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Mother’s Day 2022: भावनाओं के साथी- भाग 3

‘‘जब तुम्हारे पापा ने इस संसार से विदा ली, मैं ने जीवन के सिर्फ 30 वसंत ही देखे थे. मुझे लगा कि अचानक ही मेरे जीवन में पतझड़ का मौसम आ गया हो तथा मेरे जीवन के सारे रंग ही बदरंग हो गए हों. मैं ने तुम लोगों के सुखों के लिए अपनी सारी आकांक्षाओं की आहुति दे दी. पर जवान होने पर तुम लोगों की आंखों पर स्वार्थ की इतनी गहरी धुंध छाई जिस में कर्तव्य और दायित्व जैसे शब्द धुंधले हो गए. जब मेरी तबीयत खराब हुई और मैं ने तुम लोगों को बुलाया तो तुम दोनों ने बहाने गढ़ कर अपनेअपने पल्लू झाड़ लिए.

‘‘ऐसे आड़े वक्त और तकलीफ में नवीनजी एक हमदर्द इंसान के रूप में मेरे सामने आए. उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ा कर मुझे मानसिक सहारा दिया. वे मेरे दुखदर्द के ही नहीं, भावनाओं के भी साथी बने. अब मैं उन्हें अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर एक नए जीवन की शुरुआत करने जा रही हूं.’’

नकुल और नीला को आत्मग्लानि का बोध हुआ. वे पछतावेभरे स्वर में बोले, ‘‘मम्मी, आज आप ने हमारी आंखें खोल कर हमें अपनी गलतियों का एहसास कराया है और जीवन के एक बहुत बड़े सत्य से भी साक्षात्कार करवाया है. मां का हृदय बहुत विशाल होता है. हमारी भूलों के लिए आप हमें क्षमा कर दीजिए. आप के जीवन में हमेशा खुशियों के गुलाब महकते रहें, ऐसी हम लोगों की मंगल कामना है.’’

अपनी संतानों की ये बातें सुन कर जानकी की खुशी दोगुनी हो गई.

Mother’s Day 2023: मां का प्यार- भाग 3

भारी आवाज में संगीता बोली,  ‘‘इसे शौच का भी भान नहीं रहता. इसलिए यह बारबार कपड़ा खराब कर दे तो जरा ध्यान रखिएगा, वरना गीले में ही पड़ी रहेगी.’’ दूसरी नर्स बोली,  ‘‘मांजी, हम रात में 4-5 बार उठ कर आदमी को देखते हैं.’’ ‘‘रात में लाइट में इसे नींद नहीं आती,’’ संगीता ने कहा. ‘‘जिसे नींद नहीं आती, उसे नींद की दवा दी जाती है.’’ ‘‘कोई शरारती इसे मारेगा तो नहीं?’’ ‘‘शरारती पागलों को अलग रखा जाता है. रात में सभी को अलगअलग सुलाया जाता है.’’ उस ने कहा, ‘‘मेरी बेटी को जिस कमरे में रखा जाएगा, जरा मुझे वह कमरा दिखा दीजिए.’’ ‘‘किसी भी बाहरी आदमी को कमरे के अंदर नहीं जाने दिया जाता है,’’ मैट्रन ने स्पष्ट कहा. आंखें फाड़ कर चकरमकर इस नई दुनिया को देख रही निधि ने संगीता की गोद में अपना सिर रख दिया, तो संगीता का हाथ अपनेआप उस के सिर पर चला गया. आदत के अनुसार उस के मुंह से निकल गया, ‘‘बेटा….’’

‘बेटा’ शब्द मुंह से निकलते ही संगीता की आंखों से जलधारा बह निकली. संगीता इस तरह रो रही थी जैसे कोई अपने के मरने पर रोता है. बेटा भी मां को सांत्वना देने के बजाय रोने लगा. इस तरह रोनेगाने के आदी डाक्टर, मैट्रन और नर्सों का भी दिल संगीता के रोने से भर आया था. एक नर्स ने हाथ का रूमाल हिला कर निधि का ध्यान अपनी ओर खींचा. निधि ने उस की ओर देखा तो वह बोली,  ‘‘आप को चाहिए?’’ रूमाल पकड़ने के लिए निधि मां की गोद से एकदम से खड़ी हो गई और हाथ बढ़ाया, तो नर्स उस का हाथ पकड़ कर प्रेम से बोली, ‘‘तुम मेरे पास रहोगी? मैं तुम्हें अच्छाअच्छा खाना दूंगी, नएनए कपड़े पहनाऊंगी.’’ निधि नर्स का मुंह एकटक ताक रही थी. नर्स ने इस का फायदा उठाया. उसे अधखुले दरवाजे के अंदर कर दिया. संगीता  ‘निधि, निधि’ कह कर चीख पड़ी.

डाक्टर ने संगीता के बगल में खड़े बेटे की ओर इशारा करते हुए कहा,  ‘‘मांजी, अपने इस बेटे की तरह मुझे भी अपना बेटा समझिए. आप बेटी को अस्पताल में नहीं, बेटे के घर छोड़ कर जा रही हैं.’’ बचपन में ही विधवा हो चुकी अधेड़ उम्र की मैट्रन ने संगीता को आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘आप क्यों परेशान होती हैं बहन, आज तक आप इस की मां थीं, आज से मैं इस की मां हूं.’’ संगीता ने सिसकते हुए कहा,  ‘‘इसे तो जानवरों जितना भी ज्ञान नहीं है. आज के पहले मैं ने इसे कभी पलभर के लिए अपने से अलग नहीं किया. मेरे ही गांव की कुसुम आप के अस्पताल आ कर ठीक हो गई थी, इसलिए कलेजा कड़ा कर के इसे यहां लाई हूं.’’ ‘‘यह भी कुछ दिनों में कुसुम की तरह ठीक हो जाएगी,’’ मैट्रन ने कहा. संगीता का रोना तो बंद हो गया लेकिन उस की नजरें अभी भी उस कमरे पर इस तरह टिकी थीं, जैसे वह निधि को देख रही हो.

तभी वह अचानक बोली,  ‘‘बहन, मेरी निधि रोटी नहीं खाती. शाम को दूध में रोटी सान कर दीजिएगा. दूध न हो तो दाल में.’’ मैट्रन संगीता की करुणाभरी आंखों से आंखें नहीं मिला पा रही थी. वह सिर झुकाए हुए बोली,  ‘‘ठीक है, जैसा आप कह रही हैं, वैसा ही करूंगी.’’ ‘‘बहन, उसे दही बहुत पसंद है. अगर रोजाना न हो सके तो दूसरेतीसरे दिन उसे दही जरूर दीजिएगा. इस के लिए जो खर्च आएगा, वह मैं मिलने आऊंगी तो दे दूंगी. उस की सेवा करने वाले को भी मैं खुश रखूंगी,’’ संगीता ने बड़े ही दीनभाव से कहा. संगीता ने देख लिया था कि अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी बड़े ही दयालु और भले आदमी हैं. लेकिन अंदर न जाने देने वाली बात उसे अच्छी नहीं लगी थी. पता नहीं नियम क्यों बनाया गया था. उस ने अंदर अस्तव्यस्त कपड़ों में बाल फैलाए भूतनी जैसी 2 औरतों को देखा था. उस के मन में आया कि निधि उन्हीं के पास बैठी रो रही है. यह बात मन में आते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. संगीता को रोते देख, उस की बगल में बैठी महिला ने पूछा,  ‘‘क्या बात है मांजी, आप रो क्यों रही हैं?’’

संगीता ने कोई जवाब नहीं दिया था. रात 11 बजे संगीता घर पहुंची. उस की रिश्ते की देवरानी ने उस के लिए खाना भी बना रखा था. लेकिन मांबेटे ने खाने से इनकार कर दिया. देवरानी ने कई बार कहा, लेकिन खाना खाने की संगीता की हिम्मत नहीं हुई. संगीता के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, निधि इस समय न जाने क्या कर रही होगी? ठंड बहुत है, उसे कुछ ओढ़ाया गया होगा या नहीं? उस ने कपड़े कहीं गीले न कर दिए हों? वह इस तरह बड़बड़ाई, जैसे निधि उन की बातें सुन रही हो,  ‘बेटा, बिस्तर पर पेशाब मत करना. रजाई ओढ़े रहना. हटाना मत. ठंड बहुत है.’ ये बातें सोते समय संगीता हमेशा निधि से कहती थी. लेकिन निधि ने कभी इन बातों पर अमल नहीं किया. रात में वह पेशाब कर देती, तो संगीता रात में ही उस के कपडे़ और बिस्तर बदलती. निधि इतनी बड़ी हो गई थी, फिर भी संगीता उसे अपने पास ही सुलाती थी, जिस से वह बिस्तर गीला करे तो उसे तुरंत पता चल जाए और उसे गीले में न पड़ी रहना पड़े. उस रात संगीता को निधि के बिना बिस्तर सूनासूना लग रहा था. उसे नींद ही नहीं आ रही थी, तो उस के बिना निधि को ही भला कहां नींद आई होगी? उस ने महसूस किया कि निधि उसे खोज रही है. संगीता ने अपना सिर पीटते हुए रो कर कहा, ‘‘मैं भी कैसी मां हूं जो बेटी को अस्पताल में फेंक आई.’’ बगल के कमरे में लेटे बेटे को भी नींद नहीं आ रही थी. मां की तरह उसे निधि से उतना प्यार तो नहीं था, फिर भी उस के सीने पर दुख का बोझ जरूर था. मन इतना भारी हो गया था कि आंखों से आंसू बह निकले थे. उस ने सोचा, जब उसे इतना दुख है तो मां का क्या हाल होगा? यह दुख मां को किस तरह परेशान कर रहा होगा, जीवन में पहली बार बेटे को पता चला था. उस के हृदय से आवाज आई,  ‘

मां के इस दुख को उसे किसी भी तरह दूर करना चाहिए. बेटा हो कर मां के लिए इतना भी नहीं कर सकता तो उस का पैदा होना ही बेकार है. वह निधि को ले आएगा. पत्नी भले ही निधि का शौच न धोए, वह धोएगा.’ इस के साथ वेदना का जो बोझ उस के सीने पर था, वह गायब हो गया. संगीता अगर दोबारा रोई होती, तो शायद बेटा उसी समय मां के पास जा कर अपनी सोच के बारे में बता कर उसे शांत कर देता. लेकिन मां शांत हो गईं तो उसे लगा कि मां सो गई हैं. अब वह मां से सुबह बात करेगा. फिर उस ने सोने के लिए आंखें बंद कर लीं, तो थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई. सुबह मुरगे की बांग पर गांव वालों की आंखें खुलीं. उसी के साथ गांव वालों को एक आवाज और सुनाई दी. वह आवाज थी संगीता के चीखने की. वह चीखचीख कर कह रही थी,  ‘‘बाप रे बाप. मैं ने निधि को मार डाला.’’ मां की चीख सुन कर बेटा चारपाई से उछल पड़ा. इस आवाज को जिस ने भी सुना, भागा आया. और फिर जो देखा उस से सभी सहम कर रह गए. संगीता भी निधि की बिरादरी में शामिल हो गई थी.

मदर्स डे स्पेशल : बेटा मेरा है तुम्हारा नहीं- भाग 1

मोबाइल चलाते रहने से किताबें पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है मुझे. प्रणय आउट औफ स्टेशन थे और किताबें पढ़पढ़ कर मैं ऊब चुकी थी. तो यों ही मोबाइल पर फेसबुक खोल कर बैठ गई. कुछ लेखिकाओं की कविताएं और गजलें पढ़ कर मन खिल उठा. लेकिन जैसे ही आगे बढ़ी, मन खिन्न हो गया कि कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में.

मूर्ति टाइप फोटो डाल कर लिखते हैं कि तुरंत लाइक करो. जय श्रीराम लिखो, तो तुम्हारे बिगड़े काम बन जाएंगे या फिर कोई अच्छी खबर सुनने को जरूर मिलेगी. कोरा झूठ. ऐसा भी कभी होता है क्या? फोन बंद करने ही लगी थी कि सोचा, चलो जरा अपना फेसबुक अकाउंट खोल कर देखती हूं. बहुत समय हो गया देखे. सच में पुराने कुछ फोटोज देख कर मन चिहुंक उठा और मुंह से निकल गया, ‘‘अरे, मेरे बिट्टू के बचपन की तसवीरें.’’ कुछ ही पलों में मैं पुरानी यादों में खो गई.

जब मेरा बिट्टू ढाई साल का था तब मैं ने उस के कई फोटोज यों ही निकाल लिए थे. कहा भी था प्रणय ने कि क्यों इतने गंदेसंदे चेहरे का फोटो ले रही हो? जरा तैयार तो कर दो पहले. तो मैं ने कहा था, ‘यही तो खुशनुमा यादें बनेंगी.’ अब सच में, इन्हें देख कर और भी कई यादें ताजा हो गईं. इस फोटो को देखो, कितना पाउडर पोत लिया था उस ने अपने चेहरे पर तभी. एकदम जोकर लग रहा था और मैं ने झट से उस की फोटो क्लिक कर ली थी. और यह उस का नीबू खाते हुए, कैसा बंदर सा मुंह बना लिया था और हम हंसहंस कर लोटपोट हो गए थे. मजाल थी जो ड्रैसिंग टेबल पर मेरा कोई भी मेकअप का सामान सहीसलामत रहे. इसलिए सबकुछ छिपा कर रखना पड़ता था मुझे उस के डर से.

आज भी याद है मुझे उस का वह प्याराप्यारा मुखड़ा. पतलेपतले लाललाल अधर, तीव्र चितवन, कालेकाले भ्रमर के समान बाल और उस पर उस की प्यारीप्यारी तोतली बातें, खूब पटरपटर बोलता था और अब देखो, कितना शर्मीला हो गया है. उस के फोटो पर कितने सारे कमैंट्स और लाइक्स आए तभी. दिखाऊंगी प्रणय को, फिर देखना कैसे उन का भी चेहरा खिल उठेगा. मन हुआ क्यों न ये सारे फोटोज फिर से फेसबुक पर अपलोड कर दूं.

कुछ ही देर में बिट्टू दनदनाता हुआ मेरे पास आ कर कहने लगा कि क्यों मैं ने उस की ऐसी बकवास फोटोज फेसबुक पर अपलोड कर दीं. उस के सारे दोस्त ‘अले ले बिट्टू बाबू, शोना, बच्चा,’ कहकह कर उस का मजाक बना कर हंसे जा रहे हैं. उस की बातें सुन कर मुझे भी हंसी आ गई.

मैं बोली, ‘‘हां, तो क्या हो गया. हंसने दे न. वैसे तू लग ही रहा नन्हा सा, छोटा सा बाबू तो.’’ मेरी बात पर वह और बिदक उठा और ‘‘आप भी न मां’’ कह कर वहां से चला गया. वैसे तो उस का नाम रुद्र है पर अभी भी वह मेरे लिए मेरा छोटा सा बिट्टू ही है. 12 साल का हो गया है, पर अभी भी उस का बचपन गया नहीं.

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जब भी स्कूल से आता है, मेरे गले से झूल जाता है और कहता है, ‘‘मां, मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा.’’

‘‘अच्छा, सच कह रहा है तू या मम्मी को मस्का लगा रहा है? पैसे चाहिए न?’’ हंसते हुए मैं कहती तो वह ठुनक उठता और कहता, ‘‘जाओ, मैं आप से बात नहीं करता.’’ कभीकभी यह सोच कर उदास हो जाती हूं कि जब वह बाहर पढ़ने चला जाएगा तब कैसे रहूंगी मैं? कभी लगता है बच्चा बड़ा ही क्यों होता है? बच्चा ही रहता तो कितना अच्छा होता न. लेकिन ऐसा संभव नहीं.

यह लो, शैतान का नाम लिया और शैतान हाजिर. आ गया स्कूल से. अब अपना बैग एक तरफ फेंकेगा, ड्रैस दूसरी तरफ और बेचारा मोजा कहां जा कर अटकेगा, पता नहीं, और फिर शुरू हो जाएगा अपने दोस्तों की कहानी ले कर. उस की आंखों में देख कर उस की बातें सुननी पड़ती हैं मुझे, नहीं तो कहेगा, ‘‘नहीं सुन रही हो न आप मेरी बात? कहीं और ध्यान है न आप का? जाओ नहीं बोलना मुझे कुछ भी.’’

‘‘अरे, मैं सुन रही हूं बाबा, बोल न,’’ अपना सारा काम छोड़छाड़ कर लग जाती हूं उस की बातें सुनने में. चाहे कितनी भी बोरिंग बातें क्यों न हों, सुननी पड़ती हैं, नहीं तो फिर घंटों लग जाते हैं उसे मनाने में. इस से अच्छा है उस की बात सुन ली ही जाए. परसों की ही बात है, कहने लगा, ‘मां, आप को पता है, मोहित से मेरी लड़ाई हो गई. अब मैं उस से बात नहीं करता.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में तो यह सब चलता रहता है. इस का यह मतलब नहीं कि एकदूसरे से बात करना ही बंद कर दें. गलत बात, चल, आगे बढ़ कर तू ही सौरी बोल देना और हैंडशेक भी कर लेना. दोस्तों से ज्यादा देर गुस्सा नहीं होते.’’

मेरी बात पर पहले तो वह झुंझला गया, फिर ‘‘ओके मां’’ कह कर मेरी बात मान भी गया. छोटी से छोटी बातें वह मुझ से शेयर करता है. जैसे कि मैं उस की दोस्त हूं. वैसे, मुझे भी अच्छा लगता है उस की हर बात सुनना, क्योंकि मां व बेटे के अलावा हम अच्छे दोस्त भी तो हैं.

अगले दिन मेरे फोन पर किसी अनजान नंबर से फोन आया. न चाहते हुए भी मैं ने फोन उठा लिया ‘‘हैलो, कौन?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम शिखा बोल रही हो न?’’ उधर से उस अनजान शख्स ने मुझ से पूछा.

‘‘हां, मैं शिखा बोल रही हूं, लेकिन आप कौन?’’ मैं ने पूछा तो वह चुप हो गया. पता नहीं क्यों. मुझे उस की आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी पर कुछ याद नहीं आ रहा था और यह भी लगा कि उसे मेरा नाम कैसे मालूम? लेकिन फिर जब मैं ने ‘हैलो’ कहा तो वह कुछ नहीं बोला. मैं फोन रखने ही लगी कि वह, ‘‘शिखा, मैं अखिल’’ कह कर चुप हो गया. अखिल, उस का नाम सुनते ही मैं सन्न रह गई. एकदम से मेरी आंखों के सामने वह सारा दृश्य नाच गया जो सालों पहले मुझ पर बीता था. खून खौल उठा मेरा. दांत भींच लिए मैं ने गुस्से से.

‘‘तुम? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे फोन करने की? जरा भी शर्म है तो फिर फोन मत करना,’’ कह कर मैं फोन काटने ही लगी कि वह कहने लगा, ‘‘प्लीज, प्लीज, शिखा, फोन मत काटना. बस, एक बार, एक  बार मेरी बात सुन लो. वो बिट्टू, मेरा मतलब है तुम्हारे बेटे की फोटो फेसबुक पर देखी, तो रहा नहीं गया. इसलिए फोन कर दिया. बहुत ही प्यारा बच्चा है. अब तो वह काफी बड़ा हो गया होगा न?’’

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‘‘हां, हो गया, तो तुम्हें क्या? तुम क्यों इतनी जानकारी ले रहे हो?’’ मैं ने गुस्से से भर कर कहा तो वह क्षणभर के लिए चुप हो गया, फिर कहने लगा कि वह किसी गलत इरादे से नहीं पूछ रहा है. फिर खुद ही बताने लगा कि अब वह दिल्ली में रहता है अपने पिता के साथ. मुझ से पूछा कि मैं कहां हूं अभी? तो मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘यहीं दिल्ली में ही.’’ कहने लगा वह मुझ से मिलना चाहता है. जब मैं ने मिलने से मना कर दिया तो कहने लगा कि वह मुझे अपने बारे में कुछ बताना चाहता है.

‘‘पर मुझे तुम्हारे बारे में कुछ सुननाजानना नहीं है और वैसे भी, मैं अभी कहीं बाहर हूं,’’ कह कर मैं ने उस का जवाब सुने बिना ही फोन काट दिया. और वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. पिछली बातें चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने चलने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- शादी के पहले यह सब…

Crime Story : 2 प्रेमियों के बीच

सौजन्या-सत्यकथा

सुबह के यही कोई 7 बजे थे, तभी धार जिले के अमझेरा थानाप्रभारी रतनलाल मीणा को थाना इलाके में एक युवक द्वारा आत्महत्या करने की खबर मिली.  सूचना पाते ही टीआई मीणा के निर्देश पर एसआई राजेश सिंघाड पुलिस टीम को ले कर मौके पर पहुंच गए, जहां कमरे की छत पर लगभग 28 वर्षीय अजय भायल की लाश  छत में लगे कुंदे के सहारे फांसी पर लटकी थी.

घटना के समय घर में अजय की पत्नी मंजू मौजूद थी, जिस ने शुरुआती पूछताछ में बताया कि रात को हम दोनों खाना खा कर अपने बिस्तर पर सो गए थे. जिस के बाद सुबह उठ कर उस ने पति को फांसी पर लटका देखा तो उस ने लोगों को घटना की जानकारी दी.

एसआई सिंघाड को मंजू के हावभाव कुछ अजीब लगे. क्योंकि मंजू बेबाक हो कर घटना की जानकारी दे रही थी. जबकि एक जवान पति के मरने के बाद किसी भी औरत का इस तरह बात करना असंभव था. वह भी तब जब उस के पति का शव उस के सामने फांसी के फंदे पर झूल रहा हो. एसआई राजेश सिंघाड ने यह बात अपने ध्यान में नोट कर शव को फंदे से उतारा. उन्होंने पूरी स्थिति से टीआई रतनलाल मीणा को अवगत कराया. शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने पूरे घर की अच्छी तरह से तलाशी ली, पर वहां कहीं भी कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. यह बात 26 अगस्त, 2020 की है.

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यह आत्महत्या है या अजय की हत्या की गई है, यह तय करने के लिए पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. तब तक मामला संदिग्ध था. इस दौरान प्रारंभिक पूछताछ में अजय के घर वालों ने अपने बेटे की मौत को हत्या  बताते हुए उस की पत्नी मंजू पर शक जाहिर किया.

उन का कहना था कि मंजू का चालचलन ठीक नहीं था, जिस के कारण पतिपत्नी में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इतना ही नहीं, जिस रात अजय का शव फांसी पर लटका मिला उस रात भी उस की पत्नी और अजय के बीच झगड़ा होने की बात पुलिस की जानकारी में आई, मगर मंजू ने इस बात से इनकार कर दिया.

उस का कहना था कि उस के पति कई दिनों से परेशान रहने लगे थे. मैं ने उन से परेशानी का कारण भी जानने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया. जांच अधिकारी एसआई राजेश सिंघाड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही जांच कर पता कर लिया था कि मृतक अजय और उस की पत्नी दोनों न केवल शराब पीने के शौकीन थे, बल्कि गांव में अवैध रूप से शराब का धंधा भी करते थे.

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जाहिर सी बात है जहां शराब का धंधा होता हो, वहां लड़ाईझगड़ा होना कोई अजूबा नहीं है. इसलिए दोनों के झगडे़ पर कोई ध्यान नहीं देता था.

इस बीच पुलिस को अजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में साफ बताया गया कि अजय की मौत फांसी लगने के पहले ही हो चुकी थी. बात साफ थी कि उस की हत्या करने के बाद उसे आत्महत्या साबित करने की गरज से फांसी पर लटकाया गया था.

चूंकि अजय का शव घर के अंदर मिला था और रात में उस की 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत पत्नी मंजू उस के साथ में थी. इसलिए टीआई मीणा जानते थे कि यह संभव नहीं है कि पत्नी घर में सोती रहे और कोई बाहर से आ कर पति की हत्या कर के चला जाए.

इसलिए उन के निर्देश पर जांच अधिकारी एसआई सिंघाड ने मृतक की पत्नी मंजू से बारबार पूछताछ की, जिस में एक समय ऐसा आया कि वह खुद अपने बयानों में उलझ गई, जिस से उस ने अपने 2 प्रेमियों मनोहर और सावन निवासी राजपुरा के साथ मिल कर

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पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर छापे मार कर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद अपने दोनों प्रेमियों के साथ मिल कर हत्या कर दिए जाने की कहानी इस प्रकार से सामने आई.

अजय मध्य प्रदेश के जिला धार के गांव नालापुरा में अपनी पत्नी मंजू के साथ रहता था. अजय के पास आय का कोई साधन नहीं था. इसलिए अजय ने घर पर छोटीमोटी किराने की दुकान खोल रखी थी, जिस से उस का मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था.

अजय की पत्नी मंजू जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही दिमाग से तेज भी थी इसलिए उस ने अजय को सलाह दी कि अकेला गुड़, तेल बेचने से उन की दालरोटी नहीं चलने वाली, इसलिए हम किराने की ओट में शहर से शराब ला कर बेचना शुरू कर देते हैं, जिस से काफी कमाई हो सकती है. इस काम में अजय ने पुलिस का डर होने की बात कही तो मंजू ने कहा कि यह बात तुम मुझ पर छोड़ दो.

अजय पत्नी की बात पर राजी हो गया, जिस से उस ने शहर से शराब ला कर दुकान में रख कर बेचनी शुरू कर दी थी. कहना नहीं होगा कि शराब पीने वाले रेट के चक्कर में नहीं पड़ते, इसलिए गांव के शौकीन लोग मंजू से मुंहमांगे दाम पर शराब खरीदने लगे.

गांव का संपन्न किसान मनोहर पडियार भी शराब का शौकीन था. इसलिए जब उसे पता चला कि मंजू और अजय गांव में शराब बेचने लगे हैं, तब से मनोहर ने शहर से शराब खरीदनी ही बंद कर दी. मंजू जानती थी कि शराब के शौकीन मजबूरी में ही महंगी शराब उस से खरीदते हैं, वरना लोग शहर से ही अपने लिए शराब खरीद कर लाते थे. लेकिन मनोहर उस का रोज का ग्राहक था. इसलिए एक दिन मंजू ने मनोहर से पूछ लिया, ‘‘अब शहर से शराब खरीद कर नहीं लाते क्या?’’

‘‘मेरा यहां रोजरोज आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता क्या?’’ मनोहर ने उलटा उसी से सवाल कर दिया.   ‘‘नहीं, यह बात नहीं है, बस ऐसे ही पूछ लिया.’’ वह बोली. ‘अब पूछ लिया है तो कारण भी सुन लो. तुम जिस बोतल को हाथ लगा देती हो न, उस बोतल का नशा और भी बढ़ जाता है. इसलिए मुझे तुम्हारे यहां की शराब अच्छी लगती है.’’  मनोहर ने मंजू की प्रशंसा करते हुए कहा.

‘‘ऐसा है क्या?’’ मनोहर की बात सुन कर मंजू ने मुसकराते हुए बोली.  ‘‘हां, क्योंकि तुम्हारे छू भर लेने से शराब में तुम्हारा नशा भी घुल जाता है.’’ मनोहर ने मुसकराते हुए कहा और शराब की बोतल पकड़ते समय मंजू की अंगुलियां दबा दीं. मंजू बच्ची तो थी नहीं, जो इस का मतलब न समझती हो. लेकिन वह अपने रोज के ग्राहक को नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या बात है मनोहर बाबू, आज पीने से पहले ही चढ़ गई क्या?’’

‘‘हां, तुम से चार बातें जो हो गईं.’’ मनोहर ने उस से कहा और अपनी बोतल ले कर चला गया.  उस दिन के बाद से मनोहर और मंजू के बीच अनकहे तौर पर नजदीकी बढ़ने लगी. जिस से कुछ दिनों बात मनोहर मंजू के घर में ही बैठ कर शराब पीने लगा.

मंजू भी शराब पीने की शौकीन थी, सो एक दिन वह भी मनोहर के साथ पेग से पेग भिड़ाने लगी. जिस के चलते शराब के नशे में दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.मंजू खूबसूरत और जवान थी. मनोहर को उस की जरूरत थी और मंजू को मनोहर के पैसों की. इसलिए मनोहर उस पर पैसे लुटाते हुए लगभग रोज ही मंजू के साथ उस वक्त समय बिताने लगा, जब उस का पति अजय दुकान का सामान लेने शहर गया होता था.

राजपुरा गांव का रहने वाला सावन हेयर कटिंग सैलून चलाता था. वह शराब का शौकीन भी था और मनोहर का दोस्त भी. इसलिए कभीकभार वह मनोहर के साथ मंजू के यहां शराब पीने चला जाया करता था.  इस दौरान वह जल्दी ही समझ गया कि मनोहर और मंजू के बीच शारीरिक संबंध भी हैं तो मौके का फायदा उठा कर उस ने मनोहर से कहा कि वह उसे भी मंजू संग सोने का मौका दिलवा दे.

मनोहर ने मंजू से सावन को एक बार खुश करने को कहा तो मंजू थोड़ी नानुकुर के बाद मान गई. लेकिन इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि मनोहर के अलावा सावन के साथ भी मंजू के स्थाई अवैध संबंध बन गए. चूंकि मनोहर और सावन दोनों दोस्त थे और साथ में ही शराब पीया करते थे, इस कारण कई बार वे दोनों एक साथ मंजू के संग अय्याशी कर चुके थे. लेकिन कोरोना के कारण देश में लौकडाउन लग जाने से अजय का सामान खरीदने के लिए शहर जाना बंद हो गया. दूसरा उस के पास शराब का स्टौक भी खत्म हो गया.

इस से अजय और मंजू की कमाई पर ब्रेक तो लगा ही, साथ ही मंजू के संग मनोहर और सावन की अय्याशी पर भी ब्रेक लग गया. जिस से दोनों दोस्त मंजू से मिलने के लिए परेशान होने लगे. इस बीच एक दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ अजय को ताश खेलते देख मनोहर और सावन मंजू के घर पहुंच गए और एक साथ मंजू के संग वासना का खेल खेलने लग गए. इसी बीच अजय के घर आ जाने से तीनों रंगेहाथ पकड़े गए.

पत्नी को अय्याशी का घिनौना खेल खेलते देख अजय पागल हो कर गुस्से में उस की पिटाई करने लगा. जिस के बाद तो यह आए दिन का काम होने लगा. अजय बातबात पर उस की अय्याशी का ताना दे कर उसे पीटने लगा. इस से मंजू तंग आ गई. उस ने यह बात अपने प्रेमियों को बताई तो वे अजय के साथ रंजिश रखने लगे.

इस दौरान लौकडाउन फिर से हट जाने से मंजू अवैध शराब बेचने लगी, मनोहर शराब लेने उस की दुकान पर अभी भी जाया करता था. लेकिन अब पहले जैसी अय्याशी संभव नहीं थी. इसलिए मनोहर और सावन दोनों ही अजय को रास्ते से हटाने की सोचने लगे थे.

आरोपियों ने बताया कि घटना की रात अजय फिर मंजू को उस के अवैध संबंध को ले कर उस के साथ मारपीट कर रहा था. इस बात की जानकारी मंजू ने मनोहर को फोन पर दी तो मनोहर सावन को ले कर मंजू के घर पहुंच गया. जहां उस ने अजय को समझाबुझा कर अपने साथ शराब पीने को राजी कर लिया.

इस के बाद उस ने अजय से ही खरीद कर उसे खूब शराब पिलाई और जब उस ने देखा कि पर्याप्त नशा हो गया है तो सावन, मंजू और मनोहर तीनों ने मिल कर गला दबा कर अजय की हत्या कर दी. उस के बाद लाश को फांसी पर लटका दिया ताकि पुलिस समझे कि उस ने आत्महत्या की है.

लेकिन टीआई रतनलाल मीणा के नेतृत्व में एसआई राजेश सिंघाड की सटीक जांच से तीनों आरोपी हफ्ते भर में ही कानून की गिरफ्त में आ गए.

मंजू के बारे में बताया जाता है कि पति की हत्या करने के बाद उसे कानून का जरा भी डर नहीं था. इसलिए दोनों प्रेमियों संग मिल कर पति की हत्या के बाद उस के शव को फंदे पर लटका कर दोनों प्रेमियों संग मस्ती करते हुए शराब पीने के बाद खाना भी खाया और फिर जिस कमरे में पति की लाश लटकी थी, उसी कमरे में सो गई थी.

उस ने पुलिस को बताया कि सुबह उठने के बाद उस ने मोहल्ले वालों को बुला कर पति द्वारा आत्महत्या करने की बाद बताई.  पुलिस ने मंजू और उस के दोनों प्रेमियों मनोहर व सावन को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

मीडिया की स्वतंत्रता  

पिछले 6-7 सालों में देश का मीडिया कुछ घोषित, कुछ अघोषित और कुछ घोषित सेंसरशिप में जिआ है. इस का नतीजा अब भारतीय जनता पार्टी देख रही है. पश्चिमी बंगाल और 2 दूसरे राज्यों में भाजपा की करारी हार की वजह यही है कि मीडिया जो नियंत्रित या गोदी मीडिया जो खुद ब खुद मोदी भक्त है सही…..नहीं दे रहा था. अब जब कोविड और चुनाव नतीजों की मार पड़ी है तो पता चला है कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छिपाने से सच छिप जाता है, झूठसच में नहीं बदलता.

मीडिया कंट्रोल अब सरकार पर भारी पड़ रहा है और उच्चन्यायालय व सर्वोत्तम न्यायालय जो आमतौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नकेल डाल रहे थे, अचानक मुखर हो उठे हैं. मद्रास उच्च न्यायालय ने तो यहां तक कह दिया कि खुले चुनाव करा कर चुनाव आयोग ने मर्डर किए हैं क्योंकि कोविड महामारी की दूसरी लहर सीधेसीधे चुनाव आयोग के कई फेजों में चुनाव कराने के फैसले को प्रधानमंत्री की रैलियों और अमित शाह की रोड शोओं से जोड़ा जा रहा है.

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चुनाव आयोग रोताझींकता सर्वोच्च न्यायालय भी गया पर काफी दिन बाद सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को कोई राहत देने से इंकार कर दिया. मद्रास उच्च न्यायालय ने ये शब्द एक सुनवाई के दौरान कहे थे, कोर्ई फैसला नहीं दिया था. चुनाव आयोग चाहता था कि मीडिया इस बात की चर्चा न करे पर सर्वोच्च न्यायालय ने जनता के जानने और आलोचना करने वे हक को बुनियादी माना है.

जो गोदी मीडिया सोच रहा है कि वह भक्ति कर के देश का भला कर रहा है खुद चुनावे में है. यह सही है कि प्रचार के बल पर और लगातार झूठ पर झूठ बोल कर ङ्क्षहदू मुसलिम खाई चौड़ी कर दी है और आम ङ्क्षहदू देश की समस्याओं के लिए मुसलमानों को कहीं दोषी मानता ही है.

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यह पट्टी ङ्क्षहदू धर्म के दुकानदार पड़ा रहे हैं और उन्होंने अपने भक्तों व समर्थकों में पैसे वालों की बड़ी भीड़ जमा कर रखी है, ये दुकानदार तीर्थ, पूजा, प्रवचन, आयुर्वेद, वस्तु, घरों में मंदिरों, गलियों में मंदिरों, शहर में मंदिरों में खूब कमाई करते हैं. क्योंकि ईश्वर भक्ति का झूठ इतनी बार दोहराया जाता है कि तर्क पेश करने वाले को ङ्क्षहदू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कह दिया जाता है.

मीडिया की स्वतंत्रता उस की ताॢककता में है जो तथ्यों पर आधारित हो. जो मीडिया लगाना तथ्यों को तोड़मरोड़ कर जातिगत श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए मोदी के मुखौटे का इस्तेमाल कर रहा हो उसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जरूरत ही नहीं. वह तो भक्ति प्रचार की स्वतंत्रता को ही स्वतंत्रता मानता है और दिमाग पर तालों को लगाए बैठा है.

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सर्वोच्च न्यायालय ने कोविड़ की सुनामी से हिले मजबूत तंत्र के ढीले बंधनों का लाभ उठाया है और कई साल बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात की है. वैचारिक स्वतंत्रता ही असल में मौलिक सुखों का मार्ग है. बंधीबंधाई लकीर पर चलने वाले तो कमंडल में पूरा घर लिए घूमते हैं और घरघर भीख मांग कर गुजारा करते हैं.

7 TIPS: कभी कुछ काम न करना भी जरूरी

कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जो एक पल भी खाली नहीं बैठ सकतीं. अगर उन के पास काम नहीं तो उन्हें बेचैनी होने लगती है. आमतौर पर लोगों को यह सामान्य लगता है पर संभव है कि वे किसी अवसाद से ग्रस्त हों. कहीं आप की नजर में तो नहीं कोई ऐसी महिला?

रितिका का जीवन 17 वर्षों से घड़ी की सूइयों से बंधा हुआ है. सुबह 5.30 बजे से रात 11.30 बजे तक वह मशीन की तरह लगी रहती है. दफ्तर के काम के साथसाथ घर की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभाती है. रोज डायरी पर दिन के काम लिखना और फिर रात में यह चैक करना कि कितने काम वह पूरे कर पाई है और कितने नहीं. सोने से पहले फिर से वह एक लंबी काम की लिस्ट बना कर सो जाती है.

परंतु उस के परिवार में किसी को यह नहीं पता कि रितिका एक अलग ढंग के मानसिक अवसाद से घिरी हुई है. वह लगातर इस एंग्जायटी में रहती है कि वह खाली नहीं बैठ सकती है, जबकि यह गलत है. उसे हर समय काम में डूबे रहने की आदत सी पड़ गई है.

छुट्टी वाले दिन वह किचन की सफाई, बाथरूम की सफाई या कपड़ों की अलमारी संवारने में व्यस्त रहती है. बाकी समय वह बच्चों की पसंद के खाने बनाने में लगा देती है. एक अजीब सा तनाव रितिका के अंदर रातदिन पनपता रहता है कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया है.

42 वर्ष की उम्र होतेहोते रितिका ब्लडप्रैशर, डायबिटीज और आर्थ्रराइटिस की बीमारियों की शिकार हो गई है.

नीतू के पति का देहांत 4 वर्ष पहले हो गया था. नौकरी तो वह पहले भी करती थी परंतु पति के मरने के पश्चात उस के कंधों पर बाहर की भी सारी जिम्मेदारियां आ गई हैं. बच्चों के लिए कोई कमी न हो, यह सोच कर नीतू रातदिन काम में लगी रहती है. शायद एक मिनट भी खाली नहीं बैठ सकती है. 35 वर्ष की आयु में ही वह 55 वर्ष की लगने लगी है. आज नीतू लिवर के इंफैक्शन से जू?ा रही है और जिस का मुख्य कारण तनाव है.

नेहा एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका है. घर में सासससुर को खुश करने के चक्कर में और स्कूल में सहकर्मियों व प्रिंसिपल को खुश रखने के कारण वह एकाएक अपनी उम्र से आगे निकल गई है. सारी बीमारियां, जो लोगों को 40 वर्ष के बाद होती हैं, नेहा को 30 वर्ष में ही हो गई हैं. हर समय हड़बड़ाहट, चिड़चिड़ाहट और घबराहट उस पर सवार रहती है.

ऊपर दिए गए सभी उदाहरण बिलकुल सच्चे हैं और ये सभी महिलाएं आज भी इस तनाव से जू?ा रही हैं. वे अपनेआप को इंसान नहीं, मशीन सम?ाती हैं. एक मिनट भी खाली बैठना उन्हें गिल्ट से भर देता है. उन्हें लगता है कि वे समय बरबाद कर रही हैं. एक अजीब सी बेचैनी उन्हें घेरे रखती है. यह बेचैनी, जो उन के मन से आरंभ होती है, उन के शरीर पर प्रभाव डालती है.

आराम हराम है पर हर समय काम करना भी एक बीमारी है. अगर हम अपने शरीर और दिमाग को आराम नहीं देंगे तो हमारी स्फूर्ति और रचनात्मकता शून्य हो जाएगी.

अगर आप के आसपास भी ऐसे कुछ लोग हैं जो मशीनी जिंदगी को अपनी नियति मान कर एक जिंदा लाश बन कर जिंदगी गुजार रहे हैं तो उन्हें जगाएं और थोड़ा सा जिंदादिल बनाएं. कभी कुछ न करना क्यों जरूरी हैं, इस बात के फायदों से उन्हें अवश्य अवगत कराएं.

रचनात्मकता के लिए है जरूरी :

रचनात्मकता के लिए कभीकभी कुछ न करना भी बेहद जरूरी है. अगर हर समय काम में संलग्न रहोगे तो थकावट हो ही जाएगी. थके मन और थके शरीर के साथ रचनात्मकता का दूरदूर तक नाता नहीं है. यह बात हमेशा याद रखिए कि बोरियत से ही क्रिएटिविटी उपजती है.

सेहत के लिए हैं लाभदायक :

हमारा शरीर भी एक मशीन की तरह ही है. जैसे लगातार चलने से मशीन जल्दी ही घिस कर खराब हो जाती है वैसे ही हमारे शरीर के साथ भी है. आप की सेहत ही आप का आखिरी समय तक साथ निभाएगी. परिवार, बच्चे तब तक ही अच्छे हैं जब तक आप सेहतमंद हैं.

मानसिक स्वास्थ्य के लिए है आवश्यक :

अगर 24 घंटे आप विचारों के जंगल में भटकती रहती हैं तो जल्द ही किसी मानसिक बीमारी का शिकार हो सकती हैं. हफ्तेदस दिनों में खुद को मानसिक रूप से भी डिटौक्स करें. जीरो विचार के साथ दिन की शुरुआत करें. जितना आप कम सोचेंगी, उतना ही अधिक हलका महसूस करेंगी.

ऊर्जा बढ़ाने में मिलती है मदद :

यह बिलकुल सत्य है कि अगर आप एक दिन हफ्ते में पूरा आराम करती हैं तो आप का ऊर्जा स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है. आप की सोच भी अधिक सकारात्मक हो जाती है. इस ऊर्जा को आप सही दिशा में लगा कर रचनात्मक कार्य कर सकती हैं.

वर्क क्वालिटी के लिए :

कभीकभी कुछ न करने से आप इतनी खुश और तनावरहित हो जाती हैं कि आप दोगुने जोश से अपने घर व दफ्तर के कार्य को पूर्ण करती हैं. वर्क क्वालिटी को बरकरार रखने के लिए यह अत्यधिक जरूरी है कि आप पूरे हक से और बिना गिल्ट के आराम करें. आप की रसोई, घर और काम का रिप्लेसमैंट हो सकता है पर आप का नहीं. आप के परिवार से ज्यादा आप को अपनी जरूरत है.

रिश्तों की गरमाहट को रखें बरकरार :

स्वस्थ और मजबूत रिश्तों के लिए भी कभी कुछ न करना भी बेहद जरूरी है. कभीकभी हर तरफ से फ्री हो कर अपनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. घर की सफाई से भी जरूरी है आप अपने मन के गिलेशिकवों को साफ करें और यह तभी हो सकता है जब आप उन के साथ समय बिताएं.

जिंदगी को सही दिशा देने के लिए:

आज के दौर में रिफ्लैक्शन का बहुत अधिक महत्त्व है. यदि आप बिना रुके आगे बढ़ते जाएंगे तो जल्द ही दिशाहीन हो कर भटक जाएंगे. अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए यह अति आवश्यक है कि हफ्ते में एक दिन बिना किसी काम के, बस, रिलैक्स रहें. आंखें बंद कर के पूरे हफ्ते के लेखेजोखे के बारे में सोचें. आप को खुद ही अपनी कमजोरियों और ताकत का अवलोकन हो जाएगा जो आप के जीवन के आगे के मार्ग को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा.

मदर्स डे स्पेशल : बेटा मेरा है तुम्हारा नहीं – भाग 5

‘‘जिस बहन के अभी हाथ पीले होने थे, वह सलाखों के पीछे खड़ी थी और जिस सास को अपनी बहू से सेवा और प्यार की आस थी वह पुलिस के डंडे खा रही थी. लेडीज पुलिस यह कहकह कर मेरी मां पर डंडे बरसा रही थी कि बोल, बोल, तूने ऐसा क्यों किया? क्यों एक अबला नारी को इतनी बेरहमी से पीटा? बेचारी क्या बोलतीं, वे तो बस खून के आंसू रोए जा रही थीं. मैं और पिताजी भी पुलिस के हाथों टौर्चर हो रहे थे. यह कह कर पुलिस हम पर भी डंडे बरसा रही थी कि शर्म नहीं आई दहेज मांगते हुए?

‘‘किसी तरह अपनी बेटी को समझाबुझा कर संजना के पापा ने उस से केस वापस लिवा लिया, क्योंकि वे जानते थे कि मैं और मेरा परिवार निर्दोष है और गलत उन की बेटी है.

‘‘कैद से तो आजाद हो गए हम लोग, पर नाम, इज्जत पैसा सबकुछ स्वाहा हो गया. जिस घर में रीनल की शादी तय हुई थी, उस घरवालों ने शादी करने से इनकार कर दिया. यह बात वह सहन न कर सकी और एक रोज पंखे से झूल गई. बेटी के गम में मां भी चल बसीं. सबकुछ तितरबितर हो गया. मेरा पूरा परिवार बरबाद हो गया.

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‘‘क्या सोचा था और क्या हो गया. नौकरी भी छूट चुकी थी मेरी, तो अब बचा ही क्या था उस शहर में. सो, अपने पिता को ले कर मैं दिल्ली आ गया और एक छोटा सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. किसी तरह टैक्सी की कमाई से मेरा व पिताजी का गुजरबसर हो रहा है,’’ यह सब बता कर अखिल चुप हो गया.

अखिल की दुखभरी कहानी सुन कर मेरी आंखें भर आईं. लेकिन फिर एकदम से गुस्सा आ गया मुझे. अखिल की पुरानी कही एकएक बात मेरे कानों में गूंजने लगी कि, ‘तो इस में क्या है, बच्चा गिरवा दो और छुट्टी पाओ.’

‘‘तो मुझे क्यों सुना रहे हो यह सब? और तुम ने क्या किया था मेरे साथ, भूल गए? मरने लायक छोड़ दिया था तुम ने मुझे. एक बार भी यह नहीं सोचा तुम ने कि तुम्हारा अंश पल रहा है मेरे पेट में, उसे ले कर कहां जाऊंगी मैं, क्या कहूंगी दुनिया वालों से और कौन शादी करेगा मुझ से? मैं तो अपनी जान खत्म करने चली गई थी, पर ऐनवक्त पर प्रणय ने आ कर मुझे बचा लिया. और सिर्फ जान ही नहीं बचाई उस ने मेरी, बल्कि हमारी इज्जत भी बचाई उस ने. नहीं तो क्या पता हमारा परिवार ही खत्म हो जाता,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानता हूं, शिखा, मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिए और अब मैं माफी के काबिल भी नहीं रहा, लेकिन यह भी सच है कि मैं तुम्हें भुला भी नहीं पाया कभी. भले ही तुम मुझ से दूर थीं पर हर वक्त तुम मुझे याद आती रहीं और यह भी जानता हूं कि बिट्टू हमारा ही बेटा है. बस, एक बार मुझे मेरे बेटे से मिला दो, दिखा दो मुझे उस का चेहरा. मत छीनो एक बाप से उस का हक,’’ आंसू बहाते हुए भर्राए गले से अपने दोनों हाथ जोड़ कर अखिल बोला. लेकिन आज अखिल के आंसू भी मुझे पिघला नहीं पाए.

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‘‘हक? कैसा हक? और किस बेटे की बात कर रहे हो तुम? उस बेटे की जिसे तुम ने पेट में ही मारने का फरमान सुना दिया था यह कह कर कि अस्पताल जा कर बच्चा गिरवा दो और छुट्टी पाओ. कहा था कि नहीं? जब संजना ने लात मार दी तब मैं याद आने लगी तुम्हें? तुम बिन पेंदी के लोटा हो. कब किधर लुढ़क जाओगे, कहा नहीं जा सकता.’’

मिर्ची से भी तीखी मेरी बातें सुन कर अखिल ने अपनी नजरें नीचे कर लीं. लेकिन मेरा गुस्सा अभी भी ठंडा नहीं हुआ था, बोल पड़ी, ‘‘दुनिया में जितनी भी नफरतें हैं न, अखिल, उन से कहीं ज्यादा मैं तुम से नफरत करती हूं और एक बात गांठ बांध लो तुम, बिट्टू, मेरा और प्रणय का बेटा है, इसलिए आज के बाद, न तो तुम हम से मिलने की कोशिश करना और न ही कभी फोन करने की सोचना भी,’’ यह कह मैं वहां से चलती बनी और वह देखता रह गया.

ऑक्सीजन उपलब्धता में आत्मनिर्भर हो रहा उत्तर प्रदेश

लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के लिए बड़ी पहल की है. जल्द ही ऑक्सीजन को लेकर प्रदेश आत्मनिर्भर हो जाएगा और दूसरे राज्यों से ऑक्सीजन मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सीएम के निर्देश के बाद प्रदेश में युद्ध स्तर पर 485 ऑक्सीजन प्लांट में से 290 ऑक्सीजन प्लांट पर काम चल रहा है. जबकि 167 के प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे गए हैं.

सीएम योगी की पहल पर प्रदेश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं. सीएम योगी ने निजी मेडिकल कॉलेजों में भी ऑक्सीजन प्लांट लगाने के निर्देश दिए हैं. ऐसे निजी मेडिकल कॉलेज जिन्हें सरकार की ओर से टेकओवर किया गया है, उनमें अगर ऑक्सीजन प्लांट नहीं है, तो सरकार की ओर से ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाएगा और इसकी प्रतिपूर्ति निजी मेडिकल कॉलेजों को दी जाने वाली धनराशि से की जाएगी.

प्रदेश में ऑक्सीजन आडिट और साफ्टवेयर आधारित ट्रैकिंग के बेहतर परिणाम मिल रहे हैं. मौजूदा समय में सभी जिलों में पर्याप्त बैकअप है. मेडिकल कॉलेजों में भी ढाई दिन तक का ऑक्सीजन स्टोर है, पिछले 24 घंटों में प्रदेश में 753 एमटी ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई है. होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को भी ऑक्सीजन दिया जा रहा है.

33 ऑक्सीजन प्लांट लगे, 258 पर चल रहा काम

प्रदेश में 25 ऑक्सीजन प्लांट कार्य कर रहे हैं. पीएम केयर फंड से कुल 188 नए ऑक्सीजन प्लांट लगने हैं, जिसमें से पांच लग गए हैं और 16 पर काम चल रहा है. इसके अलावा 167 प्लांट के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. राज्य सरकार की ओर से 27, चीनी मिलों और आबकारी विभाग की ओर से 79, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से 10, सांसद निधि से छह और विधायक निधि से 37, स्टेट डिजास्टर रीलिफ फंड (एसडीआरएफ) से 25 और पाथ की ओर से दो ऑक्सीजन प्लांट लग रहे हैं. इसके अलावा सीएसआर फंड से 59 प्लांट लग रहे हैं, जिसमें तीन लग चुके हैं. सांसद निधि से दो, विधायक निधि से 20, एसडीआरएफ से पांच ऑक्सीजन प्लांट जल्द स्वीकृत होने की उम्मीद है.

इन 10 अस्पतालों में भी लगे रहे आक्सीजन प्लांट

प्रदेश के 10 अस्पतालों में लखनऊ के अवन्तीबाई, महिला चिकित्सालय और आरएसएम हास्पिटल-साढ़ामऊ, गौतमबुद्धनगर के 300 बेडेड कोविड हास्पिटल, कानपुरनगर के मान्यवर कांशीराम ट्रामा सेंटर, अमेठी के डीसीएच गौरीगंज, बिजनौर, देवरिया और इटावा के जिला चिकित्सालय, मथुरा के कम्बाइंड हास्पिटल वृन्दावन और पीलीभीत के जिला चिकित्सालय में भी ऑक्सीजन प्लांट लगाया जा रहा है.

कोरोना पीड़ितो के मदद के लिए विवेक ओबरॉय ने उठाया नया कदम

मशहूर बालीवुड अभिनेता विवेक आनंद ओबेराय अभिनय करने के अलावा समाज सेवा के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते हैं. वह कई राज्यों  में तूफान पीड़ितों की मदद के लिए काम कर चुके हैं. कैंसर मरीजों की भी मदद करते रहते है.

विवेक आनंद ओबेरॉय ने हाल ही में डॉ. विवेक बिंद्रा के साथ एक कार्यक्रम की सह-मेजबानी की और ‘कोविड-19’की इस दूसरी लहर के पीड़ितों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया.उनकी इस पहल/मिशन का नाम है-‘‘आई एम ऑक्सीजनमैन’’.जब इस मिशन के लिए धन जुटाने की मुहीम में विवेक शामिल हुए,तो डॉ. बिंद्रा ने विवेक के बड़े मन और उदारता के लिए विवेक आनंद ओबेराय की प्रशंसा की.

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बातचीत के दौरान, डॉ बिंद्रा ने विवेक के बारेमें कुछ दिलचस्प तथ्यों का खुलासा करते हुए विवेक आनंद ओबेराय से कहा-‘‘कोई भी शब्द उस महान कार्य का वर्णन नहीं कर सकता जो आप स्वयं कर रहे हैं. आपने सैंकड़ो बच्चों का निशुल्क हार्ट ऑपरेशन कराए है. आपने 2.5 लाख से अधिक वंचित बच्चों को कैंसर से बचाया. विशेष रूप से स्टार्ट अपकी दुनिया में आपका व्यवसाय कौशल भी प्रशंसनीय है. आप दुनियाभर में शीर्ष 40 परोपकारी हस्तियों में से एक हैं,जिन्हें फोर्ब्स पत्रिका ने सम्मानित किया है.

आपने 2200 से अधिक छोटी लड़कियों को बाल वेश्यावृत्ति से बचाया है, जिनमें से 50 से अधिक आज विदेश में छात्र वृत्ति पर पढ़ रही हैं.साथ ही, बहुतों को यह नहीं पता होगा कि आपने अपनी पहली फिल्म ‘कंपनी’की कमाई का पैसा एक युवा लड़की की हार्टसर्जरी के लिए पूरी राशिदान कर दी थी.”
विवेक आनंद ओबेरॉय न केवल अभी महामारी के दौरान, बल्कि पिछले दो दशकों से लगातार पूरे देश में लोगों के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.महामारी के इस कठिन समय के दौरान भी, विवेक आई एम ऑक्सीजन मैन पहल के साथ मदद के लिए हाथ बढ़ाकर अपना काम करने की कोशिश कर रहे है, जहां उन्होंने डॉ विवेक बिंद्रा के साथ भागीदारी की है.

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एक 200-बेड वाले मुफ्त कोविड अस्पताल का निर्माण किया,जो कि दिल्ली में है जहाँ मुफ्त में इलाज किया जाता है ,जो पहले ही 1000 से अधिक लोगों की जान बचा चुका है.

Baalveer Returs ऑफ एयर होने से उदास हैं देव जोशी, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

कोरोना वायरस कि दूसरी लहर से पूरा देश फिर से परेशान चल रहा है. बढ़ते महामारी को देखते हुए कई राज्यों में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई है. जिस वजह से टीवी शोज की शूटिंग पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा है. कई सारे सीरियल्स की शूटिंग शहर से बाहर की जा रही है तो कई शोज ऐसे हैं जिसे हार मानकर बंद करना पड़ा है.

इसमें एक नाम ‘बालवीर रिटर्न्ट’ भी है. इस शो के मेकर्स ने इसे बंद करने का फैसला ले लिया है. जिसके बाद से शो को देखने वाले फैंस काफी ज्यादा उदास नजर आ रहे हैं. इस सीरियल में बालवीर का किरदार निभा रहे देव जोशी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि दोस्तों में ये मैसेज भारी मन से लिख रहा हूं हम बालवीर के जर्नी से इंटरवल ले रहे हैं. 9 साल की यह जर्नी काफी ज्यादा शानदार रही. जिसमें बालवीर रिटर्न्स एक नया चेपटर था जो पिछले 2 साल से चल रहा था.

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यह शो हंसी और भावनाओं से भारी था, जिसे लोग देखना खूब पसंद करते थें. यह मेरे जीवन का अभी तक का सबसे अच्छा एक्सपीरियंस था, मैं कई किरदारों में नजर आया. आगे उन्होंने कहा मैं इसका बहुत आभारी हूं कि दर्शकों ने इसे स्वीकार किया और अपना ढ़ेर सारा प्यार हमपर लुटाया.

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इस महामारी ने हम सभी को और देश को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है. इसलिए हमें ब्रेक लेने कि जरुरत है. अंत में देव ने लिखा हमेंशा याद रखिया बालबीर आपके सुरक्षा में हमेशा आगे रखेंगा.

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