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अंतिम प्रहार -भाग 4 : शिवानी का जीवन नीरस क्यों हो गया था

दीप्ति का उत्साह मर गया था, फिर भी उस ने बताया, ‘‘मेरा ममेरा भाई है. उस की पत्नी कुछ वर्ष पहले मर गई थी. घर में मातापिता और एक बेटी है. सरकारी नौकरी में है. उम्र ज्यादा नहीं है, 34 या 35 साल. बस, कमी इतनी ही है कि वह विधुर है और एक बच्ची का बाप है.’’

कुछ पलों के लिए सन्नाटा पसरा रहा. फिर निकिता ने कहा, ‘‘रिश्ता तो अच्छा है परंतु क्या शिवानी तैयार होगी? पराई मां की बच्ची को अपना कर उसे मां का प्यार दे सकेगी?’’

‘‘परंतु क्या शिवानी की मां ऐसे रिश्ते के लिए तैयार होगी?’’ संजना ने सवाल खड़ा किया.

‘‘इस की मां जब कुंआरे लड़के के साथ शादी नहीं करा रही है तो वह विधुर के साथ शादी के लिए कैसे मान जाएगी,’’ निकिता ने कहा.

‘‘फिर कैसे होगा?’’ संजना ने भौंहें नचा कर पूछा.

शिवानी सब की बातें गौर से सुन रही थी और मन ही मन कुछ बुन रही थी. उस के दिमाग में विचार बहुत तेजी से दौड़ रहे थे. उसे जल्द ही निर्णय लेना होगा वरना एक दिन वह महिला से बूढ़ी स्त्री में बदल जाएगी, तब उस के हाथ में जीवन के सुखमय पल नहीं, बस, सूखी रेत के रसहीन कण होंगे जो उस की आंखों में सदा किरचों की तरह कसकते रहेंगे.

अब उस की आंखें शिवानी के ऊपर टिकी थीं. शिवानी ने ज्यादा देर उन्हें पसोपेश में नहीं रखा. धीमे से बोली, ‘‘मु?ो दीप्ति के कजिन का रिश्ता मंजूर है.’’

सभी हैरान रह गए. शिवानी से ऐसे उत्तर की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी. सभी सम?ा रहे थे वह मना कर देगी. सब से ज्यादा आश्चर्य निकिता और संजना को हुआ, तो सब से ज्यादा खुशी दीप्ति को हुई. परंतु वे तीनों नहीं जानती थीं कि भविष्य में पति और मां की दोगुनी खुशियां जो शिवानी को प्राप्त होने वाली थीं उन के बारे में सोच कर वह अभी से रोमांचित और अभिभूत हो रही थी.

‘‘क्या तुम एक लड़की को मां का प्यार दे सकोगी?’’ निकिता ने पूछा.

‘‘हां,’’ शिवानी ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘अपने जीवन में मु?ो मेरी मां से जो उपेक्षित व्यवहार मिला है उस से मैं सम?ा सकती हूं कि ममता से वंचित लड़की के हृदय पर क्या गुजरती है. मैं अपनी होने वाली बेटी को ऐसा प्यार दूंगी कि लोग मु?ो असली मां सम?ोंगे.’’

‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को सम?ा सकती हूं परंतु तुम एक बार फिर से रात में सोच लो. कल बताना,’’ संजना ने सलाह दी. उसे सलाह देने की आदत सी थी.

‘‘नहीं, अब सोचने का वक्त नहीं है. जितनी जल्दी हो सके, मैं मां के नरक से बाहर निकलना चाहती हूं.’’

‘‘अब जब तुम दीप्ति के भाई के रिश्ते के लिए राजी हो तो तुम्हें किराए का कमरा क्यों चाहिए. एकाध महीना अपने घर में गुजार लो,’’ निकिता ने कहा.

‘‘चलो, मेरे मन से पश्चात्ताप की आग ठंडी हो गई. शिवानी ने मेरी बात मान कर मेरे मन का बो?ा हलका कर दिया वरना कल की बात को ले कर मैं परेशान होती रहती,’’ दीप्ति ने खुश मन से कहा.

‘‘पिछली बातों को याद करने का कोई लाभ नहीं है. अब आगे की सोचो, यह सब कैसे होगा?’’ संजना ने कहा.

सब ने निकिता की तरफ देखा. वही सम?ादारीभरा जवाब दे सकती थी. कुछ पल विचारने के बाद उस ने कहा, ‘‘शिवानी के घर की परिस्थितियां देखते हुए उस का बाजेगाजे और बरातियों के साथ शादी करना संभव नहीं है. कोर्ट मैरिज करना ही बेहतर तरीका होगा.’’

‘‘क्यों न आर्य समाज मंदिर में शादी कर लें,’’ संजना ने सु?ाव दिया.

‘‘फिर भी शादी रजिस्टर्ड करवानी पड़ेगी तो एक बार में ही क्यों नहीं…?’’

सभी कोर्ट मैरिज पर सहमत थे. दीप्ति ने सलाह दी, ‘‘आज ही उस के मामा के घर चल कर सबकुछ तय कर लिया जाए. सभी तैयार हैं तो ऐसे कार्य में देरी क्यों?’’

दीप्ति के कजिन का नाम मुकेश था. वह 35 वर्ष का ही था. लंबा और छरहरा कद. हसमुंख चेहरा. शिवानी तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गई. मुकेश के घर में उस के मातापिता और बेटी थी. अच्छा खातापीता घर था.

जब सभी मुकेश और उस के मातापिता से बात कर रहे थे, शिवानी ने मुकेश की बेटी को पुचकार कर अपने पास बुला दिया. गोद में बैठा कर उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, आप का नाम क्या है?’’

‘‘श्रुति, लेकिन सब मु?ो तनुतनु कहते हैं.’’

‘‘अरे, आप के तो दोनों नाम ही बहुत प्यारे हैं,’’ उस ने तनु को अपनी गोद में समेटते हुए कहा, ‘‘आप स्कूल जाते हो?’’

‘‘हां, मैं क्लास वन में हूं और मैं ड्राइंग बना लेती हूं, दिखाऊं?’’ और वह ?ाटपट उस की गोद से उतर गई और बैग से ड्राइंग की किताब ला कर उसे दिखाने लगी.

‘‘वाह, बहुत अच्छे. आप तो बहुत अच्छी ड्राइंग कर लेती हो.’’

‘‘आंटी, आप को ड्राइंग आती है? मेरी दादीमां को नहीं आती.’’

‘‘हां, मु?ो बहुत अच्छी ड्राइंग बनानी आती है.’’

‘‘आप मु?ो बनाना सिखाओगे?’’ उस ने मासूमियत से कहा.

‘‘हां, लेकिन मैं बहुत दूर रहती हूं. आप मु?ो अपने घर में रख लो, तो मैं आप को रोज ड्राइंग सिखा दिया करूंगी.’’

तनु कुछ सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘पापा से पूछती हूं,’’ और वह दौड़ कर मुकेश के पास गई. अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस का ध्यान आकर्षित कर बोली, ‘‘पापा, इन आंटी को ड्राइंग आती है. आप इन्हें घर में रख लो, तो मु?ो अच्छी ड्राइंग बनाना सिखा देंगी.’’

तनु की भोली बात पर सभी हंसने लगे. तनु की सम?ा में नहीं आया कि सभी क्यों हंस रहे थे?’’ मुकेश ने पूछा, ‘‘यह आंटी, आप को अच्छी लगती हैं.’’

‘‘हां, पापा. आप इन्हें अपने घर में ले आओ.’’

‘‘ठीक है बेटा, आप जैसा कहोगे.’’

उस दिन शिवानी को जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं. खुशियों के उड़नखटोले में उड़ती हुई जब वह घर पहुंची तो सुषमा रौद्र रूप लिए उस का इंतजार कर रही थी. स्वर में कोई प्यार, ममता और दुलार नहीं, बल्कि सौतेली मां जैसा व्यवहार, ‘‘कहां से मुंह काला कर के आ रही हो?’’

शिवानी के मन में आनंद का सागर लहरा रहा था. उस ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, मैं तुम्हारी सगी बेटी हूं, कभी प्यार से भी पूछ लिया करो.’’

‘‘इतनी देर कहां कर दी?’’ उन के स्वर की तल्खी कम नहीं हुई थी. शिवानी ने सोचा, बता ही दूं. एक दिन बताना ही है, बोली, ‘‘मां होते हुए भी जो जिम्मेदारी आप को निभानी चाहिए थी वह मेरी सहेलियां निभा रही हैं, इसीलिए देर हो गई.’’

अंतिम प्रहार -भाग 3 : शिवानी का जीवन नीरस क्यों हो गया था

दीप्ति की बात बहुत सही थी. सब ने उस की बात से सहमति जताई.

सब से पहला काम उस ने यह किया कि बैंक में खाता खोल लिया. अगले महीने जब उस ने मां के हाथ पर पैसे नहीं रखे तो मां ने कड़े स्वर में पूछा, ‘शिवानी, तनख्वाह नहीं मिली क्या?’

‘मिली है, परंतु बैंक में है,’ शिवानी ने भी जोर से जवाब दिया. अब दब कर रहने से क्या हासिल होने वाला था.

‘बैंक में, क्या?’

‘क्योंकि अब तनख्वाह सीधे बैंक खाते में आने लगी है,’ उस ने बिना घबराए जवाब दिया.

‘तो कल निकाल कर ले आना, राशन भरवाना है.’

‘मम्मी, घर में भाई भी है, वह मु?ा से ज्यादा तनख्वाह पाता है. आप की पैंशन भी कम नहीं है. फिर घर चलाने की जिम्मेदारी मेरी ही क्यों? आप दोनों अपना पैसा क्या ऊपर वाले के घर ले कर जाएंगी,’ शिवानी ने गुस्से में कहा.

शिवानी की बात सुन कर मां सन्न रह गईं. उन की गाय जैसी बेटी मरखनी कैसे हो गई थी. यह उस की सहेलियों के सम?ाने का असर था. परंतु मां की सम?ा में नहीं आया. उन्होंने कांपती आवाज में पूछा, ‘यह कैसी बातें कर रही है तू? क्या तू इस घर की सदस्य नहीं है? मेरी बेटी नहीं है?’

‘आप ने मु?ो अपनी बेटी माना ही कहां है? जब से होश संभाला है, गौरव को तरजीह दी जा रही है. मु?ा से 2 साल छोटा है, परंतु शादी आप उस की पहले कर रही हैं. ध्यान रखना, कहीं आप के संस्कार धूल में न मिल जाएं?’

‘क्या मतलब है तेरा?’

‘मतलब आप अच्छी तरह सम?ाती हैं. कोई भी लड़की जीवनभर अनुचित अनुशासन और बंधन को स्वीकार नहीं कर सकती. एक न एक दिन वह बंधन तोड़ कर बरसात के पानी की तरह बह जाएगी, तब आप पारिवारिक मर्यादा का ढोल पीटती रहना.’

मां की बोलती बंद हो गई.

शिवानी बेचारी आज कितनी हिम्मत से इतना सब बोल पाई थी वरना तो उस के मुंह में जैसे जबान ही न थी. उस की सहेलियों ने उसे खूब सिखायापढ़ाया था. मां से खुल कर बात करने के लिए कहा था. तभी आज वह इतना कुछ बोल पाई थी. परंतु अब डर रही थी कि मां का पता नहीं कौन सा रूप देखने को मिले. परंतु मां ने भी उस से कोई बात नहीं की और कई दिनों तक सामान्य व्यवहार किया. शायद उन के मन में भी डर बैठ गया था कि शिवानी कोई गलत कदम न उठा ले और परिवार की मर्यादा तोड़ कर किसी लड़के के साथ भाग न जाए.

शिवानी ने मां के सामने बगावत के तेवर अवश्य दिखाए थे परंतु आने वाले दिनों में उस का कुछ असर दिखाई नहीं दे रहा था. सबकुछ पहले की ही तरह चलता रहा. हां, 2 महीने के बाद गौरव की शादी हो गई और शिवानी की छोटी भाभी घर में आ गई.

सहेलियां उसे बीचबीच में उकसाती रहती थीं. वह किसी लड़के से प्यार कर ले. परंतु अब कोई लड़का उस की तरफ आकर्षित ही न होता. उस के मुखमंडल पर गंभीरता के कारण बड़ी उम्र की परिपक्वता ?ालकने लगी थी. उस के पास भी इतना साहस न था कि स्वयं किसी लड़के या पुरुष को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर सके. वह इतनी संकोची थी कि किसी भी व्यक्ति से बात करते समय उस की जबान जैसे तालू से चिपक जाती थी.

कुछ साल और बीत गए. शिवानी अब 30 की हो चुकी थी. अब वह लड़की कम महिला ज्यादा लगती थी. वह मन ही मन दुखी रहने लगी थी. मम्मी ने तो जैसे ठान लिया था कि उस की शादी तो दूर, शादी की बात भी न करेंगी. इस बीच सहेलियों के उकसाने के बावजूद वह किसी के प्यार में गिरफ्तार न हो सकी. स्कूल में भी कई कुंआरे अध्यापक थे परंतु किसी के साथ उस का टांका न भिड़ सका.

और आज दीप्ति ने ऐसी बात कह दी थी कि वह दुख के अथाह सागर में डूब गई थी. काफी देर तक जब वह कमरे से नहीं निकली, तो मम्मी ने आ कर उसे उठाया, ‘‘अभी तक लेटी हो. रात हो गई. चलो, खाने का प्रबंध करो.’’

शिवानी ने लेटेलेटे ही जवाब दिया, ‘‘मेरा खाने का मन नहीं है. खुद बना लो. बहू से कहो, वह क्या जीवनभर महावर लगा कर बैठी रहेगी?’’ शिवानी के स्वर में तीखा व्यंग्य था. बहू लाखों का दहेज ले कर आई थी, इसलिए मम्मी कभी उसे घर के किसी काम के लिए न कहती थी. शिवानी के रूप में बिना तनख्वाह वाली सीधीसादी गऊ जैसी नौकरानी जो मिली थी. परंतु अब उसे सिधाई का चोला उतार कर चंडी बन कर जीना होगा, कब तक कुढ़ती रहेगी? क्यों नहीं अपने लिए नया रास्ता ढूंढ़ लेती. अभी भी देर नहीं हुई थी.

मां कुड़कुड़ाती हुई चली गई. उस रात शिवानी ने न तो घर का कोई काम किया, न खाना खाया. मां ने भी उस से खाने के लिए नहीं पूछा. डायन मां भी अपने बच्चों से इस तरह की बेरुखी और बेदर्दी नहीं दिखाती, परंतु सुषमा किसी और मिट्टी की बनी थी. कोई मां अपनी बेटी की दुश्मन नहीं होती परंतु कुछ मांएं बेटों के प्यार में अंधी हो कर बेटियों का जीवन बरबाद कर देती हैं. सुषमा बेटे के लिए सारा पैसा बचा कर मरना चाहती थी.

दूसरे दिन सुबह शिवानी बहुत शांत थी. उस ने मन ही मन एक निर्णय ले लिया था. अब कोई दुविधा उस के मन में नहीं थी.

निकिता और संजना ने कहा, ‘‘शिवी, कल तेरे साथ बहुत बुरा हुआ. दीप्ति को तु?ा से ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी. तू अभी भी शादी कर सकती है.’’

दीप्ति ने पश्चात्ताप भरे स्वर में कहा, ‘‘शिवी, मु?ो माफ कर दो. मैं ने जो कहा था, मजाक के तौर पर कहा था. परंतु बात इतनी गंभीर हो जाएगी, मैं ने सोचा ही न था. प्लीज, मु?ो माफ कर दो. मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई दुर्भाव नहीं है.’’

‘‘मैं जानती हूं दीप्ति,’’ शिवानी ने मुसकरा कर कहा और उस का हाथ पकड़ कर सहला दिया, ‘‘मैं तो उस बात को भूल चुकी. अब मैं ने कुछ और निर्णय ले लिया है.’’

क्या? के भाव से तीनों ने उस के चेहरे को देखा.

उस ने जवाब दिया, ‘‘अब मैं मां के संरक्षण से बाहर निकल कर अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती हूं. तुम लोग मेरे लिए एक किराए का कमरा ढूंढ़ दो.’’

‘‘मां, और भाई को बता दिया?’’ संजना ने पूछा.

‘‘नहीं,  मकान मिलने पर बता दूंगी.’’

‘‘घर ढूंढ़ने के बजाय अगर तुम अपने लिए वर ढूंढ़ लो, तो ज्यादा बेहतर होगा,’’ निकिता ने सलाह दी.

‘‘वह भी ढूंढ़ लूंगी तुम मेरी मदद करोगी तो.’’

दीप्ति इतनी देर से कुछ सोच रही थी. अचानक बोली, ‘‘शिवी, मैं एक बात कहूं, परंतु यह न सम?ाना कि मैं फिर से तुम्हारा मजाक उड़ा रही हूं.’’

‘‘तुम बताओ तो सही,’’ निकिता ने उस का उत्साह बढ़ाया.

‘‘मेरी नजर में एक रिश्ता है, परंतु तुम्हें शायद वह अच्छा न लगे.’’

‘‘अच्छा क्यों न लगेगा?’’ संजना ने पूछा.

‘‘क्योंकि वह कुंआरा नहीं है, विधुर है और उस की 5 साल की एक बच्ची भी है.’’

‘‘विधुर और एक बच्ची का बाप,’’ निकिता के मुंह से निकला. उस ने शिवानी को देखा, ‘‘वह शांत थी. संजना भी हैरान थी कि दीप्ति फिर से शिवानी का मजाक बना रही थी. बोली, ‘‘यार, कल भी तुम ने उस का दिल दुखाया था और आज भी…’’

‘‘हां, दीप्ति, शिवी अभी इतनी बूढ़ी नहीं हुई है कि उस के लिए कुंआरा वर न मिले. आज लड़के 30 साल की उम्र के बाद ही शादी करना पसंद करते हैं. प्रयत्न करेंगे तो उस के लिए अच्छा वर मिल जाएगा,’’ निकिता ने कहा.

‘‘वैसे, वह है कौन जिस की तू बात कर रही है?’’ संजना ने जिज्ञासा से पूछा.

मदर्स डे स्पेशल : बौबी-भाग 1

राहुल और तनु ने बात तो गंभीरतापूर्वक करनी शुरू की थी, मगर जैसेजैसे दोनों के स्वर ऊंचे होते जा रहे थे, पास बैठी उन की प्यारी बौबी कभी राहुल का मुंह देखती, तो कभी तनु का.

बौबी का मन तो हो रहा था कि दोनों अपना यह झगड़ा खत्म करें और उस से खेलना शुरू करें, उसे बाहर घुमा कर लाएं. बौबी उन की लड़ाई से बहुत दुखी हो रही थी. उस ने अपने मुंह से आवाज निकाल ही दी तो दोनों का ध्यान बौबी की तरफ गया. दोनों उसे अपनी गोद में लेने के लिए झुके और उसे जैसे ही उसे छुआ, दोनों के हाथ भी एकदूसरे से टकरा गए.

दोनों ने एकदूसरे को घूरा. राहुल ने पूछा,”बौबी को तुम बाहर ले कर जा रही हो या मैं ले जाऊं?”

”मैं ले कर जाऊंगी अपनी बौबी को. आओ बेटा,” कह कर तनु बौबी को बाहर घुमाने ले गई.

बौबी एक प्यारी सी डौगी थी, जिसे दोनों खूब प्यार करते थे.

बौबी को घुमातेघुमाते उस ने अपनी मम्मी शोभा को फोन मिला दिया और राहुल की जीभर कर शिकायत की. बौबी का पूरा ध्यान तनु पर था. वह यही सोच रही थी कि क्या हो गया है उस के राहुल और तनु को? क्यों इतना झगड़ने लगे हैं, कितनी प्यारी जोड़ी है.

आज बौबी को दोनों की लड़ाई से बहुत दुख हो रहा था. उस का मन घूमने में भी नहीं लगा. राहुल का ध्यान आया, वह भी घर पर अकेला होगा, उदास होगा. बौबी ने घर की तरफ चलने का इशारा किया.

तनु ने फोन रखते हुए कहा,”बौबी, क्या हुआ? इतनी जल्दी… तू भी राहुल की तरह आलसी हो गई क्या?”

बौबी क्या जवाब देती, पशु रूप में जन्म लिया था तो कैसे कहे किसी को अपने मन की बात? वह तो जो प्यार करते हैं, बौबी जैसों की हर बात, इशारा समझ लेते हैं, बौबी सुस्त कदमों से घर की तरफ चल दी. राहुल लैपटौप पर अपना काम कर रहा था.

तनु ने कहा, “बौबी सुस्त है कुछ?”

राहुल ने तुरंत लैपटौप बंद कर दिया और बौबी को गोद में उठा लिया, “बौबी, बच्चे, क्या हुआ? बोलो, बौल से खेलना है न?”

बौबी ने पूंछ हिलानी शुरू कर दी और भाग कर अपनी बौल मुंह में दबा कर उठा लाई. घर के आंगन में फिर राहुल बौल फेंकता रहा, बौबी भागभाग कर बौल लाती रही. वहीं कुरसी पर बैठी तनु बौबी पर कुरबान होती रही.

फिर राहुल ने तनु की तरफ देख कर पूछा,”डिनर में क्या है?”

”मेरा कुछ बनाने का मूड नहीं है, कल औफिस में एक मीटिंग है, मुझे उस की तैयारी करनी है, तुम ही कुछ बना लो.”

राहुल ने तनु को घूर कर देखा तो तनु गुस्साते हुए बोली,”घूर क्या रहे हो? जैसे तुम काम करते हो, वैसे मैं भी करती हूं. तुम्हारी मां अभी परसों यही कह कर गई है न कि मुझे कुछ नहीं आता, मैं ने तुम्हें परेशान कर रखा है… यह सब तुम आराम से बैठ कर सुनते हो न… कभी उन्हें एक जवाब तक नहीं देते कि वे मुझ से गलत व्यवहार न करें. अब तुम सचमुच मुझ से परेशान हो ही जाओ. मुझे कोई चिंता नहीं.”

”अरे, चुपचाप न सुनता तो और क्या करता… मां से बहस कर के जोरू का गुलाम कहलवाऊं? तुम भी तो उन्हें हर बात का जवाब देती हो, कभी चुप नहीं रहतीं. तुम ही चुप हो जाओ तो आगे बात नहीं बढ़ेगी.‘’

बौबी फिर एक तरफ खड़े हो कर दोनों का मुंह देखने लगी. समझ गई कि दोनों फिर शुरू हो गए और सचमुच फिर इतनी लड़ाई हुई कि सिर्फ बौबी के लिए उठ कर तनु ने खाना बनाया और खुद भी कुछ नहीं खाया और राहुल भी भूखा ही रह गया.

बौबी ने भी जब कुछ नहीं खाया तो दोनों समझ गए. जानते थे कि हमेशा बौबी के साथ ही बैठ कर खाते हैं. आज बौबी भी उन के बिना नहीं खा रही है. बौबी को खिलाने के लिए तनु ने फिर अपने और राहुल के लिए बस नूडल्स बनाई.

राहुल और तनु के प्रेमविवाह को 1 साल ही हुआ था. दोनों मेरठ में ही रहते थे. दोनों अच्छे पदों पर काम कर रहे थे. तनु विजातीय थी इसलिए राहुल के पेरैंट्स उसे पसंद नहीं करते थे. राहुल ने यह घर अलग ले लिया था, तब भी उस की मम्मी विभा आएदिन उन के घर आतीं और तनु को खूब सुना कर जातीं.

तनु जबस्दस्त फेमिनिस्ट थी. उस के विचार विभा से बिलकुल मेल न खाते. अपनी बात को दमदार तरीके से कहने का उस का स्वभाव विभा को कतई मंजूर न था. तनु के पेरैंट्स दिल्ली में रहते थे. वे भी इस विवाह से ज्यादा खुश नहीं थे. दोनों की जोड़ी देख कर अगर घर में कोई खुश होता तो वह थी बौबी, जो एक पशु होते हुए भी सब के दिल की बातें महसूस करती. सब को प्यार करती.

पशु कई मानों में सचमुच इंसानों से बेहतर होते हैं. किसी ने कहा भी है कि अगर इंसान पशुओं के थोड़ेबहुत गुण अपना ले तो दुनिया बहुत खूबसूरत हो जाए.

बौबी को राहुल अपने दोस्त से लाया था और राहुल और तनु की जान थी बौबी. दोनों के बीच लड़ाई का कारण दोनों के पेरैंट्स थे. बौबी का मन करता कि वह दोनों को समझाए कि इस मामले में अपने पेरैंट्स को इग्नोर कर दें और आपस में खुश रहें. बौबी तो शादी से पहले उन दोनों के रोमांस की भी गवाह भी थी.

शादी से पहले राहुल शहर से बाहर की एक गार्डन में तनु से मिलने जाता तो अपनी कार में बौबी को भी ले जाता. बौबी को उन के पहले के रोमांस के दिन कितने याद हैं, दोनों कितने खुश थे. लेकिन अब क्या होता जा रहा है…

Crime Story : ढाई करोड़ की चोरी का रहस्य

कुछ इंसानों की फितरत ही धोखे और फरेब की होती है. वह अपने साथ अच्छा करने वालों के साथ भी बुरा करने से नहीं चूकते. ऐसे लोगों को अपनी करनी का फल तो जरूर भुगतना पड़ता है. लेकिन अपनी फितरत से वे दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं. फिरोजाबाद का रहने वाला ब्रजमोहन भी इसी तरह का व्यक्ति था. उस ने रेलवे में 5 साल नौकरी की. जिस इंजीनियर पुनीत कुमार के घर पर वह काम करता था, जिन के कहने पर उस की नौकरी स्थाई हुई. उस ने उसी के घर चोरी करने की योजना बना ली.

ब्रजमोहन लालची स्वभाव का था. उस ने पुनीत कुमार की मदद करने की नहीं सोची, बल्कि उस की नजर उन के घर में आ रहे रुपयों पर थी. यह लालच ब्रजमोहन के लिए जानलेवा साबित हुआ. जिन लोगों को उस ने चोरी के लिए बुलाया. वे ही उस की जान के दुश्मन बन बैठे. 26 मार्च, 2021 को लखनऊ के कैंट थानाक्षेत्र के बंदरियाबाग में रहने वाले इंजीनियर पुनीत कुमार के सरकारी आवास पर सरकारी नौकर ब्रजमोहन की हत्या कर दी गई.

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पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर जांच की तो पता चला कि बिजली के तार से पहले उस के गले को कसा गया, बाद में चाकू से रेत दिया गया था. उस के हाथ और पांव बंधे थे. पुनीत के घर का सामान बिखरा हुआ था. पता चला कि पुनीत कुमार के बैडरूम से 15-20 लाख रुपए कैश और कुछ जेवरात गायब थे. पहली नजर में मामला चोरी के लिए हत्या का लग रहा था. पुनीत ने अपने नौकर की हत्या का मुकदमा कैंट थाने में लिखाया.

इंजीनियर का सरकारी आवास लखनऊ के बहुत ही सुरक्षित बंदरियाबाग इलाके में था. इसलिए इस केस को सुलझाना पुलिस के लिए ज्यादा चुनौती भरा काम था. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने जौइंट पुलिस कमिश्नर (अपराध) निलब्जा चौधरी की अगुवाई में एक टीम का गठन किया. इस टीम में डीसीपी (पूर्वी) और एडीशनल डीसीपी (पूर्वी) को भी अहम जिम्मेदारी दी गई. इस के साथ ही कैंट थाने की इंसपेक्टर नीलम राणा, एसआई जनीश वर्मा को मामले के परदाफाश की जिम्मेदारी सौंपी गई.

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इंजीनियर पुनीत के घर नौकर की हत्या के समय पुनीत के फूफा चंद्रभान घर के दूसरे कमरे में टीवी देख रहे थे. उन को किसी बात का पता नहीं था. ऐसे में पुलिस को लग रहा था कि हो न हो नौकर ब्रजमोहन इस चोरी में हिस्सेदार रहा हो.पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि अगर नौकर चोरी में शामिल था तो उस की हत्या क्यों हो गई? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस ने ब्रजमोहन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की. साथ ही पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी देखे. पता चला कुछ लोग एक टैक्सी से आए थे.

पुलिस ने छानबीन शुरू की. पुनीत कुमार 2008 बैच के भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सर्विस (आईआरएसई) के अधिकारी हैं. उत्तर रेलवे की चारबाग स्थित निर्माण इकाई में उन का दबदबा है. उन के पास इस समय 800 करोड़ रुपए से अधिक के रेलवे के प्रोजेक्ट्स हैं. पहले वह इसी कार्यालय में अधीक्षण अभियंता थे, बाद में प्रमोशन पा कर यहीं पर उप मुख्य निर्माण अभियंता के रूप में काम करने लगे. नौकर ब्रजमोहन उन के घर के कामकाज देखता था.

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फिरोजाबाद के कोलामऊ महरौना का रहने वाला ब्रजमोहन करीब 5 साल से पुनीत के यहां काम कर रहा था. एक साल पहले पुनीत ने ही ब्रजमोहन की नौकरी स्थाई की थी. वह पुनीत के ही आवास में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था. उस का अपने गांव से बराबर संपर्क बना हुआ था. वह अपने साहब के घर रुपयोंपैसों की आवाजाही होते देखा करता था. उसे यह भी पता होता था कि वहां कितना पैसा रखा रहता है. यह पैसा देख कर उस के मन में लालच आ गया.

ब्रजमोहन की डोली नीयत

इंजीनियर पुनीत के घर नकद रुपए देख कर नौकर ब्रजमोहन की नीयत डोलने लगी. एक दिन उसने अपने भांजे बहादुर को इस बारे में जानकारी दी और कहा कि यदि उस के मालिक पुनीत के यहां चोरी की जाए तो भारी मात्रा में नकदी के अलावा अन्य कीमती सामान मिल सकता है. बहादुर भी फिरोजाबाद के कोलमाई मटसैना का रहने वाला था. उसे अपने मामा की सलाह अच्छी लगी. लिहाजा बहादुर ने अपने साथ मैनपुरी जिले के भोजपुरा के रहने वाले अजय उर्फ रिंकू, ऊंची कोठी निवासी मंजीत और एक अन्य दोस्त अनिकेत के साथ मिल कर चोरी की योजना तैयार की.

योजना के अनुसार, ये लोग किराए की गाड़ी ले कर 25 मार्च को इंजीनियर पुनीत के घर पहुंच गए. नौकर ब्रजमोहन की मिलीभगत से इन को चोरी के लिए घर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मंजीत घर के बाहर सीढि़यों पर खड़ा हो कर बाहर से आने वालों की निगरानी करने लगा. ब्रजमोहन, बहादुर और अजय घर के अंदर चले गए. इन लोगों ने जेवर और सारे पैसे एक जगह रख लिए. वहां पर नकदी और ज्वैलरी उम्मीद से ज्यादा मिली तो ब्रजमोहन ने अपने भांजे बहादुर से कहा, ‘‘देखो जितना हम ने बताया था, उस से अधिक पैसा मिल गया है. इसलिए जो ज्यादा पैसा मिला है, इस में कोई बंटवारा नहीं होगा. यह सब मेरा होगा. बाकी तुम सब बांट लेना.’’

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‘‘जी मामाजी, जैसा आप कह रहे हो वैसा ही होगा. अब हम लोग जा रहे हैं. आप भी पुलिस को कुछ नहीं बताना,’’ बहादुर बोला. ‘‘हां ठीक है. पुलिस सब से पहले हम पर ही शक करेगी. इस से बचने के लिए तुम लोग मुझे कुरसी से बांध कर बेहोश कर दो. जिस से लगे कि चोरों ने नौकर को बांध कर चोरी की और बेहोश कर के भाग गए.’’ ब्रजमोहन ने सलाह दी. बहादुर और अजय ने ब्रजमोहन को कुरसी से बांध कर बेहोश कर दिया. इस के बाद दोनों जब रुपया रख रहे थे, तभी अजय बोला, ‘‘बहादुर, तू तो जानता है कि तेरे मामा डरपोक किस्म के हैं. कहीं ऐसा न हो कि पुलिस के आगे सब बक दे.’’

‘‘बात तो सही है, पर क्या किया जाए?’’ बहादुर ने कहा. ‘‘समय की मांग है कि हम अपने को बचाने के लिए मामा को ही रास्ते से हटा दें. इस से मामा को पैसा भी नहीं देना होगा और पुलिस हम तक भी नहीं पहुंच पाएगी.’’ अजय ने सलाह दी. दोनों ने मिल कर सब से पहले ब्रजमोहन का गला कस दिया. वह पहले से ही बेहोश था तो कोई विरोध नहीं कर पाया. न ही कोई आवाज हुई. दोनों को लगा कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इसलिए चाकू से उस का गला भी रेत दिया.

ब्रजमोहन को मारने के बाद तीनों वापस मैनपुरी चले गए. मैनपुरी में ये लोग बहादुर के जानने वाले उदयराज की दुकान पर पहुंचे. उदयराज की कपडे़ की दुकान थी. यहां सभी ने अपने कपडे़ बदले. वहीं पर इन लोगों से मोहन नाम का आदमी मिला, जिसे इन लोगों ने सारे रुपए दे दिए. वह रुपए ले कर अपने घर चला गया. इस के बाद चारों मोहन के घर गए और वहां पर रुपयों का बंटवारा हुआ. मंजीत रुपए ले कर अपने घर चला गया. उस ने रुपए अपनी पत्नी निशा को दिए और उसे इस बारे में बताया. निशा ने रुपए गमले और जमीन में दबा दिए, जिस से किसी को पता न चल सके.

पुलिस गंभीरता से केस की जांच में जुटी थी. सीसीटीवी फुटेज में जो टैक्सी दिखी थी, उसी के नंबर के सहारे वह टैक्सी चालक तक पहुंच गई. उस ने पुलिस को पूरी बात बताई. टैक्सी चालक से पूछताछ कर के पुलिस सब से पहले मंजीत के घर पहुंची. पुलिस ने मंजीत के पास से 40 लाख, उस की पत्नी निशा के पास से 16 लाख, उदयराज और मोहन के पास से 7-7 लाख रुपए बरामद किए. कहानी लिखे जाने तक मुख्य आरोपी बहादुर फरार था. पुलिस के लिए चौंकाने वाली बात यह थी कि इंजीनियर पुनीत कुमार ने अपने घर में चोरी के मामले में 15 से 20 लाख नकद और जेवर चोरी होने का जिक्र किया था.

जबकि पुलिस आरोपियों के पास से 70 लाख बरामद कर चुकी थी. मुख्य आरोपी के पास अलग से पैसा बरामद होना था. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उन्हें इंजीनियर पुनीत के यहां करीब ढाई करोड़ रुपए मिले थे. पुलिस इस बारे में छानबीन कर रही है. पुलिस अजय, बहादुर और उस के लंबे बाल वाले साथी को तलाश रही है. पूरे मामले में जिस पुलिस टीम ने सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस में इंसपेक्टर नीलम राणा. एसआई अजीत कुमार पांडेय, रजनीश वर्मा, संजीव कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप शर्मा, रामनिवास शुक्ला, आनंदमणि सिंह, ब्रजेश बहादुर सिंह, अमित लखेड़ा, विनय कुमार, पूनम पांडेय, सोनिका देवी और चालक घनश्याम यादव प्रमुख थे.

पुलिस ने इंजीनियर पुनीत कुमार के घर ढाई करोड़ रुपयों की चोरी की सूचना रेलवे विभाग और आयकर विभाग को भी दे दी. पुलिस का कहना है कि घर में ढाई करोड़ नकद रखने के मामले की जांच होगी.
इस बात का अंदेशा है कि यह रकम रिश्वत की रही होगी. इसीलिए हत्या की रिपोर्ट लिखाते समय इंजीनियर पुनीत कुमार ने चोरी की रकम को कम कर के लिखाया था. शुरुआत में पुनीत कुमार ने कहा था कि 15 से 20 लाख की चोरी हुई है.

पुलिस ने जब चोरों से 70 लाख नकद बरामद कर लिया तो पता चला कि कुल रकम ढाई करोड़ थी.
ब्रजमोहन को भी यही पता था कि चोरी की बात पूरी तरह से पुलिस को बताई नहीं जाएगी. ऐसे में यह लोग पुलिस के घेरे में नहीं आएंगे. लेकिन ब्रजमोहन से भी ज्यादा लालची उस के साथी निकले जिन्होंने ब्रजमोहन की हत्या कर दी. हत्या की विवेचना में चोरी दब नहीं सकी और अपराध करने वाले पकडे़ गए.

ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट के मंत्र से प्रदेश सरकार कर रही कोरोना का मुकाबला

मुख्यमंत्री ने कहा कि विगत 30 अप्रैल, 2021 की अपेक्षा 77,000 एक्टिव केस कम हुए हैं. पॉजिटिविटी घटी है और रिकवरी दर बढ़ी है. उन्होंने कहा कि वाराणसी मंडल में एक सप्ताह में 9285 एक्टिव केस आए हैं, जिसमें वाराणसी जनपद में 4500 से अधिक केस हैं. कोरोना की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर काफी तीव्र व संक्रामक रही है.

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पूरे देश में ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस व इंडियन एयर फोर्स के विमान का इस्तेमाल ऑक्सीजन आपूर्ति में किया गया. इससे कोरोना के मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में सभी राज्यों को सुगमता हुई.

उन्होंने कहा कि जिस तेजी से कोरोना को संक्रमण बढ़ा, उसी तेजी से ऑक्सीजन की भी डिमांड बढ़ी. वर्तमान में लगभग 1000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रही है. महामारी का मुकाबला सभी के सहयोग से किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि प्रदेश सरकार महामारी का मुकाबला मजबूती से कर रही है. इसके लिए हर स्तर पर संसाधन भी बढ़ाए जा रहे हैं. टीकाकरण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि दो स्वदेशी वैक्सीन अभी फिलहाल लग रही है और तीसरी वैक्सीन के लिए भी सहमति मिल गई है.

उन्होंने कहा कि सभी को टीके के लिए आगे आना चाहिए. आसानी से टीकाकरण किया जा सके, इसके लिए टीकाकरण केन्द्र बनाए गए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि काशी चिकित्सा के क्षेत्र का हब है. पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित बिहार के लोग चिकित्सा सुविधा यहां प्राप्त करते हैं. 750 बेड के डी0आर0डी0ओ0 की मदद से बनाये गए अस्थायी अस्पताल जिसमें 250 बेड वेंटीलेटर के हंै, से वाराणसी के साथ ही आसपास के जिलों के लोगों को बड़ी राहत होगी. यहां आर्मी मेडिकल कोर के साथ ही बी0एच0यू0, स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा अन्य संसाधनों को समन्वय स्थापित कर मुहैया कराया जाएगा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार की ओर से पर्याप्त वैक्सीन मिल रही है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना के सेकंड वेव को रोकने के लिए किये गये कार्यों की सार्थकता दिखाई दे रही है. पॉजिटिविटी घटी है और रिकवरी दर बढ़ी है. लेकिन अभी सतर्कता की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने जन सामान्य से अपील की कि वह बिना वजह अपने घरों से बाहर न निकलें और अपने घरों में ही सुरक्षित रहें. जरूरत पड़ने पर घरों से बाहर निकलने पर हर व्यक्ति कोविड नियम का पालन करे. चेहरे पर मास्क लगाएं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हर हालत में करें. हाई रिस्क कैटेगरी के लोग घरों से बाहर कतई न निकलें. वैक्सीन लगवाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराएं और वैक्सीन अवश्य लगवाएं. उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि ‘कोरोना हारेगा और देश जीतेगा’

अभिनेता और निर्माता हैदर काजमी लेकर आए ओटीटी प्लेटफार्म ‘मस्तानी‘

कोरोना महामारी के चलते फिल्म इंडस्ट्री बंद चल रही है.सिनेमाघर बंद है.ऐसे वक्त में हर आम इंसान के लिए मनोरंजन प्राप्त करने का एकमात्र साधन ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म बन गए हैं.‘कोरोना’ काल में पिछले एक वर्ष में कई ओटीटी प्लेटफार्म आ गए हैं.अब हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के निर्माता व अभिनेता है दर काजमी भी अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म लेकर आ गए हैं,जिसका उन्होने नामकरण ‘‘मस्तानी‘’किया है.

ओटीटी प्लेटफार्म ‘मस्तानी’पर जल्द ही 17 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अपना जलवा बिखेर चुकी हेदर काजमी की फिल्म ‘जिहाद‘ भीस्ट्रीम की जाएगी.जबकि इस वक्त वेबसीरीज ‘द रेडलैड’ स्ट्रीम होने लगी है. वेबसीरीज ‘द रेडलेंड’ में पूर्वांचल में जातिवाद की लड़ाई के खूनी अंजाम का चित्रण है.यह कहानी दो तानाशाह भाई अमर पाल सिंह और समर पाल सिंह, जिन्होंने तीन दशक से अधिक समय तक अपनी शर्तोंपर शासन किया,की है.इसके बाद एक युवा लड़के अजीत यादव के साथ, जो उनके ड्राइवर का बेटा होता है, शुरू होता है जातिवाद, सत्ता और सत्ता की लड़ाई लालच जो कानून के बिना भूमि के सिंहासन का संघर्ष.इसमें छात्र राजनीति में किस तरह जातिवाद हावी रहता है, इस सीरीज में बखूबी दर्शाया गया है .

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विनय श्रीवास्तव निर्देषित इस वेब सीरीज में अभिमन्यु सिंह, गोविंद नामदेव, शलीन भनोट, फ्लोरासैनी के अलावा दयाशंकर पांडेय जैसे मंझे हुए कलाकार हैं. हैदर काजमी कहते हैं-‘‘हमने वेबसीरीज ‘द रेडलेंड’के साथ ही अपने ओटीटी प्लेटफार्म ‘मस्तानी’की शानदार शुरूआत कर दी है. अभी ऐसी ही कई सार्थक और मनोरंजक फिल्में आने वाली हैं.इसमें हमारे प्रोडक्शन की फिल्में भी होंगी. हॉलीवुड की पुरस्कृत फिल्में और वेबसीरीज भी हिंदी में डबकर ‘मस्तानी’पर हम लेकर आएंगे.हमारा ओटीटी प्लेटफार्म ’मस्तानी‘सार्थक और प्रगतिशील सिनेमा के लिए एक बेहतर मंच बनेगा.यहाँ लोग पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्में देख सकेंगे. इस प्लेटफार्म पर हमारी फिल्में तो रिलीज होंगी ही, साथ में वैसी फिल्मों को भी यहां जगह मिलेगा,

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जिसका मनोरंजन के साथ सामाजिक और वैचारिक सरोका रहो.’’

टीवी एक्टर रवि दुबे को हुआ कोरोना, इंस्टाग्राम पर लोगों को बताया हाल

देश में कोरोना की दूसरी लहर ने सभी को परेशान कर दिया है. ऐसे में हर दूसरा व्यक्ति कोरोना पॉजिटीव हो जा रहा है. कुछ लोग अपनी जान बचा पा रहे हैं वहीं कुछ इस दुनिया को छोड़कर चले जा रहे हैं. कुछ दिन पहले ही निक्की तम्बोली ने अपने छोटे भाई को खो दिया है.

इसके बाद अब जमाई राजा फेम एक्टर रवि दुबे भी कोरोना के चपेट में आ गए हैं. रवि दुबे ने इस बात कि जानकारी खुद अपने इंस्टाग्राम पर दी है.

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रवि दुबे ने इस्टा पर नोट शेयर करते हुए लिखा है कि सभी को नमस्ते अभी मेरी रिपोर्ट मिली है मैं पॉजिटीव हूं  मैंने खुद को आइसोलेट कर लिया है और मैं उन लोगों को सलाह देना चाहूंगा जो पिछले कुछ वक्त से मेरे संपर्क में आएं है कि वह अपना ध्यान रखें और अगर कोई दिक्कत लगे तो टेस्ट जरुर करवा लें.

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मैं अपने करीबीयों के देखरेख में हूं, खुद को सुरक्षित रखिएं पॉजिटीव रखिएभगवान सबका भला करें.  रवि के पोस्ट के बाद उनके कई दोस्तों ने उन्हें ठीक होेने कि कामना कि. उनकी पत्नी सरगुन मेहता और आशा नेगी के अलावा और भी कई सेलेब्स हैं जिन्होंने उनके पोस्ट के नीचे कमेंट करके उन्हें जल्द ठीक होने कि कामना कि है.

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अगर रवि दुबे कि वर्कफ्रंट कि बात करें तो वह हाल ही में वेबसीरीज 2.0 में नजर आएं थें, उनके इस शो में लोगों ने उन्हें खूब सारा प्यार दिया था. इस शो में वह निया शर्मा के साथ नजर आ चुकें हैं. वहीं एक्ट्रेस निया शर्मा ट्रोलिंग का शिकार होती नजर आ चुकीं हैं.

रोगों की ढाल जामुन का पत्ता, बीज और छाल

लेखिका- डा. रश्मि यादव, डा. बृज विकास सिंह

स्वास्थ्य की दृष्टि से कई विकारों को दूर करने के लिए जामुन के फल, छाल, पत्तियों और बीजों का उपयोग जड़ीबूटी के रूप में किया जाता है. जामुन में लगभग वे सभी जरूरी लवण पाए जाते हैं, जिन की शरीर को जरूरत होती है. जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने के योग्य होता है. इस में ग्लूकोज और फ्रक्टोज 2 मुख्य स्रोत होते हैं. फल में खनिजों की संख्या अधिक होती है.

दूसरे फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है. एक मध्यम आकार का जामुन 3-4 कैलोरी देता है. इस फल के बीज में काबोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिकता होती है. यह लोहा का बड़ा स्रोत है. प्रति 100 ग्राम में 1.0 मिलीग्राम से 1.2 मिलीग्राम आयरन होता है. इस में विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं.

जामुन में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व केलौरी (ऊर्जा) 62 किलो लोहा 1.2 मिलीग्राम कैल्शियम 15 मिलीग्राम फास्फोरस 15 मिलीग्राम विटामिन सी 18 मिलीग्राम कैरोटीन 48 मिलीग्राम पोटैशियम 55 मिलीग्राम मैग्नीशियम 35 मिलीग्राम सोडियम 25 मिलीग्राम (औसतन 100 ग्राम) जामुन के विभिन्न उत्पाद बना कर किस तरह रोगों से छुटकारा पा सकते हैं.

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ध्यान रखें ये बातें

1. जामुन का खाली पेट सेवन कभी नहीं करना चाहिए.

2. जामुन खाने के बाद दूध का सेवन कभी नहीं किया जाता है.

3.  अधिक मात्रा में जामुन खाने से बचना चाहिए, क्योंकि अधिक खाने पर यह फायदा करने के बजाय आप को नुकसान पहुंच सकता है. ठ्ठ जामुन के औषधीय गुण व फायदा जामुन का रस जामुन के पत्त जामुन की छाल जामुन की गुठली (बीज) जामुन का फलजामुन के फल में मौलिक एसिड, गैलिक एसिड, औक्जैलिक एसिड और बेटुलिक एसिड पाया जाता है.

जामुन की पत्तियों में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है. जामुन की छाल (बार्क) और शाखाओं में टैनिन, गैलिक एसिड, रेसिन, फाइटोस्टैराल मौजूद होता है. जामुन के बीज में ग्लाइकोसाइड, जंबोलिन और गैलिक एसिड, प्लेनौयड भरपूर मात्रा में पाया जाता है. जामुन के फल में ग्लूकोज, फ्रक्टोज, विटामिन सी, ए, राइबोफ्लेविन, निकोटिन एसिड, फोलिक एसिड, सोडियम और पोटैशियम के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस और जिंक व आयरन मौजूद होता है.

शारीरिक दुर्बलता : जामुन का रस, शहद, आंवले या गुलाब के फूल का रस बराबर मात्रा में मिला कर प्रतिदिन 2 महीने तक सुबह के वक्त सेवन करने से खून की कमी व शारीरिक दुर्बलता दूर होती है. यौन व स्मरणशक्ति भी बढ़ जाती है.

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हैजा : जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकाल कर ढाई किलोग्राम चीनी मिला कर शरबत जैसी चाशनी बना लें. इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भर कर रख लें. जब कभी उलटी, दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब 2 चम्मच शरबत और 1 चम्मच अमृतधारा मिला कर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है.

कब्ज : जामुन के कच्चे फलों का सिरका बना कर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं. जामुन का सिरका भी गुणकारी और स्वादिष्ठ होता है. अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो, तो इस सिरके को ताजा पानी के साथ बराबर मात्रा में मिला कर सुबह और रात, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है.

विषैले जंतु : इन जहरीले जंतुओं के काटने पर जामुन की पत्तियों का रस पिलाना चाहिए. कटी गई जगह पर इस की ताजा पत्तियों का पुल्टिस बांधने से घाव ठीक होने लगता है, क्योंकि जामुन के चिकने पत्तों में नमी सोखने की ताकत होती है. जामुन के पत्तें : इन पत्तों का रस तिल्ली के रोग में हितकारी है. जामुन के पत्तों की भस्म मंजन के रूप में उपयोग करने से दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं. मसूड़ों से खून निकलने से बचाने में ये मदद करती हैं.

गले की बीमारी : इस बीमारी में जामुन की छाल को बारीक पीस कर सत बना लें. इस सत को पानी में घोल कर ‘माउथ वाश’ की तरह गरारा करना चाहिए. इस से गला तो साफ होगा ही, सांस की बदबू भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी. मुंह में छाले होने पर जामुन का रस लगाएं. उलटी होने पर जामुन के रस का सेवन करें.

अपच : जामुन के पेड़ की छाल को घिस कर कम से कम दिन में 3 बार पानी के साथ मिला कर पीने से अपच दूर हो जाता है. गठिया : इस बीमारी के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है. इस की छाल को खूब उबाल कर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है. खून संबंधी बीमारी में : जामुन के पेड़ की छाल को घिस कर व पानी के साथ मिला कर प्रतिदिन सेवन करने से खून साफ होता है. जामुन के पेड़ की छाल को गाय के दूध में उबाल कर सेवन करने से संग्रहणी बीमारी दूर होती है.

मधुमेह : जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है. इस की गुठली के अंदर की गिरी में ‘जंबोलीन’ नामक ग्लूकोसाइड पाया जाता है. यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है. इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है. जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिला कर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है.

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स्त्रियों में रक्तप्रदर : इस बीमारी में जामुन की गुठली के चूर्ण में 25 फीसदी पीपल की छाल का चूर्ण मिला कर एकएक चम्मच दिनभर में 3 बार ठंडे पानी के साथ लेने से फायदा मिलता है.

पेचिश : इस बीमारी में जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच दिन में 2 से 3 बार लेने से काफी फायदा होता है.

पथरी : पथरी बन जाने पर इस की गुठली के चूर्ण का इस्तेमाल दही के साथ करने से फायदा मिलता है. त्वचा संबंधी रोग : जामुन में उत्तम किस्म का शीघ्र अवशोषित हो कर रक्त निर्माण में भाग लेने वाला तांबा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. यह त्वचा का रंग बनाने वाली रंजक द्रव्य मैलानिन कोशिकाओं को सक्रिय करता है, इसलिए यह रक्तहीनता और ल्यूकोडर्मा की उत्तम औषधि है.

मंदाग्नि : इस के लिए जामुन को काला नमक व भुने हुए जीरे के चूर्ण के साथ खाना चाहिए. जामुन यकृत : जामुन इसे शक्ति प्रदान करता है और मूत्राशय में आई असमान्यता को सामान्य बनाने में सहायक होता है.

हीमोग्लोबिन : जामुन खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है. शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ने से खून शरीर के विभिन्न हिस्सों में अधिक औक्सीजन का फ्लो होता है, जिस की वजह से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है. जामुन में पाया जाने वाला आयरन खून को शुद्ध करने का काम करता है.

छोटू: धर्म बड़ा या इंसानियत -भाग 1

औफिस में कोमल को आज का दिन काटना भारी पड़ना ही था, सब कामधाम एक तरफ था सब का, और वीडियो पर हंसने वालों का, उस से उस की राय पूछने वालों का आज अजीब टाइमपास हो रहा था, उस के सीनियर रमेश शर्मा ने उसे अपने केबिन में बुलाया, तो उसे अपने पीछे खुसुरफुसुर की आवाजें बहुत साफ सुनाई दीं. रमेश ने कहा,‘‘ मैं तो तुम्हें बहुत एजुकेटेड फैमिली की  लड़की समझता था, क्या तुम्हारे फादर की सोच ऐसी है कि देश के मेरे जैसे नागरिक उस पर शर्मिंदा हो जाएं? क्या वे किसी राजनीतिक पार्टी में हैं?‘‘

‘‘सर, नहीं. वे किसी पार्टी में तो नहीं हैं.‘’ ‘‘कमाल है, जब भी तुम्हारी बातें सुनीं, लगा कि बहुत अच्छी परवरिश हुई है तुम्हारी, पर तुम्हारे फादर ने तो जोर का झटका दिया…‘‘

कोमल उन के केबिन से निकल कर सीधे बिना इधरउधर देखे वाशरूम की तरफ बढ़ गई. कोने की टेबल पर बैठे जुबैर का उदास, गंभीर चेहरा दिखा. कोमल की आंखों से कुछ आंसू बह ही गए, वाशरूम में जा कर कोमल फफक पड़ी, यह क्या किया पापा ने, हजारों लोग वीडियो देख चुके हैं, कितनी इंसल्ट करवा दी.

दिल का गुबार निकाल वह अपना बैग ले कर कुछ जल्दी ही निकलने लगी, तो जुबैर उस के साथ कुछ कदम चला, पूछा, ‘‘छोड़ दूं?‘‘ ‘‘नहीं, आज नहीं.‘‘कोमल ने पार्किंग से अपनी कार निकाली और रास्ते में एक खाली सी रोड पर यों ही कार रोक दी.

घर जा कर अपने पापा अनिल भारद्वाज को देखने का उस का मन ही नहीं था, दिल चाह रहा था कि उस घर में वह कदम भी न रखे, जहां धर्म के नाम पर इतना तमाशा करने वाले उस के पापा इस समय बड़ी शान से घूम रहे होंगे.

आज सुबह ही जब अनिल अपने कुछ कट्टर साथियों के साथ मंदिर से वापस आ रहे थे, उन्हें अपने औफिस में काम करने वाला छोटू दिखाई दे गया था.

छोटू को सब ‘छोटू’ ही कहते थे, छोटा सा ही तो था, पतलादुबला सा, अनिल के औफिस में चाय लाया करता. आज वह अपने पिता का हाथ पकडे़ चल रहा था. पिता के सिर पर टोपी और उन की दाढ़ी और पहनावे से साफसाफ समझ आ रहा था कि छोटू तो एक मुसलिम पिता का बेटा है.

यह देख अनिल के अंदर नफरत की एक आग सी भड़क उठी. उस ने एक गाली दे कर कहा, ‘‘ये तो हमारे औफिस में चाय लाया करता है, ये तो मुसलिम है? अभी बताता हूं इसे,‘‘ कहते हुए अनिल आगे बढ़ा, तो उन के साथी चिल्लाए, ‘‘छोड़ना मत… पीट डाल…‘‘

अनिल जैसे ही छोटू के पास पहुंचे, छोटू पहचान गया, खुश हुआ, ‘‘साहब,  आप…?‘‘ अनिल फुंफकारे, ‘‘तू मुसलमान है?‘‘ छोटू के पिता सरफराज ने कहा, ‘‘जी साहब.‘‘ ‘‘अभी तक बताया क्यों नहीं? हम रोज ही एक मुसलमान के हाथ की चाय पी रहे हैं?‘‘ अनिल गुस्से में छोटू के पिता सरफराज से कह रहे थे.

छोटू के पिता सरफराज को स्थिति गंभीर लगी. उन्होंने नरमी से कहा, ‘‘साहब, गरीब आदमी हैं. मैं साइकिल की दुकान पर काम करता हूं, छोटू चाय की दुकान पर काम करता है. बस, मेहनत कर के किसी तरह पेट भरते हैं.‘‘

‘‘मेहनत कर के या हम लोगों का धर्म भ्रष्ट कर के?‘‘ ‘‘साहब, छोटू के मालिक को तो हमारा धर्म पता है, हम ने कभी नहीं छुपाया.‘‘ ‘‘पर, हमें तो नहीं पता था न… जो हमारा धर्म इतने दिन भ्रष्ट हुआ, उस की सजा तो तुम्हें मिलेगी न…‘‘

सरफराज ने सब के आक्रामक तेवर देखे तो डर गए. छोटू को अपने पीछे छुपाते हुए बोले, ‘‘ठीक है साहब, छोटू आप के औफिस में अब चाय ले कर नहीं आएगा.‘’‘‘हां, वह तो अब आने भी कौन देगा, पर अब तक जो हुआ, उस की सजा तो मिलेगी,‘‘ कहतेकहते अनिल ने एक जोर का थप्पड़ छोटू के गाल पर लगाया. उन के साथी रमेश और सोहन एकसाथ बोले, ‘छोड़ना मत, और मार इसे…‘

छोटू तेज वार से जमीन पर गिर पड़ा था. सरफराज उसे उठाने के लिए आगे बढ़े, तो रमेश ने उन के दोनों हाथ पीछे से पकड़ लिए, कहा, ‘‘सोहन, चल, बना ले एक वीडियो…‘‘

अनिल ने छोटू को मारमार कर जमीन पर अधमरा कर दिया. सरफराज रोरो कर मदद की गुहार करते रहे, पर इस समय इक्कादुक्का लोग ही आसपास थे, जो दूर खड़े तमाशा देख रहे थे. सोहन ने हंसते हुए वीडियो बनाया, फिर सरफराज को भी सड़क पर एक जोर का धक्का दे कर तीनों चले गए और बड़ी शान से वीडियो वायरल कर दिया था.

अब तो कोई भी ऐसा नहीं बचा था, जिस ने यह वीडियो न देखा हो. कुछ तो अनिल की हरकत पर गर्व कर रहे थे, कह रहे थे कि ठीक किया. ये वही लोग थे, जो आजकल धर्म के नशे में अंधे हो चुके हैं. एक तरफ वे लोग थे, जिन का सिर इस वीडियो को देख कर शर्म से झुक गया था.

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