विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में एक बार फिर भाजपा समर्थित सरकार का बनना आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि भारत में धर्मजनित राजनीति अब गहरे तक अपनी जड़ें मजबूत कर चुकी है. हिंदू धर्म की पौराणिक नीतियां ही सर्वश्रेष्ठ हैं और समाज उन्हीं के अनुसार चलेगा, यह खुल्लमखुल्ला कहने वाली भारतीय जनता पार्टी का असर हर घर तक है और बिहार इस का अपवाद कैसे हो सकता है? अगर कहींकहीं दूसरी पार्टियां जीत रही हैं तो वह इसलिए नहीं कि उन्हें इन नीतियों से कोई बैर है बल्कि इसलिए कि इसी मिक्सचर में वहां कुछ और सिरफिरी बात डाली गई है या इस को बेचने वाले की छवि भाजपा के नरेंद्र मोदी से अलग है.

बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा जुआ खेला और नीतीश कुमार का कद छोटा करने के लिए लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को नीतीश की जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी के खिलाफ अलग से खड़ा कर दिया. नीतीश चक्रव्यूह में फंस गए. उन्हें पता था कि वे अपनी सीटें खो सकते हैं पर फिर भी उन्हें भाजपा को दी गई सीटों पर पूरी तरह काम करना पड़ा. राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद यादव की धरोहर को काफी ढंग से संभाला और चुनाव के दौरान जनता को आशा बंधाई कि वे नीतीश की दोगली नीतियों से छुटकारा दिला सकेंगे. पर, वे उस तंत्र को तोड़ नहीं पाए जो भाजपा ने बना डाला है, वह तंत्र जो मंदिरों, पुजारियों, धर्म के दुकानदारों, जातियों के नेताओं के माध्यम से कोनेकोने में फैला हुआ है.

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न कांग्रेस में हिम्मत हो रही है और न ही किसी और दल में कि उस तंत्र के खिलाफ बोल भी सके, तोड़ना तो दूर. पुरातनपंथी, जाति और धर्म में बांटने वाली भाजपा की यह सोच अब राजनीति की पहली जरूरत बन गई है. घरघर में इसे सहज स्वीकार कर लिया गया है. हम एक समाज हैं, यह सोच तो नेताओं और समर्थकों के दिमाग में भूले भी कहीं नहीं है. हम अलगअलग कबीलों का समूह हैं जिस की डोर उन के पास है जो आज भारतीय जनता पार्टी को इशारे पर चला रहे हैं और वे ही पहले कांग्रेस को चलाया करते थे. बिहार के चुनावों के ताजा परिणाम इसी का नतीजा हैं. राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की हार इस बात का उदाहरण है कि लोग अपनी बिरादरी और संकीर्ण सोच को दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के मुकाबले ज्यादा महत्त्व देते हैं. देश कहीं जाए, हमारे खून में जो गंध है वह वहीं की वहीं रहे, यह हर आम आदमी की पहली प्राथमिकता बनी हुई है. अगर हम दुनिया के सब से पिछड़े, गंदे, बिखरे देश हैं तो यह ऐसे ही नहीं है.

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हमारे पुजारी, नेता और विभाजक बड़ी मेहनत कर रहे हैं. बिहार चुनाव परिणाम इसी का नमूना हैं. ट्रंप गए, बाइडेन आए अमेरिका के चुनावों पर दुनिया के सभी देशों की नजर थी कि डोनाल्ड ट्रंप फिर जीतते हैं या नहीं. चुनावों से पहले होने वाले आम पोल यही कह रहे थे कि इस बार डोनाल्ड ट्रंप बुरी तरह हारेंगे. पर जब नतीजे आए तो पता चला कि खब्ती, गोरे कट्टरपंथी, लगातार झूठ बोलने वाले ट्रंप के समर्थकों की अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक व शिक्षित देश में कमी नहीं है. डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन जीते तो थोड़े से ज्यादा वोटों से ही. दुनियाभर के उदार, तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टि रखने वालों के लिए यह बुरी तरह से चौंकाने वाली बात है कि एक के बाद एक देश में उदारता और वैचारिक स्वतंत्रताओं का गला घोंट कर कुछ लोग अपना प्रभुत्व जमाए रखने के लिए डिक्टेटर टाइप नेताओं और शासकों को सहज स्वीकार कर रहे हैं. बैलटबौक्स से निकलने वाले कट्टरपंथी नेता सारी दुनिया में काला धुआं फैलाने में लगे हैं. डैमोक्रेटिक पार्टी की जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी के माध्यम से अमेरिकनों ने ट्रंप के 4 सालों का हिसाब लिया हो, ऐसा लगता नहीं. ट्रंप के समर्थक, जो आमतौर पर कम पढ़ेलिखे, गोरे कट्टर धार्मिक और पैसे वाले हैं,

बड़ी संख्या में हैं. वे c डैमोक्रेटिक पार्टी की हिम्मत भी नहीं हुई कि वह देश को बांटने की मानसिकता को दम देने वाली दीवार जैसे फैसलों का खुल कर विरोध कर सके. जो बाइडेन और कमला हैरिस जीत गए पर ट्रंप की नीतियों पर यह फैसला नहीं है, यह ट्रंप की अजीब व्यक्तिगत छवि, उन के खराब व्यवहार के खिलाफ थोड़े से लोगों की नाराजगी भर है. यह अमेरिका की संसद और राज्यों के विधिमंडलों में भी दिखी जहां रिपब्लिक पार्टी ने ज्यादा जमीन नहीं खोई. आज अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, टर्की वगैरह में जो हो रहा है, उस का भारत, पश्चिमी यूरोप, जापान, कोरिया पर असर पड़ेगा ही. वहां लोकतंत्र, जैसा भी है, अब दिखावे का रह जाएगा. भारत में तो कट्टरपंथी अंधभक्त सैकड़ों सालों से अपने राजाओं और पुजारियों के आदेशों पर लाखों को मारते आए हैं,

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शहरोंगांवों को लूटते रहे हैं, औरतों का बलात्कार करते रहे हैं और धर्म की रक्षा के नाम पर अपनी जान तक देने को तैयार रहे हैं. आधुनिक शिक्षा व उदारवादी सोच ने जिस नए समाज का निर्माण शुरू किया था वह धीरेधीरे एक बार फिर कट्टरपंथी तानाशाही प्रवृत्ति वालों के चंगुल में फंस रहा है. अमेरिका जो 30-40 वर्षों से लोकतंत्र का प्रहरी माना जा रहा था, अब खुद लोकतांत्रिक भावनाओं को कुचलने वाला देश बन गया है. जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी इस बदलाव को धीमा कर सकती है, रोक नहीं सकती क्योंकि बीमारी अब अमेरिकी समाज की रगरग में फैल गई है. अर्नब की गिरफ्तारी न्यूज चैनल रिपब्लिक भारत के मालिक, मुख्य संपादक व एंकर अर्नब गोस्वामी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाना अचंभे वाली बात है. अर्नब गोस्वामी खुलेआम मोदीभक्त हैं.

उन की नजर में भाजपा के अलावा देश में सब गुंडेमवाली हैं. वे अपने चैनल पर रातदिन कभी इसे, तो कभी उसे गिरफ्तार कर जेल भेज देने की मांग करते रहते थे चाहे उन के पास कोई सुबूत न हो. अर्नब ने कांग्रेसी नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की आत्महत्या का मामला महीनों चैनल पर चलाया. हाल में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को उन्होंने देश की सब से बड़ी आफत का रंग दे डाला. उन की मांग थी, जो हर रोज दोहराई जाती थी, कि शशि थरूर और सुशांत की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को जेल में डाला जाए. अब जब उन्हें ऐसे ही एक मामले में महाराष्ट्र पुलिस सुबह 6 बजे गिरफ्तार कर ले गई और गिरफ्तारी के वीडियो भी जगजाहिर कर दिए तो वे देश को संकट में होना बताने लगे. अब उन की घिग्घी बंधी हुई है, बस, रातदिन ‘मु झे मार डालेंगे’, ‘मु झे पीटेंगे’,

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‘मु झे मत मारो’, ‘मु झे खाना नहीं दिया’ की गुहार लगा रहे हैं. अर्नब गोस्वामी जैसे देश में दसियों या सैकड़ों नहीं, बल्कि लाखों हैं जो जेलों में बंद हैं. आत्महत्या हो, चोरीचकारी, हत्या, देशद्रोह का मामला हो, नेता के खिलाफ कुछ बोलना हो या भरी सभा में कुछ कहना हो, हमारे यहां गिरफ्तारी आम है. रिपब्लिक चैनल ने कभी इन गिरफ्तारियों के खिलाफ मुहिम नहीं चलाई थी क्योंकि उसे मोदी सरकार जो पालपोस रही है. रिपब्लिक चैनल मोदी सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल सकता. लेकिन, देश के व्यावसायिक दृष्टि से बेहद अहम प्रदेश महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना की सरकार बन गई. पर फिर भी अर्नब गोस्वामी सोचते रहे कि यह कांग्रेस जैसी सरकार है जो राजनीतिक बदला लेने में भरोसा नहीं करती. अर्नब ने चैनल में खुले शब्दों में शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत और पार्टी के मुखिया व प्रदेश के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चुनौती देनी शुरू कर दी. वे भूल गए कि उन के खिलाफ एक मामला अछूता पड़ा था जिस में किसी डैकोरेटर ने आत्महत्या करने से पहले छोड़े अपने पत्र में अर्नब गोस्वामी पर पैसे न देने का आरोप लगाया था.

पिछले भाजपा मुख्यमंत्री ने मामला रफादफा करा दिया था पर अब मामले को फिर कब्र में से निकाल लिया गया है और अर्नब को गिरफ्तार कर लिया गया. मोदी सरकार अब कुछ न कर पाई. वैसे, यह मामला साफसाफ विचारों की आजादी कुचलने का है. अर्नब गोस्वामी अनापशनाप बोले थे, झूठे आरोप लगाए थे. वे सड़कछाप पत्रकारिता करते थे. पर फिर भी, लोकतंत्र में उन्हें यह हक है. इस के लिए किसी बहाने से भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. पत्रकारों को इस तरह गिरफ्तार करना नई बात नहीं है. कभी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, कभी राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बता कर, कभी 2 बोतल शराब रखने का मामला दिखा कर पत्रकारों का मुंह बंद किया जाता है देशभर में रातदिन यही होता है. अर्नब गोस्वामी इसी का शिकार हुए हैं, पर उन का व्यवहार पहले ऐसा न था कि उन्हें बोलने की आजादी का पहरेदार कभी माना जाए. वे तो बोलने की आजादी का इस्तेमाल अपने दोस्तों और आकाओं के लिए करते थे या फिर जातिगत ऊंचनीच को साबित करने के लिए.

बहरहाल, अर्नब को अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया है लेकिन जब तक मामले के पूरे ट्रायल के बाद अदालत से सजा न हो जाए, किसी को जेल में न डाला जाए. बोलने व लिखने का हक हर पत्रकार का है. जो जेल की सलाखों के पीछे से नहीं हो सकता. कोविड को धन्यवाद कोविड़-19 की वजह से बंद किए गए मंदिरमसजिद देश का बहुत भला कर रहे हैं. कोविड ने कुछ और दिया या नहीं, यह जरूर साबित कर दिया है कि बीमारी आदमी की अपनी वजह से ही दूर हो सकती है, पूजापाठ से नहीं. सदियों से यह पट्टी पढ़ाई जा रही है कि हर आफत का उपाय पूजापाठ और ईश्वर, अल्लाह, जीजस, बुद्ध या किसी अन्य की चरणवंदना से निकलेगा. धर्म के दुकानदारों ने हमेशा यह सावधानी बरती है कि वे धर्म की टैक्सजनित पूजापाठ के साथ हमेशा अपना काम करते रहने की सलाह भी देते रहे. वे जानते हैं कि पूजापाठ से कुछ होनाहवाना नहीं है.

चीन में पैदा हुआ वायरस दुनियाभर में फैला, पर चीन में सब से कम. जिन देशों में यह फैला, वे बेहद धार्मिक हैं, जैसे इटली, ईरान, भारत, अमेरिका, ब्राजील, रूस. इन देशों में चर्च, मंदिर, मसजिदें बंद कर दी गईं पर लोग घरों में प्रार्थना ही करते रहे कि कोविड पास न आए और आ गया है, तो चला जाए. पर पूजापाठ से कुछ न हुआ और 5 करोड़ लोग कोरोना की चपेट में आ चुके व और आते जा रहे हैं. लाखों लोग तो मर गए और लाखों अस्पतालों में सांसें गिन रहे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो बेहद दकियानूसी हैं. उन के व्हाइट हाउस में तो बाकायदा पूजापाठी लोग हैं. चुनावों के दिनों में ट्रंप समर्थक काउंटिंग सैंटरों के आगे पूजा करते नजर आए. मगर चीन में शी जिनपिंग की तसवीरों के आगे कोविड राक्षस से बचाने के लिए किसी ने सिर नहीं झुकाया. मंदिरमसजिद असल में आम लोगों को बहकाने और उन से जेबें ढीली कराने का सब से सुलभ माध्यम हैं. भगवान का नाम ले कर किसी को भी लूटा जा सकता है. कोविड ने इस अंधविश्वास से तो कुछ दिन बचाया ही है, सो, कोविड का धन्यवाद.

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