देश के धार्मिक ट्रस्टों व मंदिरों में सोने को लेकर विवाद सदियों से रहे है.प्राचीन इतिहास में धर्म व सत्ता का गठजोड़ रहा है और धर्म ही राजाओं को राजा होने व सत्ता चलाने की मान्यता देते थे.मौर्यकालीन इतिहास का अध्ययन करते है तो कुछ धार्मिक शास्त्र उनको क्षेत्रियों के रूप में लिखते है तो कुछ क्षुद्रों के रूप में.
असल मे जो राजा जिस धर्म का समर्थन करता था उसको धर्मशास्त्रों में क्षेत्रीय मान्यता दे दी जाती थी.मध्यकालीन युग मे जब बाहरी आक्रमण हुए थे उस समय ज्ञात होता है कि पूंजी मंदिरों में जमा थी और राजा जंग लगे,पुरानी पद्धति के हथियारों से लड़कर हार गए थे.अफगानी गांव गजनी का एक लुटेरा 400-500 लोगों को लेकर निकला था और तोपखाना हासिल करके भारत फतेह कर गया था.
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999 ई. में जब महमूद ग़ज़नवी सिंहासन पर बैठा, तो उस ने प्रत्येक वर्ष भारत पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की. उस ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया यह स्पष्ट नहीं है, किन्तु सर हेनरी इलियट ने महमूद ग़ज़नवी के 17 आक्रमणों का वर्णन किया.महमूद के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था. वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था. महमूद की सेना में सेवंदराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे. महमूद के भारत आक्रमण के समय उस के साथ प्रसिद्ध इतिहासविद्, गणितज्ञ, भूगोलावेत्ता, खगोल एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता तथा ‘किताबुल हिन्द’ का लेखक अलबरूनी भारत आया.
अलबरूनी महमूद का दरबारी कवि था. ‘तहकीक-ए-हिन्द’ पुस्तक में उस ने भारत का विवरण लिखा है. इस के अतिरिक्त इतिहासकार ‘उतबी’, ‘तारीख-ए-सुबुक्तगीन’ का लेखक ‘बेहाकी’ भी उस के साथ आये. बेहाकी को इतिहासकार लेनपूल ने ‘पूर्वी पेप्स’ की उपाधि प्रदान की है. ‘शाहनामा’ का लेखक ‘फ़िरदौसी’, फ़ारस का कवि जारी खुरासानी विद्धान तुसी, महान् शिक्षक और विद्वान् उन्सुरी, विद्वान् अस्जदी और फ़ारूखी आदि दरबारी कवि थे.
दरअसल भारत की प्राचीन काल से समस्या यही रही कि धर्म और विज्ञान के बीच सामंजस्य बिठाने में सदा नाकाम रहा है.इतिहास से कभी सबक नहीं लिया और गलती पर गलती करता रहा जिसके कारण हजारों साल विदेशियों का गुलाम रहा है.कल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा कि सरकार को मंदिरों में रखे सोने को 2%ब्याज पर लेकर जन कल्याण के काम मे लगाना चाहिए.आज देश मे संकट है और अर्थव्यवस्था डांवाडोल है तो बेहतरीन सुझाव माना जा सकता है मगर वो ही ऐतिहासिक गलती को दोहराने के लिए रेंटेड साधुओं को टीवी पर बैठाकर कहा जाने लगा कि भक्तों की आस्था पर काली नजर डाली जा रही है.क्या बकवास है!विभिन्न अनुमानों के मुताबिक भारत मे 3000टन सोना धर्मस्थलों के पास पड़ा है!जब राजा धन के अभाव से जूझ रहा है और कोरोना जैसे संकट में देश फंसा है तो धर्मस्थलों का असली धर्म यही बनता है कि शास्त्रों में महान लिखने के बजाय असल मे राजा का सहयोग करे.इतिहास की गलतियां दोहराकर देश को विदेशी कंपनियों के हवाले करने की लाचारी से देश को उभारा जाएं.
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भक्तों की आस्था भगवान/अल्लाह/गॉड में है इस पूंजी में नहीं है.अगर पूंजी में आस्था होती तो भक्त घरों की अलमारी में सहेजकर रखते!इंसानियत पे-बेक के सह-अस्तित्व से चलती है.अगर भक्तों ने दान भी किया है तो संकटों से मुक्ति के लिए दान किया है और आज भारत के करोड़ों भक्त जीवन जीने की जंग में फंसे है तो कम से कम इस पूंजी का उपयोग इनके संकटों को दूर करने के लिए किया ही जाना चाहिए.
दुनिया 21वीं सदी के संचार माध्यमों का उपयोग कर रही है इसलिए दुनियांभर की व्यवस्थाओं को समझ रही है.इस समय जरूरत इस बात की है कि पूरा देश समझदारी के साथ एकजुट होकर इस संकट से मुकाबला करें.हमारे पास अकूत संपदा पड़ी है और उसको उपयोग में लेने के बजाय राजा की मजबूरी है कि विदेशी कंपनियों को भारत मे जगह देकर बैठाएं!मुगल साम्राज्य की डोलती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जहांगीर ने थॉमस रो को सूरत में सस्ती जमीन पर फैक्ट्री लगाने की जो गलती की थी वो रास्ता अभी हमारे राजा के पास है.उसके बाद क्या हुआ व इसके बाद क्या होगा आप समझ लीजिए.
जब अंग्रेजों ने कब्जा करना शुरू किया था तब भारत के राजा आपस मे जूतमपैजार कर रहे थे और अब विदेशी कंपनियां फिर से कब्जा कर रही है और भारत की राजनैतिक पार्टियां वो ही काम करने लग गई!उस समय अंग्रेजों के मुखबिर और अंग्रेजों से नौकरी पाकर पेट पालने वाले लोगों की भूमिका में भारत का मीडिया है.अगर भक्तों को लगे कि उनके द्वारा दी गई पूंजी का उपयोग संकट से उभारने में नहीं हो रहा है तो वापिस लेने का दावा ठोकने का विकल्प भी पास में है.भक्तों से निवेदन है कि इतिहास मत दोहराने देना.देश को बचाने का भार भगवानों से भक्तों के कंधों पर आ चुका है.