मेरे बाबूजी एक विशाल व्यक्तित्व थे. ‘सादा जीवन उच्च विचार’ सिद्धांत पर चलने वाले मेरे बाबूजी बचपन में ही अनाथ हो गए थे. रिश्तेदारों की मदद से किसी तरह पढ़ाई कर, साथ ही अपना गुजारा करने लायक काम कर बड़े हुए. उन की हिंदी, अंगरेजी उर्दू व मराठी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. पढ़ने के शौकीन बाबूजी अपने अतिव्यस्त जीवन में जब भी मौका मिलता, पढ़ते ही दिखते.

बाबूजी ने हम भाईबहनों में कभी भेदभाव नहीं किया. बचपन में मेरी मां के गुजरने के बाद, उन्होंने, अकेले ही हम  7 भाईबहनों की परवरिश की और हम सब को एक स्वस्थ माहौल दिया. समय से चारों बहनों का ब्याह अच्छा घरवर देख कर किया.

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हमारे घर में अतिथि का बहुत सम्मान और सत्कार बिना किसी भेदभाव (अमीरगरीब) के होता था. आज हम सभी भाईबहनों के आतिथ्य की मिसाल दी जाती है. बाबूजी को सभी बाबूजी ही पुकारते थे चाहे किसी से कोई भी रिश्ता हो. बाबूजी सभी के बाबूजी थे. कर्मकांड विरोधी, आडंबर विरोधी साफसुथरी सोच वाले प्रगतिशील विचारों के मेरे बाबूजी ने हमें भी इन सब से दूर रखा.

मेरे छोटे भाई के क्रिश्चियन लड़की से विवाह करने पर हम भाईबहनों को तो उन्हें स्वीकारने में वक्त लगा पर बाबूजी ने पहले दिन ही उन्हें स्वीकारा और अपनी ओर से स्वागतसमारोह भी आयोजित किया. आज बाबूजी हमारे साथ नहीं हैं पर हमारे जेहन में वे हमेशा रहते हैं.

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निर्मला राजेंद्र मिश्रा

  • मैं एमए (उतरार्द्ध) में पढ़ रही थी. विभागाध्यक्षजी के पुत्र के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण मैं निराशा के भारी दौर से गुजर रही थी. आशा की एक छोटी सी किरण मन में थी कि शायद पूर्वार्द्ध की भांति ही सर्वोच्च अंक प्राप्त कर सकूं. एक समारोह में विभागाध्यक्षजी से सामना हुआ. मैं ने चरणस्पर्श तो कर लिया परंतु बाद में पापा से कहा कि उन का (विभागाध्यक्षजी का) चरणस्पर्श करने का क्या फायदा जब वही मेरे सफलता के मार्ग में बाधक हैं.

तब मेरे पिता ने मुझे समझाते हुए कहा कि उन के द्वारा दिया गया आशीर्वाद ही तुम्हारा पथ प्रशस्त करेगा. तुम्हारे पास उन का और तुम्हारे पिता दोनों का आशीर्वाद है लेकिन उन के पुत्र के पास तुम्हारे पिता का आशीर्वाद नहीं है. इसलिए तुम्हारी सफलता में मुझे कोई संदेह नहीं है. उन का यह विश्वास मेरी सफलता का बहुत बड़ा कारण बना, जिसे मैं आजीवन भुला नहीं सकती.

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