इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे पास जितनी ज्यादा सूचनाएं होती हैं, हम उतने ही स्मार्ट समझे जाते हैं. लेकिन लोगों की इस कमजोर नस का फायदा उठाते हुए कंटेंट से बेहद गरीब, बड़ी तादाद में ऐसी वेबसाइटें हैं जो उत्तेजनाओं से लबरेज अपने चटपटे शीर्षकों का ऐसा प्रपंच रचती हैं कि आप इनके चंगुल में फंसकर अंत में निराशा से अपना सिर थाम लेते हैं. लोगों के कौतूहल के मनोविज्ञान का ये इस हद तक दोहन में लगी हैं कि इन्हें परवाह नहीं है कि आप इस सबसे बीमार भी हो सकते हैं. फिल्मी सितारों सहित हर क्षेत्र के सेलिब्रिटीज की किसी बहुत मामूली सी जानकारी को भी ये वेबसाइटें दर्शकों का ट्रैफिक अपनी ओर खींचने के लिए, इस कदर तोड़ मरोड़कर और सनसनी का तड़का लगाकार परोसती हैं कि हर बार इस दुष्चक्र में फंसने के बाद लोगों का मन कसैला हो जाता है. उदाहरण के लिए पिछले दिनों करीना कपूर के संबंध में तमाम वेबसाइटों ने एक ऐसी उत्तेजक खबर चलायी जिसे जानकर कोई भी अपना माथा पीट सकता है.
लेकिन खबर तक पहुंचने के पहले जरा देखिये वेबसाइटों ने इसे किस तरह के शीर्षकों से पेश किया.
Û करीना ने खोला अपनी सौतन का वह राज, जिसे सुनकर आप सन्न रह जाएंगे.
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Û सार्वजनिक रूप से करीना ने अपनी सौत का किया पर्दाफाश.
इस जैसे करीब एक दर्जन शीर्षकों को पढ़ने के बाद फिल्मी लोगों की जानकारी रखने वाले लोग शायद ही इस शीर्षक पर क्लिक करने का मोह छोड़ पाये हों. ज्यादातर लोगों को लगा कि जरूर करीना ने अपने पति की पूर्व पत्नी अमृता सिंह के बारे में कुछ ऐसा कहा है, जिसे सुनकर अमृता के प्रशंसक सन्न रह जाएंगे या उन्हें धक्का लगेगा. लेकिन इन शीर्षकों से अपनी साइट खुलवा लेने वाली वेबसाइटों तक जब लोग पहुंचते हैं तो पता चलता है कि करीना ने सिर्फ यह कहा है, ‘मैं अमृता सिंह की एक सीनियर अदाकारा के रूप में इज्जत करती हूं.’ अब भला बताइये इसमें कौन सी ऐसी बात है, जिसे सुनकर आप सन्न रह गये या कि आपको इसमें कुछ पर्दाफाश करने जैसा लगा हो.
लेकिन वेबसाइटों को आपको अपनी खबर तक लाना है तो वे किसी भी बात पर इतना नमक मिर्च लगा देंगे कि भले उसमें सच का कोई रेशा मात्र भी न रह जाए, मगर उन्हें फर्क नहीं पड़ता. उन्हें तो बस आपको अपने आर्थिक फायदे के लिए आकर्षण के चंगुल में फंसाना भर है. यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है, जो हाल के दिनों में लगातार बढ़ती जा रही है. तमाम वेबसाइटों की ऐसी हरकतों में फंसने के बाद यहां तक पहुंचने वाले पाठक न सिर्फ खुद को ठगा सा महसूस करते हैं बल्कि उनमें इस तरह की हरकतों के लिए, मन में गुस्सा और मीडिया के लिए असम्मान का भाव पैदा होता है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप जल्दी से संयम में रहना नहीं सीखते तो ऐसा बार बार ठगा जाना आपको बीमार कर सकता है.
इस खेल में गुमनाम वेबसाइटों का ही जलवा नहीं है बल्कि कई बहुत जाने माने टीवी चैनलों की वेबसाइटें भी दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा ही उत्तेजनाओं से लबरेज सनसनी का जाल बिछाते हैं. यूरोप में मीडिया वेबसाइटों की ऐसी हरकतें आमतौर पर तीन महीने से पांच साल तक की जेल का कारण बन सकती हैं. लेकिन हिंदुस्तान जैसे देश में इस तरह का कोई कानून नहीं है, जिस कारण भी खूब मनमानी हो रही है. एक बहुत जाना माना और बेहद गंभीर समझा जाने वाला हिंदी टीवी चैनल एनडीटीवी, फेसबुक में दिन रात बेहद सनसनीखेज वीडियो पेश करता है, जो महज 3 से 4 सेकेंड के भी हो सकते हैं. इन्हें वीडियो कहना, वीडियो की कल्पना का अपमान है. ये महज अपनी मेंबरशिप बढ़ाने के लिए फेंका गया जाल भर होते हैं.
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अब चूंकि जब तक वीडियो खोल न लो, तब तक तो यह पता नहीं चलता कि उसमें क्या है? इसलिए बाद में जब शीर्षक से मेल न खाते हुए, पांच दस सेकेंड की विजुअल फोटोग्राफी वाले उस सनसनीखेज वीडियो तक लोग पहुंचते हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आता है. लेकिन अब आप उस गुस्से का करेंगे क्या? क्योंकि जिसे आपको बेवकूफ बनाना था, उसका काम तो हो गया. आपने उसकी पोस्ट को भले पूरा न देखा हो, लेकिन उसे खोलने के लिए क्लिक तो कर ही दिया. इसलिए अपडेट रहने के नाम पर या हर जानकारी जानने की उत्कंठा आजकल बीमार किये जाने का साधन बन चुकी है. सिर्फ फेसबुक में या महज वीडियो के जरिये ही ऐसे उत्तेजक लालच हम तक नहीं पहुंचते बल्कि व्हट्सएप्प की बीप भी हमें दिन रात इसी कारोबार की प्रेरणा से आगाह करने की जिद में लगी रहती है. मसलन अमरीका का कोविड वैक्सीन मेडोर्ना पर लगीं जासूसों की निगाहें. हम अभी लंच का निवाला तोड़ने ही वाले होते हैं कि फेसबुक की रिंग टोन हमें नयी पोस्ट की सूचना देती है और हम निवाले को मुंह मंे लेने के पहले मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी नजरें गड़ा देते हैं. रात में नींद बस आ ही रही होती है कि एसएमएस की बीप हमें यह जानने के लिए अलर्ट करती है कि राॅयल चैलेंजर्स बंग्लुरु सेमीफाइनल में हारकर आईपीएल टूर्नामेंट से बाहर हो गयी. अभी सुबह की लालिमा भी नहीं छंटी होती, अभी हमने सही से आंखें भी नहीं खोली होतीं कि हमारे कानों में एक के बाद एक गुडमाॅर्निंंग के मैसेजों का हथौड़ा बजने लगता है.
लब्बोलुआब यह है कि हर पल गैरजरूरी सूचनाओं की जो यह हम पर बारिश हो रही है, वह हमें हर समय सांसत में डाले रहती है. हर कोई हमें अपने बारे में सब कुछ बताने के लिए बैचेन नजर आता है. चाहे शाॅपिंग एप हों, चाहे इंश्योरेंस के प्लान हों, नयी कारों और मोबाइल के नये संस्करणों की जानकारियां हों. तमाम कंपनियां, तमाम लोग नहीं चाहते कि हम इन सबसे अंजान रहें. जानकारी, जानकारी, जानकारी. लगता है हम कुछ चीजों से अगर अंजान रहेंगे तो हम पर मानो पहाड़ टूट जायेगा. मानो हमारी इस अनदेखी से धरती फट जायेगी. हर समय बाजार हमें अपने फायदे की और हमारे मामले में ज्यादा गैरजरूरी जानकारियों की बारिश में सरोबोर किये रहता है, जैसे अगर इन गैरजरूरी सूचनाओं में हम डूबें उतराएंगे नहीं तो हमारे लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जायेगा. लगता है ये बाजार को विज्ञापित करने वाली जानकारियां हमें सांस लेने की महंगी जरूरतें हों.
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इतिहास का यह पहला ऐसा दौर है जब हम इफरात की सूचनाओं और बिना मांगी जबरदस्ती परोसी गई जानकारियों से त्रस्त हैं. अगर जल्द ही इसमें कोई पाबंदी नहीं लगती तो यह इंसानी मनोविज्ञान के लिए महामारी बन जायेगी. आखिर हमें बाजार की हर सूचना क्यों जानना चाहिए? क्यों हमें रात में 12 बजे किसी मोबाइल फोन के लांच होने की जानकारी 12 बजे रात को ही दी जानी चाहिए. इसलिए क्योंकि इसमें बाजार को फायदा है और बाजार अपने फायदे के सामने आपकी सेहत की कोई परवाह नहीं करता. अगर आपको अपनी सेहत की परवाह है तो बाजार के विज्ञापनों की सूचनाओं के रूप में इस बारिश से अपने आपको थोड़ा दूर रखिये.