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प्रवासी/विस्थपितों और हाथ से रिक्शा खींचने वालों का दर्द विदेशों में भी गूॅंजा

फिल्म‘‘रिक्शावाला’’को इंग्लैंड के ‘‘कार्डिएफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म के पुरस्कार से नवाजा गया

स्पेन और मेलबर्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दर्शकों  का दिल जीतने के बाद जब लेखक व फिल्म निर्देशक राम कमल मुखर्जी की फिल्म हिंदी,भोजपुरी व बंगला भाषा की फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’को प्रतिष्ठित कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2020 के लिए चुना गया,तो किसी ने नही सोचा था कि यह पुरस्कृत फिल्म बन जाएगी. राम कमल मुखर्जी की इस फिल्म का प्रीमियर यूनाइटेड किंगडम में हुआ और राहिल अब्बास सईद,एंड्रिया मोइग्नार्ड और चेरिल इनग्राम द्वारा स्थापित ‘कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में तीस अक्टूबर को प्रदर्शन किया गया और ज्यूरी ने इसे ‘‘सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म’’के पुरस्कार से पुरस्कृत किया.जूरी सदस्यों ने फैसला साझा करते हुए कहा-‘‘हम इस पुरस्कार को ‘सिटी आफ ज्वाॅय’शहर में प्रवासियों की समस्या और रिक्शा चालकों के दर्द को बयां करने वाली फिल्म ‘रिक्शावाला’को प्रस्तुत कर सम्मानित करने में गर्व महसूस कर रहे हैं.’’इस वर्ष कोविड महामारी को ध्यान में रखते हुए इसका आयोजन आभासी किया गया.

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फेस्टिवल के फाउंडर और डायरेक्टर राहिल अब्बास सईद कहते हैं-‘‘गत वर्ष हमने राम कमल मुखर्जी की फिल्म‘सीजंस ग्रीटिंग्स’का प्रीमियर किया था, जिसे हमारे जूरी सदस्यों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी.इस साल हमें उनकी फिल्म ‘रिक्शावाला’का प्रदर्शन कर खुशी हुई,जो कोलकाता के  की दिलकष कहानी है. यह दिग्गज अभिनेता ओम पुरी को भी श्रद्धांजलि है,जो एक भारतीय अभिनेता हैं, जिन्होंने अधिकतम ब्रिटिश सिनेमा में काम किया है. ‘‘

फिल्म‘‘रिक्शावाला’’बॉलीवुड अभिनेता अविनाश द्विवेदी की पहली फिल्म है,जिसने इस साल की शुरुआत में 13 वें अयोध्या अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में उसी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता था.अविनाश कहते हैं, ‘‘मैं आसमान में हॅंू.मुझे खुशी है कि हमारी फिल्म को कार्डिएफ फेस्टिवल मे पुरस्कृत किया गया.यहएक बड़ा सम्मान है.‘‘

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अविनाश द्विवेदी मूलतः ने बिहार के रहने वाले हैं और फिल्म में उनका किरदार भी बिहार से कोलकाता पहुंचकर रिक्शावाला बनकर हाथ से खींचे जाने वाले रिक्षे को चलाते है.अपने किरदार की बारीकियों को आत्मसात करने के लिए उन्होने अथक प्रयास किया.वह कोलकाता में रिक्शाचालकों के साथ रहे, रिक्शा को नंगे पैर खींचा,चरित्र के लिए बंगाली भी सीखा.

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निर्देशक राम कमल मुखर्जी कहते हैं-‘‘मैं इस सम्मान के लिए कार्डिएफ की ज्यूरी का धन्यवाद अदा करता हॅू .कार्डिफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल वैश्विक मंच में सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में से एक है. मुझे खुशी है कि हमारी विनम्र फिल्म अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों और फिल्म समीक्षकों के लिए प्रदर्शित की गयी.‘‘
अरित्रा दास,गौरव डागा और शैलेंद्र कुमार कुमार द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’ में कस्तूरी चक्रवर्ती और संगीता सिन्हा की भी अहम भूमिकाएं हैं.फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित छायाकार मधुरा पालित द्वारा उत्कृष्ट रूप से शूट किया गया है.

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संयोग से रिक्शावाला को इस्लामाबाद में आधारशिला लघु फिल्म समारोह में भी चुना गया है और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सूचीबद्ध किया गया है.स्वर्गीय ओम पुरी की पत्नी नंदिता पुरी कहती हैं, ‘‘मैं जानती थी कि यह फिल्म दुनिया भर में घूमेगी,क्योंकि यह सरल और अभी तक कथा वर्णन करने वाली नहीं है.राम कमल एक संवेदनशीलता और खुद की शैली के साथ आते हैं.उनके किरदार भरोसेमंद और प्यारे हैं.यह ओम के लिए एक आदर्श सम्मान है.”

साथ निभाना साथिया 2: कोकिला बेन के बाद गोपी बहू और अहम ने भी कहा शो को अलविदा

स्टार प्लस का चर्चित शो साथ निभाना साथियां अपने पुराने कलाकारों की वजह से आएं दिन सुर्खियों में बना रहता है. यह साथ निभाना साथिया का सीजन 2 है जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं. बता दें कि सीरियल साथ निभाना साथिया से  कोकिला बेन जल्द ही अलविदा कहने वाली है.

दरअसल, रुपल पटेल के साथ मेकर्स ने सिर्फ 20 एपिसोड के लिए कॉन्टैक्ट साइन किया था. जल्द ही रुपल का कॉन्टैक्ट पूरा होने वाला है. जिसके बाद वह इस शो को अलविदा कह देंगी.

 

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इस खबर के सामने आने के बाद फैंस काफी ज्यादा निराश नजर आ रहे हैं. फैंस को कोकिला बेन का किरदार ज्यादा पसंद आ रहा था. ऐसा लग रहा है कि मानों इस खबर के आने के बाद फैंस का दिल टूट गया हो.

 

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वहीं ताजा जानकारी के अनुसार गोपी बहू और अहम की भी विदाई जल्द हो सकती है. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बहुत जल्द गोपी बहू और उनके पति अहम भी शो से विदाई ले सकते हैं. कयास लगाए जा रहे है कि साथ निभाना साथिया 2 के स्टोरी में बदलाव किए जा सकते हैं. जिसके बाद पूरे मोदी परिवार को कहानी से हटा दिया जाएगा.

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मोदी परिवार के जाने के बाद सिर्फ गहना पर फोक्स किया जाएगा. सीरियल की कहानी में नया मोड़ आने वाला है जल्द ही गहना की शादी देसाई परिवार में होने वाली है. जिसके बाद नए सफर की शुरुआत होगी.

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हालांकि इस नए बदलाव से फैंस भी हैरान है कि आगे क्या होने वाला है सीरियल में.

मुकेश खन्ना बोले ‘मीटू जैसी समस्याएं को महिलाएं देती हैं बढ़ावा’, लोगों ने किया जमकर ट्रोल

टीवी के स्टार मुकेश खन्ना आए दिन अपने बयान से सोशल मीडिया पर हंगामा मचाते रहते हैं. यह पहली बार नहीं होगा की फैंस को मुकेश खन्ना का बयान नहीं पसंद आया होगा. अब हाल ही में मुक्श खन्ना का एक वीडियो जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसे देखने के बाद फैंस लगातार उनपर सवाल खड़े कर रहे हैं.

दरअसल, वायरल वीडियो में मुकेश खन्ना मर्द और औरतों के बीच के फर्क को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. यही नहीं मुकेश खन्ना इस वीडियो में बात करते हुए कह रहे हैं कि मीटू समस्या का कारण औरते हैं. क्योंकि औरतों का काम घर संभालना है और वह घर संभालने की जगह मर्दों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं.जिस वजह से मीटू जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है.

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आगे उन्होंने कहा कि मर्द अलग होता है औरत अलग होती है. दोनों की रचना अलग –अलग तरह से की जाती है. जब औरते घर से बाहर निकलकर काम करना शुरू कर देती हैं उस दौरान यह सारी प्रॉब्लम होनी शुरू हो जाती है और इन सभी विवादों में सफर करता है उनका बच्चा.

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जिसको कभी मां का प्यार नहीं मिलता वह अपनी आया के साथ बैठकर घर पर सास बहू देख रहा होता है. तभी ये समस्याएं शुरू होती हैं. अब यह मुकेश खन्ना का बयान सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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फैंस मुकेश खन्ना के बयान पर कमेंट करते हुए कह रहे हैं कि हमें शर्म आ रही है कि एक समय ऐसा था कि यह हमारे आइडियल हुआ करते हैं लेकिन इनकी गंदी सोच को लेकर हमें शर्म आ रही हैं.

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वहीं एक यूजर ने मुकेश खन्ना को कहा है कि सर आपको अपने इस बयान के लिए सभी से माफी मांगनी चाहिए. जिस पर मुकेश खन्ना का कोई बयान नहीं आया है.

Crime Story: अगर घूस दे देता तो बच जाती जान!

भोपाल का एक नौजवान प्रापर्टी ब्रोकर कैसे पुलिस वालों के हाथों मारा गया और क्यों उसके खाकी वर्दी वाले हत्यारों का कुछ नहीं बिगड़ेगा. इसे समझने में लगभग 2 साल पीछे भोपाल से 350 किलोमीटर दूर मंदसौर का रुख करना जरूरी है, जिससे आसानी से समझ आए कि कानून के हों न हों, लेकिन पुलिस वालों के हाथ वाकई लंबे होते हैं.

जब पुलिस ने चलाई थी 5 किसानों पर गोली…

हादसा या सरेआम हत्या का यह चर्चित मामला 6 जून 2017 का है. इस दिन मंदसौर के किसान अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि तभी तथाकथित हिंसा को काबू करने पुलिस वालों ने फायरिंग शुरू कर दी और इतनी दरियादिली से की कि 5 किसानों के जिस्म में सरकारी बारूद पैवस्त हो गया और वे मारे गए. हल्ला मचा तो राज्य सरकार ने एक सदस्यीय आयोग का गठन कर डाला. इस आयोग के अध्यक्ष थे जस्टिस जेके जैन.

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उम्मीद और रिवाज के मुताबिक आयोग अपनी जांच रिपोर्ट तय शुदा वक्त सितंबर 2017 में सरकार को नहीं सौंप पाया. आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और उसने अपनी रिपोर्ट 11 जून 2018 को मुख्य सचिव को सौंपी लेकिन तब तक नर्मदा जी का बहुत पानी बह चुका था और लोग इस वीभत्स और नृशंस हत्याकांड को आदत के मुताबिक भूल चुके थे. लिहाजा यह रिपोर्ट एक रस्म बनकर रह गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित दिग्गज कांग्रेसियों कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह से लेकर छुट भैये कांग्रेसी नेताओं ने खूब और उतना ही हल्ला मचाया था. जितना शिवम मिश्रा की हत्या पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और दूसरे भाजपाइयों ने मचाया क्योंकि सरकार अब कांग्रेस की है, और कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं .

दरअसल में राजनेताओं के वैचारिक मतभेद उनके राजनैतिक स्वार्थ होते हैं. यह बात अब साबित हो रही है. तब कांग्रेस को पुलिस प्रशासन पंगु नजर आ रहा था तो आज भाजपा को लग रहा है कि पुलिस प्रशासन अनियंत्रित हो गया है और राज्य सरकार की संवेदनाएं मर चुकी हैं. बकौल, 25 वर्षीय शिवम मिश्रा को पीट पीट कर मारा गया है. वे गलत नहीं कह रहे हैं और न ही उस यानि मंदसौर हत्या कांड के वक्त कांग्रेस कुछ गलत कह रही थी .

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जेके जैन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बहुत से अगर मगर लगाकर पुलिस को क्लीन चिट दे दी है, और इतने घुमावदार तरीके से दी है कि इस रिपोर्ट पर तरस भी आता है और हंसी भी आती है. संवेदनशील लोगों को रोना आता है जिसकी कोई कीमत किसी बाजार में नहीं. इस रिपोर्ट के दिलचस्प और विरोधाभासी निष्कर्ष के कुछ प्रमुख बिंदु इस तरह हैं –

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  • एक प्रमुख समाचार पत्र के मुताबिक रिपोर्ट में उल्लेख है कि भीड़ को तितर-बितर करने और आत्मरक्षा के लिए गोली चलाना आवश्यक और न्याय संगत था.
  • पुलिस और जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर था. इनके आपसी तालमेल की कमी से आंदोलन उग्र हुआ.
  • आंदोलन के पहले असामाजिक तत्वों को पकड़ा जाना था जिसमें पुलिस ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. अप्रशिक्षित यानि नौसिखिये लोगों से आंसू गैस के गोले चलवाये गए जो कि कारगर साबित नहीं हुए.
  • गोली चलाने में पुलिस ने नियमों का पालन नहीं किया, उसे पहले पांव पर गोली चलाना चाहिए थी .
  • लेकिन (यानि इसके बाद भी) सीआरपीएफ और राज्य पुलिस का गोली चलाना न तो अन्यायपूर्ण है और न ही बदले की भावना से उठाया गया कदम है.
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इस रिपोर्ट को देख कर कहा जा सकता है कि किसानों की हत्या नाजायज नहीं थी. जाहिर है कि पुलिस के सौ खून माफ हैं और वह बेकसूर और बेगुनाह लोगों को सरेआम गोली मारकर, उन्हें परलोक भी पहुंचा दे. तब भी वह हत्यारी नहीं होती बल्कि कानून व्यवस्था, शांति निर्माण और आम लोगों की हिफाजत की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर रही होती है.

यानि शिवम की हत्या नहीं हुई –     

इस रिपोर्ट के मद्देनजर साफ कहा जा सकता है कि शिवम की मौत पुलिस की पिटाई से नहीं हुई थी, बल्कि उसका आखिरी वक्त आ गया था और ब्रम्हा का लिखा टालने का दुसाहस पुलिस ने न करके ईश्वरीय व्यवस्था में आस्था और विश्वास ही प्रदर्शित किया है, क्योंकि वह तो निमित्त मात्र है, फिर यह बेकार का हल्ला मिथ्या है. शिवराजसिंह चौहान सहित तमाम नेताओं समाज सेवियों और आम लोगों को सड़कों पर आकर हल्ला मचाने के बजाय शिवम की मुक्ति के लिए विधि विधान से कर्मकांड करना चाहिए. चूंकि वह अकाल मौत मरा है इसलिए गरुड पुराण का पाठ करवाना चाहिए. उसकी 13 वीं पर जोरदार ब्रह्म भोज आयोजित करते प्रभु से प्रार्थना करना चाहिए कि वह उसे अपने श्री चरणों में प्राथमिकता के आधार पर स्थान दे .

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लेकिन यह थी तो हत्या ही 

लेकिन शिवम मिश्रा की बर्बर हत्या को उसके दोस्त गोविंद पोरिल की जुबानी समझें तो घटना इस तरह है, 18 जून की रात कोई 11 बजे शिवम और गोविंद खजूरी सड़क स्थित ढ़ावे पर खाना खाने जा रहे थे, कि लालघाटी (यह इलाका सीहोर इंदोर रोड पर है) से आगे कब्रिस्तान के पास बीआरटी कारीडोर में शिवम की यूएसवी बेकाबू होकर रेलिंग से टकरा गई. चूंकि एयर बैग खुल गए थे इसलिए दोनों बच गए. ( सुधी पाठकों का ध्यान यहां अग्रिम रूप से खासतौर से  खींचा जा रहा है कि एयर बैग तभी खुलते हैं जब यूएसबी में सवार लोग सीट बेल्ट बांधे होते हैं, इसका मतलब यह है कि ये दोनों लापरवाही से कार नहीं चला रहे थे).

कार टकराई तो लोगों ने डायल 100 को फोन कर दिया. पुलिस वालों ने आते ही इन पर चिल्लाना शुरू कर दिया. इन दोनों ने पुलिस वालों से कहा कि उन्हें छाती में धमक लगी है इसलिए अस्पताल ले चलो, लेकिन पुलिस वाले इन्हें जबरन लालघाटी पुलिस चौकी ले गए. यहां इन दोनों को जमकर पीटा गया. फिर बैरागढ़ थाने ले जाकर भी पीटा गया. शिवम कहता रह गया कि उसे तकलीफ हो रही है. पर किसी ने उसकी एक न सुनी. कुछ देर बाद शिवम को पुलिस बाले बाहर ले गए और जरूरी कागजी कारवाई की बात कही. चंद मिनटों बाद गोविंद बाहर आया तो शिवम उसे नहीं मिला उसकी तलाश में पहले वह हमीदिया अस्पताल और फिर राजदीप अस्पताल गया लेकिन शिवम वहां नहीं मिला. थाने के पीछे सिविल हौस्पिटल पहुंचने पर शिवम मिला तो लेकिन तब तक वह मर चुका था.

20 जून को थी बहन की सगाई…

शिवम भोपाल के भदभदा इलाके की रेडियो कालोनी में रहता था, उसके पिता सुरेश मिश्रा दिव्यांग हैं और साइवर सेल में एएसआई हैं. शिवम की मां सुनीता बीमारी के चलते ठीक से बोल नहीं पाती हैं. आज यानि 20 जून को उसकी बहिन सृष्टि की सगाई होना थी जिसकी तैयारियां वह उत्साहपूर्वक कर रहा था. बहरहाल शिवम के मामा हृदयेश भार्गव की मानें तो पुलिसिया पिटाई से ही उसकी मौत हुई है. उसकी पीठ पर मारपीट के नीले निशान थे. शिवम के एक और दोस्त उसकी ही नाम राशि शिवम सिंह राजपूत का कहना है कि रात 12 बजकर 5 मिनिट पर शिवम का फोन उसके पास आया था उसने एक्सीडेंट होने की बात बताई थी. जब वह मौके पर12 बजकर 40 मिनिट पर कार लेकर पहुंचा तो शिवम की कार तो खड़ी थी लेकिन वहां कोई नहीं था. शिवम राजपूत तुरंत बैरागढ़ थाने पहुंचा जहां शिवम मिश्रा उसे मिला और उसे बताया कि बचाओ पुलिस बाले मार रहे हैं.शिवम राजपूत कुछ कर पाता इसके पहले ही तीन पुलिस वालों उसे अस्पताल ले गए और बताया कि उसे मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा है.

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लावारिस हालत में मिली लाश, गायब हुई चेन और पर्स…

दो घंटे बाद शिवम मिश्रा के परिजनों को उसकी लाश लावारिस हालत में सिविल अस्पताल के बाहर पड़ी मिली जिसे बाद में हल्ला मचने पर पुलिस वाले हमीदिया अस्पताल ले गए . अब तक मृतक के रिश्तेदार भी पहुंच गए थे और पुलिस महकमे के आला अफसर भी जिनमें आईजी योगेश देशमुख डीआईजी इरशाद वली प्रमुख थे. शिवम के परजनों ने आरोप लगाया कि उसके गले में पड़ी सोने की 20 तौला वजनी चेन सहित उसका पर्स और मोबाइल फोन गायब है. इन लोगों का कहना था कि यह सारा सामान पुलिस वालों ने लूट लिया है.

सुबह पुलिस की इस बर्बरता की खबर शहर वासियों को लगी तो खूब हल्ला मचा जिसके चलते मामले की न्यायिक जांच शुरू हो गई और टीआई सहित पांच पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया. शार्ट पीएम की रिपोर्ट में उम्मीद और रिवाज के मुताबिक शिवम की मौत हार्ट अटेक से होना पाई गई पुलिस की पिटाई से नहीं जैसी कि भोपाल में चर्चा है.

गर्मा रही राजनीति

जिसने सुना उसने खाकी वर्दी वाले इन नर पिशाचों को कोसा. जल्द ही मुद्दा राजनेताओं ने झटक लिया. शिवराज सिंह चौहान ने अपने इरादे जाहिर कर दिये कि वे शिवम की मौत को आंदोलन की शक्ल देकर राज्य सरकार के खिलाफ मुहिम बगैरह चलाते उसकी नाक में दम कर देंगे. ठीक वैसे ही जैसे मंदसौर गोली कांड के वक्त कांग्रेस ने उनकी सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई थी. वे न्यायिक जांच को नकारते शिवम की मौत की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

इधर अपना राजधर्म निभाते मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी वातानुकूलित सीएम हाउस से ट्वीट कर संवेदनाएं प्रगट कर दीं कि शिवम के परिवार के साथ न्याय होगा. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच हो रही है .

साफ दिख रहा है कि होना जाना कुछ नहीं है, कमलनाथ ने वही किया जो मंदसौर गोली कांड के वक्त मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह ने किया और कहा था. पुलिस वालों के खिलाफ  हल्ला बढ़ते देख शायद आपराधिक मामला दर्ज कर लिया जाये लेकिन किसी को सजा होगी ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि बक़ौल पोस्टमार्टम शिवम की मौत हार्ट अटेक से हुई है. पुलिस का वकील पूरी मासूमियत से दलील देगा कि पुलिस वाले तो शिवम को इलाज के लिए ले जाते अपना फर्ज निभा रहे थे अब इत्तफाक से इसी दरमियान उसे हार्ट अटेक आ गया तो उनका क्या कसूर.

आम लोगों की भी यही राय है कि अब जो भी हो लेकिन क्या उससे मिश्रा परिवार का जवान बेटा वापस मिल जाएगा और इन हैवान पुलिस वालों पर किसी का ज़ोर नहीं चलता.  एक हफ्ते पहले ही एक मासूम के बलात्कार के बाद पुलिस वाले उसके घर वालों से कह रहे थे कि लड़की किसी के साथ भाग गई होगी. तब भी हल्ला मचने पर सात पुलिस कर्मियों को सस्पेंड किया गया था उससे पुलिस बालों ने क्या सबक लिया.

सच यह है

भोपाल के किसी भी चौराहे से गुजरें तो वहां चार पांच पुलिस वाले झंडा लहराते नजर आते हैं इसलिए नहीं कि इन्हें असामाजिक तत्वों या अपराधियों को पकड़ना होता है, बल्कि इसलिए कि ये वाहनों की चेकिंग के नाम पर कारों और दोपहिया वाहन चालकों को पकड़ते हैं और हेलमेट और सीट बेल्ट न लगाने पर पैसे वसूलते हैं. यह पुलिस वालों की आमदनी का बहुत बड़ा जरिया है. इसी दौरान ये शरीफ शहरियों से बदतमीजी और गाली गलौच भी करते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा घूस खाई जा सके.

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अधिकांश पुलिस वाले ड्यूटी के दौरान भी नशे में धुत रहते हैं और इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि इन्हें अनाप शनाप अधिकार मिले हुये हैं. कानून के ये रखवाले मुफ्तखोरी के इतने आदी हो गए हैं कि इन्हें होटल वाले मुफ्त में खाना खिलाते हैं. शराब कारोबारी शराब मुहैया कराते हैं, काल गर्ल्स इन्हें जिस्म परोसती हैं. दलाल इनकी जेबें भरते हैं. अगर ये और दूसरे लोग यह सब न करें तो उन पर उल्टे सीधे आरोप लगाकर उन्हें तरह तरह से तंग किया जाता है.

ऐसा शिवराज के कार्यकाल में भी था और ऐसा कमलनाथ के कार्यकाल में भी है . पुलिस हमेशा ही निरंकुश रही है और रहेगी क्योंकि उसके खिलाफ कभी कुछ नहीं होता उल्टे वह जिस पर बिगड़ जाये तो उसका न जाने क्या क्या बिगड़ जाता है . शिवम के मामले में साफ दिख रहा है कि पुलिस बालों की मंशा उससे सिर्फ घूस खाने की थी जो उसने नहीं दी तो उसे मारा पीटा गया . राक्षस बन गए पुलिस बालों ने उसकी एक नहीं सुनी और मारपीट के बाद उसे लूट लिया और जब वह मर गया तो उसे लावारिसों की तरह छोड़ दिया.

ऊपर जानबूझ कर मंदसौर गोली कांड का जिक्र यह बताने और जताने के लिए किया गया है कि कोई जांच, कोई आयोग, कोई सीबीआई पुलिस वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती. क्योंकि जांच करने वाले भी इनके सखा बंधु और हमजोली रहते हैं वे भी दबाव में आकर या तगड़ी दक्षिणा ग्रहण कर यह फलसफा ओढ़ लेते हैं कि जाने वाला तो गया. अब बेकार में क्यों पुलिस वालों को फंसाया जाये. जो नेता पुलिस की बर्बरता और हैवानियत पर हाय हाय करते नजर आते हैं. वे भी दरअसल में पुलिस वालों के हमदर्द होते हैं, जो ऐसे मामलों पर इस तरह हल्ला मचाते हैं मानो अब पुलिस वालों की खैर नहीं. कहीं दूसरी जगह पुलिस वाले बेफिक्र और बेखौफ बैठे किसी नई बर्बरता की स्क्रिप्ट लिख रहे होते हैं.

एक सबक

इन मामलों और हालातों को देख आम लोगों को चाहिए कि वे कभी पुलिस वालों की ज्यादतियों का विरोध न करें, बल्कि मुंह मांगी घूस देकर छू हो लें नहीं तो पैसे के साथ साथ इज्जत भी जाएगी और ज्यादा कायदे कानून झांडेंगे तो उनका हश्र भी शिवम जैसा हो सकता है. जो चुपचाप हजार दो हजार रुपए पुलिस वालों को दे देता तो जिंदा भी होता और कफन में लिपटे होने के बजाय आज बहिन की सगाई में सर पर साफा बांधे होता.

पत्नी की बेवफाई याद आते ही दिल तड़प उठता है मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 27 वर्ष है और मेरी पत्नी की 25 वर्ष. हमारी शादी हुए 6 वर्ष हो चुके हैं, हमारे 2 बच्चे हैं. हमारी गृहस्थी बड़ी सुखी थी, किंतु पिछले कुछ माह से मेरी पत्नी मेरे एक मित्र से प्यार करने लगी. एक दिन मैं ने पत्नी के मोबाइल में उसे भेजे रोमांटिक मैसेज पढ़ लिए. मेरी पत्नी ने मुझे सबकुछ साफसाफ बता दिया और यह भी बताया कि उस का यह प्यार केवल मोबाइल मैसेज और चैटिंग तक सीमित रहा है. मैं ने उसे माफ कर दिया. लेकिन मेरे मन में शंका है कि वह फिर मुझे धोखा न दे दे. इसी कारण मैं कभीकभी उस से बेवजह लड़ता और हाथ तक उठा देता हूं. वैसे, मैं आज भी उसे बहुत चाहता हूं किंतु उस की बेवफाई की बातें याद आते ही दिल तड़प उठता है. कृपया कोई उचित सलाह दें.

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जवाब

भूल किसी भी व्यक्ति से हो सकती है और जो अपनी गलती को सुधार ले उसे माफ कर देना चाहिए. आप अपनी पत्नी को प्यार करते हैं तो आप को उसे दिल से माफ भी कर देना चाहिए तथा उस को भलाबुरा कह कर व मारपीट कर उस का अपमान नहीं करना चाहिए. उसे कम से कम एक मौका जरूर देना चाहिए. आप को अपनी पत्नी पर पूर्ण विश्वास कर के फिर से पुराने संबंध कायम करने चाहिए. इस प्रकार आप देखेंगे कि आप का जीवन फिर से खुशियों से भर जाएगा और आप की बसी बसाई गृहस्थी उजड़ने से बच जाएंगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Diwali Special : डिनर में बनाएं मूंगफली और शिमला मिर्च की सब्जी

कई बार हम डिनर बनाते समय यह डिसाइड नहीं कर पाते हैं कि आज खाने में सब्जी क्या बनाएं. ऐसे में आज हम  आपको बताने जा रहे है कि हर दिन एक जैसा खाना बनाने से अच्छा है कि आज कुछ अलग बनाएं. तो चलिए बनाएं आज शिमला मिर्च और मूंगफली की सब्जी.

समाग्री

3- शिमला मिर्च

1 टमाटर कटा हुआ

1 प्याज़ कटा हुआ

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1 टेबलस्पून- मूंगफली

¼ चम्मच- जीरा

¼ टीस्पून- हल्दी पाउडर

स्वादानुसार नमक

¼ टीस्पन- चिकन मसाला पाउडर

आधा टीस्पून- लालमिर्च पाउडर

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चुटकीभर हींग

1 टेबलस्पून तेल

विधि

-शिमला मिर्च को अच्छी तरह से धोकर काट लें. अब कड़ाही में मूंगफली को सूखा भूनकर निकाल लें और थोड़ा ठंडा होने पर छिलका निकालकर मिक्सर में दरदरा पीस लें.

-अब कड़ाही में तेल गरम करके जीरा, हींग और प्याज़ का तड़का लगाएं. प्याज़ हल्का गुलाबी हो जाए तो उसमें शिमला मिर्च डालकर मध्यम आंच पर 5 मिनट तक भूनें.

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-कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सब्ज़ियों को मध्यम आंच पर भूनने से वह अच्छी तरह पक जाती हैं और उसके पौष्टिक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं. अब इसमें एक कटा टमाटर डालकर भूनें. टमाटर थोड़ा पक जाए तो हल्दी, लालमिर्च, नमक और चिकन मसाला डालकर ढंककर पकाएं.

-बीच-बीच में चलाती रहें. जब शिमला मिर्च अच्छी तरह पक जाए तो इसमें दरदरी पिसी हुई मूंगफली डालकर अच्छी तरह मिक्स करें. 2 मिनट चलाने के बाद गैस बंद कर दें.

-गरम-गरम सादे परांठे या मेथी के परांठे के साथ यह सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट लगती है. वैसे इसे आप लंच में दाल-राइस के साथ भी सर्व कर सकती हैं. लंच और डिनर के लिए यह परफेक्ट सब्ज़ी है.

-कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मूंगफली मिक्स कर देने से शिमला मिर्च का कसैला स्वाद चला जाता है और फिर बच्चे भी इसे बहुत चाव से खाएंगे

 

मुस्लिम चरमपंथियों के विरोध में अब मुस्लिम इंटेलेक्चुअल सामने आएं

मुट्ठीभर चरमपंथी मुस्लिम अपनी हरकतों से यूरोप में उन करोड़ों मुस्लिम शरणार्थियों की जिंदगी को नरक बनाने की कोशिश कर रहे हैं,जिन्हें यूरोप के विभिन्न देशों ने अपने लोगों के बेहतर जीवन में कटौती करके शरण दी है.आज यूरोप में मध्यपूर्व से खदेड़े गए 2.4 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रह रहे हैं. ये सब मूलतः लीबिया,सीरिया,ईराक,ईरान,जॉर्डन,लेबनान और अफगानिस्तान के मूल निवासी हैं, जिन्हें इनके देशों के मुस्लिम चरमपंथियों ने ही खदेड़ा है और दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश ने इन्हें शरण नहीं दी.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिस एलेन कुर्दी की हृदयविदारक मौत ने पूरी दुनिया को भावुक कर दिया था,वह भी सीरियाई मूल का एक तीन वर्षीय कुर्द बच्चा था,जिसके माँ बाप को तुर्की से भगाया गया था और वे चोरी छिपे ग्रीस जाना चाहते थे, मगर तुर्की के ही तट में वह खतरनाक डोंगी डूब गयी जिसमें इस मासूम के सहित करीब 12 लोग डूब गए थे. इस मासूम की मौत देखकर दुनिया रो पड़ी थी.यूरोप के तमाम देशों ने इस आँखें नाम करती तस्वीर को देखकर मुस्लिम रिफ्यूजियों को शरण देने के अपने नियम बदले और उन्हें अपनी सरजमीं में तमाम आंतरिक विरोध के बावजूद जगह दी.

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मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने के मामले में फ्रांस सबसे आगे था. यही वजह है कि आज यूरोपीय देश फ्रांस में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं. उसी फ्रांस को मुस्लिम चरमपंथी रह रहकर बर्बर निशाना बना रहे हैं.पहले एक शिक्षक का एक 18 वर्षीय युवक सर कलम कर देता है,फिर एक और कट्टर युवक उससे प्रेरणा लेकर एक बूढी औरत सहित तीन लोगों को काट डालता है. अब एक और बहादुर सामने आया है जिसने ने एक पादरी को गोली मार दी है. मुस्लिम चरमपंथियों ने अपनी विकृत मानसिकता से उन करोड़ों शरणार्थी मुसलामानों का जीवन असुरक्षित कर दिया है,जिनके पास कहीं और जाने या कमाने खाने की दुनिया में कोई और जगह नहीं है.

ये चरमपंथी बाबा भारती से डाकू खड्ग सिंह की तरह का व्योहार कर रहे हैं.लेकिन ये भूल रहे हैं कि यूरोपीय देश बाबा भारती की तरह चुप रहने का फैसला नहीं कर सकते. मैन्क्रों ने सार्वजनिक तौरपर कह दिया है कि उन्हें डर है कि फ्रांस में 60 लाख से ज्यादा मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक न बनकर रह जाएं.मुस्लिम बौधिकों को यह समझना चाहिए,इन्हें इन चरमपंथियों के खिलाफ आगे बढ़कर आना चाहिए. लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस हरकत के लिए इन्हें शर्मसार होना चाहिए, उसकी अनदेखी करके फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ गैरजरूरी गोलबंदी का नाटक दिखा रहे हैं.

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गौरतलब है कि 16 अक्टूबर 2020 को पेरिस से 35 किलोमीटर दूर कानफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक 18 वर्षीय मुस्लिम युवक अब्दुल्लाह अंजोरोफ ने 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी का सिर कलम कर दिया था.यह बर्बर हत्यारा फ्रांस में चेचेन्या से आया हुआ शरणार्थी था.इसकी बर्बरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने न केवल शिक्षक की बेरहमी से हत्या की बल्कि उसके सिरविहीन शव का वीडियो भी बनाया और इस क्लिप को ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया.जबकि इस इतिहास के शिक्षक का कसूर सिर्फ इतना था कि इसने अपनी कक्षा के छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास का पाठ पढ़ाते हुए, मोहम्मद साहब के उस कैरिकेचर को दिखाया था, जिस पर कई साल पहले हंगामा हुआ था. यह शिक्षक न तो इस कैरिकेचर के बनाये जाने को सही ठहरा रहा था और न ही इसके बनाये जाने पर हुए हंगामे के लिए मुसलमानों की आलोचना कर रहा था.

यह तो सिर्फ अपने छात्रों को यह बता रहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास को कहां कहां से गुजरना पड़ता है. लेकिन इस कट्टरपंथी अब्दुल्लाह अंजोरोफ को शिक्षक के शिक्षण का यह ढंग इतना बुरा लगा कि उसने शिक्षक का गला काट दिया.इसी शिक्षक की याद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 25 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के 42 वर्षीय राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रो ने कहा कि फ्रांस अभिव्यक्ति के अपने संस्कारों से समझौता नहीं करेगा.गौरतलब है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसके पहले अब्दुल्लाह अंजोरोफ के बर्बर हमले को इस्लामिक आतंकवाद बताया था और यह भी कहा था कि ऐसे इस्लाम से पूरी दुनिया को खतरा है.साथ ही मैंक्रो ने अपनी यह आंशका भी जाहिर की थी कि इस्लामिक आतंकवाद के चलते फ्रांस में मौजूद 60 लाख से ज्यादा मुसलमान मुख्यधारा से पीछे जा सकते हैं.

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इस्लामिक जगत ने मैंक्रो की इस टिप्पणी को न सिर्फ इस्लाम के विरूद्ध टिप्पणी करार दिया बल्कि यह भी जताने की कोशिश की कि फ्रांस के राष्ट्रपति शार्ली एब्दो मैगजीन कुछ साल पहले बनाये गये मोहम्मद साहब के कार्टूनों को सही ठहरा रहे हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ इस किस्म के माहौल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दाऑन की रही, जिन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को टीवी पर प्रसारित अपने एक संदेश में देशवासियों से फ्रांस में बनी चीजों के बहिष्कार का आह्वान किया.तुर्की के इस आह्वान के बाद कई मुस्लिम देशों में यह सिलसिला चल निकला और पाकिस्तान तथा ईरान की संसदों में फ्रांस के राष्ट्रपति के विरूद्ध प्रस्ताव भी पारित किये.पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो इस उत्साह में इतनी बचकानी हरकत कर गये कि अब पूरी दुनिया पाकिस्तान के कृत्य पर व्यंग्य से बस मुस्कुरा भर रही है.

दरअसल पाकिस्तान की संसद ने फ्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. लेकिन जब प्रस्ताव पारित हुआ तो इस पर मीडिया के लिए बनायी जाने वाली रिपोर्ट के समय यह पता चला कि फ्रांस में तो पाकिस्तान का कोई राजदूत ही नहीं है.पाकिस्तान की ये हरकत बहुत ही हास्यास्पद रही.लेकिन इस बात पर न तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान झेंपे और न ही तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोऑन को महसूस हुआ कि वह कुछ ज्यादा ही विरोध की हवाबाजी कर रहे हैं.यह पाखंड नहीं तो और क्या है कि चाहे एर्दोआन हो या इमरान खान अथवा पूर्व मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद इनमें से किसी ने भी उस 18 वर्षीय अब्दुल्लाह अंजोरोफ की एक बार भी आलोचना नहीं की, जो फ्रांस में मुस्लिम देशों से आया.

सुलगते सवाल -भाग 1: क्या थे गार्गी की बेटी निम्मी के सुलगते सवाल

वह खिलखिलाता सन्नाटा आज भी उस की आंखों के सामने हंस रहा था. बच्चे तो बसेरा छोड़ चुके थे. पति 10 वर्ष पहले साथ छोड़ गए. धूप सेंकतेसेंकते वह न जाने सुधबुध कहां खो बैठी थी. बड़बड़ाए जा रही थी, ‘बड़ी कुत्ती चीज है. दबीदबी न जाने कब उभर आती है. चैन से जीने भी नहीं देती. जितना संभालो उतना और चिपटती जाती है. खून चूसती है. उस से बचने का एक ही विकल्प है. मार डालो या उम्रभर मरते रहो. मारना कौन सा आसान है. यह शै बंदूकचाकू से मरने वाली थोड़ी ही है. स्वयं को मार कर मारना पड़ता है उसे.

हर कोई मार भी नहीं सकता. शरीफों को बहुत सताती है. बदमाशों के पास फटकती नहीं. पीछे पड़ती है तो मधुमक्खियों जैसे. निरंतर डंक मारती रहती है. नींद भी उड़ा देती है. नींद की गोली भी काम नहीं करती है. वह जोंक की तरह खून चूसती है. चाम चिचड़ी की भांति चिपक जाती है.’

वह बहुत कोशिश करती है उसे दूर भगाने की पर वह रहरह कर उसे घेर लेती. वह क्या चीज है जो इतना परेशान करती रहती है उसे. मानो तो बहुत कुछ और न मानो तो कुछ भी नहीं.

वह सोचती है, मां हूं न, इसलिए तड़प रही हूं. भूल तो हुई थी मुझ से. सोच कुंद हो गई थी. समय का चक्र था. उसे पलटा भी नहीं जा सकता. देखो न, उस वक्त तो बड़ी आसानी से सोच लिया था, मां हूं. उस वक्त मुझे अपनी बच्ची की चिंता कम, बहुरुपिए समाज की चिंता अधिक थी. अपनी कोख की जायी का दुख चुपचाप देखती रही. बच्ची के दुख पर समाज हावी हो गया. अरसे से वही कांटा चुभ रहा है. मन ही मन हजारों माफियां मांग चुकी हूं. किंतु यह ‘ईगो’ कहो या ‘अहं’, नामुराद बारबार आड़े आ खड़ा हो गया. दोषी तो थी उस की. फिर भी दोष स्थिति पर मढ़ती आई. शुक्र है, कोई सुन नहीं रहा. खुद से ही बातें कर रही हूं.

नियति कब और कहां करवट बदलती है, कोई नहीं जानता. अब स्थिति यह है कि न तो वह निन्नी से अपने दुख कहती है, न वह ही अपने दुख बताती है. दोनों एकदूसरे की यातनाओं से घबराती हैं. वह अपने शहर में बताती है, ‘मैं आराम से हूं.’ और वह भी यही कहती है. वह आज तक भूमिका बांध रही है, ‘माफी मांगने की.’

बात 3 दशक पहले की है. अचानक यूके से उसे किसी डोरीन का फोन आया:
‘‘मिसेज पुरी, आप के दामाद मिस्टर भल्ला का अचानक हार्टफेल हो गया है.’’
सुनते ही परिवार को मानसिक आघात लगा. पति ने कहा, ‘‘गार्गी, तुम चलने की तैयारी करो.’’
बेटे अर्णव ने भी पिता का साथ देते कहा, ‘‘हां मां, दीदी वहां बच्चों के साथ अकेली हैं. आप के वहां होने से निन्नी दीदी को बहुत सहारा होगा. मैं पासपोर्ट, वीजा, टिकट व दूसरी औपचारिकताएं पूरी कराता हूं.’’

‘‘अर्णव, बेटा, तू क्यों नहीं चला जाता? मैं तो अनपढ़गंवार. एक शब्द अंगरेजी का नहीं आता. मेरा वहां जाने का क्या फायदा?’’

‘‘मां, मुझे कोई आपत्ति नहीं. आजकल प्राइवेट सैक्टर में छुट्टी का कोई सवाल ही नहीं उठता. आप का जाना ही ठीक रहेगा. आप तसल्ली से वहां 5-6 महीने बिता भी सकती हैं. पापा की चिंता मत करना,’’ अर्णव ने आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, जैसा तुम दोनों बापबेटे कहते हो, ठीक ही होगा,’’ गार्गी ने तैयारियां शुरू कर दीं. समय बीतता गया. ‘‘बेटा, 2 महीने होने को आए हैं. अब तक तो मुझे निन्नी के पास होना चाहिए था,’’ गार्गी ने विक्षुब्ध हो अर्णव से कहा.

‘‘मां, दूतावास के लोग भी फुजूल की औपचारिकताओं में उलझाए रखते हैं. बैंक का खाता, मकान के कागजात, एक मांग की पूर्ति नहीं होती कि दूसरी मांग खड़ी कर देते हैं.’’

आखिरकार 3 महीने बाद पासपोर्ट तैयार हो गया. उड़ान शनिवार की थी. गार्गी मन ही मन सोच रही थी, उसे तो निन्नी के पास 3 महीने पहले ही होना चाहिए था. गरमियां भी समाप्त हो चुकी थीं. टीवी पर यूके की बर्फ को देखदेख उस की हड्डियां जमने लगीं. भीतरभीतर उसे एक अज्ञात डर सताने लगा. उसे अपनी क्षमता पर शंका होने लगी, कैसे संभालेगी वह स्थिति को, पराए देश में अनजान लोगों के बीच.

गार्गी पहली बार विदेश के लिए अकेली सफर के लिए चल दी. लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर निन्नी के साथ गार्गी के रिश्ते के देवर भी लेने आने वाले थे. उसे इमीग्रेशन से निकलतेनिकलते 2 घंटे लग गए. सुबह के 8 बज चुके थे. बाहर पहुंचते ही चमचमाती नगरी की रोशनी से उस की आंखें चुंधिया गईं. उस रोशनी में उस की बेटी का दुख न जाने किस अंधियारे कोने में दुबक गया. उस की आंखें निन्नी व अपने देवर को ढूंढ़ने में नहीं बल्कि गोरीगोरी अप्सराओं पर टिकी की टिकी रह गईं.

अचानक ‘मां’ शब्द ने उस का ध्यान भंग किया. निन्नी आज मां के गले लग कर खूब रोना चाहती थी. मां ने दूर से ही उसे सांत्वना देते कहा, ‘‘बेटा, संभालो खुद को, तुम्हें बच्चे संभालने हैं,’’ एक बार फिर मां ने जिम्मेदारियों का वास्ता दिया जैसा कि बचपन से करती आई थीं.
मोटरवे पर पहुंचते ही देवर ने कहा, ‘‘भाभीजी, लिवरपूल पहुंचतेपहुंचते 5 घंटे लग जाएंगे. आप लंबा सफर तय कर के आई हैं. चाहें तो कार में आराम कर सकती हैं.’’

‘‘ठीक है, जब मन करेगा तो आंखें मूंद लूंगी,’’ गार्गी ने कहा. मोटरवे पर कार तेज रफ्तार से दौड़ रही थी. सड़क के दोनों ओर खेत नजर आ रहे थे. उन में पीलीपीली सरसों लहलहा रही थी. इतना खूबसूरत दृश्य देख कर गार्गी को यों लगा मानो अभीअभी सूरज की पहली किरण दिखाई दी हो. वह सोचने लगी, कितना अच्छा हो, अर्णव और उस का परिवार भी यहीं पर बस जाएं. घर चल कर निन्नी से बात करूंगी. मां, बच्ची का गम भूल कर अपने बेटे को बसाने की बात सोचने लगीं.

निन्नी टुकुरटुकुर मां की ओर देखती रही. गार्गी प्यार से निन्नी का सिर अपनी गोद में रख सहलाने लगी. सहलातेसहलाते उस का मन इंपोर्टेड चीजों की शौपिंग की ओर चला गया. मन ही मन खरीदारी की सूची तैयार करने लगी. वातावरण में कुछ देर के लिए चुप्पी सी छा गई.

सुलगते सवाल -भाग 4 : क्या थे गार्गी की बेटी निम्मी के सुलगते सवाल

सुबह गार्गी नीचे आ कर बैठ तो गई किंतु बारबार रात की अधूरी नींद उस की पलकों पर आ बैठती.

बच्चे स्कूल चले गए, निन्नी अपने काम पर. यहां मौसम का तो यह हाल है, न सुबह होती है न दोपहर, बस सांझ ही सांझ रहती है. कभीकभी बादलों के बीच से थोड़ा सा सूरज का मुंह बाहर निकलता है तब पतलीपतली छाया पूर्व से पश्चिम की ओर भागने लगती है. तब होंठों पर दबी सी मुसकराहट आ मिलती है.

घर पर काम भी अधिक न था. जितना गार्गी को समझ आता, कर लेती थी. गार्गी का मन अपने घर जाने को उचाट होने लगा था. मांबेटी में संकोच और तनाव की चट्टान खड़ी हो गई. दोनों अपनीअपनी चुप्पी की रेखाएं खींचे दिन काट रही थीं.

एक दिन बच्चे अपने स्कूल का काम करने में व्यस्त थे. गार्गी ने चुप्पी भंग करते हुए कहा, ‘‘निन्नी बेटा, तेरे पापा कह रहे थे कि अब तक तो निन्नी संभल गई होगी. तुम्हें गए भी 4 महीने हो गए हैं. कमल की शादी तय हो गई है. अगले महीने तक आ जाओ.’’

‘‘शादी? चाचाजी की? अभी 2 महीने पहले ही तो चाचीजी की मृत्यु हुई है. उन की तो राख भी ठंडी नहीं हुई. शादी है या मजाक?’’

‘‘निन्नी, क्या हो गया है तेरी बुद्धि को. कमल पुरुष है. भला कैसे संभाल सकता है गृहस्थी को? उस की भी व्यक्तिगत कई तरह की जरूरतें हैं. जीवन का रथ दो पहियों से ही चलता है. लड़की भी देखीभाली है. उस की साली है. बच्चों की मौसी. बच्चों के साथ सौतेला व्यवहार भी नहीं करेगी. स्थिति को ध्यान में रखते हुए मेरा वापसी का टिकट कटा दे.’’

‘‘मां, मैं कुछ भी कहती हूं तो आप को बुरा लगता है. मेरी इस बात को गलत मत लेना, समझना. जिस दिन से आप आई हैं, आप के मुख से ‘तेरा भाई’, ‘तेरा मामा’, ‘तेरा चाचा’ तीनों की पत्नियों के देहांत होते ही उन की दुलहनें तैयार खड़ी थीं. कभी उन सब की सालियों से भी पूछा या फिर उन की मजबूरी का लाभ उठाया. एक ही तर्क के साथ कि आदमी हैं, उन के जीवन की नाव अकेले कैसे चलेगी? बच्चे कैसे संभलेंगे? उन की जरूरतें हैं? नौकरियां करते हैं जबकि घर पर दादादादी, बूआ, चाचाचाची, नौकरचाकर सभी हैं. दूर क्या जाना, अर्णव भैया जान छिड़कते थे भाभी पर. भाभी के जाते ही, आप ही तूफान ले आई थीं, ‘हाय मेरा बेटा अकेला रह गया है. कैसे काटेगा जीवन? कौन करेगा उस की देखभाल?’ भैया तो आप के साथ ही रहते थे. क्या भैया सचमुच अकेले थे? उन को खाना नहीं मिल रहा था? कपड़े धुले हुए नहीं मिल रहे थे? बच्चे नहीं पल रहे थे? इतनी जल्दी भी क्या थी? क्या पुरुष इतना कमजोर है? या हम औरतों ने उसे बना दिया है? सदियों से हम नारियों का पुरुष की इतनी हिफाजत करने का परिणाम देखा है, इसीलिए वह अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना कर हम पर अत्याचार करता आया है और करता रहेगा.

‘‘पिछले 4 महीनों से देख रही हूं, आप को सब की चिंता है. अपनी भी. केवल मेरी नहीं. कभी सोचा है मेरे बारे में. इस बियाबान घर में, परदेस में छोटेछोटे बच्चों के साथ लंबीलंबी सूनी रातें कैसे काटूंगी? क्या मेरे बच्चों को बाप की और मुझे पति की जरूरत नहीं? क्या मेरी जरूरतें नहीं हैं, क्यों? क्योंकि मैं बेटा नहीं हूं.
‘‘पापा ने तो कभी भेदभाव किया नहीं, फिर आप में भेदभाव के इतने तीक्ष्ण लक्षण कैसे आ गए? माताएं बेटों को

18 महीने पेट में रखती हैं क्या? बेटा पैदा होने पर अधिक पीड़ा होती है क्या? क्या बेटा आप को उतना ही प्यार देता है जितना बेटियां? मां, अपने अंतर्मन में झांक कर देखो. अगर हम औरतें ही बेटेबेटियों में भेदभाव रखेंगी तो कैसे मिलेगा बराबर का सम्मान लड़कियों को? कौन देगा? पति, ससुराल या समाज?

‘‘पैदा होते ही लड़कियों को मांबाप के घर में पलपल सुनना पड़ता है, पढ़ाना मत लड़की को? पैसा मत बरबाद करना बेटियों पर? वे पराया धन हैं. वहीं ससुराल में पैर पड़ते ही उन्हें सुनना पड़ता है, बाहर से आई है, पराई है, अपनी भला कैसे बन सकती है?

‘‘अब आप ही बताइए, क्या पहचान है बेटियों की? इन का कौन सा घर है, मांबाप का, ससुराल का या कोई नहीं? बेघर.

‘‘मां, आप को याद है मेरी सहेली गुड्डो? तलाक के बाद उस ने पूरे परिवार को अमेरिका में बुला कर स्थापित किया. बहनभाइयों की शादियां कीं. मांबाप भी सदा उसी के साथ रहे. पिछले 30 वर्षों में उन्हें एक बार भी ध्यान नहीं आया कि गुड्डो को भी पति की और उस के बेटे को बाप की जरूरत हो सकती है. मांबाप का फर्ज नहीं कि बेटी की दूसरी शादी कर दें?

‘‘आप बेफिक्र रहिए, मेरा दूसरी शादी करने का अभी कोई विचार नहीं है. मैं तो आप की दबी सोच की चेतना को जगा रही हूं. आप को एहसास दिला रही हूं. इस लड़कालड़की के भेदभाव को मिटाने का बीड़ा अगर हम स्त्रियां नहीं उठाएंगी तो कौन उठाएगा? अगर हम एक दीपक जलाएंगे, उस के संगसंग हजारों दीपक दिलों में उजाला करते जाएंगे.’’

उस दिन निन्नी ने गार्गी की वर्षों से सुप्त चेतना पर बर्फीला पानी डाल कर जगा दिया. आज बेटी के ताने, उलाहने, कटाक्ष अर्थहीन नहीं थे. उन का अर्थ था, उन में लौ थी. ठीक ही तो कह रही थी निन्नी, मां, तुम्हारी सोच अपाहिज हुई बैठी है. गूंगेबहरे व अंधों की तो लाचारी है पर आप तो जानबूझ कर अंधीबहरी हुई बैठी हैं उस कबूतर की भांति यह जानते हुए भी कि वह उड़ सकता है. किंतु बिल्ली को देखते ही आंखें मूंद लेता है और बिल्ली उसे खा जाती है. जान किस की जाती है, कबूतर की न?

‘‘मां, बेशक नारी पर समाज के अंकुश लगे हैं किंतु उस की सोच तो स्वतंत्र है, पराधीन नहीं.’’

गार्गी सोचने पर मजबूर हो गई. क्यों आज उस की सोच आजाद नहीं? क्यों उस ने अपनी सोच को समाज के रंग में ढलने दिया? उस ने स्वयं को च्यूंटी काट कर महसूस किया और बड़बड़ाने लगी, ‘मैं तो हाड़मांस की जिंदा औरत हूं. घर में भेदभाव का बीज तो मां ही बीजती है. क्या कभी सुना है ससुर ने बहू पर अत्याचार किए, उसे जला डाला? इसी सोच के कारण आज नारी की अस्मिता संकट में है.’

उस रात गार्गी मन में जागृति की लौ ले कर चैन से सोई. उस ने ठान लिया था, सुबह साहस बटोर कर बेटी से माफी मांग लेगी. फिर जरूर अपनी सोच बदलने का दीपक जलाएगी, जिस की लौ से और दीपक जलेंगे. मन ही मन भयभीत भी थी बेटी की सोच से.
सुबह उठते ही गार्गी डरतेडरते बोली, ‘‘बेटा निन्नी, बेटा मुझे…’’
‘‘जी मां, कहिए.’
‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ माफी शब्द उस के गले में अटका रहा.
दोनों के लिए एक नई सुबह थी. निन्नी ने संक्षिप्त मुसकराहट से कहा, ‘‘मां, बस, एक बार बेटी को बुढ़ापे की लाठी बनने का अवसर दे कर देखिए. उसे बेटे सा सम्मान दे कर देखिए.’’

गार्गी ने निन्नी की ओर प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘बेटा, कुछ इच्छाएं याद आ रही हैं. कुछ कामनाएं घुमड़ रही हैं. अब तो क्रिसमस के बाद ही जाऊंगी.’’

आज फिर गार्गी का अहं यानी ईगो आड़े आ खड़ा हुआ. एक बार फिर वह ‘माफी’ शब्द निगल गई और सवाल सुलगते रह गए.

 

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