रेटिंगः तीन स्टार

निर्माता,लेखक व निर्देशकः रीमा दास

सह निर्माता: जया दास

कलाकारः अर्नाली दास, मनोरंजन दास, बनिता ठाकुरिया, मनबेंद्र दास, दीपज्योति कलिता व अन्य.

अवधिः एक घंटा 34 मिनट

गत वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के अलावा ‘‘औस्कर’’ में भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में जा चुकी असमिया फिल्म ‘‘विलेज रौकस्टार’’ की लेखक, निर्माता व निर्देशक रीमा दास अब अपनी नई असमी फिल्म ‘‘बुलबुल कैन सिंग’’ लेकर आयी हैं. यह फिल्म भारतीय सिनेमाघरों में 27 सितंबर को पहुंची है, मगर इससे पहले यह फिल्म 40 अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में धूम मचाने के अलावा 17 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुकी है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में आसाम के एक गांव में रहने वाली और स्कूल में पढ़ने वाली किशोरवय लड़की बुलबुल (अर्नालीदास) है, उसके पिता अच्छे गायक हैं. बुलबुल को गांव के किनारे पेड़ो के झुंड के बीच जमीन पर गिरे हुए फूल के पास आराम करते हुए आनंद आता है. बुलबुल के पिता अपनी बेटी को भी गायक बनाना चाहते हैं. बुलबुल की आवाज अच्छी है, मगर उसकी आवाज तब विफल हो जाती है, जब उसे लोगों के सामने गाना पड़ता है. असफलता और आत्म-संदेह के डर से भी नाजुक बोनी (बोनिता ठाकुरिया) और सुमन (मनोरंजन दास ) जो पारंपरिक पुरुष छवि को पूरा नहीं करता है, इसलिए उसे लोग ‘औरत’ कहकर बुलाते हैं. वास्तव में सुमन ट्रांसजेंडर/ समलैंगिक है. स्कूल में लड़के सुमन की पैंट उतारना चाहते हैं और जांचना चाहते हैं कि वास्तव में वहां क्या है. लेकिन बुलबुल और बोनी उसे लड़कियों की तरह मानते हैं. जबकि सुमन (मनोरंजन दास) अभी भी समझने का प्रयास कर रहा है कि वह वास्तव में कौन है. स्कूल में ही एक किशोर वय लड़का पराग (मनवेंद्रर दास) है, जो बुलबुल को कविताएं लिखकर देना शुरू करता है. बुलबुल घर पर उस कविता को अपने बिस्तर पर फैलाकर पढ़ती है, सुमन उसके बगल से बाहर निकलती है.

अब स्कूल में बुलबुल, बोनी, बोनी का दोस्त, सुमन, परागयह पांच दोस्त एक साथ नजर आने लगते हैं. पहले प्यार का अनुभव तीनों किशोरों को उच्च उम्मीदों और सख्त नैतिकआदर्श के दबाव में रखता है. यह पांचों एक साथ तस्वीरें भी खिंचवाते हैं. एक दिन यह पांचो जंगल में घूमने जाते हैं. बोनी और बोनी का दोस्त अलग पेड़ के नीचे खड़े होकर बातें करते हैं. बुलुबुल, सुमन से कहती है कि आने जाने वालों पर नजर रखे. पर सुमन प्रकृति में खो जाता है और जैसे ही एक झाड़ियों कें झुंड में बुलबुल और पराग के चुंबन लेते ही कुछ आदमियों का झुंड उन्हे घर लेता है. फिर यह नैतिक पुलिसिंग करते हुए बुलबुल और बोनी की पिटायी करते है. मामला इनके घर व स्कूल तक पहुंचता है. बुलबुल और बोनी से स्कूल के शिक्षक अपना अपराध लिखवाते है और फिर इनकी संगीत की प्रतिभा को नजरंदाज कर स्कूल से निकाल दिया जाता है. बुलबुल को लगता है कि उसका सब कुछ तबाह हो गया. वह सुमन सहित हर किसी से संबंध खत्म कर लेती है. बुलबुल, सुमन को काफी कुछ बुरा भला कहकर उसे दोस्त मानने से इंकार कर देती है. जबकि बुलबुल को थोड़ा एहसास होता है कि सुमन उन मर्दाना पुरुषों के सामने उतनी ही शक्तिहीन रही होगी जितनी वह और पराग. इस घटना के बाद बोनी अपनी विधवा मां की परवाह न करते हुए आत्महत्या कर लेती है. प्यार और दुख के बीच संबंध बहुत ताकत की मांग करता है. इसी वजह से बुलबुल अकेले में गाना शुरू कर देती है.

फिर गांव में एक समारोह के दौरान एक शख्स कहता है- ‘‘प्यार स्प्रिच्युअल होता है.प्यार फिजिकल भी होता है. प्यार खुद की अनुभूमित, प्यार खुद की खुशी व संतुष्टि होता है. मगर आधुनिक सोच ने प्यार को बदनाम कर दिया.’’दूसरे दिन गांव की कुछ औरते आपस में चर्चा करते हुए कहती है- ‘‘प्यार स्प्रिच्युल होता है, प्यार फिजिकल होता है, पर हमारी समझ में तो कुछ नही आया.’’

दोस्त बोनी की मृत्यु के बाद बुलबुल एक टिड्डी के साथ खेलते हुए नजर आती है. उसने खुद को अस्थायी रूप पराग व सुमन सहित हर किसी से दूर कर लिया है, लेकिन जीवन से नहीं….कुछ दिन बाद नदी किनारे बोनी की मां (पाकीजा बेगम) और बुलबुल गुमसुम बैठे होते हैं. तभी आकाश में इंद्रधनुष नजर आता है. बोनी की मां बुलबुल से इंद्रधनुष देखने के लिए कहती है. उसके बाद वह बुलुबल से कहती है- ‘‘यदि आप लोगों को बहुत सुनते हैं, तो आपका जीवन बर्बाद हो जाएगा. वही करें जो आपका दिल चाहता है.‘‘

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लेखन व निर्देशनः

रीमा दास को अपने शिल्प में महारत हासिल है. रीमा दास ने फिल्म में प्रकृति को भी एक किरदार की तरह पेश किया है. फिल्मकार ने एक लड़की को किस तरह परिवार, समाज,पितृसत्तात्मक सोच जैसे दबावों का सामना करना पड़ता है, उसका सटीक चित्रण किया है. फिल्म में बुलबुल की मां अक्सर उससे कहती है ‘‘लड़कियों को विनम्र और शांत होना चाहिए‘‘ और ‘‘अपनी फ्रौक को नीचे खींचो.‘‘

फिल्मकार ने फिल्म में असम के ग्रामीण जीवन और परिवेश, दिनचर्या को बहुत ही बेहतरीन तरके से उकेरा है. तो वहीं तीन दोस्तों के जीवन को बड़े खूबसूरत तरीके से चित्रित किया है. किशोरवय के प्यार को खूबसूरती से चित्रित किया गया है. तो वही फिल्म्कार ने सामाजिक और नैतिकता के ठेकेदारों पर कुठाराघाट करते हुए सवाल उठाया है कि किन्ही चार लोगों को समाज व संस्कृति के ठेकेदार बन किसी की भी जिंदगी को तहस नहस करने का अधिकार किसने दिया? इसी के साथ फिल्मकार ने शिक्षकों की बदलती सोच पर कटाक्ष किया है.एक शिक्षक का काम होता है छात्र की कमियों को दुरुस्त कर उसे एक बेहतर इंसान बनाना न कि उसे ऐसी सजा देना जिससे वह अपना जीवन ही खत्म कर ले.

पूरी फिल्म देखने के बाद यह बात उभकर आती है कि फिल्म में रीमा दास ने बुलबुल को प्रतीकात्मक रूप में फिल्म में उपयोग किया है. बुलबुल और सुमन दोनों मनुष्य द्वारा उत्पीड़ित हैं, लेकिन उनका सार प्रकिृत से प्राप्त उनके नामों में निहित है. बुलबुल एक पक्षी है और सुमन एक फूल है. दोनों को स्वतंत्र होने की आवश्यकता है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बुलबुल के किरदार में अर्नाली दास और सुमन के किरदार में मनोरंजन दास ने शानदार जीवंत अभिनय किया है.

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