‘सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई)’ से आई ताजा रिपोर्ट भारत के लिए बड़ी चिंता का सबब बन सकता हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लाकडाउन के कारण बेरोजगारी दर 23.4 प्रतिशत तक उछल सकती है. शहरों में इस की दर 30 प्रतिशत तक जा सकती है. यह आकड़े 5 अप्रैल रविवार यानी जिस दिन पूरा देश दिया और मोमबती जला रहा था उस दिन तक के हैं. इसे पब्लिश 6 अप्रैल सोमवार को किया गया. इन आकड़ों को समझा जाए तो 15 मार्च 2020 तक भारत की बरोजगारी दर जो 8.4 प्रतिशत थी (हालांकि यह भी बहुत अधिक थी) वह मात्र 23 दिनों में 23.4 प्रतिशत तक जा पहुंची है. जब कि यह आकड़े शहरों में बढ़कर तक 30.93 प्रतिशत तक बताए गए हैं. सीएमआईई भारत का सब से बड़ा स्वतंत्र व्यावसायिक और आर्थिक रिसर्च ग्रुप है जिस की स्थापना 1976 में नरोत्तम शाह ने की थी. इस का हेडक्वार्टर मुंबई में स्थित है. यह अर्थव्यस्था और व्यापार को ले कर डेटाबेस तैयार करता है.
आज पुरे विश्व के ऊपर कोरोना संक्रमण की दोहरी मार पड़ी है. पहला, बिमारी से संक्रमित होने व मरने वालों की लगातार बढ़ती संख्या और दूसरा, लम्बे लाकडाउन से पुरे विश्व की चोपट होती अर्थव्यवस्था. अभी हाल ही अमेरिका में 1 हफ्ते के भीतर ही 68 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते का फॉर्म भर कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. वहीँ 15 दिनों का हाल देखें तो लगभग 1 करोड़ लोग बेरोजगारी के लिए यह फॉर्म भर चुके थे. यह अपने आप में एक साथ अमेरिका में दर्ज की गई सब से बड़ी बेरोजगारी की रिपोर्ट थी. यही हाल अलग अलग देशो का चल रहा है.
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आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था को ले कर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि “आजादी के बाद भारत इस समय अब तक के सब से बड़े आर्थिक आपातकाल से गुजर रहा है.” अपनी बात में उन्होंने सरकार को सुझाव दिया की लाकडाउन के बाद एहतियात के साथ कम संक्रमित क्षेत्रों को दोबारे से पटरी पर उतारा जाए. साथ ही उन्होंने सरकार को गरीबों के हितों को प्राथमिकता देने की बात कही. जिसमें उन्होंने कम जरूरी खर्चों को फिलहाल के लिए टालने को कहा.
वहीँ एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रोणब सेन ने मोटामोटी गणना के तौर पर इस बात की सम्भावना व्यक्त की है की “लाकडाउन के दो हफ्तों के भीतर ही भारत में 5 करोड़ लोगों ने अपनी नोकरी खो दी है.” यह वही है जिन्होंने सरकार को चेताया था की “अगर माइग्रेट वर्कर के पास खाना नहीं पहुंचा तो खाने को ले कर दंगों की संभावना बढ़ सकती है.”
फिलहाल सीएमआईई के जारी किये यह आकड़े भारत के लिए चिंता का विषय जरुर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि लाकडाउन के पहले भारत रोजगार उत्पादन के मामले में बेहतर स्थिति में था. ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के रिपोर्ट वर्ष 2018-19 के मुताबिक़ ‘अधिकतर भारतीय लोग रोजगार के अवसरों की कमी को देश की सब से बड़ी समस्या मानते है. इस के अलावा लगभग 1 करोड़ 86 लाख लोग देश में बेरोजगार हैं.’
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हांलाकि लाकडाउन के कारण बेरोजगारी के बढ़ने की संभावना पहले से ही व्यक्त की जा रही थी लेकिन इस की जमीन काफी समय पहले खुद सरकार द्वारा डाल दी गई थी. जिस में प्रधानमंत्री द्वारा की गई नोटबंदी भी जिम्मेदार थी. जिस ने भारत की अर्थव्यवस्था की मानो कमर ही तोड़ दी थी. एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत ने पिछले 45 सालों की सब से बड़ी बेरोजगारी झेली. यह बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी. रिपोर्ट के अनुसार युवाओं में इस का सब से अधिक प्रभाव था. ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की बेरोजगारी दर 17.6 फ़ीसदी था वहीँ शहरों में यह 18.7 फीसदी था. वहीँ शहरी युवतियों में यह 27.2 फीसदी था. यह वह समय था जब छोटे उद्योग धंधे धड़ल्ले से बंद हो रहे थे. देश की सब से निचली आबादी जिन अनौपचारिक फैक्ट्रियों में काम कर रही थी वहां मजदूरों की छटनी धड़ाधड़ चल रही थी. इस के बाद बाकी बचीकुची कसर जीएसटी के फैसले ने पूरी कर दी थी.
जाहिर है देश में यह स्थिति काफी समय पहले से ही चलती आ रही थी यही कारण था कि लाकडाउन के दुसरे दिन से ही पलायन करने वाले मजदूरों की फौज बिना किसी की परवाह किये अपने घरों की तरफ कूच करने निकल पड़ी. अब जो रिपोर्ट्स सीएमआईई की तरफ से लाकडाउन से पैदा हुई बेरोजगारी को ले कर आई है वह महामंदी की तरफ इशारा कर रही है. अगर यह आकड़े सही निकलते है तो देश की अधिकतम आबादी की कन्जुमिंग पॉवर ख़त्म हो जाएगी. यानी बहुसंख्यक आबादी के पास लाकडाउन खुलने के बाद भी सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं होगा. अगर लोगों के पास उपभोग क्षमता नहीं होगी तो इस का नकारात्मक असर छोटे बड़े उद्योग धंधो की उत्पादन प्रणाली पर पड़ेगा. अगर उपभोक्ता सामान खरीदने की स्थिति में नहीं है तो उद्योगपति उत्पादन नहीं कर पाएंगे. फिर बड़ीबड़ी इंडस्ट्री में भी छटनीयां शुरू होने लगेगी. अगर इस साइक्लिंग प्रक्रिया की गिरफ्त में देश की अर्थव्यवस्था आती है तो हमें वापस उभरने में लंबा समय लग जाएगा.
इस समय लगभग 90 देशों में लाकडाउन किया गया है. यानी अर्थव्यवस्था के चक्के को रोका गया है. वेश्विक स्तर पर इस तरह का लाकडाउन एक साथ पहली बार किया गया. हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरुरी है कि इस से पैदा हुई अर्थव्यवस्था की हानि हर देश के लिए एक सामान नहीं है. ख़ासकर जब विश्व पहले ही विकसित, विकासशील और अविकसित देशों में बंटा हुआ है. यही कारण है कि निर्धनता की मार झेल रहा भारत पहले ही आर्थिक मोर्चे पर रगड़ खा रहा है. ऐसी स्थिति में हमारे लिए संभलना कितना कठिन होगा यह देखना बाकी है.