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कृष्णिमा : केतकी को संतान होने में क्या दिक्कत थी?

‘‘आखिर इस में बुराई क्या है बाबूजी?’’ केदार ने विनीत भाव से बात को आगे बढ़ाया.‘‘पूछते हो बुराई क्या है? अरे, तुम्हारा तो यह फैसला ही बेहूदा है. अस्पतालों के दरवाजे क्या बंद हो गए हैं जो तुम ने अनाथालय का रुख कर लिया? और मैं तो कहता हूं कि यदि इलाज करने से डाक्टर हार जाएं तब भी अनाथालय से बच्चा गोद लेना किसी भी नजरिए से जायज नहीं है. न जाने किसकिस के पापों के नतीजे पलते हैं वहां पर जिन की न जाति का पता न कुल का…’’

‘‘बाबूजी, यह आप कह रहे हैं. आप ने तो हमेशा मुझे दया का पाठ पढ़ाया, परोपकार की सीख दी और फिर बच्चे किसी के पाप में भागीदार भी तो नहीं होते…इस संसार में जन्म लेना किसी जीव के हाथों में है? आप ही तो कहते हैं कि जीवनमरण सब विधि के हाथों होता है, यह इनसान के वश की बात नहीं तो फिर वह मासूम किस दशा में पापी हुए? इस संसार में आना तो उन का दोष नहीं?’’

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‘‘अब नीति की बातें तुम मुझे सिखाओगे?’’ सोमेश्वर ने माथे पर बल डाल कर प्रश्न किया, ‘‘माना वे बच्चे निष्पाप हैं पर उन के वंश और कुल के बारे में तुम क्या जानते हो? जवानी में जब बच्चे के खून का रंग सिर चढ़ कर बोलेगा तब क्या करोगे? रक्त में बसे गुणसूत्र क्या अपना असर नहीं दिखाएंगे? बच्चे का अनाथालय में पहुंचना ही उन के मांबाप की अनैतिक करतूतों का सुबूत है. ऐसी संतान से तुम किस भविष्य की कामना कर रहे हो?’’

‘‘बाबूजी, आप का भय व संदेह जायज है पर बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में केवल खून के गुण ही नहीं बल्कि पारिवारिक संस्कार ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं,’’ केदार बाबूजी को समझाने का भरसक प्रयास कर रहा था और बगल में खामोश बैठी केतकी निराशा के गर्त में डूबती जा रही थी.

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केतकी को संतान होने के बारे में डाक्टरों को उम्मीद थी कि वह आधुनिक तकनीक से बच्चा प्राप्त कर सकती है और केदार काफी सोचविचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचा था कि लाखों रुपए क्या केवल इसलिए खर्च किए जाएं कि हम अपने जने बच्चे के मांबाप कहला सकें. यह तो केवल आत्मसंतुष्टि तक सोचने वाली बात होगी. इस से बेहतर है कि किसी अनाथ बच्चे को अपना कर यह पैसा उस के भविष्य पर लगा दें. इस से मांबाप बनने का गौरव भी प्राप्त होगा व रुपए का सार्थक प्रयोग भी होगा.

‘केतकी, बस जरूरत केवल बच्चे को पूरे मन से अपनाने की है. फर्क वास्तव में खून का नहीं बल्कि अपनी नजरों का होता है,’ केदार ने जिस दिन यह कह कर केतकी को अपने मन के भावों से परिचित कराया था वह बेहद खुश हुई थी और खुशी के मारे उस की आंखों से आंसू बह निकले थे पर अगले ही क्षण मां और बाबूजी का खयाल आते ही वह चुप हो गई थी.

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केदार का अनाथालय से बच्चा गोद लेने का फैसला उसे बारबार आशंकित कर रहा था क्योंकि मांबाबूजी की सहमति की उसे उम्मीद नहीं थी और उन्हें नाराज कर के वह कोई कार्य करना नहीं चाहती थी. केतकी ने केदार से कहा था, ‘बाबूजी से पहले सलाह कर लो उस के बाद ही हम इस कार्य को करेंगे.’

लेकिन केदार नहीं माना और कहने लगा, ‘अभी तो अनाथालय की कई औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी, अभी से बात क्यों छेड़ी जाए. उचित समय आने पर मांबाबूजी को बता देंगे.’

केदार और केतकी ने आखिर अनाथालय जा कर बच्चे के लिए आवेदनपत्र भर दिया था.

लगभग 2 माह के बाद आज केदार ने शाम को आफिस से लौट कर केतकी को यह खुशखबरी दी कि अनाथालय से बच्चे के मिलने की पूर्ण सहमति प्राप्त हो चुकी है. अब कभी भी जा कर हम अपना बच्चा अपने साथ घर ला सकते हैं.

भावविभोर केतकी की आंखें मारे खुशी के बारबार डबडबाती और वह आंचल से उन्हें पोंछ लेती. उसे लगा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद उस के ममत्व की धारा में एक नन्ही जान की नौका प्रवाहित हुई है जिसे तूफान के हर थपेडे़ से बचा कर पार लगाएगी. उस नन्ही जान को अपने स्नेह और वात्सल्य की छांव में सहेजेगी….संवारेगी.

केदार की धड़कनें भी तो यही कह रही हैं कि इस सुकोमल कोंपल को फूलनेफलने में वह तनिक भी कमी नहीं आने देगा. आने वाली सुखद घड़ी की कल्पना में खोए केतकी व केदार ने सुनहरे सपनों के अनेक तानेबाने बुन लिए थे.

आज बाबूजी के हाथ से एक तार खिंचते ही सपनों का वह तानाबाना कितना उलझ गया.

केतकी अनिश्चितता के भंवर में उलझी यही सोच रही थी कि मांजी को मुझ से कितना स्नेह है. क्या वह नहीं समझ सकतीं मेरे हृदय की पीड़ा? आज बाबूजी की बातों पर मां का इस तरह से चुप्पी साधे रहना केतकी के दिल को तीर की तरह बेध रहा था.

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केदार लगातार बाबूजी से जिरह कर रहा था, ‘‘बाबूजी, क्या आप भूल गए, जब मैं बचपन में निमोनिया होने से बहुत बीमार पड़ा था और मेरी जान पर बन आई थी, डाक्टरों ने तुरंत खून चढ़ाने के लिए कहा था पर मेरा खून न आप के खून से मेल खा रहा था न मां से, ऐसे में मुझे बचाने के लिए आप को ब्लड बैंक से खून लेना पड़ा था. यह सब आप ने ही तो मुझे बताया था. यदि आप तब भी अपनी इस जातिवंश की जिद पर अड़ जाते तो मुझे खो देते न?

‘‘शायद मेरे प्रति आप के पुत्रवत प्रेम ने आप को तब तर्कवितर्क का मौका ही नहीं दिया होगा. तभी तो आप ने हर शर्त पर मुझे बचा लिया.’’

‘‘केदार, जिरह करना और बात है और हकीकत की कठोर धरा पर कदम जमा कर चलना और बात. ज्यादा दूर की बात नहीं, केवल 4 मकान पार की ही बात है जिसे तुम भी जानते हो. त्रिवेदी साहब का क्या हश्र हुआ? बेटा लिया था न गोद. पालापोसा, बड़ा किया और 20 साल बाद बेटे को अपने असली मांबाप पर प्यार उमड़ आया तो चला गया न. बेचारा, त्रिवेदी. वह तो कहीं का नहीं रहा.’’

केदार बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘बाबूजी, हम सब यही तो गलती करते हैं, गोद ही लेना है तो उन्हें क्यों न लिया जाए जिन के सिर पर मांबाप का साया नहीं है कुलवंश, जातबिरादरी के चक्कर में हम इतने संकुचित हो जाते हैं कि अपने सीमित दायरे में ही सबकुछ पा लेना चाहते हैं. संसार में ऐसे बहुत कम त्यागी हैं जो कुछ दे कर भूल जाएं. अकसर लोग कुछ देने पर कुछ प्रतिदान पा लेने की अपेक्षाएं भी मन में पाल लेते हैं फिर चाहे उपहार की बात हो या दान की और फिर बच्चा तो बहुत बड़ी बात होती है. कोई किसी को अपना जाया बच्चा देदे और भूल जाए, ऐसा संभव ही नहीं है.

‘‘माना अनाथालय में पल रहे बच्चों के कुल व जात का हमें पता नहीं पर सब से पहले तो हम इनसान हैं न बाबूजी. यह बात तो आप ही ने हमें बचपन में सिखाई थी कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. अब आप जैसी सोच के लोग ही अपनी बात भुला बैठेंगे तब इस समाज का क्या होगा?

‘‘आज मैं अमेरिका की आकर्षक नौकरी और वहां की लकदक करती जिंदगी छोड़ कर यहां आप के पास रहना चाहता हूं और आप दोनों की सेवा करना चाहता हूं तो यह क्या केवल मेरे रक्त के गुण हैं? नहीं बाबूजी, यह तो आप की सीख और संस्कार हैं. मैं ने बचपन में आप को व मांजी को जो करते देखा है वही आत्मसात किया है. आप ने दादादादी की अंतिम क्षणों तक सेवा की है. आप के सेवाभाव स्वत: मेरे अंदर रचबस गए, इस में रक्त की कोई भूमिका नहीं है और ऐसे उदाहरणों की क्या कमी है जहां अटूट रक्त संबंधों में पनपी कड़वाहट आखिर में इतनी विषाक्त हो गई कि भाई भाई की जान के दुश्मन बन गए.’’

‘‘देखो, मुझे तुम्हारे तर्कों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सोमेश्वर बोले, ‘‘मैं ने एक बार जो कह दिया सो कह दिया, बेवजह बहस से क्या लाभ? और हां, एक बात और कान खोल कर सुन लो, यदि तुम्हें अपनी अमेरिका की नौकरी पर लात मारने का अफसोस है तो आज भी तुम जा सकते हो. मैं ने तुम्हें न तब रोका था न अब रोक रहा हूं, समझे? पर अपने इस त्याग के एहसान को भुनाने की फिराक में हो तो तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो.’’

इतना कह कर सोमेश्वर अपनी धोती संभालते हुए तेज कदमों से अपने कमरे में चले गए. मांजी भी चुपचाप आदर्श भारतीय पत्नी की तरह मुंह पर ताला लगाए बाबूजी के पीछेपीछे कमरे में चली गईं.

थकेहारे केदार व केतकी अपने कमरे में बिस्तर पर निढाल पड़ गए.

‘‘अब क्या होगा?’’ केतकी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘होगा क्या, जो तय है वही होगा. सुबह हमें अपने बच्चे को लेने जाना है, और मैं नहीं चाहता कि इस तरह दुखी और उदास मन से हम उसे लेने जाएं,’’ अपने निश्चय पर अटल केदार ने कहा.

‘‘पर मांबाबूजी की इच्छा के खिलाफ हम बच्चे को घर लाएंगे तो क्या उन की उपेक्षा बच्चे को प्रभावित नहीं करेगी? कल को जब वह बड़ा व समझदार होगा तब क्या घर का माहौल सामान्य रह पाएगा?’’

अपने मन में उठ रही इन आशंकाओं को केतकी ने केदार के सामने रखा तो वह बोला, ‘‘सुनो, हमें जो कल करना है फिलहाल तुम केवल उस के बारे में ही सोचो.’’

सुबह केतकी की आंख जल्दी खुल गई और चाय बनाने के बाद ट्रे में रख कर मांबाबूजी को देने के लिए बाहर लौन में गई, मगर दोनों ही वहां रोज की तरह बैठे नहीं मिले. खाली कुरसियां देख केतकी ने सोचा शायद कल रात की बहसबाजी के बाद मां और बाबूजी आज सैर पर न गए हों लेकिन उन का कमरा भी खाली था. हो सकता है आज लंबी सैर पर निकल गए हों तभी देर हो गई. मन में यह सोचते हुए केतकी नहाने चली गई.

घंटे भर में दोनों तैयार हो गए पर अब तक मांबाबूजी का पता नहीं था. केदार और केतकी दोनों चिंतित थे कि आखिर वे बिना बताए गए तो कहां गए?

सहसा केतकी को मांजी की बात याद आई. पिछले ही महीने महल्ले में एक बच्चे के जन्मदिन के समय अपनी हमउम्र महिलाओं के बीच मांजी ने हंसी में ही सही पर कहा जरूर था कि जिस दिन हमारा इस सांसारिक जीवन से जी उचट जाएगा तो उसी दिन हम दोनों ही किसी छोटे शहर में चले जाएंगे और वहीं बुढ़ापा काट देंगे.

सशंकित केतकी ने केदार को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘नहीं, नहीं, केतकी, बाबूजी को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वे मुझ पर क्रोधित हो सकते हैं पर इतने गैरजिम्मेदार कभी नहीं हो सकते कि बिना बताए कहीं चले जाएं. हो सकता है सैर पर कोई परिचित मिल गया हो तो बैठ गए होंगे कहीं. थोड़ी देर में आ जाएंगे. चलो, हम चलते हैं.’’

दोनों कार में बैठ कर नन्हे मेहमान को लेने चल दिए. रास्ते भर केतकी का मन बच्चा और मांबाबूजी के बीच में उलझा रहा. लेकिन केदार के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. उमंग और उत्साह से भरपूर केदार के होंठों पर सीटी की गुनगुनाहट ही बता रही थी कि उसे अपने निर्णय पर जरा भी दुविधा नहीं है.

केतकी का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह बोला, ‘‘यार, क्या मुंह लटकाए बैठी हो? चलो, मुसकराओ, तुम हंसोगी तभी तो तुम्हें देख कर हमारा नन्हा मेहमान भी हंसना सीखेगा.’’

नन्ही जान को आंचल में छिपाए केतकी व केदार दोनों ही कार से उतरे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था पर बाहर ताला न देख वे समझ गए कि मां और बाबूजी घर के अंदर हैं. केदार ने ही दरवाजे की घंटी बजाई तो इसी के साथ केतकी की धड़कनें भी तेज हो गई थीं. नन्ही जान को सीने से चिपटाए वह केदार को ढाल बना कर उस के पीछे हो गई.

दरवाजा खुला तो सामने मांजी और बाबूजी खडे़ थे. पूरा घर रंगबिरंगी पताकों, गुब्बारों तथा फूलों से सजा हुआ था. यह सबकुछ देख कर केदार और केतकी दोनों विस्मित रह गए.

‘‘आओ बहू, अंदर आओ, रुक क्यों गईं?’’ कहते हुए मांजी ने बडे़ प्रेम से नन्हे मेहमान को तिलक लगाया. बाबूजी ने आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में लिया.

‘‘अब तो दादादादी का बुढ़ापा इस नन्हे सांवलेसलौने बालकृष्ण की बाल लीलाओं को देखदेख कर सुकून से कटेगा, क्यों सौदामिनी?’’ कहते हुए बाबूजी ने बच्चे के माथे पर वात्सल्य चिह्न अंकित कर दिया.

बाबूजी के मुख से ‘बालकृष्ण’ शब्द सुनते ही केदार और केतकी ने एक दूसरे को प्रश्न भरी नजरों से देखा और अगले ही पल केतकी ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘लेकिन बाबूजी, यह बेटा नहीं बेटी है.’’

‘‘तो क्या हुआ? कृष्ण न सही कृष्णिमा ही सही. बच्चे तो प्रसाद की तरह हैं फिर प्रसाद चाहे लड्डू के रूप में मिले चाहे पेडे़ के, होगा तो मीठा ही न,’’ और इसी के साथ एक जोरदार ठहाका सोमेश्वर ने लगाया.

केदार अब भी आश्चर्यचकित सा बाबूजी के इस बदलाव के बारे में सोच रहा था कि तभी वह बोले, ‘‘क्यों बेटा, क्या सोच रहे हो? यही न कि कल राह का रोड़ा बने बाबूजी आज अचानक गाड़ी का पेट्रोल कैसे बन गए?’’

‘‘हां बाबूजी, सोच तो मैं यही रहा हूं,’’ केदार ने हंसते हुए कहा.

‘‘बेटा, सच कहूं तो आज मैं ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. मुझे तुझ पर गर्व है. यदि आज तुम अपने निश्चय से हिल जाते तो मैं टूट जाता. मैं तुम्हारे फैसले की दृढ़ता को परखना चाहता था और ठोकपीट कर उस की अटलता को निश्चित करना चाहता था क्योंकि ऐसे फैसले लेने वालों को सामाजिक जीवन में कई अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ती हैं.’’

‘‘समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं न. यदि 4 लोग तुम्हारे कार्य को सराहेंगे तो 8 टांग खींचने वाले भी मिलेंगे. तुम्हारे फैसले की तनिक भी कमजोरी भविष्य में तुम्हें पछतावे के दलदल में पटक सकती थी और तुम्हारे कदमों का डगमगाना केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि आने वाली नन्ही जान के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता था. बस, केवल इसीलिए मैं तुम्हें जांच रहा था.’’

‘‘देखा केतकी, मैं ने कहा था न तुम से कि बाबूजी ऐसे तो नहीं हैं. मेरा विश्वास गलत नहीं था,’’ केदार ने कहा.

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‘‘बेटा, तुम लोगों की खुशी में ही तो हमारी खुशी है. वह तो मैं तुम्हारे बाबूजी के कहने पर चुप्पी साधे बैठी रही, इन्हें परीक्षा जो लेनी थी तुम्हारी. मैं समझ सकती हूं कि कल रात तुम लोगों ने किस तरह काटी होगी,’’ इतना कह कर सौदामिनी ने पास बैठी केतकी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘वह तो ठीक है मांजी, पर यह तो बताइए कि सुबह आप लोग कहां चले गए थे. मैं तो डर रही थी कि कहीं आप हरिद्वार….’’

‘‘अरे, पगली, हम दोनों तो कृष्णिमा के स्वागत की तैयारी करने गए थे,’’ केतकी की बातों को बीच में काटते हुए सौदामिनी बोली, ‘‘और अब तो हमारे चारों धाम यहीं हैं कृष्णिमा के आसपास.’’

सचमुच कृष्णिमा की किलकारियों में चारों धाम सिमट आए थे, जिस की धुन में पूरा परिवार मगन हो गया था.

 स्निग्धा श्रीवास्त

टमाटर उत्पादन की उन्नत तकनीक

लेखक- डा. पूनम कश्यप, डा. आशीष कुमार प्रूष्टि, डा. सुनील कुमार एवं डा. आजाद सिंह पंवार 

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मेरठ, उत्तर प्रदेश् टमाटर एक महत्त्वपूर्ण सब्जी है, जिस की अगेती व देर से फसल लेने में अधिक लाभ होता है. टमाटर के पके फलों को सलाद व सब्जी के रूप में प्रयोग होता किया जाता है. इस में प्रर्याप्त मात्रा में विटामिन ए, बी, बी-2 और सी पाया जाता है. इस में पाया जाने वाला लाइकोपीन एंटी कैंसर गुण रखता है. यह पाचन तंत्र को ठीक करता हैं और गुरदे व लिवर से संबंधित रोगों को दूर करता है. भूमि की तैयारी टमाटर की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परंतु उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या दोमट भूमि इस की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इस की खेती 6.5 से 7.5 पीएच मान वाली मिट्टी में अच्छी होती है.

रोपण के लिए खेत की अच्छी तरह 3-4 जुताइयां कर के तैयार किया जाता है. जलवायु टमाटर की फसल के लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड होता है. अंकुरण के लिए आदर्श तापमान लगभग 25 डिगरी सैंटीग्रेड होना चाहिए. टमाटर में लाल रंग लाइकोपीन नामक वर्णक के कारण होता है. इस का उत्पादन 25 डिगरी सैंटीग्रेड पर होता है और 30 डिगरी से ऊपर इस का बनना बंद हो जाता है, जिस से टमाटर पीला दिखने लगता है. पौधशाला में बीज की बोआई का समय पौधशाला में टमाटर के बीज की बोआई स्थान और किस्म के अनुसार भिन्नभिन्न स्थानों पर अलगअलग समय में की जाती है. शरदकालीन फसल के लिए बीज की बोआई जुलाईसितंबर, बसंत ग्रीष्म ऋतु के लिए नवंबर से दिसंबर में बोआई करते हैं.

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इस प्रकार इस की खेती वर्षभर की जा सकती है. बीज की मात्रा एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए मुक्त परागित किस्मों की 350 से 400 ग्राम और संकर किस्मों की 200-250 ग्राम बीज की जरूरत होती है. पौध करें यों तैयार मैदानी भागों में टमाटर वर्ष में दो बार उगाया जाता है, इसलिए पौध 2 मौसमों वर्षा और शरद ऋतु में तैयार किए जाते हैं. पहाड़ी भागों में इसे मार्चअप्रैल में तैयार किया जाता है. एक हेक्टेयर पौधारोपण के लिए 100-120 वर्गमीटर क्षेत्रफल की जरूरत होती है. पौध रोपण आमतौर पर 4-6 पत्तियों वाली तैयार पौध, जिस की ऊंचाई 15-20 सैंटीमीटर हो, रोपण के लिए उपयुक्त होती है. पंक्ति में पंक्ति व पौध से पौध की दूरी, किस्म भूमि की उर्वरता, रोपण के समय के अनुसार कम या ज्यादा की जा सकती है.

यह ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के 3-4 दिन पहले ही नर्सरी में सिंचाई बंद कर दें. जाड़े के मौसम में यदि पाला पड़ने का डर हो, तो क्यारियों को पौलीथिन की चादर से ढक दें. उन्नतशील किस्में पौधे की बढ़वार के आधार पर असीमित बढ़वार : बैस्ट औफ आल, पंजाब ट्रौपिक, सोलन गोला, यशवंत-2, मारग्लोब, नवीन आदि

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. अर्द्धसीमित बढ़वार : ए-12, सोलन शुगन आदि. सीमित बढ़वार : एचएस-11, एचएस-102, पूसा अर्ली, रोना ड्वार्फ आदि. फलों के आकार के आधार पर बड़े फलों वाली किस्में : पांडरोजा, पंजाब ट्रौपिक, स्यू, एचएस-110, मारग्लोब, काशी विशेष, काशी अनुपम.

मध्यम फलों वाली किस्में : पूसा रूबी, बैस्ट औफ आल, एस-120, केकस्थ अगेती और एचएस-101. छोटे फलों वाली किस्में : एस-12, एचएस-102, पूसा रैड प्लम. नाशपती के आकार वाली किस्में : गेम्ड टाइप, सलैक्शन-152, इटैलियन रैड, रोमा, कल्याणपुर अंगुरलता.

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उगाए जाने वाले क्षेत्रों के आधार पर मैदानी क्षेत्रों के लिए : पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, एस-120, एचएस-101, एचएस-102, एस-12. पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : स्यू, बैस्ट औफ, रोमा. अधिक तापमान पर फल देने वाली किस्में : एचएस-102, मनी मेकर, लाकुलस.

परिवहन के लिए उपयुक्त किस्में : रैड टौप, मेरठी. प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त किस्में  स्यू, पूसा प्लम. अन्य संस्थान द्वारा विकसित किस्में काशी अनुपम, काशी अमृत, काशी हेमंत, काशी शरद, काशी विशेष, स्यूक्स, पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा रैड प्लम, पूसा सलैक्शन-120, हिसार ललिता, एचएस आदि. खाद और उर्वरक टमाटर की अच्छी फसल के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद और तत्त्व के रूप में 100-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60-80 किलोग्राम पोटाश डालें. असीमित वृद्धि वाली किस्मों के लिए नाइट्रोजन की मात्रा 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. गोबर की खाद रोपण से 3-4 हफ्ते पहले खेत में सब जगह एकसमान डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें.

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा रोपण से पहले खेत में डालें. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा 2 बराबर भागों में बांट कर 25-30 व 45-50 दिन बाद खड़ी फसल में टौप ड्रैसिंग करें. सिंचाई पौध रोपण के बाद 2 दिन तक फुहारे से पानी दें या रोपण के बाद हलकी सिंचाई करें. गरमी के मौसम में 7 से 8 दिन तक, सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में अधिक पानी न लगने पाए. अधिक पानी देने से पौधों में मुरझान और पत्ती मोड़क विषाणु रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. खरपतवार नियंत्रण अच्छी फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. छोटे व मध्यमवर्गीय किसान अपने खेतों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी या कुदाल द्वारा खुद ही कर लेते हैं, नहीं तो रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर के खरपतवार पर नियंत्रण कर सकते हैं.

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अंत:सस्य क्रियाएं अच्छी पैदावार लेने के लिए हलकी निराईगुड़ाई करें व पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ानी चाहिए. यदि टमाटर की किस्म असीमित वृद्धि वाली हो तो सहारा दें. फलों की तुड़ाई टमाटर के फलों की तुड़ाई उस के उपयोग पर निर्भर करती है. यदि टमाटर को पास के बाजार में बेचना है, तो फल पकने के बाद तुड़ाई करें और यदि फलों को बेचने के लिए दूर के बाजार में भेजना हो, तो जैसे ही उन के रंग में बदलाव होना शुरू हो, तुरंत तुड़ाई करनी चाहिए.

श्रेणीकरण खेत में टमाटर तोड़ने के बाद रोग से ग्रसित, सड़ेगले आदि फलों को सब से पहले छांट कर अलग करने के बाद उन्हें आकार के अनुसार 3 वर्गों (बड़े, मध्यम और छोटे) में वर्गीकृत कर देते हैं. वर्गीकृत टमाटर बाजार में भेजने पर अच्छा भाव मिलता है. भारतीय मानक संस्थान के अनुसार, टमाटर को मुख्य रूप से 4 वर्गों में आकार के अनुसार सुपर, सुपर-ए, फैंसी और व्यापारिक में बांटा गया है. भंडारण यदि बाजार में मांग न हो, तो टमाटर को कुछ दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है. जैसे पके हरे टमाटर को 12.5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 30 दिन और पके टमाटर को 4-5 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 10 दिन तक रखा जा सकता है. इस भंडारण के समय आर्द्रता 85 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए.

उपज टमाटर की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल होती है. उत्तम तकनीक और अच्छी संकर किस्मों से आमतौर पर 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर टमाटर की उपज ली जा सकती है. प्रमुख कीट व नियंत्रण हरा तेला हरे रंग के छोटेछोटे कीड़े होते हैं, जिन की संख्या पत्तों के निचली सतह पर अधिक होती है. ये कीट रस चूसते हैं. इस के कारण पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर पीली हो जाती हैं. प्रबंधन 0.04 फीसदी मैलाथियान या रोगर या मैटासिस्टौक्स का छिड़काव करें. दवा का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. एफिड यह काले रंग के छोटे आकार के कीट पत्तियों का रस चूसते हैं. प्रबंधन 0.02 फीसदी मोनोक्रोटोफास का छिड़काव 2 हफ्ते के अंदर करना चाहिए.

फलछेदक सूंड़ी इस का हरे रंग का लाखा पत्तियों व फलों में छेद करता है, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन 0.15 फीसदी सेविन का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें. रोपाइ के समय 16 लाईन टमाटर के बाद एक लाइन गेंदे की लगाएं. एचएनपीवी 250 एलई को गुड़ के साथ (10 ग्राम प्रति लिटर), साबुन पाउडर (05 ग्राम प्रति लिटर), और टीनोपाल (1 मिली प्रति लिटर) को पानी में मिला कर शाम में प्रयोग करें. अंडा परजीवी कीट/2,50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर करें. सफेद मक्खी यह सफेद रंग की मक्खी पत्तियों से रस चूसती है और विषाणु रोग फैलाते हैं,

जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं. प्रबंधन बोने से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस या थायोमेथाक्जाम 70 डब्ल्यूएस का 3 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें. 1 से 2 पीला 1 चिपकने वाला ट्रैप 50-100 वर्गमीटर की दूरी पर रखें. प्रमुख रोग और उन का प्रबंधन आर्द्रगलन रोग जमीन से लगे हुए तने जलीय व नरम हो कर ?क जाते हैं. कभीकभी पत्तियों के मुर?ने और सूखने के लक्षण भी दिखाई देते हैं. प्रबंधन कैपटान, एग्रोसान दवा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर उपचारित करें. ब्लाईटौक्स 50, 1 किलोग्राम प्रति 300 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अगेती अंगमारी पत्तियों पर गोल और त्रिकोणाकार गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ने पर सूख कर गिर जाती हैं.

यह धब्बे फल को खराब करते हैं और फल सड़ जाते हैं. प्रबंधन बीज बोने के पहले ट्राईकोडर्मा पाउडर से बीज का उपचार करें. डाईथेन एम 45 का 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें. पिछेता ?ालसा पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं और जमीन के संपर्क में होने वाले फल सड़ जाते हैं. फलों पर भूरे रंग के घब्बे बनते हैं, जिस से फल सड़ने लगते हैं. प्रबंधन पौधे को सहारा दे कर जमीन से उपर रखें. खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें. 0.2 प्रतिशत डाईथेन जैड 78 का छिड़काव करेें. फल गलन फल पूरी तरह बदरंग हो जाता है और फलों पर पीले भूरे रंग के संकेंद्र बलयुक्त धब्बे पड़ जाते हैं, जिस से अंदर का गूदा पूरी तरह सड़ जाता है. प्रबंधन फसल में अधिक पानी न दें. टमाटर हमेशा मेड़ों पर लगवाएं. डाईफोल्टान दवा का 0.3 फीसदी का छिड़काव करें.

मृगतृष्णा : सुषमाजी किस बात को लेकर परेशान थी

‘‘सुन, मैं परसों पहुंच रही  हूं,’’ दीदी फोन पर थीं, ‘‘यहां पर  छोटे गोपाली महाराज आए हुए हैं. युवा संत और बहुत बड़े सिद्ध पुरुष हैं. कल यहां उन की संगीतमय कथा का समापन है. कोटा होते हुए, उन का उज्जैन का कार्यक्रम है. तेरे प्रमोशन का जो मामला चल रहा है उस बारे में मैं ने बात की थी. महाराज बोले कि बाधाएं हैं, हट जाएंगी. बस, तू थोड़ी सी तैयारी कर लेना. 2-4 लोग भी उन के साथ होंगे,’’ फोन कट गया था.

‘‘क्यों? क्या बात है, बड़ा लंबा फोन था?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘दीदी का वही पुराना काम. अब किसी छोटे गोपाली महाराज को ले कर परसों घर आ रही हैं.’’

‘‘क्या यहां ठहरेंगे?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘नहीं, ठहरेंगे तो किसी आश्रम में पर दीदी मुझ से मिलाने के लिए उन्हें घर लाएंगी.’’

दूसरे दिन शाम को ही जीजी का फोन आ गया.

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‘‘सुन, हम लोग आ गए हैं. मैं सावित्री आश्रम से बोल रही हूं… तुम्हारी कालोनी की सुषमाजी के घर महाराज सुबह आएंगे, फिर वहीं से तुम्हारे घर भी आने का उन का कार्यक्रम है. जगदंबा दादी और कृष्ण मोहन को भी बता देना, वरना बाद में वे मुझे उलाहना देंगे.’’

‘‘सीमा, इस कालोनी में कोई सुषमाजी हैं, दीदी उन के साथ आने को कह रही हैं. यह सुषमाजी कौन हैं?’’

‘‘अरे, वही जो संतोषी माता के मंदिर में भजन गा रही थीं. अपने खत्रीजी के घर से हैं.’’

उन का नाम आते ही मैं चौंका. मेरे सामने जलाशय विभाग के बड़े बाबू का चेहरा घूम गया.

दुबलेपतले से खत्री बाबू, हमेशा सुबह के समय अपने बच्चों के साथ घूमते हुए मिल जाते हैं. उन का बच्चा पहाड़े सुनाता चलता है. उन के तीनों बच्चे शायद दफ्तर के बाद खत्री बाबू के संगीसाथी हैं. यह राय मेरी अपनी नहीं बल्कि इस गली के सभी लोगों की है.

मैं ने थैला लिया और बाजार को चल दिया क्योंकि दीदी के आदेश के अनुसार मुझे मिठाई, मेवा और फल ले कर आने थे.

देर रात दरवाजे की घंटी बजते ही मैं समझ गया कि दीदी आ गई हैं.

दीदी ही थीं. बेहद प्रसन्न. दीदी अपने साथ आश्रम से प्रसाद लाई थीं. बच्चे उन का ही इंतजार कर रहे थे. उन्होंने थैला खोला और मिठाई का डब्बा व मेवे निकाल कर बच्चों के सामने रख दिए.

दीदी बड़े मन से गोपाली महाराज का गुणगान करते हुए कहने लगीं, ‘‘4 माह तक तो उन के पास समय ही नहीं है. एक भक्त ने जब 11,001 रुपए की भेंट दी तो बड़ी मुश्किल से महाराजजी ने अगले महीने में समय दिया है, वह भी तब जब सुषमाजी ने बहुत कहा है.

महाराज सुबह ही सुषमाजी के घर आ गए थे. वहीं दीदी भी चली गई थीं. जातेजाते भी अच्छी तरह से बता गईं कि घर को कैसे साफसुथरा कर के रखना है. उन का खास निर्देश था कि महाराज के सामने सब को जमीन पर ही बैठना होता है.

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सीमा ने कहा, ‘‘देखो, जीजी ने कहा कि मैं चाय बना दूंगी और आप को महाराज के पांव धोने हैं.’’

महाराज को साथ ले कर दीदी आ गईं. उन के साथ भक्तजन थे. लंबा कद, 35 साल के आसपास की उम्र, काले घने कंधे तक लटकते हुए केश. सफेद सिल्क का कुरतालुंगी. गोपाली महाराज के गले में छोटे रुद्राक्ष की सोने में गुथी हुई माला थी.

‘‘यह अशोक है, मेरा छोटा भाई,’’ दीदी ने कहा.

मैं ने आगे बढ़ कर चरण छुए.

महाराज बोले, ‘‘मेष राशि है जिस का मालिक मंगल होता है. आमदनी अच्छी है पर अभी राहु का प्रभाव है, तुम्हारी पत्नी का स्वास्थ्य कुछ नरम है, इसलिए परेशान हो.’’

महाराज ने अभी इतना ही बताया था कि भक्त लोगों के चेहरे खिल उठे थे.

सुषमाजी ने जयकारा लगाया तो एक तेज आवाज छोटे से ड्राइंगरूम में गूंज पड़ी.

‘‘जा,’’ दीदी ने इशारा किया तो मैं अंदर आ गया, सीमा की ओर देखा तो वह मेहमानों के लिए प्लेटों में मिठाई, मेवा व फल रख रही थी. गैस पर चाय का पानी उबल रहा था.

मैं ने चौकी उठाई और उसे कमरे में ले कर आ गया. फिर परात और लोटे में पानी ले आया.

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत है,’’ महाराजजी बोले, ‘‘बहनजी, मैं ने तो वहां भी मना कर दिया था.’’

दीदी के आग्रह पर महाराजजी ने अपने दोनों पांव चौकी पर रखी परात में रख दिए. मैं ने लोटे से पानी डाल कर उन के धुले पांव तौलिए से साफ किए, फिर उस परात को भीतर ले चला.

अचानक ही आगे बढ़ कर सुषमाजी ने मेरे हाथ से परात ले ली और उस पानी को भक्त लोग अपनी उंगलियां डुबोडुबो कर अपने माथे और आंखों पर लगा रहेथे.

एक थाली में भोग का सारा सामान रख कर महाराज का भोग लगाया गया. महाराज शांत भाव से ध्यान मुद्रा में चले गए थे. 2 मिनट मौन रहा, फिर अचानक एक छोटी सी आरती की ध्वनि पीछे से आई. सुषमाजी का मधुर स्वर फिर से लय में गूंजने लगा था.

महाराज ने नेत्र खोले. सुषमाजी के पूरे खिले हुए चांद जैसे चेहरे को निहारते हुए उन्हें संकेत दिया तो वह तेजी से आगे बढ़ीं. उन्होंने अपनी मेवा की प्लेट उन के हाथ से सब को बांटने को पकड़ा दी तो वह पुलकित भाव से सब को प्रसाद बांटने लगीं.

महाराज कुछ समय रुके, फिर जिस भक्त के घर उन का विशेष कार्यक्रम था उस के साथ लंबी सी कार में बैठ कर चले गए.

‘‘मुझे तो दीदी का यह तरीका पसंद नहीं है,’’ सीमा झुंझला कर बोली, ‘‘तुम्हारी बड़ी बहन हैं, तुम ही करो और धूर्त संत को झेलो.

‘‘अखबार में नहीं पढ़ा, जब पाप और अपराध बढ़ जाते हैं तो महात्मा ही पैदा होते हैं. शायद इसीलिए देश में बढ़ते भ्रष्टाचार की तरह महात्मा भी बढ़ते जा रहे हैं. इस सुषमा को क्या हो गया है? देख लेना यह भी संन्यासिनी बनेगी.’’

रात को दीदी के फोन से पता चला कि वह महाराज के साथ पाटन चली गईं जहां एक कार्यक्रम है. उस में भाग ले कर वह करौली चली जाएंगी.

सुबह ही खत्रीजी ने आ कर दरवाजे की घंटी बजाई तो मैं पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ, खत्रीजी?’’

‘‘सुषमा नहीं है, लगता है, वह भी महाराज के साथ उज्जैन निकल गई. मैं ने तो आप से इसलिए पूछा था कि उस के साथ आप की बहन भी थीं.’’

खत्रीजी का दीनहीन चेहरा देख कर मुझे उन पर दया आ गई. मैं ने उन्हें भरोसा दिया कि मैं अपनी बहन से फोन पर बात कर के पता लगाने की कोशिश करूंगा कि सुषमाजी कहां हैं.

रात को दीदी को फोन किया तो पता चला कि वह महाराज के साथ उज्जैन चली गईं. साथ में उन्होंने यह भी बता दिया कि डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि महाराज बहुत भले इनसान हैं.

मैं खत्रीजी के घर गया. वहां कोहराम मचा हुआ था. तीनों बच्चे गला फाड़ कर रो रहे थे. खत्री का चेहरा भी आंसुओं में डूबा हुआ था. बड़ा लड़का आले में रखी धार्मिक किताबें तथा देवीदेवताओं की तसवीरें आंगन में फेंकने जा रहा था. मुझे देखा तो रुक गया.

‘‘फोन आया,’’ खत्री ने पूछा.

‘‘हां, दीदी तो पाटन से सीधी करौली चली गई थीं, पर सुषमाजी उज्जैन चली गईं क्योंकि अब वे वहां का नया आश्रम संभालेंगी. मैं तो आप को सलाह दूंगा कि आप उज्जैन हो आएं.’’

‘‘पुलिस स्टेशन जाने की सोच रहा था,’’ खत्री बोले, ‘‘इस से बदनामी होगी यह सोच कर चुप रह गया. महल्ले वाले भी पूछने आए थे, तो मैं ने उन को यही बताया है कि आप की बहन के साथ गई हैं, आप कृपा कर…’’

‘‘दीदी का इस में कोई कुसूर नहीं है. वह तो खुद सुषमाजी से पहली बार यहीं मिली थीं.’’

‘‘हां, पर उसे समझा तो सकती थीं.’’

‘‘दीदी बता रही थीं कि उन्होंने सुषमाजी को बहुत समझाया पर उन का मन बहुत कड़ा हो चुका था. वह तो उन के सामने ही कार में बैठ कर चली गईं.’’

खत्री के यहां से लौटा तो पाया कि सीमा भी अपने भाई के साथ मायके जाने की तैयारी में है.

‘‘क्यों? तुम्हें क्या हो गया?’’

‘‘पूरे महल्ले में बदनामी हो रही है. अच्छी दीदी आईं, मैं तो मायके जा रही हूं. 2-4 दिन में बात ठंडी हो जाएगी तो आ जाऊंगी.’’

उधर उज्जैन पहुंचते ही सुषमाजी को अतिथि गृह में ठहरा दिया गया. छोटे गोपाली महाराज आश्रम की दिनचर्या में व्यस्त हो गए. उसी दिन उन के लिए भगवा रंग की सिल्क की साड़ी आ गई. केशों को ढंग से रंगने तथा खुले रखने की परंपरा और बोलते समय प्रभावोत्पादक भंगिमा की शिक्षा देने के लिए ब्यूटीशियन मोहिनीजी भी आ चुकी थीं. सुषमाजी का पूरा बदन उन की मेहनत से शाम तक निखर आया था. शाम को जब वह प्रार्थना भवन में पहुंचीं और अपने मधुर कंठ से मीरा का भजन, ‘मैं तो सांवरा के रंग राची’ गाया तो भक्त भावविभोर हो गए.

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छोटे गोपाली बाबू ने दूरदूर तक अपने गुरु भाइयों को मोबाइल पर यह सूचना दे दी थी. यही तय हुआ था कि आने वाली पूर्णमासी पर इन को दीक्षा दी जाएगी और इसी के साथ आश्रम की व्यवस्था भी सौंप दी जाएगी.

उसी रात माधवानंद ने आ कर सुषमा को जगाया जो उस समय गहरी नींद में सो रही थी.

‘‘कौन?’’

‘‘माधवानंद, आश्रम का सेवक.’’

‘‘क्या है?’’

‘‘आप के लिए यह मोबाइल पर संदेश है.’’

सुषमा ने फोन हाथ में ले कर कान से लगाया तो आवाज सुनाई पड़ी :

‘‘तुम मुझे नहीं जानतीं,’’ आवाज किसी महिला की थी, ‘‘तुम अपना घर, बच्चे क्यों छोड़ आईं, क्या पाओगी? ईश्वर…या कुछ और…सुनो, गोपाली पूरा बदमाश, व्यभिचारी है. दीक्षा का मतलब समझती हो, वह तुम्हारा सर्वस्व छीन लेगा. तुम कहीं की नहीं रहोगी. सारी उम्र पाप भावना से लड़ती रहोगी, यह सब छल है, छलावा है, इस से दूर रहो…’’

‘‘आप…’’

‘‘मैं उस की पत्नी हूं. महेश्वर से बोल रही हूं. तुम्हारी बड़ी बहन हूं. उस ने मुझे नहीं छोड़ा, मैं ने और मेरे बच्चे ने उसे छोड़ दिया है. यह आश्रम ही मेरा घर है, जमीन है. बच्चा उज्जैन में पढ़ रहा है, उस ने ही बताया था.

‘‘तुम्हारे बच्चे तुम्हारे बिना रह नहीं पाएंगे, बहन. घर जाओ और हां, जब छुट्टियां हों तब अपने बच्चों और पति को ले कर यहां आना. जगह सुंदर है, मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा रहेगी.

‘‘माधवानंद पर भरोसा करो, वह मेरा अपना खास आदमी है. वहां से निकलने के लिए तुम्हारे कमरे के पास जो बरामदा है वहां एक दरवाजा है, जो पीछे गली में खुलता है. उसी रास्ते से बाहर निकल जाओ. बस स्टैंड पर कमलाकर मिल जाएगा.’’

‘‘कमलाकर?’’

‘‘तुम्हारा भानजा, तुम्हें वह टिकट दे देगा, उस ने खरीद लिया है…शुभ रात्रि,’’ और फोन कट गया था.

सुषमाजी को इस के बाद कुछ पता नहीं. भजन, पूजन सब कहीं दूर छूट चुका था. वह उस अंधेरी गली में माधवानंद का हाथ पकड़े दौड़ती चली जा रही थीं. बस स्टैंड पर कब पहुंचीं, कुछ पता नहीं. हां, वह सुंदर सा लड़का जिस ने उन के पांव छू कर टिकट व रुपए हाथ में दिए, उसे वह अब तक नहीं भूल पाई हैं.

सुबह खत्रीजी उसी तरह अपने छोटे बेटे के साथ पार्क में घूम रहे थे.

बड़ा लड़का स्कूल बस की प्रतीक्षा में लैंप पोस्ट के नीचे खड़ा था और सुषमाजी भीतर से हाथ में लंच बाक्स लिए तेजी से बाहर आ रही थीं.

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Crime Story : गहरी साजिश

सौजन्या-मनोहर कहानियां

सूरज पिछले महीने से बहुत परेशान था. इस की वजह यह थी कि महीने भर के अंदर उस के दादा महेंद्र और 21 वर्षीय बहन प्रीति की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. उसे रहरह कर शक होता था कि दोनों की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उन्हें साजिशन मारा गया है. अपने मन की बात वह घर में किसी से कह भी नहीं पा रहा था.

सोचसोच कर जब वह काफी परेशान रहने लगा तो एक दिन अपने नजदीकी थाना झबरेड़ा पहुंच गया. यह थाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के अंतर्गत आता है.उस ने थानाप्रभारी रविंद्र कुमार से मुलाकात कर अपने मन की बात बताई. सूरज ने बताया कि वह मानकपुर आदमपुर में रहता है और एक कंपनी में काम करता है. उस ने बताया कि उस के दादा महेंद्र (70 साल) पूरी तरह स्वस्थ थे. वह 2 नवंबर, 2020 की रात को खाना खा कर सोए थे और अगली सुबह बिस्तर पर मृत मिले. इसी तरह 6 दिसंबर, 2020 की सुबह को उस की 21 वर्षीय बहन प्रीति भी बिस्तर पर मृत मिली. इन दोनों की स्वाभाविक मौत पर उसे शक है.

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‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन रहता है?’’ थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने उस से पूछा ‘‘सर अब तो मेरी परिवार में केवल मेरी बीबी रिया, मेरी 2 वर्षीया बेटी सोनी तथा मेरी मां कैमता ही हैं. वर्ष 2014 में मेरे पिता अरविंद कुमार की हार्टअटैक से मौत हो चुकी है.’’ सूरज ने बताया  ‘‘तुम्हारी शादी कब हुई थी?’’

‘‘सर मेरी शादी साल 2018 में सहारनपुर के गांव दुगचाड़ी निवासी रिया उर्फ अन्नू के साथ हुई थी. मेरे घर में दुलहन बन कर आने के बाद रिया अकसर चिल्लाने लगती थी और कहती थी कि मुझे कोई प्रेतात्मा बुला रही है. वह मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कह रही है. इस तरह से रिया का चीखनाचिल्लाना अभी तक जारी है.’’ सूरज बोला ‘क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’ रविंद्र कुमार ने पूछा.

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‘‘हां सर, मुझे शादी के बाद से ही मेरी बीवी रिया द्वारा प्रेतात्मा का डर दिखा कर डराया जाता रहा है. इस के अलावा हमारे पड़ोस में रहने वाले युवक रोहित उर्फ राजू से मेरी बीबी रिया की नजदीकियां पिछले साल से काफी बढ़ गई हैं. मुझे कुछ महीने पहले मेरे पड़ोसियों से पता चला कि मेरी रात की ड्यूटी के दौरान रोहित अकसर हमारे घर आता है.’’ सूरज बोला‘तुम्हें अपनी पत्नी पर ही शक क्यों है?’’ रविंद्र कुमार बोले

‘‘10 दिन पहले रिया गांव दुगचाड़ी अपने स्थित मायके गई थी. इसी दौरान मैं कुशलक्षेम पूछने के लिए रिया का को फोन करता था, तो उस का नंबर कई बार 20-25 मिनट तक बिजी मिलता था. वह शायद अपने प्रेमी रोहित से ही बात करती होगी. मुझे शक है कि उसी ने ही कोई साजिश रची होगी.’’

इस के बाद थानाध्यक्ष रविंद्र कुमार ने सूरज से पूछ कर उस की बीवी रिया व उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे यह कहते हुए घर भेज दिया कि हम पहले इस प्रकरण की अपने स्तर से जांच कर लें, इस के बाद कानूनी काररवाई करेंगे. सूरज के जाने के बाद रविंद्र सिंह ने इस मामले की जानकारी सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह को दी.

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इस मामले में हरिद्वार के एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने रविंद्र कुमार से कहा कि चूंकि महेंद्र व प्रीति की मौत को सामान्य मानते हुए उन के परिजन पहले ही उन का अंतिम संस्कार कर चुके हैं, अत: अब इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का तो प्रश्न ही नहीं उठता. फिलहाल तुम रिया व रोहित के मोबाईलों की पिछले 2 महीनों की कालडिटेस निकलवा लो और मुखबिरों से भी जानकारी हासिल करो.

रविंद्र कुमार ने ऐसा ही किया. 2 दिन बाद पुलिस को रिया व रोहित के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई. पता चला कि रोहित और रिया की वक्तबेवक्त काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. मुखबिरों से जानकारी मिली कि रोहित सहारनपुर के गांव मुंडीखेड़ी के रहने वाले रतन का बेटा है.

काफी पहले से वह अपने नाना के घर गांव मानकपुर आदमपुर में रहता है. रोहित अपराधी किस्म का है तथा उस के खिलाफ सहारनपुर व मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों में चोरी, जालसाजी व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हैं.यह जानकारी थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने सीओ अभय प्रताप सिंह को दी, तो उन्होंने तत्काल रिया व रोहित को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तब रविंद्र कुमार ने सूरज को मिलने के लिए थाने में आने को कहा, लेकिन सूरज थाने नहीं आया.

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इस के बाद 16 दिसंबर, 2020 को थानाप्रभारी रविंद्र कुमार, एसआई संजय नेगी, मोहन कठैत, कांस्टेबल नूर मलिक व मोहित ने रोहित को उस के घर के पास से गिरफ्तार कर लिया.थाने ला कर उस से महेंद्र व प्रीति की रहस्मय मौतों के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान रोहित अनभिज्ञता जताता रहा. अगले दिन पुलिस ने रिया को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब रोहित व रिया को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों थरथर कांपने लगे. इस के बाद रिया व रोहित ने महेंद्र व प्रीति की मौत के मामले में अपनी अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

रिया ने पुलिस को बताया कि काफी पहले से वह नशे की आदी थी और खुद पर प्रेतात्मा आने का नाटक करती रहती थी. पति सूरज उस की और कम ध्यान देता था. उस ने बताया कि वह अकसर पड़ोस में रहने वाले रोहित से बातें करती थी. धीरेधीरे उन दोनों में प्यार हो गया था. कुछ दिनों बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

रिया ने बताया कि वह और रोहित नशे की गोलियों का सेवन करते थे. जिस दिन मेरा पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री जाता था तो वह अपनी सास व ससुर को रात के खाने में नींद की गोलियां डाल कर खिला देती थी. जब वे दोनों नशे में सो जाते थे तो फोन कर के रोहित को अपने घर बुला लेती थी.लेकिन एक दिन रात को ददिया ससुर महेंद्र ने रोहित को घर से निकलते हुए देख लिया था. अपनी पोल खुलने के डर से वह घबरा गई और इस के बाद उस ने व रोहित ने ददिया ससुर महेंद्र की हत्या की योजना बनाई.

2 नवंबर, 2020 की रात को योजना के अनुसार, उस ने अपनी सास व ददिया ससुर महेंद्र के खाने में नींद की गोलियां मिला कर उन्हें खाना खिला दीं. उस दिन उस का पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री गया हुआ था. उस रात रोहित उस के घर आ गया था. इस के बाद उन दोनों ने महेंद्र की तकिए से मुंह दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने महेंद्र के शव को चारपाई पर लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल दी थी, जिस से परिजन उसे सामान्य मौत समझें और किसी को शक न हो. अगले दिन महेंद्र की मौत को सूरज और उस के घर वालों ने सामान्य मौत समझते हुए उन का अंतिम संस्कार कर दिया था.दादा महेंद्र की मौत के बाद सूरज ने फैक्ट्री जाना छोड़ दिया था और घर पर ही रहने लगा था. दादा की मौत के बाद सूरज को लगता था कि दादा महेंद्र एकदम ठीकठाक थे, कोई बीमारी भी नहीं थी तो अचानक उन की मृत्यु कैसे हो गई. वह दादा को बहुत चाहता था, इसलिए उन की मौत के बाद उसे बहुत दुख हुआ.

सूरज की एक बहन थी प्रीति, जो भटौल गांव में रहने वाले मामा के घर रह कर पढ़ाई कर रही थी. वह बीए अंतिम वर्ष में थी. सूरज ने उसे मामा के घर से बुला लिया.ददिया ससुर की हत्या के आरोप से रिया साफ बच गई थी क्योंकि घर वालों ने उन की मौत को स्वाभाविक मान लिया था, इसलिए रिया की हिम्मत बढ़ गई थी. प्रेमी रोहित से उस का मिलना पहले की तरह जारी रहा.

वह घर के सभी लोगों को खाने में नींद की गोलियां देने के बाद प्रेमी को अपने घर बुला लेती. लेकिन एक रात प्रीति की नींद खुल गई तो उस ने भाभी के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुनी.प्रीति को शक हुआ कि जब सूरज भैया रात की ड्यूटी पर गए हैं तो भाभी के कमरे में मर्द कौन है. उस ने खिड़की से झांका तो कमरे में उस की भाभी रोहित के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

इसी बीच रिया को आहट हुई तो वह फटाफट कपड़े पहन कर दरवाजे के बाहर आई तो उस ने प्रीति को वहां से अपने कमरे की तरफ जाते देखा. इस से रिया को शक हो गया कि प्रीति ने उसे रोहित के साथ देख लिया है.यह बात उस ने प्रेमी रोहित को बताई तो रोहित ने दादा की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की सलाह दी. रिया इस के लिए तैयार हो गई. इस के बाद रिया ने दादा महेंद्र की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की योजना बनाई ताकि प्रेमी से उस के मिलन में कोई बाधा न आए.

सूरज रात की ड्यूटी पर गया था. रिया ने मौका देख कर योजना के मुताबिक 5 दिसंबर, 2020 को अपनी सास व प्रीति के खाने में नींद की गोलियां मिला कर दे दीं. रात को जब प्रीति को नींद आ गई तो रिया ने रोहित के साथ मिल कर तकिए से प्रीति का दम घोट हत्या कर दी. इस के बाद रोहित चला गया. फिर रिया ने स्वयं पर प्रेतात्मा आने का नाटक करते हुए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. पति के घर आने पर उस ने कहा कि प्रीति को कुछ हो गया है.

रिया ने पुलिस को आगे बताया कि वह रोहित से अपने अवैध संबंधों को छिपाने के लिए खुद पर प्रेतात्मा के आने का नाटक करती रही थी. वह अपने पति के साथ खुश नहीं थी. उसे जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह सूरज से नहीं बल्कि रोहित से पैसे लेती थी. सूरज के साथ उस का वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं रहा.रिया और उस के प्रेमी रोहित से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिया की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल शेष बची नींद की गोलियां तथा गला दबाने में प्रयुक्त तकिया बरामद कर लिया.

पुलिस ने सूरज की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर लिया. एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने अगले दिन कोतवाली रुड़की में आयोजित प्रैसवार्ता के दौरान महेंद्र व प्रीति की रहस्यमय मौतों का खुलासा किया.

आरोपी रिया व रोहित को मीडिया के सामने पेश किया गया. इस के बाद पुलिस ने रोहित व रिया को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कहते हैं कि गुनाह छिपाए नहीं छिपता. एक न एक दिन सामने आ ही जाता है. ऐसा ही कुछ रिया व रोहित के मामले में भी देखने को मिला. जब रात को महेंद्र ने रिया को रोहित के साथ देखा था तो दोनों ने पहले उन्हें रास्ते से हटा दिया तथा इस के बाद जब उन्हें रंगरलियां मनाते हुए प्रीति ने देखा, तो उन्होंने प्रीति को भी सुनियोजित ढंग से मार डाला था.

सूरज अपने दादा व बहन की मौत के कारण दुखी था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था, जबकि रिया भविष्य में अपने पति सूरज को भी मारने का तानाबाना बुन रही थी. यदि सूरज रिया की गतिविधियों पर शक होने के पर पुलिस के पास न जाता तो न ही ये केस खुलता और रिया व रोहित का अगला शिकार सूरज खुद बन जाता.

हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस ने महेंद्र व प्रीति की मौत से परदा उठाने वाली टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

कीमत संस्कारों की-भाग 1: हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

‘सौरी डैड, मुझे पता है कि आप ने मुझे एक घंटा पहले बुलाया था, पर उस समय मुझे अपनी महिला मित्र को फोन करना था. चूंकि उस के पास यही समय ऐसा होता है कि मैं उस से बात कर सकता हूं इसलिए मैं आप के बुलावे को टाल गया था. अब बताइए कि आप किस काम के लिए मुझे बुला रहे थे.’’

‘‘कोई खास नहीं,’’ दीनप्रभु ने कहा, ‘‘दवा लेने के लिए मुझे पानी चाहिए था. तुम आए नहीं तो मैं ने दवा की गोली बगैर पानी के ही निगल ली.’’

‘‘डैड, आप ने यह बड़ा ही अच्छा काम किया. वैसे भी इनसान को दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. मैं कल से पानी का पूरा जार ही आप के पास रख दिया करूंगा.’’

हैरीसन के जाने के बाद दीनप्रभु सोचने लगे कि इनसान के जीवन की वास्तविक परिभाषा क्या है? और वह किस के लिए बनाया गया है. क्या वह बनाने वाले के हाथ का एक ऐसा खिलौना है जिस को बनाबना कर वह बिगाड़ता और तोड़ता रहता है और अपना मनोरंजन करता है.

इनसान केवल अपने लिए जीता है तो उस को ऐसा कौन सा सुख मिल जाता है, जिस की व्याख्या नहीं की जा सकती और यदि दूसरों के लिए जीता है तो उस के इस समर्पित जीवन की अवहेलना क्यों कर दी जाती है. यह कितना कठोर सच है

कि इनसान अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करता है. वह दूसरों को रास्ता दिखाता है मगर जब वह खुद ही अंधकार का शिकार होने लगता है तो उसे एहसास होता है कि प्रवचनों में सुनी बातें सरासर झूठ हैं.

हैरीसन घर से जा चुका था. कमरे में एक भरपूर सन्नाटा पसरा पड़ा था. दीनप्रभु के लिए यह स्थिति अब कोई नई बात नहीं थी. ऐसा वह पिछले कई सालों से अपने परिवार में देखते आ रहे थे मगर दुख केवल इसी बात का कि जो कुछ देखने की कल्पना कर के वह विदेश में आ बसे थे उस के स्थान पर वह कुछ और ही देखने को मजबूर हो गए. भरेपूरे परिवार में पत्नी और बच्चों के रहते हुए भी वह अकेला जीवन जी रहे थे.

अपने मातापिता, बहनभाइयों के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया. सब को रास्ता दिखा कर उन के घरों को आबाद किया और जब आज उन की खुद की बारी आई तो उन की डगमगाती जीवन नैया की पतवार को संभालने वाला कोई नजर नहीं आता था. सोचतेसोचते दीनप्रभु को अपने अतीत के दिन याद आने लगे.

भारत में वह दिल्ली के सदर बाजार के निवासी थे. पिताजी स्कृल में प्रधानाचार्य थे. वह अपने 7 भाईबहनों में सब से बड़े थे. परिवार की आर्थिक स्थिति संभालने का जरिया नौकरी के अलावा सदर बाजार की वह दुकान थी जिस पर लोहा, सीमेंट आदि सामान बेचा जाता था. इस दुकान को उन के पिता, वह और उन के दूसरे भाई बारीबारी से बैठ कर चलाया करते थे.

संयुक्त परिवार था तो सबकुछ सामान्य और ठीक चल रहा था मगर जब भाइयों की पत्नियां घर में आईं और बंटवारा हुआ तो सब से पहले दुकान के हिस्से हुए, फिर घर बांटा गया और फिर बाद में सब अपनेअपने किनारे होने लगे.

इस बंटवारे का प्रभाव ऐसा पड़ा कि बंटी हुई दुकान में भी घाटा होने लगा. एकएक कर दुकानें बंद हो गईं. परिवार में टूटन और बिखराव के साथ अभावों के दिन दिखाई देने लगे तो दीनप्रभु के मातापिता ने भी अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर लीं. अभी उन के मातापिता के मरने का दुख समाप्त भी नहीं हुआ था कि एक दिन उन की पत्नी अचानक दिल के दौरे से निसंतान ही चल बसीं. दीनप्रभु अकेले रह गए. किसी प्रकार स्वयं को समझाया और जीवन के संघर्षों के लिए खुद को तैयार किया.

दीनप्रभु के सामने अब अपनी दोनों सब से छोटी बहनों की पढ़ाई और फिर उन की शादियों का उत्तरदायित्व आ गया. उन्हें यह भी पता था कि उन के भाई इस लायक नहीं कि वे कुछ भी आर्थिक सहायता कर सकें. इन्हीं दिनों दीनप्रभु को स्कूल की तरफ से अमेरिका आने का अवसर मिला तो वह यहां चले आए.

अमेरिका में रहते हुए ही दीनप्रभु ने यह सोच लिया कि अगर वह कुछ दिन और इस देश में रह गए तो इतना धन कमा लेंगे जिस से बहनों की न केवल शादी कर सकेंगे बल्कि अपने परिवार की गरीबी भी दूर करने में सफल हो जाएंगे.

अमेरिका में बसने का केवल एक ही सरल उपाय था कि वह यहीं की किसी स्त्री से विवाह करें और फिर यह शार्र्टकट रास्ता उन्हें सब से आसान और बेहतर लगा. अपनी सोच को अंजाम देने के लिए दीनप्रभु अमेरिकन लड़कियों के वैवाहिक विज्ञापन देखने  लगे. इत्तफाक से उन की बात एक लड़की के साथ बन गई. वह थी तो  तलाकशुदा पर उम्र में दीनप्रभु के बराबर ही थी. इस शादी का एक कारण यह भी था कि लड़की के परिवार वालों की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का विवाह किसी भारतीय युवक से करना चाहते थे, क्योंकि उन की धारणा थी कि पारिवारिक जीवन के लिए भारतीय संस्कृति और संस्कारों में पला हुआ युवक अधिक विश्वासी और अपनी पत्नी के प्रति ईमानदार होता है.

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एक दिन दीनप्रभु का विवाह हो गया और तब उन की दूसरी पत्नी लौली उन के जीवन में आ गई. विवाह के बाद शुरू के दिन तो दोनों को एकदूसरे को समझने में ही गुजर गए. यद्यपि लौली उन की पत्नी थी मगर हरेक बात में सदा ही उन से आगे रहा करती, क्योेंकि वह अमेरिकी जीवन की अभ्यस्त हो चुकी थी. दीनप्रभु वहां कुछ सालों से रह जरूर रहे थे पर वहां के माहौल से वह इतने अनुभवी नहीं थे कि अपनेआप को वहां की जीवनशैली का अभ्यस्त बना लेते. उन की दशा यह थी कि जब भी कोई फोन आता था तो केवल अंगरेजी की समस्या के चलते वे उसे उठाते हुए भी डरते थे. शायद उन की पत्नी लौली इस कमजोरी को समझती थी, इसी कारण वह हर बात में उन से आगे रहा करती थी.

कीमत संस्कारों की-भाग 3 : हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु को शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि नए समाज का जो यह नया धरातल है उस पर उस के जैसा सदाचारी, सरल स्वभाव का इनसान एक पल को भी खड़ा नहीं हो सकता है. जिंदगी के सुव्यवस्थित आयाम यदि बाहरी दबाव के कारण बदलने लगें तो इनसान एक बार को सहन कर लेता है लेकिन जब अपने ही लोग खुद के बनाए हुए रहनसहन के दायरों को तोड़ने लगें तो जीवन में एक झटका तो लगता ही है साथ ही इनसान अपनी विवशता के लिए हाथ भी मलने को मजबूर हो जाता है.

दीनप्रभु जानते थे कि अपने द्वारा बनाए उस माहौल में रहने को वह मजबूर हैं जिस की एक भी बात उन को रास नहीं आती. वह यह भी समझते थे कि यदि उन्होंने कोई भी कड़ा कदम उठाने की चेष्टा की तो जो घर बनाया है उसे बरबादियों का ढांचा बनते देर भी नहीं लगेगी. जिस देश और समाज में वह रह रहे हैं उस की मान्यताओं को स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा. जिस देश का चलन यह कहे कि ‘ये मेरा अपना जीवन है, आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं’ और ‘अब मैं 21 वर्ष का बालिग हो चुका हूं,’ वहां पर बच्चों को जन्म देने वाले मातापिता का नाम केवल इस कारण चलता है क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाले कोई न कोई मातापिता ही तो होते हैं.

दिनरात की चिंता तथा काम की अधिकता के चलते एक दिन दीनप्रभु अचानक ही अपने रेस्टोरेंट में काम करते हुए गिर पड़े. अस्पताल पहुंचे और जांच हुई तो पता चला कि वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी हो चुके हैं. हैरीसन और पौलीन उन्हें देखने तो पहुंचे मगर बजाय इस के कि दोनों उन का मनोबल बढ़ाते, वे खुद उन्हीं को दोषी ठहराने लगे. दोनों ही कहने लगे कि अपना ध्यान नहीं रखते हैं. इतना सारा काम फैला रखा है, कौन इस को संभालेगा? अपनी औलाद के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उन का मन पहले से और भी दुखी हो गया. इस के अलावा उन के वे भाई जिन के बारे में उन्होंने सोचा था कि साथ रहेंगे तो मुसीबत में काम आएंगे, जब उन्होंने सुना तो कोई भी तत्काल देखने नहीं आया. हां, सब ने केवल एक बार फोन कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी.

अस्पताल में 2 दिन तक रहने के बाद जब वह घर आए तो डाक्टरों ने उन्हें पूरी तरह से आराम करने की हिदायत दी थी और समय पर दवा लेने तथा हर रोज अपना ब्लड प्रेशर व ब्लड ग्लूकोज को जांचते रहने को कहा था. लेकिन घर पर अकेले पडे़पड़े तो वह अपने को और भी बीमार महसूस कर रहे थे. बच्चों से जब कभी सुबह या शाम उन का सामना हो जाता तो वह केवल ‘हाय डैड’ कह कर अपना फर्ज पूरा कर लेते थे. पत्नी हर दिन उन के पलंग के पास पानी का जग भर कर रख जाती थी पर किसी दिन छुट्टी कर के पति के साथ बैठने का खयाल उस के मन में नहीं आया.

काम करते समय अचानक गिर जाने के कारण उन की कोई हड्डी तो नहीं टूटी थी मगर उठने और बैठने में कमर में उन्हें बेहद तकलीफ होती थी. तकलीफ इतनी ज्यादा थी कि किसी के सहारे से ही वह उठ और बैठ सकते थे. आज जब उन्होंने देखा कि उन का अपना बेटा हैरीसन घर में है तो यह सोच कर आवाज दे दी थी कि उस से पानी ले कर दवा भी खा लेंगे और बाकी का पानी भर कर वह उन के पास भी रख देगा. लेकिन आ कर उस ने जो कुछ कहा उसे सुन कर उन के दिल को भारी धक्का लगा था, साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन की अहमियत, आजाद खयाल में पलने वाले उन के बच्चों की व्यक्तिगत इच्छाओं के सामने बहुत हलकी है जिन्हें पूरा सुख देने के लिए उन्होंने अपनी हड्डीपसली एक कर दी थी.

सोचते हुए दीनप्रभु को काफी देर हो गई थी. अतीत के विचारोें से हट कर एक बार पूरे घर का जायजा लिया. अपना ही घर देख कर आज उन्हें लगा कि विक्टोरियन हाउस उन की दशा को देख कर भांयभांय कर रहा है. घर में सुख और संपदा की हर वस्तु मौजूद थी मगर यह कैसी मजबूरी उन के सामने थी कि दूसरों के हित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले दीनप्रभु को आज एक गिलास पानी देने वाला कोई नहीं था.

काफी सोचविचार के बाद दीनप्रभु ने फैसला लिया कि अब समय आ गया है कि वह सब से खुल कर बात करें यदि बच्चों की मनोधारणा उन के हित में निकली तो ठीक है अन्यथा वह अपना सामान समेट कर भारत वापस चले जाएंगे और कहीं एकांत में शांति से रहते हुए समाजसेवा कर अपना बाकी का जीवन गुजार देंगे.

शाम हुई. सब लोग घर मेें आ गए. रोज की तरह सब लोग एक साथ खाने की मेज पर बैठे तो सब के साथ खाना खाते हुए दीनप्रभु ने अपनी बात शुरू की और बोले, ‘‘बच्चो, मैं बहुत दिनों से तुम लोगों से कुछ कहना चाह रहा था पर परिस्थितियां अनुकूल नहीं दिखती थीं. आज मुझे लगा कि मैं अपनी बात कह ही दूं.’’

‘‘मैं जब अमेरिका आया था तो अपने साथ बहुत सी जिम्मेदारियां ले कर आया था, जिन्हें पूरा करना मेरा कर्तव्य था और मैं ने वह सब कर भी लिया. यहां रहते हुए मैं ने तुम को सभी तरह की सुविधा और सुखी जीवन देने की पूरी कोशिश की. अमेरिका के सब से अच्छे कालिजों में तुम्हें शिक्षा दिलवाई. तुम लोगों के लिए रेस्टोरेंट और गैस स्टेशन खोल रखे हैं. अब यह तुम्हारी मरजी है कि तुम इन को संभाल कर रखो या फिर नष्ट कर दो.

‘‘मुझे तुम से क्या चाहिए, केवल एक जोड़ा कुरतापाजामा और दो समय की दालरोटी. तुम पर अपना बोझ डालना नहीं चाहता हूं, फिर भी तुम मेरी अपनी संतान हो इसलिए तुम से मैं पूछना चाहता हूं कि मैं ने तुम्हारे लिए इतना सबकुछ किया है बदले में तुम मेरे व्यक्तिगत जीवन के लिए क्या करना चाहते हो?’’

दीनप्रभु की बातें सुन कर उन का बेटा हैरीसन गंभीर हो कर बोला, ‘‘डैड, मैं आप के लिए अमेरिका का सब से आलीशान और महंगा नर्सिंग होम तलाश करूंगा.’’

‘‘और मैं आप से कम से कम 15 दिन में एक बार मिलने जरूर ही आया करूंगी,’’ पौलीन ने बड़े गर्व से कहा.

अपने बच्चों की बातों को सुन कर दीनप्रभु कुछ भी नहीं बोल सके क्योंकि वह जीवन के इस तथ्य को अच्छी तरह समझ चुके थे कि विदेश में आ कर अपनी सुखसुविधा के लिए वह जो कुछ चाहते थे वह तो उन्हें मिल चुका था लेकिन इसे पाने के लिए उन्हें अपने उन भारतीय संस्कारों की कुरबानी भी देनी पड़ी, जिस के तहत एक भाई अपनी बहन के लिए, मां अपने बच्चों और परिवार के लिए, बेटा अपने पिता के लिए और पत्नी अपने पति के लिए जीती है. उन के द्वारा बसाई हुई सुख की नगरी में आज खुद उन का वजन कितना हलका हो चुका है, सोच कर वे उफ् भी नहीं कर सके.

शरोवन कुमार            

कीमत संस्कारों की-भाग 2: हैरीसन परिवार होने के बावजूद भी अकेले क्यों थे?

दीनप्रभु शुरू से ही सदाचारी थे. इसलिए अपनी विदेशी पत्नी के साथ निभा भी गए लेकिन विवाह के बाद उन्हें यह जान कर दुख हुआ था कि उन की पत्नी के परिवार के लोग अपने को सनातन धर्म का अनुयायी बताते थे पर उन का सारा चलन ईसाइयत की पृष्ठभूमि लिए हुए था. अपने सभी काम वे लोग अमेरिकियों की तरह ही करते थे. उन के लिए दीवाली, होली, क्रिसमस और ईस्टर में कोई भी फर्क नहीं दिखाई देता था. लौली के परिवार वाले तो इस कदर विदेशी रहनसहन में रच गए थे कि यदि कभीकभार कोई एक भी शनिवार बगैर पार्टी के निकल जाता था तो उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे जीवन का कोई बहुत ही विशेष काम वह करने से भूल गए हैं.

दीनप्रभु अभावों के जीवन के भुक्तभोगी थे इसलिए वह हाथ लगे इस अवसर को खोना नहीं चाहते थे और सबकुछ जानते और देखते हुए भी वह अपने परिवार के साथ तालमेल बनाए रहे. अमेरिका में आ कर उन्होेंने आगे और पढ़ाई की. फिर बाकायदा विदेश में पढ़ाने का लाइसेंस लिया और फिर वह बच्चों के स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए.

परिश्रम से दीनप्रभु ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अपनी नौकरी से उन्होंने थोड़ा बहुत पैसा जमा किया और फिर एक दिन उस पैसे से एक छोटा सा ‘फ्रैंचाइज’ रेस्टोरेंट खोल लिया. फिर उन की मेहनत और लगन रंग लाई. रेस्टोरेंट चल निकला और वह थोड़े समय में ही सुखसंपदा से भर गए. पैसा आया तो दीनप्रभु ने दूसरे धंधे भी खोल लिए और फिर एक दिन उन्होंने प्रयास कर के अमेरिकी नागरिकता भी ले ली. फिर तो उन्होंने एकएक कर अपने भाईबहनों के परिवार को भी अमेरिका बुला लिया. अपने परिवार के लोगों को अमेरिका बुलाने से पहले दीनप्रभु ने सोचा था कि जब कभी विदेश में रहते हुए उन्हें अकेलापन महसूस होगा तो वे 2-1 दिन के लिए अपने भाइयों के घर चले जाया करेंगे.

अब तक दीनप्रभु 3 रेस्टोरेंट और 2 गैस स्टेशन के मालिक बन चुके थे. रेस्टोरेंट को वह और उन की पत्नी संभालते थे और दोनों गैस स्टेशनों का भार उन्होंने अपने दोनों बच्चों पर डाल रखा था. खानपान में उन के यहां पहले ही कोई रीतिरिवाज नहीं था और न ही अब है लेकिन फिर भी दीनप्रभु किसी न किसी तरह अपने भारतीय संस्कारों को बचाए रखने की कोशिश कर रहे थे. जबकि उन की पत्नी बड़े मजे से हर तरह का अमेरिकी शाकाहारी व मांसाहारी भोजन खाती थी. पार्टियों में वह धड़ल्ले से शराब पीती और दूसरे युवकों के साथ डांस भी कर लेती थी.

दीनप्रभु जब भी ऐसा देखते तो यही सोच कर तसल्ली कर लेते कि इनसान को दोनोें हाथों में लड्डू कभी भी नहीं मिला करते हैं. यदि उन को विदेशी जीवन की अभ्यस्त पत्नी मिली है तो उस के साथ उन्हें वह सुख और सम्पन्नता भी प्राप्त हुई है कि जिस के बारे में वह प्राय: ही सोचा करते थे.

विवाह के 25 साल  पलक झपकते गुजर गए. इस बीच संतान के नाम पर उन के यहां एक लड़का और एक लड़की भी आ चुके थे. उन्हें याद है कि जब लौली ने पहली संतान को जन्म दिया था तो उन्होंने कितने उल्लास के साथ उस का नाम हरिशंकर रखा था मगर लौली ने बाद में उस का नाम हरिशंकर से हैरीसन करवा दिया. ऐसा ही दूसरी संतान लड़की के साथ भी हुआ. उन्होंने लड़की का भारतीय नाम पल्लवी रखा था मगर लौली ने पल्लवी को पौलीन बना दिया. लौली का कहना था कि अमेरिकन को हिंदी नाम लेने में कठिनाई आती है. उस समय लौली ने यह भी बताया था कि उस ने भी अपना लीला नाम बदल कर लौली किया था.

लौली की सोच है कि जब जीवन विदेशी संस्कृति में रह कर ही गुजारना है तो वह कहां तक अपने देश की सामाजिक मान्यताओं को बचा कर रख सकती है और दीनप्रभु अपनी पत्नी की इस सोच से सहमत नहीं थे. उन का मानना था कि ठीक है विदेश में रहते हुए खानपान और रहनसहन के हिसाब से हर प्रवासी को समझौता करना पड़ता है लेकिन इन दोनों बातों में अपने देश की उस संस्कृति और संस्कारों की बलि नहीं चढ़ती है कि जिस में एक छोटा भाई अपनी बड़ी बहन को ‘दीदी’, बड़े भाई को ‘भैया’ और अपने से बड़ों को ‘आप’ कह कर बुलाता है. यहां विदेश में ऐसा कोई भी रिवाज या सम्मान नाम की वस्तु नहीं है. यहां चाहे कोई दूसरों से छोटा हो या बड़ा, हर कोई एकदूसरे का नाम ले कर ही बात करता है और जब ऐसा है तो फिर एकदूसरे के सम्मान की तो बात ही नहीं रह सकती है.

एक दिन पौलीन अपने किसी अमेरिकन मित्र को ले कर घर आई और अपने कमरे को बंद कर के उस के साथ घंटों बैठी बातें करती रही तो भारतीय संस्कारों में भीगे दीनप्रभु का मन भीग गया. वह यह सब अपनी आंखों से नहीं देख सके. बेचैनी बढ़ी तो उन्होंने पौलीन से आखिर पूछ ही लिया.

‘कौन है यह लड़का?’

‘डैड, यह मेरा बौय फ्रेंड है,’ पौलीन ने बिना किसी झिझक के उत्तर दिया.

दीनप्रभु जैसे सकते में आ गए. वह कुछ पलों तक गंभीर बने रहे फिर बोले, ‘तुम इस से शादी करोगी?’

उन की इस बात पर पौलीन अपने माथे पर ढेर सारे बल डालती हुई बोली, ‘आई एम नाट श्योर.’ (मैं ठीक से नहीं कह सकती.)

पल्लवी ने कहा तो दीनप्रभु और भी अधिक आश्चर्य में पड़ गए. उन्हें यह सोचते देर नहीं लगी कि उन की लड़की का इस लड़के से यह कैसा रिश्ता है जिसे मित्रता भी नहीं कह सकते हैं और विवाह से पहले होने वाले 2 प्रेमियों के प्रेम की संज्ञा भी उसे नहीं दी जा सकती है. पौलीन अकसर इस लड़के के साथ घूमतीफिरती है. जहां चाहती है, बेधड़क उस के साथ चली जाती है. कई बार रात में भी घर नहीं आती है, उस के बावजूद वह यह नहीं जानती कि इस लड़के से विवाह भी करेगी या नहीं.

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काफी देर तक गंभीर बने रहने के बाद दीनप्रभु ने पौलीन से कहा, ‘क्या तुम बता सकती हो कि बौय फ्रेंड और पति में क्या अंतर होता है?’

‘कोई विशेष नहीं डैड. दोनों ही एकजैसे होते हैं. अंतर है तो केवल इतना कि बौय फ्रेंड की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है जबकि पति की बाकायदा अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति एक ऐसा उत्तरदायित्व होता है जिसे उसे पूरा करना ही होता है.’

अतीत की यादें दिमाग में तभी साकार रूप लेती हैं जब कुछ मिलतीजुलती घटनाएं सामने घटित हों. विवाह के बारे में बेटी का नजरिया जान कर उन्हें अपनी बहनों की शादी की याद आ गई. दीनप्रभु ने अपनी मर्जी से कभी अपनी दोनों छोटी बहनों के लिए वर चुने थे और दोनों में से किसी ने भी चूं तक न की थी. मगर आज घर में उन की स्थिति यह है कि अपनी ही बेटी के जीवनसाथी के चुनाव के बारे में जबान तक नहीं खोल सकते हैं.

बिग बॉस 14: राखी सावंत अपनी मां से मिलकर हुई इमोशनल ,रोते हुए कि पति की शिकायत

बिग बॉस 14 धीरे- धीरे ही सही लेकिन अपनी रफ्तार में आगे आ गया है. जिससे इसकी टीआरपी भी बढ़ गई है. फैस अब बिग बॉस को पहले से ज्यादा देखने लगे हैं. राखी सावंत को इमोशनल देखकर फैंस खुद को रोक नहीं पाएं.

दरअसल, मेकर्स ने इस शो को खास बनाने के लिए काफी ज्यादा मेहनत किया है. हाल ही में शो का प्रोमो रिलीज हुआ है जिसमें दिखाया गया है कि शो के अपकमिंग एपिसोड में राखी सावंत, एजाज खान औऱ जैस्मिन भसीन के घर वालों से मिलने वाले हैं.

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शो के कंटेस्टेंट अपने घर वालों को देखकर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे, राखी सावंत ने अपनी मां से वीडियो कॉल के जरिए बात किया जिसके बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई. उनकी मां ने उन्हें बताया कि घर का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती है. इसे जानने के बाद राखी सावंत काफी ज्यादा इमोशनल हो गई, और वीडियो कॉल पर रोना शुरू कर दिया.

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वहीं राखी सावंत रोते हुए अपनी मां से कह रही है कि वह उनके पति रितेश को नेशनल टीवी पर आने के लिए राजी कर लें. राखी सावंत को रोता हुआ देखकर बाकी घर वाले भी काफी ज्यादा इमोशनल हो गए.

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खबर है कि राखी सावंत जल्द कैप्टैंसी का टास्क संभालते हुए नजर आएंगी, राखी सावंत सोनाली फोगाट को मात देकर घर की कैप्टन बन जाएंगी.

पिछले हफ्ते जैस्मिन भीन और रुबीना दिलाइक ने राखी सावंत को अपना निशाना बनाया , तभी सलमान खान ने वीकेंड के वार में जैस्मिन और रुबीना की जमकर क्लास लगाई.

अमिताभ बच्चन की आवाज में कोरोना कॉलर ट्यून हटाने के लिए डाली गई याचिका

कोरोना काल में लोग कोरोना से तो परेशान हैं ही साथ ही अपने मोबाइल के कॉलर ट्यून से भी परेशान हो गए है. जब भी आप अपने किसी करीबी को कॉल करते हैं तो सबसे पहले आपको कुछ देर तक “नमस्कार हमारा देश और पूरा विश्व आज कोविड 19 की चुनौती का सामना कर रहा है कोविड 19 अभी खत्म नहीं हुआ है “इस लंबे ट्यून से लोग परेशान हो गए हैं.

लोग नए साल में इस कॉलर ट्यून से छुटकारा पाना चाहते हैं. लेकिन अब ज्यादा परेशान होने कि जरुरत नहीं है सभी के लिए एक खुशखबरी है. जिसे जानकर आप भी खुश हो जाएंगे. दिल्ली हाई कोर्ट में इस कॉलर ट्यून को हटाने के लिए एक जनहित याचिका लगाई गई है.

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आगर आपको मजाक लग रहा है तो यह मजाक नहीं है यह सच है कि एक राकेश नाम के शख्स ने इसे हटाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किया है. जिसमें उसने लिखा है कि अमिताभ बच्चन भारत सरकार से अपनी इस आवाज के लिए पैसा ले रहे हैं. इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है.

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आगे याचिका में उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कई ऐसे लोग है जो वॉरियर्स बनकर इस कोरोना काल में नजर आएं हैं लेकिन उनकी किसी भी तरह कि कोई मदद सरकार के तरफ से नहीं कि जा रही है.

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वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह ट्यून कुछ लोगों को हमेशा याद दिलाती है कि कोरोना अभी भी जारी है.अगर अमिताभ बच्चन की वर्कफ्रंट कि बात करें तो अमिताभ बच्चन इन दिनों केबीसी 12 में बिजी है. साथ ही वह कई और भी नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.

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