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कातिल किलर : भाग 1

घटना मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की है. 17 अप्रैल, 2019 को दिन के यही कोई 3 बजे थे. उसी समय जीवाजीगंज थाना क्षेत्र के पीपलीनाका इलाके की महावीर सोसायटी में स्थित पंडित रमेश व्यास के मकान से गोलियां चलने की आवाज आईं. एक के बाद एक 2 गोलियों की आवाज सुन कर रमेश व्यास की पत्नी गीताबाई डर गई.

उस समय वह अपने 3 मंजिला मकान में भूतल पर थी. गोलियों की आवाज सुन कर गीताबाई भागीभागी ऊपर की मंजिल पर पहुंची, जहां उस का 37 वर्षीय बेटा देवकरण अपनी 27 वर्षीया पत्नी अंतिमा के साथ रहता था.

गीताबाई ने जैसे ही बेटे और बहू को देखा तो उस की चीख निकल गई. क्योंकि बहूबेटा दोनों खून से लथपथ पड़े थे. गीताबाई के चीखने और रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए. उन्होंने जब देवकरण और उस की पत्नी को देखा तो वे भी हैरान रह गए कि ऐसा कैसे हो गया.

उन दोनों की मौत हो चुकी थी. थोड़ी देर में मोहल्ले के तमाम लोग इकट्ठे हो गए. उसी दौरान किसी ने थाना जीवाजीगंज में फोन कर के सूचना दे दी.

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घटना की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी शांतिलाल मीणा एसआई कैलाश भारती आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान की ऊपर वाली मंजिल के एक कमरे में उन्होंने पलंग पर देवकरण व उस की पत्नी अंतिमा के शव देखे. दोनों ही शव खून से लथपथ थे. पास ही एक पिस्टल पड़ी थी.

निरीक्षण में पता चला कि अंतिमा के सिर में गोली काफी नजदीक से मारी गई थी. लग रहा था कि देवकरण ने पहले अंतिमा की हत्या की फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. थानाप्रभारी को लगा कि शायद पतिपत्नी के बीच किसी विवाद के कारण यह घटना हुई है पर पुलिस जांच के दौरान अलमारी से जो सुसाइड नोट मिला, उस से पूरी कहानी ही बदल गई.

सुसाइड नोट में देवकरण ने रेखा और सुमन नाम की 2 युवतियों का उल्लेख करते हुए लिखा था कि वह उन्हें ब्लैकमेल कर रही थीं. उन की ब्लैकमेलिंग से परेशान हो कर वह आत्महत्या कर रहे हैं.

घटना की जानकारी मिलने पर आईजी राकेश गुप्ता व एसपी (उज्जैन) सचिन अतुलका और एडीशनल एसपी नीरज भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

पुलिस ने देवकरण के मातापिता से इस बारे में पूछताछ की तो वे भी उन दोनों के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं दे सके, जिन का जिक्र सुसाइड नोट में था. इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर केस दर्ज कर के एसपी के निर्देश पर थानाप्रभारी शांतिलाल मीणा ने जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतक देवकरण के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात सामने आई कि देवकरण की अकसर एकमपुरा सोसायटी में रहने वाली रेखा, इंदौर के पलासिया में रहने वाली उस की छोटी बहन सुमन और एक युवक लाखन से बात होती थी. इस में खास बात यह थी कि देवकरण को इन तीनों की तरफ से ही काल की जाती थी.

देवकरण अपनी तरफ  से उन्हें कोई फोन नहीं करता था. देवकरण ने अपने सुसाइड नोट में 2 युवतियों द्वारा ब्लैकमेलिंग की बात भी लिखी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शक के आधार पर रेखा व सुमन को हिरासत में लेकर उन से पूछताछ की. लेकिन दोनों युवतियों ने देवकरण को पहचानने से इनकार कर दिया.

बाद में रेखा ने चौंकाने वाली बात यह बताई कि लगभग ढाई साल पहले देवकरण ने उस से गंधर्व विवाह किया था. इसलिए पत्नी होने के नाते वह देवकरण से खर्च के लिए पैसा मांगती थी. लेकिन ब्लैकमेल करने की बात से उस ने इनकार कर दिया. अब तक पुलिस लाखन को भी हिरासत में ले कर थाने लौट आई थी.

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थानाप्रभारी मीणा को युवतियों की बात झूठी लगी. लिहाजा उन्होंने रेखा, सुमन व लाखन को अलगअलग रूम में बैठा कर पूछताछ की. उन के द्वारा विरोधाभासी बयान देने पर पता चल गया कि वे तीनों झूठ बोल रहे हैं.

अंतत: उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे देवकरण को काफी दिनों से ब्लैकमेल करते आ रहे थे. थानाप्रभारी की पूछताछ में देवकरण को ब्लैकमेल करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

उज्जैन के पीपलीनाका क्षेत्र की महावीर सोसायटी में रहने वाले पंडित रमेश शंकर व्यास छोटा सर्राफा स्थित नरसिंह मंदिर के पुजारी थे. उन्होंने अपने बेटे देवकरण को भी पूजापाठ, ज्योतिष की शिक्षा दी थी. इस के बाद देवकरण भी पिता के साथ मंदिर में रह कर पूजापाठ के काम में उन की मदद करने लगा था..

अगले भाग में पढ़ें- स्त्रीपुरुष का प्यार भी तो अनुष्ठान ही होता है

अब हम समझदार हो गए हैं

 

 

 

चापलूसी की परिभाषा

बिना किसी डिगरी और ट्रेनिंग के चापलूसी की कला में महारत हासिल करने के लिए सिर्फ थोड़ी बेशर्मी भरी हंसी और काम के आदमी के सामने जीभ लपलपा देना काफी है. फिर देखिए, सामने वाला कैसे हथियार डालता है आप के सामने. आखिर नेता, अभिनेता से ले कर आम इंसान और कुत्ते तक, चापलूसी किसे नहीं भाती भाई.
चापलूसी शब्द कुछ ऐसा लगता है जैसे लूसी नाम की कोई ‘शी डौग’ जीभ लपलपाते हुए सामने वाले को चाटने को तैयार हो. स्वाद आए या न आए, उसे चाट कर यह जतलाना है कि वह सामने वाले को दिलोजान से चाहती है. यह शब्द शायद इसी आधार पर बना होगा. पर सवाल उठता है कि इस की परिभाषा क्या है?
हद कर रहे हैं आप. चापलूसी की न कोई सही भाषा होती है न कोई व्याकरण और न ही कोई वर्तनी. इस में तो केवल कमाल जिह्वा का होता है. वह जैसे चाहे शब्दों को घुमाफिरा कर होेंठों को बाध्य कर देती है कि वे खुल जाएं. बेचारे होंठ इतने गुलाबी रंगत होने के बावजूद न जाने कितनी तरह की कालिख हर क्षण उगलने को मजबूर हो जाते हैं. अब जब इस की कोई सटीक भाषा ही नहीं है तो आप क्यों परिभाषा की बात कर रहे हैं? चापलूस कहीं के.
‘नहीं, आज तो आप को मेरे साथ लंच करने चलना ही होगा,’ उन्होंने आग्रह किया या कहें जोर दे कर कहा मानो अगर मैं ने न कहा तो वे जबरन हाथ खींचते हुए, अपने लंगड़ाते पैर के बावजूद, मुझे घसीट कर गाड़ी में बिठाने को तत्पर हैं.
‘औफिस से यों निकलना मुश्किल होता है, पेज छोड़ना है, पत्रिका छपने के लिए तैयार है,’ मैं ने समझाना चाहा.
‘आधे घंटे में कुछ नहीं होगा, कहें तो मैं आप के बौस से बात करूं.’
हद हो गई, मैं ने सोचा. क्या मेरी पोजिशन को आंकना चाहती हैं.
‘चलिए.’ पीछा छुड़ाने का अंदाज था मेरा.
खाने के साथ मीठीमीठी बातें, बिल तो देना ही था. मैं ने जिद की तो बोलीं, ‘मेरे पति बैंक में हैं. उन्हें सारे बिल की पेमैंट हो जाती है. उन्हीं के अकाउंट में डाल दूंगी,’ बेशर्मी से हंसना नहीं भूलीं. समझती हूं ये सब चापलूसी के फंडे हैं. शायद कुछ लेख छप जाएं. बहुत बार कहा है, अच्छा होगा तभी छपेगा. पत्रिका के स्तर का सवाल है पर वे हैं कि जबतब हाथ में कुछ लिए धमक पड़ती हैं.
इस बार तो दीवाली पर पति के हाथों गिफ्ट तक भिजवा दिया. फोन पर तो ऐसे बात करती हैं मानो बोतलभर रोज शहद पी उस का कुल्ला करती हों. फिर एक दिन नौकरी छोड़ दी हम ने. सुनते ही शहद की जगह नीम का काढ़ा उन के मुंह में घुल आया. रास्ते में दिखीं भी तो यों बच कर निकलने लगीं जैसे मैं कोई चील हूं और उन्हें दबोच लूंगी.
क्या कहा, चापलूस अपनी फितरत से बाज नहीं आ सकते. मैं ने कब कहा कि उन्होंने चापलूसी करनी छोड़ दी है, बस नए मुरगे की तलाश में लंगड़ाती हुई फिर निकल गई हैं.
दरअसल, चापलूसी एक बहुत ही महान कला है. हर कोई इस में महारत हासिल नहीं कर सकता. इस में पारंगत होने के लिए बीए, एमए की डिगरी की जरूरत नहीं है. बस, बेशर्मी पर उतर आइए, हर वक्त मुसकराते रहिए और सामने वाले के दुत्कारने के बावजूद ऐसे भोले और मासूम बन जाइए कि उस ने जो आप के प्रति धारणा बनाई है, उस पर उसे ही भरोसा न रहे. वाह, क्या ताकत होती है चापलूस के पास, दूसरे का विश्वास ही डगमगा दिया. यह कमाल है तो बस शब्दों का. ऐसेऐसे जुमले फेंकते हैं कि सुनने वाला उन का कायल हो जाता है. आखिर चापलूस उस की तारीफ में कसीदे जो काढ़ रहे होते हैं.
चापलूस असल में आप के हितैषी होते हैं, कैसे? अरे वे वही कहते हैं, जो आप के मन को अच्छा लगता है. यानी वे आप को जब भी मिलते हैं खुश कर देते हैं तो हुए न वे आप के हितैषी. उन्हें देख कर आप मानें या न मानें एक आंतरिक खुशी जरूर होती है. अपनी तारीफ सुन मनप्राण सब तृप्त हो जाते हैं. ऐसे में सिर्फ उन्हें ही दोष देना गलत है न. आखिर, उन्हें चापलूस बनाने में आप की भी तो कोई कम भूमिका नहीं है.
चापलूस की शक्ल, रंगरूप, चालढाल, यहां तक कि कपड़े भी आम लोगों की तरह होते हैं, इसीलिए उन्हें पहचानना टेढ़ी खीर हो सकता है पर अपनी हरकतों और बौडी लैंग्वेज से वे आसानी से पकड़ में आ जाते हैं. उन की आंखें साफ बोलती हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं और उन के चेहरे के भाव कहते हैं कि वे समझ रहे हैं कि सामने वाले को बेवकूफ बना दिया है. गजब का आत्मविश्वास होता है इन चापलूसों में. फिर हो भी क्यों न, आखिर ये दूसरों को खुश रखने की कला जो जानते हैं.
सम्मान जताने के लिए चापलूसों के हाथ हमेशा जुड़े रहते हैं और कमर झुकने को यों आतुर रहती है मानो रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है. शरम को तो सुबहशाम ये गोलगप्पे के पानी में घोल कर पी जाते हैं. फिर बाद में चटखारा लेना भी नहीं भूलते हैं. पेट पर हाथ फेर कर पूर्ण संतुष्टि का एहसास करते हुए जब ये चलते हैं तो अपने हाथ में पकड़े झोले में दोचार जुमले डालना नहीं भूलते.
कभी कार ले कर आप के पास पहुंच जाते हैं तो कभी मिठाई ले कर. कोई त्योहार हो तो और अच्छा. उपहार देने का इस से अच्छा मौका कहां मिलेगा. आप न कर के तो देखिए, चापलूस आप को ऐसे झूले में हिंडोले देंगे कि आप को चक्कर आने लगेंगे. ‘हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का…’ गाना गाते हुए सचमुच आप के पंख उग आएंगे और आप को लगेगा कि आप से अच्छा इंसान तो इस दुनिया में कोई है ही नहीं. तारीफों के पुल चढ़तेचढ़ते धम से उसी सूरत में गिरेंगे जब चापलूस का आप से काम निकल जाएगा और वह आप के आसपास फटकेगा भी नहीं.
ये चापलूस ऐसे जीव हैं जो आत्मग्लानि का बोध करा देते हैं. झूठी प्रशंसा का पहाड़ खड़ा कर, फिर उस में मोटेमोटे छेद कर देते हैं. अब झेलते रहिए आप मिट्टी को.
इंसान चापलूस क्यों बनता है? इस सवाल का उत्तर जानना जरूरी है. क्योंकि चापलूस बनना आज के दौर में बहुत आवश्यक है, चाहे आप पसंद करें या न करें. जिंदगी में अगर आगे बढ़ना है तो चापलूसी के हर पाठ का अध्ययन बहुत एकाग्रता से करना होगा. नेता हो या अभिनेता, श्रोता हो या वक्ता, कुत्ता हो या इंसान, हर किसी को पुचकारा जाना अच्छा लगता है. चापलूस पुचकारने का काम करता है ताकि उस का काम निकल सके. उस का क्या गया अगर उस ने दो शब्द मीठे बोल दिए. आप ही सोचिए कि क्या आप को कड़वा बोलने या सच बोलने वाले पसंद आते हैं. आप ही तो चापलूसों की जमात में जा कर खड़े होते हैं. नेता हमेशा अपने साथ एक लंबी कतार ले कर चलता है जो ‘जय हो’ के नारे लगाते हैं.
सत्ता बदलते ही चापलूसों का दल बदल जाता है. यानी जिस की लाठी उस की भैंस. चापलूस उसी के पीछे जा कर खड़ा होगा जिस की हैसियत होगी. पति अगर पत्नी की चापलूसी करता है तो बुरा क्या है. घर की सुखशांति के लिए महंगा सौदा नहीं है.
अब चापलूस को दोष देना छोड़ दें क्योंकि वह भी एक इंसान है जो अपने को बचाए रखने के प्रयत्न में रोज शहद का कुल्ला करता है. अगर कोई चापलूस लड़की है तो समझो वारेन्यारे हो गए. मीठी मुसकान और सजीले होंठ, दोनों ही का मजा उठा सकते हैं.
क्या कहा, परिभाषा नहीं बताई. आप कितने अच्छे हैं, जरा खुद ही समझ लीजिए न.

माफ कीजिये जबान फिसल गई

हमारे मुल्क के नेता सियासत के नाम पर जनसेवा के बजाय महिलाओं पर अश्लील और बेतुकी फब्तियां कसने से बाज नहीं आते. कभी किसी के गालों पर तो कभी महिला के कपड़ों या लिपस्टिक पर टिप्पणी कर ये महिलाओं के प्रति अपनी संवेदनहीनता दर्शाते रहते हैं. बाद में माफीनामे की नौटंकी करते इन नेताओं की जबान आखिर बारबार क्यों फिसलती है?
रानी पत्नी में मजा नहीं’’ :
 श्रीप्रकाश जायसवाल.
 ‘‘बचपन में ही शादी करा दें’’ : ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा.
‘‘हेमा के गाल जैसी सड़क बनवाएंगे’’: लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार.
‘‘डेंटेडपेंटेड औरतें करती हैं प्रोटैस्ट’’: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सांसद पुत्र अभिजीत मुखर्जी.
‘‘परकटी महिलाएं’’ : महिला आरक्षण पर जद (यू) के अध्यक्ष शरद यादव.
‘‘यह फिल्मी टौपिक नहीं है’’ : गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का जया बच्चन पर कटाक्ष.
‘‘राखी और केजरीवाल दोनों ऐक्सपोज करते हैं’’ : कांगे्रस महासचिव दिग्विजय सिंह.
‘‘लिपस्टिक लगा कर निकलती है औरत’’ : मुख्तार अब्बास नकवी,भाजपा नेता.
‘‘टीवी पर ठुमके लगाने वाली चार दिन के अंदर राजनीतिक ऐक्सपर्ट बनने की कोशिश कर रही है’’ : कांगे्रसी नेता संजय निरुपम ने बीजेपी नेता स्मृति ईरानी पर यह टिप्पणी की.
 महिलाओं के बारे में ये बयान उन नेताओं के हैं जो देश को चला रहे हैं और कानून बनाने की प्रक्रिया में वे खुद एक हिस्सा हैं. कुछ नेताओं को उन के इन कथनों के परिणामस्वरूप हंगामा मचने पर माफी मांगनी पड़ी और कुछ ढीठता से अपने कथनों का दूसरा मतलब निकालते हुए उस पर अडिग रहे. जब हमारे नेता ही ऐसी विचारधारा रखते हैं तब वे महिलाओं को मुख्यधारा से कैसे जोड़ेंगे. यही कारण है कि आज महिलाएं देश के विकास में पूर्णरूप से नजर नहीं आती हैं.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो.’’ परंतु हमारे नेता बुरा बोलो, सुनो और देखो को ही मंत्र मान कर देश को चला रहे हैं. वे किसी पर कभी भी कोई भी फब्ती कसने से बाज नहीं आते. देश में स्त्री को जननी का दरजा दिया गया है लेकिन सियासत में स्त्री का रुतबा बहुत ही गौण है. पढ़ने या जौब करने को घर से बाहर जाने वाली महिलाओं के चरित्र को ले कर ऐसे लोग अकसर प्रश्न उठाते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि उन्हें यह हक नहीं है.
नेता जब वोट मांगने जाते हैं तब वे सिर्फ पुरुषों से वोट नहीं मांगते. उन की जीत में सभी का योगदान होता है. एक नेता का दूसरे नेता से वैचारिक मतभेद हो सकता है लेकिन दूसरे नेताओं पर इस तरह की फब्तियां, वह भी महिला नेताओं पर कसना बहुत ही शर्म की बात है. इस तरह की बेहूदा बातें बोल कर भी क्या उन्हें अपनी कुरसी पर बने रहने का अधिकार है? उन पर कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? उन्हें दिमागी तौर से बीमार क्यों नहीं कहा जाता? वे देश की गंभीर समस्याओं से कैसे निबटेंगे जब उन का अपनी जबान पर ही कंट्रोल नहीं है. आज ज्यादातर नेताओं पर आपराधिक मामलों में शामिल होने के संदेह के केस चल रहे हैं. इस के बावजूद वे बड़े गौरव से देश के सम्मानित तिरंगे को फहराते नजर आते हैं.
आजादी के समय के हमारे नेता वास्तविक हीरो थे. वे सभी जमीन से जुड़े थे. उन की काबिलीयत उन के व्यक्तित्व में नजर आती थी. वे कभी भी ऐसी फब्तियों के कारण विवादों में नहीं रहे. आज 80 वर्ष के नेता भी अश्लीलता के आरोपों में फंसे हैं. क्यों? एक ब्यूरोक्रेट अगर ऐसा करे तो उसे नौकरी से हटाए जाने तक की भी सजा है तो फिर इन पर ऐसा ऐक्शन क्यों नहीं? श्रीप्रकाश जायसवाल, केंद्रीय मंत्री हो कर, बड़ी ही बेशर्मी से कहते हैं कि पुरानी पत्नी में मजा नहीं. तो साहब, अब पुराने पति के बारे में भी अपनी राय बता दीजिए. किसी को औरत की लिपस्टिक से एतराज है लेकिन अपने बाल रंगने से नहीं. उपमाओं की संख्या कम पड़ गई तो हेमा के गाल जैसी सड़क बनाने को कह डाला. श्रीमानजी, हेमा एक महिला है, क्या यह आप को याद दिलाने की जरूरत है? इन सांसदों को जैंडर के बारे में जागरूक करने की जरूरत है.
शिक्षा के लिए राजनेताओं पर कोई दबाव नहीं है. वे खुद चाहे 8वीं, 9वीं या 10वीं पास हों पर वे एक आईएएस अधिकारी को निलंबित कर सकते हैं. यह शिक्षा और शिक्षित व्यक्ति दोनों के साथ मजाक नहीं तो और क्या है. एक नौकरीपेशा व्यक्ति से जब अपेक्षा की जाती है कि वह नईनई टे्रनिंग ले कर अपने को इस काबिल बनाए कि वह अपनी नौकरी का उत्तरदायित्व भलीभांति पूरा कर सके तो राजनेताओं पर शिकंजा क्यों नहीं. हरियाणा के पूर्व राज्यमंत्री गोपाल कांडा, जो आजकल जेल में हैं, पर गीतिका (23 साल की एयर होस्टैस) को खुदकुशी करने को उकसाने के लिए और उस का यौन उत्पीड़न के आरोप तो सामने हैं जो परदे के पीछे हैं वे सब माफ हैं.
चुनाव से पहले की हलचल शुरू हो गई है. सब दौड़ में प्रथम आने की होड़ में लगे हैं. ऐसे में यह सोचने की जरूरत है कि क्या समाज में रहने और उसे चलाने के लिए हमारे नेताओं को किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है. उन्हें जैंडर संवेदनशीलता पर जागरूक करने की जरूरत है, उन के विवेक को जगाने की जरूरत है ताकि वे सही और गलत का मतलब समझ सकें. उन्हें अपने नैतिक कर्तव्यों का बोध होना चाहिए और नैतिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता उन की खुद की अंतरात्मा उन्हें दे सकती है.
?नेता समाज को, देश को चलाते हैं. उन में स्त्रीजाति के प्रति संवेदना हो तभी वे संसद में बैठ कर कानून बनाने के अधिकारी हैं. आज समय बदल गया है. देश का युवावर्ग इन नेताओं से कुछ अपेक्षा रखता है. अगर वे उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास नहीं करेंगे तो उन्हें ठुकरा दिया जाएगा. इस का सुबूत हम हाल में हुए कुछ आंदोलनों में देख भी चुके हैं.
एक स्वस्थ भारत में पुरुष और महिला दोनों बढ़चढ़ कर भाग लेंगे तभी सही माने में बदलाव आएगा. वरना हम आजादी के इतने वर्षों बाद भी कूपमंडूक बने रहेंगे. इसलिए सांसदों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा और अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठ कर बात करनी होगी. इस के लिए 1 या 2 टे्रनिंग नहीं बल्कि जनता यानी देशवासी लगातार इस तरह के कदम उठाएं कि नेता लोग व्यवहार बदलने को मजबूर हो जाएं.

विशेष लोकपाल विधेयक और परममित्र की समझदारी

हम तो अपने परममित्र राजपत्रित अधिकारी को शुभचिंतक होने के नाते लोकपाल विधेयक की धौंस जमा कर भ्रष्टाचार से दूर रहने की बिन मांगी सलाह दे रहे थे. लेकिन उस की लेनदेन की तरकीबें सुन कर तो गश ही खा गए. अब हमें समझ आ रहा है कि लोकपाल बिल से कुछ नहीं बदलेगा. आखिर क्या हैं वे तरकीबें, बता रहे हैं आलोक सक्सेना.
मैं ने अपने एक राजपत्रित अधिकारी परममित्र से कहा, ‘‘प्रिय, सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ नकेल डालने के लिए लोकपाल विधेयक को मंजूरी मिल चुकी है. अब अपने सरकारी कार्यालय में तुम ने अपनी राजपत्रित अधिकारी की रबड़ स्टैंप व हस्ताक्षर की आड़ में किनकिन कंपनियों को किनकिन सरकारी शर्तों तथा कुछेक अपनी गुप्त शर्तों पर राजी कर के उन के कामकाज का ठेका मंजूर किया, उन सब का खुलासा हो सकता है.
‘‘तुम्हारे द्वारा पिछले 10 सालों में किए गए घपलों को भी लोकपाल की टेबल पर पहुंचाया जा सकता है. इसलिए इस बार की होलीदीवाली का बिलकुल भी इंतजार मत करना और बिना लेनदेन किए हुए ही समय पर अपने यहां की सभी सरकारी निविदाओं की फाइलों पर सोचसमझ कर हस्ताक्षर कर अनुमोदित करते रहने में ही तुम्हारी भलाई है.
‘‘अब तक तुम ने होलीदीवाली के उपहारों के बहाने से भी तमाम सारी कंपनियों के मालिकों व सप्लायरों से बहुत माल खींच कर अपनी तिजोरी में भर लिया है. अब ऐसा बिलकुल भी मत करना और वैसे भी यदि देखा जाए तो अब तक तुम्हारे लगभग सभी पारिवारिक कामकाज तो पूरे हो ही चुके हैं. देश क्या विदेशों तक में तुम्हारे पास जमीनजायदाद बन चुकी है. दोनों बच्चों की, फार्महाउसों में करोड़ों रुपया खर्च कर, शादियां करने वाले उत्कृष्ट शादी आयोजनकर्ता बनने वाले अभिभावक का खिताब भी तुम्हें मिल ही चुका है और किसी ने भी जरा सी चूं तक नहीं की कि यह सब अत्याधुनिक इंतजाम तो अपने देश के वातानुकूलन संयंत्र बनाने वाले बड़े व्यवसायी मिस्टर अनुराग का था जिन को तुम ने अपने सरकारी कार्यालय में लगने वाले नए वातानुकूलित संयंत्र का ठेका पिछले 10 सालों से 6 बार दिया था.
‘‘तुम्हारी भांजी व भतीजी, जो तुम्हारे पास ही रहती थीं, अब तो वे दोनों भी फिलहाल औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी मेंपढ़ रही हैं और रही बात उन की फीस की, जो अब तक तुम्हारे कार्यालय का कंप्यूटर सौफ्टवेयर सप्लायर देता आ रहा था, अब तुम उस से साफसाफ मना कर देना और खजूरेवाला स्थित दोनों फ्लैटों को बेच कर उन की फीस को स्वयं ही अदा करना.
‘‘इस प्रकार एक तीर से दो शिकार हो जाएंगे यानी इंडिया में तुम्हारे नाम से जो 4 फ्लैट हैं उन में से 2 कम हो जाएंगे और तुम्हारी भांजी व भतीजी का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा व तुम्हारी शान को भी लोकपाल की नजर नहीं लगेगी.’’
मेरी बातें सुन कर मेरा मित्र बिलकुल भी चिंतित होता हुआ नहीं दिखा तो मैं ने सोचा कि इस ने अपने सरकारी कार्यालय में रह कर पहले ही बहुत मालपानी खींच रखा है, इसलिए इस के लिए चिंता की क्या बात है? तभी तो लोकपाल विधेयक आने पर भी वह मस्त है. तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी और मैं ने उसे किसी से कहते हुए सुना, ‘‘यार, मैं ने आप से पहले भी कहा था न कि आप का काम हो जाएगा. मैं ने आप के संबंध में आला अधिकारी से बात कर ली है और वैसे भी आप तो हमारे पुराने परिचित हैं. आज तक आप का कोई काम नहीं रुका तो यह भी हो ही जाएगा. आप एकदम निश्चिंत रहें. आप को लखनऊ से दिल्ली आने की कोई जरूरत नहीं है. मैं हूं न. आप मस्त रहिए.’’
अपने मित्र की एकतरफा बातचीत सुन कर मैं ने उस से पूछ लिया, ‘‘यार, किस का काम करवा रहे हो?’’
वह बोला, ‘‘अब दिल्ली में रहता हूं, ऊपर से सरकारी राजपत्रित अधिकारी भी हूं तो बाहर के सब लोगबाग समझते हैं कि हम तो उन का काम अवश्य करवा ही देंगे. वैसे भी वे यहां आनेजाने पर अपना समय नष्ट करेंगे तो भी क्या गारंटी कि उन का 2-4 दिनों तक में भी काम पूरा हो ही जाए? बाहर के लोगों को तो यह भी ठीक से पता नहीं होता कि सरकारी कार्यालयों में किस से बात की जाए और किस से नहीं? और वे किसी तरह से संबंधित अधिकारी तक पहुंच भी जाते हैं तो उन से अपने काम के संबंध में खुल कर बात ही नहीं कर पाते. इसलिए हम जैसों को तंग करते ही रहते हैं और कई बार न चाहते हुए भी हमें उन की ‘हां’ में ‘हां’ मिलानी पड़ जाती है.’’
‘‘तो क्या तुम लोकपाल विधेयक की चिंता किए बिना उस का काम करवा दोगे?’’ मैं ने उस से तुरंत कहा.
वह बोला, ‘‘तुम्हें पता है कि वह उधर से मोबाइल पर मुझ से क्याक्या कह रहा था?’’
मैं ने कहा, ‘‘नहीं.’’
‘‘मित्र, वह मुझ से मेरे राजपत्रित अधिकारी होने की परवा किए बिना एकदम निसंकोच हो कर कह रहा था कि मेरा काम करवा दीजिए, बस. जो भी खर्चा होगा मैं आप को दूंगा. किसी भी सरकारी कार्यालय में कोई भी काम बिना लिएदिए तो होता ही नहीं है और मुझे
यह भी पता है कि मैं जिस काम के लिए आप से कह रहा हूं उस काम के लिए संबंधित बाबुओं और आला अधिकारियों की खातिरदारी का विशेष खयाल तो रखना ही पड़ता है. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब इस से ज्यादा आप से खुल कर क्या कहूं, आप तो खुद समझदार हैं. सामदामदंडभेद की नीति का इस्तेमाल कर के मेरा काम करवा दीजिए, बस. खर्चे की चिंता मत करिएगा. मैं सब दे दूंगा,’’ मित्र ने खुलासा करते हुए मुझे सबकुछ बताया.
मैं ने कहा, ‘‘तो इस का मतलब है कि तुम्हें लोकपाल विधेयक से बिलकुल भी डर नहीं लगता है, इसीलिए तुम ने उस के काम करवा देने की उस से ‘हां’ भर दी है और उसे दिल्ली आ कर स्वयं संबंधित अधिकारी से बातचीत करने से भी रोक दिया है. तुम्हारी सारी बातों को सुन कर तो मुझे लगता है कि तुम्हीं ने उस के काम करवा देने का पहले ही ठेका लिया है. इस में तुम्हारी भी जरूर चांदी होगी. देखो, तुम मेरे मित्र नहीं, परममित्र हो, इसलिए तुम्हें समझाना मेरा फर्ज है कि अब किसी की भी बातों में मत आओ. लालच करना छोड़ दो. सुधर जाओ और रुपया हो या उपहार, किसी भी प्रकार की चीजों का लेनदेन कर के किसी का भी काम करवा देने का ठेका अपने जिम्मे कभी न लो.’’
इस बार मेरा परममित्र मेरी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगा और बोला, ‘‘यार, तुम कैसे मित्र हो? तुम ने तो मुझे समझदार राजपत्रित अधिकारी नहीं, मूर्ख समझ रखा है कि मैं किसी भी ऐरेगैरे नत्थूखैरे के काम के लिए मंत्रालय में जा कर बात करूंगा. मैं भला उस के लिए क्यों करूं बातचीत? वह मेरा परिचित ही तो है, कौन सा मेरा मित्र या सगासंबंधी है.
‘‘वह तो ठहरा एक निजी व्यवसायी, उसे लोकपाल विधेयक से क्या डरना, इसलिए वह मोबाइल पर मुझ से कुछ भी बोले जा रहा था. यार, सच बताऊं तो सरकारी चारदीवारी से बाहर रहने वाले लोगों को तो लगता है कि सरकारी कार्यालयों में बिना लेनदेन के कोई काम हो ही नहीं सकता. सारे सरकारी कार्यालयों के बाबू व अधिकारी भ्रष्ट होते हैं. वे तो बातबात पर अपना काम करवाने के लिए ढेर सारे रुपए ले कर, किसी को भी देने के लिए, सरकारी कार्यालयों के बाहर तैयार खड़े रहते हैं. बस, इसी बात का फायदा उठाते हैं वे सरकारी कर्मचारी व अधिकारी जो अधिक समझदारी से काम लेते हैं. मैं भी अपनेआप को अधिक समझदार सरकारी राजपत्रित अधिकारी मानता हूं, इसलिए मैं लोकपाल विधेयक के लागू हो जाने पर भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मुझे कैसे अपना भला करना है और दूसरे का भी.’’
अभी मेरे और मेरे मित्र के बीच बातचीत हो ही रही थी कि फिर से उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. जवाब में मैं ने अपने मित्र को कहते हुए सुना, ‘‘भाई, मैं आप को अपना बैंक अकाउंट नंबर नहीं दे सकता. अब उस की भी छानबीन हो सकती है. आप को पता नहीं, लोकपाल विधेयक को मंजूरी दे दी गई है. शीघ्र ही इस विधेयक को कानून का दरजा मिलने जा रहा है. मैं आप के काम को करवा देने के लिए मना तो नहीं कर रहा हूं, तो फिर इतनी जल्दी भी क्या है, आप जो भी देना चाहते हैं, दे दीजिएगा. अब नहीं मानते तो मैं कल आप के शहर लखनऊ आ रहा हूं, वहीं पर कैश दे दीजिएगा.’’
जैसे ही उस ने मोबाइल का स्विच औफ कर के अपनी जेब में वापस रखा तो मैं उस पर बरस पड़ा और बोला, ‘‘तुम एकदम मूर्ख हो, मूर्ख. मुझे लगता है कि तुम्हारी बुद्धिमानी से ज्यादा समझदार तो आजकल का गधा होता है. कल स्पैशियली तुम लखनऊ जा कर उस से कैश ले कर आओगे. यदि तुम ने ऐसा किया तो मेरी बात याद रखना, तुम्हारा लालच तुम्हें एक दिन अवश्य जेल की हवा खिलाएगा. फिर मत कहना कि मैं ने समय रहते अपनी मित्रता का फर्ज अदा नहीं किया. तुम्हें समझाया नहीं.’’
मेरा परममित्र फिर हंसा और बोला,
‘‘मैं कल अपने कार्यालय से आकस्मिक अवकाश ले कर लखनऊ जाऊंगा और वहां जा कर उस से जो भी रुपए ले कर आऊंगा. उन्हें अपने घर की निजी अलमारी में सुरक्षित रखूंगा और उस के काम की सिफारिश तो मैं सपने में भी किसी से नहीं करूंगा. तब तक चुपचाप ही रहूंगा जब तक अपनेआप ही उस के काम की मंत्रालय से संबंधित कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती.
‘‘उस के द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव पर सरकारी कार्यवाही हो जाने के बाद यदि खुदबखुद उस का काम हो जाएगा तो उस का धन्यवाद देने हेतु तुरंत मेरे पास उस का मोबाइल आ जाएगा. और यदि नहीं हुआ तो भी. नहीं हुआ तो वह मुझ से अपनी नाराजगी व्यक्त करेगा. तो मैं उस से कह दूंगा, भाई, मंत्रालय के आला अधिकारियों ने कल अचानक ही आप का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. इसलिए आप का काम नहीं हुआ.
‘‘मैं ने तो संबंधित बाबू एवं अधिकारी को खुश कर के अनुमोदन हेतु आप के प्रस्ताव को पुटअप करवा दिया था. आखिरी समय तक आप का काम हो जाना फाइनल था परंतु मंत्रालय पर अपना जोर नहीं चलता, इसलिए अब क्या कहा जाए? अगली बार फिर से अप्लाई करिएगा. तब फिर देख लेंगे. अगली बार तो आप का काम बन ही जाएगा.
‘‘फिलहाल आप जब कभी भी दिल्ली आएं तो अपने रुपए वापस ले लीजिएगा और उस के दिल्ली आने पर उन रुपयों में से उस के प्रस्ताव को अनुमोदन हेतु पुटअप करने वाले सरकारी बाबू व अधिकारी के नाम पर कम से कम आधे रुपए काट कर अपने पास सुरक्षित रख लूंगा तथा शेष वापस कर दूंगा, और यदि अपनेआप ही बिना किसी से कुछ भी सिफारिश लगाए हुए यानी स्वयं ही उस का काम हो गया तो सारे के सारे रुपए उस के द्वारा दिए जा रहे सधन्यवाद के साथ हंस कर अपने पास ही रख लूंगा और मजे उड़ाऊंगा.
‘‘अब तुम्हीं बताओ कि कहां से लोकपाल विधेयक का नया कानून मेरे और जिस के काम को करवा देने की मैं जिम्मेदारी सिर्फ मोबाइल पर ले रहा हूं, उस के बीच में आ सकता है? और यह भी बताओ कि क्या अब भी मैं वास्तव में गधा हूं और क्या मुझे भ्रष्टाचारी होने के आरोप में जेल भी हो सकती है?’’
निसंदेह हो कर मेरे मुंह से निकला, ‘‘नहीं, मित्र, कभी नहीं. तुम तो अपने सरकारी कार्यालय के सब से समझदार सरकारी राजपत्रित अधिकारी हो. तुम कभी भ्रष्ट नहीं हो सकते.’’
इतना कह कर मैं जैसे ही आगे बढ़ा तो मुझे एक तरफ एक गधा ढेंचूढेंचू करता हुआ दिखाई दिया और दूसरी तरफ मुझे अच्छी तरह से समझ आ गया था कि अपने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सिर्फ लोकपाल बिल काफी नहीं है.

ब्रेकअप की खबरों की बीच एक साथ दिखे शिवांगी जोशी-मोहसिन खान, PHOTOS हुईं वायरल

छोटे परदे के पॉपुलर कपल कार्तिक-नायरा (Kartik-Naira) यानी मोहसिन खान और शिवांगी जोशी (Mohsin Khan-Shivangi Joshi) की ब्रेकअप की खबरों ने उनके फैंस को निराश कर दिया था और लोग दोनों को फिर से साथ देखना चाहते थे. हालांकि, शिवांगी और मोहसीन ने कभी अपने रिश्तों के बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन हाल ही में दोनों की जो फोटोज वायरल हुई हैं. उन्हें देखकर इनके फैंस जरूर खुश हो गए हैं. तो आइए जानते हैं क्या है इन नई फोटोज में…

शादी में एक साथ शामिल हुए मोहसिन और शिवांगी…

हाल ही में दोनों एक कॉमन दोस्त की शादी में शामिल हुए थे. जहां दोनों ने खूब एंजाय किया और ढेर सारी फोटोज भी क्लिक की. नई तस्वीरों को देखकर कोई भी अंदाजा नहीं लगा पाएगा कि इनका ब्रेकअप हुआ है.

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एक साथ खुश दिखे मोहसिन-शिवांगी जोशी

शिवांगी जोशी इस सेरेमनी में मोहसिन खान (Mohsin Khan) के साथ काफी खुश नजर आई. मोहसिन ने भी इस शादी में शिवांगी के साथ जमकर मस्ती की और इस दौरान उन्होंने अपने जान-पहचान वालों के साथ कई तस्वीरें क्लिक करवाई.

फैंस को पैचअप की उम्मीद

शिवांगी और मोहसिन की नई तस्वीरों को देखकर फैंस इनके पैचअप की उम्मीद करने लगे हैं. वैसे जब भी दोनों की ऐसी कोई तस्वीर सामने आती है, तो उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल होने में जरा भी देर नहीं लगती है.

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बता दें कि टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और मोहसिन खान (Mohsin Khan) नायरा और कार्तिक के रोल में नजर आते हैं. फैंस के बीच इनकी जोड़ी कायरा (KAIRA) के नाम से मशहूर है.

शो में इन दिनो लव-कुश और त्रिशा का ट्रैक चल रहा है जहां नायरा और कार्तिक, त्रिशा को इंसाफ दिलाने के लिए अपन ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए हैं.

ननद की शादी में छाई टीवी एक्ट्रेस Drashti Dhami, पति के साथ यूं की मस्ती

‘मधुबाला’ और ‘सिलसिला-बदलते रिश्तों का’ जैसे टीवी शोज में काम कर चुकी टीवी एक्ट्रेस दृष्टि धामी इन दिनों टीवी से दूर हैं. लेकिन पर्सनल लाइफ में वो काफी एंजाय कर रही हैं. कुछ दिनों पहले ही दृष्टि पति के साथ वेकेशन मना रही थीं और अब ननद की शादी में उन्होंने खूब धूम मचाई. जिसकी फोटोज तेजी से वायरल हो रही हैं.

ननद की शादी में छाई दृष्टि

दृष्टि धामी (Drashti Dhami) की ननद शिवानी खेमका की शादी हाल ही में हुई है, जिसमें दृष्टि ने पति नीरज खेमका के साथ खूब मस्ती की और हल्दी से लेकर संगीत सेरेमनी तक खूब धूम मचाई. इस दौरान की कई तस्वीरों को एक्ट्रेस ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर भी किया है जिन्हें काफी पसंद किया जा रहा है.

 

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पति और ननद के साथ दिए कई पोज

दृष्टि ने पति नीरज खेमका और ननद संग तस्वीरें क्लिक करवाते हुए कई पोज दिए. दृष्टि धामी की ननद ने भी शादी की रस्मों को निभाने से पहले कई मजेदार पोज दिए.

 

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#QueenDrashtiDhami ? @dhamidrashti ? ⠀ { 29-2-2020 } Cr: @janakip IG Story ? ⠀ Dii with @khemkaniraj @shivani_khemka and @janakip ??? ⠀ ⠀ Our yummy cutie pie ????? ⠀ ⠀ #shivkarajshuru ?????? ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┎┈┈┈┈┈┈┈┈ ୨♡୧┈┈┈┈┈┈┈┈┈┒ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ #DrashtiDhami #DillMillGayye #GeetHuiSabseParayi #MadhubalaEkIshqEkJunoon #MEIEJ #Madhubala #EkThaRajaEkThiRani #PardesMeinHaiMeraDil #Nandini #NiShti #SilsilaBadalteRishtonKa #ManEet #RishBala #RajBala #Vishti #SupportDrashtiDhami #Kunan #Drashak #dhamidrashti #DrashtiDhamiQueen #DVDians #QueenOfITV #QueenOfITVIndustry #QueenOfIndianTelevision #DrashtiDhamiQueenOfITV

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ननद की शादी में दृष्टि के नकली आंसू!

इस तस्वीर में दृष्टि धामी नकली आंसू बहाते हुए पोज देती हुई नजर आ रही है, लेकिन ननद की विदाई के समय ना सिर्फ दृष्टि बल्कि वहां मौजूद हर किसी की आंखें भर आई.

 

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#QueenDrashtiDhami ? @dhamidrashti ? ⠀ { 29-2-2020 } ? . . ||[ Repost @hpjewelz : Wedding Shenanigans!!!! @dhamidrashti @khemkaniraj @shivani_khemka @raj_baraib ]|| ⠀ ⠀ ??? ⠀ ⠀ #shivkarajshuru ?????? ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┎┈┈┈┈┈┈┈┈ ୨♡୧┈┈┈┈┈┈┈┈┈┒ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ ┈┈ #DrashtiDhami #DillMillGayye #GeetHuiSabseParayi #MadhubalaEkIshqEkJunoon #MEIEJ #Madhubala #EkThaRajaEkThiRani #PardesMeinHaiMeraDil #Nandini #NiShti #SilsilaBadalteRishtonKa #ManEet #RishBala #RajBala #Vishti #SupportDrashtiDhami #Kunan #Drashak #dhamidrashti #DrashtiDhamiQueen #DVDians #QueenOfITV #QueenOfITVIndustry #QueenOfIndianTelevision #DrashtiDhamiQueenOfITV

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व्हाइट सिमरी लहंगे में दिखी खूबसूरत

इस दौरान दृष्टि ने व्हाइट कलर का सिमरी लहंगा पहना हुआ था. साइड पोनी और नेचुरल मेकअप में दृष्टि कमाल की लग रही थी. उनका मांगटीका इस लुक को कंप्लीट कर रहा था. पति नीरज खेमका ने भी इस मौके पर दृष्टि के साथ मैचिंग ड्रेस पहनी थी.

 

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बता दें कि दृष्टि काफी लम्बे समय से अपनी ननद की शादी की तैयारियों में जुटी हुई थी और संगीत सेरेमनी में धमाल मचाने के लिए उन्होंने खूब प्रैक्टिस भी की थी.

दिल्ली हिंसा में दिखीं इंसानियत: दंगों में अल्पसंख्यकों को बचाकर दिया गंगा-जमुनी तहज़ीब का संदेश

दिल्ली में हुई हिंसा ने हम सबको हिला कर रख दिया. लोगों के सामने दिल्ली की खुशनुमां तस्वीरें अब बदरंग हो चुकी थी. जगह जगह हिंसा की तस्वीरे, रोने बिलखने की तस्वीरें, खाक हुए मकां और हिंसा के सुबूत. इसके अलावा और कुछ भी नहीं था. कल तो जो दिल्ली दिल वालों की कहलाती थी चंद घंटों में उसकी तस्वीर ही बदल गई. अब वो दिल्ली दिल वालों की नहीं बल्कि दंगाइयों को हो चुकी थी.

कौन थे वो लोग. कहां से आए वो लोग. कैसे होंगे वो लोग…इन सब सवालों का जवाब आज भी गायब है लेकिन एक बात तो सच है कि दिल्ली अब बदल गई है. इन सबके बावजूद कुछ ऐसी तस्वीरें भी हैं जो दिल को तसल्ली दे रही हैं.

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उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में इस सप्ताह की शुरुआत में हुई हिंसा में उपद्रवियों ने खूब तबाही मचाई. हिंसा में 40 से अधिक मौत हो चुकी है, तो वहीं करोड़ों रुपये की संपत्ति का भी नुकसान हुआ है. इस दौरान कई जगहों पर एक समुदाय दूसरे समुदाय के खून का प्यासा दिखा, मगर साथ ही कुछ जगहों पर एक समुदाय ने अन्य समुदाय के लोगों की हिफाजत करते हुए गंगा-जमुनी तहजीब का नायाब उदाहरण भी पेश किया.

दिल्ली हिंसा के दौरान जहां कुछ स्थानों पर किसी समुदाय विशेष के लोगों को संभावित खतरे को देखते हुए सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी सामने आए, जो सीना तानकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए डटे रहे. पूर्वोत्तर दिल्ली के बृजपुरी इलाके में बहुसंख्यकों ने अल्पसंख्यकों को हिंसक भीड़ से बचाकर मिसाल दी कि इंसानियत अभी भी जिंदा है.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में को 7 दिन हो गए हैं, लोगों के घर जला दिए गए, दुकानें जला दी गई, 40 से ज्यादा लोगों की मौत भी हो गई लेकिन कुछ ऐसे परिवार भी हैं जिन्होंने अपने इलाकों में अपने पड़ोसियों की सुरक्षा की उनको भरोसा दिलाया कि आपके साथ कुछ नहीं होगा और ऐसा करके एक मिसाल दी कि इंसानियत अभी जिंदा है.

बने मुस्लिम परिवारों की ढाल…

बृजपुरी इलाके का दौरा कर हिंसा के दौरान पनपे हालातों का जायजा लिया. यहां के स्थानीय निवासी गौरव कुमार ने बताया, “बृजपुरी ए-ब्लॉक में मुस्लिम परिवार गिनती के ही हैं, जिससे हिंसा भड़कने के बाद वह सहमे हुए थे. जिस वक्त उग्र भीड़ हमारी गलियों की तरफ आ रही थी, तो यहां के बहुसंख्यक हिंदू परिवार अल्पसंख्यक मुस्लिम परिवारों की ढाल बनकर खड़े हो गए. हम सभी ने यह ठान लिया था कि अपने इलाके में माहौल को बिगड़ने नहीं देंगे.”

गौरव ने बताया, “यहां हिंदुओं ने एकजुट होकर गलियों के मुख्य द्वार बंद कर दिए और मुस्लिम परिवारों से कहा कि उनमें से कोई भी घर से बाहर न निकले.” स्थानीय निवासी महाबीर सिंह ने बताया, “इस पूरे इलाके में दहशत का माहौल था, मगर लोगों ने इलाके का माहौल खराब नहीं होने दिया और सभी की रक्षा की.”

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अल्पसंख्यक को नहीं लगा डर…

अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाली स्थानीय निवासी आसिया ने बताया, “जिस वक्त हिंसा हुई, उस वक्त मैं गांव में थी, लेकिन बेफिक्र थी. क्योंकि हमारे यहां ऐसे लोग हैं, जो कभी हमारा साथ नहीं छोड़ते.” उन्होंने कहा, “हम सब भाई की तरह मिलकर यहां रहते हैं. सब एक ही खून हैं और हम लोगों के मन में कोई खटास नहीं है. जब उनसे उनकी उम्र के बारे में पूछा गया था तो आसिया ने कहा, “मोदी जी से एक साल बड़ी हूं.”

40 साल से साथ हैं हम…

इसके बाद बृजपुरी के एक अन्य अल्पसंख्यक परिवार से बात की गई, जो एक संयुक्त परिवार है. यहां घर में मौजूद महजबीन ने बताया, “हमें यहां 40 साल हो गए. सभी एक साथ त्योहार मनाते हैं. ईद भी और दीवाली भी. हमें बस इतना कहा गया कि आप डरिए मत, हम सब आपके साथ हैं.”

19 दिन 19 टिप्स: कैसे काम करता है दिमाग

इंसानी दिमाग को समझना बहुत जरूरी है. एक आम आदमी के दिमाग का वजन 3 पाउंड यानी 1 किलो 500 ग्राम तक होता है. इंसान का दिमाग 75 फीसदी से ज्यादा पानी, 10 फीसदी फैट और 8 फीसदी प्रोटीन से बना होता है. यह शरीर का सब से ज्यादा चरबी वाला अंग है.

मानव मस्तिष्क कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज प्रतिक्रिया करता है जिस के कई रहस्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं. इस के कई रहस्यों से परदा हटना अभी बाकी है. इंसानी दिमाग ब्लडप्रैशर, पल्स रेट, हार्ट रेट और सांस लेने की प्रक्रिया को सामान्य रखता है. वह शरीर के सभी अंगों को कंट्रोल करता है.

दिमाग का दायां हिस्सा शरीर के बाएं भाग को तथा बायां हिस्सा शरीर के दाएं भाग को नियंत्रित करता है.

–       शरीर के अलगअलग हिस्सों की सूचना अलग रफ्तार से दिमाग तक पहुंचती है.

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–       ऐसा माना जाता है कि एक दिन में 20 हजार बार पलक झपकाने के कारण हम दिन में 30 मिनट तक अंधे रहते हैं.

–       दिमाग लगभग 6 मिनट तक औक्सीजन न मिलने पर भी रह सकता है, लेकिन इस से ज्यादा समय होने पर उस के डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है.

स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप, मछली, उभयचर आदि जानवरों में दिमाग होता है. लेकिन मानव मस्तिष्क अद्वितीय है. यह सब से बड़ा नहीं है परंतु यह हमें हर बात की कल्पना व समस्या को हल करने की शक्ति देता है. यह एक अद्भुत अंग है.

मस्तिष्क के मुख्य कार्य

–       यह शरीर के तापमान, रक्तचाप और दिल की धड़कन व सांस को नियंत्रित करता है.

–       मस्तिष्क विभिन्न इंद्रियों की मदद से देख कर, छू कर और चख कर हमें अपने आसपास होने वाली प्रक्रिया के बारे में बताता है.

–       मस्तिष्क शरीर द्वारा होने वाली हर हलचल को कंट्रोल करता है.

–       मस्तिष्क हमें सोचने व समझने की शक्ति प्रदान करता है.

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मस्तिष्क की शक्ति

शरीर एक मंत्रालय है, तो मस्तिष्क उस का प्रधानमंत्री. इस की मरजी के बिना शरीर का कोई भी हिस्सा सही प्रकार से काम नहीं कर सकता. अत्यधिक मानसिक परिश्रम व थकान, पाचन संस्थान की गड़बड़ी, शारीरिक व मानसिक दुर्बलता या किसी लंबी बीमारी के चलते मस्तिष्क पर असर पड़ने लगता है और हमारी स्मरणशक्ति कम हो जाती है. मस्तिष्क की शक्ति को ऐसे बढ़ा सकते हैं :

बादाम में आयरन, कौपर, फास्फोरस और विटामिन बी पाए जाते हैं. इसलिए बादाम मस्तिष्क, दिल और लिवर को ठीक से काम करते रहने में मदद करता है. मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाने के लिए 5 बादाम रात को पानी में भिगो दें. सुबह छिलके उतार कर बारीक पीस कर पेस्ट बना लें. अब एक गिलास दूध और उस में इस पेस्ट को और 2 चम्मच शहद को डाल कर पी लें. यह मस्तिष्क के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है.

सौंफ प्रतिदिन घर में प्रयोग किए जाने वाले मसालों में से एक है. इस का नियमित उपयोग सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. सौंफ और मिश्री को बराबर मात्रा में मिला कर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को 2 चम्मच दोनों समय भोजन के बाद लेते रहने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है.

अखरोट में ओमेगा – 3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इस में मैगनीज, तांबा, पोटैशियम, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम जैसे मिनरल्स भी पाए जाते हैं. अखरोट विटामिन ई का बहुत अच्छा स्रोत है, जो हमारे मस्तिष्क के लिए काफी फायदेमंद होता है.

– डा. के के चौधरी
(लेखक जानेमाने न्यूरोलौजिस्ट हैं)

 

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