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डा. मणि अपने चिरप्रतीक्षित सपने को साकार  रूप में मूर्त देख बहुत प्रसन्न थीं. उन की बेटी आद्या ने उन का नर्सिंग होम जौइन कर के उन्हें चिंतामुक्त कर दिया था. डा. अवनीश के साथ उस की जुगलबंदी देख वे मन ही मन उस के सुखद दांपत्य की कल्पना करतीं. लेकिन यह निर्णय तो पूर्णतया आद्या को या उन दोनों को ही करना होगा.

पिछले 10 वर्षों में इस नर्सिंग होम के रूप में जिस पौधे को उन्होंने  रोपा था वह आज वटवृक्ष बन कर शहर के विश्वसनीय नर्सिंग होम में शुमार हो चुका है. अब उन के चेहरे पर अपने सपने के पूर्ण होने की अपूर्व संतुष्टि का भाव रहता था.

एक क्रिटिकल केस में वे घंटों से परेशान थीं. जैसे ही पेशेंट ने आंखें फड़फड़ाईं, वे डा. पूनम को सब समझा कर अपने केबिन में आ गईं और ललिता से कौफी लाने के लिए कह कर आंखें बंद कर कुछ देर रिलैक्स होने की कोशिश करने लगीं कि तभी रीना अंदर आई और एक विजिटिंग कार्ड उन के सामने रख दिया.

उन्होंने उड़ती नजर से कार्ड को देखा, बोलीं, “आज मैं किसी मैडिकल रिप्रैजेन्टेटिव  से नहीं मिल पाऊंगी,  उन्हें डा. अवनीश से मिलने को कह दो.”

“डा. मैडम,  वे आप से ही मिलना चाहती हैं.‘’

उन्होंने कार्ड पर फिर नजर डाली, पंखुरी सिंह…“भेज दो.”

25 – 30 वर्षीया, छरहरी सी आकर्षक युवती, आंखों के अंदर से  झांकती कजरारी आंखें और माथे पर झूलती घुंघराली लटें,  कंधे पर सुंदर सा बैग लटकाअए हुई अंदर आते ही बोली, “डाक्टर साहिबा, नमस्कार.”

“नमस्कार,” उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई चंदा मांगने के लिए आया है, इसलिए रूखी आवाज में बोलीँ, “क्या काम है?”

“मैडम, आप ने मुझे पहचाना नहीं?”

वे गौर से उस के चेहरे को देखने लगीं. अपने स्मृतिपटल को काफी खंगालने के बाद भी वे पहचान का सूत्र तलाशने में असमर्थ रही थीं. रोज सैकड़ों मरीजों व उन के रिश्तेदारों से मिलते रहने के कारण  मन में सबकुछ गड्डमड्ड सा हो रहा था.

फिर भी उस का चेहरा जानापहचाना सा जाने क्यों लग रहा था उन्हें.

“मैं, पंखुरी, जिस को  आप ने नया जीवन सच्चे अर्थों में दिया था.”

वे एकदम खड़ी हो गई थीं, “ओह पंखुरी, सालों पहले तुम अपनी मां के साथ आई थीं. तुम्हारे पापा पुलिस में थे, न.”

“यस, यस.”

“आओ बैठो, तुम्हारी मां व पापा सब ठीक तो हैं?”  यह कहने के बाद उन्होंने ललिता से कौफी  लाने को बोला और फिर से पंखुरी से मुखातिब हुईं, “मुझे कैसे याद किया, एनी प्रौब्लम?”

उस ने अपने बैग से एक कार्ड निकालते हुए कहा, “डा. मैडम, 4 मार्च को कला वीथिका सभागार  में मेरी एकल प्रदर्शनी है. उस की चीफ गैस्ट आप होंगी,” वह सकुचाते हुए आगे बोली, “उदघाटन भी आप को करना है. मैं ने बिना आप की परमिशन उदघाटन के लिए आप का नाम दे दिया है, इस के लिए बड़ा वाला सौरी.” वह सिर झुकाए खड़ी थी.

वे हंस पड़ी थीं.  उन्होंने कार्ड को ध्यान से देखा- ‘4 मार्च, सन्डे, शाम  3 बजे, …कला वीथिका. फिर बोलीं, “ठीक है, मैं आऊंगी.”

“मैं गाड़ी भेजूं?”

“नो नीड टु बी फौर्मल,” यह कह उन्होंने उठ कर उसे प्यार से गले लगा लिया.

“मैडम, मेरा ‘यशोदा’ नाम से बुटीक भी है. यह मेरे द्वारा डिजायन किया हुआ सूट आप के लिए मेरी ओर से गिफ्ट है.”

“अरे, इट्स ग्रेट, वेरी नाइस सूट. थैंक्स पंखुरी. आद्या, मेरी बेटी, ‘यशोदा बुटीक‘ के लिए कुछ कह तो रही थी. पंखुरी, आई विल कम.”

“बाय…” कहती हुई वह  चली गई थी.

वह ठंडी हवा के झोंके की तरह आई  और  चली गई. उन के स्मृतिपटल पर अतीत का पृष्ठ सजीव हो उठा और  पंखुरी का  क्लांत श्रांत चेहरा उन की आंखों के समक्ष दृष्टिगत हो उठा था. और आज, आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्वाभिमानी युवती को देख मन ही मन आत्मसंतुष्टि  से उन के चेहरे पर मुसकराहट छा गई थी.

वे अतीत के दिनों में पहुंच गई थीं…एक रात को 9 बजे ही वे अपनी कुरसी से घर जाने के लिए उठी थीं और अपने नर्सिंग होम का राउंड लेने के बाद मन ही मन बुदबुदाईं, ‘चलो, आज कोई सीरियस पेशेंट नहीं है. आज की रात चैन से सोऊंगी. घर जल्दी पहुंच कर थोड़ी देर आद्या के साथ भी समय बिताऊंगी.

उस की प्रिंसिपल ने भी एक दिन उन्हें बुला कर कहा भी था- डा. मणि, आप की बेटी शायद अकेलापन महसूस करती है. आप उसे थोड़ा टाइम दिया करिए. कहीं ऐसा न हो कि आप दूसरों का इलाज करती रह जाइए और आप की अपनी ही बेटी बीमार हो जाए.

घर आ कर वे आद्या पर कितनी नाराज हो उठी थीं. वे सोचने लगी थीं कि इस साल वह 12वीं पास तो हो जाएगी लेकिन अपनी पढ़ाई को ले कर वह सीरियस नहीं है. मेरे सपने का क्या होगा? एक आद्या ही तो  उन के जीवन की धुरी है. उस को हर हाल में उन का सपना पूरा  करना ही होगा.  यदि कंपीटिशन में अच्छी रैंक न आई, तो क्या होगा?

किसी अच्छे कालेज में एडमिशन के लिए कम से कम 50 लाख रुपए का खर्च आएगा. अभी तो नर्सिंग होम की ईएमआई चल ही रही है. इतने बड़े स्टाफ की सैलरी, नईनई मशीनें आदि सबकुछ लोन के बलबूते ही तो इतना बड़ा साम्राज्य  खड़ा हुआ  है. उन्होंने निश्चय किया कि आज ही वे आद्या से अवश्य अपने सपने को पूरा करने के लिए सीरियस हो जाने के लिए  कहेंगी.

वे स्टाफ को रात के लिए आवश्यक निर्देश देने के बाद अपनी गाड़ी स्टार्ट कर रही थीं कि सुपरवाइजर लीला घबराई हुई सी भागती हुई आई थी, ‘मैडम, इमरजैंसी केस है. लड़की बेहोश है. उस के मुंह से झाग निकल रहा है. शायद, उस ने कुछ उलटासीधा खा लिया है.’

 

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