‘‘पापा, मैं ने कई बार आप को फोन किया, परंतु आप ने फोन ही नहीं उठाया.’’ केशव ने अपना फोन निकाल कर देखा, उस में स्वरा के 6 मिस्डकौल थे. जाने कैसे फोन साइलैंट मोड पर चला गया था. राधे की हालत नाजुक थी, इसलिए केशव ने रात को वहीं रुकने का निश्चय किया. स्वरा अकेले घर जाने को तैयार नहीं थी, इसलिए अस्पताल के ही एक प्राइवेट रूम में दोनों जा कर बैठ गए. बेटी स्वरा के ऐक्सिडैंट की खबर से आज वे ऐसी मानसिक यंत्रणा से गुजरे थे कि उन का संपूर्ण अस्तित्व ही हिल उठा था. अपने जीवन में घटने वाली हर दुर्घटना के लिए उन्होंने हमेशा स्वयं के द्वारा किए गए अपराध की वजह से अपने को ही दोषी मानते आए थे. आज उन्होंने मन ही मन पूर्ण निश्चय कर लिया था कि वे आज अपनी बेटी के समक्ष अपने गुनाह को स्वीकार कर के अपने दिल का बोझ हलका कर लेंगे. अब उन के लिए यह बोझ असहनीय हो चुका है.
मन ही मन सोचना और मुंह से बोलना 2 अलग अलग बातें हैं. ऊहापोह की बेचैन मानसिक अवस्था में वे लगातार चहलकदमी कर रहे थे. ‘पापा, राधे काका ठीक हो जाएंगे. आप इतना परेशान क्यों हैं?’’
‘‘स्वरा, मैं बहुत नर्वस हूं. मैं तुम से कैसे कहूं अपने दिल का हाल. पता नहीं, तुम मुझे माफ करोगी या नहीं? जीवन में सबकुछ होते हुए भी तुम्हारे सिवा मेरा दुनिया में कोई नहीं है. लेकिन ठीक है, अब तुम मुझे चाहे सजा देना, चाहे माफी.’’
‘‘पापा, आप कहिए, जो कुछ कहना चाह रहे हैं.’’
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