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सर्दियों में ये 6 टिप्स बनाएंगे आपके स्किन को खूबसूरत

सर्दियों के  मौसम में खुश्क हवाओं के चलने से आपकी स्किन रुखी होने लगती है.  इसलिए इस मौसम में आपको अपने स्किन की खास देखभाल करनी पड़ती है.  तो आइए जानते हैं,  सर्दियों के मौसम में स्किन की देखभाल कैसे करें.

इसके लिए आपको कुछ ऐसे घरेलू टिप्स बताते हैं, जो सर्दी में आपकी स्किन को कोमल और खूबसूरत बनाने में मदद करेंगे.

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  1. सर्दियों में त्वचा को कोमल बनाए रखने के लिए बादाम के तेल का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है. बेहतर फायदे के लिए आप चाहें तो रात के वक्त तेल लगाकर सो जाएं. सुबह उठने पर आप पाएंगे कि आपकी त्वचा का मौइश्चर अब भी बरकरार है
  2. नहाने के बाद हल्के हाथों से तौलिए का इस्तेमाल करें. संभव हो तो नहाने के तुरंत बाद नारियल के तेल से या किसी औयली बौडी लोशन से पूरे शरीर पर मसाज करें.
  3. चेहरा धोने के लिए न तो बहुत अधिक गर्म पानी का इस्तेमाल करें और न ही बहुत ठंडे पानी का.
  4. फटे होंठ और स्किन को कोमल बनाने के लिए रोजाना सोने से पहले मलाई में गुलाब जल और नींबू का रस मिलाकर मसाज करें.
  5. रोजाना नारियल के तेल से मालिश करने से भी त्वचा में कोमलता और निखार आता है.
  6. ग्लिसरीन में गुलाब जल और नींबू का रस मिलाकर रोजाना लगाने से त्वचा कोमल बनने के साथ निखरती भी है.

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दुलहन का खतरनाक दांव : प्रेमी के साथ मिल पति को लगाया ठिकाने

विवाह के बाद हनीमून हर पत्नी और पति की एक सुखद अनुभूति होती है, जिस के लिए वे हैसियत के अनुसार एक मनोहारी वातावरण वाले स्थान का चयन करते हैं. पुणे निवासी आनंद कांबले ने भी दीक्षा से शादी हो जाने के बाद हनीमून के लिए महाराष्ट्र के महाबलेश्वर जाने का प्लान बनाया था. उन्होंने इस के लिए तारीख तय की 2 जून, 2018.

आनंद कांबले और दीक्षा खुश थे. उन की यह खुशी तब दोगुनी हो गई जब आनंद का जिगरी दोस्त राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी बोवड़े भी इस खुशी में शामिल हो गए.

2 जून को अपराह्न 3 बजे ये चारों लोग मारुति सुजुकी कार नंबर एमएच14जी एक्स7171 से सतारा के लिए निकले. अभी ये लोग पंचगनी के पसरणी घाट ही पहुंचे थे कि उन के सारे सपने बिखर कर चूरचूर हो गए. कुछ देर पहले तक हंसतेहंसाते इन जोड़ों के बीच एकाएक मातम पसर गया.

हुआ यह कि पसरणी घाट पर पहुंचते ही आनंद कांबले की पत्नी दीक्षा ने उल्टियां आने की बात कही. पत्नी के कहने पर आनंद कांबले ने कार साइड में रुकवा दी. कार के रुकते ही दीक्षा मुंह पर हाथ रख कर नीचे उतर आई.

उस के साथसाथ आनंद कांबले भी कार से बाहर आ गया था. जिस जगह पर कार खड़ी थी, वह काफी संकरी थी, इसलिए राजेश बोवड़े ने कार थोड़ा आगे ले जा कर खड़ी कर दी और स्वयं भी कार से उतर कर अपनी पत्नी के साथ वहां के मनोहारी दृश्यों को देखने लगा. उस ने पत्नी के साथ कुछ फोटो खींचे.

हालांकि दीक्षा को उल्टियां नहीं हुई थीं, फिर भी आनंद कांबले उस की हालत देख कर घबरा गया था. वह दौड़ कर गया और कार से दीक्षा के लिए पानी की बोतल ले आया.

दीक्षा रोड के साइड में पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठ कर अभी अपने मुंह पर छींटे मार ही रही थी कि तभी वहां एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. उस पर 2 युवक बैठे थे, जो बिना किसी बात के ही वहां खड़े आनंद कांबले से उलझ गए. जब दीक्षा ने पति का पक्ष लेते हुए ऐतराज जताया तो वे लोग दीक्षा के गहने छीनने लगे.

उन्होंने उस का मंगलसूत्र खींच लिया, जिस से दीक्षा के गले पर जख्म भी हो गया. यह आनंद कांबले को बरदाश्त नहीं हुआ. वह उन दोनों से भिड़ गया. तब उन युवकों में से एक ने अपने साथ लाए कांते से आनंद के सिर पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए आनंद वहां से भाग खड़ा हुआ, लेकिन वह कुछ ही दूर जा कर जमीन पर गिर पड़ा.

इधर अपनी सेल्फी और गपशप में मस्त राजेश और उस की पत्नी कल्याणी ने दीक्षा और आनंद कांबले की चीख सुनी तो वे उन की तरफ दौड़े. वे रोड पर आए तो उन्होंने देखा कि 2 युवक आनंद से मारपीट कर रहे हैं, जिन में से एक के हाथ में खतरनाक हथियार था. राजेश दोस्त की जान बचाने के बजाए डर की वजह से पत्नी के साथ कार में जा कर बैठ गया.

हमलावर युवकों ने जब राजेश को देखा तो वे आनंद को छोड़ कर कार के करीब पहुंच गए. कार के दरवाजे बंद थे. एक युवक ने कांते से कार के आगे वाले शीशे पर वार किया. फलस्वरूप शीशा टूट गया, शीशे के टुकड़े राजेश बोवड़े व उस की पत्नी के सिर में लगे, जिस से खून बहने लगा. लेकिन इस की परवाह न करते हुए राजेश ने कार तेजी से भगा दी.

कुछ ही दूर आगे पंचगनी का पुलिस थाना था. थाने पहुंच कर राजेश ने इस घटना की जानकारी दी. लेकिन वहां से उन्हें कोई सहायता नहीं मिल सकी. वहां की पुलिस ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि घटना वाली जगह वाई पुलिस थाना क्षेत्र में आती है.

जब तक राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी वाई पुलिस थाने पहुंचे, तब तक वहां की पुलिस को सतारा जिला अस्पताल से इस मामले की जानकारी मिल चुकी थी. फिर भी वाई पुलिस थानाप्रभारी इंसपेक्टर विनायक वेताल ने उन दोनों का बयान नोट किए और घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

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उन्होंने अपनी एक पुलिस टीम को घटनास्थल पर भेजा और स्वयं अपने सहायकों के साथ सातारा अस्पताल की ओर रवाना हो गए. वहां जाने पर पता चला कि राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी बोवड़े के जाने के बाद दोनों हमलावर मोटरसाइकिल से भाग गए थे.

उन के जाने के बाद दीक्षा किसी से लिफ्ट मांग कर आनंद कांबले को सतारा के क्रांति नानासाहेब पाटिल अस्पताल लाई और सारी बात डाक्टरों को बता दी. डाक्टरों ने गंभीर रूप से घायल आनंद कांबले का चैकअप किया तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. दीक्षा भी मामूली रूप से जख्मी थी. उस का भी प्राथमिक उपचार किया गया.

थानाप्रभारी विनायक वेताल अस्पताल पहुंच कर डाक्टरों से मिले और आनंद कांबले के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. आनंद कांबले के शरीर पर गहरे जख्म थे. दीक्षा बयान देने की हालत में नहीं थी, इसलिए थानाप्रभारी डाक्टरों से बात कर के थाने लौट आए.

इस मामले की खबर जब आनंद कांबले के परिवार वालों को मिली तो कोहराम मच गया. परिवार के सारे लोग रोतेबिलखते अस्पताल पहुंच गए. आनंद कांबले के शव का पोस्टमार्टम होने के बाद शव उस के परिवार वालों को सौंप दिया गया.

मामला लूटपाट और हत्या से संबंधित था, जिस की जांच के लिए मौकाएवारदात की गवाह दीक्षा कांबले का बयान जरूरी था. घटनास्थल पर गई पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई थी. उसे वहां लूटपाट जैसा कोई सूत्र नहीं मिला था. इस बारे में अब दीक्षा ही कुछ बता सकती थी.

मामूली रूप से जख्मी दीक्षा जब कुछ सामान्य हुई तो थानाप्रभारी विनायक वेताल ने उस का बयान दर्ज करने के लिए उसे थाने बुलाया. चूंकि मृतक आनंद कांबले आरपीआई पार्टी का पुणे शहर का उपाध्यक्ष था, इसलिए पुलिस के लिए यह मामला महत्त्वपूर्ण बन गया था.

आनंद की हत्या की जानकारी पूरे शहर में फैल गई थी. देखते ही देखते पार्टी के हजारों कार्यकर्ता पुणे शहर की सड़कों पर उतर आए थे. मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही सतारा के एसीपी संदीप पाटिल और अजित टिके हरकत में आ गए.

थानाप्रभारी विनायक और क्राइम ब्रांच के पीआई पद्माकर घनवट केस की जांच में जुट गए. दिनरात एक कर के पुलिस ने 24 घंटे के अंदर केस को खोलने में सफलता हासिल कर ली. पुलिस ने अभियुक्तों को भी गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी विनायक वेताल और पीआई पद्माकर घनवट पहले आनंद कांबले को अपनी जांच के दायरे में लिया. क्योंकि उन का मानना था कि आनंद कांबले चूंकि आरपीआई पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता था, इसलिए उस की किसी से अनबन या दुश्मनी हो सकती है. लेकिन जांच में ऐसा कुछ नहीं निकला. आनंद कांबले का चरित्र साफसुथरा था.

इस के बाद जब उन का ध्यान कांबले परिवार की नईनवेली दुलहन दीक्षा पर गया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. उन्होंने देखा कि सिर्फ 7 दिन की दुलहन के चेहरे पर दुख के वैसे भाव नहीं थे, जैसे होने चाहिए थे. जहां सारा परिवार आनंद कांबले के गम में डूबा था, वहीं दीक्षा की आंखों और चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

दूसरी बात जो पुलिस को खटक रही थी, वह यह थी कि अगर हत्यारे लूटपाट के इरादे से आए थे तो उन्होंने आनंद कांबले की हत्या क्यों की? उन्हें दीक्षा की हत्या करनी चाहिए थी, क्योंकि सारे गहने दीक्षा के शरीर पर थे. जबकि वे सिर्फ उस का मंगलसूत्र ले कर गए थे.

इन सारी कडि़यों को जोड़ने और दीक्षा की कुंडली खंगालने के बाद दीक्षा पुलिस के निशाने पर आ गई. उन्होंने जब दूसरी बार दीक्षा को थाने बुला कर पूछताछ की तो वह संभल नहीं सकी और उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

24 वर्षीय दीक्षा ओव्हाल देखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही हसीन और चंचल थी. महत्त्वाकांक्षी सौंदर्यरूपी दीक्षा को जो एक बार देख लेता था, वह अपने आप उस की तरफ खिंचा चला आता था. लेकिन दीक्षा जिस की तरफ खिंची चली गई थी, वह खुशनसीब निखिल मलेकर था, जो उस के स्कूल का दोस्त था.

26 वर्षीय निखिल मलेकर पुणे के चिखली गांव का रहने वाला था. उस के पिता सुदाम मलेकर पुणे की एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे. परिवार साधनसंपन्न था. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

निखिल मलेकर को पूरा परिवार प्यार करता था, उस की हर मांग पूरा करता था. यही वजह थी कि वह जिद्दी स्वभाव का बन गया था. वह जो चाहता था किसी न किसी तरह हासिल कर लेता था.

दीक्षा के पिता धार्मिक प्रवृत्ति और पुराने खयालों के आदमी थे. उन के लिए समाज और मानमर्यादा ही सब कुछ थी. उन की गिनती गांव के संपन्न काश्तकारों में होती थी. दीक्षा उन की लाडली बेटी थी, जिसे पूरा परिवार प्यार करता था. इसी वजह से परिवार के सामाजिक और रूढि़वादी होने के बावजूद दीक्षा को खुली छूट मिली हुई थी.

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निखिल मलेकर और दीक्षा की लवस्टोरी तब से शुरू हुई थी, जब दोनों स्कूल आतेजाते थे. दीक्षा का गांव निखिल मलेकर के गांव के करीब था. दोनों का स्कूल आनेजाने का रास्ता एक ही था. दोनों स्कूल तो साथसाथ आतेजाते ही थे, स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों और पिकनिक पर भी साथसाथ रहते थे.

जब तक दोनों कम उम्र के थे, तब तक उन का व्यवहार दोस्ती जैसा था. लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ी, वैसेवैसे उन का रंगरूप और खयाल बदले. वक्त के साथ बचपन की दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया. दोनों की पढ़ाई भले ही खत्म हो गई, लेकिन प्यार खत्म नहीं हुआ. उन का मिलनाजुलना पहले जैसा ही चलता रहा.

दोनों जब भी मिलते थे, एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखा करते थे. उन्हें ऐसा लगता था, जैसे वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. जहां दीक्षा और निखिल मलेकर अपने सुनहरे जीवन का सपना देख रहे थे, वहीं दूसरी ओर दीक्षा के मातापिता उस की शादी का तानाबाना बुन रहे थे.

दीक्षा के पिता उस के लिए वर की तलाश में थे. यह बात जब दीक्षा को पता चली तो वह बेचैन हो गई. वह अपने दिल में निखिल मलेकर की छवि समेटे बैठी थी और उसी से शादी करना चाहती थी.

आखिर एक दिन उस ने अपने रूढि़वादी पिता को सारी बातें बता दीं. उस ने कहा कि वह निखिल से प्यार करती है और उस से विवाह करेगी. निखिल का परिवार भी अच्छा है और घर के लोग भी. हम दोनों खुशीखुशी साथ रह सकते हैं.

दीक्षा की बात सुन कर उस के घर वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन की बेटी अपनी आजादी का उन्हें इतना बड़ा तोहफा देगी.

पिता ने दीक्षा की बातों को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, हम तुम्हारे अपने हैं, हमेशा तुम्हारा भला ही चाहेंगे. हमारी अपनी मर्यादा भी है और समाज में इज्जत भी. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम प्यारव्यार का चक्कर छोड़ कर मानसम्मान से जिओ और परिवार को भी अपना सिर उठा कर चलने दो. इसी में सब की भलाई है.’’

अपने परिवार वालों के सख्त रवैए से दीक्षा यह बात अच्छे से समझ गई थी कि जो सपने सच नहीं हो सकते, उन्हें देखने से क्या फायदा. यही सोच कर वह धीरेधीरे निखिल मलेकर को भूल कर उस से दूर रहने की कोशिश करने लगी. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था.

एक तरफ जहां दीक्षा का यह हाल था, वहीं दूसरी तरफ निखिल मलेकर भी परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अकसर मिलने और चहकने वाली दीक्षा को अचानक क्या हो गया कि वह खामोश और उदास रहने लगी.

लेकिन कहावत है कि जहां चाह होती है वहां राह जरूर निकल आती है. ऐसा ही दीक्षा के साथ भी हुआ. एक दिन उस ने निखिल को बता दिया कि उस के घर वाले उन दोनों की शादी के खिलाफ हैं और उस की शादी कहीं दूसरी जगह करना चाहते हैं.

दीक्षा ने निखिल से कहा कि वह उसे भूल जाए. दीक्षा की बात सुन कर निखिल के होश उड़ गए. वह बोला, ‘‘दीक्षा, तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे घर वालों से बात करूंगा. उन के पैर पकड़ूंगा, उन से विनती करूंगा.’’

‘‘इस से कुछ नहीं होगा निखिल, मैं अपने परिवार वालों को अच्छी तरह से जानती हूं. वहां तुम्हारा केवल अपमान ही होगा. इस से अच्छा है कि तुम मुझे भूल जाओ.’’ दीक्षा ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे भूल सकती हो?’’ निखिल मलेकर ने सपाट शब्दों में पूछा.

‘‘मैं तुम्हें भूल तो नहीं सकती लेकिन कुछ कर भी तो नहीं सकती.’’ वह बोली.

दीक्षा के काफी समझाने के बाद भी निखिल मलेकर नहीं माना और वह उस के परिवार वालों से जा कर मिला. आखिर वही हुआ जिस का दीक्षा को डर था. निखिल मलेकर को अपमानित कर घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया. यह बात दीक्षा से सहन नहीं हुई.

निखिल मलेकर को घर से निकालने की बात ले कर बेटी बगावत न कर दे, यह सोच कर उस के पिता दीक्षा के लिए वर की तलाश में जुट गए. जल्दी ही उन्होंने पुणे के तालुका औंध गांव मंजठानगर के रहने वाले आनंद कांबले से दीक्षा का रिश्ता तय कर दिया.

32 वर्षीय आनंद ज्ञानेश्वर कांबले सुंदर स्वस्थ और मिलनसार युवक था. उस का मातापिता के साथ भाईभाभियों और बहनों का भरापूरा परिवार था. पिता ज्ञानेश्वर कांबले गांव के प्रतिष्ठित काश्तकार थे. संयुक्त परिवार होने के कारण कांबले परिवार में सभी मिलजुल कर रहते और काम करते थे.

आनंद कांबले वाहनों की नंबर प्लेट बनाने का काम करता था. उस की पुणे में आनंद आर्ट्स के नाम से दुकान थी. इस के अलावा वह राजनीति में भी सक्रिय था. वह आरपीआई पार्टी का पुणे शहर का उपाध्यक्ष था. शहर में उस की अच्छी इज्जत थी. उस के भाईबहनों की शादी हो चुकी थी, केवल आनंद कांबले ही अविवाहित था.

26 मई, 2018 को दीक्षा ओव्हाल और आनंद कांबले का विवाह बड़े उत्साह और धूमधाम से हो गया. विवाह में आरपीआई पार्टी के अध्यक्ष रामदास अठावले के अलावा पुणे शहर के सभी कार्यकर्ता और कई प्रतिष्ठित लोग शामिल हुए.

आनंद कांबले दीक्षा को पा कर बहुत खुश था. उस के परिवार वाले भी अपनी सुंदर बहू से बहुत खुश थे. लेकिन दीक्षा वहां पर अपने आप को कैदी की तरह महसूस कर रही थी. उस के दिलोदिमाग पर निखिल मलेकर की छवि हावी थी. वह सारे रस्मोरिवाज के बीच उदास रही. उस की इस उदासी को उस की ससुराल वाले उस के मायके का गम समझ रहे थे.

घर के सारे कार्यक्रमों के हो जाने के बाद भी जब दीक्षा के चेहरे की उदासी नहीं गई तो परिवार वालों ने आनंद कांबले से बहू को कहीं घुमाफिरा कर लाने के लिए कहा.

घर वालों के कहने पर आनंद कांबले ने हनीमून के लिए सतारा के पंचगनी और महाबलेश्वर जाने की योजना बनाई. इस प्रोग्राम में उस ने अपने जिगरी दोस्त राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी को भी साथ चलने के लिए राजी कर लिया था.

यह बात जब दीक्षा ने अपने प्रेमी निखिल मलेकर को बताई तो वह तिलमिला उठा. उस की प्रेमिका किसी और के साथ सुहागरात के लिए जाए, यह उस से बरदाश्त नहीं हुआ. यही हाल दीक्षा का भी था.

उस ने घर वालों के दबाव में आ कर आनंद कांबले से विवाह जरूर कर लिया था, लेकिन वह आनंद को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह किसी भी तरह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. इस के लिए वह निखिल मलेकर के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना चुकी थी. योजना बना कर निखिल मलेकर घटना के एक दिन पहले ही पंचगनी चला गया.

घटना के दिन दीक्षा उसी समय से निखिल के संपर्क में रही, जिस समय वह पति के साथ पंचगनी महाबलेश्वर के लिए कार से निकली थी. वह निखिल मलेकर को फोन के जरिए पलपल की जानकारी और लोकेशन बता रही थी.

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कार जब पंचगनी पसरणी घाट की तरफ गई तो दीक्षा ने योजना के अनुसार उल्टियां आने का बहाना बना कर कार रुकवा ली. कार को रुके अभी 2-3 मिनट भी नहीं हुए थे कि हत्यारे वहां पहुंच गए और केवल 10 मिनट के अंदर अपना काम कर के निकल गए.

दीक्षा कांबले से पूछताछ कर के पुलिस ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर जांच की तो सारा राज खुल गया. पुलिस ने निखिल मलेकर की सरगर्मी से तलाश शुरू की और 24 घंटे के अंदर उसे पुणे के पिंपरी चिंचवाड़ से गिरफ्तार कर लिया.

विस्तार से पूछताछ में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. दीक्षा कांबले और निखिल मलेकर से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस उन 2 युवकों की तेजी से तलाश कर रही थी, जो आनंद कांबले की हत्या कर के फरार हो गए थे.

– कथा पुलिस की प्रैसवार्ता और समाचारपत्रों पर आधारित

कौमार्य पर धर्म का पहरा

पत्रपत्रिकाओं और इंटरनैट पर ब्लौग्स में युवतियां कौमार्य को ले कर प्रश्न पूछती हैं. एक ब्लौग पर रचना नाम की युवती ने पूछा, ‘‘मेरी शादी होने वाली है. क्या पहली रात को खून आना जरूरी है? मेरे शारीरिक संबंध एक लड़के से बन चुके हैं, क्या मेरे पति को इस बारे में मालूम चल सकता है?’’

ब्लौग पर किसी ‘आंटीजी’ नाम से जवाब दिए गए हैं. जवाब में लिखा है, ‘‘नहीं, ऐसा जरूरी नहीं है. यह एक मिथक है. कौमार्य का पूरा दारोमदार हाइमन यानी झिल्ली से जुड़ा हुआ है. यह झिल्ली आसानी से टूट सकती है. इस का कौमार्य से कोई ताल्लुक नहीं है. जब तक आप खुद अपने पति से यह नहीं बताओगी कि आप ने सैक्स किया है या नहीं, आप वर्जिन हैं या नहीं, तब तक वह इस बात का पता नहीं लगा सकता.’’

युवती फिर पूछती है, ‘‘आप को पक्का पता है मैम, ब्लड जरूरी नहीं है?’’

एक और युवती पूछती है, ‘‘मैं अपने हसबैंड को कैसे प्रूव करूं कि शादी से पहले मैं ने सैक्स नहीं किया?’’

फिर एक युवती पूछती है, ‘‘मेरी योनि ढीली हो गई है. कोई उपाय बताएं. शादी के बाद पति को मालूम पड़ सकता

है क्या?’’

एक युवक ने सवाल किया, ‘‘कैसे पता लगाया जाए कि बीवी ने शादी से पहले सैक्स किया है या नहीं. कोई तरीका तो होगा ही?’’

कौमार्य का भ्रम

योनि की झिल्ली को अकसर कौमार्य से जोड़़ कर देखा जाता है. यानी इस की मौजूदगी कौमार्य का प्रमाण है और उस का भंग होना सहवास की पुष्टि करता है. अकसर पहली बार यौन संबंध के दौरान कसावट और रक्तस्राव होना अक्षत योनि का लक्षण है जो कौमार्य का साक्ष्य माना गया है. इस वजह से युवतियों को आज भी कौमार्य का भय सताता है.

शादी के वक्त युवती को कौमार्य की अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है. वर्जिन कन्या हमारी सामाजिक सोच है जो धर्म की देन है. आपस्तंब, मनुस्मृति जैसे ग्रंथों ने कौमार्य की अवधारणा को मजबूत किया. अक्षत योनि पर जोर दिया गया और बाद में धर्म और समाज के पहरेदारों द्वारा इस का प्रचारप्रसार किया गया. इस से कौमार्य की सोच हमारे दिमागों में गहरे तक पैठ गई और युवतियों के लिए कौमार्य को बहुत कीमती चीज माना गया. इसलिए लड़कियां फर्स्ट नाइट में घबराती हैं कि वे वर्जिन हैं या नहीं. इस सोच से मुक्त हो पाना अब मुश्किल हो रहा है.

धर्मग्रंथों में कुंआरी कन्या की बात आती है. विवाह की पुस्तकों में कन्यादान का अर्थ ही ‘वर्जिन कन्या’ भेंट करना है. शादी की स्वीकृति के लिए धर्म में ‘कन्या ग्रहणम्,’ ‘कन्यादानम,’ यानी अक्षत योनि कुंआरी लड़की, स्त्री नहीं, की बात कही गई है. मनुस्मृति में कहा गया है कि लड़की को रजस्वला होने से पहले ही पति के घर भेज देना चाहिए. अगर लड़की पिता के घर रजस्वला हो गई तो पिता और भाई पाप के भागीदार बनते हैं.

हिंदू धर्म में ही नहीं, यह सोच हर धर्म में है. ईसाई धर्म में शादी से पहले कुंआरेपन की मान्यता है. हाल ही में अमेरिका की खूबसूरत ऐथलीट लोलो जोंस ने कौमार्य का कड़ाई से पालन करने की बात कही थी. उस ने कहा था, ‘‘कौमार्य एक तोहफा है, जिसे वह अपने होने वाले पति को देना चाहती है. पर यह राह बेहद मुश्किल है. उस की जिंदगी का यह सब से मुश्किल काम है.’’

जोंस कौमार्य की मान्यता को ले कर सुर्खियों में रही है. उसे कई खिलाडि़यों ने यौन संबंध बनाने के लिए फुसलाया, कहा गया कि सैक्स करने से वह और तेज दौड़ सकेगी. लेकिन वह उन खिलाडि़यों से मजाक में कहती है कि पहले शादी कर लेते हैं, फिर वह सब काम करेंगे.

धर्म की वजह से ही युवतियों में व्याप्त कुंआरेपन के भय को पेशेवर डाक्टरों ने पहचान लिया और वर्जिनोप्लास्टी का चलन शुरू हो गया.

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फर्स्ट नाइट में धर्म और समाज क्यों? धर्म के आदेश पर समाज और समूचा परिवार लड़की के कौमार्य की पहरेदारी करने लगा. लड़की के पैरों में पायल पहना दी जाती है ताकि पायल की आवाज घरवालों को सुनाई पड़ती रहे कि वह यहीं कहीं पर है. आवाज ओझल होते ही घर वाले उसे ढूंढ़ने लगते हैं.

धर्म की व्यवस्था में स्त्री की कामेच्छा को सीमित रखने के प्रयास किए गए. स्त्री के क्लाइटोरिस यानी भगनासा को छेदने का आदेश है ताकि उस में कामोत्तेजना न हो पाए और वह पुरुष संसर्ग के दौरान पूरी तरह यौन आनंद न ले पाए. धर्म इस बात का खूब प्रचार करता रहता है.

पिछले दिनों हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि ज्यादातर लड़कों ने वर्जिन लड़की से शादी करने को प्राथमिकता दी. असल में यह युवकों का कुसूर नहीं है. समाज में ऐसी मानसिकता बना दी गई कि शादी के लिए लड़की अक्षत योनि होनी चाहिए.

वर्जिनिटी की बात लड़कों पर लागू नहीं है. वे चाहे कहीं भी, कभी भी कितनी बार इधरउधर मुंह मार लें. किसी लड़की से सैक्स संबंध बना कर लड़का हमेशा विजेता की तरह रहता है, लेकिन लड़की हारी हुई. दोनों ने परस्पर संबंध बनाए पर लड़की विजेता क्यों नहीं?

जिस्मों का मिलन

सर्वे बताता है कि नवविवाहित जोड़े के लिए फर्स्ट नाइट को शरीरों का मिलन कोई फैक्टर नहीं है. फर्स्ट नाइट को नवविवाहित जोड़ा इतने स्टै्रस में होता है कि वह उस रात सैक्स के लिए तैयार हो ही नहीं पाता. कई दिनों की थकान, नींद, रस्मों का बोझ, ब्राइडल सूट, गहने, मेकअप, फोटो, वीडियोग्राफी, पंडित, मेहमानों का जमावड़ा, लड़की के लिए नया परिवेश, नए रिश्ते, घबराहट, कमरे के बाहर औरतों का तरहतरह की रस्मों के लिए इकट्ठा रहना, दिमाग में इतनी सारी बातें घूमती रहती हैं कि जिन की वजह से नवविवाहित जोड़ा सैक्स के लिए तैयार हो ही नहीं पाता. सैक्स की फीलिंग्स के लिए एकांत का माहौल चाहिए होता है जो उस समय मिल नहीं पाता.

विवाह के माहौल के तुरंत बाद मनोदशा यौन संबंध बनाने के अनुकूल नहीं होती. जो जोड़े हनीमून के लिए बाहर जाते हैं वहां सफर की थकान तो होती ही है, अनजान जगह पर एक भय बना रहता है. होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा तो नहीं लगा, कोई दरवाजे, खिड़की, रोशनदान से झांक कर तो नहीं देख रहा, इस तरह के भय, आशंका मन में रहते हैं.

एक सर्वे के अनुसार, 60 प्रतिशत लोग फर्स्ट नाइट को सैक्स नहीं कर पाते. 17 प्रतिशत रस्मों के खत्म होने और मेहमानों के जाने का इंतजार करते हैं. 16 प्रतिशत दुलहनें थकीहारी और नींद की मारी होने के कारण ‘नो’ के मोड में रहती हैं. 14 फीसदी दूल्हे अपनी थकान उतारने और नींद पूरी करने के लिए चादर तान कर सो जाते हैं. दुलहन आने के बाद कहींकहीं मेहमानों के साथ पार्टी मनाने में रात गुजर जाती है. कई जोड़े हनीमून की यात्रा में रात सफर में ही बिता देते हैं. कई जोड़े यह सोचते हैं कि अब हमें जीवनभर साथ रहना है, इसलिए छोड़ो यार, आज नहीं, फिर कभी फुरसत में.

कुछ जिद के मामले भी हैं. पति अगर हठ करने लगता है तो 8 प्रतिशत नवविवाहिताएं बिस्तर से कूद पड़ती हैं, वे सैक्स के लिए तैयार नहीं होतीं. अकसर शादियों में सर्दी, गरमी के कारण कईर् दूल्हेदुलहनें बीमार भी हो जाते हैं. खानेपीने से दुलहन की तबीयत खराब हो जाती है तो कहीं दूल्हे की. कहीं दुलहन का दादा बीमार हो गया तो कहीं दूल्हे की दादी, तब भी प्रथमरात्रि मनाने का जोश ठंडा पड़ जाता है. यह कारण भी नवविवाहित जोड़े के बिस्तर का बाधक बनता है.

हालांकि इस सर्वे में यह नहीं बताया गया कि कौमार्य के भय के चलते कितनी युवतियां यौन संबंध बनाने से डरती हैं पर इन का प्रतिशत बहुत है.

मिलन रात्रि

फर्स्ट नाइट यानी प्रथम मिलन रात्रि आम बोलचाल में सुहागरात, नवविवाहित जोड़े के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण रस्म मानी जाती है. सब से हसीन रात सुहागरात ही होती है. यह रात दोनों द्वारा एकदूसरे को अपने कौमार्य के आदानप्रदान के रूप में होती है. इस का महत्त्व उन के रिश्ते में मिठास लाने के लिए है. सुहागरात समाज, परिवार की स्वीकृति के साथ नवविवाहित जोड़े को एकसाथ बिस्तर पर जानने की शुरुआत होती है. शादी से पहले वर्जित फल को खाने की समाज और परिवार में कड़ी बंदिशें होती हैं पर अब आधुनिक व शिक्षित माहौल पढ़ाई और रोजगार के लिए घर से दूर रहने वाले युवकयुवतियों को शादी से पहले ही बिस्तर पर ले आया है. शादी से पहले सैक्स और लिवइन के जमाने में प्रथमरात्रि मिलन की उत्सुकता और उत्साह कम होता जा रहा है.

अभिनेता शाहिद कपूर की मीरा के साथ गुड़गांव में शादी हुई थी पर वे अपनी होने वाली पत्नी को शादी से एक महीने पहले ही मलयेशिया घुमा लाए. अब शादी के बाद फर्स्ट नाइट की रस्म तो महज औपचारिकता ही होनी थी.

फिल्म ‘रामलीला’ में हीरो रणवीर और हीरोइन दीपिका पादुकोण दोनों घर से भाग कर शादी कर लेते हैं. रात एक कमरे में बिताते हैं, पर सैक्स नहीं कर पाते. भय, घबराहट, किसी के आने का डर बना रहता है.

असल में फर्स्ट नाइट महज एक रात के लिए नहीं, यह तो एक से दो महीने लंबी चलती है. धीरेधीरे दुलहन नए परिवेश में ढलती है. शादी की खुमारी टूटती है. मेहंदी का सुर्ख लाल रंग फीका पड़ने लगता है पर नएनवेले पति के प्यार का गाढ़ा रंग चढ़ने लगता है.

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सुहागरात के बारे में युवतियों को आधीअधूरी जानकारी ही होती है. यह उन्हें दादी, नानी, मौसी, चाची, बहनों से ही मिल पाती है या फिर सखीसहेलियों से. लेकिन यहां खिलखिलाहट ज्यादा, काम की जानकारी कम होती है. इसलिए डाक्टरों को आगे आ कर सुहागरात के लिए लड़के और लड़कियों को सलाह देनी चाहिए. हर अस्पताल में युवकयुवतियों के लिए सलाह केंद्र खोले जाने चाहिए. उन के दिमाग से वर्जिनिटी का भय खत्म करना चाहिए. खासतौर से डाक्टरों को धर्म द्वारा दिखाया गया भय खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.

कामसूत्र के रचयिता वात्स्यायन ने ठीक ही कहा था कि स्त्रियों को यौनक्रिया का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वे कामकला में निपुण हो सकें और पति को अपने प्रेमपाश में बांध कर रख सकें. यह काम आज डाक्टर ही कर सकते हैं.

आज हर मांबाप को अपने बेटे और बेटी को शादी से पहले डाक्टर के साथसाथ काउंसलर के पास भेजना चाहिए.

फर्स्ट नाइट के बीच में धर्म और समाज क्यों? विवाह 2 वयस्कों के लिए एक कानूनी प्रक्रिया है. इस में धर्म और समाज की दखलंदाजी बेमतलब है. कौमार्य को धर्म से फुजूल जोड़ दिया गया.

असल में कौमार्य विवाहित जोड़े के लिए यौन आनंद से जुड़ा हुआ है. युवती के अंग की कसावट यौन संबंधों में अधिक आनंद देती है. ढीलेपन में वह बात नहीं होती. नवविवाहित डाक्टरी सलाहमशवरा से यौनआनंद के तरीके आजमा सकते हैं. इस के लिए धर्म की जरूरत ही नहीं है.

सोनू सूद ने एमटीवी इंडिया रियलिटी शो ‘मिस्टर एंड मिस सेवन स्टेट’ की सफलता का मनाया जश्न

अभिनेता सोनू सूद ने मंगलवार को मुंबई  में एमटीवी इंडिया के रियलिटी शो ‘मिस्टर एंड मिस सेवन स्टेट’ की सफलता का जश्न मनाया. इस खास मौके को उन्होंने शो के प्रोड्यूसर वसीम कुरैशी और शो के प्रतियोगियों के साथ सेलिब्रेट किया.

इस शो का ग्रैंड फिनाले राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम में औडिएंस की भीड़ के बीच किया गया. सोनू सूद, मुग्धा गोडसे, 2016 के मिस्टर वर्ल्ड रोहित खंडेलवाल, 2017 मिस इंडिया अनुकृति गुसाई, कनैडियन फैशन वीक के और्गनाइजर परवेश ने इस शो को जज किया. इस रियलिटी शो को वसीम कुरैशी ने प्रोड्यूस किया.

रियलिटी शो ‘मिस्टर एंड मिस सेवन स्टेट’ के बारे में बातचीत करते हुए सोनू ने कहा, “मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं क्योंकि मैं उन लोगो में से हूं जिनसे आप किसी नए टैलेंट के बारे में बात करते हैं जो कि इस शहर में कुछ हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि हमें उन्हें बढ़ावा देना चाहिए और मैं खुश हूं कि हमारे पास ‘मिस्टर एंड मिस सेवन स्टेट’ जैसे स्पेशल इवेंट और शोज है.

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आगे बातचीत में उन्होंने कहा, “इस शो का हिस्सा बनने  के लिए लोग अलग-अलग शहरों से आए है. मैंने शो देखा है. यह बहुत ही अच्छा इवेंट रहा और मैं  सभी लोगों को उनके फ्यूचर के लिए शुभकामनाएं देता हूं. मुझे यकीन है कि इस तरह के शो उन्हें बड़े प्रोडक्शन हाउस से जुड़ने में मदद करेगा.

3 घंटे के कौम्पिटिशन के बाद, गाजियाबाद से सोनाली जेटली और रुड़की से अभिषेक गुजर को ‘मिस्टर एंड मिस सेवन स्टेट’ का विनर घोषित किया गया. अहमदाबाद से सृष्टि कुंदनानी और नजीबाबाद से फरमान कुरैशी को 1st रनरअप घोषित किया गया. बरेली से नेहा राज और नोएडा से मुकुंद ठाकुर शो के 2nd रनरअप बने.

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‘म्यूजिकल कंसर्ट का अपना एडवेंचर है’ : देव नेगी

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वारहट गांव के निवासी देव नेगी ने संगीत साधना के बल पर बौलीवुड में एक मशहूर गायक के रूप में पहचाने जाने लगे हैं. फिल्म ‘‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’’ के गीत ‘‘आजा अब जी ले जरा’’ गाकर उन्होंने बौलीवुड में कदम रखा था. नतब से उन्होंने ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘हैरी मेट जेसल’, ‘जुड़वा 2’, ‘बधाई हो’, ‘केदारनाथ’, ‘टोटल धमाल’, ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ सहित कई फिल्मों में लगभग पैंतिस से अधिक गीत गा चुके हैं, तो वहीं वह गैर फिल्मी सिंगल गीत भी गा रहे हैं. हाल ही में नवरात्रि के दिनो में देव नेगी और असीस कौर द्वारा स्वरबद्ध गीत ‘‘चूडियां’’ ने काफी धमाल किया.

संगीत के प्रति रूचि कैसे पैदा हुई ?

मैं मूलतः उत्तराखंड से हूं. मेरी माता जी गृहिणी और पिताजी आर्मी से रिटायर्ड हैं. हमारे परिवार का संगीत से कोई ताल्लुक नहीं है. लेकिन हमारे घर के नजदीक एक शिव मंदिर है, जहां पर भजन कीर्तन हुआ करते थे. सुबह और शाम को आर्मी से रिटायर्ड हो चुके व गांव के अन्य बुजुर्ग लोग इस मंदिर के प्रागंण में भजन गाया करते थे. ढोल,  तबला, हारमोनियम व मंजीरा बजता. मैं बचपन से ही मंदिर जाकर इनके साथ मजीरा बजाने लगा था. तो संगीत के प्रति रूचि जाने अनजाने बचपन में ही पैदा हो गयी थी. फिर गांव में होने वाली ‘रामलीला’ में अभिनय करने लगा.

संगीत को करियर बनाने की बात दिमाग में कब आयी ?

हमारे गांव में भी संगीत का कोई स्कोप नहीं था. इसलिए मैंने पंजाब जाकर संगीत में बैचलर डिग्री हासिल की. फिर मैंने श्री विनोद ब्रह्मा जी से संगीत सीखा और 2010 में मुंबई आकर मेहनत के साथ संघर्ष करना शुरू किया था. 2014 से लगातार काम कर रहा हूं.

छह साल के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट आप किन्हें मानते हैं ?

मेरे कैरियर में सबसे बड़ा टर्निंग प्वांइट फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ रही. इससे पहले फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ का मेरा गीत ‘कौफी पीते पीते.’ काफी लोकप्रिय हो गया था. फिर ‘तनु वेड्स मनु’ का गाना लोकप्रिय हुआ. लेकिन इन गानों को उतनी लोकप्रियता नही मिली, जितनी ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के गीत को मिली. सच कहूं तो इससे पहले वाली मेरी फिल्म के गीतों को सही ढंग से प्रमोट भी नहीं किया गया था. तो मुझे भी शोहरत कम मिली. लेकिन ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के गीत को अच्छे ढंग से प्रमोट किया गया. गाना लोकप्रिय हुआ. फिल्म भी सफल हुई, तो मुझे पहचान मिली. सच कह रहा हूं 2017 के मेरे इस गाने ने मेरी जिंदगी ही बदल कर रख दी. उसके बाद मुझे सारे हिट गाने मिलने शुरू हो गए. मसलन- ‘टन टना टन टन टन टारा..’ भी गाया. इसे आप सितारों का या तकदीर का बदलना कह सकते हो. जब समय आपके साथ होता है, तो आपके साथ अच्छा ही अच्छा हो रहा होता है. चीजें अपने आप बदल जाती हैं. फिर मैंने ‘बरेली की बर्फी’ में ‘स्वीटी तेरा ड्रामा’ गाया. शाहरुख के लिए भी ‘बटरफ्लाइ.. ’गाने का मौका मिला. ‘स्वीट हार्ट’, ‘आला रे आला’,‘मुंबई दिल्ली दी कुड़ियां’ जैसे गीत गाए. मैं अपने सभी दोस्तों, माता-पिता और परमेश्वर के साथ साथ अपने चाहने वालों का बहुत शुक्रगुजार हूं कि उनके आशीर्वाद ने मुझे यहां तक पहुंचाया. मेरे म्यूजिकल कंसर्ट भी काफी हिट होते हैं.

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किसी फिल्म के हिट होने में गाने का योगदान रहता है या नहीं..?

फिल्म के हिट होने में गाने का योगदान बहुत जरूरी होता है. मगर यह जरूरी नहीं है कि फिल्म सफल हुई, तो गाना भी हिट होगा. क्योंकि आजकल कांसेप्ट@कंटेंट वाली फिल्में बन रही है. मसलन-‘उरी’.. इसमें देशभक्ति वाले गाने हैं, जो कि कमर्शियल नहीं हो सकते. लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि फिल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से कमर्शियली गाने उतना नहीं कर पाते हैं. फिर गाने हिट होने पर भी फिल्म नही चलती. मसलन, एक फिल्म ‘मुस्कान’ के सारे गाने हिट थे, मगर फिल्म कब आयी, कब गयी पात ही नहीं चला. निन्यानबे प्रतिशत मामले में फिम के प्रमोयान के समय पहले गाना रिलीज किया जाता है, जिससे यदि लोग गाना गुनगुनाने लगेंगे, तो वह फिल्में देखने सिनेमाघर जाएंगे .इन दिनों कुछ फिल्म निर्देशक दर्शकों को आकर्षित करने के लिए सिर्फ एक प्रमोशनल गाना फिल्म में रखते हैं, उसी का धुंआधार प्रचार करते हैं. जिससे लोग गाना गुनगुनाने लगे.

जब आप किसी म्यूजिकल कंसर्ट में गाते हैं और जब आप स्टूडियो में गाना रिकौर्ड करते हैं, दोनों समय आपकी सोच क्या होती है, दोनो में कितना अंतर है ?

दोनों में बहुत अंतर है. मैं यह नही कहूंगा कि स्टूडियो में गाना रिकार्ड करना आसान है, वहां भी मुश्किल है और म्यूजिकल कंसर्ट में गाना भी मुश्किल है. पर दोनों का कांसेप्ट परफेक्शन है. स्टूडियो में हमें रीटेक का अवसर मिलता है. हम गाने को सुधार सकते हैं, मगर लाइव म्यूजिकल कंसर्ट में एक ही टेक मिलता है. वहां हमें जनता को अपने साथ इंगेज करना होता है, डांस करना होता है. अपनी वेरिएशंस दिखानी होती है. तो म्यूजिकल कंसर्ट का अपना एडवेंचर है.

इसके बाद आगे की क्या योजना है?

कोशिश है कि मेरे हर गाने को लोगों का प्यार मिलता रहे.

कोई नया गाना आने वाला है?

इसका दावा करना मुश्किल है. आजकल इंडस्ट्री का सिनेरियो थोड़ा बदला हुआ है. जब तक मुझे पता नहीं चलता, मैं बताता नही. मैंने कई गाने रिकार्ड किए हैं, कौन सा गाना किस फिल्म में कब आएगा, इसकी जानकारी मेरे पास भी नहीं है. मैं अपने हर गाने को पूरी शिद्दत से गाता हूं. जब तक निर्माता घोषणा न करे, मैं अपनी तरफ से जग जाहिर नहीं करता.

‘यू ट्यूब’ या किसी म्यूजिक लेबल के तहत सिंगल गाना रिलीज होता है, उसको जो रिस्पांस मिलता है और जब आप फिल्म के लिए गाते हैं,  उसको जो रिस्पांस मिलता है, दोनों में क्या फर्क है?

दोनों के अपने अपने फायदे हैं.सच कहूं तो सुपरहिट गाने ही कलाकार को स्टार या सुपर स्टार बनाते हैं.

फायदा ?

फायदा तो दोनों में है. यदि आप नजर दौड़ाएंगे तो पाएंगे कि सफल फिल्म के गानों के चलते उस समय अमिताभ बच्चन भी स्टार थे.दिलीप कुमार व धर्मेंद्र भी स्टार थे. फिर वहे सुपर स्टार बन गए.यदि गाने का सही प्रमोशन हो और वह लोगों तक पहुंच जाए, तो गायक संगीतकार के साथ साथ उस गाने पर नृत्य करने वाला कलाकार रातों रात स्टार बन जाता है. अब आप दक्षिण के गीत गीत ‘ व्हाई दिस कोलावरी कोलावरी’ को ही लें. दक्षिण के इस गीत के शब्दों के अर्थ हमें नहीं पता, पर गाना पौपुलर हो गया और वह भी यूट्यूब से. तो गाना खुद बोलता है.

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आपके शौक क्या हैं

मेरा शौक खाना बनाना है.

आप खुद कौन सी ऐसी डिश अच्छी बनाते हैं ?

मैं तो बहुत सारी चीजें बनाता हूं. मैं कढ़ी चावल बनाता हूं.मैं राजमा चावल बनाता हूं.चिकन करी बनाता हूं.

 

चमेली की खेती महकती जिंदगी

भारत में चमेली की खेती कई इलाकों में की जाती है, लेकिन तमिलनाडु पहले स्थान पर है. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद, जौनपुर और गाजीपुर जिलों में भी इसे उगाया जाता है. इस के फूल आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं, लेकिन कहींकहीं पीले रंग के फूलों वाली चमेली भी पाई जाती है.

चमेली के फूल, पेड़ व जड़ तीनों ही औषधीय चीजें बनाने में इस्तेमाल होते हैं. इस के फूलों से सजावट के अलावा तेल और इत्र भी तैयार किए जाते हैं. भारत से चमेली के फूलों को श्रीलंका, सिंगापुर और मलयेशिया भेजा जाता है.

आबोहवा और मिट्टी : इस की खेती गरम व नम जलवायु में अच्छी तरह से होती है. गरम जलवायु में पानी की अच्छी सहूलियत और लंबे समय तक उजाला चमेली के लिए अच्छा माना जाता है.

चमेली की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी, जिस में पानी न रुकता हो और जिस का पीएच मान 6.5-7.5 हो, ज्यादा अच्छी रहती है.

किस्में : भारत में चमेली की तकरीबन 80 किस्में पाई जाती हैं, किंतु कारोबारी खेती के लिए 3 किस्मों को उगाया जाता है :

जैस्मिनम

: यह झाडि़यों वाली किस्म है, जो पूरे साल फूल देती है. इस में सब से ज्यादा फूल मानसून के समय आते हैं. इस के फूलों में महक बहुत होती है और इन से 0.24 से 0.42 फीसदी तक तेल हासिल होता है.

जैस्मिनम सैमबैक : यह किस्म फूल की पैदावार के लिए बेहद अच्छी है.

जैस्मिनम ग्रांडीफ्लोरम : इस के पौधे आधे बेल वाले होते हैं और इन में फूल जून से सितंबर महीने में आते हैं. इस के फूलों से 0.24 से 0.42 फीसदी तेल हासिल किया जाता है.

पौध तैयार करना : चमेली की कलम कटिंग द्वारा तैयार की जाती है. इस की कटिंग जनवरीफरवरी महीने में लगानी चाहिए, क्योंकि इस समय इस में सब से ज्यादा जड़ें निकलती हैं.

खेत की तैयारी : चमेली की खेती के लिए सब से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करते हैं. इस के बाद 1.5×1.5 मीटर की दूरी पर 30×30 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद लेते हैं. इन गड्ढों में 10-15 किलोग्राम कंपोस्ट खाद और मिट्टी भर देते हैं.

जड़ निकली हुई कटिंग को इन गड्ढों के बीच में लगा कर सिंचाई कर देते हैं. कटिंग की रोपाई का सब से अच्छा समय जून से ले कर अक्तूबर माह तक होता है. एक एकड़ खेत के लिए तकरीबन 1,800 कटिंग की जरूरत होती है.

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खरपतवार खत्म करने के लिए पहली निराई रोपाई के 3-4 हफ्ते बाद करनी चाहिए. पौधों की कटाईछंटाई करने के बाद थालों व पानी की नालियों को अच्छी तरफ साफ कर के 10-15 सैंटीमीटर की गहराई तक खुदाई करनी चाहिए और उस में खाद व उर्वरक मिलाना चाहिए. यह काम हर 2-3 महीने बाद दोहराते रहना चाहिए.

कटाईछंटाई : चमेली की फसल में साल में एक बार कटाईछंटाई की जाती है.

सिंचाई : चमेली को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. रोपाई के तुरंत बाद एक सिंचाई कर देनी चाहिए. इस के बाद जरूरत के मुताबिक हफ्ते में 1-2 बार सिंचाई करते रहें. जब फूल आने शुरू हो जाएं, तो नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करते रहें.

फसल सुरक्षा : चमेली पर मिली बग, जैस्मिन बग, बड वर्म, रैड स्पाइडर माइट, पत्ती काटने वाली सूंड़ी और सफेद मक्खी का हमला होता है.

इन कीटों की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास व सल्फर का इस्तेमाल करें. सरकोस्पोरा व जड़ विगलन बीमारी के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करें.

फूलों की तुड़ाई व उपज : फूलों की तुड़ाई उस समय करनी चाहिए, जब कलियां पकी हों, लेकिन खिली न हों. फूलों की तुड़ाई हमेशा सुबह सूरज निकलने से पहले ही करें.

वैज्ञानिक तकनीक से चमेली की एक  एकड़ फसल से पहले साल 600 से 800 किलोग्राम, दूसरे साल 1,400 से 1,500 किलोग्राम और तीसरे साल 2,200 से 2,500 किलोग्राम फूल हासिल होते हैं. चौथे साल में यह उपज बढ़ कर तकरीबन 3,500 किलोग्राम तक पहुंच जाती है, जो 7-8 साल तक बनी रहती है.

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एक मौका और दीजिए

नीलेश शहर के उस प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में अपनी पत्नी नेहा के साथ अपने विवाह की दूसरी सालगिरह मनाने आया था. वह आर्डर देने ही वाला था कि सामने से एक युगल आता दिखा. लड़की पर नजर टिकी तो पाया वह उस के प्रिय दोस्त मनीष की पत्नी सुलेखा है. उस के साथ वाले युवक को उस ने पहले कभी नहीं देखा था.

मनीष के सभी मित्रों और रिश्तेदारों से नीलेश परिचित था. पड़ोसी होने के कारण वे बचपन से एकसाथ खेलेकूदे और पढ़े थे. यह भी एक संयोग ही था कि उन्हें नौकरी भी एक ही शहर में मिली. कार्यक्षेत्र अलग होने के बावजूद उन्हें जब भी मौका मिलता वे अपने परिवार के साथ कभी डिनर पर चले जाते तो कभी किसी छुट्टी के दिन पिकनिक पर. उन के कारण उन दोनों की पत्नियां भी अच्छी मित्र बन गई थीं.

मनीष का टूरिंग जाब था. वह अपने काम के सिलसिले में महीने में लगभग 10-12 दिन टूर पर रहा करता था. इस बार भी उसे गए लगभग 10 दिन हो गए थे. यद्यपि उस ने फोन द्वारा शादी की सालगिरह पर उन्हें शुभकामनाएं दे दी थीं किंतु फिर भी आज उसे उस की कमी बेहद खल रही थी. दरअसल, मनीष को ऐसे आयोजनों में भाग लेना न केवल पसंद था बल्कि समय पूर्व ही योजना बना कर वह छोटे अवसरों को भी विशेष बना दिया करता था.

मनीष के न रहने पर नीलेश का मन कोई खास आयोजन करने का नहीं था किंतु जब नेहा ने रात का खाना बाहर खाने का आग्रह किया तो वह मना नहीं कर पाया. कार्यक्रम बनते ही नेहा ने सुलेखा को आमंत्रित किया तो उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है पर उसे इस समय देख कर तो ऐसा नहीं लग रहा है कि उस की तबीयत खराब है. वह उस युवक के साथ खूब खुश नजर आ रही है.

नीलेश को सोच में पड़ा देख नेहा ने पूछा तो उस ने सुलेखा और उस युवक की तरफ इशारा करते हुए अपने मन का संशय उगल दिया.

‘‘तुम पुरुष भी…किसी औरत को किसी मर्द के साथ देखा नहीं कि मन में शक का कीड़ा कुलबुला उठा…होगा कोई उस का रिश्तेदार या सगा संबंधी या फिर कोई मित्र. आखिर इतनेइतने दिन अकेली रहती है, हमेशा घर में बंद हो कर तो रहा नहीं जा सकता, कभी न कभी तो उसे किसी के साथ की, सहयोग की जरूरत पड़ेगी ही,’’ वह प्रतिरोध करते हुए बोली, ‘‘न जाने क्यों मुझे पुरुषों की यही मानसिकता बेहद बुरी लगती है. विवाह हुआ नहीं कि वे स्त्री को अपनी जागीर समझने लगते हैं.’’

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‘‘ऐसी बात नहीं है नेहा, तुम ही तो कह रही थीं कि जब तुम ने डिनर का निमंत्रण दिया था तब सुलेखा ने कह दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है और अब वह इस के साथ यहां…यही बात मन में संदेह पैदा कर रही है…और तुम ने देखा नहीं, वह कैसे उस के हाथ में हाथ डाल कर अंदर आई है तथा उस से हंसहंस कर बातें कर रही है,’’ मन का संदेह चेहरे पर झलक ही आया.

‘‘वह समझदार है, हो सकता है वह दालभात में मूसलचंद न बनना चाहती हो, इसलिए झूठ बोल दिया हो. वैसे भी किसी स्त्री का किसी पुरुष का हाथ पकड़ना या किसी से हंस कर बात करना सदा संदेहास्पद क्यों हो जाता है? फिर भी अगर तुम्हारे मन में संशय है तो चलो उन्हें भी अपने साथ डिनर में शामिल होने का फिर से निमंत्रण दे देते हैं…दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

नेहा ने नीलेश का मूड खराब होने के डर से बीच का मार्ग अपना लेना ही श्रेयस्कर समझा.

‘‘हां, यही ठीक रहेगा,’’ किसी के अंदरूनी मामले में दखल न देने के अपने सिद्धांत के विपरीत नीलेश, नेहा की बात से सहमत हो गया. दरअसल, वह उस उलझन से मुक्ति पाना चाहता था जो उस के दिल और दिमाग को मथ रही थी. वैसे भी सुलेखा कोई गैर नहीं, उस के अभिन्न मित्र की पत्नी है.

वे दोनों उठ कर उन के पास गए. उन्हें इस तरह अपने सामने पा कर सुलेखा चौंक गई, मानो वह समझ नहीं पा रही हो कि क्या कहे.

‘‘दरअसल सुलेखा, हम लोग यहां डिनर के लिए आए हैं. वैसे मैं ने सुबह तुम से कहा भी था पर उस समय तुम ने कह दिया कि तबीयत ठीक नहीं है पर अब जब तुम यहां आ ही गई हो तो हम चाहेंगे कि तुम हमारे साथ ही डिनर कर लो. इस से हमें बेहद प्रसन्नता होगी,’’ नेहा उसे अपनी ओर आश्चर्य से देखते हुए भी सहजता से बोली.

‘‘पर…’’ सुलेखा ने झिझकते हुए कुछ कहना चाहा.

‘‘पर वर कुछ नहीं, सुलेखाजी, मनीष नहीं है तो क्या हुआ, आप को हमेंकंपनी देनी ही होगी…आप भी चलिए मि…आप शायद सुलेखाजी के मित्र हैं,’’ नीलेश ने उस अजनबी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘यह मेरा ममेरा भाई सुयश है,’’ एकाएक सुलेखा बोली.

‘‘वेरी ग्लैड टू मीट यू सुयश, मैं नीलेश, मनीष का लंगोटिया यार, पर भाभी, आप ने कभी इन के बारे में नहीं बताया,’’ कहते हुए नीलेश ने बडे़ गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘यह अभी कुछ दिन पूर्व ही यहां आए हैं,’’ सुलेखा ने कहा.

‘‘ओह, तभी हम अभी तक नहीं मिले हैं, पर कोई बात नहीं, अब तो अकसर ही मुलाकात होती रहेगी,’’ नीलेश ने कहा.

अजीब पसोपेश की स्थिति में सुलेखा साथ आ तो गई पर थोड़ी देर पहले चहकने वाली उस सुलेखा तथा इस सुलेखा में जमीनआसमान का अंतर लग रहा था…जितनी देर भी साथ रही चुप ही रही, बस जो पूछते उस का जवाब दे देती. अंत में नेहा ने कह भी दिया, ‘‘लगता है, तुम को हमारा साथ पसंद नहीं आया.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, तबीयत अभी भी ठीक नहीं लग रही है,’’ झिझकते हुए सुलेखा ने कहा.

बात आईगई हो गई. एक दिन नीलेश शौपिंग मौल के सामने गाड़ी पार्क कर रहा था कि वे दोनों फिर दिखे. उन के हाथ में कुछ पैकेट थे. शायद शौपिंग करने आए थे. आजकल तो मनीष भी यही हैं, फिर वे दोनों अकेले क्यों आए…मन में फिर संदेह उपजा, फिर यह सोच कर उसे दबा दिया कि वह उस का ममेरा भाई है, भला उस के साथ घूमने में क्या बुराई है.

मनीष के घर आने पर एक दिन बातोंबातों में नीलेश ने कहा, ‘‘भई, तुम्हारा ममेरा साला आया है तो क्यों न इस संडे को कहीं पिकनिक का प्रोग्राम बना लें. बहुत दिनों से दोनों परिवार मिल कर कहीं बाहर गए भी नहीं हैं.’’

‘‘ममेरा साला, सुलेखा का तो कोई ममेरा भाई नहीं है,’’ चौंक कर मनीष ने कहा.

‘‘पर सुलेखा भाभी ने तो उस युवक को अपना ममेरा भाई बता कर ही हम से परिचय करवाया था, उसे सुलेखा भाभी के साथ मैं ने अभी पिछले हफ्ते भी शौपिंग मौल से खरीदारी कर के निकलते हुए देखा था. क्या नाम बताया था उन्होंने…हां सुयश,’’ नीलेश ने दिमाग पर जोर डालते हुए उस का नाम बताते हुए पिछली सारी बातें भी उसे बता दीं.

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‘‘हो सकता है, कोई कजिन हो,’’ कहते हुए मनीष ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘हां, हो सकता है पर पिकनिक के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ नीलेश ने फिर पूछा.

‘‘मैं बाद में बताऊंगा…शायद मुझे फिर बाहर जाना पडे़,’’ मनीष ने कहा.

नीलेश भी चुप लगा गया. वैसे नीलेश की पारखी नजरों से यह बात छिप नहीं पाई कि उस की बात सुन कर मनीष परेशान हो गया है. ज्यादा कुछ न कह कर मनीष कुछ काम है, कह कर उस के पास से हट गया. उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि दोस्ती चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्ति किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता.

उधर मनीष, नीलेश के प्रति अपने व्यवहार के लिए स्वयं को धिक्कार रहा था. पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई प्रोग्राम बनने से पूर्व ही अधर में लटक गया था पर वह करता भी तो क्या करता. नीलेश की बातें सुन कर उस के दिल में  शक का कीड़ा कुलबुला कर नागफनी की तरह डंक मारते हुए उसे दंशित करने लगा था.

वह जानता था कि उसे महीने में 10-12 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है सुलेखा की किसी के साथ घनिष्ठता हो गई हो. इस में  कुछ बुरा भी नहीं है पर उसे यही विचार परेशान कर रहा था कि सुलेखा ने उस सुयश नामक व्यक्ति से उसे क्यों नहीं मिलवाया, जबकि नीलेश के अनुसार वह उस से मिलती रहती है. और तो और उस ने उस का नीलेश से अपना ममेरा भाई बता कर परिचय भी करवाया…जबकि उस की जानकारी में उस का कोई ममेरा भाई है ही नहीं…उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे पर सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी पर दोषारोपण करना उचित भी तो नहीं है.

एक दिन जब सुलेखा बाथरूम में थी तो वह उस का सैलफोन सर्च करने लगा. एक नंबर  उसे संशय में डालने लगा क्योंकि उसे बारबार डायल किया गया था. नाम था सुश…सुश. नीलेश की जानकारी में सुलेखा का कोई दोस्त नहीं है फिर उस से बारबार बातें क्यों किया करती है और अगर उस का कोई दोस्त है तो उस ने उसे बताया क्यों नहीं. मन ही मन मनीष ने सोचा तो उस के अंतर्मन ने कहा कि यह तो कोई बात नहीं कि वह हर बात तुम्हें बताए या अपने हर मित्र से तुम्हें मिलवाए.

पर जीवन में पारदर्शिता होना, सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है. अपने अंदर उठे सवाल का वह खुद जवाब देता है कि वह तुम्हारा हर तरह से तो खयाल रखती है, फिर मन में शंका क्यों?

‘शायद जिसे हम हद से ज्यादा प्यार करते हैं, उसे खो देने का विचार ही मन में असुरक्षा  पैदा कर देता है.’

‘अगर ऐसा है तो पता लगा सकते हो, पर कैसे?’

मन तर्कवितर्क में उलझा हुआ था. अचानक सुश और सुयश में उसे कुछ संबंध नजर आने लगा और उस ने वही नंबर डायल कर दिया.

‘‘बोलो सुलेखा,’’ उधर से किसी पुरुष की आवाज आई.

पुरुष स्वर सुन कर उसे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया अत: आफ कर के पुन: लगाया, पुन: वही आवाज आई…

‘‘बोलो सुलेखा…पहले फोन क्यों काट दिया, कुछ गड़बड़ है क्या?’’

उसे लगा नीलेश ठीक ही कह रहा था. सुलेखा उस से जरूर कुछ छिपा रही है… पर क्यों, कहीं सच में तो उस के पीछे उन दोनों में… अभी वह यह सोच ही रहा था कि सुलेखा नहा कर आ गई. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर बोली, ‘‘कितनी बार कहा है, मेरा मोबाइल मत छूआ करो.’’

‘‘मेरे मोबाइल से कुछ नंबर डिलीट हो गए थे, उन्हीं को तुम्हारे मोबाइल से अपने में फीड कर रहा था,’’ न जाने कैसे ये शब्द उस की जबान से फिसल गए.

अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह ऐसा ही करने लगा जैसा उस ने कहा था. इसी बीच उस ने 2 आउटगोइंग काल, जो सुश को करे थे उन्हें भी डिलीट कर दिया, जिस से अगर वह सर्च करे तो उसे पता न चले.

अब संदेह बढ़ गया था पर जब तक सचाई की तह में नहीं पहुंच जाए तब तक वह उस से कुछ भी कह कर संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था. उस की पत्नी का किसी के साथ गलत संबंध है तथा वह उस से चोरीछिपे मिला करती है, यह बात भी वह सह नहीं पा रहा था. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह नामर्द तो नहीं, तभी उस की पत्नी को उस के अलावा भी किसी अन्य के साथ की आवश्यकता पड़ने लगी है.

‘तुम इतने दिन बाहर टूर पर रहते हो, अपने एकाकीपन को भरने के लिए सुलेखा किसी के साथ की चाह करने लगे तो इस में क्या बुराई है?’ अंतर्मन ने पुन: प्रश्न किया.

‘बुराई, संबंध बनाने में नहीं बल्कि छिपाने में है, अगर संबंध पाकसाफ है तो छिपाना क्यों और किस लिए?’

‘शायद इसलिए कि तुम ऐसे संबंध को स्वीकार न कर पाओ…सदा संदेह से देखते रहो.’

‘क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं…नए जमाने का हूं…स्वस्थ दोस्ती में कोई बुराई नहीं है.’

‘सब कहने की बात है, अगर ऐसा होता तो तुम इतने परेशान न होते… सीधेसीधे उस से पूछ नहीं लेते?’

‘पूछने पर मन का शक सच निकल गया तो सह नहीं पाऊंगा और अगर गलत निकला तो क्या मैं उस की नजरों में गिर नहीं जाऊंगा.’

‘जल्दबाजी क्यों करते हो, शायद समय के साथ कोई रास्ता निकल ही आए.’

‘हां, यही ठीक रहेगा.’

इस सोच ने तर्कवितर्क में डूबे मन को ढाढ़स बंधाया…उन के विवाह को 10 महीने हो चले थे. वह अपने पी.एफ. में उसे नामिनी बनाना चाहता था, उस के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थी. बस, सुलेखा के साइन करवाने बाकी थे. एक एल.आई.सी. भी खुलवाने वाला था, पर इस एपीसोड ने उसे बुरी तरह हिला कर रख दिया. अब उस ने सोचसमझ कर कदम उठाने का फैसला कर लिया.

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यद्यपि सुलेखा पहले की तरह सहज, सरल थी पर मनीष के मन में पिछली घटनाओं के कारण हलचल मची हुई थी. एक बार सोचा कि किसी प्राइवेट डिटेक्टर को तैनात कर सुलेखा की जासूसी करवाए, जिस से पता चल सके कि वह कहां, कब और किस से मिलती है पर जितना वह इस के बारे में सोचता, बारबार उसे यही लगता कि ऐसा कर के वह अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देगा…आखिर ऐसी संदेहास्पद जिंदगी कोई कब तक बिता सकता है. अत: पता तो लगाना ही पड़ेगा, पर कैसे, समझ नहीं पा रहा था.

हफ्ते भर में ही ऐसा लगने लगा कि वह न जाने कितने दिनों से बीमार है. सुलेखा पूछती तो कह देता कि काम की अधिकता के कारण तबीयत ढीली हो रही है…वैसे भी सुलेखा का उस की चिंता करना दिखावा लगने लगा था. आखिर, जो स्त्री उस से छिप कर अपने मित्र से मिलती रही है वह भला उस के लिए चिंता क्यों करेगी?

उस दिन मनीष का मन बेहद अशांत था. आफिस से छुट्टी ले ली थी. सुलेखा ने पूछा तो कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है, अत: छुट्टी ले ली.’’

सुलेखा ने डाक्टर को दिखाने की बात कही तो वह टाल गया. आखिर बीमारी मन की थी, तन की नहीं, डाक्टर भी भला क्या कर पाएगा. रात का खाना भी नहीं खाया. सुलेखा के पूछने पर कह दिया कि बस, एक गिलास दूध दे दो, खाने का मन नहीं है. सुलेखा दूध लेने चली गई. उस के कदमों की आहट सुन कर उसे न जाने क्या सूझा कि अचानक अपनी छाती को कस कर दबा लिया तथा दर्द से कराहने लगा.

दर्द से उसे यों तड़पता देख कर उस ने दूध मेज पर रखा तथा उस के पास ‘क्या हुआ’ कहती हुई आई. उस के आते ही उस ने हाथपैर ढीले छोड़ दिए तथा सांस रोक कर ऐसे लेट गया मानो जान निकल गई हो. वह बचपन से तालाब में तैरा करता था, अत: 5 मिनट तक सांस रोक कर रखना उस के बाएं हाथ का खेल था.

सुलेखा ने उस के शांत पड़े शरीर को छूआ, थोड़ा झकझोरा, कोई हरकत न पा कर बोली, ‘‘लगता है, यह तो मर गए…अब क्या करूं…किसे बुलाऊं?’’

मनीष को उस की यह चिंता भली लगी. अभी वह अपने नाटक का अंत करने की सोच ही रहा था कि सुलेखा की आवाज आई :

‘‘सुयश, हमारे बीच का कांटा खुद ही दूर हो गया.’’

‘‘क्या, तुम सच कह रही हो?’’

‘‘विश्वास नहीं हो रहा है न, अभीअभी हार्टअटैक से मनीष मर गया. अब हमें विवाह करने से कोई नहीं रोक पाएगा…मम्मी, पापा के कहने से मैं ने मनीष से विवाह तो कर लिया पर फिर भी तुम्हारे प्रति अपना लगाव कम नहीं कर सकी. अब इस घटना के बाद तो उन्हें भी कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘देखो, तुम्हें यहां आने की कोई आवश्यकता नहीं है. बेवजह बातें होंगी. मैं नीलेश भाई साहब को इस बात की सूचना देती हूं, वह आ कर सब संभाल लेंगे…आखिर कुछ दिनों का शोक तो मुझे मनाना ही होगा, तबतक तुम्हें सब्र करना होगा,’’ बातों से खुशी झलक रही थी.

‘पहले दूध पी लूं फिर पता नहीं कितने घंटों तक कुछ खाने को न मिले,’ बड़बड़ाते हुए सुलेखा ने दूध का गिलास उठाया और पास पड़ी कुरसी पर बैठ कर पीने लगी.

मनीष सांस रोके यह सब देखता, सुनता और कुढ़ता रहा. दूध पी कर वह उठी और बड़बड़ाते हुए बोली, ‘अब नीलेश को फोन कर ही देना चाहिए…’ उसे फोन मिला ही रही थी कि  मनीष उठ कर बैठ गया.’

‘‘तुम जिंदा हो,’’ उसे बैठा देख कर अचानक सुलेखा के मुंह से निकला.

‘‘तो क्या तुम ने मुझे मरा समझ लिया था…?’’ मनीष बोला, ‘‘डार्लिंग, मेरे शरीर में हलचल नहीं थी पर दिल तो धड़क रहा था. लेकिन खुशी के अतिरेक में तुम्हें नब्ज देखने या धड़कन सुनने का भी ध्यान नहीं रहा. तुम ने ऐसा क्यों किया सुलेखा? जब तुम किसी और से प्यार करती थीं तो मेरे साथ विवाह क्यों किया?’’

‘‘तो क्या तुम ने सब सुन लिया?’’ कहते हुए वह धम्म से बैठ गई.

‘‘हां, तुम्हारी सचाई जानने के लिए मुझे यह नाटक करना पड़ा था. अगर तुम उस के साथ रहना चाहती थीं तो मुझ से एक बार कहा होता, मैं तुम दोनों को मिला देता, पर छिपछिप कर उस से मिलना क्या बेवफाई नहीं है.

‘‘10 महीने मेरे साथ एक ही कमरे में मेरी पत्नी बन कर गुजारने के बावजूद आज अगर तुम मेरी नहीं हो सकीं तो क्या गारंटी है कल तुम उस से भी मुंह नहीं मोड़ लोगी…या सुयश तुम्हें वही मानसम्मान दे पाएगा जो वह अपनी प्रथम विवाहित पत्नी को देता…जिंदगी एक समझौता है, सब को सबकुछ नहीं मिल जाता, कभीकभी हमें अपनों के लिए समझौते करने पड़ते हैं, फिर जब तुम ने अपने मातापिता के लिए समझौता करते हुए मुझ से विवाह किया तो उस पर अडिग क्यों नहीं रह पाईं…अगर उन्हें तुम्हारी इस भटकन का पता चलेगा तो क्या उन का सिर शर्म से नीचा नहीं हो जाएगा?’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई,’’ सुलेखा ने उस के कदमों पर गिरते हुए कहा.

‘‘अगर तुम इस संबंध को सच्चे दिल से निभाना चाहती हो तो मैं भी सबकुछ भूल कर आगे बढ़ने को तैयार हूं और अगर नहीं तो तुम स्वतंत्र हो, तलाक के पेपर तैयार करवा लेना, मैं बेहिचक हस्ताक्षर कर दूंगा…पर इस तरह की बेवफाई कभी बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

उसी समय सुलेखा का मोबाइल खनखना उठा…

‘‘सुयश, आइंदा से तुम मुझे न तो फोन करना और न ही मिलने की कोशिश करना…मेरे वैवाहिक जीवन में दरार डालने की कोशिश, अब मैं बरदाश्त नहीं करूंगी,’’ कहते हुए सुलेखा ने फोन काट दिया तथा रोने लगी.

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उस के बाद फिर फोन बजा पर सुलेखा ने नहीं उठाया. रोते हुए बारबार उस के मुंह से एक ही बात निकल रही थी, ‘‘प्लीज मनीष, एक मौका और दे दो…अब मैं कभी कोई गलत कदम नहीं उठाऊंगी.’’

उस की आंखों से निकलते आंसू मनीष के हृदय में हलचल पैदा कर रहे थे पर मनीष की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस की बात पर विश्वास करे या न करे. जो औरत उसे पिछले 10 महीने से बेवकूफ बनाती रही…और तो और जिसे उस की अचानक मौत इतनी खुशी दे गई कि उस ने डाक्टर को बुला कर मृत्यु की पुष्टि कराने के बजाय अपने प्रेमी को मृत्यु की सूचना  ही नहीं दी, अपने भावी जीवन की योजना बनाने से भी नहीं चूकी…उस पर एकाएक भरोसा करे भी तो कैसे करे और जहां तक मौके का प्रश्न है…उसे एक और मौका दे सकता है, आखिर उस ने उस से प्यार किया है, पर क्या वह उस से वफा कर पाएगी या फिर से वह उस पर वही विश्वास कर पाएगा…मन में इतना आक्रोश था कि वह बिना सुलेखा से बातें किए करवट बदल कर सो गया.

दूसरा दिन सामान्य तौर पर प्रारंभ हुआ. सुबह की चाय देने के बाद सुलेखा नाश्ते की तैयारी करने लगी तथा वह पेपर पढ़ने लगा. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा मनीष ने खोला तो सामने किसी अजनबी को खड़ा देख वह चौंका पर उस से भी अधिक वह आगंतुक चौंका.

वह कुछ कह पाता इस से पहले ही मनीष जैसे सबकुछ समझ गया और सुलेखा को आवाज देते हुए अंदर चला गया, पर कान बाहर ही लगे रहे.

सुलेखा बाहर आई. सुयश को खड़ा देख कर चौंक गई. वह कुछ कह पाता इस से पहले ही तीखे स्वर में सुलेखा बोली, ‘‘जब मैं ने कल तुम से मिलने या फोन करने के लिए मना कर दिया था उस के बाद भी तुम्हारी यहां मेरे घर आने की हिम्मत कैसे हुई. मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती…आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

सुयश का उत्तर सुने बिना सुलेखा ने दरवाजा बंद कर दिया और किचन में चली गई. आवाज में कोई कंपन या हिचक नहीं थी.

वह नहाने के लिए बाथरूम गया तो सबकुछ यथास्थान था. तैयार हो कर बाहर आया तो नाश्ता लगाए सुलेखा उस का इंतजार कर रही थी. नाश्ता भी उस का मनपसंद था, आलू के परांठे और मीठा दही.

आफिस जाते समय उस के हाथ में टिफिन पकड़ाते हुए सुलेखा ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘आज आप जल्दी आ सकते हैं. रीजेंट में बाबुल लगी है…अच्छी पिक्चर है.’’

‘‘देखूंगा,’’ न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया.

गाड़ी स्टार्ट करते हुए मनीष सोच रहा था कि वास्तव में सुलेखा ने स्वयं को बदल लिया है या दिखावा करने की कोशिश कर रही है. सचाई जो भी हो पर वह उसे एक मौका अवश्य देगा.

हाथी और मानव द्वंद जारी आहे

छत्तीसगढ़ में लगभग दो दशक  से हाथी एवं मानव का द्वंद अपने चरम पर है. आए दिन जंगली दंतेल हाथी के पैरों तले छत्तीसगढ़ के आदिवासी मारे जा रहे हैं. मगर चारों तरफ सन्नाटा व्याप्त है. विधानसभा हो या मंत्री अथवा जननेता कहे जाने वाले चंद लोग सब सो रहे हैं. किसी को कोई मतलब नहीं कि आम आदमी किस तरह हाथी के पैरों के नीचे कुचला जा रहा है. चारों तरफ सिर्फ औपचारिकता ही निभाई जा रही है .सच यह है कि छत्तीसगढ़ में हाथियों का उत्पात थमने का नाम नहीं ले रहा है.विगत  26 नवंबर को  छत्तीसगढ़ के जिला  महासमुंद में धान की रखवाली कर रहे दो युवको को दंतैल हाथी ने कुचलकर मौत के घाट उतार दिया . उन लोगों की घटनास्थल पर ही करूण मौत हो गई. दुःखद    बात यह है कि 25 नवंबर से छत्तीसगढ़ का विधानसभा का सत्र शुरू हो चुका है।इस महत्वपूर्ण मसले पर एक भी विधायक ने  न तो सुन्य  काल में आवाज बुलंद की न हीविधायक ने किसी ने काम रोको का नोटिस देकर सरकार का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की.छत्तीसगढ़ में मचे हाथी और मानव के द्वंद पर प्रस्तुत एक खास रिपोर्ट-

अट्ठारह लोग मारे, हाथियों ने

सिर्फ छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला में अब तक हाथियों की हमले से 18 लोगों की जान जा चुकी है.अगर संपूर्ण छत्तीसगढ़ की बात करें  तो विगत  6 माह में  यह आंकड़ा  100 को पार कर जाता है. महासमुंद में घटित  घटना के बाद से इलाके में दहशत का माहौल है. जानकारी मिलने पर गजराज वाहन की टीम के साथ वन अमला मौके पर पहुंचकर मामले की जांच करता रहा. लोगों का जमावड़ा लगा रहा और हाथी के द्वारा मारे गए आदिवासी लोगों के शव बिना कफन के पूरी व्यवस्था का मुंह चिढ़ाते रहे. दरअसल साल सच यह है कि भूपेश सरकार ने मुआवजे को चार लाख से बढ़ाकर छह लाख तो कर दिया है परंतु छत्तीसगढ़ सरकार और वन विभाग की संवेदना खत्म हो चुकी है और मृतक के शव पर डालने के लिए उसके पास कफन तक  नहीं होता है.महासमुंद जिले के करीब 52 गांव वर्तमान में 5 सालों से हाथियों के आंतक से हजारों ग्रामीण परेशान है, लेकिन वन विभाग आज तक ग्रामीणों को इस परेशानी से छुटकारा दिला पाने में नाकाम साबित हुआ है. हाथी आये दिन फसलों को बर्बाद कर रहे है, पर लाचार ग्रामीणों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है. हाथी के आंतक से ग्रामीण व किसान जहां रतजगा करने को भी मजबूर है. जहां एक तरफ छत्तीसगढ़ में मानव अधिकारों का इस तरह उल्लंघन हो रहा है वहीं दूसरी तरफ वन्य प्राणी विशेष रूप से हाथी के द्वारा आए दिन लोग मारे जा रहे हैं.

संवेदना नहीं है भूपेश  सरकार में!

पूर्ववर्ती डौक्टर रमन सिंह सरकार के तीन कार्यकाल अर्थात 15 वर्षों में जैसी स्थिति थी लगभग वही स्थिति आज भी बनी हुई है छत्तीसगढ़ के आदिवासी जंगली इलाके में लगभग ढाई सौ हाथियों के दल विचरण कर रहे हैं और आए दिन लोगों की मौत हो रही है कांग्रेश की भूपेश सरकार के आने के पश्चात ऐसा मालूम होता था कि इस गंभीर मसले पर सरकार कुछ ऐसा करेगी कि त्वरित रूप से आदिवासी गरीब जन को हाथी से निजात मिलेगी मगर ऐसा नहीं हो पाया है महासमुंद की बात करें तो हाथियों ने  जिले के 52 गांव के हजारों हेक्टयेर की फसल बर्बाद कर दिया  है.  हाथी गांव में विचरण कर रहे हैं आए दिन घटनाएं  हो  रही है. जिले के वन मंडल अधिकारी मयंक पांडे  बताते हैं कि किसान खेत में धान की फसल की रखवाली करने के लिए गए थे. रात होने की वजह से किसान हाथी को देख नहीं पाए और हाथियों ने कुचल दिया, जिससे दोनों युवक की मौके पर ही मौत हो गई.

इस सब के बावजूद  छत्तीसगढ़ में सरकार कुंभकरणी निंद्रा में है जो एक बड़ी चिंता का विषय है.

ऐसे बनाएं चीज परांठा

सामग्री

लाल मिर्च पाउडर 4 चुटकी

जीरा पाउडर 1 टी स्पून

हरे धनिये की पत्तियां 1 कप

3 कप गेहूं का आटा

2 कप कसा हुआ चीज़

घी 1/2 कप

नमक 1 टी स्पून

 बनाने की वि​धि

एक बोल में 2 1/2 कप आटे और नमक को मिक्स कर लें. जरूरत के मुताबिक पानी डालकर नरम आटा गूंथ लें.

आटे को गीले कपड़े से ढककर 10-15 मिनट के लिए अलग रख दें. एक दूसरे बोल में चीज़, लाल मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, कटा हुआ लहसुन, जीरा और हरे धनिये की पत्तियों को मिक्स कर लें.

आटे के छोटे-छोटे हिस्से करके लोइयां बना लें और बेलन के मदद से थोड़ा सा बेल लें. अब इसमें 2-3 चम्मच चीज़ का भरावन भर लें और साइड्स मोड़कर गोल कर लें. अब सूखा आटा लगाकर चीज़ भरी लोई को चकले पर बेल लें.

तवा मध्यम आंच पर गरम कर लें. परांठे को तवे पर डालकर दोनों तरफ से हल्का भूरा होने तक सेकें. अब परांठे के दोनों साइड घी लगाकर सेंक ले.

घी लगाकर दोनों तरफ से सेकने के बाद परांठा तैयार है. अब इसे अपनी पसंद के मुताबिक सर्व करें.

फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण है वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण से बचना लगभग असंभव है. आप यह समझ सकते हैं मास्क लगाकर या घर में एयर प्यूरीफायर लगाकर आप सुरक्षित हैं. पर हवा में मौजूदा बेहद बारीक प्रदूषण मास्क और प्यूरीफायर के बावजूद आपके शरीर में पहुंचकर स्वास्थ्य संबंधी समस्या खड़ी कर सकते हैं. भले ही अल्प अवधि तक संपर्क में रहने के कारण इसका गंभीर प्रभाव न हो पर दीर्घअवधि तक संपर्क में रहने से स्वास्थ्य संबंधी चिन्ता हो सकती है. क्या आप जानते हैं कि फेफड़े के कैंसर के प्रमुख कारणों में एक वायु प्रदूषण है?

ऐसा नहीं है कि दमा के मरीज या बुजुर्ग लोग ही प्रदूषण के शिकार होते हैं क्योंकि उनकी प्रतिरोध क्षमता कम होती है. स्वस्थ लोग भी वायु प्रदूषण से प्रभावित हो सकते हैं. हवा की गुणवत्ता खराब हो तो व्यायाम के कारण सांस संबंधी समस्या हो सकती है. इसीलिए लोगों से कहा जाता है कि सुबह या शाम के समय हवा अच्छी न हो तो टहलने न जाएं.

क्लिनिक ऐप्प  के सीईओ, सत्काम दिव्य के अनुसार, हवा को प्रदूषित करने वाली कुछ चीजों को करीब से देखें और आपके स्वास्थ्य पर इनके दीर्घ अवधि के प्रभाव को जानें.

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कार्बन मोनोऔक्साइड

कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ2/Co2) की कोई खास महक नहीं होती है और ना ही इसका कोई रंग है. इसका उत्पादन फोस्सिल फुएल (जीवाश्म ईंधन) से होता है खासकर तब जब दहन ठीक से नहीं होता है. इसे जलती लकड़ी के मामले में देखा जा सकता है. सांद्रता के स्तर और प्रभाव की अवधि के आधार पर जहर के असर का हल्का से लेकर गंभीर असर हो सकता है. इसके लक्षण सामान्य फूड प्वायजनिंग जैसे होते हैं. इसमें कमजोरी, चक्कर आना, मितली आना, उल्टी आना आदि शामिल है.

सल्फर डायऔक्साइड

यह बेहद रीऐक्टिव गैस है. इसे हवा को प्रदूषित करने वाली गैसों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. अक्सर यह औद्योगिक प्रक्रिया, प्राकृतिक ज्वालामुखी वाली गतिविधियों या जीवाश्म ईंधन की खपत से निकलता है. एसओटू (So2) ना सिर्फ मनुष्यों के लिए नुकसानदेह है बल्कि यह पौधों और जानवरों के लिए भी बुरा है. प्रदूषित हवा में व्यायाम करने वाले सांस लेने में समस्या महसूस कर सकते हैं और जिनमें पहले से है उनमें यह समस्या बढ़ सकती है क्योंकि मुंह से होते हुए यह फेफड़े में पहुंच सकता है. एसओटू के संपर्क में रहने से त्वचा, आंखों में परेशानी हो सकती है और सांस संबंधी दिक्कत भी हो सकती है.

नाइट्रोजन औक्साइड

नाइट्रोजन ऑक्साइड के संपर्क में रहने से सांस संबंधी संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है. यह मुख्य रूप से कोयला, सिगरेट, पावर प्लांट आदि से निकलता है. उच्च स्तर पर ज्यादा समय तक संपर्क में रहने से पलमोनरी इडेमा की शुरुआत हो सकती है. नाइट्रोजन ऑक्साइड के जहरीलेपन का स्तर 03 से कम है लेकिन यह नुकसानदेह है. नाइट्रोजन ऑक्साइड के जहरीलेपन के कुछ सामान्य लक्षण झींकना, खांसी, सिरदर्द, गले में खिचखिच, ब्रोनकोस्पाज्म और सीने में दर्द आदि है.

लेड

प्लंब या पीबी (pb) प्रदूषण भिन्न उद्योगों में पाया जा सकता है. यह मोटर इंजन खासकर उनसे जो पेट्रोल से चलते हैं, से निकलता है. सिंचाई के कुंए, स्मेलटर्स और बैट्री प्लांट और अपशिष्ट जल लेड उत्सर्जन के कुछ और स्रोत हैं. मिट्टी में फंसने से पहले ये लंबी दूरी तय कर सकते हैं और यह घर के अंदर तथा बाहर दोनों हो सकता है. पीबी (Pb) एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सीकैंट है, खासकर बच्चों के लिए. इससे समस्याएं हो सकती हैं जैसे हाइपर ऐक्टिविटी, सीखने की कमजोरी और मानसिक कमजोरी भी. उच्च रक्तचाप, जोड़ों में दर्द, एकाग्रता में कमी कुछ अन्य समस्याएं हैं जो लेड के संपर्क में रहने वाले लोगों में देखी गईं.

अन्य प्रदूषक

हवा में मौजूद अन्य प्रदूषण को दो समूहों में बांटा जा सकता है और ये कार्सिनोजेन (कैंसरकारी तत्व) तथा मुटाजेन (उत्परिवर्तजन) यौगिक कहे जा सकते हैं. इन्हें मनुष्य में कैंसर के मामलों की प्रगति की घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है. एक चीज जो बिल्कुल साफ है वह है जीवाश्म ईंधन की खपत हवा के संक्रमण तथा प्रदूषण का अकेला सबसे बड़ा कारण है. वायु प्रदूषण औद्योगिक गतिविधियों, ऊर्जा अधिग्रहण, कृषि गतिविधियों और परिवहन आदि से भी हो सकता है.

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दीर्घ अवधि की अन्य जटिलताएं

पीएएच, वीओसी औक्साइड आदि जैसे प्रदूषणकारी तत्व जो हवा में मौजूद होते हैं, शरीर के भिन्न हिस्सों को प्रभावित कर सकते हैं. पर सबसे पहले ये त्वचा के संपर्क में आते हैं. सिद्धांत रूप से वायु प्रदूषण को त्वचा दवारा जज्ब कर लिया जाए तो यह हमारे अंगों तक पहुंच और उन्हें क्षतिग्रस्त कर सकता है. कुछ आंकड़े हैं जो साबित करते हैं कि वायु प्रदूषण के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु और बच्चों में ऑटिज्म तथा संबंधित गड़बड़ियां हो सकती हैं.

प्रदूषण का असर हमारी आंखों पर सबसे पहले होता है. इस लिहाज से शायद यह शरीर का सबसे नाजुक और उपेक्षित अंग है. थोड़ी देर तक प्रभाव क्षेत्र में रहने से आंखें सूखने जैसा अहसास हो सकता है. लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहने से परेशानी बढ़ सकती है जैसे एडवर्स (प्रतिकूल) ओकुलर आउटकम और रेटिनोपैथी. हमारे आस-पास के ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं कि हवा में मौजूद जहरीले पदार्थ कितने नुकसानदेह हो सकते हैं, खासकर बच्चों को. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस संबंध में जागरूकता फैलाई जाए ताकि लोग आवश्यक सावधानी बरत सकें और एक दूसरे की रक्षा करने के उपाय करें और स्वस्त व सुरक्षित रहें.

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