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‘कसौटी जिंदगी 2’ के पार्थ समाथन को हुआ कोरोना, तो बिपासा बसु ने कही ये बड़ी बात

कसौटी जिंदगी 2 के कलाकार पार्थ समाथन को कोरोना ने जकड़ लिया है. पार्थ को 12 जुलाई को कोरोना महामारी ने जकड़ लिया है. इसके बाद कसौटी जिंदगी शो के सभी क्रू मेंमबर्स का कोरोना टेस्ट हुआ जिसमें सभी का निगेचिव रिपोर्ट आय़ा है. पार्थ को फिलहालकोरेंटाइन रहने को बोला गया है.

शो का हिस्सा रहे करण सिंह ग्रोवर की पत्नी बिपासा बसु ने शो की शूटिंह बंद कर देने की बात कही है. पारेथ समाथन टीवी इंडस्ट्री के जाने माने कलाकार है डिनकी इंडस्टी में काफी अच्छी फैन फॉलोविंग है.

मीडीया रिपोर्ट के अनुसार पार्थ के स्वास्थ्य का खास ख्याल रखा जा रहा है. अब उनकी स्थिति समान है. उन्हें किसी की मदद की जरूरत नहीं है वह अपना श्याल खुद रख रहे हैं.

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वहीं शो की प्रोड्यीसर एकता कपूर ने बयान जारी करते हुए कहा है कि मैं अपने शो के सभी साथियों का पूरा ख्याल रख रही हूं इस समय शो से ज्यादा मेरे साथी जरूरी हैं.

बता दें कि एकता कपूर ने अपने शो में शूटिंग रोकने की कोई बात नहीं कही है उन्होंने सिर्फ अपने साथी कलाकारों का ध्यान रखने की बात कही है. जो शायद उन्हें सबसे ज्यादा जरूरी लगा.

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बता दें कोरोना महामारी सभी को परेशान करके रख दिया है. करीब पिछले तीन महीने से देश ही नहीं विदेशों को लोग भई इस महामारी से परेशान हैं. सभी को इंतजार है कि यह महामारी हमारा पिछ कब छोड़ेगी.

 

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इससे बचने का एक मात्र उपाय है खुद से अपनी बचाव करें कहीं भी बिना मतलब के बाहर न जाएं. पिछले कुछ महीनों से सभी शूटिंग बंद कर दी गई थीं. हालांकि अब धीरे-धीरे सभी कलाकार अपने काम पर जा रहे हैं.

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वहीं शूटिंग के स्थान पर उनका खास तरह से ख्याल रखा जा रहा है. उनके खाने पीने से लेकर बाकी सभी उन्य चीजों को भी सेनेटाइज जरूर किया जा रहा है. सेट पर उतने ही लोगों को बुलाया जा रहा है डितने लोगों की जरूरत है. इसके अलावा सभी लोगों को आराम करने के लिए कहा जा रहा है.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी ने लगाएं ये आरोप, भेजा तलाक का नोटिस

बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी इन दिनों लगातार अपने पर्सनल लाइफ की वजह से चर्चा में बने हुए है. आए दिन उनके शादी शुदा जिंदगी को लेकर नई –नई खबरे आ रही हैं. यहीं नहीं अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी ने उनपर गंभीर आरोप लगाएं हैं.

बता दें आलिया ने नवाजुद्दीन को तलाक की नोटिस अपने वकील के जरिए भेजवाया है. इसके साथ ही नवाजुद्दीन की भतीजी ने उनके भाई मिनाजुद्दीन को लेकर खुलासे किए हैं. उसने बताया है कि वह अपने चाचा द्वारा कई सालों से शोषण की शिकार हो रही है.

इसी बीच आलिया ने एक रिपोर्ट में बात करते हुए नवाजुद्दीन के बारे में कई नए खुलासे किए हैं जिसे जानकर सभी हैरान है. आलिया अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी  को साल 2003 से जानती हैं. आलिया ने बताया है कि हमने साथ में कई फिल्मों में काम किया है. धीरे-धीरे हमारे बीच नजदीकियां बढ़ी और हमारी शादी हो गई.

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हालांकि बीच में कुछ समस्याएं हुई थी मुझे लगा खत्म हो जाएंगी लेकिन यह लगातार चलती ही रही. हमारे शादी को करीब 15 साल हो गए है लेकिन मेरा मेंटल टर्चर बंद नहीं हुआ. अभी भी मैं परेशान रहती हूं.

 

आगे आलिया ने कहा कि मुझे अच्छी तरह से याद है जब हम एक-दूसरे को डेट कर रहे थे उससे पहले भी यह किसी के साथ रिश्ते में थें.

हम शादी के बाद भी कई बार लड़ते थें. जब मैं गर्भवती थी उस वक्त मैं अकेले डॉक्टर के पास जाया करती थी. डॉक्टर मुझे पागल कहती थी तुम मेंटल हो जो अकेले डीलीवरी कराने आई हो.

 

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नवाजुद्दीन कि पत्नी ने बताया जब मेरा बच्चा हुआ उस वक्त मैं बिल्कुल अकेले थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अकेले यहां कैसे हूं लेकिन मैंने सबकुछ खुद संभाला.

वह हर वक्त कॉल पर अपने प्रेमिका से बात करते रहते है. मुझे तब पता चला जब मोबाईल का बिल आया और मैंने स्टेटमेंट देखा.

अब मैं ज्यादा इन सभी चीजों को बर्दाश्त नहीं कर सकती थी इसलिए मैंने अलग होने का फैसला लिया.

Crime Story: इश्क का एक रंग यह भी

सौजन्य -मनोहर कहानियां

.आगरा के थाना खेरागढ़ क्षेत्र में एक गांव है खां का गढ़. गांव का एक युवक नेहनू गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित पुराने प्राइमरी स्कूल की खंडहर इमारत के पास से गुजर रहा था. नया स्कूल बन जाने के बाद पुराने स्कूल की इमारत लगभग खंडहर हो गई थी. नेहनू की नजर स्कूल के एक कमरे की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर नेहनू को सर्दी में भी पसीना आ गया.

स्कूल के एक कमरे में 16-17 साल की युवती की लाश पड़ी थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था, जिसे देखते ही नेहनू के मुंह से चीख निकल गई. वह गांव की ओर भागा. रास्ते में कुछ लोग अलाव ताप रहे थे. उस ने इस बात की जानकारी उन्हें दे दी. खां का गढ़ के लोगों को किसी मृत लड़की की खबर मिली तो लोग स्कूल की ओर दौड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

यह 30 नवंबर, 2019 की सुबह की बात है. ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो युवती उन्हीं के गांव के हरिओम की 17 वर्षीय बेटी गौरी थी. गौरी के घर वालों को भी घटना से अवगत करा दिया गया. खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी.

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गौरी के घर वाले भी गांव के लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सूचना मिलने के लगभग एक घंटे बाद खेरागढ़ के थानाप्रभारी शेर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ एकत्र हो गई.

लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. पुलिस ने जब मृतका की लाश कब्जे में लेनी चाही तो लोगों ने विरोध किया. वे आरोपी को पकड़ने की मांग कर रहे थे. भीड़ बढ़ती देख किसी अनहोनी की आशंका के डर से थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

सूचना मिलने पर एसएसपी बबलू कुमार, एसपी (ग्रामीण) रवि कुमार, सीओ (खेरागढ़) प्रदीप कुमार के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसएसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड और आसपास के थानों की फोर्स भी वहां पहुंच गई.

उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. स्कूल के कमरे में मृतका गौरी का लहूलुहान शव पड़ा था. उस का गला किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था. गले पर कट के 2 निशान थे, एक हलका था और दूसरा गहरा. सिर में भी पीछे की ओर चोट थी.

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फोरैंसिक टीम को तलाशी के दौरान मृतका के कपड़ों से एक सामान्य सा मोबाइल भी मिला, जो स्विच्ड औफ था. इस से जाहिर हो रहा था कि हत्यारे ने हत्या के बाद मोबाइल स्विच औफ कर मृतका के कपड़ों में रख दिया होगा. पानी से भरा लोटा भी शव के पास रखा था.

पुलिस को नहीं मिला कोई सुराग

पुलिस ने मृतका के परिवार वालों से बात की. उन्होंने बताया कि गौरी आज तड़के 5 बजे अपने घर से शौच के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए. इसी बीच उन्हें उस की हत्या की खबर मिली.

अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो गौरी के पिता हरिओम ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.

इस बीच फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से लगभग 400 मीटर तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों में तलाशी की, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से कातिल का सुराग मिलता.

कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि हत्या की गुत्थी सुलझने के बाद ही शव उठने दिया जाएगा.

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एसएसपी बबलू कुमार ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के इस आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

एसएसपी ने जानकारी दी कि गौरी के शव का पोस्टमार्टम पैनल से कराया जाएगा. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जांच की दिशा तय होगी. मृतका के पिता हरिओम सिंह की तहरीर पर थाना खेरागढ के थानाप्रभारी शेर सिंह ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. एसएसपी ने इस केस की जांच में कई टीमें लगा दीं. पुलिस ने सब से पहले मृतका गौरी के पास मिले फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

गौरी के मोबाइल में जिस का भी नंबर मिला, उसे ही पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. इन में 3 युवकों पर शक हुआ. उन तीनों से 2 दिन तक पूछताछ चली. इस के बाद 25 और संदिग्धों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल सका.

काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर बारबार बात की गई थी. पुलिस को उसी नंबर पर सब से ज्यादा शक था, लेकिन वह नंबर बंद था. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला वह नंबर 21 वर्षीय हेत सिंह तोमर उर्फ छोटू उर्फ कमल, निवासी गांव छिछावली, थाना मुरैना, मध्य प्रदेश का है. पुलिस ने जब इस पते पर दबिश दी तो हेत सिंह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने उस के परिजनों से कह दिया कि वह आए तो उसे खेरागढ़ थाने भेज दें.

2 दिसंबर की शाम को पुलिस ने 2 युवक थाने बुलाए. पुलिस उन दोनों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच रात लगभग 8 बजे हेत सिंह थाने में पहुंचा. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के हाथ में पानी की एक बोतल थी. वह बारबार बोतल से पानी पी रहा था.

थाने में दरोगा और सिपाहियों को देखते ही हेत सिंह ने कहा, ‘‘अब मैं बचूंगा नहीं. दरोगाजी, मैं ने अपने प्यार को मार डाला. मैं ही गौरी का हत्यारा हूं. मेरे मांबाप को परेशान मत करो, जो सजा देनी है मुझे दो. मैं ने जहर खा लिया है. मैं भी उस के पास जाना चाहता हूं.’’

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इतना सुनते ही थाने में हड़कंप मच गया. हेत सिंह के हाथ से बोतल छीन ली गई. एक सिपाही उस का वीडियो बनाने लगा. इस के बाद पूछताछ के लिए लाए गए सभी लोग थाने से छोड़ दिए गए.

हेत सिंह को तुरंत गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. उस की हालत खराब होने पर उसे आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज ले जाया गया. सूचना मिलने पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी अस्पताल पहुंच गए. अधिकारियों द्वारा हेत सिंह से गौरी की हत्या के संबंध में विस्तार से पूछताछ की गई. लेकिन उपचार के दौरान ही उस की मौत हो गई. इस बीच उस ने गौरी की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

थाना खेरागढ़ के अंतर्गत स्थित खां का गढ़ गांव में हेत सिंह की बहन की ससुराल है. उस का बहन के यहां आनाजाना लगा रहता था. एक बार पड़ोस में रहने वाली गौरी जब उस की बहन के यहां आई तो हेत सिंह की नजर उस पर पड़ी. गौरी सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया.

गौरी की प्रेम कहानी

हेत सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. गौरी को भी इस बात का अहसास हो गया कि हेत सिंह उसे देख रहा है. हेत सिंह कसी हुई कदकाठी का जवान था. जवानी की दहलीज पर पहुंची गौरी का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख गौरी का दिल तेजी से धड़कने लगा था. वहीं पर दोनों में परिचय हुआ.

गौरी खां का गढ़ के रहने वाले हरिओम सिंह की बेटी थी. गौरी के अलावा हरिओम सिंह का एक बेटा था. हरिओम की पत्नी को कैंसर था, जिस का कुछ दिन पहले ही औपरेशन हुआ था.

मां की बीमारी की वजह से घर के काम गौरी ही करती थी, जिस से वह इंटरमीडिएट से आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी थी. इंटरमीडिएट भी उस ने प्राइवेट किया था. गौरी और हेत सिंह की यह मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. फिर दोनों चोरीचोरी गांव के बाहर मिलने लगे.

दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी.

पुलिस को हेत सिंह ने बताया कि वह गौरी को बेइंतहा प्यार करता था. वह भी उसे बहुत चाहती थी. उस के लिए गौरी ही सब कुछ थी.

दोनों ने साथ जीनेमरने की कसम खाई थी. लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही थी. इसलिए उन्होंने तय किया कि जब वे एक साथ रह नहीं सकते तो साथसाथ जान तो दे ही सकते हैं. अत: उन्होंने एक साथ जान देने का निर्णय ले लिया.

योजना के अनुसार हेत सिंह अपने घर से 28 नवंबर, 2019 को ही गांव खां का गढ़ आ गया था. उस ने शनिवार को फोन कर गौरी को पुराने स्कूल में बुला लिया. गौरी वहां आ तो गई लेकिन वह अपने वायदे से मुकर गई.

पिछले कुछ दिनों से उस का व्यवहार भी बदल गया था. इस से हेत सिंह को शक हो गया कि गौरी की जिंदगी में शायद कोई और आ गया है. उसे डर था कि उस की मोहब्बत उस से छिन न जाए. इसलिए गौरी उस के साथ मरने को मना कर रही है. हेत सिंह नहीं चाहता था कि उस की गौरी किसी और की हो जाए. लिहाजा उस ने गौरी को उसी समय सजा देने की ठान ली.

खुद डर गया मौत से

उस ने गौरी को धक्का दे कर गिरा दिया. उस के गिरते ही हेत सिंह ने अपने साथ लाए चाकू से उस का गला काटना चाहा, लेकिन गौरी के विरोध के चलते उस के गले पर हलका कट लगा. किसी तरह उस ने गौरी को काबू कर चाकू से उस का गला रेत दिया. हेत सिंह ने गौरी के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर के उस के कपड़ों में रख दिया.

इस के बाद उस ने हत्या में इस्तेमाल चाकू स्कूल के पास स्थित तालाब में फेंक दिया और वहां से फरार हो गया.

गौरी की हत्या करने के बाद हेत सिंह अपने घर गया. जब उस ने घर वालों को एक युवती की हत्या की बात बताई तो पूरा परिवार सन्न रह गया.

पुलिस से बचने के लिए हेत सिंह वहां से मथुरा स्थित अपनी रिश्तेदारी में चला गया. दूसरे दिन उसे पता चला कि पुलिस उस के घर दबिश देने आई थी. उस ने मथुरा से जहर खरीदा और खेरागढ़ आ कर एक जगह पर जहर का सेवन किया. इस के बाद वह थाना खेरागढ़ पहुंच गया.

 

पोस्टमार्टम गृह पर आए हेत सिंह के भाई राहुल ने पुलिस को बताया कि हेत सिंह टैक्सी चलाता था. वह दिन भर घर नहीं आता था. परिवार वालों से उस का संपर्क कम ही हो पाता था.

घटना को अंजाम देने के बाद जब पुलिस घर आई, तब उस की करतूत का पता चला. घर वालों ने उस से कहा, ‘‘तुम मर जाओ या फिर थाने जा कर गुनाह कबूल करो. हम से कोई संबंध नहीं है.’’

घर वालों ने एक तरह से हेत सिंह से पल्ला झाड़ लिया था. परिचितों ने उस पर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का दबाव बनाया था. गौरी के प्यार में पागल हुआ हेत सिंह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था.

गुस्से में उस ने गौरी की हत्या तो कर दी थी, लेकिन अब वह पछता रहा था. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. ऐसी स्थिति में उस ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया.

परिजनों ने हेत सिंह के शव को मुरैना ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

शादियां आखिर अब होंगी कैसे

बाजे और बरात के बिना भारतीय शादियों को हमेशा से अधूरा मानते आए हैं. अब कोरोना में यह शौक तो धरा का धरा रह ही गया है. साथ ही, एक नई समस्या आ खड़ी हुई है. शादी बिना तामझाम तो कर लेंगे लेकिन अब रिश्ता जोड़ना आसान नहीं रह गया.

कोरोनाकाल में रहनसहन और जीवनशैली में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. खानपान, घूमनेफिरने, शौपिंग करने, दोस्तों और नातेरिश्तेदारों से मिलने, औफिस जाने व शादीब्याह करने आदि की सामान्य गतिविधियां भी बदल चुकी हैं. अब न लोग एकदूसरे के करीब जा रहे हैं न ऐसी किसी चीज के संपर्क में आना चाहते हैं जिन से उन्हें कोरोना संक्रमण होने की संभावना हो.

लोग घरों में ही रहना चाहते हैं. जब तक कोई जरूरी काम न हो वे बाहर निकलने से परहेज कर रहे हैं. बात यदि शादीब्याह की हो तो लोग अपनी छत, बालकनी, घर के अंदर या बाहर किसी न किसी तरह से शादी कर रहे हैं. लेकिन, ये सभी वे शादियां हैं जो पहले से होनी तय थीं और जिन्हें समयानुसार कर लेने में ही सब ने भलाई समझी.

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सवाल यह है कि नई शादियां अब कैसे होंगी? जिन घरों में बिनब्याही बेटी या बेटा है उन के लिए मांबाप अब रिश्ते कहां से लाएंगे? बिना मिले या खुद से जांचपरख किए क्या शादियां कराई जा सकेंगी? लड़केलड़कियों को भी अब न डेट्स पर जाने का मौका मिल रहा है और न ही वर्चुअल दुनिया के बाहर किसी को जाननेसमझने का. ऐसे में अरैंज तो अरैंज, लवमैरिज पर भी काले बादल छा गए हैं.

शादी व्यापार मंदी में

मार्च से जून के बीच होने वाली बड़ी शादियां रोक दी गई हैं या घर में हलकेफुलके सैलिब्रेशन के साथ की जा रही हैं. बैंड, बाजा और बरात की जगह सैनिटाइजर, मास्क और ग्लव्स ने ले ली है. हजारों शादियां कैंसिल कर दी गई हैं जहां कपल्स अपने रिश्तेदार व दोस्तों की गैरमौजूदगी में शादी नहीं करना चाहते. वैडिंग विशलिस्ट की फाउंडर कनिका सबिहा का कहना है, ‘‘औसतन हमारी वैबसाइट पर 75 हजार नए लोग विजिट करते हैं और 4 हजार कपल रजिस्टर करते हैं जिन में साइनअप के साथ गिफ्ट रजिस्टरी, इन्वाइट्स और प्लानिंग आदि हमारे जिम्मे होती है. लेकिन, लौकडाउन और कैंसिलेशन के चलते इस में भारी गिरावट आई है. वैबसाइट पर केवल

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45 हजार नए विजिटर्स और केवल 990 कपल्स ने रजिस्टर किया है.’’

कई कंपनियों के मालिकों का कहना है कि यह पहली बार है जब वैडिंग इंडस्ट्री को मंदी की मार झेलनी पड़ रही है. कम से कम 80 प्रतिशत कपल अपनी शादी को साल के आखिरी महीनों या 2021 तक टाल देंगे. इस से चीजें सामान्य होने पर भी इंडस्ट्री को वापस पटरी पर आने के लिए एक साल तक का समय लग सकता है.

शादियों में फोटोग्राफर का अहम काम होता है. सभी अपनी शादी की एकएक गतिविधि को संजोए रखना चाहते हैं और अब तो प्रीवैडिंग शूट्स का जमाना है. हलदी, मेहंदी, संगीत और फिर शादी व विदाई की हर रस्म को कैमरे में कैद किया जाता है. अब जबकि शादियां नहीं हो रही हैं और नाममात्र की हो रही हैं जिन में फोटो और वीडियो बनाने का काम परिवार के सदस्यों ने अपने जिम्मे ले लिया है, तो इन फोटोग्राफरों का काम भी खत्म सा हो गया है.

मेकअप तो शादी की सब से बड़ी जरूरत हुआ करता था. ब्राइडल मेकअप के लिए हजारों रुपए मेकअप आर्टिस्ट या ब्यूटीपार्लर अपनी जेबों में भरा करते थे. न अब बड़ी शादियां हो रही हैं न लोग पार्लरों के चक्कर लगा रहे हैं. कभी दुलहन की बहनें तो कभी वह खुद ही अपना मेकअप लगा मंडप में बैठ रही हैं. पार्लरों जैसा हाल ही गहनों की दुकानों का है. लौकडाउन के बाद से उन के पास भारी गहनों के बजाय अंगूठियों और हलके गहनों के ही और्डर आ रहे हैं.

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शादी की जगह की साजसजावट करने वालों के गल्ले भी अब भर नहीं रहे हैं. अप्रैल और मई महीने में वैडिंग डेकोरेशंस की 100 फीसदी बुकिंग कैंसिल कर दी गईं. शादियां कैंसिल होने, यातायात बंद होने, पड़ोसी राज्यों से भी कोई डिमांड न होने के चलते फूलों की खेती बरबाद हो चुकी है. शादियों की सजावट में फूल अत्यधिक इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन अब न शादियां हैं और न ही इन फूलपत्तियों की जरूरत. जब तक सबकुछ सामान्य होगा, इन फूलों का सीजन खत्म हो जाएगा और ये फूल नष्ट हो जाएंगे. स्पष्ट है कि शादियां न होना एक बड़े संकट जैसा है जिस से सभी त्रस्त हैं, लाखों लोगों की रोजीरोटी समय की भेंट चढ़ गई है.

बंद हो गईं बिचौलियों, पंडितों की दुकानें

आमतौर पर हिंदुओं में शादी के लिए लड़का या लड़की पंडितों या बिचौलियों द्वारा ढूंढ़े जाते हैं. मांबाप सालदोसाल पहले से ही अपनी बेटी के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं. धर्म, जाति और खानदान सुनिश्चित करने के लिए पंडितों को दक्षिणा के रूप में खासी कीमत दी जाती थी. पंडित अपनी पंडिताई झाड़ते हुए यजमान के घर प्रकट हो जाते थे और जातबिरादरी के हवाले से लड़के या लड़की के खानदान का चिट्ठा खोलने लगते थे. हालांकि, उन के द्वारा उन के क्लाइंट यानी दूसरे यजमान के खोट नहीं गिनाए जाते थे, जेब में पैसा कितना है और जातबिरादरी के हवाले से ही मीटिंग तय होती थी. एकआधी मुलाकात और कुछ महीनों की देखापरखी के बाद शादी का प्रोग्राम बनता था. अब न पंडितों को कोई अपने घर बुलाने को राजी है न ही रिश्ता ले कर जाने या बाहरी लोगों को घर में बुलाने के.

पंडितों की दुकान असल में अब लाला की दुकान हो चली है, जो समझो इस कोरोनाकाल में तो बंद ही रहने वाली है. बिचौलियों द्वारा रिश्ते दिखाए जाने के बाद ही असल पूछापाछी शुरू होती है. जब तक लड़की का पिता या भाई खुद यहांवहां से, नातेरिश्तेदारों से जानकारी जमा नहीं कर लेता तब तक शादी पर मुहर नहीं लगती. कोरोना में जहां जान पर बन आई है वहां इन सारे कारनामों को अंजाम देना न किसी के बस में है न कोई करने में समर्थ है. न किसी पंडित की पंडिताई चलने वाली है और न किसी बिचौलिए की बिचौलियाई.

डेटिंग अब मील का पत्थर

लवमैरिज की पूरी कारस्तानी डेटिंग से ही शुरू होती है. लड़कालड़की मिलते हैं, प्यार में पड़ते हैं, साथ घूमतेफिरते हैं, फिल्में देखते हैं, एकदूसरे को जानतेसमझते हैं, घरवालों को मनाने के लिए अच्छाखासा समय लेते हैं और जब घर वाले नानुकुर कर मान जाते हैं तब कहीं जा कर शादी की बात आगे बढ़ती है. कोरोनाकाल में यह होने से रहा. औनलाइन बातचीत होती जरूर है और लोगों को लगने भी लगता है कि शायद वे प्यार में हैं लेकिन बात शादी तक पहुंचने वाली नहीं होती जब तक कि व्यक्ति असल में कुछ मुलाकातें न कर लें. घर में बैठेबैठे न मुलाकातें हो सकती हैं और न बात आगे बढ़ सकती है.

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आमतौर पर डेटिंग के बाद लड़कालड़की लंबा समय लेते हैं एकदूसरे को शादी के लिए प्रपोज करने के लिए. साथ ही, हिंदू मध्यवर्ग या निम्नवर्ग में तो प्रेमविवाह की अनुमति न के बराबर होती है या बिलकुल नहीं होती. ऐसे में लवमैरिज का औप्शन तो कोरोना के चलते सूची से ही बाहर है.

मैिट्रमोनियल साइट्स से भी नहीं होगा कुछ

मैट्रिमोनियल साइट्स पर रिश्ते ढूंढ़ना अब आम हो चुका है लेकिन इन पर होने वाले फ्रौड भी कुछ कम नहीं हैं. अब जब मिलनाजुलना तक ज्यादा नहीं होगा तो ऐसे में इन साइट्स से रिश्ते जोड़ने में जोखिम कई गुना बढ़ चुका है. मैट्रिमोनियल साइट्स अपने कस्टमर्स का केवाईसी यानी ‘नो योर कस्टमर’ प्रोसिजर नहीं करतीं, वे केवल डौक्यूमैंट्स और फोटो लेती हैं जो फेक प्रौफाइल्स के लिए नकली बना कर देना कोई नई बात नहीं है. मैट्रिमोनियल साइट्स आईटी एक्ट 2000 के अंतर्गत आती हैं जिस में ऐसा कोई नियम नहीं है जिस के द्वारा फ्रौड के मामलों में इन साइट्स की कोई जिम्मेदारी हो.

ऐसी ही एक वैबसाइट से स्नेहा को नोएडा का रहने वाला सुभोदिप स्नेहा (बदला हुआ नाम) मिला था जिस के पास अपना फ्लैट, एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर की नौकरी, और तो और उस की खुद की गाड़ी भी थी. स्नेहा के परिवार को शक करने जैसा कुछ नहीं लगा. कुछ मुलाकातों के बाद शादी की शौपिंग भी शुरू हो गई. गरफा के झील रोड की रहने वाली स्नेहा अपने होने वाले पति सुभोदिप के घर अपना सामान पहुंचवाने के लिए कहने लगी. जब भी वह उस से कहती तो वह बहाना मार देता. इस बहानेबाजी ने स्नेहा के कान खड़े कर दिए और आखिर उस ने सच जानने की ठान ली. वह सुभोदिप को उस की कंपनी में ले गई जहां वह काम करता था. वहां पहुंचने पर स्नेहा को पता चला कि सुभोदिप वहां नौकरी करता ही नहीं है और झूठ के सहारे वह स्नेहा व उस के परिवार को ठगना चाहता है.

इस तरह के जाने कितने ही मामले आएदिन सुनने में आते हैं जिन से स्पष्ट हो जाता है कि इन मैट्रिमोनियल साइट्स पर आंख बंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता.

मैट्रिमोनियल साइट्स से रिश्ता ढूंढ़ लेने पर भी आप को बातचीत आगे बढ़ाने के लिए कुछ मुलाकातें करनी पड़ती हैं. जो डिटेल्स आप को साइट पर मिली थीं उन की पूरी जांचपड़ताल करनी पड़ती है. प्रौपर्टी आदि की जांचपड़ताल के लिए कभी छिप कर तो कभी व्यक्ति के साथ उस के औफिस या घर आदि के कुछ चक्कर लगाने पड़ते हैं, पढ़ाईलिखाई संबंधित मामलों में तो वैरिफिकेशन तक करानी पड़ती है. कोरोना के चलते यह सब हो पाना संभव नहीं है. कई मामलों में खुद को अमीर दिखाने वाले लोग असल में तंगी से गुजर रहे होते हैं. जिस घर में वे रहते हैं वह किराए का होता है या जो कुछ आप को दिखाया जाता है, सब दिखावा होता है. और इन सब से ऊपर खुद वह इंसान है जिस से शादी होने वाली है, उस की सोच, अच्छीबुरी आदतें, बुद्धिमत्ता आदि का लेखाजोखा तो उस की शक्ल से नहीं पता चलेगा. कई मुलाकातों के बाद ही इंसान की थोड़ीबहुत पहचान हो पाती है. जिस के साथ शादी होने वाली है उसे असल में जाने बिना शादी करना बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं.

इन मैट्रिमोनियल साइट्स पर चाहे आप फ्री में रजिस्टर कर लें लेकिन नई प्रौफाइल्स देखने के लिए आप को पैकेज खरीदना पड़ता है जिन की कीमत हजारों में होती है. इन पैकेज को खरीदने व बारबार रिन्यू करने पर भी इस की कोई गारंटी नहीं होती कि आप को अपनी पसंद का रिश्ता मिल ही जाएगा. जहां लोग अपनी नौकरियां खो रहे हैं वहां इन साइट्स को देने के लिए पैसा शायद ही कोई खर्च करना चाहेगा.

सो, शादी करना अब उतना आसान नहीं होगा जितना पहले हुआ करता था, और नए रिश्ते किस तरह जुड़ेंगे इस पर भी प्रश्नचिह्न बराबर लगा हुआ है.

मैली लाल डोरी –भाग 3 : अपर्णा ने गुस्से में मां से क्या कहा ?

नितिन को जब तबादले के बारे में पता चला, तो क्रोध से चीखते हुए बोला, ‘यह क्या मजाक है मुझ से बिना पूछे ट्रांसफर किस ने करवाया?’

‘मैं ने करवाया. मैं अब और तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. तुम्हारे उन तथाकथित गुरुजी ने तुम्हारी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज और अभी से ही तुम्हारी यह दुनिया तुम्हें मुबारक. अब और अधिक सहने की क्षमता मुझ में नहीं है.’

‘हांहां, जाओ, रोकना भी कौन चाहता है तुम्हें? वैसे भी कल गुरुजी आ रहे हैं. तुम्हारी तरफ देखना भी कौन चाहता है. मैं तो यों भी गुरुजी की सेवा में ही अपना जीवन लगा देना चाहता हूं,’ कह कर भड़ाक से दरवाजा बंद कर के नितिन बाहर चला गया.

बस, उस के बाद से दोनों के रास्ते अलगअलग हो गए थे. बेटे नवीन ने पुणे में जौब जौइन कर ली थी. परंतु आज आए इस एक फोन ने उस के ठहरे हुए जीवन में फिर से तूफान ला दिया था. तभी अचानक उस ने मां का स्पर्श कंधे पर महसूस किया.

‘‘क्या सोच रही है, बेटा.’’

‘‘मां, कुछ नहीं समझ आ रहा? क्या करूं?’’

‘‘बेटा, पत्नी के नाते नहीं, केवल इंसानियत के नाते ही चली जा, बल्कि नवीन को भी बुला ले. कल को कुछ हो गया, तो मन में हमेशा के लिए अपराधबोध रह जाएगा. आखिर, नवीन का पिता तो नितिन ही है न,’’ अपर्णा की मां ने उसे समझाते हुए कहा.

अगले दिन वह नवीन के साथ दिल्ली के सरकारी अस्पताल के बैड नंबर 401 पर पहुंची. बैड पर लेटे नितिन को देख कर वह चौंक गई. बिखरे बाल, जर्जर शरीर और गड्ढे में धंसी आंखें. शरीर में कई नलियां लगी हुई थीं. मुंह से खून की उलटियां हो रही थीं. पूछने पर पता चला कि नितिन को कोई खतरनाक बीमारी है. उसे आया देख कर नितिन के चेहरे पर चमक आ गई.

वह अपनी कांपती आवाज में बोला, ‘‘तुम आ गईं. मुझे पता था कि तुम जरूर आओगी. अब मैं ठीक हो जाऊंगा,’’ तभी डाक्टर सिंह ने कमरे में प्रवेश किया. नवीन की तरफ मुखातिब हो कर वे बोले, ‘‘इन्हें एड्स हुआ है. अंतिम स्टेज में है. हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

‘‘आज आप के तथाकथित गुरुजी कहां गए. आप की देखभाल करने क्यों नहीं आए वे. जिन के कारण आप ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज उन्होंने अपनी करामात क्यों नहीं दिखाई? मुझ से क्या चाहते हैं आप. क्यों मुझे फोन किया गया था?’’ अपर्णा आवेश से भरे स्वर में बोली. तभी देवर अरुण आ गया. उस ने जो बताया, उसे सुन कर अपर्णा दंग रह गई.

‘‘आप के जाने के बाद भैया एकदम निरंकुश हो गए. गुरुजी के आश्रम में कईकई दिन पड़े रहते. घर पर ताला रहता और भैया गुरुजी के आश्रम में. गुरुजी के साथ ही दौरों पर जाते. गुरुजी के आश्रम में सेविकाएं

भी आती थीं. गुरुजी सेविकाओं से हर प्रकार की सेवा करवाते थे. कई बार गुरुजी के कहने पर भैया ने भी अपनी सेवा करवाई. बस, उसी समय कोई इन्हें तोहफे में एड्स दे गई. गुरुजी और उन के आश्रम के लोगों को जैसे ही भैया की बीमारी के बारे में पता चला, उन्होंने इन्हें आश्रम से बाहर कर दिया. और आज 3 साल से कोई खैरखबर भी नहीं ली है.’’

अपर्णा मुंह खोले सब सुन रही थी. उस ने नितिन की ओर देखा तो उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए मानो अब तक की सारी काली करतूतों को एक माफी में धो देना चाहता हो.

अपर्णा कुछ देर सोचती रही, फिर नितिन की ओर घूम कर बोली, ‘‘नितिन, मेरातुम्हारा संबंध कागजी तौर पर भले ही न खत्म हुआ हो पर दिल के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. जब मेरे दिल में ही तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है, तो कागज क्या करेगा? जहां तक माफी का सवाल है, माफी तो उस से मांगी जाती है जिस ने कोई गुनाह किया हो. तुम ने आज तक जो कुछ भी मेरे साथ किया, उसे भुलाना तो मुश्किल है, पर हां, माफ करने की कोशिश करूंगी. पर अब तुम मुझ से कोई उम्मीद मत रखना.

मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकती. हां, इंसानियत के नाते तुम्हारी बीमारी के इलाज में जो पैसा लगेगा, मैं देने को तैयार हूं. बस, अब और मुझे कुछ नहीं कहना. मैं तुम्हें सारे बंधनों से मुक्त कर के जा रही हूं,’’ यह कह कर मैं ने पर्स में से एक छोटा पैकेट, वह मैली लाल डोरी निकाल कर नितिन के तकिए पर रख दी, ‘‘लो अपनी अमानत, अपने पास रखो.’’

यह कह कर अपर्णा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. नितिन टकटकी लगाए उसे जाते देखता रहा.

मैली लाल डोरी –भाग 2 : अपर्णा ने गुस्से में मां से क्या कहा ?

अपर्णा ने नितिन से पूछा, ‘यह सब क्या है नितिन? सुबह मैं स्कूल गई थी, तब तो तुम ने कुछ नहीं बताया?’

‘तुम सुबह जल्दी निकल गई थीं, सूचना बाद में मिली. आज गुरुजी घर आने वाले हैं. जाओ तुम भी तैयार हो जाओ,’ कह कर नितिन फिर जोश से काम में जुट गया.

उस दिन देररात्रि तक गुरुजी का प्रोग्राम चलता रहा. न जाने कितने ही लोग आए और गए. सब को चाय, खाना आदि खिलाया गया. अपर्णा को सुबह स्कूल जाना था, सो, वह अपने कमरे में आ कर सो गई. दूसरे दिन शाम को जब स्कूल से लौटी तो नितिन बड़ा खुश था. ट्रे में चाय के 2 कप ले कर अपर्णा के पास ही बैठ गया और कल के सफल आयोजन के लिए खुशी व्यक्त करने लगा. तभी अपर्णा ने धीरे से कहा, ‘नितिन, आप खुश हो, इसलिए मैं भी खुश हूं परंतु मेहनत की गाढ़ी कमाई की यों बरबादी ठीक नहीं.’

‘तुम क्या जानो इन बाबाओं की करामात? और जगदगुरु तो पहुंचे हुए हैं. तुम्हें पता है, शहर के बड़ेबड़े पैसे वाले लोग इन के शिष्य बनना चाहते हैं परंतु ये घास नहीं डालते. अपना तो समय खुल गया है जो गुरुजी ने स्वयं ही घर पधारने की बात कही. तुम्हारी गलती भी नहीं है. तुम्हारे घर में कोई भी बाबाओं के प्रताप में विश्वास नहीं करता. तो तुम कैसे करोगी? व्यंग्यपूर्वक कह कर नितिन वहां से चला गया. शाम को फिर आया और कहने लगा, ‘देखो, यह लाल डोरी. इसे सदा हाथ में बांधे रखना, कभी उतराना नहीं, गुरुजी ने दी है. सब ठीक होगा.’

कलह और असंतोष के मध्य जिंदगी किसी तरह कट रही थी. बिना किसी काम के व्यक्ति की मानसिकता भी बेकार हो जाती है. उसी बेकारी का प्रभाव नितिन के मनमस्तिष्क पर भी दिखने लगा था. अब उस के स्वभाव में हिंसा भी शामिल हो गई थी. बातबात पर अपर्णा व बच्चों पर हाथ उठा देना उस के लिए आम बात थी. घर का वातावरण पूरे समय अशांत और तनावग्रस्त रहता. लगातार चलते तनाव के कारण अपर्णा को बीपी, शुगर जैसी कई बीमारियों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया.

एक दिन घर पर नितिन से मिलने कोई व्यक्ति आया. कुछ देर की बातचीत

के बाद अचानक दोनों में हाथापाई होने लगी और वह आदमी जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगा. कालोनी के कुछ लोग गेट पर जमा हो गए और कुछ अपने घरों में से झांकने लगे. किसी तरह मामला शांत कर के नितिन आया तो अपर्णा ने कहा, ‘यह सब क्या है? क्यों चिल्ला रहा था यह आदमी?’

‘शांत रहो, ज्यादा जबान और दिमाग चलाने की जरूरत नहीं है,’ बेशर्मी से नितिन ने कहा.

‘इस तरह कालोनी में इज्जत का फालूदा निकालते तुम्हें शर्म नहीं आती?’

‘बोला न, दिमाग मत चलाओ. इतनी देर से कह रहा हूं, चुप रह. सुनाई नहीं पड़ता,’ कह कर नितिन ने एक स्केल उठा कर अपर्णा के सिर पर दे मारा.

अपर्णा के सिर से खून बहने लगा. अगले दिन जब वह स्कूल पहुंची तो उस के सिर पर लगी बैंडएड देख कर पिं्रसिपल ऊषा बोली, ‘यह क्या हो गया, चोट कैसे लगी?’

उन के इतना कहते ही अपर्णा की आंखों से जारजार आंसू बहने लगे. ऊषा मैडम उम्रदराज और अनुभवी थीं. उन की पारखी नजरों ने सब भांप लिया. सो, उन्होंने सर्वप्रथम अपने कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद किया और अपर्णा के कंधे पर प्यार से हाथ रख कर बोलीं, ‘क्या हुआ बेटा, कोई परेशानी है, तो बताओ.’

कहते हैं प्रेम पत्थर को भी पिघला देता है, सो ऊषा मैडम के प्यार का संपर्क पाते ही अपर्णा फट पड़ी और रोतेरोते उस ने सारी दास्तान कह सुनाई.

‘मैडम, आज शादी के 20 साल बाद भी मेरे घर में मेरी कोई कद्र नहीं है. पूरा पैसा उन तथाकथित बाबाजी की सेवा में लगाया जा रहा है. बाबाजी की सेवा के चलते कभी आश्रम के लिए सीमेंट, कभी गरीबों के लिए कंबल, और कभी अपना घर लुटा कर गरीबों को खाना खिलाया जा रहा है. यदि एक भी प्रश्न पूछ लिया तो मेरी पिटाई जानवरों की तरह की जाती है. सुबह से शाम तक स्कूल में खटने के बाद जब घर पहुंचती हूं तो हर दिन एक नया तमाशा मेरा इंतजार कर रहा होता है. मैं थक गई हूं इस जिंदगी से,’ कह कर अपर्णा फूटफूट कर रोने लगी.

ऊषा मैडम अपनी कुरसी से उठीं और अपर्णा के आगे पानी का गिलास रखते हुए बोलीं, ‘बेटा, एक बात सदा ध्यान रखना कि अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला अधिक दोषी होता है. सब से बड़ी गलती तेरी यह है कि तू पिछले

20 सालों से अन्याय को सह रही है. जिस दिन तेरे ऊपर उस का पहला हाथ उठा था, वहीं रोक देना था. सामने वाला आप के साथ अन्याय तभी तक करता है जब तक आप सहते हो. जिस दिन आप प्रतिकार करने लगते हो, उस का मनोबल समाप्त हो जाता है. आत्मनिर्भर और पूर्णतया शिक्षित होने के बावजूद तू इतनी कमजोर और मजबूर कैसे हो गई? जिस दिन पहली बार हाथ उठाया था, तुम ने क्यों नहीं मातापिता और परिवार वालों को बताया ताकि उसे रोका जा सकता. क्यों सह रही हो इतने सालों से अन्याय? छोड़ दो उसे उस के हाल पर.’

‘मैं हर दिन यही सोचती थी कि शायद सब ठीक हो जाएगा. मातापिता की इज्जत और लोकलाज के डर से मैं कभी किसी से कुछ नहीं कह पाई. लगा था कि मैं सब ठीक कर लूंगी. पर मैं गलत थी. स्थितियां बद से बदतर होती चली गईं.’ अपर्णा ने रोते हुए कहा.

अब ऊषा मैडम बोलीं, ‘जो आज गलत है, वह कल कैसे सही हो जाएगा. जिस इंसान के गुस्से से तुम प्रथम रात्रि को ही डर जाती हो और जिस इंसान को अपनी पत्नी पर हाथ उठाने में लज्जा नहीं आती. जो बाबाओं की करामात पर भरोसा कर के खुद बेरोजगार हो कर पत्नी का पैसा पानी की तरह उड़ा रहा है, वह विवेकहीन इंसान है. ऐसे इंसान से तुम सुधार की उम्मीद लगा बैठी हो? क्यों सह रही हो? तोड़ दो सारे बंधनों को अब. निर्णय तुम्हें लेना है,’ कह कर मैडम ने दरवाजा खोल दिया था.

बाहर निकल कर उस ने भी अब और न सहने का निर्णय लिया और अगले ही दिन अपने तबादले के लिए आवेदन कर दिया. 6 माह बाद अपर्णा का तबादला दूसरे शहर में हो गया.

मैली लाल डोरी –भाग 1 : अपर्णा ने गुस्से में मां से क्या कहा ?

रविवार होने के कारण अपर्णा सुबह की चाय का न्यूज पेपर के साथ आनंद लेने के लिए बालकनी में पड़ी आराम कुरसी पर आ कर बैठी ही थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस के देवर अरुण का फोन था.

‘‘भाभी, भैया बहुत बीमार हैं. प्लीज, आ कर मिल जाइए,’’ और फोन

कट गया.

फोन पर देवर अरुण की आवाज सुनते ही उस के तनबदन में आग लग गई. न्यूजपेपर और चाय भूल कर वह बड़बड़ाने लगी, ‘आज जिंदगी के 50 साल बीतने को आए, पर यह आदमी चैन से नहीं रहने देगा. कल मरता है तो आज मर जाए. जब आज से 20 साल पहले मेरी जरूरत नहीं थी तो आज क्यों जरूरत आन पड़ी.’ उसे अकेले बड़बड़ाते देख कर मां जमुनादेवी उस के निकट आईं और बोलीं, ‘‘अकेले क्या बड़बड़ाए जा रही है. क्या हो गया? किस का फोन था?’’

‘‘मां, आज से 20 साल पहले मैं नितिन से सारे नातेरिश्ते तोड़ कर यहां तबादला करवा कर आ गई थी और मैं ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. तब से ले कर आज तक न उन्होंने मेरी खबर ली और न मैं ने उन की. तो, अब क्यों मुझे याद किया जा रहा है?

‘‘मां, आज उन के गुरुजी और दोस्त कहां गए जो उन्हें मेरी याद आ रही है. अस्पताल में अकेले क्या कर रहे हैं. आश्रम वाले कहां चले गए,’’ बोलतेबोलते अपर्णा इतनी विचलित हो उठी कि उस का बीपी बढ़ गया. मां ने दवा दे कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

50 वर्ष पूर्व जब नितिन से उस का विवाह हुआ तो वह बहुत खुश थी. उस की ससुराल साहित्य के क्षेत्र में अच्छाखासा नाम रखती थी. वह अपने परिवार में सब से छोटी लाड़ली और साहित्यप्रेमी थी. उसे लगा था कि साहित्यप्रेमी और सुशिक्षित परिवार में रह कर वह भी अपने साहित्यज्ञान में वृद्धि कर सकेगी. परंतु, वह विवाह हो कर जब आई तो उसे मायके और ससुराल के वातावरण में बहुत अंतर लगा.

ससुराल में केवल ससुरजी को साहित्य से लगाव था, दूसरे सदस्यों का तो साहित्य से कोई लेनादेना ही नहीं था. इस के अलावा मायके में जहां कोई ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था वहीं यहां घर का हर सदस्य क्रोधी था. ससुरजी अपने लेखन व यात्राओं में इतने व्यस्त रहते कि उन्हें घरपरिवार के बारे में अधिक पता ही नहीं रहता था. सास अल्पशिक्षित, घरेलू महिला थीं. वे अपने शौक, फैशन व किटी पार्टीज में व्यस्त रहतीं. घर नौकरों के भरोसे चलता. हर कोई अपनी जिंदगी मनमाने ढंग से जी रहा था. सभी भयंकर क्रोधी और परस्पर एकदूसरे पर चीखतेचिल्लाते रहते. इन

2 दिनों में ही नितिन को ही वह कई

बार क्रोधित होते देख चुकी थी. यहां

का वातावरण देख कर उसे डर लगने लगा था.

सुहागरात को जब नितिन कमरे में आए तो वह दबीसहमी सी कमरे में बैठी थी. नितिन उसे देख कर बोले, ‘क्या हुआ, ऐसे क्यों बैठी हो?’

‘कुछ नहीं, ऐसे ही,’ उस ने दबे स्वर में धीरे से कहा.

‘तो इतनी घबराई हुई क्यों हो?’

‘नहीं…वो… मुझे आप से डर लगता है,’ अपर्णा ने घबरा कर कहा.

‘अरे, डरने की क्या बात है,’ कह कर जब नितिन ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह अपना सब डर भूल गई.

विवाह को कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन डाकिया एक पीला लिफाफा लैटरबौक्स में डाल गया. जब नितिन ने खोल कर देखा तो उस में केंद्रीय विद्यालय में अपर्णा की नियुक्ति का आदेश था जिस के लिए उस ने विवाह से पूर्व आवेदन किया था. खैर, समस्त परिवार की सहमति से अपर्णा ने नौकरी जौइन कर ली. घर और बाहर दोनों संभालने में तकलीफ तो उठानी पड़ती, परंतु वह खुश थी कि उस का अपना कुछ वजूद तो है.

तनख्वाह मिलते ही नितिन ने उस का एटीएम कार्ड और चैकबुक यह कहते हुए ले लिया कि ‘मैं पैसे का मैनेजमैंट बहुत अच्छा करता हूं, इसलिए ये मेरे पास ही रहें तो अच्छा है. कहां कब कितना इन्वैस्ट करना है, मैं अपने अनुसार करता रहूंगा.’

मेरे पास रहे या इन के पास, यह सोच कर अपर्णा ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. एक दिन जब वह घर आई तो नितिन मुंह लटकाए बैठा था. पूछने पर बोला कि वह जिस कंपनी में काम करता था वह घाटे में चली गई और उस की नौकरी भी चली गई.

अपर्णा बड़े प्यार से उस से बोली, ‘तो क्या हुआ, मैं तो कमा ही रही हूं. तुम क्यों चिंता करते हो. दूसरी ढूंढ़ लेना.’

‘अच्छा तो तुम मुझे अपनी नौकरी का ताना दे रही हो. नौकरी गई है, हाथपैर नहीं टूटे हैं अभी मेरे,’ नितिन क्रोध से बोला.

‘नितिन, तुम बात को कहां से कहां ले जा रहे हो. मैं ने ऐसा कब कहा?’

‘ज्यादा जबान मत चला, वरना काट दूंगा,’ नितिन की आंखों से मानो अंगारे बरस रहे थे.

उसे देख कर अपर्णा सहम गई. आज उसे नितिन के एक नए ही रूप के दर्शन हुए थे. वह चुपचाप दूसरे कमरे में जा कर अपना काम करने लगी. नौकरी चली जाने के बाद से अब नितिन पूरे समय घर में रहता और सुबह से शाम तक अपनी मरजी करता. एक दिन अपर्णा को घर आने में देर हो गई. जैसे ही वह घर में घुसी.

‘इतनी देर कैसे हो गई.’

‘आज इंस्पैक्शन था.’

‘झूठ बोलते शर्म नहीं आती, कहां से आ रही हो?’

‘तुम से बात करना बेकार है. खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत तुम्हारे ऊपर बिलकुल सटीक बैठती है,’ कह कर अपर्णा गुस्से में अंदर चली गई.

पूरे घर पर नितिन का ही वर्चस्व था. अपर्णा को घर की किसी बात में दखल देने की इजाजत नहीं थी. वह कमाने की मशीन और मूकदर्शक मात्र थी. एक दिन जब वह घर में घुसी तो देखा कि पूरा घर फूलों से सजा हुआ है. पूछने पर पता चला कि आज कोई गुरुजी और उन के शिष्य घर पर पधार रहे हैं. इसीलिए रसोई में खाना भी बन रहा है.

हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस – इंटीरियर

अभी तक हम  हुंडई ग्रैंड आई 10 निओस  के बहुत से पार्ट्स की क्वालिटी के बारे में जान चुके हैं. आइए आज जानते हैं इसके  फ्रंट सीट के बारे में जिसे इसके सेगमेंट में खास तरह से डिजाईन किया गया है.

हुंडई ग्रैंड आई 10  निओस  के फ्रंट सीट को इतना कंफर्टेबल बनाया गया है कि आपको लंबी यात्रा पर भी ज्यादा थकान महसूस नहीं होगा. आप बहुत आराम से अपनी फैमली के साथ में लंबा सफर तय कर सकते हैं.

ग्रैंड आई 10 निओस के सीट पर जो फैबरिक लगाया गया है वह बहुत आरामदायक है. इससे आपको लगातार बैठने पर भी किसी तरह की समस्या नहीं होगी.

इसके इंटीरियर का कलर ब्लैक है. इसके अंदर जो सेमी फैब्रिक लगा हुआ है वह ग्रे रंग में है. यह दोनों रंग गाड़ी के इंटीरियर को खूबसूरत बनाती है.

मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में कांग्रेस सरकार गिराने-बचाने की रेट रेस

कांग्रेस पार्टी का हाल उस ढोल की तरह हो गया जिसे दोनों तरफ से बजाया जा रहा है. एक, अन्य पार्टियों द्वारा, दूसरा, खुद पार्टी के भीतर के नेताओं द्वारा. कर्नाटका और मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार बिखराव की तरफ बढ़ चली है. राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाही में चल रही कांग्रेस सरकार अपने ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की वजह से संकट में दिखाई दे रही है.

अब यह किस प्रकार का संकट है इसे जानने के लिए हाल ही में मध्यप्रदेश में पूर्व कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा पार्टी के खिलाफ बगावत का उदाहरण से देखा जा सकता है. उसी प्रकार राजस्थान में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट ने इस समय बगावत कर दी है. साथ ही सचिन पायलट ने दावा भी किया कि उनके समर्थन में 30 विधायक है. फिलहाल इसे लेकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री आवास पर 13 जुलाई सुबह 10.30 बजे विधायकों की मीटिंग रखी गई थी. जिसमें सचिन पायलट और उनके कुछ समर्थक विधायक शामिल नहीं हुए.

यह मामला यूं तो खुल कर पिछले दो दिन में सामने आया है लेकिन इस कलह की जड़ सरकार बनने के बाद से ही फैलने लगी थी. ताकत, महत्वकान्शा और पार्टी पकड़ यह कुछ कारण है जो टकराव पैदा करते हैं. कांग्रेस पार्टी का इतिहास ही बिखराव का रहा है, न जाने कितने नेताओं के टूटने और उनसे जन्मी नयी पार्टी के गठन का. यह बात 2018 में राजस्थान के चुनाव को जीतने के बाद ही सामने आ गया था. सचिन पायलट का खेमा चाहता था कि राज्य का मुख्यमंत्री सचिन को बनाया जाए. खुद सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनाए जाने की आशा में भी थे. लेकिन कांग्रेस ने सत्ता की कमान अनुभवी अशोक गहलोत को देना बेहतर समझा.

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इस बार का संकट इस साल के जून से लगातार बढ़ता हुआ सामने आया. जब राज्यसभा के लिए चुनाव होना था. तब कांग्रेस से 2 प्रत्याशियों को टिकेट दी गई. दोनों अशोक गहलोत खेमे के थे. लेकिन मूल यह कि इनमें से एक नीरज डांगी थे जो वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं. जिस पर सचिन खेमा ख़ासा नाराज भी हुआ था.

सचिन पायलट के ख़ास वेदप्रकाश सोलंकी ने नीरज डांगी के चुने जाने पर सवाल खड़े किये थे. उनका कहना था कि “3 बार के असेंबली इलेक्शन में हारे हुए नेता को राज्यसभा की टिकेट देना ठीक नहीं इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है.” तब यह खबर आ रही थी कि सचिन पायलट भी इस निर्णय से खासा नाराज थे.

इसके अलावा क्रॉस वोटिंग को लेकर भी पायलट और उसके समर्थक विधायकों पर शंका जाहिर की गई थी. जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जानबूझकर दो कैंडिडेट राज्यसभा के लिए खड़े किये थे. जबकि वह अच्छी तरह जानती थी कि उनके पास जितने विधायक है उसमें सिर्फ एक कैंडिडेट ही जीत सकता था. लेकिन दो कैंडिडेट खड़ा करने से उन्होंने कांग्रेस के भीतर कन्फ्यूजन क्रिएट करने की पूरी कोशिश की. उसी समय कांग्रेस द्वारा विपक्ष पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप लगाए गए थे. जिसका बाहरी निशाना भाजपा तो थी ही लेकिन भीतरी निशाना सचिन पायलट और उसके समर्थक के विधायक भी थे.

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यह मसला यही नहीं थमा राज्यसभा वाले मसले पर विधायकों को लालच देकर तोड़ने की बात सामने आने पर सीएम गहलोत ने एसओजी समिति का गठन किया था. इसी को लेकर 10 जुलाई को इस समिति ने सचिन पायलट को समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया था. जिसे लेकर यह समझा जा रहा था कि सचिन पायलट को खरीद फरोख्त में शामिल होने के चलते कार्यवाही की जा रही है. इसे लेकर दोनों खेमों की गुटबाजी जोरों पर थी. सचिन खेमें का मानना था कि यह कार्यवाही सचिन पायलट को बदनाम करने के लिए किया गया. जिसने “सीमाएं लांघ” दी हैं.

वही इसे लेकर सीएम गहलोत का रविवार को ट्वीट आया कि
“एसओजी को जो कांग्रेस विधायक दल ने बीजेपी नेताओं द्वारा खरीद फरोख्त की शिकायत की थी, उस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, चीफ व्हिप व अन्य कुछ मंत्री व विधायकों को समान्य बयान देने के लिए नोटिस आए थे. मीडिया द्वारा इसे अलग ढंग से प्रस्तुत न किया जाए.”

जाहिर है यह ट्वीट सचिन पायलट के “समन भेजे जाने से नाराजगी” वाले तर्कों को ख़ारिज करने के लिए किया गया है. और बताया गया की इस विषय में जांच के लिए सभी जिम्मेदार लोगों को नोटिस भेजा गया था. ध्यान देने वाली बात यह कि एसओजी राजस्थान पुलिस ने इस मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी की है जिन पर विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप लगा है. इनका नाम अशोक शिंह और भारत मालानी है. इन दोनों का पिछला संबंध भाजपा से बताया जा रहा है.

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इन दोनों के बीच हुई बातचीत को एफआईआर में दर्ज किया किया गया जिसमें पायलट का नाम गहलोत सरकार गिराने को लेकर आया है. जिसमें लिखा है “सरकार गिरने के बाद, नया सीएम बनेगा. भाजपा कहती है सीएम उनका होगा और डिप्टी सीएम केंद्र सरकार चुनेगी. लेकिन उपमुख्यमंत्री कहता है कि वह सीएम बनेगा.”

इसे लेकर गहलोत ने प्रेस कांफ्रेंस की थी. जिसमें केंद्र सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि “भाजपा नेताओं ने महामारी के समय मानवता की सारी सीमाएं लांघ दी हैं. ये अपने केन्द्रीय नेतृत्व के कहने पर गेम खेल रहे हैं.”

यानी मामले की गंभीरता राज्यसभा इलेक्शन के बाद ज्यादा होने लगी थी. जहां दोनों खेमों के बीच तनातनी चल रही थी. और यह तनातनी इतनी बढ़ गई है कि सचिन पायलट के कांग्रेस में बने रहने की संभावना कम ही दिख रहे हैं. हांलाकि खुद को सँभालते हुए अभी किसी पार्टी में जाने की बात उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नहीं की है. और भाजपा में जाने की अटकलों को नकार दिया है. तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि वह अपनी पार्टी फॉर्म कर सकते हैं. या कांग्रेस में लौटकर आते हैं तो बड़े समझौते के साथ ही वापसी कर पाएँगे.

किन्तु इतना सब होने के बावजूद भाजपा अभी भी फ्रंट फुट पर आकर मोर्चा सँभालने से कतरा रही है. उसका सीधा सा कारण है सीटों का नंबर गेम व खुद राजस्थान की भाजपा इकाई है. भाजपा इस समय माहौल को भांप रही है. भाजपा, कांग्रेस के भीतर गुटबाजी जरूर कर सकती है या इसका राजनीतिक फायदा उठा सकती है लेकिन इसका इतना लाभ होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है कि वह कमलनाथ सरकार की तरह गहलोत सरकार ही पलट दें.

इसमें सबसे बड़ी समस्या सीटों का है. मध्यप्रदेश में जहां कांग्रेस और भाजपा में सीटों का अंतर 5 था वहीँ राजस्थान में यह अंतर 35 का है. आज कांग्रेस की मीटिंग में संख्या को देखकर लगता है कि कांग्रेस बहुमत का आकड़ा गहलोत के बल पर ही पार कर सकती है. लेकिन अगर कांग्रेस से 30 इस्तीफ़ा देते भी हैं तो उपचुनाव में सरकार बनाने के लिए भाजपा को लगभग सभी सीटों पर जीत हांसिल करनी होगी. साथ उपचुनाव का रिस्क इस समय कोई विधायक नहीं लेना चाहता.

इसके अलावा सचिन पायलट की दावेदारी मुख्यमंत्री बनने की है. यह अपने आप में भाजपा के लिए बड़ी दिक्कत वाली बात है. भाजपा के लिए राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सख्सियत को कम आंकने जैंसा होगा. जिस पर खुद राजस्थान इकाई तैयार नहीं होगी. वहीँ भाजपा इतनी जल्दी दूसरी पार्टी से आए नेता को सीएम बनाने की भूल कतई नहीं कर सकती हैं. अगर मान भी लिया जाए वह अपने साथ 30 विधायक लेकर भी आते हैं तो उसके विधायकों को सत्ता के बंटवारे में समस्या झेलनी पड़ सकती है. एमपी में वैसे ही कैलाश विजवार्गीय खेमा भाजपा की कार्यवाहियों से नाखुश चल रहे हैं.

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फिलहाल खबर यह आ रही है कि मुख्यमंत्री आवास पर रखी गई मीटिंग में लगभग 100 से अधिक विधायक शामिल हुए थे. जिन्हें अब जयपुर के होटल फैर्मोंट में ठहराया गया है. यह विधायक होटल में क्यों रुके है बताने की जरुरत नहीं है. यानी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में छाए सियासी संकट को फिलहाल नियंत्रण में रखा हुआ है. लेकिन, मामला इतनी आसानी से शांत होता दिखता नहीं. अभी तो खेमें बटने शुरू हुए हैं. पार्टी ने अभी 4 महीने पहले ही बगावत के चलते एक युवा नेता को खो दिया है. अब फिर वही चीज का दोहराव राजस्थान में खुल कर सामने आ चुका है.

यानी इन सब से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिलहाल गहलोत सरकार बचा तो लेंगे जिसमें उनकी जीत होगी लेकिन पार्टी में बिखराव और सचिन पायलट के अलग होने से पार्टी की बड़ी हार भी होगी. वहीँ भाजपा तो बाहर से ही इस मामले में अपनी पारी सेट करने में लगी थी. उसके हाथ सत्ता आती तो वह गद्गद होती लेकिन अगर नहीं भी आती है तो कम से कम कांग्रेस के बड़े नुकसान से खुद को सांत्वना जरूर दे सकती है.

प्राय यह लगातार देखा जा रहा है कि सियासी राजनीति में दलबदल की राजनीति अधिकाधिक हो चली है. खासकर जो पार्टी केंद्र सत्ता में है उसकी तरफ जाने का दल बदलने का झुकाव अधिक हो रहा है. मौजूदा समय में भाजपा पार्टी “बाय हुक ओर बाय क्रूक” की नीति पर सरकार बना रही है. अगर खुद जनता के वोट से सरकार नहीं बना पाए तो दुसरे की सरकार गिरा कर सत्ता पर काबिज हो रही है. इसके उदाहरण हमारे सामने हैं. किन्तु इसके साथ खतरनाक बात यह कि देश में राजनेताओं के भीतर साधारण नैतिकता भी ख़त्म हो रही है. जनता द्वारा दिए मैंडेट को राजनेता जैसा चाहे वैसा इस्तेमाल कर रहा है. आज मामला यह कि जो नेता भाजपा में नहीं है अगर पूजापाठी हैं तो देर सबेर उन्हें घेर का भाजपा में ले ही लिया जाएगा. यह दलबदल पैसें, ताकत, महत्कांश के साथ साथ जातिगत अहम् और धार्मिक भेदभाव के कारण हो रहा है. देश उन हाथों में जा रहा है जिन्हें न उत्पादन की समझ है, न व्यापार की, न विज्ञानं की, और न ही तर्क की.

फोटो- सचिन पायलट और गहलोत की एक साथ फोटो,
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