दोस्तो, आज पूंजीपति और सर्वहारा के बीच का संघर्ष गौण हो गया है या कि सर्वहारा वर्ग पूंजीपतियों से लड़तेलड़ते मौन हो गया है. इसीलिए, समाज में समता लाने वाले वादियों ने भी सर्वहारा के लिए लड़ना छोड़ सर्वहारा के चंदे की उगाही से शोषण की समतावादी मिलें स्थापित कर ली हैं.
आज संघर्ष अगर किसी के बीच में है तो बस आटे और डाटे के. अब वे हम से डाटे के हथियार से हमारा आटा छीन रहे हैं. हम से समाज का नाता छीन रहे हैं. हम से हमारा नाता छीन रहे हैं. आज जबजब डाटे का दांव लग रहा है, वह आटे को पछाड़ने में जुटा है. आटे को लताड़ने में जुटा है. और बेचारा आटा, एकबार फिर पूंजीपतियों के हाथों नए तरीके से लुटा है. अपना मुंह ताकता.
मैं अंधी आंखों से भी बिन संजय के देख रहा हूं कि आज डाटा मंदमंद मुसकराते हुए हम से हमारा आटा छीन रहा है. हर वर्ग आटा छोड़ डाटे के पीछे यों भाग रहा है जैसे उस के पांव बहुत पीछे छूट चुके हैं. पर वह फिर भी डाटे के पीछे यों भागे जा रहा है कि...
मेरी पूछो तो मैं बिन आटे के हफ्तों जी सकता हूं मजे से, पर बिन डाटे के मुझे कोई एक पल भी जीने को कहे तो मेरा जीना दूभर हो जाए.
कल पता नहीं क्या हुआ कि मुझे पता ही न चला कि कब मेरा डाटा खत्म हो गया. मैं परेशान. मैं ने अपनी परेशानी में अपने पुरखे तक परेशान कर डाले. डाटा खत्म होने पर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. लगा, ज्यों मेरी रंगों का लहू जम गया हो जैसे. पूरे बदन में एकाएक सुन्नगी छाने लगी. चेहरे पर तो पैदा होते ही मुर्दनी आ डटी थी. आंखों के सामने अंधेरा होने लगा.