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इंडियन एयरफोर्स ने अनिल कपूर के ट्विट पर लगाई लताड़, एक्टर ने गलत तरीके से इस्तेमाल किया वायुसेना का ड्रेस

हाल ही में अभिनेता अनिल कपूर ने ट्विटर पर एक वीडियो ट्विट किया था जिसमें उन्होंने अपनी अपकमिंग फिल्म AK vs AK का टीजर डाला था. इस वीडियो में अनिल कपूर ने भारतीय एयरफोर्स का ड्रेस पहना था और वीडियो में अपशब्दों का इस्तेमाल करते नजर आ रहे थें. इस पर पहले भी लोगों ने अनिल कपूर की खींचाई की थी.

अब इस पर भारतीय एयरफोर्स ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है. भारतीय एयरफोर्स ने अपने अधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर अनिल कपूर  के ट्वीट को कोड करते हुए लिखा है कि इस वीडियो में भारतीय एयरफोर्स की ड्रेस गलत तरीके से पहनी गई है. और वीडियो में अनुचित भाषा का इस्तेमाल किया गया है.

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ये संबंधित ट्वीट हटाए जानें चाहिए. इसे लिखा है रिटायर्ड विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी ने. ये किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है. मालूम हो कि अनिल कपूर जल्द ही अनुराग कश्यप की फिल्म AK vs AK में नजर आने वाले हैं.

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इस फिल्म से पहले भी वह अनुराग से भीड़ने का स्टंट कर चुके हैं. हालांकि देखा जाए तो यह पहली बार नहीं है जिसमें अभिनेता ने पहली सेना की वर्दी का अपमान किया है.

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इससे पहले भी कई फिल्मों में सेना की वर्दी के साथ खिलवाड़ हो चुका है. हाल ही में एकता कपूर की वेब सीरीज ‘xxx’ में सेना की वर्दी का अपमान हुआ था. मामला इतना ज्यादा बढ़ गया था कि एकता कपूर के कंपनी के खिलाफ केस तक दर्ज हो गया था.

बिग बॉस 14: राहुल वैद्य हुए एली गोनी के गुस्से का शिकार, कह दी ये बात

बिग बॉस में मिनी फिनाले भले ही खत्म हो चुका है लेकिन अभी भी लोग इस बारे में बात करते हैं. वहीं बिग बॉस 14 के मिनी फिनाले में कुछ ऐसा हुआ है जिससे सभी के होश उड़ गए. राहुल वैद्य ने सलमान खान के एक इशारे में घर छोड़कर चले गए.

लोगों का यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि राहुल वैद्य घर को छोड़कर चले गए. फैंस ही नहीं बल्कि एली गोनी भी इस खबर के बाद से नाराज है. राहुल वैद्या के इस चौकाने वाली खबर ने सभी को हैरान करके रख दिया था.

 

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एली गोनी को इतना ज्यादा गुस्सा आया उन्होंने जमकर लताड़ लगाई. इस बात का खुलासा खुद एली गोनी ने किया. वीकेंड के बार में एली गोनी ने बताया कि मेरे लिए राहुल का घर से जाना मेरे लिए बहुत ज्यादा शौकिंग था. इतना ही नहीं मैंने ये बात सभी को बोली है.

मैनें राहुल वैद्य को ये बोलकर बहुत जोर से चिल्ला पड़ा. राहुल वाकई अच्छा फील नहीं कर रहा था. आगे एली गोनी ने कहा कि राहुल का मूड खराब था इसलिए उन्होंने ये फैसला लिया. मुझे लगा कि राहुल वैद्य जास्मिन भसीन के साथ फिनाले में जाएगा.

 

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वो वाकई बहुत अच्छा लड़का है. मैंने उसके साथ ट्रीप पर जानें कि प्लीनिंग कर ली थी. मुझे उम्मीद है कि हम जल्द साथ होंगे. मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा स्ट्रॉग कंटेस्टेंट थे. इस बात का दुख मुझे हमेशा रहेगा कि राहुल ने शो को बीच में छोड़ दिया.

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आगे एली गोनी ने कहा कि मैं राहुल के साथ- साथ रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला के साथ भी दोस्ती रखना चाहूंगा. वहीं एली गोनी के जाने के बाद जस्मिन भसीन को राहुल वैद्या ने संभाला था.

लव जिहाद का बहाना

लव जिहाद का बहाना बना कर हिंदू कट्टरपंथी युवाओं की प्रेम की स्वतंत्रता भी छीन लेने के लिए कानून बना देना चाहते हैं. शायद, उन की मंशा है कि युवा प्रेम कर के शादी करें ही नहीं, क्योंकि लड़कियों को प्रेम करने की आजादी कैसे दी जा सकती है. जब लड़कियां अपनी इच्छा से शादी नहीं कर सकेंगी तो युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता छिन जाएगी.

प्रस्तावित लव जिहाद का कानून वैसे तो भारतीय संविधान के खिलाफ होगा पर नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को अब जिस तरह का बना दिया है, उस से कुछ भी मुमकिन है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय बारबार यही साबित कर रहे हैं कि सरकार ही नहीं, सरकार को चलाने वाले पोंगापंथी गुट भी सही हैं. लव जिहाद केवल हिंदू लड़कियों के लिए है जो मुसलिम युवकों से विवाह कर लेती हैं. मुसलिम लड़कियां तो कहींकहीं ही हिंदू युवकों से शादी कर पाती हैं क्योंकि हिंदू परिवार उन्हें जगह नहीं देते. तनिष्क ज्वैलरी का विज्ञापन मानव एकता के बारे में चाहे जो कहता रहे, लेकिन हिंदू परिवारों में तो कट्टरता इस कदर है कि वे विधर्मी को तो दूर, विजातीय, विदेशी, दूसरे गोत्र, दूसरी भाषा, दूसरे क्षेत्र की लड़की को भी आसानी से स्वीकारते नहीं हैं. गुजरात का एक वैदिक ब्राह्मण गु्रप सोशल मीडिया पर कहता है,

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‘सगोत्र विवाह, असवर्ण विवाह, तलाक आदि कुकृत्यों को कानूनी प्रोत्साहन दे कर हिंदू संस्कृति की रजवीर्य शुद्धिमूलक व्यवस्था को भ्रष्ट कर के वर्णसंकर सृष्टि द्वारा राष्ट्र के सर्वनाश का बीज बोया जा रहा है.’ इस विचारधारा के अनुसार, विवाह युवकयुवती में प्रेम के लिए नहीं होता, विवाह संस्कार की आपूर्ति के लिए होता है. धार्मिक ग्रंथ में लिखा है, ‘धर्मनिष्ठ पुत्र की प्राप्ति ही हिंदू संस्कृति में विवाह संस्कार का पवित्र उद्देश्य है.’ ये विचार पुरानी पुस्तकों में बंद नहीं हैं, आज सोशल मीडिया पर जम कर प्रचारित व प्रसारित किए जा रहे हैं. हिंदू संस्कृति वर्ण संस्कारिता में समाज एवं राष्ट्र का नियम देखती है… मनु, भृगु, अंगिरा आदि गणों द्वारा गोत्र की सृष्टि हुई थी और गोत्र आधारित विवाह हिंदू जाति के चिरंजीवी होने का प्रधान कारण हैं? जब इस तरह से एक हिंदू को दूसरे हिंदू से विवाह करने पर रोक है तो एक हिंदू को अन्य धर्मी से विवाह करने की छूट कैसे दी जा सकती है? संविधान का अनुच्छेद 21 इंसान को अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार देता है पर जिस तरह के निर्णय अब आ रहे हैं, उन को देखते यह संभव है कि सर्वोच्च न्यायालय लव जिहाद के संबंध में बनाए जाने वाले कानून को सही मान ले. न्यायालय अगर किसी के केवल उस की अपनी जाति, कुंडली आधारित विवाह को ही मान्य माने, तो बड़ी बात नहीं.

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हिंदू विवाह कानून 1955 की धारा 7 में हिंदू विवाह करने के लिए विधियों का जिक्र है और यह कहा गया है कि पारिवारिक रिवाजों के अनुसार किया जाने वाला विवाह ही कानूनसम्मत होगा. सुप्रीम कोर्ट अब तक इस शर्त को उदारता से पढ़ता था पर नई व्यवस्था में वह यह कभी भी कह सकता है कि हर परिवार के पारंपरिक रिवाजों में कुंडली मिलान अनिवार्य है और जो विवाह कुंडली मिला कर नहीं हुआ, वह अवैध है. आज सर्वोच्च न्यायालय क्या न कह दे, इस का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. लव जिहाद को मिली सरकारी मान्यता इस बात का संकेत है कि आम व्यक्ति अब एक बार फिर पोंगापाखंड का गुलाम बनने जा रहा है. ऐसे में उस के व्यक्तिगत सपनों की बात रह जाएगी. कांग्रेस की दुर्गति बिहार के विधानसभा चुनाव और मध्य प्रदेश, गुजरात व अन्य प्रदेशों के हालिया उपचुनावों के नतीजों से यह साफ है कि कांग्रेस की समाप्ति का दौर शुरू हो चुका है. हालांकि आज भी कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के बाद सब से बड़ी पार्टी है पर फिर भी इस का संगठन इस कदर कमजोर होता जा रहा है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब में सत्ता होने के बावजूद कांग्रेसी हताश हैं और जनता कांग्रेस में भविष्य नहीं देख रही है. पर यह कोई बड़ी बात नहीं है.

1971 के चुनावों के बाद कांग्रेस को लगभग श्रद्धांजलि दे दी गई थी. 1989 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. 1996 से 2004 तक कांग्रेस की मौजूदगी पर सवाल उठते रहे थे. आज फिलहाल वही हालत है. कांग्रेस की यह खासीयत है कि वह न किसी खास धर्म की पार्टी रही है, न जाति की, न क्षेत्र की. उस की यह खासीयत उसे वोट दिलाती रही है तो छीनती भी. उस के वोटरों को जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा आदि नफरती मुद्दों पर भड़का कर उसे कभी छोटे इलाके, कभी पूरे राज्य तो कभी पूरे देश में सत्ता से बाहर किया जाता रहा है. फिर भी लौट कर कांग्रेस इसलिए आती रही है क्योंकि वह पूरे देश में मान्य पार्टी रही है. लेकिन, अब हालात कुछ और हैं. भारतीय जनता पार्टी में ऐसे लोगों की भरमार हो गई है जो मार्केटिंग जानते हैं और जम कर पैसा भी खर्च कर सकते हैं. भाजपा की नफरती व कट्टर धार्मिक नीतियों के कारण मंदिर, आश्रम, तीर्थयात्रा ग्रुपों के कर्ताधर्ता, पुस्तक प्रकाशक, टीवी चैनल मालिक, ज्योतिषी, दवा निर्माता, बाबा आदि लाखों की संख्या में भगवे झंडे के नीचे जमा हो गए हैं.

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भाजपा आज लोगों की सोच पर राज कर रही है, उन के हर रोज के कामकाज पर राज कर रही है. कांग्रेस की डगमगाती स्थिति के पीछे सोनिया गांधी का बीमार पड़ना और राहुल गांधी का सत्ता में रुचि न लेना भी है. राहुल गांधी एक रिलक्टैंट लीडर हैं. वे नेता बनना नहीं चाहते, उन्हें जबरदस्ती बनाया जा रहा है. कांग्रेस में जो विरोध की आवाजें उठ रही हैं वे उन की हैं जो राहुल से भी ज्यादा निकम्मे हैं, लेकिन बोलने में वे राहुल से तेज हैं और लिखने में परफैक्ट हैं. वे पकीपकाई खीर चाहते हैं पंडितों की तरह, जो जनजन के घर मुफ्त का खाने जाते हैं और शिकायत करते हैं कि हलवे में चीनी व खाने में मिर्च कम है. भाजपा सत्ता में क्या सदा के लिए है? जवाब है नहीं. वह रूसी कम्युनिस्ट पार्टी या जरमनी की नैशनलिस्ट पार्टी की तरह है जो इस तरह के विचारों में बंधी है कि तर्क, तथ्य, सच न देख सकती है, न सुन सकती है. भाजपा के कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है. संस्थाएं चकनाचूर हो रही हैं.

देश अफ्रीकी देश सा बन रहा है जहां हर समय विवाद खड़े रहते हैं. देशवासियों में एकदम शून्यता सी आ गई है. बहकाई जनता को सम झ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. पर, कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता. पर उस समय तक राहुल और प्रियंका गांधी की जोड़ी कांग्रेस को बनाए रखेगी, यह पक्का नहीं है. देश को चाहिए तो एक उदार पार्टी जो सरकार चलाए, लोगों का दिल व दिमाग नहीं. कांग्रेस ही यह कर सकती है. पर वह बचे, तब न. केंद्र की दोहरी नीति विचारों की स्वतंत्रता के मामले को ले कर भारत सरकार ने फ्रांसके राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों का मुसलिमबहुल देश तुर्की और पाकिस्तान के वाकयुद्ध में फ्रांस का साथ दिया है, हालांकि, भारत सरकार खुद वैचारिक स्वतंत्रता की समर्थक नहीं. वर्ष 2015 में फ्रांस की शार्ली हैब्दो पत्रिका द्वारा इसलाम के पैगंबर का कार्टून छापने पर खूनी घटनाएं घटी थीं, उसी सिलसिले में उक्त पत्रिका द्वारा अब फिर पैगंबर का कार्टून प्रकाशित करने पर ताजा विवाद खड़ा हुआ है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने पत्रिका में पैगंबर का कार्टून छापे जाने को वैचारिक स्वतंत्रता कह कर समर्थन किया है. फ्रांस सरकार कह रही है कि वह हर हालत में वैचारिक स्वतंत्रता की रक्षा करेगी और इसलामिस्टों को मनमानी नहीं करने देगी. तुर्की, पाकिस्तान व कुछ दूसरे मुसलिम देश इस यूरोपीय रुख पर नाराज हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि इसलामी लोगों के विरुद्ध आम जनता को भड़काया जा रहा है.

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भारत सरकार ने बहुत ही जल्दी में यूरोपीय देशों का समर्थन किया है जो इमैनुअल मैक्रों के समर्थन में खड़े हुए हैं. लेकिन, मोदी सरकार के इस समर्थन को उस की वैचारिक स्वतंत्रता के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन न सम झा जाए. यूरोपीय देशों को यह समर्थन इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि तुर्की, पाकिस्तान और मलयेशिया भारत की कश्मीर नीति के खिलाफ हैं. वैचारिक स्वतंत्रता के बारे में तो मौजूदा भारत सरकार का खुद का ही रिकौर्ड अच्छा नहीं है. भारत में अपनी बात कहने वालों को आएदिन सरकार की टेढ़ी आंखें भी देखनी होती हैं और सरकार समर्थक गुंडों के गैंगों की भी. भारत सरकार लगातार कह रही है कि संविधान व विचारों की आजादी का अधिकार अपनेआप में संपूर्ण नहीं है और उस पर सरकार को नियंत्रण लगाने का अधिकार है. सरकार की दोहरी नीति का आलम यह है कि वह अपने विरोधियों और सत्तारूढ़ पार्टी के धर्म के खिलाफ सच बोलने या लिखने वालों पर कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करा कर पुलिस के जरिए उन्हें रातोंरात गिरफ्तार करा देती है.

चाहे, आखिरकार, सरकार के पक्ष का शिकायतकर्ता हार जाए क्योंकि मामले झूठे जो होते हैं. सो, फ्रांसीसी मामले में भारत सरकार के आंसू घडि़याली ही हैं. महिला के चरित्र पर संदेह एक पति द्वारा पत्नी के चरित्र पर संदेह करने के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विवेक अग्रवाल का यह निर्णय, ‘डीएनए टैस्ट पत्नी की दुश्चरित्रता, विश्वसनीयता जांचने का सब से अच्छा तरीका है’, एक तरह से पौराणिक विचारों को कानूनों में लाने वाला है. जस्टिस विवेक अग्रवाल भूल रहे हैं कि इस टैस्ट के लिए बलि का बकरा संतान को बनना होगा और अगर वह अपने वैधिक पिता की संतान न निकली तो उस पर हरामी होने का बिल्ला लग जाएगा. अब तक कानून यह कहता है कि कोई बच्चा अवैध नहीं होता और विवाह के पश्चात पैदा हुए हर बच्चे की नैतिक व आर्थिक जिम्मेदारी मां के साथी की ही है. जस्टिस विवेक अग्रवाल इस में पौराणिक पात्र सत्यकाम का सा बाना संतान को पहना रहे हैं कि उस के माध्यम से मां के चरित्र की पहचान की जाए. महिलाओं को संपत्ति सम झने का विचार हमारे पुराणों की रगरग में बसा है. जरूरत हो, तो नियोग करा लो.

पर जरा सा भी संदेह हो, तो पत्नी को पत्थर की शिला बना देना या गर्भवती को निकाल देना आम बात है. धार्मिक गुरु तो चाहते ही हैं कि महिलाएं उन की गुलाम रहें. इस के लिए उन का कारगर तरीका है महिलाओं को कमजोर रखना, डरा व धमका कर रखना. जस्टिस विवेक अग्रवाल के फैसले के मद्देनजर अब हर पति के पास गुजाराभत्ता न देने का या तलाक मांगते समय एक हथियार रहेगा कि वे बच्चों की पैत्रिकता पर सवाल उठा दें. और तब, बच्चों को अपमानित होने से बचाने के लिए मां हार मान लेगी और यह टैस्ट कराने को तैयार नहीं होगी और पति की शर्तें मानने को मजबूर हो जाएगी. यह शिखंडी का वार पति चलाएगा जो मां पर लगेगा व बच्चों पर. भक्तिरस में डूबे इस तरह के अदालती निर्णय कई और जगहों से आने लगे हैं. राममंदिर का निर्माण का निर्णय तो ऐसा है ही. एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने तो खुल्लमखुल्ला ब्राह्मणों को अन्य जातियों से जन्मतया श्रेष्ठ मानने की बात कह डाली है.

फूलप्रूफ फारमूला-भाग 3 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें

‘‘यही सोच कर छुट्टी का दिन यह भी बच्चों के साथ गुजारते हैं मगर जितने खुश वे तुम्हारे साथ होते हैं हमारे नहीं. उम्र का फर्क बहुत माने रखता है,’’ मां ने उसांस ले कर कहा. ‘‘आप ठीक कह रही हैं. दादाजी के साथ उतना मजा नहीं आता जितना चाचाजी के आने पर या छुट्टियों में मामा के घर जाने पर आता था.’’

‘‘वह लोग तुम्हें शादी करने को नहीं कहते?’’ ‘‘वही नहीं, अब तो यहां के पासपड़ोस वाले भी कहते हैं,’’ रजत हंसा, ‘‘बस, आप ही नहीं कहतीं.’’

‘‘अगर कहूं तो मानोगे?’’ ‘‘यह तो आप को कहने के बाद ही पता चलेगा,’’ रजत हंसा.

इस से पहले कि मां कुछ कहतीं, प्रभवप्रणव पतंग ले कर आ गए और रजत उन के साथ व्यस्त हो गया. रजत के जाने के बाद मां ने यह बात अपूर्वा को बताई.

‘‘कहने में क्या जाता है, कह देना था,’’ अपूर्वा हंसी. ‘‘कैसे कुछ नहीं जाता?’’ मां ने तुनक कर पूछा, ‘‘मेरी कोई इज्जत नहीं है क्या?’’

‘‘आप का खयाल है कि वह मना कर देता?’’ ‘‘उस ने नहीं तू ने मना करना था क्योंकि उस ने तो तेरा हाथ मांगना था और मुझे कहना पड़ता कि मैं अपनी बेटी की तरफ से कोई फैसला नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम कुछ ज्यादा ही अटकल लगाने लग गई हो मां. आप ने यह कैसे सोच लिया कि रजत को मुझ में दिलचस्पी है, मेरे से ज्यादा वह बच्चों और आप लोगों के साथ समय गुजारता है.’’ ‘‘तुझे खुश करने के लिए. वैसे तू इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि उसे बच्चों से बहुत लगाव है.’’

‘‘वह तो है मां, लेकिन अगर यह लगाव महज मेरी खुशी के लिए है तो मेरे खुश होने के बाद यानी हमारी शादी के बाद बच्चे बहुत दुखी हो जाएंगे और वह मैं कभी बरदाश्त नहीं कर सकूंगी कि शादी के बाद रजत उन के बजाय मेरे साथ ज्यादा समय बिताए यानी इस रिश्ते से उन से रजत अंकल ही नहीं उन की मां भी छिन जाए,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘और मुझे तो शादी अपनी नहीं बच्चों की खुशी के लिए करनी है.’’ ‘‘बच्चों को तो रजत से ज्यादा शायद ही कोई और खुश रख सके अपूर्वा और फिर रजत कोई अल्हड़ छोकरा नहीं, परिपक्व पुरुष है. वह ऐसी गैर जिम्मेदाराना हरकतें नहीं करेगा जिस से बच्चों को या तुम्हें तकलीफ हो.’’

‘‘लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए मां कि रजत की यह पहली शादी होगी, उस से संयम की अपेक्षा करना उस के साथ ज्यादती होगी और यह उम्मीद रखना कि रजत के साथ न्याय करने में मैं बच्चों के साथ अन्याय करूंगी मेरे साथ ज्यादती होगी,’’ अपूर्वा ने समझाने के स्वर में कहा, ‘‘मेरे लिए तो आप बगैर बालबच्चे वाला दुहाजू ही देखिए.’’ मां अपूर्वा के तर्क को काट तो नहीं सकीं लेकिन रजत के जैसे सर्वगुण संपन्न दामाद को खोने का लोभ भी संवरण न कर सकीं. उन्होंने विद्याभूषण से बात की.

‘‘अपूर्वा बिलकुल ठीक कह रही है, शांति. और फिर इस बात की भी क्या गारंटी है कि रजत यहां अपूर्वा के लिए ही आता है, बच्चों में अपना खोया बचपन ढूंढ़ने नहीं. कभी तुम ने यह भी सोचा है कि 30 के ऊपर हो जाने के बाद भी रजत कुंआरा क्यों है? हो सकता है, शादी न करने की कोई मजबूरी हो.’’ शांति कुछ सोचने लगीं.

‘‘मजबूरी होती तो वह मुझ से कहता नहीं कि मैं उस से शादी करने को कह कर तो देखूं.’’ ‘‘तो कह कर देखतीं क्यों नहीं?’’

‘‘अगर उस ने अपूर्वा का हाथ मांगा तो क्या कहूंगी?’’ ‘‘वही जो अपूर्वा ने तुम से कहा है. अगर उसे अपूर्वा से शादी करनी है तो वह उस की इस शंका का निवारण करना चाहेगा और इस में मैं उस की मदद कर दूंगा.’’

‘‘कैसे?’’ ‘‘वह जब समय आएगा तो बता दूंगा, फिलहाल तो उस ने तुम से जो कहा है वही तुम उस से कह कर देखो.’’

अगली बार रजत के आने पर शांति ने कह ही दिया, ‘‘तुम भी अब शादी कर लो, रजत.’’ ‘‘अगर आप करवा रही हैं तो कर लेता हूं, मां.’’

‘‘करवा तो दूं मगर किस से?’’ ‘‘यह मैं कल बताऊंगा,’’ रजत गंभीरता से बोला.

शांति चौंक गई. कल क्यों? क्या इसे कोई और लड़की पसंद है जिसे ले कर कल उन के पास आएगा कि इस से आप मेरी शादी करवा दीजिए और वह बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन जाएगी? बापबेटी का तो हंसहंस कर बुरा हाल हो जाएगा. यही सब सोचते हुए उन्हें रात को बराबर नींद नहीं आई और सुबह उन का चेहरा उतरा हुआ सा था. ‘‘मां का ब्लड प्रैशर फिर डांवांडोल सा लग रहा है पापा,’’ अपूर्वा ने सुबह नाश्ता करते हुए कहा, ‘‘मेरी तो एक जरूरी मीटिंग है सो मैं तो रुक नहीं सकती लेकिन आप मां का ब्लड प्रैशर चैक करवाने के बाद ही आफिस जाइएगा.’’

शांति कुछ प्रतिवाद कर सकतीं इस से पहले ही विद्याभूषण ने कहा कि ब्लड प्रैशर तो मुझे भी चैक करवाना है सो दोनों चले जाएंगे. अपूर्वा के जाने के कुछ ही देर बाद रजत आ गया.

‘‘अंकल, आप थोड़ी देर रुक सकते हैं, प्लीज? मैं आप दोनों से अपूर्वाजी और बच्चों की गैरहाजिरी में बात करना चाहता हूं,’’ रजत ने विनीत स्वर में कहा. ‘‘जरूर बरखुरदार. कहो, क्या कहना चाहते हो.’’

‘‘जो कहना चाहता हूं वह तो बहुत संक्षिप्त सी बात है पर उस से पहले की भूमिका जरा लंबी है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, निसंकोच हो कर इतमीनान से बताओ,’’ विद्याभूषण ने बढ़ावा दिया, ‘‘पहले चाय हो जाए.’’

‘‘नहीं, अंकल, बाद में. असल में मैं कई वर्षों से निखिला से प्यार करता था लेकिन वह शादी करना टाल रही थी. इसीलिए मैं अपूर्वाजी से मिलने आया था कि वह निखिला को समझाएं…’’ ‘‘लेकिन अपूर्वा ने साफ मना कर दिया होगा,’’ शांति ने बात काटी, ‘‘तुम्हें मुझ से कहना चाहिए था.’’

‘‘इस से पहले कि अपूर्वाजी निखिला से मिलतीं, निखिला ने मुझे बताया कि वह प्रमोशन छोड़ देगी लेकिन दिल्ली छोड़ कर और कहीं नहीं जाएगी, चूंकि मुझे प्रमोशन और यहां की नियुक्ति मिल चुकी थी इसलिए साफ जाहिर था कि वह मुझ से शादी करना नहीं चाहती. खैर, मैं यहां आ गया. प्रभवप्रणव तो मुझे पहले रोज ही अच्छे लगे थे, उस के बाद आप सब ने भी मुझे परिवार का सा स्नेह और सम्मान दिया कि अब मैं इसी परिवार का अंग बनना चाहता हूं. अपूर्वाजी के मुकाबले में मेरी नौकरी कुछ खास नहीं है लेकिन फिर भी मैं उन से शादी करना चाहता हूं…यह कहने की गुस्ताखी कर रहा हूं.’’ दोनों पतिपत्नी ने विह्वल भाव से एकदूसरे की ओर देखा.

‘‘अंतर्राष्ट्रीय बैंक में अफसर हो, भविष्य में और तरक्की करोगे और फिर मेरी बेटी इन छोटीमोटी बातों को बिलकुल तरजीह नहीं देती, मगर उसे तुम से शादी करने में एतराज है,’’ विद्याभूषण ने उसे अपूर्वा की कही बातें बता दीं. ‘‘अपूर्वाजी का ऐसा सोचना सही है और जैसा मां ने कहा कि मैं परिपक्व पुरुष हूं, बच्चों से मुझे बहुत लगाव भी है इसलिए मैं उन की उपेक्षा करने या उन की कोमल भावनाओं को आहत करने की सोच भी नहीं सकता…’’

‘‘उसी तरह अपूर्वा या हम लोगों को भी तुम्हारी भावनाआें की कद्र करनी चाहिए बरखुरदार,’’ विद्याभूषण ने बात काटी, ‘‘बच्चों ने तुम्हें बताया ही होगा कि गरमियों की छुट्टियों में वह मामा के पास लंदन जा रहे हैं?’’ ‘‘जी हां,’’ रजत को इस प्रश्न का औचित्य समझ में नहीं आया.

‘‘दोनों मामामामी के पास जाने को इतने उतावले हैं कि अगर अपूर्वा साथ नहीं गई तो भी वह खुशीखुशी हमारे साथ चले जाएंगे. इस बीच तुम और अपूर्वा शादी कर लेना. अनुभव की बात बता रहा हूं कि शादी के पहले 1-2 महीने तक नितांत एकांत की चाहत रहती है फिर सब सामान्य हो जाता है और वह एकांत हम तुम्हें दे रहे हैं.’’ ‘‘मैं आप के सुझाव या अनुभव को गलत नहीं बता रही,’’ शांति बोलीं, ‘‘लेकिन अपूर्वा कभी भी हमारी गैर हाजिरी में शादी करना नहीं मानेगी.’’

‘‘मैं भी नहीं मानूंगा मां, लेकिन शादी हम आप के लंदन प्रवास के दौरान ही करेंगे यानी लंदन में. वहां मेरे चाचा और कई दूसरे रिश्तेदार भी हैं. वहां के माहौल में बच्चों को मेरा उन की मां के करीब आना बुरा नहीं लगेगा और नई जगह और मामा के बच्चों के साथ घूमने में वह हम से हरदम चिपके भी नहीं रहेंगे,’’ कह कर रजत मुसकराया. ‘‘बात तो सही है लेकिन अपूर्वा को भी समझ आनी चाहिए न.’’

‘‘अपना फूलप्रूफ फारमूला है शांति, समझ कैसे नहीं आ

फूलप्रूफ फारमूला-भाग 2 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें

‘‘निखिला का कहना है कि आप की प्रेम कहानी का दुखद अंत देख कर उस का प्यारमोहब्बत पर से विश्वास उठ गया है.’’ ‘‘अकसर अखबारों में घर के पुराने नौकरों की गद्दारी की खबरें छपती रहती हैं लेकिन उन को पढ़ कर लोग नौकर रखना तो नहीं छोड़ते, न ही बीमारी के डर से बाजार का खाना?’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘फिक्र मत करो, मैं निखिला को समीर के व्यवहार और अपने अलगाव की वजह समझा कर उस का फैसला बदलवा दूंगी.’’

‘‘कोशिश करता हूं कि अगले टूर पर निखिला को साथ ले आऊं.’’ ‘‘नहीं ला सके तो बच्चों की छुट्टियों में मैं दिल्ली आ जाऊंगी.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. चलने से पहले रजत ने पूछा कि क्या वह कल फिर बच्चों से मिलने को आ सकता है और अपूर्वा के बोलने से पहले ही मांपापा ने सहर्ष सहमति दे दी. चूंकि उसे उसी रात वापस जाना था.

अगले रोज रजत अपूर्वा के लौटने से पहले ही आ कर चला गया. ‘‘कहता था 10-15 दिन बाद वह फिर आ सकता है,’’ मां ने बताया.

अपूर्वा कहतेकहते रुक गई कि हो सकता है तब उस के साथ निक्की का टूर नहीं बनता तो वह स्वयं उस से मिलने जाएगी. वह जानती थी, निक्की के फैसले के पीछे उस की व्यथाकथा ही नहीं, निक्की की अपनी अमेरिकन बैंक की नौकरी का दर्प भी था. उसे समझाना होगा कि चंद साल के बाद जब सब सहकर्मियों और दोस्तों की शादियां हो जाएंगी तो प्रभुत्व वाली नौकरी के बावजूद उसे लगने लगेगा कि वह नितांत अकेली, असहाय और अस्तित्वहीन है.

एक शाम घर लौटने पर अपूर्वा ने देखा रजत बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था. कुछ देर के बाद वह अंदर आया. ‘‘निक्की का टूर नहीं बनवा सके?’’ उस ने कुछ देर के बाद पूछा.

‘‘बनवाने की कोशिश ही नहीं की,’’ रजत ने उसांस ले कर कहा, ‘‘मुझे आप का यह तर्क समझ में आया कि बगैर आप के अलगाव की वजह जाने इतना अहम फैसला कैसे ले लिया और उस के घर वालों ने कैसे लेने दिया.’’ ‘‘सही कह रहे हैं आप,’’ अपूर्वा ने बात काटी, ‘‘मां तो मधु मौसी को हरेक छोटीबड़ी बात बताती हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि समीर की असलियत के बारे में उन्हें न बताया हो या मेरे लिए फिर से उपयुक्त वर तलाशने के लिए न कहा हो.’’

‘‘इस से तो यही जाहिर होता है कि निखिला शादी ही नहीं करना चाहती, आप का अलगाव महज बहाना है,’’ रजत हंसा. ‘‘प्रभुत्व वाली नौकरी मिलते ही कुछ लड़कियां और मांबाप घमंड में गलत सोचने लगते हैं. मैं मौसी और निक्की से बात करूंगी,’’ अपूर्वा ने आश्वासन के स्वर में कहा.

‘‘आप की मर्जी है. निखिला की बचकानी मनोस्थिति जानने के बाद मेरी अब उस में कोई दिलचस्पी नहीं रही है. वैसे भी वह कभी दिल्ली छोड़ना नहीं चाहती और मुझे तो जहां तरक्की मिलेगी, वहां जाऊंगा,’’ रजत मुसकराया. ‘‘बिलकुल सही एप्रोच यानी जिंदगी के प्रति सही रवैया है,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘कितने दिन का टूर है?’’

‘‘अरे, मैं ने आप को बताया नहीं कि मेरी यहां यानी नई ब्रांच में पोस्ंिटग हो गई है.’’ ‘‘जाहिर है तरक्की पर ही हुई होगी सो कुछ पार्टीवार्टी होनी चाहिए.’’

‘‘जरूर…अभी चलिए, किसी बढि़या जगह पर डिनर लेते हैं,’’ समीर फड़क कर बोला. ‘‘बाहर क्यों, घर पर ही बढि़या खाना बनवा लेते हैं.’’

‘‘आज तो बाहर ही खाएंगे. घर पर तो आप रोज ही खाती हैं और जब यहां आ गया हूं तो मैं भी अकसर ही खाया करूंगा बशर्ते आप को मेरे आने पर एतराज न हो.’’ ‘‘अरे, नहीं, एतराज कैसा और हो भी तो मांपापा के सामने उस की कोई अहमियत नहीं होगी. यह बताइए, कहां चलना है ताकि उस के मुताबिक तैयार हुआ जाए.’’

‘‘वह तो आप को ही बताना पड़ेगा. कोई ऐसी जगह जहां बच्चे मौजमस्ती कर सकें.’’ ‘‘हमारी मौजमस्ती तो जू या टै्रजर आईलैंड में होती है,’’ प्रभव बोला, ‘‘मगर वह तो अभी बंद होंगे.’’

‘‘अभी शौपर स्टौप खुला होगा, वहीं चलते हैं,’’ प्रणव ने कहा. ‘‘वहां तो कपड़े मिलते हैं भई और हम खाना खाने जा रहे हैं,’’ रजत हंसा.

‘‘नहीं अंकल, आप चलिए तो सही फिर देखिएगा कि वहां क्याक्या मिलता है,’’ प्रणवप्रभव दोनों बोले. ‘‘वहां मिलता तो बहुत कुछ है लेकिन सब इन के मतलब का,’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम या चाट.’’

‘‘अरे, वाह, चाट खाए मुद्दत हो गई… वही खाएंगे. आप को पसंद है न?’’ ‘‘है तो, मगर बात तो कहीं बढि़या खाने की हो रही थी.’’

‘‘किसी और दिन, आज तो बच्चों की पसंद की जगह चलेंगे,’’ रजत ने दृढ़ता से कहा. बाहर जाने और खाने के मौके तो अकसर ही आते रहते थे लेकिन अपूर्वा को बढि़या खाना खिलाने का मौका नहीं आया क्योंकि रजत बच्चों के बगैर कहीं जाता नहीं था और बच्चे फास्ट फूड वाली जगह जाने की ही जिद करते थे. धीरेधीरे रजत परिवार के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. विद्याभूषण सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेंगे, पैसे को कहां निवेश करना होगा वगैरा अहम मुद्दों पर उस से सलाह ली जाती थी. एअरकंडीशनर की सर्विसिंग या वाशिंग मशीन की मरम्मत वह सामने बैठ कर करवाता था.

‘‘हम तुम्हें छुट्टी के रोज भी चैन से नहीं बैठने देते, किसी न किसी काम के लिए बुला ही लेते हैं,’’ एक रोज मां ने कहा. ‘‘अच्छा है, नहीं तो मुझे बिन बुलाए आना पड़ता,’’ रजत हंसा, ‘‘घर में अकेले बैठने के बजाय यहां आ कर बच्चों के साथ मन बहला लेता हूं. उन की छुट्टी भी हंसीखुशी से कट जाती है और मेरी भी. जानती हैं मां, बचपन में छुट्टी का दिन मेरे लिए बहुत बुरा होता था क्योंकि सभी दोस्त छुट्टी के रोज अपने पापा के साथ खेलते थे…किसी के पास मेरे लिए फुरसत नहीं होती थी.’’

ग्वार मगौड़ी की सब्जी

ग्वार की सब्जी हमारे सेहत के लिए ज्यादा फायदेेमंद होता है. इस सब्जी में विटामिन और मिनरल ज्यादा मात्रा में पाएं जाते हैं. इसे कुछ लोग फली भी कहते हैं. ग्वार औऱ मगौड़ी सब्जी ज्यादातर लोगों को पसंद आती है. आइए आज जानते हैं ग्वार की सब्जी को कैसे बनाएं.

समाग्री

250 ग्राम ग्वार

1/4 कप मगौड़ी

एक छोटा चम्मच जीरा

हींग चुटकी भर

जीरा

मिर्च बारीक कटा हुआ

धनिया

आमचूर

गरम मसाला

बड़ा चम्मच तेल

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विधि

सबसे पहले ग्वार की फली को अच्छे से साफ कर लें. अगर उसमें कोई धागा लगा हो तो उसे भी हटा दें. अब इसे छोटे- छोटे टुकड़ों में काट लें.

एक माध्यम आंच पर मगौड़ी को सुनहरा होने तक भूनें, अब सुनहरी मगौड़ी को एक कटोरे में निकालकर रख लें. अब इसमें आधा कप पानी और जरा सा नमक डालकर गर्म करें.

अगर आपके पास माइक्रोवेव नहीं है तो किसी बर्तन में डालकर उबाल लें. अब कड़ाही को गैस पर रखकर उसमें जीरा और हींग डालकर कुछ सेकेण्ड्स के लिए भूनें.

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उसके बाद उसमें मिर्च और सभी मसाले को डालकर अच्छे से मिलाएं. जब यह सब हो जाए तो उसमें कटी हुई ग्वार को डालकर अच्छे से मिलाएं. उसके बाद इसमें मगौड़ी को डालकर अच्छे से मिलाएं.

मिलाने के बाद इसे कुछ देर तक अच्छे से भूने जब सब कुछ अच्छे से भून जाएं तो उसमें मसाले को डालकर कुछ देर के लिए पकने के लिए रख दें. इसके बाद अपने स्वाद अनुसार इसमें नमक डालें.

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धनिया पत्ति को काटकर इस पर अच्छे से सजा दें. जिससे इस सब्जी का स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाएगा.

 

फूलप्रूफ फारमूला-भाग 1 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें

आफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया. ‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा. हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके. ‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई. जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

‘‘मे आई ज्वाइन यू?’’ कुछ देर के बाद रजत ने आ कर पूछा. ‘‘प्लीज,’’ अपूर्वा ने कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘नाम तो आप सुन ही चुकी हैं, काम निखिला के साथ करता हूं. यहां हमारे बैंक की शाखा खुल रही है इसलिए उसी सिलसिले में आया हूं. आप का पता निखिला…’’ ‘‘निखिला?’’ अपूर्वा ने भौंहें चढ़ाईं.

‘‘निखिला जोशी, आप की मौसेरी बहन.’’ ‘‘ओह निक्की, मधु मौसी की बेटी,’’ अपूर्वा ने खिसिया कर कहा, ‘‘कई साल हो गए मिले हुए इसलिए एकदम पहचान नहीं सकी और उस ने मेरा पता भी याद रखा.’’

‘‘अतापता ही नहीं निखिला को तो आप के बारे में सब याद है. अकसर आप लोगों की बातें करती रहती है.’’ ‘‘मेरी तो खैर क्या बात करेगी, हां, बच्चों की शरारतों के बारे में शायद मां ने मौसी को बताया हो.’’

‘‘लेकिन निखिला तो आप के बचपन से चल रहे फेयरी टेल रोमांस, शादी और फिर शहजादे के मेढक बनने वाले दुखद अंत की बात करती रहती है,’’ रजत ने बेझिझक स्वर में कहा. ‘‘कमाल है, जहां हम नहीं पहुंचे, हमारे चर्चे जा पहुंचे. वैसे उसे कुछ खास मालूम नहीं होगा…’’

‘‘जितना भी मालूम है उस की वजह से उस ने कभी शादी न करने का फैसला किया है,’’ रजत ने बात काटी.

अपूर्वा ने चौंक कर रजत की ओर देखा, ‘तो यह वजह है मुझ से मिलने आने की.’ ‘‘बगैर असलियत जाने या मुझ से मिले, ऐसा फैसला लेना तो सरासर हिमाकत है. मैं ने समीर को इसलिए छोड़ा था क्योंकि उस का दोमुंहा व्यक्तित्व था, सब के सामने कुछ और, और अकेले में कुछ और. अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण भी वह पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था जो शादी के बाद एकांत मिलते ही उभरने लगे थे.

‘‘वह बेहद बददिमाग था और गुस्से में उत्तेजित हो कर कुछ भी बोल और कर सकता था. गुस्से का आवेग शांत होते ही वह अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित होता था, पश्चात्ताप करता था लेकिन इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराता था. यह जानने के बावजूद कि मेरे गर्भ में 2 बच्चे हैं, मैं ने गर्भपात नहीं करवाया. क्योंकि मैं ने सोचा कि बाप बनने के बाद शायद अपनी जिम्मेदारियां समझ कर वह अपना इलाज करवा ले. बच्चों से बेहद लगाव होने के बावजूद समीर का व्यवहार नहीं बदला. ‘‘इस से पहले कि बच्चे उस के गुस्से का शिकार बनते और किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते, मैं समीर से अलग हो गई. मेरी खुद की तो बढि़या नौकरी है ही और मांपापा का संरक्षण भी, इसलिए मुझे कोई परेशानी नहीं है. समीर एक मानसिक रोगी है इसलिए बजाय नफरत के मुझे उस से हमदर्दी है. न ही मेरे दिल में पुरुषों, प्यार या शादी को ले कर कोई कड़वाहट है तो फिर निक्की किस खुशी में मेरे नाम पर शहीद हो रही है?’’ अपूर्वा ने हंसते हुए पूछा.

रजत हंस पड़ा, ‘‘यह तो निखिला ही बता सकती है.’’ ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से कोई जिंदगी में गलत फैसले ले. मेरा निखिला से मिलना बहुत जरूरी है.’’

‘‘लेकिन यह जरूरी नहीं है कि निखिला आप की बातों पर विश्वास करे.’’ ‘‘जरूर करेगी जब उसे पता चलेगा कि मैं दूसरी शादी करने को तैयार हूं मगर ऐसे आदमी से जो मेरे बच्चों को एक सुरक्षित, खुशहाल पारिवारिक जीवन दे सके, क्योंकि भौतिक सुविधाओं और नानानानी के लाड़प्यार के अलावा एक पिता का संरक्षण, अनुशासन और स्नेह बच्चों के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है.’’

रजत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘आप ठीक कहती हैं. पिता का अभाव क्या होता है, यह मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. पापा मेरे जन्म से पहले ही गुजर गए थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, चाचा और मामा वगैरा ने संरक्षण और भरपूर प्यार दिया लेकिन जिन पापा को कभी मैं ने देखा ही नहीं उन के बगैर आज भी मुझे अपना जीवन अधूरा लगता है.’’ ‘‘ऐसा लगना स्वाभाविक है क्योंकि जीवन में प्रत्येक रिश्ते की अपनी अलग ऊष्मा, अलग अहमियत होती है और कड़वाहट किस रिश्ते में नहीं आती? सगे बहनभाई एकदूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं लेकिन एक भाई के धोखा देने पर दूसरे भाई से तो कोई मुंह नहीं मोड़ता, फिर पतिपत्नी के अलगाव को ले कर इतना होहल्ला क्यों?’’

बैगन की खेती को कीड़ों व बीमारियों से बचाएं

भारतीय घरों में बैगन का इस्तेमाल काफी ज्यादा किया जाता  है, इसीलिए इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. बैगन की फसल अकसर कीड़ों व रोगों की चपेट में आती रहती  है, लिहाजा इस का खयाल रखना बेहद जरूरी  है.

खास कीट और रोकथाम

तना व फल छेदक : इस कीट की इल्ली अंडे से निकलने के बाद तने केऊपरी सिरे से तने में घुस जाती है. कीट के कारण तना मुरझा कर लटक जाता है व बाद में सूख जाता है. फल आने पर इल्लियां उन में छेद बना कर घुस जाती हैं और अंदर ही अंदर फल खाती हैं. उन के मल से फल सड़ जाते हैं. नियंत्रण के लिए रोग लगे फलों को तोड़ कर नष्ट करें. इल्लियों को इकट्ठा कर के नष्ट करें.

कीटों का हमला होते ही ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. फल वाली दशा में फल तोड़ने के बाद ही कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए.

जैसिड : ये कीड़े पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं. बचाव के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखें ताकि कीटों के घर खत्म हो जाएं. शुरू की दशा में 5 मिलीलीटर नीम का तेल व 2 मिलीलीटर चिपचिपे पदार्थ का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. खड़ी फसल में आक्सी मिथाइल डिमेटान मेटासिस्टाक्स या डायमेथोऐट रोगर की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

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लाल मकड़ी : लाल मकड़ी माइट का रंग लाल होता है. इस के शिशु और प्रौढ़ दोनों नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट का प्रकोप मुलायम पत्तियों पर ज्यादा होता है और इन की संख्या पत्तियों की निचली सतह पर ज्यादा होती है. ये पौधों की कोमल पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से हरा पदार्थ खत्म हो जाता है और सफेद धब्बे जैसे दिखाई देने लगते हैं. पौधों की बढ़वार रुक जाती है. कीट का हमला अधिक होने पर सल्फर की 2 से 2.5 ग्राम या सल्फेक्स नामक  दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

सफेद मक्खी : ये कीट पौधों की मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से वे पीली पड़ कर सूख जाती हैं. साथ ही ये कीट विषाणु जनित रोगों का फैलाव भी रोगी पौधे से स्वस्थ पौधे में करते हैं. शुरू की दशा में नीम की निबौली के सत के 5 फीसदी के घोल का छिड़काव करना चाहिए. रोकथाम के लिए इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी की 1 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

नेमेटोड सूत्र कृमि : इस के कारण पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं. पौधे बौने रह जाते हैं और कमजोर दिखाई पड़ते है. पत्तियां हरीपीली हो कर मुरझा जाती हैं. इस से पौधे नष्ट तो नहीं होते, लेकिन गांठों के सड़ने पर सूख जाते हैं. जहां पर इस के प्रकोप का खतरा हो, वहां 25 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर मिट्टी में भलीभांति मिला देनी चाहिए. नेमागान 12 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर भूमि का पौधे रोपने से 3 हफ्ते पहले शोधन करें. रोगी पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

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खास रोग व इलाज

आर्द्र गलन : यह बीमारी पौधशाला में अधिक लगती है. इस से पौधे जड़ों के पास में सड़ने लगते हैं. यह रोग फाइटोपथेरा पीथियम स्क्लेरोशियम फ्युजेरियम की विभिन्न प्रजातियों से होता है. रोकथाम के लिए बीजों का थीरम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें.

थीरम या कैप्टान की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर 7 से 11 दिनों के अंतर पर 2 बार क्यारी में छिड़कें. बीजों को 50 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित कर के बोना चाहिए. इस बीमारी को रोकने के लिए ट्राईकोडर्मा की 4 से 5 ग्राम मात्रा से 1 किलोग्राम बीजों का शोधन करें. ट्राइकोडर्मा की 10 से 20 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खाद में मिला कर 1 वर्गमीटर खेत के शोधन के लिए इस्तेमाल करें.

फोमाप्सिस झुलसा : इस के लक्षण पत्ती, फल व तने पर दिखते हैं. पत्ती पर गोल धब्बे, तने का सूखना व फल का सड़ना इस के लक्षण हैं. संक्रमित क्षेत्र में छोटेछोटे बिंदु के समान उभरे लक्षण दिखते हैं.

इस के लिए रोग रहित किस्मों का चुनाव करें और बीजों को बावस्टीन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. खेत में फल आने से पहले समय पर ही मेंकोजेब 0.25 फीसदी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 0.1 फीसदी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करें. बैगन का छोटी पत्ती रोग : इस रोग का प्रकोप बैगन की पत्तियों पर होता है, जिस में पत्तियां काफी छोटी हो जाती हैं. इस में पौधों की शाखाएं छोटी रह जाती हैं और पत्तियों का झुंड बन जाता है. पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं. फूल व फल नहीं बनते हैं.

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इस रोग का फैलाव कीटों द्वारा ग्रसित पौधों से स्वस्थ पौधे में तेजी से होता है. लिहाजा रोग को फैलाने वाले रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए डाईमेथाएट 30 ईसी या आक्सीडेमेटान मिथाइन 25 ईसी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 100 पीपीएम यानी 1 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी के घोल में भिगोना चाहिए और रोपाई के 4 से 5 हफ्ते बाद दवा का छिड़काव करना चाहिए. प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें. रोगरोधी जातियां जैसे पूसा परपल, क्लस्टर, मंजरी गोटा, अर्का शील व बनारस जाईट को लगाना चाहिए.

जीवाणु उकठा रोग : यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिस में बाद में पूरी पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं. तने को काट कर देखने पर दूधिया रंग का लसलसा पदार्थ दिखाई देता है. फसलचक्र में सरसों कुल की सब्जियां जैसे फूलगोभी लगानी चाहिए. पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा के 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबाने के बाद रोपाई करनी चाहिए. उकठा रोधी या सहनशील जातियां जैसे पंत सम्राट लगाएं. कार्बेंडाजिम की 1 ग्राम मात्रा या 2.5 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से भी फायदा होता  है.

एशिया का नया आर्थिक टाइगर- बांग्लादेश

कोचर छोटे व बेहद गरीब कहे व माने जाने वाले बंगलादेश ने 10-15 सालों में अपने से बड़े अपने ही हिस्से पाकिस्तान को ही नहीं, दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र भारत को भी कई मामलों में पीछे कर दिया है. उस ने ऐसी सफलता कैसे हासिल की, जानने के लिए पढि़ए यह खास लेख. बात लखनऊ की है. वर्ष 2003 की. कुछ पाकिस्तानी छात्रछात्राओं का एक डैलिगेशन अपने 4 टीचर्स के साथ लखनऊ आया था. माल एवैन्यू स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चों से भी उन्हें मिलना था. उन के बीच बातचीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आदानप्रदान होना था. ये पाकिस्तानी बच्चे 9वीं व 10वीं कक्षाओं से थे.

डैलिगेशन में छात्रों के मुकाबले छात्राओं की संख्या अधिक थी. सभी छात्राएं सिर से पांव तक बुर्कों से ढकी बस से उतरीं. मगर स्कूल के भीतर दाखिल होने के बाद सभी ने अपने बुर्के उतार कर अपनी पीठ पर लटके बैग में डाल लिए, जबकि स्कूल में काफी मर्द अध्यापक, चपरासी और 10वीं व 12वीं के छात्र मौजूद थे. यह बड़ी दकियानूसी और दिखावटी सी बात लगी कि बाहर तो आप शरीर को बुर्के में ढके हैं और अंदर आ कर आप बेपरदा हो गए, जबकि गैरमर्द तो वहां भी बड़ी तादाद में थे. मजेदार बात यह थी कि अधिकतर पाकिस्तानी लडकियां बुर्के के नीचे जींस और टीशर्ट पहने हुए थीं. ऐसा लगता था कि आजादी और उड़ने की चाहत को जबरन बुर्के में लपेट दिया गया था. इंग्लिश माध्यम में पढ़ने और इंग्लिश में फर्राटेदार बातचीत करने के बावजूद बातबात में उभरती इसलाम और रोजेनमाज की बातें भी यह जाहिर कर रही थीं कि आधुनिकता और पिछड़ेपन के बीच काफी रस्साकशी चल रही है.

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उन में से कइयों ने वहां सब के सामने अपने नृत्य भी प्रस्तुत किए और बौलीवुड अभिनेताओं की मिमिक्री भी की, जो कबीलेतारीफ थी. लेकिन वापस लौटते समय वे सभी फिर बुर्कों में सिमट गईं. उसी साल 2 बंगलादेशी महिलाओं से भी मुलाकात हुई. बिना दुपट्टे के स्लीवलैस कुरतेसलवार, पोनीटेल, कानों में बड़ेबड़े छल्ले और माथे पर बड़ी सी बिंदी चिपकाए दोनों महिलाएं किसी रिसर्चपेपर पर काम करने के दौरान भारत आई थीं. दोनों ही मुसलिम तबके की थीं, मगर उन की बोली, पहनावा और शृंगार किसी हिंदू बंगाली महिला से ज्यादा मेल खाता था. वे साइंस और नएनए आविष्कारों पर खूब चर्चा करती थीं.

वे बिंदास थीं. किसी भी जकड़न से आजाद. उन के कंधे उन के धर्म को नहीं ढो रहे थे. धर्म उन का निजी मामला था जो आम बातचीत में घुसपैठ नहीं करता था. इन 2 देशों की महिलाओं को देख कर ही दोनों देशों के आतंरिक हालात, सोच और स्थिति का अंदाजा आसानी से लग जाता है. दोनों ही मुसलिम देश हैं. दोनों ने बंटवारे का दर्द सहा. पाकिस्तान ने एक बार तो बंगलादेश ने 2 बार बंटवारा देखा. बावजूद इस के, आज बंगलादेश तरक्की के मामले में पाकिस्तान से कहीं आगे निकल गया है. बंगलादेश पाकिस्तान से आगे वर्ष 1947 में भारतपाक बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला व आज का बंगलादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद भीषण गरीबी व तबाही से ग्रस्त इलाका था. लेकिन धीरेधीरे उस ने अपनी स्थिति सुधारी और अपने पैरों पर खड़ा होने लगा.

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इस में एक लंबा समय लगा. 2006 तक बंगलादेश की तसवीर से काफी धूल छंट गई और तरक्की की रेस में वह पाकिस्तान को पछाड़ता हुआ आगे निकल गया. दुनिया के मानचित्र में पिद्दी सा दिखने वाला बंगलादेश आज पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि कई मानो में भारत को भी पीछे छोड़ चुका है. मानव विकास सूचकांक 2019 पर बंगलादेश दक्षिण एशिया के सभी देशों से आगे है. वह शांत तरीके से अपनी कायापलट कर रहा है. वह हर उस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है, जिस से उस की जीडीपी में इजाफा हो. बंगलादेश और पाकिस्तान दोनों ही मुसलिम राष्ट्र हैं. मुसलिम बाहुल्य इलाके होने की वजह से ही बंटवारे के वक्त दोनों इलाके भारत से अलग हुए थे. फिर क्या वजह रही कि बंगलादेश पाकिस्तान से हर मामले में बीस ही बैठता है. जबकि उस ने बंटवारे (1947) के जख्म भी खाए और जब तक वह पाकिस्तान से अलग (1971) नहीं हो गया, पश्चिमी पाकिस्तानियों के उत्पीड़न व प्रताड़नाओं के दौर से गुजरता रहा. बंगलादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का खूब हनन किया. 25 मार्च, 1971 को शुरू हुए औपरेशन सर्चलाइट से ले कर पूरे बंगलादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जम कर हिंसा हुई.

बंगलादेश सरकार के मुताबिक, उस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए. जानमाल की इतनी हानि के बावजूद आज बंगलादेश पाकिस्तान से कहीं आगे निकल चुका है. बंगलादेश की त्रासदियां 1947 में भारत से अलग हो कर पूर्व और पश्चिम में 2 पाकिस्तान बने. पश्चिमी पाकिस्तान ने हमेशा खुद को अव्वल माना और पूर्वी हिस्से को सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया. वजह थी- भाषा और संस्कृति. पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान बांग्ला बोलते थे. उन का रहनसहन भारत के बंगालियों से मेल खाता था. जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू, अरबी, फारसी को ज्यादा महत्त्व प्राप्त था. वहां के लोग अपने को सच्चा मुसलमान सम झते थे. लिहाजा, पूर्वी पाकिस्तान हमेशा सामाजिक व राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा. इस से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराजगी रहने लगी और इसी नाराजगी के परिणामस्वरूप उस समय पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की. 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबरदस्त विजय हासिल की. उन के दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया. लेकिन बजाय उन्हें पूरे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने के, जेल में डाल दिया गया और वहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव पड़ गई. 1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान ने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. लेकिन टिक्का खान ने बातचीत के बदले दबाव से स्थिति सुधारने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि मामला हाथ से निकल गया. 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई में जबरदस्त नरसंहार हुआ.

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इस से पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबरदस्त रोष पैदा हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली. पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियारविहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा. जिस से लोगों का पलायन भारत की तरफ होने लगा. इस को देखते हुए भारत ने भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए. लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन दे कर बंगलादेश की आजादी में महत्त्वपूर्ण रोल अदा किया. पश्चिम पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार के अन्याय के विरुद्ध 1971 में भारत के सहयोग से एक रक्तरंजित युद्ध के बाद स्वाधीन राष्ट्र बंगलादेश का उद्भव हुआ. स्वाधीनता के बाद बंगलादेश के प्रारंभिक वर्ष राजनीतिक अस्थिरता से परिपूर्ण थे. देश में 13 राष्ट्रशासक बदले गए और 4 सैन्य बगावतें हुईं. 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के बाद बंगलादेश ने कई त्रासदियों को झेला. भयावह गरीबी देखी, गंगाबह्मपुत्र के मुहाने पर स्थित इस देश में प्रतिवर्ष मौसमी उत्पात और चक्रवात आम हैं. दुनिया के सब से बड़े शरणार्थी संकट से भी बंगलादेश जू झ रहा है. 7 लाख 50 हजार रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी म्यांमार से अपना घरबार छोड़ बंगलादेश में आ बसे हैं. बावजूद इस के, धार्मिक कट्टरता को हाशिए पर धकेल कर आज बंगलादेश हर दिशा में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. बंगलादेश अपनी आर्थिक सफलता की नई इबारत लिख रहा है. वहीं पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता के कारण गर्त में जा रहा है. आतंकवाद, बम धमाके, गोलीबारी, हत्याकांड, अपहरण की खबरें पाकिस्तान की हकीकत बयां करती हैं. वह कभी चीन की जीहुजूरी में लगा रहता है, कभी अमेरिका के सामने खड़ा कांपता है. आज पाकिस्तान जहां अपनी दकियानूसी कठमुल्ला प्रवृत्ति के कारण आतंकवाद, पिछड़ेपन, गरीबी और तबाही की गर्त में जा रहा है, वहीं बंगलादेश ने वैज्ञानिक तरीकों कोअपना कर अपनी तरक्की का मार्ग प्रशस्त किया.

त्रासदियों से उबरता बंगलादेश भारतपाकिस्तान बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश ने तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के कारण बड़ी त्रासदी झेली. बंटवारे में पूर्व और पश्चिम मुसलिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान तो घोषित किए गए, लेकिन दोनों इलाकों के मुसलामानों में काफी फर्क था. पूर्वी पाकिस्तान, जिसे आज बंगलादेश कहते हैं, और पश्चिमी पाकिस्तान के मुसलमानों में ये फर्क जातिगत, रहनसहन, खानपान और भाषा के थे. पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जिसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था, जबकि पूर्व वाले हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, जिसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था. बांग्लाभाषी मुसलमानों का रहनसहन, खानपान और बोली पश्चिमी पाकिस्तानी लोगों से भिन्न थे. इस मामले में वे पश्चिम बंगाल के रहवासियों के ज्यादा करीब थे. बंगालियों का माछभात प्रिय भोजन था और उन की औरतें बंगाली औरतों की तरह साड़ी पहनने व शृंगार करने की शौकीन थीं. बुर्के का चलन है मगर उस तरह नहीं जैसा कि पाकिस्तान में है. अधिकतर महिलाएं बिना बुर्के के रहने में सहूलियत सम झती हैं. पूर्व पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों में न तो धार्मिक कट्टरता है और न उन्होंने कभी अपनी औरतों को उस तरह चारदीवारी में कैद रखा जैसा कि पाकिस्तान का आम रवैया है. बंगलादेश में राजनीतिक चेतना की भी कमी नहीं थी. वहां औरतों का भी राजनीति की तरफ खासा रु झान था. खालिदा जिया, शेख हसीना जैसी नेत्रियां बंगलादेश का प्रतिनिधित्व लंबे समय से करती आ रही हैं. 1971 में आजादी हासिल करने के बाद से बंगलादेशी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है. तस्लीमा नसरीन जैसी नामी लेखिका इसी मिट्टी में जन्मी हैं जिन्होंने पुरुषों द्वारा औरतों के लिए रची हर जंजीर को तोड़ने का हौसला दिखाया है.

पिछले 4 दशकों में वहां महिलाओं के लिए राजनीतिक सशक्तीकरण में वृद्धि हुई है, बेहतर नौकरी की संभावनाएं, शिक्षा के अवसर बढ़े हैं और उन के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानूनों को अपनाया गया है. 2018 तक बंगलादेश की प्रधानमंत्री, संसद के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता महिलाएं थीं. ये तमाम बातें दर्शाती हैं कि बंगलादेश पाकिस्तान की तरह संकुचित दिलदिमाग वाला रूढि़वादी, कट्टरपंथी कठमुल्लों का राष्ट्र नहीं है, बल्कि आधुनिक और वैज्ञानिक सोच रखने वाला देश है जो लकीर का फकीर न हो कर समय की गति के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ रहा है. आर्थिक संपन्नता पाकिस्तान बंगलादेश से क्षेत्रफल में पांचगुना बड़ा है. लेकिन विदेशी मुद्रा उस के पास बंगलादेश के मुकाबले लगभग पांचगुना ही कम है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 8 अरब डौलर है जबकि बंगलादेश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 35 अरब डौलर है. बंगलादेश की वृद्धिदर 8 फीसदी है जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 5 और 6 फीसदी के बीच जू झ रही है. कोरोनाकाल के आगमन से पहले भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धिदर भी घट कर 4 फीसदी रह गई थी. बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति कर्ज 434 डौलर है जबकि पाकिस्तान में प्रतिव्यक्ति 974 डौलर है.

एक और हैरान करने वाली बात है कि 1951 की जनगणना के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंगलादेश की आबादी 4.2 करोड़ थी और पश्चिमी पाकिस्तान की आबादी 3.37 करोड़ थी, वहीं आज बंगलादेश की आबादी 16.5 करोड़ है जबकि पाकिस्तान की आबादी 20 करोड़ है. यानी, बंगलादेश ने कुछ हद तक परिवार नियोजन के महत्त्व को सम झा और अपनाया. उस ने अपनी आबादी को नियंत्रित किया है जो पाकिस्तान और भारत नहीं कर पाए. पाकिस्तान में तो परिवार नियोजन इसलाम के विरुद्ध माना जाता है. वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम के अनुसार तो बंगलादेश की 120 से ज्यादा कंपनियां आज एक अरब डौलर से ज्यादा की सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक दुनिया के 35 देशों में निर्यात कर रही है. बंगलादेश ने आर्थिक प्रगति के उन हिस्सों में भी मजबूती से दस्तक देना शुरू कर दिया है जहां भारत का दबदबा रहा है. औक्सफौर्ड इंटरनैट इंस्टिट्यूट के अनुसार, बंगलादेश दुनिया में दूसरा सब से बड़ा देश है जहां औनलाइन वर्कर सब से ज्यादा हैं. दक्षिण एशिया में भारत की बादशाहत को बंगलादेश चुनौती दे रहा है. हाल के एक दशक में बंगलादेश की अर्थव्यवस्था औसत 6 फीसदी की वार्षिक दर से आगे बढ़ी है. बंगलादेश की आबादी 1.1 फीसदी दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है जबकि पाकिस्तान की 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है.

इस का मतलब यह भी है कि पाकिस्तान की तुलना में बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय भी तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 के जून महीने में यह वृद्धिदर 7.86 फीसदी तक पहुंच गई थी. 1974 में भयानक अकाल के बाद 16.6 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला बंगलादेश खाद्य उत्पादन के मामले में आज आत्मनिर्भर बन चुका है. बंगलादेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी में जीवनबसर कर रहे हैं लेकिन विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार. प्रतिदिन 1.25 डौलर में अपना जीवन चलाने वाले कुल 19 फीसदी लोग थे जो अब 9 फीसदी ही रह गए हैं. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में बंगलादेश में जिन लोगों का बैंक खाता है उन में से 34.1 फीसदी लोगों ने डिजिटल लेनदेन किया जो दक्षिण एशिया में औसत 27.8 फीसदी ही है. भारत में ऐसे लोगों की तादाद 48 फीसदी है जिन के पास बैंक खाता तो है लेकिन उस से कोई लेनदेन नहीं करते. ऐसे खातों को डौर्मंट अकाउंट (निष्क्रिय खाता) कहा जाता है. दूसरी तरफ बंगलादेश में ऐसे सिर्फ 10.4 फीसदी लोग ही हैं. यही वजहें हैं कि बंगलादेश को आज दक्षिण एशिया का नया टाइगर कह कर पुकारा जा रहा है. कपड़ा एक्सपोर्ट यों तो ज्यादातर मोरचों पर बंगलादेश प्रदर्शन के मामले में अपने सरकारी लक्ष्यों से आगे निकल चुका है, मगर मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर पर वह सब से ज्यादा ध्यान दे रहा है. कपड़ा उद्योग में बंगलादेश का प्रभुत्व दुनियाभर में बढ़ रहा है. इस मामले में बंगलादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत के कपड़ा एक्सपोर्ट पर भी आज बंगलादेश छा गया है. बंगलादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है. 2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डौलर तक था.

2019 के लिए यह लक्ष्य 39 अरब डौलर का रखा गया था और माना जा रहा था कि 2021 में बंगलादेश जब अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाएगा तो यह आंकड़ा 50 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा. हालांकि, कोरोना वायरस ने इस उम्मीद को पूरा होने में थोड़ी रुकावट जरूर डाल दी है. बंगलादेश की आर्थिक सफलता में रेडिमेड कपड़ा उद्योग की सब से बड़ी भूमिका मानी जाती है. कपड़ा उद्योग ही बंगलादेश के लोगों को सब से ज्यादा रोजगार भी मुहैया कराता है. कपड़ा उद्योग से बंगलादेश में 40.5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. बंगलादेश में कपड़ों की सिलाई का काम व्यापक पैमाने पर होता है और इस में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं. 2013 के बाद से वहां औटोमेटेड मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है. कपड़ा फैक्ट्रियों को अपग्रेड किया गया है और उन में काम करने वाले कामगारों की स्थिति में बेहतरी के लिए कई कदम सरकार ने उठाए हैं. 2009 से बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय तीनगुनी हो गई है. अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वार में बंगलादेश की टैक्सटाइल इंडस्ट्री को काफी उम्मीद है. बंगलादेश को लगता है कि अगर चीन का कपड़ा निर्यात कम हुआ तो वह इस की भरपाई की क्षमता रखता है. हालांकि, इस का फायदा वियतनाम, तुर्की, म्यांमार और इथोपिया को भी मिल सकता है. भारत फिसड्डी ही रहेगा. बढ़ते उद्योगधंधे व टैक्नोलौजी बंगलादेश की सरकार देशभर में 100 विशेष आर्थिक क्षेत्रों का नैटवर्क तैयार करना चाहती है.

इन में से 11 बन कर तैयार हो गए हैं और 79 पर काम चल रहा है. चीन कई मोरचों पर बंगलादेश को ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना के तहत मदद कर रहा है. चीन बंगलादेश के कई बड़े प्रोजैक्टों में आर्थिक मदद भी मुहैया करा रहा है. 2018 में चीन ने बंगलादेश के ढाका स्टौक एक्सचैंज का 25 फीसदी हिस्सा खरीद लिया था. इसे खरीदने की कोशिश भारत ने भी की थी कि लेकिन चीन ने इस की ज्यादा कीमत चुकाई और भारत के हाथ से यह सौदा निकल गया. बंगलादेश पाकिस्तान के बाद चीन से सैन्य हथियार खरीदने वाला दुनिया का दूसरा सब से बड़ा देश है. धर्म और बंगलादेश बंगलादेश ने कभी भी धर्म को अपनी उन्नति में बाधक नहीं बनने दिया. कठमुल्लों और उन की सड़ीबुसी बातों को कभी तवज्जुह नहीं दी गई. बंगलादेश ने महिलाओं की शिक्षा, गर्भनिरोध के प्रचार, व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के साथ माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर अधिक जोर दिया है. डिजिटल व्यवस्था की ओर उस के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में शेख हसीना ने डिजिटल बंगलादेश लौंच किया था ताकि टैक्नोलौजी को बढ़ावा दिया जा सके. शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में डिजिटल व्यवस्था को काफी दुरुस्त किया है. इस के लिए अमेरिका में पढ़े शेख हसीना के बेटे सजीब अहमद की भूमिका को काफी अहमियत दी जाती है. उन के प्रयासों से बंगलादेश में सूचना टैक्नोलौजी का काफी विस्तार हुआ और देशभर में इस से जुड़े 12 हाईटैक पार्क बनाए गए. बंगलादेश आज आईटी सैक्टर में भारत से मुकाबला कर रहा है. सौफ्टवेयर कंपनी टैक्नो हैवन और बंगलादेश एसोसिएशन औफ सौफ्टवेयर एंड इंफौर्मेशन सर्विसेस के सह संस्थापक हबीबुल्लाह करीम के मुताबिक, ‘बंगलादेश में बीते साल 30 जून तक आईटी सर्विसेस और सौफ्टवेयर का निर्यात 80 करोड़ डौलर तक पहुंच गया. सरकार ने 2021 तक इस का लक्ष्य 5 अरब डौलर रखा है जो कि काफी चुनौतीपूर्ण है. बंगलादेश में आईटी सैक्टर में कई काम हुए हैं. अब यहां एयरलाइन, होटल बुकिंग और इंश्योरैंस क्लेम सबकुछ औनलाइन हो रहा है.’ दुनियाभर में जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत का नाम है, लेकिन बंगलादेश इस क्षेत्र में चुनौती दे रहा है. अल्पविकसित देश का दर्जा होने के कारण बंगलादेश को पेटैंट के नियमों से छूट मिली हुई है. इस छूट के कारण बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत को चुनौती रहा है. बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में दूसरा सब से बड़ा देश बन गया है और 60 देशों में इन दवाइयों का निर्यात कर रहा है. बाल मृत्युदर, लैंगिक समानता और औसत उम्र के मामले में बंगलादेश भारत को पीछे छोड़ चुका है. बंगलादेश में एक व्यक्ति की औसत उम्र 72 साल हो गई है जो कि भारत के 68 साल और पाकिस्तान के 66 साल से ज्यादा है.

बंगलादेश में महिलाओं का सशक्तीकरण तेजी से हो रहा है. कपड़ा उद्योग में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है. बंगलादेश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का विशेष योगदान है. अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने में विदेशों में काम करने वाले करीब 25 लाख बंगलादेशियों की भी बड़ी भूमिका है. ये विदेशों से जो पैसे कमा कर भेजते हैं उन में सालाना 18 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. 2018 में यह 15 अरब डौलर तक पहुंच गया था. बंगलादेश के लिए वह पल काफी निर्णायक रहा जब संयुक्त राष्ट्र ने बंगलादेश को अल्पविकसित देश की श्रेणी से निकाल 2024 में विकासशील देशों की पंक्ति में खड़ा करने की बात कही. अल्पविकसित श्रेणी से बाहर निकलना बंगलादेश के आत्मविश्वास और उम्मीदों की मजबूती के लिए बहुत खास है. अगर आप निचले दर्जे में रहते हैं तो प्रोजैक्ट और प्रोग्राम पर बातचीत भी उन्हीं की शर्तों के हिसाब से होती है.

ऐसे में आप दूसरों की दया पर ज्यादा निर्भर करते हैं. एक बार जब आप उस श्रेणी से बाहर निकल जाते हैं तो किसी की दया पर नहीं, बल्कि अपनी क्षमता के दम पर आगे बढ़ते हैं. बंगलादेश भारत के लिए एक बड़ी मानसिक चुनौती बन रहा है. जिन बंगलादेशियों को भारत में भूखेनंगे कह कर अपमानित किया जाता है और उन पर घुसपैठिए होने का आरोप लगता था, वे अब फख्र से सिर उठा कर चलेंगे. बंगलादेश से भाग कर आने वाले तो कम हो ही जाएंगे. उलटे, भारतीय बंगाली अपने को, बंगलादेशी कह कर बंगलादेश में काम ढूंढ़ने व घुसने लगें, तो बड़ी बात न होगी. भारत की आंतरिक स्थिति बेहद नाजुक है जबकि बंगलादेश उस से गुजर चुका है. नागरिकता संशोधन कानून जैसे कानून अब भारत के लिए बेमाने हो गए हैं क्योंकि इन के सहारे भारतीयों को बंगलादेश में जाने का मौका मिलेगा.

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