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अस्पताल आपके परिजन के ‘शव’ को बंधक बना ले तो क्या करें ?

लगभग दस दिन पहले रांची (झारखंड) के एक प्राइवेट अस्पताल में एक 53-वर्षीय रोगी के पार्थिव शरीर को दो घंटे से भी अधिक रोक कर रखा गया ; क्योंकि उसके परिजनों ने इलाज के बिल की आंशिक अदायगी नहीं की थी | मुंबई (महाराष्ट्र) के पवई स्थित एक अस्पताल ने एक 62-वर्षीय रिक्शा चालक के पार्थिव शरीर को रिलीज़ करने से इंकार कर दिया था ; क्योंकि बिल का पेमेंट नहीं हुआ था | इन दोनों ही मामलों में स्थानीय नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा तब जाकर शवों को उनसे संबंधित लोगों को सौंपा जा सका |

तीन अगस्त को बंग्लुरु (कर्नाटक) से एक कोविड पीड़ित की बेटी ने सोशल मीडिया पर वीडियो मेसेज पोस्ट किया कि बिल अदा न कर पाने की वजह से एक अस्पताल ने उनके पिता के शव को दो दिन तक अपने ‘कब्ज़े’ में रखा | इस मामले में येदयुरप्पा सरकार के एक मंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा | इस प्रकार की सत्य (लेकिन कड़वी व चिंताजनक) खबरें निश्चितरूप से आपने अपने शहर में भी सुनी होंगी क्योंकि देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक यही हाल है कि प्राइवेट अस्पताल इलाज के बिल (जो अक्सर बहुत ज्यादा होता है) कि अदायगी न होने पर रोगी को बंधक बना लेते हैं या पार्थिव शरीर को रिलीज़ नहीं करते हैं और हर मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संबंधित परिजनों की पहुंच स्थानीय नेताओं या मंत्रियों तक नहीं होती है,जिससे उनकी परेशानियों का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है .

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गौरतलब है कि यह सब तब हो रहा है जब अनेक हाईकोर्ट्स पूर्णत: स्पष्ट कर चुके हैं कि बिल अदा न कर पाने की वजह से शव को ‘बंधक’ बनाना कानूनन अवैध है | बॉम्बे हाईकोर्ट की अलग अलग खंडपीठों ने पहले जून 2014 में और फिर फरवरी 2018 में इस प्रकार की हरकत को अवैध घोषित किया है | अप्रैल 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही आदेश दिया था और पिछले सप्ताह यानी अक्टूबर 2020 में केरल हाईकोर्ट ने भी इसे दोहराया है | लेकिन हाईकोर्ट्स के आदेशों का खुला उल्लंघन करते हुए यह कुप्रथा बेरोक-टोक जारी है| क्यों? दरअसल, समस्या यह है कि न तो केंद्र ने और न ही अधिकतर राज्यों ने इस समस्या के समाधान के लिए कोई उचित तरीका निर्धारित नहीं किया है|

इससे अक्सर उन लोगों को भी परेशानी हो जाती है जिन्होंने स्वास्थ्य बीमा कवर लिया होता है | मेरे एक दोस्त ने बताया, “मेरी मां के शव को एक अस्पताल ने लगभग 48 घंटे तक बंधक बनाये रखा क्योंकि बीमा कंपनी ने यह कहते हुए बिल अदा करने से मना कर दिया था कि अत्याधिक ओवरचार्जिंग की गई है | मेरी मां के स्वास्थ बीमा में 5 लाख रूपये का बेस कवर और 8 लाख रूपये का टॉपअप था | अंतिम बिल 5.39 लाख रूपये का था,इसके बावजूद हमें ज़बरदस्त मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा |” बहरहाल, जिन राज्यों में इस संदर्भ में सरकारों ने उचित कदम उठाये हैं, उनमें स्थिति काफी बेहतर है | मसलन, पश्चिम बंगाल में वेस्ट बंगाल क्लिनिकल एस्टाब्लिश्मेंट रेगुलेटरी कमीशन ने उन अस्पतालों पर जुर्माना किया है जो रोगियों/लाशों को ‘बंधक’ बना लेते हैं | यहां आवश्यकता पड़ने पर सरकार ने स्वत: ही कुछ मामलों में हस्तक्षेप किया है .

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इसी तरह तमिलनाडु में डायरेक्टर ऑफ़ मेडिकल सर्विसेज ने अस्पतालों को मजबूर किया है कि लिया गया अधिक पैसा वापस किया जाये; कुछ अस्पतालों का लाइसेंस भी कैंसिल किया गया है क्योंकि उन्होंने कोविड रोगियों का इलाज करने से मना कर दिया था या उनसे अधिक पैसे लिए थे | देखना यह है कि तमिलनाडु में यह व्यवस्था महामारी के दौरान ही है या बाद में भी रहेगी और इसमें गैर-कोविड रोगियों को भी शामिल किया जायेगा या नहीं | इसमें शक नहीं है कि कानूनन किसी भी अस्पताल को यह अधिकार नहीं है कि बिल की अदायगी न होने पर किसी रोगी या बॉडी को ‘बंधक’ बनाया जाये | यह प्रथा अवैध होने के साथ साथ अनैतिक भी है | शायद इसलिए कुछ अस्पतालों के प्रबंधकों ने अपने स्टाफ को जाहिरा तौरपर ‘सख्त आदेश’ दिया हुआ है कि अनपेड बिल चाहे कितनी ही रकम का क्यों न हो किसी भी बॉडी या रोगी को ‘बंधक’ न बनाया जाये |

लेकिन मालनी एसोला इस अधिकारिक घोषणा कि ‘रोगी अस्पताल से जाने के लिया आज़ाद है’ को बोगस मानती हैं| एसोला आल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की निदेशक हैं| इस संस्था ने ‘बंधक’ बने अनेक रोगियों/बॉडीज को रिलीज़ कराने में मदद की है| एसोला कहती हैं, “स्टाफ को प्रबंधकों से (अंदरखाने) आदेश होता है कि कोलैटरल के तौरपर रोगी/बॉडी को ‘बंधक’ बना लिया जाये और स्टाफ़ दबाव डालने के अनेक हथकंडे अपनाता है, जिसमें धमकी देना भी शामिल है |” गौरतलब है कि अधिकतर मामलों में अस्पताल इंकार करते हैं कि रोगी/बॉडी को बंधक बनाया गया है क्योंकि वह जानते हैं कि यह अवैध है |अगर आप अपना क्रेडिट कार्ड बिल या पोस्ट-पेड फोन बिल अदा नहीं करते हैं तो कंपनी आपके खिलाफ केस दर्ज कर सकती है, लेकिन आपको ‘बंधक’ नहीं बना सकती| यही बात अस्पताल सेवाओं पर भी लागू होती है .

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अस्पताल यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते कि पैसा रिकवर करने के लिए लचर कानून व्यवस्था के कारण केस फाइल करना समस्यात्मक है क्योंकि उस रोगी के लिए भी वही व्यवस्था है जिसे यह लगता है कि अस्पताल ने उससे ओवरचार्जिंग की है या गलत उपचार किया है | दूसरी ओर अस्पतालों का कहना है कि अगर रोगी बिल अदा किये बिना अस्पताल छोड़कर जाने की आदत बना लेंगे तो उनका काम कैसे चलेगा, स्टाफ का वेतन कैसे दिया जायेगा? शायद यही वजह है कि अस्पताल रोगी के प्रवेश के समय ही पैसा जमा करा लेते हैं,अगर कास्ट शुरुआती अनुमान से अधिक हो जाये तो अतिरिक्त डिपाजिट करा लेते हैं और जब तक पैसा जमा न हो जाये इलाज शुरू नहीं करते हैं| लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अस्पताल इलाज के खर्च का जो अनुमान बताते हैं वह अक्सर भ्रामक, अस्पष्ट व बहुत अधिक होता है, जिससे रोगी के परिजनों को शॉक लगता है.

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जिन छोटी-छोटी चीज़ों में निर्धारित दर नहीं होतीं, उनमें अस्पताल बहुत अधिक चार्ज करते हैं | इसलिए ‘बंधक’ बनाये जाने वाली प्रथा पर विराम लगाने के लिए ज़रूरी है कि नियम बनें, जुर्माने का प्रावधान हो और 24×7 शिकायत निवारण की व्यवस्था हो | सवाल यह है कि जब तक ऐसी कोई व्यवस्था हो तब तक रोगी/बॉडी के ‘बंधक’ बनाये जाने की स्थिति में क्या किया जाये ? 100 नंबर पर डायल करें और पुलिस कंट्रोल रूम को रिपोर्ट करें ताकि ‘बंधक’ बनाये जाने का समय व तिथि रिकॉर्ड हो जाये | अस्पताल से हर कम्युनिकेशन मौखिक की बजाये लिखित में करें | कोई संतुष्टि का सर्टिफिकेशन या उपचार की तारीफ का वक्तव्य न दें | किसी प्रामिसरी नोट पर हस्ताक्षर न करें और न ही लम्बित बिल का पोस्ट-डेटेड चेक दें क्योंकि वह देय-राशि की स्वीकृति के रूप में देखा जायेगा | अपनी भाषा में सादे कागज़ पर सिर्फ इतना लिखकर दें कि बिल को बाद में सेटल कर दिया जायेगा और इसमें ‘बिना पक्षपात’ शब्द का इस्तेमाल अवश्य करें | किसी कानूनी कागज़ पर हस्ताक्षर न करें| फिर भी कोई शक हो तो अपने वकील की मदद लें|

 

आम के खास कीट

फरवरी और मार्च आम के लिए खास महत्त्व वाले महीने होते?हैं. इन्हीं महीनों में आम में बौर आने का समय होता है या बौर लग चुका होता है. बौर लगने से ले कर तोड़ाई तक आम के तमाम दुश्मन कीट होते हैं, जो जरा सी सावधनी हटने पर बड़ा नुकसान कर देते हैं. आइए जानते हैं आम की फसल में लगने वाले खास कीटों और उन की रोकथाम के बारे में.

मैंगो हापर : इसे कुटकी, भुनगा या लस्सी कीट के नाम से?भी जाना जाता है. इस कीट का प्रकोप बौर निकलते ही जनवरीफरवरी में शुरू हो जाता है. यह एक छोटा, तिकोने शरीर वाला भूरे रंग का आम का सब से खतरनाक कीट?है. ये कीट आम की नई पत्तियों व फूलों का रस चूसते?हैं. प्रभावित भाग पर इन के द्वारा छोड़े गए स्राव से सूटी मोल्ड (काली फफूंदी) उग जाती?है. इस से पत्तियों का भोजन बनने का काम रुक जाता?है.

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इस की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 40 ईसी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या डाईमेथोएट 30 ईसी 1.5-2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या 50 फीसदी घुलनशील कार्बोरिल 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए. ध्यान रहे कि कीटनाशक का पहला छिड़काव बौर की 2-3 इंच अवस्था पर, दूसरा छिड़काव उस के 15-20 दिनों बाद और तीसरा छिड़काव जब फल सरसों के दाने के आकार के हो जाएं तब किया जाना चाहिए.

मैंगो मिली बग : इसे चेंपा के नाम से भी जानते हैं. यह कोमल शाखाओं व फूलों के डंठलों पर फरवरी से मई तक चिपका हुआ पाया जाता?है. यह कोमल भागों का रस चूस कर एक लसलसा पदार्थ छोड़ता?है, जो कि फफूंदी रोगों को बढ़ावा देता?है. इस से ग्रसित फूल बिन फल बनाए ही गिर जाते हैं.

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इस की रोकथाम के लिए यदि कीट पौधों पर चढ़ गए हों, तो डाईमेथोएट (रोगोर) नामक दवा 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिला कर 15 दिनों के अंदर 2 बार छिड़काव करना चाहिए या कार्बोसल्फान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. वैसे इस कीट से बेहतर बचाव के लिए दिसंबर महीने के पहले पखवारे में आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई कर देनी चाहिए. तने पर 400 गेज की पालीथिन की 25 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी लपेट देनी चाहिए. पट्टी के ऊपरी व निचले किनारों को सुतली से बांध देना चाहिए. निचले सिरे पर ग्रीस लगा कर सील कर के जनवरी महीने में ही 250 ग्राम प्रति पेड़ की दर से क्लोरपाइरीफास चूर्ण का तने के चारों ओर बुरकाव कर देना चाहिए.

तना बेधक : इस का प्रौढ़ की करीब 5-8 सेंटीमीटर लंबा, मटमैला या राख के रंग का होता है. इस कीट की सूंडि़यां तने में नीचे से ऊपर की ओर?छेद करती?हैं, जिस से तने से बुरादा निकलता नजर आता?है, नतीजतन तना व मोटी शाखाएं सूख जाती हैं. इस की रोकथाम के लिए साइकिल की तीली या दूसरी किसी मजबूत तीली से सूंडि़यों को निकाल कर रुई को मिट्टी के तेल या पेट्रोल या 1 फीसदी की दर से मोनोक्रोटोफास के घोल में भिगो कर तने में किए छेदों में डाल कर छेदों को गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए.

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शूट बोरर : इसे शाखा बेधक या प्ररोह छिद्रक कीट के नाम से भी जानते?हैं. इस की सूंड़ी नई शाखाओं और प्ररोहों में ऊपर से नीचे की ओर छेद कर के उन्हें खोखला कर देती है. इस की रोकथाम के लिए प्रभावित भाग को काट कर जला देना चाहिए और नई बढ़वार के समय 4 ग्राम प्रति लीटर कार्बेरिल या 2 मिलीलीटर प्रति लीटर क्वीनालफास का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.

गाल मिज : इसे पुष्पगुच्छ कीट भी कहते हैं. ये बहुत ही छोटे और हलके गुलाबी रंग के होते हैं. इन कीटों से प्रभावित बौर टेढ़े हो जाते?हैं और वहां पर काले धब्बे दिखाई देते?हैं. इन की रोकथाम के लिए डायमेथोएट 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से कलियां निकलने के समय पहली बार छिड़काव करना चाहिए और दूसरा छिड़काव जरूरत के हिसाब से 15 दिनों के बाद करना चाहिए.

फ्रूट फ्लाई : इसे फल मक्खी के नाम से भी जानते हैं. यह पीलेभूरे रंग की मक्खी होती है, ज पके या अधपके फलों की त्वचा के नीचे अंडे देती?है. इन अंडों से सूंडि़यां निकल कर फलों के अंदर का गूदा खाती रहती हैं. इस से फल सड़ कर गिर जाते हैं. इस कीट का हमला पतली त्वचा वाली और देर से पकने वाली प्रजातियों पर ज्यादा होता है.

इस की रोकथाम के लिए फलों को पकने से पहले ही पेड़ से तोड़ लेना चाहिए और प्रभावित फलों को जमा कर के जमीन के अंदर करीब 1 मीटर गहराई तक दबा देना चाहिए. फल मक्खी को खत्म करने के लिए उसे जमीन के अंदर तकरीबन 1 मीटर गहराई पर दबाना चाहिए. फल मक्खी को मारने के लिए पेड़ों पर जहरीली गोलियां लटका देनी चाहिए. इस के लिए कार्बोरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी या मिथाइल यूजीनाल के घोल को 1 फीसदी की दर से डब्बों में डाल कर बागों में अप्रैल से अक्तूबर तक लटकाने से नर कीट कीटनाशक की तरफ खिंच कर मर जाते हैं. स्टोन वीविल : यह कीट आम बनने की शुरुआती दशा में हमला करता है. जब फल मटर के आकार के होते हैं, तो विविल फल की सतह पर अंडे देती है और अंडों से ग्रब निकल कर गुठली में छेद कर के घुस जाते हैं. ये अपना पूरा जीवनचक्र यहीं पूरा करते हैं व अपने मल पदार्थ से फल के गूदे को खराब कर देते हैं. इन की रोकथाम के लिए बगीचों की खूब अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए.

पौजिटिव नैगेटिव – भाग 1: तृषा ऐसा कौन सा राज जान गई थी

तृषा मलय के बेरुखी भरे व्यवहार से बहुत अचंभित थी. जब देखो तब बस एक ही रट लगाए रहता कि तृषा मैं तलाक चाहता हूं, आपसी सहमति से. ‘तलाक,’ वह सोचने को मजबूर हो जाती थी कि आखिर मलय को हो क्या गया है, जो हर समय तलाकतलाक की ही रट लगाए रहता है. मगर मलय से कभी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की. सोचती खुद ही बताएंगे कारण और फिर चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाती थी. ‘‘मलय, आ जाओ खाना लग गया है,’’ डाइनिंग टेबल सैट करते हुए तृषा ने मलय को पुकारा तो वह जल्दी से तैयार हो कर आ गया.

तृषा ने उस की प्लेट लगा दी और फिर बड़े ही चाव से उस की ओर देखने लगी. शायद वह उस के मुंह से खाने की तारीफ सुनना चाहती थी, क्योंकि उस ने बड़े ही प्यार से मलय की पसंद का खाना बनाया था. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वह किसी प्रकार खाने को निगल रहा हो. चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे वह अंदर ही अंदर घुट सा रहा हो. किसी प्रकार खाना खत्म कर के उस ने जल्दी से अपने हाथ धोए. तभी तृषा ने उस का पर्स व रूमाल ला कर उसे दे दिए.

‘‘तुम सोच लेना, जो मैं ने कहा है उस के विषय में… और हां समय पर मोहक को लेने स्कूल चली जाना. मैं गाड़ी भेज दूंगा. आज उस की बस नहीं आएगी,’’ कहता हुआ वह गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. ‘आजकल यह कैसा विरोधाभास है मलय के व्यवहार में… एक तरफ तलाक की बातें करता है तो दूसरी ओर घरपरिवार की भी चिंता लगी रहती है… न जाने क्या हो गया है उसे,’ सोचते हुए तृषा अपने बचे कामों को निबटाने लगी. लेकिन उस का मन किसी और काम में नहीं लग रहा था. क्या जरा भी प्यार नहीं रहा है उस के मन में मेरे लिए जो तलाक लेने पर आमादा है? क्या करूं… पिछले 12 वर्षों से हम एकदूसरे के साथ हंसीखुशी रह रहे थे… कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे मुझ से कोई शिकायत है या वह मुझ से ऊब गया है.

हर समय तो उसे मेरी ही चिंता लगी रहती थी. कभी कहता कि लगता है आजकल तुम अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रख रही हो… कितनी दुबली हो गई हो, यह सुन कर खुशी से उस का मन झूमने लगता और इस खुशी में और वृद्धि तब हो गई जब विवाह के 3 वर्ष बाद उसे अपने शरीर में एक और जीव के आने की आहट महसूस होने लगी. उस ने बडे़ ही शरमाते हुए मलय को यह बात बताई, तो उस ने खुशी से उसे गोद में उठा लिया और फिर गोलगोल घुमाने लगा.

मोहक के जन्म पर मलय की खुशी का ठिकाना न था. जब तब उसे आगाह करता था कि देखो तृषा मेरा बेटा रोए नहीं, मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. तब उसे हंसी आने लगती कि अब भला बच्चा रोए नहीं ऐसा कैसे हो सकता है. वह मोहक के लिए मलय का एकाधिकार देख कर खुश भी होती थी तथा चिंतित भी रहती थी और फिर तन्मयता से अपने काम में लग जाती थी. ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मलय अब मुझ से मुक्ति पाना चाहता है. तो क्या अब मेरे साथ उस का दम घुट रहा है? अरे, अभी तो विवाह के केवल 12 वर्ष ही बीते हैं. अभी तो जीवन की लंबी डगर हमें साथसाथ चलते हुए तय करनी है. फिर क्यों वह म्यूच्युअल तलाक की बात करता रहता है? क्यों उसे मेरे साथ रहना असहनीय हो रहा है? मेरे प्यार में तो कोई भी कमी नहीं है… मैं तो आज भी उस की वही पहले वाली तृषा हूं, जिस की 1-1 मुसकान पर मलय फिदा रहता था. ‘कभी मेरी लहराती काली जुल्फों में अपना मुंह छिपा लेता था… अकसर कहता था कि तुम्हारी झील सी गहरी नीली आंखों में डूबने को जी चाहता है, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा यह नाजुक बदन मुझे अपने आगोश में लपेटे लिए जा रहा है… तुम्हारे जिस्म की मादक खुशबू में मैं अपने होशोहवास खोने लगता हूं.

इतना टूट कर प्यार करने वाला पति आखिर तलाक क्यों चाहता हैं? नहींनहीं मैं तलाक के लिए कभी राजी नहीं होऊंगी, आखिर मैं ने भी तो उसे शिद्दत से प्यार किया है. घर वालों के तमाम विरोधों के बावजूद जातिपांति की ऊंचीऊंची दीवारों को फांद कर ही तो हम दोनों ने एकदूसरे को अपनाया है,’ तृषा सोच रही थी. अतीत तृषा की आंखों के सामने किसी चलचित्र की भांति चलायमान हो उठा…

‘‘पापा, मैं मलय से विवाह करना चाहती हूं.’’ ‘‘मलय, कौन मलय?’’ पापा थोड़ा चौंक उठे.

‘‘अपना मलय और कौन? आप उसे बचपन से जानते हैं… यहीं तो भैया के साथ खेलकूद कर बड़ा हुआ है. अब इंजीनियर बन चुका है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और एकसाथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं,’’ तृषा ने दृढ़ता से कहा.

पिता मनोज क्रोध से तिलमिला उठे. वे अपने क्रोध के लिए सर्वविदित थे. कनपटी की नसें फटने को आ गईं, चेहरा लाल हो गया. चीख कर बोले, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतनी बड़ी बात कहने की.. कभी सोचा है कि उस की औकात ही क्या है हमारी बराबरी करने की? अरे, कहां हम ब्राह्मण और वह कुर्मी क्षत्रिय.

पौजिटिव नैगेटिव – भाग 3 : तृषा ऐसा कौन सा राज जान गई थी

‘‘किस विषय में?’’ उस ने भी अनजान बनते हुए प्रश्न उछाल दिया. ‘‘तलाक के विषय में और क्या,’’ मलय का स्वर गंभीर था. हालांकि उस के बोलने का लहजा बता रहा था कि यह ओढ़ी हुई गंभीरता है.

‘‘खुल कर बताओ मलय, यह तलाकतलाक की क्या रट लगा रखी है… क्या अब तुम मुझ से ऊब गए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारा प्यार खत्म हो गया है या कोई और मिल गई है?’’ तनिक छेड़ने वाले अंदाज में उस ने पूछा. ‘‘नहीं तृषा, ऐसी कोई बात नहीं, बस यों ही अपनेआप को तुम्हारा अपराधी महसूस कर रहा हूं. मेरे लिए तुम्हें अपनों को भी हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा, जबकि मेरा परिवार तो मेरे ही साथ है. मैं जब चाहे उन से मिल सकता हूं, मोहक का भी ननिहाल शब्द से कोई परिचय नहीं है. वह तो उन रिश्तों को जानता भी नहीं. मुझे तुम्हें उन अपनों से दूर करने का क्या अधिकार था,’’ कह मलय चुप हो गया.

‘‘अकस्मात 12 वर्षों बाद तुम्हें इन बातों की याद क्यों आई? मुझे भी उन रिश्तों को खोने का दर्द है, किंतु मेरे दिल में तुम्हारे प्यार के सिवा और कुछ भी नहीं है… ठीक है, जीवन में मातापिता का बड़ा ही अहम स्थान होता है, किंतु जब वही लोग अपनी बेटी को किसी और के हाथों सौंप कर अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं तब प्यार हो या न हो बेटी को उन रिश्तों को ढोना ही पड़ता है, क्योंकि उन के सम्मान का सवाल जो होता है, भले ही बेटी को उस सम्मान की कीमत अपनी जान दे कर ही क्यों न चुकानी पड़े. कभीकभी दहेज के कारण कितनी लड़कियां जिंदा जला दी जाती हैं और तब उन के पास पछताने के अलावा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है. हम दोनों एकदूसरे के प्रति समर्पित हैं, प्यार करते हैं तो गलत कहां हुआ और मेरे मातापिता की बेटी भी जिंदा है भले ही उन से दूर हो,’’ तृषा के तर्कों ने मलय को निरुत्तर कर दिया.

रात का खाना खा कर मलय अपने कमरे में सोने चला गया. मोहक को सुला कर तृषा भी उस के पास आ कर लेट गई और अनुराग भरी दृष्टि से मलय को देखने लगी. मलय उसे अपनी बांहों में जकड़ कर उस के होंठों पर चुंबनों की बारिश करने लगा. तृषा का शरीर भी पिघलता जा रहा था. उस ने भी उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. तभी मलय एक झटके से अलग हो गया, ‘‘सो जाओ तृषा, रात बहुत हो गई है,’’ कह करवट बदल कर सोने का प्रयास करने लगा.

तृषा हैरान सी मलय को निहारने लगी कि क्या हो गया है इसे. क्यों मुझ से दूर जाना चाहता है? अवश्य इस के जीवन में कोई और आ गई है तभी यह मुझ से इतना बेजार हो गया है और वह मन ही मन सिसक उठी. प्रात:कालीन दिनचर्या आरंभ हो गई. मलय को चाय बना कर दी. मोहक को स्कूल भेजा. फिर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करने लगी. रात के विषय में न उस ने ही कुछ पूछा न ही मलय ने कुछ कहा. एक अपराधभाव अवश्य ही उस के चेहरे पर झलक रहा था. ऐसा लग रहा था वह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कोई अदृश्य शक्ति जैसे उसे रोक रही थी.

तृषा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि क्या करूं कैसे पता करूं कि कौन सी ऐसी परेशानी है जो बारबार तलाक की ही बात करता है… पता तो करना ही होगा. उस ने मलय के औफिस जाने के बाद उस के सामान को चैक करना शुरू किया कि शायद कोई सुबूत मिल ही जाए. उस की डायरी मिल गई, उसे ही पढ़ने लगी, तृषा के विषय में ही हर पन्ने पर लिखा था, ‘‘मैं तृषा से दूर नहीं रह सकता. वह मेरी जिंदगी है, लेकिन क्या करूं मजबूरी है. मुझे उस से दूर जाना ही होगा. मैं उसे अब और धोखे में नहीं रख सकता.’’ तृषा ये पंक्तियां पढ़ कर चौंक गई कि क्या मजबूरी हो सकती है. इन पंक्तियों को पढ़ कर पता चल जाता है कि किसी और का उस की जिंदगी में होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है, फिर क्यों वह तलाक की बात करता है?

उस के मन में विचारों का झंझावात चल ही रहा था कि तभी उस की नजर मलय के मोबाइल पर पड़ी, ‘‘अरे, यह तो अपना मोबाइल भूल कर औफिस चला गया है. चलो, इसी को देखती हूं. शायद कोई सुराग मिल जाए, फिर उस ने मलय के कौंटैक्ट्स को खंगालना शुरू कर दिया. तभी डाक्टर धीरज का नाम पढ़ कर चौंक उठी. 1 हफ्ते से लगातार उस से मलय की बात हो रही थी. डाक्टर धीरज से मलय को क्या काम हो सकता है, वह सोचने लगी, ‘‘कौल करूं… शायद कुछ पता चल जाए, और फिर कौल का बटन दबा दिया. ‘‘हैलो, मलयजी आप को अपना बहुत ध्यान रखना होगा, जैसाकि आप को पता है, आप को एचआईवी पौजिटिव है. इलाज संभव है पर बहुत खर्चीला है. कब तक चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन आप परेशान न हों. कुदरत ने चाहा तो सब ठीक होगा,’’ डाक्टर धीरज ने समझा कि मलय ही कौल कर रहा है. उन्होंने सब कुछ बता दिया.

तृषा को अब अपने सवाल का जवाब मिल गया था. उस की आंखें छलछला उठीं कि तो यह बात है जो मलय मुझ से छिपा रहा था. लेकिन यह संक्रमण हुआ कैसे. वह तो सदा मेरे पास ही रहता था. फिर चूक कहां हो गई? क्या किसी और से भी मलय ने संबंध बना लिए हैं… आज सारी बातों का खुलासा हो कर ही रहेगा, उस ने मन ही मन प्रण किया. मोहक स्कूल से आ गया था. उसे खाना खिला कर सुला दिया और स्वयं परिस्थितियों की मीमांसा करने लगी कि नहींनहीं इस बीमारी के कारण मैं मलय को तलाक नहीं दे सकती. जब इलाज संभव है तब दोनों के पृथक होने का कोई औचित्य ही नहीं है.

शाम को उस ने मलय का पहले की ही तरह हंस कर स्वागत किया. उस की पसंद का नाश्ता कराया. जब वह थोड़ा फ्री हो गया तब उस ने बात छेड़ी, ‘‘मलय, डाक्टर धीरज से तुम किस बीमारी का इलाज करवा रहे हो?’’ मलय चौंक उठा, ‘‘कौन धीरज चोपड़ा? मैं इस नाम के किसी डाक्टर को नहीं जानता… न जाने तुम यह कौन सा राग ले बैठी, खीज उस के स्वर में स्पष्ट थी.

‘‘नहीं मलय यह कोई राग नहीं… मुझ से कुछ छिपाओ नहीं, मुझे सब पता चल चुका है. तुम अपना फोन घर भूल गए थे. मैं ने उस में डाक्टर चोपड़ा की कई कौल्स देखीं तो मन में शंका हुई और मैं ने उन्हें फोन मिला दिया. उन्होंने समझा कि तुम बोल रहे हो और सारा सच उगल दिया, साथ ही यह भी कहा कि इस का उपचार महंगा है, पर संभव है. हां, समय की कोई सीमा निर्धारित नहीं. इसीलिए तुम तलाक पर जोर दे रहे थे न… पहले ही बता दिया होता… छिपाने की जरूरत ही क्या थी.’’ अब मलय टूट सा गया. उस ने तृषा को अपने गले से लगा लिया और फिर धीरेधीरे सब कुछ बताने लगा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है तृषा पिछले महीने मैं औफिस के एक सेमिनार में भाग लेने के लिए सिंगापुर गया था. मेरे 2-3 सहयोगी और भी थे. हम लोगों को एक बड़े होटल में ठहराया गया था. हमें 1 सप्ताह वहां रहना था और मेरा तुम से इतने दिन दूर रहना मुश्किल लग रहा था, फिर भी मैं अपने मन को समझाता रहा. दिन तो कट जाता था, किंतु रात में तुम्हारी बांहों का बंधन मुझे सोने नहीं देता था और मैं तुम्हारी याद में तड़प कर रह जाता था.

‘‘एक दिन बहुत बारिश हो रही थी. मेरे सभी साथी होटल में नीचे बार में बैठे ड्रिंक ले रहे थे. मैं भी वहीं था, वहां मन बहलाने के और भी साधन थे, मसलन, रात बिताने के लिए वहां लड़कियां भी सप्लाई की जाती थीं. अलगअलग कमरों में सारी व्यवस्था रहती थी. तुम्हारी कमी मुझे बहुत खल रही थी. मैं ने भी एक कमरा बुक कर लिया और फिर मैं पतन के गर्त में गिरता चला गया. ‘‘यह संक्रमण उसी की देन है. बाद में मुझे बड़ा पश्चाताप हुआ कि यह क्या कर दिया मैं ने. नहींनहीं मेरे इस जघन्य अपराध की जितनी भी सजा दी जाए कम है. मैं ने दोबारा उस से कोई संपर्क नहीं किया. साथियों ने मेरी उदासीनता का मजाक भी बनाया, उन का कहना था पत्नी तो अपने घर की चीज है वह कहां जाएगी. हम तो थोड़े मजे ले रहे हैं. लेकिन मैं उस गलती को दोहराना नहीं चाहता था. बस तुम्हारे पास चला आया.

‘‘एक दिन मैं औफिस में बेहोश हो गया. बड़ी मुश्किल से मुझे होश आया. मेरे सहयोगी मुझे डाक्टर चोपड़ा के पास ले गए. उन्होंने मेरा ब्लड टैस्ट कराया. तब मुझे इस बीमारी का पता लगा. मैं समझ गया कि यह सौगात सिंगापुर की ही देन है. मैं अपराधबोध से ग्रस्त हो गया. हर पल मुझे यही खयाल आता रहा कि मुझे तुम्हारे जीवन से दूर चले जाना चाहिए. इसीलिए मैं तलाक की बात करता रहा. यह जानते हुए भी कि मेरे तुम्हारे प्यार की डोर इतनी मजबूत है कि आसानी से टूट नहीं सकती,’’ कहते हुए मलय फफक कर रो पड़ा. तृषा हतप्रभ रह गई कि इतना बड़ा धोखा? वह मेरी जगह किसी और की बांहों में चला गया. क्या उस की आंखों पर वासना की पट्टी बंधी हुई थी. फिर तत्काल उस ने अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया कि नहीं वह मलय का साथ नहीं छोड़ेगी, उसे टूटने नहीं देगी, पतिपत्नी का रिश्ता इतना कच्चा थोड़े ही होता है कि जरा सा झटका लगा और टूट गया.

उस ने मलय को पूरी शिद्दत से प्यार किया है. वह इस प्यार को खोने नहीं देगी. इंसान है गलती हो गई तो क्या उस की सजा उसे उम्र भर देनी चाहिए… नहीं कदापि नहीं. वह मलय की एचआईवी पौजिटिव को नैगेटिव कर देगी. क्या हुआ यदि इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है… इस कारण वह अपने प्यार को मरने नहीं देगी. उस ने मलय का सिर अपने सीने पर टिका लिया. उस का ब्लाउज मलय के आंसुओं से तर हो रहा था.

 

 

Crime Story: प्यार का अंजाम

सत्येंद्र और सारिका एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे, सत्येंद्र के पिता सारिका को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो गए थे. लेकिन सारिका के पिता राकेश लोध नहीं माने.

उस दिन मई 2019 की 17 तारीख थी. आसमान पर काले बादल छाए थे और सुबह से ही बूंदाबांदी हो रही थी. उन्नाव के अतरी गांव का रहने वाला अरविंद खराब मौसम की परवाह किए बगैर अपने खेत पर खरबूजे तोड़ने पहुंच गया. दरअसल अरविंद ताजे खरबूजे खेत से तोड़ता फिर झल्ली में रख कर साइकिल से गांवगांव में फेरी लगाने निकल जाता था.

उस दिन जब वह खरबूजे तोड़ रहा था तभी उस की निगाह खेत से कुछ दूरी पर झाड़ी के पास पड़ी. वहां कुछ कुत्ते घूम रहे थे. वे अपने पंजों से जमीन को कुरेद रहे थे. अरविंद के मन में जिज्ञासा जागी तो उस ने खरबूजे तोड़ने बंद कर दिए और कुत्तों के झुंड के पास पहुंच गया. वहां अरविंद ने जो देखा, उस से उस के होश उड़ गए.

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जमीन के अंदर कोई लाश दफन थी. लाश का एक हाथ व एक पैर कुत्तों ने जमीन खोद कर बाहर निकाल लिया था और उसे नोंच रहे थे. यह देखते ही अरविंद उसी समय बदहवास सा गांव की ओर भागा और गांव पहुंच कर यह जानकारी लोगों को दे दी.

जिस ने भी अरविंद की बात सुनी, वही उस के खरबूजे के खेत की ओर भागा. देखते ही देखते खेत पर लोगों की भीड़ जुट गई. उसी समय किसी ने जमीन में शव दफन होने की जानकारी हाजीपुर पुलिस चौकी में दे दी तो चौकी इंचार्ज हामिद 2-3 सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी, फिर पुलिसकर्मियों की मदद से शव को जमीन से बाहर निकलवाया.

गीली मिट्टी होने की वजह से शव पूरी तरह मिट्टी में सना था, जिस से उस की पहचान नहीं हो पा रही थी. वैसे लाश किसी महिला की लग रही थी.

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पुलिस ने पानी मंगवा कर शव पर लगी मिट्टी साफ कराई. तब पता चला कि वह लाश 18-19 साल की किसी युवती की थी. उस के सिर पर चोट का निशान था. वह हलके गुलाबी रंग का सूट पहने थी. उस के गले में मां दुर्गा का लौकेट था. मृतका के दाहिने हाथ व पैर को कुत्तों ने नोंच डाला था. शव 3-4 दिन पुराना लग रहा था.

चौकीइंचार्ज हामिद अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि उसी समय एसपी माधव प्रसाद वर्मा, एएसपी विनोद कुमार पांडेय, सीओ (सिटी) उमेशचंद्र त्यागी तथा गंगाघाट थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी थी, लेकिन कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था. मौके पर अरविंद भी मौजूद था, जिस ने सब से पहले लाश देखी थी. पुलिस अधिकारियों ने उस से भी पूछताछ की. अरविंद ने पुलिस को सारी बात बता दी.

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शव की शिनाख्त न होने पर एसपी माधव प्रसाद वर्मा ने थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को निर्देश दिए कि वह आसपास के थानों से जानकारी जुटाएं कि उन के यहां किसी युवती की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. थानाप्रभारी ने उसी समय वायरलैस से यह सूचना सभी थानों को जारी कर दी और इस पर तत्काल रिपोर्ट देने को कहा.

वायरलैस पर मैसेज प्रसारित होने के कुछ ही देर बाद थाना माखी से सूचना मिली कि 14 मई को उन के यहां 17-18 साल की एक युवती की गुमशुदगी दर्ज है. पंडितखेड़ा गांव के रहने वाले राकेश लोध की बेटी सारिका लापता थी.

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यह सूचना प्राप्त होते ही एसपी माधव प्रसाद वर्मा ने माखी थानाप्रभारी श्याम कुमार पाल को आदेश दिया कि वह राकेश लोध को साथ ले कर तत्काल अतरी गांव में घटनास्थल पर आ जाएं ताकि बरामद लाश की शिनाख्त हो सके.

चूंकि कप्तान साहब का आदेश था, अत: थानाप्रभारी श्याम कुमार पाल तत्काल पहले पंडितखेड़ा गांव पहुंचे. संयोग से उस समय राकेश लोध घर पर ही मिल गया. थानाप्रभारी ने उसे बताया कि अतरी गांव के बाहर खेत में दफन एक युवती की लाश मिली है.

तुम्हारी बेटी सारिका भी लापता है, जिस की तुम ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई है. मेरे साथ चल कर उस लाश को देख लो. इसी के साथ उन्होंने राकेश लोध को जीप में बिठाया और अतरी गांव की ओर रवाना हो गए.

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पंडितखेड़ा गांव से अतरी गांव मात्र 3 किलोमीटर दूर था. अंतर केवल यह था कि पंडितखेड़ा गांव थाना माखी के अंतर्गत आता था और अतरी गांव थाना गंगाघाट के अंतर्गत. ज्यादा दूरी न होने के कारण थानाप्रभारी श्याम कुमार पाल को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

वहां पहुंच कर राकेश लोध ने जब लाश देखी तो दहाड़ें मार कर रोने लगा. उस ने उस लाश की पहचान अपनी बेटी सारिका के रूप कर दी.

लाश की शिनाख्त हुई तो पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. इस के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद ने मौके की काररवाई कर के शव उन्नाव के पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार राकेश लोध को पूछताछ के लिए थाना गंगाघाट ले आए. उन्होंने राकेश लोध से पूछा, ‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बेटी की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘हां साहब, मुझे पता है.’’ राकेश गमछे से आंसू पोंछते हुए बोला.

‘‘बताओ, कौन है वो?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘साहब, मेरी बेटी की हत्या घोंघी रौतापुर के सुंदरलाल ने की है. उसी ने हत्या के बाद लाश को जमीन में दफन कर दिया.’’

‘‘सुंदरलाल से तुम्हारी कोई रंजिश थी जो उस ने हत्या कर दी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, कोई गहरी रंजिश तो नहीं थी पर कुछ महीने पहले सुंदरलाल के बेटे सत्येंद्र ने मेरी बेटी सारिका से छेड़छाड़ की थी. तब हम ने उसे पीट दिया था. उसी समय सुंदरलाल ने हमें देख लेने की धमकी दी थी.’’

शाम 5 बजे थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने सुंदरलाल को थाने बुला लिया. उन्होंने जब उस से सारिका की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह घबरा गया और बोला, ‘‘हुजूर, राकेश मुझे षडयंत्र कर फंसा रहा है. सारिका की हत्या की खबर सुन कर मैं खुद हैरान हूं. वैसे भी मैं कई दिन से परेशान हूं क्योंकि मेरा 22-23 साल का बेटा सत्येंद्र 7 मई की शाम यह कह कर घर से निकला था कि दवा लेने शुक्लागंज जा रहा है, कुछ देर में आ जाएगा, लेकिन तब से वापस नहीं आया. मैं ने चौकी में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी है.’’

सुंदरलाल ने थानाप्रभारी को चौंकाने वाली एक बात यह बताई कि सत्येंद्र और सारिका एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे. इस के लिए वह तो तैयार था लेकिन सारिका का पिता राकेश तैयार नहीं हुआ. सुंदरलाल ने बेटे सत्येंद्र के गायब होने में राकेश का ही हाथ बताया.

सुंदरलाल की बात सुन कर थानाप्रभारी का माथा ठनका. वह सोचने लगे कि कहीं सारिका की तरह सत्येंद्र की भी हत्या तो नहीं कर दी गई. कहीं यह औनर किलिंग का मामला तो नहीं है.

इसी के साथ उन्होंने सत्येंद्र की खोज शुरू कर दी. उन्होंने वायरलैस द्वारा यह सूचना प्रसारित कराई कि 6 मई के बाद उन्नाव के किसी थाने के तहत 22-23 साल के अज्ञात युवक का शव तो बरामद नहीं हुआ है. अगर हुआ हो तो उस की जानकारी थाना गंगाघाट को दी जाए.

इस के बाद 18 मई की सुबह 10 बजे उन्नाव कोतवाली से थानाप्रभारी हरिप्रसाद को सूचना मिली कि 8 मई की सुबह मगरवारा रेलवे ट्रैक पर एक युवक की क्षतविक्षत लाश मिली थी. लाश की शिनाख्त न होने पर अज्ञात में पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि युवक की हत्या गला दबा की गई थी. हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए लाश को रेलवे ट्रैक पर रख दिया था.

यह जानकारी पाते ही थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार थाना उन्नाव कोतवाली पहुंचे. वहां से वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा शव के फोटो ले कर वापस थाने लौट आए. अब तक मृतका सारिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक सारिका की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई. सिर पर चोट का निशान पाया गया था. दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक समानता यह थी कि दोनों की हत्या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी अहिरवार ने सुंदरलाल को पुन: थाना गंगाघाट बुलवा लिया और रेलवे ट्रैक से बरामद युवक के शव के फोटो उन्हें दिखाए. फोटो देखते ही सुंदरलाल फफक पड़ा. उस ने बताया कि यह फोटो उस के 22 वर्षीय बेटे सत्येंद्र के हैं. सत्येंद्र और सारिका की लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी. पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था.

यह मामला अब तक 3 थाना क्षेत्रों गंगाघाट, उन्नाव सदर कोतवाली तथा माखी से जुड़ गया था. गंगाघाट थानाक्षेत्र में सारिका का शव बरामद हुआ था, जबकि माखी थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज थी. उन्नाव सदर कोतवाली थाना क्षेत्र से सत्येंद्र की लाश बरामद हुई थी, जबकि उस की गुमशुदगी थाना गंगाघाट में दर्ज हुई थी.

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थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने अब तक की जांच से एसपी माधव प्रसाद वर्मा को अवगत कराया तो उन्होंने डबल मर्डर के खुलासे के लिए सीओ (सिटी) उमेशचंद्र त्यागी व एएसपी विनोद कुमार पांडेय के निर्देशन में 3 थानों की एक संयुक्त टीम गठित कर दी.

इस टीम में माखी थानाप्रभारी श्याम कुमार पाल, गंगाघाट थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार, चौकीप्रभारी हामिद, एसआई सुधाकर सिंह, संजीव कुमार, ओमकार यादव, हैडकांस्टेबल राजेंद्र मिश्रा, रामनरेश सिंह, कांस्टेबल दिलीप कुमार, सद्दाम, बलराम गोस्वामी तथा महिला सिपाही रिचा त्रिवेदी व रेनू कनौजिया को शामिल किया गया.

संयुक्त पुलिस टीम ने सब से पहले उस स्थान का निरीक्षण किया, जहां सारिका का शव दफन किया गया था. फिर मगरवारा रेलवे ट्रैक का निरीक्षण किया, जहां सत्येंद्र का शव क्षतविक्षत अवस्था में पाया गया था. टीम ने अतरी, घोंघी रौतापुर तथा पंडितखेड़ा गांव जा कर अनेक लोगों से पूछताछ की तथा उन का बयान दर्ज किए.

मृतक सत्येंद्र के परिजनों के बयानों में जहां समानता थी, वहीं मृतका सारिका के मातापिता के बयानों में विरोधाभास था. उन के हावभाव से भी लग रहा था कि वह पुलिस से कुछ छिपा रहे हैं. सारिका के संबंध में राकेश ने पड़ोसियों को भी गुमराह किया था. लाश मिलने के बावजूद उस ने पड़ोसियों को सारिका की हत्या किए जाने की बात नहीं बताई थी.

लिहाजा पुलिस टीम के शक की सुई राकेश लोध की ओर घूमी तो पुलिस टीम ने 20 मई, 2019 को राकेश व उस की पत्नी रेनू को हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की.

पहले तो वे दोनों पुलिस को गुमराह करते रहे. लेकिन सख्त रुख अपनाने पर दोनों टूट गए और हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. राकेश लोध ने बताया कि सत्येंद्र व सारिका की हत्या उस ने अपने भांजे संजय व अतरी गांव निवासी दुर्गेश के साथ मिल कर की थी. सत्येंद्र ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. इसलिए उसे मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर अतरी गांव से दुर्गेश लोध को उस के घर से हिरासत में ले लिया. उसी दिन पुलिस टीम ने नवाबगंज (कानपुर) से संजय को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस टीम ने डबल मर्डर का परदाफाश करने तथा हत्यारोपियों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. जानकारी मिलते ही कप्तान माधव प्रसाद वर्मा ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस वार्ता की और अभियुक्तों को पत्रकारों के समक्ष पेश कर दोहरे मर्डर का खुलासा किया. खुलासा करने वाली टीम को उन्होंने 15 हजार रुपए ईनाम देने की भी घोषणा की.

चूंकि सत्येंद्र व सारिका की हत्या माखी थानाक्षेत्र में की गई थी, अत: थाना माखी पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहत राकेश, संजय, दुर्गेश व रेनू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन चारों को विधिसम्मत बंदी बना लिया. अभियुक्तों से की गई पूछताछ में प्रेमी युगल के प्यार को दफन करने की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के माखी थानांतर्गत एक गांव है पंडितखेड़ा. इसी गांव में राकेश लोध अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा राजू था. राकेश लोध किसान था. वह बड़ी बेटी की शादी कर चुका था.

छोटी बेटी सारिका थी, जो अपनी बड़ी बहन से ज्यादा खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. तनमन से सारिका जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में तेज थी. उन्नाव के सरस्वती बालिका इंटर कालेज से उस ने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर के 11वीं कक्षा में दाखिला ले लिया था. अपने कामधाम और स्वभाव की वजह से सारिका अपने मांबाप की आंखों की तारा बनी हुई थी.

सारिका की मौसी रेखा गंगाघाट थाना अंतर्गत घोंघी रौतापुर गांव में रहती थी. सारिका गरमियों की छुट्टी में मौसी के घर चली जाती थी. फिर वह महीनों वहां रहती थी. मौसी सारिका को बहुत प्यार करती थी. अपनत्व के कारण ही वहां सारिका का मन लगता था. स्कूल खुलने के समय सारिका वापस घर आती थी.

मौसी के घर रहने के दौरान ही एक रोज सारिका की मुलाकात सत्येंद्र से हुई. सत्येंद्र सजीला व रंगीला युवक था. खूब बनठन कर रहता था. सत्येंद्र का घर सारिका की मौसी के घर के पास ही था. किसानी के साथ सत्येंद्र के पिता सुंदरलाल व्यापार भी करते थे. अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

सारिका उस रोज मोहल्ले के ही राधे तिवारी की दुकान पर घर का कुछ सामान लेने गई थी. वहीं दुकान पर खड़े मंदमंद मुसकराते सत्येंद्र से उस की पहली मुलाकात हुई थी. सारिका और सत्येंद्र ने जब पहली बार एकदूसरे को देखा तो देखते ही रह गए. दोनों के दिल में जाने कैसी कशिश हुई थी. उन दोनों के दिलों में आकर्षण के रास्ते प्यार का पौधा पनप चुका था.

सारिका मौसी के घर का कोई सामान लाने के बहाने घर से निकलती तो सत्येंद्र राधे तिवारी की दुकान पर पहले से खड़ा मिलता था. इस तरह उन की रोज मुलाकात होती. धीरेधीरे उन के बीच प्यारमोहब्बत की बातें भी होने लगी थीं.

सारिका और सत्येंद्र के बीच पलने वाले प्यार से दुकानदार राधे तिवारी भलीभांति परिचित था. किसी अपने की शह मिल जाए तो कहते हैं कि प्यार की बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है. सत्येंद्र और सारिका के साथ भी यही हुआ. वे अब दुकान के साथसाथ गांव के बाहर बगीचे में मुलाकात करने लगे थे. लेकिन घोंघी रौतापुर छोटा सा गांव है. उन का यूं गांव में मिलना कब तक छिपा रहता. एक न एक दिन तो राज खुलना ही था. अंतत: एक दिन धमाका हो ही गया.

हुआ यह कि एक दिन जब सत्येंद्र और सारिका गांव के बाहर बगीचे में बैठ कर बातें कर रहे थे तो रेखा के किसी परिचित ने उन्हें देख लिया. उस ने सारा किस्सा जा कर रेखा को बता दिया. कुछ देर बाद सारिता जब घर पहुंची तो रेखा ने उसे आड़े हाथों लिया, ‘‘कहां से आ रही है तू?’’

‘‘जी मौसी, सहेली के घर से.’’ सारिका ने जवाब दिया.

‘‘सहेली के घर से या…’’ आगे का वाक्य जानबूझ कर रेखा ने अधूरा छोड़ दिया.

‘‘मौसीजी, मैं सच बोल रही हूं. सहेली के घर ही गई थी.’’ सारिका ने सफाई दी.

‘‘झूठ बोल रही है. तू सहेली के घर नहीं बल्कि बगीचे में बैठ कर इश्क लड़ा रही थी.’’

सारिका ने चुप्पी साथ ली. उसे चुप देख रेखा सोचने लगी, ‘इतनी उम्र और इश्क का भूत.’ उस के दिमाग में आया कि यह लड़की कहीं उस के साथ भाग गई तो लोग उसी को दोषी ठहराएंगे. इस के पहले कि कोई अनर्थ हो, सारिका के मांबाप को बुला कर बात करनी चाहिए.

इस के बाद रेखा ने अपनी बहन रेनू से मोबाइल पर बात की और सारिका की लव स्टोरी बता कर तत्काल घोंघी रौतापुर गांव आने को कहा. बहन की बात सुन कर रेनू असहज हो गई.

दरअसल उसे अपनी बेटी पर अटूट विश्वास था. वह समझती थी कि जमाना चाहे जितना बदल गया हो, लेकिन उस की बेटी सारिका के कदम नहीं डगमगा सकते. रेनू ने अपने पति राकेश से जब सारिका के प्रेम संबंध के बारे में बताया कि उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.

दूसरे दिन राकेश पत्नी को साथ ले कर घोंघी रौतापुर पहुंचा. वहां उस ने सारिका को न सिर्फ डांटाफटकारा बल्कि उस की पिटाई भी कर दी. रेनू ने भी बेटी को पहले फटकार लगाई. फिर प्यार से समझाया. राकेश लोध ने सत्येंद्र तथा उस के बाप सुंदरलाल से भी झगड़ा किया.

राकेश ने सुंदरलाल से कहा कि वह अपने आवारा लड़के को रोक ले और उस की लड़की को न बरगलाए. वरना अंजाम अच्छा न होगा.

इस पर सुंदरलाल बोला, ‘‘तुम पहले अपनी बेटी के बहकते कदमों को रोको. वही हमारे बेटे को मजबूर कर रही है. वैसे तुम ठंडे दिमाग से बात करो तो हमें रिश्तेदारी करने में ऐतराज नहीं है.’’ रिश्ते की बात पर राकेश और भड़क गया. उस रोज दोनों में खूब तूतू मैंमैं हुई.

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इश्क में अंधी बेटी कहीं प्रेमी के साथ भाग न जाए, इसलिए राकेश और रेनू सारिका को अपने साथ गांव ले आए. सारिका गांव आ गई तो सत्येंद्र और सारिका का मिलना बंद हो गया. कुछ महीने तक दोनों एकदूसरे की जुदाई बरदाश्त करते रहे. फिर जब उन से रहा नहीं गया तो मिलने के लिए बेचैन रहने लगे.

आखिर सत्येंद्र ने ही इस का रास्ता निकाला. सत्येंद्र का दोस्त था. राधे तिवारी उसे दोनों की लवस्टोरी पता थी. सत्येंद्र ने राधे के मार्फत सारिका को एक मोबाइल फोन भिजवा दिया और बात करने को कहा.

सारिका को जब प्रेमी द्वारा भेजा गया नया मोबाइल फोन मिला तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अब जब घर में कोई नहीं होता तो सारिका सत्येंद्र से बात कर लेती और दिल की लगी बुझा लेती.

बात करने के बाद सारिका नंबर डिलीट कर देती थी और मोबाइल छिपा देती. एक शाम बातचीत के दौरान सत्येंद्र ने मिलने की इच्छा जाहिर की तो नानुकुर के बाद सारिका मान गई और उस ने गांव के बाहर सत्येंद्र से मिलने का वादा कर लिया.

सत्येंद्र के पास मोटरसाइकिल थी, वह बनसंवर कर सारिका के गांव पंडितखेड़ा पहुंच गया. गांव के बाहर सारिका और सत्येंद्र मिले. मिलते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. कुछ देर बाद दोनों अलग हुए और पुन: मिलने का वादा कर सत्येंद्र चला गया. इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. जब भी दोनों को मौका मिलता, मिल लेते.

लेकिन 7 मई, 2019 को दोनों के मिलन का भांडा फूट गया. हुआ यह कि शाम को जब सारिका फोन पर सत्येंद्र से बतिया रही थी, तभी छिप कर सारिका की मां रेनू ने उस की सारी बातें सुन लीं. इस का आभास सारिका को नहीं हुआ. रेनू ने पति राकेश को बता दिया कि सारिका और सत्येंद्र अब भी गांव के बाहर मिलते हैं.

आज भी सत्येंद्र सारिका से मिलने आने वाला है. यह जान कर राकेश के तनबदन में आग लग गई. संयोग से उस दिन राकेश का भांजा संजय और अतरी गांव निवासी रिश्तेदार दुर्गेश लोध भी घर में थे. सब ने एक राय हो कर सत्येंद्र को निपटाने की योजना बना ली.

7 मई, 2019 को रात 8 बजे सारिका दिशामैदान के बहाने प्रेमी से मिलने के लिए घर से निकली. तभी पीछे से रेनू भी चल पड़ी. उस के पीछे राकेश, संजय व दुर्गेश हो लिए. खेत में पहुंच कर जब सारिका और सत्येंद्र मिले, तभी राकेश, संजय और दुर्गेश ने सत्येंद्र को दबोच लिया और उसे पीटने लगे.

उन तीनों ने पीटतेपीटते सत्येंद्र को अधमरा कर दिया. सारिका अपने प्रेमी सत्येंद्र को बचाने आई तो रेनू ने उस की भी जम कर पिटाई कर दी. इसी बीच उन तीनों ने सत्येंद्र को गला घोंट कर मार डाला. सारिका को घर ला कर कमरे में बंद कर दिया गया.

सत्येंद्र मोटरसाइकिल से यह कह कर घर से निकला था कि वह दवा लेने शुक्लागंज जा रहा है. लेकिन फिर वापस नहीं लौटा. सत्येंद्र के पिता सुंदरलाल ने 2-3 दिन उस की खोजबीन की, लेकिन जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो गंगाघाट पुलिस चौकी में गुमशुदगी लिखा दी.

सारिका के परिजनों ने उसे मारपीट कर घर में कैद कर लिया था. उन्हें शक था कि वह कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे, इसलिए सारिका को गुमराह कर नवाबगंज, कानपुर ले आए.

नवाबगंज में राकेश लोध की बहन सावित्री रहती थी. उन की आपस की बातचीत से सारिका को पता चला कि उन सब ने मिल कर सत्येंद्र को मार डाला है. इस पर सारिका ने धमकी दी कि वह सब कुछ पुलिस को बता देगी.

इस धमकी से राकेश, उस की बहन सावित्री, पत्नी रेनू तथा भांजे संजय के होश उड़ गए. वे सब कई दिनों तक सारिका को समझाते रहे और किसी को कुछ न बताने का दबाव बनाते रहे. लेकिन सारिका नहीं मानी.

भेद खुलने के डर से अंतत: उन लोगों ने सारिका की भी हत्या की योजना बना ली. इसी योजना में उन्होंने अतरी गांव निवासी रिश्तेदार दुर्गेश लोध को भी शामिल कर लिया.

13 मई की शाम 7 बजे 2 मोटरसाइकिलों से वे सभी नवाबगंज से पंडितखेड़ा गांव जाने के लिए निकले. एक मोटरसाइकिल पर सारिका उस की मां रेनू बैठी, जिसे संजय चला रहा था तथा दूसरी पर राकेश लोध बैठा, जिसे दुर्गेश चला रहा था.

योजना के तहत पंडितखेड़ा गांव से लगभग एक किलोमीटर पहले दुर्गेश व संजय ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 8 बज चुके थे. यहां राकेश व उस की पत्नी रेनू ने एक बार फिर बेटी को समझाने का प्रयास किया. लेकिन सारिका अपने निर्णय पर अडिग रही. उस ने साफ कह दिया कि तुम लोगों ने मेरे प्यार का गला घोंटा है, इसलिए वह सजा दिला कर रहेगी.

सारिका की इस बात से उस के पिता राकेश लोध का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने सारिका को पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. सारिका चीखने लगी तो रेनू ने उस का मुंह दबा लिया. इस के बाद राकेश, संजय व दुर्गेश ने मिल कर सारिका की गला दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद उन लोगों ने सारिका के शव को ठिकाने लगाने के लिए आपस में विचारविमर्श किया. योजना के अनुसार, दुर्गेश रेनू को गांव के बाहर तक छोड़ आया. फिर वे तीनों सारिका के शव को अतरी गांव के बाहर ले आए.

दुर्गेश अतरी गांव का ही रहने वाला था. वह अपने घर से फावड़ा ले आया और अरविंद के खेत से कुछ दूरी पर झाड़ी के किनारे गड्ढा खोदा. फिर तीनों ने मिल कर सारिका के शव को गड्ढे में दफन कर दिया. शव को ठिकाने लगाने के बाद दुर्गेश के घर पर रात में राकेश व संजय भी रुक  गए. सुबह दोनों अपनेअपने घर चले गए.

14 मई की शाम राकेश लोध थाना माखी पहुंचा और सारिका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. चूंकि सारिका कई दिन से गांव में नहीं दिखी थी सो आसपड़ोस के लोगों ने भी मान लिया कि वह कहीं गायब है. इधर 15 मई को अचानक मौसम खराब हो गया. आंधी के साथ बरसात भी हुई थी. पानी गड्ढे के अंदर गया तो सारिका का शव फूल गया जिस से मिट्टी में दरारें पड़ गईं.

17 मई को सुबह इस मिट्टी को कुत्तों के झुंड ने पंजों से कुरेदा और शव का एक पैर व हाथ बाहर निकाल लिया. कुत्ते शव को नोंच रहे थे तभी अतरी गांव का अरविंद आ गया. उस ने यह जानकारी गांव वालों को दी.

अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने दोनों मोटरसाइकिलें और लाश दफनाने के लिए प्रयुक्त हुए फावउ़े को बरामद कर लिया.

21 मई, 2019 को थाना माखी पुलिस ने अभियुक्त राकेश लोध, दुर्गेश, संजय तथा रेनू को उन्नाव जिला अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी 

पौजिटिव नैगेटिव – भाग 2 : तृषा ऐसा कौन सा राज जान गई थी

हमारे उन के कुल की कोई बराबरी ही नहीं है. वैसे भी बेटी अपने से ऊंचे कुल में दी जाती है, जबकि उन का कुल हम से निम्न श्रेणी का है.’’ तृषा भी बड़ी नकचढ़ी बेटी थी. पिता के असीमित प्यारदुलार ने उसे जिद्दी भी बना दिया था. अत: तपाक से बोली, ‘‘मैं ने जाति विशेष से प्यार नहीं किया है पापा, इंसान से किया है और मलय किसी भी ऊंची जाति से कहीं ज्यादा ही ऊंचा है, क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है, जिस से प्यार कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है.’’

मनोजजी को इस का गुमान तक न था कि उन की दुलारी बेटी उन के विरोध में इस तरह खड़ी हो जाएगी. उन्हें अपने ऊंचे कुल का बड़ा घमंड था. उन के पुरखे अपने समय के बहुत बड़े ताल्लुकेदार थे. यद्यपि अब ताल्लुकेदारी नहीं रह गई थी, फिर भी वह कहते हैं न कि मरा हाथी तो 9 लाख का… मनोजजी के संदर्भ में यह कहावत पूरी तरह लागू होती थी. अपने शहर के नामीगिरामी वकील थे. लक्ष्मी ने जैसे उन का वरण ही कर रखा था. तृषा अपने पिता की इकलौती लाडली बेटी थी. अपने बड़े भाई तनय की भी बड़ी ही दुलारी थी. तनय भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो कर, अवर सचिव के पद पर आसाम में तैनात था.

मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर बड़ा अभिमान था. वह सोच भी नहीं सकते थे कि उन की बेटी इस प्रकार उन्हें झटका दे सकती है. उन के अनुसार, मलय के परिवार की उन के परिवार से कोई बराबरी नहीं है. उस के पिता अनिल कृषि विभाग में द्वितीय श्रेणी के अधिकारी थे, उन का रहनसहन भी अच्छा था. पढ़ालिखा परिवार था. दोनों परिवारों में मेलमिलाप भी था. मलय भी अच्छे संस्कारों वाला युवक था, किंतु उन के मध्य जातिपांति की जो दीवारें थीं, उन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं था. तब अपनी बेटी का विवाह किस प्रकार अपने से निम्न कुल में कर देते.

जबतब मनोजजी अपने ऊंचे कुल का बखान करते हुए अनिलजी को परोक्ष रूप से उन की जाति का एहसास भी करा ही देते थे. अनिलजी इन सब बातों को समझते थे, किंतु शालीनतावश मौन ही रहते थे. जब मनोजजी ने बेटी तृषा को अपनी जिद पर अड़े देखा तो उन्होंने अनिलजी से बात की और फिर आपसी सहमति से एक सादे समारोह में कुछ गिनेचुने लोगों की उपस्थिति में बेटी का विवाह मलय से कर दिया. जब तृषा विदा होने लगी तब उन्होंने ‘अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं’ कह तृषा के लिए वर्जना की एक रेखा खींच दी.

बेटी तथा दामाद से हमेशा के लिए अपना रिश्ता समाप्त कर लिया. इस के विपरीत मलय के परिवार ने बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. तब से 12 वर्ष का समय बीत चुका था. किंतु मायके की देहरी को वह न लांघ सकी. जब भी सावन का महीना आता उसे मायके की याद सताने लगती. शायद इस बार पापा उसे बुला लें की आशा बलवती होने लगती, कानों में यह गीत गूंजने लगता: ‘‘अबकी बरस भेजो भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे,

लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां दीजो संदेसा भिजाय रे.’’ इस प्रकार 12 वर्ष बीत गए, किंतु मायके से बुलावा नहीं आया. शायद उस के पिता को उसे अपनी बेटी मानने से इनकार था, क्योंकि अब वह दूसरी जाति की जो हो चुकी थी.

बेटा मोहक जो अब 9 वर्ष का हो चुका था. अकसर पूछता, ‘‘मम्मी, मेरे दोस्तों के तो नानानानी, मामामामी सभी हैं. छुट्टियों में वे सभी उन के घर जाते हैं. फिर मैं क्यों नहीं जाता? क्या मेरे नानानानी, मामामामी नहीं हैं?’’ तृषा की आंखें डबडबा जाती थीं लेकिन वह भाई से उस लक्षमणरेखा का जिक्र भी नहीं कर सकती थी जो उस के दंभी पिता ने खीचीं थी और जिसे वह चाह कर भी पार नहीं कर सकती थी.

ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया था. जब वह मोहक को स्कूल से ले कर लौटी, तो उस ने मलय को अपने कमरे में किसी पेपर को ढूंढ़ते देखा. तृषा को देख कर उस का चेहरा थोड़ा स्याह सा पड़ गया. अपने हाथ के पेपर्स को थोड़ा छिपाते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगा. ‘‘क्या हुआ मलय इतने अपसैट क्यों हो, और ये पेपर्स कैसे हैं?’’

‘‘कुछ नहीं तृषा… कुछ जरूरी पेपर्स हैं… तुम परेशान न हो,’’ कह मलय चला गया. तृषा के मन में अनेक संशय उठते, कहीं ये तलाक के पेपर्स तो नहीं…

पिछले 12 वर्षों में उस ने मलय को इतना उद्विग्न कभी नहीं देखा था. ‘क्या मलय को अब उस से उतना प्यार नहीं रहा जितनी कि उसे अपेक्षा थी? क्या वह किसी और से अपना दिल लगा बैठा है और मुझ से दूर जाना चाहता है? क्यों मलय इतना बेजार हो गया है? कहां चूक हो गई उस से? क्या कमी रह गई थी उस के प्यार में’ जबतब अनेक प्रश्नों की शलाका उसे कोंचने लगती. मलय के प्यार में उस ने अपनेआप को इतना आत्मसात कर लिया था कि उसे अपने आसपास की भी खबर नहीं रहती थी. मायके की स्मृतियों पर समय की जैसे एक झीनी सी चादर पड़ गई थी.

‘नहींनहीं मुझे पता करना ही पड़ेगा कि क्यों मलय मुझ से तलाक लेना चाहता है?’ वह सोचने लगी, ‘ठीक है आज डिनर पर मैं उस से पूछूंगी कि कौन सा अदृश्य साया उन दोनों के मध्य आ गया है. यदि वह किसी और को चाहने लगा है तो ठीक है, साफसाफ बता दे. कम से कम उन दोनों के बीच जो दूरी पनप रही है उसे कम करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है.’ शाम के 5 बज गए थे. मलय के आने का समय हो रहा था. उस ने हाथमुंह धो कर हलका सा मेकअप किया, साड़ी बदली, मोहक को उठा कर उसे दूध पीने को दिया और फिर होमवर्क करने के लिए बैठा दिया. स्वयं रसोई में चली गई, मलय के लिए नाश्ता बनाने. आते ही उसे बहुत भूख लगती थी.

ये सब कार्य तृषा की दिनचर्या बन गई थी, लेकिन इधर कई दिनों से वह शाम का नाश्ता भी ठीक से नहीं कर रहा था. जो भी बना हो बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप खा लेता था. ऐसा लगता था मानो किसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है. कोई बात है जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रही थी, कैसे तोड़ूं मलय की इस चुप्पी को… नाश्ते की टेबल पर फिर मलय ने अपना वही प्रश्न दोहराया, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

Crime Story: पराया धन, पराई नार पर नजर मत डालो क्योंकि…

एक किराने की दुकान में काम करने वाला पी. राजगोपाल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह करोड़पति बन जाएगा और उस की कंपनी 21 देशों में कारोबार करने लगेगी. इसका श्रेय वह एक ज्योतिषी को देता है. मगर यही ज्योतिषी एक दिन उस के लिए काल भी बन जाएगा, यह भी उस ने नहीं सोचा होगा.

इस की शुरुआत तब हुई जब एक ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी करने के लिए बोल दिया. एक बार उस ने एक अखबार के पत्रकार से बातचीत करते हुए कहा था, ‘‘मेरी जिंदगी तो ज्योतिष की भविष्यवाणी से बदल गई. उस ने मुझ से कहा था कि तुम एक रेस्टोरैंट खोलो. मैं ने उन का कहा माना और आज जो कुछ हूं ज्योतिषी की ही वजह से.’’

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पी राजगोपाल जैसेजैसे पैसा कमाता गया वैसेवैसे वह अंधविश्वासी और धर्मभीरु भी बनता गया. दौलत की अकड़ में वह खुद को बादशाह मानने लगा था और धीरेधीरे ऐयाश भी हो गया था.

घोर अंधविश्वासी

कहते हैं जब पैसा आता है तो व्यक्ति को घमंड आ जाता है. वह खुद को अच्छा और सामने वाले को नकारा समझने लगता है. राजगोपाल के पास पैसा आया तो खुद को सर्वश्रेष्ठ समझना और सामने वाले को नकारा समझना उस की बङी भूल थी. सब से बड़ी गलती तो उस ने तब कर दी जब वह घोर अंधविश्वासी भी बन बैठा. वह घंटों पूजापाठ करता और माथे पर बड़ा सा तिलक लगाता. ज्योतिषियों से अपना भविष्य पूछता और वह जो कहता वही करता.

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धीरेधीरे जब उस का व्यवसाय बढऩे लगा तो पी राजगोपाल डोसा किंग के नाम से मशहूर होने लगा. उस की कंपनी दक्षिण भारतीय व्यंजन की रैस्टोरैंट चेन सर्वाना भवन देशविदेश में धूम मचाने लगी. फिलहाल कंपनी का कुल राजस्व लगभग 1 करोड़ डौलर से ज्यादा का है और कंपनी में 8 हजार से अधिक लोग काम करते हैं.

दौलत बढ़ा तो राजगोपाल की महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ गईं. उस ने 2 शादियां कीं और हद की बात यह है कि तीसरी शादी करने की सोची. वह फिर ज्योतिषी के पास गया. शादी की बाबत बात की और भविष्य पूछा. यजमान का दिल तोडऩा उचित नहीं देख ज्योतिष ने भविष्यवाणी कर दी, ‘‘यह तीसरी शादी तुम्हारे लिए लाभकारी है.’’

पतन की शुरुआत

बस यहीं से राजगोपाल का पतन शुरू हो चुका था. दरअसल, तीसरी शादी वह अपनी ही कंपनी में काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी से करना चाहता था. एक दिन उस युवती को देखा तो उस को दिल दे बैठा. मगर वह युवती शादीशुदा थी. वह युवती को महंगे से महंगा उपहार भेंट करने लगा.

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उधर युवती के पति संतकुमार को अपनी पत्नी से दूरी बनाने के लिए वह दबाव बनाने लगा. राजगोपाल चाहता था कि संतकुमार अपनी पत्नी से नाता तोड़ ले तो उस के लिए रास्ता साफ हो जाएगा. पर संतकुमार ने इस के लिए साफ मना कर दिया.

इस से बौखला कर राजगोपाल ने 28 सितंबर, 2001 को संतकुमार का अपहरण करवा दिया. मामले की गंभीरता को देखते हुए युवती और उस के परिवार वालों ने एफआईआर करवा दी. तब अचानक 12 अक्तूबर, 2001 को संतकुमार पुलिस कमिश्नर के औफिस में दिखा और उस ने अपहरण के दौरान अपने साथ हुए बदसलूकी के बारे में बताया.

खौफनाक इरादे

संतकुमार के लौट आने से परिवार वालों ने राहत की सांस ली. मगर इस के अगले 6 दिन बाद ही संतकुमार का फिर से अपहरण हो गया. युवती से एकतरफ मुहब्बत में पागल पी राजगोपाल ने उस पर पति से नाता तोड़ शादी करने के लिए दबाव बनाने लगा. युवती नहीं मानी. राजगोपाल ने उसे ढेरों प्रलोभन दिए, रानी बना कर रखने का ख्वाब दिखाया मगर फिर भी वह नहीं मानी तो उस के अगले दिन उस के पति संतकुमार का शव कडाइकोनाल के टाइगर जंगल में पड़ा मिला.

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इस हत्या से इलाके में सनसनी फैल गई. कोई भी पी राजगोपाल के खिलाफ बोलने से डर रहा था. सब मौन थे. लेकिन अपने पति की हत्या से आहत युवती ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पी राजगोपाल को मुख्य आरोपी बताया. इस हत्या मेंं  संलिप्त 5 अन्य लोगों पर भी मुकदमा चलाया गया.

ले डूबा अंधविश्वास

तब साल 2004 में चेन्नई की एक अदालत ने पी राजगोपाल और 5 अन्य लोगों को दोषी ठहराते हुए 10-10 साल की कैद की सजा सुनाई. मगर युवती इतने भर से नहीं मानी. उस ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की. यहां 5 साल मुकदमा चलने के बाद न्यायालय ने दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाते हुए 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया.

तब मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वणा भवन के मालिक पी राजगोपाल सुप्रीम कोर्ट  पहुंचा. मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया.

कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई के दौरान भी पी राजगोपाल ने यह माना था कि तीसरी शादी करने के लिए वह ज्योतिषी की शरण में गया था. तब ज्योतिषी ने बताया था कि उस की तीसरी शादी सफल होगी और वह पहले से ज्यादा मजबूत बनेगा और ढेरों पैसा कमाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने जब उस के खिलाफ सजा सुनाई तो वह बारबार रहम की भीख मांग रहा था, बिगड़ते स्वास्थ्य का हवाला दे रहा था.

राजगोपाल की ऐयाशी, दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर रखना और अंधविश्वासी होना ही अंतत: उस को ले डूबा. अब हालांकि सवर्णा भवन कंपनी को उस के 2 बेटे चलाएंगे पर राजगोपाल की बाकी बची जिंदगी सलाखों के पीछे ही गुजरेगी.

मधुमक्खीपालन को बनाएं रोजगार

आज के समय में हर कोई अपनी आमदनी बढ़ाना चाहता?है और नया रोजगार करना चाहता है. किसान खेती से ज्यादा पैदावार लेना चाहते हैं, इसीलिए ऐसी फसलें बोते हैं, जिन से ज्यादा फायदा हो सके. कहने का मतलब यह है कि अगर किसान चाहें तो खेती के साथसाथ कोई दूसरा रोजगार अपना कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं.

मधुमक्खीपालन ऐसा ही रोजगार है, जो किसानों के लिए या दूसरे बेरोजगार लोगों के लिए कमाई का जरीया बन सकता है. मधुमक्खीपालन की ज्यादा जानकारी के लिए हम ने बात की प्रताप सिंह से, जो साल 1990 से इस क्षेत्र में काम कर रहे?हैं. वह सुनीता मक्खीपालन के नाम से शहद उत्पादन करते?हैं. अब तक सैकड़ों लोगों को वे मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग दे चुके हैं. उन्हें कई बार सरकार व अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है.

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मधुमक्खीपालन की शुरुआत कैसे करें? के जवाब में प्रताप सिंह ने बताया कि पूरे भारत में किसानों के लिए खेती के साथसाथ मधुमक्खीपालन एक बेहतर रोजगार है. अपने खेतों में ही व आसपास के इलाकों में वे इस काम को कर सकते हैं. अच्छा शहद पैदा कर के वे भरपूर आमदनी ले सकते हैं. इस के लिए जरूरी नहीं है कि खुद के पास ही जमीन भी हो, दूसरों के खेतों या बागों में?भी मधुमक्खीपालन किया जा सकता है.

प्रताप सिंह ने बताया कि किसान खुद ही उन्हें अपने खेतों में मधुमक्खीपालन के लिए बुलाते हैं और उन के रहने व खानेपीने तक की व्यवस्था भी कर देते?हैं,?क्योंकि जिन इलाकों में मधुमक्खीपालन किया जाता?है, वहां की फसलों में 10 से 30 फीसदी तक ज्यादा पैदावार होती है यानी मधुमक्खीपालन के साथसाथ किसानों का भी फायदा होता है.

प्रताप सिंह का मानना?है कि बेरोजगारों के लिए इस से बढि़या और कोई रोजगार नहीं?है. शुरुआत में महज 10 मधुमक्खी बाक्सों से इस काम को किया जा सकता है. 1 बाक्स की कीमत 2000 से 2500 रुपए तक होती?है. इस प्रकार 20000 से 25000 हजार रुपए तक में 10 बौक्स आ जाते?हैं. करीब 5000 रुपए में बाकी का सामान आ जाता है.

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लोन मिलना आसान : मधुमक्खीपालन के लिए सरकार से लोन भी मिलता?है. प्रदेश की सरकारें लोन लेने पर 30 से 45 फीसदी तक की सब्सिडी भी देती हैं. सालभर के बाद ही उन की वापसी की किस्तें शुरू होती है.

लोन हासिल करने के लिए मधुमक्खीपालन का ट्रैनिंग डिप्लोमा या सर्टिफिकेट चाहिए और साथ ही, एक आदमी की गवाही गारंटर के रूप में देनी होती है.

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यहां से लें ट्रेनिंग : कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा, नई दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में बना है. इस कृषि संस्थान से भी किसान मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले सकते हैं. यह ट्रेनिंग मुफ्त में दी जाती है. इस की ट्रेनिंग 1 हफ्ते की होती?है. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद संस्थान से सर्टिफिकेट भी दिया जाता है. कम पढ़ेलिखे लोग भी इस ट्रेनिंग को हासिल कर के अपना रोजगार शुरू कर सकते हैं. इस संस्थान के फोन नंबर 011-65638199 पर आप इस बारे में जानकारी ले सकते हैं. इस के अलावा किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र भी संपर्क कर सकते हैं.

कम समय में मिले मुनाफा : प्रताप सिंह ने बताया कि इस काम को पूरे साल किया जा सकता है. बरसात के समय में थोड़ा कम उत्पादन होता?है. नवंबर से ले कर जनवरी तक दिल्ली व आसपास के इलाकों में, फरवरी से ले कर अप्रैल तक उत्तर प्रदेश में, मई से ले कर जुलाई तक में देहरादून जैसे पहाड़ी इलाकों में और अगस्त से ले कर अक्तूबर तक राजस्थान जैसे इलाकों में पहुंच कर इस काम को बखूबी अंजाम दिया जा सकता है.

प्रताप सिंह ने बताया कि फसलों के अलावा शीशम, महुआ, सफेदा, आम, जामुन जैसे अनेक पेड़ों से भी शहद उत्पादन किया जाता?है. मधुमक्खीपालन में शहद के अलावा मोम भी प्राप्त होता?है, जिसे कई जगह इस्तेमाल किया जाता?है.

जब प्रताप सिंह से यह पूछा गया कि किस प्रकार का शहद सब से अच्छा माना जाता?है, तो उन्होंने बताया कि फसलों के माध्यम से मिलने वाला शहद ज्यादा अच्छा माना गया है. उस में ग्लूकोज की मात्रा ज्यादा होती है.

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बेचना है आसान : शहद की मार्केटिंग के बारे में प्रताप सिंह ने बताया कि इसे बेचना भी आसान है. आयुर्वेदिक दवाओं से ले कर प्यूरी प्रोडक्टों में इस का खूब इस्तेमाल होता है. भारत में जो भी शहद के खरीदार हैं, वे खुद ही पता कर लेते?हैं कि कहांकहां शहद का उत्पादन हो रहा?है. कई बार तो वे खुद ही मधुमक्खी पालक से संपर्क कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में मधुमक्खीपालन कर रहे हैं. कई दूसरे राज्यों में भी उन का मधुमक्खीपालन का काम चल रहा है. पूरे भारत में अलगअलग प्रदेशों में जो भी मधुमक्खीपालक हैं, ज्यादातर वे एकदूसरे से जुड़े होते हैं. जिस को जितने शहद की मांग होती है, उस की मांग वहीं पूरी कर दी जाती है.

प्रताप सिंह खरीदारों को भी उन के क्षेत्र के मधुमक्खीपालकों का अतापता देते हैं, ताकि वे अपने नजदीक से ही शहद हासिल कर सकें.

कैसे करें शुद्ध शहद की पहचान : शहद की शुद्धता कैसे पहचानें? इस बारे में प्रताप सिंह ने जानकारी दी कि शहद पानी से भारी होता है. 750 ग्राम पानी वाले बरतन या बोतल में 1 किलोग्राम शहद आ जाता है. सफेद कपड़े पर अगर किसी चीज का दाग लग जाए, तो शहद को उस दाग पर लगा कर 1 घंटे के लिए छोड़ दें. इस के बाद वह कपड़ा धो दें, तो दाग साफ हो जाएगा. उन्होंने बताया कि 18 डिगरी सेंटीग्रेड के तापमान पर फसल का शहद जम जाएगा. ये कुछ सामान्य सी जानकारियां?हैं, जिन से शहद के असली होने की पहचान आसानी से की जा सकती है. मधुमक्खीपालन के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए किसान प्रताप सिंह के मोबाइल नंबर 09210829294 पर संपर्क कर सकते हैं.

छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणी, हाथी का त्राहिमाम

छत्तीसगढ़ आजकल दंतैल वन्य प्राणी हाथियों के आगमन से सुर्खियों में है. ऐसा कोई दिन नहीं होता जब छत्तीसगढ़ में हाथी मारा नहीं जाता, मर नहीं जाता, अथवा किसी को मार नहीं देता. अथवा गांव में आकर भय का माहौल पैदा नहीं कर देता या हाईवे पर चलने लगता है.

लगभग 250 हाथियों का अलग-अलग झुंड महासमुंद, रायगढ़ , सरगुजा , कोरबा अंचल में निरंतर भ्रमण कर रहा है इस आगमन से लोग मुसीबत जदा हैं. वहीं हाथी भी अपने रहवास के लिए , स्वच्छंद जीवन के लिए आक्रमक हो गया है. हाथी अगर युवा है तो उसे लगभग एक टन भोज्य के रूप में आहार चाहिए होता है. प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ के वन्य प्राणी हाथियों और आम आदमी के संघर्ष पर एक खास रिपोर्ट-

छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणी हाथियों के आगमन से हाथी और ग्रामीण विशेषतः आदिवासियों और राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कोरवा पंडो जनजाति के लोगों का जीवन मुश्किल में है.जंगली हाथी कोरबा, रायगढ़ अंबिकापुर सूरजपुर कोरिया जशपुर, महासमुंद आदि जिलों के गांव में कब आ पहुंचेगी और इनको मार डालेगी यह कोई नहीं जानता. ऐसा कोई गांव नहीं है जहां पर हाथी उत्पात ना मचा रहे हों. इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने कोरबा, रायगढ़, कोरिया जिला का दौरा किया. कोरबा जिला में ग्राम पसान , चोटिया, मोरगा क्षेत्र में आए दिन किसी न किसी की मौत हाथी द्वारा हो रही है.

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वन विभाग अपने नियम कायदों से बंध कर लाठी-डंडे से हाथी को भगाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन वन विभाग भी अपने उत्तरदायित्व से या हाथी को भगाने से असफल साबित हो रहा है.रात्रि के समय वन विभाग का कोई भी कर्मचारी गांव के आसपास नहीं रहता, ग्रामीण आदिवासियों को हाथी के भरोसे छोड़ कर अपने कार्य की इति श्री कर लेते हैं.फिर सुबह उठने पर मौका वारदात पर आकर देखते कि हाथी ने कितना नुकसान किया है जब उनको दिखता है ज्यादा नुकसान हुआ है और उनको फायदा होने वाला है तब वह. मुआवजा प्रकरण बनाते हैं. अन्यथा वन विभाग के कान में जूं भी नहीं रेंगती कि हाथी को नियंत्रित कैसे करें. इसी का परिणाम है कि विशेष जनजाति परिवारों को हाथियों के द्वारा वृहद रूप से नुकसान पहुंचाया जा रहा है. उनके बर्तन, उनके मवेशी, बकरी, उनके परिवार को मारने के लिये हाथी के द्वारा तांडव किया गया.बर्तन को तोड़ा गया, यहां तक कि जो लोग निस्तार के लिए पानी पीते थे हैंडपंप ,उसे भी हाथी ने नुकसान पहुंचा दिया.

जब तलक वन विभाग द्वारा हाथियों के रहवास एवं स्थाई पर्यावरण के साथ उनको जोड़कर कार्ययोजना नहीं बनायी जाएगी तब तक या उत्पात और द्वंद हाथियों एवं वन में रहने वाले निवासियों के मध्य होता रहेगा या तो हाथी इंसान को मारेगा या किसी कारण से हाथी मर गया तो वहां के क्षेत्र रहने वालों को भी संवैधानिक प्रक्रिया से काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. इसका जितना जल्दी हो सके निर्णायक निर्णय के साथ हाथी से जान माल की निजात दिलाने का छत्तीसगढ़ शासन को भी प्रयास करना महत्वपूर्ण कार्य है. अन्यथा जंगली जानवरों के साथ आम जनता का संघर्ष लगातार चलता रहेगा.

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यहां है हाथी ही हाथी!

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला के पसान वन परीक्षेत्र अंचल के ग्रामीण आजकल 46 हाथियों के चिंघाड़ से थर्राए हुए हैं. विधायक मोहित राम केरकेट्टा, लोगों से मुलाकात की. यहां जंगली हाथियों ने 11 ग्रामीणों के आशियाने को उजाड़ा है. कोरबा जिला के कटघोरा वन मंडल के पसान रेंज के अंतर्गत बीहड़ वनांचल क्षेत्र में बसे तनेरा सर्किल में रात्रि 46 हाथियों के झुंड ने 11 ग्रामीणों के कच्चे मकान को पुरी तरह तहस-नहस कर उन्हें बेघर कर दिया. और वही ग्रामीण हाथियों की चिंघाड़ से थर्रा उठे हैं.

लगातार हाथियों के आतंक को लेकर ग्रामीणों ने शासन प्रशासन सहित ग्रामीणों के ऊपर आ रही गंभीर समस्याओं को लगातार बताया है. क्षेत्रीय तानाखार विधायक मोहित केरकेट्टा ने पंचायत अडसरा, के आश्रित गांव केंदई में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो बस्ती में पहुंच हाथियों से प्रभावितों से मुलाकात की पिछले लगभग 4 वर्षों से हाथियों का झुंड कटघोरा वन मंडल में विचरण कर रहा है. जिसमें अब तक कई लोगों की जन हानि हो चुकी है, लेकिन आज तक सरकार के उच्च पदों पर बैठे जिम्मेदार जन प्रतिनिधि एवं शासन प्रशासन ने इस घोर समस्या की ओर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया है.

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हाथी प्रभावित अंचल की त्रासदी यहां यह बताना लाजिमी होगा कि हाथी प्रभावित क्षेत्रों में बिजली की समस्या है यहां आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण गजराज वाहन दल सहित वन विभाग की टीम को मौके पर पहुंचने के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए, राज्य शासन द्वारा प्रस्तावित लेमरू संरक्षण रिजर्व के गठन के प्रस्ताव का समर्थन हेतु विकासखंड पोड़ी उपरोड़ा के पसान रेंज के विभिन्न ग्राम पंचायतों को नहीं शामिल करने से लेमरू संरक्षण रिजर्व के गठन से वंचित हो गया है.

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इधर कांग्रेस सरकार के जमीनी नेता एवं मंत्री चुप्पी साधे हुए है, जिससे विकासखंड पोडी उपरोड़ा के तानाखार विधानसभा के भोले भाले ग्रामीणों में आक्रोश है. विकासखंड के कुंडा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम विजय वेस्ट खदान जहां जनप्रतिनिधियों द्वारा एसीसीएल प्रबंधन को ज्ञापन सौंपकर अवगत कराया है कि हाथी प्रभावित ग्रामों में स्ट्रीट लाइट का सुविधा शीघ्र प्रदान करते हुए जर्जर सड़क का मरम्मत अति शीघ्र कराई जाए. ताकि लोगों को आवाजाही करने में राहत मिल सके. लगातार हाथियों के द्वारा ग्राम बीजाडांड, सुखा बहारा, केंदई पंडो बस्ती के आसपास ग्रामों में हाथियों का लगातार उत्पात जारी है, ग्रामीणों के कच्चे मकान को हाथियों ने तोड़कर घर में रखे चावल,दाल बर्तन, कपड़े, सहित बाडी में उगाए केला,मकाई,व अन्य सामग्री को तहस-नहस कर बर्बाद कर दिया.

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