उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वारहट गांव के निवासी देव नेगी ने संगीत साधना के बल पर बौलीवुड में एक मशहूर गायक के रूप में पहचाने जाने लगे हैं. फिल्म ‘‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’’ के गीत ‘‘आजा अब जी ले जरा’’ गाकर उन्होंने बौलीवुड में कदम रखा था. नतब से उन्होंने ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘हैरी मेट जेसल’, ‘जुड़वा 2’, ‘बधाई हो’, ‘केदारनाथ’, ‘टोटल धमाल’, ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ सहित कई फिल्मों में लगभग पैंतिस से अधिक गीत गा चुके हैं, तो वहीं वह गैर फिल्मी सिंगल गीत भी गा रहे हैं. हाल ही में नवरात्रि के दिनो में देव नेगी और असीस कौर द्वारा स्वरबद्ध गीत ‘‘चूडियां’’ ने काफी धमाल किया.

संगीत के प्रति रूचि कैसे पैदा हुई ?

मैं मूलतः उत्तराखंड से हूं. मेरी माता जी गृहिणी और पिताजी आर्मी से रिटायर्ड हैं. हमारे परिवार का संगीत से कोई ताल्लुक नहीं है. लेकिन हमारे घर के नजदीक एक शिव मंदिर है, जहां पर भजन कीर्तन हुआ करते थे. सुबह और शाम को आर्मी से रिटायर्ड हो चुके व गांव के अन्य बुजुर्ग लोग इस मंदिर के प्रागंण में भजन गाया करते थे. ढोल,  तबला, हारमोनियम व मंजीरा बजता. मैं बचपन से ही मंदिर जाकर इनके साथ मजीरा बजाने लगा था. तो संगीत के प्रति रूचि जाने अनजाने बचपन में ही पैदा हो गयी थी. फिर गांव में होने वाली ‘रामलीला’ में अभिनय करने लगा.

संगीत को करियर बनाने की बात दिमाग में कब आयी ?

हमारे गांव में भी संगीत का कोई स्कोप नहीं था. इसलिए मैंने पंजाब जाकर संगीत में बैचलर डिग्री हासिल की. फिर मैंने श्री विनोद ब्रह्मा जी से संगीत सीखा और 2010 में मुंबई आकर मेहनत के साथ संघर्ष करना शुरू किया था. 2014 से लगातार काम कर रहा हूं.

छह साल के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट आप किन्हें मानते हैं ?

मेरे कैरियर में सबसे बड़ा टर्निंग प्वांइट फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ रही. इससे पहले फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ का मेरा गीत ‘कौफी पीते पीते.’ काफी लोकप्रिय हो गया था. फिर ‘तनु वेड्स मनु’ का गाना लोकप्रिय हुआ. लेकिन इन गानों को उतनी लोकप्रियता नही मिली, जितनी ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के गीत को मिली. सच कहूं तो इससे पहले वाली मेरी फिल्म के गीतों को सही ढंग से प्रमोट भी नहीं किया गया था. तो मुझे भी शोहरत कम मिली. लेकिन ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के गीत को अच्छे ढंग से प्रमोट किया गया. गाना लोकप्रिय हुआ. फिल्म भी सफल हुई, तो मुझे पहचान मिली. सच कह रहा हूं 2017 के मेरे इस गाने ने मेरी जिंदगी ही बदल कर रख दी. उसके बाद मुझे सारे हिट गाने मिलने शुरू हो गए. मसलन- ‘टन टना टन टन टन टारा..’ भी गाया. इसे आप सितारों का या तकदीर का बदलना कह सकते हो. जब समय आपके साथ होता है, तो आपके साथ अच्छा ही अच्छा हो रहा होता है. चीजें अपने आप बदल जाती हैं. फिर मैंने ‘बरेली की बर्फी’ में ‘स्वीटी तेरा ड्रामा’ गाया. शाहरुख के लिए भी ‘बटरफ्लाइ.. ’गाने का मौका मिला. ‘स्वीट हार्ट’, ‘आला रे आला’,‘मुंबई दिल्ली दी कुड़ियां’ जैसे गीत गाए. मैं अपने सभी दोस्तों, माता-पिता और परमेश्वर के साथ साथ अपने चाहने वालों का बहुत शुक्रगुजार हूं कि उनके आशीर्वाद ने मुझे यहां तक पहुंचाया. मेरे म्यूजिकल कंसर्ट भी काफी हिट होते हैं.

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किसी फिल्म के हिट होने में गाने का योगदान रहता है या नहीं..?

फिल्म के हिट होने में गाने का योगदान बहुत जरूरी होता है. मगर यह जरूरी नहीं है कि फिल्म सफल हुई, तो गाना भी हिट होगा. क्योंकि आजकल कांसेप्ट@कंटेंट वाली फिल्में बन रही है. मसलन-‘उरी’.. इसमें देशभक्ति वाले गाने हैं, जो कि कमर्शियल नहीं हो सकते. लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि फिल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से कमर्शियली गाने उतना नहीं कर पाते हैं. फिर गाने हिट होने पर भी फिल्म नही चलती. मसलन, एक फिल्म ‘मुस्कान’ के सारे गाने हिट थे, मगर फिल्म कब आयी, कब गयी पात ही नहीं चला. निन्यानबे प्रतिशत मामले में फिम के प्रमोयान के समय पहले गाना रिलीज किया जाता है, जिससे यदि लोग गाना गुनगुनाने लगेंगे, तो वह फिल्में देखने सिनेमाघर जाएंगे .इन दिनों कुछ फिल्म निर्देशक दर्शकों को आकर्षित करने के लिए सिर्फ एक प्रमोशनल गाना फिल्म में रखते हैं, उसी का धुंआधार प्रचार करते हैं. जिससे लोग गाना गुनगुनाने लगे.

जब आप किसी म्यूजिकल कंसर्ट में गाते हैं और जब आप स्टूडियो में गाना रिकौर्ड करते हैं, दोनों समय आपकी सोच क्या होती है, दोनो में कितना अंतर है ?

दोनों में बहुत अंतर है. मैं यह नही कहूंगा कि स्टूडियो में गाना रिकार्ड करना आसान है, वहां भी मुश्किल है और म्यूजिकल कंसर्ट में गाना भी मुश्किल है. पर दोनों का कांसेप्ट परफेक्शन है. स्टूडियो में हमें रीटेक का अवसर मिलता है. हम गाने को सुधार सकते हैं, मगर लाइव म्यूजिकल कंसर्ट में एक ही टेक मिलता है. वहां हमें जनता को अपने साथ इंगेज करना होता है, डांस करना होता है. अपनी वेरिएशंस दिखानी होती है. तो म्यूजिकल कंसर्ट का अपना एडवेंचर है.

इसके बाद आगे की क्या योजना है?

कोशिश है कि मेरे हर गाने को लोगों का प्यार मिलता रहे.

कोई नया गाना आने वाला है?

इसका दावा करना मुश्किल है. आजकल इंडस्ट्री का सिनेरियो थोड़ा बदला हुआ है. जब तक मुझे पता नहीं चलता, मैं बताता नही. मैंने कई गाने रिकार्ड किए हैं, कौन सा गाना किस फिल्म में कब आएगा, इसकी जानकारी मेरे पास भी नहीं है. मैं अपने हर गाने को पूरी शिद्दत से गाता हूं. जब तक निर्माता घोषणा न करे, मैं अपनी तरफ से जग जाहिर नहीं करता.

‘यू ट्यूब’ या किसी म्यूजिक लेबल के तहत सिंगल गाना रिलीज होता है, उसको जो रिस्पांस मिलता है और जब आप फिल्म के लिए गाते हैं,  उसको जो रिस्पांस मिलता है, दोनों में क्या फर्क है?

दोनों के अपने अपने फायदे हैं.सच कहूं तो सुपरहिट गाने ही कलाकार को स्टार या सुपर स्टार बनाते हैं.

फायदा ?

फायदा तो दोनों में है. यदि आप नजर दौड़ाएंगे तो पाएंगे कि सफल फिल्म के गानों के चलते उस समय अमिताभ बच्चन भी स्टार थे.दिलीप कुमार व धर्मेंद्र भी स्टार थे. फिर वहे सुपर स्टार बन गए.यदि गाने का सही प्रमोशन हो और वह लोगों तक पहुंच जाए, तो गायक संगीतकार के साथ साथ उस गाने पर नृत्य करने वाला कलाकार रातों रात स्टार बन जाता है. अब आप दक्षिण के गीत गीत ‘ व्हाई दिस कोलावरी कोलावरी’ को ही लें. दक्षिण के इस गीत के शब्दों के अर्थ हमें नहीं पता, पर गाना पौपुलर हो गया और वह भी यूट्यूब से. तो गाना खुद बोलता है.

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आपके शौक क्या हैं

मेरा शौक खाना बनाना है.

आप खुद कौन सी ऐसी डिश अच्छी बनाते हैं ?

मैं तो बहुत सारी चीजें बनाता हूं. मैं कढ़ी चावल बनाता हूं.मैं राजमा चावल बनाता हूं.चिकन करी बनाता हूं.

 

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