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संदेह के बादल- भाग 4: क्यों अपने ही जाल में फंसती जा रही थी सुरभि

उसे यहां आए हुए 8 दिन हो गए थे, पर वह पूरी तरह से अपनी गृहस्थी संभाल नहीं पा रही थी. दैनिक दिनचर्या की छोटीछोटी परेशानियों में उस ने कभी दिलचस्पी नहीं ली थी. सभी शीतला कर रही थी. उस दिन रविवार था. सभी बाहर आंगन में बैठ कर सर्दी की कुनकुनाती धूप का आनंद ले रहे थे. शीतला कपड़े धो रही थी. मृदुल बालटी में से पानी निकाल कर शीतला पर उलीचता जा रहा था और खिलखिलाता भी जा रहा था.  प्रारूप मंत्रमुग्ध से पूरे दृश्य का आनंद ले रहे थे. बोले, ‘‘कुछ ही दिनों में शीतला ने मृदुल को अपने वश में कर लिया है.’’

‘‘हां, बच्चों के साथ बड़ों को भी अपने वश में करने की अद्भुत क्षमता है इस में,’’ प्रारूप तल्खीभरे स्वर में छिपे पत्नी के व्यंग्य को भली प्रकार समझ गए थे. जब पति की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला तो क्रोधावेश में उस ने रस्सी पर प्रारूप की कमीज फैलाते हुए शीतला के हाथों से कपड़े छीन लिए और उसे अंदर जा कर रसोई का काम संभालने का आदेश दिया था. इस अप्रत्याशित व्यवहार से शीतला कांप कर रह गई थी. वह सोचने लगी थी कि न जाने क्या अपराध हो गया उस से? मालकिन के मन में उठ रहे अंतर्द्वंद्व से पूर्णतया अनिभज्ञ शीतला अंदर जा कर हैंगर उठा लाई और सुरभि से बोली, ‘‘बीबीजी, यह साहब की कमीज हैंगर पर फैला दीजिए.’’ ईर्ष्या का नाग जैसे फन फैला कर खड़ा हो गया. न जाने कितनी देर तक उस की गिद्धदृष्टि शीतला के शरीर पर रेंगती रही. फिर उस के हाथ से हैंगर ले कर सुरभि ने जमीन पर पटक दिया.

प्रारूप कुछ परेशान हो उठे थे, बोले, ‘‘क्या बिगाड़ा  है इस गरीब अबला ने तुम्हारा, जो उसे यों अपमानित करने पर तुली हो?’’

‘‘तुम्हारी देखभाल किस तरह करनी है, यह क्या मुझे इस से सीखना पड़ेगा?’’

वह यों अकस्मात उमड़ आए पत्नीप्रेम पर विस्मित रह गए थे. सुरभि का तीव्र स्वर दोबारा सुनाई पड़ा, ‘‘अब मैं यहां आ गई हूं. शीतला की क्या जरूरत है यहां?’’ उस की आवाज में दांपत्य के दर्पभरे अधिकार का बोध था.

‘‘तुम चली जाओगी, फिर कौन संभालेगा यह घर?’’ प्रारूप का स्वर कहीं दूर से आता लगा.

‘‘मैं दीर्घावकाश ले कर आई हूं. जब तक तुम्हारा तबादला वापस दिल्ली नहीं हो जाता, मैं और मृदुल यहीं रहेंगे, तुम्हारे पास.’’ ‘‘तुम्हारे कैरियर और मृदुल के स्कूल का क्या होगा?’’ फिर अपनी तरफ से सही निर्णयात्मक ढंग से बात समाप्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘गरीब, लाचार औरत है बेचारी, आदमी कमाता नहीं है, 3-3 बच्चों का भरणपोषण इसी के जिम्मे है. यहीं काम करने दो इसे. बेचारी तुम्हारी मदद भी करती रहेगी.’’ ‘‘दुनियाभर के गरीबों का जिम्मा हम ने तो नहीं ले रखा?’’ बड़बड़ाती हुई पैर पटकती वह घर के अंदर चली गई थी. प्रारूप शायद सुन नहीं पाए थे या सुन कर भी अनसुना कर गए थे. ‘कितनी हमदर्दी है शीतला से,’ सुरभि बड़बड़ाती रही. उस के मन में शंका की लहरें फिर से हिलोरें लेने लगीं कि कहीं उन के हृदय के साम्राज्य पर यह शीतला अपना आधिपत्य तो नहीं जमाती जा रही? संदेह के बीज ने उसे ऐसा कुंठित किया कि वह दिग्भ्रमित सी हो उठी.

रसोई में आ कर उस ने ऊंचे स्वर में शीतला को पुकारा तो बेचारी कांप कर रह गई. हाथ में पकड़ा विदेशी कांच का गिलास धम्म से जमीन पर गिर कर चटक गया. अब तो सुरभि की पराकाष्ठा देखने के काबिल थी. जैसे बेचारी से ड्राइंगरूम का कोई कीमती फानूस टूट गया हो. शीतला की दबीसहमी सिसकियां सुन कर प्रारूप को यह समझते देर नहीं लगी थी कि वह आक्रोश अपरोक्ष रूप से उन पर ही बरसाया जा रहा है. शीतला की श्रद्धा और स्वामिभक्ति को उस ने दैहिक संबंधों के पलड़े पर ला पटका था. आत्मिक अनुभूतियों का मोल सुरभि कभी नहीं समझ पाएगी क्योंकि यह अनुभूति चेष्टा कर के नहीं लाई जा सकती. इन का संबंध मन की गहराई से होता है. तभी तो कभीकभी अपने, पराए बन जाते हैं और पराए, अपनों से भी अधिक प्रिय लगने लगते हैं. प्रारूप यह सब जानतेसमझते थे. उस के बाद तो जैसे दोषारोपों का सिलसिला ही शुरू हो गया था. इस घटना को घटे हफ्ताभर भी नहीं बीता था कि एक दिन जब प्रारूप औफिस से शाम को कुछ जल्दी घर लौट आए तो देखा कि घर में कुहराम मचा हुआ था. सुरभि ने रोरो कर पूरा घर सिर पर उठा रखा था. मृदुल सहमा सा खड़ा था. पूछने पर पता चला कि सुरभि की सोने की चेन गुम हो गई थी. सुन कर वे हतप्रभ रह गए.

सुरभि को शक निश्चित रूप से शीतला पर ही था, क्योंकि दूसरा कोई घर में आता ही नहीं था. उन्होंने लाख समझाना चाहा, उस से चेन ढूंढ़ने के लिए कहा, पर वह नहीं मानी थी. शीतला हर प्रकार से अपनी सफाई दे रही थी. पर उन्हें इस बात की जरूरत ही नहीं थी. जिस औरत ने कभी 4 पैसे की हेराफरी नहीं की वह इतना बड़ा अपराध कैसे कर सकती है, यह तो वे जानते थे. अपराधी के कठघरे में भयातुर, डरीसहमी सी शीतला के माथे पर उन्होंने ज्यों ही हाथ रखा था, वह बिलखबिलख कर रो पड़ी थी, ‘‘साहब, आप के घर का नमक खाया है. आप के साथ इतना बड़ा विश्वासघात मैं कैसे करूंगी?’’

पर सुरभि ने शीतला को जेल की चारदीवारी में बंद करवा कर ही चैन की सांस ली. आंख की किरच आंख से निकली ही भली. पर वह शायद यह नहीं समझ पाई थी कि झूठे अहं और संदेह के पलीते से भरा यह ऐसा भयानक विस्फोट था जिस ने पतिपत्नी के भावनात्मक संबंधों को हिला कर रख दिया. प्रारूप शीतला की जमानत करवा आए थे, अपने घर पर उन्होंने उसे फिर काम नहीं दिया था. उन के लिए उस की आंखों में तिरते उन अनुत्तरित प्रश्नों की शलाकाएं झेलना सहज नहीं था. उस के बाद वे अकसर दौरे पर रहते. घर पर रहते भी तो उदास से, बहुत कम बोलते थे. अपनी किताबों की दुनिया में ही खोए रहते. मृदुल के साथ जरूर बोलबतिया लेते थे. उस विद्रोहिणी नारी ने उन का चैन लूट लिया था. उस का सान्निध्य उन्हें वितृष्णा से भर देता था. शीतला के भूख से तड़पते बच्चे और अपाहिज पति की जब कभी कल्पना करते, मन तिरोहित हो उठता. उसे निकालना ही था, तो यों ही निकाल देती सुरभि, यों लांछन लगा कर तो उस ने उस बेचारी को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. अपमानित तो वह हुई ही, अब तो कोई काम पर भी नहीं रखेगा उसे. मन खिन्न हो उठा था. वे खुद भी तो छटपटाने के सिवा कुछ नहीं कर सके. उन का अब घर पर जी नहीं लगता था. पत्नी कई बार रोकने का प्रयत्न करती, पर उन का हर प्रयत्न अकारथ सिद्ध होता, अब उन का मन बुरी तरह उचट गया था.

एक रात प्रारूप दौरे पर गए थे. सुरभि  और मृदुल बंगले में अकेले थे.  अचानक बत्ती गुल हो गई. एक तो अकेली, ऊपर से अंधेरा. गरमी और उमस से बचने के लिए उस ने खिड़की खोली और स्टोर में जा कर लालटेन में मिट्टी का तेल भरा. उसे ला कर वह ज्यों ही तिपाई पर रखने लगी थी कि लालटेन औंधेमुंह जमीन पर गिर पड़ी और पूरा तेल मेजपोश पर छलक गया और पलक झपकते ही आग ने मेज, परदों और फर्नीचर को अपने चुंगल में ले लिया. फिर देखते ही देखते आग ने विकरालरूप धारण कर लिया. अंधेरे  में जब वह पानी की बालटी लेने बाथरूम में पहुंची तब तक आधा कमरा आग की लपटों में जल गया. कृत्यअकृत्य के चक्रवात में फंसी सुरभि को यह भी समझ नहीं आया कि बेटे को उठा कर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दे. डर और दहशत से आवाज भी घुट कर रह गई थी. चीखतीचिल्लाती भी तो उस नई अनजान जगह में उस की चीखें दीवारों से ही टक्कर मार कर, उस के कर्णपटल को भेद जातीं. कौन आता उस की सहायता करने?

तभी उस ने झोंपडि़यों की ओर से कुछ लोगों को अपने बंगले की ओर आते देखा. उस ने सोचा, सभी शीतला के रिश्तेदार होंगे. प्रारूप की अनुपस्थिति में लूटखसोट कर के घर का सामान ले जाएंगे और उसे और मृदुल को मार भी डालेंगे. कलुषित मन और सोच भी क्या कर सकता था? घबराहट के मारे सुरभि गश खा कर जमीन पर गिर पड़ी. उस के बाद क्या घटा, उसे नहीं मालूम. आंख खुली तो वह अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी थी. पास में बिस्तर पर मृदुल लेटा था. सामने प्रारूप खड़े थे. उन के सामने शीतला सपरिवार खड़ी थी. उसे होश में आते देख कर शीतला ने पूछा, ‘‘कैसी तबीयत है बीबीजी?’’ उस के हाथों की ओर सुरभि की नजर चली गई थी. दोनों हाथों पर पट्टियां थीं. पूरा चेहरा जगहजगह से झुलस गया था. उस ने क्षीण स्वर में पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथों को क्या हुआ?’’ ‘‘आप को और मृदुल को बचाने के प्रयास में इस के हाथ बुरी तरह झुलस गए हैं. समय पर अगर यह आप को न बचाती तो आप का बचना नामुमकिन था,’’ डाक्टर ने सुरभि को बताया तो एकाएक वह भयानक मंजर उसे याद हो आया था.

देर तक वह शीतला को निहारती रही. पश्चात्ताप के आंसुओं की अविरल धारा अपनी सारी सीमाएं तोड़ कर बह निकली थी, पर तब भी वह कुछ कह नहीं सकी थी. एक बार फिर अहं सामने आ गया. कुछ दिनोें तक अस्पताल में रहने के बाद सुरभि और मृदुल पूरी तरह से स्वस्थ हो घर आ गए थे. एक शाम प्रारूप के साथ सैर करते हुए वह शीतला की झोंपड़ी की ओर बढ़ने लगी तो प्रारूप ने उसे रोका, ‘‘उधर कहां जा रही हो?’’ ‘‘आज मत रोको मुझे. एक बार वहां जा कर प्रायश्चित्त कर लेने दो,’’ कह कर वह आगे बढ़ी और शीतला की झोंपड़ी के बाहर जा कर रुक गई. चिथड़ों में लिपट शीतला के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई, दौड़ कर उस ने चारपाई बिछाई और नम्रतापूर्वक उन के बैठने की प्रतीक्षा करने लगी. भूखेनंगे बच्चों को देख कर सुरभि का मन ग्लानि से भर उठा. वह मन ही मन सोचने लगी कि ईर्ष्या और डाह की विषबेल बो कर कैसा बदला लिया था उस जैसी शिक्षित नारी ने उस गरीब से? उस के पास पति था, प्यारा बेटा था, ऐश्वर्य, समृद्धि सभी कुछ तो था. खुद ही तो सहेजसमेट नहीं पाई इस सुख को. इस में दूसरों का क्या दोष? गाज गिराई भी तो उस पर जिस ने उस के पति की सेवा की? शीतला के साथ उस के पूरे परिवार को उस ने अपने परिहास की परिधि में घसीट लिया?

शीतला को पास बुला कर उस ने उसे अपने पास बैठाया. फिर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘तुम्हारे ऊपर मैं ने इतने आरोप लगाए, फिर भी मेरी और मेरे बेटे की रक्षा की तुम ने, तुम वास्तव में ही महान हो, शीतला.’’ ‘‘नहीं बीबीजी, मैं तो कुछ भी नहीं, महान तो बाबूजी हैं. इन्होंने मेरे बच्चों की भूख मिटाई. मेरे अपाहिज पति के इलाज के लिए ठेकेदार से पैसा दिलवाया और सब से बड़ा उपकार तो इन्होंने मेरी इज्जत बचा कर किया.’’ सुरभि समझ नहीं पा रही थी कि शीतला क्या कहना चाह रही है. शीतला फिर बोली, ‘‘बीबीजी, एक रात शराब के नशे में मेरे पति ने मुझे ठेकेदार के पास भेज दिया था. उस ने सोचा, इसी तरह से 4 पैसे का जुगाड़ भी हो जाएगा और बच्चों को रोटी, कपड़ा मिलता रहेगा. अब आप ही बताओ कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो उस औरत पर क्या बीतती होगी? तब बाबूजी ने ही मेरी रक्षा की थी. मैं तो अपना भाई, पिता सबकुछ ही इन्हें मानती हूं. मैं ने आप के घर का नमक खाया है और फिर जब मेहनत करने के लिए ये 2 हाथ दिए हैं तो इंसान कुकर्म करे ही क्यों?’’

सुरभि की नजरों में शीतला बहुत ऊपर उठ गई थी. आसमान से भी ऊपर. आज शीतला के कथन ने उसे इस अवधारणा से मुक्त कर दिया था कि औरत और मर्द के बीच हर रिश्ता शरीर तक ही सीमित नहीं, भावनाओं व संवेदनाओं का भी अपना स्थान है. प्रारूप कुछ कहना चाह ही रहे थे कि उस ने अपनी हथेली उन के होंठों पर रख दी. शीतला को अगले दिन ही काम पर आने के लिए कह कर वह लौट आई थी. अब नई सुबह, वह उस की प्रतीक्षा में खड़ी थी, जिस में संदेह और शंका के लिए कोई स्थान नहीं था.

 

संदेह के बादल- भाग 3: क्यों अपने ही जाल में फंसती जा रही थी सुरभि

‘‘आज तो साहब बाहर गए हैं, इसीलिए डब्बा साथ में ही दे दिया. वैसे तो घर में ही आ कर खाते हैं.’’ उसे उस की मासूमियत पर चिढ़ हो आई. वह चिढ़ते हुए सोचने लगी कि अपने पति की पसंदनापसंद भी इस गंवार से पूछनी पड़ रही है. उसे अपना अधिकार छिनता सा लगा. फिर भी शीतला को आलूमटर की सब्जी बनाने का आदेश दे कर वह अपने शयनकक्ष में आ कर लेट गई. थकान से पलकें बोझिल थीं, पर नींद कोसों दूर थी. शीतला मटर छील रही थी. मृदुल उस की पीठ पर झूला झूल रहा था. वह ज्यों ही झुकती, गहरे गले की चोली में से उस का गदराया शरीर दिखाई देता, जिसे लाख प्रयत्न करने के बावजूद उस की साड़ी का झीना आवरण छिपाने में असमर्थ था. सुरभि के मन में कई प्रश्न कुलबुलाने लगे कि कहीं शीतला के मदमाते यौवन और गदराए शरीर ने प्रारूप की संयमित चेतना को छितरा तो नहीं दिया? जब विश्वामित्र जैसे तपस्वी की चेतना को मेनका ने भंग कर दिया था तो प्रारूप तो साधारण पुरुष है. अम्मा ने बताया था. शीतला का पति अपाहिज है, उधर प्रारूप भी तो इतने बड़े बंगले में एकाकी जीवन बिता रहे हैं. 2 युवा प्राणी क्या स्वयं को संयमित कर पाए होंगे.

जब से अम्मा ने उसे प्रारूप के यहां शीतला की नियुक्ति की बात बताई थी, वह परेशान हो उठी थी. उस के मन में शंकाओं के जाल फैलने लगे थे. अपनी कल्पना में कभी वह शीतला और प्रारूप को आलिंगनबद्ध देखती तो कभी उसे मृदुल और प्रारूप के बीच बैठे देखती. कई दिनों से कोरे पड़े दिमाग पर जैसे भावों और विचारों का रेला आ गया हो. ‘यह क्या कर गईं अम्मा?’ उस ने मन ही मन सोचा था. किसी पुरुष को नियुक्त करतीं. आदमी आखिर आदमी होता है और औरत, औरत. इन

के आदिम और मूल रिश्तों पर किसीकिसी का ही बस चलता है. उस के पिता ने भी तो यही किया था. मृत्युशय्या पर पड़ी हुई उस की मां की सेवा के लिए नियुक्त नर्स को अपनी अर्धांगिनी बना  कर अपनी वफादारी का सुबूत दिया था. अम्मा बाबूजी का कितना ध्यान रखती  थीं, उन्हें खिलाए बगैर नहीं खाती थीं. जब तक वे सोते नहीं थे, तब तक खुद भी नहीं सोती थीं और अगर वह देर से उठते तो क्या मजाल, घर में जरा सा भी शोर कर दे कोई. कहतीं, बाबूजी की नींद में खलल पड़ेगा. उन की कितनी सेवा करती थीं, पर एक बार बिस्तर पर पड़ीं तो बाबूजी की सारी ईमानदारी आंधी में उड़ने वाले तिनके समान उड़ गई थी. मां लाख सिर पटकती रही थीं, पर मुट्ठी में बंद रेत की तरह सबकुछ फिसल कर रह गया था.

अम्मा तो दोषी नहीं थीं. हारीबीमारी पर किसी का जोर नहीं चलता है, पर सुरभि ने तो खुद मुसीबत को न्योता दिया था. ब्याह के बाद से आज तक उस ने पति की सेवा करना तो दूर, कभी उस के दिल में झांकने की भी चेष्टा नहीं की थी. यहां आने के लिए अम्मा ने उस पर कितना जोर डाला था. पर वही नहीं मानी थी. प्रारूप जब भी अपनी परेशानियों की चर्चा उस से करते, वह सुनीअनसुनी कर देती. अम्मा के कानों तक ये बातें न पहुंचें, यही प्रयत्न रहता था उस का. डरती थी कि अम्मा उसे जबरन प्रारूप के पास भेज देंगी, फिर उस की नौकरी का क्या होगा, उज्जवल भविष्य का क्या होगा? धीरेधीरे प्रारूप दिल्ली कम आने लगे थे. एक तो लंबा सफर उन के तनमन को शिथिल करता, ऊपर से पत्नी की तटस्थता और अवहेलना आहत कर जाती थी. बस, मां का प्यार और मृदुल का दुलार ही उन्हें शांति प्रदान करता था. फोन पर अकसर बात कर लेते थे. वह भी ज्यों ही सुरभि फोन उठाती, उन्हें कई काम याद आ जाते थे. कहनेसुनने को रहा भी क्या था? उन का भावुक मन कहां आहत हुआ था, इस की तो महत्त्वाकांक्षी सुरभि कल्पना भी नहीं कर पाई होगी.

पिछली बार उन्होंने अम्मा को फोन पर बताया था कि वे काफी दिनों से बीमार थे, उन्हें अतिसार हो गया था. अन्न का एक दाना भी नहीं पचता था. बेटे की बीमारी की खबर सुन कर मां सुलग उठी थीं. उन्होंने अपने जमाने की कई पतिव्रता औरतों के उदाहरण दे डाले थे कि ऐसे समय में पत्नी ही तो पति की सेवा करती है. बीमार इंसान दवा के साथसाथ प्यार व सहानुभूति की भी आशा रखता है. पर सुरभि के समक्ष सुनहरा भविष्य और शानदार कैरियर एक बार फिर मुंहबाए खड़ा हो गया था. उन दिनों दफ्तर में पदोन्नति की नई सूची बन रही थी. ऐसे में उस का कहीं भी जाना नामुमकिन था. यों उस ने फोन पर पानी उबाल कर पीने और समय पर दवा लेने की हिदायतें दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी थी. बेटे के पास अम्मा ही पहुंची थीं. अम्मा ने ही पूरी तरह से उन की देखभाल की थी. जब लौटने लगीं तो शीतला को प्रारूप की देखभाल के लिए नियुक्त कर आई थीं.

घर लौट कर उन्होंने शीतला की प्रशंसा में जमीनआसमान एक कर दिया था. अब यह प्रशंसा बहू को कुढ़ाने के लिए करती थीं या उस के मन में पति के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित करने के लिए, यह तो वही जानें, पर सुरभि इस अनदेखी महिला के प्रति ईर्ष्यालु हो उठी थी. शीतला के रूप में उस के समक्ष मानो एक पत्थर की दीवार खड़ी हो गई थी. ठोस, ठंडी और पथरीली दीवार जिस पर वह मुट्ठियां पटकती रहती, पर कोई उत्तर नहीं मिलता था. पतिपत्नी के अंतरंग संसार को नष्टभ्रष्ट करता कोई तीसरा वहां पसर जाए, इस से पहले ही वह यहां आ पहुंची थी.

संदेह के बादल- भाग 2: क्यों अपने ही जाल में फंसती जा रही थी सुरभि

उस ने घड़ी की ओर दृष्टि घुमाई. 9 बजने को आए थे. प्रारूप के दफ्तर जाने का समय हो गया था. यह सोच वह नाश्ता बनाने के लिए उठने लगी तो उन्होंने सबल रोक दिया, ‘‘जब से बीमार हुआ हूं, गरिष्ठ भोजन सुबहसुबह पचता नहीं है. शीतला को मां सब समझा गई हैं. वही बना कर ले आएगी, तुम आराम से बैठो.’’ मेज पर रखे बरतनों की खनखनाहट सुन कर उस की नजर उस ओर चली गई थी. इलायची का छौंक लगा कर बनी खिचड़ी की सोंधी महक कमरे में फैल गई थी. नाश्ता कर के दफ्तर जाते समय प्रारूप उस से कहते गए, ‘‘जो भी काम हो, शीतला से कह देना. यह सब काम बड़े सलीके से करती है.’’ अनायास कहे पति के वाक्य उसे अंदर तक बींध गए. वह खुद पर तरस खा कर रह गई थी. ब्याह के बाद कुछ ही दिनों में पतिपत्नी के बीच संबंधों की खाई इसी बात पर ही तो गहराती गई थी. प्रारूप ऐसी सहभागिता, सहधर्मिणी चाहते थे जो ढंग से उन की गृहस्थी की सारसंभाल करती, उन की बूढ़ी मां की सेवा करती और जब वे थकेहारी दफ्तर से लौटे तो मृदु मुसकान चेहरे पर फैला कर उन का स्वागत करती. लेकिन सपनों की दुनिया में विचरण करने वाली, स्वप्नजीवी सुरभि के लिए ये सब बातें दकियानूसी थीं. वह तो पति और सास को यही समझाने का प्रयत्न करती रही कि औरत की सीमाएं घरगृहस्थी की सारसंभाल और पति व सास की सेवा तक ही सीमित नहीं हैं. नौकरी कर के चार पैसे कमा कर जब वह घर लाती है, तभी उसे पूर्णता का एहसास होता है.

प्रारूप समझाते रह गए थे कि उन की खासी कमाई है, सिर पर छत है, जिम्मेदारी कोई खास नहीं, और जो है भी, उस का निर्वहन करने में वे पूर्णरूप से सक्षम हैं. ?पर महत्त्वाकांक्षी सुरभि के ऊपर से सबकुछ जैसे चिकने घड़े पर पड़े पानी सा उतर गया. अम्मा सोचतीं कि एक बार मातृत्व बोध होने पर खुद ही घरगृहस्थी में रम जाएगी पर वहां भी निराशा ही हाथ लगी. मृदुल की किलकारियां दादी और पिता ने ही सुनी थीं. उन्हीं दोनों की छत्रछाया में वह पलाबढ़ा था. कुछ समय बाद प्रारूप को पदोन्नति मिली जिस से तनख्वाह भी बढ़ी और रहनसहन का स्तर भी. उन्होंने मृदुल का दाखिला एक अच्छे पब्लिक स्कूल में करवा दिया था. कभी किसी चीज की कमी नहीं थी. एक बार फिर उन्होंने सुरभि को नौकरी छोड़ने के लिए कहा था, समझाया था कि बच्चे की सही परवरिश के लिए मां का घर पर होना बहुत जरूरी है. पर भौतिकवाद में विश्वास करने वाली पत्नी ने उन्हें यह कह कर चुप करवा दिया कि यह परवरिश तो आया और शिक्षिका भी कर सकती हैं. और फिर, दोहरी आय से ये सुविधाएं तो आसानी से जुटाई जा सकती हैं.

नन्हें मृदुल के मुंह में जब आया निवाला डालती तो प्रारूप क्षुब्ध हो उठते. बूढ़ी अम्मा को घर के काम में जुटा देखते तो मन रुदन कर उठता कि उन्होंने ब्याह ही क्यों किया? इस बात का जवाब अपने मन में ढूंढ़ना खुद उन के लिए बहुत बड़ा संघर्ष था. एक बोझ की मानिंद सारे कार्यकलाप निबटाते रहते, पर अपनी सहधर्मिणी से वे कभी लोहा नहीं ले पाए. उन में अपने बिफरते मन को संभालने की अद्भुत क्षमता थी. उन के मन की गहराइयों में जब भी उथलपुथल मचती, लगता ज्वालामुखी फट पड़ेगा, लावा निकलने लगेगा. मनप्राण जख्मी हो कर छटपटाने जरूर लगते थे, पर उन के मुंह से बोल नहीं फूटते थे. शायद समझ गए थे, कुछ भी कह कर अपमानित होने से अच्छा है होंठ सी कर रहा जाए.

उन्हीं दिनों उन का स्थानांतरण दार्जिलिंग हो गया. प्रारूप वहां जाना नहीं चाहते थे. इसलिए नहीं कि उन्हें दिल्ली से विशेष लगाव था, बल्कि इसलिए कि वे जानते थे कि सुरभि कभी भी उन के साथ चलने को तैयार नहीं होगी और न ही नौकरी से त्यागपत्र देगी. ऐसे में अम्मा और मृदुल को अकेले भी नहीं छोड़ सकते और स्वयं रुक भी नहीं सकते. इसलिए अकेले ही जाने का निश्चय कर के उन्होंने अपना यह निर्णय जब अम्मा को सुनाया तो उन के धैर्य का बांध ढहने लगा. वे उन्हें वहां अकेले कैसे जाने देतीं? कौन उन की देखभाल करेगा? मां ने सुरभि को समझाया था, ‘पतिपत्नी को एक ही देहरी में रहना होता है. जनमजनम का साथ होता है दोनों का,’ पर सुरभि ने मां की बात समझने के बदले, समझाना उचित समझा था. अपनी ओर से खुद ही सफाई दे कर उस ने पलभर में अपना निर्णय सुना दिया था, ‘3 ही बरस की तो बात है, पलक झपकते ही गुजर जाएंगे. अब तो मृदुल भी अच्छे स्कूल में जाने लगा है. अच्छे स्कूलों में दाखिले आसानी से तो मिलते नहीं. एक बार पूरा तामझाम समेटो और फिर वापस आओ, मुझ से नहीं होगा यह सब.’

वे अपनी अर्धांगिनी से इस से अधिक आशा कर भी नहीं सकते थे. प्रारूप ऐसे मौकों पर गजब की चुप्पी इख्तियार कर लेते थे. वैसे भी, जहां मन की संधि न हो, पतिपत्नी साथ रह कर भी एक दूरी पर ही वास करते है. अम्मा परेशान हो उठी थीं. बेटे से बहू के अलग रहने का खयाल उन्हें सिर से पैर तक हिला गया, पर क्या कर सकती थीं सिवा चुप्पी साधने के.

‘‘बीबीजी, दोपहर में क्या खाना बनाऊं?’’

शीतला के प्रश्न पर अतीत की खोह से निकल कर वह वर्तमान में लौट आई थी.

‘‘साहब क्या खाते हैं इस समय?’’

संदेह के बादल- भाग 1: क्यों अपने ही जाल में फंसती जा रही थी सुरभि

सारी रात सुरभि सो नहीं पाई थी. बर्थ पर लेटेलेटे ट्रेन के साथ भागते अंधकार को कभीकभी निहारने लगती. इतने समय बाद अपने पति प्रारूप से मिलने की सुखद कल्पना से उस के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई थी. गाड़ी ठीक सुबह 5 बजे स्टेशन पर आ गई थी. कुली बुलवा कर उस ने सामान उतरवाया और उनींदे मृदुल को गोद में ले कर स्टेशन पर उतर कर अपने पति प्रारूप को ढूंढ़ने लगी. चिट्ठी तो समय पर डाल दी थी उस ने, फिर क्यों नहीं आए? कहीं डाक विभाग की लाखों चिट्ठियों में उस की चिट्ठी खो तो नहीं गई? वरना प्रारूप अवश्य आते.

हवा में काफी ठंडक थी. सर्दी अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई थी. उस शीतल बयार में भी पसीने के कुछ कण उस के माथे पर उभर आए थे. नया शहर, नए लोग, अनजान जगह. ऐसे में अपना घर ढूंढ़ भी पाएगी या नहीं. उस ने पर्स खोल कर पते की डायरी निकाली और पास खड़े रिकशे वाले को कस्तूरबा गांधी मार्ग चलने का निर्देश दे कर पहले रिकशे में सामान रखवाया और फिर गोद में मृदुल को ले कर खुद भी बैठ गई. कैसी अजीब सवारी है यह रिकशा भी? उस ने सोचा, हर समय गिरने और फिसलने का डर बना रहता है. 2 लोग भी कितनी मुश्किल से बैठ पाते हैं. दिल्ली में होती तो अपनी गाड़ी को दौड़ाती हुई अब तक कई किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी होती.

शहर की सुनसान सड़कें लांघता हुआ रिकशा एक बंगले के पास आ कर रुक गया था. बाहर नेमप्लेट पर अधिशासी अभियंता प्रारूप कुमार का नाम पढ़ कर उसे अपने गंतव्य तक पहुंचने की सूचना मिल गई थी. चारों ओर से भांतिभांति के पेड़ों से घिरे छोटे से बंगले तक पहुंचने के लिए उस ने रिकशे वाले को बाहर गेट पर ही पैसे दे कर विदा किया और हाथ में बैग पकड़ कर बंगले के बाहर आ कर खड़ी हो गई थी. पहले का समय होता तो सीढि़यां लांघती हुई, संभवतया धड़धड़ाती हुई अब तक घर के अंदर पहुंच चुकी होती, पर इस समय एक अव्यक्त संकोच उस के पांव जकड़ रहा था. घर तो उस का ही है. प्रारूप के घर को वह अपना ही तो कहेगी, लेकिन पिछले कई दिनों से उन के बीच एक दीवार सी खिंच गई थी, जिसे बींघने का प्रयत्न दोनों ही नहीं कर पा रहे थे. अब तो काफी दिनों से न तो कोई पत्रव्यवहार उन दोनों के बीच था और न ही बोलचाल. उस ने अपने आगमन की सूचना भी मृदुल से करवाई थी. वह बेला, चमेली की झाडि़यों के बीच काफी देर तक यों ही सूटकेस थामे खड़ी रही.

‘‘सुरभि.’’

चिरपरिचित आवाज पर वह पीछे मुड़ गई थी, जैसे मुग्धावस्था से चौंकी हो. इतने समय बाद प्रारूप को देख कर वह किसी अमूल्य निधि को पा लेने की सुखद अनुभूति से अभिपूरित हो उठी थी. उन्हें एकटक निहारती रह गई थी. रंग पहले से अधिक खिल उठा था. शरीर छरहरा पर चुस्तदुरुस्त. हां, कनपटियों पर चांदी के तार खिल आए थे. सुबह की सैर से लौटे थे  शायद.

‘‘चलो, अंदर चलो. यहां क्यों खड़ी हो?’’ अपने कंधे पर कोमल स्पर्श पा कर वह चौंकी.

‘‘शीतला, सामान उठा कर अंदर रखवा दो,’’ आदेश दे कर उन्होंने मृदुल को गोद में उठा लिया और पत्नी से प्रश्न किया, ‘‘चिट्ठी लिख देतीं, मैं तुम्हें लेने स्टेशन आ जाता.’’

‘‘लिखी तो थी, फोन भी करवाया था. पता चला दौरे पर गए हुए थे तुम,’’ उस ने रुकरु क कर कहा.

‘‘अच्छा, शायद शीतला डाक देना भूल गई है. पिछले दिनों काफी व्यस्त रहा,’’ वे अपने विभाग के कई किस्से सुनाते रहे थे, पर उसे लगा, प्रारूप जानबूझ कर टाल गए हैं. तभी शीतला ट्रे में प्रारूप के लिए नीबूपानी, उस के लिए चाय और मृदुल के लिए गिलास में दूध व कुछ बिस्कुट रख गई थी. पितापुत्र बातों में ऐसे व्यस्त हो गए जैसे सबकुछ एक ही दिन में जान, समझ लेंगे. चाय की चुस्कियां लेते वह झाड़ू लगाती हुई शीतला को देखने लगी. सांवला चेहरा, कुमकुम की बिंदी, लाल बौर्डर की तांत की साड़ी और कोल्हापुरी चप्पल, छरहरा शरीर जैसे उस की अपनी थुलथुल काया का परिहास कर रहा था. गजब का आकर्षण है इस तरुणी में, चेहरे पर कुटिल मुसकान घिर आई थी. मां को काफी जतन करना पड़ा होगा इसे ढूंढ़ने में? सुरभि ने मन ही मन सोचा था.

चाय की चुस्कियां लेते हुए उस ने चोर दृष्टि से घर के हर कोने की टोह ले ली. घर का हर हिस्सा साफसुथरा और सुव्यवस्थित था. कमरे में नीले रंग के परदे और बरामदे में रखे सुंदर क्रोटोन विगत के कई दृश्यों को सजीव कर गए थे. लाल रंग सुरभि को पसंद था, जबकि प्रारूप को हलका नीला आसमानी रंग भाता था. वे कहते, खुले उन्मुक्त आकाश का परिचय देता है यह रंग, पर उन की कहां चली थी. सुरभि ने ज्यों ही लाल रंग के परदों से अपनी बैठक को सजाया, प्रारूप ने वहां बैठना बंद कर दिया था. उन्होंने खुद को अपने कमरे में कैद कर लिया था. एक बार यों ही रंगबिरंगे क्रोटोन के कुछ गमले ला कर प्रारूप ने बरामदे में सजाए, तो भी सुरभि का पारा 7वें आसमान पर पहुंच गया था, ‘छोटी सी बालकनी है, 2 आदमी तो ढंग से खड़े नहीं हो सकते, गमले कहां रखोगे?’

पौधे बेचारे खादपानी के बिना यों ही मुरझा गए थे. इस समय शीतला यत्नपूर्वक छोटी कैंची से क्रोटोन के सड़ेगले पत्ते काट कर फेंकती जा रही थी. गुड़ाई करते समय, उस के हिलतेडुलते शरीर को देख कर सुरभि की भृकुटी तन गई. उस ने सोचा, कैसी बेशर्म औरत है, कम से कम प्रारूप दफ्तर चले जाते तब कर लेती यह सारसंभाल. लेकिन नहीं, मालिक के सामने अच्छा बन कर दिखाएगी, तभी तो कुछ दिन टिकेगी और चार पैसे भी ज्यादा मिलेंगे. इन्हीं हावभावों का प्रदर्शन कर के तो मर्दों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं. ‘नीच,’ वह कुड़बुड़ाई. फिर प्रत्यक्ष में प्रारूप से प्रश्न किया, ‘‘माली देखभाल नहीं करता क्या पौधों की?’’

‘‘करता है मेमसाहब, पर साहब को उस का काम पसंद नहीं है.’’ शीतला के उत्तर से उस के मन में खीझ सी उत्पन्न हुई थी. पतिपत्नी की बातों में यह क्यों दिलचस्पी ले रही है? दोएक बार उस ने प्रारूप का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास किया, पर वे मृदुल की ही बातों में उलझे रहे थे. कहीं उस का यों अचानक आना उन्हें बुरा तो नहीं लगा? मन में संदेह का बीज अंकुरित हो उठा था.

मैं 21 वर्षीय युवक हूं लेकिन मेरा कम्युनिकेशन स्किल अच्छा नहीं है क्या करुं?

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवक हूं. कालेज की पढ़ाई पूरी कर चुका हूं. शुरू से ही पढ़ाईलिखाई में अव्वल रहा हूं. कालेज में आ कर मुझे यह एहसास हुआ कि बेशक मैं पढ़ाई में तेज हूं लेकिन मेरा कम्युनिकेशन स्किल अच्छा नहीं है. क्लास में कुछ लड़के पढ़ाईलिखाई में ज्यादा तेज नहीं थे लेकिन अपने बोलने के तरीके से वे कक्षा में सब को प्रभावित कर देते थे. मैं सब के सामने अपनी बात बोल तो देता हूं पर प्रभावित नहीं कर पाता. ऐसा क्या करूं कि जब मैं बोलूं तो सब का ध्यान मेरी तरफ आकर्षित हो?

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जवाब

व्यक्ति के व्यक्तित्व को सिर्फ पढ़ाईलिखाई नहीं निखारती, बल्कि उस का उठनाबैठना, बोलने का तरीका, पहनावा आदि बातें भी व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाती हैं.

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जहां तक आप की बात है, पढ़ाईलिखाई में आप अव्वल हैं लेकिन सब के सामने अपनी बात रखने का तरीका आप को नहीं आता. आप की कैरियर बनाने की उम्र है और किसी भी प्रोफैशन या सामाजिक तौर पर कम्युनिकेशन स्किल सब से जरूरी है. जब तक आप अच्छे से कम्युनिकेट नहीं कर पाएंगे, आप की ग्रोथ नहीं होगी.

सब से पहले अपनी बौडी लैंग्वेज को जज करें, कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप बोल तो कुछ रहे होते हैं और बौडी लैंग्वेज कह कुछ और रही होती है. बात करने के दौरान यह जानें कि आप किस से बात कर रहे हैं. हर किसी के साथ बात करने का तरीका अलग होता है. जब आप एक बच्चे के साथ बात करते हैं तो अलग तरह के कम्युनिकेशन का सहारा लेते हैं. वहीं, औफिस में हमें प्रोफैशनल कम्युनिकेशन स्किल्स का सहारा लेना होता है. बातचीत के दौरान सही शब्दों के चयन पर ध्यान देने लगेंगे तो लोग आप की बातों को ध्यान से सुनना शुरू कर देंगे.

हमेशा शांत और सहज रहें. बातों में किसी भी प्रकार का तकियाकलाम हमेशा जोड़ने की कोशिश न करें. पौइंट टू पौइंट बात करना आप के लिए और सामने वाले दोनों के लिए आसान होगा. जो भी बोलें, उस पर कायम रहें. बारबार अपनी ही बात न काटें. एक बात हमेशा ध्यान में रखें कि दूसरे की बात भी सुनें, न कि अपनी ही हांकते रहें. इन सब बातों का ध्यान रखना शुरू कर दें, आप अवश्य परिवर्तन देखेंगे.

 

कैसे हो मशरूम का अच्छा उत्पादन

लेखक-  सतपाल सिंह, डा. गोपाल सिंह एवं डा. आरएस सेंगर

मशरूम एक उच्चवर्गीय कवक है, जो औषधि और भोजन दोनों के रूप में प्रयोग किया जाता है. भिन्नभिन्न ऋतु में विभिन्न प्रकार की मशरूम की खेती की जाती है. वर्षा ऋतु में मुख्यत: मिल्की और ऋषि मशरूम की खेती की जाती है, जिन की खेती के लिए उच्च तापक्रम और अंधकार की आवश्यकता होती है. कुछ मशरूम के लिए कम तापक्रम और अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है, जिन्हें शरद ऋतु में उगाया जाता है.

मशरूम को अंधेरे कमरे में उगाया जा सकता है और इस से गांव के गरीब किसान अपनी आय को आसानी से बढ़ा सकते हैं. मशरूम का बाजार में मूल्य 100 रुपए से ले कर 250 रुपए प्रति किलोग्राम होता है, जबकि औषधीय मशरूम का मूल्य लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक होता है

मशरूम उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार की ओर से अनेक परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, जिन के माध्यम से देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र किसानों को मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं.

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मशरूम मुख्यत: सड़ीगली चीजों पर वर्षा ऋतु में उगता है. इस में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता, इसलिए इस का रंग हरा नहीं होता.

यह भोजन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इस में पौष्टिक और औषधीय दोनों गुण होने के कारण इस का बहुतायत में उपयोग किया जा रहा है. इस में कार्बोहाइड्रेट और वसा कम मात्रा में पाई जाती है. इस में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. साथ ही, इस में विटामिन और खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

इसे क्षेत्रीय भाषाओं में धरती के फूल, खुंबी, कुकुरमुत्ता, छत्रक, भूमि कवक आदि नामों से भी जाना जाता है. इस की सब्जी को शाकाहारी मीट भी कहा जाता है.

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आजकल इस की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है, क्योंकि इसे आसानी से घरों में ही उगाया जा सकता है. इस के लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती. मशरूम को गेहूं के भूसे, सूखी पत्तियों, धान के पुआल, लकड़ी के बुरादे, गन्ने की सूखी पत्तियों और नारियल के कचरे आदि पर उगाया जा सकता है. वर्षा ऋतु में गोबर के ढेरों पर कुछ मशरूम अपनेआप  उग जाती हैं, जो जहरीली होती हैं, उन्हें नहीं खाना चाहिए.

वैसे, मशरूम में खाने योग्य और विशिष्ट गुण होते हैं. ऐसी मशरूम के लिए उस का बीज किसी ऐसे संस्थान से

लिया जाए, जो विश्वसनीय है. जैसे कि मशरूम प्रयोगशाला, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्रों आदि स्थानों से लिया जा सकता है.

मशरूम उत्पादन का तरीका

वर्षा ऋतु में मुख्यत: 2 प्रकार की मशरूम उगाई जा सकती?हैं, जिन में दूधिया (मिल्की) मशरूम और गैनोडर्मा (ऋषि) मशरूम आती हैं.

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दूधिया मशरूम या मिल्की मशरूम की खेती भारत में काफी समय से की जा रही है. यह मशरूम देखने में दूध जैसी सफेद होती है, इसीलिए इस को दूधिया मशरूम भी कहते हैं.

इस मशरूम की खेती के लिए उच्च तापक्रम और अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है. इस मशरूम की खेती जुलाई से नवंबर महीने तक की जा सकती है.

मिल्की यानी दूधिया मशरूम को गेहूं के भूसे पर अथवा पुआल पर उगाया जा सकता है, जिस के लिए भूसे को रातभर पानी में भिगो कर रखा जाता है. इस पानी में फौर्मलीन और कार्बंडाजिम नामक 2 रसायन एक निश्चित अनुपात में इसलिए मिलाए जाते हैं, जिस से यह भूसा रोगाणुमुक्त हो जाता है. अगली सुबह भूसे से अतिरिक्त पानी निकाल कर साफ फर्श  पर सुखाने के लिए फैला दिया जाता है.

भूसे को उपचारित या रोगाणुमुक्त करने की एक अन्य विधि भी है, जिस में भूसे को गरम पानी में 2 से 3 घंटे तक उबाला जाता है. इस विधि को जैविक विधि भी कहते हैं. लगभग  60 फीसदी नमी रह जाने पर भूसे में मशरूम का बीज मिला दिया जाता है और उसे फिर पौलीथिन में भर देते हैं. इस पौलीथिन में 10 से 12 छेद कर दिए जाते हैं और इस का मुंह  बांध दिया जाता है. इसे अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है.

जब फफूंद पूरे भूसे को अपने जाल में बंद कर लेती है, तब पौलीथिन का मुंह खोल दिया जाता है और इस के मुंह पर एक से 2 सैंटीमीटर मोटी केसिग की परत चढ़ा दी जाती है. इस केसिग में कंपोस्ट, नदी का रेत और बाग की मिट्टी होती है जो समान अनुपात में मिक्स करने के बाद रोगाणुरहित की जाती है.

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केसिग के 3 से 4 दिन बाद बैग से छोटेछोटे आकार की मशरूम निकलने लगती हैं. अब इस पर पानी का हलका स्प्रे करना शुरू करते हैं और यह धीरेधीरे बढ़ने लगती है. लगभग 8 दिन के बाद मशरूम तुड़ाई के  लिए तैयार हो जाती है, जिसे तोड़ कर बेच  दिया जाता है. इस का बाजार में 100 रुपए से ले कर 150 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव में मिल जाता है.                   ठ्ठ

 मशरूम की खेती के ये हैं महत्त्व

* मशरूम कृषि से बचे अवशेषों का उपयोग कर के उत्पादन करती है और उन्हें सड़ागला कर खाद बना देती है.

* मशरूम प्रकृति के चक्र को बनाए रखती है.

* मशरूम विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग की जाती है.

* यह अतिरिक्त आय का स्रोत है.

* ग्रामीण और कम पढ़ेलिखे लोगों के लिए आय का अच्छा साधन है.

* मशरूम के उत्पादन को गांव में रहने वाली औरतें भी आसानी से कर सकती हैं.

* मशरूम में काफी पौष्टिक गुण पाए जाते हैं, जो कुपोषण के शिकार लोगों के लिए अच्छा साधन हैं.

* मशरूम प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है.

* मशरूम से प्रति क्षेत्रफल अधिक उत्पादन मिल जाता है.

मशरूम को उगाने के लिए बीज विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए, जिन के कुछ उदाहरण निम्न हैं :

1. पादप रोग विज्ञान विभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ.

2. पादप रोग विज्ञान विभाग, चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर.

3. पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा.

4. पादप रोग विज्ञान विभाग, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर.

5. पादप रोग विज्ञान विभाग, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार.

6. साथ ही, विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों से भी मशरूम के बीज हासिल किए जा सकते हैं.

 कितना जरूरी है मशरूम प्रशिक्षण

मशरूम के उत्पादन के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, अपितु इस के रखरखाव और देखभाल के लिए कुछ जानकारी की आवश्यकता होती है. यह जानकारी विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त की जा सकती है. समयसमय पर इन कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिन में भाग ले कर यह जानकारी हासिल की जा सकती है.

सरकार द्वारा मशरूम के प्रोत्साहन के लिए विभिन्न परियोजनाएं चलाई जा रही?हैं, जिन के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं. इन में अखिल भारतीय समन्वित मशरूम विकास परियोजना मुख्य है. इस के अंतर्गत सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय खुंबी अनुसंधान केंद्र, चंबाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश विभिन्नविभिन्न स्थानों पर अलगअलग समय पर प्रशिक्षण देते हैं और राज्य सरकारें भी इस के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराती हैं.

यह प्रशिक्षण उद्यान निदेशालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, पादप रोग विज्ञान विभाग, कृषि विश्वविद्यालय चंद्रशेखर आजाद, कानपुर और सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ और विभिन्न राज्यों के उद्यान विज्ञान विभाग से प्राप्त किया जा सकता है.

फेस्टिवल स्पेशल :जिंदगी में कड़वाहट न घोल दें मीठा, रखें इन बातों का खास ख्याल

एक टुकड़ा केक, 2 लड्डू, दिन में 4-5 कप चाय या कौफी, ठंडा पेय, बिस्कुट, हलवा, खीर और भी न जाने क्याक्या. इस तरह हम दिन भर में 1 कप चीनी खा जाते हैं. 1 कप यानी 770 कैलोरी. क्या आप भी औरों की तरह यह परवाह नहीं करतीं कि आप के शरीर को कितनी शकर की जरूरत है और कितनी आप खा रही हैं या फिर आप इतनी व्यस्त हैं कि इस के बारे में सोचनेसमझने की फुरसत ही नहीं है आप को?

स्वास्थ्य के लिहाज से क्या यह मिठास हमारे जीवन में कड़वाहट नहीं भरेगी? आइए जानते हैं कि ज्यादा मीठा हमें कितना नुकसान पहुंचाता है.

एक सर्वे के अनुसार अब हम पहले से कई गुना अधिक शकर का सेवन कर रहे हैं. यह शकर अधिक नुकसानदेह इसलिए भी है कि जिन स्रोतों से यह प्राप्त हो रही है वे प्राकृतिक न हो कर अप्राकृतिक हैं. इसीलिए यह फायदा कम नुकसान ज्यादा करती है. जितनी शकर हम खाते हैं, उस का केवल एकचौथाई ही प्राकृतिक स्रोतों-फलों, सब्जियों और डेयरी उत्पादों से प्राप्त होता है. बाकी तीनचौथाई खाद्यपदार्थों को सुस्वाद बनाने के लिए उपयोग की गई कृत्रिम चीनी के रूप में लेते हैं. जैसे ठंडे पेय, आइसक्रीम, बिस्कुट, केक, मिठाई आदि.

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दांतों में सड़न

दांतों की सड़न की जिम्मेदार चीनी ही होती है, क्योंकि दांतों के कीटाणु मीठे पर ही आश्रित होते हैं. ये कीटाणु ऐसा ऐसिड छोड़ते हैं, जिस से दांतों में कीड़ा लग जाता है व दांत खोखले हो जाते हैं. लेकिन दांतों के संक्रमण के लिए केवल मीठी चीजें ही दोषी नहीं होती हैं. कोई भी कार्बोहाइड्रेट रोटी या अन्य खाद्यपदार्थ भी उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं जितना चीनी. चिपकने वाली मिठाई के सेवन से बचना चाहिए. धीरेधीरे घुलने वाली गोलियां, टौफियां, जो दांतों के बीच फंस जाती हैं, से भी परहेज करना ही ठीक है. सोने से पहले नियमित ब्रश करने से इस नुकसान से बचा जा सकता है.

जो मधुमेह के रोगी नहीं हैं, उन्हें चीनी खाने से मधुमेह रोग नहीं होता है. पहले डाक्टरों का सोचना था कि अगर मधुमेह का रोगी चीनी का सेवन करेगा, तो उस के खून में ग्लूकोज की मात्रा पर वही प्रभाव पड़ेगा, जो रोटीचावल या आलू खाने से पड़ता है. मगर अमेरिकन मधुमेह ऐसोसिएशन मधुमेह के रोगियों को नियंत्रित रूप से चीनी सेवन की छूट देती है. वह आश्वस्त करती है कि सामान्य व्यक्ति चीनी के सेवन से मधुमेह का रोगी नहीं हो सकता.

केवल चीनी को दोषी ठहराना ठीक नहीं

योनि, आंतों व खून में बनने वाला फेन शकर से ही बनता है. लेकिन जरूरत से ज्यादा चीनी के सेवन से यह नियंत्रण के बाहर हो जाता है. नतीजा, मोटापा व योनि क्षेत्र में खुजली व संक्रमण हो जाता है. ध्यान रहे, चीनी से आंतों या योनि में तब तक संक्रमण नहीं हो सकता जब तक आप को स्वास्थ्य संबंधी कोई और व्याधि न हो.

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शकर से हृदयरोग भी नहीं होता

आवश्यक मात्रा में शकर लेने से हृदयरोग नहीं होता है. हां, अधिक कैलोरी व कार्बोहाइड्रेट्स वाला आहार लेने से वजन बढ़ता है, जिस से हृदयरोग का खतरा बढ़ जाता है.

कोई भी शोध आज तक यह प्रमाणित नहीं कर पाया है कि चीनी खाने से बच्चों में कोई मानसिक विकृति होती है.

जरूरत से ज्यादा चीनी लेने के खतरे

जरूरत से ज्यादा चीनी के सेवन से वजन बढ़ सकता है क्योंकि चीनी में कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है. इस से भी ज्यादा खतरे की बात यह है कि अधिक मीठे खाद्यपदार्थों में फैट अधिक होता है, जिस से कैलोरी और बढ़ जाती है.

चीनी में न तो कोई विटामिन या खनिज गुण है और न ही पोषक तत्त्व. सिर्फ ऊर्जा व शक्ति मिलती है, वह भी 1 ग्राम चीनी में 4 कैलोरी की दर से. इस तरह अधिक मिठाई, ठंडे पेय, बिस्कुट और केक लेने से आहार का संतुलन बिगड़ जाता है और उस की पौष्टिकता खत्म हो जाती है.

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अत्यधिक चीनी का सेवन लत न बन जाए

जिन्हें मीठा खाने की आदत होती है धीरेधीरे वे मीठे के इतने आदी हो जाते हैं कि कम मीठी कोई भी चीज उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाती है. मीठा उन की कमजोरी बन जाता है. थोड़ा खाने से तसल्ली नहीं होती और खाने की हमेशा इच्छा बनी रहती है.

चीनी के विकल्प कृत्रिम स्वीटनर्स

कृत्रिम स्वीटनर्स चीनी जितने नुकसानदेह नहीं होते. शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि स्वीटनर्स के उपयोग से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन यह खतरा भी उन के लिए है, जो बहुत अधिक मात्रा में कृत्रिम स्वीटनर्स का प्रयोग करते हैं. कभीकभार उपयोग करने से कोई नुकसान नहीं होता है. ज्यादातर लोग वजन कम करने के लिए कृत्रिम स्वीटनर्स का प्रयोग करते हैं, लेकिन अभी तक यह प्रमाणित नहीं हो पाया है कि चीनी के विकल्प वजन नियंत्रण में सहायक होते हैं.

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शारीरिक विकास के लिए चीनी आवश्यक तत्त्व है, फिर चाहे वह फलोंसब्जियों या डेयरी उत्पादों से प्राकृतिक रूप से प्राप्त हो अथवा हलवा, खीर या मिठाई से.

चीनी का कितनी मात्रा में सेवन करें

अगर युवा हैं, पूर्णतया स्वस्थ हैं, नियमित रूप से दांत साफ करते हैं, तो कितनी मात्रा में चीनी बिना किसी जोखिम के ले सकते हैं? यह प्रश्न सभी के दिमाग में उठता है. हालांकि ऐसा कोई सर्वसम्मत आधार नहीं है, फिर भी विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिदिन 1,600 कैलोरी युक्त आहार लेने वाले व्यक्ति को  24 ग्राम से अधिक अतिरिक्त चीनी नहीं लेनी चाहिए. अतिरिक्त चीनी का मतलब यह कि फलों सब्जियों और डेयरी उत्पादों में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली शकर की मात्रा के अलावा चीनी. प्रतिदिन 2,200 कैलोरी युक्त आहार लेने वाला व्यक्ति 48 ग्राम तक अतिरिक्त चीनी ले सकता है.

एक अन्य मत यह है  कि आहार की कुल कैलोरी का 25% शकर ली जा सकती है. लेकिन इस 25% में अतिरिक्त चीनी की मात्रा आधी से कम होनी चाहिए. इस के अनुसार 1,600 कैलोरी का आहार लेने वाला व्यक्ति 48 ग्राम व 2,200 कैलोरी वाला 66 ग्राम ले सकता है. इस मत का यह भी कहना है कि मीठी चीजें अधिक फैट वाली नहीं होनी चाहिए और उन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा भी अधिक नहीं होनी चाहिए. इतनी मात्रा में चीनी लेने वालों को बहुत मीठे व अधिक फैट वाले खाद्यपदार्थोंसे दूर ही रहना चाहिए. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम व अधिक से अधिक कितनी मात्रा में शकर का सेवन इनसान के लिए हितकर होगा, यह दावे के साथ कहना कठिन है, क्योंकि यह उस के संपूर्ण आहार और दिनचर्या पर निर्भर करता है यानी वह दिन भर में कितनी भागदौड़ करता है.

काजल अग्रवाल ने शादी के ऐलान से पहले दोस्तों संग मनाई बैचलर पार्टी, सोशल मीडिया पर फोटो वायरल

साउथ फिल्म कलाकार काजल अग्रवाल ने हाल ही में अपने शादी का ऐलान किया है. इससे पहले भी अदाकारा के शादी की खबर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही थी. इस खबर के बाद से अदाकारा के फैंस काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं.

अब इस बैचलर पार्टी की तस्वीर को देखने के बाद साफ लग रहा है कि अदाकारा ने अपने शादी की खबरों पर मोहर लगा दिया है. इस खबर के बाद से लगातार काजल अग्रवाल सुर्खियों में बनी हुई हैं.

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Appreciation for the little things.

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अदाकारा अपनी शादी की ऐलान करने से पहले ही अपने बैचलर पार्टी को अपने दोस्तों के संग एंजॉय कर चुकी हैं. जी हां यह तस्वीर अब जाकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन इससे पहले ही अदाकारा ने अपनी बैचलर पार्टी को एंजॉय कर लिया है.

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Gorgeousness overload

जैसे ही अदाकारा ने अपने शादी का ऐलान किया उनके दोस्तों ने भी उनकी शादी की तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया.

काजल ने यह पार्टी अपने घर पर ही रखी थी. जिसमें उनके कुछ खास दोस्त मौजूद थें. सभी लोगों ने खूब एजॉय किया काजल के बर्थ डे पार्टी को .

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सामने आई तस्वीर में अदाकारा ब्राइड टू बी का  टैग लगाए बेहद खुश नजर आ रही हैं. इस तस्वीर को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि काजल अग्रवाल के दोस्तों ने खूब धमाकचौड़ी की है.

 

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बैचलर पार्टी में काजल अग्रवाल ने अपने दोस्तों के साथ खूब एंजॉय किया है. इस तस्वीर पर अदाकारा के फैंस जमकर बधाई देते नजर आ रहे हैं. इस तस्वीर में काजल अग्रवाल बेहद खुश नजर आ रही हैं.

 

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अपनी पार्टी में काजल अग्रवाल ब्लैक कलर की मिनी ड्रेस में बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. वैसे फैंस को काजल अग्रवाल के शादी का लंबे वक्त से इंतजार था. आखिरकर अब जाकर उन्होंने अपने शादी का ऐलान किया है. इस बात से सभी के चेहरे पर अलग तरह की खुशी नजर आ रही है.

अजय देवगन के भाई अनिल देवगन का निधन, कलाकारों ने दी श्रद्धांजलि

बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन ने कुछ देर पहले ही ट्विट करके जानकारी दी है कि उनके भाई अनिल देवगन इस दुनिया में अब नहीं रहे. उन्होंने बीती रात इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. अजय ने बताया है कि अनिल देवगन के मृत्यु से उनका पूरा परिवार दुखी है.

ऐसे समय में उन्हें बहुत ज्यादा दुआओं की जरुरत है. अजय देवगन ने जैसे ही यह ट्वीट किया, पूरे बॉलीवुड में इस खबर से शोक की लहर दौड़ गई.

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सभी कलाकार अजय देवगन के भाई की आत्म के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. ऐसे में बहुत से ऐसे भी कलाकार हैं जिन्होंने ट्विट करके अजय देवगन के हौसले को बढ़ाया है और आत्मा के शांति की प्रार्थना की है.

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अजय देवगन के साथ काम कर चुके अभिषेक बच्चन ने ट्विट कर इस खबर को दुखी बताते हुए अजय देवगन के सांत्वना दिया है. अजय देवगन के अन्य साथी कलाकार भी उनके दुख को बाटना शुरू कर दिया है.

डायरेक्टर शेखर कपूर ने ट्विट करके दुख जताते हुए अनिल देवगन को श्रद्धांजली दी है. ट्विट में लिखा है कि मेरी सांत्वना आपके और आपके परिवार के साथ है. उनका ख्याल रखें.

वहीं कुछ लोगों ने अजय देवगन को कहा है कि अपने साथ- साथ अनिल के परिवार का भी ख्याल रखें. यह समय बहुत बुरा है.

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वहीं खबर यह भी है कि प्रार्थना सभा नहीं रखी जाएगी. कोरोना की वजह से क्योंकि लगातार बढ़ रहे कोरोना के केस को देखते हुए प्रार्थना सभा को न रखने का फैसला लिया गया है.

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वहीं अजय देवगन के फैंस ट्विट के माध्यम से दुआएं भेज रहे हैं. बता दें कि अजय देवगन के भाई अनिल देवगन एक डायरेक्टर थें. उन्होंने कई फिल्मों को बनाया था. जिसमें राजू चाचा फिल्म को उन्होंने अजय देवगन के साथ मिलतकर बनाया था. इस फिल्म के बाद अजय देवगन काफी ज्यादा कर्ज में डूब गए थें. जिसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे करके अपनी आर्थिक स्थिति को सही किया था.

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