कोचर छोटे व बेहद गरीब कहे व माने जाने वाले बंगलादेश ने 10-15 सालों में अपने से बड़े अपने ही हिस्से पाकिस्तान को ही नहीं, दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र भारत को भी कई मामलों में पीछे कर दिया है. उस ने ऐसी सफलता कैसे हासिल की, जानने के लिए पढि़ए यह खास लेख. बात लखनऊ की है. वर्ष 2003 की. कुछ पाकिस्तानी छात्रछात्राओं का एक डैलिगेशन अपने 4 टीचर्स के साथ लखनऊ आया था. माल एवैन्यू स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चों से भी उन्हें मिलना था. उन के बीच बातचीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आदानप्रदान होना था. ये पाकिस्तानी बच्चे 9वीं व 10वीं कक्षाओं से थे.

डैलिगेशन में छात्रों के मुकाबले छात्राओं की संख्या अधिक थी. सभी छात्राएं सिर से पांव तक बुर्कों से ढकी बस से उतरीं. मगर स्कूल के भीतर दाखिल होने के बाद सभी ने अपने बुर्के उतार कर अपनी पीठ पर लटके बैग में डाल लिए, जबकि स्कूल में काफी मर्द अध्यापक, चपरासी और 10वीं व 12वीं के छात्र मौजूद थे. यह बड़ी दकियानूसी और दिखावटी सी बात लगी कि बाहर तो आप शरीर को बुर्के में ढके हैं और अंदर आ कर आप बेपरदा हो गए, जबकि गैरमर्द तो वहां भी बड़ी तादाद में थे. मजेदार बात यह थी कि अधिकतर पाकिस्तानी लडकियां बुर्के के नीचे जींस और टीशर्ट पहने हुए थीं. ऐसा लगता था कि आजादी और उड़ने की चाहत को जबरन बुर्के में लपेट दिया गया था. इंग्लिश माध्यम में पढ़ने और इंग्लिश में फर्राटेदार बातचीत करने के बावजूद बातबात में उभरती इसलाम और रोजेनमाज की बातें भी यह जाहिर कर रही थीं कि आधुनिकता और पिछड़ेपन के बीच काफी रस्साकशी चल रही है.

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