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जायद सब्जियों का समेकित कीट प्रबंधन

लेखक- डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह

सब्जियों के कुल उत्पादन में जायद सब्जियों का प्रमुख स्थान है. गरमी के महीनों में ये मुख्य आहार का काम करती है. अन्य ऋतुओं की फसलों की तरह इन में भी कीटों का प्रकोप होता है, जिस से उत्पादन और गुणवत्ता पर बुरा पड़ता है. इसलिए यह जरूरी है कि किसान भाइयों को जायद की सब्जियों में नुकसान पहुंचाने वाले कीटों और उन के प्रबंधन के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए.

फलमक्खी

यह कद्दू परिवार की सब्जियों जैसे: लौकी, करेला, कद्दू, खीरा, तोरोई, खरबूजा, तरबूज आदि को हानि पहुंचाने वाला प्रमुख कीट है. प्रौढ़ मक्खी भूरे रंग की होती है, जिस के शरीर पर दो पारदर्शक पंख होते हैं और टांगें पीले रंग की होती हैं. सूंडी जिन्हें मैगट कहते हैं, पीले रंग की होती हैं. मैगट के शरीर का अगला हिस्सा मोटा, हलका काला और पिछला हिस्सा बेलनाकार होता है.

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नुकसान के प्रकार

फलों को नुकसान मैगट पहुंचाते हैं, जबकि मादा मक्खी अपने नुकीले डंक की सहायता से अंडे देती है, जिस से अंडे दिए गए स्थान पर रस निकलना प्रारंभ हो जाता है. बाद में उस स्थान पर भूरा काला धब्बा बन जाता है.

मक्खी जिस स्थान पर अंडे देती है, उस जगह के ऊतक नष्ट हो जाते हैं. इस से फल टेढ़ेमेढ़े हो जाते हैं. अंडों से सूंडि़यां निकलने के बाद फलों के अंदर घुस कर खाना शुरू कर देती हैं, जिस से फलों में सड़न उत्पन्न हो जाती है और उन का गूदा मटमैला हो जाता है. कीट के प्रकोप के कारण सब्जियां खाने और व्यापार के लायक नहीं रह जाती हैं.

प्रबंधन : खेतों में ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए.

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* कद्दूवर्गीय सब्जियों को बागों में नहीं लगाना चाहिए.

* सूंड़ी और प्यूपा से ग्रसित फलों को एकत्र कर 1.0 मीटर गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए.

* गंध पास की सहायता से नर कीटों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.

* नर कीटों को आकर्षित करने के लिए मिथाइल यूजीनाल 0.1 फीसदी, एसीटामीप्रिड 0.1 फीसदी को 1 लिटर शीरे के घोल को चौड़े मुंह वाली बोतल में डाल कर 10 शीशी प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

* मिथाइल यूजीनाल 4 भाग, एल्कोहल 6 भाग और थायोमैथोक्जाम 1 भाग, 5 सैंटीमीटर लंबे और 1 सैंटीमीटर मोटे वर्गाकार प्लाईवुड के टुकड़े को 24 घंटे घोल में डुबो कर प्लास्टिक की बोतल लटका कर प्रयोग करना चाहिए.

* यदि कीट का प्रकोप अधिक हो तो थायोमैथोक्जाम दवा की 200 ग्राम मात्रा को

8-10 लटर पानी का घोल बना कर

छिड़काव करें.

कद्दू का लाल कीट

(लाल सूंड़ी)

इस कीट की ग्रब व प्रौढ़ दोनों ही अवस्था फसलों को हानि पहुंचाती है. इस कीट के प्रौढ़ बेलनाकार, जिन का ऊपरी रंग गेरूआ लाल, पीला होता है.

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ग्रब अवस्था पौधों की मुलायम जड़ों को खुरचखुरच कर खाती हैं, जबकि प्रौढ़ कीट पौधों की मुलायम कलिका व पत्तियों को काट कर खाते हैं. इस से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पत्तियां छिद्रयुक्त दिखाई देती हैं. इस कीट का प्रकोप मध्य फरवरी माह से सितंबर माह तक रहता है.

प्रबंधन : फसल खत्म होने पर बेलों को खेत से निकाल कर जला देना चाहिए.

* फसल की अगेती बोआई से कीटों के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

* संतरी रंग के भृंग को सुबह के समय इकट्ठा कर के नष्ट कर दें.

* फसल में इन कीटों की ग्रब अवस्था में जमीन में रह कर जड़ों को काटती हैं, जिस की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास 20 ईसी की 2.5 लिटर प्रति हेक्टेयर मात्रा को फसल की बोआई के एक माह बाद सिंचाई जल के साथ प्रयोग करें, जिस से कि पौधों में मौजूद ग्रब लटों को नष्ट किया जा सके.

* नीम तेल (नीमारीन) की

5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से

10 दिन के अंतराल पर खड़ी फसल में छिड़काव करते रहना चाहिए या घर की राखी या जीवामृत का छिड़काव करते रहना चाहिए.

* कीट की उग्र अवस्था होने पर फ्रिवोनिल 5 फीसदी एससी 2 मिलीलिटर या इंडोक्जाकार्ब 14.5 एससी की 5 मिलीलिटर के साथ सरफेक्टेंट/स्टीकर 1 मिलीलिटर की मात्रा को मिला कर 5 लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

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अमेरिकन सूंड़ी

यह भिंडी का प्रमुख कीट है. कीट का प्रौढ़ मटमैले रंग का शलभ होता है, जो रात में सक्रिय हो कर प्रकाश की ओर आकर्षित होता है. इस कीट की सूंड़ी का रंग हरा व भूरा होता है.

नुकसान के प्रकार : कीट की सूंड़ी प्रारंभिक अवस्था में पौधों की मुलायम पत्तियों को खा कर नष्ट कर देती है. फल अवस्था में सूंड़ी भिंडी में छेद कर फली के अंदर के गूदे को खा कर नष्ट करती है. ग्रसित फलों में गोलगोल छेद बन जाते हैं, जिन में कीट का मल चिपका रहता है. प्रभावित फलों का बाजार भाव गिर जाता है.

प्रबंधन :  ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिस से भूमि में पड़े हुए कीट के कोयों की तेज धूप के संपर्क में आने के कारण मृत्यु हो जाए.

* कीट आकर्षी फसल गेंदा या कपास को खेत के चारों ओर लगाने से मादा कीट अंडे मुख्य फसल में न दे कर प्रपंची फसल देती है, जिस से मुख्य फसल कीट के प्रकोप से बच जाती है.

* परभक्षी चिडि़यों के बैठने के लिए खेत में जगहजगह बर्ड पर्चर लगा देना चाहिए. ये चिडि़यां कीट की सूंडि़यों को खा कर नष्ट कर देती हैं.

* परभक्षी प्रपंच/फैरोमौन टेप की सहायता से शलभों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.

* नीम की निंबौली का 4.0 फीसदी का घोल बना कर 8-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.

* एचएएनपीवी का 300 सूंड़ी तुल्यांक, 1.0 किलोग्राम गुड़ और 1.0 फीसदी चिपकने वाला पदार्थ मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* ट्राईकोग्रामा काइलोनिस अंड परजीवी के 50,000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से

15 दिन के अंतराल पर फूल बनते समय

5-6 बार प्रयोग करें.

* बैसिलस थ्यूरिजिनेनसिस की 1.0 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* स्पाइनोसेड की 45 ईसी की 200 मिलीलिटर एमएल मात्रा को 400-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* अधिक प्रकोप की दशा में फ्लूपेंडाएमाइड की 39.35 फीसदी एससी की 125 मिलीलिटर या इंडोक्जाकार्र्ब 15.8 फीसदी ईसी की 325 मिलीलिटर मात्रा को 400-600 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

चित्तीदार सूंड़ी

वयस्क कीट मध्यम आकार का पतंगा होता है, जिस का सिर और वक्ष पीले रंग का होता है. नवजात इल्लियां भूरे, सफेद रंग की लगभग 9 मिलीमीटर लंबी, जबकि पूरी तरह विकसित इल्लियां 18-20 मिलीमीटर लंबी होती हैं. इल्लियों के पृष्ठ भाग पर छोटेछोटे कड़े बाल होते हैं और बीचबीच में काली व नारंगी धब्बों वाली धारियां भी पाई जाती हैं, इसलिए इसे धब्बों वाली या चित्तीदार इल्ली कहते हैं.

नुकसान के प्रकार : इस कीट की इल्लियां भिंडी के फलों, फूलों, कलियों और पौधों की कोमल टहनियों को नुकसान पहुंचाती हैं. फसल के प्रारंभ में ही जब पौधे दोतीन सप्ताह के होते हैं, उसी समय इल्लियां निकल कर पौधों के प्ररोहों में छिद्र कर के प्रवेश कर जाती हैं. परिणामस्वरूप, वे मुरझा जाते हैं. इस तरह लगभग 50 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो जाती है.

जब पौधों पर फल, कलियां और फल आने लगते हैं तो इल्लियां उन में प्रवेश कर जाती हैं. प्रवेश छिद्र कीट के मलमूत्र से भरे हुए देखे जा सकते हैं. इस कीट के प्रकोप से कलियां नहीं खिलतीं, फूल झड़ने लगते हैं और फल दूषित, छोटे व खाने योग्य नहीं रह जाते हैं.

प्रबंधन :  कीट की प्रारंभिक अवस्था में ही प्रभावित प्ररोहों को काट कर नष्ट कर देना चाहिए.

* जमीन पर गिरी हुई कलियों और क्षतिग्रस्त फलों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* खेत में या खेत के चारों ओर उगे हुए परपोषी पौधों को नष्ट कर देना चाहिए.

* फसल समाप्त होने के बाद खेत में छूटे हुए फसल के अवशेषों को एकत्र कर के नष्ट कर देना चाहिए.

* कीट के आक्रमण की दशा में ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 50,000 अंडे/हेक्टेयर की दर से खेत में छोड़ें.

* यदि कीटनाशक प्रयोग करने की आवश्यकता हो तो उस दशा में इंडोक्जाकार्ब 15.8 फीसदी ईसी की 325 मिलीलिटर मात्रा या फ्लूवेंडामाइट 480 एससी की 100 मिली मात्रा को 500-600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फुदका

यह कद्दूवर्गीय फसलों को नुकसान पहुंचाने वाला प्रमुख रस चूसक कीट है, जो आकार में छोटा, कोमल शरीर वाला और हरेपीले रंग का होता है. इसे भुनगा के नाम से भी जाना जाता है. यह अकसर पत्तियों की निचली सतह पर सैकड़ों की संख्या में चिपक कर रस चूसते रहते हैं. पत्तियों को हिलाने पर ये उड़ते हुए दिखाई देते हैं.

नुकसान के प्रकार : कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पत्तियों की निचली सतह से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. अधिक प्रकोप की दशा में पत्तियां पीली पड़ कर मुरझाना शुरू हो जाती हैं और बाद में सूख जाती हैं. इसे  हौपर बर्न की स्थिति कहते हैं. यह कीट अपनी लार से विषैला पदार्थ निकालता है. इस के प्रभाव से पत्तियां जली हुई दिखाई देने लगती हैं.

प्रबंधन : खेत के पास उगे हुए अन्य परपोषी पौधों और खरपतवारों को नष्ट कर दें.

* इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की

125 मिलीलिटर या फिब्रोनिल 1.5 लिटर मात्रा का 500-600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

मूल ग्रंथि सूत्रकृमि

वयस्क मादा नाशपाती जैसी गोलाकार 1 से 2 मिलीमीटर लंबी तथा 30 सैंटीमीटर माइक्रोन चौड़ी होती है. नर का शंकु भारी मादा से बड़ा होता है. मादा 250 से 300 अंडे देती है. अंडे के अंदर ही डिंभक प्रथम निर्मोचन की अवस्था पार करते हैं. इन से जो द्वितीय अवस्था के डिंभक बनते हैं, वे मृदा कड़ों के बीच रेंगते रहते हैं और उपयुक्त परपोषी जड़ों से संपर्क होने पर उन से चिपक जाते हैं और जड़ों की बाह्य त्वचा को भेद कर ऊतकों में पहुंच जाते हैं.

परपोषी के अंदर डिंभक में 3 निर्मोचन होते हैं. मादा अनिषेकजनन तरीके से अंडे पैदा कर सकती है. सूत्रकृमि की शोषण क्रिया के फलस्वरूप पौधे के ऊतकों में तेजी से विभाजन होता है और उन की कोशिकाओं का आकार बढ़ जाता है.

इस प्रकार से गं्रथियों बनती हैं. इन्हीं ग्रंथियों के अंदर सूत्रकृमि एक फसल काल से दूसरी फसल काल तक जीवित रह कर प्रारंभिक आक्रमण करता है.

नुकसान के प्रकार : यह सूत्रकृमि सब्जियों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है. इस के कारण जड़ों में छोटीछोटी गांठें बन जाती हैं और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. साथ ही, पौधे की वृद्धि रुक जाती है. नतीजतन, पौधों पर फलों की संख्या कम हो जाती है.

प्रबंधन :  उपयुक्तफसल चक्र अपना कर इस का प्रकोप मूल फसल पर कम किया जा सकता है.

* गरमियों में खेत की 2 से 3 बार जुताई कर के मिट्टी अच्छी तरह सुखाने से डिंभकों की संख्या को कम किया जा सकता है.

* यदि फसल चक्र में अधिक समय तक जल भराव वाली फसल जैसे कि धान ले ली जाए, तो भी इस की संख्या कम की जा

सकती है.

* मृदा में कार्बनिक पदार्थ जैसे, लकड़ी का बुरादा, नीम की अंडी की खली 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल लगाने से 3 सप्ताह पूर्व खेत में मिला कर मूल गं्रथियों की संख्या कम की जा सकती है.

* प्रतिरोधी प्रजाति का प्रयोग करना चाहिए.

* अधिक प्रकोप होने पर कार्बोफ्यूरान

3 जी की 30-35 किलोग्राम मात्रा को हेक्टेयर की दर से खेत में प्रयोग करना चाहिए.

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विद्या बालन ने अपनी डेब्यू फिल्म परिणीता की 15 वीं वर्षगांठ पर साझा की कुछ खूबसूरत तस्वीर

 विद्या बालन, संजय दत्त, सैफ अली खान, राइमा सेन, दीया मिर्जा अभिनीत फिल्म ‘परिणीता’ को प्रर्दशित हुए 15 साल पूरे हुए है . शरतचंद्र की कहानी पर बनी ‘परिणीता’ कोलकाता परंपरा को अपने मे शामिल कर सुंदर दृश्यों के साथ बनाई गई थी . फिल्म ‘परिणीता’ से ही विद्या बालन ने हिंदी फिल्मों में कदम रखा था. लेकिन वे इससे पहले टीवी और बंगाली फिल्मों में काम कर चुकी थीं .

अभिनेत्री विद्या बालन ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक संदेश लिखा है और फिल्म को 15 साल पूरे होने पर कुछ यादें साझा की और साथ ही कुछ अनदेखी बीटीएस तस्वीरें भी साझा की हैं . इस ख़ुशी के मौके पर विद्या ने कहा, ” जैसे लोलिता शेखर की बेटर हाफ थी, इससे पहले ही दुनिया जानती थी, तुम भी मेरे हो … लेकिन 10 जून 2005 को, मैं तुम्हारी परिणीता बन गई. मैं तुम्हें तब प्यार करती थी और अब मैं तुमसे प्यार करता हूं और मैं तुमसे हमेशा के लिए प्यार करती रहूंगी हूं … मेरा प्रिय सिनेमा. और उन सभी लोगों के लिए जिन्होंने इस शादी को सुनिश्चित किया है और जीवित रहते हैं. तेह दिल से शुक्रीया.


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# 15YearsOfParineeta. अनजाने में परिणीता भी पहली फिल्म थी मेरी #Shekhar, #SiddharthRoyKapur ने #UTV में शामिल होने के बाद काम किया … उनकी पहली फिल्म भी थी.

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परिणीता की पूरी टीम को बधाई . दर्शक अब विद्या बालन की आगामी फिल्म शकुंतला देवी का बेसब्री से इंतेजार कर रहे है और एक उत्तम परफॉर्मेंस की अपेक्षा में है . हालही ने डिजिटल फेस्टिवल में विद्या बालन अभिनीत एवं निर्मित फ़िल्म नटखट का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ , इस शॉर्ट फिल्म के लिए विद्या ने खूब सुर्खियां और प्रशंशा बटोर है .

कांग्रेसी नेता की हत्या पर खौला कंगना रनौत का खून, कही ये बात

बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत अपने बेबाक अंदाज को लेकर हमेशा सुर्खियों में बनी रहती हैं. उनके दिए गए बयान कई दिनों  तक मीडिया में सुर्खियों में बने रहते हैं. अदाकारा कभी भी किसी को तंज कसने में पीछे नहीं रहती हैं.

एक बार फिर से कंगना अपने बयान से चर्चा में आ गई हैं. कंगना ने इस बार कश्मीर में हुए अजय पंडित की निर्मम हत्या पर सवाल उठाते हुए सितारों पर तंज कसते हुए कहा है कि ये लोग अपने एजेंडे के हिसाब से ही लोगों पर रिएक्ट करते हैं.

कंगना ने कहा बॉलीवुड के लोग हाथओं में कैंडल लेकर निकल पड़ते हैं. लेकिन किसी को क्या पता कि उनका असली एजेंडा जेहादी होता है. नहीं तो ऐसे ये किसी की मदद नहीं करते हैं.

 

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#KanganaRanaut turns to classics — plays Love Story theme on the piano at her house in Manali. ❤️?❤️

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आगे कंगना ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री से अपील करती हूं कि वह अजय पंडित को मारने वाले दोषियों को जल्द से जल्द सजा दें.

बता देंकि बीते दिम कश्मीर में कांग्रेस से जाबाज नेता अजय पंडित की हत्या कर दी गई. जिसके पीछे की वजह के बारे में अभी तक कोई खुलासा नहीं हुआ है. इस पर आए दिन नए- नए विवाद खड़े हो रहे हैं.

वह अपने गांव अनंतनाग के सरपंच थें. इस हत्याकांड पर लोग कड़ी निदा कर रहे हैं. हर रोज दोषि को सजा देने की मांग हो रही है.  लेकिन बाकी सभी मुद्दो पर खुलकर बोलने वाले सितारे इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा तब जाकर कंगना रनौत ने उन पर सीधा निशाना साधा है.

 

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and the recent brutal killing of Ajay Pandit. . . . . . #KanganaRanaut #Kashmir #AjayPandit

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अगर कंगना रनौत की वर्कफ्रंट की बात करें तो इन दिनों वह अपनी आनेवाली फिल्म थलाइवी को लेकर सुर्खियां बटोर रही हैं.

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वहीं कंगना रनौत इन दिनों अपनी फैमली के साथ मनाली में खूब एंजॉय कर रही है. कंगना अपनी फैमली के साथ खूब मस्ती करती हुई वीडियो शेयर करती रहती है. वहीं उनकी बहन रंगोली भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर फैमली फोटो शेयर करती रहती हैं.

लाॅकडाउन में भी उसने खुद को नहीं किया संगीत से दूर जानें उस गायिका के बारे में

‘‘जी 5’’की हिंदी फिल्म ‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’के लिए रबींद्रनाथ टैगोर रचित गीत‘‘सजनी सजनी..’’को गाकर वह खुद को गौरवान्वित महसूस करने के अलावा जबरदस्त शोहरत बटोर रही गायिका सयानी पालित किसी परिचय की मोहताज नही है.उन्होने 4 साल की उम्र से पंडित अजय चक्रवर्ती और फिर उनकी पत्नी चांदना चक्रवर्ती से संगीत की विधिवत शिक्षा लेना शुरू किया था.जब वह ‘आई टीसी संगीत रिसर्च’की स्कौलर थी,तब पद्मभूषण गिरिजा देवी से संगीत सीखा.इन दिनों वह ‘‘इन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’पर पीएचडी कर रही हैं.

बतौर पाष्र्वगायिका 2013 में बंगला फिल्म‘‘प्रलय’’मे गीत गाकर सयानी पालित ने बतौर पाश्र्वगायिका अपने कैरियर की शुरूआत की थी.2015 में हिंदी फिल्म‘‘कट्टी बट्टी’’ में ‘ओ जानिए’गीत गाकर जबरदस्त शोहरत बटोरी थी.तब से वह लगातार सक्रिय हैं.अब तक बीस से अधिक फिल्मों,म्यूजिक वीडियो और एड फिल्म मिलाकर डेढ़ सौ गाने गा चुकी हैं.

प्रस्तुत है सयानी पालित से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष..

लाॅक डाउन के वक्त की आपकी दिनचर्या क्या है?

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-इस वक्त स्टेज शो या गीत रिकार्ड नहीं हो पा रहे हैं.मगर इंटरनेट के माध्यम से ऑन लाइन बहुत कुछ हो रहा है.मैं फेसबुक लाइव पर जाकर कुछ गाती रहती हूं..इसके अलावा मुंबई से किसी ने संगीत की धुन बनाकर भेजी,मैं कलकत्ता में बैठकर गीत गा रही हूं,फिर कोई दूसरा उसे अरेंज कर रहा है.तो इस तरह से ऑन लाइन काफी कोलोब्रेशन हो रहे हैं.मैं संगीत भी सुनती रहती हूं.अपने यूट्यूब चैनल पर हम कई तरह के गीत डालती रहती हूं,जिन्हे मेरे फैंस सुन सके.

आपने कब सोचा कि संगीत को कैरियर बनाया जाए?

-जब मैं स्कूल में भी पढ़ रही थी,तब मैं पढ़ाई के साथ साथ संगीत प्रतियोगिताओं में प्रथम आया करती थी.पर स्कूल दिनों में संगीत को कैरियर बनाने की मेरी कोई योजना नही थी.मैने उन दिनो यह भी नही सोचा था कि मुझे कलाकार बनना है.जबकि मैं 4 साल की उम्र से संगीत के साथ जुड़ी रही हूं.संगीत मेरी रगों में बसा हुआ था.मेरे ऊपर परिवार यानीकि माता पिता की तरफ से भी ऐसा कोई दबाव नही था कि मुझे यही करना पड़ेगा.जब दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की शिक्षा हेतु मैं कालेज पहुॅची,तो वहां  पर कंप्यूटर मेरा पसंदीदा विषय था.मैंने कंप्यूटर में बीटेक पढ़ना चाह रही थी.मैने बीटेक में प्रवेश भी ले लिया.उसके बाद मैने अपने संगीत के गुरू अजय चक्रवर्ती जी से मिली और उन्हें बताया कि मैने कालेज में बी टेक करने के लिए प्रवेश लिया है.

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इस पर मेेरे गुरू ने कहा कि,‘तुम पिछले  सोलह वर्ष से संगीत सीखती आयी हो,अब बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब तुम आई टी सेक्टर में नौकरी करोगी,तो कलाकार कैसे बनोगी?आई टी सेक्टर की नौकरी करते हुए कलाकार नहीं बन पाओगी,इसलिए पहले यह सोचकर निर्णय लो कि आगे क्या बनना है.तुम्हें दोनों में से किसी एक को चुनना होगा.तुम सोचो कि जिसे तुमने अपने जीवन के 16 साल दिए उसमें आगे बढ़ना है या जीवन में कुछ और बनना है.’’गुरू अजय जी की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया.और मैने निर्णय लिया कि मुझे एक कलाकार बनना है.तब मैंने ‘बीटेक’नहीं किया और फिर बीसीए किया.मैंने संगीत में ही स्नातक की डिग्री हासिल की.इन दिनों मैं संगीत में डॉक्टरी यानी कि पीएचडी कर रही हूं..इस तरह मैं कह सकती हूं  कि हाईस्कूल की परीक्षा पास होने के बाद मैने संगीत की तरफ बढ़ने का निर्णय लिया था.उसी वक्त मैने निर्णय लिया था कि मुझे प्रोफेशनल संगीतकार बनना है.मुझे संगीत के क्षेत्र में कुछ नया रचनात्मक काम करना है.और पिछले दस वर्षों से प्रोफेशनल गायक के तौर पर काम करती आयी हूं..मैं हिंदी व बंगला फिल्मों में पाश्र्व गायन किया है और अभी भी कर रही हूं..मैने कुछ संगीत अलबम भी बनाए हैं.

आपने पटियाला घराने के अजय चक्रवर्ती और बनारस घराने की गिरिजा देवी से संगीत सीखा.दोनों अलग अलग घराने से हैं.आपने इनसे क्या सीखा और आपके कैरियर को किससे ज्यादा मदद मिली?

-देखिए,जैसा कि मैने अभी बताया कि मैं फिल्मों में पाश्र्वगायन कर रही हूं,जहां  क्लांसिक गीत गाने के मौके न के बराबर हैं.जब मैं इन दो महान गुरूओं से संगीत सीख रही थी,उस वक्त मेरी सोच यह थी कि संगीत सीखने वाला विषय है.संगीत मन को सकून देता है.आनंद देता है.एक अलग अनुभूति देता है.अगर आप संगीत को ध्यान से सीखोगे और क्लासिकल संगीत सीखने से फायदा यह होता है कि कलाकार हर तरह का गाना बाखूबी गा सकता है.हर तरह के गीत गाने के लिए गायक के तौर पर संगीत का आधार मजबूत होना चाहिए.तो पं. अजय चक्रवर्ती और गिरिजा देवी जैैसे गुरूओं से मुझे जो सीख मिली,उसी से मेरा संगीत का आधार सषक्त व मजबूत हुआ है.यही वजह है कि मैं किसी भी राग व धुन का गीत हो,गा लेती हूं.यह मेरे गुरूओं द्वारा मुझे दी गयी शिक्षा से ही संभव हो पा रहा है.

ठुमरी से आपको कुछ ज्यादा ही लगा है.आपइन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’विषय पर पीएचडी कर रही हैं?

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-जी हाॅ!मैं‘‘इन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’पर पीएचडी कर रही हॅूं.ठुमरी के प्रति मेरा लगाव भी है,शौक भी है.मैने पं.अजय चक्रवर्ती से पटियाला का ठुमरी और गिरिजा देवी से बनारस का ठुमरी सीखा है.

ठुमरी की मैं बहुत शौकीन हूं..देखिए,मुझे क्लासिकल संगीत/शास्त्रीय संगीत  में रूचि है,तो वहीं मैं फिल्मों में पाश्र्व गायन करना भी पसंद करती हूं.मैने अब तक जिन फिल्मों के लिए पाश्र्व गायन किया है,उनमें से कई फिल्मों में मैने ठुमरी गायी है.इसलिए जब मेरे सामने प्रष्न आया कि मुझे पीएचडी यानीकि शोध कार्य कै लिए एक विषय चुनना है,तो मैने यह विषय चुना.इसमें ठुमरी और क्लासिकल संगीत दोनों का समावेष है.1996 से 2016 के बीच जिन फिल्मों में भी ठुमरी आयी है,उस पर मेरी यह पीएचडी/शोध कार्य है.अभी पीएचडी पूरी नही हुई है.

आपकी पीएचडी पूरी नही हुई है,पर अब तक शोध से आपने क्या पाया?क्या फिल्मों मंे ठुमरी को उचित स्थान मिल पा रहा है?

-देखिए,अब तो बाॅलीवुड का संगीत काफी वेस्र्टनाइज हो गया है.ठुमरी मंे रंग रस बहुत है.एक सैड साॅंग तो वहीं एक प्रेम निवेदन वाले गीत में भी ठुमरी हो सकती है.ठुमरी में बहुत  प्रयोग किए जा सकते हैं.कुछ प्रयोग तो बहुत बेहतरीन हुए हैं.विशाल भारद्वाज ने ठुमरी में काफी अच्छा प्रयोग किया है.प्रीतम दा,ए आर रहमान ने भी ठुमरी में कुछ प्रयोग किए हैं.मगर मुझे लगता है कि अभी बाॅलीवुड और टाॅलीवुड ठुमरी में और अधिक प्रयोग हो सकते हैं.मैं तो इस बात को लेकर बहुत आशावादी हूूं..

आपने दस वर्ष के कैरियर में जिन गीतों में ठुमरी गायी है,उनमें किस तरह के प्रयोग किए हैं?

-मैं 2013 से बंगला फिल्मों में पाश्र्व गायन करती आ रही हूं.मैने अपने कैरियर की शुरूआती बंगला फिल्म ‘‘हनुमान डाॅट काम’’में ठुमरी गायी थी.इसमें मैंने एक ट्रैक ‘‘मोमो चिट्टे..’’गाया था,इसमें रवींद्रनाथ टैगोर के गीत के साथ ‘तोहरे नैना जादू भरे..’’ठुमरी का फ्यूजन हुआ था.इस फिल्म में बंगला के सुपरस्टार प्रसन्नजीत ने अभिनय किया है.उसके बाद 2019 में बंगला फिल्म ‘‘मुखो मुखी’’में मैने बड़े गुलाम अली की मषहूर ठुमरी ‘‘याद पिया की आए’गायी है.मेेरे अलावा रेखा भारद्वाज,रशीद खान, सहित कई कलाकारों ने फिल्मों में ठुमरी गायी है.

2015 में हिंदी फिल्म‘‘कट्टी बट्टी’’में गाने के बाद दूरी हिंदी फिल्म‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’मिलने में चार वर्ष का समय लग गया?

-इमानदारी की बात यही है कि मैं बंगला फिल्मों में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रही.मगर इस बीच मैंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में हिंदी में गाया.कुछ हिंदी फिल्मों के लिए मैने गाया है,जिनकी रिलीज की तारीख तय नहीं और जब तक निर्माता उसकी घोषणा न कर दे,मैं कुछ बोलना नहीं चाहती.‘सीजंस ग्रीटिंग्स’के बाद दो तीन संगीतकारों ने फोन किया है,दो हिंदी फिल्मों में पाश्र्व गायन के आफर आए हैं.पर अभी लॅाक डाउन के चलते मैं कलकत्ता में ही हूं.तो जैसे ही कोई प्रगति होगी,बताउंगी.मुझे बंगला और हिंदी दोेनों भाषा की फिल्मों में पाश्र्व गायन करना है.मैं दोनो को साथ मे ही लेकर चलना चाहती हूं.

जब आप स्टेज पर लाइव गाती हैं और जब आप स्टूडियो मंे कोई गाना रिकार्ड करती हैं,तो किस तरह का फर्क रखती हैं?

-जब मैं किसी फिल्म के लिए पाश्र्व गायन करती हूं.,गाना रिकार्ड करती हॅूं,उस वक्त मेरे दिमाग में वह कलाकार जिस पर यह गाना फिल्माया जाना है के अलावा फिल्म का किरदार और गीत की सिच्युएशन रहती है.कहानी क्या है,वह किरदार क्या कहना चाहता है,उसी हिसाब से मुझे गाने को टोन देना होता है.क्योकि उस वक्त मैं फिल्म का प्रतिनिधित्व कर रही होती हूं.,तो गाने में उसी सिच्युएशन को डालती हूं..जब मैं स्टेज पर गाती हूॅं,उस वक्त मेरा ध्यान इस बात पर रहता है कि सामने बैठे दर्शक/श्रोता के साथ मेरा जुड़ाव बना रहे.तो दोनों बहुत अलग हैं.एक में दर्शक/श्रोता मुझे देख रहा है,मेरा गाना सुनकर मेेरे साथ जुड़ रहा है.जबकि दूसरे में दर्शक मुझे नहीं देख रहा है,पर मेरे द्वारा स्वरबद्ध गीत को सुनकर वह किरदार के साथ जुड़ता है.

इन दिनों कहा जा रहा है कि जब लाइव साॅंग रिकार्डिंग होती थी,उस वक्त एक गायक के लिए गाना रिकार्ड करना काफी कठिन हुआ करता था.मगर जब सेकी बोर्डका सिस्टम आया है,तब से कोई भी इंसान गायक बन सकता है.आपकी राय?

-मैं ऐसा नही मानती.मैंने लाइव षो में एक घंटा क्लासिक,एक घांटा ठुमरी और एक घांटा बाॅलीवुड साॅंग भी गाया है.मैने फिल्मों के लिए भी रिर्काडिंग की है.इसलिए यह आम राय बनाना गलत है कि आज के युवा गायक संगीत में माहिर नही है.मेरे अलावा भी कई गायक संगीत में महारत रखते हैं और हर तरह के गीत गा सकते हैं.मैं यह  जरुर मानती हूं कि आज की युवा पीढ़ी सब कुछ जल्दी जल्दी पा लेना चाहती है.इसी के चलते वह संगीत की गहन शिक्षा लेने की बजाय दो तीन वर्ष के बाद संगीत सीखना बंद कर देती है.पर यह हर किसी की निजी सोच है.मेरी राय में हर कलाकार को हर दिन संगीत की शिक्षा लेनी चाहिए.रियाज करना चाहिए.जैसे जैसे उसका अनुभव बढ़ता है,उसकी शिक्षा सशक्त होती जाती है.वैसे वैसे उसके संगीत,उसके गायन में निखार आता जाता है.मैं जब भी स्टूडियो जाती हॅंू,मै माइक पर अपनी ‘वाॅयस माॅडंलिंग’करती हूं..कलाकार तो आजीवन सीखता रहता है.मैने 22 वर्ष तक गुरू से संगीत की शिक्षा ली.उसके बाद हम जब स्टूडियो पहुॅचते हैं,लाइव शो में जाते हैं,तब भी कुछ न कुछ सीखते हैैं.घर पर भी हर दिन रियाज करते हुए सीखते हैं.

आप रियालिटी शो का हिस्सा रह चुकी हैं.इन दिनों यह चर्चा हो रही है कि संगीत डांस के रियालिटी शो से बच्चों का भविष्य बिगड़ता है? रियालिटी शो में जबरदस्त षोहरत पाने वाले कलाकार भी बाद में कुछ कर नहीं पाते?

-मेरी बात कुछ अलग है.मैं चार रियालिटी शो का हिस्सा रही हॅंू.एक-मंुबई दूरदर्षन के क्लासिकल संगीत पर आधारित रियालिटी षो ‘‘नाद हिट’’,2014 में ‘‘बिग गोल्डन वाॅयस’, ‘राइजिंग स्टार’और बंगाला स्टार प्लस पर आए रियालिटी शो का हिस्सा रही हूं.पिछले चार वर्ष से बंगला टीवी चैनल पर आ रहे रियालिटी शो‘‘बिग गोल्डन वाॅयस’’को मैं जज कर रही हूं..मेरे लिए किसी रियालिटी शो का हिस्सा बनना या रियालिटी शो को जज करने  का मेरे गायन व संगीत कैरियर से कोई लेना देना नहीं है.क्योंकि मैंने 22 वर्ष तक संगीत सीखा.2010 से स्टेज षो पर गाने लगी थी और 2012 से फिल्मों मंे पाश्र्वगायन कर रही थी.ऐसे मे रियालिटी षो का मेरे कैरियर से संबंध नही है.मैं रियालिटी शो का प्रोडक्ट पैदाइश नही हूं.मुझे लगता है कि आप किसी नए गायक की बात कर रहे हैं,जो कि सीधे रियालिटी शो में आया और स्टार बन गया.यह अलग मसला है.

मेरा सवाल यह था कि टीवी के रियालिटी शो के प्रोडक्ट पैदाइश कह खो जाते हैं?

-कमी यह होती है कि वह दो तीन वर्ष संगीत सीखते हैं और फिर रियालिटी षो में आ जाते हैं.फिर जब वह कैरियर बनाने के लिए मैदान मंे उतरते हैं,तो समस्या आती है.देखिए वैसे तो हर इंसान कलाकार को संघर्ष तो करना ही पड़ता है.दूसरी वजह यह हो सकती है कि वह रातों रात रियालिटी षो की वजह से स्टार बन गयी हो.उसके बाद वह खो गयी.क्योंकि स्टारडम में चूर उसने संघर्ष करने को अहमियत नही दी.जबकि यहां पर अनभव की अपनी अहमियत है.

कोरोना काल में ऑफिस जाना है पड़ सकता है भारी इसलिए बरतें ये सावधानियां

लॉकडाउन के बाद अब धीरे-धीरे ऑफिस खुलने लगे हैं और लोग ने ऑाफिस जाना शुरु भी कर दिया है. हालांकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो नहीं चल रहे, लेकिन बसें चल रही हैं लेकिन जिनका अपना खुद का साधन है उन लोगों ने ऑफिस जाना अब शुरु कर दिया है लेकिन अब ऑफिस जाने के लिए जाने के लिए आपको बहुत चौकन्‍ना रहने की जरूरत है.दुनियाभर में कोरोना की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है और अब इसे पटरी पर लाने के लिए ही ऑफिस खोले जा रहे हैं अगर आप भी अब वर्क फ्रॉम होम के बाद ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे हैं तो ये आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन नामुमकिन नहीं है.बस थोड़ी सावधानी की आवश्यकता है क्योंकि भले ही लॉकडाउन खुल गया हो लेकिन कोरोना के मामले रोज के रोज बढ़ते जा रहे हैं,  ऐसे में घर से बाहर निकलकर ऑफिस जाना और वहां काम करना अपनी जान को जोखिम में डालने से कम नहीं है और इसीलिए ऑफिस जाने पर आपको क्‍या सावधानियां बरतने की जरूरत है जानिए.

कुछ नियमों का करना होगा पालन

सरकार ने कर्मचारियों को कुछ निर्देश दिए हैं जो कि थर्मल स्‍कैनिंग और सैनिटाइजेशन है.हर कर्मचारी को ऑफिस के अंदर जाने से पहले इससे गुजरना आवश्यक है. इसमें आपको अपने सहकर्मियों से सोशल डिस्‍टेंसिंग रखनी होगी और मुंह को मास्‍क से ढकना भी बेहद जरूरी है.

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अपने साथ हैंड सैनिटाइजर या पेपर सोप और पानी जरूर रखें.घर से बाहर निकलने से पहले फेस मास्‍क पहनना जरूरी है. आप अपने चेहरे को फेस शील्‍ड से भी ढक सकते हैं.

ऑफिस में सावधानियां

ऑफिस में किसी भी कीमत पर अपना मास्‍क नहीं उतारें और न ही मास्‍क को हाथ लगाएं।कोशिश करें कि लिफ्ट का इस्तेमाल ना ही करें तो बेहतर होगा ,और अगर करें भी तो लिफ्ट के बटन को हाथ न लगाएं। ग्लव्स पहन कर ही टच करें.अगर लिफ्ट में तीन से ज्‍यादा लोग हैं, उसमें न चढ़ें थो़ड़ा इंतजार कर लें. लैपटॉप और मोबाइल रखने से पहले डेस्‍क को साफ कर लें यानी की अच्छी तरह से उसे सैनिटाइज कर लें या ऑफिस में काम करने वाले किसी सफाईकर्मी से करवा लें

सहकर्मियों से 6 से 7 फीट की दूरी बनाकर रखें.अगर आपको ऑफिस में चाय और कॉफी पीने की आदत है तो अपने साथ घर से ही टी बैग्‍स वगैरह लेकर निकलें. ऑफिस की पैंट्री की चीजें इस्‍तेमाल करने से बचें ये तो बेहद जरूरी है.लंच, पानी की बोतल और जरूरी दवाएं अपना पर्सनल अपने साथ ही रखें.अपने साथ अपनी जरूरत की चीजों जैसे कि ईयरफोन, चार्जर, पॉवर बैंक और लैपटॉप का चार्जर आदि जरूर रखें किसी से ना मांगे.

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ऑफिस जाते समय और वापस आते समय सावधानियां

रास्‍ते में कहीं भी अपना फेस मास्‍क न उतारें और चेहरे से अपने हाथों को दूर रखें.

यदि जरूरत न हो तो रास्‍ते में कुछ भी खरीदने के लिए रुकने की जरूरत नहीं है.

किसी को भी लिफ्ट न दें। लेकिन इसका इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि आप जरूरतमंदों की मदद ना करें.आपकी कार या स्‍कूटर के जिन हिस्‍सों पर लोगों का हाथ सबसे ज्‍यादा लगने की संभावना है, उन्‍हें छूने से पहले साफ जरूर करें.रास्ते में कुछ भी ऐसे ही ना खरीदें और भले ही दुकाने खुल गई हैं लेकिन कुछ भी ना खाएं.

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घर पहुंच कर क्या सावधानी रखें

घर पहुंचते ही अपने सारे कपड़े वॉशिंग मशीन में डाल दें और नहीं है तो नार्मल ही उसे बाल्टी में भिंगों दें और क्योंकि रोज़-रोज़ अब कपड़े धुलने हैं तो जितना हो सके कम कपड़े ही निकालें.

नहाने से पहले किसी को भी छुएं और हो सके तो पानी में डेटॉल डाल कर ही नहायें. घर आने के बाद आप गरारे कर सकते हैं और हल्का गुनगुना पानी पी सकते हैं.

अगले दिन नया फेस मास्‍क इस्‍तेमाल करें दूसरा इस्तेमाल करें.

हमसफर- भाग 4 : लालाजी की परेशानी वजह क्या थी ?

लेखक-रमाकांत मिश्र एवं रेखा मिश्र

‘‘क्या है यह समाज? मुझे देखिए, सुरुचि के अलावा मैं ने शायद ही किसी औरत को ढंग से देखा हो. लेकिन ज्यादातर लोग मुझे चरित्रहीन समझते हैं. मुझे चरित्रहीन का फतवा सुनाने वालों में कई ऐसे हैं, जो अपनी बेटी या बहन का रिश्ता ले कर आए थे. अगर आज मैं उन के यहां शादी को हां कर दूं तो मैं ठीक हूं, उन्हें शादी से कोई एतराज नहीं. वरना मैं चरित्रहीन हूं. और…बुरा मत मानिएगा, आप को भी लोगों ने बख्शा नहीं होगा,’’ मैं उत्तेजित हो

गया था.

‘‘आप ठीक कहते हैं. मुझ पर… तो पापाजी के साथ लांछन लगाया गया है,’’ ममता कंपकंपाते स्वर में बोली थी.

‘‘फिर भी आप समाज का रोना रो

रही हैं?’’

‘‘तभी तो और सोचना पड़ता है.’’

‘‘नहीं, ऐसा सोचना गलत है. हमें जीने के लिए एक ही जीवन मिला है. अगर हम इसे इस समाज के भय से बरबाद कर दें तो हम से बड़ा मूर्ख कोई नहीं. फिर इस समाज को लालाजी से अधिक तो हम समझ नहीं सकते. अगर वे गलत नहीं समझते तो समाज जाए भाड़ में.’’

ममता चुप रही. मुझे अपनी उत्तेजना पर काबू पाने में समय लगा. न जाने कब से यह सब घुमड़ रहा था. आज गुबार निकला तो कुछ सुकून मिला.

‘‘बच्चों की बात जरूर सोचने वाली है,’’ मैं फिर बोला, ‘‘बच्चों पर पड़ने वाले असर के बारे में हमें जरूर सोचना चाहिए लेकिन अगर हमारा आचरण गरिमामय हो, उन के प्रति स्नेहमय हो, उदार हो तो बच्चों पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा. अगर हमारा परिपक्व व्यवहार हो तो उलटा बच्चों के लिए फायदेमंद ही होगा. फिर कुछ सालों बाद वे निश्चय ही अपना संसार बसाएंगे. तब हम लोग और अधिक अकेले पड़ जाएंगे. मैं तो डरता हूं, कहीं मैं खुद ही अपने बेटे के सुखों से ईर्ष्या न करने लगूं. मैं ने ऐसा होते

देखा है.’’

मैं ने एक सिहरन महसूस की.

‘‘ज्योंज्यों बुढ़ापा आएगा हमें एक सच्चे साथी की उतनी ही अधिक दरकार होगी. मैं मानता हूं कि जरूरी नहीं कि विवाह से बुढ़ापे तक का साथ मिल ही जाए, लेकिन आमतौर पर तो ऐसा ही होता है. और फिर, अगर आदमी अपनी जवानी में संतुष्ट हो जाता है तो उसे बुढ़ापे में कोई मलाल नहीं रहता. अपनी संतानों का हंसनाबोलना उसे गुदगुदाता है, दुखी नहीं करता.’’

‘‘इतना कुछ सोचते हैं, फिर भी आप ने शादी नहीं की?’’

‘‘कहां सोचता हूं इतना कुछ. यह तो, बस, आप के सामने न जाने कैसे एक गुबार सा निकल पड़ा. वरना सोचता तो मैं भी वही हूं जो आप सोचती हैं. पर अब इतना कह कर, इसे मैं प्रतिक्रिया कहूं, अनुभव कहूं या समय का असर कहूं, समझ नहीं पा रहा क्या कहूं, दरअसल, मैं आप से तर्क नहीं कर रहा था, बोल कर सोच रहा था इतना सोच कर अब यों लगता है जैसे हम लोग जरूरत से ज्यादा भावना के अधीन हो गए हैं. ऐसी भावना जो कभी ठोस नहीं हो सकती.’’

‘‘भावना न हो तो पशु और मानव में अंतर क्या रहा?’’

‘‘पशुओं में भावना नहीं होती, यह आप से किस ने कहा?’’

‘‘क्या शादी जन्मजन्मांतर का बंधन नहीं?’’ ममता कुछ नाराज सी हो गई थी.

‘‘मैं भी यही मानता रहा हूं कि शादी जन्मजन्मांतर का बंधन है, लेकिन यह सच नहीं हो सकता. शादी शरीर की होती है और शरीर तो नष्ट हो जाता है.’’

‘‘तो एक मनुष्य, जो नहीं रह जाता, उस से कोई संबंध भी शेष नहीं रह जाता?’’

‘‘सारे संबंध शरीर से होते हैं. शरीर नष्ट हो जाने पर संबंध भी नष्ट हो जाते हैं. मैं अब सुरुचि का पति नहीं हूं. तुम भी बुरा मत मानना, तुम गोपालजी की पत्नी नहीं हो. मैं सुरुचि का विधुर हूं, तुम गोपालजी की विधवा हो. पतिपत्नी का रिश्ता तो तब तक ही है जब तक शरीर है. समाज तो इतना भी नहीं मानता. अगर पतिपत्नी शरीर के जीवित रहते भी एकदूसरे को त्याग दें तो संबंध समाप्त हो जाता है.’’

‘‘मजे की बात देखिए, मरने वाले का सामाजिक संबंध तो वैसे ही शेष रहता है, जैसे मरने से पहले था. मां, पिता, पुत्र, ननद, भाभी, देवर, जेठ कोई भी संबंध अपना नाम नहीं बदलता. केवल पतिपत्नी का ही विधुरविधवा में परिवर्तन हो जाता है. इस से भी यही सिद्ध होता है कि विवाह जन्मजन्मांतर का बंधन नहीं है.

ममता गहरी सोच में डूब गई. सड़क काफी खराब थी. भीड़ भी बढ़ रही थी. मैं चुपचाप कार चलाता रहा. बरेली में मारवाड़ी भोजनालय में हम ने लंच किया. फिर छिटपुट बातें चल पड़ीं. मामाजी के बारे में काफी समय तक बातें होती रहीं. लखनऊ आने पर मैं ने ममता को उस के घर के सामने उतार दिया.

‘‘अंदर नहीं आओगे?’’ ममता ने अजीब से स्वर में कहा.

‘‘अभी नहीं. कभी मेरे घर आना’’, मैं ने यों ही कह दिया.

‘‘जरूर आऊंगी’’, ममता ने कहा तो मैं चौंक पड़ा.

‘‘सुबह ही मिलता हूं मैं’’, मैं ने कहा.

वह हंस दी. मैं ने सलाम की मुद्रा में हाथ उठाया और कार आगे बढ़ा दी.

सुबह घंटी की आवाज से मेरी नींद खुली. रात को मैं काफी देर से

घर लौटा था. अभी मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी. एक बार फिर घंटी बजी.

‘कौन हो सकता है इतनी सुबह’, मैं बड़बड़ाया. मेरी नजर घड़ी की ओर उठ गई. साढ़े 8 बजे थे. घंटी फिर बजी. मैं गाउन की डोरियां कसते हुए स्लीपर में पांव फंसाने लगा. तब तक 3 बार घंटी बज चुकी थी.

मैं ने दरवाजा खोला. सामने ममता को खड़ी देख मेरी नींद गायब हो गई. मैं ने आंखें मलीं, सोचा, सपना तो नहीं देख रहा. जरूर सपना था.

मैं हड़बड़ा कर एक ओर हट गया. ममता अंदर आ गई और ठिठक कर घर का मुआयना करने लगी. अब मुझे अपने ड्राइंगरूम के फूहड़पन का एहसास हुआ. लेकिन जहां कभी कोई आता ही न हो, उस का और कैसा हाल होगा, मैं ने खुद को आश्वस्त किया. लेकिन आश्वस्त न हो सका. सो, शरमाता हुआ बोला, ‘‘बैठो, वो क्या है कि मैं अभी सो रहा था. आज रविवार है न. अभी राजू आएगा, ठीक करेगा सब.’’

ममता कुछ न बोली. एक सोफे पर बैठ गई. मैं कुछ देर यों ही खड़ा रहा. फिर बोला, ‘‘मैं चाय बनाता हूं’’, मन ही मन सोच रहा था कि रसोई में

कुछ होगा भी या सिर्फ चाय पर गुजर करनी पड़ेगी.

‘‘तुम फ्रैश हो लो, मैं चाय बनाती हूं’’, ममता उठते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं’’, मैं सकपका गया. रसोई की हालत तो और बुरी थी. मैं खुद ही रसोई की ओर लपकते हुए बोला, ‘‘तुम मेहमान हो. तुम बैठो, मैं चाय बनाता हूं.’’

लेकिन ममता मेरे पीछेपीछे ही जब किचन की ओर चल पड़ी, तो मुझे कुछ न सूझा. एक क्षण को सोचा, मैं भी साथ जाऊं, पर हिम्मत न पड़ी. मन ही मन मैं यह सोचते हुए, ‘अब जरूर पिएगी यह चाय’, मैं ऊपर को लपक लिया.

टौयलेट से निबट कर जब मैं नीचे आया, तो डायनिंग टेबल पर टीसैट के साथ हौटकेस देख कर चौंका.

‘‘कितनी चीनी लोगे?’’

‘‘दो.’’

ममता ने हौटकेस खोल कर मेरी ओर बढ़ा दिया. वह चाय बनाने लगी. मैं ने चुपचाप 2 टोस्ट प्लेट में रख लिए और हौटकेस ममता की ओर बढ़ा दिया.

‘‘यह तो घर में नहीं था’’, मैं टोस्ट कुतरते हुए बोला.

‘‘मोड़ पर ही तो दुकान है’’, ममता ने सहज स्वर में कहा.

एकाएक मेरे गले में टोस्ट फंस गए. मैं ने खुद को संभाला, पर मेरी आंखें डबडबा आईं.

‘‘क्या हुआ?’’ मेरे चेहरे के भाव ममता से छिपे न रह सके. पानी का गिलास बढ़ाते हुए उस ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं’’, परेशानी दिखाते हुए मैं ने कहा.

फिर हम चुपचाप चाय पीते रहे. चाय के बाद ममता चाय का सामान समेटने लगी, तो मैं हड़बड़ा कर बोल पड़ा, ‘‘न…न…क्या करती हो? मैं करता हूं.’’

‘‘रहने दो’’, ममता ने मुसकरा कर कहा और अपना काम करती रही. मैं कुछ न कर पाया.

किचन से वह लौटी तो बोली, ‘‘घर नहीं दिखाओगे अपना?’’

‘‘घर?…हां. वो…क्यों नहीं’’, मैं ने उठते हुए कुछ हकलाते हुए कहा.

मैं ने उसे नीचे का बैडरूम दिखाया. फिर पिछले बरामदे से पीछे उसे झाड़झंखाड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘किचन गार्डन.’’

‘‘सामने का आलीशान लौन तो तुम देख ही चुकी हो’’, मैं ने व्यंग्य से कहा, ‘‘यह उसी परंपरा का विस्तार है.’’

‘‘लेकिन इस बैडरूम से तो ऐसा नहीं लगता कि तुम इस में रहते हो?’’ बैडरूम से बाहर निकलती हुई ममता बोली.

‘‘मैं ऊपर रहता हूं.’’

‘‘वह नहीं दिखाओगे?’’

‘‘वो…वहां कुछ नहीं है, वहां.’’

‘‘वहां कोई दूसरी औरत नहीं जा सकती न?’’

‘‘नहीं…नहीं…ऐसा कुछ नहीं. तुम से किस ने कहा. तुम चलो’’, मैं ने हड़बड़ा कर कहा.

‘‘रहने दो’’, ममता बोली.

‘‘नहीं, चलो, देख लो. वरना मेरे मन में कचोट रह जाएगी’’, मैं ने मनुहार की.

मैं ममता को ऊपर ले आया. ममता कमरे को देखती रही, फिर वह सुरुचि की तसवीर के सामने जा खड़ी हुई.

‘‘इस कमरे में घुसने के कारण ही तुम ने उस लड़की को निकाल दिया था न?’’

‘‘तुम्हें कैसे मालूम?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वह लड़की अब मेरे पास काम करती है. उसी ने मुझे बताया कि तुम कितने अकेले हो. तुम ने उसे गलत समझा था. वह तुम्हारी देखभाल जरूर करना चाहती थी, लेकिन सुरुचिजी का स्थान लेने के लिए नहीं. तुम से प्रभावित हो कर, सुहानुभूतिवश. उस दिन जब तुम मुझे उतार कर गए तो उस ने तुम्हें देखा था. बाद में वह मुझ से पूछने लगी कि मुझे तुम ने कार में कैसे बैठा लिया. वह कहती है कि तुम कार में किसी औरत को भी कभी नहीं बैठाते. सच?’’

‘‘मैं ने मुसकरा कर टालने की मुद्रा में सिर हिला दिया.’’

‘‘उसी ने मुझे बताया कि तुम बहुत अच्छे आदमी हो. वह तुम्हारी बहुत इज्जत करती है. कहती है कि तुम अकेले आदमी मिले हो जिस ने उसे कभी मैली नजर से नहीं देखा.’’

‘‘तब तो मैं ने उस के साथ बड़ी नाइंसाफी की. उस से कह देना कि मैं शर्मिंदा हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘कैसी अजीब दुनिया है. उस बेचारी ने किसी से कुछ भी नहीं कहा. लोगों ने खुद ही गढ़ लिया कि मैं उस पर बुरी नीयत रखता था. ओह…तभी’’, मेरे मुंह से निकला.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘काम वह बहुत अच्छा करती थी. दीवाली के पहले का समय था, उस ने घर की सफाई में बड़ी मेहनत की. मैं खुश हो कर उसे 100 रुपए देने लगा, तो एकदम से दूर हट गई और कहने लगी, यह तो मेरी ड्यूटी है, मुझे पैसा नहीं चाहिए. मैं ने कहा भी कि मैं खुश हो कर दे रहा हूं तो भी उस ने लिए नहीं. बस, हाथ जोड़ दिए. हालांकि मुझे बुरा भी लगा, लेकिन फिर उस पर मैं ने अधिक गौर नहीं किया. आज समझ में आया कि वह क्या समझी होगी’’, मैं हंसने लगा.

ममता भी हंस पड़ी.

‘‘यहां तो बैठने को भी कुछ नहीं. आओ, नीचे चलते हैं.’’

‘‘अभी मैं इस कमरे को और देखना चाहती हूं. इस पलंग पर बैठ जाऊं?’’

मजबूर हो कर मुझे भी उस के साथ पलंग पर बैठना पड़ा. ममता बड़े आराम से घुटने मोड़ कर बैठ गई थी. काफी समय तक बातचीत के बाद मैं ने लंच के लिए कहा, तो वह बोली, ‘‘घर में बने तो जरूर.’’

उस के बाद उस ने मुझे जरूरी सामान की सूची बना कर दी. मैं बाजार से सामान लाया. खाना उस ने ही बनाया. राजू की आज बड़ी मशक्कत हुई, लेकिन वह खुश नजर आ रहा था. ‘दीदी, दीदी’, मुसकराते हुए वह जीजान से जुटा रहा और उस ने ड्राइंगरूम, बाथरूम, रसोईघर सब चमका डाले. मैं नहाने चला गया. कपड़े धोने के बाद राजू न जाने कहां से एक तलवार और फावड़ा ले आया था. सामने का लौन बिलकुल दुरुस्त कर के वह पीछे के किचन गार्डन में जुट गया.

मौन और भरेदिल से मैं ने खाना खाया. खाना बहुत अच्छा बना था, लेकिन जाने क्यों मेरे गले में नहीं उतर रहा था. राजू को खाना खिला कर ममता ने 50 रुपए दिए. राजू लेने में आनाकानी करने लगा, तो उस ने उस की कमीज की जेब में डाल कर उस के सिर पर एक चपत लगा दी.

‘‘आप रोज आओगी दीदी?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘आप आई हो न, तो बड़ा अच्छा लग रहा है.’’

‘‘आऊंगी.’’

राजू बरतन साफ कर के रसोई घर को व्यवस्थित कर के चला गया. राजू के जाने के बाद हम बात न कर सके. कुछ देर बैठी रहने के बाद ममता रसोई में चली गई. वह थोड़ी देर बाद लौटी तो उस के हाथों में 2 कप थे. कौफी की सुगंध दूर से ही मेरी नाक में समा गई. मैं खुद को रोक न पाया और फफक कर रो पड़ा.

ममता ने कुछ नहीं कहा. जब मैं खुद को रोक न सका, तो बाथरूम जा कर हाथमुंह धो आया. वापस आ कर नजरें नीची किए मैं कौफी पीता रहा. माहौल में एक अजीब सा खालीपन, बोझिलता फैल गई. चुप्पी छाई रही.

‘‘आज का दिन बहुत अच्छा गुजरा.’’ ममता कौफी के कप रसोई में रख आई थी. एकाएक बोली, ‘‘अब इजाजत दो, चलूंगी. शाम ढल रही है.’’

मैं ने सिर उठा कर ममता की ओर देखा. जो कहना चाहता था उसे जबान पर लाने की हिम्मत न हुई. वह मुसकराई.

‘‘अच्छा’’, वह उठ खड़ी हुई.

मैं भी थकाथका सा उठ खड़ा हुआ. दरवाजे से बाहर आ कर मुझे लगा कि ममता अपनी गाड़ी नहीं लाई है.

‘‘तुम जाओगी कैसे?’’

‘‘टैक्सी मिल जाएगी.’’

‘‘नहीं, ठहरो, मैं तुम्हें छोड़ कर

आता हूं.’’

‘‘क्यों तकल्लुफ करते हो.’’

‘‘2 मिनट रुको, मैं चाबी उठा लूं.’’ उस की बात अनसुनी करते हुए मैं ने कहा और अंदर चला गया. 3 मिनट में मै ने कपड़े बदले और बाहर आ गया. वह बरामदे में मोढ़े पर बैठी थी. मैं ने देखा कि पड़ोस की एकदो औरतें उसे बड़े गौर से देख रही थीं.’’

‘‘चलें’’, मैं ने कहा.

वह उठ खड़ी हुई. रास्ते में हम दोनों चुप ही रहे. मैं ने कार ममता के घर के गेट के सामने रोकी. ममता ने कार का दरवाजा खोलने को हाथ बढ़ाया.

‘‘ममता’’, मैं ने उसे पहली बार नाम से पुकारा.

उस ने पलट कर मेरी ओर देखा.

‘‘मत जाओ, ममता’’, मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

एकाएक वह पत्ते सी कांप उठी. मैं ने पास सरक कर उस का कंधा थपथपाया. वह अपने को रोक न सकी. मेरे कंधे पर सिर रख कर थरथर कांपती फूटफूट कर रो पड़ी.

अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश में थरथराता मैं यह नहीं देख पाया कि कब निर्मला बाहर निकली और हमें यों एकदूसरे की बांहों में देख कर अंदर गई और शरारत से मुसकराती हुई लालाजी को बाहर बुला लाई. लालाजी ने उस के सिर पर एक चपत लगाई और मुसकराते हुए खुद अंदर चले गए और उसे हमें बुलाने को कह गए.

भीतर जा कर मैं ने लालाजी के पांव छूने चाहे तो वे पीछे हट गए. ‘‘न…न भई, क्यों नरक में ढकेलते हो. तुम ब्राह्मण

हो, मैं कायस्थ हूं, मुझे तुम्हारे पैर

छूने चाहिए.’’

‘‘बेटा तो पिता के पैर छुएगा न?’’ मैं ने कहा.

‘‘बेटा?’’ लालाजी असमंजस में बोले.

‘‘ममता आप की बहू है. उस का हाथ तो मैं तभी थाम सकता हूं जब आप मुझे अपना बेटा बना लें.’’

लालाजी की आंखों में आंसू आ गए. मैं ने झुक कर उन के पैर छुए तो अनायास ही वे मेरे सिर को सहलाने लगे. फिर उन्होंने झुक कर मेरे कंधे पकड़े और मुझे अपने सीने से लगा लिया. बहुत देर तक वे मुझे यों ही सीने से लगाए रहे. उन के आंसू मेरे कंधे को भिगोते रहे. मुझे यों लग रहा था जैसे तपती धूप से निकल कर किसी ठंडी हवा वाली जगह पर आ गया हूं. मन की वर्षों की सिसिजाहट जाने कहां गायब हो गई. विश्वास से मन भीग उठा.  द्य

ऐसा भी

होता है

मेरे बहनोई रोटरी क्लब के प्रैसिडैंट हैं. अकसर उन की टीम अस्पतालों, अनाथालयों व दूसरी ऐसी ही जगहों

पर जाती है. वहां वे मुफ्त दवाएं,

कंबल आदि चीजें जरूरतमंदों में

बांटते हैं.

एक बार वे ढेर सारी चीजें ले कर अनाथालय गए. वहां उन्होंने वे चीजें बच्चों को दीं. सभी बच्चे उछलउछल कर खुश हो रहे थे. आइए उन्हीं की जबानी सुनते हैं, ‘‘जीजी, मैं ने देखा कि एक बच्चा घने बरगद के साए तले उदास बैठा हुआ था. वह मेरे पास नहीं आया,  न ही उस ने कोई चीज ली. मैं ने उसे गोद में उठा कर पूछा, ‘बेटा, तुम्हें कुछ नहीं चाहिए?’

‘‘वह उदास स्वर में बोला, ‘मुझे सिर्फ बैटबौल चाहिए. सर, क्या आप मुझे वह ला देंगे. मेरे पापा कह कर गए थे कि वे जरूर मेरे लिए बैटबौल लाएंगे मगर मैं रोज उन का इंतजार करता हूं. रोज इस बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाता हूं. उन की राह ताकता रहता हूं लेकिन वे नहीं आते.’ यह कह कर वह खामोश हो गया. उस की आंखों में गजब का

दर्द था.

‘‘‘बेटा, अगली बार जरूर ला दूंगा,’ ‘‘कह कर मैं वहां से वापस आ गया

और वक्त के साथ यह बात भूल

भी गया. बात आईगई हो गई. इत्तफाक से नए साल पर मुझे वहां फिर

जाना पड़ा.

‘‘मैं ने देखा, वह मासूम उसी तरह बैठा है. मुझे देखते ही वह भाग कर आया और अपने छोटेछोटे हाथ मेरी तरफ बढ़ कर बोला, ‘सर, मेरा सामान लाए हैं?’

‘‘मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी. मैं शर्मिंदा हुआ. उस की दर्दभरी आंखों में एक उम्मीद सी जगी. वह मुझ से बोला, ‘मैं तब से आप का इंतजार कर रहा हूं.’ मैं उसी वक्त पलटा, कार स्टार्ट की और मार्केट जा कर वहां से सब से बढि़या बैटबौल ला कर उसे दिया.

‘‘मैं सच कह रहा हूं इतनी खुशी मैं ने कभी भी किसी के चेहरे पर नहीं देखी. उस की आंखों की चमक के आगे तो चांदतारों की चमक भी फीकी थी. और मैं तो इतना खुश जिंदगी में कभी भी नहीं हुआ जितना कि उसे खुश देख कर हुआ.’’

शोभा माथुर बिजेंद्र

 

हमसफर- भाग 3 : लालाजी की परेशानी वजह क्या थी ?

लेखक-रमाकांत मिश्र एवं रेखा मिश्र

ममता का रेल टिकट स्कूल स्टाफ को सौंप कर हम लोग सुबह पौ फटने से पहले ही निकल पड़े. इतनी सुबह चलने का कारण यह भी था कि हम आंदोलन वाले इलाके से सुबह जल्दी निकल जाएं. सुबह 6 बजे से पहले हम हरिद्वार में थे. एक रिसोर्ट में रुक कर फ्रैश हुए, फिर चल पड़े.

रेलवे स्टेशन से पहले एक बढि़या सा रैस्तरां देख कर मैं ने कार रोकी. नाश्ते के दौरान भी हम चुप ही रहे. 15-20 मिनट में नाश्ते से निबट कर हम फिर चल पड़े.

‘‘अब आप लखनऊ में रहते हैं?’’ ममता ने ही चुप्पी तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, 9 साल हो गए. अब लखनऊ कुछ भाने लगा है. सोचता हूं, यहीं बस जाऊं.’’

‘‘कानपुर में तो शायद आप का अपना मकान था?’’

‘‘नहीं, किराए का था. यहां महानगर में जरूर एक डूप्लैक्स ले लिया है.’’

‘‘चलिए, अच्छा है. अपना घर तो होना ही चाहिए.’’

‘‘घर तो नहीं है, मकान जरूर है’’, मैं ने निराशाभरे स्वर में कहा.

‘‘आप ने अभी तक…?’’ ममता ने बात अधूरी छोड़ दी.

मैं फीकी हंसी हंसा, ‘‘और आप ने…?’’ कुछ देर बाद मैं ने पूछा.

उस ने भी एक फीकी सी हंसी हंस दी.

फिर हम काफी समय तक चुप रहे. कार में भर उठी उदासी को दूर करने के मकसद से मैं ने पूछ लिया, ‘‘आप कुछ कर रही हैं क्या?’’

‘‘हां, टाइम काटने के लिए एक बुटीक खोला है.’’

‘‘सचमुच? कहां पर?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हजरतगंज में.’’

‘‘अप्सरा तो नहीं?’’ मैं ने ममता की ओर देखा.

‘‘जी’’, उस ने सिर हिला कर कहा.

अप्सरा 2 वर्ष पहले ही शुरू हुआ था और आज की तारीख में लखनऊ में फैशनपसंदों की पहली पसंद है.

‘‘अप्सरा तो लखनऊ की शान है.’’

‘‘लोगों की मेहरबानी है?’’

‘‘लालाजी कैसे हैं?’’

‘‘ठीक ही हैं’’, ममता के स्वर में गहरी निराशा थी.

‘‘क्या बात है?’’ मैं पूछे बिना न रह सका.

ममता मौन रही. जैसे सोच रही हो कि इस बारे में कुछ बात करे या नहीं. आखिरकार, उस ने मौन तोड़ा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि पापाजी मुझ से क्या चाहते हैं. अब कहते तो कुछ नहीं लेकिन मैं जानती हूं कि दिनोंदिन मेरी चिंता में घुलते जा रहे हैं,’’ उस की आवाज नम हो गई.

मुझे समझ में नहीं आया कि क्या कहूं.

‘‘कभीकभी तो लगता है कि उन का कहना न मान कर मैं गलती कर रही हूं,’’ थोड़ी देर के बाद ममता ने कहा.

मैं बहुत कुछ कहना चाहता था, लेकिन सही मौका नहीं मिल पा रहा था. मैं एक द्वंद्व में फंस गया था. एक ओर मेरी भावनाएं थीं, तो दूसरी ओर मेरे अनुभव. शायद ममता के मन में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था. हम कुछ कह नहीं पा रहे थे. मैं खामोशी से कार चलाता जा रहा था.

नजीबाबाद आ गया था. यहां की चाय मशहूर है. मैं ने एक घूंट गले में उतार कर बात शुरू की.

‘‘तुम कह रही थीं कि कभीकभी लगता है कि गलत कर रही हो.’’

ममता ने आश्चर्य से मुझे देखा. मैं कब और कैसे आप से तुम पर आ गया था, पता नहीं चला.

‘‘मुझे तो लगता है,’’ मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘बल्कि यह कहना चाहिए कि विश्वास होता जा रहा है कि हम गलत कर रहे हैं. मैं अपनी बात बताता हूं, आज भी सुरुचि मेरे मन में वैसे ही बसी हुई है. उस की यादें मुझे जीने नहीं देतीं. मैं सामान्य नहीं रह पाता. कहने को घर जरूर है, लेकिन मैं कभीकभी 2 बजे रात से पहले घर नहीं लौटता, कभी घर के किचन में खाना नहीं बनता. जानबूझ कर आधी रात तक काम करता रहता हूं.

‘‘थक कर चूर हो कर घर लौटता हूं, लेकिन घर आने को दिल नहीं करता. घर जैसे काटने को दौड़ता है. बिस्तर पर लेटता हूं तो नींद नहीं आती. उठ कर बैठता हूं तो सूनापन जैसे रोमरोम में सुईयां चुभोने लगता है. दोस्तों ने कहा कि शादी नहीं करते न करो, यों ही इधरउधर कुछ कर लो. तुम से… क्या बताऊं… एक बार एक दोस्त ऐसी भी जगह ले गया. चला तो गया, लेकिन वहां जा कर ऐसा अफसोस हुआ कि क्या बताऊं.

‘‘मैं वापस लौट आया. मुझ से उस गंदगी में…’’ मैं थोड़ी देर चुप रहा. फिर बोलने लगा, ‘‘उस दिन घर आ कर बहुत रोया. बस, एक ही संतोष था कि गिरतेगिरते बच गया था. दोस्तों ने सलाह दी, शराब पियो, सब भूल जाओगे. लेकिन संस्कार कुछ ऐसे हैं कि कभी पी नहीं सकता,’’ फिर एक पल को चुप हुआ. चाय के कुछ घूंट भरे.

‘‘होटलों में खाता हूं, क्योंकि खाना बनाना नहीं आता. पहले एक नौकर रखा तो वह घर में उलटेसीधे लोगों को ले आता था. उसे निकाला तो एक लड़की रखी. उसे घर से ज्यादा मेरी देखभाल की फिक्र थी. निकाल दिया तो सुनता हूं कि पड़ोसियों से कह गई कि मैं उस पर बुरी नजर रखता था. विश्वास करोगी, लेकिन यह सच है कि मैं ने आज तक किसी को बुरी नजर से नहीं देखा.’’

ममता कुछ न बोली.

‘‘अब नौकर रखते हुए डरता हूं. अड़ोसपड़ोस में शायद ही कोई मुझे शरीफ आदमी समझता हो. कोई न मुझे अपने यहां बुलाता, न कोई मेरे यहां आता है. मैं खुद भी न तो किसी के यहां जाना चाहता हूं न किसी को बुलाना चाहता हूं.’’

ममता ध्यान से मेरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं क्या करूं? शादी मैं करना नहीं चाहता और दूसरा कोई रास्ता बचता नहीं जिस से मेरा सूनापन, जो मुझे दिनोंदिन खाए जा रहा है, खत्म हो सके. तुम अगर लालाजी की बात मान लो तो उस का अच्छा परिणाम होगा.’’

ममता मेरे इस सीधे हस्तक्षेप पर चुप न रह सकी. वह बोली, ‘‘लेकिन हमें अपना ही सुख तो नहीं सोचना चाहिए. हमारे बच्चे भी तो हैं. उन पर क्या असर पड़ेगा? क्या वे इसे स्वीकार कर पाएंगे? आप खुद तैयार नहीं हैं और मुझे कह रहे हैं, जबकि आप के लिए तो यह सब आसान है. सामाजिक तौर पर एक आम बात है.

‘‘नहीं…नहीं, मैं आप पर आक्षेप नहीं कर रही हूं. आप की तो मैं इज्जत करती हूं. आप तो महान हैं. मैं तो आम बात कर रही हूं. हमारे समाज में मर्द की दूसरी शादी आम बात है. लेकिन विधवा, वह भी बच्चे वाली विधवा और ऊपर से एक लड़की की मां, का विवाह तो असाधारण नहीं वरन घृणित माना जाता है. एक क्षण के लिए मान लीजिए मैं विवाह कर भी लूं तो मेरी तो जो दुर्गति होनी है होगी ही, कल मेरी बेटी की शादी किसी ठीक लड़के से होनी मुश्किल हो जाएगी.’’

ममता की बातों ने मुझे कहीं गहरे झकझोर दिया और मैं जो कुछ आज तक सोचता आया था, उस के विपरीत विचारों में उलझ गया.

‘‘चलिए, काफी समय हो गया,’’ मुझे विचारों में उलझा देख कर ममता ने कहा.नजीबाबाद की ऊबड़खाबड़ सड़कों से निकल कर जब हम थोड़ी अच्छी सड़क पर पहुंचे तो मैं ने फिर बात शुरू की.

‘‘मैं आप की बातों से पूरी तरह सहमत नहीं हूं. मैं मानता हूं कि समाज एक विधवा का विवाह आज भी सहजता से नहीं लेता, लेकिन समाज है क्या? आज इस समाज में एक भी भ्रष्टाचारी, दुराचारी आदमी का विरोध करने का दम है? आज सब जगह धन और बल की पूजा हो रही है. ऐसे समाज पर हम

अपना जीवन क्यों न्योछावर करें, जिसके न कोईर् सिद्धांत रह गए हैं न कोई जीवन मूल्य.

हमसफर- भाग 2 : लालाजी की परेशानी वजह क्या थी ?

लेखक-रमाकांत मिश्र एवं रेखा मिश्र

‘‘मुझे ऐसा कोई खास काम नहीं करना है,’’ ममता सहजता से बोली.

मैं चुप हो गया. मुझे अचानक ममता के साथ धोखा करने का गहरा अफसोस हुआ.

‘‘मैं आप के साथ हुए हादसे से वाकिफ हूं. आप तो जानती हैं कि मैं भी कमोबेश ऐसी ही परिस्थिति का शिकार हूं. यद्यपि यह मेरा बेवजह दखल ही है, इसलिए मैं कहूंगा कि आप का इतना अधिक दुख में डूबे रहना कि दुख आप के चेहरे पर झलकने लगे, आप के और आप की बेटी दोनों के लिए अच्छा नहीं है,’’ मैं ने बातचीत शुरू कर दी.

ममता चुप रही. जैसे मेरी बात को तौल रही हो. फिर बोली, ‘‘मुझे चाचाजी ने आप के बारे में बताया था. सच कहूं तो आप के बारे में जान कर मुझे बड़ा सहारा मिला. चाचाजी ने मुझे बताया कि आप ने दोबारा शादी करने से इनकार कर दिया है. आप के इस फैसले से मुझे कितना भरोसा मिला, मैं बता नहीं सकती,’’ कह कर ममता एक पल को रुकी, फिर बोली, ‘‘मुझे आप की बात से कोई विरोध नहीं, लेकिन मैं क्या करूं? उन को मैं भूल नहीं सकती. मेरे सुख तो वही थे. बच्ची के साथ रहती हूं तो हंस जरूर लेती हूं, लेकिन मन से नहीं. सच तो यह है कि हंसी आती ही नहीं और न ही ऐसी कोई इच्छा बची है.’’

‘‘मेरे साथ भी ऐसा ही है,’’ मैं ने स्वीकार किया.

मैं और ममता दोनों ही चुप हो गए. दोनों के एहसास एक से थे. आखिरकार, मैं ने तय किया कि ममता को धोखा देना ठीक न होगा. न मैं शादी कर सकता था और न ममता. इसलिए ठीक यही था कि ममता को सब बता दिया जाता.

तभी कमला चाय ले आई. ममता ने चाय का प्याला मुझे दिया. बिस्कुट लेने से मैं ने इनकार कर दिया तो ममता ने ज्यादा इसरार नहीं किया. चाय के घूंट भरने के बाद मैं ने अपनी बात शुरू की.

‘‘मैं, दरअसल यहां पर जबरदस्ती भेजा गया हूं, क्योंकि मामाजी और लालाजी दोनों ही इतने भले इनसान हैं कि मैं उन से इनकार नहीं कर पाया.’’

ममता ध्यान से सुन रही थी.

‘‘आप तो जानती ही हैं कि लालाजी आप की शादी कर देना चाहते हैं. उन्होंने मामाजी से अपनी इच्छा बताई तो मामाजी ने मुझ से कहा. हालांकि, मामाजी भी अच्छी तरह जानते हैं कि मैं दूसरी शादी की सोचता भी नहीं. अब न तो मैं राजी था, न आप राजी थीं, इसलिए दोनों ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि मैं यहां आनाजाना शुरू करूं और आप से मेलजोल बढ़ाऊं. मुझे यह भी निर्देश है कि मैं यह सब आप को कतई न बताऊं. लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं न आप को धोखा दे सकता हूं न खुद को. जिस तरह हम लोग अपनेअपने दिवंगत जीवनसाथियों से जुड़े हैं, ऐसा कुछ हो पाना नामुमकिन है. इन लोगों की बात रखने के लिए मैं 2-1 बार यहां आऊंगा और फिर इन से कहूंगा कि ऐसा हो पाना संभव नहीं है.’’

मेरे चुप होते ही ममता का सिर इनकार में हिलने लगा. वह उठ कर खड़ी हो गई. मैं भी खड़ा हो गया.

‘‘आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे. मैं आप की आभारी हूं कि आप ने सच बता कर मुझे इस घृणित प्रस्ताव से बचा लिया. मैं आप से गुजारिश करना चाहती हूं कि अब आप आइंदा कभी इस घर में मत आइएगा. न ही मुझ से, कहीं पर भी, मिलने की कोशिश कीजिएगा’’, ममता ने हाथ जोड़ दिए.

मैं ने हाथ जोड़ कर उसे नमस्कार किया और वापस कानपुर लौट आया.

मेरी खुद विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी. इसलिए मैं ने खुद को हलका महसूस किया. मामाजी से मैं ने सिर्फ इतना बताया कि ममता राजी नहीं है. मामा ने कुछ नहीं पूछा. मैं ने अनुमान लगाया कि मेरे स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ मामाजी ने यह अनुमान लगा लिया होगा कि मैं ने ममता को सच बता दिया है.

समय बीतता रहा. मेरा तबादला कानपुर से लखनऊ हो गया. लेकिन मेरी फिर कभी न तो लालाजी से और न ही ममता से मुलाकात हुई. वर्षों गुजर गए.

विपुल देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा था. अक्तूबर में उस का वार्षिकोत्सव था. मैं अपनी व्यस्तता के कारण भूल चुका था कि मुझे वहां जाना है. उत्सव के 2 दिनों पहले विपुल का फोन आया तो मैं हक्काबक्का रह गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं आ रहा हूं.’’

स्टेशन फोन करने पर पता चला कि यहां से चलने वाली दोनों गाडि़यों में लंबी वेटिंग लिस्ट चल रही है. सो, रेल में धक्के खाने के बजाय मैं ने अपनी टू सीटर कार से ही देहरादून जाना तय किया.

मैं सही समय पर स्कूल पहुंच गया. मुझे कार से आया देख कर विपुल बहुत खुश था. 3 दिन यों ही गुजर गए. कार्यक्रम बहुत सफल रहा. रात में अभिभावकों का सामूहिक भोज था. वहां पर अनायास ही मेरी मुलाकात ममता से हो गई. ममता ने मुझे नमस्कार किया. मैं ने भी नमस्कार किया. ममता के बालों में सफेदी झकलने लगी थी. लेकिन अपने सादा लिबास में वह बहुत भली लग रही थी. हम लोग अधिक बात नहीं कर पाए. उस की बेटी नेहा भी उसी स्कूल में थी.

अगले दिन सुबह सभी विदा हो रहे थे, लेकिन इस इलाके में उत्तराखंड आंदोलन की वजह से चक्का जाम था. 3 दिन का बंद था. रेलें तक स्थगित हो गई थीं. मजबूरन सभी को रुकना पड़ा. दूसरे दिन प्राइवेट गाडि़यों को जाने की छूट मिली. जिन लोगों के पास अपनी गाडि़यां थीं, उन्होंने अपने रास्ते के लोगों से लिफ्ट की पेशकश की. मैं ने भी लखनऊ तक के लिए किसी एक आदमी को लिफ्ट देने की पेशकश की.

ममता यह जान कर कुछ असमंजस में पड़ी कि उसे मेरे साथ अकेले जाना पड़ेगा. लेकिन फिर वह तैयार हो गई.

 

मजदूरों के लिए रहे मौन रैलियों के लिये करोडो का खर्च     

जब बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के तमाम राज्यों के मजदूर सडकों पर भूखे प्यासे मर रहे थे तब पार्टी स्तर पर भाजपा ने आगे बढ कर इनके लिये किसी सुविधा का काम नहीं किया. अब जब वोट लेने का वक्त आ रहा है तो करोडों के बजट से भाजपा वर्चुअल रैलियां कर रही है.

बिहार, पश्चिम बंगाल और उडीसा में भाजपा की वर्चुअल रैलियां चुनावी है या नहीं. यह बहस का मुददा बन गया है. तीन राज्यों में से बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव नजदीक है. ऐसे में भाजपा की यह रैलियां पूरी तरह राजनीतिक नही है भाजपा के इस तर्क में दम नहीं है. वर्चुअल रैलियांे के जरिये भाजपा ने विरोधी दलों को अपनी ताकत दिखाने के साथ बूथ स्तर तक पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय करने का काम किया है. जिसको चुनाव पूर्व की कवायद माना जा रहा है. एक तरफ देश कोरोना संकट से गुजर रहा है. अगर भाजपा के पास मजबूत तंत्र और साधन है. तो उसे इसका प्रयोग जनता को कारोना संक्रमण और इस दौरान बने दूसरे सकंट से बचाने में मदद के रूप मे इस्तेमाल करना चाहिये था. कोरोना संकट के दौर में गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के दूसरे बडे नेता कम ही मौको पर दिखाई दिये. आज जब वोट लेने का समय आ रहा तो भाजपा वर्चुअल रैलियांे के जरीये जनता के बीच अपनी घुसपैठ बनाना चाहती है.

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समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कहते है कि भाजपा की वर्चुअल रैलियांे पर 150 करोड रूपया खर्च हुआ होगा. कोरोना सकंट के दौरान जब पूरा देश आर्थिक बदहाली से गुजर रहा हो उस समय सत्ताधारी दल जनता की मदद करने की जगह पर वर्चुअल रैलियां कर रहा हो तो उसकी मानसिकता को समझा जा सकता है. भाजपा ने इन रैलियों को सफल बनाने के लिये प्रति बूथ एक एलईडी टीवी और उसको चलाने के लिये टेक्नलौजी का प्रबंध किया था. इस पर आने वाला खर्च कम नहीं होगा. पश्चिम बंगाल में कुल 80 हजार बूथ है. भाजपा का दावा है कि 65 हजार बूथ पर उनकी बूथ कमेटी बनी है. अब 65 हजार बूथ पर एलईडी का इंतजाम कम से भाजपा को करना पडा होगा. इसी तरह से उडीसा और बिहार में भी हजारों की संख्या मे बूथ है. इनके प्रंबंध में करोडो का बजट भाजपा को करना पडा होगा.

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जिस देश में कोरोना संकट के बाद मजदूरों के पास पैदल घर पहंुचने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. भूख प्यास का कोई प्रबंध नहीं था. भाजपा ने अगर बूथ स्तर तक मजदूरों की मदद का संकल्प इसी तरह से किया होता तो शायद मजदूरों के यह हालत नहीं होते. प्रवासी मजदूरों में सबसे बडी संख्या बिहार और पश्चिम बंगाल के रहने वाले मजदूरों की रही है. ऐसे में क्या वहां के लोगों पर वर्चुअल रैलियांे का कोई प्रभाव पडेगा ? यह सोचने वाली बात है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते है कि बेरोजगारी आत्महत्या का रूप ले रही है. कोरोना के सच को झूठलाकर भाजपा चुनाव में व्यस्त हो गई है. भाजपा जब बेरोजगारी और भुखमरी को समस्या ही नहीं मान रही तब इसका हल क्या करेगी ?

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