भारी आवाज में संगीता बोली, ‘‘इसे शौच का भी भान नहीं रहता. इसलिए यह बारबार कपड़ा खराब कर दे तो जरा ध्यान रखिएगा, वरना गीले में ही पड़ी रहेगी.’’ दूसरी नर्स बोली, ‘‘मांजी, हम रात में 4-5 बार उठ कर आदमी को देखते हैं.’’ ‘‘रात में लाइट में इसे नींद नहीं आती,’’ संगीता ने कहा. ‘‘जिसे नींद नहीं आती, उसे नींद की दवा दी जाती है.’’ ‘‘कोई शरारती इसे मारेगा तो नहीं?’’ ‘‘शरारती पागलों को अलग रखा जाता है. रात में सभी को अलगअलग सुलाया जाता है.’’ उस ने कहा, ‘‘मेरी बेटी को जिस कमरे में रखा जाएगा, जरा मुझे वह कमरा दिखा दीजिए.’’ ‘‘किसी भी बाहरी आदमी को कमरे के अंदर नहीं जाने दिया जाता है,’’ मैट्रन ने स्पष्ट कहा. आंखें फाड़ कर चकरमकर इस नई दुनिया को देख रही निधि ने संगीता की गोद में अपना सिर रख दिया, तो संगीता का हाथ अपनेआप उस के सिर पर चला गया. आदत के अनुसार उस के मुंह से निकल गया, ‘‘बेटा....’’
‘बेटा’ शब्द मुंह से निकलते ही संगीता की आंखों से जलधारा बह निकली. संगीता इस तरह रो रही थी जैसे कोई अपने के मरने पर रोता है. बेटा भी मां को सांत्वना देने के बजाय रोने लगा. इस तरह रोनेगाने के आदी डाक्टर, मैट्रन और नर्सों का भी दिल संगीता के रोने से भर आया था. एक नर्स ने हाथ का रूमाल हिला कर निधि का ध्यान अपनी ओर खींचा. निधि ने उस की ओर देखा तो वह बोली, ‘‘आप को चाहिए?’’ रूमाल पकड़ने के लिए निधि मां की गोद से एकदम से खड़ी हो गई और हाथ बढ़ाया, तो नर्स उस का हाथ पकड़ कर प्रेम से बोली, ‘‘तुम मेरे पास रहोगी? मैं तुम्हें अच्छाअच्छा खाना दूंगी, नएनए कपड़े पहनाऊंगी.’’ निधि नर्स का मुंह एकटक ताक रही थी. नर्स ने इस का फायदा उठाया. उसे अधखुले दरवाजे के अंदर कर दिया. संगीता ‘निधि, निधि’ कह कर चीख पड़ी.