वीणा के पड़ोस में एक नया परिवार रहने आया. पति का नाम राकेश था और पत्नी का नाम सुनीता. वीणा अपनी छोटी बेटी सुमि के साथ उन से मिलने गई. उसे फौरन ही महसूस हो गया कि राकेश और सुनीता के पास अभी गृहस्थी का सामान पूरा नहीं है पर उन दोनों का सरल स्वभाव वीणा को बहुत अच्छा लगा. दोनों के स्तर में कहीं से भी समानता नहीं थी पर वीणा ने तब सुनीता की खूब सहायता की.
वह जब भी सुनीता को अपने यहां कुछ खानेपीने को बुलाती, पता नहीं कितनी ही चीजें उस के साथ ऐसे बांध देती जैसे सुनीता ले जाएगी तो वीणा ही खुश होगी.
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वीणा कहती,"देखो सुनीता, जब दीदी कहती हो तो मेरा घर तुम्हारा ही हुआ. अब यह बताओ कि थोड़ा सामान ले जाओगी तो मेरा सामान हलका ही होगा न. मैं ढंग से साफसफाई कर पाऊंगी. यहां बेकार ही पङे हैं. तुम ले जाओ और मेरी अलमारी में जगह बनाओ."
ऐसे बनें व्यवहारिक
वीणा ने जब देखा कि सुनीता के पास बरतन भी बहुत कम हैं तो अगली बार जब वह सुनीता से मिलने गई तो अपनी नयी क्रौकरी पैक कर के ले गई. वीणा का यही सोचना था कि अलमारियों में बंद सामान किसी के काम आए तो उस से अच्छी बात क्या हो सकती है.
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आज इस बात को लगभग 25 साल बीत गए हैं. सुमि पढ़लिख कर अच्छी पोस्ट पर है. वीणा और सुनीता आजकल अलगअलग शहरों में रहते हैं पर उन के के संबंध आज भी बहुत मधुर हैं. सुनीता आज तक नहीं भूली कि उन के घर आने वाली सब से पहली ढंग की प्लैट्स वीणा की दी हुई थीं.