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Bigg boss 13 फेम हिन्दुस्तानी भाऊ को मुंबई पुलिस ने किया गिरफ्तार, प्रोटेस्ट करना पड़ा भारी

कोरोना के कहर को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया है. जो भी लॉकडाउन के नियमों का उल्लंधन कर रहा है उसके साथ महाराष्ट्र सरकार सख्त करवाई कर रही है. इसी बीच खबर आ रही है कि बिग बॉस 13 में नजर आ चुके फेमस यूट्यूबर विकास पाठक को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

आपको बता दें कि विकास पाठक को लोग हिेन्दुस्तानी भाऊ के नाम से भी जानते हैं. खबरों कि माने तो हिन्दुस्तानी भाऊ को धारा 144 के अंतरगत गिरफ्तार किया गया है. जहां उन्होंने नियमों का उल्लंधन किया था.

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बता दें कि मुंबई के कई छात्र संगठन 12 कि परीक्षा को रद्द करने के लिए प्रोटेस्ट कर रहे थें, इन लोगों कि मांग थी कि सरकार को बच्चों कि फिस माफ कर देनी चाहिए. ये छात्रसंगठन प्रोटेस्ट करने के लिए दादर शिवाजी पार्क पहुंचे.

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इसी बीच इन छात्रों को सपोर्ट में हिन्दुस्तानी भाऊ भी वहां पहुंच गए. जैसे ही हिंन्दुस्तानी भाऊ वहां पहुंचे पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सोशल मीडिया पर हिंन्दुस्तानी भाऊ का यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है जहां हिन्दुस्तानी भाऊ को पुलिस गिरफ्तार कर रही है और वह शोर मचाते नजर आ रहे हैं.

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गौरतलब है कि हिन्दुस्तानी भाऊ अपनी बयानों कि वजह से सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा छाएं रहते हैं. आए दिन कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जिससे वह चर्चा कि विषय बन जाते हैं. कुछ वक्त पहले उन्होंने एकता कपूर के खिलाफ भी बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह धर्म को ठेस पहुंचा रही हैं.

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पूरा देश कोरोना महामारी से परेशान चल रहा है. ऐसे में एक-दूसरे का सहारा बनना बहुत साहस दे रहा है. हर कोई प्रार्थना कर रहा है कि जल्दी देश इस बुरे समय से बाहर आए. कब किसकी मौत कि खबर आ जाए किसी को पता नहीं है.

बॉलीवुड के कई सितारे ऐसे हैं जो मदद के लिए इस वक्त सामने आ रहे हैं. इस लिस्ट में सबसे पहला नाम सोनू सूद का था, जो पिछले साल से ही कोरोना से लोगों की बचाव कर रहे हैं. इसके बाद सलमान खान ने भी कोरोना मरीजों के लिए बहुत कुछ किया.

अब बॉलीवुड के शांहशाह अमिताभ बच्चन का नाम भी सामने आ रहा है कि वह दिल्ली के एक कोविड केयर सेंटर को 2 करोड़ रुपये कि मदद किए हैं. इसकी जानकारी दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैंनेटमेंट कमिटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिया है.

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मनजिंदर सिंह ने ट्विट कर बताया कि अमिताभ बच्चन ने गुरु तेग बहादुर कोविड केयर फैसिलिटी को 2 करोड़ रुपये का सहयोग दिए हैं. उन्होंने लिखा कि जब अमिताभ बच्चन ने कोविड केयर सेंटर को फंड दिया तो लिखा कि सिखों की सेवा को सलाम. आगे उन्होंने लिखा कि जिस वक्त दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी थी, उस वक्त वह हर रोज फोन करके मुझसे पूछा करते थें.

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कोरोना ने देश में हाहाकार मचाकर रख दिया है. ऐसे में लोगों को अपने साथ- साथ लोगों का भी ध्यान रखने कि जरुरत है. हर रोज लाखों लोग अपनों को खो रहे हैं. ऐसे में पूरा देश परेशान चल रहा है.

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अमिताभ बच्चन की वर्कफ्र्ंट कि बात करें तो वह जल्द केबीसी के नए सीजन को लेकर आने वाले हैं. इसकी रजिस्ट्रेशन अभी से शुरू हो गई है.

मदर्स डे स्पेशल : बौबी-भाग 3

राहुल खाना खाने बैठा तो बौबी ने उस की तरफ देखा भी नहीं और गेट के पास जा कर भूंकने लगी. राहुल ने उठ कर गेट खोल दिया तो सीधे तनु के घर जा कर जोरजोर से भूंकने लगी.

बौबी इस घर को खूब पहचानती थी. तनु ने उसे आया देखा तो खुशी के मारे उस की आंखें भर आईं. उसे गोद में उठा लिया, खूब प्यार किया. बौबी भी उस की गोद से उतरने को तैयार नहीं थी, तनु बहुत खुश हुई.

उस ने अपने लिए अभी बाहर से खाना मंगाया था. उस ने बौबी को अपने साथ खिलाया. खाना खा कर तनु के साथ टाइम बिता कर बौबी अपनेआप राहुल के पास आ गई  और आराम से जमीन पर नीचे अपने बैड पर लेट गई.

राहुल और तनु को यह अंदाजा तो बिलकुल नहीं था कि इस बात पर आपस का झगड़ा इतना बढ़ जाएगा कि तलाक की नौबत आ जाएगी, पर अब मामला गंभीर था. तनु के पेरैंट्स ने उसे थोड़ा ऐडजस्ट करने के लिए समझाया पर तनु को बारबार सासूमां के कटु ताने और राहुल का उन को कुछ भी न कहना अब सहन नहीं था.

तलाक की बात भी विभा ने ही फोन पर तनु से की, कहा,” तुम्हारा गुजारा मेरे सीधेसादे बेटे के साथ होगा नहीं, उस से तलाक लो और उसे चैन से रहने दो.‘’

तनु ने कहा,”मैं तैयार हूं, कर लो अपने बेटे को आजाद…”

विभा ने छलकपट से उन दोनों के बीच तलाक की प्रक्रिया शुरू करवा दी थी. राहुल के पिता थे नहीं. घर में  मांबहनों की जिदों का बोलबाला था.

बौबी दुखी थी, कभी एक घर से दूसरे घर भटकती रहती, दोनों का प्यार चाहिए था उसे, वह किसी बच्चे से कम नहीं थी. जैसे एक बच्चे को अपने मातापिता दोनों का साथ और प्यार चाहिए होता है, वही बौबी को चाहिए था और यह दोनों भी देख रहे थे कि बौबी अब पहले की तरह खुश नहीं रहती, अपनी मनपसंद की चीजें भी छोड़ कर दूसरे के पास पहुंच जाती है. पड़ोस के लोग भी बौबी को खूब पसंद करते, आसपास वालों को राहुल और तनु के अलगअलग रहने की भनक मिल चुकी थी.

बौबी को इधर से उधर जाते देखते तो कोई हंसता, किसी को उस पर प्यार आता. बौबी कभी किसी के पास रहती, तो कभी किसी के पास.

राहुल और तनु बौबी से संबंधित बात मैसेज या फिर फोन पर करते.

उन की बात इस तरह की होती, “बौबी पहुंच गई न? उस ने कुछ खाया था? कल उसे अपने पास रख लेना, मुझे देर होगी…”

ऐसा नहीं था कि राहुल और तनु को एकदूसरे की याद न आती, दिन तो दोनों का औफिस में बीत जाता पर  शाम और रातें काटे न कटती. एकदूसरे के साथ बिताए हसीन पल, प्यारी मुसकराहटें, खिलखिलाहटें आंखों के आगे किसी फिल्म के दृश्यों  सा घूमते, पर बात काफी बढ़ गई थी…

एक रविवार तनु छत पर कपडे सुखा कर सीढ़ियों से नीचे आ रही थी कि अचानक उस का पैर फिसला और गिरतेगिरते उस के मुंह से चीख निकल गई. वह गिरने पर बेहोश हो गई.

बौबी कूदती हुई उस के पास पहुंची. उस के पैरहाथ चाटे, भूंकी… तनु के शरीर में जरा भी हरकत नहीं हुई, तो बौबी को महसूस हुआ कि कुछ गलत हुआ है. अभी घर का गेट खुला हुआ था क्योंकि कामवाली अभी गई ही थी और तनु ऊपर छत पर थी.

बौबी ने राहुल की तरफ दौड़ लगा दी और राहुल को देखते ही लगातार भूंकना शुरू किया. पहले तो राहुल ने सोचा कि भूखी होगी, पर जब राहुल का हाथ हलके से मुंह में दबाते हुए बौबी ने बाहर चलने का इशारा किया तो वह चौंका.

बौबी उसे पकड़ कर तनु के घर की सीढ़ियों के पास ले गई जहां तनु बेहोश पड़ी थी. राहुल घबरा गया, फौरन तनु को गोद में उठा कर बैड पर लिटा दिया.

राहुल ने फौरन डाक्टर को फोन किया. डाक्टर जल्दी ही आए, तनु का चैकअप किया, उसे इंजैक्शन और दवाएं दीं.

तनु को कुछ चोटें आई थीं. उसे पट्टी बांधी फिर अगले दिन आने के लिए कह कर डाक्टर चले गए. तनु को जल्दी ही होश आया. आंखें खुलते ही राहुल के हाथ में अपने हाथ और पास बैठी टुकुरटुकुर देखती बौबी पर नजर पड़ी, इतना ही कहा,”क्या हुआ? तुम यहां?”

”बौबी बुला कर लाई, तुम गिर गई  थीं, तुम्हारा ब्लड प्रैशर हाई चल रहा है? बताया क्यों नहीं ?”

राहुल के हाथों में उस का हाथ था. उस का कोमल स्पर्श, उस के चेहरे पर अपने लिए चिंता, तनु की आंखें भर आईं, कहा कुछ नहीं, राहुल ने ही फिर कहा,”कुछ खाने के लिए है किचन में? तुम्हें दवाई देनी है,” फिर तनु की कुहनी जहां पट्टी बंधी थी, पर हाथ रखता हुआ बोला,”दर्द है?”

”हां.”

”आओ, बौबी, मैडम के लिए कुछ खाने के लिए लाते हैं,” बौबी राहुल के पीछे लपक कर उठी पर तनु ने कहा,”आ जा, बौबी, मेरे पास रहो,” फिर बौबी तनु के पास आ दुबकी, राहुल हंसता हुआ किचन की तरफ चला गया.

दोनों को लगा जैसे बीते दिनों में कुछ हुआ ही नहीं था, दिलों में सोया प्यार जैसे जाग उठा था और ऐसे जागा था कि इस बार कि दोनों को लगा जैसे जलते दिल पर शीतल जल की फुहारें सी बरस गई हों.

राहुल प्लेट में खाना ले कर आ गया. तनु को अपने हाथ से खिलाने लगा. बौबी खुश हो कर भूंकी, तो दोनों हंस पङे.

तनु ने कहा,”तुम भी खा लो. मेरे लिए थोड़े ही बना होगा.”

राहुल इस समय हंसीमजाक के मूड में आ गया था. तनु समझ गई कि सुलह का मौका मिला है, वह भी जी नहीं पा रही राहुल के बिना.

उस ने कहा,”तुम कैसे खा रहे हो आजकल?”

”मम्मी की तरफ जाता हूं, तो वहीं खा लेता हूं, पर बौबी की वजह से कुछ बनाना पड़ता है, क्योंकि तुम्हारी तरह बौबी भी मम्मी को पसंद नहीं करती. वहां ले गया था तो मैडम ने भूंकभूंक कर सब की नाक में दम कर दिया, घर आ कर ही शांत हुई. न वे प्यार करते इसे, न यह करती है उन लोगों को. पर हमारी तो जान है यह. है न…”

तनु ने एक ठंडी सांस ले कर कहा,”जो इंसान से प्यार नहीं करते, वे भला जानवरों से क्या प्यार करेंगे.”

अब राहुल ने सीरियस हो कर कहा,”ठीक कह रही हो.”

थोड़ी देर बाद राहुल ने मायूसी से कहा,”चलूं? कोई प्रौब्लम हो तो फोन कर देना, कल मैं आ जाऊंगा, डाक्टर को एक बार दिखाना है.”

राहुल उठने लगा तो लेटी हुई तनु ने उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया. आंखों की कोरों से आंसू बह निकले.

राहुल ने पलभर उस का उदास चेहरा देखा और झुक कर उस के होंठ चूम लिए.

उस के गाल सहलाते हुए कहा,”सौरी तनु, मैं ने तुम्हारे साथ गलत बरताव किया.‘’

तनु ने उठने की कोशिश करते हुए राहुल के गले में बांहें डाल दीं, राहुल ने भी उसे बांहों में भर लिया और अपने सीने से लगा लिया.

बहुत से पल यों ही गुजर गए. जीवन में आने वाले तूफान की दिशा देखते ही देखते बदल गई थी. दोनों ने पास बैठी बौबी को अपने बीच में लिटा लिया और उसे “थैंक यू बौबी…” कहतेकहते उस से खेलने लगे.

बौबी कभी राहुल के ऊपर, तो कभी तनु के ऊपर कूद रही थी.

मदर्स डे स्पेशल : बौबी-भाग 2

3 दिन बाद फिर विभा आ गईं. राहुल टूर पर था. बौबी के कान खड़े हो गए कि विभा अब तनु के साथ क्या करेंगी. तनु औफिस से आई ही थी कि विभा ने इधरउधर देखते हुए कहा,”क्या हाल है घर का, जरा भी साफ नहीं है, मेरा राहुल तो इतना सफाई पसंद था.‘’

तनु ने अपनेआप को शांत रखते हुए कहा,”अब घर ठीक करूंगी, मम्मीजी. सुबह टाइम नहीं मिलता, औफिस जल्दी पहुंचना था आज. आप बैठिए, मैं जरा बौबी को पहले बाहर ले जाऊं. बेचारी सारा दिन अकेली रही है घर में,”कह कर तनु बौबी को ले कर बाहर चली गई.

बौबी ने महसूस किया कि तनु बहुत थकी और उदास है. बौबी को दुख हुआ कि ये कैसे पेरैंट्स हैं जो बच्चों के जीवन में क्लेश कर के खुश होते हैं.

थोड़ी देर बाद विभा चली भी गईं, मगर जातेजाते हिदायत दे गईं,”वैसे तो तुम सुनती नहीं किसी की, पर औफिस जाती हो तो इस का मतलब यह नहीं कि घर की देखभाल न करो. पता नहीं क्या सोच कर राहुल ने तुम से शादी की.‘’

तनु को गुस्सा आ गया, बोली,”आप को हमारा घर नहीं पसंद तो फिर न आया करें, राहुल को वहीं बुला लिया कीजिए, हमारा घर तो साफ ही रहता है, आप के अलावा किसी ने कभी नहीं कहा कि हमारा घर साफ नहीं रहता.

“सुबह कामवाली आ कर घर साफ कर के जाती है, पीछे पूरा दिन बंद रहता है. कहां गंदा है घर? और अगर है भी तो हम खुश हैं.‘’

विभा को यह जवाब बरदाश्त नहीं हुआ, चिल्ला कर बोलीं,”अब तू देख, मैं क्या करती हूं.‘’

विभा के जाने के बाद तनु बैड पर लेट कर रोने लगी. बौबी से देखा नहीं गया. उस के हाथपैर सब चाट डाले. कूं…कूं… कर के जैसे उसे तसल्ली दी, फिर खुद भी उदास मन से तनु के पैर के पास लेट गई.

तनु को बौबी के पास होने से बड़ा सहारा महसूस हुआ, फौरन सब बातों से ध्यान हट गया और बौबी के बारे में सोचने लगी कि कितना प्यार करती है दोनों को. सारी बात समझ जाती है… मन ही मन यह सोच कर तनु को हंसी आ गई कि काश, सासूमां बौबी से आधा भी प्यार दे देतीं तो जिंदगी कुछ आसान हो जाती.

वह उठ कर बौबी से लिपट गई,”बौबी, तू कितनी प्यारी है. चल, खाना खाते हैं, फिर खेलेंगे,” बौबी तो यह सुन कर बैड से कूद कर किचन की तरफ दौड़ पड़ी और तनु भी उसे पुचकारती हुई खाना लगाने लगी.

तनु हैरान थी, राहुल टूर पर है पर न उस का फोन उठा रहा है, न खुद फोन कर रहा है, बस एक मैसेज लिख दिया कि मैं ठीक हूं, आ कर बात करूंगा.

राहुल जब टूर से लौटा तो उस का मूड बहुत ज्यादा खराब था, पर बौबी को गोद में उठा कर प्यार जरूर किया. दोनों में से जो भी बाहर से आता, पहले बौबी से ही मिलता, उसे खूब दुलारता.

बौबी जैसे दोनों के जीवन का सब से जरूरी हिस्सा थी, पर तनु पर बिफर पड़ा,”तुम ने मेरी मम्मी की इंसल्ट की हो? जानती तो हो कि मैं उन के खिलाफ कोई भी गलत बात बरदाश्त नहीं करूंगा, वे फोन पर कितनी रोईं… तुम ने उन्हें यह कहा है कि यहां न आया करें?” राहुल का मूड बुरी तरह खराब था.

तनु ने पूछा,”तुम्हें कभी नहीं लगा कि वे गलत बात करती हैं?”

”अगर करती भी हैं तो मेरी मम्मी हैं.‘’

”पर मैं किसी की भी गलत बात हमेशा ही तो बरदाश्त नहीं कर सकती, तुम्हें पता है कि तुम्हारे पीछे आ कर मुझे क्याक्या कहती हैं? तुम जानते हो उन्होंने मुझे अपनाया ही नहीं है.”

”फिर तो तुम्हें और ढंग से उन के साथ रहना चाहिए.‘’

”मुझ से नहीं होगा.‘’

”तो मैं भी ऐसे नहीं रह सकता कि मेरी मम्मी यहां आ कर दुखी हों.‘’

”ठीक है, मैं अभी चली जाती हूं,” कह कर तनु भी गुस्से में अपना बैग उठा कर उस में कपङे ठूंसने लगी.

बौबी भूंकी, उस पर ध्यान गया तो तनु बौबी से लिपट कर रोने लगी,”चल, बौबी, कहीं और रहेंगे. यहां मांबेटे को रहने दो.”

राहुल गुस्से से बोला,”बौबी क्यों जाएगी कहीं? यह मेरी बौबी है.‘’

”नहीं, बौबी को मैं ले जाउंगी, मैं इस के बिना नहीं रह सकती.‘’

”जैसे मेरे बिना रहने जा रही हो, इस के बिना भी रह लेना.‘’

”नहीं, बौबी को ले कर जाउंगी, कम से कम यह तुम्हारी मां की तरह मुझ से चिढ़ती तो नहीं.‘’

इस घर से कुछ ही दूर ही तनु का एक छोटा सा घर था, जिस में वह शादी से पहले रहती थी. वैसे तो शादी होते ही तनु ने उसे किराए पर दे दिया था पर इन दिनों वह घर खाली था. राहुल भी जानता था कि तनु वहीं जा सकती है.

वह सोच रहा था कि अभी आ जाएगी, जब अपनी गलती महसूस होगी.

बौबी कभी राहुल की पैंट खींचती, कभी तनु का बैग पकड़ती, पर निरीह सी कुछ कर नहीं पाई. मायूस आंखों के आगे 2 प्यार करने वालों को अलग होते देखती रही और तनु के पीछेपीछे चल कर उस के साथ जाने लगी तो राहुल ने आवाज दी,”बौबी, आओ इधर, नहीं जाना है.‘’

बौबी वापस राहुल की तरफ मुड़ गई, तनु ने पलट कर राहुल को देखा तो वह तनु की तरफ अकड़ और विजयी भाव से देखने लगा. तनु अकेली चली गई, पर उस रात जब बौबी ने कुछ भी नहीं खाया, गेट के पास बैठ कर अजीबअजीब सी आवाजें निकालने लगी तो राहुल उसे अपने साथ बैड पर लिटा कर उस से खेलने लगा पर बौबी चुपचाप बैठी रही.

Crime Story : हताश जिंदगी

23मार्च, 2021 की शाम 5 बजे चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को सूचना मिली कि चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल की पांचवीं मंजिल से कूद कर रक्षा शोध संस्थान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी ने खुदकुशी कर ली है. यह खबर उन्हें कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम द्वारा मिली थी. चूंकि मौत का यह मामला हाईप्रोफाइल था, अत: थानाप्रभारी सूचना मिलते ही घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी.

दधिबल तिवारी पुलिस बल के साथ चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंचे तो वहां कर्मचारियों की भीड़ जुटी थी. जेई रजनी त्रिपाठी का शव हौस्टल के बाहर खून से तरबतर पड़ा था. उन का सिर फट गया था और शरीर के अन्य भाग चकनाचूर हो गए थे. कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि रजनी त्रिपाठी डीएमएसआरडीई (डिफेंस मटीरियल ऐंड स्टोर रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट) में अवर अभियंता थी. उन के पास 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की भी जिम्मेदारी थी. उन्होंने पांचवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या की है. दधिबल तिवारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि खबर पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह तथा एसपी (पूर्वी) शिवाजी भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया, फिर वे हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंचे, जहां से रजनी त्रिपाठी ने छलांग लगाई थी.

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वहां पर पुलिस अधिकारियों को उन की चप्पलें, मोबाइल फोन और बैग मिला. बैग को खंगाला गया तो बैग में नींद की 15 गोलियों का पैकेट मिला, जिस में 6 गोलियां नहीं थीं. साथ ही फिनायल की बोतल मिली, जिस का ढक्कन खुला था. बैग में एक पर्स भी मिला जिस में नकदी थी. इसी बैग में सुसाइड नोट भी था. बैग को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मौत को गले लगाने से पहले जेई रजनी त्रिपाठी ने नींद की गोलियां खाई थीं और एकदो ढक्कन फिनायल भी पिया था. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल की बारीकी से जांच की. टीम ने बैग से बरामद सामान की भी जांच की तथा साक्ष्य एकत्र किए.

एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी शिवाजी ने मृतका के मोबाइल को खंगाला तो उस में रजनी के पिता का मोबाइल नंबर सेव था. अत: उन्होंने उन के पिता परमात्मा शरण को उन की मौत की सूचना दी तथा शीघ्र घटनास्थल पर आने को कहा. बेटी की मौत की सूचना पा कर वह घबरा गए. इस के बाद तो उन के घर परिवार में सनसनी फैल गई.

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बैग में मिला सुसाइड नोट

मृतका के पिता को सूचना देने के बाद पुलिस अधिकारियों ने बैग से बरामद रजनी के सुसाइड नोट का अवलोकन किया. सुसाइड नोट अंगरेजी में लिखा गया था, जिस में उन्होंने लिखा था, ‘पति शिवम मुझे प्रताडि़त करता है. रुपयों की मांग करता है. सास, जेठ, देवर भी धमकाते हैं. हमारी मासूम बेटी का इलाज भी पति नहीं कराना चाहता. वह चाहता है कि बेटी मर जाए.’

सुसाइड नोट पढ़ने के बाद पुलिस अधिकारी समझ गए कि रजनी त्रिपाठी ने पति व ससुरालीजनों की प्रताड़ना से आजिज आ कर आत्महत्या की है. उन की मौत का जिम्मेदार उन का पति व ससुराल के अन्य लोग हैं. उन्हें कानून के शिकंजे में कसना होगा. इसी समय मृतका रजनी के परिवार के लोग आ गए. बेटी का शव देख कर परमात्मा शरण त्रिपाठी फफक पड़े. भाई निखिल भी रो पड़ा. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें धैर्य बंधाया तथा घटना के संबंध में पूछताछ की.

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परमात्मा शरण ने उन्हें बताया कि वह आईआईटी नानकारी में रहते हैं. उन्होंने मई, 2019 में बड़ी बेटी रजनी का विवाह गुजैनी निवासी शुभम पांडेय के साथ किया था. शादी के चंद माह बाद ही वह बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने लगा. रजनी की सास शशि पांडेय तथा जेठ सत्यम व देवर हिमांशु उर्फ सनी भी उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे. उन की मांग थी कि मायके से 10 लाख रुपए ला कर दे तथा गांव की जमीन में भी हिस्सा दो. मांग पूरी न होने पर उन्होंने रजनी को जान से मारने की धमकी दी थी.
धमकी से डर कर रजनी मायके में आ कर रहने लगी थी. मार्च 2020 में जब लौकडाउन लगा तो दामाद शुभम पांडेय भी आ कर बेटी के साथ रहने लगा. यहां भी वह रजनी को प्रताडि़त करता था और वेतन का रुपया छीन लेता था. विरोध करने पर वह घर वालों से मारपीट पर उतारू हो जाता था.

ससुरालियों पर लगाया आरोप

26 फरवरी, 2020 को रजनी ने अस्पताल में बेटी को जन्म दिया था. बेटी पैदा होने से शुभम नाराज था क्योंकि वह बेटा चाहता था. जन्म के बाद मासूम को इंफैक्शन हो गया था. इलाज के लिए उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया था. लेकिन शुभम बेटी का इलाज नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि वह मर जाए. इलाज को ले कर वह रजनी तथा घर के लोगों को प्रताडि़त करता था. एक सप्ताह पहले वह रजनी से लड़झगड़ कर अपने घर गुजैनी चला गया था. तब से रजनी बेहद परेशान थी.

आज सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ अस्पताल का बिल पास कराने अपने औफिस के लिए निकली थी. 11 बजे हमारी रजनी से बात भी हुई थी. लेकिन उस के बाद मुझे शाम को उस की मौत की सूचना मिली. रजनी की मौत का जिम्मेदार उस का पति शुभम पांडेय तथा उस के घर वाले हैं. उन दहेजलोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर कानूनी काररवाई की जाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका रजनी के शव को पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. चूंकि मृतका के सुसाइड नोट में उत्पीड़न की बात कही गई थी तथा मृतका के पिता ने भी दहेज उत्पीड़न की बात कही थी. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को तुरंत रिपोर्ट दर्ज करने तथा आरोपियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने मृतका रजनी के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी की तहरीर पर भादंवि की धारा 304 के तहत मृतका के पति शुभम पांडेय, जेठ सत्यम पांडेय, देवर हिमांशु तथा सास शशि पांडेय के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए. 24 मार्च, 2021 को जब रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी की मौत की खबर अखबारों में छपी तो शुभम पांडेय व उस के घर वाले घबरा उठे. उन की बेचैनी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि उन के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज हो चुका है और पुलिस उन की तलाश में जुटी है. वे अपने बचाव में घर से फरार हो गए और गिरफ्तारी से बचने के लिए सत्तापक्ष के नेताओं के तलवे चाटने लगे.

24 मार्च को ही कड़ी सुरक्षा के बीच मृतका रजनी के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम हाउस के बाहर उमड़ी भीड़ के बीच कल्याणपुर से विधायक एवं उच्च शिक्षा राज्यमंत्री नीलिमा कटियार भी पहुंचीं. उन्होंने बिलखते मृतका के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी को धैर्य बंधाया और कहा कि दुख की इस घड़ी में वह उन के साथ हैं. वह उन की हरसंभव मदद करेगी. दहेजलोभियों को बख्शा नहीं जाएगा. उन की गिरफ्तारी जल्द ही होगी. चूंकि राज्यमंत्री का बयान पुलिस के जेहन में था. अत: पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर मृतका रजनी के पति शुभम पांडेय व जेठ सत्यम पांडेय को नाटकीय ढंग से 25 मार्च को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में शुभम व सत्यम पांडेय ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने मृतका के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताया. उन्होंने कहा कि उन लोगों ने कभी भी रजनी का उत्पीड़न नहीं किया. उस ने प्रेम विवाह किया था. दहेज की बात कहां से आर्. रजनी जिद्दी व घमंडी थी. वह हमारे परिवार को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करती थी. जेई रजनी ने किया था प्रेम विवाह कानपुर शहर का एक मोहल्ला नानकारी पड़ता है. आईआईटी से नजदीक होने के कारण इसे आईआईटी नानकारी के नाम से जाना जाता है. यह कल्याणपुर थाना अंतर्गत आता है. इस मोहल्ले में ज्यादातर धनाढ्य लोगों का निवास है. इसी नानकारी में परमात्मा शरण अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुड्डी के अलावा 3 बेटियां रजनी, अंशुल, रोषी तथा एक बेटा निखिल था. परमात्मा शरण त्रिपाठी कानपुर के मुख्य डाकघर में वरिष्ठ सहायक के पद पर थे. उन का अपना आलीशान मकान था.

उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. परमात्मा शरण त्रिपाठी स्वयं पढ़ेलिखे थे, अत: उन्होंने अपने बच्चों को भी उच्चशिक्षा दिलाई थी. अंशुल पढ़लिख कर बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी, जबकि बेटा निखिल आईआईटी कानपुर से पीएचडी कर रहा था. बड़ी बेटी रजनी की तमन्ना इंजीनियर बनने की थी. वह खूब मेहनत कर रही थी और इंजीनियरिंग की कोचिंग भी जाती थी. रजनी त्रिपाठी जिस कोचिंग सेंटर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जाती थी, उसी में शुभम पांडेय भी पढ़ने आता था. शुभम पांडेय कानपुर के गोविंदनगर थानांतर्गत गुजैनी मोहल्ले में रहता था. उस का बड़ा भाई सत्यम पांडेय प्राइमरी स्कूल में शिक्षक था, जबकि छोटा भाई हिमांशु उर्फ सनी लेखपाल था. मां शशि पांडेय घरेलू महिला थीं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

शुभम और रजनी हमउम्र थे. दोनों साथसाथ कोचिंग कर रहे थे, अत: उन में दोस्ती थी. दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. प्यार का रंग गहरा हुआ तो दोनों एकदूसरे के बिना अपने को अधूरा समझने लगे. एक रोज प्यार के क्षणों में शुभम ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया तो रजनी ने उस के प्यार पर मोहर लगा दी. दोनों में तय हुआ कि डिग्री हासिल करने के बाद जब वे नौकरी करने लगेंगे, तब ब्याह रचा लेंगे.

समय बीतने के साथ शुभम ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली और वह एक निजी कंपनी में इंजीनियर बन गया. रजनी त्रिपाठी भी डिग्री हासिल करने के बाद डीएमएसआरडीई (रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान) में अवर अभियंता के पद पर नौकरी करने लगी. उसे 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की जिम्मेदारी भी दी गई. हर रोज विभागीय कार ड्राइवर के साथ वह औफिस आतीजाती थी. नौकरी लग जाने के बाद शुभम ने रजनी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे रजनी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों ने परिवार वालों को अपने प्यार के बाबत बताया और शादी की इच्छा जताई. दोनों परिवारों की सहमति के बाद 2 मई, 2019 को रजनी और शुभम शादी के बंधन में बंध गए. शुभम की दुलहन बन कर रजनी ससुराल आ गई.

ससुराल में चंद माह बाद ही रजनी को प्रताडि़त किया जाने लगा. पति, सास, जेठ व देवर उस पर 10 लाख रुपया मायके से लाने का दबाव बनाने लगे. गांव की जमीन में भी हिस्सा देने की बात कहने लगे. रजनी ने जब बात मानने से इनकार कर दी तो उसे प्रताडि़त किया जाने लगा. उसे जानमाल की धमकी भी दी जाने लगी. प्रताड़ना से आजिज आ कर रजनी ससुराल छोड़ कर मायके आ गई. मार्च, 2020 में जब लौकडाउन घोषित हुआ तो शुभम का काम प्रभावित हुआ. अत: वह भी रजनी के साथ नानकारी आ कर रहने लगा. ससुराल में रहते हुए भी शुभम पत्नी को प्रताडि़त करता और उस का वेतन छीन लेता. रजनी व उस के मातापिता विरोध करते तो शुभम उन के साथ मारपीट करता. लोकलाज और बेटी के भविष्य को देखते हुए परमात्मा शरण, शुभम के खिलाफ कोई काररवाई न करते.

26 फरवरी, 2021 को रजनी ने प्राइवेट अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म से शुभम का मूड खराब हो गया. उस ने खूब हंगामा किया और रजनी को भी प्रताडि़त किया. बेटी बीमार पड़ी तो वह उस का इलाज भी नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि बेटी मर जाए. लेकिन रजनी ने इलाज कराया तो वह 12 मार्च को लड़झगड़ कर तथा तरहतरह की धमकियां दे कर अपने घर गुजैनी चला गया.

पांचवीं मंजिल से लगाई छलांग

पति की प्रताड़ना से रजनी टूट चुकी थी. उसे अपना जीवन नीरस लगने लगा था. वह दिनरात अपने व अपनी मासूम बेटी के भविष्य के बारे में सोचती. वह कई दिनों तक इन्हीं झंझावात में उलझी रही.
आखिर उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय किया. इस के लिए उस ने 15 गोलियों वाले नींद की गोली के पत्ते को खरीदा तथा फिनायल की एक बोतल खरीदी. इसे उस ने अपने बैग में सुरक्षित कर लिया. इस के बाद रात में उस ने अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा और उसे भी बैग में रख लिया.

23 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ घर से निकली. लगभग 11 बजे पिता ने उस से बात की तो उस ने बताया कि वह हौस्पिटल का बिल पास कराने चंदारी स्थित औफिस जा रही है. उस के बाद रजनी शहर में घूमती रही. शाम 4 बजे वह औफिस पहुंची. कार उस ने सड़क किनारे खड़ी करा दी और 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंची. फिर वह सीढि़यां चढ़ कर हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंची. यहां उस ने चप्पलें उतारीं और नींद की 6 गोलियां फिनायल के साथ निगल लीं. उस के बाद छलांग लगा दी.
हौस्टल के कर्मचारियों ने रजनी की बौडी को देखा तो वह सहम गए. उन में से एक कर्मचारी ने भाग कर कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम को सूचना दी. चौकी इंचार्ज ने तुरंत थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को घटना से अवगत कराया. उस के बाद पुलिस व अधिकारी घटनास्थल पहुंचे. 26 मार्च, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त शुभम व सत्यम पांडेय को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक शशि व हिमांशु पांडेय को पुलिस गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

घर में बनाएं किचन गार्डन, ऐसे उगाएं सब्जियां और फल- भाग 1

देश में जब भी खराब हालात रहे हैं, लोगों को कभी बंदी, कर्फ्यू या लौकडाउन का सामना करना पड़ा है. उस दौर में लोगों को सिर्फ एक ही चीज की ज्यादा जरूरत पड़ी है वह है, खानेपीने की वस्तुएं. कोरोना के चलते लगे लौकडाउन ने लोगों में इस चीज का एहसास ज्यादा कराया है कि खाने के लिए अनाज और सब्जियों का समय पर मिलना कितना जरूरी है. इस दौर में शहरों में रह रहे लोगों को भी सोचने को मजबूर कर दिया है, क्योंकि उन के पास इतनी जमीनें तो होती नहीं हैं कि वे अपने खानेभर के लिए अनाज उपजा पाएं.

लेकिन शहरों में रह रहे कुछ लोगों के पास घर के दायरे में इतनी जगह जरूर होती है, जिसे वह किचन गार्डन के रूप में उपयोग कर ताजा और रसायनमुक्त सब्जियां और फल उपजा कर अपनी रोज की जरूरतों को न केवल पूरा कर सकते हैं, बल्कि लौकडाउन जैसे हालात में सब्जियों की किल्लत से भी नजात पा सकते हैं. घर बनाने से पहले छोड़ें किचन गार्डन का हिस्सा अगर आप हर रोज ताजा और हरी सब्जियों के खाने के शौकीन हैं, तो आप के लिए किचन गार्डन सब से मुफीद तरीका हो सकता है. बस इस के लिए आप को घर का प्लान करते समय ध्यान देने की जरूरत होती है.

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आप जब भी घर बनवाने की सोचें, तो अपने आर्किटैक्ट को बोल कर कुछ खाली हिस्से को किचन गार्डन के लिए जरूर छोड़ दें. आप द्वारा किचन गार्डन के लिए छोड़ी गई थोड़ी सी जमीन आप को हर साल हजारों रुपए का फायदा करा सकती है. गमले भी हो सकते हैं किचन गार्डन का हिस्सा जिन लोगों के घरों में सब्जियां उगाने के लिए खाली जमीन नहीं है, वे भी घर पर किचन गार्डन बना कर सब्जियां उगा सकते हैं. इस के लिए गमले का इस्तेमाल किया जा सकता है. गमलों में सब्जियां उगाने के पहले उस में भरी जाने वाली मिट्टी को तैयार कर लेना चाहिए. इस के लिए मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कंपोस्ट या नाडेप कंपोस्ट को अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए.

इस के बाद ही गमले में मिट्टी को भरा जाना चाहिए. गमले में लगाई जाने वाली सब्जियों के मामले में यह ध्यान दें कि एक बार में ही खत्म हो जाने वाली सब्जियों की जगह उन में मौसमी सब्जियों को उगाएं. गमले में सब्जी बीज बोने से पहले यह तय कर लें कि आप अच्छी किस्म के बीज का इस्तेमाल कर रहे हैं. गमले में उगाए जाने वाले सब्जी के मामले में इस बात का खास ध्यान देना होता है कि उस में ली जाने वाली सब्जी के पौधे और जड़ों का फैलाव ज्यादा न हो, इसलिए उन्हीं सब्जियों को लगाना चाहिए , जो कम जगह घेरती हों. गमलों में लगाई गई सब्जियों को छत के ऊपर या खिड़कियों और दरवाजों के पास आसानी से रखा जा सकता है. इन्हें एक जगह से दूसरी जगह भी ले जाया जा सकता है. इस से गमले में लगाए जाने वाले पौधों को सूरज की रोशनी दिखाना और पानी देना भी आसान होता है.

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किचन गार्डन के लिए इन सब्जियों का करें चयन आप मौसम को ध्यान में रख कर अपने किचन गार्डन के लिए सब्जियों का चयन करें. बारिश के शुरुआत में यानी जूनजुलाई महीने में बैगन, मिर्च, खीरा, तोरई, लोबिया, बरसाती प्याज, अगेती फूलगोभी, लोबिया, भिंडी, अरवी, करेला, लौकी, टमाटर, कद्दू की रोपाई या बोआई की जा सकती है. वहीं रबी सीजन के शुरुआत में यानी अक्तूबरनवंबर माह में चौलाई, लहसुन, टमाटर, भिंडी, बींस, गांठ गोभी, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, बैगन, सोया, पालक, चुकंदर, मूली, मेथी, प्याज, लहसुन, फूल गोभी, गाजर, शलगम, ब्रोकली, सलाद पत्ता, बाकला, बथुआ, सरसों साग जैसी सब्जियों की बोआई या रोपाई की जा सकती है.

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जायद के सीजन यानी फरवरीमार्च माह में घीया, तोरई, करेला, टिंडा, खीरा, लौकी, परवल, कुंदरू, कद्दू, भिंडी, बैगन, धनिया, मूली, ककड़ी, हरी मिर्च, खरबूजा, तरबूज, राजमा, ग्वार जैसी सब्जियों की बोआई कर सकते हैं. इस के अलावा नीम, तुलसी, एलोवेरा, गिलोय, पुदीना, अजवायन, सौंफ, मीठी नीम, अदरक को भी किचन गार्डन में उगाया जाना आसान है. इन के साथ ही हम मौसमी फूलों के पौधों की रोपाई कर घरघर की खूबसूरती में भी चार चांद लगा सकते हैं. जिन के पास पर्याप्त मात्रा में किचन गार्डन के लिए जमीन उपलब्ध हो, वे सब्जियों के साथ फलदार पौधे जैसे पपीता, केला, नीबू, अंगूर, अमरूद, स्ट्राबैरी, रसभरी, अनार, करौंदा आदि रोप कर आसानी ताजा फल हासिल कर सकते हैं.

 

कोविड संकट में शिक्षा  

कोविड संकट ने शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल कर दिया है. इसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा सभी शामिल है. सबसे अधिक बुरा प्रभाव उच्च शिक्षा पर पड़ रहा है. जहां छात्र अपनी शिक्षा पूरी करके रोजगार की तलाश में निकलते है तो वहां उनको ज्यादातर खाली हाथ रहना पड़ता है. उच्च शिक्षा में आईआईएम, आईआईटी जैसे विश्वविद्यालय औनलाइन शिक्षा का बेहतर उपयोग भले कर रहे हों पर देश में ऐसे कालेज और संस्थान सबसे अधिक हैं जहां औनलाइन शिक्षा सही प्रकार से नहीं हो पा रही है. औनलाइन शिक्षा में नोट्स और असाइनमेंटस का बहुत महत्व होता है. इनको इस तरह से तैयार किया जाता है कि छात्रों को असुविधा ना हो पर ज्यादातर कालेजों में ऐसा माहौल नहीं है.

2020 के बाद यह सोचा जा रहा था कि अगले साल शिक्षा का सत्र सही से चलेगा. 2020 के दिसंबर माह से ही इस बात के प्रयास भी शुरू कर दिए गए थे. 2021 की जनवरी माह में स्कूल और कालेज का खुलना शुरू हुआ. कालेजों के बाद स्कूलों को भी खोल दिया गया. औनलाइन क्लास के बाद औफलाइन परीक्षाएं भी प्लान की जाने लगी. कालेजों में तो फरवरी-मार्च माह में पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं होने लगी थी. इसी समय फिर से कोविड संक्रमण का दौर शुरू हो गया. कोविड की दूसरी लहर बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगी और पूरे देश को अपनी गिरफ्त में लेने लगी. 2020 में कोविड संक्रमण से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा था, इस साल जानमाल को बेहद नुकसान होने लगा. छात्रों को बिना परीक्षा के पास कर देने से वह दूसरी कक्षा में पहुंच तो जा रहे पर उनको जानकारी ना के बराबर हो रही है.

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कोविड संक्रमण का शिकार होकर लोगों के मरने से परिवार के परिवार तबाही की कगार पर पहुंच गए. देश में मंहगी शिक्षा पहले से ही सामान्य परिवारों को परेशान कर रही थी. दो साल से उपजे कोविड संकट ने जिस तरह से देश के आर्थिक आधार को तोड़ने का काम किया उसका प्रभाव भी शिक्षा पर पड़ा है. स्कूलों में पिछले साल से औनलाइन शिक्षा दी जा रही है. इससे छात्रों को बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा है. किताबी जानकारी तो किसी तरह से मिल भी जा रही पर प्रैक्टिकल विषयों की जानकारी एकदम भी नहीं हो रही है. शिक्षाविद रिचा खन्ना कहती है,“औफलाइन शिक्षा और औनलाइन शिक्षा दोनो में अंतर होता है. जिन विषयों में प्रैक्टिकल का महत्व होता है वहां केवल औनलाइन से काम नहीं चलता है. हमारे देश में औनलाइन शिक्षा का आधार अभी तैयार हो रहा है.”

दुर्घटनाओं में टूटते परिवार :

20 साल की नेहा अपने मातापिता की अकेली संतान थी. उसके पिता रमेश चन्द्र प्राइवेट नौकरी करते थे. इस नौकरी में उनको टूर भी करना पड़ता था. जिसमें उनको महाराष्ट्र आनाजाना पड़ता था. इसी में उनको कोविड का संक्रमण हो गया.जिस के चलते उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. जिसमें उनको 20 दिन अस्पताल में रहना पड़ा. इस 20 दिन में इलाज में 11 से 12 लाख रूपया खर्च हो गया. इसके बाद भी रमेशचन्द्र को बचाया नहीं जा सका. नेहा और उसकी मां के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि अब उनका घर कैसे चलेगा? नौकरी और बच्चों की पढ़ाई के लिए रमेशचन्द्र ने कई साल पहले अपनी गांव की खेत और मकान बेच का शहर में रहना शुरू किया था.

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बेटी नेहा को इंजीनियर बनाने के लिए एडमिशन दिलाया. अचानक कोविड का प्रकोप बढ़ा तो पहले की  रूक गई. दूसरे साल की पढ़ाई में रूकावट तो थी इसी बीच पिता के ना रहने के बाद नेहा की पढ़ाई कैसे पूरी होगी यह सवाल सामने खड़ा हो गया. यह कोई नेहा की अकेली परेशानी नहीं है. कई परिवारों के बच्चे इस परेशानी से गुजर रहे हैं. जिनके सामने यह संकट है कि वह अपनी आगे की पढ़ाई कैसे जारी रखेंगे, अभी तो नेहा और उसकी मां इस बारे में कुछ भी सोचने की हालत में नहीं है. नेहा का मन है कि वह किसी भी तरह से अपनी पढ़ाई जारी रख सके. जिससे अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी मां का सहारा बन सके और अपने पिता की तरह घर का आर्थिक बोझ उठा सके.

बेरोजगारी ने बढाई मुश्किलें :

कोविड का प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर और भी कई तरह से रहा है. कोविड संकट के दौरान लोगों में बेरोजगारी भी बढ़ रही है. जिन बच्चों ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली उनको रोजगार नहीं मिल रहा है. प्राइवेट नौकरी में सेलरी का पैकेज कम हो गया है. डाक्टर, इंजीनियरिंग,ला और एमबीए की पढ़ाई में अब महंगी फीस परिवारों को अदा करनी पड़ती है. कई परिवार कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ाते है. उनको यह उम्मीद होती है कि बच्चा जब पढ़ाई करके कालेज से निकलेगा तो उसकी कमाई से पढ़ाई का कर्ज भी पूरा हो सकेगा और घर को मदद भी मिलेगी. कोविड संकट के दौरान पहले साल तालाबंदी होने के बाद प्राइवेट सेक्टर को बहुत नुकसान हआ. देश मंदी के दौर में पहुंच गया. आर्थिक संकट गहराने से नौकरियों का सकट खड़ा हो गया. जिन युवाओं को नौकरियां मिली भी वहां पैकेज कम था.

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पढ़ाई और फीस का खर्च कम नहीं हुआ. कालेजों में फीस के साथ ही साथ हौस्टल में रहने और खाने की खर्चा बढ़ गया. पहले नौर्मल होस्टल की फीस 60 से 80 हजार रूपए सालाना थी. जो अब बढ़ कर 80 हजार से 1 लाख तक पहुंच गई है. 2020-2021 में भले ही बच्चों को हौस्टल में रहना ना पड़ा हो पर स्कूलों में हौस्टल के खर्च में किसी तरह की रियायत नहीं दी गई. औनलाइन पढ़ाई हुई और छात्र कालेज नहीं गए पर फीस और हौस्टल में खर्च में राहत नहीं दी गई. समाजसेवी प्रताप चन्द्रा कहते है कि,“शिक्षा पूरी करने के बाद भले ही रोजगार नहीं मिल रहे. बेरोजगारी बढ़ने से फीस देने की दिक्कत आई. लोगों ने बच्चों की पढ़ाई छुड़वाने का काम किया. कम फीस वाले स्कूलों में भर्ती कराया. इसके बाद भी पढ़ाई के बाद रोजगार कहीं दिख नहीं रहा है.

साल दर साल गहराता संकटरू

कोविड से केवल 2020 के साल में ही दिक्कत नहीं थी, 2021 में भी पढ़ाई का यही हाल देखने को मिल रहा है. जिस तरह से यह कहा जा रहा है कि इस साल के अंत तक कोविड की तीसरी लहर भी आने का अंदेशा दिख रहा है. अनुमान लग रहा है कि तीसरी लहर का प्रभाव छोटे बच्चों पर पड़ेगा. जिससे स्कूल और कालेज सबसे अधिक प्रभावित होंगे. ऐसे में शिक्षा का हाल सुधरता नहीं दिख रहा है. जानकार लोग मान रहे हैं 2024 तक स्कूल और शिक्षा के हालत सुधरने वाले नहीं है. जब तक कोविड को लेकर पूरे देश में वैक्सीन नहीं लग जाएगी और कोविड का प्रभाव कम नहीं हो जाएगा तबतक सुचारू रूप से शिक्षा का यही हाल रहेगा. ऐसे में इस दौरान शिक्षा व्यवस्था औनलाइन पर निर्भर करेगी. अगर शिक्षा व्यवस्था में औनलाइन का प्रभाव असर ऐसे ही बना रहेगा तो स्कूलों पर भी संकट खड़ा हो जाएगा.

एक साल में 2 सेमेस्टर भी अब पूरे नहीं हो पा रहे. जो छात्र नए कोर्स में प्रवेश चाहते हैं समय से सेमेस्टर पूरा ना हो पाने के कारण वह पूरा नहीं हो पाता है. समय पर परीक्षाएं और परीक्षा के परिणाम घोषित ना होने के कारण छात्र और उनके पैरेंटस दोनों ही तनाव में रह रहे हैं.कालेजों के द्वारा परीक्षाओं के नाम पर खानापूर्ति करके छात्र को अगली कक्षा तो में प्रवेश तो दे दिया जा रहा है पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पूरी तरह से अभाव दिखता है. ऐसे में यह छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं को कैसे पास कर पाएंगे यह सवाल बना हुआ है. समय पर परीक्षाएं आयोजित ना होने के कारण अंतिम साल के छात्रों पर प्लेसमेंट ना होने का खतरा मंडराता रहता है.छात्रों के इंटर्नशिप और दूसरे कार्यक्रमों पर भी समय पर परीक्षाएं आयोजित ना होने का प्रभाव पड़ता है.

सर्वागीण विकास में बाधा :

स्कूल और कालेजों के सुचारूपूर्वक ना खुलने से छात्रो के सर्वांगीण विकास पर असर पड़ता है. खेल, मनोरंजन और डिबेट जैसे कार्यक्रमों के आयोजन से छात्रों का सर्वागीण विकास होता था. परिसर बंद रहने से यह गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प पड़ीहैं. आज छात्र कंप्यूटर, लैपटौप और मोबाइल तक सीमित रह जा रहे हैं. घरों में कैद होने की वजह से सामाजिक दूरी बन रही है. ऐसे में छात्र डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं. मनोविज्ञानी डाक्टर नेहा आनंद कहती है कि, “छात्रों को ऐसी हालत से बाहर निकालने के लिए कालेज और घरपरिवार को मिल कर सोचना चाहिए. इसके साथ ही साथ मनोविज्ञानियों को भी इस दिशा में सोचविचार करना चाहिए. जिससे वह छात्रों को इस हालत से निकालने में मदद कर सके.

कोविड का सबसे अधिक खराब प्रभाव शिक्षा व्यवस्था पर पड़ रहा है. सरकार, समाज और घरपरिवार को मिलाकर इसका रास्ता निकालना होगा. ऐसे विकल्प तलाशने होंगे जिसमें छात्रों के भविष्य पर कोविड की इस अव्यवस्था का कम से कम प्रभाव पड़ सके. यह समय ऐसा है जब छात्रों का मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए. कोविड की समूची व्यवस्था के कारण पूरी दुनिया में शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है. हमारे देश में छात्रों की संख्या अधिक होने और गरीबी होने के कारण संकट अधिक है. यह संकट आने वाले सालों में एकदम से खत्म नहीं होने वाली है. ऐसे में इसको सामने रखकर शिक्षा व्यवस्था को तैयार करना होगा. तभी इसका मुकाबला किया जा सकता है.

 

Mother’s Day 2022: ममता की कीमत- भाग 2

इसी तरह मैं खुद जा कर किसी औरत से उस के बच्चे को गोद में नहीं लेती थी. किसी बच्चे पर प्यार भी नहीं जताया. मुझे अच्छी तरह मालूम था कि इस तरह किसी पराए बच्चे की तरफ अपना प्यार जताया तो लोग यही कहेंगे कि ‘बेचारी को बच्चे का सुख प्राप्त नहीं, इसलिए जब भी किसी भी बच्चे को देखती है तो भावुक हो जाती है.’ मैं इस तरह की टिप्पणी सुनना नहीं चाहती थी.

मुझे मालूम है औरत की फितरत ही ऐसी है. अगर उस के पास कोई चीज है जो दूसरों के पास नहीं, तो उस में एक अजीब सा गरूर आ जाता है. कभीकभी जब कोई औरत अपने बच्चे को मेरे हवाले करती तो मैं सिर्फ 5 मिनट के लिए उस बच्चे को पास रख कर फिर उस की मां को लौटा देती. ‘आप का बच्चा आप के पास आना चाहता है,’ ऐसा कहते हुए मां के पास उस बच्चे को सौंप देती थी. मैं किसी भी हाल में दूसरों की हमदर्दी नहीं लेना चाहती थी. 2 साल पहले उन्हीं दिनों में मुझे यह खबर मिली कि मेरे पड़ोस वाले फ्लैट में यह नया शादीशुदा जोड़ा किराएदार आया है और वह लड़की मां बनने वाली है. यह सारी खबर मुझे वाचमैन द्वारा मिली. उस ने यह भी बताया कि उन दोनों का अंतर्जातीय विवाह है, इसलिए उन के सहारे के लिए एक बूढ़ी औरत के सिवा और कोई नहीं है. मेरे लिए यह सिर्फ हवा में उड़ती हुई खबर थी और उस का कोई महत्त्व नहीं था. पूरे दिन मैं अपने काम में व्यस्त रहती थी. आसपास के लोगों से ज्यादा मेलजोल नहीं था, इसलिए मैं अपने नए पड़ोसी के बारे में भूल गई.

लेकिन अचानक एक रात लगभग एक बजे मेरे घर की घंटी बजी और हम पतिपत्नी ने चौकन्ने हो कर दरवाजा खोला. पति ने ‘यस’ कहा और एक मध्य उम्र की औरत ने अपनी पहचान दी, ‘हम पड़ोस में रहते हैं. मेरी भतीजी को प्रसव पीड़ा हो रही है. इसलिए…’ जैसे मैं ने पहले ही कहा था कि बच्चों का विषय अत्यंत भावुक होता है. अगर हमारी गाड़ी में उसे अस्पताल ले जाते वक्त कुछ अनहोनी हो जाए तो लोग कहेंगे कि वह औरत बांझ है और उस की बुरी दृष्टि के कारण ऐसा हुआ. इसलिए मैं ने पति के कुछ कहने से पहले जवाब दिया, ‘नुक्कड़ पर आटो स्टैंड है और वहां हर वक्त आटो मिलते हैं. अस्पताल भी यहां से नजदीक ही है.’ ऐसा कह कर मैं दरवाजा बंद करने लगी.

वह औरत झिझकते हुए बोली, ‘महीने का अंत है. हमारे पास 10 रुपए भी नहीं हैं. इसलिए आप अपनी गाड़ी में हमें अस्पताल छोड़ दें तो…’ ऐसा कह कर उस ने मेरी ओर देखा. यह सुन कर मैं भी एक क्षण हैरान हो गई. मेरे पति मूर्ति बन कर खड़े रहे. मुझे गुस्सा आया. अगर इन्हें मालूम है कि यह प्रसव का समय है तो इन लोगों को अपने पास पैसे तैयार रखने चाहिए थे. इस तरह अनजान लोगों से आधी रात को निर्लज्जित हो कर मदद मांग रहे हैं, लोग इतने गैरजिम्मेदार कैसे हो सकते हैं.

इसी बीच, कमर को पकड़ती हुई वह लड़की वहां आई. उस की पीड़ा उस के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी. उस ने मुझे देख कर कहा, ‘नहीं आंटी, डाक्टर ने कहा था कि अगले महीने 15 तारीख को  प्रसव होगा, इसलिए हम तैयार नहीं हैं.’ इस के आगे वह लड़की बोल न सकी, कमर को पकड़ कर वहीं बैठ गई. यह कैसी अजीब सी उलझन में डाल दिया मुझे इस लड़की ने. अगर मैं उसे ऐसी हालत में छोड़ देती तो लोग बोलेंगे एक बांझ औरत को प्रसव की वेदना के बारे में क्या पता होगा. हमारी गाड़ी में इसे अस्पताल छोड़ते समय इसे या इस के बच्चे के साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो भी लोग हमारी निंदा करेंगे, क्या करें अब?

मैं ने मन ही मन फैसला कर के उस लड़की से कहा, ‘बुलाओ अपने पति को.’ मेरी बात खत्म होने से पहले वह भी आ गया. उन दोनों को देख कर भावनाहीन स्वर में मैं बोलने लगी, ‘देखिए, हम बेऔलाद हैं. अगर हमारी गाड़ी में तुम्हें ले कर जाते समय कुछ अपशकुन हो जाए तो आप लोग हम पर कोई इलजाम न लगाने का वादा करें तो हम आप को मदद देने के लिए तैयार हैं.’ मेरी इस स्पष्टता पर मेरे पति भी मेरी ओर देखने लगे.

‘जी नहीं, आंटी, हम कभी भी ऐसा नहीं कहेंगे मेरे होने वाले बच्चे की कसम,’ पीड़ा को सहते हुए बड़ी मुश्किल से उस लड़की ने कहा. उस के पति ने भी उसी बात को दोहराया. मैं ने तुरंत अपने पति की ओर देख कर कहा, ‘आप अपने साथ 10 हजार रुपए लेते जाइए. आप को वहां ठहरना नहीं है. उस लड़की को भरती करा कर रुपयों को उस के पति को दे कर आइए.’

अगली सुबह लगभग साढ़े 7 बजे हमारे घर की घंटी बजी. मैं ने दरवाजा खोला तो मनोहर वहां खड़ा था. कल रात ही मैं ने उस का नाम जाना. उस के हाथ में चौकलेट्स थे.

‘क्या हुआ, बेटा या बेटी? मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं न?’ मैं ने अपनी आवाज में ज्यादा जज्बा नहीं दिखाया.

‘बेटी हुई है आंटी, पहले आप को ही बता रहा हूं. आप ने जो मदद की, हम उसे जिंदगीभर नहीं भूल सकते. ये चौकलेट्स भी आप ही के पैसों से खरीदे हैं मैं ने. पहली चौकलेट आप लीजिए. रोशनी ने (अभी मैं जान गई कि उस की पत्नी का नाम रोशनी है) साफ कह दिया कि पहले आप ही बच्ची को देख कर उस को प्यार करेंगी. उस के बाद हम दोनों हमारे घर वालों को बताएंगे.’ मैं ने उस की बात को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया मगर ठीक 9 बजे मनोहर ने फिर से आ कर पूछा, ‘क्यों आंटी, आप अब तक तैयार नहीं हुईं क्या? आप ही बच्ची को पहले अपनी गोद में लेंगी.

छोटू: धर्म बड़ा या इंसानियत -भाग 5

वैसे तो इस एरिया में लाइट कभीकभार ही जाती थी, इसलिए इनवर्टर भी नहीं खरीदा गया था. अनिल ने कहा, ‘‘कोमल, तारिक बिजली वाले को बुलाओ. उसे बोलो, अभी ठीक करे.‘कोमल ने तारिक इलेक्ट्रिशियन को फोन किया. वह सोसाइटी के पास ही रहता था और सालों से सोसाइटी में लगभग सभी के घर वही आयाजाया करता था. कोमल ने उसे परेशानी बता कर तुरंत आने के लिए कहा.

तारिक ने फोन पर ही जवाब दिया, ‘‘आप के घर नहीं आऊंगा, दीदी. साहब ने जो छोटू के साथ किया, वीडियो देखा. मैं आप का काम नहीं करूंगा.‘’कोमल कुछ बोल नहीं पाई, ‘‘सौरी, तारिक भाई, मैं अपने पिता की हरकत पर शर्मिंदा हूं,‘‘ कह कर उस ने फोन रख दिया.

अनिल ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?‘‘’अब तारिक हमारे यहां कभी नहीं आएगा, आप ने जो छोटू के साथ किया है, वह भी जानता है.‘’अनिल बेशर्मी से हंसे, ‘‘अच्छा है, पता चल गया. न आए, अकेला वही है क्या जो लाइट ठीक करेगा,‘‘ कह कर उस ने सोहन को फोन किया, ‘‘यार, कोई बिजली वाला बताओ, ये तारिक तो नखरे दिखा रहा है, इस का इलाज भी करना पड़ेगा.‘’

उधर से मनोहर बिजली वाले का नंबर ले कर अनिल ने उसे फोन कर तुरंत आने को कहा, तो मनोहर ने कहा, ‘‘अभी आ तो जाऊंगा, साहब, पर रात को आने के पैसे 2,000 रुपए लूंगा, और जो काम होगा, उस के अलग.‘‘

‘‘दिमाग खराब हो गया है क्या?‘‘‘‘साहब, फिर तारिक से करवा लो. आप की सोसाइटी में ही तो आता है,” कह कर मनोहर ने अनिल को छेड़ा, तो अनिल को गुस्सा आ गया. फिर थोड़ा नरम पड़ते हुए अनिल ने कहा, ‘‘अभी तो मजबूरी है, फिलहाल तो आओ, देखते हैं.‘’

मनोहर आया, उस ने 5 मिनट में ही लाइट ठीक की, 2,000 रुपए अपने आने के और 1,000 रुपए का सामान बता कर पैसे लिए और चलता बना. अनिल को गुस्सा तो आ ही रहा था. सीमा ने कहा, ‘‘गुस्सा क्यों दिखा रहे हो? अरे, खुश हो जाओ, तुम्हारे धर्मजाति का इनसान तुम्हारा काम कर के गया है.‘‘

सुबह जब अनिल देर से उठा, तो सीमा और कोमल जाने के लिए तैयार हो रही थीं.अनिल का कपड़ों का बिजनेस था. कोमल को कुछ ज्यादा ही तैयार देखा. उस ने आज एक बहुत सुंदर साड़ी पहनी थी, जुबैर अभी उसे लेने आने वाला था और दोनों आज औफिस में अपनी शादी की पार्टी देने वाले थे, अनिल ने पूछा, ‘‘आज कुछ ज्यादा तैयार नहीं हो तुम?‘‘

कोमल के बोलने से पहले ही अपने हाथ में अखबार लिए सीमा ने कहा, ‘‘लो, तुम ये अखबार पढ़ो, हम निकलते हैं. आज जल्दी है. तुम देर से उठे  हो, किचन में नाश्ता, खाना सब रखा है. ‘‘और हां, जरा सी भी हरकत अगर दिमाग में आई तो सोच लेना, हम पूरी तरह तैयार हैं, कई समाजसेवी संस्थाएं मेरे साथ खड़ी हैं. सायमा के कजिन इंस्पैक्टर शाहिद खान का नाम सुना है न… तुम ने छोटू की जाति  पर हंगामा किया, हमें सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया. बच्चे के मन में डर भर दोगे? ऐसे कैसे चलेगा? कुछ तो करना ही पड़ेगा न… अब मैं खुश हूं कि इस समाज में तुम जैसों के फैलाए धर्मजाति के जाल को तोड़ने में कुछ तो कर पाई. खुश हूं कि अपने स्टूडेंट्स, अपने दोस्तों से गर्व से नजरें तो मिला पाऊंगी और अपनी बेटी को खुश देख पाऊंगी.‘’

अनिल चिल्लाया, ‘‘क्या किया है तुम ने?‘‘इतने में जुबैर की कार का हौर्न सुन दोनों बाहर की तरफ मुसकराते हुए लपके. अनिल को कुछ समझ न आया, पेपर खोला, सिटी न्यूज में एक कोने में बहुत सुंदर तसवीर थी, सद्भावना कौलम में एक अंतर्जातीय विवाह पर बधाइयां दी गई थीं, कोमल और जुबैर के मुसकराते चेहरे, पीछे खड़े सीमा, सायमा और ऐनकाउंटर स्पेशलिस्ट शाहिद खान. शाहिद को तसवीर में देख अनिल की रूह कांप गई.

‘सीमा ने यह क्या कर दिया,’ गुस्से में अनिल ने पेपर के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. फोन देखा, फेसबुक, ट्विटर, सोशल मीडिया पर ट्रेंड चल रहा था, ‘सौरी, छोटू.’ उस का फोन लगातार बजने लगा, स्क्रीन पर समिति के साथियों के नाम चमक रहे थे, अनिल का मन हुआ कि अभी जा कर सीमा का सिर फोड़ दे, पर किसी को हाथ लगाना आत्महत्या करने जैसा था. वह अपने बाल ही नोचता रहा, फिर फोन औफ कर के औंधा पड़ गया.

अनिल ने थोड़ी देर बाद अपने साथियों को फोन किया, ‘‘तुरंत आओ, बहुत परेशान और दुखी हूं.‘अनिल के 10 कट्टरपंथी दोस्त फौरन वहां आ पहुंचे. अनिल ने शर्मिंदगी से पूरी बात बताते हुए कहा, “मैं अब अपनी बेटी से कोई संबंध नहीं रखूंगा,” कह कर उस ने अपना सिर झुका लिया. इस ग्रुप के पुराने सदस्य रमाशंकर ने तसल्ली दी, ‘‘अरे, चिंता मत करो. हां, ठीक है, मत रखना ऐसी बेटी से संबंध, जिस ने हमारे धर्म के मुंह पर कालिख पोत दी. धिक्कार है ऐसी बेटी पर…

‘‘और तुम अकेले नहीं हो, हमारा परिवार तो करोड़ों का है, हम हैं न… और बेटी को तो एक दिन ससुराल जाना ही था.‘‘अपने साथियों से मिल कर अनिल के दिल को बड़ा सहारा मिला, सोच लिया कि कोमल से अब कोई संबंध नहीं रखेगा.जब सीमा और कोमल दोनों घर वापस आईं, तो अनिल के तेवर देख हैरान हुईं. उस ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा, ‘‘कोमल, तुम लोगों को जो करना था, कर लिया. अब मेरा तुम से कोई वास्ता नहीं.‘’

सीमा ने समझाने की बहुत कोशिश की, पर बहस बढ़ती गई. कोमल ने अपने रूम में जा कर जुबैर से बात की और वह उसे लेने फौरन आ गया. कोमल ने अपना जरूरी सामान चुपचाप उठाया और मां के गले लग सुबकते हुए चली गई.

बेटी की इस अनोखी सी विदाई पर सीमा के दिल पर एक बोझ सा पड़ा. सोचा था कि सब ठीक होने पर बेटी को अच्छी तरह विदा करेगी, पर कोई बात नहीं. उस का इस समय जाना शायद सब के लिए ठीक है, यही सोच कर सीमा ने अपने दिल को समझा लिया. फोन तो था ही, अब फोन पर ही बात करते रहते.

कोमल खुश थी, पर अब कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे थे. कोरोना की दूसरी लहर आने पर सब घर से काम करने लगे थे, पर घर में अब एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता.

अनिल अब भी अपने साथियों से फोन पर बातें करता रहता, राजनीति की, धर्म की बड़ीबड़ी बातें. सीमा का मन उकता जाता.वैसे, वे औनलाइन क्लास लेने में ही बहुत व्यस्त रहतीं, अब ठाणे में वापस वही लौकडाउन के दिन थे, सारे दिन फिर घर में बंद ही रहते दोनों. कोमल और जुबैर फोन पर ही मां सीमा का हालचाल लेते रहते.

सीमा हर चीज औनलाइन ही मंगवा रही थी, कुछ लोगों के साथ बात कर के घर से ही आसपास के कोरोना मरीजों के लिए खाना भेजती रहतीं और इस काम में छोटू और सरफराज उन की मदद कर रहे थे. सीमा आज भी मन में छोटू के साथ अनिल के किए पर बहुत शर्मिंदा थीं, इसलिए उन की बहुत मदद करतीं, बदले में वे पितापुत्र इस समय सीमा के साथ समाजसेवा में बराबर खड़े थे.

अनिल को यह पता ही नहीं था कि कोरोना मरीजों के लिए सीमा जो खाना बना कर भेजती है, उसे कौन ले जा रहा है. कोमल की शादी के बाद दोनों की आपसी बातचीत बहुत कम हो गई थी, सीमा कुछ भी बात करती, अनिल कोमल की शादी एक मुसलिम से करवाने पर उसे इतने अपशब्द कहता कि वह वहां से हट जाती.

सोसाइटी में दिन ब दिन कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे थे. हर तरफ अवसाद का माहौल था.वैसे तो सीमा और अनिल घर में ही रहते, पर कभीकभी अपनी बिल्डिंग के कंपाउंड में ही अलगअलग टहलने उतरते. और पता नहीं कैसे इतना ही बाहर निकलने पर दोनों कोरोना के शिकार हो ही गए. सारे सिम्टम्स तेजी से सामने आए. टैस्ट करवाया तो दोनों पौजीटिव थे. गले में दर्द, तेज बुखार और शरीर में बहुत ज्यादा दर्द के कारण एकदम बिस्तर पर पड़ गए. दोनों की हालत खराब हो रही थी. अनिल तो ब्लडप्रेशर, शुगर के भी मरीज थे. दोनों ने डाक्टर से वीडियो काल पर अपनी हालत बता कर इलाज शुरू कर दिया था.

अनिल को ज्यादा तकलीफ थी, सीमा ने सिर्फ सरफराज और छोटू को अपनी तकलीफ बता कर इतना ही कहा, ‘‘अब मैं कुछ दिन मरीजों के लिए खाना नहीं दे पाऊंगी.‘सरफराज ने बड़े ही आदर से कहा, ‘‘मैडम, आप दोनों अकेले हैं, आप का ध्यान मैं और छोटू रख लेंगे, अगर आप को कोई दिक्कत न हो तो…?‘‘

‘‘सरफराज भाई, दिक्कत कैसी…? ठीक है, तुम ही देख लेना अब हमें.‘सोसाइटी के आसपास के कई लोग घर से कोविड पेशेंट के लिए खाना भेज रहे थे. जब अनिल की तबियत ज्यादा खराब होना शुरू हुई, तो उस की अकड़ कुछ ढीली पड़ने लगी.

पहले तो अनिल ने अपने कई साथियों को फोन पर अपनी हालत बताई, पर वे खुद डरे हुए थे, जो बेटेबहू के साथ रहते थे. वे इन दिनों अपने बेटेबहू पर एक्स्ट्रा काम का बोझ डालने से बच रहे थे, उन लोगों ने अपनी असमर्थता बताते हुए माफी मांग ली.

सीमा ने यह सब देखसुन कर कहा, ‘‘चिंता मत करो, हमारा ध्यान रखने के लिए लोग हैं.‘‘‘‘कौन…?‘‘‘‘हैं कुछ लोग… वे खाना इधर से उधर पहुंचाने का काम मेरे साथ कई दिनों से कर रहे हैं, तुम चिंता मत करो, ठीक होना है जल्दी हमें,‘’ कह कर बेहद दर्द में भी सीमा मुसकराई, तो हिलनेडुलने में असमर्थ अनिल का चेहरा बुझा, हताश ही रहा.

टीएमसी वाले आ कर घर के दरवाजे पर स्टीकर लगा गए थे. गले में बहुत दर्द और खांसी के कारण सीमा की कोमल से बात नहीं हुई थी, ताकत भी नहीं बची थी बात करने की. फोन देखने की भी हिम्मत नहीं थी.

जब कुछ दिन हो गए, सीमा ने फोन नहीं उठाया, न व्हाट्सएप पर जवाब दिया, तो कोमल को चिंता हुई, उस ने अनिल को फोन किया, वे भी नहीं उठा पाए तो वह घबरा गई.

उस ने जुबैर से कहा, ‘‘मम्मीपापा फोन नहीं उठा रहे हैं, चिंता हो रही है, जब लास्ट बात हुई, उन्हें खांसी और फीवर था, मैं जा कर देख आती हूं.‘’

‘‘मैं भी चलता हूं.‘’‘‘नहीं, माहौल ऐसा नहीं कि सब निकलें, मैं जाती हूं,’’ बेचैन सी कोमल उसी समय कार ले कर निकल गई. जुबैर का घर भी ठाणे में ही था.

अपने घर के बाहरी दरवाजे पर स्टीकर लगा देख कोमल घबरा गई. उस ने डोरबेल बजाई, जो बंद थी. कोमल अब समझ गई कि मम्मी बीमार हैं, तभी वे घंटी बंद कर देती थीं. कोमल के बैग में घर की चाभी आज भी रखी थी. उस ने धीरे से दरवाजा खोला. कोमल ने अपनेआप को अंदर आने से पहले अच्छी तरह कवर कर लिया था. आजकल सब के बैग में अपनेआप को बचाने के लिए ग्लव्स, मास्क, हेयर कैप, स्कार्फ, हाथ में सेनिटाइजर रहता ही था.

कोमल ने अंदर जा कर देखा, एकदम सन्नाटा था, पर घर साफ था. उस ने मास्टर बैडरूम में झांका. अनिल और सीमा जाग तो रहे थे, पर कमजोरी से उठ नहीं पाए.यह देख कर कोमल की आंखों में आंसू आ गए. सीमा और अनिल ने उसे देखा तो चौंके, एक आस भरी निगाह से उसे देखा. कोमल का कलेजा दोनों की हालत देख जैसे मुंह को आ रहा था, कैसे अकेले, बेबस से दोनों कराह रहे थे.

कोमल का रोना सीमा और अनिल को भावुक कर गया. सीमा ने वहीं से लेटेलेटे ही कहा, ‘‘बेटी, अंदर मत आना. किसी चीज को छूना भी मत. कहीं तुम्हें कुछ परेशानी न हो जाए.‘कोमल भी इतना तो समझ ही रही थी कि इस समय मम्मीपापा को छूना, उन के गले से लगना, उन्हें पास बैठ कर तसल्ली देना संभव ही नहीं है, यह  बीमारी तो जैसे अपनों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर देती है कि इनसान बस अपनों को दूर से तकलीफ में देख कर बस सिसक सकता है, रो सकता है, तड़प सकता है.

कोमल ने दूर से दोनों से बात की. वे दोनों कराहते हुए जवाब देते रहे. कोमल ने देखा कि उन के पास की टेबल पर दवाएं, फल, कुछ खाने के पैकेट रखे हैं, वह कुछ पूछती कि तभी दरवाजे पर आहट हुई.इस समय शाम के 6 बज रहे थे. कोमल ने जा कर दरवाजा खोला, एक बच्चा मास्क पहने कुछ सामान लिए खड़ा था. कोमल ने पूछा, ‘‘कौन?‘‘

‘‘दीदी, मैं छोटू,‘‘कहते हुए उस ने जरा सा मास्क हटा कर मुसकराते हुए अपना चेहरा दिखाया. यह देख कर कोमल हैरान रह गई. छोटू बोला, ‘‘दीदी, ये ब्रेड, दूध और रात के लिए खाने के पैकेट लाया हूं. आंटीअंकल कैसे हैं? दिन का खाना उन्होंने ठीक से खाया कि नहीं?‘‘

कोमल का मन हुआ कि छोटू को अपने गले से लगा कर जोरजोर से रो पड़े. उस ने उस के मम्मीपापा का ध्यान रखा था, इतना होने के बाद भी. आज जरा सा बच्चा उसे किसी देवदूत सा लगा. उस ने कहा, ‘‘छोटू, मैं अब यहीं रुकूंगी, जब तक मम्मीपापा ठीक नहीं हो जाते. हां, कोई काम होगा तो बताऊंगी.‘’

‘‘ठीक है, दीदी,‘’ कह कर छोटू चला गया. कोमल ने फोन कर जुबैर को सब बताते हुए कहा, ‘‘मैं यहीं रुक रही हूं, मेरे कुछ कपडे तो यहां हैं ही, तुम वहां मम्मीपापा को भी बता देना. मुझे यहां कुछ टाइम लगेगा, बस कल मेरा लैपटौप और कुछ चीजें दे जाना.‘’

‘‘हां, ठीक है.‘’‘‘और तुम्हें पता है कि अब तक यहां उन का ध्यान कौन रख रहा था?‘‘ ‘‘बताओ…?‘’‘‘छोटू.’’‘‘क्या…?’’ जुबैर हैरान होते हुए बोला, ‘‘अच्छा…‘‘कोमल ने फिर मुसकराते हुए फोन रख दिया. कोमल ने ग्लव्स पहने ही हुए थे, सब पैकेट्स पहले सेनिटाइज किए, फिर अंदर गई. मम्मीपापा के रूम के बाहर खड़ी हुई, तो सीमा ने पूछा, ‘‘कौन था?‘‘

अनिल ने करवट ली हुई थी. कोमल ने हाथ के इशारे से एक छोटे बच्चे को बताया. सीमा मुसकरा दी. कोमल ने इशारे से पूछा, ‘‘पापा को पता है कि छोटू सामान लाता है?‘‘सीमा ने मुसकराते हुए इशारा किया, ‘‘अभी नहीं पता, बाद में बताएंगे.‘

कोमल ने सीमा को दूर से फ्लाइंग किस दिया. अनिल ने इतने में करवट ली. कोमल ने कहा, ‘‘मैं यहीं हूं, जब तक आप दोनों ठीक नहीं हो जाते. जुबैर को बता दिया है. अपने रूम में ही रहूंगी, कुछ भी चाहिए तो आवाज देना, मम्मी, अब मैं जरा घर सेनिटाइज कर लेती हूं.’’

इतने में दरवाजे पर फिर आहट हुई. कोमल ने जा कर देखा, छोटू अपने पिता सरफराज के साथ खड़ा था. सरफराज ने कहा, ‘‘ छोटा है, भूल जाता है. मैडम ने नारियल पानी लाने के लिए कहा था, ये 2 ही मिले हैं, आप को कुछ भी चाहिए हो तो बता देना. बेटा छोटू आप लोगों के लिए कुछ कर के बहुत खुश होता है. मैडम का कहा तो हर हालत में पूरा करता है.‘’

छोटू से नजरें मिलीं, तो छोटू की निगाहों में जो सरलता थी, कुछ करने की जो ललक थी, उस ने कोमल का दिल मोह लिया. ‘बच्चा सचमुच क्या अपने साथ हुआ अन्याय भूल चुका है? मम्मी ने जो प्यार, दुलार छोटू को दे कर अपना दुख हलका करने की कोशिश की है, क्या मम्मी सचमुच उस में सफल हो गई हैं? या बालमन जैसे नए खिलौने पा कर अपना टूटा हुआ खिलौना भूल जाता है, क्या छोटू उस की मम्मी की दी हुई सुविधाएं, मदद पा कर अपना जख्म भूल गया होगा? काश, भूल ही गया हो. मेरे पापा का किया सचमुच उस की मैमोरी से मिट जाए तो कितना अच्छा हो. पर सरफराज, मम्मी की अच्छाइयों के सामने क्या वे भी पापा का अपराध भूलने की कोशिश कर रहे हैं? यह आसान तो नहीं होगा उन के लिए न.’

ऐसी कितनी ही बातें सोचती हुई कोमल दरवाजे पर खड़ी छोटू को अपने पिता का हाथ पकडे जाते देखती रही, जब तक छोटू उसे दिखता रहा, वह उसी के बारे में सोचती रही.

छोटू: धर्म बड़ा या इंसानियत -भाग 2

सुबह तो कोमल को इतना समय नहीं मिला था, वह कुछ जल्दी ही औफिस के लिए निकलती थी. थोड़ी देर पहले जानबूझ कर औफिस पहुंचती कि कुछ समय जुबैर के साथ बिता सके.

जुबैर, उस की मोहब्बत, एक नेक, सभ्य इनसान… ऐसा लड़का, जिसे औफिस की हर लड़की पसंद करती थी, पर उस का दिल तो कोमल में अटका था. एक साल से दोनों एकदूसरे के इश्क में गुम से थे.

जब भी जुबैर अपने और कोमल के रिश्ते पर उस की फैमिली की चिंता करता, कोमल बहुत विश्वास से कहती, ‘‘मेरे पापा इतने एजुकेटेड हैं, धर्म तो हमारे बीच में आ ही नहीं सकता.‘‘

और अब ये वीडियो देख कर उस का सिर शर्म से झुकता चला गया था.रात होने लगी थी. वह पता नहीं कितनी देर ठाणे की घोरबंदर रोड के किनारे रुकी रही थी. अपने घर वर्तक नगर पहुंची, तो उसे अपनी मम्मी सीमा की गुस्से भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘शर्मिंदा कर के रख दिया है आज आप ने. मेरी कितनी मुसलिम फ्रैंड्स हैं, मैं उन्हें कैसे अपना चेहरा दिखाऊंगी…? यह कौन सा धर्म है आप का, जो एक बच्चे के हाथ से चाय पीने पर जान से मारने के लिए तैयार हो जाता है, यह तो किसी धर्म में नहीं लिखा.

‘‘मैं आज तक आप की हर हरकत सहती रही, पर आज बरदाश्त नहीं हो रहा है, पूरा वीडियो तो देख ही नहीं पा रही थी, कितना रोई हूं आज, यह आप ने क्या किया?

‘‘मेरी प्रिंसिपल सायमा, जो हमारी फैमिली फ्रैंड भी बन गई हैं, उन्होंने मुझे आज अजीब नजरों से देखा, वह मैं समझा भी नहीं पाऊंगी. अनिल, यह आप ने आज बहुत बुरा काम किया है. आज तो शर्म आ रही है कि मैं आप की पत्नी हूं.‘’

अनिल रूम के एक कोने में बने बार में ड्रिंक कर रहे थे, झूमते हुए उठ कर खड़े हो गए और बड़ी ही बेशर्मी से बोले, ‘‘शोर तो ऐसे मचा रही हो, जैसी किसी लड़की का रेप कर के आया हूं.‘‘

यह सुनते ही कोमल चिल्ला पड़ी, ‘‘पापा होश में रह कर बात कीजिए, मम्मी ठीक कह रही हैं. हम सब का एक सोशल सर्किल है और आज आप ने हम सब को शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दिया है.‘’

सीमा ने भर्राए गले से कहा, ‘‘अनिल, बच्चे तो बच्चे होते हैं, तुम कैसे मार पाए एक छोटे बच्चे को? क्या मिल गया तुम्हें? मेरी आंखों से तो आंसू ही निकलते रहे देखते हुए, यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये तुम हो.‘‘

अनिल नशे में झूमते हुए बोला, ‘’तुम लोग रोते रहो, तुम लोगों को आता ही क्या है. मैं चला सोने.‘‘ अनिल सचमुच जा कर सो गया. सीमा और कोमल हैरान, दुखी सोफे पर बैठ गए. आज दिन का अपनाअपना अनुभव बताती रहीं, सीमा ने जिद कर के कोमल को थोड़ाबहुत खाना खिलाया, कुछ खुद भी खाया और सोने लेट गए.

आज दोनों ने एक बड़ा सा दिन सिर्फ तनाव में बिताया था. अनिल अपने एरिया की किसी धार्मिक समिति का एक सदस्य था, हर छुट्टी में ये लोग कहीं भी मिलते, एकदूसरे को धर्म की अफीम खिलाते, खुद भी खाते, धर्म का नशा इन लोगों के दिमाग पर पूरा असर डाल चुका था. ये लोग इस बात के तर्क का जवाब नहीं दे सकते थे कि कौन सा धर्म सिखाता है कि छोटे बच्चे को चाय पिलाने पर मारा जाए, धर्म की इस दलदल में डूबे लोगों के पास आजकल तर्क का जवाब नहीं होता और यह दलदल जब एक बार इनसान को अपनी गिरफ्त में ले ले तो इनसान की अक्ल भी साथ छोड़ जाती है.

ये लोग जब साथ बैठते, गहन चिंतन होता कि उन का धर्म खतरे में है, कैसे अपने धर्म की रक्षा की जाए, ये सब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के पढ़े हुए इनसान थे, जिन्हें न कोई इतिहास की जानकारी थी, न कोई तर्कसंगत बात करते, मुगलों के इतिहास की अधकचरा जानकारी पर अपने आसपास नफरतों को फैलाने में आजकल अपना योगदान बढ़चढ़ कर देते.

सोशल मीडिया का एक फायदा तो हुआ कि कुछ लोगों ने इस वीडियो को देख कर जब बच्चे को सपोर्ट करने के लिए अपनी आवाज उठाई, तो प्रशासन और कई समाजसेवी संस्थाएं इस मामले में सामने डट कर खड़ी हो गईं. बच्चे को ढूंढ़ कर उस के इंटरव्यू लिए जा रहे थे, सिर पर पट्टियों और कई चोटों से घायल बच्चा भोलेपन के साथ बता रहा था कि कैसे उसे चाय पिलाने पर मारा गया, जिन में इनसानियत है, उन का दिल इस वीडियो को देख भीगभीग गया और जो अनिल जैसे लोग हैं, वे अनिल को इस कुकृत्य के लिए शाबाशी दे रहे थे.

कोमल आज रोज की तरह जुबैर से सोने से पहले चैट नहीं कर पाई. बस ‘सौरी’ टाइप कर के एक छोटा सा मैसेज उसे भेज दिया. वह भी शायद बेचैन था, उस का मैसेज तुरंत आया, ‘डोंट बी सैड, आई लव यू.‘

 

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