अगले दिन सुबह राजेश मिठाई, फल, पनीर, सैंडविच, एक थर्मस में बौर्नविटा व एक थर्मस में कौफी ले कर ऊपर रोहन के पास पहुंच गए. रोहन मैगी बनाने की तैयारी कर रहा था. राजेश ने गर्मजोशी से गुडमौर्निंग करते हुए कहा, ‘आओ बेटा, साथ में नाश्ता करते हैं.’
रोहन चुपचाप किचन से निकल आया, बोला, ‘मुझे बेटा मत कहा कीजिए, मैं कोई बच्चा नहीं हूं.’
राजेश ने कहा, ‘ठीक है, फ्रैंड कहूंगा या रोहन ही बोलूं?’
रोहन बोला, ‘जो बोलना हो बोलिए. बस, बेटा मत कहिए.’
राजेश और रोहन ने नाश्ता कर लिया. रोहन ने सभी चीजें शौक से खाईं. राजेश ने पूछा, ‘बोलो फ्रैंड, कौफी पीओगे या गरमागरम बौर्नविटा?’
रोहन ने मुसकराते हुए कहा, ‘कुछ भी दे दीजिए.’
राजेश ने छेड़ते हुए कहा, ‘नहीं फ्रैंड, मैं इस चक्कर में नहीं पड़ूंगा. मुझे क्या पता कि आज तुम्हें क्या पीना है, इसीलिए मैं दोनों ही ले आया हूं.’
रोहन ने हंसते हुए कहा, ‘आप मुझे कौफी दे दीजिए.’
रामेश्वरजी से फोन पर बात हुई. सुबह बे्रकफास्ट का वाकेआ सुन वे खुश हो कर बोले, ‘वाह, राजेशजी, यह तो कमाल हो गया. वह अपने हमउम्र के अलावा तो किसी से हंस कर बात ही नहीं करता.’ ढाईतीन बजे के लगभग रोहन कालेज से लौट कर ऊपर जाने वाला था, मैं ने उसे टोकते हुए कहा, ‘रोहन, मैं ने तुम्हारे लिए खाना बना लिया है. यदि यहां बैठ कर खाओगे तो लगा देती हूं, वरना ऊपर ले जा सकते हो.’
दो पल वह ठिठका, बोला, ‘दे दीजिए.’
मैं ने रामेश्वरजी से रोहन की पसंद जान ली थी. उस की पसंद का पनीर बटर मसाला, दाल तरी, बूंदी का रायता, सलाद, रोटीचावल उसे लगा कर दे दिया.
रात में राजेश खाना ले कर ऊपर ही चले गए. रोहन टीवी देख रहा था. उन्हें देख अचकचा कर बोला, ‘इतना परेशान मत होइए, मैं पिज्जा और्डर कर देता.
राजेश कब चुप रहने वाले थे, ‘फ्रैंड, आज आंटी के हाथों का बना खा लो. कल डिनर में पिज्जा और्डर करेंगे, मुझे और आंटी को भी बहुत पसंद है.’
दोनों ने साथ खाना खाया, कुछ बातचीत भी हुई. रोहन ने भी बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. राजेश चलते समय बोले, ‘ओ के फ्रैंड, गुडनाइट, सुबह बे्रकफास्ट पर मिलते हैं.’
रोहन गुडनाइट कहते हुए बोला, ‘अंकल, बे्रकफास्ट पर एक शर्त पर मिलूंगा. आप बे्रकफास्ट ऊपर नहीं लाएंगे. मैं नीचे आ कर लूंगा.’
राजेश ने खुश हो कर कहा, ‘चलो, यही तय रहेगा.’
राजेश बेहद खुश थे कि रोहन ने अपनेपन से उन्हें अंकल शब्द से संबोधित किया था.
‘पहले ही दिन का रिस्पौंस इतना अच्छा मिलेगा, इस की तो मैं ने कल्पना ही नहीं की थी, अब मुझे विश्वास हो रहा है कि मुझे मेरा रोहन वापस मिल जाएगा.’ फोन पर भावविह्वल हो कर रामेश्वरजी बोले.
अगले दिन साढ़े 7 के पहले, रोहन खुद ही बे्रकफास्ट के लिए आ गया. मैं टेबल ठीक कर रही थी. आते ही वह बोला, ‘गुडमौर्निंग, आंटी. आप के हाथों में जादू है. आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’
मैं ने उसे थैंक्स करते हुए सिर सहला दिया, जिस का उस ने प्रतिवाद नहीं किया. हम तीनों ने साथ ही नाश्ता किया. वह कालेज जाने के लिए तत्पर हुआ तो मैं ने पूछा, ‘रोहन, तुम अपनी पसंद बता देते तब मैं लंच में वही बनाती.’
उस ने कहा, ‘आंटी, आप इतना अच्छा बनाती हैं कि कुछ भी बनाइए, अच्छा ही बनेगा.’
मैं ने कहा, ‘फिर भी, तुम्हारी पसंद का बनाने का दिल कर रहा है.’
उस ने कहा, ‘मुझे राजमाचावल, साथ में प्याज व हरीमिर्च का रायता बहुत पसंद है.’
मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं यही बनाऊंगी. रात में तो तुम्हारा डबल चीज पिज्जा खाने का मन है न?’
रोहन ने कहा, ‘आंटी, यदि आप को तकलीफ न हो तो मैं आप के हाथ का बना खाना ही खाना चाहूंगा.’
हम पतिपत्नी रोहन के व्यवहार से बेहद खुश हुए. उस ने औपचारिकता त्याग कर मेरे हाथ के खाने की फरमाइश की.
रामेश्वरजी से फोन पर बात होती रहती थी. वे यह जान कर खुशी से बोले, ‘राजेशजी, आप लोगों ने बहुत जल्दी उस के दिमाग की खिड़की खोल दी. चलिए, अब हमें रोशनी डालने की जगह तो मिल गई.’ आज रोहन का कालेज बंद था. हम ने पूरा दिन ही रोहन के साथ बिताने का कार्यक्रम बनाया. सुबह 8 बजे तक वह आ गया. मैं ने टेबल ठीक करते हुए कहा, ‘बेटा, आज मैं ने साउथ इंडियन डिशेज बनाई हैं. तुम्हें यदि पसंद न हों तो तुम्हारे लिए कुछ और बना देती हूं.’
मैं ने गौर किया, मेरे ‘बेटा’ संबोधन पर उस ने एतराज नहीं जताया.
रोहन ने झट से कहा, ‘नहीं, आंटी, मुझे तो साउथ इंडियन डिशेज बेहद पसंद हैं. मैं तो यही खाऊंगा.’
बे्रकफास्ट के बाद हम तीनों कौफी ले कर बालकनी में चले आए. रोहन अब काफी अपनेपन से बातें करने लगा था. हम ने उसे राजीव का एलबम दिखाया. उस ने राजीव व उस की पत्नी तथा बेटी के बारे में काफी बातें कीं तथा बोला, ‘राजीव भैया को आप लोगों से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, कम से कम फोन से तो बराबर बातें करनी चाहिए थीं. और साल में एक बार तो आप लोगों से मिलने के लिए उन्हें आना चाहिए था.’
मैं ने कहा, ‘रोहन बेटा, कुछ बच्चे ऐसा कर जाते हैं. मातापिता तो अपना सर्वस्व बच्चों पर लगा देते हैं, वे खुद से ज्यादा बच्चों की चिंता करते हैं किंतु कुछ बच्चे अपनी जिंदगी की मंजिल तय करते समय उन्हें राह में अकेला छोड़ आगे बढ़ जाते हैं. वे अपनी उन्नति व स्वार्थ के नशे में मातापिता को भुला बैठते हैं. वे यह भी भूल जाते हैं कि यदि मातापिता ने भी उन्हें भुला दिया होता तब वे किस लायक होते?’
मेरी बातें सुनने के बाद रोहन शांतभाव से कुछ सोचने लगा हम ने टटोलते हुए पूछा, ‘क्या बात है, बेटा? एकदम शांत हो गए हो?’
‘नहीं आंटी, यों ही,’ उस ने बात टालते हुए कहा.
हम दोनों अच्छी तरह समझ रहे थे कि रोहन, रामेश्वरजी के प्रति स्वयं के व्यवहार की समीक्षा कर रहा है.
राजेश ने देखा, लोहा गरम है, चोट करना उचित रहेगा. वे उसे टटोलते हुए बोले, ‘फ्रैंड, तुम अपने पापा के प्रति काफी रूखे हो, क्या बात है? फ्रैंड मानते हो न मुझे, इतना जानने का तो हक है मेरा?’
रोहन धीरे से बोला, ‘अंकल, मैं चाह कर भी पापा के साथ सहज नहीं रह पाता हूं. अभी वे नहीं हैं तो उन की कमी महसूस करता हूं किंतु सामने होते हैं तो चिढ़ ही होती है उन से. मैं पूरी तरह कन्फ्यूज्ड हूं. मैं ने बचपन में मातापिता को हमेशा झगड़ते ही देखा है.’
वह दो पल रुक कर फिर बोला, ‘पापा मम्मी को अपनी बात समझाने में असमर्थ रहे, इसलिए वे मुझे बेहद कमजोर इंसान लगते हैं.’
राजेश ने समझाते हुए कहा, ‘बच्चों का मनमस्तिष्क बहुत भावुक व कोमल होता है. वह बड़ों की बातों को देखतासुनता तो है किंतु पूरी तरह से समझने में असमर्थ होता है. वह अपनी छोटी समझ से एक धारणा बना लेता है. तुम मेरे बेटे समान हो, तुम्हारा भला चाहता हूं. निश्ंिचत रहो, मैं तुम्हें कुछ गलत नहीं बताऊंगा.’
राजेश ने समझाना जारी रखते हुए कहा, ‘फ्रैंड, तुम्हारे पापा एक कमजोर नहीं बहुत मजबूत इंसान हैं. तुम्हारी मम्मी को मैं जितना समझ पाया हूं वह यह कि उन्हें धनदौलत की बेहिसाब भूख थी. वे तुम्हारे पापा से रिश्वत लेने के लिए लड़ाईझगड़ा करती थीं. फ्रैंड, बैंक मैनेजर को इतनी तनख्वाह तो मिलती है कि वह एक सम्माननीय जीवन व्यतीत कर सके. ईमानदारी तो चरित्र का अनमोल गहना है. तुम्हारे पापा जैसे इंसान का सम्मान होना चाहिए न कि अपमान.
‘तुम्हारे पापा को पत्नी व मित्र ने धोखा दिया. यह ऐसा घाव है जो नासूर बन कर तुम्हारे पापा और तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर रहा है. अपनों के धोखे को सहज कर जिंदगी को कर्तव्य की भांति निभाना किसी कमजोर इंसान के बस की बात नहीं है, फ्रैंड. ‘तुम्हारे पापा तुम्हारी अच्छी परवरिश के लिए अपने दुख को दरकिनार कर कर्तव्य को बखूबी निभा रहे हैं. तुम अपना कन्फ्यूजन दूर करो तथा अपने पापा का आदरसम्मान कर खुद को योग्य बेटा सिद्ध करो.’
अगली सुबह रामेश्वरजी लौट आए. जैसे ही उन की टैक्सी गेट के सामने रुकी, हम से पहले रोहन गेट तक पहुंच गया. उस ने जल्दी से टैक्सी का गेट खोला. रामेश्वरजी बाहर निकले. उस ने चरणस्पर्श कर पूछा, ‘कैसे हैं, पापा?’ रामेश्वरजी भावविह्वल हो कर बोले, ‘मैं बहुत अच्छा हूं, तुम्हें देख कर सफर की सारी थकान दूर हो गई,’ और रोहन को गले से लगा लिया. रोहन खुश था. वह पापा के हाथों से ब्रीफकेस ले कर ऊपर चला गया.
रामेश्वरजी राजेश के गले से लग गए, हम लोगों ने रामेश्वरजी के चेहरे पर अद्वितीय खुशी देखी. गुस्सैल रोहन को स्नेहमयी रोहन में बदला हुआ देख रामेश्वरजी बोले, ‘आप लोगों ने कमाल कर दिया. मुझे मेरे बेटे से मिलवा दिया. मैं कैसे आप लोगों का एहसान चुकाऊं…’
राजेश बीच में ही बात काटते हुए बोले, ‘दोबारा एहसान का जिक्र न करिएगा, अभी जल्दी से ऊपर जाइए, आप का बेटा इंतजार कर रहा है.’ रामेश्वरजी व रोहन से हमारा एक अनोखा रिश्ता बन गया है. इस रिश्ते ने रोहन को तो सही मार्ग दिखाया ही हमें अकल्पनीय उपहार दे दिया. आज रोहन एक कुशल इंजीनियर है. सुंदर व सुशील सौम्या उस की पत्नी है और 2 प्यारेप्यारे बच्चों ने घरआंगन गुलजार कर दिया है.
हम पतिपत्नी का मन बेटा, बहू, पोता, पोती के लिए तरसता था. एकांत में हम आंसू बहाते थे. आज रोहन के कारण वह रिक्त कोना गुलजार हो उठा है. ऐसा महसूस होता है कि रोहन के रूप में राजीव मिल गया है. सच में, माइनसमाइनस प्लस हो गया, मरुस्थल सा बना हमारा मन रिमझिम फुहार से सराबोर हो उठा.