समाज में फैले अंधविश्वास और मुसलिम कट्टरता की कङी आलोचना कर इसलामिक कट्टरपंथियों द्वारा जारी फतवों और निर्वासन झेल रहीं बंग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन एक बार फिर से चर्चा में हैं. हाल ही में उन की लिखी 2 बहुचर्चित किताबें ‘माई गर्लहुड’ और ‘लज्जा’ का अगला भाग ‘शेमलेस’ 14 अप्रैल को रिलीज होनी थी लेकिन लौकडाउन की वजह से रिलीज नहीं हो पाई. इस के तुरंत बाद एक मीडिया हाऊस को दिए इंटरव्यू के बाद तसलीमा फिर से विवादों में आ गई हैं.
निशाने पर तबलीगी जमात
इस बार उन्होंने तबलीगी जमात को अपने निशाने पर लिया और उन पर निशाना साधते हुए बोलीं,”ये जहालत फैला कर मुसलिम समाज को 1400 साल पीछे ले जाना चाहते हैं.”
दिल्ली में तबलीगी जमात के एक धार्मिक कार्यक्रम में हुए जमावड़े और उन में से कइयों के और उन के संपर्क में आए लोगों के कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने के बीच तसलीमा ने एक इंटरव्यू में कहा,” मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भरोसा करती हूं लेकिन कई बार इंसानियत के लिए कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है. यह जमात मुसलमानों को 1400 साल पुराने अरब दौर में ले जाना चाहती है.’’
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विवादों से पुराना नाता रहा है
हालांकि तसलीमा की पहचान हमेशा विवादों से घिरी रहने वाली लेखिका के रूप में है लेकिन वे एक डाक्टर भी हैं. उन्होंने बंग्लादेश के मैमन सिंह मैडिकल कालेज से 1984 में एमबीबीएस की डिग्री ली थी. उन्होंने ढाका मैडिकल कालेज में काम शुरू किया लेकिन नारीवादी लेखन के कारण पेशा छोड़ना पड़ा. बंग्लादेश में रहते हुए तसलीमा ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कट्टरता की जम कर आलोचना की. अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने धार्मिक अंधविश्वासों की मुखालफत कीं तो कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं.
अब जब दुनिया कोरोना वायरस महामारी से त्रस्त है, मुसलिम समाज के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा,”हम मुसलिम समाज को शिक्षित, प्रगतिशील और अंधविश्वासों से बाहर निकालने की बात करते हैं लेकिन लाखों की तादाद में मौजूद ये लोग अंधकार और अज्ञानता फैला रहे हैं. मौजूदा समय में साबित हो गया कि ये अपनी ही नहीं दूसरों की जिंदगी भी खतरे में डाल रहे हैं. जब इंसानियत एक वायरस के कारण खतरे में पड़ गई है तो हमें बहुत ऐहतियात बरतने की जरूरत है.’’
जब बंग्लादेश में फैला था हैजा
दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी से जूझते डाक्टरों को देख कर उन्हें 90 की दशक की शुरूआत का वह दौर याद आ गया जब बंग्लादेश में हैजे के प्रकोप के बीच वे भी इसी तरह दिनरात की परवाह किए बिना इलाज में लगी हुई थीं.
उन्होंने कहा,‘‘इस से मुझे वह समय याद आ गया जब 1991 में बंग्लादेश में हैजा बुरी तरह फैला था. मैं मैमन सिंह में संक्रामक रोग अस्पताल में कार्यरत थी जहां रोजाना हैजे के सैकड़ों मरीज आते थे और मैं भी इलाज करने वाले डाक्टरों में से थी. मैं उस समय बिलकुल नई डाक्टर थी.’’
मालूम हो कि बंग्लादेश में 1991 में फैले हैजे में करीब 2,25,000 लोग संक्रमित हुए और 8,000 से अधिक लोग मारे गए थे.
तसलीमा ने कहा,‘‘मुझे दुनियाभर के डाक्टरों को देख कर गर्व हो रहा है कि मैं इस पेशे से हूं. वे मानवता को बचाने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डालने से पीछे नहीं हट रहे. आज यह साबित हो गया है कि अज्ञानता और अंधविश्वास नहीं, बल्कि विज्ञान ही ताकतवर है.”
इतना ही नहीं, तसलीमा ने एक ट्टविट भी किया और यहां तक कह दिया कि जमात एक इसलामिक कट्टरपंथी आंदोलन है.
उन्होंने ट्विट कर कहा,”तबलीगी जमात एक इसलामिक कट्टरपंथी आंदोलन है. यह 1926 में हरियाणा के मेवात से शुरू हुआ. 150 देशों के लगभग 8 करोङ मुसलमान इस जमात में भाग लेते हैं. उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है.
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धार्मिक अंधविश्वास और अज्ञानता
तसलीमा का यह बयान भी उस समय आया है जब तबलीगी जमात को ले कर देशभर के मीडिया जम कर भड़ास निकाल रहे हैं पर यह कोई नहीं कह रहा कि जब लौकडाऊन की घोषणा की जानी थी, उस से पहले सरकार को इस की जानकारी क्यों नहीं थी? वह भी तब जब इतना बङा जलसा हो रहा था और इस में देश ही नहीं विदेशों से भी बङी संख्या में जमाती इकट्ठे हुए थे.
जाहिर है, विदेश से आने वाले ये लोग एअरपोर्ट होते हुए आए होंगे और इन का डाटा सरकार के पास भी उपलब्ध होगा. बावजूद यह जलसा जारी रहा और इस पर तब ऐक्शन लिया गया जब सामूहिक कार्यक्रम की मनाही हो गई थी और लौकडाउन लागू हो चुका था. इस के बाद सरकार हरकत में आई और एकएक कर इन्हें बाहर निकाला गया. पर चूंकि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और यहां पुलिस प्रशासन केंद्र के अधीन है तो यह बङी चूक हुई कि जिस समय जमात के कार्यक्रम को रोका गया उसी समय इन्हें एकएक कर स्वास्थ्य परीक्षण में ले जाया जाता. जलसे के दौरान और बाद में ये देश के अन्य राज्यों में गए, यह भी एक बङी चूक रही.
उधर दिल्ली के मजनूं का टीला के एक गुरूद्वारे में भी 250 से अधिक लोग धार्मिक जलसे में शामिल थे. इन्हें भी प्रशासन द्वारा बाहर निकाला गया. खबर है कि यहां भी सोशल डिस्टैंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं.
ऐसे में तो यही कह सकते हैं कि इन सब के मूल में धार्मिक अंधविश्वास और अज्ञानता भी एक कारण है.
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धर्म बङा या विज्ञान
यों धर्म कोई भी हो इस को मानने वाले कभी सुखी जीवन नहीं बिताते. हिंदू धर्म तो अपने अंधश्रद्धा से हमेशा से ही अज्ञानताओं से घिरा रहा है. यह अंधश्रद्धा ही है कि धर्म के नाम पर यहां कभी राम रहीम और आसाराम जैसे बलात्कारियों के दरबारों में हजारों की भीङ उमङती रही है, तो वहीं मूर्ति पूजन और पिंडदान के नाम पर भक्तों को जम कर लूटाखसोटा जाता है. धार्मिक दरबार में लोगों को धर्म का भय दिखा कर तो कभी राम का वास्ता दे कर खूब बेवकूफ बनाया जाता रहा है. भक्त लुटतेपिटते रहे हैं और तथाकथित गुरू ऐशोआराम की जिंदगी जीते रहे हैं.
खबर है कि तबलीगी जमात के तथाकथित मुखिया मौलाना साद भी मर्सिडीज से चलता है और करोड़ों का मालिक है.
फरार चल रहे मौलाना साद की गिरफ्तारी के बाद संभव है कि कई नए खुलासे हों पर सवाल अहम है और वह यह कि धर्म कोई भी हो देता कुछ नहीं. कुछ देता भी है तो खुद का कर्म, मेहनत, वैज्ञानिक और आधुनिक सोच. फिर धर्म को ले कर कुछ लोग क्यों अज्ञानता की खाई में गिरे पङे हैं?