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Romantic Story : प्यार न माने सरहद – उन दोनों के साथ कौनसी घटना घटी?

Romantic Story : ‘‘प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया…’’

समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

समीर की ट्रेनिंग पूरी हो गई तो उसे प्रोजैक्ट मिला. 5 लोगों की टीम बनी. एक दक्षिण भारतीय, 2 गोरे और 1 लड़की एमन. समीर एमन से बहुत प्रभावित हुआ. बहुत सुंदर, लंबी, पतली, गोरी, भूरे बाल, नीली आंखें. पहनावा भी बहुत अच्छा फौर्मल औफिस ड्रैस. बातचीत में शालीन. अमेरिकन ऐक्सैंट में बातें करती और देखने में भी अमेरिकन लगती थी. मूलतया एमन कहां की थी, इस विषय में कभी बात नहीं हुई. उसे सब एमी कहते थे.

एमी काम में बहुत होशियार थी. सब के साथ फ्रैंडली. समीर भी बुद्घिमान, काम में बहुत अच्छा था. देखने में भी हैंडसम और मदद करने वाला. अत: टीम में सब की अच्छी दोस्ती हो गई.

एक दोपहर समीर ने एमी से साथ में लंच करने को कहा. वह मान गई. दोनों ने लंच साथ किया. समीर ने बर्गर और एमी ने सलाद लिया. वह हलका लंच करती थी.

समीर ने पूछा, ‘‘यहां अच्छा खाना कहां मिलता है?’’

‘‘आई लाइक कबाब पैलेस,’’ एमी ने जवाब दिया.

समीर को आश्चर्य हुआ कि अमेरिकन हो कर भी यह भारतीय देशी खाना पसंद करती है. समीर ने जब एमी से पूछा कि क्या तुम्हें इंडियन खाना पसंद है, तो उस ने बताया कि हां इंडियन और पाकिस्तानी एकजैसा ही होता है. फिर जब समीर ने पूछा कि क्या तुम अमेरिकन हो तो एमी ने बताया कि हां वह अमेरिकन है, मगर दादा पाकिस्तान से 1960 में अमेरिका आ गए थे.

समीर सोचता रहा कि एमी को देख कर उस के पहनावे से, बोलचाल से कोई नहीं कह सकता कि वह पाकिस्तानी मूल की है. दोनों एकदूसरे में काफी रुचि लेने लगे. अब तो वीकैंड भी साथ गुजरता. एमी ने समीर को सीएटल और आसपास की जगहें दिखाने का जिम्मा ले लिया था. पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने जाते, माउंट रेनियर गए. सीएटल की स्पेस नीडल 184 मीटर ऊंचाई पर घूमते हुए स्काई सिटी रेस्तरां में खाना खाया. यहां से शहर देखना एक सपने जैसा लगा.

सीएटली ग्रेट व्हील में वह डरतेडरते बैठा. 53 मीटर की ऊंचाई, परंतु एमी को डर नहीं लगा. भारत में वह मेले में जब भी बैठता था तो बहुत डरता था. यहां आरपार दिखने वाले कैबिन में बैठ कर मध्यम गति से चलने वाला झूला आनंद देता है डराता नहीं.

फेरी से समुद्र से व्हिदबी टापू पर जाना, वहां का इतालियन खाना खाना उसे बहुत रोमांचित करता था. भारत में भी समुद्रतट पर पर जाता था पर पानी एवं वातावरण इतना साफ नहीं होता था. पहाड़ी रास्ते 4 लेन चौड़े, 5 हजार फुट की ऊंचाई पर जाना पता भी नहीं चलता. अपने यहां तो पहाड़ी रास्ते इतने संकरे कि 2 गाडि़यों का एकसाथ निकलना मुश्किल.

साथसाथ घूमतेफिरते दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान गए थे. जैसे एमी के दादा का परिवार 1947 में लखनऊ, भारत से कराची चला गया था. दादी भी लखनऊ से विवाह कर के आई थीं. उन के रिश्तेदार अभी भी लखनऊ में हैं. 1960 में अमेरिका में न्यूयौर्क आए थे. उस के पिता और ताया दोनों छोटेछोटे थे, जब वे अमेरिका आए.

दादादादी ने अपनी संस्कृति के अनुसार बच्चों को पाला था. यहां का खुला माहौल उन्हें बिगाड़ न दे, इस का पूरा खयाल रखा था. ताया पर अधिक सख्ती की गई. वे मुल्ला बन गए. अभी भी न्यूयौर्क में ही रहते हैं और उन का एक बेटा है, जो एबीसीडी है अर्थात अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी.

ताया को अधिक धार्मिक होते देख दादा ने एमी के पिता पर अधिक अनुशासन नहीं लगाया और वे इकोनौमिक्स के प्रोफैसर बन गए. एमी की मां नैंसी अमेरिकन थीं और पिता की सहपाठी. वे अब नरगिस हैं. उन्होंने इसलाम कुबूल कर लिया और दादादादी की देखरेख में नमाजी और उर्दू बोलने वाली बहू बन गईं. दादा तो अब नहीं रहे, दादी साथ रहती थीं, हिंदी फिल्मों की दीवानी. एक सुखी परिवार है.

एमी की परवरिश में देशी और अमेरिकी संस्कृति का समावेश था. अत: वह सभ्य, अनुशासित, समय की पाबंद थी. सुंदर थी, साथ ही अपनी सुंदरता को संवार कर और संभाल कर रखने वाली भी थी. अमेरिकियों की तरह सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, रात में जल्दी सोना और वीकैंड पर घूमना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस के घर में उर्दू भाषा ही बोली जाती. वह उर्दू जानती थी पर बोलती इंग्लिश में थी. एमी के विषय में जान कर समीर को अच्छा लगा. समीर को एमी से प्यार हो गया. वह हर कीमत पर उसे पाना चाहता था. परंतु पाकिस्तानी मूल का होना… कैसे बात बनेगी?

दोनों 6 महीनों से साथ थे. एकदूसरे में रुचि अब एकदूसरे को पाने की चाह में बदल गई थी.

एमी ने समीर को अपने घर वालों से मिलने के लिए बुलाया. घर वालों से यह कह कर मिलाया कि यह औफिस का मित्र है समीर. एमी की दादी को देख कर समीर को अपनी दादी याद आ गई. सलवारसूट में वैसी ही लग रही थीं. प्रोफैसर साहब बहुत हंसमुख थे. तुरंत घुलमिल गए. फुटबौल के दीवाने थे. सीएटल टीम के फैन. समीर को यहां का फुटबौल अजीब लगता था. हाथपैर दोनों से खेला जाता. अधिकतर बौल हाथ में ले कर भागते हैं.

एमी की मां सभ्यशालीन महिला थीं. एमी बिलकुल अपनी मां जैसी थी. एमी की मां ने बिलकुल देशी खाना बनाया था. समीर लखनऊ से है, यह सुन कर दादी तो गदगद हो गईं. अपने बचपन के मायके के किस्से सुनाने लगीं. एक लंबे समय बाद वह इतनी देर हिंदी में बोला. उसे अच्छा लगा. यहां तो वह जब से आया है मुंह टेढ़ा कर के ऐक्सैंट में बोलने की कोशिश करता रहा है.

समीर ने ध्यान दिया दादी, प्रोफैसर, नरगिस सभी उर्दू में बात करते हैं. पर एमी इंग्लिश में जवाब देती. कभीकभी हिंदी में भी. उर्दूहिंदी एकजैसी भाषाएं हैं, जिन्हें वह अपने यहां भी सुनताबोलता था. बस इन के उर्दू में कुछ शब्द गाढ़े उर्दू के हैं पर बात समझ में आ जाती है. उसे यहां अपनापन लगा. एमी के घर वालों को भी समीर अच्छा लगा और उसे बराबर आते रहने का न्योता दिया.

एमी ने समीर के जाने के बाद जब घर वालों से पूछा कि समीर उन्हें कैसा लगा तो वे लोग बोले कि अच्छा है. तब उस ने बताया कि समीर और वह शादी करना चाहते हैं.

यह सुन उस की दादी तो खुश हो गईं क्योंकि वह उन के मायके से जो था और उन्हें समीर नाम से मुसलमान लगा था. प्रोफैसर ने आपत्ति की कि वह पाकिस्तानी नहीं भारतीय है. एमी की मां ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि कहीं ग्रीन कार्ड के लालच में शादी तो नहीं करना चाहता है. लड़के को अमेरिकन सिटीजन होना चाहिए.

एमी ने धीरेधीरे समीर के बारे में 1-1 बात बताई कि वह भारतीय भी है और हिंदू भी. उस का परिवार भारत में है. अत: कभी भी वापस जा सकता है.

दादी, प्रोफैसर और नरगिस सब ने एकसाथ आपत्ति की कि हिंदू से शादी नहीं हो सकती.

एमी बोली, ‘‘अब तक वह आप सब को बहुत पसंद था पर उस के हिंदू और भारतीय होने से वह बुरा कैसे हो गया?’’

जब कोई प्यार में होता है तो उसे धर्म, भाषा, नागरिकता कुछ दिखाई नहीं देता. दिखता है तो केवल प्यार से भरा मन और वह व्यक्ति जो उस के साथ जीवन बिताना चाहता है. वहीं दूसरे लोगों को व्यक्ति और उस का मन, उस के गुण नहीं दिखते, केवल धर्म दिखता है.

‘‘डैडी आप और ममा ने भी तो दूसरे धर्म में शादी की थी, फिर आप लोग कैसे कह रहे हैं?’’

‘‘बेटी, तुम्हारी मां को हम अपने घर लाए थे. वह हम में रचबस गई. उस ने इसलाम कुबूल कर लिया. तुम्हें दूसरे घर जाना है. यह अंतर है. कल को वह लड़का तुम्हें हिंदू बना ले तो तुम्हारी तो आखरत (मरने के बाद की जिंदगी) गई.’’

एमी ने समीर को सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘हम दोनों को जब कोई प्रौब्लम नहीं तो उन्हें क्यों है? हम जब चाहें शादी कर सकते हैं. हमें कोई रोक नहीं सकता पर मैं चाहती हूं कि मेरी फैमिली मेरे साथ हो,’’ यह एमी की देशी परवरिश की सोच थी.

समीर ने कहा, ‘‘तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मरते दम तक.’’

‘‘तो ठीक है अपने घर वालों से मेरी

मीटिंग करवाओ.’’

रविवार को समीर एमी के घर वालों से मिलने गया. शाहरुख खान की मूवी की डीवीडी दादी के लिए ले गया. दादी शाहरुख खान की दीवानी थीं सो खुश हो गईं. प्रोफैसर कुछ ठंडे थे. समीर ने उन से सीएटल टीम फुटबौल की बातें छेड़ दीं. वे भी सामान्य हो गए. नरगिस के लिए कबाब ले गया था. वे भी कुछ नौर्मल हो गईं.

फिर समीर ने अपनी मंशा बताई, ‘‘मैं और एमी एकदूसरे से प्यार करते हैं…जीवन भर साथ रहना चाहते हैं…शादी करना चाहते हैं. मगर आप सब की मरजी से…’’ मैं नेशनैलिटी के लिए शादी नहीं कर रहा हूं. मेरी कंपनी ने मेरा ग्रीन कार्ड अप्लाई कर दिया है. हां, मैं इंडियन हूं और मैं भारत आताजाता रहूंगा, मेरे परिवार को जब भी मेरी आवश्यकता होगी मैं उन के पास जाऊंगा… इसी प्रकार जब आप लोगों को भी मेरी जरूरत होगी तो मैं आप का भी साथ दूंगा. रहा धर्म तो यदि मैं आप को दिखाने के लिए मुसलिम बन जाऊं और मन से हिंदू रहूं तो आप क्या कर सकते हैं? धर्म में हम उसे ही याद करते हैं जिसे न आप ने देखा न मैं ने. उसे किस नाम से पुकारें इस पर लड़ाई है, किस प्रकार याद करें इस पर सहमति नहीं. इंसान जिन्हें एकदूसरे से प्यार है वे इसलिए शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वे ऊपर वाले को अलगअलग नामों से पुकारते हैं, अलगअलग तरह से याद करते हैं.’’

उस ने मीर को कुछ पढ़ रखा था और एक शेर जो उसे याद था कहा, ‘‘ ‘मत इन नमाजियों को खानसाज-ए-दीं जानो, कि एक ईंट की खातिर ये ढोते होंगे कितने मसीत’ दादी ये धर्म के चोंचले अमेरिका में आ कर तो हम छोड़ दें.’’

सब चुप रहे. जानते थे कि यह ठीक कह रहा.

प्रोफैसर को मुसलिम समाज और सब से बढ़ कर भाईजान का डर था. अमेरिका में भी हम ने अपना पाकिस्तानहिंदुस्तान बना लिया है, अपनी मान्यताएं अपने रीतिरिवाज… यहां वैसे तो इंडियनपाकिस्तानी मिल कर रहते हैं पर शादीविवाह अपने धर्म में ही पसंद करते हैं.

हां, साथसाथ स्कूल, कालेज, औफिस की दोस्ती में अकसर अलगअलग जगह के लोगों में शादियां हो जाती हैं, परंतु मंदिरमसजिद में मिलने वाले साथी पसंद नहीं करते. प्रोफैसर को उन का तो डर नहीं था पर भाईजान…

दादी भी जानतीं थी कि पाकिस्तानियों में तलाक अधिक होते हैं और भारत वाले साथ निभाते हैं. फिर भी हिंदू से…

एमी के घर वाले समीर के बराबर आनेजाने से धीरेधीरे उस से घुलमिल गए. बात टल सी गई पर समीर बराबर जाता रहता. दादी से हिंदी मूवीज पर बातें करता, प्रोफैसर के साथ फुटबौल मैच टीवी पर देखता, उन के लैपटौप में नएनए गेम्स लोड करता, लौन की घास काटने में प्रोफैसर की मदद करता, काटना तो मशीन से होता है पर मेहनत का काम है. नरगिस की किचन में हैल्प करता. यहां सारे काम खुद ही करने होते हैं.

प्रोफैसर कहते, ‘‘मैं तो 3 औरतों में अकेला पड़ गया था… तुम से अच्छी कंपनी मिलती है.’’

समीर एमी से कहता, ‘‘यार एमी, मैं तो तुम्हारे घर का छोटू बन गया पर दामाद बनने के चांस नहीं दिखते. तुम मुझे डिच दे कर किसी पाकी के साथ निकल गईं तो?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘यू नैवर नो.’’

प्रोफैसर सोचते समीर अच्छा है, बोलचाल, विचार हमारे जैसे हैं. एमी के साथ जोड़ी अच्छी है, दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे, फिर क्या हुआ अगर वह अल्लाह को ईश्वर कहता है? पूजा करना उस का मामला है… एमी को तो पूजा करने को नहीं कह रहा…

हिम्मत कर के न्यूयौर्क में भाईजान से बात की. बताया कि एमी ने लड़का पसंद कर लिया है हिंदुस्तानी है.

भाईजान बोले, ‘‘क्या पाकिस्तानी लड़कों का अकाल पड़ गया जो हिंदुस्तानी लड़का देखा?’’

‘‘एमी को पसंद है.’’

‘‘हां, अमेरिकन मां की बेटी जो है.’’

‘‘लड़का बहुत अच्छा है. बस वह हिंदू है.’’

भाईजान पर तो जैसे बम फटा, ‘‘क्या कह रहे हो? काफिर को दामाद बनाओगे?’’

प्रोफैसर मिनमिनाए, ‘‘भाईजान, आप तो जानते हैं यहां तो बच्चे भी नहीं सुनते जरा तंबीह करो तो 911 कौल कर पुलिस बुला लेते हैं और बड़े हो कर तो और भी आजाद हो जाते हैं. ये हम से इजाजत मांग रहे हैं, यह क्या कम है? हम हां कर दें तो हमारा बड़प्पन रह जाएगा.’’

भाईजान को लगा कि प्रोफैसर ठीक कह रहे हैं. अत: बोले, ‘‘ठीक है वह मुसलमान हो जाए तो हो सकता है.’’

‘‘नहीं वह इस पर राजी नहीं. वह एमी से भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं कह रहा.’’

भाईजान चिल्लाए, ‘‘काफिर से निकाह नहीं हो सकता. अगर तुम ने शादी की तो मुझ से कोई रिश्ता न रखना… मुल्लाजी को भी तो अपने समाज में सिर उठा कर चलना है वरना उन की कौन सुनेगा.’’

प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया. नरगिस और दादी थीं घर पर. नरगिस ने ऐंबुलैंस कौल की. ऐंबुलैंस डाक्टर व नर्स के साथ आ गई. अस्पताल में भरती किया गया. एमी, नरगिस, दादी और समीर रोज देखने जाते. यहां अस्पताल में भरती करने के बाद डाक्टर व नर्स पूरी देखभाल करते हैं. अस्पताल का रूम फाइवस्टार सुविधा वाला होता है. प्रोफैसर को यहां का खाना पसंद नहीं, तो नरगिस उन का खाना घर से लाती थीं. यहां मरीज की देखभाल अच्छी की जाती है. बिल इंश्योरैंस से जाता है. कुछ 10-15% देना पड़ता है.

कुछ दिन बाद प्रोफै सर घर आ गए. अभी भी देखभाल की आवश्यकता थी. परहेजी खाना ही चल रहा था. इस दौरान समीर उन की देखभाल बराबर करता एक बेटे की तरह और औफिस में भी एमी के काम में मदद करता ताकि एमी प्रोफैसर साहब को अधिक समय दे सके.

प्रोफैसर के दोस्त, मिलने वाले मसजिद के साथी सब दोएक बार आए. भाईजान ने केवल फोन पर खैरियत ली.

बीमारी में कोई देखने आए तो अच्छा लगता है. अमेरिका में किसी के पास समय नहीं है. समीर प्रतिदिन आता. प्रोफैसर को भी अच्छा लगता. प्रोफैसर को लगता अगर उन का अपना बेटा भी होता तो शायद वह भी इतना ध्यान नहीं रखता.

आखिर प्रोफैसर ठीक हो गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम ने घर वालों से शादी की बात की?’’

समीर ने बताया, ‘‘हां मैं ने घर वालों को मना लिया है… पहले तो सब नाराज थे पर एमी से बात कर के सब खुश हो गए. मेरे मातापिता धर्मजाति नहीं मानते पर एमी पाकिस्तानी मूल की होने पर चौंके थे. मगर मेरी पसंद के आगे उन्हें सब छोटा लगने लगा. अत: सब राजी हो गए.’’

प्रोफैसर ने अपने ठीक होने की पार्टी में अपने सभी मिलने वालों, दोस्तों को बुलाया

और फिर समीर और एमी की मंगनी की घोषणा कर दी. वे जानते थे शादी में बहुत लोग नहीं आएंगे. दोनों परिवारों की मौजूदगी में शादी सादगी से कोर्ट में हो गई और फिर रिसैप्शन पार्टी होटल में की, जिस में दोनों के औफिस के साथी, नरगिस और प्रोफैसर के दोस्त, पड़ोसी, मिलने वाले शामिल हुए. भाईजान और उन की जैसी सोच वाले नहीं आए. 2 प्रेमी पतिपत्नी बन गए. सच ही तो है, प्रेम नहीं मानता कोई सरहद, भाषा या धर्म.

Romantic Story : तमाचा – सानिया ने किस तरह लिया अपने पति से बदला ?

Romantic Story :  सानिया के अब्बा एक मामूली से फोटोग्राफर थे, जबकि उस के होने वाले ससुर एक बड़े बिजनेसमैन थे. सानिया को उस की सास ने एक शादी में देखा था और तभी उसे पसंद कर लिया था. फिर जल्दी ही उस का रिश्ता भी तय हो गया.

आज सानिया की शादी थी. लाल जोड़े में उस का हुस्न और निखर आया था. सभी सहेलियां उसे घेर कर बैठी थीं और हंसीमजाक कर रही थीं.

‘‘सानिया, तुझे पति नहीं लखपति मिल रहा है,’’ सानिया की खास सहेली रिंकी ने कहा.

‘‘काश, हमें भी कोई ऐसा ही मोटा मुरगा मिल जाए, तो जिंदगी ऐश से कटे,’’ टीना ने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा.

‘‘रुपएपैसे का लालच मुझे नहीं है. मैं तो सिर्फ यह चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति तनमन से मेरा हो, सिर्फ मेरा,’’ सानिया ने धीरे से कहा.

‘‘जब वह तुम से शादी कर रहा है, तो तुम्हारा ही हुआ न,’’ रिंकी ने कहा.

‘‘शादी करना और सिर्फ बीवी का हो कर रहने में फर्क है रिंकी डियर,’’ सानिया ने कहा.

‘‘अच्छा, अपने विचार अपने पास रख,’’ रिंकी ने कहा, तो सभी सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

शादी के बाद जब सानिया अपनी ससुराल पहुंची, तो वहां की शानोशौकत देख कर वह भी सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर उस की सास ने उसे ही क्यों चुना? यह ठीक था कि वह शक्लसूरत से अच्छी थी, पर उस जैसी तो और भी बहुत होंगी.

शादी के बाद कुछ दिन तो हंसीखुशी से बीत गए. उस का पति नादिर अपने मांबाप का एकलौता बेटा था, इसलिए उसे लाड़प्यार से पाला गया था.

नादिर अपना ज्यादा समय घर से बाहर ही गुजारता था. सानिया इस बारे में कभी पूछती, तो नादिर कह देता कि काम के सिलसिले में उसे बाहर रहना पड़ता है.

एक दिन सानिया की तबीयत कुछ खराब थी. उस ने नादिर से कहा कि वह उसे डाक्टर को दिखा लाए, तो नादिर ने कहा कि वह अकेली चली जाए, क्योंकि उसे कुछ जरूरी काम है.सानिया डाक्टर को दिखाने चली गई. रास्ते में अचानक सानिया ने एक सिनेमाहाल के पास नादिर को एक लड़की के साथ घूमते देखा. वह वहां का नजारा देख कर सबकुछ समझ गई.

सानिया की हालत अजीब हो गई. किसी तरह वह घर वापस आई. शाम को जब नादिर आया, तो सानिया ने पूछा, ‘‘आज आप कहां थे?’’

‘‘मैं काम के सिलसिले में बाहर गया था,’’ नादिर ने साफ झूठ बोला.

‘‘मैं ने अपनी आंखों से आप को एक लड़की के साथ कहीं घूमते देखा था,’’ सानिया बोली.

‘‘ओह… तो तुम ने देख लिया,’’ नादिर ने लापरवाही से कहा.

‘‘कौन थी वह?’’ सानिया ने पूछा.

‘‘किसकिस के नाम पूछोगी? मैं बाहर क्या करता हूं, इस से तुम्हें क्या लेना?तुम्हें बीवी का हक तो मिल रहा है न,’’ नादिर ने कहा.

‘‘तुम्हारे इस रूप के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी,’’ सानिया ने कहा.

‘‘जैसे तुम दूध की धुली हो. शादी से पहले क्याक्या गुल खिलाए होंगे, कौन जानता है,’’ नादिर ने बेशरमी से कहा.

‘‘अगर मैं यह कहूं कि मैं दूध की धुली हूं, तो…’’ सानिया ने कहा.

‘‘इस का क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ नादिर ने पूछा.

सानिया ने नादिर के सवाल का जवाब नहीं दिया. उस ने तय किया कि वह अपने सासससुर को नादिर की हरकतों के बारे में सबकुछ बताएगी. आखिर उन्हें भी तो मालूम होना चाहिए कि उन का बेटा घर के बाहर क्याक्या गुल खिलाता है.

रात को सानिया दूध ले कर सासससुर के कमरे की तरफ गई.

‘‘कहीं सानिया को नादिर की हरकतों का पता न चल जाए,’’ ससुर की आवाज सुन कर सानिया के कदम दरवाजे पर ही ठहर गए.

‘‘पता चल जाएगा, तो कौन सी कयामत आ जाएगी. आखिर हम एक गरीब घर की लड़की इसीलिए तो लाए हैं. उसे अपनी जबान बंद रखनी होगी. उस का काम सिर्फ इस घर का वारिस पैदा करना है,’’ सास ने कठोर आवाज में कहा.

सासससुर की बातें सुन कर सानिया हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने ऊंचे घराने के लोगों के खयाल इतने नीचे होंगे. उस की सेवा, त्याग और प्यार का उन की नजरों में कोई मोल नहीं था. ऊपर से तो वह शांत थी, लेकिन उस के दिलोदिमाग में एक तूफान मचा था.

‘मैं भी दिखा कर रहूंगी कि मैं क्या कर सकती हूं,’ सानिया ने मन ही मन सोचा.

धीरेधीरे समय गुजरने लगा. इस बीच सानिया कई बार अपने मायके भी गई, लेकिन उस ने अपने मांबाप से कुछ नहीं कहा. सानिया मां बनने वाली है, यह मालूम होते ही पूरे घर में खुशी छा गई. गोद भराई की रस्म के लिए लोगों को बुलाया गया. सानिया कीमती जोड़े और जेवरों से लदी बैठी थी.

गोद भराई की रस्म के बाद सास ने सानिया की बलाएं ली और उसे गले लगाया. ‘‘बहुत जल्द तू इस घर को वारिस देने वाली है. मेरे बेटे का चिराग इस घर को रोशन करेगा. मैं दादी बनूंगी,’’ सास ने खुश होते हुए कहा.

‘आप दादी जरूर बनेंगी और इस घर को वारिस भी जरूर मिलेगा, लेकिन वह आप के बेटे का चिराग नहीं होगा.

‘इस राज भरी बात को तो सिर्फ मैं ही जानती हूं कि इस बच्चे का बाप आप का बेटा नहीं, कोई और है. यह करारा तमाचा आप लोगों के मुंह पर लगा कर मैं ने अपना बदला ले लिया है,’ सानिया ने कुटिलता से मुसकराते हुए सोचा.

Love Story : एक सुहाना सफर – सुरभि को किस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था

Love Story :  ‘‘हैलो मां, कैसी हो?’’

‘‘मैं अच्छी हूं, संभव, लेकिन तुम कल जरूर आना. प्रौमिस किया है तुम ने. पिछली बार जो किया वैसा मत करना.’’

‘‘हां मां, अब बताया है न. मेरी एक जरूरी मीटिंग है, बाद में फोन करता हूं.’’

फोन रखते ही संभव के दिमाग में खयालों का तूफान उठा. हालांकि वह इतनी जल्दी शादी करना नहीं चाहता था लेकिन घर का एक भी सदस्य उस की बात सम?ाने के लिए तैयार नहीं था. मां की बढ़ती बीमारी के कारण वह उन की इच्छा नकार नहीं सकता था, इसलिए अपनी इच्छा के विपरीत जा कर वह लड़कियां देखने के लिए तैयार हुआ. जैसे ही घड़ी की ओर उस का ध्यान गया, जल्दी सब निबटा कर वह औफिस के लिए चल पड़ा.

शाम वापस आते ही संभव ने पुणे के ट्रैवल का समय देखा और स्टौप पर जा कर खड़ा रहा. ट्रैवल वैसे ही लेट थी. और तो और, उस का स्टौप भी आखिरी था, इसलिए गाड़ी पूरी पैक्ड थी. केवल एक लड़की के बाजू वाली जगह खाली थी. उस ने उस का बैग धीरे से उठा कर नीचे रख दिया और वहां बैठ गया. संभव ने देखा कि वह लड़की सोई हुई थी और उस का पूरा चेहरा रूमाल से ढका था. संभव की नजर ट्रैवल की खिड़की से बाहर गई. पूनम का चांद दिख रहा था. उस धीमी रोशनी में उस लड़की के घने लंबे बाल चमक रहे थे. बाहर की ठंडी हवा से उस के बाल रूमाल का बंधन तोड़ कर संभव के चेहरे को छू रहे थे. पलभर संभव उस स्पर्श से रोमांचित हुआ. लेकिन तुरंत उस ने खुद को संभाला और थोड़ी दूरी बना कर बैठ गया.

दिनभर की थकान के कारण वह भी जल्दी ही सो गया. लेकिन ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तब सब मुसाफिर घबरा कर उठ गए. पूछने पर पता चला कि आगे बड़ी दुर्घटना हुई है, इसलिए गाड़ी रुक गई और 5-6 घंटे यातायात शुरू नहीं होगा.

‘‘अरे यार, यह सब आज ही होना था. कल सुबह तक पुणे नहीं पहुंची तो मां जरूर मु?ो डाटेंगी. अब क्या करूं? फोन में नैटवर्क भी नहीं है…’’

संभव बाजू में बैठी लड़की की बकबक सुन रहा था. उस के चेहरे से अब रूमाल हट चुका था. उस के हलके से हिल रहे गुलाबी होंठ, लंबे बालों की एक तरफ से डाली हुई चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी, नैनों का काजल, चांद की रोशनी में उस की गोरी काया काफी निखरी दिख रही थी. कितनी सरल और सुंदर नजर आ रही थी.

उस लड़की का ध्यान संभव की ओर गया. वह लगातार उसे देख रहा था. यह जानने के बाद वह थोड़ा संभल गई. संभव भी थोड़ा औक्वर्ड महसूस कर रहा था. उस ने अपनी नजर दूसरी ओर फेर दी. लेकिन उस की चुलबुलाहट कम नहीं हो रही थी. यह देख कर संभव ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप चिंता न करें. जल्दी ही सफर सुचारु रूप से शुरू होगा. आप को फोन करना है तो आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकती हो, मेरे फोन में नैटवर्क है.’’

उस लड़की ने संभव की ओर देखा. उस के व्यक्तित्व से वह एक सभ्य आदमी लग रहा था और उसे इस वक्त उस के फोन की जरूरत भी थी. संभव से फोन मांग उस ने घर पर फोन घुमाया.

‘‘हैलो मां, मैं सुरभि बोल रही हूं.’’

‘‘यह किस का नंबर है, इतनी रात गए फोन क्यों किया. तुम आ रही हो न कल?’’

‘‘हांहां, मेरा कहा सुन तो लो. मैं पुणे के लिए निकल चुकी हूं. लेकिन यहां आगे एक कार ऐक्सिडैंट हुआ है. ट्रैफिक में फंस चुकी हूं. मैं किसी दूसरे के फोन से आप से बात कर रही हूं. आप चिंता न करें. मैं आती हूं सुबह तक.’’

‘‘ठीक है. अपना खयाल रखना और हां, सुबह वे लोग तुम्हें देखने आएंगे. ज्यादा देर मत करना.’’

सुरभि ने गुस्से में फोन काट दिया. ‘‘मैं यहां उल?ा हूं और इन्हें तो उन मेहमानों की ही पड़ी है.’’ संभव उस की ओर देख रहा था. गुस्से में वह निहायत खूबसूरत नजर आ रही थी, नाम भी उस का कितना खूबसूरत था…सुरभि.

‘‘सौरी, मैं ने अपना गुस्सा आप के फोन पर निकाला,’’ सुरभि की आवाज से संभव ने अपना होश संभाला.

‘‘इट्स ओके, लेकिन आप चिंता मत कीजिए. सुबह तक आप पुणे पहुंच जाओगी. सौरी, मैं ने आप की बातें सुन लीं. बाय द वे, मैं संभव. मैं भी पुणे जा रहा हूं.’’

‘‘मैं सुरभि, आप की बहुत आभारी हूं कि आप के फोन के कारण मैं घर कौल कर सकी.’’ तभी बस में से एक लड़कों का गु्रप सामान ले कर नीचे उतर रहा था. संभव ने उन से पूछा, ‘‘यह क्या, आप सब कहां जा रहे हो?’’

‘‘देखो भैया, हम हरदम इसी रास्ते से सफर करते हैं. यहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है. यहां 2-3 किलोमीटर पर पगडंडी रास्ता है. आगे छोटीछोटी गाडि़यां मिल जाती हैं पुणे जाने के लिए. उधर जा रहे हैं हम.’’

‘‘लेकिन इतने अंधेरे में, रास्ता महफूज है क्या?’’

‘‘हां, हम कई बार जाते हैं इस रास्ते से और हमारे पास टौर्च भी है.’’

संभव ने सुरभि की ओर देखा. सुरभि सोच में पड़ी थी. उस गु्रप में 2-3 लड़कियां भी थीं. माना कि वह किसी को पहचानती नहीं थी. फिर भी कराटे चैपिंयन होने के कारण, कुछ हुआ तो वह खुद को संभाल सकती थी. वहीं, संभव का बरताव उसे काफी विश्वासभरा लग रहा था. इसलिए उस ने भी तुरंत हामी भर दी. वे दोनों उस ग्रुप के साथ नीचे उतर कर पगडंडी के रास्ते पर चलने लगे.

वे लड़केलड़कियां एक ही कालेज में पढ़ने वाले थे. उन से दोस्ती कर वे दोनों भी साथसाथ चल रहे थे. मोबाइल पर सुरीले गीत चल रहे थे. रास्ता घने जंगल का था. मगर पूनम का चांद उस की शीतल छाया का अस्तित्व महसूस करा रहा था. इसलिए रात इतनी कठिन नहीं लग रही थी. चलतेचलते अचानक सुरभि का पैर एक पत्थर से फिसल गया. वह लुढ़क रही थी कि संभव ने उसे सहारा दिया. पलभर के लिए इस स्पर्श से दोनों के मन में कुछ हलचल मची. कुछ पल वे एकदूसरे की बांहों में थे. मोबाइल पर गाना बज रहा था.

नीलेनीले अंबर पर चांद जब आए,

प्यार बरसाए हम को तरसाए.

ऐसा कोई साथी हो ऐसा कोई प्रेमी हो,

प्यास दिल की बुझा जाए…

उन लड़कों की हंसी से वे होश में आए. सुरभि शरमा कर संभव से दूर हो गई. संभव भी अपनी नजर चुराने लगा.

‘‘इट्स ओके, यार, कभीकभी होता है ऐसा. लेकिन संभल के चलो अब.’’

सुरभि को चलने में दिक्कत हो रही थी. पत्थर से फिसलने से शायद उस के पांव में मोच आ गई थी. वह लंगड़ा कर चल रही थी. संभव ने पूछा, ‘‘सुरभि, तुम्हारे पांव में ज्यादा लगी है क्या, तुम ऐसे लंगड़ा कर क्यों चल रही हो?’’

अभीअभी घटी घटना से सुरभि संभव की नजर से नजर मिलाना टाल रही थी. वह संभव के व्यक्तित्व से तो प्रभावित हुई थी, लेकिन उस का स्पर्श और आंखों की चिंता देख कर वह उस में उलझती जा रही थी. वह घर क्यों जा रही है, यह उसे याद आया. वह आज तक पढ़ाई का कारण बता कर शादी की बात टालती आ रही थी, मगर अब पढ़ाई पूरी होने के बाद वह यह बात टाल नहीं सकती थी, कल उसे इसी कारण घर जाना था.

‘‘सुरभि, क्या कह रहा हूं मैं, तुम्हारा ध्यान कहां है? थोड़ा रुकना चाहती हो क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. पांव में मोच आई है. लेकिन मैं चल सकती हूं.’’

फिर भी संभव ने उसे सहारा दिया. ‘‘देखो, सुरभि, हमारी पहचान बस कुछ घंटों पहले ही हुई है, लेकिन तुम्हें पुणे तक महफूज ले जाना मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं. तुम कुछ अलग मत सोचो. चलो,’’ संभव का हाथ उस के हाथ में था. क्या था उस स्पर्श में? विश्वास, दोस्ती, चिंता. सुरभि उसे न नहीं कह सकी. हालांकि संभव पहली बार किसी लड़की के साथ ऐसा बरताव कर रहा था, लेकिन सुरभि के बारे में उसे क्या महसूस हो रहा था, यह वह नहीं जानता था. उस की हर अदा, बोलने का स्टाइल, उस के हाथ का कोमल स्पर्श और सब से अहम कि उस का संभव के प्रति विश्वास, इन सब के बारे में वह सोच रहा था.

‘‘संभव, तुम्हें मेरे कारण काफी परेशानी उठानी पड़ रही है.’’

‘‘सुरभि, तुम ऐसा क्यों कह रही हो. ऐसा सोचो कि एक दोस्त दूसरे दोस्त की मदद कर रहा है,’’ वह मुसकराया.

‘‘तुम्हारी यह मुसकराहट किलर है.’’

‘‘क्या?’’

वह क्या बोल गई, यह उस के ध्यान में आते ही उस ने अपनी जबान दांतों तले दबाई. फिर संभव ने हंस कर उस की ओर देखा. कालेज के गु्रप के साथ बाते करतेकरते सफर कब खत्म हुआ, इस का पता ही नहीं चला. वे जंगल से बाहर आ कर एक छोटे रास्ते पर आए. वहां एक छोटा सा होटल था. संभव और सुरभि ने अपना और्डर दिया. सुरभि फ्रैश हो कर हाथपांव धो कर आई. पानी की हलकी बूंदें अभी भी उस के बालों से लिपटी थीं.

‘कितनी खूबसूरत दिखती है यार, इस का हर रूप मुझे दीवाना बना रहा है. लेकिन क्या फायदा, इस मुलाकात के बाद हमारी राहें हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी,’ सोचते हुए संभव के चेहरे पर मायूसी छा गई.

‘‘संभव, क्या हुआ? इस चांदनी रात में गर्लफ्रैंड की याद आ रही है क्या?’’

सुरभि के चेहरे के शरारती भाव देख कर संभव के मन से तनहाई के खयाल कहीं गुम हुए.

‘‘नहीं, अरे मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है. आओ, खाना खाते हैं.’’ हालांकि, यह जान सुरभि मन ही मन खुश हुई थी. उस ने उसी खुशी में खाना खत्म किया.

तब तक लड़कों ने गाड़ी बुक कर ली थी. गाड़ी में भी सुरभि संभव के पास ही बैठी थी. यह इस सफर का आखिरी दौर था. गाड़ी शुरू होते ही थकान से सुरभि की गरदन हलके से संभव के कंधे पर लुढ़क गई. संभव भी थका हुआ था. वह ये खूबसूरत पल अपने मन के किसी कोने में स्टोर करना चाहता था.

ड्राइवर ने जैसे ही गाड़ी का ब्रेक लगाया वैसे ही सुरभि जाग गई. उस का स्टौप आया था. सुरभि ने जाते-जाते फिर एक बार संभव का हाथ थामा. ‘‘संभव, यह सफर मैं कभी भी नहीं भूलूंगी. यह हमेशा मेरी खूबसरत स्मृतियों में रहेगा,’’ वह काफी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द उस की जबान पर नहीं आ रहे थे. शब्द कब आंसू बन कर आंखों से छलके, यह वह जान नहीं पाई. संभव भी इसी कशमकश से गुजर रहा था. उस ने उसे धीरे से सहलाया और भविष्य के सफर के लिए शुभकामनाएं दे कर गाड़ी में बैठ गया.

संभव घर पहुंचा. वह मां से कुछ न बोलते हुए जाने की तैयारी करने लगा. मां ने सोचा थका होगा. तय वक्त पर वे लड़की के घर पहुंच गए. संभव का किसी चीज में मन नहीं था. लड़की की मां उस की प्रशंसा कर रही थीं.

‘‘हमारी सुरु बहुत अच्छे दिमाग की है. उस के हाथ का एक अलग टैस्ट है.’’ फलानाफलाना. संभव को इन सब बातों से काफी चिढ़ थी. उस की नजर से सुरभि का चेहरा हट नहीं रहा था. वह सोचने लगा, ‘मां को तो मेरी शादी होने से मतलब है, फिर मैं कहीं से भी सुरभि को ढूंढ़ कर लाऊंगा.’ उस ने अपने मन में ठान लिया और गरदन ऊपर कर के कहा, ‘‘बंद करो यह सब, मु?ो ये शादीवादी नहीं करनी…’’ लेकिन आगे के शब्द वैसे ही होंठों पर रुक गए. क्योंकि सामने चाय की ट्रे ले कर सुरभि खड़ी थी. वह जान गया कि इस घर की सुरु उस की सुरभि ही थी.

‘‘क्या हुआ, संभव? कुछ कहना है क्या तुम्हें?’’ मां की आवाज से उस ने अपने होश संभाले. वह नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘मुझे शादी करनी है. लड़की मुझे पसंद है.’’

उस की इस बात से सब हैरान रह गए. लेकिन उन्हें उस से भी ज्यादा खुशी हुई. सुरभि की रातभर रो कर सूजी आंखों में खुशी के आंसू आए थे, लेकिन केवल संभव ही यह देख सका. सब की नजर से छिप कर इन 2 प्रेमी दिलों का मिलन शुरू हुआ था. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा जाते हैं. वह कहते हैं न,

दो दिल मिल रहे हैं

मगर चुपकेचुपके

सब को हो रही है

खबर चुपकेचुपके

लेखिका – सुवर्णा पाटिल

Solar से रोशन हो रहा लड़कियों का कैरियर

Solar : सोलर से रोशनी देने वाली लालटेन हो या लैंप, गांव की लड़कियों के जीवन को रोशन कर रहे हैं. लड़के भले ही पढ़ाई न कर रहे हों लेकिन लड़कियों को अब टेबरी और लालटेन की रोशनी से नजात मिल गई है. वे घर के अंदर सोलर की रोशनी में पढ़ाई कर रही हैं. सोलर से रोशनी देने वाले प्रोडक्टस औनलाइन भी खूब मिल रहे हैं. घर के बाहर लगने वाले खंभे भी आ गए हैं जिन को घर की छत और दीवारों पर लगाया जा रहा है. इन की कीमत 12 सौ रुपए से शुरू होती है.

लखनऊ के नंदौली गांव के अरुण सिंह बताते हैं, ‘हम ने खेत में सिंचाई के लिए सोलर पंप लगाया है. उस से हम अपने खेतों के साथ दूसरे के खेतों की भी सिंचाई करते हैं. आटाचक्की लगाई है. यह हमारे रोजगार का भी साधन बन गया है.’ सोलर पर सरकार 50 फीसदी अनुदान दे रही है. सोलर सिस्टम को और सस्ता व उपयोगी बनाने की जरूरत है. इस में इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी की क्वालिटी अच्छी की जाए.

सोलर का सालदरसाल प्रयोग बढ़ता जा रहा है. 2014 में 2.82 गीगावाट से बढ़ कर 2019 में 28 गीगावाट, 2022 में 54 गीगावाट, 2024 में 81 गीगावाट और 2025 में 100 गीगावाट प्रयोग होने लगा है. जैसेजैसे सोलर से बने उत्पाद ज्यादा सस्ते व टिकाऊ और भरोसेमंद होंगे, जनता इन का और प्रयोग करेगी. सोलर पैनल चोरी होने की घटनाएं बढ़ रही हैं, दूसरी तरफ सोलर पैनल जल्दी खराब हो रहे हैं. इस तरफ ध्यान देना जरूरी है.

New Web Series : ‘कन्नेडा’ पंजाबी की ऐसी छवि

New Web Series : रेटिंग – दो स्टार

अब तक किसी न किसी अजेंडा के तहत ही फिल्में बन रही थीं, पर अब अजेंडे के तहत वेब सीरीज भी बनने लगी हैं. लगभग डेढ़ वर्ष पहले हम ने ‘सरिता’ में ही लिखा था कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ और ‘जियो स्टूडियो’ को एक खास मकसद से खड़ा किया गया है. इन के मालिक लगातार नुकसान करते हुए भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं, पर इस की आड़ में देश में चल रहे या पनप रहे दूसरे ओटीटी प्लेटफार्म को खत्म करने का कुचक्र भी रचा जा रहा है. डेढ़ साल बाद आप देख सकते हैं कि डिज्नी प्लस हौटस्टार कहां गया. डिज्नी प्लस हौट स्टार पर ‘जियो’ का कब्जा हो गया है. अब यह ‘जियो स्टार’ हो गया है. इतना ही नहीं अमेजन की क्या हालत है, यह किसी से छिपा नहीं है? तो वहीं नेटफ्लिक्स की भी हालत पतली है. यदि इस पर बहुत गहराई से विचार किया जाए, तो अहसास होगा कि देश कहां जा रहा है. हम आखिर क्या बो रहे हैं. ओटीटी प्लेटफार्म की आड़ में कौन किस तरह के खेल में लिप्त है, यह फिलहाल हमारी समझ से परे बात है.

पिछले कुछ समय से भारत व कनाडा के बीच जो तनातनी बढ़ी है, वह किसी से छिपी नहीं है. कनाडा के प्रधानमंत्री भारतीयों के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं. कनाडा में भारतीय छात्रों को कई तरह से परेशान किया जा रहा है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा में जादातर पंजाबी भारतीय ही रह रहे हैं. पंजाबी छात्र ही वहां ज्यादा गए हैं. तो दूसरी तरफ हमारे अपने ही देश में कंगना रानौत से ले कर कई लोग पंजबी किसानों और पंजाब के निवासियों के खिलाफ आग उगलते हुए ड्रग्स के व्यापारी से ले कर पता नहीं क्या क्या संज्ञा दे रहे हैं.

अब 21 मार्च से मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के स्वामित्व वाले ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो स्टार’ पर चंदन अरोड़ा निर्देशित 8 एपीसोड की वेब सीरीज, जिस की लंबाई लगभग साढ़े चार घंटे है, ‘कन्नेडा’ स्ट्रीम होनी शुरू हुई है. इस सीरीज में रंगभेद व नस्लभेद को कहानी का आधार बनाया गया है, मगर दूसरे एपिसोड से अंत तक यह सीरीज सिर्फ इसी बात का चित्रण करती है कि कनाडा के वैंकुवर शहर में रह रहे सभी अप्रवासी भारतीय पंजाबी हैं,और यह सभी ड्रग्स, ह्यूमन तस्करी के साथसाथ बंदूक, गोली बारी व खूनखराबा में लिप्त हैं.

सीरीज दावा करती है कि यह सीरीज सत्य घटनाक्रम पर आधारित है. इन में वह पंजाबी हैं, जो कि 1984 के दंगे में पंजाब राज्य की धरती के लाल होने पर उज्जवल भविष्य की तलाश में कनाडा के वैंकुवअर शहर पहुंचे थे. इस सीरीज में इस के अलावा भारतीयों के मान सम्मान पर कोई बात नहीं कही गई है. नस्लभेद/ रंगभेद पर भी कोई टिप्पणी नहीं है. तो क्या यह सीरीज पंजाबी भारतीयों को पूरे विश्व के समक्ष बदनाम करने, उन की गलत तस्वीर पेश करने के लिए किसी साजिश के तहत बनायी गई है. इस का जवाब तो दर्शक इस सीरीज को देख कर ही दे सकेगा.

मगर अभी तो इस सीरीज का यह पहला सीजन ही आया है. इस का अगला सीजन जल्द आने वाला है लेकिन इस पर बहस जरुर होनी चाहिए कि क्या इस तरह की सीरीज बननी चाहिए?

कनाडा में सदैव रंगभेद व नस्लभेद के आधार पर भेदभाव होता रहा है और आज भी हो रहा है. सीरीज इसी पर केंद्रित होनी चाहिए थी, मगर सह लेखक व निर्देशक चंदन अरोड़ा सत्य घटनाओं के नाम पर आधारित सीरीज के नाम पर इस सीरीज में पंजाबियों को ड्रग्स के धंधे में लिप्त होने के साथ ही बंदूकों और खूनखराबे वाली जिंदगी का ही चित्रण किया है. इस के अलावा इस सीरीज में कुछ नहीं है.

कन्नेडा वेब सीरीज के नरेटर/ सूत्रधार मोहम्मद जीशान अय्यूब के शब्दों में कहें तो इसे समझने के लिए कनाडा देश को समझना होगा, जहां दो देश बसते हैं. एक गोरों की फर्स्ट वर्ल्ड कंट्री ‘कैनेडा’ और दूसरा थर्ड वर्ल्ड कंट्री से आए प्रवासियों का ‘कन्नेडा’, जिस के निवासियों को सेकंड क्लास सिटीजन समझा जाता था. यह कहानी इसी तबके के एक ऐसे रैपर निर्मल चहल उर्फ निम्मा (परमीश वर्मा) की है, जो कनाडा और कन्नेडा के बीच की दूरी को मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. यह कहानी केवल कनाडा के वेंकुवअर शहर तक ही सीमित है. निर्मल चहल उर्फ निम्मा का अतीत परेशानियों से भरा है. वह संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहता है. उस के संगीत को काफी पसंद किया जाता है. वह दलजीत (आदार मलिक) संग मिल कर गीत संगीत बनाता है. दलीजत की बहन हरलीन ( जैस्मीन बाजवा ) से उस का रोमांस भी चल रहा है. वह स्कौलरशिप ले कर पढ़ाई करना चाहता है. इसीलिए स्पोर्टस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा है.

कालेज में वह गोरों के खेल रग्बी में सिलेक्ट होने वाला पहला सांवला लड़का बनता है, मगर गोरे साजिशन उसे ड्रग रखने के जुर्म में फंसा कर टीम से निकाल देते हैं. इस के बाद निम्मा को यकीन हो जाता है कि वह कितनी भी मेहनत कर ले, खुद को सुपीरियर समझने वाले कनाडा वासी उसे वह इज्जत नहीं देंगे. निम्मा निडर, बेबाक, महत्वाकांक्षी है. वह सपने भी बड़े ही देखता है. निम्मा का मानना है कि अगर आप के पास पैसा है तो सब कुछ संभव है. यही वजह है कि जेल से बाहर निकलने के बाद निम्मा कनाडा के ड्रग डीलर सरबजीत सिंह रंधावा (अरुणोदय सिंह) के साथ जुड़ जाता है, फिर उस की मुलाकात राजनेता रंजीत बाजवा (रणवीर शौरी) से होती है, जिस का वरद हस्त सरबजीत सिंह रंधावा पर है. जैसी कि उम्मीद थी, वह अपने सपनों को भूल जाता है और अपनी परिस्थितियों का शिकार बन जाता है. अंततः बुरे काम का बुरा नतीजा ही होना है.

इस पूरी कहानी को वैंकुवअर में कार्यरत एक भारतीय नारकोटिक्स अधिकारी, संजय (मोहम्मद जीशान अय्यूब) द्वारा सुनाया गया है, जो वैंकुवर में एक पुलिस अधिकारी है जो निम्मा व सरबजीत के हर कदम पर नज़र रखने में काफी तेज है. लेकिन जब उस के परिवार के सदस्यों के साथ जटिल गतिशीलता से निपटने की बात आती है तो वह कमज़ोर हो जाता है.

फिल्म एडीटर से निर्देशक बने चंदन अरोड़ा ने खुद ही इस का सह लेखन व संवाद भी लिखे हैं. पर उन्होंने बुरी तरह से निराश किया है. मशहूर फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने चंदन अरोड़ा को 2003 में निर्देशक बनाते हुए फिल्म ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी थी, जि सका बंटाधार करने में चंदन अरोड़ा ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.

इस के बाद 2005 में चंदन अरोड़ा ने असफल फिल्म ‘मैं ,मेरी पत्नी और वह’ का निर्देशन किया था. 2010 में ‘स्ट्राइकर’ का निर्देशन किया था. इस फिल्म ने भी बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था. तब बतौर निर्देशक उन्हें एक भी फिल्म नहीं मिली. अब पूरे 15 साल बाद चंदन अरोड़ा ने वेब सीरीज ‘कन्नेडा’ ले कर आए हैं.

चंदन अरोड़ा ने एक बेहतरीन विषयवस्तु को अपनी वेब सीरीज का आधार बनाया है. इन दिनों विदेशों में जिस तरह से अप्रवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं हैं. ‘कन्नेडा’ की कहानी विदेशी धरती पर भारतीयों द्वारा अपना अस्तित्व, अपना सम्मान तलाशने की जिद को दिखाती है. यानी कि सीरीज की शुरूआत तो अच्छी होती है. मगर दूसरे एपिसोड से ही लेखकीय टीम व निर्देशक अलग अजेंडे पर काम करने लगते हैं, जिस के चलते सीरीज व कहानी से ही उन की पकड़ कमजोर पड़ने लगती है. वह किसी भी चरित्र को पूरी गहराई से रचने में सफल नहीं हो पाए. दर्शक समझ ही नहीं पाता कि आखिर लेखक व निर्देशक क्या कहना या बताना चाहता है.

80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत में कनाडा में भारतीय पंजाबी समुदाय अपनी पहचान और नस्लवाद के खिलाफ लड़ रहा था, तो दूसरी तरफ समान अवसर के अधिकार के लिए देश में बढ़ती हिंसा को भी देख रहा था. अफसोस इस सीरीज में चंदन अरोड़ा इसे ठीक से चित्रित करने में बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म में निम्मा का एक संवाद है, ‘मैं उन चीज़ों की तस्करी करता हूं जिन की इजाज़त सरकार नहीं देती, उन की नहीं जिन की इजाज़त ज़मीर नहीं देता है.’ इस से निम्मा को ले कर जो बात उभरती है, वह बाद में अजीब घटनाओं में घिर जाता है. धीरेधीरे निम्मा की मूर्खताएं ही उजागर होती है. यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी का नतीजा है.

इतना ही नहीं ड्रग्स के व्यापार में लिप्त होते हुए भी निम्मा खुद कोकीन आदि का सेवन नहीं करता. पर अचानक सातवें एपिसोड में जिस तरह से निम्मा को कोक-सूंघने वाले गैंगस्टर के रूप में चित्रित किया गया है, वह हास्यास्पद ही नहीं बल्कि निर्देशकीय कमजोरी का प्रतिबिंब है.

निम्मा के गीत जिस तरह से युवा पीढ़ी को निडर बनाने के साथ ही मान सम्मान के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, उसे इस सीरीज में एक झलक से ज्यादा महत्व ही नहीं दिया गया.

सीरीज देखते हुए बोरियत तो होती ही है और साथ में हमें यह समझ में आता है कि निर्देशक का सारा ध्यान मूल समस्या की बजाय का सारा ध्यान भारतीय पंजाबियों की छवि को खराब करने, उन्हें अवैध व्यापार, बंदूक और गोली बारी व खूनखराबा का पर्याय साबित करने तक ही रहा. जो कि बहुत गलत है.

रैपर और गैंगस्टर निम्मा के दोनों ही रूपों में परमिश वर्मा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहते हैं. निम्मा के दर्द, गुस्से और महत्वाकांक्षा को परमिश ने अपने अभिनय से सच्चाई के साथ उजागर किया है. खलनायक सरबजीत रंधावा के किरदार में अरुणोदय सिंह इस सीरीज अपने अभिनय से लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं, पर अपनेआप को दोहराते भी हैं. राजनेता रंजीत बाजवा के किरदार में रणवीर शौरी ठीक ठाक हैं. यूं तो वह सीरीज में शो पीस के अलावा कुछ नहीं है. हरलीन के किरदार में जैस्मिन बाजवा के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. वैसे जैस्मीन बाजवा को अपने अभिनय पर काफी काम करने की जरुरत है.

निम्मा के दोस्त दलजीत के किरदार में आदार मलिक का अभिनय भी ठीक ठाक ही है. पुलिस अफसर संजय रावत के किरदार में जीशान अयूब कहीं से भी पुलिस वाले नहीं लगते. उन की चाल ढाल भी उन्हें पुलिस अफसर नहीं बताती.

Health Update : जाने गाउट की समस्या का क्या है कारण

Health Update : कई बार ऐसा हुआ कि सुरेश रात को सोतेसोते नींद से जग जाते और अचानक से अंगूठे में असहनीय दर्द की तकलीफ के बारे में बोलने लगते. शुरुआत में तो जब दर्द होता तो आराम के लिए पैनकिलर दवाई खा लेते लेकिन धीरेधीरे यह रोजाना का दर्द होने लगा तब उन्होंने डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि यह मामूली नहीं, बल्कि गाउट का दर्द है.

क्या होता है गाउट

गाउट का दर्द शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है. इस से जोड़ों, तरल पदार्थों व ऊतकों में क्रिस्टल एकत्रित हो जाते हैं. यह दर्द शरीर के एक हिस्से से शुरू होता है. दर्द अधिकतर रात को सोते समय ही होता है, ऐसा इसलिए क्योंकि सोते समय शरीर का तापमान कम हो जाता है.

शरीर में पानी की कमी व सांसों की गति में गिरावट आने के कारण फेफड़े पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऔक्साइड बाहर नहीं निकाल पाते. जिस कारण जोड़ों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो जाते हैं जिस से दर्द महसूस होता है और यही दर्द गाउट का दर्द कहलाता है.

लक्षण जानें

यह आमतौर पर अंगूठे से शुरू होता है. इलाज में देरी की जाए तो घुटने, टखने सहित पैर के सभी जोड़ों में परेशानी होने लगती है. इस से अचानक तेज दर्द, लालिमा, जलन और गांठ की समस्या होने लगती है.

कारण

· उच्च प्यूरिनयुक्त भोजन व शराब, मीठे पदार्थ, रेड मीट, सी फूड का अधिक सेवन.
· अगर परिवार में गाउट का इतिहास है तो आनुवंशिकी तौर पर इस की संभावना ज्यादा होती है.
· मधुमेह के रोगियों में इस का खतरा ज्यादा होता है.
· शरीर में पानी की कमी से भी जोड़ों में क्रिस्टल जमा हो जाते हैं.
· हाई बीपी की दवाएं भी यूरिक स्तर को बढ़ाती हैं.
· किडनी द्वारा यूरिक एसिड का कम या अधिक निष्कासन होना.

निदान

– बर्फ की सिंकाई, प्रोटीन, शराब व रेड मीट का सेवन कम करें.
– रोजाना व्यायाम करें, वजन नियंत्रित रखें.
– समस्या होने पर रक्त जांच व अंगूठे का अल्ट्रासाउंड अवश्य कराएं. बिना डाक्टर से परामर्श लिए दवाओं के सेवन से बचें.

Indian Youth : धर्म पंथ के चलते राजनीति से नाउम्मीद होते युवा

Indian Youth : रिपोर्ट चौंकाने वाली कम चिंतित करने वाली ज्यादा है जिस में यह तो बताया गया है कि भारतीय युवा बड़े पैमाने पर राजनीति से दूर हो रहे हैं. लेकिन इस बात का जिक्र या फिक्र रिपोर्ट में नहीं है कि ऐसा किस या किन वजहों के चलते हो रहा है. वाइव यानि वौइस फोर इन्क्लूजन बिलान्गिंग एंड एमपवार्मेंट और प्रोजैक्ट पोटेंशियल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 29 फीसदी युवा राजनीति से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं. 26 फीसदी किसी राजनीतिक दल से जुड़े बिना राजनीतिक चर्चाओं में हिस्सा लेते हैं सिर्फ 11 फीसदी ही किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के मेम्बर हैं.

रिपोर्ट में जोर दे कर यह बात कही गई है कि 81 फीसदी युवाओं में देश भक्ति की जज्बा है.

युवा अगर राजनीति से दूर और नाउम्मीद हो रहे हैं तो इस की एक बड़ी वजह वे धर्मपंथी हैं जो राजनीति को अपने कमंडल में कैद किए हुए हैं. जहां सवाल पूछने और तर्क करने की न तो गुंजाइश होती और न ही इजाजत होती. जबकि ये दोनों ही बातें युवावस्था की पहचान हैं. देश अभीअभी अरबोंखरबों के महाकुम्भ की डुबकियों से फारिग हुआ है. लेकिन इस के बाद जो सामाजिक अवसाद देश भर में पसरा है उस के सब से ज्यादा शिकार वे युवा हो रहे हैं जिन के सामने रोजगार का संकट और अनिश्चित भविष्य मुंह बाए खड़ा है.

कोई युवा यह नहीं पूछ पा रहा कि इस भव्य खर्चीले धार्मिक आयोजन से किसे क्या मिला. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद से इस जिज्ञासा का समाधान किया है लेकिन वह उतना ही बेदम है जितना यह भ्रम कि कुम्भ की डुबकी से मोक्ष मिलता है. किसी भी देश का युवा विपक्ष से ज्यादा सरकार से उम्मीदें रखता है कि वह उन के आने वाले कल के लिए ठोस नीतियां बनाए, रोजगार सृजित करे न कि धर्म कर्म से लबरेज जुमले परोसते ध्यान असल मुद्दों से भटकाए पर बदकिस्मती से हो यही रहा है.

तो ऐसे माहौल में जिस में कब्र पर विवाद और फसाद होते हों, जिस में अदालत बलात्कार की तैयारी की व्याख्या में सर खपा रही हो, ऐसे माहौल में जहां जज के यहां से करोड़ों का केश बरामद होता हो उस में युवाओं से क्या खा कर उम्मीद की जाए कि वे उस राजनीति में दिलचस्पी रखेंगे जो पूरी तरह धर्मपंथियों के शिकंजे में है और उन के लिए कुछ नहीं कर रही. दिक्कत तो यह भी कि विपक्ष भी कोई आश्वासन युवाओं को नहीं दे पा रहा.

देश का युवा हताश और निराश है और डिलेवरीबौय बन कर रात के 2 – 3 बजे तक आंखें फोड़ कर सपने तोड़ कर सामान घरों में डिलीवर कर रहा है.

भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के बाहर रात 4 बजे एक उबर ड्राइवर केशव से इस बारे में सवाल किया गया तो उस ने बेहद तल्ख़ लहजे में कहा, “माफ करें भाईसाहब, मेरा सर ऐसी बातों से फटता है मेरी चिंता और परेशानी ये हैं कि आज बुकिंग कम मिलीं.”

कितना सिमट गया है देश का युवा यह केशव के जवाब से समझ आता है कि वाइव के सर्वे में नया कुछ नहीं है. युवा अब किसी जयप्रकाश नारायण का इंतजार नहीं करता, वह अन्ना हजारे के आंदोलन मंथन से निकले रत्नों का हश्र देख चुका है कि इन धर्मपंथियों ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें भी खोटा सिक्का साबित कर दिया. तो क्या युवा वर्ग यह स्वीकार और मान चुका है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी कुछ नहीं करेंगे सिवाय राजनीति के, इसलिए भरोसा उस भगवान पर ही क्यों न रखा जाए जिस के कहीं अतेपते नहीं.

World : क्या दुनिया खत्म होने वाली है?

World : महासागरों में कुछ असामान्य हो रहा है. गहरे समुद्र में अजीबोगरीब जीव सतह पर आ रहे हैं. हाल ही में मैक्सिको के समुद्र तट पर एक दुर्लभ ‘डूम्सडे’ मछली दिखाई दी है. इस मछली को ओरफिश कहा जाता है और यह दक्षिणी बाजा कैलिफोर्निया प्रायद्वीप के तट पर देखी गई है. क्या ये बदलते पर्यावरण के संकेत हैं या किसी बड़ी चीज की चेतावनी?

कहा जाता है कि यह मछली जबजब धरती पर आती है तब अपने साथ तबाही का भंयकर मंजर लाती है. हालांकि, विज्ञान ने इस मान्यता की पुष्टि नहीं की है. इसे सिर्फ संयोग माना जा सकता है.

सब से चर्चित रहस्यों में से एक है ओरफिश का अचानक प्रकट होना. यह एक मायावी, सांप जैसा प्राणी जिसे अकसर आपदा मिथकों से जोड़ा जाता है. यह आशंका फिर से बढ़ गई कि गहरे समुद्र में रहने वाली ये मछलियां भूकंप या सुनामी का संकेत देती हैं.

जापानी लोककथाओं में इन्हें ‘समुद्र देवता के दूत’ के रूप में देखा जाता है. ओरफिश एक गहरे समुद्र का जीव है जो आमतौर पर समुद्र की सतह से सैकड़ों-हजारों फुट नीचे रहता है. यह इंसानों को शायद ही कभी दिखाई देता है.

हालांकि, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि साल 2011 में जापान में आए विनाशकारी सुनामी और 9.0 तीव्रता के भूकंप से कुछ महीने पहले 20 से ज्यादा ओरफिश समुद्र तट पर मृत पाई गई थीं. इसलिए ओरफिश के समुद्र किनारे आने से भूकंप या सुनामी आने की संभावना जताई जा रही है.

वहीं, एंगलर फिश भी वहां दिखाई दे रही हैं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए. वैज्ञानिक इस पर ध्यान दे रहे हैं. यह मछली आमतौर पर 2,000 मीटर अंदर पानी में पाई जाती है. ऐसे में इस का ऊपर आना भी चिंता का विषय बन गया है.

हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि एंगलर फिश सतह के करीब क्यों दिखाई दे रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि महासागर के पानी के गरम होने से उन के प्राकृतिक आवास में बदलाव हो सकता है. ये परिवर्तन गहरे समुद्र में रहने वाली प्रजातियों के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं.

सभी असामान्य घटनाएं एक बड़े कारक की ओर इशारा करती हैं, वह है जलवायु परिवर्तन. जैसेजैसे ग्रह गरम होता है, वैसेवैसे महासागर का इकोसिस्टम बदल रहा है जिसे हम अब देख सकते हैं. बढ़ते तापमान, बदलती धाराएं और बदलते समुद्री आवास यह बता सकते हैं कि गहरे समुद्र के जीव अप्रत्याशित स्थानों पर क्यों दिखाई दे रहे हैं.

Politics : क्या ओबीसी को वानर सेना समझती है भाजपा ?

Politics : मंडल की राजनीति से ले कर पौराणिक कहांनियों तक के उदाहरण बताते हैं कि ओबीसी को इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता है. राज करने का अधिकार अभी भी राजा का होता है.

भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में अपने संगठन के चुनाव को ले कर हो होहल्ला मचा रही है. वैसे यह चुनाव से अधिक मनोनयन है. इस के जरिए प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है. इस चुनाव के जरिए भाजपा जाति के कार्ड की काट करना चाहती है. ऐसे में एक बार भाजपा ओबीसी को ढाल के रूप में प्रयोग करने की योजना बना रही है. उत्तर प्रदेश को भाजपा प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी कर दी है. इन 70 नामों में 25 ओबीसी, 6 एससी और 39 जनरल वर्ग के से हैं. जनरल में सब से अधिक 19 ब्राह्मण हैं. 70 नामों से 26 दूसरी बार जिलाध्यक्ष बने हैं. भाजपा ने महिला आरक्षण बिल का बड़ा शोर मचाया. महिला आरक्षण बिल का नाम नारी वंदन अधिनियम रखा लेकिन जब संगठन में हिस्सेदारी का सवाल आया तो 70 में से केवल 5 महिला नेताओं को जगह दी गई.

भाजपा ने उत्तर प्रदेश संगठन को 75 जिलें और 13 महानगर समेत 98 जिले माने जाते हैं. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए 50 जिलों में अध्यक्षों का निर्वाचन होना जरूरी होता है. अब प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम की घोषणा होनी है. भाजपा भविष्य के लाभ को देखते हुए ओबीसी का प्रयोग कर सकती है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा इन को फैसले लेने लायक पद भी देगी या केवल तमाशाई ही बना कर रखेगी.

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य थे. उन की अगुवाई में विधानसभा के चुनाव हुए. 1991 के बाद 2017 में भाजपा को बहुमत मिला. बहुमत हासिल करने के बाद जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का समय आया तो योगी आदित्यनाथ का नाम आगे कर दिया गया. इस को ले कर भाजपा संगठन में खींचतान बनी हुई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सब से अधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ. जहां उसे केवल 33 सीटें मिलीं और वह समाजवादी पार्टी से पीछे रह गई. इस नुकसान को समझते हुए भाजपा ओबीसी को अधिक महत्व देने का दिखावा कर रही है.

1990 के दशक में चलें तो मंडल कमीशन के दौर में भाजपा ओबीसी का विरोध कर रही थी. मंडल कमीशन का मुकाबला करने के लिए अयोध्या के मंदिर का आंदोलन शुरू कर दिया. ‘मंडल‘ बनाम ‘कमंडल’ की राजनीति ने पिछडों को बहुत नुकसान पहुंचाया था. पिछड़ों की अगुवाई करने वाली सपा और बसपा में तोड़फोड़ कर माया और मुलायम को अलगअलग कर दिया. इसी तरह से बिहार में रामविलास पासवान के साथ किया. उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी राजनीति का खत्म कर दिया.

काम निकल जाने के बाद छोड़ देने की पंरपरा

देखा जाय तो यह पंरपरा पुरानी है. रामायण काल में भी राम ने रावण से लड़ने की योजना तैयार की तो वानर सेना तैयार की. एक लाख की वानर सेना ने पगपग पर रावण से लड़ाई में राम का साथ दिया. समुद्र में वह स्थान खोजा जहां से लंका तक पहुंचना सरल था. समुद्र पर पुल बनाने सीता का पता लगाने जैसे काम में वानर सेना का प्रमुख रोल था. रावण की विशाल सेना को वानरों की सेना ने पसीने छुड़ा दिए थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

रामायण के उत्तर कांड में बताया गया है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो राम ने उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया. अंगद को युवराज बना दिया. नल नील सुग्रीव के राज्य में मंत्री बने. अयोध्या में जब राम का राज्याभिषेक हुआ तो वानर सेना वहां भी आई थी. राजा बनने के बाद राम ने वानर सेना को अपने दरबार में कोई पद नहीं दिया. इस के बाद वानर सेना वापस चली गई. जिस वानर सेना ने राम का साथ दिया उन को युद्व जितने में मदद की उसे राजा बनने के बाद कुछ नहीं दिया गया.

रामायण ही नहीं महाभारत में भी ऐसे उदाहरण हैं. भीम ने हिडिंबा से विवाह किया था. हिडिंगा राक्षसी थी. भीम और हिडिंबा से घटोत्कच नाम का पुत्र हुआ. जिस को कभी भी पांडव ने स्वीकार नहीं किया. जब कौरव और पांडव के बीच महाभारत का युद्व होने लगा तो कौरव की सेना भारी पड़ने लगी. ऐसे में पांडव को घटोत्कच की जरूरत पड़ी तब उस को भीम के पुत्र के रूप में लड़ाई में शामिल करने को कहा गया. घटोत्कच का पता था कि लड़ाई के मैदान में उस का मुकाबला कर्ण से होगा. वह मारा जाएगा इस के बाद भी घटोत्कच ने लड़ाई लड़ी और मारा गया.

महाभारत में ही दूसरा प्रंसग एकलव्य का है. एकलव्य अर्जुन से भी अधिक श्रेष्ठ धनुर्धारी था. गुरू द्रोणाचार्य यह नहीं चाहते थे कि उन के शिष्य अर्जुन से श्रेष्ठ कोई दूसरा धनुर्धारी हो, इसलिए उन्होने अपनी गुरूदक्षिणा के नाम पर एकलव्य का अंगूठा ही मांग लिया था. जहां भी राजा को राज करने की जरूरत पड़ती है वह घटोत्कच को अपना लेता है और जहां ही उसे बराबरी का हक देने की बात आती है वहां उस को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

मनुस्मृति के दिखाए राह पर चल रहे ओबीसी और एससी

समुद्र मंथन के समय भी ऐसा हुआ. समुद्र मंथन के लिए देवताओं ने राक्षसों का साथ लिया. जब अमृत पीना था तो आपस में बांट लिया और मदिरा राक्षसों के हवाले कर दी. भाजपा पौराणिक कथाओं पर यकीन कर उसी राह पर चलने वाली पार्टी है ऐसे में वह राजनीति में भी इसी तरह का काम कर रही है. जब जरूरत होती है ओबीसी को अपना लेती है और बराबरी का अधिकार देते समय पीछे हट जाती है. भाजपा के ओबीसी या एससी नेता मनुस्मृति के दिखाए रास्ते पर ही चल रहे हैं.

भाजपा संगठन हो या सरकार यह ओबीसी का प्रयोग कर रहे हैं. कमोवेश यही बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के पहले से कहते आ रहे हैं. वह ओबीसी स्तर के सचिवों के नाम पूछते हैं. राहुल गांधी ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि देश की सरकार को 90 आईएएस अफसर चलाते हैं. इन में केवल 3 ओबीसी जाति के हैं. ब्यूरोक्रेसी की बात हो या राजनीति की हर जगह पर ओबीसी केवल प्रयोग किए जा रहे हैं. असल में इन को अधिकार नहीं दिए जा रहे है.

भाजपा संगठन को चलाने का काम आरएसएस करता है. वहां केवल मनुस्मृति की दिखाई राह पर चलने वाले लोग हैं. ऐसे में संगठन के पदों पर कितने ही ओबीसी बैठ जाएं उन का महत्व उतना ही है जितना यूपी की सरकार चलाने में केशव प्रसाद मौर्य की.

अगर भाजपा ओबीसी की शुभचिंतक होती तो जातीय गणना कराने को ले कर उस के खिलाफ नहीं होती. देश में 60 फीसदी से अधिक ओबीसी के लोग हैं लेकिन उन को ब्राहमण राज के आधीन काम करना पड रहा है. जातीय गणना से सही तस्वीर सामने आएगी इस कारण भाजपा उस को सामने लाने से बच रही है. अपने संगठन में नाममात्र के पदों पर ओबीसी को आगे कर के जातीय गणना के मसले को टालना चाहती है.

Motivational : अनुशासन, उत्साह, आत्मीयता उत्पादकता की कुंजी

Motivational : यदि व्यक्ति अनुशासित और व्यवस्थित है तो वह बेहतर उत्पादक होने के साथसाथ सफल भी होता है. उस में नेतृत्व क्षमता भी होती है और वह ज्यादा भरोसेमंद होता है.

हर काम एक खास चीज की मांग करता है. उस का नाम है अनुशासन और समर्पण. अपने भीतर आत्मअनुशासन को जाग्रत कर के कोई काम करने का संकल्प करना चाहिए. आत्मअनुशासन अर्थात अपने बिखरे हुए विचारों को एक तरफ लगा देना. आत्मअनुशासन से काम का आरंभ इतना अच्छा हो जाता है कि सफलता तय हो जाती है. एकाग्रता इतनी फलदायक है कि इसे धारण करते ही काम में निखार आने लगता है. एकाग्रता को हम बाजार से नहीं खरीद सकते. यह हम को अपने संकल्प से अपनी इच्छाशक्ति से विकसित करनी होती है. एकाग्रता से आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और आत्मनियंत्रण भी प्राप्त हो जाते हैं.

सकारात्मक चिंतन जरूरी

स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए हैं. वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गए. कलाकार उन्हें अपने स्टूडियो में ले गया और मूर्तियां दिखाने लगा. दिखातेदिखाते एक मूर्ति के सामने आया बोला, ‘यह मेरी नई रचना है.’ इतना कह कर उस ने उस पर से गीला कपड़ा हटाया. फिर मूर्ति को ध्यान से देखा.

उस की निगाह उस पर जमी रही. जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया, ‘इस के कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है.’ उस ने ठीक किया. फिर कुछ कदम दूर जा कर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया. इस तरह एक घंटा निकल गया.

ज्विग चुपचाप खड़ेखड़े देखते रहे. जब मूर्ति से संतोष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया. दरवाजे पर पहुंच कर उस की निगाह पीछे गई तो देखता क्या है कि कोई पीछेपीछे आ रहा है. अरे, यह अजनबी कौन है? उस ने सोचा, घड़ीभर वह उस की ओर ताकता रहा. अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था. वह लज्जा गया, बोला, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना. मैं आप को एकदम भूल ही गया था.’’

ज्विग ने अपनी आत्मकथा में प्रसंग लिखा है, ‘‘उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं में सब से बड़ी क्या और कौन सी कमी थी. शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है जब आदमी अपनी सारी शक्तियां बटोर कर उन को एक ही जगह पर केंद्रित कर देता है.’’

ऐसा भी कहते हैं कि सफलता केवल तब ही मिल पाती है जब हमारे भीतर एक सकारात्मक चिंतन की अविरल धारा चलती है. सकारात्मक विचार अगर स्वभाव में होते हैं तब लक्ष्य साधने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती.

उदाहरण के लिए वनवासी एकलव्य की सकारात्मक दूरदृष्टि. उस ने बिना किसी शिकवा और शिकायत के गुरु को साक्षी मान कर धनुर्विद्या सीखनी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप वह एक सर्वोत्तम धनुर्धर बना. यह सकारात्मकता विविधरंगी है- कभी उमंग और तरंग, कभी कल्पनाशीलता, कभी उत्साह, कभी आत्मीयता, कभी समाज के लिए अपनापन, मददगार भाव आदि के रूप में परिलक्षित होती रहती है.

मिशन के प्रति समर्पित विनोबा

कई बार अनुशासन या सकारात्मकता शोर मचा कर अभिव्यक्त नहीं होती. शब्दों से परे और भावनाओं से लबरेज यह सकारात्मकता समुचित दृष्टिकोण वालों के लिए दर्शनीय, मोहक और मौन होती है.

हजारों शब्दों की जगह यही मौन सबकुछ कह देता है. अगर सही विचार हों तो इस अद्भुत सकारात्मक भाव की एक झलक में पूरा जीवन दिख जाता है. एक सफल और संतुष्ट जीवन जो सकारात्मक है वह जीवन के अंधकार में भी उजाला, पराजय में जय और प्रसन्नता तथा अच्छी गति की तरफ ही देखता है और उसे पा भी लेता है. इसे महर्षि विनोबा भावे के जीवन से कुछ इस तरह समझ सकते हैं.

10 साल तक विनोबाजी सारे देश में पैदल घूमते रहे. वे प्यार से उन लोगों से जमीन लेते जिन के पास थी और प्यार से उन्हें दे देते थे जिन के पास नहीं थी. विनोबाजी के पेट में अल्सर था. वह कभीकभी बड़ा दर्द करता था. उन्हें बड़ी हैरानी होती थी पर उन की यात्रा नहीं रुकती थी. एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डाक्टरों ने उन की जांच की. अच्छी तरह से देखभाल कर के उन्होंने विनोबाजी से कहा, ‘‘आप की हालत गंभीर है. आप 8 महीने आराम करें.’’

विनोबाजी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हालत अच्छी नहीं है तो आप ने 4 महीने क्यों छोड़ दिए? अरे, आप को कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करो.’’ डाक्टरों ने कहा, ‘‘आप पैदल चलना छोड़ दें.’’

विनोबाजी ने उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे पेट में दर्द है, पैरों में नहीं.’’ विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नहीं की. लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होंने जवाब दे दिया, ‘‘सूर्य कभी नहीं रुकता, नदी कभी नहीं ठहरती, उसी अखंड गति से मेरी यात्रा चलेगी.’’

उन की इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर उन्हें कोई 45 लाख एकड़ भूमि मिल गई. यह अनुशासन है ही इतना चमत्कारी कि इस से आत्मरुचि, आत्मनियंत्रण, स्वावलंबन भी उत्पन्न होते हैं.

रचनात्मक बनाता अनुशासन

अनुशासन का अभ्यास हम को रचनात्मक, आनंददायक और उत्पादक जीवन जीने के योग्य बनाता है. अनुशासन से हम समय प्रबंधन की कला भी सीख लेते हैं. समय प्रबंधन हम को किसी भी चुनौती को समझने तथा उस से निबटने में दक्ष व कुशल बनाता है. कुल मिला कर अनुशासन हमारी भीतरी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो हम को जीवन में बेहद आगे ले जा सकता है.

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