प्यार का आधा-अधूरा सफर : भाग 1

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शिवांगी खूबसूरत थी. जब उस ने 16वां बसंत पार किया तो उस के सौंदर्य और भी निखार आ गया. उसे जो भी देखता, उस की खूबसूरती की तारीफ करता. शिवांगी पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. वह आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन उस के पिता ने उस की आगे की पढ़ाई बंद कर दी थी.

शिवांगी की सहेली आरती उस से 3 साल बड़ी थी, जो उस के पड़ोस में ही रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. जब आरती का विवाह हुआ तो शादी के समारोह में शिवांगी की उपस्थिति जरूरी थी.

शादी समारोह के बाद नागेंद्र को अपने घर लौट आना चाहिए था, लेकिन शिवांगी के प्यार ने उस के पैरों में जैसे जंजीर डाल दी थी. वह बुआ के घर ही रुका रहा. नागेंद्र को जब शिवांगी के करीब जाने की तड़प सताने लगी तो वह उस के घर के चक्कर लगाने लगा. शिवांगी दिख जाती तो वह उस से हंसनेबतियाने की कोशिश करता.

नागेंद्र की आंखों में अपने प्रति चाहत देख कर शिवांगी का भी मन विचलित हो उठा. अब वह भी नागेंद्र से मिलने को आतुर रहने लगी. चाहत दोनों तरफ थी, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था.

नागेंद्र ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात शिवांगी से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन नागेंद्र को मौका मिल ही गया. शिवांगी को घर में अकेली देख नागेंद्र ने कहा, ‘‘शिवांगी, अगर तुम बुरा न मानो तो मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

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