लेखक- डॉ दीपक कोहली

कोरोना के  परिप्रेक्ष्य में आजकल "भीलवाड़ा मॉडल" देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है. एक समय यह लग रहा था कि राजस्थान के भीलवाड़ा में कोरोना का संकट वुहान( चीन का एक शहर ) और इटली की तरह ही भयंकर है. लेकिन भीलवाड़ा ने  देश में सबसे पहले कोरोना जोन बने वायरस के खिलाफ महायुद्ध जीत लिया है. यह देश का एकमात्र शहर है, जिसने 20 दिनों में कोरोना को हरा दिया. यह यूं ही संभव नहीं हुआ. इस महायुद्ध को जीतने में जिला प्रशासन की ठोस रणनीति, कड़े फैसले, चुनाव की तरह कुशल प्रबंधन और जीतने की जिद काम आयी.

भीलवाड़ा जिले के सभी कर्मचारियों ने रात-रात भर जागकर काम किया और भीलवाड़ा को बेमिसाल बना दिया. यहां हालात इस कदर बिगड़े कि राजस्थान में सर्वाधिक 27 मरीज आ गए. ये सभी एक निजी अस्पताल के स्टाफ व मरीज थे. बढ़ती संख्या से घबराए प्रशासन ने खुद कहा था, ‘भीलवाड़ा बारूद (कोरोना) के ढेर पर है.’ लेकिन हौसला बरकरार रहा.

19 मार्च को पहला मरीज आया. अगले दिन पांच और मरीज आते ही जिलाधिकारी श्री राजेंद्र भट्ट ने कर्फ्यू लगा दिया. रोज कई बैठकें , अफसरों से फीडबैक और प्लानिंग. सरकार को रिपोर्टिंग. देर रात सोना. जल्दी उठकर फिर वही रूटीन. 3 अप्रैल को 10 दिन का महाकर्फ्यू. यही कड़ा फैसला महायुद्ध में मील का पत्थर साबित हुआ. आखिरकार जिद की जीत हुई. जिस शहर को पहले देश का वुहान (चीनी शहर) और इटली की संज्ञा दी जाने लगी. वहां गंभीर रोगियों की मौत को छोड़ दें तो डॉक्टरों की कड़ी मेहनत ने कोरोना को मात दे दी. तीन डॉक्टर सहित 21 संक्रमित ठीक कर दिए. अब 4 मरीज हैं. यही वजह है कि भीलवाड़ा को हर तरफ से भी तारीफ मिली. क्लस्टर कंटेनमेंट का यह मॉडल देशभर में लागू हो रहा है, अब कोरोना से लड़ने का तरीका पूरा देश भीलवाड़ा से सीखेगा.

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