‘उस रात मैं उन के दुराचार का शिकार हो गई. वे दुराचार करने के बाद मुझे पहाड़ी से नीचे फेंकना चाहते थे, लेकिन बहुत संघर्ष कर के मैं वहां से जान बचा कर भाग आई.
‘भैया, दुराचार का शिकार होने के बाद मैं तत्काल आत्महत्या करना चाहती थी लेकिन उस स्थिति में मेरी सासूजी और ननद मुझे ही अपराधी मानतीं, इसलिए मैं जान बचा कर घर आई. जब मैं ने यह घटना अपनी ननद को बताई तब वे बोलीं, ‘मुझे क्या पता था कि वहां तुम्हारे साथ ऐसा होगा? हम लोग तो यही चाहते हैं कि तुम्हारी गोद भर जाए और हमारे भैया को उन का वंश चलाने वाला मिल जाए.’
‘जब मेरी सासूजी को इस घटना के बारे में मालूम पड़ा तब वे बोलीं, ‘लगता है मेरे नसीब में मेरे मरने के बाद भी मुझे पानी देने वाला नहीं है.’
‘भैया, अब तुम ही बताओ, ऐसी मैली जिंदगी जी कर मैं क्या करूं? तुम्हारे जीजाजी ने मेरे जीवन में जो अकेलापन भर दिया है उस से मैं तंग आ चुकी हूं, इसलिए सोचती हूं कि आत्महत्या कर लूं?
‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है इसलिए इस का जिक्र कभी किसी से मत करना, पुलिस से भी नहीं.
तुम्हारी दीदी लता.’
पत्र पढ़ने के बाद मेरे मन में यह बात पक्की हो गई कि दीदी की मौत के लिए सिर्फ जीजाजी दोषी हैं. अब दिल तो यही करता है कि दीदी का यह पत्र पुलिस को सौंप कर जीजाजी और तथाकथित झूठे बाबाओं को उन के किए की सजा दिलवाऊं, लेकिन दीदी के पत्र में लिखे शब्दों का सम्मान भी मुझे रखना है कि ‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है, इस का जिक्र तुम कभी किसी से न करना, पुलिस से भी नहीं.’
मैं परेशान हूं और असमंजस में पड़ा हूं कि क्या करूं? क्या दीदी की आत्महत्या को यों ही व्यर्थ जाने दूं? शायद, इसी स्थिति को इंसान की बेबसी कहते हैं.
‘पर दीदी, ये अकेलापन…’ मेरी बात को काटते हुए वे बोलीं, ‘हां भैया, अब एक बात ध्यान रखना, मेरा फोन न भी आए तो भी समझ लेना मैं अच्छी हूं,’ उन्होंने रोते हुए फोन काट दिया.
2 माह बाद मेरी शादी पक्की हो गई. मेरी शादी में दीदी आईं जरूर लेकिन पूरे समय खामोश रहीं. शादी पर उन्होंने मुझे जो उपहार दिया उसे मैं ने सब से अधिक अनमोल उपहार मान कर अपनी अलमारी में सहेज कर रख दिया.
शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ हनीमून के लिए चला गया. वहां से वापसी के तत्काल बाद मैं ने ड्यूटी जौइन कर ली.
एक रात करीब साढ़े दस बजे फोन की घंटी बजी. फोन पुलिस स्टेशन से था, ‘लता नाम की महिला ने यहां आत्महत्या कर ली है. आप तत्काल आ जाइए.’ यह सुनते ही मैं सन्न रह गया. मां को साथ ले कर मैं भोपाल पहुंचा. दीदी का अंतिम संस्कार मुझे ही करना पड़ा. मैं ने अपनी तरफ से जीजाजी को फोन पर सब कुछ बता दिया था, लेकिन वे नहीं आए.
दीदी की आत्महत्या के लिए सिर्फ जीजाजी ही जिम्मेदार हैं. उन्होंने दीदी को जो असंख्य प्रताड़नाएं दीं, वे कब तक सहतीं? फिर इस प्रकार का अकेलापन किसी आजन्म कारावास से कम दुखद होता है क्या? पहले जीजाजी का अलग कमरे में सोना, फिर उस के बाद बिना कुछ बताए चुपचाप जबलपुर तबादला करवा लेना और उस के बाद वहां जा कर दूसरी शादी करना, दीदी के साथ ये उन का अक्षम्य अपराध है. मैं केवल उन को ही दीदी का अपराधी मानता हूं.
मैं यादों के दायरों से बाहर निकला और बिस्तर पर आ कर लेट गया. अलका, मेरी पत्नी मायके गई है इसलिए अकेलापन जैसे मुझे निगलने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था, फिर उस में भी दीदी की यादें. तभी मुझे उन के द्वारा शादी में दिए अनमोल उपहार की याद आई. मैं तेजी के साथ कमरे में गया, अलमारी खोली और उस में से दीदी का दिया उपहार निकाला.
अब मेरे सामने दीदी का दिया सिल्वर पेपर से लिपटा अनमोल उपहार था. मैं ने सिल्वर पेपर का आवरण हटाया तो आश्चर्यचकित रह गया. दीदी ने मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यारी लगने वाली किताब ‘कठपुतली’ उपहारस्वरूप दी थी. मैं ने उस किताब का पहला पृष्ठ पलटा. उस पर दीदी ने अपने हाथ से लिखा था :
‘प्रिय अनमोल भैया को शादी पर एक बहन का अनमोल उपहार. भैया, जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना.
तुम्हारी दीदी लता.’
उन के द्वारा लिखे शब्द पढ़ कर मैं भावविभोर हो गया और उसी अवस्था में किताब के अगले पृष्ठ पलटने लगा, तभी उस में से एक कागज जमीन पर जा गिरा.
मैं ने उस कागज को उठा कर पढ़ना चालू किया तो मेरी आंखें पथरा सी गईं.
वह दीदी का पत्र था, सिर्फ मेरे नाम. उन्होंने लिखा था :
‘प्रिय अनमोल भैया. सर्वप्रथम ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है. यह याद रखना. इस पत्र द्वारा मैं कुछ सचाइयां तुम्हारे सामने लाना चाहती हूं, जिन से तुम अभी तक अनभिज्ञ हो. ‘भैया, मेरी सासूजी और ननद आएदिन मुझे ताने मारती थीं कि अब तुम्हारी शादी हुए 5 साल से अधिक समय हो गया है, अब तो तुम्हारी गोद भरनी ही चाहिए, अड़ोसपड़ोस की महिलाएं और मेरी सहेलियां भी पूछती रहती हैं कि बहू कैसी है, अभी उसे बच्चा हुआ या नहीं? अगर न हुआ हो तो किसी साधु या बाबा के आश्रम में उसे ले जा कर उन का आशीर्वाद दिलवाओ.
‘भैया, ऐसी बातों से मैं आहत तो होती ही थी, उस में भी ये एक और घटना हो गई. हमारे पास के गंगराडेजी के यहां उन की बहू की गोदभराई का कार्यक्रम था. मैं भी वहां गई थी. एकएक कर के सब स्त्रियां गंगराडे भाभी की गोद भर रही थीं. जब मैं उस की गोद भरने के लिए उठी तो उस ने यह कह कर मुझ से गोद भरवाने से इनकार कर दिया कि मैं एक बांझ औरत से अपनी गोद नहीं भरवाऊंगी. उस के मुंह से यह बात सुन कर मेरी हालत तो काटो तो खून नहीं जैसी हो गई. मैं वहां से अपमानित हो कर अपने बैडरूम में आ कर रोती रही.
‘एक दिन यह बात मैं ने अपनी ननद को बताई तो वे बोलीं, ‘इस में गलत क्या है? 5 साल से अधिक समय हो गया. इतने सालों में भी तुम्हारी गोद नहीं भरी तो लोग तो तुम्हें बांझ ही कहेंगे न?’
‘भैया, तुम्हें याद होगा, एक बार मैं ने तुम्हें फोन पर बातचीत के दौरान भोपाल के पास स्थित पहाड़ी पर एक बाबा के डेरे पर जाने की बात कही थी. भैया, पहली बार मैं वहां अपनी सासूजी और ननद के साथ गई थी. तब वे बोली थीं, ‘उन बाबा का आशीर्वाद पा कर कई स्त्रियों की गोद भर गई है. तुम हमारे साथ चलो, हो सकता है उन के ही आशीर्वाद से कोई चमत्कार हो जाए?’
‘वे मुझे पहाड़ी पर स्थित बाबाओं के डेरे पर ले गईं. बाबा के डेरे पर एक बड़ा बोर्ड लगा था, ‘टैंशन भगाने वाले बाबा का आश्रम’. उस के नीचे लिखा था, ‘यहां जड़ीबूटियों से सभी प्रकार की तकलीफों का उपचार किया जाता है.’ वहां बहुत से परेशान पुरुष और महिलाएं बैठे थे. बाबा एकएक कर के, क्रम से सब को अपने पास बुला रहे थे. जब मेरा नंबर आया तो बाबा बोले, ‘मैं तेरी परेशानी समझ गया हूं. तेरे साथ कौन आया है?’
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‘मैं ने इशारे से बताया कि मेरी ननदजी मेरे साथ आई हैं.
‘वे मेरी ननद से बोले, ‘बहन, मामला पुराना हो चुका है, समय लगेगा, पर फल जरूर मिलेगा. इसे 4 माह तक अमावस की रात्रि में यहां लाना. तंत्रमंत्र, पूजापाठ और हवन आदि करने पड़ेंगे. ये सारे काम रात को एकांत में गर्भगृह में होते हैं,’ फिर उन्होंने मेरे गले में एक ताबीज बांधा और ननद से कहा, ‘अब तुम इसे अमावस की रात को यहां लाना.’
‘बाबा के कहे अनुसार मैं ननद के साथ 3 माह तक अमावस की रात पहाड़ी पर बाबा के डेरे पर जाती रही. चौथी अमावस की रात जब हम बाबा के डेरे पर पहुंचे, तब बाबा मेरी ननद से बोले, ‘बहन, आज रात 11 बजे गर्भगृह में विशेष तांत्रिक महापूजा में इस को बैठाया जाएगा, चूंकि ये तंत्र क्रिया एकांत में ही की जाती है, इसलिए तुम चाहो तो घर चली जाओ और रात 1 बजे के बाद इसे अपने साथ ले जाना.’
‘उन के कहने पर ननदजी घर चली गईं. उस के बाद वे बाबा लोग मुझे एक अंधियारे गर्भगृह में ले गए और उन्होंने मुझे एक हवन कुंड के सामने बैठा दिया. फिर उन्होंने कुछ देर तक जोरजोर से मंत्रोच्चार किया, उस के बाद बाबा बोले, ‘अब तुम एकएक कर के अपने बदन से वस्त्र उतारो और इस हवनकुंड में डालती जाओ.’
‘मैं ने वस्त्र उतारने से साफ इनकार कर दिया. तब पीछे से एक साधु बाबा ने मेरे हाथ पकड़े और दूसरे ने मेरे साथ जबरदस्ती करना चालू कर किया. मैं जोरजोर से चिल्लाई भी, लेकिन शहर से दूर पहाड़ी पर मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था?
सवाल
मैं 28 वर्षीया विधवा हूं. डेढ़ वर्ष पहले मेरे पति की मृत्यु हो गई थी. पति की मृत्यु को हुए 3 दिन ही हुए थे कि ससुराल वालों ने मेरी बेहोशी की हालत का लाभ उठा कर पति की दुकान के कागजों पर मुझ से हस्ताक्षर करवा लिए. उन्होंने यह दुकान अपने नाम करवा ली है. अब मेरे बच्चे मुझे तंग करते हैं. मैं ससुराल वालों से यह दुकान लेना चाहती हूं पर कैसे लूं?
जवाब
पति की मृत्यु के बाद पति की संपत्ति पर उस की पत्नी व उस के बच्चों का अधिकार होता है. यदि पति की संपत्ति उस की निजी कमाई हुई. न भी हो और वह पैतृक संपत्ति हो तो भी पत्नी व उस के बच्चों को जीवनयापन के लिए उस का हिस्सा मिलता है.आप ने खुद कहा है कि आप से बेहोशी की हालत में उन्होंने दस्तखत करा लिए थे. इस के लिए आप समाचारपत्र में नोटिस दे दें कि आप से धोखे से हस्ताक्षर करवाए गए हैं.आमतौर पर अदालत आप का साथ देगी क्योंकि पति की मृत्यु के तुरंत बाद के हस्ताक्षर हमेशा संदेह के दायरे में रहेंगे. इस बारे में आप को पूरी सलाह किसी वकील से लेनी होगी.
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होली खेलते समय रंगों की गुणवत्ता सही हो. कैमिकल रंगों के बजाय सूखे रंग, अबीर, फूल आदि का प्रयोग करें. परंपरागत तौर पर होली गुलाल, जो कि ताजा फूलों से बनाया जाता था, के साथ खेली जाती थी. पर आजकल रंग कैमिकल के इस्तेमाल के साथ फैक्टरी में बनाए जाने लगे हैं. इन में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले कैमिकल्स हैं, लेड औक्साइड, कौपर सल्फेट, एल्युमिनियम ब्रोमाइड, प्रुशियन ब्लू, मर्क्यूरी सल्फाइट. इन से काला, हरा, सिल्वर, नीला और लाल रंग बनते हैं. ये देखने में रंग जितने आकर्षक होते हैं उतने ही हानिकारक तत्व इन में इस्तेमाल हुए होते हैं.
लेड औक्साइड रीनल फेलियर का कारण बन सकता है, कौपर सल्फेट आंखों में एलर्जी, पफ्फिनैस और कुछ समय के लिए अंधेपन का कारण बन सकता है. एल्युमिनियम ब्रोमाइड और मर्क्यूरी सल्फाइट खतरनाक तत्व होते हैं और प्रुशियन ब्लू कौन्टैक्ट डर्मेंटाइटिस का कारण बन सकते हैं. ऐसे कई उपाय हैं जिन्हें अपना कर इन हानिकारक तत्वों के असर से बचा जा सकता है.
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त्वचा को रखें नम
पारस अस्पताल, गुरुग्राम के त्वचा विभाग के प्रमुख डा. एच के कार कहते हैं, ‘‘होली खेलते समय फुल आस्तीन के कपड़े पहनें ताकि आप की त्वचा खतरनाक तत्त्वों के असर से सुरक्षित रहे. खुद को पूरी तरह से हाइड्रेटेड रखें क्योंकि डिहाइड्रेशन से त्वचा रूखी हो जाती है और ऐसे में आर्टिफिशियल रंगों में इस्तेमाल होने वाले कैमिकल्स न सिर्फ आप की त्वचा को अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि इन का असर लंबे समय तक बना रहेगा. अपने कानों और होंठों को नम बनाए रखने के लिए वैसलीन लगाएं. अपने नाखूनों पर भी वैसलीन लगा सकती हैं.’’
डा. एच के कार आगे कहते हैं, ‘‘अपने बालों में तेल लगाना न भूलें, ऐसा न करने से बाल होली के रंगों में मिले कैमिकल्स से डैमेज हो सकते हैं. जब कोई आप के चेहरे पर रंग फेंक रहा हो या उसे रगड़ रहा हो तब आप अपने होंठों और आंखों को अच्छी तरह से बंद कर लें. सांस के जरिए इन रंगों की महक अंदर जाने से इंफ्लेमेशन हो सकता है, जिस से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है.
‘‘होली खेलते समय अपने कौंटैक्ट लैंस निकाल दें और आंखों के आसपास की त्वचा को सुरक्षित करने के लिए सनग्लासेज पहन लें.
‘‘ज्यादा मात्रा में भांग खाने से आप का ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है. इसलिए इस का इस्तेमाल भूल कर भी न करें.
‘‘अपने चेहरे को कभी रगड़ कर साफ न करें क्योंकि ऐसा करने से त्वचा पर रैशेज और जलन हो सकती है. स्किन रैशेज से बचने के लिए त्वचा पर बेसन व दूध का पेस्ट लगा सकते हैं.’’
जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील होती है उन्हें ऊपर बताए तमाम उपायों का खास ध्यान रखना चाहिए. आजकल बाजार में और्गेनिक रंग भी उपलब्ध हैं, कैमिकल वाले रंगों की जगह इन्हें खरीद कर लाएं. एकदूसरे के ऊपर पानी से भरे गुब्बारे न फेंकें, इस से आंखों, चेहरे व शरीर को नुकसान हो सकता है.
होली के त्योहार के दौरान ऐसी चीजें खानेपीने से बचें जो बहुत ज्यादा ठंडी हों.
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इन्फैक्शन का खतरा
दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में त्वचा विभाग के निदेशक और प्रोफैसर डा. विजय कुमार गर्ग कहते हैं, ‘‘कैमिकल रंगों से एलर्जी की समस्या, सांस में तकलीफ व इन्फैक्शन हो सकता है. रंगों को गाढ़ा करने के लिए आजकल उस में कांच का चूरा भी मिलाया जाता है जिस से त्वचा व आंख को नुकसान हो सकता है. बेहतर होगा कि आप हर्बल रंगों से होली खेलें. अपने साथ रूमाल या साफ कपड़ा जरूर रखें ताकि आंखों में रंग या गुलाल पड़ने पर उसे तुरंत साफ कर सकें. रंग खेलने के दौरान बच्चों का खास ध्यान रखें.’’
कोलंबिया एशिया अस्पताल, गाजियाबाद के त्वचा विशेषज्ञ डा. भावक मित्तल कहते हैं, ‘‘जहां तक हो सके सुरक्षित, नौन टौक्सिक और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें. ये न सिर्फ खतरनाक कैमिकल से मुक्त और सुरक्षित होते हैं बल्कि इन को त्वचा से हटाना भी आसान होता है. एक अन्य विकल्प यह है कि आप अपने लिए घर पर रंग बनाएं, जैसा कि पुराने जमाने में फलों के पाउडर व सब्जियों में हलदी और बेसन जैसी चीजें मिला कर रंग बनाए जाते थे, लेकिन ध्यान रहे, अगर ये तत्त्व अच्छे से बारीक पिसे हुए नहीं होंगे तो ये त्वचा पर रैशेज, लाली और यहां तक कि इरिटेशन का कारण बन सकते हैं.’’
कैमिकल रंगों से बालों को ऐसे बचाएं
अगर त्वचा और बाल रूखे होते हैं तो न सिर्फ इन पर खतरनाक रंगों का असर अधिक होता है बल्कि कैमिकल भीतर तक प्रवेश कर जाता है. होली खेलने से 1 घंटा पहले बालों में तेल लगा कर अच्छे से मसाज करें. तेल आप की त्वचा पर सुरक्षा की एक परत बनाएगा और इस से रंग आसानी से निकल जाएगा. कान के पीछे के हिस्से, उंगलियों के बीच के हिस्से और अपने नाखूनों के पास की त्वचा को बिलकुल नजरअंदाज न करें.
होली खेलने से पहले नारियल अथवा औलिव औयल के साथ सिर में अच्छे से मसाज करने से न सिर्फ खतरनाक रंगों के असर से बचाव होता है बल्कि गरमी और धूलमिट्टी से भी बचाव होता है. यह तेज रंगों को आप के सिर की त्वचा पर चिपकने नहीं देता है.
अपनी त्वचा को एग्जिमा, डर्मेटाइस और अन्य समस्याओें से बचाने के लिए हाथों और पैरों को ढकने वाले कपड़े पहने.
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शेखर 3 : इस किस्म का विकास चंद्रशेखर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया है. यह किस्म 75-80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म वाईएमवी रोग के लिए सहिष्णु है. प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल उपज दे देती?है.मुकुंद उड़द 2 (केपीयू 405) : यह एनडब्ल्यूपीजेड में वसंत ऋतु में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है. यह एमवाईएमवी रोग की प्रतिरोधी किस्म है. प्रति हेक्टेयर 9.42 क्विंटल उपज दे देती है. इस किस्म को राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के मैदानों में उगाने की सिफारिश की गई?है.
वीबीएन 8 (वीबीएन 09-005) : यह किस्म आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक व ओडिशा राज्यों में वसंतकालीन फसल के रूप में उगाने के लिए मुफिद पाई गई है. इस किस्म में 21.9 प्रतिशत प्रोटीन और 7.5 प्रतिशत अड़ाबिनोस के साथ इडली व बड़ा बनाने के लिए उपयुक्त पाई गई है.
यह किस्म 65-75 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म पीला मोजैक विषाणु, लीफ क्रिंकल विषाणु, पत्ता मोड़क विषाणु, तना ऊतक क्षय से प्रतिरोधी है, जबकि चूर्णी फफूंदी, सरकोस्पोरा, पत्ती धब्बा, मूल विगलन भी मध्यम प्रतिरोधी किस्म है.
बोने का समय
वसंतकालीन फसल की बोआई फरवरीमार्च महीने में करनी चाहिए. देर से बोई जाने वाली फसल से उपज में भारी कमी हो जाती है.
बीज दर
उड़द की भरपूर उपज लेने के लिए सदैव स्वस्थ व प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए. आमतौर पर उड़द की फसल उगाने के लिए 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है.
बीज शोधन
उड़द की फसल को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए उन्हें बोने से उन का शोधन बहुत जरूरी काम है, जिस की तरफ बहुत से किसान ध्यान नहीं देते हैं. इस के लिए 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2 ग्राम थीरम, 1 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करना चाहिए. यदि जैविक शोधन करना हो, तो 5-6 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करना चाहिए.
बीजोपचार
बीज शोधन के उपरांत बीजों को एक बोरे पर फैला कर उड़द के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए. इस के लिए एक लिटर पानी में 100 ग्राम गुड़ डाल कर गरम करें. यह घोल जब ठंडा हो जाए, तब उस में 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर डाल कर भलीभांति मिलाएं, फिर कल्चर के घोल को बीजों पर डाल कर दोनों हाथों से अच्छी तरह मिलाएं, ताकि बीजों को छाया में सुखा कर सुबह 9 बजे या शाम के 4 बजे के बाद खेत में बोएं.
नोट : बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने बाद बोने से आप अपने खेत में उर्वरकों की आधी मात्रा डाल कर भी उड़द की भरपूर उपज ले सकते हैं.
बोआई की विधियां
छिटकवां विधि : अधिकांश किसान उड़द की बोआई छिटकवां विधि से करते हैं, जिस के कारण उन्हें उपज कम मिलती है, इसलिए इस विधि का उपयोग नहीं करना चाहिए. पंक्तियों में बोआई : उड़द की अधिक उपज लेने के लिए इस की बोआई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए. वसंतकालीन उड़द की फसल में 25 सैंटीमीटर × 10 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. बोआई हल के पीछे करनी चाहिए. उलट हालात में जैसे जमीन का समतल न होना, चिकनी मिट्टी का होना अथवा अधोसतह में अभेद्य परत के होने पर खेत में पानी ठहरना शुरू हो जाता है. ऐसे हालात में अनुसंधान के आधार पर पाया गया है कि फसल की बोआई मेंड़ों पर की जानी चाहिए. ऐसा करने से उड़द की उपज अधिक मिलती है.
बिग बॉस 14 विनर रुबीना दिलाइक के सितारे इन दिनों बुलंदियों पर पहुंच चुके हैं. शो की विनर बनने के बाद उनके पास अलग- अलग ऑफर आने शुरू हो गए हैं. बिग बॉस 14 का विनर बनने के बाद उनकी फैन फ्लॉविनग और भी ज्यादा बढ़ गई है. एक के बाद एक नए प्रोजेक्ट सामने आ रहे हैं.
वैसे रुबीना दिलाइक के फैंस के लिए एक खुशखबरी है कि रुबीना जल्द ही सीरियल शक्ति के एहसास में वापसी करने वाली हैं. शो की गिरती टीआरपी को देखते हुए शो के मेकर्स ने रुबीना दिलाइक को अप्रौच किया है.
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जल्द ही सीरियल शक्ति के एहसास में एक बड़ा लीप गैप आएगा. इसके बाद रुबीना दिलैक अलग अंदाज में रुबीना दिलैक अपने फैंस के साथ मिलने के लिए आएंगी. जी हां सही सुना आपने खुद रुबीना दिलैक इस खबर पर मोहर लगा दी हैं.
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कुछ समय पहले ही रुबीना दिलैक ने इस खबर पर मोहर लगा दिया है. एक इंटरव्यू में बात करते हुए रुबीना दिलैक ने कहा है कि मैंने अपने 6 साल इस सीरियल को दिए हैं. यह शो मेरे लिए बच्चे कि तरह है. जिसे मैंने पाला है.
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इसलिए मेरा इससे अलग जुड़ाव है. शो में अलग बदलाव आने वाला है. इसलिए शो के मेकर्स इसमें बदलाव लाने की प्लानिंग कर रहें है. किसी भी शो में लीड रोल करना आसान नहीं होता है. शो की कामान हाथ में नहीं है. शो का हिसाब अलग तरह से होता है.
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आगे रुबीना दिलाइक ने कहा कि जिस वजह से मैंने शो छोड़ा था इसी वजह से मैं वापस आ रही हूं. मैं इस शो में वापसी को लेकर बहुत ज्यादा खुश है.
बिग बॉस 14 के घर से मसहूर हुई अर्शी खान के फैंस के लिए एक खुशखबरी है कि अर्शी जल्द शादी के बंधन में बंधने वाली हैं. कुछ फैंस इस खबर को जानने के बाद खुश होंगे तो वहीं कुछ फैंस का दिल टूट जाएगा.
खबरों की माने तो अर्शी खान जल्द नेशनल टीवी पर अपना स्वंयवर रचाने जा रही हैं. इस रियलिटी शो में अपना लाइफ पार्टनर पसंद करने का मौका मिलेगा. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शो के मेकर्स इस शो के लिए काम करना भी शुरू कर दिए हैं.
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वैसे अर्शी खान से पहले कई सितारे अपना स्वंयवर रचा चुके हैं. जैसे राहुल महाजन, राखी सावंत और भी कई सितारे लेकिन दुख कि बात ये है कि इन लोगों ने स्वंयवर तो किया लेकिन सफल नहीं हो पाएं.
अब आपको ये बता दें कि अर्शी खान अपने होने वाले पति से मिलने के लिए बहुत ज्यादा बेताब है. बिग बॉस के घर में कई बार अर्शी खान अपने होने वाले राजकुमार के बारे में बात कर चुकी है.
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अर्शी खान उन सदस्यों में से हैं जो नेशनल टीवी पर भी फ्लर्ट करने में बाज नहीं आती है. बिग बॉस 14 के घर में अर्शी खान, अली गोनी, राहुल वैद्या और अभिनव शुक्ला के साथ फ्लर्ट कर चुकी हैं. इससे साफ होता है कि अर्शी खान अपने होने वाले राजकुमार के बारे में क्या सोचती है.
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वैसे फैंस को इस बात का इंतजार है कि क्या वाकई अर्शी खान को उसका होने वाला पति मिल पाएगा या नहीं.
कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि अर्शी खान जल्द ही बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली हैं. इसी बीच ऐसी खबर हाथ लगी जिसे जानकर सभी फैंस खुशी से झूमने लगें.वहीं इस खबर को जानने के बाद अर्शी खान की जानी दुश्मन राखी सावंत को मिर्ची लग गई है.
सवाल
मैं 16 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. पर बहुत दुख हुआ जब उस ने अपने दोस्तों से मेरे बारे में सिर्फ टाइमपास की बात कही. अब एक और लड़के से मेरी दोस्ती हुई है. वह मुझ पर जान छिड़कता है. मेरी परवाह करता है, परंतु मैं अब भी अपने पहले बौयफ्रैंड को प्यार करती हूं. उसे भुला नहीं सकती. बताएं, मैं क्या करूं?
जवाब
अभी आप की उम्र बहुतकम है. इस उम्र में बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं होती कि व्यक्ति को परख सके. इसलिए आप अभी प्यार मुहब्बत के चक्कर से दूर रहें. जिसे आप प्यार समझ रही हैं वह महज यौनाकर्षण है, जो जितनी जल्दी होता है उतनी ही जल्दी समाप्त भी हो जाता है. अत: किसी मुगालते में न रहें. कुछ सालों बाद आप को स्वयं अपनी इस नासमझी पर हंसी आएगी.
मैं एक युवती से प्यार करता हूं. वह भी मुझे दिल से चाहती है और हम शादी करना चाहते हैं, पर वह धनी है जबकि मैं उस के जितना पैसे वाला नहीं हूं. क्या उस के परिवार वाले हमारे रिश्ते के लिए हां कर देंगे और शादी करने के बाद क्या मैं उस का खर्च उठा पाऊंगा? कृपया सलाह दें.
जवाब
लवर्स के सामने पैसा मिट्टी है. प्रैक्टिकली सोचें कि बिन पैसे सब असंभव है. ऐसा नहीं है कि रिच लोग ही रिच लोगों से प्यार के हकदार हैं. दिल कमबख्त किसी के भी हाथों मजबूर हो सकता है. आप उस युवती को अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए अपने परिवार की वित्तीय स्थिति की भी जानकारी दे दें. यह सच बताने में न झिझकें कि आप उस की सारी जरूरतें संभवतया न पूरी कर पाएं.
वास्तविकता से परिचित होने पर यदि उसे वास्तव में लगाव होगा तो वह कम में भी गुजारा कर लेगी वरना एक बार कड़वा घूंट भर कर अलगाव में ही बेहतरी है. अगर वह हर हाल में ओके कर देती है तो उस के परिवार वालों से बातचीत करें लेकिन उन्हें भी सब सच बताएं.
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सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem
विदेशी पर निर्भरता किसानों के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए कृषि कानून ऐसे ही नहीं बनाए गए हैं. वे गहरी व दूरगामी सोच का परिणाम हैं, जैसे इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी को मिले चार्टर के समय किया गया था और जैसे वहां के अमीरों व राजा ने कीमती पैसा उस क्षेत्र में लगाया था जिस के बारे में सिर्फ सूई की नोंक के बराबर ज्ञान था. भारतीय जनता पार्टी का थिंकटैंक आजकल देशी और विदेशी पढ़े ऊंची जातियों के एमबीओं से भरा है जो जानते हैं कि व्यापार किस पैटर्न पर चलता है. उन्हें दिख रहा है कि शहरों में उत्पादकता अब नहीं बढ़ रही.
भारत का शहरी व्यापारी वर्ग बेहद आलसी, धर्मभीरु, रूढि़वादी है और उस के बलबूते आर्थिक विकास संभव ही नहीं है. विकास तो गांवों में हो सकता है जहां ह्यूमन लेबर आज भी खाली है और उसे नए प्रयोग करने की भी आदत है जिसे जुगाड़ कहते हैं. इस वर्ग को सस्ते में खरीदने के लिए जरूरी है कि इसे मुहताज बना दो, कंगाल कर दो. देश की बहुत सी जातियों ने मानवमल साफ करने का काम मुगलों के बसाए शहरों में करने को हामी भरी क्योंकि सामाजिक व्यवस्था ऐसी बनाई गई कि वे जहां थे, भूखे मर रहे थे. उन्हें शहरों में सिर पर मल ढोने को तैयार होना पड़ा. अब किसानों की यही हालत की जा रही है.
वर्तमान सरकार की चाहत है कि किसान के पास न खेत बचें, न जो फसल है उस को बेचने की जगह. वह खरीदार को कम कीमत पर बेचे और उन को बेचे जिन के पास हजारोंलाखों टन अनाज गोदामों में भरा पड़ा है. भोपाल के गोलघर जैसे अनाज भंडार की तर्ज पर आज अडानी, अंबानी और दूसरी कंपनियां सारे देश में बना रही हैं क्योंकि इस में किसानों को मजबूर बना कर बेहद मोटी कमाई के अवसर हैं. सैंसेक्स और निफ्टी में उछालों का कारण यही है. विदेशी पैसे वालों को मालूम है कि अब विशुद्ध भारतीय ईस्ट इंडिया कंपनी का राज है और शायद 200-250 साल यह चले भी. भारत पूंजी निवेश के लिए अच्छा स्थल है.
एक अरब लगाओ, 100 अरब पाओ जनता को भूखानंगा रख कर. नैस्ले, ब्रिटानिया, डाबर, पैप्सिको, रिलायंस रिटेल, जुबिलैंट फूड, केएफसी कंपनियां गांवों को खोज और उन के यहां ही महंगा ब्रैंडेड माल बेचने की रेसों में कूद पड़ी हैं. ये सब विदेशी पैसे पर कूद रही हैं. इन का हिंदुत्व केवल नारों तक है. हिंदुत्व की आड़ में, देशभक्ति की अकड़ में देशी कही जाने वाली कंपनियों में मोटा पैसा विदेशी लगा हुआ है, वहीं की तकनीक है, वहीं की मशीनें हैं, वहीं के कंप्यूटर सौफ्टवेयर हैं. इन कंपनियों ने सरकार को मजबूर किया है कि वह गांवगांव तक सड़कें ले जाए, बससेवा ले जाए, मार्केट बनाए. इन्हें गांवों की हालत सुधारने में कोई रुचि नहीं है. इन्हें गांवों में समाज सुधारों की चिंता नहीं है. गांवों में स्कूल नहीं चाहतीं ये, कालेज तो दूर की बात है. ये टिकटौक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप ज्ञान बेच कर मेहनती मजदूरों को धर्म का असली नशा पिलाने की इच्छुक हैं. सरकार के कदम व इस सब से देश आत्मनिर्भर नहीं बनेगा बल्कि विदेशी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ेगी. टैक्स के पैसे से नहरें बनाने को कहा जा रहा है, पुल बनाने को कहा जा रहा है ताकि व्यापार चमके, कच्चा माल खरीदने में आसानी हो और गांवों में विदेशी ब्रैंड बेचे जा सकें.
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गांवों को चूसने की तैयारी में देश के धन्ना सेठ, धन्ना मंदिरवादी और धन्ना सत्ताधारी एकसाथ हैं. जो आपत्ति करे, सत्य बताए, पोल खोले वह विशुद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी का दोषी है और नंद कुमार की तरह फांसी पर देशद्रोह के आरोप में चढ़ेगा. न्यायाधीश का फैसला देश के सुप्रीम कोर्ट ने जहां सरकार के आगे कुछ भी जोर से कहना बंद कर दिया है, वहीं, निचली अदालतों ने अब देश में न्याय को स्थापित करने की जिम्मेदारी ले ली लगता है. निचली अदालतों के बहुत से न्यायाधीश अपने भविष्य की चिंता किए बिना ऐसे निष्पक्ष निर्णय देने लगे हैं कि जिन से सरकारी पक्ष को नीचा देखना पड़ रहा है.
ग्रेटा थनबर्ग के मामले में गूगल टूल किट को एडिट करने का दोषी मान कर पुलिस ने जिस तरह से तानाशाही रवैया अपनाते हुए 21 वर्षीया ऐक्टिविस्ट दिशा रवि को पकड़ कर जेल में ठूंस दिया था और बारबार उस की जमानत न होने देने की कोशिश कर रही थी, वह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की ही नहीं, आम आदमी की आजादी पर भी हमला था. सरकार का संदेश था कि वह जो कह व कर रही है, उसे मान लो वरना यह देश कम्युनिस्ट चीन और नाजी जरमनी जैसा ही है. 18 पृष्ठों के निर्णय में जिला न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि देशद्रोह के आरोप को सरकार के अहं की तुष्टि के लिए नहीं उपयोग किया जा सकता. वैचारिक मतभेद, विरोध, आलोचना एक समर्थ और सक्रिय लोकतंत्र की जरूरतें हैं और नाममात्र के तथ्यों को अपराधों के सुबूत कह कर किसी को जेल की सींखचों में बंद नहीं किया जा सकता. हर विरोधी को खालिस्तानी मूवमैंट से जोड़ कर पुलिस कागजी खानापूर्ति कर सकती है पर उस के साक्ष्य जुटाना आसान नहीं है. किसी भी तरह की कोई संस्था या एसोसिएशन, जो स्वतंत्रताओं की बात करे चाहे वह सरकार का तख्ता पलटने का काम कर रही हो,
न्यायाधीश के अनुसार, अपराध की श्रेणी में नहीं आती. उस की सदस्यता लेना किसी के देशद्रोही होने का सुबूत नहीं है. एक के बाद एक ऐसे कई निर्णय अदालतों से आए हैं जिन में वृद्ध, शिक्षित, बेहद सौम्य, मृदुभाषी लोगों को हफ्तों, महीनों और सालों जेल में बंद रखा गया है क्योंकि उन्होंने सरकार की ज्यादतियों की पोल खोली है, आवाज उठाई है. जैसे धर्म में भक्त को अपने धर्म के खिलाफ चूं करने की इजाजत नहीं होती वैसे ही मौजूदा सरकार अपने खिलाफ एक भी शब्द सुनने को तैयार नहीं है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ का भी एक ऐसा ही चूलें हिलाने वाला फैसला दिखा है. यह लोकतंत्र के लिए घातक है. दरअसल, यह पूरे समाज को गुलामी की जंजीरों में बांधने की साजिश है. और जो समाज गुलाम होता है वह उन्नति नहीं कर पाता. मानसिक गुलामी और शारीरिक गुलामी में लंबाचौड़ा फर्क नहीं है क्योंकि दोनों ही दिमाग के दरवाजे बंद कर देते हैं.
अंधभक्त और अंधकमरे में बंद लोग एकजैसे होते हैं, मौजूदा सरकार अदालतों के सहारे लोगों की आंखों पर पट्टियां व हाथों में जंजीरें बांधने में लग गई है. न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा के निष्पक्ष व साहसी निर्णय जैसे एकाध मजिस्ट्रेट ही देते हैं. और तब महसूस होता है कि देश कीचड़ में अभी पूरा नहीं डूबा है. सत्ताधीशों के लिए कानून रात के 2 बजे पार्टी से लौटने का हक हरेक को है (फिलहाल तभी तक जब तक इसे देशद्रोह न मान लिया जाए), पर यह न भूलें कि इस संस्कारी देश में सतर्क पर बिखरे गुंडों की कमी नहीं है. रात को लड़की के अकेले या सिर्फ एक पुरुष को, चाहे पिता हो या पति, देख कर हैरेस करना आम बात है. अब गुंडों, मवालियों के पास अपनी नई गाडि़यां भी हैं क्योंकि ज्यादातर लोग सत्तारूढ़ पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और उन के लिए पुलिस वालों को धमकाना आसान है.
दिल्ली की एक टीवी ऐक्टर रात 2 बजे सड़क पर बुरी तरह भयभीत हुई जब एक कार में सवार लोगों ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया और फिर उस के घर तक पहुंच गए. उन्होंने पुलिस की परवा भी नहीं की. पुलिस ने तो बाद में तुरंत उन्हें जमानत भी दे डाली. उन के संपर्क ही ऐसे थे. रोहिणी इलाके के डीसीपी प्रमोद कुमार मिश्रा कहते रहे कि अपराध जमानती था. पर असल बात कुछ और है. देश का कानून आजकल केवल सत्ताधीशों की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल हो रहा है और अदालत पर पूरा भरोसा नहीं रह गया है. क्योंकि आज का न्यायाधीश कल सत्तारूढ़ दल का बाकायदा सदस्य हो सकता है. इसलिए जो लड़कियां सड़क पर रात के चलने का जोखिम ले रही हैं उन्हें किसी भगवाधारी को पटा कर रखना चाहिए ताकि वे भी आफत में किसी की शरण ले सकें. ऋ षिमुनियों के शरण में ही सुरक्षा मिलती है, यह वैसे भी हमारे पुराण कहते हैं और प्रवचनों के बल पर चल रही पुलिस फोर्स अब औरतों की सुरक्षा को सैकेंडरी काम ही मानती है. रात को चलो तो गाड़ी पर भगवा ?ांडा लहरा लेना एक सुरक्षात्मक जरिया हो सकता है.
सिर पर भगवा दुपट्टा भी काफी सुरक्षा की गारंटी है. अफसोस यह है कि आज भी मीडिया में ऐसे लोग हैं जो आज तक, जी न्यूज की नहीं सुनते और मानते हैं कि देश की कानून व्यवस्था संविधान से चलती है, प्रवचनों वालों के नारों से नहीं. उन के साथ वही हुआ जो इस युवती व उस के पति के साथ हुआ. जिमखाना बनता देश दिल्ली का जिमखाना क्लब न केवल प्रधानमंत्री के निवास के निकट है, इस क्लब के सदस्य भी प्रधानमंत्री के निकट वाले होते हैं. इस क्लब की सदस्यता को एक खास स्टेटस सिंबल माना जाता है. भारत जैसी संस्कृति, जहां पद और पैदाइश दोनों में गहरा संबंध है, में इस क्लब की सदस्यता सरकारी अफसरों के बच्चों तक ही सीमित है. इस के सदस्यों ने नियमकानून ऐसे बना रखे हैं कि आम लोगों को सदस्यता भूल कर भी न मिल सके. लेकिन जैसा हर दरबार में होता है, इस क्लब में भी भयंकर राजनीति है और तरहतरह के मठाधीश हैं. कोई मठ कुछ आईएएस अफसरों का है, कोई मिलिट्री वालों का, कोई पुलिस वालों का तो कोई पिछले राजनीतिबाजों के पुत्रों का.
हर मठ दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहता है. चाय 12 रुपए की हो या 20 रुपए की, इस पर घंटों जनरल काउंसिल बहस करती है. इस क्लब पर सैकड़ों मुकदमे चले हैं. चूंकि मोटी एंट्री फीस है, इसलिए क्लब के पास पैसों की कमी नहीं है. शादीब्याहों के लिए दी जाने वाली जगह से भी अच्छी आमदनी होती है. अब जब शहद है, तो मक्खियां आएंगी ही. इस क्लब पर अब नैशनल कंपनी लौ ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार का एक अफसर बैठा दिया है और चुनी हुई जनरल काउंसिल हवा हो गई है. ट्रिब्यूनल का कदम यह साबित करता है कि इस देश की नौकरशाही कितनी गैरजिम्मेदार है कि वह अपने सुरक्षित क्लब को भी आंतरिक विवादों से बचा कर नहीं रख सकती.
इस क्लब के सदस्य तंगदिल और ऊंचे अहं के शिकार हैं. वे एक संस्था को नष्ट करने में जरा भी देर नहीं लगाते. जब वे उस जगह को नष्ट कर सकते हैं जहां वे बुढ़ापे में कुरसियों में घंटों पड़े रह सकते हैं, तो वे देश का क्या हाल कर रहे होंगे, क्या यह सोचने की बात नहीं? हमारी सेना और नौकरशाही ने पूरे देश को जिमखाना सा बना रखा है जो निरर्थक आंतरिक विवादों में डूबा है और जिस पर अब नियंत्रण करने को बाहरी यानी विदेशी हवाई जहाजों में भरभर कर आ रहे हैं. गेंहू की बोरी में कैसे दाने हैं, यह एक दाने को परखने से पता चल जाता है न? यह क्लब एक वैसा ही दाना है.