सुबह-सुबह गोभी और आलू के पराठे, मक्खन मार के, दही और अचार के साथ टेबल पर आये तो सबके मुँह पानी से भर गए. छक्क कर खाया, लम्बी डकार मारी और फिर लस्सी का बड़ा सा गिलास भी गटक गए. नाश्ता करके थोड़ी देर टीवी देखा और फिर लगे खर्राटे बजाने. दोपहर में किचेन से शालू की आवाज़ आई कि लंच तैयार है.सब फ़टाफ़ट उठ कर टेबल पर जम गए.आज लंच में अम्मा और शालू ने मिल कर बिरयानी और कोरमा बनाया था.

'वाह ! क्या खुशबु ! रायता बना है ना ? और सलाद ?' अभिषेक ने शालू से पूछा.
'हाँ, हाँ सब बना है. लाओ प्लेट आगे करो. शालू ने  चहक कर पति को जवाब दिया.जब से कोरोना फैला है सबके मज़े हो गए हैं. बाबूजी, अभिषेक, शालू को कभी ऑफिस से ऐसी लम्बी छुट्टी नहीं मिली जिसमे तनखा भी नहीं कट रही हो और पति, बच्चे, सास, ससुर सब साथ में रहे हों.शालू की शादी को पंद्रह साल हो गए, सरकारी कर्मचारी है. सुबह साढ़े आठ बजे जैसे तैसे बच्चों और पति को स्कूल व ऑफिस भेज कर खुद ऑफिस के लिये भागती है और शाम को लौटते लौटते साढ़े सात बज जाते हैं. किसी से हाल चाल पूछने या बात करने की फुर्सत नहीं होती.लौटते ही बच्चों को होम वर्क करवाने के लिए बैठती और उसके बाद किचन में घुस जाती थी.

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उसको याद नहीं पड़ता कि कभी ऐसा वक़्त आया जब पूरा परिवार एक साथ घर पर इस तरह फुर्सत से रहा हो.जबसे लॉक डाउन हुआ है तब से वो और अभिषेक तो कोरोना कैरल्स ही गा रहे हैं. अम्मा और बाबूजी भी खुश हैं कि बेटा-बहु और पोते-पोती सब घर में उछल-कूद मचाये हैं.कभी आँगन में बैडमिंटन चल रहा है तो कभी सारे कैरमबोर्ड को घेरे बैठे हैं.बाबूजी जिन्होंने कभी कैरम की गोटियों को हाथ नहीं लगाया वो भी लगे हैं अपने हाथ आज़माने.बीच-बीच में शालू कभी पकोड़े तल कर ले आती हैं, कभी मैगी बना कर रख जाती हैं तो कभी बिस्कुट और कुरकुरे.

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