर को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे. सामान्य भारतीय पुरुषों के लिंग का साइज इतना होता ही है कि वे अपने पार्टनर को संतुष्ट कर सकें.

अकसर हम पोर्न मूवी में देखते हैं कि उन के लिंग के साइज काफी बड़े होते हैं और सैक्स काफी देर तक किया जाता है। इस से दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि बड़े आकार का लिंग से ही पार्टनर को संतुष्ट किया जा सकता है पर ऐसा नहीं है.

सचाई यही है कि अपने सैक्स पार्टनर को ओरल सैक्स से भी संतुष्ट किया जा सकता है. फीमेल पार्टनर को बस इतना चाहिए होता है कि उन का पार्टनर सिर्फ सैक्स पर फोकस न करे बल्कि सैक्स से पहले जम कर रोमांस और ओरल सैक्स करे.

अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जम कर किसिंग करें और इस प्रोसेस में बिलकुल भी जल्दबाजी न करें. सैक्स को हमेशा धीरेधीरे ऐंजौय करना चाहिए जिस से दोनों को चरमसुख मिले.

ड्यूरेशन यानि समय

जैसाकि हम ने आप को बताया कि पुरुषों को ऐसा लगता है कि लंबे समय तक सैक्स करने से ही उन का पार्टरन संतुष्ट हो सकता है. ऐसी सोच हमारे अंदर पोर्न देखने से भी आती है क्योंकि पोर्न में यह दिखाया जाता है कि जितनी देर सैक्स करेंगे उतना ही पार्टनर संतुष्ट होगा। मगर यह सचाई नहीं है. अगर आप सैक्स के दौरान अपने पार्टनर के प्राईवेट पार्ट्स के साथ थोड़ी छेड़छाड़ करें, अपनी जीभ उन की बौडी पर फेरें और अपने लिप्स से उन की बौडी पर इस कदर किस करें कि वे आप को अपनी बांहों में कस कर जकङ लें तो इस से भी आप अपने पार्टनर को चरमसुख का आनंद दे सकते हैं.

हमेशा सैक्स से पहले ओरल सैक्स जरूर ट्राई करना चाहिए जिस से कि दोनों पार्टनर्स जम कर ऐंजौय कर सकें. कई लोग अपनी सैक्स लाइफ इसी वजह से बोरिंग बना लेते हैं क्योंकि वे सिर्फ सैक्स पर फोकस करते हैं और कुछ ही देर में वे इजैक्यूलेट हो कर अपने पार्टनर से अलग हो जाते हैं जिस से दोनों को असल सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती.

प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन (Pre Mature Ejaculation)

प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन के बारे में तो आप ने सुना ही होगा. इस में पुरुषों का समय से पहले ही इजैक्यूलेट यानि स्खलित हो जाता है. इस वजह से कई पुरुष काफी परेशान रहते हैं पर किसी को बता नहीं पाते क्योंकि उन के लिए यह बहुत शर्मनाक बात होती है. ऐसे में हम आप को बता दें कि प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है.

आप सैक्स स्पैशलिस्ट से मिल सकते हैं, जिसे इन सब बातों का अनुभव हो. ऐक्सपर्ट से छिपा कर अगर आप बाहर से या नीमहकीम से कोई ऐसीवैसी दवाई ले लेंगे तो यह आप के लिए और भी ज्यादा गलत साबित हो सकता है और बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है.

अच्छा तो यही है कि पहले अपने सैक्स पार्टनर से बात करनी चाहिए कि क्या उन्हें आप के अंदर कोई कमी नजर आती है और अगर पार्टनर संतुष्ट है तो आप को किसी बात की टैंशन लेने की जरूरत नहीं है। पर अगर आप का पार्टनर आप की किसी कमी के बारे में बताता है तो आप को शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है बल्कि किसी अच्छे डाक्टर से मिल कर सलाह लें.

सैक्स के बारे में बात करने से कभी न शरमाएं और खासतौर पर अपने पार्टनर से सैक्स से जुड़ी सारी बातें करें ताकी आप दोनों एकदूसरे को और एकदूसरे की शारीरिक जरूरतों को समझ सकें.

नुपूर शर्मा के बाद कंगना रनौत से पल्ला झाड़ रही है बीजेपी, कहीं पार्टी के अंदर ही न पड़ जाए फूट

साल 2022 में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा की ओर से इसलाम के आखिरी पैंगबर पर दिए बयान पर जैसे ही पूरे विश्व में बवाल हुआ, उस समय दस से भी अधिक देशों ने इस पर आपत्ति जताई थी, भारतीय मुसलिमों में भी उन के बयान को ले कर काफी गुस्सा था. पार्टी ने तुरंत नुपूर शर्मा से अपना पल्ला झाड़ लिया. उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्‍या से सस्पेंड कर दिया गया.

पहले नुपूर अब कंगना पर बीजेपी का प्रहार

इतना ही नहीं पार्टी की ओर से एक बयान जारी किया गया कि किसी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ का अपमान करने वाली विचारधारा के हम खिलाफ हैं. उस समय नुपूर बिलकुल अलगथलग पड़ गई थी. उन्‍हीं दिनों भारतीय जनता पार्टी ने नवीन जिंदल को भी पैंगबर मोहम्‍म्‍द को ले कर किए गए कंट्राेवशर्यिल ट्वीट पर पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया था. कंगना रनौत के नए बयान के बाद भाजपा आज फिर नुपूर शर्मा के मामले की तरह रिएक्ट कर रही है. कंगना रनौत के बयान से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है. एक टीवी चैनल को दिए अपने बयान में कंगना ने किसान आंदोलन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि आंदोलन के दौरान कई हत्याएं हुई और बलात्कार की घटना भी हुई.

न घर की न घाट की भाजपा

कंगना की बात में कितना दम है यह मुद्दा विचारनीय है लेकिन कंगना के इस बयान के बाद भाजपा को यह डर सताने लगा कि किसान आंदोलन का भूत फिर से कंगना रनौत के बहाने उस से चिमट नहीं जाए. पहले ही वह लोकसभा के अपने रिजल्ट से पूरी तरह निकल नहीं पाई है. उधर पहले ही लीडर औेफ अपोजिशन राहुल गांधी ने किसानों को अपनी तरफ कर रखा है, पिछले दिनों मानसून सत्र के दौरान बहुत सारे किसान नेताओं ने संसद में राहुल गांधी से मुलाकात करनी चाही थी, तब ऐसा कहा जा रहा था कि ये सभी नेता राहुल गांधी को प्राइवेट मेंबर बिल लाने को कहेंगे. कहा जाता है कि इसी बैठक के बाद 15 अगस्त के दिन देश भर में ट्रैक्टर रैली निकालने का फैसला लिया गया. इसी बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि किसान नए अपराधिक कानूनों का विरोध करने के लिए इस की कौपियां जलाएगी. अब ऐसी स्थिति हो तो लोकसभा चुनाव में अपनी घमंड की वजह से चारों खाने चित हुई भाजपा भला किसानों से क्यों पंगा ले.

पूरी तरह से दिग्भ्रमित नजर आ रही है बीजेपी

सच कहा जाए तो फिलहाल मोदी सरकार किसी नए पचड़े में नहीं पड़ना चाहती है, चाहे वह मामला देश का हो या विदेश का. यही वजह है कि उन्हें मास्को से भी गला मिलना पड़ता है और कीव से भी. भाजपा फिलहाल हर मुद्दे पर दिग्भ्रमित नजर आ रही है इसलिए वह कंगना के रूप में विपक्ष से पंगे लेने का नया मोर्चा नहीं खोलना चाह रही है.

पार्टी ने स्पष्ट कह दिया है कि बीजेपी पूरी तरह से कंगना के बयान से असहमत है. भाजपा की ओर से यह भी कहा गया कि पार्टी के नीतिगत विषयों पर बयान देने के लिए कंगना अधिकृत नहीं है. पार्टी ने कंगना को भी कड़े शब्दों में यह दिया गया है कि वह फिलहाल अपनी बड़बोली जबान को बंद ही रखें.

हिंदू हितों और हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को ध्यान में बोलने पर भी अगर पार्टी से जुड़े लोगों को भी भाजपा इसी तरह से दरकिनार करती रही या उन से पिछा छुड़ाती रही तो जल्दी ही पार्टी दो खेमों में बंटती नजर आ सकती है, एक जो हालिया चुनावी नतीजों के बाद यह मानने लगी है कि अब मोदी का जादू नहीं चल रहा, दूसरा जिसे अब योगी हिंदू हितों का उभरता चेहरा लग रहे हैं, अब कंगना को ही ले लें, जिस के अनुसार वे योगी आदित्‍यनाथ की उस आइडियोलौजी से प्रभावित हैं, जिस के कारण वह बुलडोजर बाबा के नाम से जाने जाते हैं. कोलकाता हत्या रेप मामले को शर्मनाक बताते हुए कंगना ने कहा कि उन्हें योगी आदित्यनाथ का न्याय मौडल सही लगता है.

इमरजैंसी और इंदिरा पर कंगना की बातें

कंगना की मूवी इमरजैंसी 6 सितंबर को रिलीज हो रही है, यह फिल्म इंदिरा गांधी की ओर से साल 1975 में लगाए गए आपातकाल पर बनी है, फिल्म को बनाने वाली कंगना ने एक टीवी को दिए इंटरव्यू के दौरान यह स्वीकारा कि प्रियंका गांधी बिलकुल अपनी दादी इंदिरा गांधी जैसी नहीं है. उन्होंने यह भी माना कि राहुल गांधी कभी भी इंदिरा गांधी की तरह पौपुलर नहीं हो पाएंगे. जब कंगना से यह पूछा गया कि संविधान का सब से बड़ा हत्यारा कौन है, तो कंगना ने कहा इंदिरा गांधी. कंगना ने इस प्रोग्राम में यह भी स्वीकारा कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी इस देश का सब से बड़ा तानाशाह नेता रहे हैं, इंदिरा गांधी पर बनी इस फिल्म का काफी विरोध हो रहा है, कंगना को सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकियां भी मिल रही है, ऐसे में कंगना की यह मूवी रिलीज होने तक न जाने क्याक्या होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

उधर कंगना ने किसान आंदोलन वाले अपने बयान पर यह कहा है कि आने वाले समय में वह पार्टी के सोच के अनुसार ही बयान देंगी और भविष्य में अपने शब्दों के चयन को ले कर सावधान रहेंगी. ऐसे में सवाल यह उठता है क‍ि क्‍या अपने ही लोगों को नाराज कर बीजेपी खुश रह पाएगी, क्‍या इससे पार्टी के नेताओं में असंतोष का अंकुर नहीं फुटेगा, जो पार्टी की जमीन में दरार पैदा कर दें.

बहु के आते ही एटिकेट्स के सांचे में ढलते ससुरालवाले

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है एक घर में दो भाई एक बहन एक मातापिता रहते हैं. बड़े भाई की शादी के बाद मातापिता, भाईबहन की जिंदगी पर क्या असर आएगा. नई बहु के आने के बाद ससुरालवालों की ज़िंदगी कितनी बदल जाती है. वे अपने ही घर में अजनबी से हो जाते हैं, चाहते हुए भी बहुत से ऐसे काम होते हैं जो पहले वे बिंदास कर लिया करते थे लेकिन अब घर में बहु है तो सोचना पड़ता है. इसलिए ऐसा नहीं है कि शादी के बाद बहु की जिंदगी में ही बदलाव आता है बल्कि बदलाव तो ससुराल वालों की जिंदगी में भी आता है.

बस फर्क इतना है बहु अपना घर छोड़ कर आती है तो उस की बातें ज्यादा की जाती है और ससुराल वालों की छोटीमोटी परेशानियों की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता है. इसलिए आज हम आप को बताते हैं कि बेटे की शादी के बाद ससुरालवालों की जिंदगी कितनी बदल जाती है और वे भी बहु के साथ कितना एडजस्ट और कम्प्रोमाइज करते हैं.

अपने किचन को बहु के साथ बांटना सास के लिए होता है बहुत मुश्किल

सास बहु का सब से ज्यादा झगड़ा जहां होता है घर में वो सो कोल्ड पवित्र स्थान है किचन. आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है, क्योंकि सास की भावनाएं उस किचन से जुड़ी होती हैं. यही वह जगह है जहां उस ने काम करतेकरते अपनी आधी जिंदगी निकाल दी. उस किचन में हमेशा से ही एकछत्र राज सास का ही होता था, उसी के बनाए नियमकायदे हमेशा से चलते आए होते हैं. वे अपने ही हिसाब से किचन चलाती आई है.

लेकिन अचानक से बहु के आने पर सास को किचन बहु से शेयर करनी पड़ती है जोकि उस के लिए बहुत मुश्किल भरा काम है. वह बहु को अपने किचन में काम करने के तौरतरीके सिखाना चाहती है पर बहु ने अपने घर जैसा किया है वो वैसा करना चाहती है. सास की रोकटोक उसे पसंद नहीं आती, तो सास अपने किचन को किसी दूसरे के हिसाब से चलता देख मन मसोस कर रह जाती है. कुछ कहे तो लड़ाई, न कहे तो देखदेख कर गुस्सा आए पर लाचार इतनी की गुस्सा निकाल भी नहीं सकती.

पहननेओढ़ने तक के एटिकेट्स बदलने पड़ते हैं ससुरालवालों को

पहले पिता बनियान और लुंगी पहन कर पूरे घर में घूमते रहते थे, तोलिया बांध कर देवर और ससुर कभी भी बाहर आ जाते थे लेकिन बहु के आने के बाद उन का पहनावा बदल जाता है. भले ही कुछ समय के लिए ही लुंगी और बनियान की जगह कुरतापजामा ले लेता है, देवर भी बाथरूम से ही तैयार हो कर निकलता है नहीं तो भाभी छोड़ो, भाई की घूरती नजरें ही दिल चीर देती हैं. सास भी अपने पुराने कपड़ों के बजाए कुछ नए अच्छे कपड़े पहनने लगती है कि कहीं बहु ये न कह दे कि सास में तो फैशन एटिकेट्स है ही नहीं.

अपने किसी मेहमान को बुलाने से पहले 10 बार सोचते हैं सासससुर

पहले जहां ससुर के पुराने दोस्तों का जमावाड़ा लगा रहता था. वक्त बेवक्त घर में चायनाश्ते का दौर चलता रहता था वहीँ अब इन सब पर मानो पाबंदी सी लग गई हो. किसी को बालने से पहले बेटे की प्राइवेसी के बारे में भी सोचना पड़ता है. उन के टाइम के हिसाब से ही किसी को बुलाना पड़ता है. ससुर के दोस्त भी बहु के सामने आने से शरमाते हैं.

वहीँ पहले देवर के चार दोस्त आ कर होहल्ला करते थे, कोई कुछ नहीं कहता था बल्कि घर में रौनक आ जाती थी लेकिन बहु के आने के बाद वही दोस्त आसानी से नहीं आ सकते. मातापिता को तो अब अपना बेटा बेटा ही नहीं लगता वो किसी का पति ज्यादा लगता है.

भाई बहन का रिश्ता भी बदल गया

पहले भाईबहन का रिश्ता ही अलग था. पहले हर रोज नई फरमाईश थी. ‘आज लौटते हुए मेरे लिए केक लाना, आज आइसक्रीम का मन है, बाहर ही खाने चलेंगे.’ लेकिन अब रोजरोज भाई से फरमाइश करना संभव नहीं है. अब भाईभाभी के नखरे उठाएगा बहन के नहीं. अब भाईभाभी अकेले घूमने जाने लगते हैं बहन की एंट्री तो कभीकभी होती है.

शादीशुदा ननद भी पहले की तरह बिंदास मायके नहीं आ पाती

शादीशुदा ननद कभी भी मायके आ जाया करती थी लेकिन अब हर कभी आना कहीं भाभी को अच्छा न लगे इस बात का भी धयान रखना पड़ता है. नन्दोई के आने पर भाभी को भी किचन में लगना पड़ेगा वो अलग. रोजरोज ऐसा करना भी अच्छा नहीं लगता. इस के आलावा पहले अपनी मां के घर खाली हाथ आने पर कभी सोचना नहीं पड़ता था लेकिन अब भाभी क्या सोचेगी की इतनी बड़ी ननद खाली हाथ आ गई, ये सोच कर कुछ लाना भी पड़ता है. उसी हिसाब से ढंग से तैयार भी हो कर आना पड़ता है, नहीं तो भाभी को लगेगा की ननद का ससुराल तो बहुत हल्का है पहननेओढ़ने के भी ढंग नहीं हैं.

खानेपीने तक की आदतें बदलनी पड़ती हैं

पहले जहां घर में हर दूसरे दिन लौकी की सब्जी बनती थी, क्योंकि सब को बचपन से लौकी खाने की आदत पड़ी है. जैसे कि पतिपत्नी को लौकी खाने की आदत है तो बच्चों में अपनेआप आदत बन जाती है. पर अब बहु कहती है की अरे यहां तो रोज ही लौकी बन जाती है. अरे भई! कभी पनीर भी तो बनाओ. लेकिन पनीर है महंगा. अब बहु को कैसे कहें कि हमारे यहां तो मेहमानों के आने पर ही पनीर बनता है. बहु का लिहाज कर अपनी रोज लौकी खाने की आदत को भी तिलांजलि देनी पड़ती है.

घर में पार्टीज का दौर शुरू हो जाता है

बहु अगर शौकीन आ गई तो वह सबके बर्थडे, एनिवर्सरी मनाने पर जोर देगी अपने सब रिश्तेदारों को बुलाएगी उसे मन भी नहीं कर सकते पहलीपहली बार. मुश्किल यह कि बहु को अभी किचन संभालना आता नहीं तो सारी जिम्मेदारी चाहेअनचाहे सास की हो जाती है. पहली बार बहु के मायके वाले आएंगे तो तैयारी भी उसी हिसाब से करनी पड़ेगी.

बहु नकचढ़ी आ गई तो उस के नखरे अलग सहन करो

बहु अगर जरा भी नकचढ़ी आ गई तो डर लगा रहेगा कि कोई बात बुरे लग गई और इस ने हल्ला काट दिया तो इतने सालों की बनीबनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. और अगर रूठ कर मायके चली गई, हम पर केस कर दिया तो हम तो लम्बा फंस जाएंगे.

जाली नोट : एक परेशान आदमी की कहानी

एक दिन मैं बैंक गया. मुझे कुछ रुपयों की जरूरत थी. मैं ने अपने खाते से 2 हजार रुपए निकाले. कैशियर ने मुझे 5 सौ के 2 नोट और एक सौ के 10 नोट दिए. रुपए ले कर मैं घर चला आया. दूसरे दिन जब मैं रुपए देने दुकानदार के पास गया तो दुकानदार ने सौ रुपए के नोट तो ले लिए, पर 5 सौ रुपए के नोट लेने को वह तैयार न हुआ.

मैं ने उसे समझाया, ‘‘भैया, मैं ने ये नोट कल ही बैंक से निकाले हैं. आप बेवजह क्यों शक कर रहे हैं?’’ जवाब में उस ने मेरे सामने एक अखबार खोल कर रख दिया. ऊपर ही मोटेमोटे अक्षरों में लिखा था, ‘एक आदमी से 5 सौ रुपए के 15 जाली नोट पाए गए’. अब मैं क्या कहता.

उसी समय मैं बैंक की ओर चल पड़ा. जिस खिड़की से मैं ने ये नोट लिए थे, वहां जा कर कैशियर से बोला, ‘‘भाई साहब, मुझे कल ये नोट दिए गए थे. कृपया इन्हें वापस ले कर सौ या 50 के नोट दे दें. इन्हें तो जाली होने के डर से कोई ले ही नहीं रहा है.’’ कैशियर नोट को बगैर देखे ही बोला, ‘‘इस का क्या सुबूत है कि यही नोट आप को दिए गए हैं?’’

अब मैं सुबूत कहां से लाता. यह सुबूत तो था कि मुझे 5 सौ रुपए के 2 नोट दिए गए हैं, पर यही नोट दिए गए हैं, यह सुबूत देना मुमकिन न था.

मैं सीधे उस बैंक के मैनेजर के पास गया और उन को अपनी बात बताई. मैनेजर ने मुझे राय दी कि मैं इन नोटों को अपने खाते में जमा करा दूं. उन्होंने मुझे पैसे जमा करने की परची पकड़ाते हुए उसे भरने को कहा.

मैं ने परची भर कर उन्हें दे दी. वे परची की जांच करने लगे. जांच कर के उन्होंने मुझे नोटों के नंबर लिखने को कहा. मैं ने उन से कहा कि भाई आप ने नोट की जांच तक नहीं की, फिर यह नंबर नोट करने की बात क्यों?

मैनेजर ने मुझे बताया कि इस बार के जाली नोट इस तरह के बने हैं कि उन में जाली और असली की पहचान करना मुश्किल काम है. मैं क्या करता. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आखिर में मैं ने सोच लिया कि फिलहाल मैं नोट जमा न कर के अपने पास रखूं और मैं वापस घर आ गया.

काफी सोचविचार करने पर मुझे प्रदीप बाबू का खयाल आया, जो कटेफटे नोट बदलने का धंधा करते हैं. मैं ने सोचा कि चल कर उन से ही बात की जाए. मैं उन के घर की ओर चल पड़ा. प्रदीप बाबू घर पर ही मिल गए.

मैं ने उन्हें 5 सौ वाले दोनों नोट दिखाते हुए कहा, ‘‘आप तो नोट का कारोबार करते हैं, जरा देख कर बताएं कि ये नोट असली हैं या नकली? बैंक वाले तो इन्हें जमा करने पर नोट का नंबर व नामपता नोट कर रहे हैं. कहीं नकली निकले, तो पुलिस का झमेला. ‘‘आप तो जानते ही हैं कि पुलिस के पास मामला पहुंचने के बाद क्या होता है. पुलिस वाले तो अपराधियों का सारा गुस्सा कमजोरों पर ही निकालते हैं.’’

प्रदीप बाबू ने दोनों नोट अपने हाथ में लिए और उन पर जगहजगह उंगली फेरने लगे. एक जगह पर हाथ फेर कर उन्होंने कहा, ‘‘नकली हैं.’’ फिर दूसरी जगह पर हाथ फेर कर कहा, ‘‘असली मालूम पड़ते हैं.’’

इसी तरह वे नोटों पर हाथ फेर कर कभी असली तो कभी नकली है कहते रहे और मैं कभी खुश, तो कभी दुखी होता रहा. आखिर में प्रदीप बाबू ने उठ कर बल्ब का बटन दबाया. बल्ब जल

उठा. एक नोट को बल्ब की ओर कर के देखा और बोले, ‘‘जलचिह्न दिख तो रहा है, पर साफ नहीं है. रक्षाधागा है तो, पर ठीक नहीं है. रक्षाधागे पर भारत तो लिखा है, पर आरबीआई नहीं लिखा है.’’

और भी न जाने वे क्याक्या बड़बड़ाते रहे. आखिर में उन्होंने कहा, ‘‘नोट तो असली ही लग रहा है.’’ अब प्रदीप बाबू अपने घर के भीतर जा कर एक टौर्च ले आए. एक सफेद कागज पर नोट रखा और नोट के उस पार से टौर्च जला कर उसे देखने लगे.

थोड़ी देर तक गौर से देखने के बाद उन्होंने फैसला सुनाया, ‘‘यह नोट बिलकुल नकली है.’’ मैं ने सकते में ही पूछा, ‘‘अभीअभी तो आप कह रहे थे कि नोट असली हैं, फिर एकाएक नकली कैसे हो गए?’’

‘‘यह देखिए, जब नोट पर टौर्च की रोशनी डाली जाती है, तो जलचिह्न सामने दिखना चाहिए, जो नहीं दिख रहा है,’’ प्रदीप बाबू ने कहा. उन की ओर देखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘प्रदीप बाबू, क्या विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि बगैर टौर्च को जलाए ही रोशनी और परछाईं दिखने लगे?’’

प्रदीप बाबू ने चौंकते हुए टौर्च को जला कर देखा. वह जल नहीं रही थी. उन्होंने टौर्च का ढक्कन खोला. बैटरी सीधी की, तो इस बार उन्हें नोट के अंदर का रक्षाधागा दिख गया. प्रदीप बाबू बोले, ‘‘असली ही मालूम पड़ता है. बस एक जांच और बच रही है, उसे भी देख लूं,’’ इतना कह कर वे भीतर के कमरे में गए और एक बड़ा सा शीशा ले कर नोट को ध्यान से देखने लगे. ‘‘असली है,’’ कह कर वे खुश हुए.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसे और क्या देखा आप ने इस शीशे से?’’ उन्होंने शीशे से मुझे महात्मा गांधी के फोटो के पीछे देखने को कहा. मैं ने देखा कि 5 सौ और भारत साफ लिखे हुए दिख रहे थे.

‘‘तो प्रदीप बाबू, मैं इस नोट को असली मान सकता हूं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘अगर आप को फिर एतराज हो, तो चलिए एक और जांच कर लेता हूं,’’ प्रदीप बाबू ने कहा.

मैं ने कहा, ‘‘जरूर जांच कर लीजिए, पर इतनी जांच तो मैं ने किसी सुनार को भी करते नहीं देखा है.’’ अब प्रदीप बाबू मुझे साथ ले कर अपने एक परिचित बिजली वाले की दुकान पर ले गए और उस से पराबैंगनी लैंप मांगा. उसे जला कर उस के सामने नोट किया और बोले, ‘‘देखिए, ये नंबर कैसे चमक रहे हैं. बिलकुल ही असली नोट हैं,’’ प्रदीप बाबू ने आखिर में अपना फैसला सुनाया. मुझे इस फैसले से खुशी हुई. खैर, नोट असली पा कर मैं उसे बैंक में जमा कर आया. अब मुझे नोट के नंबर लिखने में कोई एतराज भी नहीं था. नोट जमा कर मैं बेफिक्र हो गया. लेकिन यह बेफ्रिकी सिर्फ एक हफ्ते की मेहमान थी.

एक हफ्ते के बाद मुझे बैंक में बुलाया गया. मैं भागाभागा बैंक गया. वहां कोई दारोगा भी बैठे थे. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘तो आप ही हैं रमेशजी.’’

मैं ने कहा, ‘‘जी, मैं ही हूं. बताइए, मुझे किसलिए बुलाया गया है?’’ वैसे तो पुलिस वालों से मैं बहुत डरता हूं और कोशिश करता हूं कि इन से बच कर रहूं, पर यहां क्या बचना था. दारोगा 5 सौ रुपए के 2 नोट मुझे दिखा कर बोला, ‘‘ये नोट आप ने जमा किए हैं?’’ मैं ने नोट के नंबर देखे और कहा, ‘‘जी हां, मैं ने ही जमा किए हैं.’’

‘‘क्या आप को मालूम है कि ये दोनों नोट नकली हैं?’’ दारोगाजी ने कहा. मैं ने कहा, ‘‘जी नहीं, ये दोनों नोट बिलकुल असली हैं.’’

दारोगाजी ने फिर पुलिसिया अंदाज में पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि ये दोनों नोट असली हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘क्या सुबूत है कि ये नोट नकली हैं?’’

दारोगाजी ने मैनेजर से कहा, ‘‘अब आप ही बताइए कि नकली नोट की क्या पहचान है?’’ मैनेजर साहब पहले तो हड़बड़ा गए, फिर बोले, ‘‘हमें ठीक से कुछ मालूम नहीं, पर हमारे महकमे से तो अभी तक सिर्फ यही आदेश आया है कि 5 सौ रुपए के जाली नोट काफी तादाद में आ रहे हैं, इसलिए नोट लेते समय सावधानी बरतें. सावधानी के तौर पर हम सभी नोट जमा करने वालों के नामपते लिख लेते हैं.’’ दारोगाजी के पास भी नोट जाली साबित करने का कोई उपाय नहीं था. उन्होंने नरमी से कहा, ‘‘विदेशी खुफिया वालों ने इतनी सही नकल की है कि असली और नकली नोट की पहचान करना मुश्किल है.’’

मुझे लगा कि दारोगा साहब विदेशी खुफिया वालों की तारीफ कर रहे हैं. मेरा पूछने का दिल हुआ कि साहब हमारे देशी खुफिया वाले क्या करते हैं? पर बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए जो हिम्मत होनी चाहिए, वह मुझ में नहीं थी. असली नोट की जो पहचान मैं ने प्रदीप बाबू से जानी थी, उसे उन सब को बताया, तब जा कर मेरा पीछा छूटा और मुझे घर जाने की इजाजत मिल पाई.

देशी मेम

हवाई जहाज से उतर कर जमीन पर पहला कदम रखते ही मेरा अंगअंग रोमांचित हो उठा. सामने नजर उठा कर देखा तो दूर से मम्मी और पापा हाथ हिलाते नजर आ रहे थे. इन 7 वर्षों में उन में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ था. हां, दोनों ने चर्बी की भारीभरकम चादर जरूर अपने शरीर पर लपेट ली थी.

पापा का सिर रनवे जैसा सपाट हो गया था. दूर से बस, इतना ही पता चला. पास पहुंचते ही दोनों मुझ से लिपट गए. उन के पास ही एक सुंदर सी लड़की हाथ में फूलोें का गुलदस्ता लिए खड़ी थी.

‘‘मधु, कितनी बड़ी हो गई तू,’’ कहते हुए मैं उस से लिपट गया.

‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तुम्हारी लाड़ली छोटी बहन मधु नहीं, किनी हूं,’’ उस ने मेरी बांहों में कुनमुनाते हुए कहा.

‘‘बेटा, यह मंदाकिनी है. अपने पड़ोसी शर्माजी की बेटी,’’ मां ने जैसे मुझे जगाते हुए कहा. तभी मेरी नजर पास खडे़ प्रौढ़ दंपती पर पड़ी. मैं शर्मा अंकल और आंटी को पहचान गया.

‘‘लेट मी इंट्रोड्यूस माइसेल्फ. रौकी, आई एम किनी. तुम्हारी चाइल्डहुड फ्रेंड रिमेंबर?’’ किनी ने तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘रौकी? कौन रौकी?’’ मैं यहांवहां देखने लगा.

टाइट जींस और 8 इंच का स्लीवलेस टौप में से झांकता हुआ किनी का गोरा बदन भीड़ का आकर्षण बना हुआ था. इस पर उस की मदमस्त हंसी मानो चुंबकीय किरणें बिखेर कर सब को अपनी ओर खींच रही थी.

‘‘एक्चुअली किनी, रौकी अमेरिका में रह कर भी ओरिजिनल स्टाइल नहीं भूला, है न रौकी?’’ एक लड़के ने दांत निपोरते हुए कहा जो शर्मा अंकल के पास खड़ा था.

‘‘लकी, पहले अपनी आईडेंटिटी तो दे. आई एम श्योर कि रौकी ने तुम्हें पहचाना नहीं.’’

‘‘या…या, रौकी, आई एम लकी. छोटा भाई औफ रौश.’’

‘‘अरे, तुम लक्ष्मणशरण से लकी कब बन गए?’’ मुझे वह गंदा सा, कमीज की छोर से अपनी नाक पोंछता हुआ दुबलापतला सा लड़का याद आया जो बचपन में सब से मार खाता और रोता रहता था.

‘‘अरे, यार छोड़ो भी. तुम पता नहीं किस जमाने में अटके हुए हो. फास्ट फूड और लिवइन के जमाने में दैट नेम डजंट गो.’’

इतने में मुझे याद आया कि मधु वहां नहीं है. मैं ने पूछा, ‘‘मम्मी, मधु कहां है, वह क्यों नहीं आई?’’

‘‘बेटा, आज उस की परीक्षा है. तुझे ले कर जल्दी आने को कहा है. वरना वह कालिज चली जाएगी,’’ पापा ने जल्दी मचाते हुए कहा.

कार के पास पहुंच कर पापा ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठ गए. मंदाकिनी उर्फ किनी मां को पहले बिठा कर फिर खुद बैठ गई. अब मेरे पास उस की बगल में बैठने के अलावा और कोई चारा न था. रास्ते भर वह कभी मेरे हाथों को थाम लेती तो कभी मेरे कंधों पर गाल या हाथ रख देती, कभी पीठ पर या जांघ पर धौल जमा देती. मुझे लगा मम्मी बड़ी बेचैन हो रही थीं. खैर, लेदे कर हम घर पहुंचे.

घर पहुंच कर मैं ने देखा कि माधवी कालिज के लिए निकल ही रही थी. मुझे देख कर वह मुझ से लिपट गई, ‘‘भैया, कितनी देर लगा दी आप ने आने में. आज परीक्षा है, कालिज जाना है वरना…’’

‘‘फिक्र मत कर, जा और परीक्षा में अच्छे से लिख कर आ. शाम को ढेर सारी बातें करेंगे. ठीक है? वाई द वे तू तो वही मधु है न? पड़ोसियों की सोहबत में कहीं मधु से मैड तो नहीं बन गई न,’’ मैं ने नकली डर का अभिनय किया तो मधु हंस पड़ी. बाकी सब लोग सामान उतारने में लगे थे सो किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया. किनी हम से कुछ कदम पीछे थी. शायद वह मेरे सामान को देख कर कुछ अंदाज लगा रही थी और किसी और दुनिया में खो गई थी.

नहाधो कर सोचा सामान खोलूं तब तक किनी हाथ में कोई बरतन लिए आ गई. वह कपडे़ बदल चुकी थी. अब वह 8-10 इंच की स्कर्ट जैसी कोई चीज और ऊपर बिना बांहों की चोली पहने हुए थी. टौप और स्कर्ट के बीच का गोरा संगमरमरी बदन ऐसे चमक रहा था मानो सितारे जडे़ हों. मानो क्या, यहां तो सचमुच के सितारे जड़े थे. किनी माथे पर लगाने वाली चमकीली बिंदियों को पेट पर लगा कर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही थी. मैं ने अपने कमरे में से देखा कि वह अपनी पेंसिल जैसी नोक वाली सैंडिल टकटकाते रसोई में घुसी जा रही है. मैं कमरे से निकल कर उस की ओर लपका…

‘‘अरे, किनी, यह क्या कर रही हो? रसोई में चप्पलें?’’

‘‘यार रौकी, मुझे तो लग रहा है कि तुम अमेरिका से नहीं बल्कि झूमरीतलैया से आ रहे हो. बिना चप्पलों के नंगे पैर कैसे चल सकती हूं?’’

जी में आया कह दूं कि नंगे बदन चलने में जब हर्ज नहीं है तो नंगे पैर चलने में क्यों? पर प्रत्यक्ष में यह सोच कर चुप रहा कि जो अपनेआप को अधिक अक्लमंद समझते हैं उन के मुंह लगना ठीक नहीं.

सारा दिन किनी घंटे दो घंटे में चक्कर लगाती रही. मुझे बड़ा अटपटा लग रहा था. अपने ही घर में पराया सा लग रहा था. और तो और, रात को भी मैं शर्मा अंकल के परिवार से नहीं बच पाया, क्योंकि रात का खाना उन के यहां ही खाना था.

अगले दिन मुंहअंधेरे उठ कर जल्दीजल्दी तैयार हुआ और नाश्ता मुंह में ठूंस कर घर से ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग. घर से निकलने के पहले जब मैं ने मां को बताया कि मैं दोस्तों से मिलने जा रहा हूं और दोपहर का खाना हम सब बाहर ही खाएंगे तो मां को बहुत बुरा लगा था.

मां का मन रखने के लिए मैं ने कहा, ‘‘मां, तुम चिंता क्यों करती हो? अच्छीअच्छी चीजें बना कर रखना. शाम को खूब बातें करेंगे और सब साथ बैठ कर खाना खाएंगे.’’

दिन भर दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने के बाद जब शाम को घर पहुंचा तो पाया कि पड़ोसी शर्मा अंकल का पूरा परिवार तरहतरह के पश्चिमी पकवानों के साथ वहां मौजूद था.

किनी ने बड़ी नजाकत के साथ कहा, ‘‘रौकी, आज सारा दिन तुम कहां गायब रहे, यार? हम सब कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं कि इवनिंग टी तुम्हारे साथ लेंगे.’’

कल से मैं अपने पर नियंत्रण रखने की बहुत कोशिश कर रहा था मगर आते ही घर में जमघट देख कर मैं फट पड़ा.

‘‘सब से पहले तो किनी यह रौकीरौकी की रट लगानी बंद करो. विदेश में भी मुझे सब राकेश ही कहते हैं. दूसरी बात, मैं इतना खापी कर आया हूं कि अगले 2 दिन तक खाने का नाम भी नहीं ले सकता.’’

मां ने तुरंत कहा, ‘‘बुरा न मानना मंदाकिनी बेटे, मैं ने कहा न कि राकेश को बचपन से ही खानेपीने का कुछ खास शौक नहीं है.’’

पिताजी ने भी मां का साथ दिया.

मैं चुपचाप बाथरूम में घुस गया. आराम से नहायाधोया और तैयार हो कर बाहर निकला तो चारों ओर सन्नाटा था. शायद वे लोग जा चुके थे.

बाद में मां ने बताया कि आज रात का खाना मिश्रा अंकल के यहां है. मैं निढाल हो कर सोफे में धंस गया. कहां तो मैं अपने परिवार के साथ हंसीखुशी समय बिताना चाहता था, ढेर सारी बातें करना चाहता था और छोटी बहन मधु को घुमाने ले जाना चाहता था, कहां मैं एक पल भी उन के साथ चैन से नहीं बिता पा रहा हूं.

मिश्राजी के घर आ कर मुझे लगा जैसे बहुत कीमती फिल्मी शूटिंग के सेट पर आ गया हूं. दीवारों पर कीमती पेंटिंग्स तो कहीं शेर की खाल टंगी थी. कमरे में हलकाहलका पाश्चात्य संगीत और वातावरण में फैला रूम फ्रेशनर पूरे माहौल को मदहोश बना रहा था. ऐसे रोमानी वातावरण में जाने क्यों मेरा दम घुट रहा था. इतने में एक लड़की हाथ में ट्रे ले कर आई और सब को कोल्ड ड्रिंक देने लगी.

‘‘शी इज माइ डाटर, पमी. शी इज वर्किंग एज ए कंप्यूटर इंजीनियर,’’ मिश्राजी ने परिचय कराया.

‘‘बेटा, अंकल और आंटी को तो तुम जानती ही हो. यह इन के बेटे मि. राकेश कुमार हैं. अमेरिका में पढ़ाई पूरी कर के वहीं जाब कर रहे हैं. छुट्टियों में भारत आए हैं.’’

लड़की बस, बार्बी डौल थी. तराशे हुए नैननक्श, बोलती आंखें, छोटे से चुस्त काले लिबास में कुदरत ने उस के शरीर के किस उतारचढ़ाव को कैसे तराशा था यह साफ झलक रहा था. होंठों और गालों का गुलाबी रंग उसे और भी गोरा बना रहा था. उस ने ट्रे को तिपाई पर रख कर तपाक से मेरी ओर हाथ बढ़ाया. पता नहीं क्यों मुझे सूसन की याद आ गई.

बातों का सिलसिला जो शुरू हुआ तो पता ही नहीं चला कि हम पहली बार मिल रहे हैं. गपशप में ज्यादातर अमेरिका की ही बातें चलीं. उस के कौनकौन से दोस्त अमेरिका में हैं, कौन कितना कमाता है, कौनकौन क्याक्या तोहफे लाता है. यानी हम सब थोड़ी देर के लिए अमेरिका चले गए थे.

मैं ने गौर किया कि मिश्राजी और उन के बच्चे आपस में अंगरेजी में ही बातचीत कर रहे थे. उन के बोलने का अंदाज, भाषा और बातचीत से ऐसा लग रहा था जैसे वे अभीअभी विदेश से लौटे हैं और बडे़ दुर्भाग्य से यहां फंस गए हैं. मैं ने मन ही मन सोचा, मैं यह कहां आ गया हूं? क्या यही मेरा भारत महान है? मुझे ढंग का भारतीय खाना तो मिलेगा न कि यहां भी मंदाकिनी नहीं किनी के घर की तरह फ्रैंकी टोस्ट, पैटीज आदि ही मिलेंगे. भारत में आए 2 दिन हो गए हैं पर अब तक भारतीय खाना नसीब नहीं हुआ है.

‘‘पमी बेटे, राकेश को अपना घर तो दिखाओ.’’

पमी और उस का भाई बंटी सारा घर दिखाने के बाद मुझे अपने पर्सनल बार में ले गए जो तरहतरह की रंगीन बोतलों और पैमानों से भरा हुआ था. पमी ने उन में से चुन कर एक बोतल और 3 खूबसूरत पैमाने निकाले और उन्हें उस हलके गुलाबी रंग के द्रव से भरा. फिर दोनों ने अपने पैमानों को चियर्स कहते हुए मुंह से लगा लिया.

कौन कहता है कि भारत एक पिछड़ा हुआ देश है? आंख के अंधो, देख लो, क्या बोलचाल, क्या खानपान, क्या रहनसहन, क्या पहननाओढ़ना… किसी भी मामले में भारतीय किसी से कम नहीं हैं, बल्कि दो कदम आगे ही हैं.

‘‘अरे, यार, तुम तो ले ही नहीं रहे हो. अगर यह वैरायटी पसंद नहीं है तो दूसरा कुछ खोल लें?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. वास्तव में आज सुबह भी दोस्तों के साथ एक बड़ी भारी पार्टी हुई थी. हम सब ने छक कर खायापिया, इसलिए अब खानेपीने की बिलकुल इच्छा नहीं हो रही है,’’ मैं ने बहाना बनाया.

‘‘अरे, यह तो ठीक नहीं हुआ. हम किसी और दिन फिर से मिलेंगे,’’ पमी ने कहा.

मैं ने खाने की रस्म निभाई. तब तक रात के साढे़ 11 बज गए थे. वहां से निकले तो रास्ते में मैं ने पिताजी से पूछ लिया, ‘‘पापा, क्या कल सचमुच कहीं जाना है?’’

‘‘हां, बेटे. कल इंदौर जाना है. तेरे बडे़ मामा की बेटी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं. उन लोगों के साथ हमारे ऐसे संबंध हैं कि हम हर सुखदुख में एकदूसरे के साथ होते हैं और फिर चांदनी के बडे़ भाई होने के नाते तुम्हारा फर्ज बनता है कि तुम इस अवसर पर उस के साथ रहो,’’ पापा ने कहा.

मुझे अच्छा लगा. बचपन से ही मेरा मामाजी के परिवार के साथ बड़ा लगाव था. मधु और चांदनी में मुझे कोई अंतर नजर नहीं आता. चांदनी इतनी बड़ी हो गई है कि उस के लिए रिश्ते भी आ गए. इस का अर्थ है कि अब मधु के लिए भी एक अच्छा सा लड़का ढूंढ़ना पडे़गा. यह सोचने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे अचानक मेरी उम्र बढ़ गई है और मैं एक जिम्मेदार बड़ा भाई हूं.

चांदनी के लिए जो रिश्ता आया था वे बडे़ अच्छे लोग थे. सब लोग थोडे़ ही समय में ऐसे घुलमिल गए थे मानो लंबे समय से जानपहचान हो.

हंसीमजाक और बातों में समय कैसे बीता पता ही नहीं चला. खानेपीने के बाद जब गपशप हो रही थी तब लड़के ने मेरे और मेरी नौकरी के बारे में रुचि दिखाई, तो मैं ने उसे विस्तार से अपने काम के बारे में बताया. अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम सोचते हैं कि सारी दुनिया में अमेरिका से बढ़ कर कोई नहीं है. वही सर्वश्रेष्ठ या कामयाब देश है. मगर क्या आप जानते हैं कि वास्तव में उस की तरक्की या कामयाबी का कारण क्या है या कौन लोग हैं?’’

लड़के ने कहा, ‘‘हम प्रवासी लोग.’’

मैं ने सिर हिलाया, ‘‘बिलकुल सही. आप जानते हैं कि वास्तव में अमेरिका का अस्तित्व ही हम जैसे अनेक विदेशियों से है. सारी दुनिया के कुशाग्र लोगों को उस ने पैसों के दम पर अपने वश में कर रखा है और उन्हीं के सहारे आज वह आसमान की बुलंदियों को छू रहा है.’’

अजय ने मेरी बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल ठीक कहते हैं. क्या नहीं है हमारे पास एक दृढ़ संकल्प के अलावा?’’ उस की बातों में कड़वा सच था.

मेहमानों के जाने के बाद मैं ने एक समोसा उठा कर खट्टीमीठी चटनी में डुबो कर खाते हुए कहा, ‘‘मामीजी, इसी प्रकार के स्वादिष्ठ व्यंजन खाने के लिए तो मैं भाग कर भारत आया पर जहां जाता हूं पश्चिमी पकवान ही खाने को मिलते हैं.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया? तुम्हें आए तो आज 5 दिन हो गए हैं.’’

‘‘जाने भी दीजिए मामीजी…क्या सुनाऊं मैं अपने दुखों की दासतां,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में कहा.

मधु ने जब सारा हाल अभिनय के साथ लोगों को सुनाया तो सब का हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया.

‘‘चिंता न करो, रात को मैं ऐसी बढि़याबढि़या चीजें बनाऊंगी कि तुम भी क्या याद करोगे अपनी मामी को.’’

‘‘ये हुई न बात. मामीजी, आप मुझ से कितना प्यार करती हैं,’’ मैं ने उन के हाथों को चूम लिया.

‘‘अब आप लोग थोड़ा आराम कर लीजिए,’’ मामी बोलीं, ‘‘शाम को कुछ मेहमान आने वाले हैं और मैं रसोई में शाम के नाश्ते व खाने की तैयारी करने जा रही हूं.’’

‘‘मामी, शाम को भी कोई दूसरे लड़के वाले चांदनी को देखने के लिए आने वाले हैं क्या…चांदनी, मेरी मान तो यह लड़का जो अभीअभी यहां से गया है, उस के लिए हां कर दे. बड़ा सुशील, शांत और सुलझे हुए विचारों का लड़का है. तुझे धन के ढेर पर बिठाए या न बिठाए पर सारी जिंदगी पलकों पर बिठा कर रखेगा.’’

मैं ने कहा तो चांदनी शर्म से लाल हो गई. सब लोग मेरी इस बात से पूरी तरह सहमत थे. तभी मामाजी बोले, ‘‘राकेश बेटा, हमारे बडे़ अच्छे दोस्त हैं गौतम उपाध्याय. वह आज शाम सपरिवार खाने पर आ रहे हैं.’’

‘‘यह क्या, मामाजी, आज का ही दिन मिला था उन्हें बुलाने को? कल हम वापस जा ही रहे हैं. कल शाम हमारे जाने के बाद उन्हें बुला लेते.’’

‘‘लो, सुन लो, कल बुला लेते. पहली बात तो यह है कि कल तुम लोग जा नहीं रहे हो, क्योंकि कल किसी के यहां तुम्हारे साथ हमें खाने पर जाना है.’’

मेरे दिमाग में अचानक लाल बत्ती जल उठी. यानी जो कुछ हो रहा था वह केवल एक संयोग नहीं था…दिल ने कहा, ‘अरे, यार राकेश, तुम नौजवान हो, सुंदर हो, अमेरिका में तुम्हारी नौकरी है. तुम से अधिक सुयोग्य वर और कौन हो सकता है? लड़कियों का तांता लगना तो स्वाभाविक है.’

मैं चौंक उठा. तो मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है. पता लगाना है कि इस में कौनकौन शामिल हैं. मगर कैसे? हां, आइडिया. मैं ने मधु को अकेले में बुलाया और उसे उस की पसंद की अंगरेजी मूवी दिखाने का वचन दिया. उसे कुछ कैसेट खरीदने के लिए पैसे भी दिए तब कहीं मुश्किल से राज खुला.

‘‘भैया, जिस दिन सुसन के बारे में तुम्हारा पत्र आया था उस दिन से ही घर में हलचल मची हुई है. दोस्तों, नातेरिश्तेदारों में यह खबर फैला दी गई है कि तुम भारत आ रहे हो और शायद शादी कर के ही वापस जाओगे.’’

तो यह बात है. सब ने मिल कर मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा और सब अपना- अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं. तो अब आप लोग भी देख लीजिए कि मैं अकेले अभिमन्यु की तरह कैसे आप के चक्रव्यूह को भेदता हूं,’’ मन ही मन मैं ने भीष्म प्रतिज्ञा ली और अगले ही क्षण से उस पर अमल भी करने लगा.

मधु और चांदनी ने मिल कर घर का नक्शा ठीक किया. मम्मी और मामीजी ने मिल कर तरहतरह के पकवान बनाए. मेहमानों की अगवानी के लिए मैं भी शानदार सूट पहन कर अभीअभी आए अमेरिकन छैले की तरह तैयार हो गया.

दोनों बहनों ने मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाया, ‘‘वाह, क्या बात है भैया, बहुत स्मार्ट लग रहे हो. असली बात का असर है, गुड लक. अमेरिका जाने से पहले लगता है आप का घर बस जाएगा.’’

बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. दोनों बहनें बाहर की ओर भागीं. जाने से पहले उन्होंने मुझ से वादा किया कि यह बात मैं किसी को न बताऊं कि उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है.

खैर, अतिथियों का आगमन हुआ. मम्मी और पापा को तो आना ही था पर साथ में एक बेटा और एक बेटी नहीं थे जैसा कि अब तक होता आया है. बल्कि इस बार 2 लड़कियां थीं. भई वाह, मजा आ गया. जुड़वां आनंद, एक टिकिट से सिनेमा के दो शो. मैं ने स्वयं अपनी पीठ थपथपाई.

सब ने एकदूसरे का अभिवादन हाथ मिला कर किया. मगर बुजुर्ग औरतों ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. मैं खड़ाखड़ा सोचने लगा कि आज की युवा पीढ़ी अगर एक कदम आगे बढ़ना चाहे तो ये बडे़बूढे़ लोग, खासकर दकियानूसी औरतें, उन्हें दस कदम पीछे धकेल देती हैं. देश के प्रगतिशील समर्थकों का वश चलता तो वे इन सब को किसी ओल्ड होम में रख कर बाहर से ताला लगा देते.

‘‘आप किन विचारों में खो गए?’’ कोयल सी मीठी आवाज से मैं चौंक उठा.

‘‘लगता है 2 बिजलियों की चमक को देख कर शाक्ड हो गए,’’ दूसरी बिजली हंसी की आवाज में चिहुंकी.

‘‘यू आर राइट. आई वाज लिटिल शाक्ड,’’ मैं ने अब पूरी तरह अमेरिकन स्टाइल में पेश आने का निश्चय कर लिया था. तपाक से एक के बाद एक दोनों से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया. दोनों हाथों से दोनों के हाथ थामे मैं मकान के अंदर इस अंदाज में आया जैसे किसी फाइव स्टार होटल में घुस रहा हूं. ड्राइंगरूम में आते ही थोड़ा झुक कर उन्हें बैठाया. मैं ने देखा कि शिल्पा शेट्टी और मल्लिका शेरावत के अंदाज में एक ने जगहजगह से फटी हुई, सौरी फाड़ी गई जींस और गहरी कटाई वाला टौप पहन रखा था तो दूसरी, सी थ्रू टाइट्स पहने हुई थी. ऐसे में जवान मनचले तो क्या बूढे़ भी फिसल जाएं. हां, दोनों की आंखों के लैंसों का रंग अलगअलग था. इन रंगों के कारण ही मुझे पता चला कि दोनों ने आंखों में लैंस लगा रखे थे.

अगले 3-4 घंटे किस तरह बीत गए कुछ पता ही न चला. हम ने धरती और आकाश के बीच हर उस चीज पर चर्चा की जो अमेरिका से जुड़ी हुई है. जैसे वहां के क्लब, पब, डांसेस, संस्कृति, खान- पान, पहनावा, आजादी, वैभव संपन्नता आदि.

अगले दिन ही मेहमाननवाजी के बाद हम सब मामा के यहां से वापस आ गए. पर मेरे अमेरिका जाने से पहले तक मेरे घर में यह कार्यक्रम जारी रहा था. मैं ने भी अपना किरदार खूब निभाया. कभी किसी को क्लब, डिस्को, पिकनिक आदि ले जाता तो कभी किसी से हाथ मिला कर हंसहंस कर बातें करता, तो कभी किसी की कमर में हाथ डाल कर नाचता.

अब तक सब लोग अपनेअपने तरीके से मेरी हां का इंतजार कर रहे थे. उस दिन खाने की मेज पर बात छिड़ ही गई. पापा नाश्ता कर के अपने काम पर जा चुके थे. मम्मी ने पूछ ही लिया, ‘‘देखनादिखाना तो बहुत हो चुका. अब तक तू ने बताया नहीं कि तेरा निश्चय क्या है. तुझे कौन सी लड़की पसंद आई?’’

मैं भी सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘मम्मी, यह आप ने ठीक नहीं किया. मैं ने पहले ही पापा और आप को चिट्ठी लिख दी थी कि मेरे विचार क्या हैं.’’

‘‘तू भी अजीब बात करता है. एक से एक सुंदर पढ़ीलिखी और आधुनिक लड़कियों से मिल चुका है फिर भी अपना ही आलाप लिए बैठा है. भला ये किस बात में कम हैं तेरी अमेरिका की उन लटकझटक वाली छोकरियों से?’’ मां गुस्से से बोलीं.

अब मैं उन के मनोविज्ञान को आईने में तसवीर की तरह साफसाफ देख रहा था. इस डर से कि कहीं किसी विदेशी मेम को मैं घर न ले आऊं, इन लोगों ने मेरे इर्दगिर्द देशी मेमों की भीड़ लगा दी थी.

मुझे लगा कि मम्मी मेरा निर्णय आज सुन कर ही दम लेंगी, इसीलिए उन्होंने फिर से पूछ लिया, ‘‘अब तो तेरे जाने का समय आ चुका है. तू ने बताया नहीं कि तुझे कौन सी भा गई.’’

मैं ने उन के प्रश्न को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘फिक्र क्यों करती हो, मां? एकाध दिन में अंतिम फैसला खुद ब खुद आप लोगों के सामने आ जाएगा.’’

मां न कुछ समझीं. न कुछ बोलीं, और न ही शायद अध्यक्ष महोदय से सलाह करना चाहती थीं. हुआ भी वही. अगले दिन मैं पिताजी के निशाने पर था. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाया कि बस, आप एक दिन और रुक जाइए.

‘‘मगर परसों तो तू जा रहा है,’’ मां ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘हां, मां, बिना यह मामला तय हुए मैं नहीं जाऊंगा, बस?’’ संदेह भरी नजरों से देखती हुई मां चुप हो गईं.

पिताजी सोच में पड़ गए.

अगले दिन शाम को पिताजी घर पर ही थे. मधु अपने पिकनिक के फोटो मां और पिताजी को दिखा रही थी. मैं बनठन कर बाहर निकलने ही वाला था कि पिताजी की आवाज आई, ‘‘राकेश, यहां आओ.’’

मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह उन के पास आ कर खड़ा हो गया तो मां बोलीं, ‘‘सचसच बता, तू ने क्या खेल रचाया?’’ मम्मी ने मेरे बैठने से पहले ही गुस्से से पूछा.

‘‘कैसा खेल, मां?’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से पूछा.

‘‘इन लड़कियों से तू ने क्या कहा है कि वे बिदक गईं. अब न पूछना कि कौन सी लड़कियां? मैं जानती हूं कि तू सब समझता है.’’

‘‘मां, मेरा विश्वास कीजिए. मैं ने उन से ऐसा कुछ नहीं कहा.’’

‘‘देखो राकेश, बात को घुमाने के बजाय साफ और सीधी करो तो सभी का समय बचेगा,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘इस ने जरूर कुछ उलटासीधा किया है वरना सारे के सारे रिश्ते इस तरह पलट नहीं जाते. कोई कहती है आगे पढ़ना है, किसी की कुंडली नहीं जमी तो कोई मंगली है….वाह, 9 के 9 रिश्ते अलगअलग बहाने बना कर छिटक गए. रिश्ते लड़कों की तरफ से मना होते हैं पर लड़कियों की तरफ से ना होना कितने अपमान की बात है. वह भी एक सुंदर, पढे़लिखे, अमेरिका में नौकरीशुदा नौजवान के लिए. बोल, क्या शरारत की तू ने? सचसच बता, वरना तू वापस अमेरिका नहीं जाएगा. हमारी तो नाक ही कट गई,’’ मां को इतना बिफरते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था.
मैं मां की साथ वाली कुरसी पर बैठ गया और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, ‘‘मां, क्या तुम्हें अपने बेटे पर विश्वास नहीं है? मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है. वे जब अमेरिका में मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछ रही थीं तब मैं ने सूसन के बारे में बताया था.’’

पिताजी ने कहा, ‘‘हूं,’’ और उस एक ‘हूं’ में हजार अर्थ थे.

मां ने कहा, ‘‘अब समझी, यह बात क्या कम है?’’

‘‘नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं. उन में से किसी भी लड़की को इस बात पर एतराज नहीं है.’’

पिताजी गरजे, ‘‘बकवास बंद कर. तू कैसे जानता है कि तेरे सूसन से परिचय में इन लड़कियों को कोई एतराज नहीं है?’’

‘‘क्योंकि उन में से एक ने कहा कि अमेरिकन कल्चर में यह आम बात है. दूसरी ने कहा कि वहां तो सुबह शादी होती है और शाम को डिवोर्स. तीसरी बोली कि मैं सती सावित्री की पुण्य भूमि में जन्मी हूं. मैं उस के चंगुल से आप को छुड़ा लूंगी.’’

मैं ने देखा कि पिताजी के होंठों पर मुसकराहट थी. मां का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘इसी तरह सभी ने इस बात को घास के तिनके की तरह उड़ा दिया था.’’

‘‘अगर किसी को इस बात पर एतराज न था तो समस्या कहां आई,’’ पिताजी ने असमंजस में भर कर पूछा.

अब मेरे सामने सच बोलने के सिवा कोई रास्ता नहीं था सो मैं ने तय कर लिया कि मुझे साफसाफ सबकुछ बताना ही होगा.

‘‘हर किसी ने मुझ से यही पूछा कि इस समय मेरी तनख्वाह क्या है और आगे चल कर कितनी बढ़ सकती है और मुझे ग्रीन कार्ड कब मिलेगा?

इस पर मैं ने केवल इतना कहा कि मेरा वीजा मुझे 1 साल और वहां रहने की इजाजत देता है. मैं इस समय जो एसाइनमेंट कर रहा हूं वह ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के अंदर खत्म हो जाएगा. उस के बाद मैं भारत आ कर यहीं बसना चाहता हूं,’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से मां और पिताजी की ओर देख कर जवाब दिया.

सामाजिक वेदना तले दबी दलित स्त्रियों की सौंदर्य चेतना

ऐसा नहीं है कि दलित समुदायों में सुंदर लड़कियां नहीं होतीं लेकिन वे सुंदर दिखने से बचती हैं क्योंकि सुंदरता उन के लिए अभिशाप ही साबित होती है. दूसरे सामाजिक तौर पर उन की जिंदगी बहुत बदसूरत होती है. धर्म ने भी मान रखा है कि दलित स्त्री सुंदर नहीं होती और जो होती हैं वे ऊंची जाति वाले पुरुषों की हवस पूर्ति के लिए जन्मी हैं.

एक दलित औरत की जिंदगी का फसाना और अफसाना इस से ज्यादा कुछ और हो ही नहीं सकता कि उस की सामाजिक स्थिति आम समाज से बहुत बदतर और जानवरों से थोड़ी बेहतर होती है. धर्म ग्रंथों की यह बकवास कभीकभी सच के बहुत नजदीक लगती है कि शूद्र योनि में जन्म पूर्व जन्मों के पापों का फल है. शूद्र स्त्री के बारे में तो यह एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत जैसी लागू होती है.
बिना दलित स्त्री हुए दलित स्त्री की पीड़ा समझना कोई आसान काम नहीं है. उस की एक तकलीफ बीते दिनों लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने यह सवाल पूछते उजागर की कि कोई दलित आदिवासी या पिछड़े वर्ग की महिला आज तक मिस इंडिया क्यों नहीं बनी. प्रयागराज के जिस आयोजन में उन्होंने यह बात उठाई उस का नाम संविधान सम्मान सम्मेलन था. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान से ही संविधान की प्रति सीने से लगाए घूम रहे राहुल गांधी के इस बयान को भले ही अमित मालवीय और किरण रिजिजू जो दूसरी तीसरी पंक्ति के नेता बालक बुद्धि कह कर मजाक बनाने की नाकाम कोशिश करते नजर आए. लेकिन हकीकत में हर किसी की तरह हैरानी उन्हें भी हुई होगी कि बात तो सही है. आज तक कोई गैर सवर्ण महिला मिस इंडिया नहीं बन पाई है.
जवाब तो भाजपा नेताओं के पास राहुल गांधी के इस सवाल का भी नहीं होगा कि कुछ लोग क्रिकेट या बौलीबुड के बारे में बात करेंगे, कोई मोची या प्लम्बर को नहीं दिखाएगा. यहां तक कि टौप एंकर भी 90 फीसदी से नहीं हैं. जातिगत जनगणना की मांग को बारबार अलगअलग तरीकों से दोहरा रहे राहुल का 90 फीसदी से मतलब गैरसवर्ण समुदायों की आबादी से था. अगर राहुल गांधी का मूल सवाल या एतराज बचपना होता तो कोई वजह नहीं थी कि भाजपा के एक प्रवक्ता प्रदीप भंडारी मिस इंडिया की लिस्ट खंगाल कर रिया एक्का का नाम सामने लाते कि ज्यादा नहीं महज 2 साल पहले छत्तीसगढ़ के जशपुर की एक आदिवासी लड़की मिस रिया एक्का ने मिस इंडिया का ख़िताब जीता था. लेकिन कोई भी मुख्यधारा में 90 फीसदी आबादी की भागीदारी का सच ढूंढ कर नहीं ला सका.

कई बार कई रिपोर्टों के जरिए यह साबित हो चुका है कि मीडिया और बौलीबुड पर कुलीनों का कब्जा है. फिल्म इंडस्ट्री के सवा सौ सालों के इतिहास में ढूंढे से जो चंद नाम दलित कलाकारों के मिलते हैं उन में उमा देवी यानी टुनटुन, भगवान दादा, राखी सावंत, जौनी लीवर और शुभांगी अत्रे ही प्रमुख हैं. इन की इंडस्ट्री में हैसियत क्या रही है यह बताने की जरूरत नहीं कि ये सब के सब सी और डी ग्रेड आर्टिस्ट रहे हैं.राहुल गांधी ने भाजपा या सरकार पर कोई सीधा आरोप नहीं मढ़ा था और न ही उन से सवाल किया था. उन के सवालों में नया कुछ खास था भी नहीं. इस के बाद भी भाजपाई बौखलाए और तिलमिलाए नजर आए तो दो टूक कहा जा सकता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका जाने क्यों वे इस के लिए खुद को दोषी मान रहे हैं. एक नया सवाल जरुर मिस इंडिया की लिस्ट में दलित महिलाओं के नाम न होने का था जिस पर सोचा जाना लाजिमी है.

देश ही नहीं दुनिया की हर औरत को सजनेसंवरने और सुंदर दिखने का शौक जूनून की हद तक होता है. लेकिन दलित महिलाएं इस की अपवाद कहीं जा सकती हैं. वे सजसंवर कर सुंदर दिखने से खौफ खाती हैं, वजह पौराणिक काल से ही उन का शारीरिक शोषण होता रहा है. वे अकसर सवर्ण पुरुषों की हवस का शिकार हुई हैं.
महाभारत की एक पात्र मत्स्यगंधा इस की बेहतर मिसाल है जो निषाद समुदाय से थी. मुसाफिरों को यमुना नदी पार लगाने वाली इस सुंदर दलित स्त्री पर पराशर ऋषि का दिल आ गया था और उन्होंने नाव में ही उस से सहवास ( हकीकत में बलात्कार ) कर डाला था. मत्स्यगंधा पराशर ऋषि की कहानी बड़ी दिलचस्प है जिसे पढ़ कर लगता है कि कौरव और पांडव वर्णसंकर थे. भीष्म के अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा के चलते सभी एक दलित स्त्री के वंशज थे.
दलित औरतों को बदसूरत दिखाने की साजिश तो पौराणिक काल से ही शुरू हो गई थी. शूर्पनखा, त्रिजटा, हिडिम्बा आदि को इतना वीभत्स और बदसूरत बताया गया है जिस से पढ़ने वालों के मन में उन के प्रति नफरत पैदा हो. इतना ही नहीं इन औरतों को कामुक दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई है. उलट इस के ब्राह्मण समुदाय के रावण की पत्नी मंदोदरी और उन के बेटे मेघनाथ की पत्नी सुलोचना को न केवल अति सुंदर बताया गया है बल्कि उन्हें सती की उपाधि भी दी गई है. अगर राक्षस कुल की मंदोदरी और सुलोचना खूबसूरत और पतिव्रता थीं तो उसी कुल की शूर्पनखा कैसे कुरूप और कामुक हो गई?

यह साजिश आज भी साफसाफ दिखती है जिस का सार यह है कि आज भी दलित स्त्री बदसूरत ही होती है. मत्स्यगंधा उर्फ़ सत्यवती की तरह वह अभिशप्त और भोग की वस्तु है. दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियां दलित समुदाय की ही औरतें होती थीं ( और आज भी हैं ) जो कुलीन पुरुषों की सैक्स की हवस पूरी करने के काम में आती थीं. हो तो आज भी सभ्य समाज में यही रहा है बस तरीका बदल गया है. देवदासियां हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही हैं. अंगरेजों और मुगलों की राय उन के और इस प्रथा के बारे में क्या थी यह बहुत ज्यादा अहम नहीं लेकिन भारतीयों की राय काफी माने रखती है.

समालोचन नाम की वेब मैगजीन में एक लेखिका गरिमा श्रीवास्तव लिखती हैं, मध्य युग आतेआते स्त्रियों की दशा हीनतर होती गई. शूद्र और निम्न जातियों की स्त्रियों की दशा और भी बदतर होती गई. स्त्रियां अशिक्षित और असहाय थीं. वे भोग विलास की सामग्री बन कर रह गईं. दिन के उजाले में उच्चवर्गीय व्यक्ति शूद्र स्त्रियों की छाया से भी बचते थे, वही रात के अंधेरे में अस्पृश्य स्त्रियां उन की वासना की पूर्ति का साधन बनती थीं. समय और परिस्थितियां बदली हैं लेकिन स्त्री समानता और स्त्री अधिकारों के इस सूचना युग में भी राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार आज भी हजारों की संख्या में दलित स्त्रियां देवदासियां बनने बाध्य हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा पर ढाई लाख दलित देवदासियां मौजूद हैं.

इस सच को व्यवसायिक कहानियों की शक्ल में 90 के दशक से दिल्ली प्रैस की ही लोकप्रिय पत्रिका सरस सलिल में बहुत सरल भाषा में प्रकशित किया गया कि कैसे दबंगों और रसूखदारों सहित जमींदार ठाकुर या पंडेपुजारी दलित स्त्रियों का यौन शोषण करते हैं. ये कहानियां देश भर के गैर पेशेवर लेखकों की थी जो कल्पना से ज्यादा आसपास हो रही सच्ची घटनाओं को आधार बना कर कहानियां लिखते हैं. लेकिन जब वक्त थोड़ा बदला तो सरस सलिल की कुछ कहानियों की दलित नायिका इन शोषकों से कैसे निबटने लगी यह भी कहानियों के जरिये बताया गया.

जब यौन शोषण होना ही है तो कैसे दलित स्त्रियों में सौंदर्य चेतना विकसित होती या होगी. इस सवाल का जवाब किरण रिजिजू या अमित मालवीय तो दूर की बात हैं खुद राहुल गांधी भी नहीं बतला पाएंगे. लोचा क्या है इसे बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कौलर रहे राहुल कुमार यादव के शोध प्रबंध भारतीय समाज में दलित महिलाओं की स्थिति का एक समाजशास्रीय अध्ययन के इस सारांश से ही आसानी से समझा जा सकता है –
भारत में दलित महिलाएं सदियों से मौन की संस्कृति में जी रही हैं. वे अपने शोषण उत्पीड़न और अपने विरुद्ध बर्बरता की मूकदर्शक बनी रहीं. उन का अपने शरीर, कमाई और जीवन पर कोई अधिकार व नियंत्रण नहीं है. उन के विरुद्ध हिंसा, शोषण और उत्पीड़न की चरम अभिव्यक्ति, भूख, कुपोषण, बीमारी, शारीरिक और मानसिक यातना बलात्कार के रूप में दिखाई देती है. अशिक्षा, अस्वस्थता, बेरोजगारी, असुरक्षा और अमानवीय व्यवहार तथा सामंतवाद जातिवाद और पितृसत्ता की सामूहिक ताकतों ने उन के जीवन को बद से बदतर बना दिया है.

चंद शब्दों में राहुल कुमार यादव ने दलित स्त्री की हालत की परतें उधेड़ कर रख दी हैं जो राहुल गांधी के बचकाने सवाल को जस्टिफाई करती हैं. जस्टिफाई करने के कुछ आंकड़े भी काफी हैं जिन से सभ्य शहरी यानी अभिजात्य वर्ग एक और यानी यह कि सवर्ण सहमत होंगे जिन के इर्दगिर्द कुछ दलित महिलाएं आरक्षण के चलते सरकारी नौकरियों में आ गई हैं. आइए कुछ आंकड़ों पर नजर डालें –
– दलित महिलाओं की अगुवाई करने वाले एक संगठन स्वाभिमान सोसाइटी और अंतर्राष्ट्रीय महिला अधिकार संगठन इक्वालिटी नाउ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दलित महिलाओं के खिलाफ 80 फीसदी यौन हिंसा उच्च जाति के पुरुषों द्वारा की जाती है.
– राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के इसी साल पेश किए गए एक आंकड़े के मुताबिक साल 2015 से ले कर साल 2020 ( जाहिर है मोदी राज ) तक दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
– यही आंकड़े यह भी बताते हैं कि एक दिन में औसतन 10 दलित महिलाओं का बलात्कार होता है. ये तो वे मामले हैं जो दर्ज हुए. दर्ज न होने वाले मामलों की तादाद इस से 100 फीसदी भी ज्यादा हो, बात कतई हैरानी की नहीं होगी क्योंकि दलित समाज में औरतों की इज्जत आबरू को गंभीरता से नहीं लिया जाता. दूसरे वे दबंगों से खौफ भी खाते हैं कि पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर कौन ले.
– संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दलित महिला ऊंची जाति की महिला के मुकाबले 14.6 साल कम जीती है. सवर्ण महिलाओं की औसत उम्र 54.1 तो दलित महिलाओं की औसत उम्र 39.5 साल है.
– यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दलित बच्चे ऊंची जाति के शिक्षकों द्वारा दुर्व्यवहार अपमान और उत्पीड़न के चलते स्कूल जाने से कतराते हैं. आदिवासी समुदाय के 37 फीसदी और दलित समुदाय के 51 फीसदी बच्चे प्राईमरी कक्षाओं से ही बाहर हो जाते हैं. बात लड़कियों की करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक 1.2 फीसदी ही दलित लड़कियां ग्रेजुएट हो पाती हैं. गौरतलब है कि देश में दलित महिलाओं की आबादी कुल आबादी का 8 फीसदी के लगभग है यानी तकरीबन 11 करोड़.
अब इन में से कोई मिस इंडिया नहीं बन पाई तो उस की वजहें साफ हैं कि दलित महिला बचपन से ही मजदूर होती हैं और आखिरी सांस तक मजदूर ही रहती हैं. उस के पास न तो इतना वक्त होता है और न ही इतने पैसे होते हैं कि वह सौंदर्य प्रसाधन खरीद सके. बिलाशक शहरी दलित महिलाएं अब थोड़ा सजनेसंवरने लगी है क्योंकि वे शिक्षित हैं और इस से भी ज्यादा अहम बात सुरक्षित हैं. लेकिन गांवदेहातों और कस्बों की तस्वीर कुछ और है.

28 अगस्त को इस प्रतिनिधि ने भोपाल से महज 45 किलोमीटर दूर बैरसिया कसबे के दुकानदारों से चर्चा की तो उन्होंने स्वीकार किया कि दलित महिलाएं आमतौर पर लिपस्टिक जैसा आइटम भी नहीं खरीदतीं. हां स्किन केयर के लिए सस्ती क्रीम वगैरह जरुर खरीदती हैं. इसी कसबे की चार ब्यूटीपार्लर संचालिकाओं ने माना कि उन के क्लाइंट्स में दलित महिलाएं न के बराबर होती हैं. दलित दुल्हनें भी मेकअप कराने कभीकभार ही आती हैं और जो आती हैं उन के पिता सरकारी नौकर होते हैं.
देवदासियों के अलावा कोठों और नौटंकियों में भी दलित महिलाओं की भरमार होती है. ये लड़कियां ऐक्टिंग से ज्यादा देह व्यापार से पैसा कमाती हैं. पहले में धर्म के नाम पर वेश्यावृति होती है तो दूसरे में तथाकथित कला के नाम पर जिस में स्तन और नितम्ब मटका कर आम लोगों का मनोरंजन किया जाता है.
तो क्या अब राहुल गांधी जिन पर भाजपाई जातिगत विभाजन का आरोप लगा रहे हैं क्या ऐसी कोई पहल पर अमल करेंगे जिस में दलित युवतियों की अलग से सवर्ण युवतियों की तरह सौंदर्य प्रतियोगिता हो?

 

लोगों में क्यों बढ़ रही है पोर्न देखने की लत

किसी भी चीज की लत लग जाना हमारे शरीर के लिए बेहद हानिकारक होती है फिर चाहे शराब हो, सिगरेट, बीड़ी हो, सैक्स हो या फिर पोर्न वीडियोज देखना.

शराब और सिगरेट की लत के बारे में तो हम सब ने सुना और देखा ही है पर इन दिनों लोगों के अंदर पोर्न वीडियोज देखने की लत भी लग चुकी है, जिस का पता उन्हें खुद भी नहीं लग पाता.

यों पोर्न वीडियोज देखना कोई बुरी बात नहीं है और न ही इस में कोई बुराई है. सैक्स करने की इच्छा हम सब के अंदर होती है और सैक्स न मिलने पर कुछ लोग पोर्न वाीडियोज का सहारा ले कर खुद को संतुष्ट करते हैं. मतलब यह कि यह देख कर हस्तमैथुन करना.

पोर्न वीडियोज देखने के कई फायदे भी हैं और इस फायदों के साथ इस के कुछ नुकसान भी हैं। तो चलिए, पहले बात करते हैं पोर्न वीडियोज देखने के फायदों के बारे में.

फायदे

पोर्न वीडियोज देखने से हम खुद को संतुष्ट कर पाते हैं। अगर सैक्स न मिलने पर लोग इस तरीके को नहीं अपनाएंगे तो उन के अंदर सैक्स की प्यास बढ़ती चली जाएगी और उन के मन में किसी न किसी के लिए लिए गलत विचार आने शुरू हो जाएंगे.

ऐसे में ऐक्सपर्ट्स का भी यही कहना है कि हस्तमैथुन करना हमारे शरीर के लिए कुछ मायने तक हैल्दी भी है.

नुकसान

अगर बात करें पोर्न वीडियोज देखने के नुकसान की तो जरूरत से अधिक पोर्न वीडियोज देख कर बारबार हस्तमैथुन करना भी उचित नहीं है.

ज्यादा पोर्न वीडियोज देखने से ध्यान किसी और चीज में नहीं लग पाता बल्कि हर समय सिर्फ सैक्स के बारे में ही सोचने लग जाते हैं जोकि बिलकुल गलत है.

अगर आप को भी लगता है कि आप को पोर्न वीडियोज देखने की लत लग चुकी है तो ऐसे में आप को तुरंत यह सब देखना बंद कर देना चाहिए और अपना ध्यान किसी और चीज में लगाना चाहिए जिस से कि आप का बारबार पोर्न देखने का मन ही न करे. साथ ही आप किसी अच्छे और अनुभवी सैक्स स्पैशलिस्ट से मिल सकते हैं जोकि आप को देख आप की स्थिति अच्छी तरह समझ जाएंगे.

पत्नी के साथ सैक्स में नई चीजें ट्राई करता हूं तो वह बहुत शरमाती है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल :

मेरी उम्र 28 साल है और 25 साल की उम्र में ही मेरे घर वालों ने मेरी शादी करवा दी थी. मेरी पत्नी की उम्र लगभग मेरी जितनी ही है लेकिन उस का स्वभाव बेहद शरमीला है. वे अभी तक मुझ से ठीक से नहीं खुल पाई है. मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं लेकिन जब भी मैं अपनी पत्नी के साथ सैक्स करता हूं तब वह बहुत शरमाती है. यहां तक कि जब तक कमरे की बत्ती बुझ नहीं जाती वह सैक्स तक नहीं करती. मुझे पोर्न देखने का बहुत शौक है और पोर्न देख कर मेरा मन करता है कि मैं अपनी पत्नी के साथ नईनई चीजें ट्राई करूं पर उस के शरमीले स्वभाव के कारण मैं उसे नहीं बोल पाता. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब :

सैक्स में नईनई चीजें ऐक्सपीरियंस करने की आप की इच्छा प्राकृतिक ही है. हर इंसान चाहता है कि उस की सैक्स लाइफ बेहद रंगीन और रोमांच से भरपूर हो. जैसाकि आप ने बताया कि आप की पत्नी का स्वभाव थोड़ा शरमीला है जिस कारण आप उन से नई चीजें ऐक्सपीरियंस करने के लिए नहीं बोल पाते, तो इस में उन की भी कोई गलती नहीं है.

कुछ लोग सैक्स की बातें करने से या सैक्स में नई चीजें ट्राई करने में शर्म करते कहै और घबराते भी हैं. आप उन्हें खुल कर बोलें कि आप उन के साथ क्या ट्राई करना चाहते हैं.

आप उन्हें 2-3 दिनों के लिए कहीं बाहर घूमाने ले जा सकते हैं, जहां आप उन्हें यह बात समझाएं कि उन्हें आप से शरमाने की कोई जरूरत नहीं है और वे अपने दिल की बात आप को बता सकती हैं.

इस दौरान आप उन्हें यह बात भी समझाएं कि अगर वे ऐसे ही शरमाती रहीं तो आप दोनों की सैक्स लाइफ कुछ समय बात बिलकुल बोरिंग हो जाएगी. सब से पहले आप उन्हें अपने साथ पोर्न देखने के लिए मनाएं और उसवमें जो कुछ भी आप को पसंद आता है और आप उन के साथ ट्राई करना चाहते हैं, तो उन्हें बताएं.

ऐसे में आप को उन के साथ पोर्न देखने का भी ऐक्सपीरियंस मिलेगा और आप पोर्न देखते समय उन से भी पूछ सकते हैं कि उन्हें इस में क्या पसंद आया.

आप दोनों सैक्स में एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रखेंगे तो जिंदगी हमेशा मुसकराते रहेगी.

हां, एक बात का आप को खास खयाल रखना होगा कि आप कभी भी कुछ भी ऐसा मत कीजिएगा जिस से कि आप की पत्नी को तकलीफ हो. अकसर ऐसा देखा गया है कि पोर्न देखते समय लोग ऐसी चीजें ट्राई करने लग जाते हैं जोकि उन के पार्टनर को दर्द और तकलीफ देती हैं. आप को सैक्स करते समय अपने पार्टनर का अच्छे से खयाल रखना चाहिए.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

45वीं सालगिरह : बूढ़े हो गए तो क्या, मन तो जवां है

‘‘शादी की 45वीं सालगिरह मुबारक हो,’’ शादी की पहली सालगिरह की तरह कमला ने सुबहसुबह शर्माजी के कानों में धीरे से कहा. शर्माजी ने धीरे से आंखें खोलीं और कहा, ‘‘तुम्हें भी मुबारक,’’ और शरारती अंदाज में हाथ आगे बढ़ाना चाहा.

कमला एकदम ठिठक गई, ‘‘तुम भी कमाल करते हो, अभी बच्चे आ जाएंगे,’’ लेकिन फिर खुद ही याद आया, बच्चे घर में कहां हैं. वे तो 6 महीने पहले ही दिल्ली जा कर बस गए हैं. पोतेपोतियों की याद दिल से निकल ही नहीं रही थी. लगता था अभी रिंकी और बंटी दौड़ कर आएंगे और हमारी गोद में बैठ कर कहेंगे, ‘दादीजी, हमें कहानियां सुनाइए.’

हाथ में चाय का प्याला पकड़ते हुए शर्माजी ने कहा, ‘‘बच्चों का फोन नहीं आया. इतनी व्यस्त जिंदगी में हम बूढ़ों की सालगिरह कौन याद रखेगा.’’

फिर शर्माजी के यारदोस्तों के फोन आए. सभी शर्माजी व कमलाजी को सालगिरह की मुबारकबाद दे रहे थे. फिर दोनों लोग बड़ी देर तक गपें मारते रहे थे. पुराने दिनों की याद कर के दोनों को बहुत हंसी आ रही थी. अचानक शर्माजी चहक उठे, ‘‘चलो कमला, हम आज के दिन कुछ अलग करते हैं.’’

‘‘छोड़ो जी, लोग क्या सोचेंगे, कहेंगे कि बुढ़ापे में मस्ती चढ़ी है.’’

शर्माजी ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘जो हमें बुड्ढा कहेगा उसे हम भी जवाब देंगे, ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’.’’

कमलाजी खिलखिला कर हंस पड़ीं. शर्माजी के बारबार आग्रह करने पर कमलाजी बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं. शर्माजी ने कमलाजी से शादी वाली साड़ी पहनने को कहा और साथ में थोड़ा मेकअप व लिपस्टिक भी लगाने को कहा.

‘‘शर्माजी, आप भी वही जींस व शर्ट पहनना जो बेटे ने जाते समय आप को दी थी,’’ कमलाजी बोलीं. फिर दोनों लोग तैयार हो कर हाथ में हाथ थाम कर एक रैस्टोरैंट गए. लंच का समय था इसीलिए वहां पर काफी लड़केलड़कियां बैठे हुए थे. शर्माजी व कमलाजी को देखते ही एक लड़के ने फिकरा कसा, ‘‘भई वाह, क्या नौजवान जोड़ा है, लगता है अभी कल ही नईनई लव मैरिज कर के आए हैं.’’

तभी किसी दूसरे ने कहा, ‘‘अरे भाई, बुढ़ापे में इश्क लड़ाने की सूझी है तभी तो नौजवानों के रैस्टोरैंट में आए हैं.’’

कमलाजी को बड़ा गुस्सा आ रहा था. उन्होंने शर्माजी से कहा, ‘‘चलिए यहां से, हम यहां एक पल भी नहीं रुक सकते.’’

तभी एक लड़की ने कहा, ‘‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.’’

कमलाजी के दिमाग की नसें फटी जा रही थीं, ‘‘ये सब सुनने से तो अच्छा होता कि मैं बहरी होती.’’

जैसेतैसे कर के दोनों लोग रैस्टोरैंट से बिना कुछ खाए ही निकल आए. शर्माजी ने कहा, ‘‘चलो, पार्क चलते हैं. वहीं कुछ ले कर खा लेंगे.’’

कमलाजी ने उन का दिल नहीं तोड़ा. दोनों लोग आराम से पार्क में बैंच पर बैठ कर बातें कर रहे थे. तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘अरे, ये पार्क जवानों के लिए बने हैं लेकिन यहां तो बुड्ढे इश्क लड़ाने से बाज नहीं आते.’’

शर्माजी ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक प्रेमी जोड़ा, जिस की नईनई शादी हुई थी, खड़ा था.

‘‘जरा भी शर्म नहीं आती इन लोगों को इस उम्र में इश्क लड़ाने चले हैं. चलो, हम ही यहां से चलते हैं, जब बड़े ही बिगड़ जाएं तो हमें ही शर्म आनी चाहिए.’’

शर्माजी वहां से उठते कि वे पहले ही चले गए. इतने में एक ठेले वाला चिल्लाते हुए आया, ‘‘चने ले लो चने…’’

कमलाजी ने तुरंत कहा, ‘‘चलो, हम चने खाते हैं.’’

शर्माजी झुंझला उठे, ‘‘हमारे दांत हैं जो हम चना चबाएंगे. जाओ भाई यहां से, हमें नहीं लेने चने.’’

चने वाला बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ा, ‘शर्म नहीं आती, दांत नहीं हैं पर रोमांस थोड़े न छूटेगा, बुड्ढे हो गए हैं पर अभी तक जवानी नहीं गई.’

सामने से एक लड़के ने आ कर कहा, ‘‘क्या जमाना आ गया है, जवान बूढ़े हो गए हैं और बूढ़े चले हैं हनीमून मनाने. अब तो इस जमाने को वाकई कलियुग लग गया है. इतनी उम्र हो गई है फिर भी शर्म नहीं आती.’’

कमलाजी झुंझला उठीं. उन्हें हद से ज्यादा गुस्सा आ रहा था. शर्माजी ने कमला का हाथ धीरे से पकड़ा और घर की तरफ चल पड़े. रास्तेभर दोनों इसी सोच में डूबे थे कि हम ने ऐसा प्लान ही क्यों बनाया कि हमें अपमानित होना पड़ा.

खैर, दोनों किसी तरह घर पहुंचे, थकान की वजह से हाथपांव में दर्द हो रहा था. दोनों लोग अपनीअपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे, ‘क्या हम बूढ़ों के लिए हमारे बच्चों ने एक भी दिन नहीं बनाया कि जब हम थोड़ा मौजमस्ती कर लें? क्या हम लोगों को कोई अधिकार नहीं है कि हम अपने बचे हुए दिन प्यार से गुजारें?’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला.

फर्क कथनी और करनी का : सुच्चामल का फर्जी ज्ञान का रायता

सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोडि़ए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

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